JAC Board Class 10th Social Science Notes Geography Chapter 3 जल संसाधन
पाठ सारांश
- हमारे धरातल के लगभग तीन-चौथाई भाग पर जल का विस्तार पाया जाता है। जिसमें प्रयोग में लाने योग्य अलवणीय जल का अनुपात बहुत कम है।
- सतही अपवाह एवं भौमजल स्रोत से हमें अलवणीय जल की प्राप्ति होती है।
- हमें प्राप्त होने वाले अलवणीय जल का लगातार नवीनीकरण एवं पुनर्भरण जलीय-चक्र द्वारा होता रहता है।
- जल एक चक्रीय संसाधन है। यदि इसका उचित तरीके से उपयोग किया जाए तो इसकी कमी नहीं होगी।
- जल के नवीकरण-योग्य संसाधन होने के बावजूद आज विश्व के अनेक देशों व क्षेत्रों में जल की कमी दिखाई देती है।
- भारत में तीव्र गति से उद्योगों की बढ़ती संख्या के कारण अलवणीय जल संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है।
- वर्तमान समय में भारत में कुल विद्युत का लगभग 22 प्रतिशत भाग जल-विद्युत से प्राप्त किया जाता है।
- यह एक चिंता का विषय है कि लोगों की आवश्यकता के लिए प्रचुर मात्रा में जल उपलब्ध होने के बावजूद यह घरेलू व औद्योगिक अपशिष्टों, रसायनों, कीटनाशकों एवं कृति में प्रयुक्त किए जाने वाले उर्वरकों द्वारा प्रदूषित है। ऐसा जल मानव उपयोग के लिए खतरनाक है।
- हमारे देश में प्राचीनकाल से ही सिंचाई के लिए पत्थरः मलबे से बाँध निर्माण, जलाशय अथवा झीलों के तटबन्ध व नहरों जैसी उत्कृष्ट जलीय कृतियाँ बनायी गयी हैं।
- हमारे देश में चन्द्रगुप्त मौर्य के.शासनकाल में बड़े पैमाने पर बाँध, झील व सिंचाई क्षेत्रों का निर्माण करवाया गया।
- 11वीं सदी में बनवाई गई भोपाल झील अपने समय की सबसे बड़ी कृत्रिम झीलों में से एक थी।
- परम्परागत बाँध, नदियों तथा वर्षा जल को एकत्रित करने के पश्चात् उसे खेतों की सिंचाई हेतु उपलब्ध करवाते थे।
- वर्तमान में बाँधों का उद्देश्य न केवल सिंचाई अपितु विद्युत उत्पादन, घरेलू व औद्योगिक उपयोग, जल आपूर्ति, बाढ़ नियन्त्रण, मनोरंजन, आंतरिक नौचालन तथा मछली पालन इत्यादि भी है।
- बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं में भाखड़ा नांगल व हीराकुड परियोजना आदि प्रमुख हैं। पं. जवाहरलाल नेहरू गर्व से बाँधों को ‘आधुनिक भारत के मन्दिर’ कहते थे।
- बहुउद्देशीय परियोजनाएँ एवं बड़े-बड़े बाँध नये सामाजिक आन्दोलनों, जैसे-नर्मदा बचाओ आन्दोलन एवं टिहरी बाँध आन्दोलन के कारण भी बन गये हैं। इन परियोजनाओं का विरोध मुख्य रूप से स्थानीय समुदायों के अपने स्थान से बड़े पैमाने पर विस्थापन के कारण है।
- नर्मदा बचाओ आन्दोलन एक गैर सरकारी संगठन (NGO) है। यह गुजरात में नर्मदा नदी. पर सरदार सरोवर बाँध के विरोध में जनजातीय लोगों, किसानों, पर्यावरणविदों तथा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को लामबंद करता है।
- जल संरक्षण हेतु भारत के पहाड़ी व पर्वतीय क्षेत्रों में लोगों ने ‘गुल’ अथवा ‘कुल’ (पश्चिमी हिमालय) जैसी वाहिकाएँ, नदी की धारा का रास्ता बदलकर खेतों में सिंचाई के लिए निर्मित की हैं।
- राजस्थान में पीने का जल एकत्रित करने के लिए ‘छत वर्षाजल संग्रहण’ एक प्रचलित तकनीक है।
- शुष्क व अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र में खेतों में वर्षा जल एकत्रित करने के लिए गड्ढे बनाये जाते हैं। राजस्थान के जैसलमेर जिले में ‘खादीन’ (खडीन) व अन्य क्षेत्रों में ‘जोहड़’ इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
- मेघालय राज्य में नदियों व झरनों के जल को बाँस से बने पाइप द्वारा एकत्रित करके सिंचाई की जाती है। यह लगभग 200 वर्ष पुरानी विधि है जो आज भी प्रचलित है।
- तमिलनाडु भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ सम्पूर्ण राज्य में प्रत्येक घर में छत वर्षाजल संरक्षण ढाँचों का निर्माण अनिवार्य कर दिया गया है। इसका उल्लंघन करने पर कानूनी कार्यवाही का भी प्रावधान है।
→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. अलवणीय जल: नमकरहित अर्थात् मीठे जल को अलवणीय जल कहा जाता है।
2. भौमजल स्रोत: धरातल के नीचे चट्टानों की दरारों व छिद्रों में अवस्थित जल, भौमजल कहलाता है।
3. सतही अपवाह: धरातल पर स्थित विभिन्न जलस्रोत-नदियाँ, झीलें, नहरें, या, विभिन्न जलाशय सतही अपवाह कहलाते
4. भूजल पुनर्भरण: वर्षा के रूप में पृथ्वी पर गिरने वाला पानी कई माध्यमों से मिट्टी में समाहित होकर भूमिगत जल स्तर तक पहुँचता है और भूजल स्तर की मात्रा में वृद्धि करता है। इसे ही हम भूजल पुनर्भरण कहते हैं।
5. जलीय चक्र: जल समुद्र, झील, तालाब, खेतों आदि से वाष्प बनकर उड़ता रहता है। जल-वाष्प हवा में संघनित होकर बादलों में बदल जाती है। यह संघनित जल-वाष्प पुनः वर्षा के रूप में धरती पर आ जाती है। धरती से जल पुनः सागरों आदि में पहुँचता है तथा पुनः जल का वाष्पीकरण होकर यही प्रक्रिया चलती रहती है। इस प्रकार जल एक चक्र के रूप में गतिशील रहता है। इसे ही जलीय चक्र कहते हैं।
6. जलभृत: जिन शैलों में होकर भूमिगत जल प्रवाहित होता है, उन्हें जलभृत (जलभरा) कहते हैं।
7. जल दुर्लभता: माँग की तुलना में जल की कमी को जल-दुर्लभता कहते हैं।
8. जल-संरक्षण: जल संरक्षण से आशय है जल का बचाव करना, जल को व्यर्थ नहीं बहाना, जल का दुरुपयोग नहीं करना और जल को जरूरत के समय के लिए बचाकर खना।
9. जल-प्रबन्धन: लगातार बढ़ती जनसंख्या के लिए पेयजल एवं कृषि फसलों की सिंचाई हेतु जल की भविष्य में आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए किये जाने वाले प्रयास जल-प्रबंधन कहलाते हैं।
10. पनिहारिन: सिर पर मटकों को रखकर जल लाने वाली महिलाएँ पनिहारिन कहलाती हैं।
11. अतिशोषण: अत्यधिक मात्रा में जल निकालने को अभिशोषण कहते हैं।
12. अपशिष्ट: उद्योगों से अपसारित होने वाले कूड़े-करकट को अपशिष्ट कहते हैं।
13. निम्नीकृत-संसाधनों की गुणवत्ता में कमी लाने को निम्नीकृत कहते हैं।
14. जलीय कृतियाँ-वे बाँध, जलाशय, झीलें, नहरें, कुएँ, बावड़ी आदि जिनमें वर्षा जल संग्रहीत किया जाता है, जलीय कृतियाँ कहलाती हैं।
15.. परिपाटी-परम्परा को ही परिपाटी कहते हैं।
16. जल-संसाधन-धरातल के ऊपर एवं भूगर्भ के आन्तरिक भागों में पाये जाने वाले समस्त जल-भण्डारों को जल संसाधन कहते हैं।
17. बहुउद्देशीय नदी परियोजना-एक नदी घाटी परियोजना जो एक साथ कई उद्देश्यों; जैसे-सिंचाई, बाढ़-नियन्त्रण, जल व मृदा का संरक्षण, जल विद्युत, जल परिवहन, पर्यटन का विकास, मत्स्य पालन, कृषि एवं औद्योगिक विकास आदि की पूर्ति करती है, बहुउद्देशीय नदी परियोजना कहलाती है, जैसे-भाखड़ा- नांगल परियोजना, चम्बल घाटी परियोजना . आदि।
18. टाँका-वर्षा जल को एकत्रित करने के लिए बनाया गया भूमिगत टैंक या कुऔं, टाँका कहलाता है।
19. सिंचाई-वर्षा की कमी या अभाव होने पर फसलों को कृत्रिम रूप से जल पिलाना सिंचाई कहलाता है।
20. जल-विद्युत-जल की गतिशील शक्ति का उपयोग कर तैयार की गई विद्युत को जल-विद्युत कहते हैं।
21. बाँस ड्रिप सिंचाई-बाँस की पाइप द्वारा बूंद-बूंद करके पेड़-पौधों की सिंचाई करना बाँस ड्रिप सिंचाई कहलाता है।
22. पालर पानी (Palar Pani)-पश्चिमी राजस्थान में वर्षा जल को पालर पानी भी कहां जाता है।
23. वर्षा-जल संग्रहण-वर्षा द्वारा भूमिगत जल की क्षमता में वृद्धि करने की तकनीक वर्षा-जल संग्रहण कहलाती है। इसमें वर्षा-जल को रोकने एवं एकत्रित करने के लिए विशेष ढाँचों जैसे-कुएँ, गड्ढे, बाँध आदि का निर्माण किया जाता है। इससे न केवल जल का संग्रहण होता है बल्कि जल भूमिगत होने की अनुकूल परिस्थितियाँ प्राप्त होती हैं।
24. मृदा-पृथ्वी की ऊपरी सतह जो चट्टानों एवं ह्यूमस से बनती है, मृदा कहलाती है।
25. वन-वृक्षों से भरा हुआ विस्तृत क्षेत्र वन कहलाता है।
26. बाँध-बहते हुए जल को रोकने के लिए खड़ी की गई एक बाधा जो आमतौर पर जलाशय, झील अथवा जलभरण बनाती है; बाँध कहलाती है।
27. बाढ़-किसी विस्तृत भू-भाग का लगातार कई दिनों तक अस्थायी रूप से जलमग्न रहना बाढ़ कहलाता है।