JAC Board Class 10th Social Science Notes Geography Chapter 4 कृष
पाठ सारांश
- भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत की लगभग दो-तिहाई जनसंख्या कृषि कार्यों में लगी हुई है।
- कृषि के माध्यम से ही खाद्यान्न एवं उद्योगों के लिए कच्चा माल उत्पादित किया जाता है।
- वर्तमान समय में भारत के विभिन्न भागों में कई प्रकार के कृषि तंत्र अपनाए गए हैं जिनमें प्रारम्भिक जीवन निर्वाह कृषि, गहन जीविका कृषि एवं वाणिज्यिक कृषि आदि प्रमुख हैं।।
- प्रारम्भिक जीवन निर्वाह कृषि, परम्परागत तकनीकों (जैसे-लकड़ी के हल, डाओं (duo) तथा खुदाई करने वाली छड़ी आदि) पर आधारित श्रम प्रधान कृषि पद्धति है। इसें ‘कर्तन दहन कृषि’ भी कहते हैं।
- कर्तन दहन कृषि (स्थानान्तरित कृषि) जंगलों में निवास करने वाले आदिवासी एवं पिछड़ी जातियों द्वारा की जाती है। इसमें वनों को जलाकर भूमि साफ करके, दो-तीन वर्षों तक कृषि की जाती है और जब मिट्टी की उर्वराशक्ति समाप्त हो जाती है तो उस भूमि को छोड़कर यही प्रक्रिया दूसरे क्षेत्रों में अपनाई जाती है।
- देश के विभिन्न भागों में कर्तन दहन कृषि को विभिन्न नामों से जाना जाता है। उत्तरी-पूर्वी राज्यों-असम, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड आदि में इसे ‘झूम’ कहा जाता है। जबकि मणिपुर में इसे ‘पलामू’ तथा छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले व अंडमान निकोबार द्वीप समूह में ‘दीपा’ कहा जाता है।
- गहन जीविका कृषि एक श्रम गहन खेती है जो भूमि पर जनसंख्या के अधिक दबाव वाले क्षेत्रों में की जाती है।
- रोपण कृषि वाणिज्यिक कृषि का एक प्रकार है। इस कृषि में एक ही फसल की प्रधानता होती है।
- भारत की रोपण फसलों में चाय, कॉफी, रबड़, गन्ना, केला आदि प्रमुख हैं। हमारे देश में तीन शस्य ऋतुएँ हैं- रबी, खरीफ एवं जायद रबी फसलों को शीत ऋतु में अक्टूबर से दिसम्बर के मध्य बोया जाता है व ग्रीष्म ऋतु में अप्रैल से जून के मध्य काटा जाता है। मुख्य रबी फसलों में गेहूँ, जौ, मटर, चना और सरसों आदि हैं।
- विभिन्न क्षेत्रों में खरीफ फसलें मानसून के आगमन के समय बोई जाती हैं व सितम्बर-अक्टूबर में काट ली जाती हैं।
- खरीफ की प्रमुख फसलों में चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर, मूंग, कपास, उड़द, जूट, मूंगफली, सोयाबीन आदि हैं।
- असम, पश्चिम बंगाल एवं उड़ीसा (ओडिशा) में चावल की तीन फसलें-ऑस, अमन व बोरो बोई जाती हैं।
- जायद में तरबूज, खरबूजा, खीरा, सब्जियाँ एवं चारे की फसलों की कृषि की जाती है। भारत में पैदा की जाने वाली प्रमुख फसलों में चावल, गेहूँ, मोटे अनाज, दालें, चाय, गन्ना, तिलहन, जूट आदि हैं।
- हमारे देश में अधिकतर लोगों का खाद्यान्न चावल है।
- भारत चीन के पश्चात् विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है। चावल की कृषि के लिए उच्च तापमान (25°C से अधिक) एवं अधिक वर्षा (100 सेमी. से अधिक) की आवश्यकता होती है। भारत के उत्तरी-पूर्वी मैदानों, तटीय क्षेत्रों एवं डेल्टाई प्रदेशों में चावल उत्पादित किया जाता है।
- गेहूँ, चावल के पश्चात् भारत की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है।
- गेहूँ उत्पादन के प्रमुख क्षेत्रों में उत्तर-पश्चिम में गंगा-सतलुज का मैदान एवं दक्कन का काली मिट्टी वाला प्रदेश है।
- भारत में उगाए जाने वाले प्रमुख मोटे अनाजों में ज्वार, बाजरा एवं रागी आदि हैं।
- ज्वार, क्षेत्रफल तथा उत्पादन के हिसाब से हमारे देश की तीसरी महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश तथा मध्य प्रदेश प्रमुख ज्वार उत्पादक राज्य हैं।
- बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य राजस्थान है, अन्य उत्पादक राज्यों में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा आदि हैं।
- महाराष्ट्र ज्वार का तथा कर्नाटक रागी का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है।
- भारत में मक्का खाद्यान्न एवं चारा दोनों रूपों में प्रयोग होने वाली फसल है। इसके प्रमुख उत्पादक राज्यों में कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना आदि हैं।
- सम्पूर्ण विश्व में भारत दालों का सबसे बड़ा उत्पादक एवं उपभोक्ता देश है। भारत में उत्पादित की जाने वाली दलहनी फसलों में अरहर, उड़द, मूंग, मसूर, मटर, चना आदि प्रमुख हैं।
- भारत में मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश एवं कर्नाटक में दालें अधिक उत्पादित की जाती हैं।
- गन्ना एक उष्ण व उपोष्ण कटिबंधीय फसल है जो अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में बोयी जाती है।
- ब्राजील के पश्चात् भारत गन्ने का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारत के प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगांना, बिहार, पंजाब, हरियाणा आदि हैं।
- भारत विश्व का सबसे बड़ा तिलहन उत्पादक देश है। यहाँ मूंगफली, सरसों, नारियल, तिल, सोयाबीन, अरंडी, बिनौला. अलसी, सूरजमुखी आदि तिलहन फसलें उगायी जाती हैं।
- चाय एक प्रमुख पेय पदार्थ की फसल है। भारत में प्रमुख चाय उत्पादक क्षेत्रों में असम, प. बंगाल में दार्जिलिंग व – जलपाईगुड़ी जिलों की पहाड़ियाँ, तमिलनाडु, केरल आदि हैं। भारत विश्व का अग्रणी चाय उत्पादक एवं निर्यातक देश है।
- भारतीय कॉफी अपनी गुणवत्ता के लिए सम्पूर्ण विश्व में जानी जाती है। यहाँ पैदा होने वाली अरेबिका किस्म की कॉफी प्रारम्भ में यमन से लायी गयी थी।
- भारत में कॉफी की कृषि नीलगिरि की पहाड़ियों के आसपास कर्नाटक, तमिलनाडु एवं केरल में होती है। विश्व में चीन के बाद सबसे अधिक फल एवं सब्जियों का उत्पादन भारत में होता है।
- भारत में रबर केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह व मेघालय में गारो पहाड़ियों में उत्पादित किया जाता है।
- कपास, जूट, सन तथा प्राकृतिक रेशम हमारे देश में उगायी जाने वाली प्रमुख रेशेदार फसलें हैं।
- रेशम के कीड़ों के पालन को. ‘रेशम उत्पादन’ (सेरीकल्चर) कहते हैं।
- भारत विश्व में चीन के बाद दूसरा प्रमुख कपास उत्पादक देश है। भारत के प्रमुख कपास उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, गुजरात, .मध्य प्रदेश, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश आदि हैं।
- जूट को सुनहरा रेशा कहा जाता है। भारत में यह पश्चिमी बंगाल, बिहार, असम, ओडिशा व मेघालय आदि राज्यों में अधिक उत्पादित होता है।
- स्वतन्त्रता के पश्चात् कृषि क्षेत्र में संस्थागत सुधार करने के लिए कृषि जोतों की चकबंदी व सहकारिता को प्राथमिकता दी गयी तथा जमींदारी प्रथा को समाप्त किया गया।
- भारत सरकार ने 1960 और 1970 के दशकों में अनेक कृषि सुधारों की शुरुआत की। इन सुधारों में पैकेज टैक्नोलॉजी पर आधारित हरित क्रांति और श्वेत क्रांति (ऑपरेशन फ्लड) प्रमुख थे।
- भारत में कृषि उत्पादन में वृद्धि हेतु हरित-क्रान्ति का प्रारम्भ किया गया है।
- भारत सरकार ने किसानों के लाभ हेतु ‘किसान क्रेडिट कार्ड’ (KCC) तथा व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना (PAIS) भी शुरू की गई है।
- भारत की बढ़ती जनसंख्या के साथ घटता कृषि उत्पादन चिन्ता का एक प्रमुख विषय है।
- वर्ष 1990 के पश्चात् वैश्वीकरण के अन्तर्गत भारतीय कृषकों को अनेक नयी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- वर्तमान में दोराहे पर खड़ी भारतीय कृषि को सक्षम तथा लाभदायक बनाने के लिए सीमांत तथा छोटे किसानों की स्थिति सुधारने का प्रयास करना होगा।
- भारत के किसानों को शस्यावर्तन को अपनाते हुए खाद्यान्न फसलों की जगह नकदी फसलों को उगाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. कृषि: भूमि की जुताई कर फसल उत्पन्न करने और पशुपालन कला को कृषि कहा जाता है।
2. प्रारम्भिक जीविका निर्वाह कृषि: भूमि के छोटे टुकड़े पर आदिम कृषि औजारों द्वारा परिवार अथवा समुदाय श्रम के सहयोग से की जाने वाली कृषि।
3. कर्तन दहन प्रणाली कृषि: इस प्रकार की कृषि में वनों को जलाकर भूमि साफ करके उस पर दो-तीन वर्षों तक कृषि की जाती है और जब मिट्टी की उर्वरा-शक्ति समाप्त हो जाती है तो उस भूमि को छोड़ यही प्रक्रिया दूसरे क्षेत्रों में अपनायी जाती है। इसे स्थानान्तरी कृषि के नाम से भी जाना जाता है।
4. झूम अथवा झमिंग कृषि: भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में की जाने वाली कर्तन दहन कृषि को झूम अथवा झमिंग कहते हैं।
5. गहन जीविका कृषि: श्रम प्रधान खेती जिसमें अधिक उत्पादन के लिए अधिक मात्रा में रासायनिक खादों एवं सिंचाई का प्रयोग किया जाता है।
6. वाणिज्यिक कृषि: एक प्रकार की विकसित कृषि जिसमें अधिक पैदावार देने वाले बीजों, रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है।
7. रोपण कृषि: बड़े पैमाने पर की जाने वाली एक फसली कृषि जिसमें अत्यधिक पूँजी व श्रम का प्रयोग होता है। इससे प्राप्त सम्पूर्ण उत्पादन उद्योगों में कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होता है।
8. शस्य प्रारूप: विभिन्न ऋतुओं में विभिन्न कृषि फसलें उगाना शस्य प्रारूप कहलाता है।
9. रबी फसलें: ऐसी फसलें जिनको अक्टूबर से दिसम्बर माह तक बोया जाता है तथा अप्रैल से जून तक काटा जाता है, रबी फसलें कहलाती हैं; जैसे-गेहूँ, जौ आदि।
10. खरीफ फसलें: ऐसी फसलें जो मानसून के आगमन पर बोयी जाती हैं तथा सितम्बर-अक्टूबर में काट ली जाती हैं, खरीफ फसलें कहलाती हैं; जैसे-ज्वार, बाजरा आदि।
11. जायद फसलें: रबी एवं खरीफ फसलों के मध्य ग्रीष्म ऋतु में बोयी जाने वाली फसल को जायद कहा जाता है।
12. मोटे अनाज: ज्वार, बाजरा व रागी को मोटे अनाज कहा जाता है।
13. फसलों का आवर्तन: किसी कृषि भूमि पर कुछ वर्षों के अन्तराल से फसलों को बदल-बदलकर बोने की पद्धति फसलों का आवर्तन अथवा फसल-चक्र कहलाता है।
14. रेशम उत्पादन: रेशम उत्पादन के लिए रेशम के कीड़ों का पालन रेशम उत्पादन कहलाता है।
15. सुनहरा रेशा: जूट को सुनहरा रेशा कहा जाता है।
16. बागवानी: सब्जी, फल एवं फूलों की गहन कृषि बागवानी कहलाती है।
17. भूदान: भूमि का दान करना।
18. ग्रामदान: गाँव का दान करना।
19. सार्वजनिक वितरण प्रणाली: जनता को उचित मूल्य पर जीवन उपयोगी वस्तुएँ उपलब्ध कराना।
20. समर्थन मूल्य: सरकार द्वारा निश्चित किसी फसल के उचित मूल्य को समर्थन मूल्य कहा जाता है। इसके अन्तर्गत किसान अपने उत्पाद को खुले बाजार में अथवा सरकारी एजेन्सियों को समर्थित मूल्य पर बेच सकते हैं।
21. वैश्वीकरण: एक राष्ट्र की अर्थव्यवस्था का विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ समन्वय करना वैश्वीकरण कहलाता है।
22. कार्बनिक कृषि: कारखानों में निर्मित रसायनों जैसे उर्वरकों व कीटनाशकों के बिना की जाने वाली कृषि को कार्बनिक कृषि कहा जाता है।
23. हरित क्रान्ति: सिंचित व असिंचित कृषि क्षेत्रों में अधिक उपज देने वाली फसलों को आधुनिक कृषि पद्धति से उगाकर कृषि उपजों का यथासम्भव अधिक उत्पादन प्राप्त करना हरित-क्रान्ति कहलाता है। इस क्रान्ति से गेहूँ के उत्पादन में वृद्धि हुई है।
24. श्वेत क्रान्ति: दुग्ध उत्पादन में वृद्धि हेतु चलाया गया कार्यक्रम ‘ऑपरेशन फ्लड’ के नाम से भी जाना जाता है।
25. रक्तहीन क्रान्ति: विनोबा भावे द्वारा संचालित किया गया भूदान-ग्रामदान आन्दोलन ‘रक्तहीन क्रान्ति’ कहलाता है।
26. जलभृत: जिन शैलों में होकर भूमिगत जल प्रवाहित होता है उसे जलभृत अथवा जलभरा कहते हैं।