JAC Board Class 10th Social Science Notes History Chapter 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना
→ ऐतिहासिक यात्राएँ व सिल्क मार्ग
- प्राचीनकाल से ही यात्री, व्यापारी, पुजारी एवं तीर्थयात्री ज्ञान, आध्यात्मिक शान्ति के लिए अथवा उत्पीड़न/यातनापूर्ण जीवन से बचने के लिए दूर-दूर की यात्राओं पर जाते रहे हैं।
- प्राचीनकाल में विश्व के दूरस्थ स्थित भागों के मध्य व्यापारिक एवं सांस्कृतिक सम्पर्कों का सबसे जीवन्त उदाहरण सिल्क मार्गों के रूप में दिखाई देता है।
- ‘सिल्क मार्ग’ नाम के इस मार्ग से पश्चिम को भेजे जाने वाले चीनी रेशम (सिल्क) के महत्त्व का पता चलता है।
- सिल्क मार्ग एशिया के विशाल भू-भागों को एक-दूसरे से जोड़ने के साथ ही एशिया को यूरोप एवं उत्तरी अफ्रीका से भी जोड़ते थे।
→ भोज्य पदार्थों की यात्रा
- खाद्य-पदार्थों से हमें दूर देशों के मध्य सांस्कृतिक आदान-प्रदान के बहुत से उदाहरणों का पता चलता है। माना जाता है कि नूडल्स को यात्री चीन से पश्चिम में ले गये, जहाँ वे इसे स्पैघेत्ती कहते थे।
- लगभग पाँच सौ वर्ष पूर्व आलू, सोया, मूंगफली, मक्का, टमाटर, मिर्च, शकरकंद आदि के बारे में भारतीय नहीं जानते थे। ये समस्त खाद्य पदार्थ अमेरिकी इण्डियनों से हमारे पास आये हैं।
→ विजय, बीमारी और व्यापार
- 16वीं शताब्दी के मध्य तक पुर्तगाली एवं स्पेनिश सेनाओं की विजय का प्रारम्भ हो चुका था। उन्होंने अमेरिका को उपनिवेश बनाना प्रारम्भ कर दिया था। चेचक जैसे कीटाणु स्पेनिश सैनिकों के सबसे शक्तिशाली हथियार थे जो उनके साथ अमेरिका पहुँचे।
- यूरोप से आने वाली चेचक की बीमारी धीरे-धीरे सम्पूर्ण अमेरिका महाद्वीप में फैल गयी। यह बीमारी वहाँ भी पहुँच गई जहाँ यूरोपीय लोग पहुँचे ही नहीं थे तथा इसने समस्त समुदायों को समाप्त कर दिया।
- 19वीं शताब्दी में यूरोप में निर्धनता एवं भूख का साम्राज्य हो जाने के कारण हजारों की संख्या में लोग भागकर अमेरिका जाने लगे।
- 18वीं शताब्दी तक अमेरिका में अफ्रीका से पकड़कर लाये गये गुलामों को कार्य में लगाकर यूरोपीय बाजारों के लिए कपास व चीनी का उत्पादन किया जाने लगा था।चीन तथा भारत की 18वीं शताब्दी का मध्य गुजरने के बाद भी दुनिया के सबसे धनी देशों में गिनती होती थी।
- 19वीं शताब्दी में समस्त विश्व तेज़ी से बदलने लगा। आर्थिक, राजनीतिक, तकनीकी, सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारकों ने सम्पूर्ण समाजों को परिवर्तित कर दिया।
→ विश्व अर्थव्यवस्था का उदय
- 18वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में ब्रिटेन की आबादी के तेजी से बढ़ने से देश में भोजन की माँग भी बढ़ने लगी। फलस्वरूप कृषि उत्पाद महँगे हो गए।
- बड़े भूस्वामियों के दबाव में आकर ब्रिटिश सरकार ने मक्का के आयात पर पाबन्दी लगा दी। जिन कानूनों के आधार पर यह पाबन्दी लगायी गयी, उन्हें ‘कॉर्न लॉ’ कहा गया।
- कॉर्न लॉ के निरस्त होने पर ब्रिटेन की खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए विश्व के विभिन्न भागों से खाद्य पदार्थों का आयात होने लगा।
- सन् 1890 ई. तक एक वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था हमारे समक्ष आ चुकी थी।
→ तकनीक की भूमिका
- 19वीं शताब्दी में आये विभिन्न परिवर्तनों में रेलवे, यात्रा के जहाज, टेलीग्राफ आदि की बहुत अधिक भूमिका रही।
- पानी के जहाजों में रेफ्रिजरेशन की तकनीक स्थापित कर दी गयी जिससे शीघ्र खराब होने वाली वस्तुओं को भी लम्बी यात्राओं पर ले जाया जा सकता था।
→ उन्नीसवीं सदी के आखिर में उपनिवेशवाद
- यूरोप के शक्तिशाली देशों ने सन 1885 में बर्लिन में हुई एक बैठक में अफ्रीका के नक्शे पर फुटटे (Scale) से लकीर खींचकर उसे आपस में बाँट लिया।
- 19वीं शताब्दी के अन्त में उपनिवेशवाद में तीव्रगति से वृद्धि हुई। ब्रिटेन व फ्रांस के साथ-साथ बेल्जियम व जर्मनी नयी औपनिवेशिक ताकतों के रूप में सामने आये।
- 1890 ई. के दशक के अन्तिम वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका भी एक औपनिवेशिक ताकत बन चुका था।
→ रिंडरपेस्ट का दौर
- अफ्रीका में 1890 ई. के दशक में रिंडरपेस्ट नामक बीमारी बहुतं तीव्र गति से फैली।
- पशुओं में प्लेग की तरह फैलने वाली छूत की बीमारी से लोगों की आजीविका एवं स्थानीय अर्थव्यवस्था पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा।
- 19वीं शताब्दी के अन्त में यूरोपीय ताकतें विशाल भू-क्षेत्र एवं खनिज भण्डारों को देखकर अफ्रीका महाद्वीप की ओर आकर्षित हुईं।
→ अनुबंधित श्रमिक अथवा गिरमटिया मजदूर
- 19वीं सदी में भारत व चीन से लाखों की संख्या में मजदूरों को बागानों, खदानों तथा सड़क व रेलवे निर्माण परियोजनाओं में कार्य करने के लिए दूर-दूर के देशों में ले जाया जाता था। इन श्रमिकों को विशेष प्रकार के अनुबन्ध के तहत ले जाया जाता था।
- भारत में अनुबन्धित श्रमिकों को मुख्य रूप से कैरीबियाई द्वीप समूह (त्रिनिदाद, गुयाना व सूरीनाम), मॉरीशस एवं फिजी आदि में ले जाया जाता था। इन मजदूरों को ‘गिरमिटिया मजदूर’ कहा जाता था।
- यूरोपीय उपनिवेशकारों के पीछे-पीछे व्यापारी एवं महाजन भी अफ्रीका पहुँच गये और उन्होंने वहाँ अपना व्यापार प्रारम्भ कर दिया।
→ भारतीय व्यापार, उपनिवेशवाद व वैश्विक व्यवस्था
- उन्नीसवीं शताब्दी में भारतीय बाजारों में ब्रिटिश औद्योगिक उत्पादों की बहुलता हो गयी। इसके अतिरिक्त भारत से ब्रिटेन एवं शेष विश्व को भेजे जाने वाले खाद्यान्न व कच्चे मालों के निर्यात में भी वृद्धि हुई।
- भारत के साथ ब्रिटेन हमेशा ‘व्यापार अधिशेष’ की स्थिति में रहता था अर्थात् ब्रिटेन को आपसी व्यापार में हमेशा लाभ रहता था।
→ प्रथम विश्व युद्ध
- प्रथम महायुद्ध मुख्य रूप से यूरोप में ही लड़ा गया था लेकिन इसका प्रभाव समस्त विश्व पर देखा गया।
- अगस्त 1914 में शुरू हुआ प्रथम विश्व युद्ध पहला आधुनिक औद्योगिक युद्ध था जिसमें बड़ी मात्रा में मशीनगनों, टैंकों, हवाई जहाजों एवं रासायनिक हथियारों का प्रयोग किया गया। इसमें 90 लाख से अधिक लोग मारे गए तथा 2 करोड़ घायल हुए।
- प्रथम विश्व महायुद्ध के पश्चात् भारतीय बाजार में पहले जैसी एकाधिकार वाली स्थिति प्राप्त करना ब्रिटेन के लिए बहुत मुश्किल हो गया।
→ अमेरिकी अर्थव्यवस्था का बदलाव
- महायुद्ध के बाद कुछ समय के लिए तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था को झटका लगा लेकिन 1920 के दशक के प्रारम्भिक वर्षों में अमेरिकी अर्थव्यवस्था विकास के मार्ग पर चल पड़ी।
- सन् 1920 के दशक में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में वृहत् स्तर के उत्पादन का चलन प्रारम्भ हो गया था।
- सन् 1923 में अमेरिका शेष विश्व की पूँजी का निर्यात पुनः करने लगा तथा वह दुनिया का सबसे बड़ा कर्जदाता देश बन गया।
- अमेरिका द्वारा आयात एवं पूँजी निर्यात ने यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं को भी संकट से उबरने में मदद की।
→ वैश्विक महामंदी७
- वैश्विक आर्थिक महामन्दी की शुरुआत 1929 ई. से हुई और यह संकट 1930 के दशक के मध्य तक बना रहा।
- महामन्दी के दौरान विश्व के अधिकांश हिस्सों में उत्पादन, रोजगार, आय एवं व्यापार में बहुत अधिक गिरावट दर्ज की गई। महामन्दी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बहुत अधिक प्रभावित किया। इससे आयात-निर्यात में कमी देखी गयी तथा अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कीमतें गिरने लगी। इससे शहरी लोगों की बजाय किसानों और काश्तकारों का बहुत अधिक नुकसान हुआ।
- युद्धोत्तर काल (द्वितीय विश्वयुद्ध के समय) में पुनर्निर्माण का कार्य अमेरिका एवं सोवियत संघ की देख-रेख में सम्पन्न
हुआ।
→ ब्रेटन-वुड्स संस्थान
- युद्धोत्तर अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का प्रमुख उद्देश्य औद्योगिक विश्व में आर्थिक निकटता एवं पूर्ण रोजगार बनाये रखा जाना था, इस हेतु जुलाई 1944 ई. में अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन में सहमति बनी थी।
- सदस्य देशों ने विदेश व्यापार में घाटे से निपटने के लिए ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में ही अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम. एफ.) की स्थापना की।
- युद्धोत्तर पुनर्निर्माण के लिए धन का प्रबन्ध करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (विश्व बैंक) का गठन किया। इसलिए आई.एम.एफ तथा विश्व बैंक को ब्रेटन वुड्स संस्थान या ब्रेटन वुड्स ट्विन (ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ सन्तान) भी कहते हैं। इन दोनों संस्थानों ने 1947 में औपचारिक रूप से कार्य करना शुरू किया।
- ब्रेटन वुड्स व्यवस्था से पश्चिमी औद्योगिक राष्ट्रों एवं जापान के लिए व्यापार और आय में वृद्धि के एक युग का सूत्रपात हुआ।
→ अनौपनिवेशीकरण व स्वतंत्रता
- द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात् भी विश्व का एक बड़ा भाग यूरोपीय औपनिवेशिक शासन के अधीन था।
- अनौपनिवेशीकरण के कई वर्ष बीत जाने के पश्चात् भी अनेक नव स्वतन्त्र राष्ट्रों की अर्थव्यवस्थाओं पर भूतपूर्व औपनिवेशिक शक्तियों का ही नियन्त्रण बना रहा।
- पंचास व साठ के दशक में पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं की तीव्र प्रगति से कोई लाभ नहीं होने पर अधिकांश विकासशील देशों ने एक नयी अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रभावी (New International Economic Order-NIEO) की माँग उठायी तथा समूह-77 (जी-77) के रूप में एकजुट हो गए।
→ महत्त्वपूर्ण तिथियाँ एवं घटनाएँ
तिथि | घटनाएँ |
1. 1840 ई. | 1840 ई. के दशक के मध्य में किसी बीमारी के कारण आयरलैण्ड में आलू की फसल खराब हो गयी, जिससे लाखों लोग भुखमरी के कारण मौत के मुँह में चले गये। |
2. 1870 ई. 1885 ई. | 1870 ई. के दशक तक अमेरिका से यूरोप को मांस का निर्यात नहीं किया जाता था। |
3. 1890 ई. | 1885 ई. में यूरोप के ताकतवर देशों की बर्लिन में एक बैठक हुई जिसमें अफ्रीका के मानचित्र पर सीधी लकीरें खींचकर उसको आपस में बाँट लिया गया था। |
4. 1890 ई. | 1890 ई. के दशक के अन्तिम वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका भी औपनिवेशिक शक्ति बन गया था। |
5. 1914 ई. | 1890 ई. के दशक में अफ्रीका में पशुओं की रिंडरपेस्ट नामक बीमारी फैली। प्रथम विश्वयुद्ध का प्रारम्भ। |
6. 1920 ई. | 1920 ई. के दशक में आयात एवं निर्यात क्षेत्र में आये उछाल से अमेरिकी सम्पन्नता का आधार पैदा हो चुका था। |
7. 1929 ई. | आर्थिक महामन्दी की शुरुआत। |
8. 1944 ई. | अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर विश्व में आर्थिक स्थिरता एवं पूर्व रोजगार बनाये रखने हेतु संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन में सहमति। |
9. 1947 ई. | विश्व बैंक व अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने औपचारिक रूप से कार्य करना प्रारम्भ किया। |
→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. कौड़ियाँ: प्राचीन काल में पैसे या मुद्रा के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुएँ।
2. सिल्क रूट (रेशम माग): ये इस प्रकार के मार्ग थे जो न केवल एशिया के विशाल क्षेत्रों को परस्पर जोड़ने का कार्य करते थे बल्कि एशिया को यूरोप और उत्तरी अफ्रीका से जोड़ते थे। ऐसे मार्ग ईसा पूर्व के समय में ही सामने आ चुके थे।
3. कॉर्न लॉ: जो कानून ब्रिटेन की सरकार को मक्का का आयात करने से प्रतिबन्धित करते थे, उन्हें प्रायः कॉर्न लॉ के नाम से जाना जाता था।
4. गिरमिटिया मजदूर: ऐसे अनुबन्धित बन्धुआ मजदूर जिन्हें मालिक एक निश्चित समयावधि के लिए काम करने की शर्त पर किसी भी नये देश में नियुक्त करते थे।
5. वीटो निषेधाधिकार: इस अधिकार के सहारे एक ही सदस्य की असहमति किसी भी प्रस्ताव के निरस्त करने का आधार बन जाती है।
6. आयात शुल्क: किसी भी दूसरे देश से आने वाली वस्तुओं पर वसूल किया जाने वाला शुल्क। यह कर या शुल्क उस जगह लिया जाता है जहाँ से वह वस्तु देश में आती है यानि सीमा पर, हवाई अड्डे पर अथवा बन्दरगाह पर।
7. विनिमय दर: इस व्यवस्था के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की सुविधा के लिए विभिन्न देशों की राष्ट्रीय मुद्राओं को परस्पर जोड़ा जाता है।
8. स्थिर विनिमय दर: जब विनिमय दर स्थिर होती हैं तथा उसमें आने वाले उतार-चढ़ावों को नियन्त्रित करने के लिए सरकारों को हस्तक्षेप करना पड़ता है तो उस विनिमय दर को स्थिर विनिमय दर कहा जाता है।
9. लचीली विनिमय दर: इसे परिवर्तनशील विनिमय दर भी कहते हैं। इस तरह की विनिमय दर विदेशी मुद्रा बाजार में विभिन्न मुद्राओं की माँग या आपूर्ति के आधार पर और सिद्धान्ततः सरकारों के हस्तक्षेप के बिना घटती-बढ़ती रहती है।
10. उदारीकरण: सरकार द्वारा लगाये गये प्रत्यक्ष अथवा भौतिक नियन्त्रणों से अर्थव्यवस्था की मुक्ति को उदारीकरण के नाम से जाना जाता है।
11. बहुराष्ट्रीय कम्पनी: एक साथ अनेक देशों में व्यवसाय करने वाली कम्पनियों को बहुराष्ट्रीय कम्पनी कहा जाता है। इन्हें बहुराष्ट्रीय निगम भी कहते हैं।
12. विश्व बैंक: यह एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था है जो अपने सदस्य राष्ट्रों को विकास के उद्देश्यों के लिए वित्तीय सहयोग प्रदान करती है।
13. असेम्बली लाइन उत्पादन: यह एक प्रकार की उत्पादन प्रक्रिया है जिसमें परिवर्तनीय भागों (पुर्जी) को जोड़कर वस्तु को अन्तिम रूप में तैयार किया जाता है।
14. वाणिज्य अधिशेष: यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें निर्यातों का मूल्य आयातों से अधिक होता है।
15. वैश्वीकरण: वैश्वीकरण का शाब्दिक अर्थ है-स्वयं की अर्थव्यवस्था को विश्व समुदाय के साथ जोड़ना वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं का समन्वय किया जाता है जिससे वस्तुओं और क्रेताओं, प्रौद्योगिक पूँजी तथा श्रम का इनके मध्य प्रवाह हो सके। वैश्वीकरण को भूमण्डलीकरण के नाम से भी जाना जाता है।