Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 8 स्थानीय शासन Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 8 स्थानीय शासन
Jharkhand Board Class 11 Political Science स्थानीय शासन InText Questions and Answers
प्रश्न 1.
भारत का संविधान ग्राम पंचायत को स्व- शासन की इकाई के रूप में देखता है। नीचे कुछ स्थितियों का वर्णन किया गया है। इन पर विचार कीजिए और बताइये कि स्व- शासन की इकाई बनने के क्रम में ग्राम पंचायत के लिए ये स्थितियाँ सहायक हैं या बाधक?
(क) प्रदेश की सरकार ने एक बड़ी कंपनी को विशाल इस्पात संयंत्र लगाने की अनुमति दी है। इस्पात संयंत्र लगाने से बहुत-से गाँवों पर दुष्प्रभाव पड़ेगा। दुष्प्रभाव की चपेट में आने वाले गाँवों में से एक की ग्राम सभा ने यह प्रस्ताव पारित किया कि क्षेत्र में कोई भी बड़ा उद्योग लगाने से पहले गांववासियों की राय ली जानी चाहिए और उनकी शिकायतों की सुनवाई होनी चाहिए।
(ख) सरकार का फैसला है कि उसके कुल खर्चे का 20 प्रतिशत पंचायतों के माध्यम से व्यय होगा। (ग) ग्राम पंचायत विद्यालय का भवन बनाने के लिए लगातार धन माँग रही है, लेकिन सरकारी अधिकारियों ने मांग को यह कहकर ठुकरा दिया है कि धन का आबंटन कुछ दूसरी योजनाओं के लिए हुआ है और धन को अलग मद में खर्च नहीं किया जा सकता।
(घ) सरकार ने डूंगरपुर नामक गाँव को दो हिस्सों में बाँट दिया है और गाँव के एक हिस्से को जमुना तथा दूसरे को सोहना नाम दिया है। अब डूंगरपुर नामक गाँव सरकारी खाते में मौजूद नहीं है।
(ङ) एक ग्राम पंचायत ने पाया कि उसके इलाके में पानी के स्रोत तेजी से कम हो रहे हैं। ग्राम पंचायत ने फैसला किया कि गाँव के नौजवान श्रमदान करें और गाँव के पुराने तालाब तथा कुएँ को फिर से काम में आने लायक बनाएँ।
उत्तर:
(क) यह स्थिति ग्राम पंचायत के लिए सहायक है।
(ख) यह स्थिति ग्राम पंचायत के लिए सहायक है।
(ग) यह स्थिति ग्राम पंचायत के लिए बाधक है।”
(घ) यदि डूंगरपुर के दो हिस्से जमुना और सोहना अलग-अलग हैं किन्तु उनकी ग्राम पंचायत एक ही है तो कोई अन्तर नहीं पड़ता परन्तु यदि सरकार किसी ग्राम के दो हिस्से बनाती है और इसमें वहाँ की ग्राम पंचायत की सहमति नहीं ली जाती तो यह स्थिति ग्राम पंचायत के लिए बाधक है।
(ङ) यह स्थिति ग्राम पंचायत के लिए सहायक हैं।
प्रश्न 2.
मान लीजिये कि आपको किसी प्रदेश की तरफ से स्थानीय शासन की कोई योजना बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। ग्राम पंचायत स्व- शासन की इकाई के रूप में काम करे, इसके लिए आप उसे कौन-सी शक्तियाँ देना चाहेंगे? ऐसी पांच शक्तियों का उल्लेख करें और प्रत्येक शक्ति के बारे में दो-दो पंक्तियों में यह भी बताएँ कि ऐसा करना क्यों जरूरी है?
उत्तर:
ग्राम पंचायत स्थानीय स्वशासन की इकाई के रूप में कार्य करे, इसके लिए ग्राम पंचायत को निम्नलिखित शक्तियाँ देनी होंगी:
1. पर्याप्त वित्तीय संसाधन:
ग्राम पंचायत को पर्याप्त वित्तीय संसाधन प्राप्त होने चाहिए। उसे अपने स्तर पर कर लगाने की शक्ति प्राप्त होनी चाहिए ताकि ग्राम पंचायत वित्तीय स्तर पर आत्मनिर्भर हो सके।
2. धन खर्च करने का अधिकार:
पर्याप्त वित्तीय संसाधनों के साथ-साथ ग्राम पंचायत को उन्हें किस ढंग से खर्च करना है, इसका अधिकार भी होना चाहिए। इससे ग्राम पंचायत अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप खर्च कर सकेगी।
3. योजनाएँ बनाने का अधिकार:
ग्राम पंचायत को अपने स्तर पर ग्राम विकास के लिए योजनाएँ बनाने का अधिकार होना चाहिए।
4. शिक्षा तथा तकनीकी सम्बन्धी शक्तियाँ:
ग्राम पंचायत को प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर की शिक्षा, तकनीकी प्रशिक्षण तथा व्यावसायिक शिक्षा, वयस्क और अनौपचारिक शिक्षा की शक्ति प्रदान की जानी चाहिए जिससे ग्रामीण लोगों का मानसिक विकास हो। ग्राम पंचायतों को पुस्तकालय तथा वाचनालय खोलने की शक्ति प्रदान की जानी चाहिए। ऐसा करने से ग्रामीण नवयुवकों को आगे बढ़ने के अवसर प्राप्त होंगे; उनका पिछड़ापन दूर होगा तथा वे राष्ट्र की मुख्य धारा में सम्मिलित होकर अपनी उन्नति के अवसर खोज सकेंगे।
5. सरकारी हस्तक्षेप में कमी:
स्थानीय संस्थाओं को अपने कार्यों में अधिकाधिक सवतंत्रता मिलनी चाहिए और सरकारी हस्तक्षेप कम से कम होना चाहिए। इससे ग्राम पंचायत के प्रतिनिधियों में जिम्मेदारी की भावना पैदा होगी।
प्रश्न 3.
सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए संविधान के 73वें संशोधन में आरक्षण के क्या प्रावधान हैं? इन प्रावधानों से ग्रामीण स्तर के नेतृत्व का खाका किस तरह बदला है?
उत्तर:
आरक्षण के प्रावधान सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए संविधान के 73वें संशोधन में आरक्षण निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं।
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण: पंचायत चुनावों के तीनों स्तरों पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीट में आरक्षण की व्यवस्था की गई है। यह व्यवस्था अनुसूचित जाति और जनजाति की जनसंख्या के अनुपात में की गई है।
- महिलाओं के लिए आरक्षण: सभी पंचायती संस्थाओं में एक-तिहाई सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। सिर्फ सामान्य श्रेणी की सीटों पर ही महिलाओं को एक-तिहाई आरक्षण नहीं दिया गया है बल्कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर भी महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण की व्यवस्था है।
- अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण: इस संविधान संशोधन में यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि प्रदेश की सरकार जरूरी समझे, तो वह अन्य पिछड़ा वर्ग को भी सीट में आरक्षण दे सकती है।
- अध्यक्ष पद का आरक्षण: उपर्युक्त आरक्षण के प्रावधान मात्र साधारण सदस्यों की सीट तक सीमित नहीं हैं। तीनों ही स्तर पर अध्यक्ष पद तक आरक्षण दिया गया है।
आरक्षण के प्रावधान का प्रभाव इन आरक्षण के प्रावधानों से ग्रामीण स्तर के नेतृत्व का खाका निम्न रूप में परिवर्तित हुआ है।
- आरक्षण के उपर्युक्त प्रावधानों से ग्रामीण स्तर के नेतृत्व में सामाजिक स्तर पर काफी परिवर्तन आया है। ग्रामीण स्तर पर, इससे पूर्व जो शक्तियाँ सामाजिक रूप से ऊँचे लोगों को प्राप्त थीं, अब उनमें कमजोर वर्गों की भी भागीदारी हो गयी है तथा उनके निर्णयों में भी इन कमजोर वर्गों की भागीदारी हुई है, जिससे उच्च वर्ग अब अपनी मनमानी नहीं कर पाता।
- महिलाओं के लिए आरक्षण के प्रावधान के कारण पंचायती राज्य स्वशासन के निकायों में महिलाओं की भारी संख्या में मौजूदगी सुनिश्चित हुई है। आरक्षण का प्रावधान सरपंच और अध्यक्ष जैसे पदों के लिए भी है। इस कारण निर्वाचित महिला-जनप्रतिनिधियों की एक बड़ी संख्या अध्यक्ष और सरपंच जैसे पदों पर आसीन हुई है। आज कम से कम 200 महिलाएँ जिला पंचायतों की अध्यक्ष हैं। 2000 महिलाएँ प्रखंड या तालुका पंचायत की अध्यक्ष हैं और ग्राम पंचायतों में महिला सरपंचों की संख्या 80 हजार से ज्यादा है।
- संसाधनों पर अपने नियंत्रण की दावेदारी करके महिलाओं ने ज्यादा शक्ति और आत्मविश्वास अर्जित किया है तथा स्त्रियों की राजनीतिक समझ पैनी हुई है।
प्रश्न 4.
संविधान के 73वें संशोधन से पहले और संशोधन के बाद स्थानीय शासन के बीच मुख्य भेद बताएँ।
उत्तर:
संविधान के 73वें संशोधन के बाद आए बदलाव – संविधान के 73वें संशोधन से पहले और संशोधन के बाद आए प्रमुख भेद या बदलाव निम्नलिखित हैं।
1. त्रिस्तरीय व्यवस्था: 73वें संविधान संशोधन से पूर्व सभी प्रदेशों में पंचायती राज व्यवस्था एकसमान नहीं थी, लेकिन 73वें संविधान संशोधन के बाद अब सभी प्रदेशों में पंचायती राज व्यवस्था का ढांचा त्रिस्तरीय।
- ग्राम स्तर या प्राथमिक स्तर पर ग्राम पंचायत
- खंड स्तर या मध्यवर्ती स्तर पर तालुका पंचायत या पंचायत समिति और
- जिला स्तर या उच्च स्तर पर जिला पंचायत है।
2. ग्राम सभा की अनिवार्यता: 73वें संविधान संशोधन से पहले ग्राम सभा की अनिवार्यता नहीं थी, लेकिन अब 73वें संविधान संशोधन में इस बात का प्रावधान किया गया है कि ग्राम सभा अनिवार्य रूप से बनायी जायेगी। पंचायती इलाके में मतदाता के रूप में दर्ज हर व्यक्ति ग्राम सभा का सदस्य होगा।
3. निर्वाचन: 73वें संविधान संशोधन से पूर्व मध्यवर्ती और जिला स्तरों पर प्रतिनिधियों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता था; लेकिन अब 73वें संविधान संशोधन के पश्चात् पंचायती राज संस्थाओं के तीनों स्तरों का चुनाव सीधे जनता करती
है।
4. अवधि ( कार्यकाल): पहले पंचायत समिति का कार्यकाल सभी प्रदेशों में एकसमान नहीं था तथा एक निश्चित समय के पश्चात् चुनाव संवैधानिक रूप से अनिवार्य न होकर राज्यों की सरकारों की सुविधा पर निर्भर थे। लेकिन अब 73वें संविधान संशोधन के पश्चात् हर पंचायत निकाय की अवधि पांच साल की होती है। यदि प्रदेश की सरकार पांच साल पूरे होने से पहले पंचायत को भंग करती है, तो इसके छ: माह के अंदर नये चुनाव हो जाने चाहिए। 73वें संविधान संशोधन से पहले पंचायत संस्थाओं को भंग करने के बाद तत्काल चुनाव कराने के सम्बन्ध में कोई प्रावधान नहीं था।
5. आरक्षण: 73वें संविधान संशोधन में सभी पंचायती संस्थाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण सभी पदों पर दिया गया है, पहले यह व्यवस्था नहीं थी।
6. विषयों का स्थानान्तरण-संशोधन के बाद अब राज्य सूची के 29 विषय 11वीं अनुसूची में दर्ज कर लिये गए हैं। अनुच्छेद 243 (जी) पंचायतों की शक्ति, प्राधिकार और उत्तरदायित्व : के द्वारा यह प्रावधान किया गया है कि ” किसी प्रदेश की विधायिका कानून बनाकर ग्यारहवीं अनुसूची में दर्ज मामलों में पंचायतों को ऐसी शक्ति और प्राधिकार प्रदान कर सकती है।”
7. राज्य चुनाव आयुक्त: संशोधन के बाद अब प्रदेशों के लिए यह आवश्यक है कि एक राज्य चुनाव आयुक्त नियुक्त करे जिसकी जिम्मेदारी पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव कराने की होगी। पहले यह काम प्रदेश प्रशासन करता था,
जो प्रदेश की सरकार के अधीन होता है। लेकिन राज्य चुनाव आयुक्त एक स्वतंत्र अधिकारी है। वह प्रदेश की सरकार के अधीन नहीं है।
8. राज्य वित्त आयोग: संशोधन के बाद अब प्रदेशों के लिए हर पांच वर्ष बाद एक प्रादेशिक वित्त आयोग बनाना जरूरी है। यह आयोग एक तरफ प्रदेश और दूसरी तरफ स्थानीय शासन की व्यवस्थाओं के बीच राजस्व के बँटवारे का पुनरावलोकन करेगा।
प्रश्न 5.
नीचे लिखी बातचीत पढ़ें। इस बातचीत में जो मुद्दे उठाये गए हैं, उसके बारे में अपना मत दो सौ शब्दों में लिखें।
आलोक: हमारे संविधान में स्त्री और पुरुष को बराबरी का दर्जा दिया गया है। स्थानीय निकायों में स्त्रियों को आरक्षण देने से सत्ता में उनकी बराबर की भागीदारी सुनिश्चित हुई है।
नेहा: लेकिन महिलाओं का सिर्फ सत्ता के पद पर काबिज होना ही काफी नहीं है। यह भी जरूरी है कि स्थानीय निकायों के बजट में महिलाओं के लिए अलग से प्रावधान हो।
जयेश: मुझे आरक्षण का यह गोरखधंधा पसंद नहीं। स्थानीय निकाय को चाहिए कि वह गाँव के सभी लोगों का ख्याल रखे और ऐसा करने पर महिलाओं और उनके हितों की देखभाल अपने आप हो जाएगी।
उत्तर:
उपर्युक्त बातचीत में महिलाओं के सशक्तिकरण सम्बन्धी मुद्दे उठाये गए हैं।
1. आरक्षण का मुद्दा; यद्यपि संविधान में स्त्री और पुरुष को बराबरी का दर्जा दिया गया है। लेकिन व्यवहार में स्त्रियों को पुरुषों के समान शक्ति अभी तक प्राप्त नहीं हुई है। इसलिए स्त्रियों को सत्ता में भागीदार हेतु पुरुषों के समकक्ष लाने के लिए आरक्षण की व्यवस्था का प्रावधान किया गया है। 73वें और 74वें संविधान संशोधन द्वारा ग्रामीण व शहरी स्थानीय संस्थाओं में महिलाओं के लिए निर्वाचित पदों का एक-तिहाई भाग आरक्षित किया गया है। इससे महिला सशक्तिकरण आंदोलन को बल मिला और संसद तथा राज्य विधानमंडलों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई स्थान आरक्षित रखने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं।
2. वित्तीय निर्णयों में भागीदारी का मुद्दा: महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए महलाओं को केवल स्थानीय स्तर पर आरक्षण देना ही काफी नहीं है। उन्हें वित्तीय निर्णयों में भी भागीदारी मिलनी चाहिए या उन्हें वित्तीय निर्णयों में भी भागीदार होना चाहिए।
3. महिलाओं के विकास व कल्याण के लिए विशेष प्रयास: यद्यपि ग्राम पंचायत सभी वर्गों के विकास के लिए कार्य करती है तथापि महिलाओं के कल्याण हेतु विशेष प्रयास किए जाने चाहिए। इससे उनकी सामाजिक स्थिति सुधरेगी, उन्हें रोजगार मिलेगा और उनमें राजनैतिक व सामाजिक जागृति आयेगी।
प्रश्न 6.
73वें संशोधन के प्रावधानों को पढ़ें। यह संशोधन निम्नलिखित सरोकारों में से किससे ताल्लुक रखता है?
(क) पद से हटा दिये जाने का भय जन-प्रतिनिधियों को जनता के प्रति जवाबदेह बनाता है।
(ख) भू-स्वामी, सामन्त और ताकतवर जातियों का स्थानीय निकायों में दबदबा रहता है।
(ग) ग्रामीण क्षेत्रों में निरक्षरता बहुत ज्यादा है। निरक्षर लोग गाँव के विकास के बारे में फैसला नहीं ले सकते हैं।
(घ) प्रभावकारी साबित होने के लिए ग्राम पंचायतों के पास ग्राम की विकास योजना बनाने की शक्ति और संसाधन का होना जरूरी है।
उत्तर:
(क) पद से हटा दिये जाने का भय जनप्रतिनिधियों को जनता के प्रति जवाबदेह बनाता है।
73वें संविधान संशोधन के बाद से प्रत्येक 5 वर्ष के बाद पंचायत का चुनाव कराना अनिवार्य है। यदि राज्य सरकार 5 वर्ष पहले ही पंचायत को भंग कर देती है तो 6 माह के अन्दर चुनाव कराना अनिवार्य है। इस प्रकार चुनाव के भय के कारण प्रतिनिधि उत्तरदायी बने रहते हैं। उन्हें डर रहता है कि कहीं जनता चुनाव में उन्हें हरा न दे। उपर्युक्त सभी सरोकारों में से सबसे महत्त्वपूर्ण सरोकार जिससे यह संशोधन ताल्लुक रखता है, वह (क) भाग है। कि ‘पद से हटा दिये जाने का भय जन-प्रतिनिधियों को जनता के प्रति जवाबदेह बनाता है।
प्रश्न 7.
नीचे स्थानीय शासन के पक्ष में कुछ तर्क दिये गये हैं। इन तर्कों को आप अपनी पसंद से वरीयता क्रम में सजाएँ और बताएँ कि किसी एक तर्क की अपेक्षा दूसरे को आपने ज्यादा महत्त्वपूर्ण क्यों माना है? आपके जानते बेंगैवसल गाँव की ग्राम पंचायत का फैसला निम्नलिखित कारणों से किस पर और कैसे आधारित था?
(क) सरकार स्थानीय समुदाय को शामिल कर अपनी परियोजना कम लागत में पूरी कर सकती है।
(ख) स्थानीय जनता द्वारा बनायी गयी विकास योजना सरकारी अधिकारियों द्वारा बनायी गयी विकास योजना से ज्यादा स्वीकृत होती है।
(ग) लोग अपने इलाके की जरूरत, समस्याओं और प्राथमिकताओं को जानते हैं। सामुदायिक भागीदारी द्वारा उन्हें विचार-विमर्श करके अपने जीवन के बारे में फैसला लेना चाहिए।
(घ) आम जनता के लिए अपने प्रदेश अथवा राष्ट्रीय विधायिका के जन-प्रतिनिधियों से सम्पर्क कर पाना मुश्किल होता है।
उत्तर:
स्थानीय स्वशासन के पक्ष में जो विभिन्न तर्क दिये गये हैं, उनके वरीयता क्रम निम्न प्रकार हैं।
- प्रथम वरीयता भाग (घ) को दी जायेगी क्योंकि आम जनता के लिए अपने प्रदेश अथवा राष्ट्रीय विधायिका के जनप्रतिनिधियों से सम्पर्क कर पाना मुश्किल होता है। अतः वे स्थानीय शासन के प्रतिनिधियों से सीधे सम्पर्क में रहने के कारण अपनी समस्याओं की शिकायत करके उनसे शीघ्र समाधान करा सकते हैं।
- द्वितीय वरीयता भाग (ग) को दी जायेगी क्योंकि लोग अपने इलाके की जरूरत, समस्याओं और प्राथमिकताओं को जानते हैं। सामुदायिक भागीदारी द्वारा उन्हें विचार-विमर्श करके अपने जीवन के बारे में फैसला लेना चाहिए।
- तीसरी वरीयता भाग (ख) को दी जायेगी कि स्थानीय जनता द्वारा बनाई गई विकास योजना सरकारी अधिकारियों द्वारा बनायी गयी विकास योजना से ज्यादा स्वीकृत होती है।
- चौथी वरीयता भाग (क) को दी जाएगी कि सरकार स्थानीय समुदाय को शामिल कर अपनी परियोजना कम लागत में पूरी कर सकती है।
वसल गांव की ग्राम पंचायत का फैसला इस तर्क पर आधारित था कि लोग अपने इलाके की जरूरत, समस्याओं और प्राथमिकताओं को जानते हैं । सामुदायिक भागीदारी द्वारा उन्हें विचार-विमर्श करके अपने जीवन के बारे में फैसला लेना चाहिए। बेंगैवसल गांव की जमीन पर उस गांव का ही हक रहा है। अपनी जमीन के साथ क्या करना है यह फैसला करने का अधिकार भी गांव के हाथ में होना चाहिए।
प्रश्न 8.
आपके अनुसार निम्नलिखित में कौन-सा विकेन्द्रीकरण का साधन है? शेष को विकेन्द्रीकरण के साधन के रूप में आप पर्याप्त विकल्प क्यों नहीं मानते?
(क) ग्राम पंचायत का चुनाव कराना।
(ख) गाँव के निवासी खुद तय करें कि कौन-सी नीति और योजना गाँव के लिए उपयोगी है।
(ग) ग्राम सभा की बैठक बुलाने की ताकत।
(घ) प्रदेश सरकार ने ग्रामीण विकास की एक योजना चला रखी है। प्रखंड विकास अधिकारी ( बीडीओ ) ग्राम पंचायत के सामने एक रिपोर्ट पेश करता है कि इस योजना में कहाँ तक प्रगति हुई है।
उत्तर:
1. इस प्रश्न में दिये गए चारों कथनों (क), (ख) (ग) और (घ) में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण विकेन्द्रीकरण का साधन है (ख)। इसमें कहा गया है कि ” गांव के निवासी खुद तय करें कि कौन-सी नीति और योजना गांव के लिए उपयोगी है। क्योंकि इसके अन्तर्गत गाँव के निवासियों को गांव के लिए नीति बनाने और योजना बनाने का अधिकार विकेन्द्रीकृत हुआ है।
आम नागरिक की समस्या और उसके दैनिक जीवन की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए ग्रामीण लोग ग्राम पंचायत के द्वारा अपनी समस्याओं का समाधान करें। यह सत्ता का विकेन्द्रीकरण है। लोकतंत्र में सत्ता का विकेन्द्रीकरण स्थानीय लोगों की सत्ता में भागीदारी से ही हो सकता है।
2. अन्य तीनों कथन ( क, ग और घ) विकेन्द्रीकरण के साधन के रूप में पर्याप्त विकल्प नहीं हैं क्योंकि- (क) ग्राम पंचायत का चुनाव कराना – ग्राम पंचायत का चुनाव कराना एक प्रक्रिया है। यद्यपि यह स्थानीय स्वशासन का एक भाग है लेकिन इससे यह निर्धारित नहीं होता कि स्थानीय क्षेत्र की समस्याओं के निर्धारण के लिए नीति-निर्माण और योजना बनाने की शक्तियाँ उसे हस्तांतरित की गई हैं। 73वें संविधान संशोधन से पहले भारतीय ग्राम पंचायतों को ऐसी कोई शक्तियाँ प्रदान नहीं की गई थीं, लेकिन निर्वाचन होते थे। ऐसी स्थिति में केवल निर्वाचन ही विकेन्द्रीकरण का पर्याप्त विकल्प नहीं है।
(ग) ग्राम सभा की बैठक बुलाने की ताकत: ग्राम सभा की बैठक बुलाने की ताकत भी स्थानीय स्वशासन का एक भाग तो हो सकती है लेकिन यह विकेन्द्रीकरण का साधन होने का पर्याप्त विकल्प नहीं है क्योंकि यह बैठक तो उच्च अधिकारी भी बुला सकते हैं। जब तक गांव के निवासी गांव की समस्याओं के समाधान में योजना बनाने तथा नीति निर्माण में भागीदारी नहीं करते, तब तक ग्राम सभा विकेन्द्रीकरण का उपयुक्त विकल्प नहीं बन सकती।
(घ) प्रदेश की सरकार ने ग्रामीण विकास की एक योजना चला रखी है। प्रखंड विकास अधिकारी ग्राम पंचायत के सामने एक रिपोर्ट पेश करता है कि इस योजना में कहाँ तक प्रगति हुई है? यह कथन भी विकेन्द्रीकरण का पर्याप्त विकल्प नहीं है क्योंकि अमुक परियोजना के निर्माण में ग्राम पंचायत की कोई भागीदारी नहीं है और न उसके क्रियान्वयन में ही उसकी कोई भागीदारी है।
प्रश्न 9.
दिल्ली विश्वविद्यालय का एक छात्र प्राथमिक शिक्षा के निर्णय लेने में विकेन्द्रीकरण की भूमिका का अध्ययन करना चाहता था। उसने गांववासियों से कुछ सवाल पूछे। ये सवाल नीचे लिखे हैं। यदि गांववासियों में आप शामिल होते तो निम्नलिखित प्रश्नों के क्या उत्तर देते ? गाँव का हर बालक/बालिका विद्यालय जाए, इस बात को सुनिश्चित करने के लिए कौन-से कदम उठाए जाने चाहिए इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए ग्राम सभा की बैठक बुलायी जानी है।
(क) बैठक के लिए उचित दिन कौन-सा होगा, इसका फैसला आप कैसे करेंगे? सोचिए कि आपके चुने हुए दिन में कौन बैठक में आ सकता है और कौन नहीं?
(अ) खंड विकास अधिकारी अथवा कलेक्टर द्वारा तय किया हुआ कोई दिन।
(ब) गांव का बाजार जिस दिन लगता है।
(स) रविवार।
(द) नागपंचमी संक्रान्ति।
(ख) बैठक के लिए उचित स्थान क्या होगा? कारण भी बताएँ।
(अ) जिला- कलेक्टर के परिपत्र में बताई गई जगह
(ब) गांव का कोई धार्मिक स्थान
(स) दलित मोहल्ला
(द) ऊँची जाति के लोगों का टोला
(य) गाँव का स्कूल।
(ग) ग्रामसभा की बैठक में पहले जिला समाहर्ता ( कलेक्टर) द्वारा भेजा गया परिपत्र पढ़ा गया।
परिपत्र में बताया गया था कि शैक्षिक रैली को आयोजित करने के लिए क्या कदम उठाए जाएँ और रैली किस रास्ते होकर गुजरे। बैठक में उन बच्चों के बारे में चर्चा नहीं हुई जो कभी स्कूल नहीं आते। बैठक में बालिकाओं की शिक्षा के बारे में, विद्यालय भवन की दशा के बारे में और विद्यालय के खुलने बंद होने के समय के बारे में चर्चा नहीं हुई। बैठक रविवार के दिन हुई इसलिए कोई महिला शिक्षक इस बैठक में नहीं आ सकी। लोगों की भागीदारी के लिहाज से इसको आप अच्छा कहेंगे या बुरा? कारण भी बतायें।
(घ) अपनी कक्षा की कल्पना ग्राम सभा के रूप में करें। जिस मुद्दे पर बैठक में चर्चा होनी थी, उस पर कक्षा में बातचीत करें और लक्ष्य को पूरा करने के लिए कुछ सुझायें।
उत्तर:
(क) बैठक के लिए उचित दिन कौनसा होगा? इसका फैसला करने के लिए यह देखना होगा कि बैठक में अधिक से अधिक उपस्थिति किस दिन हो सकती है। जो दिन प्रश्न में सुझाये गये हैं, वे इस प्रकार हैं।
(अ) प्रखंड विकास अधिकारी या कलेक्टर द्वारा तय किया हुआ कोई दिन।
(ब) जिस दिन गाँव का बाजार लगता है।
(स) रविवार।
(द) नागपंचमी/संक्रांति।
इन सब दिनों में रविवार का दिन सर्वाधिक उपयुक्त रहेगा क्योंकि इस दिन सभी लोग छुट्टी में होंगे और बैठक में सम्मिलित होने में उन्हें अधिक सुविधा होगी क्योंकि जिस दिन गांव का बाजार लगता है, उस दिन ग्रामीण अपनी खरीददारी करते हैं।
ऐसे में उपस्थिति कम रहेगी। नागपंचमी/संक्रांति पर्व पर बैठक बुलाने का कोई औचित्य नहीं क्योंकि उस दिन ग्रामवासी अपना त्यौहार मनाने में संलग्न रहेंगे। कलेक्टर या प्रखंड विकास अधिकारी द्वारा तय किये गए दिन कोई भी उनकी सुविधा का कार्य दिवस होगा न कि ग्रामवासियों की सुविधा का।
(ख) बैठक के लिए उचित स्थान क्या होगा? इसके लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विचारणीय प्रश्न यह है कि स्थान वह चुना जाये जहाँ अधिकतम ग्रामीण ग्रामसभा की बैठक में उपस्थित हो सकें। प्रश्न में सुझाये गये स्थान इस प्रकार हैं।
(अ) जिला कलेक्टर के परिपत्र में बताई गई जगह
(ब) गांव का धार्मिक स्थान
(स) दलित मोहल्ला
(द) ऊँची जाति के लोगों का टोला
(य) गांव का स्कूल।
उपर्युक्त सभी स्थानों में ग्रामीण स्कूल बैठक के लिए सबसे उपयुक्त स्थान होगा क्योंकि अन्य स्थानों पर सभी ग्रामीण इकट्ठा होने में एकमत नहीं होंगे।
(ग) लोगों की भागीदारी के लिहाज से बैठक की इस कार्यवाही में कोई कार्य जनता के हित में नहीं किया गया। कलेक्टर द्वारा भेजे गये परिपत्र में मुख्य समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया क्योंकि स्थानीय समस्यायें तो स्थानीय व्यक्तियों की भागीदारी से ही सुलझायी जा सकती हैं।
(घ) अपनी कक्षा को ग्राम सभा के रूप में कल्पना करते हुए सबसे पहले हम एक बैठक बुलाने की घोषणा करेंगे। बैठक का एजेण्डा इस प्रकार होगा।
(अ) उन बच्चों की समस्या पर चर्चा जो कभी स्कूल नहीं आते।
(ब) बालिकाओं की शिक्षा व उनकी समस्याओं के बारे में चर्चा।
(स) विद्यालय भवन की दशा के बारे में चर्चा।
(द) उपर्युक्त समस्याओं के निवारण के लिए धन की व्यवस्था पर विचार।
(य) सांस्कृतिक कार्यक्रमों को स्कूल में आयोजित कराने पर चर्चा।
(र) ग्राम प्रधान द्वारा समापन – भाषण।
लक्ष्य को पूरा करने के लिए निम्न उपाय सुझाये गए।
- शिक्षा के अधिकार को क्रियान्वित किया जाए तथा निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा हेतु सरकार को कदम उठाने चाहिए।
- प्राथमिक, माध्यमिक शिक्षा को ग्राम पंचायतों को सौंप दिया जाये ताकि शिक्षा के विकास में ग्रामीण लोगों की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके।
- शिक्षा की जागृति हेतु रैलियाँ भी निकाली जायें तथा उन बच्चों के अभिभावकों को चिह्नित किया जाये जो अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे हैं। उनसे सम्पर्क कर
उनकी समस्याओं पर ध्यान दिया जाये। इस सम्बन्ध में उनके द्वारा उठायी गयी शंकाओं का निवारण किया जाये तथा उन्हें शिक्षा-व्यवस्था में भागीदार बनाया जाये।
Jharkhand Board Class 11 Political Science स्थानीय शासन Textbook Questions and Answers
पृष्ठ 179
प्रश्न 1.
स्थानीय शासन लोकतंत्र को मजबूत बनाता है, कैसे?
उत्तर:
स्थानीय शासन लोकतंत्र को मजबूत बनाता हैं। लोकतंत्र का मतलब है: सार्थक भागीदारी तथा जवाबदेही। जीवन्त और मजबूत स्थानीय शासन सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही को सुनिश्चित करता है। स्थानीय शासन के स्तर पर आम नागरिक को उसके जीवन से जुड़े मसलों, जरूरतों और उसके विकास के बारे में फैसला लेने की प्रक्रिया में शामिल किया जा सकता है। लोकतंत्र के लिए यह आवश्यक है कि जो काम स्थानीय स्तर पर किये जा सकते हैं, वे स्थानीय लोगों और उनके प्रतिनिधियों के हाथ में रहने चाहिए। स्थानीय शासन का सम्बन्ध आम आदमी की रोजमर्रा की जिंदगी से होता है। इसलिए उसके कार्यों से जनता का ज्यादा सरोकार होता है। इस प्रकार स्थानीय शासन लोकतंत्र को मजबूत बनाता है।
पृष्ठ 182
प्रश्न 2.
नेहरू और डॉ. अम्बेडकर, दोनों स्थानीय शासन के निकायों को लेकर खास उत्साहित नहीं थे। क्या स्थानीय शासन को लेकर उनकी आपत्तियाँ एक जैसी थीं?
उत्तर:
नेहरू और डॉ. अम्बेडकर, दोनों स्थानीय शासन के निकायों को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं थे। स्थानीय शासन के विरोध में दोनों के तर्क अलग-अलग थे। यथा:
- नेहरू अति: स्थानीयता को राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए खतरा मानते थे।
- डॉ. अंबेडकर का कहना था कि ग्रामीण भारत में जाति-पांति और आपसी फूट के माहौल में स्थानीय शासन अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पायेगा।
इस प्रकार नेहरू जहाँ स्थानीय शासन का राष्ट्र की एकता और अखंडता की दृष्टि से विरोध करते थे, वहाँ डॉ. अम्बेडकर जाति-पांति और आपसी फूट के माहौल में उसे उचित नहीं मानते थे।
प्रश्न 3.
सन् 1992 से पहले स्थानीय शासन को लेकर संवैधानिक प्रावधान क्यों था?
उत्तर:
- सन् 1992 से पहले स्थानीय शासन का विषय प्रदेशों को सौंप दिया गया था। इसलिए इस पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकारों को था और राज्य सरकारों ने अपने-अपने ढंग से स्थानीय स्वशासन की अलग-अलग संस्थाएँ निर्मित की थीं।
- संविधान के नीति: निर्देशक सिद्धान्तों में भी स्थानीय शासन की चर्चा है। इसमें कहा गया है कि देश की हर सरकार अपनी नीति में इसे एक निर्देशक तत्त्व मानकर चले। राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धान्तों का अंग होने के कारण संविधान का यह प्रावधान अदालती वाद के दायरे में नहीं आता और इसकी प्रकृति प्रधानतः सलाह-मशविरे की है।
स्थानीय शासन JAC Class 11 Political Science Notes
→ केन्द्रीय और प्रादेशिक स्तर पर निर्वाचित सरकार होने के साथ-साथ लोकतंत्र के लिए यह भी आवश्यक है कि स्थानीय स्तर पर स्थानीय मामलों की देखभाल करने वाली एक निश्चित सरकार हो।
→ स्थानीय शासन से आशय-गांव और जिला स्तर के शासन को स्थानीय शासन कहते हैं। यह आम आदमी के सबसे नजदीक का शासन है तथा इसका विषय है-आम नागरिक की समस्यायें और उनकी रोजमर्रा की जिंदगी। इसकी मान्यता है कि स्थानीय ज्ञान और स्थानीय हित लोकतांत्रिक फैसला लेने के अनिवार्य घटक हैं।
→ स्थानीय शासन का महत्त्व:
- स्थानीय शासन से आम लोगों की समस्याओं का समाधान बहुत तेजी से तथा कम खर्चे में हो जाता है।
- स्थानीय शासन लोगों के स्थानीय हितों की रक्षा में अत्यन्त कारगर होता है।
- जीवन्त और मजबूत स्थानीय शासन सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही को सुनिश्चित करता है।
- स्थानीय शासन को मजबूत करना लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत बनाने के समान है।
→ भारत में स्थानीय शासन का विकास:
- प्राचीन भारत में स्थानीय शासन प्राचीन भारत में ‘सभा’ के रूप में स्थानीय शासन था। समय बीतने के साथ गांव की इन सभाओं ने पंचायत का रूप ले लिया। समय बदलने के साथ-साथ पंचायतों की भूमिका और काम भी बदलते रहे।
- स्वतंत्रता से पूर्व आधुनिक भारत में स्थानीय शासन का विकास: आधुनिक समय में, भारत में स्थानीय शासन के निर्वाचित निकाय सन् 1882 के बाद अस्तित्व में आए। यथा
- लार्ड रिपन ने इन निकायों – मुकामी बोर्डों (Local Boards ): को बनाने की दिशा में पहलकदमी की।
- इसके बाद 1919 के भारत शासन अधिनियम के बाद अनेक प्रान्तों में ग्राम पंचायतें बनीं। 1935 के एक्ट के बाद भी यह प्रवृत्ति जारी रही।
- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गांधीजी ने आर्थिक और राजनीतिक सत्ता के विकेन्द्रीकरण के तहत ग्राम पंचायतों को मजबूत बनाने पर बल दिया।
- भारतीय संविधान में स्थानीय स्वशासन- जब संविधान बना तो स्थानीय स्वशासन का विषय प्रदेशों को सौंप दिया गया। इस प्रकार संविधान में स्थानीय स्वशासन को यथोचित महत्त्व नहीं मिल सका।
- स्वतंत्र भारत में स्थानीय स्वशासन- संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के बाद स्थानीय शासन को मजबूत आधार मिला।
→ इससे पहले इस सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रयास किये गयें।
- 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम लागू किया गया।
- ग्रामीण इलाकों के लिए त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की सिफारिश की गई। गुजरात, महाराष्ट्र ने 1960 में निर्वाचन द्वारा बने स्थानीय निकायों की प्रणाली अपनायी। कई प्रदेशों में स्थानीय निकायों के चुनाव अप्रत्यक्ष रीति से हुए। अनेक प्रदेशों में स्थानीय निकायों के चुनाव समय-समय पर स्थगित होते रहे। ये निकाय वित्तीय मदद के लिए प्रदेश तथा केन्द्रीय सरकार पर बहुत ज्यादा निर्भर थे।
- सन् 1989 में पी. के. थुंगन समिति ने स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने की सिफारिश की और सन् 1992 में संविधान के 73वें तथा 74वें संशोधन को संसद ने पारित कर स्थानीय निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया।
- 73वां संविधान संशोधन संविधान का 73वां संविधान संशोधन स्थानीय शासन से जुड़ा है।
→ 73वें संविधान संशोधन के पश्चात् ग्रामीण क्षेत्र में पंचायती राज व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं;
- त्रिस्तरीय बनावट:
- ग्राम पंचायत (प्राथमिक स्तर)
- पंचायत समिति ( मध्यवर्ती स्तर- खंड या तालुका स्तर)
- जिला पंचायत ( जिला स्तर)
संविधान के 73वें संशोधन में ‘ग्राम सभा’ को भी संवैधानिक महत्त्व दिया गया हैं।
→ चुनाव: पंचायती राज संस्थाओं के तीनों स्तर के चुनाव सीधे जनता – ‘पांच साल’ के लिए करती है।
→ आरक्षण: सभी पंचायती संस्थाओं में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। तीनों स्तर पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीट में आरक्षण की व्यवस्था की गई है। यह व्यवस्था इन जातियों के जनसंख्या के अनुपात में की गई है। यदि प्रदेश की सरकार आवश्यक समझे तो वह अन्य पिछड़ा वर्ग को भी सीट में आरक्षण दे सकती हैं। तीनों ही स्तर पर अध्यक्ष पद तक आरक्षण दिया गया है।
→ विषयों का स्थानान्तरण: ऐसे 29 विषय जो पहले राज्य सूची में थे, अब पहचान कर संविधान की 11वीं अनुसूची में दर्ज कर लिए गए हैं जिन्हें पंचायती राज संस्थाओं को हस्तांतरित किया जाना है। इन कार्यों का वास्तविक हस्तांतरण प्रदेश के कानून पर निर्भर है। हर प्रदेश यह फैसला करेगा कि इन 29 विषयों में से कितने को स्थानीय निकायों के हवाले करना है।
→ राज्य चुनाव आयुक्त: प्रदेश एक राज्य चुनाव आयुक्त नियुक्त करेगा जिसकी जिम्मेदारी पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव कराने की होगी। यह चुनाव आयुक्त एक स्वतंत्र अधिकारी होता है। उसका संबंध भारत के चुनाव आयोग से नहीं होता।
→ राज वित्त आयोग: प्रदेशों की सरकार हर पांच वर्ष के लिए एक प्रादेशिक वित्त आयोग बनायेगी, जो स्थानीय शासन संस्थाओं की आर्थिक स्थिति का जायजा लेगा तथा राजस्व के बंटवारे की समीक्षा करेगा। इस पहल के द्वारा यह सुनिश्चित किया गया है कि ग्रामीण स्थानीय शासन को धन आबंटित करना राजनीतिक मसला न बने।
→ 74वां संविधान संशोधन
संविधान के 74वें संशोधन का सम्बन्ध शहरी स्थानीय शासन के निकाय अर्थात् नगरपालिका से है । सन् 2011 की जनगणना के अनुसार 31 प्रतिशत जनसंख्या शहरी इलाके में रहती है। 73वें संशोधन के सभी प्रावधान, जैसे— प्रत्यक्ष चुनाव, आरक्षण, विषयों का हस्तांतरण, प्रादेशिक चुनाव आयुक्त और प्रादेशिक वित्त आयोग 74वें संशोधन में शामिल हैं तथा नगरपालिकाओं पर लागू हैं। संशोधन के अन्तर्गत इस बात को अनिवार्य बना दिया गया है कि प्रदेश की सरकार 11वीं अनुसूची में दिये गये कार्यों को करने की जिम्मेदारी शहरी स्थानीय शासन- संस्थाओं पर छोड़ दे।
→ 73वें तथा 74वें संशोधन का क्रियान्वयन
अब सभी प्रदेशों ने 73वें तथा 74वें संशोधन के प्रावधानों को लागू करने के लिए कानून बना दिये हैं तथा उन्हें क्रियान्वित कर दिया है। यथा
- लगभग सभी प्रदेशों में स्थानीय संस्थाओं के चुनाव हो रहे हैं। हर पांच वर्ष पर इन निकायों के लिए 32 लाख सदस्यों का निर्वाचन होता है। इस प्रकार स्थानीय निकायों के चुनावों के कारण निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई है।
- आरक्षण के प्रावधान के कारण स्थानीय निकायों में महिलाओं की भारी संख्या में मौजूदगी सुनिश्चित हुई है। संसाधनों पर अपने नियंत्रण की दावेदारी करके महिलाओं ने ज्यादा शक्ति और आत्मविश्वास अर्जित किया अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण को संविधान संशोधन ने ही अनिवार्य बना दिया है। इसके साथ ही अधिकांश प्रदेशों ने पिछड़ी जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान बनाया है।
- संविधान के संशोधन ने 29 विषयों को स्थानीय शासन के हवाले किया है। लेकिन अनेक प्रदेशों ने अधिकांश विषय स्थानीय निकायों को नहीं सौंपे हैं।
- स्थानीय निकाय प्रदेश और केन्द्र की सरकार पर वित्तीय मदद के लिए निर्भर हैं।