JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न – चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखो –
1. दसवीं पंचवर्षीय योजना कब समाप्त हुई ?
(A) 2005
(B) 2006
(C) 2007
(D) 2008.
उत्तर:
(C) 2007

2. भरमौर जन- जातीय क्षेत्र किस राज्य में स्थित है ?
(A) उत्तराखंड
(B) जम्मू कश्मीर
(C) हिमाचल प्रदेश
(D) उत्तर प्रदेश।
उत्तर:
(C) हिमाचल प्रदेश

3. किसी क्षेत्र का आर्थिक विकास किस तत्त्व पर निर्भर करता है ?
(A) धरातल
(B) जलवायु
(C) जनसंख्या
(D) संसाधन।
उत्तर:
(D) संसाधन।

4. पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम में क्षेत्र की ऊँचाई कितनी ऊँचाई से अधिक है ?
(A) 500 मीटर
(B) 600 मीटर
(C) 700 मीटर
(D) 800 मीटर
उत्तर:
(B) 600 मीटर

5. सूखा सम्भावी क्षेत्र कितने जिलों में पहचाने गए हैं ?
(A) 47
(B) 57
(C) 67
(D) 77.
उत्तर:
(C) 67

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6. भरमौर क्षेत्र की प्रमुख नदी है-
(A) चेनाब
(B) ब्यास
(C) सतलुज
(D) रावी।
उत्तर:
(D) रावी।

7. भरमौर क्षेत्र में कौन-सी जन-जाति निवास करती है ?
(A) भोरिया
(B) गद्दी
(C) मारिया
(D) भील।
उत्तर:
(B) गद्दी

8. भरमौर क्षेत्र में स्त्री साक्षरता है-
(A) 32%
(B) 35%
(C) 40%
(D) 42%.
उत्तर:
(D) 42%.

9. अवर कॉमन फ़्यूचर रिपोर्ट किसने प्रस्तुत की ?
(A) ब्रंटलैंड
(B) मीडोस
(C) एहरलिच
(D) राष्ट्र संघ।
उत्तर:
(A) ब्रंटलैंड

10. इन्दिरा गाँधी नहर किस बाँध से निकाली गई है ?
(A) भाखड़ा
(C) हरीके
(B) नंगल
(D) थीन।
उत्तर:
(C) हरीके

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions )

प्रश्न 1.
भारत में सर्वप्रथम पंचवर्षीय योजना कब आरम्भ हुई ? इसकी अवधि क्या थी ?
उत्तर:
1951 में 1951-1956.

प्रश्न 2.
दसवीं पंचवर्षीय योजना कब समाप्त हुई है ?
उत्तर:
31.3.2007 को

प्रश्न 3.
नियोजन के दो उपागम बताओ।
उत्तर:
खण्डीय तथा प्रादेशिक

प्रश्न 4.
योजना अवकाश का क्या समय रहा ?
उत्तर:
1966-67, 1968-1969.

प्रश्न 5.
सूखा सम्भावी क्षेत्र में विकास के दो उद्देश्य बताओ।
उत्तर:
रोज़गार उपलब्ध करना तथा सूखा कम करना।

प्रश्न 6.
सूखा सम्भावी क्षेत्र में सिंचित क्षेत्र कितने % हो ?
उत्तर:
30% से कम।

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प्रश्न 7.
पर्वतीय विकास क्षेत्र में दो पहाड़ी क्षेत्र बताओ।
उत्तर:
दार्जिलिंग तथा नीलगिरी।

प्रश्न 8.
भरमौर जन- जातीय खण्ड हिमाचल प्रदेश के किस जिले में स्थित है ?
उत्तर:
चम्बा ज़िला की दो तहसीले भरमौर तथा होली।

प्रश्न 9.
भरमौर क्षेत्र में स्थित दो पर्वत श्रेणियां बताओ।
उत्तर:
पीर पंजाल तथा धौलाधार।

प्रश्न 10.
भरमौर क्षेत्र की जनसंख्या तथा जनसंख्या घनत्व बताओ।
उत्तर:
जनसंख्या 32,246 तथा घनत्व 20 व्यक्ति प्रति वर्ग कि० मी०।

प्रश्न 11.
किस बाँध से इन्दिरा गाँधी नहर निकाली गई ?
उत्तर:
इन्दिरा गाँधी नहर हरीके पतन बाँध से निकाली गई है।

प्रश्न 12.
‘दी लिमिट टू ग्रोथ’ पुस्तक किसने लिखी ?
उत्तर:
1972 में मीडोस ने ‘दी लिमिट टू ग्रोथ’ नामक पुस्तक लिखी।

प्रश्न 13.
सूखा सम्भावी क्षेत्रों में लोगों के लिए चौथी पंचवर्षीय योजना को लागू करने का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
उत्तर:
चौथी पंचवर्षीय योजना को सूखा सम्भावी क्षेत्रों में लागू करने का मुख्य उद्देश्य रोज़गार प्रदान करना था ।

प्रश्न 14.
भारत की किस पंचवर्षीय योजना में पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रमों को प्रारम्भ किया गया ?
उत्तर:
पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम भारत की पांचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-75 से 1977-78 तक) में प्रारम्भ किया गया ताकि मूल संसाधनों का विकास किया जा सके ।

प्रश्न 15.
भरमौर जनजातीय क्षेत्र किस राज्य में स्थित है ?
उत्तर:
हिमाचल प्रदेश में।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
नियोजन से क्या अभिप्राय है ? यह किस प्रकार एक क्रमिक प्रक्रिया है ?
उत्तर:
नियोजन, क्रियाओं के क्रम / अनुक्रम को विकसित करने की प्रक्रिया है, जिसे भविष्य की समस्याओं के समाधान के लिए बनाया जाता हैं। नियोजन के लिए चुनी गई समस्याएं बदलती रहती हैं पर यह मुख्य रूप में आर्थिक और सामाजिक ही होती है। नियोजन के प्रकार और स्तर के अनुसार नियोजन की अवधि में भी अन्तर होता है लेकिन सभी प्रकार के नियोजन में एक क्रमिक प्रक्रिया होती है, जिसकी कुछ अवस्थाओं के रूप में संकल्पना की जाती है।

प्रश्न 2.
पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम कहां-कहां आरम्भ किए गए हैं ?
उत्तर:
पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रमों को पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में प्रारम्भ किया गया और इसके अन्तर्गत उत्तर प्रदेश के सारे पर्वतीय जिले (वर्तमान उत्तराखंड), मिकिर पहाड़ी और असम की उत्तरी कछार की पहाड़ियाँ, पश्चिम बंगाल की दार्जिलिंग ज़िला और तमिलनाडु के नीलगिरी आदि को मिलाकर कुल 15 जिले शामिल हैं। 1981 में ‘पिछड़े क्षेत्रों पर राष्ट्रीय समिति ने उस सभी पर्वतीय क्षेत्रों को पिछड़े पर्वतीय क्षेत्रों में शामिल करने की सिफारिश की जिनकी ऊँचाई 600 मीटर से अधिक है और जिनमें जन- जातीय उप-योजना लागू नहीं है।

प्रश्न 3.
पिछड़े क्षेत्रों में विकास के क्या सुझाव दिए गए हैं ?
उत्तर:
पिछड़े क्षेत्रों में विकास के लिए बनी राष्ट्रीय समिति ने निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखकर पहाड़ी क्षेत्रों में विकास के लिए सुझाव दिए:
(1) सभी लोग लाभान्वित हों, केवल प्रभावशाली व्यक्ति ही नहीं;
(2) स्थानीय संसाधनों और प्रतिभाओं का विकास;
(3) जीविका निर्वाह अर्थव्यवस्था को निवेश-उन्मुखी बनाना;
(4) अंतः प्रादेशिक व्यापार में पिछड़े क्षेत्रों का शोषण न हो
(5) पिछड़े क्षेत्रों की बाज़ार व्यवस्था में सुधार करके श्रमिकों को लाभ पहुँचाना
(6) पारिस्थिकीय सन्तुलन बनाए रखना ।

प्रश्न 4.
पर्वतीय क्षेत्रों में किन पक्षों का विकास किया जाएगा ?
उत्तर:
पहाड़ी क्षेत्र के विकास की विस्तृत योजनाएँ इनके स्थलाकृतिक, पारिस्थिकीय, सामाजिक तथा आर्थिक दशाओं को ध्यान में रखकर बनाई गई। ये कार्यक्रम पहाड़ी क्षेत्रों में बागवानी का विकास, रोपण कृषि, पशुपालन, मुर्गी पालन, वानिकी, लघु तथा ग्रामीण उद्योगों का विकास करने के लिए स्थानीय संसाधनों को उपयोग में लाने के उद्देश्य से बनाए गए।

प्रश्न 5.
सूखा सम्भावी क्षेत्र विकास कार्यक्रम के उद्देश्य बताओ।
उत्तर:
इस कार्यक्रम की शुरुआत चौथी पंचवर्षीय योजना में हुई। इसका उद्देश्य सूखा सम्भावी क्षेत्रों में लोगों को रोज़गार उपलब्ध करवाना और सूखे के प्रभाव को कम करने के लिए उत्पादन के साधनों को विकसित करना था । पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में इसके कार्यक्षेत्र को और विस्तृत किया गया । प्रारम्भ में इस कार्यक्रम के अन्तर्गत ऐसे सिविल निर्माण कार्यों पर बल दिया गया जिनमें अधिक श्रमिकों की आवश्यकता होती है । परन्तु बाद में इसमें सिंचाई परियोजनाओं, भूमि विकास कार्यक्रमों, वनीकरण, चरागाह विकास और आधारभूत ग्रामीण अवसंरचना जैसे विद्युत्, सड़कों, बाज़ार, ऋण सुविधाओं और सेवाओं पर जोर दिया।

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प्रश्न 6.
देश के किन भागों में सूखा सम्भावी क्षेत्र है ?
उत्तर:
1967 में योजना आयोग ने देश में 67 जिलों (पूर्ण या आंशिक) की पहचान सूखा सम्भावी जिलों के रूप में की। 1972 में सिंचाई आयोग ने 30 प्रतिशत सिंचित क्षेत्र का मापदंड लेकर सूखा सम्भावी क्षेत्रों को परिसीमन किया । भारत में सूखा सम्भावी क्षेत्र मुख्यतः राजस्थान, गुजरात, पश्चिमी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र, आन्ध्र प्रदेश के रायलसीमा और तेलंगाना पठार, कर्नाटक पठार और तमिलनाडु की उच्च भूमि तथा आंतरिक भाग के शुष्क और अर्ध-शुष्क भागों में फैले हुए हैं। पंजाब, हरियाणा और उत्तरी राजस्थान के सूखा प्रभावित क्षेत्र सिंचाई के प्रसार के कारण सूखे से बच जाते हैं।

प्रश्न 7.
इन्दिरा गाँधी नहर कब आरम्भ हुई ? यह नहर किन-किन राज्यों से गुज़रती है ?
उत्तर:
इन्दिरा गाँधी नहर –

  1. आरम्भ – इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना पर काम 31 मार्च, 1958 को प्रारम्भ हुआ था।
  2. निकास स्थान- पंजाब प्रान्त के फिरोज़पुर ज़िले में सतलुज तथा व्यास के संगम पर स्थित हरिके बैराज से यह निकाली गई है।
  3. जल ग्रहण क्षमता – यह अपने तल में 40 मीटर चौड़ी तथा 6.4 मीटर गहरी है। अपने शीर्ष पर इसकी प्रवाह क्षमता 18,500 क्यूसेक्स है। 1981 के एक प्रस्ताव के अनुसार रावी – व्यास के अतिरिक्त जल से राजस्थान को 8.6 मिलियन एकड़ फीट पानी का नियतन किया गया था जिसमें से 7.6 मिलियन एकड़ फीट पानी का उपयोग इन्दिरा गाँधी नहर द्वारा किया जायेगा।
  4. राज्यों में विस्तार – इन्दिरा गाँधी नहर 204 किलोमीटर तक एक फीडर है और 150 किलोमीटर पंजाब में तथा 19 किलोमीटर हरियाणा में बहती है जहाँ इसमें कोई निकास नहीं है।
  5. शीर्ष स्थान – मुख्य नहर का शीर्ष श्री गंगानगर के हनुमानगढ़ तहसील में मसीतावाली के निकट स्थित है । 445 किलोमीटर लम्बी नहर का अन्तिम भाग जैसलमेर जिले के मोहनगढ़ के निकट स्थित है।
  6. कमाण्ड क्षेत्र – इस नहर का कमाण्ड क्षेत्र – बाड़मेर जिले के गदरा रोड तक विस्तृत है। इस परियोजना का निर्माण कार्य हो रहा है तथा इसे दो चरणों में किया जा रहा है। इस नहर में 11 अक्तूबर, 1967 को पानी छोड़ा गया था और 1 जनवरी, 1987 को यह अन्तिम छोर तक पहुँचाया जा सका है।

प्रश्न 8.
इन्दिरा गाँधी नहर कमाण्ड क्षेत्र से पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़े हैं ?
उत्तर:
सिंचाई का पर्यावरण पर प्रभाव-
सिंचाई से इस क्षेत्र की कृषि भू-दृश्यावली में परिवर्तन साफ़ परिलक्षित होता है तथा कृषि उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई है।
1. भू-जल स्तर में वृद्धि – प्रथम चरण के कमाण्ड क्षेत्र में भूमि – जल स्तर में 0.8 मीटर प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि हो रही है जो चिन्ता का विषय है । भूमिगत जल विभाग के एक अनुमान के अनुसार घग्घर बेसिन क्षेत्र के लगभग 25 प्रतिशत भाग की दशा जल स्तर के ऊपर आ जाने से शोचनीय हो गई है। यदि इसे रोकने के उपाय न किए गए तो इस शताब्दी के अन्त तक लगभग 50 प्रतिशत भाग की दशा बिगड़ने की सम्भावना है।

2. मिट्टी में लवणता – मिट्टी में नमक की मात्रा अधिक होने एवं जलाक्रातता के कारण कमाण्ड क्षेत्र के प्रथम चरण की मिट्टी में लवणता का प्रकोप बढ़ गया है।

3. मिट्टी की उर्वरता – इसके कारण मिट्टी की उर्वरता तथा कृषि उत्पादन पर कुप्रभाव पड़ा है। यह समस्या द्वितीय चरण कमाण्ड क्षेत्र में अधिक शोचनीय होने की आंशका है। क्योंकि कमाण्ड क्षेत्र के इस भाग में भूमि के कुछ ही मीटर नीचे कंकड़ के स्तर जो प्रवाह को अवरुद्ध कर जलाक्रांतता को प्रोत्साहन देते हैं।

प्रश्न 9.
इन्दिरा गाँधी नहर कमाण्ड क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ? इस क्षेत्र की स्थिति तथा विस्तार बताओ।
उत्तर:
इन्दिरा गाँधी नहर थार मरुस्थल के विकास के लिए बनाई गई नहर है। यह संसार के बहुत बड़े नहर तन्त्रों में से एक है। इस नहर का कमाण्ड क्षेत्र राजस्थान के थार मरुस्थल के उत्तर पश्चिमी भाग में श्री गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर तथा चुरू जिलों में स्थित है। यह पाकिस्तान की सीमा रेखा के साथ लगभग 23,725 वर्ग कि० मी० क्षेत्र पर फैला हुआ है। यह क्षेत्र पाकिस्तान सीमा रेखा के समानान्तर लगभग 38 कि० मी० चौड़ाई में फैला हुआ है

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लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
खण्डीय नियोजन तथा प्रादेशिक नियोजन में अन्तर बताओ ।
उत्तर:
सामान्यतः नियोजन के दो उपागम होते हैं –
(1) खण्डीय (Sectoral) नियोजन और
(2) प्रादेशिक नियोजन।

1. खण्डीय नियोजन – खण्डीय नियोजन का अर्थ है – अर्थव्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों, जैसे- कृषि, सिंचाई, विनिर्माण, ऊर्जा, निर्माण, परिवहन, संचार, सामाजिक अवसंरचना और सेवाओं के विकास के लिए कार्यक्रम बनाना तथा उनको लागू करना।

2. प्रादेशिक नियोजन – किसी भी देश में सभी क्षेत्रों में एक समान आर्थिक विकास नहीं हुआ है। कुछ क्षेत्र बहुत अधिक विकसित हैं तो कुछ पिछड़े हुए हैं। विकास का यह असमान प्रतिरूप (Pattern) सुनिश्चित करता है कि नियोजक एक स्थानिक परिप्रेक्ष्य अपनाएँ तथा विकास में प्रादेशिक असंतुलन कम करने के लिए योजना बनाएं। इस प्रकार के नियोजन को प्रादेशिक नियोजन कहा जाता है।

प्रश्न 2.
” भारत में नियोजन अभी तक केन्द्रीकृत ही है ।” स्पष्ट करते हुए इसके अधीन महत्त्वपूर्ण विषयों का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत में नियोजन अभी तक केन्द्रीकृत ही है। राष्ट्रीय विकास परिषद् नियोजन की नीति तय करती है। इस परिषद् में केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल, योजना आयोग के सदस्य राज्यों के मुख्यमन्त्री तथा केन्द्र शासित प्रदेशों के मुख्यमन्त्री / प्रशासक शामिल होते हैं । राष्ट्रीय महत्त्व के विषय. जैसे- रक्षा, संचार, रेलें आदि केन्द्रीय सरकार के अधीन होते हैं जबकि ग्रामीण विकास की महत्त्वपूर्ण सेवाएं, लघु उद्योग और सड़कों का विकास व परिवहन राज्य सरकार के नियन्त्रण में होते हैं। अधिकतर मामलों में योजना आयोग ही, कार्य-नीतियां, नीतियां और कार्यक्रम बनाता है तथा राज्यों को केवल उन्हें क्रियान्वित करने के लिए कहा जाता है।

प्रश्न 3.
‘लक्ष्य क्षेत्र’ (Target Area) तथा ‘लक्ष्य समूह’ (Target group) से क्या अभिप्राय है ? इन क्षेत्रों में कौन से कार्यक्रम सम्मिलित हैं ?
उत्तर:
आर्थिक विकास में क्षेत्रीय असंतुलन प्रबल हो रहा था। क्षेत्रीय एवं सामाजिक विषमताओं की प्रबलता को काबू में रखने के क्रम में योजना आयोग ने ‘लक्ष्य क्षेत्र’ तथा ‘लक्ष्य समूह’ योजना उपागमों को प्रस्तुत किया है। लक्ष्य क्षेत्रों की ओर इंगित कार्यक्रमों के कुछ उदाहरणों में कमान नियन्त्रित क्षेत्र विकास कार्यक्रम, सूखाग्रस्त क्षेत्र विकास कार्यक्रम पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम हैं। इसके साथ ही लघु कृषक विकास संस्था, सीमान्त किसान विकास संस्था आदि कुछ लक्ष्य समूह कार्यक्रम के उदाहरण हैं। आठवीं पंचवर्षीय योजना में पर्वतीय क्षेत्रों तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों, जनजातीय एवं पिछड़े क्षेत्रों में अवसंरचना को विकसित करने के लिए विशिष्ट क्षेत्र योजना को तैयार किया गया।

प्रश्न 4.
पिछड़े क्षेत्रों में विकास के लिए कौन-से सुझाव आप देना चाहोगे जो इनके वासियों को आधारभूत सेवाएँ प्रदान करने में सहायक ?
उत्तर:
पिछड़े क्षेत्रों में विकास के लिए कुछ सुझाव –

  1. सभी लोग लाभान्वित हों, केवल प्रभावशाली व्यक्ति ही नहीं
  2. स्थानीय संसाधनों और प्रतिभाओं का विकास
  3. जीविका निर्वाह अर्थव्यवस्था का निवेश – उन्मुखी बनाना
  4. अंतः प्रादेशिक व्यापार में पिछड़े क्षेत्रों का शोषण न हो
  5. पिछड़े क्षेत्रों की बाज़ार व्यवस्था में सुधार करके श्रमिकों को लाभ पहुँचाना
  6. पारिस्थिकीय सन्तुलन बनाएं रखना।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions )

प्रश्न 1.
भारत में नियोजन परिप्रेक्ष्य का अवलोकन करो।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में योजना आयोग ने निम्नलिखित पंचवर्षीय योजनाएँ बनाई हैं-
1. प्रथम पंचवर्षीय योजना – प्रथम पंचवर्षीय योजना 1951 में आरम्भ हुई तथा यह 1951-52 से 1955-56 तक चली।
2. द्वितीय तथा तृतीय पंचवर्षीय योजना – द्वितीय तथा तृतीय पंचवर्षीय योजनाओं की समय अवधि क्रमशः 1956- 57 से 1960-61 और 1961-62 से 1965-66 तक रही।
3. योजना अवकाश – 1960 के दशक के मध्य में लगातार दो सूखों (1965-66 और 1966-67) और 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के कारण 1966-67 और 1968-69 में ‘ योजना अवकाश’ लेना पड़ा।
4. रोलिंग प्लान- इस अवधि में वार्षिक योजनाएँ लागू रहीं जिन्हें ‘रोलिंग प्लान’ भी कहा गया है।
5. चतुर्थ पंचवर्षीय योजना – चतुर्थ पंचवर्षीय योजना 1969-70 में आरम्भ हुई और 1973-74 तक चली। 6. पांचवीं पंचवर्षीय योजना- इसके बाद पाँचवीं पंचवर्षीय योजना आरम्भ 1974-75 में आरम्भ हुई परन्तु तत्कालीन सरकार ने इसे एक वर्ष पहले अर्थात् 1977-78 में ही समाप्त कर दिया।
7. छठी पंचवर्षीय योजना – छठी पंचवर्षीय योजना 1980 में लागू हुई।
8. सातवीं पंचवर्षीय योजना-सातवीं पंचवर्षीय योजना की अवधि 1985 से 1990 के बीच रही। एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता और उदारीकरण की नीति की शुरुआत के कारण आठवीं पंचवर्षीय योजना देरी से आरम्भ हुई।
9. आठवीं पंचवर्षीय योजना- इस योजना ने 1992 से 1997 के बीच की अवधि तय की।
10. नौवीं पंचवर्षीय योजना- नौवीं पंचवर्षीय योजना 1997 से 2002 तक लागू रही।
11. दसवीं पंचवर्षीय योजना – दसवीं पंचवर्षीय योजना 2002 में प्रारम्भ हुई और 31.3.2007 को समाप्त हुई । 12. ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना – ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना का उपागम प्रपत्र ‘तीव्रता के साथ और अधिक सम्मिलित वृद्धि की ओर’ पर पहले से ही परिचर्चा चल रही है।

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प्रश्न 2.
भरमौर क्षेत्र का भौतिक पर्यावरण बताओ।
उत्तर:
1. स्थिति तथा क्षेत्रफल – यह क्षेत्र 32° 11′ उत्तर से 32° 41′ उत्तर अक्षांशों तथा 76° 22′ पूर्व से 76° 53′ पूर्व देशान्तरों के बीच स्थित है। यह प्रदेश लगभग 1,818 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।

2. धरातल – इसका अधिकतर भाग समुद्र तल से 1500 मीटर से 3700 मीटर की औसत ऊँचाई के बीच स्थित है। गद्दियों की आवास भूमि कहलाया जाने वाला यह क्षेत्र चारों दिशाओं में ऊँचे पर्वतों से घिरा हुआ है। इसके उत्तर में पीर पंजाल तथा दक्षिण में धौलाधार पर्वत श्रेणियाँ हैं। पूर्व में धौलाधार श्रेणी का फैलाव रोहतांग दर्रे के पास पीर पंजाल श्रेणी से मिलता है।

3. नदियाँ – इस क्षेत्र में रावी और इसकी सहायक नदियाँ बुधित और टुंडेन बहती हैं और गहरे महाखड्डों का निर्माण करती हैं। ये नदियाँ इस पहाड़ी प्रदेश को चार भूखण्डों, होली, खणी, कुगती और तुण्डाह में विभाजित करती हैं।

4. जलवायु – शरद् ऋतु में भरमौर में जमा देने वाली कड़ाके की सर्दी और बर्फ पड़ती है तथा जनवरी में यहाँ औसत मासिक तापमान 4° सेल्सियस और जुलाई में 26° सेल्सियस रहता है।

प्रश्न 3.
भरमौर समन्वित जनजातीय खण्ड के विकास का कार्यक्रम तथा उनके प्रभाव बताओ ।
उत्तर:
केस अध्ययन – भरमौर क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम
1. सामाजिक जीवन – भरमौर जनजातीय क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले की दो तहसीलें, भरमौर और होली शामिल हैं। यह 21 नवम्बर, 1975 से अधिसूचित जनजातीय क्षेत्र है। इस क्षेत्र में ‘ गद्दी जनजातीय समुदाय का आवास है।’ इस समुदाय की हिमालय क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान है क्योंकि गद्दी लोग ऋतु प्रवास करते हैं तथा गद्दीयाली भाषा में बात करते हैं। भरमौर जनजातीय क्षेत्र में जलवायु कठोर है, आधारभूत संसाधन कम हैं और पर्यावरण भंगुर है।

इन कारकों ने इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था और समाज को प्रभावित किया है। 2001 की जनगणना के अनुसार, भरमौर उपमण्डल की जनसंख्या 32,246 थी अर्थात् जनसंख्या घनत्व 20 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर। यह हिमाचल प्रदेश के आर्थिक और सामाजिक रूप से सबसे पिछड़े इलाकों में से एक है । ऐतिहासिक तौर पर, गद्दी जनजाति ने भौगोलिक और आर्थिक अलगाव का अनुभव किया है और सामाजिक-आर्थिक विकास से वंचित रही है। इनका आर्थिक आधार मुख्य रूप से कृषि और इससे सम्बद्ध क्रियाएँ जैसे- भेड़ और बकरी पालन है।

2. विकास कार्यक्रम – भरमौर जनजातीय क्षेत्र में विकास की प्रक्रिया 1970 के दशक में शुरू हुई जब गद्दी लोगों को अनुसूचित जनजातियों में शामिल किया गया। 1974 में पाँचवीं पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत जनजातीय उप-योजना प्रारम्भ हुई और भरमौर को हिमाचल प्रदेश में पाँच में से समन्वित जनजातीय विकास परियोजना (आई० टी० डी० पी० ) का दर्जा मिला। इस क्षेत्र विकास योजना का उद्देश्य गद्दियों के जीवन स्तर में सुधार करना और भरमौर तथा हिमाचल प्रदेश के अन्य भागों के बीच में विकास के स्तर में अन्तर को कम करना है। इस योजना के अन्तर्गत परिवहन तथा संचार, कृषि और इससे सम्बन्धित क्रियाओं तथा सामाजिक व सामुदायिक सेवाओं के विकास को सर्वाधिक प्राथमिकता दी गई।

3. उद्देश्य – इस क्षेत्र में जनजातीय समन्वित विकास उपयोजना का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान विद्यालयों, जन स्वास्थ्य सुविधाओं, पेयजल, सड़कों, संचार और विद्युत् के रूप में अवसंरचना विकास है। परन्तु होली और खणी क्षेत्रों में रावी नदी के साथ बसे गाँव अवसंरचना विकास के सबसे अधिक लाभान्वित हुए हैं। तुंदाह और कुगती क्षेत्रों के दूरदराज के गाँव अभी भी इस विकास की परिधि से बाहर हैं।

4. विकास कार्यक्रम से प्राप्त लाभ – जनजातीय समन्वित विकास उपयोजना लागू होने से हुए सामाजिक लाभों में साक्षरता दर में तेज़ी से वृद्धि, लिंग अनुपात में सुधार और बाल विवाह में कमी शामिल है।

  • इस क्षेत्र में स्त्री साक्षरता दर 1971 में 1.88 प्रतिशत से बढ़कर 2001 में 42.83 प्रतिशत हो गई।
  • स्त्री और पुरुष साक्षरता दर में अन्तर अर्थात् साक्षरता में लिंग असमानता भी कम हुई है ।
  • गद्दियों की परम्परागत अर्थव्यवस्था जीवन निर्वाह कृषि व पशुचारण पर आधारित थी जिसमें खाद्यान्नों और पशुओं के उत्पादन पर बल दिया जाता था।

परन्तु 20वीं शताब्दी के अन्तिम तीन दशकों के दौरान, भरमौर क्षेत्र में दालों और अन्य नकदी फसलों की खेती में बढ़ोत्तरी हुई है। परन्तु यहाँ खेती अभी भी परम्परागत तकनीकों से की जाती है । (4) इस क्षेत्र को अर्थव्यवस्था में पशुचारण के घटते महत्त्व को इस बात से आँका जा सकता है कि आज कुल पारिवारिक इकाइयों का दसवाँ भाग ही ऋतु प्रवास करता है । परन्तु गद्दी जनजाति आज भी बहुत गतिशील है क्योंकि इनकी एक बड़ी संख्या शरद् ऋतु में कृषि और मज़दूरी करके आजीविका कमाने के लिए कांगड़ा और आस-पास के क्षेत्रों में प्रवास करती है –
JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास - 1

प्रश्न 4.
सतत् पोषणीय विकास पर एक निबन्ध लिखो।
उत्तर:
सतत् पोषणीय विकास (Sustainable Development ) – प्राकृतिक संसाधन ऐसी संपत्ति है, जिसके दोहरे उपयोग हैं। ये विकास के लिए कच्चा माल और ऊर्जा प्रदान करते हैं। ये पर्यावरण के अंग भी हैं, जो स्वास्थ्य और जीवनशक्ति पर भी प्रभाव डालते हैं। इसीलिए मानव जीवन और विकास के संसाधनों का बुद्धिमत्ता पूर्ण उपयोग अनिवार्य है। इसके लिए सतत् पोषणीय विकास की आवश्यकता है, जिसके महत्त्व को गांधी जी ने सन् 1908 से बताना शुरू कर दिया था।

सतत् पोषणीय विकास का तात्पर्य विकास की उस प्रक्रिया से है, जिसमें पर्यावरण की गुणवत्ता को बनाए रखा जाता है कि समाप्य संसाधनों का उपयोग इस तरह से किया जाए कि सभी प्रकार की संपदा ( पर्यावरणीय संपदा समेत ) के कुल भंडार कभी भी खाली नहीं होने पाएं। विकास के अनेक रूप, पर्यावरण के उन्हीं संसाधनों का ह्रास कर देते हैं, जिन पर वे आश्रित होते हैं। इससे वर्तमान आर्थिक विकास धीमा हो जाता है तथा भविष्य की संभावनाएं काफ़ी हद तक घट जाती हैं।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

अतः सतत् पोषणीय विकास में पारितंत्र के स्थायित्व को सदैव ध्यान में रखना पड़ता है । इसी बात को ध्यान में रखकर प्रकृति के संरक्षण के अंतर्राष्ट्रीय संघ ने सतत् पोषणीय विकास को इस प्रकार परिभाषित किया है पालन-पोषण करने वाले पारितंत्र की निर्वाह क्षमता के अनुसार जी यापन करते हुए मानव जीवन की गुणवत्ता में सुधार ही सतत् पोषणीय विकास है। इस प्रकार प्रश्न केवल जीवन की सतत् पोषणीयता का ही नहीं है, अपितु जीवन की अच्छी गुणवत्ता भी ज़रूरी है।

मानव और पर्यावरण अंतः क्रिया की प्रक्रियाएँ इस बात पर निर्भर करती हैं कि समाज में किस प्रकार की प्रौद्योगिकी विकसित की है और किस प्रकार की संस्थाओं का पोषण किया है। प्रौद्योगिकी और संस्थाओं ने मानव – पर्यावरण अंतःक्रिया को गति प्रदान की है तो इससे पैदा हुए संवेग ने प्रौद्योगिकी का स्तर ऊँचा उठाया है और अनेक संस्थाओं का निर्माण और रूपांतरण किया है। अतः विकास एक बहु-आयामी संकल्पना है और अर्थव्यवस्था समाज तथा पर्यावरण में सकारात्मक व अनुत्क्रमीय परिवर्तन का द्योतक है। विकास की संकल्पना गतिक है और इस संकल्पना का प्रादुर्भाव 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ है। द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत विकास की संकल्पना आर्थिक वृद्धि की पर्याय थी जिसे सकल राष्ट्रीय उत्पाद, प्रति व्यक्ति आय और प्रति व्यक्ति उपभोग में समय के साथ बढ़ोतरी के रूप में मापा जाता है।

परंतु अधिक आर्थिक वृद्धि वाले देशों में भी असमान वितरण के कारण गरीबी का स्तर बहुत तेज़ी से बढ़ा। अतः 1970 के दशक में ‘पुनर्वितरण के साथ वृद्धि’ तथा ‘वृद्धि और समानता’ जैसे वाक्यांश विकास की परिभाषा में शामिल किए गए। पुनर्वितरण और समानता के प्रश्नों से निपटते हुए यह अनुभव हुआ कि विकास की संकल्पना को मात्र आर्थिक प्रक्षेत्र तक की सीमित नहीं रखा जा सकता । इसमें लोगों के कल्याण और रहने के स्तर, जन स्वास्थ्य, शिक्षा, समान अवसर और राजनीतिक तथा नागरिक अधिकारों से संबंधित मुद्दे भी सम्मिलित हैं। 1980 के दशक तक विकास एक बहु-आयामी संकल्पना के रूप में उभरा जिसमें समाज के सभी लोगों के लिए वृहद् स्तर पर सामाजिक एवं भौतिक कल्याण का समावेश है।

1960 के दशक के अंत में पश्चिमी दुनिया में पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर बढ़ती जागरूकता की सामान्य वृद्धि के कारण सतत् पोषणीय धारणा का विकास हुआ। इससे पर्यावरण पर औद्योगिक विकास के अनापेक्षित प्रभावों के विषय में लोगों की चिंता प्रकट होती थी। 1968 में प्रकाशित एहरलिच की पुस्तक ‘द पापुलेशन बम’ और 1972 में मीडोस और अन्य द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘द लिमिट टू ग्रोथ’ के प्रकाशन ने इस विषय पर लोगों और विशेषकर पर्यावरणविदों की चिंता और भी गहरी कर दी। इस घटनाक्रम के परिपेक्ष्य में विकास के एक नए माडल जिसे ‘सतत् पोषणीय विकास’ कहा जाता है, की शुरुआत हुई।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व पर्यावरण और विकास आयोग की स्थापना की जिसके प्रमुख नार्वे की प्रधानमंत्री गरो हरलेम ब्रंटलैंड थी। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट ‘अवर कॉमन फ्यूचर’ (जिसे ब्रंटलैंड रिपोर्ट भी कहते हैं) 1987 में प्रस्तुत की। ने सतत् पोषणीय विकास की सीधी- सरल और वृहद् स्तर पर प्रयुक्त परिभाषा प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट के अनुसार सतत् पोषणीय विकास का अर्थ है – ‘ एक ऐसा विकास जिसमें भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकता पूर्ति को प्रभावित किए बिना वर्तमान पीढ़ी द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करना।’
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प्रश्न 5.
इन्दिरा गांधी कमाण्ड क्षेत्र में क्या-क्या परिवर्तन हुए हैं ? विकास कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर:
कमाण्ड क्षेत्र में विकास (Development in Indira Gandhi Canal Command Area)

इन्दिरा गांधी नहर परियोजना से लाभ (Benefits from Indira Canal)
1. मरुस्थल के विस्तार पर रोक (To check the Advance of Deserts ) – इस क्षेत्र में वर्षा की कमी के कारण मरुस्थल का विस्तार अधिक है । यह मरुस्थल तीव्र गति से पड़ोसी प्रदेशों की ओर बढ़ रहा है। इस जल से वर्षा की कमी को दूर कर चरागाहों तथा वृक्षारोपण से मरुस्थल के विस्तार को रोका जाएगा।

2. पीने का जल (Drinking Water ) – इस क्षेत्र में जल स्तर बहुत नीचा है। विभिन्न योजनाओं द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में पीने का स्वच्छ जल प्रदान होगा। जैसे गन्थेली साहवा जल पूर्ति योजना, सीकर व झुंझुनू कस्बों तक पानी पहुंचाया
जाएगा।

3. यातायात साधनों का विकास (Means of Transport ) – रेतीली भूमि के कारण परिवहन साधन कम हैं। इस योजना से परिवहन विकास सम्भव है। परिवहन के साधनों एवं सार्वजनिक सुविधाओं का विकास करना जिसके अन्तर्गत सड़क निर्माण करना, अधिवासों को विपणन केन्द्रों से जोड़ना, नये विपणन केन्द्रों का विकास तथा पीने के पानी का प्रबन्ध करना आदि सम्मिलित हैं।

4. कृषि विकास (Agricultural Development ) – राजस्थान एक कृत्रिम मरुस्थल है। कई विद्वानों के अनुसार उपजाऊ मिट्टी में कृषि विकास सम्भव है । इस नहर द्वारा जल सिंचाई से गेहूं, कपास, जौ, गन्ना आदि फसलों का उत्पादन बढ़ाया जा सकेगा। एक अनुमान के अनुसार 400 करोड़ रुपये के खाद्यान्न उत्पन्न किए जा सकेंगे जिससे अकालों पर काबू पाया जा सकेगा। कृषि विकास के अन्तर्गत सर्वेक्षण एवं नियोजन, जल मार्गों का पक्का बनाना, भूमि को समतल करना तथा विघटित भूमि को समतल करके उसका पुनः उद्धार करना आदि सम्मिलित थे।

5. औद्योगिक विकास (Industrial Development ) – लगभग 1200 क्यूसेक जल औद्योगिक विकास के लिए प्रदान किया जाएगा जो कृषि पदार्थों पर आधारित उद्योगों में लगेंगे।

6. जल सिंचाई (Irrigation) – इस नहर की पूर्ति पर 1,394,000 हेक्टेयर भूमि में जल सिंचाई सम्भव हो सकेगी। कमाण्ड क्षेत्र विकास कार्यक्रम के क्रियान्वयन से सिंचाई के विस्तार, जल- उपयोग की क्षमता, कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि आदि में सहायता मिली है।

7. वनारोपण (Afforestation) – वनारोपण तथा चरागाह विकास जिसके अन्तर्गत नहरों एवं सड़कों के किनारे वृक्ष लगाना, अधिवासों के निकट खण्डों में वृक्षारोपण, बालुका- टीलों का स्थिरीकरण तथा कृषि योग्य बंजर भूमि पर चरागाहों का विकास करना सम्मिलित है।

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8. फसल – प्रारूप (Cropping Pattern) – पश्चिमी राजस्थान में मिट्टी में आर्द्रता की कमी कृषि विकास में सदैव अवरोध पैदा करती रही है। किसान केवल खरीफ में ही फसल पैदा कर सकता है। बहुत बड़ा कृषि योग्य भू-भाग बंजर अथवा परती भूमि के रूप में रह जाता है। सिंचाई के विस्तार से शुद्ध कृषि भूमि तथा कुल कृषि भूमि में वृद्धि हुई है। इससे पहले सूखा सहन करने वाली फसलों बाजरा, ज्वार, मूंग, मोठ तथा चना आदि बोयी जाती थीं।

वाणिज्यिक फसलों जैसे – कपास, मूंगफली, गेहूं तथा सरसों के क्षेत्रफल में तीव्रता से वृद्धि हुई है। गेहूं, कपास, सरसों की कृषि में वृद्धि हुई है। कृषि उत्पादन एवं प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में भी तीव्रता से वृद्धि हुई है। कपास, मूंगफली, चावल तथा गेहूँ की उत्पादकता उत्तरोत्तर बढ़ रही है। आधुनिक कृषि उपकरणों की आपूर्ति करना जिसमें उत्तम सुधरे बीजों की आपूर्ति, रासायनिक खाद, कीटनाशक दवाओं की आपूर्ति करना तथा किसानों को प्रशिक्षण एवं विस्तार सेवाओं को उपलब्ध कराना आदि सम्मिलित हैं।

9. सम्पूर्ण विकास (Total Development ) – इस परियोजना को सम्पूर्ण विकास द्वारा इस रेगिस्तान को पुन: हरा-भरा बनाने का उद्देश्य है। इससे विभिन्न क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व में वृद्धि होगी । भूमि को समतल करके भूमि सुधार किया जाएगा। रोज़गार की सुविधा बढ़ेगी। इस निर्धन प्रदेश में सीमा सुरक्षा के उचित प्रबन्ध हो सकेंगे। इससे विभिन्न करों, उत्पादन व राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी। कई क्षेत्रों में जल से घास तथा चरागाहों का विकास करके पशु धन को बढ़ाया जा सकेगा। इस प्रकार यह परियोजना इस क्षेत्र में आर्थिक तथा सामाजिक क्रान्ति लाने का प्रयास है।

10. चरागाहों का विकास ( Development of Pastures ) – 3.66 लाख भूमि पर सिंचित चरागाहों को विकसित करके पशुचारण को लाभ देना है।

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