Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य Important Questions and Answers.
JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य
बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)
1. सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों के कृषि इतिहास की जानकारी देने वाला प्रमुख ऐतिहासिक ग्रन्थ था –
(अ) अकबरनामा
(स) बादशाहनामा
(ब) आइन-ए-अकबरी
(द) बाबरनामा
उत्तर:
(ब) आइन-ए-अकबरी
2. बाबरनामा’ का रचयिता था –
(अ) हुमायूँ
(स) बाबर
(ब) अकबर
(द) जहाँगीर
उत्तर:
(स) बाबर
3. पंजाब में शाह नहर की मरम्मत किसके शासनकाल में करवाई गई –
(अ) बाबर
(ब) हुमायूँ
(स) अकबर
(द) शाहजहाँ
उत्तर:
(द) शाहजहाँ
4. तम्बाकू का प्रसार सर्वप्रथम भारत के किस भाग में हुआ?
(अ) उत्तर भारत
(ब) दक्षिण भारत
(स) पूर्वी भारत
(द) पूर्वोत्तर भारत
उत्तर:
(ब) दक्षिण भारत
5. किस मुगल सम्राट ने तम्बाकू के धूम्रपान पर प्रतिबन्ध लगा दिया था?
(अ) अकबर
(स) जहाँगीर
(ब) बाबर
(द) शाहजहाँ
उत्तर:
(स) जहाँगीर
6. कौनसी फसल नकदी फसल ( जिन्स-ए-कामिल) कहलाती थी –
(अ) कपास
(ब) गेहूँ
(स) जौ
(द) चना
उत्तर:
(अ) कपास
7. अफ्रीका और स्पेन से किसकी फसल भारत पहुँची ?
(अ) गेहूँ
(ब) बाजरा
(स) मक्का
(द) चना
उत्तर:
(स) मक्का
8. सत्रहवीं शताब्दी में लिखी गई एक पुस्तक मारवाड़ में में किसकी चर्चा किसानों के रूप में की गई है?
(अ) वैश्यों
(ब) राजपूतों
(स) ब्राह्मणों
(द) योद्धाओं
उत्तर:
(ब) राजपूतों
9. गांव की पंचायत का मुखिया कहलाता था –
(अ) फौजदार
(ब) ग्राम-प्रधान
(स) चौकीदार
(द) मुकद्दम (मंडल)
उत्तर:
(द) मुकद्दम (मंडल)
10. खुदकाश्त तथा पाहिकारत कौन थे?
(अ) किसान
(ब) सैनिक
(स) जमींदार
(द) अधिकारी
उत्तर:
(अ) किसान
11. मिरासदार कौन थे?
(अ) महाराष्ट्र प्रांत के धनी अथवा सम्पन्न कृषक
(ब) राजस्थान के धनी व्यापारी तथा कृषक
(स) राजस्थान में अधिकारियों का एक समूह
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) महाराष्ट्र प्रांत के धनी अथवा सम्पन्न कृषक
12. वह भूमि जिसे कभी खाली नहीं छोड़ा जाता था, कहलाती थी –
(अ) परौती
(ब) चचर
(स) उत्तम
(द) पोलज
उत्तर:
(द) पोलज
13. मनसबदार कौन थे?
(अ) मुगल अधिकारी
(ब) मुगल जमींदार
(स) मुगल दरबारी
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) मुगल अधिकारी
14. इटली का यात्री जोवनी कारेरी कब भारत आया ?
(अ) 1560 ई.
(ब) 1690 ई.
(स) 1590 ई.
(द) 1670 ई.
उत्तर:
(ब) 1690 ई.
15. आइन-ए-अकबरी में कुल कितने भाग हैं?
(अ) दो
(ब) तीन
(स) चार
(द) पाँच
उत्तर:
(द) पाँच
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. 1526 ई. में ……………. को पानीपत के युद्ध में हराकर बाबर पहला मुगल बादशाह बना।
2. मुगल काल के भारतीय फारसी स्रोत किसान के लिए रैयत या …………… शब्द का उपयोग करते थे।
3. सामूहिक ग्रामीण समुदाय के तीन घटक …………… और …………….. थे।
4. पंचायत का सरदार एक मुखिया होता था जिसे ………………. या मण्डल कहते थे।
5. मुद्रा की फेरबदल करने वालों को …………….. कहा जाता था।
6. जोवान्नी कारेरी ………………. का मुसाफिर था जो लगभग ……………. ई. में भारत से होकर गुजरा था।
उत्तर:
1. इब्राहिम लोदी
2. मुजरियान
3. खेतिहर किसान, पंचायत, गाँव का मुखिया
4. मुकद्दम
5. सर्राफ
6. इटली, 1690
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
जिन्स-ए-कामिल’ फसल के बारे में बताइये।
उत्तर:
‘जिन्स-ए-कामिल’ सर्वोत्तम फसलें थीं जैसे कपास और गन्ने की फसलें।
प्रश्न 2.
आइन-ए-अकबरी किसके द्वारा लिखी गई ?
उत्तर:
अबुल फ़सल।
प्रश्न 3.
सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में राज्य द्वारा जंगलों में घुसपैठ के क्या कारण थे ?
उत्तर:
(1) सेना के लिए सभी प्राप्त करना
(2) शिकार अभियान द्वारा न्याय करना।
प्रश्न 4.
सत्रहवीं शताब्दी के स्रोत भारत में कितने प्रकार के किसानों का उल्लेख करते हैं?
उत्तर:
दो प्रकार के किसानों की –
(1) खुद काश्त
(2) पाहि काश्त
प्रश्न 5.
अबुल फ़सल द्वारा रचित पुस्तक का नाम लिखिए।
उत्तर:
‘आइन-ए-अकबरी’।
प्रश्न 6.
मुगलकाल में गाँव की पंचायत के मुखिया को किस नाम से जाना जाता था?
उत्तर:
मुकद्दम या मंडल।
प्रश्न 7.
मुगलकाल के भारतीय फारसी स्रोत किसान के लिए किन शब्दों का प्रयोग करते थे?
उत्तर:
(1) रैयत
(2) मुजरियान
(3) किसान
(4) आसामी
प्रश्न 8.
खुद काश्त किसान कौन थे?
उत्तर:
खुद काश्त किसान उन्हीं गाँवों में रहते थे, जिनमें उनकी जमीनें थीं।
प्रश्न 9.
लगभग सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दियों में कृषि के निरन्तर विस्तार होने के तीन कारक लिखिए।
उत्तर:
- जमीन की प्रचुरता
- मजदूरों की उपलब्धता
- किसानों की गतिशीलता.
प्रश्न 10.
इस काल में सबसे अधिक उगाई जाने वाली तीन प्रमुख फसलों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) चावल
(2) गेहूँ
(3) ज्यार
प्रश्न 11.
चावल, गेहूँ तथा ज्वार की फसलें सबसे अधिक उगाई जाने का क्या कारण था?
उत्तर:
इस काल में खेती का प्राथमिक उद्देश्य लोगों का पेट भरना था।
प्रश्न 12.
मौसम के किन दो मुख्य चक्रों के दौरान खेती की जाती थी?
उत्तर;
(1) खरीफ (पतझड़ में) तथा
(2) रबी (बसन्त में)।
प्रश्न 13.
16वीं – 17वीं शताब्दी के दौरान भारत में कितने प्रतिशत लोग गाँवों में रहते थे?
उत्तर:
85 प्रतिशत।
प्रश्न 14.
भारत में कपास का उत्पादन कहाँ होता था?
उत्तर:
मध्य भारत तथा दक्कनी पठार में।
प्रश्न 15.
दो नकदी फसलों के नाम बताइये।
उत्तर:
(1) तिलहन (जैसे-सरसों) तथा
(2) दलहन
प्रश्न 16.
सत्रहवीं शताब्दी में दुनिया के विभिन्न भागों से भारत में पहुंचने वाली चार फसलों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- मक्का
- टमाटर
- आलू
- मिर्च
प्रश्न 17.
सामूहिक ग्रामीण समुदाय के तीन घटकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) खेतिहर किसान
(2) पंचायत
(3) गाँव का मुखिया (मुकद्दम या मंडल)।
प्रश्न 18.
1600 से 1700 के बीच भारत की जनसंख्या में कितनी वृद्धि हुई?
उत्तर:
लगभग 5 करोड़ की।
प्रश्न 19.
ग्राम की पंचायत में कौन लोग होते थे?
उत्तर:
ग्राम के बुजुर्ग।
प्रश्न 20.
ग्राम की पंचायत का मुखिया कौन होता
उत्तर:
मुकद्दम या मंडल।
प्रश्न 21.
पंचायत के मुखिया का प्रमुख कार्य क्या
उत्तर:
गांव की आमदनी एवं खर्चे का हिसाब-किताब अपनी निगरानी में बनवाना
प्रश्न 22.
इस कार्य में मुकद्दम की कौन राजकीय कर्मचारी सहायता करता था ?
उत्तर:
पटवारी
प्रश्न 23.
पंचायतों के दो अधिकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) जुर्माना लगाना
(2) दोषी व्यक्ति को समुदाय से निष्कासित करना।
प्रश्न 24.
पंचायत के निर्णय के विरुद्ध किसान विरोध का कौनसा अधिक उम्र रास्ता अपनाते थे? उत्तर- गाँव छोड़कर भाग जाना।
प्रश्न 25
उन दो प्रान्तों के नाम लिखिए जहाँ महिलाओं को जमींदारी उत्तराधिकार में मिलती थी जिसे बेचने व गिरवी रखने के लिए वे स्वतंत्र थीं।
उत्तर:
(1) पंजाब
(2) बंगाल
प्रश्न 26.
जंगल के तीन उत्पादों का उल्लेख कीजिए, जिनकी बहुत माँग थी।
उत्तर:
(1) शहद
(2) मधुमोम
(3) लाख
प्रश्न 27.
‘मिल्कियत’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जमींदारों की विस्तृत व्यक्तिगत जमीन ‘मिल्कियत’ कहलाती थी।
प्रश्न 28.
जमींदारों की समृद्धि का क्या कारण था?
उत्तर:
जमींदारों की समृद्धि का कारण था उनकी विस्तृत व्यक्तिगत जमीन।
प्रश्न 29.
जमींदारों की शक्ति के दो स्रोत बताइये।
उत्तर:
(1) जमींदारों द्वारा राज्य की ओर से कर वसूल करना
(2) सैनिक संसाधन।
प्रश्न 30.
भू-राजस्व के प्रबन्ध के दो चरण कौन- कौन से थे?
उत्तर:
(1) कर निर्धारण
(2) वास्तविक वसूली।
प्रश्न 31.
अमील गुजार कौन था?
उत्तर:
अमील गुजार राजस्व वसूली करने वाला अधिकारी था।
प्रश्न 32.
अकबर ने भूमि का किन चार भागों में वर्गीकरण किया?
उत्तर:
- पोलज
- परौती
- चचर
- अंजर
प्रश्न 33.
मध्यकालीन भारत में कौन-कौनसी फसलें सबसे अधिक उगाई जाती थीं?
उत्तर:
गेहूं, चावल, ज्वार इत्यादि।
प्रश्न 34.
भारत के किस भाग में सबसे पहले तम्बाकू की खेती की जाती थी?
उत्तर:
दक्षिण भारत में।
प्रश्न 35.
मुगलकाल में खेतिहर समाज की बुनियादी इकाई क्या थी?
उत्तर:
गाँव
प्रश्न 36.
मुगल राज्य किसने को ‘जिन्स-ए-कामिल’ फसलों की खेती करने के लिए प्रोत्साहन क्यों देते थे?
उत्तर:
क्योंकि इन फसलों से राज्य को अधिक कर मिलता था।
प्रश्न 37.
चीनी के उत्पादन के लिए कौनसा प्रान्त प्रसिद्ध था?
उत्तर:
बंगाल।
प्रश्न 38.
19वीं शताब्दी के कुछ अंग्रेज अधिकारियों ने गाँवों को किसकी संज्ञा दी थी?
उत्तर:
‘छोटे गणराज्य’।
प्रश्न 39.
आइन-ए-दहसाला किसने जारी किया?
उत्तर:
अकबरअकबर ने
प्रश्न 40.
मुगल साम्राज्य की वित्तीय व्यवस्था की देख-रेख करने वाला कौनसा दफ्तर था?
उत्तर;
दीवान का दफ्तर।
प्रश्न 41.
अकबर के समय में वह जमीन क्या कहलाती थी, जिसे कभी खाली नहीं छोड़ा जाता था?
उत्तर:
पोलज
प्रश्न 42.
अकबर के शासन काल में वह जमीन क्या कहलाती थी, जिस पर कुछ दिनों के लिए खेती रोक दी जाती थी?
उत्तर:
परौती।
प्रश्न 43.
आइन-ए-अकबरी’ के अनुसार भू-राजस्व वसूल करने के लिए कौनसी प्रणालियाँ अपनाई जाती थीं?
उत्तर:
(1) कणाकृत
(2) बटाई
(3) खेत बटाई।
प्रश्न 44.
आइन-ए-अकबरी’ को कब पूरा किया गया?
उत्तर:
1598 ई. में
प्रश्न 45.
अकबरनामा’ की कितनी जिल्दों में रचना
की गई?
उत्तर:
तीन जिल्दों में।
प्रश्न 46.
‘अकबरनामा’ का रचयिता कौन था?
उत्तर:
अबुल फजल।
प्रश्न 47
रैयत कौन थे?
उत्तर:
मुगल काल के भारतीय फारसी खोत किसान के लिए आमतौर पर रैयत या मुजरियान शब्द का इस्तेमाल करते थे। था।
प्रश्न 48.
‘परगना’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
परगना मुगल प्रान्तों में एक प्रशासनिक प्रमंडल
प्रश्न 49.
ग्राम पंचायत (मुगलकाल) के मुखिया के दो कार्यों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
(1) गाँव के आय-व्यय का हिसाब-किताब तैयार करवाना
(2) जाति की अवहेलना को रोकने के लिए लोगों के आवरण पर नजर रखना।
प्रश्न 50.
पाहि काश्त किसान कौन थे?
उत्तर:
पाहि कारण किसान के खेतिहर थे, जो दूसरे गाँव से ठेके पर खेती करने आते थे।
प्रश्न 51.
बाबरनामा’ के अनुसार खेतों की सिंचाई साधन कौनसे थे?
गई ?
उत्तर:
(1) रहट के द्वारा
(2) बाल्टियों से।
प्रश्न 52.
भारत में नई दुनिया से कौनसी फसलें लाई
उत्तर:
टमाटर, आलू, मिर्च, अनानास, पपीता
प्रश्न 53.
पंचायत का प्रमुख कार्य क्या था?
उत्तर:
गाँव में रहने वाले अलग-अलग समुदायों के लोगों को अपनी जाति की सीमाओं के अन्दर रखना।
प्रश्न 54.
राजस्थान की जाति पंचायतों के दो अधिकारों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
- दीवानी के झगड़ों का निपटारा करना
- जमीन से जुड़े दावेदारियों के झगड़े सुलझाना।
प्रश्न 55.
पंचायत के मुखिया का चुनाव किस प्रकार किया जाता था?
उत्तर:
(1) गाँव के बुजुर्गों की आम सहमति से और
(2) उसे इसकी स्वीकृति जमींदार से लेनी होती थी।
प्रश्न 56.
खेतिहर किन ग्रामीण दस्तकारियों में संलग्न रहते थे?
उत्तर:
रंगरेजी, कपड़े पर छपाई, मिट्टी के बर्तनों को पकाना, खेती के औजार बनाना।
प्रश्न 57.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी के प्रारम्भ में कृषि इतिहास को जानने के दो स्त्रोतों का उल्लेख करो।
उत्तर:
(1) आइन-ए-अकबरी
(2) ईस्ट इण्डिया कम्पनी के बहुत सारे दस्तावेज
प्रश्न 58.
गाँव के प्रमुख दस्तकारों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
कुम्हार, लुहार, बढ़ई, नाई, सुनार
प्रश्न 59.
कौनसी दस्तकारियों के काम उत्पादन के लिए महिलाओं के श्रम पर निर्भर थे?
उत्तर:
सूत कातना, बर्तन बनाने के लिए मिट्टी साफ करना और गूंधना, कपड़ों पर कढ़ाई करना।
प्रश्न 60.
‘पेशकश का क्या अर्थ है?
उत्तर:
पेशकरा’ मुगल राज्य के द्वारा ली जाने वाली एक प्रकार की भेंट थी। था?
प्रश्न 61.
मुगल राज्य के लिए जंगल कैसा भू-भाग
उत्तर;
मुगल राज्य के अनुसार जंगल बदमाशों, विद्रोहियों आदि को शरण देने वाला अड्डा था।
प्रश्न 62.
जमींदार कौन थे?
उत्तर;
जमींदार अपनी जमीन के स्वामी होते थे उन्हें ग्रामीण समाज में उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त थी।
प्रश्न 63.
जमींदारों की उच्च स्थिति के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) उनकी जाति
(2) जमींदारों के द्वारा राज्य को दी जाने वाली कुछ विशिष्ट सेवाएँ।
प्रश्न 64.
‘जमा’ और ‘हासिल’ में भेद कीजिये।
उत्तर:
‘जमा निर्धारित रकम थी, जबकि ‘हासिल’ वास्तव में वसूल की गई रकम थी।
प्रश्न 65.
जमींदारी पुख्ता करने के दो तरीकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) नयी जमीनों को बसाकर
(2) अधिकारों के हस्तान्तरण के द्वारा।
प्रश्न 66.
अमीन कौन था?
उत्तर:
अमीन एक मुगल अधिकारी था, जिसका काम यह सुनिश्चित करना था कि राजकीय कानूनों का पालन हो रहा है।
प्रश्न 67.
मनसबदारी व्यवस्था क्या थी?
उत्तर:
मनसबदारी मुगल प्रशासनिक व्यवस्था के शीर्ष पर एक सैनिक नौकरशाही तत्व था, जिसे मनसबदारी व्यवस्था कहते हैं।
प्रश्न 68.
अकबर के समय का प्रसिद्ध इतिहासकार कौन था? उसके द्वारा रचित दो ग्रन्थों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) अकबर के समय का प्रसिद्ध इतिहासकार अबुल फजल था।
(2) अबुल फजल ने ‘अकबरनामा’ तथा आइन-ए-अकबरी’ की रचना की।
प्रश्न 69.
चंडीमंगल नामक बंगाली कविता के रचयिता कौन हैं ?
उत्तर:
सोलहवीं सदी में मुकुंदराम चक्रवर्ती ने चंडीमंगल नामक कविता लिखी थी।
प्रश्न 70.
पेशकश क्या होती थी?
उत्तर:
पेशकश मुगल राज्य के द्वारा की जाने वाली एक तरह की भेंट थी।
प्रश्न 71.
गाँवों में कौनसी पंचायतें होती थीं?
उत्तर:
(1) ग्राम पंचायत
(2) जाति पंचायत ।
प्रश्न 72.
किस प्रांत में चावल की 50 किस्में पैदा की
जाती थीं?
उत्तर:
बंगाल में।
प्रश्न 73
गाँवों में पाई जाने वाली दो सामाजिक असमानताओं का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) सम्पति की व्यक्तिगत मिल्कियत होती थी।
(2) जाति और सामाजिक लिंग के नाम पर समाज में गहरी विषमताएँ थीं।
प्रश्न 74.
शाह नहर कहाँ है?
उत्तर:
पंजाब में।
प्रश्न 75.
अकबर द्वारा अमील गुजार को क्या आदेश दिए गए थे?
उत्तर:
इस बात की व्यवस्था करना कि खेतिहर नकद भुगतान करे और वहीं फसलों में भुगतान का विकल्प भी खुला रहे।
प्रश्न 76
जमींदारी को पुख्ता करने के क्या तरीके थे?
उत्तर:
(1) नई जमीनों को बतकर
(2) अधिकारों के हस्तान्तरण के द्वारा
(3) राज्य के आदेश से
(4) जमीनों को खरीद कर
प्रश्न 77.
वाणिज्यिक खेती का प्रभाव जंगलवासियाँ के जीवन पर कैसे पढ़ता था?
उत्तर:
(1) शहद, मधु, मोम, लाक की अत्यधिक माँग होना
(2) हाथियों को पकड़ना और बेचना
(3) व्यापार के अन्तर्गत वस्तुओं की अदला-बदली।
प्रश्न 78.
जंगली (जंगलवासी) कौन थे?
उत्तर:
जिन लोगों का गुजारा जंगल के उत्पादों, शिकार और स्थानान्तरित खेती से होता था, वे जंगली (जंगलवासी) कहलाते थे।
लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
खेतिहर समाज के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
खेतिहर समाज की मूल इकाई गाँव थी जिसमें किसान रहते थे। किसान वर्ष भर भिन्न-भिन्न मौसमें में फसल की पैदावार से जुड़े समस्त कार्य करते थे। इन कार्यों में जमीन की जुताई, बीज बोना और फसल पकने पर उसे काटना आदि सम्मिलित थे। इसके अतिरिक्त वे उन वस्तुओं के उत्पादन में भी शामिल थे जो कृषि आधारित थीं, जैसे कि शक्कर, तेल इत्यादि ।
प्रश्न 2.
सत्रहवीं शताब्दी के खोत किन दो प्रकार के किसानों का उल्लेख करते हैं?
उत्तर- सत्रहवीं शताब्दी के स्रोत निम्नलिखित दो प्रकार के किसानों का उल्लेख करते हैं- (1) खुद काश्त तथा (2) पाहि कार खुद काश्त किसान उन्हीं गाँवों में रहते थे जिनमें उनकी जमीन थी। पाहि काश्त वे किसान थे जो दूसरे गाँवों से ठेके पर खेती करने आते थे। कुछ लोग अपनी इच्छा से भी पाहि-कारत बनते थे, जैसे दूसरे गाँव में करों की शर्तें उत्तम मिलने पर कुछ लोग अकाल या भुखमरी के बाद आर्थिक परेशानी से बाध्य होकर भी पाहि कार किसान बनते थे।
प्रश्न 3.
मुगल काल में कृषि की समृद्धि से भारत में आबादी में किस प्रकार बढ़ोतरी हुई?
उत्तर:
कृषि उत्पादन में अपनाए गए विविध और लचीले तरीकों के परिणामस्वरूप भारत में आवादी धीरे-धीरे बढ़ने लगी। आर्थिक इतिहासकारों की गणना के अनुसार समय- समय पर होने वाली भुखमरी और महामारी के बावजूद 1600 से 1700 के बीच भारत की आबादी लगभग 5 करोड़ बढ़ गई। 200 वर्षों में यह लगभग 33 प्रतिशत बढ़ोतरी थी।
प्रश्न 4.
सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दी का ग्रामीण समाज किन-किन रिश्तों के आधार पर निर्मित था ?
उत्तर:
सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दी का ग्रामीण समाज छोटे किसानों एवं धनिक जमींदारों दोनों से निर्मित था। ये दोनों ही कृषि उत्पादन से जुड़े थे और फसल में हिस्सों के दावेदार थे। इससे उनके मध्य सहयोग, प्रतियोगिता एवं संघर्ष के रिश्ते निर्मित हुए कृषि से जुड़े इन समस्त रिश्तों से ग्रामीण समाज बनता था।
प्रश्न 5.
मुगल साम्राज्य के अधिकारी ग्रामीण समाज को नियन्त्रण में रखने का प्रयास क्यों करते थे?
उत्तर:
मुगल साम्राज्य अपनी आय का एक बड़ा भाग कृषि उत्पादन से प्राप्त करता था इसलिए राजस्व निर्धारित करने वाले, राजस्व की वसूली करने वाले एवं राजस्व का विवरण रखने वाले अधिकारी ग्रामीण समाज को नियन्त्रण में रखने का पूरा प्रयास करते थे। वे चाहते थे कि खेती की नियमित जुताई हो एवं राज्य को उपज से अपने हिस्से का कर समय पर मिल जाए।
प्रश्न 6.
ग्रामीण भारत के खेतिहर समाज पर संक्षेप में तीन पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर;
खेतिहर समाज की मूल इकाई गाँव थी; जिमसें किसान रहते थे। किसान वर्ष भर भिन्न-भिन्न मौसमों में फसल की पैदावार से जुड़े समस्त कार्य करते थे। इन कार्यों में जमीन की जुताई, बीज बोना एवं फसल पकने पर उसकी कटाई करना आदि कार्य सम्मिलित थे। इसके अतिरिक्त वे उन वस्तुओं के उत्पादन में भी सम्मिलित थे जो कृषि आधारित थीं जैसे कि शक्कर, तेल आदि ।
प्रश्न 7.
” सत्रहवीं सदी में दुनिया के अलग-अलग भागों से कई नई फसलें भारतीय उपमहाद्वीप पहुंचीं।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सत्रहवीं सदी में दुनिया के विभिन्न भागों से कई नई फसलें भारतीय उपमहाद्वीप पहुंचीं। उदाहरणार्थ, मक्का भारत में अफ्रीका और स्पेन से पहुँचा और सत्रहवीं सदी तक इसकी गिनती पश्चिम भारत की मुख्य फसलों में होने लगी। टमाटर, आलू और मिर्च जैसी सब्जियाँ नई दुनिया से लाई गई। इसी प्रकार अनानास तथा पपीता जैसे फल भी नई दुनिया से आए।
प्रश्न 8.
मुगल काल में गाँव की पंचायत का गठन किस प्रकार होता था?
उत्तर:
गाँव की पंचायत बुजुर्गों की सभा होती थी। प्रायः वे गाँव के महत्त्वपूर्ण लोग हुआ करते थे जिनके पास अपनी सम्पत्ति के पैतृक अधिकार होते थे। जिन गाँवों में कई जातियों के लोग रहते थे, वहाँ प्रायः पंचायत में भी विविधता पाई जाती थी यह एक ऐसा अल्पतंत्र था, जिसमें गाँव के अलग-अलग सम्प्रदायों एवं जातियों का प्रतिनिधित्व होता था। पंचायत का निर्णय गाँव में सबको मानना पड़ता था।
प्रश्न 9.
गाँव की पंचायत का जाति सम्बन्धी प्रमुख काम क्या था?
उत्तर:
गांव की पंचायत का जाति सम्बन्धी प्रमुख काम यह सुनिश्चित करना था कि गाँव में रहने वाले अलग-अलग सम्प्रदायों के लोग अपनी जाति की सीमाओं के अन्दर रहें। पूर्वी भारत में सभी विवाह मंडल की उपस्थिति में होते थे। दूसरे शब्दों में ” जाति की अवहेलना के लिए” लोगों के आचरण पर नजर रखनां गाँव की पंचायत के मुखिया की एक महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी थी।
प्रश्न 10.
गाँव की पंचायतों को कौनसे न्याय सम्बन्धी अधिकार प्राप्त थे?
उत्तर:
गाँव की पंचायतों को दोषियों पर जुर्माना लगाने और समुदाय से निष्कासित करने जैसे दंड देने के अधिकार प्राप्त थे। समुदाय से निष्कासित करना एक कड़ा कदम था, जो एक सीमित समय के लिए लागू किया जाता था। इसके अन्तर्गत दण्डित व्यक्ति को (निर्धारित समय के लिए) गाँव छोड़ना पड़ता था। इस अवधि में वह अपनी जाति तथा व्यवसाय से हाथ धो बैठता था। इन नीतियों का उद्देश्य जातिगत परम्पराओं की अवहेलना को रोकना था।
प्रश्न 11.
सत्रहवीं सदी में गाँवों में मुद्रा के प्रचलन के बारे में फ्रांसीसी यात्री ज्याँ बैप्टिस्ट तैवर्नियर ने क्या लिखा है?
उत्तर:
सत्रहवीं सदी में भारत की यात्रा करने वाले फ्रांसीसी यात्री ज्याँ बैप्टिस्ट तैवर्नियर ने गाँवों में मुद्रा के प्रचलन के बारे में लिखा है कि, “भारत में वे गाँव बहुत ही छोटे कहे जायेंगे, जिनमें मुद्रा की फेरबदल करने वाले हाँ ये लोग सराफ कहलाते थे। एक बैंकर की भाँति सराफ हवाला भुगतान करते थे और अपनी इच्छा के अनुसार पैसे के मुकाबले रुपयों की कीमत तथा कौड़ियों के मुकाबले पैसों की कीमत बढ़ा देते थे।”
प्रश्न 12.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में भारत द में जंगलों के प्रसार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में भारत में जमीन के विशाल भाग जंगल या शादियों से घिरे हुए थे। के ऐसे प्रदेश झारखंड सहित सम्पूर्ण पूर्वी भारत, मध्य भारत, उत्तरी क्षेत्र (जिसमें भारत-नेपाल की सीमावर्ती क्षेत्र की ि तराई शामिल है), दक्षिण भारत का पश्चिमी घाट और प दक्कन के पठारों में फैले हुए थे। समसामयिक स्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह भारत में जंगलों के फैलाव का औसत लगभग 40 प्रतिशत था।
प्रश्न 13.
जंगलवासियों पर कौनसे नए सांस्कृतिक प्रभाव पड़े?
उत्तर:
जंगलवासियों पर नए सांस्कृतिक प्रभाव पड़े। कुछ इतिहासकारों की यह मान्यता है कि नए बसे इलाकों के खेतिहर समुदायों ने जिस प्रकार से धीरे-धीरे इस्लाम को अपनाया, उसमें सूफी सन्तों (पीर) ने एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस प्रकार जंगली प्रदेशों में नए सांस्कृतिक प्रभावों के विस्तार से शुरूआत हुई। प्रश्न 14. जमींदार कौन थे?
उत्तर- जमींदारों की आय तो खेती से आती थी, परन्तु ये कृषि उत्पादन में सीधे भागीदारी नहीं करते थे। वे अपनी जमीन के मालिक होते थे। उन्हें ग्रामीण समाज में ऊँची स्थिति के कारण कुछ विशेष सामाजिक और आर्थिक सुविधाएँ प्राप्त थीं। जमींदारों की ऊँची स्थिति के दो कारण थे-
(1) उनकी जाति तथा
(2) उनके द्वारा राज्य को कुछ विशेष प्रकार की सेवाएं देना।
प्रश्न 15.
जमींदारों की समृद्धि का क्या कारण था?
उत्तर:
जमींदारों की विस्तृत व्यक्तिगत जमीन उनकी समृद्धि का कारण था उनकी व्यक्तिगत जमीन मिल्कियत कहलाती थी अर्थात् सम्पत्ति मिल्कियत जमीन पर जमींदार के निजी प्रयोग के लिए खेती होती थी। प्रायः इन जमीनों पर दिहाड़ी मजदूर या पराधीन मजदूर कार्य करते थे जमींदार अपनी इच्छानुसार इन जमीनों को बेच सकते थे, किसी और के नाम कर सकते थे या उन्हें गिरवी रख सकते थे।
प्रश्न 16.
जमींदारी को पुख्ता करने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जमींदारी को पुख्ता करने की प्रक्रिया धीमी थी। इसके निम्नलिखित तरीके थे—
- नयी जमीनों को बसा कर
- अधिकारों के हस्तान्तरण के द्वारा
- राज्य के आदेश से
- या फिर खरीदकर इन प्रक्रियाओं के द्वारा अपेक्षाकृत ‘निचली जातियों के लोग भी जमींदारों के दर्जे में शामिल हो सकते थे, क्योंकि इस काल में जमींदारी धड़ल्ले से खरीदी और बेची जाती थी।
प्रश्न 17.
1665 में औरंगजेब ने जमा निर्धारित करने के लिए अपने राजस्व अधिकारियों को क्या आदेश दिया?
उत्तर:
1665 में औरंगजेब ने जमा निर्धारित करने के लिए अपने राजस्व अधिकारियों को वह आदेश दिया कि वे परगनाओं के अमीनों को निर्देश दें कि वे प्रत्येक गाँव, प्रत्येक किसान (आसामीवार) के बारे में खेती की वर्तमान स्थितियों का पता करें बारीकी से उनकी जाँच करने के बाद सरकार के वित्तीय हितों व किसानों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए जमा निर्धारित करें।
प्रश्न 18.
मुगल काल में कृषि की समृद्धि और भारत की आबादी की बढ़ोत्तरी में क्या सम्बन्ध था?
उत्तर:
मुगलकाल में शासकों की दूरदर्शिता द्वारा किसानों के हितों एवं कृषि उत्पादन के लिए विविध तकनीकों के प्रयोग के कारण कृषि आधारित समृद्धि में व्यापक वृद्धि हुई। इसके परिणामस्वरूप आबादी धीरे-धीरे बढ़ने लगी। आर्थिक इतिहासकारों की गणना के अनुसार 1600 से 1700 के बीच समय-समय पर होने वाली भुखमरी और महावारी के उपरान्त भी भारत की आबादी लगभग 5 करोड़ बढ़ गई। 200 वर्षों में आबादी की यह बढ़ोत्तरी करीब 33 प्रतिशत थी।
प्रश्न 19
सत्रहवीं शताब्दी में दुनिया के अलग- अलग हिस्सों से कई नई फसलें भारतीय उपमहाद्वीप पहुँची।” कथन को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
अथवा
नई फसलों जैसे मक्का, ज्वार, आलू आदि का भारत में प्रवेश कैसे हुआ?
उत्तर:
सत्रहवीं शताब्दी में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से व्यापारिक आवागमन में वृद्धि के कारण कई नई फसलें भारतीय उपमहाद्वीप पहुँचीं। उदाहरण के रूप में मक्का भारत में अफ्रीका व स्पेन से पहुँची और सत्रहवीं शताब्दी तक इसकी गिनती पश्चिम भारत की मुख्य फसलों में होने लगी। टमाटर, आलू व मिर्च जैसी सब्जियाँ नई दुनिया से लाई गई। इसी प्रकार अनन्नास एवं पपीता भी नई दुनिया से आए।
प्रश्न 20.
जजमानी व्यवस्था क्या थी?
उत्तर:
18वीं शताब्दी में बंगाल में जमींदार लोहारों, बढ़ई व सुनारों जैसे ग्रामीण दस्तकारों को उनकी सेवाओं के बदले दैनिक भत्ता तथा खाने के लिए नकदी देते थे। इस व्यवस्था को जजमानी व्यवस्था कहा जाता था। यद्यपि यह प्रथा सोलहवीं व सत्रहवीं शताब्दी में अधिक प्रचलित नहीं थी।
प्रश्न 21.
मुगलकाल में गाँवों और शहरों के मध्य व्यापार से गाँवों में नकदी लेन-देन होना प्रारम्भ हुआ, सोदाहरण कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुगल काल में गाँवों और शहरों के मध्य व्यापार के कारण गाँवों में भी नकदी लेन-देन होने लगा। मुगलों के केन्द्रीय प्रदेशों से भी कर की गणना और वसूली नकद में दी जाती थी जो दस्तकार निर्यात के लिए उत्पादन करते थे, उन्हें उनकी मजदूरी अथवा पूर्ण भुगतान नकद में ही किया जाता था। इसी प्रकार कपास, रेशम या नील जैसी व्यापारिक फसलें उत्पन्न करने वाले किसानों का भुगतान भी नकदी में ही होता है।
प्रश्न 22.
आइन-ए-अकबरी’ में किन मसलों पर विस्तार से चर्चा की गई है?
अथवा
‘आइन-ए-अकबरी’ पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
आइन-ए-अकबरी’ में अनेक मसलों पर विस्तार से चर्चा की गई है; जैसे दरबार, प्रशासन और सेना का गठन, राजस्व के स्रोत और अकबरी साम्राज्य के प्रान्तों का भूगोल, लोगों के साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक रिवाज अकबर की सरकार के समस्त विभागों और प्रान्तों (सूखों) के बारे में जानकारी दी गई है। ‘आइन’ में इन सूबों के बारे में जटिल और आँकड़ेबद्ध सूचनाएँ बड़ी बारीकी से दी गई हैं।
प्रश्न 23.
‘आइन’ कितने भागों (दफ्तरों) में विभक्त है? उनका सक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर- ‘आइन’ पाँच भागों (दफ्तरों में विभक्त है-
(1) मंजिल आबादी, शाही घर-परिवार और उसके रख- रखाव से सम्बन्ध रखती है
(2) सिपह- आबादी- सैनिक व नागरिक प्रशासन और नौकरों की व्यवस्था के बारे में है।
(3) मुल्क आबादी में साम्राज्य व प्रान्तों के वित्तीय पहलुओं तथा राजस्व की दरों के आँकड़े वर्णित हैं तथा बारह प्रान्तों का वर्णन है। चौथे और पाँचवें भाग भारत के लोगों के धार्मिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों से सम्बन्ध रखते हैं।
प्रश्न 24.
अकबर के समय भूमि का वर्गीकरण किस प्रकार किया गया था?
अथवा
चाचर और बंजर भूमि की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
- पोलज पोलज भूमि में एक के बाद एक हर फसल की वार्षिक खेती होती थी जिसे कभी खाली नहीं छोड़ा जाता था।
- परीती परौती जमीन पर कुछ दिनों के लिए खेती रोक दी जाती थी ताकि वह अपनी खोई हुई उर्वरा शक्ति वापस पा सके।
- चचर पचर जमीन तीन या चार वर्षों तक खाली रहती थी।
- बंजर – बंजर जमीन वह थी जिस पर पाँच या उससे अधिक वर्षों से खेती नहीं की जाती थी।
प्रश्न 25.
कणकुत प्रणाली क्या थी?
उत्तर:
अकबर के समय कनकृत प्रणाली राजस्व निर्धारण की एक प्रणाली थी। हिन्दी में ‘कण’ का अर्थ है ‘अनाज’ और कुंत का अर्थ है अनुमान’। इसके अनुसार फसल को अलग-अलग पुलिन्दों में काटा जाता था-
(1) अच्छा
(2) मध्यम
(3) खराब इस प्रकार सन्देह दूर किया जाना चाहिए। प्रायः अनुमान से किया गया जमीन का आकलन भी पर्याप्त रूप से सही परिणाम देता था।
प्रश्न 26.
भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी के ग्रामीण समाज की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी में भारत में लगभग 85 प्रतिशत लोग गाँवों में रहते थे छोटे खेतिहर तथा भूमिहर जमींदार दोनों ही कृषि उत्पादन से जुड़े हुए थे और दोनों ही फसल के हिस्सों के दावेदार थे। इससे उनके बीच सहयोग, प्रतियोगिता तथा संघर्ष के सम्बन्ध बने खेती से जुड़े इन समस्त सम्बन्धों के ताने-बाने से गाँव का समाज बनता था। मुगल-राज्य अपनी आय का बहुत बड़ा भाग कृषि उत्पादन से वसूल करता था राजस्व अधिकारी ग्रामीण समाज पर नियन्त्रण रखते थे
प्रश्न 27.
खेतिहर समाज का परिचय दीजिए। कृषि समाज की भौगोलिक विविधताओं का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
खेतिहर समाज की मूल इकाई गाँव थी, जिसमें किसान रहते थे किसान वर्ष भर फसल की पैदावार से जुड़े समस्त कार्य करते थे। इन कार्यों में जमीन की जुताई, बीज बोना और फसल पकने पर उसे काटना आदि सम्मिलित थे। इसके अतिरिक्त वे उन वस्तुओं के उत्पादन में भी शामिल थे, जो कृषि आधारित थीं जैसे शक्कर, तेल इत्यादि । परन्तु सूखी भूमि के विशाल हिस्सों से लेकर पहाड़ियों वाले क्षेत्र में उस प्रकार की खेती नहीं हो सकती थी जैसी कि अधिक उपजाऊ जमीनों पर।
प्रश्न 28.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी का कृषि- इतिहास लिखने के लिए ‘आइन-ए-अकबरी’ का मुख्य स्रोत के रूप में विवेचन कीजिए।
उत्तर:
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी का कृषि इतिहास लिखने के लिए ‘आइन-ए-अकबरी’ एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। ‘आइन-ए-अकबरी’ की रचना मुगल सम्राट अकबर के दरवारी इतिहासकार अबुल फतल ने की थी खेतों की नियमित जुलाई सुनिश्चित करने के लिए राज्य के प्रतिनिधियों द्वारा करों की वसूली करने के लिए तथा राज्य व जमींदारों के बीच के सम्बन्धों के नियमन के लिए राज्य द्वारा किये गए प्रबन्धों का लेखा-जोखा ‘आइन’ में प्रस्तुत किया गया है।
प्रश्न 29.
आइन-ए-अकबरी’ के लेखन का मुख्य उद्देश्य स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
आइन-ए-अकबरी’ का मुख्य उद्देश्य अकबर के साम्राज्य की एक ऐसी रूप-रेखा प्रस्तुत करना था, जहाँ एक सुदृढ़ सत्ताधारी वर्ग सामाजिक मेल-जोल बनाकर रखता था। अबुल फजल के अनुसार मुगल साम्राज्य के विरुद्ध कोई भी विद्रोह या किसी भी प्रकार की स्वायत्त सत्ता की दावेदारी का असफल होना निश्चित था अतः ‘आइन’ से किसानों के बारे में जो कुछ पता चलता है, वह मुगल शासक वर्ग का ही दृष्टिकोण है।
प्रश्न 30.
सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दी के कृषि- इतिहास की जानकारी के लिए ‘आइन’ के अतिरिक्त अन्य स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) ‘आइन’ के अतिरिक्त सत्रहवीं व अठारहवीं सदियों के गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान से उपलब्ध होने वाले वे दस्तावेज भी हैं जो सरकार की आय की विस्तृत जानकारी देते हैं।
(2) इसके अतिरिक्त ईस्ट इण्डिया कम्पनी के भी बहुत से दस्तावेज हैं जो पूर्वी भारत में कृषि सम्बन्धों की उपयोगी रूपरेखा प्रस्तुत करते हैं। इन सभी स्रोतों में किसानों, जमींदारों तथा राज्य के बीच होने वाले झगड़ों के विवरण मिलते हैं। इनसे किसानों के राज्य के प्रति दृष्टिकोण की जानकारी मिलती है।
प्रश्न 31.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में किसान की समृद्धि का मापदंड क्या था ?
उत्तर:
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में उत्तर भारत के एक औसत किसान के पास शायद ही कभी एक जोड़ी बैल तथा दो हलों से अधिक कुछ होता था। अधिकांश किसानों के पास इससे भी कम था। गुजरात के वे किसान समृद्ध माने जाते थे जिनके पास 6 एकड़ के लगभग जमीन थी दूसरी ओर, बंगाल में एक औसत किसान की जमीन की ऊपरी सीमा 5 एकड़ थी वहाँ 10 एकड़ जमीन वाले किसान को धनी माना जाता था। खेती व्यक्तिगत स्वामित्व के सिद्धान्त पर आधारित थी।
प्रश्न 32.
‘बाबरनामा’ में बाबर ने कृषि-समाज की विशेषताओं का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
‘बाबरनामा’ के अनुसार भारत में बस्तियाँ और गाँव, वस्तुत: शहर के शहर, एक क्षण में ही बीरान भी हो जाते थे और बस भी जाते थे। दूसरी ओर, यदि वे किसी पर बसना चाहते थे तो उन्हें पानी के रास्ते खोदने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी क्योंकि उनकी समस्त फसलें वर्षा के पानी में उगती थीं भारत की अनगिनत आबादी होने के कारण लोग उमड़ते चले आते थे । यहाँ झोंपड़ियाँ बनाई जाती थीं और अकस्मात एक गाँव या शहर तैयार हो जाता था।
प्रश्न 33.
भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में कृषि क्षेत्र में हुए विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जमीन की प्रचुरता, मजदूरों की उपलब्धता तथा किसानों की गतिशीलता के कारण कृषि का निरन्तर विकास हुआ। चूँकि खेती का प्राथमिक उद्देश्य लोगों का पेट भरना था, इसलिए दैनिक भोजन में काम आने वाले खाद्य पदार्थों जैसे चावल, गेहूं, ज्वार इत्यादि फसलें सबसे अधिक उगाई जाती थीं। जिन प्रदेशों में प्रतिवर्ष 40 इंच या उससे अधिक वर्षा होती थी, वहाँ न्यूनाधिक चावल की खेती होती थी कम वर्षा वाले प्रदेशों में गेहूँ तथा ज्वार बाजरे की खेती होती थी।
प्रश्न 34.
भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में सिंचाई के साधनों में हुए विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आज की भाँति सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दी में भी मानसून को भारतीय कृषि की रीढ़ माना जाता था। परन्तु कुछ फसलों के लिए अतिरिक्त पानी की आवश्यकता थी। इसके लिए सिंचाई के कृत्रिम साधनों का सहारा लेना पड़ा। राज्य की ओर से सिंचाई कार्यों में सहायता दी जाती थी उदाहरणार्थ, उत्तर भारत में राज्य ने कई नई नहरें व नाले खुदवाये तथा कई पुरानी नहरों की मरम्मत करवाई। शाहजहाँ के शासन काल में पंजाब में ‘शाह नहर’ इसका उदाहरण है।
प्रश्न 35.
मुगलकालीन कृषि समाज में महिलाओं की स्थिति बताइए।
उत्तर:
मुगलकालीन कृषि समाज में महिलाएँ व पुरुष मिलजुलकर खेती का कार्य करते थे। पुरुष खेत जोतते थे तथा हल चलाते थे जबकि महिलाएँ बुआई, निराई व कटाई के साथ-साथ पकी हुई फसल से दाना निकालने का कार्य करती थीं। सूत कातना, वर्तन बनाने के लिए मिट्टी को साफ करना व गूंथना तथा कपड़ों पर कढ़ाई जैसे दस्तकारी के कार्य भी महिलाएँ ही करती थीं महिलाओं पर परिवार और समुदाय के पुरुषों का नियन्त्रण बना रहता था।
प्रश्न 36.
सामाजिक कारणों से जंगलवासियों के जीवन में किस प्रकार परिवर्तन आया?
उत्तर:
सामाजिक कारणों से जंगलवासियों के जीवन में परिवर्तन आया। ग्रामीण समुदाय के बड़े आदमियों की तरह जंगली कबीलों के भी सरदार होते थे। कई कबीलों के सरदार धीरे-धीरे जमींदार बन गए। कुछ तो राजा भी बन गए। 16वीं- 17वीं शताब्दी में कुछ राजाओं ने पड़ोसी कवीलों के साथ एक के बाद एक युद्ध किया और उन पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।
प्रश्न 37.
जंगलवासियों पर कौनसे नए सांस्कृतिक प्रभाव पड़े?
उत्तर:
जंगलवासियों पर नए-नए सांस्कृतिक प्रभाव पड़े कुछ इतिहासकारों की यह मान्यता है कि नए बसे क्षेत्रों के खेतिहर समुदायों ने जिस प्रकार से धीरे-धीरे इस्लाम को अपनाया, उसमें सूफी सन्तों ने एक बड़ी भूमिका निभाई थी।
प्रश्न 38.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में भारत में खेती के विकास के लिए किसानों द्वारा अपनायी गई तकनीकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) किसान लकड़ी के ऐसे हल्के हल का प्रयोग करते थे जिसको एक छोर पर लोहे की नुकीली धार या फाल लगा कर सरलता से बनाया जा सकता था।
(2) बैलों के जोड़े के सहारे खींचे जाने वाले बरमे का प्रयोग बीज बोने के लिए किया जाता था परन्तु बीजों को हाथ से छिड़क कर बोने की पद्धति अधिक प्रचलित थी।
(3) मिट्टी की गुड़ाई और निराई के लिए लकड़ी के मूठ वाले लोहे के पतले धार प्रयुक्त किए जाते थे।
प्रश्न 39.
भारत में तम्बाकू का प्रसार किस प्रकार हुआ? जहाँगीर ने तम्बाकू के धूम्रपान पर प्रतिबन्ध क्यों लगा दिया?
उत्तर:
तम्बाकू का पौधा सबसे पहले दक्षिण भारत पहुँचा और वहाँ से सरहवीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में इसे उत्तर भारत लाया गया। अकबर और उसके अमीरों ने 1604 ई. में पहली बार तम्बाकू देखा सम्भवत: इसी समय से भारत में तम्बाकू का धूम्रपान (हुक्के या चिलम में) करने के व्यसन ने जोर पकड़ा। परन्तु जहाँगीर ने तम्बाकू के धूम्रपान पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इस प्रतिबन्ध का कोई प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि इसका सत्रहवीं शताब्दी के अन्त तक सम्पूर्ण भारत में प्रचलन था।
प्रश्न 40.
मुगलकाल में मौसम के चक्रों में उगाई जाने वाली विविध फसलों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुगल काल में भारत में मौसम के दो मुख्य चक्रों के दौरान खेती की जाती थी एक खरीफ (पतझड़ में) तथा दूसरी रवी (बसन्त में) अधिकतर स्थानों पर वर्ष में कम से कम दो फसलें उगाई जाती थीं जहाँ वर्षा अथवा सिंचाई के अन्य साधन हर समय उपलब्ध थे, वहाँ यो वर्ष में तीन फसलें भी उगाई जाती थीं ‘आइन-ए- अकबरी’ के अनुसार दोनों मौसमों को मिलाकर मुगल- प्रान्त आगरा में 39 तथा दिल्ली प्रान्त में 43 फसलों की उगाई की जाती थी।
प्रश्न 41.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में भारत ‘में ‘जिन्स-ए-कामिल’ नामक फसलें क्यों उगाई जाती थीं?
उत्तर:
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में भारत में ‘जिन्स-ए-कामिल’ (सर्वोत्तम फसलें) नामक फसलें भी उगाई जाती थीं मुगल राज्य भी किसानों को ‘जिन्स-ए- कामिल’ नामक फसलों की खेती करने के लिए प्रोत्साहन देता था क्योंकि इनसे राज्य को अधिक कर मिलता था। कपास और गने जैसी फसलें श्रेष्ठ ‘जिन्स-ए-कामिल’ श्रीं तिलहन (जैसे सरसों) तथा दलहन भी नकदी फसलों में सम्मिलित थीं।
प्रश्न 42.
जाति और अन्य जाति जैसे भेदभावों के कारण खेतिहर किसान किन समूहों में बँटे हुए थे?
उत्तर:
खेतों की जुताई करने वालों में एक बड़ी संख्या उन लोगों की थी जो निकृष्ट समझे जाने वाले कामों में लगे थे अथवा फिर खेतों में मजदूरी करते थे कुछ जातियों के लोगों को केवल निकृष्ट समझे जाने वाले काम ही दिए जाते थे। इस प्रकार वे गरीबी का जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य थे। गाँव की आबादी का बहुत बड़ा भाग ऐसे ही समूहों का था। इनके पास संसाधन सबसे कम थे तथा ये जाति व्यवस्था के प्रतिबन्धों से बंधे हुए थे इनकी स्थिति न्यूनाधिक आधुनिक भारत के दलितों जैसी थी।
प्रश्न 43.
“समाज के निम्न वर्गों में जाति, गरीबी तथा सामाजिक हैसियत के बीच सीधा सम्बन्ध था। परन्तु ऐसा बीच के समूहों में नहीं था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- सत्रहवीं सदी में मारवाड़ में लिखी गई एक पुस्तक में राजपूतों का उल्लेख किसानों के रूप में किया गया है। इस पुस्तक के अनुसार जाट भी किसान थे परन्तु जाति व्यवस्था में उनका स्थान राजपूतों की तुलना में नीचा था सत्रहवीं सदी में वृन्दावन (उत्तर प्रदेश) के क्षेत्र में रहने वाले गौरव समुदाय ने भी राजपूत होने का दावा किया, यद्यपि वे जमीन की जुताई के काम में लगे थे। अहीर, गुज्जर तथा माली जैसी जातियों के सामाजिक स्तर में भी वृद्धि हुई।
प्रश्न 44.
पंचायत का मुखिया कौन होता था? उसके कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पंचायत का सरदार एक मुखिया होता था, जिसे ‘मुकदम’ चा ‘मंडल’ कहते थे। मुखिया का चुनाव गाँव के बुजुर्गों की आम सहमति से होता था। इस चुनाव के बाद उन्हें इसकी स्वीकृति जमींदार से लेनी पड़ती थी। मुखिया अपने पद पर तभी तक बना रह सकता था, जब तक गाँव के बुजुगों को उस पर भरोसा था। गाँव की आप व खर्चे का हिसाब-किताब अपनी निगरानी में बनवाना मुखिया का प्रमुख कार्य था। इस कार्य में पंचायत का पटवारी उसको सहायता करता था।
प्रश्न 45.
मुगल काल में गाँव के ‘आम खजाने’ से पंचायत के कौनसे खर्चे बलते थे?
उत्तर:
(1) मुगल काल में पंचायत का खर्चा के आम खजाने से चलता था इस खजाने से उन कर अधिकारियों की खातिरदारी का खर्चा भी किया जाता था, जो समय-समय पर गाँव का दौरा किया करते थे।
(2) इस आम खजाने का प्रयोग बाढ़ जैसी प्राकृतिक विपदाओं से निपटने के लिए भी किया जाता था।
(3) इस कोष का प्रयोग ऐसे सामुदायिक कार्यों के लिए भी किया जाता था जो किसान स्वयं नहीं कर सकते थे, जैसे छोटे-मोटे बांध बनाना या नहर खोदना
प्रश्न 46.
मुगलकालीन जाति पंचायतों के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
- राजस्थान में जाति पंचायतें अलग-अलग जातियों के लोगों के बीच दीवानी के झगड़ों का निपटारा करती थीं।
- वे जमीन से जुड़े दावेदारियों के झगड़े सुलझाती
- वे यह निश्चित करती थीं कि विवाह जातिगत मानदंडों के अनुसार हो रहे हैं या नहीं।
- वे यह निश्चित करती थीं कि गाँव के आयोजन में किसको किसके ऊपर प्राथमिकता दी जाएगी। कर्मकाण्डीय वर्चस्व किस क्रम में होगा।
प्रश्न 47
पंचायतों में ग्रामीण समुदाय के निम्न वर्ग के लोग उच्च जातियों तथा राज्य के अधिकारियों के विरुद्ध कौनसी शिकायतें प्रस्तुत करते थे?
उत्तर:
पश्चिमी भारत, विशेषकर राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे प्रान्तों से प्राप्त दस्तावेजों में ऐसे कई प्रार्थना-पत्र हैं, जिनमें पंचायत से ‘सी’ जातियों अथवा राज्य के अधिकारियों के विरुद्ध जबरन कर वसूली अथवा बेगार वसूली की शिकायत की गई है। इनमें किसी जाति या सम्प्रदाय विशेष के लोग अभिजात वर्ग के समूहों की उन माँगों के विरुद्ध अपना विरोध दर्शाते थे जिन्हें वे नैतिक दृष्टि से अवैध मानते थे। उनमें एक मांग बहुत अधिक कर की माँग थी।
प्रश्न 48
पंचायतों द्वारा इन शिकायतों का निपटारा किस प्रकार किया जाता था ?
उत्तर:
निचली जाति के किसानों और राज्य के अधिकारियों या स्थानीय जमींदारों के बीच झगड़ों में पंचायत के निर्णय अलग-अलग मामलों में अलग-अलग हो सकते थे। अत्यधिक कर की मांगों में पंचायत प्रायः समझौते का सुझाव देती थीं जहाँ समझौते नहीं हो पाते थे, वहाँ किसान विरोध के अधिक उम्र साधन अपनाते थे, जैसे कि गाँव छोड़ कर भाग जाना।
प्रश्न 49.
खेतिहर लोग किन ग्रामीण दस्तकारियों में संलग्न रहते थे?
उत्तर:
खेतिहर और उसके परिवार के सदस्य विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के उत्पादन में संलग्न रहते थे जैसे-रंगरेजी, कपड़े पर छपाई, मिट्टी के बर्तनों को पकाना, खेती के औजारों को बनाना अथवा उनकी मरम्मत करना। जब किसानों को खेती के काम से अवकाश मिलता था, जैसे-बुआई और सुड़ाई के बीच या सुहाई और कटाई के बीच, उस अवधि में ये खेतिहर दस्तकारी के काम में संलग्न रहते थे।
प्रश्न 50.
ग्रामीण दस्तकार किस रूप में अपनी सेवाएँ गाँव के लोगों को देते थे? इसके बदले गाँव के लोग उन सेवाओं की अदायगी किन तरीकों से करते थे?
उत्तर:
कुम्हार, लोहार, बढ़ई, नाई, यहाँ तक कि सुनार जैसे ग्रामीण दस्तकार अपनी सेवाएँ गाँव के लोगों को देते थे, जिसके बदले गाँव वाले उन्हें विभिन्न तरीकों से उन सेवाओं की अदायगी करते थे। प्रायः वे या तो उन्हें फसल का एक भाग दे देते थे या फिर गाँव की जमीन का एक टुकड़ा अदायगी का तरीका सम्भवतः पंचायत ही तय करती थी कुछ स्थानों पर दस्तकार तथा प्रत्येक खेतिहर परिवार आपसी बातचीत करके अदायगी का तरीका तय कर लेते थे।
प्रश्न 51.
कुछ अंग्रेज अफसरों द्वारा भारतीय गाँवों को ‘छोटे गणराज्य’ क्यों कहा गया?
अथवा
ग्रामीण समुदाय के महत्त्व का विवेचन कीजिए।
अथवा
‘छोटे गणराज्य’ के रूप में भारतीय गाँवों का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उन्नीसवीं सदी के कुछ अंग्रेज अधिकारियों ने भारतीय गाँवों को एक ऐसे ‘छोटे गणराज्य’ की संज्ञा दी, जहाँ लोग सामूहिक स्तर पर भाई चारे के साथ संसाधनों तथा श्रम का विभाजन करते थे परन्तु ऐसा नहीं लगता कि गाँव में सामाजिक समानता थी सम्पत्ति पर व्यक्तिगत स्वामित्व होता था। इसके साथ ही जाति और लिंग के नाम पर समाज में गहरी विषमताएँ थीं कुछ शक्तिशाली लोग गाँव की समस्याओं पर निर्णय लेते थे और कमजोर वर्गों के लोगों का शोषण करते थे।
प्रश्न 52.
भूमिहर भद्रजनों में महिलाओं को प्राप्त पैतृक सम्पत्ति के अधिकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूमिहर भद्रजनों में महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त था। पंजाब में महिलाएँ (विधवा महिलाएँ भी) पैतृक सम्पत्ति के विक्रेता के रूप में ग्रामीण जमीन के क्रय-विक्रय में सक्रिय भागीदारी रखती थीं हिन्दू और मुसलमान महिलाओं को जमींदारी उत्तराधिकार में मिलती थी, जिसे बेचने अथवा गिरवी रखने के लिए वे स्वतंत्र थीं। बंगाल में भी महिला जमींदार थीं। वहाँ राजशाही की जमींदारी की कर्ता-धर्ता एक स्वी थी।
प्रश्न 53.
‘जंगली’ कौन थे? मुगलकाल में जंगली शब्द का प्रयोग किन लोगों के लिए किया जाता था?
उत्तर:
समसामयिक रचनाएँ जंगल में रहने वालों के लिए ‘जंगली’ शब्द का प्रयोग करती हैं। परन्तु जंगली होने का अर्थ यह नहीं था कि वे असभ्य थे। मुगलकाल में जंगली शब्द का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए होता था जिनका निर्वाह जंगल के उत्पादों, शिकार और स्थानान्तरीच खेती से होता था। ये काम मौसम के अनुसार होते थे। उदाहरण के लिए, भील बसन्त के मौसम में जंगल के उत्पाद इकट्ठा करते थे, गर्मियों में मछली पकड़ते थे तथा मानसून के महीनों में खेती करते थे।
प्रश्न 54.
राज्य की दृष्टि में जंगल किस प्रकार का क्षेत्र था?
उत्तर:
राज्य की दृष्टि में जंगल राज्य की दृष्टि में जंगल उलटफेर वाला इलाका था अपराधियों को शरण देने वाला अड्डा राज्य के अनुसार अपराधी और विद्रोही जंगल में शरण लेते थे अपराध करने के बाद ये लोग जंगल में छिप जाते थे। बाबर के अनुसार जंगल एक ऐसा रक्षाकवच था जिसके पीछे परगना के लोग कड़े विद्रोही हो जाते थे और कर चुकाने से मुकर जाते थे।”
प्रश्न 55.
मुगल काल में बाहरी शक्तियाँ जंगलों में किसलिए प्रवेश करती थीं?
उत्तर:
(1) मुगलकाल में बाहरी शक्तियाँ जंगलों में कई तरह से प्रवेश करती थीं। उदाहरणार्थ, राज्य को सेना के लिए हाथियों को आवश्यकता होती थी इसलिए जंगलवासियों से ली जाने वाली भेंट में प्रायः हाथी भी सम्मिलित होते थे।
(2) शिकार अभियान के नाम पर मुगल सम्राट अपने साम्राज्य के भिन्न-भिन्न भागों का दौरा करते थे और लोगों की समस्याओं और शिकायतों पर उचित ध्यान देते थे।
प्रश्न 56.
मुगल-राजनीतिक विचारधारा में शिकार अभियान का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
मुगल राजनीतिक विचारधारा में गरीबों और अमीरों सहित सबको न्याय प्रदान करने के उद्देश्य से ‘शिकार अभियान’ प्रारम्भ किया गया। शिकार अभियान के नाम पर मुगल सम्राट अपने विशाल साम्राज्य के कोने-कोने का दौरा करता था। इस प्रकार वह अलग-अलग प्रदेशों के लोगों की समस्याओं और शिकायतों पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देता था और न्याय प्रदान करता था।
प्रश्न 57.
जंगलवासियों के जीवन पर बाहरी कारक के रूप में वाणिज्यिक खेती का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
जंगलवासियों के जीवन पर वाणिज्यिक खेती का काफी प्रभाव पड़ता था। शहद, मधुमोम तथा लाक जैसे जंगल के उत्पादों की बहुत माँग थी। लाक जैसी कुछ वस्तुएँ तो सत्रहवीं सदी में भारत से समुद्र पार होने वाले निर्यात की मुख्य वस्तुएँ थीं। हाथी भी पकड़े और बेचे जाते थे व्यापार के अन्तर्गत वस्तुओं की अदला-बदली भी होती थी। कुछ कवीले भारत और अफगानिस्तान के बीच होने वाले स्थलीय व्यापार में लगे हुए थे वे पंजाब के गाँवों और शहरों के बीच होने वाले व्यापार में भी भाग लेते थे।
प्रश्न 58.
सामाजिक कारणों से जंगलवासियों के जीवन में क्या परिवर्तन हुए?
उत्तर:
सामाजिक कारणों से जंगलवासियों के जीवन में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। जंगली कबीलों के भी सरदार होते थे। कई जंगली कबीलों के सरदार जमींदार बन गए। कुछ तो राजा भी बन गए। ऐसे में उन्हें सेना का गठन करने की आवश्यकता हुई। अतः उन्होंने अपने ही वंश के लोगों को सेना में भर्ती किया अथवा फिर उन्होंने अपने ही भाई- बन्धुओं से सैन्य-सेच की मांग की। सिन्ध प्रदेश की कमीलाई सेनाओं में 6000 घुड़सवार और 7000 पैदल सैनिक होते थे।
प्रश्न 59.
मुगलकालीन भारत में जमींदारों की शक्ति के स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) जमींदारों को शक्ति इस बात से मिलती धी कि वे प्रायः राज्य की ओर से कर वसूल कर सकते थे। इसके बदले उन्हें वित्तीय मुआवजा मिलता था।
(2) सैनिक संसाधन उनकी शक्ति का एक और स्रोत था अधिकतर जमींदारों के पास अपने किले भी थे और अपनी सैनिक टुकड़ियाँ भी, जिनमें घुड़सवारों, तोपखाने तथा पैदल सैनिकों के जत्थे होते थे।
प्रश्न 60.
जमींदारों की उत्पत्ति का स्रोत क्या था?
उत्तर:
समसामयिक दस्तावेजों से प्रतीत होता है कि युद्ध में विजय जमींदारों की उत्पत्ति का सम्भावित लोत रहा होगा। प्रायः जमींदारी के प्रसार का एक तरीका था शक्तिशाली सैनिक सरदारों द्वारा कमजोर लोगों को बेदखल करना। परन्तु इसकी सम्भावना कम ही दिखाई देती है कि राज्य किसी जमींदार को इतने आक्रामक रुख अपनाने की अनुमति देता हो, जब तक कि एक राज्यादेश के द्वारा इसकी पुष्टि पहले ही नहीं कर दी गई हो।
प्रश्न 61.
कृषि के विकास में जमींदारों के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
- जमींदारों ने कृषि योग्य जमीनों को बसने में नेतृत्व प्रदान किया और खेतिहरों को खेती के उपकरण व उधार देकर उन्हें वहाँ बसने में भी सहायता की।
- जमींदारी के क्रय-विक्रय से गाँवों के मौद्रीकरण की प्रक्रिया में तेजी आई।
- जमींदार अपनी मिल्कियत की जमीनों की फसल भी बेचते थे।
- कुछ साक्ष्य दर्शाते हैं कि जमींदार प्रायः बाजार (हाट) स्थापित करते थे जहाँ किसान भी अपनी फसलें बेचने आते थे।
प्रश्न 62.
“किसानों से जमींदारों के सम्बन्धों में पारस्परिकता, पैतृकवाद तथा संरक्षण का पुट था।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यद्यपि जमींदार शोषण करने वाला वर्ग था, परन्तु किसानों से उनके सम्बन्धों में पारस्परिकता, पैतृकवाद तथा संरक्षण का पुट था। भक्ति सन्तों ने बड़ी निर्भीकतापूर्वक जातिगत तथा अन्य प्रकार के अत्याचारों की कटु निन्दा की, परन्तु उन्होंने जमींदारों को किसानों के शोषक या उन पर अत्याचार करने वाले के रूप में नहीं दर्शाया। सत्रहवीं सदी में हुए कृषि विद्रोहों में राज्य के विरुद्ध जमींदारों को प्राय: किसानों का समर्थन मिला।
प्रश्न 63.
मुगलकालीन भू-राजस्व प्रणाली की विवेचना कीजिए।
अथवा
अकबर के शासन में भूमि के वर्गीकरण किये जाने के बारे में अबुल फजल ने अपने ग्रन्थ ‘आइन’ में क्या वर्णन किया है?
अथवा
अकबर के समय में प्रचलित भू-राजस्व व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
अथवा
मुगलों की भू-राजस्व व्यवस्था का वर्णन कीजिये ।
अथवा
अकबर की भू-राजस्व व्यवस्था की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
अकबर ने जमीनों का वर्गीकरण किया और प्रत्येक वर्ग की जमीन के लिए अलग-अलग राजस्व निर्धारित किया। भूमि को चार वर्गों में बाँटा गया-
(i) पोलज
(ii) पोलज और परौती की तीन मध्यम
(iii) चचर
(iv) बंजर। और प्रत्येक वर्ग की तीन किस्में थीं-
(1) अच्छी
(2) किस्म
(3) खराब प्रत्येक की जमीन की उपज को जोड़ा जाता था और उसका तीसरा हिस्सा औसत उपज माना जाता था इसका एक- तिहाई भाग राजकीय शुल्क माना जाता था।
प्रश्न 64.
अकबर के शासन काल में राजस्व की वसूली के लिए अपनाई गई प्रणालियों का ‘आइन’ में किस प्रकार वर्णन किया गया है?
उत्तर:
अकबर के शासन काल में फसल के रूप में राजस्व वसूली की पहली प्रणाली कुणकुत प्रणाली थी। इसमें फसल को तीन अलग-अलग पुलिन्दों में काटा जाता था दूसरी प्रणाली बटाई या भाओली थी, जिसमें फसल काट कर जमा कर लेते थे और फिर सभी पक्षों की सहमति से बंटवारा किया जाता था। खेत बटाई तीसरी प्रणाली थी जिसमें बीज बोने के बाद खेत बाँट लेते थे। लाँग बटाई चौथी प्रणाली थी जिसमें फसल काटने के बाद उसे आपस में बाँट लेते थे।
प्रश्न 65.
मनसबदारी व्यवस्था’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
मनसबदारी व्यवस्था की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
अकबर की मनसबदारी व्यवस्था की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
मनसबदारी मुगल प्रशासनिक व्यवस्था के शीर्ष पर एक सैनिक नौकरशाही तन्त्र था। इस पर राज्य के सैनिक व नागरिक मामलों की जिम्मेदारी थी कुछ मनसबदारों को नकदी भुगतान किया जाता था परन्तु अधिकांश मनसबदारों को साम्राज्य के भिन्न-भिन्न भागों में राजस्व के आवंटन के द्वारा भुगतान किया जाता था। सम्राट द्वारा समय-समय पर उनका स्थानान्तरण किया जाता था। प्रायः योग्य और अनुभवी व्यक्ति को ही मनसबदार के पद पर नियुक्त किया जाता था।
प्रश्न 66.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी में भारत में चाँदी का बहाव क्यों और किस प्रकार हुआ? उत्तर- सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में भारत के व्यापार में अत्यधिक उन्नति हुई। इस कारण भारत के समुद्र पार व्यापार में एक ओर भौगोलिक विविधता आई, तो दूसरी ओर अनेक नई वस्तुओं का व्यापार भी शुरू हुआ। निरन्तर बढ़ते व्यापार के साथ, भारत से निर्यात होने वाली वस्तुओं का भुगतान करने के लिए एशिया में भारी मात्रा में चाँदी आई। इस चाँदी का एक बड़ा भाग भारत पहुँचा। यह भारत के लिए लाभप्रद था; क्योंकि यहाँ चाँदी के प्राकृतिक संसाधन नहीं थे।
प्रश्न 67.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में भारत में चाँदी के बहाव के क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
(1) सोलहवीं से अठारहवीं सदी के बीच भारत में धातु मुद्रा विशेषकर चाँदी के रुपयों की प्राप्ति में अच्छी स्थिरता बनी रही।
(2) अर्थव्यवस्था में मुद्रा संचार और सिक्कों की तलाई में अभूतपूर्व विस्तार हुआ तथा मुगल राज्य को नकदी कर वसूलने में आसानी हुई।
(3) इटली के यात्री जोवान्नी कारेरी के अनुसार चाँदी समस्त विश्व से होकर भारत पहुँचती थी तथा सत्रहवी शताब्दी में भारत में अत्यधिक मात्रा में नकदी और वस्तुओं का आदान-प्रदान हो रहा था।
प्रश्न 68
आइन-ए-अकबरी’ की त्रुटियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
(1) जोड़ करने में कई गलतियाँ पाई गई हैं।
(2) ‘आइन’ के संख्यात्मक आँकड़ों में विषमताएँ हैं।
(3) जहाँ सूबों से लिए गए राजकोषीय आँकड़े बड़े विस्तार से दिए गए हैं, वहीं उन्हीं प्रदेशों से कीमतों और मजदूरी से सम्बन्धित आँकड़े इतने विस्तार के साथ नहीं दिए गए हैं।
(4) मूल्यों और मजदूरी की दरों की सूची मुगल साम्राज्य की राजधानी आगरा या उसके आस-पास के प्रदेशों से ली गई है।
प्रश्न 69.
“कुछ त्रुटियों के होते हुए भी ‘आइन- ए-अकबरी’ अपने समय के लिए एक असाधारण एवं अनूठा दस्तावेज है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
‘आइन-ए-अकबरी’ अपने समय के लिए एक असाधारण एवं अनूठा दस्तावेज हैं। मुगल साम्राज्य के गठन और उसकी संरचना की अत्यन्त आकर्षक झलकियाँ दर्शाकर और उसके निवासियों व उत्पादों के सम्बन्ध में सांख्यिकीय आँकड़े प्रस्तुत कर, अबुल फजल मध्यकालीन इतिहासकारों से कहीं आगे निकल गए। ‘आइन’ में भारत के लोगों और मुगल साम्राज्य के बारे में विस्तृत सूचनाएँ दी गई हैं। इस प्रकार यह ग्रन्थ सत्रहवीं शताब्दी के भारत के अध्ययन के लिए संदर्भ-बिन्दु बन गया है।
प्रश्न 70.
बटाई प्रणाली तथा लाँग बढाई पद्धतियों | का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
(1) कटाई प्रणाली में फसल काटकर जमा कर लेते थे और फिर सभी पक्षों की उपस्थिति तथा सहमति से बँटवारा कर लेते थे।
(2) लॉंग बटाई – इस प्रणाली में फसल काटने के बाद उसके ढेर बना लिए जाते थे तथा फिर उन्हें आपस में बाँट लेते थे। इसमें हर पक्ष अपना हिस्सा घर ले जाता था।
प्रश्न 71.
मुगल सम्राट शिकार अभियानों का क्यों आयोजन करते थे?
उत्तर:
मुगल सम्राट गरीबों और अमीरों सहित सबके साथ न्याय करना अपना प्रमुख कर्त्तव्य मानते थे। इसलिए ये शिकार अभियानों का आयोजन करते थे। वे शिकार आयोजन के नाम पर अपने विशाल साम्राज्य के कोने-कोने का दौरा करते थे और विभिन्न क्षेत्रों के लोगों की समस्याओं और शिकायतों को सुनकर उनका निराकरण करते थे।
प्रश्न 72.
कृषि के अतिरिक्त महिलाएँ दस्तकारी के किन कार्यों में संलग्न रहती थीं?
उत्तर:
कृषि के अतिरिक्त महिलाएं सूत कातने वर्तन बनाने के लिए मिट्टी को साफ करने और गूंधने, कपड़ों पर कढ़ाई जैसे दस्तकारी के कार्यों में संलग्न रहती थीं किसी वस्तु का जितना वाणिज्यीकरण होता था, उसके उत्पादन के लिए महिलाओं के श्रम की उतनी ही माँग होती थी। इस प्रकार महिलाएँ न केवल खेतों में कार्य करतीं थीं, बल्कि नियोक्ताओं के घरों पर भी जाती थीं।
प्रश्न 73.
मुगलकाल में कृषि में प्रयोग होने वाली मुख्य तकनीकी कौनसी थी? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
मुगलकाल में कृषि अपनी उच्च अवस्था में थी क्योंकि उस समय अनेक तकनीकों का प्रयोग किया जाता था। वस्तुत: उस समय प्रमुख कृषि तकनीकी पशु बल पर आधारित थी। इसे हम निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं-
(1) लकड़ी का हल एक प्रमुख कृषि उपकरण था। इसे एक छोर पर लोहे की नुकीली धार अथवा फाल लगाकर बनाया जाता था ऐसे हल मिट्टी को अधिक गहरा नहीं खोदते थे। जिसके कारण तेज गर्मी के महीनों में मिट्टी में पर्याप्त नमी बनी रहती थी जो उपज अथवा फसल के लिए अत्यधिक उपयोगी होती थी
(2) मिट्टी की निराई तथा गुड़ाई के लिए लकड़ी के मूठ वाले लोहे के पतले धार वाले उपकरण प्रयोग होते थे।
(3) बैलों के जोड़े के सहारे खींचे जाने वाले बरमे का प्रयोग बीज बोने के लिए किया जाता था, किन्तु बीजों को अधिकतर हाथ से छिड़ककर ही बोया जाता था
(4) रहट, जो उस समय सिंचाई का मुख्य साधन था, में भी बैलों का प्रयोग किया जाता था।
प्रश्न 74.
फ्रांसीसी यात्री ज्यां बैप्टिस्ट तैवर्नियर ने गाँवों में मुद्रा के प्रचलन के सम्बन्ध में अपने यात्रा वृत्तान्त में क्या वर्णन किया है?
उत्तर:
सत्रहवीं सदी में भारत में आए फ्रांसीसी यात्री ज्यां बैप्टिस्ट तैवर्नियर ने भारत के गाँवों में मुद्रा के प्रचलन के सम्बन्ध में अपने यात्रा वृत्तान्त में उल्लेख किया है कि “भारत के गाँव बहुत ही छोटे कहे जाएँगे, जिसमें मुद्रा के फेर-बदल करने वालों को ‘सर्राफ’ कहा जाता है। सर्राफ का कार्य बैंकरों की भाँति होता था, एक बैंक की भाँति सर्राफ हवाला भुगतान करते हैं और अपनी मर्जी के अनुसार पैसे के मुकाबले रुपयों की कीमत और कौड़ियों के मुकाबले पैसे की कीमत बढ़ा देते हैं।”
प्रश्न 75
ग्राम पंचायतों के कार्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) जाति की अवहेलना को रोकने के लिए लोगों के आचरण पर नजर रखना। (2) दोषियों पर जुर्माना लगाना और समुदाय से निष्कासित करना। इसके अन्तर्गत दण्डित व्यक्ति को निर्धारित समय के लिए गाँव छोड़ना पड़ता था। इस दौरान वह अपनी जाति और व्यवसाय से बचित हो जाता था।
प्रश्न 76.
मध्यकालीन भारत में सिंचाई के कौनसे साधन प्रचलित थे?
उत्तर:
मानसून भारतीय कृषि का रीढ़ था। खेती कृषि पर निर्भर करती थी परन्तु कुछ ऐसी फसलें भी थीं, जिनके लिए अतिरिक्त जल की आवश्यकता थी। अतः कुआँ, नहरों, नदियों, जलाशयों आदि से भी खेती की सिंचाई की जाती थी। बाबर के अनुसार रहट या बाल्टियों से सिंचाई की जाती थी।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
आप कृषि का इतिहास लिखने के लिए ‘आइन’ का स्रोत के रूप में किस प्रकार उपयोग करेंगे? समझाइये
अथवा
कृषि-इतिहास के स्रोत के रूप में ‘आइन-ए- अकबरी’ का वर्णन कीजिये।
अथवा
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी के कृषि इतिहास की जानकारी के मुख्य स्रोतों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी के कृषि – इतिहास की जानकारी के मुख्य स्रोत सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी के कृषि इतिहास की जानकारी के मुख्य स्रोतों का विवेचन निम्नलखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) मुगल दरबार की निगरानी में लिखे गए ऐतिहासिक ग्रन्थ व दस्तावेज-किसान अपने बारे में स्वयं नहीं लिखा करते थे इसलिए खेतों में काम करने वाले ग्रामीण समाज के क्रिया-कलापों की जानकारी हमें उन लोगों से प्राप्त नहीं होती। परिणामस्वरूप सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों के कृषि इतिहास की जानकारी देने वाले हमारे मुख्य स्रोत वे ऐतिहासिक ग्रन्थ एवं दस्तावेज हैं, जो मुगल दरबार की निगरानी में लिखे गए थे।
(2) ‘आइन-ए-अकबरी’- सोलहवीं या सत्रहवीं शताब्दियों का कृषि इतिहास लिखने के लिए, ‘आइन- ए-अकबरी’ एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है ‘ आइन-ए- अकबरी’ की रचना मुगल सम्राट अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फसल ने की थी। ‘आइन-ए-अकबरी’ का मुख्य उद्देश्य अकबर के साम्राज्य की एक ऐसी रूप- रेखा प्रस्तुत करना था, जहाँ एक शक्तिशाली सत्ताधारी वर्ग सामाजिक मेल-जोल बना कर रखता था। ‘आइन’ के तीसरे भाग ‘मुल्क आबादी में उत्तर भारत के कृषि-समाज के बारे में विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया गया है। इसमें साम्राज्य व प्रान्तों के वित्तीय पहलुओं तथा | राजस्व की दरों के आंकड़ों की विस्तृत जानकारी दी गई है। इसमें प्रत्येक प्रान्त तथा उसकी अलग-अलग इकाइयों की कुल मापी गई जमीन और निर्धारित राजस्व का विवरण भी प्रस्तुत किया गया है।
(3) अन्य स्रोत- सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों के कृषि इतिहास की जानकारी के लिए हम निम्नलिखित स्रोतों का भी प्रयोग कर सकते हैं-
(i) मुगलों की राजधानी से दूर के प्रदेशों में लिखे गए ग्रन्थ व दस्तावेज’ आइन’ की जानकारी के साथ- साथ हम उन लोगों का भी प्रयोग कर सकते हैं, जो मुगलों की राजधानी से दूर के प्रदेशों में लिखे गए थे। इनमें सत्रहवीं व अठारहवीं सदियों के गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान से उपलब्ध होने वाले वे दस्तावेज सम्मिलित हैं. जो सरकार की आय की विस्तृत जानकारी देते हैं।
(ii) ईस्ट इण्डिया कम्पनी के दस्तावेज इसके अतिरिक्त ईस्ट इण्डिया कम्पनी के बहुत से दस्तावेज भी हैं जो पूर्वी भारत में कृषि सम्बन्धों की उपयोगी जानकारी देते हैं। इन सभी स्रोतों में किसानों, जमींदारों तथा राज्य के बीच होने वाले झगड़ों के विवरण मिलते हैं। इन स्रोतों से हमें यह समझने में सहायता मिलती है कि किसानों का राज्य के प्रति क्या दृष्टिकोण था तथा राज्य से उन्हें कैसे न्याय की आशा थी।
प्रश्न 2.
खुद काश्त व पाहि काश्त से आप क्या समझते हैं? मुगलकाल में किसानों की दशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किसानों को मुगलकाल में रैयत या मुजरिवान कहा जाता था। किसानों के लिए सत्रहवीं सदी के भारतीय- फारसी स्रोत में इसी शब्द का प्रयोग किया गया है। किसानों के लिए आसामी शब्द का प्रयोग भी किया जाता था। यह शब्द गाँवों में अब भी प्रचलित है। सत्रहवीं शताब्दी के ग्रामीण समाज से सम्बन्धित स्रोतों में दो प्रकार के किसानों का उल्लेख किया गया है; जो इस प्रकार है – खुद काश्त किसन जो उन्हीं गाँवों में निकास करते थे जिनमें उनकी जमीन होती थी अपनी जमीन पर खेती करने वाले किसानों को खुद काश्त किसान कहा जाता था। पाहि काश्त पाहि काश्त उन किसानों को कहा जाता था जो दूसरे गाँवों से आकर ठेके पर खेती लेकर कृषि कार्य करते थे। कभी-कभी लोग दूसरे गाँवों में खेती की अच्छी सम्भावनाओं, जैसेकि ठेके आदि की कम दरें और अच्छी उपज के लालच में पाहि काश्तकारी करते थे।
आर्थिक परेशानी, अकाल या भुखमरी तथा खुद की जमीन न होने पर भी लोग पाहि काश्तकारी करते थे। किसानों के पास उपलब्ध कृषि भूमि किसानों के पास उपलब्ध कृषि भूमि उनकी समृद्धि का मापदण्ड थी। सामान्य तौर पर उत्तर भारत के एक औसत किसान के पास अधिक भूमि न होने के कारण एक जोड़ी बैल और दो हल से अधिक कुछ नहीं होता था। अधिकांश किसानों के पास इससे भी न्यून साधन होते थे किसानों के पास उपलब्ध साधनों के आधार पर हम कह सकते हैं कि भूमि की उपलब्धता कम थी। गुजरात में 6 एकड़ जमीन का स्वामित्व रखने वाले किसान समृद्ध कहे जाते थे। बंगाल में औसत किसान के पास अधिक से अधिक 5 एकड़ जमीन होती थी।
10 एकड़ जमीन रखने वाले किसान अमीर समझे जाते थे। कृषि भूमि की मिल्कियत जिस प्रकार अन्य सम्पत्तियाँ खरीदी और बेची जाती थीं, उसी प्रकार कृषि भूमि भी व्यक्तिगत मिल्कियत के सिद्धान्त पर आधारित थी। व्यक्तिगत मिल्कियत होने के नाते किसान कृषि भूमि तथा क्रय-विक्रय अन्य सम्पत्तियों की भाँति कर सकते हैं। किसानों की मिल्कियत के बारे में एक विवरण उन्नीसवीं सदी के दिल्ली-आगरा प्रदेश के किसानों के सम्बन्ध में प्राप्त होता है। उपर्युक्त विवरण सत्रहवीं सदी के किसानों पर भी इसी भाँति लागू होता है। किसानों की दशा तत्कालीन समय के इतिहासकारों में किसानों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति के बारे में मतभेद है।
प्रश्न 3.
मुगलकाल में प्रचलित सिंचाई साधनों की वर्तमान कृषि में उपयोगिता को समझाइये।
अथवा
‘बाबरनामा’ में वर्णित भारत में सिंचाई के साधनों एवं उपकरणों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
(1) मुगलकाल में प्रचलित सिंचाई साधनों की वर्तमान कृषि में उपयोगिता आज की भाँति मानसून मुगलकाल में भी भारतीय कृषि को रोड़ थी परन्तु कुछ ऐसी फसलें भी थीं जिनके लिए अतिरिक्त पानी की आवश्यकता थी। अतः मुगल काल में वर्षा के अतिरिक्त सिंचाई तालाबों, कुओं, नहरों एवं बांधों के द्वारा होती थी। मुगल काल में प्रचलित सिंचाई साधनों की वर्तमान कृषि में काफी उपयोगिता है। आज भी देश की अधिकांश आबादी गांवों में रहती है। यद्यपि आज धनी लोगों द्वारा ट्यूबवैल आदि आधुनिक साधनों का उपयोग किया जाता है, परन्तु अधिकांशतः खेतों की सिंचाई वर्षा, कुओं, तालाबों, नहरों, बांधों के द्वारा ही की जाती है।
(2) ‘बाबरनामा में वर्णित भारत में सिंचाई के साधन-
(i) बहते पानी के प्रबन्ध का अभाव- भारत का -अधिकतर भाग मैदानी जमीन पर बसा हुआ है। यद्यपि यहाँ शहर और खेती योग्य जमीन की प्रचुरता थी, परन्तु कहीं भी बहते पानी का प्रबन्ध नहीं किया जाता था। इसलिए फसलें उगाने या बागानों के लिए पानी की बिल्कुल आवश्यकता नहीं थी। शरद ऋतु की फसलें वर्षा के पानी से ही पैदा हो जाती थीं यह बड़े आश्चर्य की बात है कि बसन्त ऋतु की फसलें तो वर्षा के अभाव में भी पैदा हो जती थीं।
(ii) रहट द्वारा सिंचाई ‘बाबरनामा’ के अनुसार छोटे पेड़ों तक रहट या बाल्टियों के द्वारा पानी पहुंचाया जाता था लाहौर, दीपालपुर (वर्तमान में पाकिस्तान में) और ऐसे दूसरे स्थानों पर लोग रहट के द्वारा सिंचाई करते थे लोग रस्सी के दो गोलाकार फंदे बनाते थे, जो कुएँ की गहराई के अनुसार लम्बे होते थे। इन फन्दों में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर लकड़ी के गुटके लगाए जाते थे और इन गुटकों पर पड़े बांध दिए जाते थे।
लकड़ी के गुटकों और घड़ों से बंधी इन रस्सियों को कुएँ के ऊपर पहियों से लटकाया जाता था। पहिये की धुरी पर एक ओर पहिया होता था। इस अन्तिम पहिए को बैल के द्वारा घुमाया जाता था इस पहिये के दाँत पास के दूसरे पहिए के दांतों को जकड़ लेते थे और इस प्रकार घड़ों वाला पहिया घूमने लगता था। घड़ों से जहाँ पानी गिरता था, वहाँ एक संकरा नाला खोद दिया जाता था और इस विधि से प्रत्येक स्थान पर पानी पहुँचाया जाता था।
(iii) बाल्टियों से सिंचाई ‘बाबरनामा’ के अनुसार वर्तमान उत्तर प्रदेश में स्थित आगरा, चांदवर तथा बवाना में और ऐसे अन्य प्रदेशों में भी लोग बाग बाल्टियों से सिंचाई करते थे। वे कुएँ के किनारे पर लकड़ी के कन्ने गाड़ देते थे। वे इन फन्नों के मध्य बेलन टिकाते थे, एक बड़ी बाल्टी में रस्सी बांधते थे रस्सी को बेलन पर लपेटते थे और इसके दूसरे छोर को बैल से बाँध देते थे। एक व्यक्ति बैल हाँकता था तथा दूसरा बाल्टी से पानी निकालता था।
प्रश्न 4.
भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में ग्रामीण दस्तकारों की स्थिति पर प्रकाश डालिए। उत्तर भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में ग्रामीण दस्तकारों की स्थिति –
(1) गाँवों में बड़ी संख्या में दस्तकारों की उपलब्धता-अंग्रेजी शासन के प्रारम्भिक वर्षों में किए गए गाँवों के सर्वेक्षण तथा मराठाओं के दस्तावेजों से ज्ञात होता है कि गाँवों में दस्तकार काफी बड़ी संख्या में रहते थे। कुछ गाँवों में तो कुल घरों के 25 प्रतिशत घर दस्तकारों के थे।
(2) किसानों और दस्तकारों के बीच सम्बन्ध- कभी-कभी किसानों और दस्तकारों के बीच अन्तर करना कठिन होता था क्योंकि कई ऐसे समूह से जो दोनों प्रकार के काम करते थे। खेतिहर और उसके परिवार के सदस्य अनेक प्रकार की वस्तुओं के उत्पादन में भाग लेते थे। उदाहरणार्थ, वे रंगरेजी, कपड़ों पर छपाई, मिट्टी के बर्तनों को पकाने, खेती के औजार बनाने या उनकी मरम्मत का काम करते थे। बुआई और सुहाई के बीच या सुहाई और के बीच की अवधि में किसानों के पास खेती का काम नहीं होता था, इसलिए इस अवधि में ये खेतिहर दस्तकारी का काम करते थे।
(3) ग्रामीण दस्तकारों द्वारा गाँव के लोगों को सेवाएँ देना कुम्हार, लोहार, बढ़ई, नाई और सुनार जैसे ग्रामीण दस्तकार अपनी सेवाएं गाँव के लोगों को देते थे। इसके बदले गाँव के लोग उन्हें अलग-अलग तरीकों से उन सेवाओं की अदायगी करते थे। प्रायः वे या तो उन्हें फसल का एक भाग दे दिया करते थे या फिर गाँव की जमीन का एक टुकड़ा यह जमीन का टुकड़ा ऐसा था जो खेती योग्य होने के बावजूद बेकार पड़ा रहता था भुगतान का तरीका सम्भवतः पंचायत ही निश्चित करती थी। महाराष्ट्र में ऐसी जमीन दस्तकारों की ‘मीरास’ या ‘वतन’ बन गई जिस पर दस्तकारों का पैतृक अधिकार होता था।
यही व्यवस्था कभी-कभी थोड़े परिवर्तित रूप में भी पाई जाती थी। इसमें दस्तकार और प्रत्येक खेतिहर परिवार आपसी बातचीत द्वारा सेवाओं के भुगतान की कोई एक व्यवस्था तय कर लेते थे। इस स्थिति में प्रायः वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय होता था उदाहरणार्थ, अठारहवीं सदी के स्त्रोतों से ज्ञात होता है कि बंगाल में जमींदार उनकी सेवाओं के बदले लोहारों, बढ़ई और सुनारों तक को “दैनिक भत्ता और खाने के लिए नकदी देते थे। इस व्यवस्था को ‘जजमानी’ कहते थे। इन तथ्यों से पता चलता है कि गाँव के छोटे स्तर पर विनिमय के सम्बन्ध काफी जटिल थे। परन्तु ऐसा नहीं है कि नकद अदायगी का प्रचलन बिल्कुल ही नहीं था।
प्रश्न 5.
भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में कृषि समाज में महिलाओं की भूमिका का विवेचन कीजिए। समाज में उनकी स्थिति पर प्रकाश डालिए । उत्तर- भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में कृषि समाज में महिलाओं की भूमिका-
(1) उत्पादन की प्रक्रिया में पुरुष और महिलाओं की भूमिका उत्पादन की प्रक्रिया में पुरुष और महिलाएँ विशेष प्रकार की भूमिकाएं निभाते हैं। भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियों में भी महिलाएँ और पुरुष कन्धे से कंधा मिलाकर खेतों में काम करते थे।
पुरुष हल जोतते थे तथा हल चलाते थे और महिलाएँ बुआई, निराई और कटाई के साथ-साथ पकी हुई फसल से दाना निकालने का काम करती थीं। फिर भी महिलाओं की जैव वैज्ञानिक क्रियाओं को लेकर लोगों के मन में पूर्वाग्रह बने रहे। उदाहरण के लिए, पश्चिमी भारत में मासिक धर्म वाली महिलाओं को हल या कुम्हार का चाक छूने की अनुमति नहीं थी। इसी प्रकार बंगाल में अपने मासिक धर्म के समय महिलाएँ पान के बागान में प्रवेश नहीं कर सकती थीं।
(2) दस्तकारी के कामों में महिलाओं का योगदान- सूत कातने वर्तन बनाने के लिए मिट्टी को साफ करने और गूंथने, कपड़ों पर कढ़ाई जैसे दस्तकारी के कार्य महिलाओं के श्रम पर निर्भर थे।
(3) महत्त्वपूर्ण संसाधन के रूप में महिलाएं श्रम प्रधान समाज में बच्चे उत्पन्न करने की अपनी योग्यता के कारण महिलाओं को महत्त्वपूर्ण संसाधन के रूप में देखा
जाता था।
समाज में महिलाओं की स्थिति-
(1) विवाहित महिलाओं की कमी तत्कालीन युग में विवाहित महिलाओं की कमी थी क्योंकि कुपोषण, बार-बार माँ बनने और प्रसव के समय मृत्यु हो जाने के कारण महिलाओं में मृत्यु दर बहुत अधिक थी इससे किसान और दस्तकार समाज में ऐसे सामाजिक रीति- रिवाज उत्पन्न हुए, जो अभिजात वर्ग के लोगों से बहुत अलग थे। कई ग्रामीण सम्प्रदायों में विवाह के लिए ‘दुल्हन की कीमत अदा करनी पड़ती थी, न कि दहेज की। तलाकशुदा महिलाएँ और विधवाएँ दोनों ही कानूनी रूप से विवाह कर सकती थीं।
(2) महिलाओं पर नियन्त्रण रखना प्रचलित रिवाज के अनुसार घर का मुखिया पुरुष होता था। इस प्रकार महिला पर परिवार और समुदाय के पुरुषों का पूर्ण नियन्त्रण बना रहता था दूसरे पुरुषों के साथ अवैध सम्बन्ध रखने के शक पर ही महिलाओं को भयानक दंड दिए जाते थे।
(3) महिलाओं द्वारा अपने पतियों की बेवफाई का विरोध-राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र आदि पश्चिमी भारत के प्रदेशों से प्राप्त दस्तावेजों में ऐसे प्रार्थना-पत्र मिले हैं, जो महिलाओं ने न्याय और मुआवजे की आशा से ग्राम पंचायतों को भेजे थे। इनमें पत्नियाँ अपने पतियों की बेवफाई का विरोध करती हुई दिखाई देती हैं या फिर गृहस्थी के पुरुष पर पत्नी और बच्चों की अवहेलना करने का आरोप लगाती हुई नजर आती हैं।
(4) महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति का अधिकार- भूमिहर भद्रजनों में महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त था।
प्रश्न 6.
मुगलकाल में सिंचाई, कृषि तकनीक व फसलों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सिंचाई- भारत के किसानों की पारिश्रमिक प्रवृत्ति और कृषि से प्राप्त उनकी गतिशीलता, कृषि योग्य भूमि व श्रम की उपलब्धता के कारण कृषि का निरन्तर विस्तार हुआ खाद्यान्न फसलों, जैसे गेहूं, चावल, ज्वार आदि की खेती प्रचुरता के साथ की जाती थी। कृषि मुख्य रूप से मानसून पर आधारित थी: अधिक वर्षा वाले इलाकों में धान की खेती एवं कम वर्षा वाले इलाकों में गेहूं व बाजरे आदि की खेती की जाती थी कुछ फसलें ऐसी थीं, जिनके लिए अधिक पानी की आवश्यकता पड़ती थी।
ऐसी फसलों के लिए सिंचाई के कृत्रिम साधन विकसित करने पड़े। सिंचाई के कृत्रिम उपायों के विकास में युगल शासकों ने व्यापक रुचि ली। किसानों को व्यक्तिगत रूप से कुएँ तालाब, बाँध आदि बनाने के लिए राज्य से सहायता दी गई। कई-कई नहरों व नालों का निर्माण राज्य द्वारा करवाया गया।
शाहजहाँ के शासन काल में पुरानी नहरों की मरम्मत करवाई गई, जैसेकि पंजाब की शाह नहर कृषि तकनीकें खेती में मानवीय श्रम को कम करने के लिए किसानों ने पशुबल पर आधारित तकनीकों में नए सुधार किए। पहले जुताई के लिए लकड़ी के फाल वाले हल्के हल का प्रयोग किया जाता था।
लकड़ी के फाल वाले हल जमीन की गहरी जुताई कर सकने में सक्षम नहीं थे इसलिए किसानों ने नुकीली धार वाले लोहे के फाल का प्रयोग करना प्रारम्भ कर दिया लोहे की फाल लगा हल आसानी से गहरी जुताई कर सकता था और हल खींचने वाले पशुओं पर जोर भी कम पड़ता था। मिट्टी की गुड़ाई और निराई के लिए लोहे के पतले धार वाले यन्त्र का प्रयोग किया जाने लगा। बीजों की बुआई के लिए बरमे का प्रयोग किया जाता था, जो बैलों द्वारा खींचा जाता था। हाथ से छिड़क कर भी बीज बोए जाते थे।
भरपूर फसलें मौसम के चक्रों पर आधारित स्त्री और खरीफ की फसलें मुख्य थीं खरीफ की फसल पतझड़ में और रबी की फसल वसंत में ली जाती थी। जहाँ पर सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था होती थी, उन क्षेत्रों में तीन फसलें ली जाती थीं। मुख्यतया खाद्यान्न फसलों की खेती पर अधिक जोर दिया जाता था परन्तु कुछ नकदी फसलें भी उगाई जाती थी, जिन्हें ‘जिन्स-ए-कामिल’ म्यानि सर्वोत्तम फसलें कहा जाता था, जैसे- गन्ना, कपास, सरसों, नील आदि ।
प्रश्न 7.
आइन-ए-अकबरी’ मुगलकालीन
शासन व्यवस्था की जानकारी का एक महत्त्वपूर्ण स्त्रोत है।” विवेचना कीजिए।
अथवा
‘आइन-ए-अकबरी’ पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
अथवा
‘आइन-ए-अकबरी’ के ऐतिहासिक महत्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अबुल फजल की ‘आइन-ए-अकबरी’
(1) आइन-ए-अकबरी’ का संक्षिप्त परिचय- मुगल सम्राट अकबर के आदेश पर उसके दरबारी इतिहासकार अबुल फजल ने ‘आइन-ए-अकबरी’ की रचना की थी। 1598 ई. में पाँच संशोधनों के बाद, इस ग्रन्थ को पूरा किया गया। ‘आइन’ इतिहास लेखन की एक ऐसी विशाल परियोजना का भाग थी, जिसकी पहल अकबर ने की थी। ‘आइन” अक्रबरनामा’ की तीसरी जिल्द थी।
(2) ‘आइन’ की विषय-वस्तु’ आइन’ में निम्नलिखित विषयों पर विस्तार से चर्चा की गई है-
- दरबार, प्रशासन और सेना का संगठन
- राजस्व के स्रोत और अकबर के साम्राज्य के प्रान्तों का भूगोल ।
- लोगों के साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक रिवाज।
- अकबर की सरकार के समस्त विभागों एवं प्रान्तों (सूर्वो) के बारे में विस्तार से जानकारी देने के अतिरिक्त, ‘आइन’ इन सूबों के बारे में जटिल और आँकड़ेबद्ध सूचनाएँ बड़ी बारीकी से देती है।
(3) महत्त्व इन सूचनाओं को इकट्ठा करके, उन्हें ‘क्रमबद्ध तरीके से संकलित करना एक महत्त्वपूर्ण शाही प्रक्रिया थी। इसने सम्राट को साम्राज्य के समस्त प्रदेशों में प्रचलित रिवाजें और व्यवसायों की जानकारी दी। इस प्रकार हमारे लिए’ आइन’ अकबर के शासनकाल से सम्बन्धित मुगल साम्राज्य के बारे में सूचनाओं की खान है।
(4) आइन’ के दफ्तर (भाग) आइन पांच भागों (दफ्तरों) का संकलन है। इसके पहले तीन भाग प्रशासन का विवरण देते हैं।
(i) मंजिल आबादी ‘मंजिल आबादी’ के नाम से पहला ग्रन्थ शाही घर-परिवार और उसके रख-रखाव से सम्बन्ध रखता है।
(ii) सिपह- आबादी- दूसरा भाग ‘सिपह आबादी’ सैनिक व नागरिक प्रशासन और नौकरों की व्यवस्था के बारे में है। इस भाग में शाही अधिकारियों (मनसबदारों), विद्वानों, कवियों और कलाकारों की संक्षिप्त जीवनियाँ सम्मिलित हैं।
(iii) मुल्क आबादी- तीसरे भाग ‘मुल्क- आबादी’ में साम्राज्य व प्रान्तों के वित्तीय पहलुओं तथा राजस्व की दरों के आँकड़ों की विस्तृत जानकारी दी गई है। इसके बाद ‘बारह प्रान्तों का वर्णन’ दिया गया है। इस खण्ड में सांख्यिकी सूचनाएँ विस्तार से दी गई हैं। इसमें सूबों (प्रान्तों) और उनकी समस्त प्रशासनिक तथा वित्तीय इकाइयों (सरकार, परगना और महल) के भौगोलिक, स्थलाकृतिक और आर्थिक रेखाचित्र भी सम्मिलित हैं। इसी खण्ड में प्रत्येक प्रान्त और उसकी अलग-अलग इकाइयों की कुल मापी गई जमीन और निर्धारित राजस्व (जमा) की जानकारी भी दी गई है।
‘सरकार’ सम्बन्धी जानकारी-
सूबा स्तर की विस्तृत जानकारी देने के बाद, ‘आइन’ हमें सूबों के नीचे की इकाई ‘सरकारों’ के बारे में विस्तृत जानकारी देती है। ये सूचनाएँ तालिकाबद्ध तरीके से दी गई हैं। हर तालिका में आठ खाने हैं जो हमें निम्नलिखित सूचनाएं देते हैं-
परगनात / महल
(ii) किला
(iii) अराजी और जमीन-ए- पाईंमूद (मापे गए इलाके)
(iv) नकदी (नकद निर्धारित राजस्व)
(v) सुयूगल (दान में दिया गया राजस्व अनुदान)
(vi) जमींदार
सातवें तथा आठवें खानों में जमींदारों की जातियों और उनके घुड़सवार, पैदल सैनिक (प्यादा) व हाथी (फ्री) सहित उनकी सेना की जानकारी दी गई है। ‘मुल्क- आबादी’ नामक खण्ड उत्तर भारत के कृषि-समाज का विस्तृत, आकर्षक और जटिल चित्र प्रस्तुत करता है।
(iv) और
(v) भाग-ये भाग भारतवासियों के धार्मिक, साहित्यिक तथा सांस्कृतिक रीति-रिवाजों से सम्बन्ध रखते हैं।
प्रश्न 8.
आइन-ए-अकबरी के महत्त्व एवं सीमाओं की विवेचना कीजिए।
अथवा
महत्व की विवेचना ‘आइन-ए-अकबरी’ के कीजिए और इसकी त्रुटियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘आइन-ए-अकबरी’ का महत्त्व एवं त्रुटियाँ (सीमाएँ ) यद्यपि ‘आइन-ए-अकबरी’ को मुगल सम्राट अकबर के शासन की सुविधा के लिए आधिकारिक तौर पर विस्तृत सूचनाएँ संकलित करने के लिए प्रायोजित किया गया था, मा फिर भी यह ग्रन्थ आधिकारिक दस्तावेजों की नकल नहीं है। अबुलफजल की ग्रन्थ लेखन में बड़ी रुचि थी इसी कारण उसने इसकी पांडुलिपि को पाँच बार संशोधित किया था।
त्रुटियाँ इतिहासकारों के अनुसार ‘आइन’ की प्रमुख त्रुटियाँ (सीमाएँ ) निम्नलिखित हैं-
(1) जोड़ करने में गलतियाँ जोड़ करने में कई गलतियाँ पाई गई हैं। ऐसा माना जाता है कि या तो ये अंकगणित की छोटी-मोटी चूक है अथवा फिर नकल उतारने के दौरान अबुल फजल के सहयोगियों की भूल।
(2) संख्यात्मक आँकड़ों में विषमताएँ आइन’ के संख्यात्मक आँकड़ों में विषमताएँ हैं सभी सूबों (प्रान्तों) से आँकड़े एक ही रूप में एकत्रित नहीं किए गए हैं।
(3) कीमतों और मजदूरी से सम्बन्धित आँकड़ों का विस्तार से वर्णन नहीं करना इसी प्रकार जहाँ सूर्यो से लिए गए राजकोषीय आँकड़े बड़े विस्तार से दिए गए हैं, वहीं उन्हीं प्रदेशों से कीमतों और मजदूरी जैसे इतने ही महत्वपूर्ण आँकड़े इतने विस्तार से साथ नहीं दिए गए हैं।
(4) मूल्यों और मजदूरों की दरों की अपर्याप्त सूची- मूल्यों और मजदूरी की दरों की जो विस्तृत सूची ‘आइन’ में दी भी गई है, वह मुगल साम्राज्य की राजधानी आगरा या उसके आस-पास के प्रदेशों से ली गई है।
निष्कर्ष –
(1) असामान्य एवं अनूठा ग्रन्थ- कुछ त्रुटियों के होते हुए भी, ‘आइन’ अपने समय के लिए एक असामान्य एवं अनूठा दस्तावेज है। मुगल साम्राज्य के गठन और उसकी संरचना की अत्यन्त आकर्षक झलकियाँ दर्शा कर और उसके निवासियों व उत्पादों के सम्बन्ध में सांख्यिकीय आँकड़े देकर, अबुल फसल मध्यकालीन इतिहासकारों से कहीं आगे निकल गए।
(2) भारत के लोगों और उनके व्यवसायों के बारे में विस्तृत जानकारी देना मध्यकालीन भारत में अबुल फसल से पहले के इतिहासकार अधिकतर राजनीतिक घटनाओं के बारे में ही लिखते थे युद्ध-विजय, राजनीतिक प या वंशीय उथल-पुथल से सम्बन्धित विवरण ग्रन्थों में रहते थे। भारत के लोगों और मुगल साम्राज्य के बारे में विस्तृत सूचनाएँ देकर ‘आइन’ ने स्थापित परम्पराओं को पीछे छोड़ दिया और इस प्रकार सत्रहवीं सदी के भारत के अध्ययन के लिए एक संदर्भ बिन्दु बन गया। जहाँ तक कृषि सम्बन्धों का प्रश्न है, ‘आइन’ के सांख्यिकी प्रमाणों के महत्व को चुनौती नहीं दी जा सकती।
प्रश्न 9.
मुगलों की भू-राजस्व प्रणाली की विवेचना कीजिए।
अथवा
अकबर की भू-राजस्व व्यवस्था का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
मुगलों अथवा अकबर की भू-राजस्व व्यवस्था मुगलों अथवा अकबर की भू-राजस्व व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है
(1) भू-राजस्व – मुगल साम्राज्य की आय का प्रमुख साधन-भू-राजस्व मुगल साम्राज्य की आय का प्रमुख साधन था अतः कृषि उत्पादन पर नियंत्रण रखने के लिए सम्पूर्ण साम्राज्य में राजस्व आकलन तथा वसूली के लिए एक प्रशासनिक तन्त्र की स्थापना की गई।
(2) भू-राजस्व के सम्बन्ध में सूचनाएँ एकत्रित करना भू-राजस्व प्रबन्ध के अन्तर्गत दो चरण थे-
(1) कर निर्धारण तथा
(2) वास्तविक वसूली जमा निर्धारित रकम थी तथा हासिल वास्तविक वसूली गई रकम राजस्व निर्धारित करते समय राज्य अपना हिस्सा अधिक से अधिक रखने का प्रयास करता था, परन्तु कभी-कभी वास्तव में इतनी वसूली कर पाना सम्भव नहीं हो पाता था।
(3) भूमि की पैमाइश अकबर ने जुती हुई जमीन तथा खेती योग्य भूमि दोनों की पैमाइश करवाई।
(4) भूमि का वर्गीकरण- कृषि योग्य भूमि को निम्नलिखित चार वर्गों में बांटा गया-
- पोलज पोलज भूमि सबसे उत्तम भूमि थी जिस पर प्रत्येक वर्ष खेती होती थी।
- परीती इस भूमि पर भी वर्ष भर खेती होती थी, परन्तु उसे पुनः उर्वरा शक्ति प्रदान करने के लिए एक अथवा दो वर्ष के लिए खाली छोड़ दिया जाता था।
- चचर ऐसी भूमि जिस पर तीन वर्ष या चार वर्ष खेती नहीं की जाती थी, चचर भूमि कहलाती थी।
- बंजर इस भूमि पर पाँच अथवा इससे भी अधिक वर्षों तक खेती नहीं की जाती थी।
(5) भूमि कर निर्धारण पोलज तथा परौती भूमि को तीन श्रेणियों में बाँटा गया था
(1) अच्छी
(2) मध्यम
(3) खराब प्रत्येक भूमि की औसत पैदावार का पता लगाया जाता था और इसका तीसरा भाग औसत पैदावार माना जाता था। इस औसत पैदावार का एक तिहाई हिस्सा भूमि-कर के रूप में लिया जाता था।
(6) भूमि कर व्यवस्था की अन्य प्रणालियाँ- अकबर ने आदेश दिया कि भूमि कर केवल नकदी के रूप में नहीं, बल्कि फसलों के रूप में भी वसूल किया जाए। इसके लिए निम्नलिखित प्रणालियाँ अपनाई गई
- कणकुत प्रणाली- इसके अनुसार खड़ी फसल के अनुमान के आधार पर सरकारी लगान निश्चित किया जात था और फसल कटने पर सरकार अपना भाग ले लेती थी।
- बटाई (भाओली) प्रणाली- इसमें फसल काट कर जमा कर लेते थे और फिर सभी पक्षों की उपस्थिति में व सहमति से बंटवारा करते थे।
- खेत बटाई- इसमें बीज बोने के बाद खेत बाँट लिए जाते थे।
- लाँग बटाई- इसमें फसल काटने के बाद उसके ढेर बना लिए जाते थे और फिर उसे आपस में बाँट लेते थे।
(7) अकबर के बाद मुगलों की भू-राजस्व व्यवस्था-अकबर के बाद के मुगल सम्राटों के शासन- काल में भी भूमि की नपाई के प्रयास जारी रहे। 1665 में औरंगजेब ने अपने राजस्व अधिकारियों को आदेश दिया कि प्रत्येक गाँव में खेतिहरों की संख्या का वार्षिक हिसाब रखा जाए। परन्तु इसके बावजूद सभी प्रदेशों की नपाई सफलतापूर्वक नहीं हुई।
प्रश्न 10.
मुगलकाल में भू-राजस्व निर्धारण की कौनसी प्रणालियाँ प्रचलित थीं?
उत्तर:
मुगलकाल के भू-राजस्व निर्धारण की प्रणालियाँ अकबर ने राजस्व अधिकारियों को आदेश दिया था कि वे लगान नकदी में लेने की आदत न डालें, बल्कि फसल भी लेने के लिए तैयार रहें। अतः अकबर के शासनकाल में भूमि कर निर्धारण के लिए निम्नलिखित प्रणालियाँ अपनाई गई-
(1) कणकुत प्रणाली हिन्दी भाषा में ‘कण’ का अर्थ है-‘ अनाज’ और ‘कुल’ का अर्थ है-‘ अनुमान’ इसके अन्तर्गत फसल को तीन अलग-अलग पुलिन्दों में काटा जाता था
- अच्छा
- मध्यम
- खराब इस प्रणाली के अनुसार खड़ी फसल के अनुमान के आधार पर सरकारी लगान निश्चित किया जाता था और फसल कटने पर सरकार अपना भाग लेती थी। प्रायः अनुमान से किया गया जमीन का आकलन भी पर्याप्त रूप से सही परिणाम देता था।
(2) बटाई या भाओली इस प्रणाली के अन्तर्गत फसल काटकर जमा कर लेते थे और फिर सभी पक्षों की उपस्थिति में व आपसी सहमति से बँटवारा कर लेते थे। इसमें फसल का कुछ भाग सरकार द्वारा से लिया जाता था। परन्तु इसमें कई बुद्धिमान निरीक्षकों की आवश्यकता पढ़ती थी वरना दुष्ट बुद्धि मक्कार और धोखेबाज लोग बेइमानी करते थे तथा किसानों को धोखा देते थे।
(3) खेत बढाई इसमें खेत में बीज बो दिए जाते थे और बीज बोने के बाद खेत बाँट लेते थे। जिस प्रकार की फसल बोई जाती थी, उसी के अनुसार लगान निर्धारित होता था।
(4) लॉंग बटाई इसमें फसल काटने के बाद उसके देर बना लिए जाते थे और फिर उन्हें आपस में बाँट लेते थे प्रत्येक पक्ष फसल का अपना भाग लेकर घर ले जाता था और उससे मुनाफा कमाता था।
प्रश्न 11.
भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी में चाँदी के प्रवाह का वर्णन कीजिए। भारत में चाँदी के प्रवाह के बारे में इटली के यात्री जोवान्नी कारेरी ने क्या वर्णन किया है?
उत्तर:
भारत में सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी में चाँदी का प्रवाह सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी में भारत में व्यापार की बहुत अधिक उन्नति हुई खोजी यात्राओं से और ‘नई दुनिया’ की खोज से यूरोप के साथ भारत के व्यापार में अत्यधिक विस्तार हुआ। इसके परिणामस्वरूप भारत के समुद्र पार व्यापार की महत्त्वपूर्ण उन्नति हुई तथा कई नई वस्तुओं का व्यापार भी शुरू हो गया। निरन्तर बढ़ते व्यापार के साथ भारत से निर्यात होने वाली वस्तुओं का भुगतान करने के लिए एशिया में भारी मात्रा में चाँदी का आगमन हुआ। इस चाँदी का एक बड़ा हिस्सा भारत पहुँचा। यह स्थिति भारत के लिए लाभप्रद थी क्योंकि यहाँ चाँदी के प्राकृतिक संसाधन नहीं थे। परिणामस्वरूप, सोलहवीं से अठारहवीं सदी के बीच भारत में धातु मुद्रा – विशेषकर चांदी के रुपयों की प्राप्ति में अच्छी स्थिरता बनी रही। इसके दो लाभ हुए-
(1) अर्थव्यवस्था में मुद्रा- संचार तथा सिक्कों की ढलाई में अभूतपूर्व विस्तार हुआ तथा –
(2) मुगल राज्य को नकदी कर वसूलने में आसानी हुई।
इटली के यात्री जोवान्नी कारेरी का वृत्तांत-
लगभग 1690 ई. में इटली का यात्री जोवान्नी कारेरी भारत से होकर गुजरा था वह यहाँ चाँदी की प्रचुरता देखकर आश्चर्यचकित हो गया। उसने अपने यात्रा वृत्तांत में लिखा कि मुगल साम्राज्य में चाँदी भारी मात्रा में समस्त विश्व में से होकर भारत पहुँचती थी। उसने लिखा है कि समस्त है संसार में विचरण करने वाला समस्त सोना-चाँदी अन्ततः भारत पहुँच जाता है। इसका बहुत बड़ा भाग अमेरिका से आता है और यूरोप के कई राज्यों से होते हुए, इसका कुछ भाग कई प्रकार की वस्तुओं के लिए तुर्की में जाता है और थोड़ा-सा भाग रेशम के लिए फारस पहुँचता है। तुर्की लोग कॉफी से अलग नहीं रह सकते और न ही फारस अरविया तथा तुर्की के लोग भारत की वस्तुओं के बिना रह सकते हैं।
चे मुद्रा की विशाल मात्रा मोचा भेजते हैं। इसी प्रकार वे ये वस्तुएँ बसरा भेजते हैं। बाद में यह समस्त सम्पत्ति जहाजों से भारत भेज दी जाती है भारतीय जहाजों के अतिरिक्त जो डच, अंग्रेजी और पुर्तगाली जहाज प्रतिवर्ष भारत की वस्तुएँ लेकर पेगू, स्याम, श्रीलंका, मालद्वीप, मोजाम्बीक और अन्य स्थानों पर ले जाते हैं, इन्हीं जहाजों को निश्चित तौर पर विपुल सोना-चाँदी इन देशों से लेकर भारत पहुँचना पड़ता है। वह सब कुछ, जो डच लोग जापान की खानों से प्राप्त करते हैं अन्ततः भारत चला जाता है। यहाँ से यूरोप को जाने वाली समस्त वस्तुएँ चाहे वे फ्रांस जाएँ या इंग्लैण्ड या पुर्तगाल, सभी नकद में खरीदी जाती हैं, जो नकद भारत में रह जाता है।
प्रश्न 12.
उन स्त्रोतों का उल्लेख कीजिए जिनका प्रयोग अबुल फजल ने अपने ग्रन्थ ‘आइन-ए-अकबरी’ को पूरा करने के लिए किया।
उत्तर:
अबुल फजल द्वारा ‘अकबरनामा’ को पूरा करने के लिए प्रयुक्त किए गए स्त्रोत
(1) दस्तावेजों तथा प्रमाणों को एकत्रित करना- मुगल सम्राट अकबर ने अबुल फसल को आदेश दिया था कि वह साम्राज्य की शानदार घटनाओं और राज्य क्षेत्र अधीन करने वाली उनकी विजयों का ईमानदारी से वर्णन करे। अबुल फसल ने सम्राट के आदेश का पालन करते हुए अनेक दस्तावेज तथा प्रमाण इकट्ठे किये और राज्य के कर्मचारियों तथा शाही परिवार के सदस्यों से सूचनाएँ माँगीं।
(2) लोगों के विवरणों को नोट करना अबुल फसल ने सच बोलने वाले बुद्धिमान बुजुर्गों और तीव्र बुद्धिवाले, सत्यकर्मी जवानों दोनों की जाँच-पड़ताल की और उनके विवरणों को लिखित रूप में नोट किया।
(3) पुराने कर्मचारियों द्वारा लिखित संस्मरणों का अवलोकन करना- सूबों (प्रान्तों) को शाही आदेश जारी किया गया कि पुराने कर्मचारी अपने संस्मरण लिखें और उसे दरबार भेज दें। इसके बाद एक और शाही आदेश जारी किया गया कि जो सामग्री जमा की जाए, उसे सम्राट की उपस्थिति में पड़कर सुनाया जाए और बाद में जो कुछ भी
लिखा जाना हो, उसे उस महान ग्रन्थ में परिशिष्ट के रूप में जोड़ दिया जाए। अबुल फजल को आदेश दिया गया कि वह ऐसे विवरण जो उसी समय परिणति तक न लाए जा सकें, को बाद में नोट करे –
(4) घटनाओं का इतिहासवृत्त प्राप्त करना इस शाही आदेश के बाद अबुल फजल ने ऐसे कच्चे प्रारूप लिखने शुरू किये जिसमें शैली या विन्यास का सौन्दर्य नहीं था। उन्होंने इलाही संवत के उन्नीसवें वर्ष से जब बादशाह ने दस्तावेज कार्यालय स्थापित किया था, घटनाओं का इतिहासवृत्त प्राप्त किया और उसके पृष्ठों से कई मामलों का वृत्तान्त प्राप्त किया। उन सभी आदेशों की मूल प्रति वा नकल प्राप्त की गई, जो राज्याभिषेक से लेकर आज तक सूबों को जारी किए गए थे। अबुल फसल ने उनमें से कई रिपोर्टों को भी शामिल किया, जो साम्राज्य के विभिन्न मामलों या दूसरे देशों में घटी घटनाओं के बारे में थीं और जिन्हें उच्च अधिकारियों और मन्त्रियों ने भेजा था।
(5) कच्चे मसौदे तथा ज्ञानपत्र प्राप्त करना अबुल | फसल ने वे कच्चे मसौदे तथा ज्ञानपत्र भी प्राप्त किये जिन्हें जानकार और दूरदर्शी लोगों ने लिखा था।
प्रश्न 13.
मुगल काल में कृषि कीजिए।
की दशा का वर्णन
उत्तर:
मुगल काल में कृषि की दशा मुगल काल में कृषि की दशा का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-
(1) फसलें मुगलकाल में भी कृषि भारतीयों के जीवन निर्वाह करने का प्रमुख साधन था किसान फसल की पैदावार से सम्बन्धित विविध प्रकार के कार्य करते थे, जैसे कि जमीन की जुताई, बीज बोना तथा फसल पकने पर उसकी कटाई वे उन वस्तुओं के उत्पादन में भी सम्मिलित होते थे जो कृषि आधारित थीं, जैसे कि शक्कर, तेल इत्यादि।
(2) फसलों की भरमार मौसम के दो मुख्य चक्रों के दौरान खेती की जाती थी एक खरीफ (पतझड़ में) तथा दूसरी रबी (बसन्त में)। अधिकांश स्थानों पर वर्ष में कम से कम दो फसलें होती थीं। जहाँ वर्षा या सिंचाई के अन्य साधन हर समय उपलब्ध थे वहाँ तो वर्ष में तीन फसलें भी उगाई जाती थीं। दैनिक आहार की खेती पर अधिक जोर दिया जाता था। कपास और गन्ना जैसी फसलें श्रेष्ठ ‘जिन्स- ए-कामिल थीं। मध्यभारत तथा दक्कनी पठार में कपास उगाई जाती थी। बंगाल गन्ने के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था। तिलहन (सरसों) और दलहन भी नकदी फसलों में गिनी जाती थीं। मक्का भारत में अफ्रीका और स्पेन से पहुँचा टमाटर, आलू व मिर्च जैसी सब्जियाँ नई दुनिया से लाई गई।
(3) सिंचाई के साधन आज की भाँति मानसून मुगल काल में भी भारतीय कृषि की रीढ़ था परन्तु कुछ ऐसी फसलें भी थीं, जिनके लिए अतिरिक्त पानी की आवश्यकता थी। ‘बाबरनामा’ से ज्ञात होता है कि छोटे पेड़ों तक रहट एवं बाल्टियों के द्वारा पानी पहुँचाया जाता था। इसके अतिरिक्त सिंचाई तालाबों, कुओं, नहरों एवं बाँधों के द्वारा भी होती थी। सिंचाई कार्यों को राज्य की ओर से प्रोत्साहन दिया जाता था।
(4) किसानों द्वारा तकनीकों का प्रयोग किसान प्राय: पशुबल पर आधारित तकनीकों का प्रयोग करते थे। वे लकड़ी के उस हल्के हल का प्रयोग करते थे जिसको एक छोर पर लोहे की नुकीली धार या फाल लगाकर आसानी से बनाया जा सकता था। ऐसे हल मिट्टी को बहुत गहरे नहीं खोदते थे जिसके कारण तेज गर्मी के महीनों में नमी बची रहती थी। बैलों के जोड़ों के सहारे खींचे जाने वाले बरमे का प्रयोग बीज बोने के लिए किया जाता था। मिट्टी की गुड़ाई और साथ-साथ निराई के लिए लकड़ी के मूठ वाले लोहे के पतले धार काम में लाए जाते थे।
(5) फलों के बाग मुगल सम्राटों ने फलों के अनेक बाग लगवाये।
(6) कृषि की दशा को सुधारने के लिए मुगल- सम्राटों के प्रयास मुगल सम्राटों ने किसानों को अच्छी फसलें गन्ना, कपास, तिलहन, दलहन आदि का उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित किया।
प्रश्न 14.
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में किसानों की दशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में किसानों की दशा सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में किसानों की दशा का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-
(1) किसानों के प्रकार-सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में भारतीय फारसी लोत ‘किसान’ के लिए चार शब्दों का प्रयोग करते थे-
(1) रैयत
(2) मुजरियान
(3) किसान और
(4) आसामी सत्रहवीं शताब्दी के स्रोत निम्नलिखित दो प्रकार के किसानों का उल्लेख करते हैं-
(i) खुद काश्त एवं
(ii) पाहि काश्त
(i) खुद काश्तखुद काश्त किसान वे थे जो उन्हीं गाँवों में रहते थे जिनमें उनकी जमीन थी।
(ii) पाहि काश्त पाहि कारण वे खेतिहर थे जो दूसरे गाँवों से ठेके पर खेती करने आते थे लोग अपनी इच्छा से भी पाहि-कारत बनते थे। उदाहरणार्थ-
(1) यदि करों की शर्तें किसी दूसरे गाँव में अधिक अच्छी मिलती थीं तथा
(2) अकाल या भुखमरी के बाद आर्थिक परेशानी के कारण।
(2) किसानों की समृद्धि का मापदंड उत्तर भारत में एक औसत किसान के पास सम्भवतः एक जोड़ी बैल तथा दो हल से अधिक कुछ नहीं होता था अधिकतर किसानों के पास इससे भी कम था। गुजरात में जिन किसानों के पास 6 एकड़ के लगभग जमीन थी, वे समृद्ध माने जाते थे। दूसरी ओर बंगाल में एक औसत किसान की जमीन की ऊपरी सीमा 5 एकड़ भी वहीं 10 एकड़ जमीन वाले आसामी को धनी समझा जाता था।
(3) व्यक्तिगत मिल्कियत खखेती व्यक्तिगत मिल्कियत के सिद्धान्त पर आधारित थी। किसानों की जमीन अन्य सम्पति मालिकों की भाँति खरीदी और बेची जाती थी। उन्नीसवीं सदी के दिल्ली-आगरा के प्रदेश में किसानों की मिल्कियत का यह विवरण सत्रहवीं सदी पर भी उतना ही लागू होता है- “हल जोतने वाले खेतिहर किसान हर जमीन की सीमाओं पर मिट्टी, ईंट और काँटों से पहचान के लिए निशान लगाते हैं और जमीन के ऐसे हजारों टुकड़े किसी भी गाँव में देखे जा सकते हैं।”