Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर
Jharkhand Board Class 12 History एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर In-text Questions and Answers
पृष्ठ संख्या 171
प्रश्न 1.
मैकेन्जी और उनके देशज सूचनादाताओं को चित्रकार ने किस प्रकार चित्रित किया है? उनके तथा उनके सूचनादाताओं के विषय में दर्शकों पर किस प्रकार के विचार डालने का प्रयास किया गया है?
उत्तर:
दिए गए चित्र में कॉलिन मैकेन्जी तथा उनके सहायकों को दर्शाया गया है। यह चित्र, चित्रकार थॉमस हिकी द्वारा बनाए गए तैलचित्र का किसी अज्ञात चित्रकार द्वारा बनाया गया प्रतिरूप है। इस चित्र में मैकेन्जी को ब्रिटिश पहनावे में दिखाया गया है। मैकेन्जी के बायीं ओर दूरबीन थामे उनका चपरासी स्निाजी और दायीं ओर उनके ब्राह्मण सहायक हैं। ब्राह्मण सहायकों में एक जैन पंडित तथा दूसरा तेलुगू ब्राह्मण है। इस चित्र द्वारा दर्शकों पर यह प्रभाव डालने की कोशिश की गई है कि मैकेन्जी एक अभियन्ता, सर्वेक्षक तथा मानचित्रकार था। स्थानीय लोगों के साथ उसका यह चित्र यह दर्शाता है कि उसने भारतीय इतिहास से सम्बन्धित तथ्यों का सर्वेक्षण करने की कोशिश की है।
पृष्ठ संख्या 173
प्रश्न 2.
आपके विचार में विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय व्यापार को प्रोत्साहित करने के इच्छुक क्यों थे? उनके द्वारा किए गए विनिमयों से किन समूहों को लाभ पहुँचा होगा?
उत्तर:
विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय निम्नलिखित कारणों से व्यापार को प्रोत्साहित करना चाहते थे-
(1) व्यापार से प्राप्त राजस्व राज्य की समृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान देता था।
(2) राजा अपनी सेना के लिए अच्छी नस्ल के शक्तिशाली घोड़े प्राप्त करना चाहता था।
(3) राजा अपने राज्य में घोड़ों, हाथियों, रत्नों, चन्दन, मोती तथा अन्य वस्तुओं का आयात बढ़ाना चाहता था । उपर्युक्त विनिमयों से राज्य, शासक वर्ग, व्यापारी वर्ग, शिल्पी वर्ग, विदेशी व्यापारी वर्ग, समृद्ध जनता आदि को लाभ पहुँचा होगा।
पृष्ठ संख्या 176
प्रश्न 3.
नक्शे (चित्र 7.4) पर बने तीन अंचलों को पहचानिए। मध्य भाग को ध्यान से देखिए क्या आप नदियों से जुड़ती हुई नहरों को देख सकते हैं? आप कितनी किलेबन्द दीवारों को देख सकते हैं? क्या धार्मिक केन्द्र किलेबन्द था?
उत्तर:
उपर्युक्त पृष्ठ पर बने विजयनगर के रेखाचित्र को देखने पर निम्नलिखित तीन अंचल दिखाई देते हैं –
(i) दक्षिण में किलेबन्द केन्द्रीय शाही भाग तथा शाही केन्द्र
(ii) हम्पी तथा पवित्र केन्द्र
(iii) उत्तर-पूर्व में स्थित अनेगंदी
यहाँ नदियाँ तथा उनसे जुड़ी नहरें तथा जलाशय देखे जा सकते हैं। किलेबन्द दीवारें स्पष्ट दिखाई दे रही हैं। धार्मिक केन्द्र किलेबन्द है।
पृष्ठ संख्या 176
प्रश्न 4.
क्या आप आज किसी शहर में ये अभिलक्षण देख सकते हैं? आपके विचार में पेस ने उद्यानों तथा जल स्त्रोतों को विशेष उल्लेख के लिए क्यों चुना?
उत्तर:
प्राचीन वास्तुकला के ऐसे अभिलक्षण नवीन शहरों में नहीं दिखाई देते, परन्तु प्राचीन शहरों में आज भी ऐसे अभिलक्षण शेष हैं नवीन शहरों के स्थापत्य में भी बाग-बगीचों, जलाशयों, पार्कों आदि का पूरा ध्यान रखा जाता है। पेस आजकल की पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित विजयनगर में मौजूद उद्यानों तथा जलस्रोतों को देखकर बहुत ही प्रभावित हुआ इसलिए उसने उद्यानों तथा जलस्रोतों का उल्लेख विशेष रूप से किया।
पृष्ठ संख्या 178
प्रश्न 5.
इन दो (चित्र 7.6 तथा 7.7) प्रवेश द्वारों के बीच समानताओं तथा विभिन्नताओं का वर्णन कीजिए आपके विचार में विजयनगर के शासकों ने इण्डो-इस्लामी स्थापत्य के तत्त्वों को क्यों अपनाया?
उत्तर:
पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ संख्या 178 पर दिए गए चित्र संख्या 76 तथा 77 के प्रवेश द्वारों पर ऊंचे शिखर बनाए गए हैं। परन्तु चित्र 77 में शिखर आयताकार है तथा 7.6 में शिखर गोलाकार है। चूँकि तत्कालीन समय में धीरे-धीरे इण्डो-इस्लामिक स्थापत्यकला का विकास हो रहा था; अतः विजयनगर के शासकों द्वारा भी इस स्थापत्य- कला का प्रयोग मन्दिरों में किया गया।
पृष्ठ संख्या 179
प्रश्न 6.
आपके विचार में ये टुकड़े मूलतः किस प्रकार के बर्तनों का हिस्सा थे?
उत्तर:
चीनी मिट्टी से बने बर्तनों के ये टुकड़े सम्भवतः इस्लामी पच्चीकारी से बने मर्तबानों और अन्य घड़े जैसे बर्तनों का हिस्सा थे।
पृष्ठ संख्या 179
प्रश्न 7.
क्या इस मस्जिद में इण्डो-इस्लामी स्थापत्य के चारित्रिक तत्त्व विद्यमान हैं?
उत्तर:
चित्र को देखकर यह प्रतीत होता है कि इस मस्जिद में इण्डो-इस्लामिक तत्त्व विद्यमान हैं।
पृष्ठ संख्या 180
प्रश्न 8.
क्या आप इन चित्रों (चित्र 7.11 तथा 7.12 ) के विषयों को पहचान सकते हैं?
उत्तर:
इन चित्रों से सम्बन्धित विषय-वस्तु सम्भवतः इस प्रकार है –
(1) मोड़े को चारा खिलाना
(2) ऊँचे चबूतरे पर बैठे योगी के सामने नतमस्तक भक्त
(3) घोड़े की लगाम खींचता हुआ सेवक
(4) मृर्गों का शिकार करते हुए शिकारी
(5) पशुओं को हाँकता हुआ व्यक्ति
(6) एक योगी संत प्रवचन देता हुआ इत्यादि।
पृष्ठ संख्या 181
प्रश्न 9.
चित्र 7.13 तथा 7.15 की तुलना कीजिए तथा उन अभिलक्षणों की सूची बनाइए जो दोनों में हैं, और साथ ही उनकी भी जो इनमें से केवल एक में ही देखे जा सकते हैं। चित्र 7.14 में बनी मेहराब की तुलना चित्र 7.6 में बनी मेहराब से कीजिए कमल महल में नौ मीनारें थीं-बीच में एक ऊँची तथा आठ उसकी भुजाओं के साथ-साथ छायाचित्र तथा खड़े रेखाचित्र में आप कितनी कितनी मीनारें देख पाते हैं? यदि आप कमल महल का फिर से नामकरण करते तो इसे क्या कहते ?
उत्तर:
चित्र 7.13 तथा 7.15 में समान तत्त्व इस प्रकार हैं –
(1) दोनों में समान रूप के मेहराब दिखाई देते हैं।
(2) दोनों में एक समान सीढ़ियाँ दिखाई देती हैं।
(3) दोनों में प्रथम तल की आकृति एकसमान दिखाई देती है।
असमानता चित्र 7.13 में छह मीनारें दिखाई देती हैं। चित्र 7.15 में पाँच मीनारें स्पष्ट दिखाई देती हैं। चित्र सं. 7.14 में बनी मेहराब की तुलना 7.14 चित्र संख्या में मेहराब का सूक्ष्म चित्रण किया गया है, जिससे यह अधिक सुन्दर तथा कलात्मक प्रतीत होता है। चित्र 76 में बनी मेहराब में कलात्मक कार्य स्पष्ट नहीं है। यदि मैं फिर से इस भवन का नामकरण करता तो मैं इतने उत्कृष्ट और सुन्दर भवन के निर्माता के नाम पर इसका नाम कृष्ण महल रखता।
पृष्ठ संख्या 182
प्रश्न 10.
चित्र 7.16 (क) तथा 7.16 (ख) की तुलना चित्र 7.17 से कीजिए प्रत्येक में दिखाई देने वाले अभिलक्षणों की सूची बनाइए क्या आपको लगता है कि ये वास्तव में हाथियों के अस्तबल थे?
उत्तर:
दोनों चित्रों में तुलना के मुख्य बिन्दु निम्नलिखित हैं –
(1) चित्र 7.16 (क) में अस्तबल का सम्पूर्ण क्षेत्र दिखाया गया है।
(2) चित्र 7.16 (ख) में वास्तविक कक्ष अथवा
खाली स्थान का रेखाचित्र बनाया गया है। इन चित्रों में विशालकाय दरवाजों तथा तत्कालीन समय युद्ध में हाथियों की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि यह भवन हाथी- खाना यानी कि हाथियों का अस्तबल रहा हो।
पृष्ठ संख्या 183
प्रश्न 11.
क्या आप नृत्य के दृश्यांशों को पहचान सकती हैं? आपके विचार में हाथियों और घोड़ों को पटलों पर क्यों चित्रित किया गया था?
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्न पाठ्यपुस्तक के चित्र 7.18 से सम्बन्धित है। यहाँ नृत्य के प्रमुख दृश्य इस प्रकार हैं –
(1) नृत्य करते विभिन्न पुरुष
(2) नृत्य करती विभिन्न महिलाएँ
(3) नृत्य-संगीत में विभिन्न वाद्य यन्त्रों का प्रयोग जैसे मृदंग, ढोल, तुरही आदि। इस चित्र में हाथियों तथा घोड़ों को पृथक् पृथक् पटलों पर इसलिए दिखाया गया है क्योंकि यहाँ पाँचों खानों को अलग-अलग दिखाया गया है।
पृष्ठ संख्या 183 चर्चा कीजिए
प्रश्न 12.
नायकों ने विजयनगर के शासकों की भवन निर्माण परम्पराओं को जारी क्यों रखा?
उत्तर:
विजयनगर शहर पर आक्रमण के पश्चात् विजयनगर की कई संरचनाएँ विनष्ट हो गई थीं, परन्तु नायकों ने महलनुमा संरचनाओं के निर्माण की परम्परा को जारी रखा। इनमें से कई भवन आज भी मौजूद हैं। विजयनगर राज्य के सेना प्रमुख नायक कहलाते थे। वे भी राजाओं की भाँति साधन-सम्पन्न, समृद्ध तथा शक्तिशाली थे।
उन्होंने भी अपनी शक्ति प्रतिष्ठा तथा गौरव का प्रदर्शन करने के लिए अनेक भव्य भवनों का निर्माण करवाया और विजयनगर के शासकों की भवन निर्माण परम्परा को जारी रखा। वे दुर्गों तथा मन्दिरों आदि का निर्माण कर जनसाधारण की लोकप्रियता को प्राप्त करने के लिए भी लालायित रहते थे इसलिए उन्होंने अनेक दुर्गों तथा मन्दिरों का निर्माण करवाया। मदुराई के नायकों द्वारा बनवाया गया एक गोपुरम उल्लेखनीय है।
पृष्ठ संख्या 185
प्रश्न 13.
नक्शे में दिए गए स्केल का प्रयोग कर मुख्य गोपुरम् से केन्द्रीय देवालय की दूरी नापिए जलाशय से देवालय तक जाने के लिए सबसे आसान मार्ग कौनसा रहा होगा?
उत्तर:
(1) पूर्वी प्रवेश द्वार अथवा गोपुरम् से मुख्य देवालय की दूरी लगभग 450 मीटर है।
(2) जलाशय से देवालय तक जाने का सबसे आसान मार्ग देवालय का उत्तर-पश्चिमी द्वार है।
पृष्ठ संख्या 186
प्रश्न 14.
स्तम्भ पर आप जो देख रहे हैं, उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर-स्तम्भ को देखने पर इसके दो भाग क्रमश: दायें और बायें भाग दिखाई दे रहे हैं। बायें भाग पर अलंकृत मयूर, हाथ में फरसा लिए हुए एक व्यक्ति, ढोल बजाते हुए तथा नृत्य करते हुए मनुष्य दिखाई दे रहे हैं। दायें भाग पर अलंकृत जानवर सिंह आकृति एवं देवाकृति तथा हाथी की आकृति दिखाई दे रही हैं दायें भाग में अधिक जटिल उत्कीर्णन है।
पृष्ठ संख्या 187
प्रश्न 15.
क्या आपको लगता है कि वास्तव में इस प्रकार के रथ बनाए जाते होंगे ?
उत्तर:
चित्र संख्या 7.24 में विट्ठल मन्दिर में रथ के आकार का एक मन्दिर दर्शाया गया है। ऐसा प्रतीत होता है। कि वास्तव में इस प्रकार के रथ नहीं बनाए जाते थे।
पृष्ठ संख्या 188 चर्चा कीजिए
प्रश्न 16.
आनुष्ठानिक स्थापत्य की पूर्ववर्ती परम्पराओं को विजयनगर के शासकों ने कैसे और क्यों अपनाया तथा रूपान्तरित किया?
उत्तर:
विजयनगर के शासकों ने पूर्वकालिक परम्पराओं को अपनाया और उनमें नवीनता का समावेश किया और उन्हें रूपान्तरित किया। गोपुरम और मण्डप – अब राजकीय प्रतिकृति मूर्तियाँ मन्दिरों में प्रदर्शित की जाने लगीं और राजा की मन्दिरों की यात्राओं को महत्त्वपूर्ण राजकीय अवसर माना जाने लगा जिन पर साम्राज्य के महत्त्वपूर्ण नायक भी उनके साथ जाते थे अब विशाल गोपुरम का निर्माण किया जाने लगा। गोपुरम अथवा राजकीय प्रवेश द्वार केन्द्रीय देवालयों की मीनारों को बना प्रतीत कराते थे और लम्बी दूरी से ही मन्दिर के होने का संकेत देते थे। अन्य विशिष्ट अभिलक्षणों में मण्डप तथा लम्बे स्तम्भों वाले गलियारे सम्मिलित हैं। ये प्रायः मन्दिर परिसर में स्थित देवस्थलों के चारों ओर बने थे।
विरुपाक्ष मन्दिर इस मन्दिर के सामने बना मण्डप राजा कृष्णदेव राय ने अपने सिंहासनारोहण के उपलक्ष्य में बनवाया था। इसे सूक्ष्मता से उत्कीर्णित स्तम्भों से सजाया गया था। पूर्वी गोपुरम के निर्माण का श्रेय भी कृष्णदेव राय को ही दिया जाता है। इन परिवर्धनों के परिणामस्वरूप केन्द्रीय देवालय पूरे परिसर के एक छोटे भाग तक सीमित रह गया था। मन्दिर के सभागारों का प्रयोग मन्दिर के सभागारों का प्रयोग विविध प्रकार के कार्यों के लिए होता था। इनमें से कुछ ऐसे थे जिनमें देवताओं की मूर्तियाँ, संगीत, नृत्य और नाटकों के विशेष कार्यक्रमों को देखने के लिए रखी जाती थीं अन्य सभागारों का प्रयोग देवी-देवताओं के विवाह के उत्सव पर आनन्द मनाने और कुछ अन्य का प्रयोग देवी-देवताओं को झूला झुलाने के लिए होता था।
विट्ठल मन्दिर यहाँ के प्रमुख देवता विठ्ठल थे जो सामान्यतः महाराष्ट्र में पूजे जाने वाले विष्णु के एक रूप हैं इस देवता की पूजा को कर्नाटक में शुरू करना उन माध्यमों का प्रतीक है जिनसे एक सामाजिक संस्कृति के निर्माण के लिए विजयनगर के शासकों ने अलग-अलग परम्पराओं को आत्मसात किया अन्य मन्दिरों की भाँति, इस मन्दिर में भी कई सभागार तथा रथ के आकार का एक अनूठा मन्दिर भी है। रथ गलियाँ- मन्दिर परिसरों की एक चारित्रिक विशेषता रथ गलियाँ हैं जो मन्दिर के गोपुरम से सीधी रेखा में जाती हैं। इन गलियों का फर्श पत्थर के टुकड़ों से बनाया गया था और इनके दोनों ओर स्तम्भ वाले मण्डप थे जिनमें व्यापारी अपनी दुकानें लगाया करते थे।
पृष्ठ संख्या 189
प्रश्न 17.
अंग्रेजी वर्णमाला का कौनसा अक्षर प्रयोग नहीं किया गया था? मानचित्र में दिए गए पैमाने का प्रयोग करते हुए किसी एक छोटे वर्ग की लम्बाई नापिए उत्तर – यहाँ अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर ‘I’ का प्रयोग नहीं किया गया है। मानचित्र में दिए गए पैमाने का प्रयोग करते हुए वर्ग ‘M’ की लम्बाई 4 किमी. प्राप्त होती है।
पृष्ठ संख्या 189
प्रश्न 18.
इस मानचित्र में कौनसा पैमाना प्रयोग किया गया है ?
उत्तर:
इस मानचित्र में वर्ग पैमाने का प्रयोग किया गया है।
पृष्ठ संख्या 190
प्रश्न 19.
किसी एक मन्दिर को पहचानिए दीवारों, एक केन्द्रीय देवालय तथा मन्दिर तक जाने वाले रास्तों के अवशेषों को खोजिए। मानचित्र पर उन वर्गों को नाम दीजिए जिनमें मन्दिर का नक्शा स्थित है।
उत्तर:
(1) वर्ग H में एक केन्द्रीय मन्दिर स्थित है।
(2) दीवारों, केन्द्रीय देवालय तथा मन्दिर तक जाने वाले मार्ग हेतु चित्र 730 को देखने पर रास्तों के अवशेष परिलक्षित होते हैं।
(3) वर्ग CHJ में एक केन्द्रीय मन्दिर का नक्शा स्थित है।
पृष्ठ संख्या 190
प्रश्न 20.
गोपुरम्, सभागारों, स्तम्भावलियों तथा केन्द्रीय देवालय को पहचानिए बाहरी प्रवेश द्वार से केन्द्रीय देवलय तक पहुँचने के लिए आप किन भागों से होकर गुजरेंगे?
उत्तर:
यह प्रश्न पाठ्यपुस्तक के चित्र 7.30 से सम्बन्धित है। इसमें केंद्रीय देवालय का भाग (A) से, गोपुरम् (H) से तथा (J) (I) (C) से सभागारों को दर्शाया गया है। बाहरी मार्गों से केन्द्रीय देवालय तक पहुँचने हेतु निम्न मार्गों का प्रयोग किया जाएगा.– (H) मार्ग जो उत्तर की ओर बना है। (F) मार्ग जो पूर्व की ओर स्थित है (E) मार्ग पश्चिम की ओर, तथा (G) मार्ग गोपुरम् के सामने है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 100-150 शब्दों में दीजिए –
प्रश्न 1.
पिछली दो शताब्दियों में हम्पी के भग्नावशेषों के अध्ययन में कौन-सी पद्धतियों का प्रयोग किया गया है? आपके अनुसार यह पद्धतियाँ विरुपाक्ष मन्दिर के पुरोहितों द्वारा प्रदान की गई जानकारी का किस प्रकार पूरक रही?
अथवा
हम्पी की खोज की कहानी पर प्रकाश डालिए।
अथवा
हम्पी की खोज कैसे हुई? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
हम्पी के भग्नावशेषों के अध्ययन की पद्धतियाँ –
(1) हम्पी के भग्नावशेष 1800 ई. में एक अभियन्ता तथा पुराविद् कर्नल कॉलिन मैकेन्जी द्वारा प्रकाश में लाए गए थे। कर्नल मैकेन्जी ईस्ट इण्डिया कम्पनी में कार्यरत थे। उन्होंने इस स्थान का पहला सर्वेक्षण मानचित्र तैयार किया। उनकी प्रारम्भिक जानकारियाँ विरुपाक्ष मन्दिर तथा पंपादेवी के पूजास्थल के पुरोहितों की स्मृतियों पर आधारित थीं।
(2) कालान्तर में 1856 ई. से छायाचित्रकारों ने यहाँ के भवनों के चित्र संकलित करने शुरू किये जिससे शोधकर्ता उनका अध्ययन करने में सफल हुए।
(3) 1836 ई. से ही अभिलेखकत्ताओं ने यहाँ और हम्पी के अन्य मन्दिरों से अनेक दर्जन अभिलेखों का संग्रह करना शुरू कर दिया था।
(4) इतिहासकारों ने इन स्रोतों का विदेशी यात्रियों के वृत्तान्तों तथा तेलुगु, कन्नड़, तमिल तथा संस्कृत में लिखे गए साहित्य से मिलान किया ताकि विजयनगर शहर और साम्राज्य के इतिहास का पुनर्निर्माण किया जा सके।
(5) हमारे अनुसार ये पद्धतियाँ विरुपाक्ष मन्दिर के पुरोहितों के द्वारा प्रदान की गई जानकारी की पर्याप्त सीमा तक पूरक सिद्ध हुई।
प्रश्न 2.
विजयनगर की जल आवश्यकताओं को किस प्रकार पूरा किया जाता था?
अथवा
विजयनगर कालीन सिंचाई व्यवस्था की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
(1) विजयनगर की जल आवश्यकताओं की पूर्ति विजयनगर की जल आवश्यकताओं की पूर्ति तुंगभद्रा नदी द्वारा निर्मित एक प्राकृतिक कुंड से होती थी। यह नदी उत्तर-पूर्व दिशा में बहती है। आस-पास का भूदृश्य रमणीय ग्रेनाइट की पहाड़ियों से परिपूर्ण है जो शहर को चारों ओर से घेरे हुए हैं। इन पहाड़ियों से कई जल- धाराएँ आकर नदी में मिलती हैं।
(2) हौजों का निर्माण लगभग सभी जल धाराओं के साथ-साथ बाँध बना कर भिन्न-भिन्न आकारों के हौज बनाए गए थे। चूंकि यह प्रायद्वीप के सबसे शुष्कं क्षेत्रों में से एक था, इसलिए पानी के संचयन और इसे शहर तक ले जाने के लिए व्यापक प्रबन्ध करना आवश्यक था। यहाँ के सबसे महत्त्वपूर्ण जलाशय कमलपुरम का निर्माण पन्द्रहवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में हुआ था। इस हौज के पानी से न केवल आस-पास के खेतों को सींचा जाता था बल्कि इसे एक नहर के माध्यम से ‘राजकीय केन्द्र’ तक भी ले
जाया जाता था।
(3) हिरिया नहर – हिरिया नहर यहाँ की सबसे महत्त्वपूर्ण जल सम्बन्धी संरचना थी। इस नहर में तुंगभद्रा नदी पर बने बांध से पानी लाया जाता था और इसे ‘धार्मिक केन्द्र’ से ‘शहरी केन्द्र’ को अलग करने वाली पाटी की सिंचाई करने में प्रयुक्त किया जाता था।
(4) अन्य जल के स्रोत सामान्य नगर निवासियों के लिए कुएँ, वर्षा के पानी वाले जलाशय तथा मन्दिरों के जलाशय जल के स्रोतों का कार्य करते थे।
प्रश्न 3.
शहर के किलेबन्द क्षेत्र में कृषि क्षेत्र को रखने के आपके विचार में क्या फायदे और नुकसान थे?
उत्तर:
शहर के किलेबन्द क्षेत्र में कृषि क्षेत्र को रखने के फायदे –
(1) इससे शत्रु सेना को खाद्य सामग्री से वंचित करके उसे समर्पण के लिए बाध्य किया जा सकता था।
(2) शत्रु सेना खाद्य सामग्री को क्षति नहीं पहुँचा सकती थी।
(3) कई बार शत्रु की घेराबन्दी कई महीनों और कभी-कभी वर्षों तक जारी रहती थी ऐसी संकटपूर्ण परिस्थितियों से निपटने के लिए शासकों द्वारा किलेबन्द क्षेत्रों के अन्दर ही विशाल अन्नागारों का निर्माण करवाया जाता था।
(4) विजयनगर के शासकों ने किलेबन्द क्षेत्र में पानी पहुँचाने की उत्तम व्यवस्था की थी। इससे खेतों की सिंचाई भली प्रकार से की जा सकती थी। था।
(5) किलेबन्द कृषि क्षेत्र जंगली जानवरों से सुरक्षित शहर के किलेबन्द क्षेत्र में कृषि क्षेत्र को रखने के नुकसान –
(1) यह व्यवस्था बहुत महँगी थी तथा इसकी देखभाल के लिए बड़ी संख्या में कर्मचारियों की आवश्यकता पड़ती थी।
(2) इस व्यवस्था में किसानों को अनेक कठिनाइयों एवं असुविधाओं का सामना करना पड़ता था। शत्रु सेना द्वारा घेरावन्दी होने पर किसानों के लिए बीज, उर्वरक, यन्त्र आदि की व्यवस्था करना अत्यन्त कठिन हो जाता था।
प्रश्न 4.
आपके विचार में महानवमी डिब्बा से सम्बद्ध अनुष्ठानों का क्या महत्त्व था?
अथवा
महानवमी के डिब्बा के अवसर पर आयोजित किन्हीं दो उत्सवों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
महानवमी डिब्बा’ विजयनगर शहर के सबसे ऊंचे स्थानों में से एक पर स्थित एक विशालकाय मंच है। इसका आधार लगभग 11,000 वर्ग फीट तथा ऊँचाई 40 फीट है। साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि इस पर लकड़ी की एक संरचना बनी थी। मंच का आधार उभारदार उत्कीर्णन से परिपूर्ण है। ‘महानवमी डिब्बा’ से जुड़े अनुष्ठान सम्भवतः महानवमी से सम्बद्ध थे, जो उत्तरी भारत में दशहरा, बंगाल में दुर्गा पूजा तथा प्रायद्वीपीय भारत में नवरात्रि अथवा महानवमी के अवसर पर निष्पादित किए जाते थे। इस अवसर पर विजयनगर के शासक अपनी प्रतिष्ठा, शक्ति तथा अधिराज्य का प्रदर्शन करते थे। इस अवसर पर निम्नलिखित अनुष्ठान आयोजित किए जाते थे-
- मूर्ति की पूजा
- राज्य के अश्व की पूजा
- भैंसों तथा अन्य जानवरों की बलि।
इस अवसर के प्रमुख आकर्षक थे-
(1) नृत्य
(2) कुश्ती की प्रतिस्पर्द्धा
(3) साज लगे घोड़ों, हाथियों तथा रथों और सैनिकों की शोभायात्रा
(4) प्रमुख नायकों एवं अधीनस्थ राजाओं द्वारा सम्राट और उसके अतिथियों को दी जाने वाली औपचारिक भेंट इन उत्सवों के गहन सांकेतिक अर्थ थे त्यौहार के अन्तिम दिन राजा अपनी और अपने नायकों की सेना का खुले मैदान में आयोजित भव्य समारोहों में निरीक्षण करता था। इस अवसर पर नायक राजा के लिए बड़ी मात्रा में भेंट तथा निश्चित कर भी लाते थे।
प्रश्न 5.
चित्र 7.33 विरुपाक्ष मन्दिर के एक अन्य
स्तम्भ का रेखाचित्र है। क्या आप कोई पुष्प विषयक रूपांकन देखते हैं? किन जानवरों को दिखाया गया है? आपके विचार में उन्हें क्यों चित्रित किया गया है? मानव आकृतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) रेखाचित्र में अनेक फूलदार पेड़-पौधों तथा पशु-पक्षियों का चित्रण किया गया है पशु-पक्षियों में मोर, बत्तख, घोड़ा आदि सम्मिलित हैं। उस समय मन्दिर विभिन्न प्रकार की धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के केन्द्र होते थे। पेड़-पौधों तथा पशु-पक्षियों का चित्रण सम्भवत: प्रवेशद्वार को सुन्दर और आकर्षक बनाने तथा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने हेतु किया गया था। इससे मन्दिर का निर्माण करने वाले शासकों की प्रकृति के प्रति रुचि, कलानुराग तथा धार्मिक निष्ठा का बोध होता है।
(2) विभिन्न पशु-पक्षी, देवी-देवताओं के साथ वाहन के रूप में भी जुड़े हुए थे। इसलिए उन्हें देवी-देवताओं का वाहन मान कर पूजा जाता था।
(3) रेखाचित्र में मानव आकृतियों का भी चित्रण किया गया है। मानव आकृतियों में देवी देवता तथा संत पुरुष सम्मिलित हैं। स्तम्भ के ऊपरी भाग में एक स्त्री बैठी हुई है जिसके हाथ में फूल हैं। एक देवता के सिर पर घंटी, ताज तथा गले में मालाएँ हैं। वह अनेक प्रकार के आभूषण धारण किए हुए है। उसके एक हाथ में गदा है। एक योद्धा को शिवलिंग की पूजा करते हुए दिखाया गया हैं, इसके हाथ में धनुष है तथा वह नृत्य की मुद्रा में शिव को चल चढ़ा रहा है। निम्नलिखित पर लघु निबन्ध लिखिए (लगभग 250- 300 शब्दों में)-
प्रश्न 6.
‘शाही केन्द्र’ शब्द शहर के जिस भाग के लिए प्रयोग किए गए हैं, क्या वे उस भाग का सही वर्णन करते हैं?
उत्तर:
शाही केन्द्र:
‘शाही केन्द्र’ अथवा ‘राजकीय केन्द्र’ बस्ती के दक्षिण- पश्चिमी भाग में स्थित था।
(1) बड़ी संरचनाएँ – शाही केन्द्र’ की लगभग तीसा संरचनाओं की पहचान महलों के रूप में की गई है। ये अपेक्षाकृत बड़ी संरचनाएँ हैं जो आनुष्ठानिक कार्यों से सम्बन्धित नहीं होती थीं। इन इमारतों तथा मन्दिरों के बीच एक अन्तर यह था कि मन्दिर पूर्ण रूप से राजगिरी से बने हुए थे जबकि अन्य इमारतें नष्ट की हुई वस्तुओं से बनाई गई थीं।
(2) राजा का भवन – राजकीय केन्द्र की कुछ अधिक विशिष्ट संरचनाओं के नाम भवनों के आकार तथा उनके कार्यों के आधार पर रखे गए हैं। ‘राजा का भवन’ नामक संरचना इस क्षेत्र में सबसे विशाल है, परन्तु इसके राजकीय आवास होने का कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिला है। इसके दो सबसे प्रभावशाली मंच हैं, जिन्हें प्राय: सभा मंडप’ तथा ‘महानवमी डिब्बा’ कहा जाता है। सम्पूर्ण क्षेत्र ऊँची दोहरी दीवारों से घिरा है और इनके बीच में एक गली है।
(3) सभा मंडप सभा मंडप एक ऊँचा मंच है जिसमें पास-पास तथा निश्चित दूरी पर लकड़ी के स्तम्भों के लिए छिद्र बने हुए हैं। इसमें इन स्तम्भों पर टिकी दूसरी मंजिल तक जाने के लिए सीढ़ी बनी हुई थी।
(4) महानवमी डिब्बा महानवमी डिब्बा विजयनगर शहर के सबसे ऊँचे स्थानों में से एक पर स्थित एक विशालकाय मंच है। इसका आधार लगभग 11,000 वर्ग फीट तथा ऊँचाई 40 फीट है। प्राप्त साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि इस पर लकड़ी की एक संरचना बनी थी। मंच का आधार उभारदार उत्कीर्णनों से परिपूर्ण है।
(5) ‘महानवमी डिब्बा’ से जुड़े अनुष्ठान ‘महानवमी डिब्बा’ से जुड़े अनुष्ठान थे उत्तर भारत का दशहरा, बंगाल में दुर्गापूजन तथा प्रायद्वीपीय भारत के नवरात्रि या महानवमी।
(6) इस अवसर पर होने वाले धर्मानुष्ठान- इस अवसर पर होने वाले धर्मानुष्ठान निम्नलिखित थे-
(1) मूर्ति की पूजा
(2) राज्य के अश्व की पूजा तथा
(3) भैंसों और अन्य जानवरों की बलि।
(7) प्रमुख आकर्षण – इस अवसर के प्रमुख आकर्षण थे –
(1) नृत्य
(2) कुश्ती प्रतिस्पर्द्धा
(3) साज लगे घोड़ों, हाथियों तथा रथों और सैनिकों की शोभायात्रा
(4) प्रमुख नायकों और अधीनस्थ राजाओं द्वारा राजा और उसके अतिथियों को दी जाने वाली औपचारिक भेंट इन उत्सवों के गहन प्रतीकात्मक अर्थ थे। विद्वानों की मान्यता है कि ‘महानवमी डिब्बा’ के चारों -ओर का स्थान सशस्त्र व्यक्तियों, स्त्रियों तथा बड़ी संख्या में जानवरों की शोभायात्रा के लिए पर्याप्त नहीं था राजकीय केन्द्र में स्थित अनेक और संरचनाओं की भाँति यह भी एक पहेली बना हुआ है।
(8) ‘शाही केन्द्र’ शब्द शहर के जिस भाग के लिए प्रयोग किए गए हैं, वे उस भाग का सही वर्णन करते ‘शाही केन्द्र’ प्राय: राजमहलों, किलों, राजदरबारों और राजनीतिक गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र होता है। परन्तु इस केन्द्र में 60 से भी अधिक मन्दिर सम्मिलित थे।
प्रश्न 7.
कमल महल और हाथियों के अस्तबल जैसे भवनों का स्थापत्य हमें उनके बनवाने वाले शासकों के विषय में क्या बताता है?
उत्तर:
कमल महल का स्थापत्य:
‘कमल महल’ (लोटस महल) विजयनगर राज्य के ‘राजकीय केन्द्र’ के सबसे सुन्दर भवनों में से एक है। इसे यह नाम उन्नीसवीं शताब्दी के अंग्रेज यात्रियों ने दिया था। इतिहासकार इस सम्बन्ध में निश्चित नहीं हैं कि यह भवन किस कार्य के लिए बना था फिर भी प्रसिद्ध पुराविद् कर्नल मैकेन्जी के द्वारा बनाए गए मानचित्र से यह सुझाव मिलता है कि यह परिषदीय सदन था, जहाँ राजा अपने परामर्शदाताओं से मिलता था। ‘कमल महल’ के भग्नावशेषों से ज्ञात होता है कि यह महल अत्यन्त भव्य था और इसका स्थापत्य उच्चकोटि का था। हाथियों का अस्तबल कमल महल के निकट हाथियों का अस्तबल है।
इसमें एक ही पंक्ति में अनेक कमरे बने हुए हैं। इस अस्तबल में बड़ी संख्या में हाथी रखे जाते थे। विजयनगर के शासक पराक्रमी और महत्त्वाकांक्षी थे। उस समय युद्धों में हाथियों का प्रयोग मुख्य रूप से किया जाता था। अतः विजयनगर के शासक हाथियों की उपयोगिता को देखते हुए हाथियों के अस्तबल बनवाते थे तथा उनकी देख-रेख पर विपुल धन खर्च करते थे। हाथियों के अस्तबल का स्थापत्य भी उच्चकोटि का था।
कमल महल और ‘हाथियों के अस्तबल’ को देखने से ज्ञात होता है कि इन इमारतों की स्थापत्यकला में इंडो- इस्लामिक शैली का प्रयोग किया गया है। विजयनगर के शासक कला-प्रेमी थे तथा उनकी स्थापत्य कला में गहरी रुचि थी। वे प्रजावत्सल शासक थे तथा उन्होंने विशाल महलों और सेना के काम में आने वाले भवनों का निर्माण करवाया। वे इनके निर्माण पर प्रचुर धन खर्च करते थे। इससे पता चलता है कि विजयनगर के शासकों की आर्थिक स्थिति अत्यन्त सुदृढ़ थी तथा वे जन-कल्याण के कार्यों, सामारिक भवनों और राजमहलों के निर्माण में रुचि लेते थे। इन इमारतों को देखने से विजयनगर के शासकों की शक्ति, प्रतिष्ठा, कलाप्रियता, स्तवा तथा अधिराज्य के बारे में जानकारी मिलती है।
प्रश्न 8.
स्थापत्य में कौन-कौनसी परम्पराओं ने विजयनगर के वास्तुविदों को प्रेरित किया? उन्होंने इन परम्पराओं में किस प्रकार बदलाव किए?
अथवा
विजयनगर की स्थापत्य कला की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
स्थापत्य की परम्पराएँ विजयनगर के शासकों ने स्थापत्य की प्रचलित परम्पराओं को अपनाया। उन्होंने उन परम्पराओं में नवीनता का समावेश किया और उन्हें विकसित किया।
स्थापत्य में नवीन तत्त्वों का समावेश- विजयनगर के शासकों ने मन्दिर स्थापत्य में निम्नलिखित तत्वों का समावेश करवाया
(1) गोपुरम – विजयनगर में विशाल स्तर पर संरचनाएँ बनाई गई जो राजकीय सत्ता की प्रतीक थीं। इनका सबसे अच्छा उदाहरण रायगोपुरम अथवा राजकीय प्रवेशद्वार थे। इनके सामने केन्द्रीय देवालयों की मीनारें बहुत ही छोटी जान पड़ती थीं ये लम्बी दूरी से ही मन्दिर के होने का संकेत दे देते थे।
(2) मंडप तथा गलियारे अन्य विशिष्ट अभिलक्षणों में मण्डप तथा लम्बे स्तम्भों वाले गलियारे सम्मिलित हैं। ये प्रायः मन्दिर परिसर में स्थित देव स्थलों के चारों ओर बने थे।
(3) विरुपाक्ष मन्दिर विरुपाक्ष मन्दिर का निर्माण कई शताब्दियों में हुआ था। मुख्य मन्दिर के सामने बना मण्डप राजा कृष्णदेव राय ने अपने सिंहासनारोहण के उपलक्ष्य में बनवाया था। इसे ऐसे स्तम्भों से सजाया गया था जो बारीकी से उत्कीर्णित थे। पूर्वी गोपुरम के निर्माण का श्रेय भी कृष्णदेव राय को ही दिया जाता है।
(4) मन्दिर के सभागारों का प्रयोग सभागारों का प्रयोग विविध प्रकार के कार्यों के लिए होता था। कुछ सभागारों में देवताओं की मूर्तियाँ संगीत, नृत्य और नाटकों के विशेष कार्यक्रमों को देखने के लिए रखी जाती थीं। अन्य सभागारों का प्रयोग देवी-देवताओं के विवाह के उत्सव पर आनन्द मनाने के लिए होता था।
(5) विठ्ठल मन्दिर – विठ्ठल मन्दिर विजयनगर राज्य का एक अन्य प्रसिद्ध मन्दिर था यहाँ के प्रमुख देवता विठ्ठल थे, जो सामान्यतः महाराष्ट्र में पूजे जाने वाले विष्णु के एक रूप हैं अन्य मन्दिरों की भाँति इस मन्दिर में भी कई सभागार तथा रथ के आकार का एक अनूठा मन्दिर भी है।
(6) हजार राम मन्दिर – विजयनगर साम्राज्य के अत्यन्त भव्य एवं विशाल मन्दिरों में हजार राम मन्दिर की गिनती की जाती है। इसकी दीवारों पर उत्कीर्ण हाथी और घोड़ों की मूर्तियाँ अत्यन्तु सुन्दर और कलात्मक हैं।
(7) रथ गलियाँ मन्दिर परिसरों की एक चारित्रिक विशेषता रथ गलियाँ हैं जो मन्दिर के गोपुरम से सीधी रेखा में जाती हैं। इन गलियों का फर्श पत्थर के टुकड़ों से बनाया गया था और इनके दोनों ओर स्तम्भ वाले मंडप थे, जिनमें व्यापारी अपनी दुकानें लगाया करते थे।
(8) किलेबन्दियाँ शहर की किलेबन्दी की गई तथा सड़कें बनाई गई। किलेबन्दी द्वारा खेतों को भी घेरा गया। दुर्ग में प्रवेश के लिए प्रवेशद्वार थे। कला इतिहासकार इस शैली को ‘इंडो-इस्लामिक’ कहते हैं क्योंकि इसका विकास विभिन्न क्षेत्रों की स्थानीय स्थापत्य की परम्पराओं के साथ सम्पर्क से हुआ।
(9) सड़कें सड़कें सामान्यतः पहाड़ी भू-भाग से बचकर घाटियों से होकर ही इधर-उधर घूमती थीं।
(10) हौज, जलाशय और नहर विजयनगर की जल आवश्यकताओं की पूर्ति का स्त्रोत तुंगभद्रा नदी द्वारा निर्मित एक प्राकृतिक कुण्ड है। नदी के आस-पास का भूदृश्य सुन्दर ग्रेनाइट की पहाड़ियों से परिपूर्ण है। लगभग सभी जलधाराओं के साथ-साथ बाँध बनाकर अलग-अलग आकारों के हौज बनाए गए। इन महत्वपूर्ण होजों में कमलपुरम जलाशय’ उल्लेखनीय हैं।
प्रश्न 9.
अध्याय के विभिन्न विवरणों से आप विजयनगर के सामान्य लोगों के जीवन की क्या छवि पाते हैं?
उत्तर:
विजयनगर के सामान्य लोगों का जीवन अध्याय के विभिन्न विवरणों से विजयनगर के सामान्य लोगों के जीवन के बारे में निम्नलिखित जानकारी मिलती
(1) आवासीय मुहल्ला यहाँ मुसलमानों का एक आवासीय मुहल्ला भी था। यहाँ स्थित मकबरों तथा मस्जिदों के विशिष्ट नमूने भी हैं। फिर भी उनकी स्थापत्य कला हम्पी में मिले मन्दिरों के मण्डपों की स्थापत्य कला से मिलती- जुलती है।
(2) सामान्य लोगों के आवास सोलहवीं शताब्दी |के पुर्तगाली यात्री बरबोसा ने सामान्य लोगों के आवास के बारे में लिखा है कि, “लोगों के अन्य आवास छप्पर के हैं, पर फिर भी सुदृद हैं, और व्यवसाय के आधार पर कई 7 खुले स्थानों वाली गलियों में व्यवस्थित हैं।”
(3) पूजा स्थल और छोटे मन्दिर क्षेत्र सर्वेक्षण से ज्ञात होता है कि इस सम्पूर्ण क्षेत्र में अनेक पूजा स्थल और छोटे मन्दिर थे जो विविध प्रकार के सम्प्रदायों से सम्बन्धित थे। ये पूजा स्थल और छोटे मन्दिर सम्भवत: विभिन्न समुदायों द्वारा संरक्षित थे।
(4) सामान्य लोगों के पानी के स्रोत सर्वेक्षणों से यह भी पता चलता है कि कुएं, वर्षा के पानी वाले जलाशय और मन्दिरों के जलाशय सम्भवतः सामान्य नगर निवासियों के लिए पानी के स्रोत का कार्य करते थे।
(5) कृषि विजयनगर राज्य के लोगों का जीवन- निर्वाह करने का प्रमुख साधन कृषि था। यहाँ अनेक प्रकार के खाद्यानों, फलों तथा सब्जियों की खेती की जाती थी। नहरों, जलाशयों आदि से खेतों की सिंचाई की जाती थी। विजयनगर में कृषि क्षेत्रों को भी किलेबन्दी द्वारा घेरा गया था। इससे कृषक आक्रमणकारियों के आक्रमणों के भय से मुक्त होकर कृषि कार्य में संलग्न रहते थे। यहाँ गेहूँ, चावल, मकई, दाल, काले चना, जौ, सेम, मूंग, अंगूर, सन्तरे, नींबू, अनार, आम आदि की खेती की जाती थी।
(6) खान-पान यहाँ के सामान्य लोग शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों थे। ये लोग गेहूं, जौ, चावल, दूध, दही, साग-सब्जी के अतिरिक्त मांस आदि का भी सेवन करते थे। नूनिज के अनुसार यहाँ के बाजारों में मांस बड़ी मात्रा में बिकता था। ब्राह्मण मांस नहीं खाते थे। सामान्य वर्ग के पुरुष धोती, कमीज, कुर्ता, टोपी अथवा पगड़ी पहनते थे तथा कन्धे पर एक दुपट्टा डालते थे। सामान्य वर्ग की स्वियों धोती और चोली पहनती थीं।
एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर JAC Class 12 History Notes
→ विजयनगर की स्थापना- विजयनगर साम्राज्य की स्थापना चौदहवीं शताब्दी में की चरमोत्कर्ष पर यह उत्तर में कृष्णा नदी से लेकर प्रायद्वीप के सुदूर दक्षिण तक फैला हुआ था। 1565 में विजयनगर पर आक्रमण कर इसे खूब लूटा गया और बाद में यह उजड़ गया।
→ हम्पी की खोज- 1800 ई. में कर्नल कालिन मैकेन्जी नामक एक अभियन्ता तथा पुराविद ने हम्पी के भग्नावशेषों की खोज की मैकेन्जी ईस्ट इण्डिया कम्पनी में कार्यरत थे। उन्होंने इस स्थान का पहला सर्वेक्षण मानचित्र तैयार किया। 1836 से ही अभिलेखकर्त्ताओं ने यहाँ और हम्पी के अन्य मन्दिरों से कई दर्जन अभिलेखों को एकत्रित करना शुरू कर दिया था।
→ राय, नायक तथा सुल्तान – विजयनगर साम्राज्य की स्थापना दो भाइयों हरिहर तथा बुक्का द्वारा 1336 ई. में की गई थी। अपनी उत्तरी सीमाओं पर विजयनगर के शासकों ने दक्कन के सुल्तानों तथा उड़ीसा के गजपति शासक से संघर्ष किया। विजयनगर के शासक अपने आपको राय कहते थे।
→ शासक और व्यापारी-चौदहवीं से सोलहवीं सदी तक के काल में युद्धकला शक्तिशाली अश्वसेना पर आधारित होती थी, इसलिए प्रतिस्पद्ध राज्यों के लिए अरब तथा मध्य एशिया से घोड़ों का आयात बहुत महत्त्वपूर्ण था। यह व्यापार प्रारम्भ में अरब व्यापारियों द्वारा नियन्त्रित था। व्यापारियों के स्थानीय समूह भी इन विनिमयों में भाग लेते थे। 1498 में | पुर्तगाली भी व्यापारिक और सैनिक केन्द्र स्थापित करने का प्रयास करने लगे। तत्कालीन राजनीति में पुर्तगाली भी एक महत्त्वपूर्ण शक्ति बनकर उभरे। विजयनगर मसालों, वस्त्रों, रत्नों के अपने बाजारों के लिए प्रसिद्ध था। यहाँ की समृद्ध जनता रत्नों, आभूषणों आदि महंगी विदेशी वस्तुओं की माँग करती थी।
→ विजयनगर के शासक विजयनगर साम्राज्य का पहला राजवंश ‘संगम’ कहलाता था इस राजवंश ने 1485 तक शासन किया। सुलुवों ने संगम राजवंश को उखाड़ फेंका। ये सैनिक कमांडर थे। इन्होंने 1503 ई. तक शासन किया। इसके बाद तुलुव राजवंश की स्थापना हुई। कृष्णदेव राय तुलुव वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था।
→ कृष्णदेव राय – कृष्णदेव राय के शासन की प्रमुख विशेषता विजयनगर साम्राज्य का विस्तार तथा सुदृढ़ीकरण था। उसने 1512 तक तुंगभद्रा और कृष्णा नदियों के बीच के क्षेत्र रायचूर दोआब पर अधिकार कर लिया। उसने उड़ीसा के शासकों को पराजित किया और बीजापुर के सुल्तान को बुरी तरह पराजित किया। उसने अनेक भव्य मन्दिर बनवाये तथा मन्दिरों में भव्य गोपुरमों को जोड़ा। उसने नगलपुरम नामक उपनगर की स्थापना की।
→ अराविदु राजवंश – 1542 तक विजयनगर साम्राज्य में अराविदु राजवंश की सत्ता की स्थापना हुई। यह राजवंश सत्रहवीं शताब्दी के अंत तक सत्तारूढ़ बना रहा।
→ राक्षसी – तांगड़ी (तालीकोटा) का युद्ध – 1565 ई. में राक्षसी तांगड़ी (तालीकोटा) के युद्ध में बीजापुर, गोलकुण्डा, अहमदनगर की संयुक्त सेनाओं ने विजयनगर की सेनाओं को बुरी तरह पराजित किया। विजयी सेनाओं ने विजयनगर पर धावा बोलकर उसे खूब लूटा। कुछ ही वर्षों में यह शहर पूरी तरह से उजड़ गया।
→ राय तथा नायक – विजयनगर साम्राज्य में शक्ति का प्रयोग करने वालों में सेना प्रमुख होते थे, जो सामान्यतः किलों पर नियन्त्रण रखते थे तथा उनके पास सशस्त्र सैनिक होते थे ये ‘नायक’ कहलाते थे। कई नायकों ने विजयनगर के शासकों की प्रभुसत्ता के आगे समर्पण किया था, परन्तु ये अवसर पाकर विद्रोह कर देते थे तथा इन्हें सैनिक कार्यवाही के द्वारा ही अधीनता में लाया जाता था।
→ अमर नायक प्रणाली- अमर नायक प्रणाली विजयनगर साम्राज्य की एक प्रमुख राजनीतिक खोज थी। अमर नायक सैनिक कमांडर थे जिन्हें राय (शासक) द्वारा प्रशासन के लिए राज्य क्षेत्र दिए जाते थे वे किसानों, शिल्पकर्मियों तथा व्यापारियों से भू-राजस्व तथा अन्य कर वसूल करते थे। वे राजस्व का कुछ भाग व्यक्तिगत उपयोग तथा घोड़ों और हाथियों के निर्धारित दल के रख-रखाव के लिए अपने पास रख लेते थे। अमर नायक राजा को वर्ष में एक बार भेंट भेजा करते थे और राजकीय दरबार में उपहारों के साथ स्वयं उपस्थित हुआ करते थे। राजा कभी-कभी उन्हें ‘एक 5 से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित कर उन पर अपना नियन्त्रण रखता था, परन्तु सत्रहवीं शताब्दी में इनमें से कई नायकों ने अपने स्वतन्त्र राज्य स्थापित कर लिए।
→ विजयनगर जल सम्पदा विजयनगर की भौगोलिक स्थिति के विषय में सबसे चौकाने वाला तथ्य तुंगभद्रा नदी द्वारा निर्मित एक प्राकृतिक कुंड है। यह नदी उत्तर-पूर्व दिशा में बहती है। आस-पास का भू-दृश्य सुन्दर ग्रेनाइट की पहाड़ियों से परिपूर्ण है। यहाँ लगभग सभी धाराओं के साथ-साथ बाँध बनाकर अलग-अलग आकारों के हौज बनाए गए थे।
इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण हौजों में एक का निर्माण पन्द्रहवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में हुआ जिसे आज ‘कमलपुरम जलाशय’ कहा जाता है। सबसे महत्त्वपूर्ण जल सम्बन्धी संरचनाओं में एक हिरिया नहर को आज भी देखा जा सकता है। इस नहर में तुंगभद्रा पर बने बाँध से पानी लाया जाता था और इसे ‘धार्मिक केन्द्र’ से ‘शहरी केन्द्र’ को अलग करने वाली घाटी को सिंचित करने में प्रयोग किया जाता था।
→ किलेबन्दियाँ तथा सड़कें विजयनगर की एक विशाल किलेबन्दी थी जिसे दीवारों से घेरा गया था। पन्द्रहवीं शताब्दी में फारस के शासक द्वारा कालीकट ( कोजीकोड) भेजे गए दूत अब्दुररज्जाक ने दुर्गों की सात पंक्तियों का उल्लेख किया है। इनसे न केवल शहर को बल्कि कृषि में प्रयुक्त आस-पास के क्षेत्र तथा जंगलों को भी घेरा गया था। सबसे बाहरी दीवार शहर के चारों ओर बनी पहाड़ियों को आपस में जोड़ती थी। गारे या जोड़ने के लिए किसी भी वस्तु का निर्माण में कहीं भी प्रयोग नहीं किया गया था।
इस किलेबन्दी की सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि इससे खेतों को भी घेरा गया था अब्दुररज्जाक के अनुसार “पहली, दूसरी और तीसरी दीवारों के बीच जुते हुए खेत, बगीचे तथा आवास हैं।” दूसरी किलेबन्दी नगरीय केन्द्र के आन्तरिक भाग के चारों ओर बनी हुई थी। तीसरी किलेबन्दी से शासकीय केन्द्र को घेरा गया था जिसमें महत्त्वपूर्ण इमारतों के प्रत्येक समूह को ऊँची दीवारों से घेरा गया था।
→ सुरक्षित प्रवेश द्वार दुर्ग में प्रवेश के लिए अच्छी तरह सुरक्षित प्रवेश द्वार थे, जो शहर को मुख्य सड़कों से जोड़ते थे प्रवेश द्वार विशिष्ट स्थापत्य के नमूने थे प्रवेश द्वार पर बनी मेहराब और साथ ही द्वार के ऊपर बनी गुम्बद तुर्की सुल्तानों द्वारा प्रवर्तित स्थापत्य के प्रमुख तत्त्व माने जाते हैं। कला इतिहासकार इस शैली को इंडो- इस्लामिक ( हिन्द-इस्लामी ) कहते हैं, क्योंकि इसका विकास विभिन्न क्षेत्रों की स्थानीय स्थापत्य की परम्पराओं के साथ सम्पर्क से हुआ।
→ सड़कें – सड़कें सामान्यतः पहाड़ी भू-भाग से बचकर घाटियों से होकर ही इधर-उधर घूमती थीं। सबसे महत्त्वपूर्ण सड़कों में से कई मन्दिर के प्रवेश द्वारों से आगे बढ़ी हुई थीं और इनके दोनों ओर बाजार थे।
→ शहरी केन्द्र – पुरातत्वविदों ने कुछ स्थानों में परिष्कृत चीनी मिट्टी पाई है और उनका यह सुझाव है कि सम्भव है कि इन स्थानों में धनी व्यापारी रहते होंगे। यह मुस्लिम रिहायशी मुहल्ला भी था। यहाँ स्थित मकबरों तथा मस्जिदों के विशिष्ट कार्य हैं। फिर भी उनका स्थापत्य हम्पी में मिले मन्दिरों के मण्डपों के स्थापत्य से मिलता-जुलता है। क्षेत्र सर्वेक्षण संकेत करते हैं कि इस सम्पूर्ण क्षेत्र में बहुत से पूजा स्थल और छोटे मन्दिर थे, जो विभिन्न प्रकार के सम्प्रदायों के प्रचलन की ओर संकेत करते हैं। कुएँ, बरसात के पानी वाले जलाशय और मन्दिरों के जलाशय सम्भवतः सामान्य नगर-निवासियों के पानी के स्रोत का कार्य करते थे।
→ राजकीय केन्द्र-राजकीय केन्द्र बस्ती के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित था। इस केन्द्र में 60 से भी अधिक मन्दिर सम्मिलित थे। लगभग 30 संरचनाओं की पहचान महलों के रूप में की गई है। ये अपेक्षाकृत बड़ी संरचनाएँ हैं जो आनुष्ठानिक कार्यों से सम्बन्धित नहीं थीं।
→ महानवमी डिब्बा – ‘राजा का भवन’ नामक संरचना, अन्तः क्षेत्र में सबसे विशाल है। इसके दो सबसे प्रभावशाली मंच हैं, जिन्हें सामान्यतः ‘सभामंडप’ तथा ‘महानवमी डिब्बा’ कहा जाता है। सभामंडप एक ऊँचा मंच है। जिसमें पास-पास तथा निश्चित दूरी पर लकड़ी के स्तम्भों के लिए छेद बने हुए हैं। इसमें दूसरी मंजिल तक जाने के लिए सीढ़ी बनी हुई थी।
शहर के सबसे ऊंचे स्थानों में से एक पर स्थित ‘महानवमी डिब्बा’ एक विशालकाय मंच है जो लगभग 11,000 वर्ग फीट के आधार से 40 फीट की ऊंचाई तक जाता है। साक्ष्यों से पता चलता है कि इस पर लकड़ी की एक संरचना बनी थी। इस संरचना से जुड़े अनुष्ठान सम्भवतः सितम्बर तथा अक्टूबर के महीनों में मनाए जाने वाले दस दिन के हिन्दू त्यौहार; जैसे- दशहरा, दुर्गापूजा, नवरात्रि या महानवमी आदि के अवसर पर निष्पादित किए जाते थे । इस अवसर पर विजयनगर के शासक अपनी शक्ति प्रभाव तथा अधिराज्य का प्रदर्शन करते थे।
→ लोटस (कमल) महल – राजकीय केन्द्र के सबसे सुन्दर भवनों में लोटस (कमल) महल है। इसका यह नामकरण उन्नीसवीं शताब्दी के अंग्रेज यात्रियों ने किया था। मैकेन्जी के अनुसार यह भवन परिषदीय सदन था, जहाँ राजा अपने परामर्शदाताओं से मिलता था।
→ राजकीय केन्द्र में मन्दिर – यद्यपि अधिकांश मन्दिर धार्मिक केन्द्र में स्थित थे, परन्तु राजकीय केन्द्र में भी कई मन्दिर स्थित थे। इनमें ‘हजारराम मन्दिर’ अत्यन्त भव्य एवं दर्शनीय है। सम्भवतः इसका प्रयोग केवल राजा और उनके परिवार द्वारा किया जाता था। इसकी दीवारों पर बनाई गई पटल मूर्तियाँ सुरक्षित हैं। इनमें मन्दिर की आन्तरिक दीवारों पर उत्कीर्णित रामायण से लिए गए कुछ दृश्यांश सम्मिलित हैं।
→ धार्मिक केन्द्र तुंगभद्रा नदी के तट से लगा विजयनगर शहर का उत्तरी भाग पहाड़ी है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार ये पहाड़ियाँ रामायण में उल्लिखित बाली और सुग्रीव के वानर राज्य की रक्षा करती थीं। कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार स्थानीय मातृदेवी पम्पा देवी ने इन पहाड़ियों में विरुपाक्ष नामक देवता से विवाह के लिए तप किया था। विरुपाक्ष राज्य के संरक्षक देवता थे तथा शिव का एक रूप माने जाते थे।
→ धार्मिक केन्द्र में मन्दिर निर्माण धार्मिक क्षेत्र में मन्दिर निर्माण का एक लम्बा इतिहास रहा है। सामान्यतः शासक अपने आपको ईश्वर से जोड़ने के लिए मन्दिर निर्माण को प्रोत्साहन देते थे। मन्दिर शिक्षा के केन्द्रों के रूप में भी कार्य करते थे । मन्दिर महत्त्वपूर्ण धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक केन्द्रों के रूप में विकसित हुए ।
→ विजयनगर के स्थान का चयन- यह सम्भव है कि विजयनगर के स्थान का चयन वहाँ विरुपाक्ष तथा पम्पा देवी के मन्दिरों के अस्तित्व से प्रेरित था । विजयनगर के शासक भगवान् विरुपाक्ष की ओर से शासन करने का दावा करते थे। सभी राजकीय आदेशों पर प्रायः कन्नड़ लिपि में श्री विरुपाक्ष’ शब्द अंकित होता था। शासक देवताओं से अपने घनिष्ठ सम्बन्धों के प्रतीक के रूप में ‘हिन्दू सूरतराणा’ विरुद का प्रयोग करते थे। इसका शाब्दिक अर्थ हैं – ‘हिन्दू सुल्तान’
→ ‘गोपुरम’ और ‘मण्डप’ – राय गोपुरम अथवा राजकीय प्रवेशद्वार राजकीय सत्ता की प्रतीक संरचनाएँ थीं। ये प्रायः केन्द्रीय देवालयों की मीनारों को बौना प्रतीत कराते थे और लम्बी दूरी से ही मन्दिर के होने का संकेत देते थे। ये सम्भवतः शासकों की शक्ति की याद भी दिलाते थे जो इतनी ऊँची मीनारों के निर्माण के लिए आवश्यक साधन, तकनीक तथा कौशल जुटाने में सक्षम थे। अन्य विशिष्ट संरचनाओं में मण्डप तथा लम्बे स्तम्भों वाले गलियारे उल्लेखनीय थे। ये प्रायः मन्दिर परिसर में स्थित देवालयों के चारों ओर बने थे।
→ विरुपाक्ष मन्दिर – विरुपाक्ष मन्दिर का निर्माण कई शताब्दियों में हुआ था। मुख्य मन्दिर के सामने बना मण्डप राजा कृष्णदेव राय ने अपने राज्यारोहण के उपलक्ष्य में बनवाया था। इसे बारीकी से उत्कीर्णित स्तम्भों से सजाया गया था। कृष्णदेव राय को ही पूर्वी गोपुरम के निर्माण का श्रेय दिया जाता है। मन्दिर के सभागारों का प्रयोग विविध प्रकार के कार्यों के लिए होता था। इनमें से कुछ ऐसे थे जिनमें देवताओं की मूर्तियाँ संगीत, नृत्य और नाटकों के विशेष कार्यक्रमों को देखने के लिए रखी जाती थीं।
→ विट्ठल मन्दिर – यहाँ के प्रमुख देवता विट्ठल थे, जो सामान्यतः महाराष्ट्र में पूजे जाने वाले विष्णु के एक रूप हैं। अन्य मन्दिरों की भाँति इस मन्दिर में भी कई सभागार तथा रथ के आकार का एक अनूठा मन्दिर भी है। मन्दिर परिसरों की एक चारित्रिक विशेषता रथ गलियाँ हैं जो मन्दिर के गोपुरम से सीधी रेखा में जाती हैं। इन गलियों का फर्श पत्थर के टुकड़ों से बनाया गया था और इसके दोनों ओर स्तम्भ वाले मण्डप थे, जिनमें व्यापारी अपनी दुकानें लगाया करते थे।
→ महलों, मन्दिरों तथा बाजारों का अंकन 1986 में हम्पी को राष्ट्रीय महत्त्व के स्थल के रूप में मान्यता मिली, इसके बाद 1980 के दशक के आरम्भ में विविध प्रकार के अभिलेखन प्रयोग से व्यापक तथा गहन सर्वेक्षणों के माध्यम से, विजयनगर से मिले भौतिक अवशेषों के सूक्ष्मता से प्रलेखन की एक महत्त्वपूर्ण परियोजना का शुभारम्भ किया गया। लगभग 20 वर्षों के काल में सम्पूर्ण विश्व के दर्जनों विद्वानों ने इस जानकारी को इकट्ठा और संरक्षित करने का कार्य किया। इन सर्वेक्षणों से हजारों संरचनाओं के अंशों—छोटे देवस्थानों और आवासों से लेकर विशाल मन्दिरों तक को पुनः उजागर किया गया।
उनका प्रलेखन भी किया गया। जॉन एम. फ्रिट्ज, जार्ज मिशेल तथा एम.एस. नागराज ने लिखा है कि, “विजयनगर के स्मारकों के उसके अध्ययन में हमें नष्ट हो चुकी लकड़ी की वस्तुओं-स्तम्भ, टेक (ब्रेकेट), धरन, भीतरी छत, लटकते हुए छज्जों के अन्दरुनी भाग तथा मीनारों की एक पूरी श्रेणी की कल्पना करनी पड़ती है, जो प्लास्टर से सजाए और सम्भवतः चटकीले रंगों से चित्रित थे।” यद्यपि लकड़ी की संरचनाएँ अब नहीं हैं और केवल पत्थर की संरचनाएँ अस्तित्व में हैं। यात्रियों द्वारा छोड़े गए विवरण तत्कालीन गतिशील जीवन के कुछ आयामों को पुनर्निर्मित करने में सहायक हुए हैं।
→ पेस द्वारा कृष्णदेव राय का वर्णन पेस ने कृष्णदेव राय का वर्णन करते हुए लिखा है कि, “मझला कद, गोरा रंग और अच्छी काठी, कुछ मोटा, राजा के चेहरे पर चेचक के दाग हैं।”
कालरेखा 1 महत्त्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन |
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लगभग 1200-1300 ईसवी | दिल्ली सल्तनत की स्थापना (1206) |
लगभग 1300-1400 ईसवी | विजयनगर साम्राज्य की स्थापना (1336); बहमनी राज्य की स्थापना (1347); जौनपुर, कश्मीर और मदुरई में सल्तनतें |
लगभाग 1400-1500 ईसवी | उड़ीसा के गजपति राज्य की स्थापना (1435); गुजरात और मालबा की सल्तनतों की स्थापना; अहमदाबाद, बीजापुर तथा बरार सल्तनतों का उदय (1490) |
लगभग 1500-1600 ईसवी | पुर्तगालियों द्वारा गोवा पर विजय (1510); बहमनी राज्य का विनाश; गोलकुंडा की सल्थनत का उदय (1518); बाबर द्वारा मुगल साप्राज्य की स्थापना (1526) |
कालरेखा 2 विज्ययगगर की खोज व संरक्षण की मुखय घटनाएँ |
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1800 | कॉलिन मैकेन्जी द्वारा विजयनगर की यात्रा |
1856 | अलेक्जैंडर ग्रनिलो द्वारा हम्पी के पुरातात्विक अवशेषों के पहले विस्तृत चित्र लेना |
1876 | पुरास्थल की मन्दिर की दीवारों के अभिलेखों का जे.एफ. फ्लीट द्वारा प्रलेखन आरम्भ |
1902 | जॉन मार्शल के अधीन संरक्षण कार्य आरम्भ |
1986 | हम्पी को यूनेस्को द्वारा ‘विश्व पुरातत्व स्थल’ घोषित किया जाना |