Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध Important Questions and Answers.
JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध
बहुचयनात्मक प्रश्न
1. भारतीय विदेश नीति के जनक हैं।
(क) पंडित जवाहरलाल नेहरू
(ग) वल्लभ भाई पटेल
(ख) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(घ) मौलाना अबुल कलाम आजाद।
उत्तर:
(क) पंडित जवाहरलाल नेहरू
2. भारतीय विदेश नीति किन कारकों से प्रभावित है।
(क) सांस्कृतिक कारक
(ग) अन्तर्राष्ट्रीय कारक
(ख) घरेलू कारक
(घ) घरेलू तथा अन्तर्राष्ट्रीय कारक।
उत्तर:
(घ) घरेलू तथा अन्तर्राष्ट्रीय कारक।
3. बाण्डुंग सम्मेलन सम्पन्न हुआ।
(क) 1954 में
(ख) 1955 में
(ग) 1956 में
(घ) 1957 में।
उत्तर:
(ख) 1955 में
4. भारतीय विदेश नीति की प्रमुख विशेषता है।
(क) पंचशील
(ख) सैनिक गुट
(ग) गुटबन्दी
(घ) उदासीनता।
उत्तर:
(क) पंचशील
5. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के प्रणेता हैं।
(क) पं. नेहरू
(ख) नासिर
(ग) मार्शल टीटो
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी।
6. पंचशील के सिद्धान्त किसके द्वारा घोषित किये गये थे?
(क) नेहरू
(ग) राजीव गाँधी
(ख) लाल बहादुर शास्त्री
(घ) अटल बिहारी वाजपेयी।
उत्तर:
(क) नेहरू
7. पहला परमाणु परीक्षण भारत में कब किया गया था?
(क) 1971
(ख) 1974
(ग) 1980
(घ) 1985।
उत्तर:
(ख) 1974
8. निम्न का सही मिलान कीजिए।
(क) घाना | (i) जवाहरलाल नेहरू |
(ख) मिस्र | (ii) एन कुमा |
(ग) भारत | (iii) नासिर |
(घ) इंडोनेशिया | (iv) सुकर्णो |
(ङ) यूगोस्लाविया | (v) टीटो |
उत्तर:
(क) घाना | (ii) एन कुमा |
(ख) मिस्र | (iii) नासिर |
(ग) भारत | (i) जवाहरलाल नेहरू |
(घ) इंडोनेशिया | (iv) सुकर्णो |
(ङ) यूगोस्लाविया | (v) टीटो |
9. भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए नीति-निर्देशक सिद्धांत का उल्लेख किया गया हैं।
(क) अनुच्छेद 47
(ख) अनुच्छेद 50
(ग) अनुच्छेद 51
(घ) अनुच्छेद 49
उत्तर:
(ग) अनुच्छेद 51
10. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान आई. एन. ए. का गठन किसने किया था?
(क) जवाहरलाल नेहरू
(ग) सरदार पटेल
(ख) सुभाषचंद्र बोस
(घ) भगत सिंह
उत्तर:
(ख) सुभाषचंद्र बोस
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
1. पंडित नेहरू के अनुसार हर देश की आजादी बुनियादी तौर पर ………………………. संबंधों से ही बनी होती है।
उत्तर:
विदेश
2. शीतयुद्ध के दौरान चीन में ……………………. शासन की स्थापना हुई।
उत्तर:
कम्युनिस्ट
3. शीतयुद्ध के समय अमरीका द्वारा उत्तर अटलांटिक संधि संगठन का जवाब सोवियत संघ ने …………………….. नामक संधि संगठन बनाकर दिया।
उत्तर:
वारसा पैक्ट
4. ब्रिटेन ने स्वेज नहर के मामले को लेकर मिस्र पर ………………………….. में आक्रमण किया।
उत्तर:
1956
5. नेहरू की अगुवाई में भारत ने ……………………… के मार्च में ………………………. संबंध सम्मेलन का आयोजन किया।
उत्तर:
एशियाई
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत ने ताशकंद में किस संधि पर हस्ताक्षर किए?
उत्तर:
भारत ने ताशकंद में पाकिस्तान के साथ मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किए।
प्रश्न 2.
भारत के पहले विदेश मंत्री कौन थे?
उत्तर:
पण्डित जवाहरलाल नेहरू।
प्रश्न 3.
भारत में एशियाई सम्मेलन का आयोजन कब किया गया?
उत्तर:
सन् 1947 में।
प्रश्न 4.
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में किस नये देश का जन्म हुआ?
उत्तर:
बांग्लादेश का।
प्रश्न 5.
शिमला समझौते पर कब व किसने हस्ताक्षर किये?
उत्तर:
शिमला समझौते पर जुलाई, 1972 में भारत की प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी तथा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किये।
प्रश्न 6.
भारत द्वारा दूसरा परमाणु परीक्षण कब किया गया?
उत्तर:
11 व 13 मई, 1998 के बीच
प्रश्न 7.
1966 में ताशकंद समझौता किन दो राष्ट्रों के मध्य हुआ?
अथवा
ताशकन्द समझौता कब और किसके मध्य हुआ?
उत्तर:
10 जनवरी, 1966 को भारत और पाकिस्तान के मध्य।
प्रश्न 8.
चीन ने तिब्बत पर कब कब्जा किया?
उत्तर:
चीन ने तिब्बत पर 1950 में कब्जा किया।
प्रश्न 9.
चीन और भारत में पंचशील समझौता कब हुआ?
उत्तर:
सन् 1954 में।
प्रश्न 10.
एक राष्ट्र के रूप में भारत का जन्म कब हुआ था?
उत्तर:
एक राष्ट्र के रूप में भारत का जन्म विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में हुआ था।
प्रश्न 11.
राष्ट्र शक्ति के तीन साधन कौन-कौनसे हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक सम्पदा, धन, धन एवं जन-शक्ति।
प्रश्न 12.
आजाद हिन्द फौज की स्थापना किसने की?
उत्तर:
सुभाषचन्द्र बोस ने।
प्रश्न 13.
विदेश नीति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रत्येक देश दूसरे देशों के साथ सम्बन्धों की स्थापना में एक विशेष प्रकार की नीति का प्रयोग करता है। जिसे विदेश नीति कहा जाता है।
प्रश्न 14.
भारतीय विदेश नीति के दो उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
- क्षेत्रीय अखण्डता की रक्षा करना।
- अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा कायम रखना और उसे प्रोत्साहन देना।
प्रश्न 15.
एशियन सम्बन्ध सम्मेलन कब और किसके नेतृत्व में हुआ?
उत्तर:
एशियन सम्बन्ध सम्मेलन मार्च, 1947 में पं. जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत में हुआ।
प्रश्न 16.
भारतीय विदेश नीति के संवैधानिक आधार बताइए।
उत्तर:
अनुच्छेद 51 के अनुसार राज्य को अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को निपटाने के लिए मध्यस्थ का रास्ता अपनाने सम्बन्धी निर्देश दिये गये हैं।
प्रश्न 17.
तिब्बत के किस धार्मिक नेता ने भारत में कब शरण ली?
उत्तर:
तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा ने सीमा पार कर भारत में प्रवेश किया और 1959 में भारत में शरण माँगी।
प्रश्न 18.
शीतयुद्ध के दौरान अमरीका द्वारा कौन-सा संगठन बनाया गया?
उत्तर:
उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO)।.
प्रश्न 19.
ब्रिटेन ने मिस्र पर कब और क्यों आक्रमण किया?
उत्तर:
ब्रिटेन ने मिस्र पर 1956 में स्वेज नहर के मामले को लेकर आक्रमण किया।
प्रश्न 20.
वारसा पैक्ट नामक संगठन किसके द्वारा बनाया गया?
उत्तर:
सोवियत संघ।
प्रश्न 21. भारत और चीन के बीच सबसे बड़ा मुद्दा क्या रहा है?
उत्तर:
भारत और चीन के बीच सबसे बड़ा मुद्दा सीमा विवाद का रहा है।
प्रश्न 22.
भारतीय विदेश नीति के किन्हीं दो सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
भारतीय विदेश नीति के दो सिद्धान्त ये हैं।
- गुटनिरपेक्षता की नीति
- पंचशील सिद्धान्त।
प्रश्न 23.
गुटनिरपेक्षता का अर्थ बताइये।
उत्तर:
किसी गुट में शामिल न होते हुए, राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर अपनी स्वतन्त्र विदेश नीति का संचालन करना ही गुटनिरपेक्षता है।
प्रश्न 24.
नियोजित विकास की रणनीति में किस बात पर जोर दिया गया?
उत्तर:
आयात कम करने पर और संसाधन आधार तैयार करने पर।
प्रश्न 25.
बांडुंग सम्मेलन कब और कहाँ सम्पन्न हुआ?
उत्तर:
1955 में इंडोनेशिया के बांडुंग शहर में1
प्रश्न 26.
पंचशील के दो सिद्धान्त लिखिए।
उत्तर:
- एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
- अनाक्रमण।
प्रश्न 27.
WTO का पूरा नाम बताइये।
उत्तर:
वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन ( अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन)।
प्रश्न 28.
गुटनिरपेक्षता की नीति के दो उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
- स्वतन्त्र विदेश नीति का संचालन।
- विकासशील राष्ट्रों के आर्थिक विकास हेतु प्रयत्न करना।
प्रश्न 29.
सी. टी. बी. टी. का पूरा नाम बताइये।
उत्तर:
कॉम्प्रीहेन्सिव टेस्ट बैन ट्रीटी।
प्रश्न 30.
पंचशील सिद्धान्त का प्रतिपादन कब किया गया?
उत्तर:
पंचशील के सिद्धान्तों का प्रतिपादन 29 अप्रैल, 1954 को भारत और चीन के प्रधानमन्त्रियों ने तिब्बत के समझौते पर हस्ताक्षर करके किया।
प्रश्न 31.
मुजीबुर्रहमान की पार्टी का नाम क्या था?
उत्तर:
आवामी लीग।
प्रश्न 32.
रक्षा – उत्पाद विभाग और रक्षा आपूर्ति विभाग की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
रक्षा आपूर्ति विभाग – 1962
रक्षा आपूर्ति विभाग – 1965
प्रश्न 33.
चौथी पंचवर्षीय योजना कब शुरू की गई?
उत्तर:
1969
प्रश्न 34.
भारत ने परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत किसके निर्देशन में की?
उत्तर:
होमी जहाँगीर भाभा।
प्रश्न 35.
अरब-इजरायल युद्ध कब हुआ?
उत्तर:
1973 में।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारतीय विदेश नीति राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रखने में किस प्रकार सहायक सिद्ध हुई है?
उत्तर:
भारत की गुटनिरपेक्षता, दूसरे देशों से मैत्रीपूर्ण संबंध, जातीय भेदभाव का विरोध और संयुक्त राष्ट्र का समर्थन आदि विदेश नीति के सिद्धांत भारत के राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रखने में सहायक सिद्ध हुए हैं। भारत शुरुआत से ही शांतिप्रिय देश रहा है इसलिए भारत ने अपनी विदेश नीति को राष्ट्रीय हितों के सिद्धांत पर आधारित किया। अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी भारत ने सबसे मित्रतापूर्ण व्यवहार रखा। वर्तमान समय में भी भारत के संबंध विश्व की महाशक्तियों एवं अपने लगभग सभी पड़ोसी देशों के साथ अच्छे हैं।
प्रश्न 2.
विकासशील देशों की विदेश नीति का लक्ष्य सीधा-सादा होता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर;
जिस प्रकार किसी व्यक्ति या परिवार के व्यवहारों को अंदरूनी और बाहरी कारक निर्देशित करते हैं उसी ” तरह एक देश की विदेश नीति पर भी घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय वातावरण का असर पड़ता है। विकासशील देशों के पास अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के भीतर अपने सरोकारों को पूरा करने के लिए जरूरी संसाधनों का अभाव होता है। इसके कारण विकासशील देश बढ़े – चढ़े देशों की अपेक्षा सीधे-सादे लक्ष्यों को लेकर अपनी विदेश नीति तय करते हैं। ऐसे देश इस बात पर जोर देते हैं कि उनके पड़ोसी देशों में शांति कायम रहे और विकास भी होता रहे।
प्रश्न 3.
शिमला समझौता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
शिमला समझौता क्या है?
उत्तर:
भारत-पाक युद्ध 1971 के बाद जुलाई, 1972 में शिमला में भारत की प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भुट्टो के बीच एक समझौता हुआ जिसे शिमला समझौता कहा जाता है।
प्रश्न 4.
पंचशील के सिद्धान्तों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पंचशील के सिद्धान्तों का प्रतिपादन 29 अप्रैल, 1954 को भारत और चीन के प्रधानमन्त्रियों ने तिब्बत के सम्बन्ध में एक समझौता किया। ये सिद्धान्त हैं।
- सभी देश एक-दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता का सम्मान करें।
- अनाक्रमण।
- एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
- परस्पर समानता तथा लाभ के आधार पर कार्य करना।
- शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व।
प्रश्न 5.
अनुच्छेद 51 में वर्णित अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा बढ़ाने वाले कोई दो नीति निदेशक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अनुच्छेद-51 में वर्णित अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा बढ़ाने वाले दो नीति निदेशक तत्त्व ये हैं।
- अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा में अभिवृद्धि करना।
- अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता द्वारा निपटाने का प्रयास करना।
प्रश्न 6.
पण्डित नेहरू के अनुसार गुटनिरपेक्षता का क्या अर्थ है?
उत्तर:
पण्डित नेहरू के अनुसार गुटनिरपेक्षता नकारात्मक तटस्थता, अप्रगतिशील अथवा उपदेशात्मक नीति नहीं है । इसका अर्थ सकारात्मक है अर्थात् जो उचित और न्यायसंगत है उसकी सहायता एवं समर्थन करना तथा जो अनुचित एवं अन्यायपूर्ण है उसकी आलोचना एवं निन्दा करना है।
प्रश्न 7.
भारतीय विदेश नीति में साधनों की पवित्रता से क्या अर्थ है?
उत्तर:
भारतीय विदेश नीति में साधनों की पवित्रता से तात्पर्य है। अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का समाधान करने में शान्तिपूर्ण तरीकों का समर्थन तथा हिंसात्मक एवं अनैतिक साधनों का विरोध करना । भारतीय विदेश नीति का यह तत्त्व अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को परस्पर घृणा तथा सन्देह की भावना से दूर रखना चाहता है।
प्रश्न 8.
दूसरे युद्ध के पश्चात् विकासशील देशों ने क्या ध्यान में रखकर अपनी विदेश नीति बनाई?
उत्तर:
विकासशील देश आर्थिक और सुरक्षा की दृष्टि से ज्यादा ताकतवर देशों पर निर्भर होते हैं। इसलिए दूसरे विश्वयुद्ध के तुरंत बाद के दौर में अनेक विकासशील देशों ने ताकतवर देशों की मर्जी को ध्यान में रखकर अपनी विदेश नीति अपनाई क्योंकि इन देशों से इन्हें अनुदान अथवा कर्ज मिल रहा था।
प्रश्न 9.
विदेश मंत्री के रूप में नेहरू के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विदेश मंत्री के रहते हुए प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय एजेंडा तय करने में निर्णायक भूमिका निभाई। प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के रूप में 1946 से 1964 तक उन्होंने भारत की विदेश नीति की रचना और क्रियान्वयन पर गहरा प्रभाव डाला। इनकी विदेश नीति के तीन बड़े उद्देश्य थे। कठिन संघर्ष से प्राप्त संप्रभुता को बचाए रखना, क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखना और तेज रफ्तार से आर्थिक विकास करना।
प्रश्न 10.
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना के लिए कौन-कौन उत्तरदायी थे?
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के जन्मदाता के रूप में भारत का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। सर्वप्रथम नेहरूजी ने इस नीति को भारत के लिए उपयुक्त समझा। इसके पश्चात् 1955 के बांडुंग सम्मेलन के दौरान नासिर (मिस्र) एवं टीटो (यूगोस्लाविया) के साथ मिलकर इसे विश्व आन्दोलन बनाने पर सहमति प्रकट की।
प्रश्न 11.
गुट निरपेक्षता की नीति ने कम से कम दो तरह से भारत का प्रत्यक्ष रूप से हित साधन किया- स्पष्ट कीजिये। गुट निरपेक्ष नीति से भारत को मिलने वाले दो लाभ बताइये।
उत्तर:
- गुट निरपेक्ष नीति अपनाकर ही भारत शीत युद्ध काल में दोनों गुटों से सैनिक व आर्थिक सहायता प्राप्त करने में सफल रहा।
- इस नीति के कारण ही भारत को कश्मीर समस्या पर रूस का हमेशा समर्थन मिला।
प्रश्न 12.
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के क्या कारण थे?
उत्तर:
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के प्रमुख कारण निम्न थे।
- 1962 में चीन से हार जाने से पाकिस्तान ने भारत को कमजोर माना।
- 1964 में नेहरू की मृत्यु के बाद नए नेतृत्व को पाकिस्तान ने कमजोर माना।
- पाकिस्तान में सत्ता प्राप्ति की राजनीति।
- 1963-64 में कश्मीर में मुस्लिम विरोधी गतिविधियाँ पाकिस्तान की विजय में सहायक होंगी।
प्रश्न 13.
विदेश नीति से संबंधित किन्हीं दो नीति निर्देशक सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिये।
अथवा
भारतीय विदेश नीति के संवैधानिक सिद्धान्तों को सूचीबद्ध कीजिये।
अथवा
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-51 में विदेश नीति के दिये गये संवैधानिक सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
- अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा में अभिवृद्धि।
- राष्ट्रों के बीच न्यायपूर्ण एवं सम्मानपूर्ण सम्बन्धों को बनाए रखना।
- अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता द्वारा निपटाने का प्रयास करना।
- संगठित लोगों के परस्पर व्यवहारों में अन्तर्राष्ट्रीय विधि और संधियों के प्रति आदर की भावना रखना।
प्रश्न 14.
भारत की परमाणु नीति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत की परमाणु नीति- 18 अगस्त, 1999 को जारी की गई भारत की परमाणु नीति में शस्त्र नियंत्रण के सिद्धान्त को अपनाया गया है। भारत अपनी रक्षा के लिए परमाणु हथियार रखेगा, लेकिन उसने पहले परमाणु हमला नहीं करने की प्रतिबद्धता दर्शायी है।
प्रश्न 15.
भारतीय विदेश नीति में आया महत्त्वपूर्ण परिवर्तन बताओ।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन पश्चिमी ब्लॉक की तरफ मैत्रीपूर्ण व्यवहार करना, परमाणु ब्लॉक में शामिल होना। 1990 के बाद से रूस का अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व कम हुआ इसी कारण भारत की विदेश नीति में अमरीका समर्थक रणनीतियाँ अपनाई गई हैं। इसके अतिरिक्त मौजूदा अन्तर्राष्ट्रीय परिवेश में सैन्य हितों के बजाय आर्थिक हितों पर जोर ज्यादा है। इसका असर भी भारत की विदेश नीति में अपनाए गए विकल्पों पर पड़ा है।
प्रश्न 16.
भारत-रूस ( सोवियत संघ ) 1971 की सन्धि के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1971 में भारत: सोवियत संघ के बीच 20 वर्षीय मैत्री की सन्धि की गई थी। इस सन्धि के अधीन सोवियत संघ ने भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति को स्वीकार किया तथा दोनों देशों ने किसी के विरुद्ध हुए बाह्य आक्रमण के समय परस्पर विचार-विमर्श करने की व्यवस्था की।
प्रश्न 17.
1950 के दशक में भारत-अमरीकी सम्बन्धों में खटास पैदा करने वाले दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
- पाकिस्तान अमरीकी नेतृत्व वाले सैन्य गठबन्धन में शामिल हो गया। इससे अमरीका तथा भारत के सम्बन्धों में खटास पैदा हो गई।
- अमरीका, सोवियत संघ से भारत की बढ़ती हुई दोस्ती को लेकर भी नाराज था।
प्रश्न 18.
प्रथम एफ्रो-एशियाई एकता सम्मेलन कहाँ हुआ? इसकी दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
प्रथम एफ्रो एशियाई एकता सम्मेलन इंडोनेशिया के एक बड़े शहर बांडुंग में 1955 में हुआ इसकी विशेषताएँ हैं।
- इस सम्मेलन में गुट निरपेक्ष आन्दोलन की नींव पड़ी।
- इस सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों ने इण्डोनेशिया में नस्लवाद विशेषकर दक्षिण अफ्रीका में रंग-भेद का विरोध किया।
प्रश्न 19.
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के कोई तीन राजनीतिक परिणाम बताइये।
उत्तर:
- भारतीय सेना के समक्ष पाकिस्तानी सेना ने 90,000 सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया।
- बांग्लादेश के रूप में एक स्वतन्त्र राज्य का उदय हुआ।
- 3 जुलाई, 1972 को इन्दिरा गाँधी और जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच शिमला समझौते पर हस्ताक्षर हुए और अमन की बहाली हुई।
प्रश्न 20.
विदेश नीति के चार अनिवार्य कारक बताइए।
उत्तर:
विदेश नीति के चार प्रमुख अनिवार्य कारक ये हैं।
- राष्ट्रीय हित,
- राज्य की राजनीतिक स्थिति,
- पड़ोसी देशों के साथ सम्बन्ध,
- अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक वातावरण।
प्रश्न 21.
भारतीय विदेश नीति के लक्ष्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
- राष्ट्रीय हित: भारतीय विदेश नीति का लक्ष्य राष्ट्रीय हितों की पूर्ति करना है जिसमें सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक व राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में उत्तरोत्तर विकास करना है।
- विश्व समस्याओं के प्रति दृष्टिकोण-इनमें प्रमुख रूप से विश्व शान्ति, राज्यों का सहअस्तित्व, राज्यों का आर्थिक विकास मानवाधिकार आदि शामिल हैं।
प्रश्न 22.
नेहरूजी की विदेश नीति की कोई दो विशेषताएँ लिखिये
अथवा
भारतीय विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
- गुटनिरपेक्षता की नीति का अनुसरण करना।
- राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना।
- जाति, रंग, भेदभाव, उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद का विरोध करना।
प्रश्न 23.
एशियाई देशों के मामले में नेहरू के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के आकार, अवस्थिति और शक्ति: संभावना को भाँपकर नेहरू ने विश्व के मामलों, मुख्यतया एशियाई मामलों में भारत के लिए बड़ी भूमिका का स्वप्न देखा था। नेहरू के दौर में भारत ने एशियाई और अफ्रीका के नव-स्वतंत्र देशों के साथ संपर्क बनाए 1940 और 1950 के दशकों में नेहरू बड़े मुखर स्वर में एशियाई एकता की पैरोकारी करते रहे। नेहरू की अगुवाई में भारत ने 1947 के मार्च में एशियाई संबंध सम्मेलन का आयोजन किया। भारत ने इंडोनेशिया को डच औपनिवेशिक शासन से मुक्त कराने के लिए स्वतंत्रता संग्राम के समर्थन में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन किया।
प्रश्न 24.
ताशकंद समझौते के कोई दो प्रावधान लिखें।
उत्तर:
- दोनों पक्षों ( भारत – पाकिस्तान) का यह प्रयास रहेगा कि संयुक्त राष्ट्र के घोषणा-पत्र के अनुसार दोनों में मधुर सम्बन्ध बनें।
- दोनों पक्ष इस बात पर सहमत थे कि दोनों देशों की सेनाएँ फरवरी, 1966 से पहले उस स्थान पर पहुँच जाएँ जहाँ 5 अगस्त, 1965 से पहले थीं।
प्रश्न 25.
शिमला समझौते पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
1972 में भारत और पाकिस्तान के मध्य शिमला समझौता हुआ। इसकी प्रमुख शर्तें हैं।
- दोनों देश आपसी मतभेदों का शान्तिपूर्ण ढंग से समाधान करेंगे।
- दोनों देश एक-दूसरे की सीमा पर आक्रमण नहीं करेंगे।
प्रश्न 26.
भारत और चीन के मध्य तनाव के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:
- भारत और चीन में महत्त्वपूर्ण विवाद सीमा का विवाद है। चीन ने भारत की भूमि पर कब्जा कर रखा है।
- चीन का तिब्बत पर कब्जा और भारत का दलाईलामा को राजनीतिक शरण देना।
प्रश्न 27.
भारत व चीन के मध्य अच्छे सम्बन्ध बनाने हेतु दो सुझाव दीजिये।
उत्तर:
- दोनों पक्ष सीमा विवादों के निपटारे के लिए वार्ताएँ जारी रखें तथा सीमा क्षेत्र में शांति बनाए रखें।
- दोनों देशों को द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि करने का प्रयत्न करना चाहिए।
प्रश्न 28.
भारत और पाकिस्तान के बीच सम्बन्धों में तनाव के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:
- भारत-पाक सम्बन्धों में तनाव का महत्त्वपूर्ण कारण कश्मीर का मामला है।
- भारत-पाक के मध्य तनाव का अन्य कारण भारत में पाक समर्थित आतंकवाद है। पाकिस्तान पिछले कुछ वर्षों से कश्मीर के आतंकवादियों की सभी तरह से सहायता कर रहा है।
प्रश्न 29.
भारत द्वारा परमाणु नीति अपनाने के मुख्य कारण बताइ ।
उत्तर:
- भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर दूसरे देशों के आक्रमण से बचने के लिए न्यूनतम – अवरोध की स्थिति प्राप्त करना चाहता है।
- भारत के दो पड़ोसी देशों चीन एवं पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं और इन दोनों देशों से भारत युद्ध भी लड़ चुका है।
प्रश्न 30.
भारत की परमाणु नीति की किन्हीं दो विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
- भारत परमाणु क्षेत्र में न्यूनतम प्रतिरोध की क्षमता प्राप्त करना चाहता है।
- भारत परमाणु हथियारों का प्रयोग पहले नहीं करेगा।
प्रश्न 31.
भारतीय विदेश नीति के चार निर्धारक तत्त्वों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय विदेश नीति के निर्धारक तत्त्व : भारतीय विदेश नीति के प्रमुख निर्धारक तत्त्व निम्नलिखित हैं।
- भारत की विदेश नीति की आधारशिला उसके राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा है।
- शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व की भावना का विकास करना।
- पड़ोसी देशों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बनाये रखना।
- अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को सुलझाने हेतु शान्तिपूर्ण साधनों के प्रयोग पर बल देना।
प्रश्न 32.
आप नेहरूजी को विदेश नीति तय करने का एक अनिवार्य संकेतक क्यों मानते हैं? दो कारण बताइये।
उत्तर:
- नेहरूजी प्रधानमंत्री के साथ-साथ विदेश मंत्री भी थे। प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के रूप में उन्होंने भारत की विदेश नीति की रचना और क्रियान्वयन पर गहरा प्रभाव डाला।
- नेहरूजी ने देश की संप्रभुता को बचाए रखने, क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने तथा तीव्र आर्थिक विकास की दृष्टि से गुटनिरपेक्षता की नीति अपनायी।
प्रश्न 33.
पण्डित नेहरू के काल में भारत की विदेश नीति की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
पण्डित नेहरू के काल में भारत की विदेश नीति की उपलब्धियाँ: प्रधानमन्त्री नेहरू की विदेश नीति अत्यधिक आदर्शवादी और भावना प्रधान थी। इस नीति के चलते भारत ने दोनों गुटों से प्रशंसा तथा सहायता पाने में सफलता प्राप्त की। यह विश्व शान्ति बनाये रखने में अत्यधिक सफल रही। नेहरू की गुटनिरपेक्षता की नीति के कारण ही भारत-चीन युद्ध के समय उन्होंने रूस तथा अमेरिका दोनों देशों से सहायता प्राप्त की इस नीति के कारण भारत शान्तिदूत, गुटों का पुल, तटस्थ विश्व का नेता आदि माना जाने लगा।
प्रश्न 34.
पंचशील के पाँच सिद्धान्त क्या हैं?
अथवा
पंचशील के सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पंचशील के सिद्धान्त: पंचशील के पाँच सिद्धान्त निम्नलिखित हैं।
- सभी राष्ट्र एक-दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता और सम्प्रभुता का सम्मान करें।
- कोई राज्य दूसरे राज्य पर आक्रमण न करे और राष्ट्रीय सीमाओं का अतिक्रमण न करे।
- कोई राज्य किसी दूसरे राज्य के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करे।
- प्रत्येक राज्य एक-दूसरे के साथ समानता का व्यवहार करे तथा पारस्परिक हित में सहयोग प्रदान करे।
- सभी राष्ट्र शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धान्त में विश्वास करें
प्रश्न 35.
भारतीय विदेश नीति के ऐसे कोई दो उदाहरण दीजिये जिनमें भारत ने स्वतंत्र दृष्टिकोण अपनाया है।
उत्तर:
निम्नलिखित दो अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं में भारत ने स्वतंत्र दृष्टिकोण अपनाया है।
- शीतयुद्ध के दौरान भारत न तो संयुक्त राज्य अमेरिका और न ही सोवियत संघ के खेमे में सम्मिलित हुआ तथा उसने गुटनिरपेक्ष आंदोलन को शुरू करने, समय-समय पर होने वाले सम्मेलनों में स्वेच्छा एवं पूर्ण निष्पक्षता से भाग लिया।
- भारत ने शांति व विकास के लिए परमाणु ऊर्जा व शक्ति के प्रयोग का समर्थन किया तथा निर्भय होकर सन् में परमाणु परीक्षण किया तथा उसे उचित बताया।
प्रश्न 36.
अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं के ऐसे कोई दो उदाहरण दीजिये जिनमें भारत ने स्वतंत्र दृष्टिकोण अपनाया है।
उत्तर:
- 1956 में जब ब्रिटेन ने स्वेज नहर के मामले को लेकर मिस्र पर आक्रमण किया तो भारत ने इस औपनिवेशिक हमले के विरुद्ध विश्वव्यापी विरोध की अगुवाई की।
- 1956 में ही जब सोवियत संघ ने हंगरी पर आक्रमण किया तो भारत ने सोवियत संघ के इस कदम की सार्वजनिक निंदा की।
प्रश्न 37
भारतीय विदेश नीति में परिवर्तन के स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय विदेश नीति का परिवर्तित स्वरूप: भारतीय विदेश नीति के परिवर्तित स्वरूप की व्याख्या निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत की जा सकती है।
- सामरिक और तकनीकी ताकत हासिल करने, परमाणु परीक्षण करने और परमाणु अप्रसार सन्धि तथा सी. टी. बी. टी. पर हस्ताक्षर न करने की नीति को अपनाया।
- बांग्लादेश की स्वतन्त्रता के लिए श्रीलंका की सरकार के चाहने पर तथा मालदीव की सुरक्षा के लिए भारतीय सेनाओं को इन देशों में भेजा।
- व्यावहारिक कूटनीति को अपनाना, जैसे अफगानिस्तान पर रूसी कार्यवाही पर चुप रहना, नेपाल को चेतावनी देना, इजरायल से दौत्य सम्बन्ध स्थापित करना आदि।
- आकार, शक्ति, तकनीकी और सैनिक श्रेष्ठता आदि के आधार पर दक्षिण एशिया को भारतीय प्रभाव क्षेत्र बनाना।
प्रश्न 38.
बांडुंग सम्मेलन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
इंडोनेशिया के एक शहर बांडुंग में एफ्रो-एशियाई सम्मेलन 1955 में हुआ । इसी सम्मेलन को बांडुंग सम्मेलन के नाम से जाना जाता है। अफ्रीका और एशिया के नव-स्वतंत्र देशों के साथ भारत के बढ़ते संपर्क का यह चरम बिंदु था। बांडुंग सम्मेलन में ही गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव पड़ी।
प्रश्न 39.
पण्डित नेहरू की विदेश नीति की कोई चार विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
पण्डित नेहरू की विदेश नीति की विशेषताएँ पण्डित नेहरू की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
- गुटनिरपेक्षता: नेहरू की विदेश नीति की सबसे प्रमुख विशेषता गुटनिरपेक्षता है। गुटनिरपेक्षता का अर्थ – किसी गुट में शामिल न होना और स्वतन्त्र नीति का अनुसरण करना।
- विश्व शान्ति और सुरक्षा की नीति: नेहरू की विदेश नीति का आधारभूत सिद्धान्त विश्व शान्ति और सुरक्षा बनाए रखना है।
- साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद का विरोध: नेहरू ने सदैव साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का विरोध किया है।
- अन्य देशों के साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार: नेहरू की विदेश नीति की एक अन्य विशेषता विश्व के सभी देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बनाने का प्रयास करना रही।
प्रश्न 40.
भारत की पड़ोसी देशों के प्रति क्या नीति है? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
भारत की पड़ोसी देशों के प्रति नीति – भारत सदैव ही पड़ोसी देशों से मित्रवत् सम्बन्ध चाहता है। भारत का मानना है कि बिना मित्रतापूर्ण सम्बन्ध के कोई भी देश सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक विकास नहीं कर सकता। इसलिए भारत ने पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, मालदीव, म्यांमार इत्यादि पड़ोसी देशों से मधुर सम्बन्ध बनाए रखने के लिए समय-समय पर कई कदम उठाए हैं। उन्हीं महत्त्वपूर्ण कदमों में से एक सार्क की स्थापना है। इससे न केवल भारत के अन्य पड़ोसी देशों के साथ सम्बन्ध मधुर होंगे, बल्कि दक्षिण एशिया और अधिक विकास कर सकेगा। भारत की नीति यह है कि पड़ोसी देशों के साथ जो भी मतभेद हैं, उन्हें युद्ध से नहीं बल्कि बातचीत द्वारा हल किया जाना चाहिए।
प्रश्न 41.
1962 के भारत-चीन युद्ध के कारण बताइए।
उत्तर:
भारत-चीन युद्ध के कारण: 1962 के भारत-चीन युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।
- तिब्बत की समस्या: 1962 के भारत-चीन युद्ध की सबसे बड़ी समस्या तिब्बत की समस्या थी। चीन ने सदैव तिब्बत पर अपना दावा किया, जबकि भारत इस समस्या को तिब्बत वासियों की भावनाओं को ध्यान में रखकर सुलझाना चाहता था।
- मानचित्र से सम्बन्धित समस्या- भारत और चीन के बीच 1962 में हुए युद्ध का एक कारण दोनों देशों के बीच मानचित्र में रेखांकित भू-भाग था। चीन ने 1954 में प्रकाशित अपने मानचित्र में कुछ ऐसे भाग प्रदर्शित किये जो वास्तव में भारतीय भू-भाग में थे, अत: भारत ने इस पर चीन के साथ अपना विरोध दर्ज कराया।
- सीमा विवाद – भारत-चीन के बीच युद्ध का एक कारण सीमा विवाद भी था।
प्रश्न 42.
ताशकन्द समझौता कब हुआ? इसके प्रमुख प्रावधान लिखिए।
उत्तर:
ताशकन्द समझौता: सितम्बर, 1965 में हुए भारत-पाक युद्ध के बाद 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद में भारत के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खां के बीच ताशकंद समझौता सम्पन्न हुआ। इस समझौते के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे।
संजीव पास बुक्स
- भारत एवं पाकिस्तान अच्छे पड़ोसियों की भाँति सम्बन्ध स्थापित करेंगे और विवादों को शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझायेंगे।
- दोनों देश के सैनिक युद्ध से पूर्व की स्थिति में चले जायेंगे। दोनों युद्ध-विराम की शर्तों का पालन करेंगे।
- दोनों एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
- दोनों राजनयिक सम्बन्धों को पुनः सामान्य रूप से स्थापित करेंगे।
- दोनों आर्थिक एवं व्यापारिक सम्बन्धों को पुनः सामान्य रूप से स्थापित करेंगे।
- दोनों देश सन्धि की शर्तों का पालन करने के लिए सर्वोच्च स्तर पर आपस में मिलते रहेंगे।
प्रश्न 43.
बांग्लादेश युद्ध, 1971 पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
बांग्लादेश युद्ध, 1971 1970 में पाकिस्तान के हुए आम चुनाव के बाद पाकिस्तान की सेना ने 1971 में शेख मुजीब को गिरफ्तार कर लिया। इसके विरोध में पूर्वी पाकिस्तान की जनता ने अपने इलाके को पाकिस्तान से मुक्त कराने का संघर्ष छेड़ दिया। पाकिस्तानी शासन ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर जुल्म ढाना शुरू कर दिया । फलतः लगभग 80 लाख शरणार्थी पाकिस्तान से भाग कर भारत में शरण लिये हुए थे। महीनों राजनायिक तनाव और सैन्य तैनाती के बाद 1971 के दिसम्बर में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया। दस दिनों के अन्दर भारतीय सेना ने ढाका को तीन तरफ से घेर लिया और अपने 90000 सैनिकों के साथ पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण करना पड़ा। बांग्लादेश के रूप में एक स्वतंत्र राष्ट्र का उदय हुआ। भारतीय सेना ने एकतरफा युद्ध विराम कर दिया।
प्रश्न 44.
शिमला समझौता कब हुआ? इसके प्रमुख प्रावधान लिखिए।
उत्तर:
शिमला समझौता:
28 जून, 1972 को श्रीमती इन्दिरा गाँधी एवं जुल्फिकार अली भुट्टो के द्वारा शिमला में दोनों देशों के मध्य जो समझौता हुआ उसे शिमला समझौते के नाम से जाना जाता है। इस समझौते के निम्नलिखित प्रमुख प्रावधान थे।
- दोनों देश सभी विवादों एवं समस्याओं के शान्तिपूर्ण समाधान के लिए सीधी वार्ता करेंगे।
- दोनों एक-दूसरे के विरुद्ध दुष्प्रचार नहीं करेंगे।
- दोनों देशों के सम्बन्धों को सामान्य बनाने के लिए
- संचार सम्बन्ध फिर से स्थापित करेंगे,
- आवागमन की सुविधाओं का विस्तार करेंगे।
- व्यापार एवं आर्थिक सहयोग स्थापित करेंगे,
- विज्ञान एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में आदान-प्रदान करेंगे।
- (4) स्थायी शान्ति स्थापित करने हेतु हर सम्भव प्रयास किये जाएँगे।
- (5) भविष्य में दोनों सरकारों के अध्यक्ष मिलते रहेंगे।
प्रश्न 45.
वी. के. कृष्णमेनन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
वी.के. कृष्णमेनन (1897-1974) भारतीय राजनयिक एवं मंत्री थे। 1939 से 1947 के समयकाल में ये इंग्लैंड की लेबर पार्टी में सक्रिय थे। आप इंग्लैंड में भारतीय उच्चायुक्त एवं बाद में संयुक्त राष्ट्र में भारतीय प्रतिनिधि मंडल के मुखिया थे। आप राज्यसभा के सांसद एवं बाद में लोकसभा सांसद बने। 1956 से संघ केबिनेट के सदस्य 1957 से रक्षा मंत्री का पद संभाला। आपने 1962 में भारत-चीन के युद्ध के बाद इस्तीफा दे दिया।
प्रश्न 46.
चीन के साथ युद्ध का भारत पर क्या परिणाम हुआ?
उत्तर:
चीन के साथ युद्ध से भारत की छवि को देश और विदेश दोनों ही जगह धक्का लगा। इस संकट से उबरने के लिए भारत को अमरीका और ब्रिटेन से सैन्य मदद लेनी पड़ी। चीन युद्ध से भारतीय राष्ट्रीय स्वाभिमान को ठेस लगी परंतु राष्ट्र – भावना मजबूत हुई। नेहरू की छवि भी धूमिल हुई। चीन के इरादों को समय रहते न भाँप सकने और सैन्य तैयारी न कर पाने को लेकर नेहरू की पड़ी आलोचना हुई। पहली बार, उनकी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। इसके तुरंत बाद, कांग्रेस ने कुछ महत्त्वपूर्ण चुनावों में हार का सामना किया। देश का राजनीतिक मानस बदलने लगा था।
प्रश्न 47.
भारत और पाकिस्तान के मध्य तनाव के कोई चार कारण बताइये।
उत्तर:
भारत और पाकिस्तान के मध्य तनाव के कारण- भारत और पाकिस्तान के मध्य तनाव के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।
- कश्मीर समस्या: भारत एवं पाकिस्तान के मध्य तनाव का प्रमुख मुद्दा कश्मीर है।
- सियाचिन ग्लेशियर का मामला: पिछले कुछ समय से पाकिस्तान सैनिक कार्यवाही द्वारा सियाचिन पर कब्जा करने का प्रयास कर रहा है जिसे भारत के सैनिकों ने विफल कर दिया।
- आतंकवाद की समस्या: पाकिस्तान भारत में जेहाद के नाम पर आतंकवादी गतिविधियाँ फैला रहा है।
- आणविक हथियारों की होड़: भारत और पाकिस्तान के मध्य आणविक हथियारों की होड़ भी दोनों देशों के मध्य तनाव का मुख्य कारण माना जाता है।
प्रश्न 48.
करगिल संघर्ष के कारणों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
करगिल संघर्ष के कारण: करगिल संघर्ष के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे।
- पाकिस्तान को अमेरिका तथा चीन द्वारा अपनी अति गोपनीय कूटनीति विस्तार हेतु आर्थिक सहायता प्रदान
- पाकिस्तानी सेना प्रमुख द्वारा इस मामले को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को अंधेरे में रखना।
- पाकिस्तानी सेना द्वारा छद्म रूप से भारतीय नियंत्रण रेखा के कई ठिकानों, जैसे द्रास, माश्कोह, काकस तथा तालिक पर कब्जा कर लेना।
प्रश्न 49.
करगिल की लड़ाई पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
करगिल संकट पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
करगिल की लड़ाई: सन् 1999 के शुरूआती महीनों में भारतीय नियन्त्रण रेखा के कई ठिकानों जैसे द्रास, माश्कोह, काकसर और बतालिक पर अपने को मुजाहिदीन बताने वालों ने कब्जा कर लिया था। पाकिस्तानी सेना की इसमें मिली भगत भांप कर भारतीय सेना हरकत में आयी। इससे दोनों देशों के बीच संघर्ष छिड़ गया।
इसे करगिल की लड़ाई के नाम से जाना जाता है। 1999 के मई-जून में यह लड़ाई जारी रही। 26 जुलाई, 1999 तक भारत अपने अधिकतर क्षेत्रों पर पुनः अधिकार कर चुका था। करगिल की इस लड़ाई ने पूरे विश्व का ध्यान खींचा था क्योंकि इससे ठीक एक वर्ष पहले दोनों देश परमाणु हथियार बनाने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर चुके थे।
प्रश्न 50.
तिब्बत का पठार भारत और चीन के तनाव का बड़ा मामला कैसे बना?
उत्तर:
- सन् 1950 में चीन ने तिब्बत पर नियंत्रण कर लिया। सन् 1958 में चीनी आधिपत्य के विरुद्ध तिब्बत में सशस्त्र विद्रोह हुआ जिसे चीनी सेनाओं ने दबा दिया। स्थिति को बिगड़ता देखकर तिब्बत के पारम्परिक नेता दलाई लामा ने सीमा पार कर भारत में प्रवेश किया तथा उसने 1959 में भारत से शरण मांगी। भारत ने दलाई लामा को शरण दे दी। चीन ने भारत के इस कदम का कड़ा विरोध किया।
- 1950 और 1960 के दशक में भारत के अनेक राजनीतिक दल तथा राजनेताओं ने तिब्बत की आजादी के प्रति अपना समर्थन जताया, जबकि चीन इसे अपना अभिन्न अंग मानता है। इन कारणों से तिब्बत भारत और चीन के बीच तनाव का बड़ा मामला बना।
प्रश्न 51.
भारत-चीन युद्ध पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत-चीन युद्ध-20 अक्टूबर, 1962 को चीन ने नेफा और लद्दाख की सीमाओं में घुस कर भारत पर सुनियोजित ढंग से बड़े पैमाने पर आक्रमण किया। नेफा क्षेत्र में भारत को पीछे हटना पड़ा और असम के मैदान में खतरा उत्पन्न हो गया। 24 नवम्बर, 1962 को चीन ने अपनी तरफ से युद्ध विराम की घोषणा कर दी और चीनी सेनाएँ 7 नवम्बर, 1959 की वास्तविक नियन्त्रण रेखा से 20 कि.मी. पीछे हट गईं। यद्यपि भारत की पर्याप्त भूमि पर उन्होंने अपना अधिकार कर लिया था।
चीन ने वार्ता का प्रस्ताव भी किया परन्तु भारत ने इस शर्त के साथ इसे अस्वीकार कर दिया कि जब तक चीनी सेनाएँ 8 सितम्बर, 1962 की स्थिति तक वापस नहीं लौट जायेंगी तब तक वार्ता नहीं हो सकती। इस युद्ध में भारत की पराजय से एशिया तथा विश्व में भारत की प्रतिष्ठा घटी और इस युद्ध के पीछे चीन का यह मूल उद्देश्य था, जिसमें सफल रहा।
प्रश्न 52.
भारत तथा बांग्लादेश के बीच सहयोग और असहमति के किसी एक-एक क्षेत्र का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
- भारत तथा बांग्लादेश के बीच सहयोग: भारत तथा बांग्लादेश के बीच 1972 में 25 वर्षीय मैत्री, सहयोग और शांति संधि हुई थी। इसके साथ ही दोनों देशों के मध्य व्यापार समझौता भी हुआ। फलस्वरूप दोनों देशों में 1. सहयोग और मित्रता बढ़ती गयी।
- भारत तथा बांग्लादेश के बीच असहयोग: बांग्लादेश से शरणार्थी और घुसपैठिये लगातार भारत आते रहते हैं। भारत में लाखों बांग्लादेशी किसी न किसी तरह से अनाधिकृत रूप से रह रहे हैं। इस मुद्दे पर दोनों में सहमति नहीं हो पा रही है।
प्रश्न 53.
भारत द्वारा परमाणु नीति एवं कार्यक्रम अपनाने के कोई चार कारण बताइये।
उत्तर:
भारत द्वारा परमाणु नीति एवं कार्यक्रम निर्धारण के कारण: भारत द्वारा परमाणु नीति एवं कार्यक्रम निर्धारण के प्रमुख कारण निम्नलिखित है।
- आत्मनिर्भर राष्ट्र बनना: भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर एक आत्म-निर्भर राष्ट्र बनना चाहता है । विश्व के जिन देशों के पास भी हथियार हैं वे सभी आत्म-निर्भर राष्ट्र हैं।
- न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना: भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर दूसरे देशों के आक्रमण से बचने के लिए न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना चाहता है।
- दो पड़ोसी देशों के पास परमाणु हथियार होना: भारत के लिए परमाणु नीति एवं हथियार बनाना इसलिए आवश्यक है क्योंकि भारत के दोनों पड़ोसी देशों चीन एवं पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं।
- परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों की विभेदपूर्ण नीति: परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों ने 1968 में परमाणु अप्रसार सन्धि (NPT) तथा 1996 में व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध सन्धि (C. T. B. T.) को विभेदपूर्ण ढंग से लागू किया जिसके कारण भारत ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किये।
प्रश्न 54.
भारत की नवीन परमाणु नीति का मसौदा क्या है?
उत्तर:
भारत की नवीन परमाणु नीति- 18 अगस्त, 1999 को भारत सरकार ने अपनी नवीन परमाणु नीति का एक मसौदा प्रकाशित किया है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
- इसमें शस्त्र नियन्त्रण के सिद्धान्त को अपनाया गया है।
- किसी भी देश पर भारत पहला हमला नहीं करेगा, परन्तु उस पर हमला किया गया तो उसका मुँहतोड़ जवाब देगा।
- प्रधानमन्त्री या प्रधानमन्त्री द्वारा नामांकित व्यक्ति परमाणु विस्फोट के लिए उत्तरदायी होगा।
- सी. टी. बी. टी. के प्रश्न को इस मसौदे से अलग रखा गया है।
- भारत विश्व को परमाणु शक्तिहीन बनाने की प्रतिबद्धता पर कायम रहेगा।
- परमाणु अथवा मिसाइल प्रौद्योगिकी के निर्यात पर कड़ा नियन्त्रण रखा जायेगा।
प्रश्न 55.
चीन के साथ भारत के सम्बन्धों को बेहतर बनाने के लिए आप क्या सुझाव देंगे?
उत्तर:
चीन के साथ भारत के सम्बन्धों को बेहतर बनाने के लिए हम निम्न सुझाव देंगे।
- दोनों पक्ष सीमा विवाद को निपटारे के लिए वार्ताएँ जारी रखें तथा सीमा क्षेत्र में शांति बनाए रखें।
- हमें चीन के साथ द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि करने का प्रयत्न करना चाहिए।
- अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में पर्यावरण प्रदूषण के प्रश्नों में दोनों देशों को मिलकर संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्थाओं में अपना पक्ष रखना चाहिए क्योंकि दोनों देशों के हित समान हैं।
- हमें चीन के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान को भी बढ़ावा देना चाहिए।
प्रश्न 56.
1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद के भारत-चीन संबंध पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद इन दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य होने में दस साल लग गए। 1976 में दोनों देशों के बीच पूर्ण राजनयिक संबंध बहाल हो सके। शीर्ष नेता के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी (तब के विदेश मंत्री ) 1979 में चीन के दौरे पर गए। इसके बाद से चीन के साथ भारत संबंधों में ज्यादा जोर व्यापारिक मसलों पर रहा है।
प्रश्न 57.
कश्मीर मुद्दे पर संघर्ष के बावजूद भारत और पाकिस्तान की सरकारों के बीच सहयोग-संबंध कायम रहे। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कश्मीर मुद्दे पर संघर्ष के बावजूद भारत और पाकिस्तान की सरकारों के बीच सहयोग-संबंध कायम रहे इस कथन का सत्यापन निम्न उदाहरणों द्वारा किया जा सकता है।
- दोनों सरकारों ने मिल-जुल कर प्रयास किया कि बँटवारे के समय अपहृत महिलाओं को उनके परिवार के पास लौटाया जा सके।
- विश्व बैंक की मध्यस्थता से नदी जल में हिस्सेदारी का लंबा विवाद सुलझा लिया गया।
- नेहरू और जनरल अयूब खान ने सिंधु नदी जल संधि पर 1960 में हस्ताक्षर किए और भारत-पाक संबंधों में तनाव के बावजूद इस संधि पर ठीक-ठाक अमल होता रहा।
प्रश्न 58.
भारत ने सोवियत संघ के साथ 1971 में शांति और मित्रता की 20 वर्षीय संधि पर दस्तखत क्यों किये?
उत्तर:
पूर्वी पाकिस्तान की जनता ने अपने इलाके को पाकिस्तान से मुक्त कराने के लिए संघर्ष छेड़ दिया। भारत ने बांग्लादेश के ‘मुक्ति संग्राम’ को नैतिक समर्थन और भौतिक सहायता दी। ऐसे समय पर पाकिस्तान को अमरीका और चीन ने सहायता की। 1960 के दशक में अमरीका और चीन के बीच संबंधों को सामान्य करने की कोशिश चल रही थी, इससे एशिया में सत्ता- समीकरण नया रूप ले रहा था। अमरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के सलाहकार हेनरी किसिंजर ने 1971 के जुलाई में पाकिस्तान होते हुए गुपचुप चीन का दौरा किया। अमरीका- पाकिस्तान-चीन की धुरी बनते देख भारत ने इसके जवाब में सोवियत संघ के साथ 1971 में शांति और मित्रता की एक 20 वर्षीय संधि पर दस्तखत किए। इस संधि से भारत को यह आश्वासन मिला कि हमला होने की सूरत में सोवियत संघ भारत की मदद करेगा ।
प्रश्न 59.
चीन के साथ हुए युद्ध ने भारत के नेताओं पर आंतरिक क्षेत्रीय नीतियों के हिसाब से क्या उल्लेखनीय प्रभाव डाला? संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
चीन के साथ हुए युद्ध ने भारत के नेताओं को पूर्वोत्तर की डावांडोल स्थिति के प्रति सचेत किया। यह इलाका अत्यंत पिछड़ी दशा में था और अलग-थलग पड़ गया था। चीन युद्ध के तुरंत बाद इस इलाके को नयी तरतीब में ढालने की कोशिशें शुरू की गई। नागालैंड को प्रांत का दर्जा दिया गया। मणिपुर और त्रिपुरा हालांकि केन्द्र शासित प्रदेश थे लेकिन उन्हें अपनी विधानसभा के निर्वाचन का अधिकार मिला।
प्रश्न 60.
1962 और 1965 के युद्धों का भारतीय रक्षा व्यय पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
आजादी के बाद भारत ने अपने सीमित संसाधनों के साथ नियोजित विकास की रणनीति के साथ शुरुआत की। पड़ोसी देशों के साथ संघर्ष के कारण पंचवर्षीय योजना पटरी से उतर गई। 1962 के बाद भारत को अपने सीमित संसाधनों को रक्षा क्षेत्र में लगाना पड़ा। भारत को अपने सैन्य ढाँचे का आधुनिकीकरण करना पड़ा। 1962 में रक्षा उत्पाद और 1965 में रक्षा आपूर्ति विभाग की स्थापना हुई। तीसरी पंचवर्षीय योजना पर असर पड़ा और इसके बाद लगातार तीन एक-वर्षीय योजना पर अमल हुआ। चौथी पंचवर्षीय योजना 1969 में ही शुरू हो सकी। युद्ध के बाद भारत का रक्षा-व्यय बहुत ज्यादा बढ़ गया।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारतीय विदेश नीति की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
भारतीय विदेश नीति की विशेषताएँ: भारतीय विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
- अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा में आस्था: भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के लिए सदैव अपना सहयोग प्रदान किया है, चाहे वह कोरिया समस्या हो या इराक की समस्या।
- असंलग्नता अथवा गुट निरपेक्षता की नीति: असंलग्नता का अभिप्राय है। किसी गुट (पंक्ति) से संलग्न नहीं होना यह गुटों से पृथक् रहते हुए एक स्वतंत्र विदेश नीति है। यह तटस्थ न होकर एक सक्रिय विदेश नीति है।
- पंचशील के सिद्धान्त तथा शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की नीति: पंचशील का अर्थ है। पाँच सिद्धान्त। ये पाँच सिद्धान्त अग्रलिखित हैं।
- परस्पर एक-दूसरे की भौगोलिक अखण्डता तथा संप्रभुता का सम्मान।
- एक-दूसरे पर आक्रमण नहीं करना।
- एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना।
- परस्पर समानता तथा लाभ के आधार पर कार्य करना।
- शांतिपूर्ण सहअस्तित्व।
- साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का विरोध: भारत ने उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद के विरोध की नीति अपनाई। इसी नीति को दृष्टिगत रखते हुए भारत ने एशिया तथा अफ्रीकी देशों के स्वतन्त्रता आन्दोलनों को सक्रिय समर्थन प्रदान किया।
- सभी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना: भारत अपना गुट बनाने के स्थान पर सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना में विश्वास करता है।
- निःशस्त्रीकरण का समर्थन: भारत ने सदैव ही निःशस्त्रीकरण का समर्थन किया है।
- अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों एवं संयुक्त राष्ट्र के प्रति आस्था: भारत ने सदैव अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन किया है तथा संयुक्त राष्ट्र के प्रति आस्था व्यक्त की है।
प्रश्न 2.
वर्तमान में भारतीय गुटनिरपेक्षता की नीति का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
भारतीय विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता की नीति का महत्त्व: भारतीय विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता के महत्त्व का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता
- भारत गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाकर ही शीत युद्ध काल में दोनों गुटों से सैनिक और आर्थिक सहायता बिना शर्त प्राप्त करने में सफल रहा।
- गुट निरपेक्ष नीति के कारण भारत को कश्मीर समस्या पर रूस का हमेशा समर्थन मिला जबकि पश्चिमी शक्तियाँ पाकिस्तान का समर्थन कर रही थीं।
- भारत की गुटनिरपेक्ष नीति ने उसे आत्म-निर्भरता का पाठ पढ़ाया है।
- भारत की गुटनिरपेक्ष नीति शीतयुद्ध काल में अमरीका और रूस दोनों के शासनाध्यक्षों की प्रशंसा की पात्र रही है।
- भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति विश्व शांति में सहायक रही है। भारत ने शीत युद्ध की चरमावस्था में दोनों गुटों में सेतुबन्ध का कार्य किया और संकट की स्थिति को टालने का प्रयत्न किया।
इस प्रकार भारत की गुटनिरपेक्ष नीति अनेक कसौटियों पर कसी गई है। विश्व चाहे द्विध्रुवीय रहा हो या एकध्रुवीय, भारत चाहे अपने आर्थिक विकास के लिए पश्चिम या पूर्व से सहायता ले या सीमाओं की रक्षा के लिए पश्चिम से सैनिक अस्त्र-शस्त्र ले, द्विपक्षीय समझौतों के अन्तर्गत शान्ति सेनाएँ भेजे या मालदीव जैसी स्थितियों में तुरत-फुरत सक्रियता दिखाये, भारत के लिए असंलग्नता की नीति ही सर्वोत्तम है। इसी से उसके राष्ट्रीय हितों की सर्वोत्तम सुरक्षा हो सकती है तथा शान्ति स्थापित की जा सकती है।
प्रश्न 3.
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की समकालीन प्रासंगिकता बताइये।
उत्तर:
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता: गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की समकालीन प्रासंगिकता के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं।
- नये राष्ट्रों की स्वतन्त्रता तथा विकास की दृष्टि से प्रासंगिक: नए स्वतन्त्र देशों की स्वतन्त्रता की रक्षा तथा आर्थिक और सामाजिक विकास हेतु उन्हें युद्धों से दूर रहने की दृष्टि से गुटनिरपेक्ष आन्दोलन आज भी प्रासंगिक बना हुआ है।
- विकासशील राष्ट्रों के बीच परस्पर आर्थिक एवं सांस्कृतिक सहयोग: वर्तमान समय में विकासशील देशों को शोषण से बचाने, उनमें पारस्परिक आर्थिक तथा तकनीकी सहयोग को बढ़ाने, अपनी समाचार एजेन्सियों का निर्माण करने के लिए गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का औचित्य बना हुआ है।
- विश्व जनमत में सहायक: गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की वर्तमान काल में विश्व जनमत के निर्माण के लिए अत्यधिक आवश्यकता है।
- बहुगुटीय विश्व: सोवियत संघ के विघटन के बाद आज विश्व बहुगुटीय बन रहा है। वर्तमान बहुध्रुवीय विश्व में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की महती प्रासंगिकता बनी हुई है।
- एशिया तथा अफ्रीका में विस्फोटक स्थिति: वर्तमान काल में एशिया तथा अफ्रीका के विभिन्न क्षेत्र तनाव केन्द्र हैं। ऐसी स्थिति में निर्गुट आन्दोलन इनकी समस्याओं का समाधान ढूँढ़ने में सहायक सिद्ध हो सकता है।
- महत्वपूर्ण उद्देश्यों की प्राप्ति शेष:
- नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना
- संयुक्त राष्ट्र संघ का लोकतन्त्रीकरण
- न्यायसंगत विश्व की स्थापना तथा
- नि:शस्त्रीकरण आदि उद्देश्यों की प्राप्ति में इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है।
- प्रदूषण एवं अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद – प्रदूषण एवं अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के विरुद्ध एक संगठित दबाव पैदा करने की दृष्टि से गुटनिरपेक्ष आन्दोलन उपयोगी है।
प्रश्न 4.
भारत और पाकिस्तान के मध्य तनाव – विवाद के प्रमुख कारण बताइए।
अथवा
भारत-पाक सम्बन्धों की समीक्षा कीजिये।
उत्तर:
भारत और पाकिस्तान के मध्य तनाव के कारण: अपने पड़ौसी देशों के प्रति मधुर सम्बन्ध रखने को उच्च प्राथमिकता देने की भारत की नीति के बावजूद अनेक कारणों से भारत-पाक सम्बन्ध में तनाव व कटुता बनी रही है। भारत और पाकिस्तान के मध्य तनाव के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं।
- विभाजन से उत्पन्न अविश्वास: भारत विभाजन ने भारत और पाकिस्तान के मध्य शत्रुता उत्पन्न कर दी। यह ब्रिटिश शासकों की रणनीति थी।
- देशी रियासतों की समस्या तथा कश्मीर विवाद: कश्मीर के विलय का विवाद अभी भी दोनों देशों के मध्य व्याप्त है और यह निरन्तर दोनों देशों के बीच तनाव का मुख्य बिन्दु बना हुआ है।
- कच्छ के रन ( सरक्रीक) का प्रश्न 1947 में कच्छ की रियासत के भारत में विलय के साथ ही कच्छ का रन भी भारत का अंग बन गया था। लेकिन जुलाई, 1948 में पाकिस्तान ने यह प्रश्न उठाया कि कच्छ का रन चूँकि एक मृत समुद्री भाग है, अतः उसका मध्य भाग दोनों देशों की सीमा होना चाहिए। भारत ने उसके इस दावे को स्वीकार नहीं किया। दोनों देशों के मध्य इस विवाद को सुलझाने की दिशा में अनेक वार्ताएँ हुई हैं लेकिन अभी तक इनका निपटारा नहीं हो सका हैं।
- साम्प्रदायिक विभाजन की राजनीति: पाकिस्तानी राजनेता जान-बूझकर दोनों देशों के मध्य साम्प्रदायिक वैमनस्य बनाये रखना चाहते हैं। वे साम्प्रदायिक वैमनस्य को अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और संगठनों में अभिव्यक्त करते रहे हैं।
- भारत के विरुद्ध पाक प्रायोजित आतंकवाद – भारत के विरुद्ध पाक-प्रायोजित आतंकवाद के कारण भी दोनों देशों के मध्य कटुता बनी हुई है।
प्रश्न 5.
भारत-पाक सम्बन्धों को सुधारने हेतु सुझाव दीजिए।
उत्तर:
भारत-पाक सम्बन्धों को सुधारने हेतु सुझाव: भारत-पाक सम्बन्धों में आयी कटुता को दूर करने तथा उनके बीच सम्बन्धों को सुधारने हेतु निम्न सुझाव दिये जा सकते हैं।
- आपसी बातचीत एवं समझौते की नीति- भारत और पाकिस्तान के मध्य विवादों को आपसी बातचीत और समझौते द्वारा दूर किया जा सकता है।
- दोनों देशों के मध्य विश्वास बहाली के उपाय किये जाने चाहिए – भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के लोगों में आपसी विश्वास को मजबूत करने के लिए बसों, ट्रेनों की आवाजाही तथा व्यक्तिगत सम्पर्क आदि को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर बल: दोनों देशों में धार्मिक भिन्नताओं के बावजूद सांस्कृतिक समानताएँ हैं। अतः दोनों देशों में समय-समय पर एक-दूसरे के धार्मिक उत्सवों एवं समारोहों का आयोजन किया जाना चाहिए जिससे दोनों देशों की जनता के बीच परस्पर भाईचारे एवं सद्भावना का विकास हो।
- आपसी मतभेदों के अन्तर्राष्ट्रीयकरण पर रोक- दोनों देशों को मतभेदों का समाधान करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मंचों के स्थान पर द्विपक्षीय वार्ता एवं परस्पर सहयोग एवं समझौते की नीति का अनुसरण करना चाहिए।
- आतंकवादी गतिविधियों पर रोक लगायी जानी चाहिए: पाकिस्तान को चाहिए कि वह आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाए ताकि वार्ता द्वारा समझौते का वातावरण बन सके।
प्रश्न 6.
भारत एवं चीन सम्बन्धों का वर्तमान संदर्भ में परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
भारत-चीन सम्बन्ध: वर्तमान संदर्भ में भारत तथा चीन के सम्बन्धों का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।
- सीमा-विवाद यथावत्: आज भी दोनों देशों के मध्य सीमा के प्रश्न पर व्यापक मतभेद हैं, तथापि दोनों पक्ष इसे सुलझाने के लिए वार्ता जारी रखे हुए हैं। वर्तमान में दोनों देश इस नीति का दृढ़ता से पालन कर रहे हैं कि जब तक सीमा विवाद का अन्तिम रूप से समाधान नहीं हो जाता है, दोनों पक्ष सीमा क्षेत्र में शांति बनाए रखेंगे।
- आर्थिक तथा व्यापारिक क्षेत्रों में सहयोग की ओर बढ़ते कदम: 1993 में दोनों देशों के मध्य हुए एक व्यापारिक समझौते के बाद दोनों देशों के बीच सीमा – व्यापार पुनः प्रारम्भ हो गया है तथा यह निरन्तर बढ़ता जा रहा है। इसके अतिरिक्त दोनों देशों के बीच 50 से अधिक संयुक्त उद्यमों की स्थापना हुई है।
- विश्व व्यापार संगठन की बैठकों में परस्पर सहयोग; दोनों पक्षों में यह भी सहमति हुई कि वे विश्व व्यापार संगठन की बैठकों में दोनों के हितों से जुड़े मुद्दों पर परस्पर सहयोग करेंगे।
- वर्तमान समय में भारत-चीन के मध्य विवाद के प्रमुख मुद्दे: वर्तमान समय में भारत और चीन के मध्य विवाद के प्रमुख मुद्दे निम्न हैं।
- अनसुलझा सीमा विवाद
- घुसपैठ से घिरा अण्डमान-निकोबार
- चीन-पाकिस्तान में बढ़ती निकटता
- चीन का नया सामरिक गठजोड़
- तिब्बत पर कसता चीनी शिकंजा
- माओवाद से घिरता नेपाल
- चीन का साइबर आक्रमण
- भारतीय सीमा में घुसपैठ
- कश्मीरियों के लिए अलग से चीनी वीजा।
प्रश्न 7.
भारत द्वारा परमाणु नीति अपनाने के मुख्य कारण बताइए।
उत्तर:
भारत द्वारा परमाणु नीति अपनाने के कारण: भारत ने सर्वप्रथम 1974 में एक तथा 1998 में पांच परमाणु परीक्षण करके विश्व को दिखला दिया कि भारत भी एक परमाणु सम्पन्न राष्ट्र है। भारत द्वारा परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार को बनाने एवं रखने के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं।
- आत्मनिर्भर राष्ट्र बनना: भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर एक आत्मनिर्भर राष्ट्र बनना चाहता है। विश्व में जिन देशों के पास भी परमाणु हथियार हैं वे सभी आत्मनिर्भर राष्ट्र माने जाते हैं।
- प्रतिष्ठा प्राप्त करना: भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर शक्तिशाली राष्ट्र बन विश्व में प्रतिष्ठा प्राप्त करना चाहता है।
- न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना: भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर दूसरे देशों के आक्रमण से बचने के लिए न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना चाहता है।
- परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों की भेदपूर्ण नीति- परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों ने NPT-1996 तथा CTBT 1996 की भेदभावपूर्ण संधियों द्वारा अन्य राष्ट्रों को परमाणु सम्पन्न न बनने देने की नीति अपना रखी है। भारत ने इन पर हस्ताक्षर नहीं किये तथा परमाणु कार्यक्रम जारी रखा।
- भारत द्वारा लड़े गए युद्ध – भारत ने समय- समय पर 1962, 1965, 1971 एवं 1999 में युद्धों का सामना किया । युद्धों में होने वाली अधिक हानि से बचने के लिए भारत परमाणु हथियार प्राप्त करना चाहता है।
- दो पड़ोसी राष्ट्रों के पास परमाणु हथियार होना – भारत के लिए परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाने इसलिए भी आवश्यक हैं, क्योंकि भारत के दोनों पड़ोसी देशों चीन एवं पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं।
प्रश्न 8.
भारत की विदेश नीति में नेहरू की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति में नेहरू की भूमिका भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने राष्ट्रीय एजेंडा तय करने में निर्णायक भूमिका निभायी। वे प्रधानमंत्री के साथ-साथ विदेश मंत्री भी थे। प्रधानमंत्री और विदेशमंत्री के रूप में 1946 से 1964 तक उन्होंने भारत की विदेश नीति की रचना और क्रियान्वयन पर गहरा प्रभाव डाला।
1. गुटनिरपेक्षता की नीति:
नेहरू की विदेश नीति के तीन बड़े उद्देश्य थे। कठिन संघर्ष से प्राप्त संप्रभुता को बचाए रखना, क्षेत्रीय अखण्डता को बनाए रखना तथा तेज रफ्तार से आर्थिक विकास करना। नेहरू इन उद्देश्यों को गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाकर हासिल करना चाहते थे। इन दिनों में भारत में कुछ राजनैतिक दल, नेता तथा समूह ऐसे भी थे जिनका मानना था कि भारत को अमरीकी खेमे के साथ ज्यादा नजदीकी बढ़ानी चाहिए क्योंकि इस खेमे की प्रतिष्ठा लोकतंत्र के हिमायती के रूप में थी। लेकिन विदेश नीति को तैयार करने में नेहरू को खासी बढ़त हासिल थी।
2. सैनिक गठबन्धनों से दूर रहने की नीति:
स्वतंत्र भारत की विदेश नीति में शांतिपूर्ण विश्व का सपना था और इसके लिए भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति का पालन किया। भारत ने इसके लिए शीत युद्ध से उपजे तनाव को कम करने की कोशिश की और संयुक्त राष्ट्र संघ के शांति-अभियानों में अपनी सेना भेजी। भारत ने अमरीका और सोवियत संघ की अगुवाई वाले सैन्य गठबंधनों से अपने को दूर रखना चाहता था। दोनों खेमों के बीच भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय मामलों पर स्वतंत्र रवैया अपनाया। उसे दोनों खेमों के देशों ने सहायता और अनुदान दिये।
3. एफ्रो-एशियायी एकता की नीति- भारत के आकार, अवस्थिति और शक्ति संभावना को भांपकर नेहरू ने विश्व के मामलों, विशेषकर एशियायी मामलों में भारत के लिए बड़ी भूमिका निभाने की नीति अपनायी। उन्होंने एशिया और अफ्रीका के नव-स्वतंत्र देशों से सम्पर्क बनाए तथा एशियायी एकता की पैरोकारी की। 1955 का बांडुंग में एफ्रो- एशियायी देशों का सम्मेलन हुआ जो अफ्रीका व एशिया के नव-स्वतंत्र देशों के साथ भारत के बढ़ते सम्पर्क का चरम बिन्दु था।
4. चीन के साथ शांति और संघर्ष:
नेहरू के नेतृत्व में भारत ने चीन के साथ अपने रिश्तों की शुरुआत दोस्ताना ढंग से की भारत ने सबसे पहले चीन की कम्युनिस्ट सरकार को मान्यता दी। शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धान्तों यानी पंचशील की घोषणा नेहरू और चाऊ एन लाई ने संयुक्त रूप से 29 अप्रेल, 1954 में की। लेकिन चीन ने 1962 में भारत पर अचानक आक्रमण कर इस दोस्ताना रिश्ते को शत्रुता में बदल दिया तथा भारत के काफी बड़े भू-भाग पर कब्जा कर लिया। तब से लेकर अब तक दोनों देशों के बीच सीमा विवाद जारी है। यद्यपि चीन के सम्बन्ध में सरदार वल्लभ भाई पटेल ने आशंका व्यक्त की थी, लेकिन नेहरू ने इस आशंका को नजरअंदाज कर दिया था। एक विदेश नीति के मामले में नेहरू की एक भूल साबित हुई।
प्रश्न 9.
चीन के साथ भारत के युद्ध का भारत तथा भारत की राजनीति पर क्या प्रभाव हुआ? विस्तारपूर्वक समझाइए
उत्तर:
- चीन-युद्ध से भारत की छवि को देश और विदेश दोनों ही जगह धक्का लगा। इस संकट से निपटने के लिए भारत को अमरीका और ब्रिटेन से सैन्य सहायता माँगनी पड़ी।
- चीन- युद्ध से भारतीय राष्ट्रीय स्वाभिमान को चोट पहुँची लेकिन इसके साथ-साथ राष्ट्र भावना भी बलवती हुई। इस युद्ध के कारण नेहरू की छवि भी धूमिल हुई। चीन के इरादों को समय रहते न भाँप सकने और सैन्य तैयारी न कर पाने को लेकर नेहरू की आलोचना हुई ।
- नेहरू की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। कुछ महत्त्वपूर्ण उप-चुनावों में कांग्रेस ने हार का सामना किया। देश का राजनीतिक मानस बदलने लगा था।
- भारत-चीन संघर्ष का असर विपक्षी दलों पर भी हुआ। इस युद्ध और चीन – सोवियत संघ के बीच बढ़ते मतभेद से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के अंदर बड़ा बदलाव हुआ। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 1964 में टूट गई। इस पार्टी के भीतर जो खेमा चीन का पक्षधर था उसने मार्क्सवादी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी बनाई। चीन युद्ध के क्रम में माकपा के कई नेताओं को चीन का पक्ष लेने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
- चीन के साथ हुए युद्ध ने भारत के नेताओं को पूर्वोत्तर की डाँवाडोल स्थिति के प्रति सचेत किया क्योंकि राष्ट्रीय एकता के लिहाज से यह इलाका चुनौतीपूर्ण था।
- चीन – र – युद्ध के बाद पूर्वोत्तर भारत के इलाकों को नयी तरतीब में ढालने की कोशिशें शुरू की गईं। नागालैंड को प्रांत का दर्जा दिया गया। मणिपुर और त्रिपुरा हालाँकि केन्द्र – शासित प्रदेश थे लेकिन उन्हें अपनी विधानसभा के निर्वाचन का अधिकार मिला। संजीव पास बुक्स।
प्रश्न 10.
ऐतिहासिक रूप से तिब्बत भारत और चीन के बीच विवाद का एक बड़ा मसला रहा है। विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
तिब्बत मध्य एशिया का मशहूर पठार है। अतीत में समय-समय पर चीन ने तिब्बत पर अपना प्रशासनिक अधिकार जताया और कई दफा तिब्बत आजाद भी हुआ। 1950 में चीन ने तिब्बत पर नियंत्रण कर लिया। तिब्बत के ज्यादातर लोगों ने चीनी कब्जे का विरोध किया। 1954 में भारत और चीन के बीच पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर हुए तो इसके प्रावधानों में एक बात यह भी थी कि दोनों देश एक-दूसरे की क्षेत्रीय संप्रभुता का सम्मान करेंगे। चीन ने इसका यह अर्थ लगाया कि भारत तिब्बत पर चीन की दावेदारी को स्वीकार कर रहा है।
1965 में चीनी शासनाध्यक्ष जब भारत आए. उसे समय तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा भी भारत पहुँचे और उन्होंने तिब्बत की बिगड़ती स्थिति की जानकारी नेहरू को दी। चीन ने यह आश्वासन दिया कि तिब्बत को चीन के अन्य इलाकों से ज्यादा स्वायत्तता दी जाएगी। 1958 में चीनी आधिपत्य के विरुद्ध तिब्बत में सशस्त्र विद्रोह हुआ। इस विद्रोह को चीनी सेनाओं द्वारा दबा दिया गया। स्थिति को बिगड़ता देख तिब्बत के पारंपरिक नेता दलाई लामा ने सीमा पार कर भारत में प्रवेश किया और 1959 में भारत से शरण माँगी। भारत ने दलाई लामा को शरण दे दी। चीन ने भारत के इस कदम का कड़ा विरोध किया।
पिछले 50 सालों में बड़ी संख्या में तिब्बती जनता ने भारत और दुनिया के अन्य देशों में शरण ली है। भारत में तिब्बती शरणार्थियों की बड़ी-बड़ी बस्तियाँ हैं। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में संभवतया तिब्बती शरणार्थियों की सबसे बड़ी बस्ती है। दलाई लामा ने भी भारत में धर्मशाला को अपना निवास स्थान बनाया है। 1950 और 1960 के दशक में भारत के अनेक राजनीतिक दल और राजनेताओं ने तिब्बत की आजादी के प्रति अपना समर्थन जताया। इन दलों में सोशलिस्ट पार्टी और जनसंघ शामिल हैं।