Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये
JAC Class 9 Hindi सवैये Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन-किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है ?
उत्तर :
ब्रजभूमि के प्रति कवि का अगाध प्रेम है। वह हर जन्म में ब्रजक्षेत्र में ही रहना चाहता है। वह इस जन्म में तो ब्रजभूमि से जुड़ा ही हुआ है और चाहता है कि उसे अगले जन्मों में चाहे कोई भी जीवन मिले वह बार-बार ब्रज में ही आए। यदि वह मनुष्य का जीवन प्राप्त करे तो वह ब्रजक्षेत्र के गोकुल गाँव के ग्वालों में रहे। यदि वह पशु की योनि प्राप्त करते तो नंद बाबा की गऊओं के साथ मिलकर चरनेवाली गाय बने। यदि वह निर्जीव पत्थर भी बने तो उस गोवर्धन पर्वत पर ही स्थान पाए जिसे श्रीकृष्ण ने इंद्र के अभिमान को भंग करने के लिए उठा लिया था। यदि वह पक्षी के रूप में जन्म ले तो वह यमुना किनारे कदंब की शाखाओं पर ही बसेरा करे।
प्रश्न 2.
कवि का ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण हैं ?
उत्तर :
कवि ब्रज के वन, बाग और तालाबों को निहारना चाहता है ताकि वह श्रीकृष्ण की प्रिय भूमि और लीला – स्थली के प्रति अपने हृदय की अनन्यता को प्रकट कर सके। उसे ब्रज के कण-कण में श्रीकृष्ण समाए हुए प्रतीत होते हैं।
प्रश्न 3.
एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्योछावर करने को क्यों तैयार है ?
उत्तर :
लकड़ी के एक डंडे को हाथ में धारण कर और शरीर पर काला कंबल ओढ़कर ग्वाले श्रीकृष्ण के साथ गौएँ चराने जाया करते थे। कवि के हृदय में उस ‘लकुटी’ और ‘कामरिया’ के प्रति अनन्य समर्पण भाव है जिस कारण वह उन पर सब कुछ न्योछावर करने को तैयार है।
प्रश्न 4.
सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया था ? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
सखी ने गोपी से श्रीकृष्ण जैसी वेशभूषा और रूप धारण करने का आग्रह किया है। सिर पर मोर पंख, गले में गुंज माला, तन पर पीतांबर और हाथ में लाठी लेकर ग्वालों के साथ घूमने के लिए कहा है। ऐसा करके वे श्रीकृष्ण की स्मृतियों को ताजा बनाए रखना चाहती हैं।
प्रश्न 5.
आपके विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है ?
उत्तर :
रसखान के हृदय में श्रीकृष्ण और ब्रजभूमि के प्रति अगाध प्रेम है। उसे ब्रजक्षेत्र के कण-कण में श्रीकृष्ण की छवि झलकती हुई दिखाई देती है। वह सदा उस छवि को अपनी आँखों के सामने ही पाना चाहता है। मानसिक छवियाँ ऐसा अहसास कराती हैं मानो वास्तविकता ही सामने विद्यमान हो। इसलिए कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी सान्निध्य प्राप्त करना चाहता है।
प्रश्न 6.
चौथे सवैये के अनुसार गोपियाँ अपने-आप को क्यों विवश पाती हैं ?
उत्तर :
गोपियाँ श्रीकृष्ण की मुरली की धुन और उनकी आकर्षक मुसकान के अचूक प्रभाव से स्वयं को नियंत्रित रखने में विवश पाती हैं।
प्रश्न 7.
भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।
(ख) माइ री वा सुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।
उत्तर :
(क) रसखान ब्रजक्षेत्र की काँटोंभरी करील की झाड़ियों को सुंदर महलों से श्रेष्ठ मानते हैं और उन्हें ही पाना चाहते हैं ताकि श्रीकृष्ण के क्षेत्र के प्रति अपने प्रेम और निष्ठा को प्रकट कर सकें।
(ख) गोपियाँ श्रीकृष्ण के मुख की मंद-मंद मुसकान पर इतनी मुग्ध हो चुकी हैं कि वे अपने मन की अवस्था को नियंत्रण में रख ही नहीं सकतीं। उन्हें प्रतीत होता है कि उनकी मुसकान उनसे सँभाली नहीं जाएगी।
प्रश्न 8.
‘कालिंदी कूल कदंब की डारन’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
अनुप्रास अलंकार
प्रश्न 9.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए –
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।
उत्तर :
गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण की बाँसुरी के प्रति सौत भावना है। उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि श्रीकृष्ण उनकी अपेक्षा बाँसुरी को अधिक प्रेम करते हैं इसलिए वह सदा उनके होंठों पर टिकी रहती है। गोपियाँ श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु को अपनाना चाहती हैं पर अपनी सौत रूपी बाँसुरी को होंठों पर नहीं रखना चाहतीं। अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग सराहनीय है। ब्रजभाषा की कोमल कांत शब्दावली की सुंदर योजना की गई है। गोपियों का हठ-भाव अति आकर्षक है। प्रसाद गुण तथा अभिधा शब्द-शक्ति ने कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है।
रचना और अभिव्यक्ति –
प्रश्न 10.
प्रस्तुत सवैयों में जिस प्रकार ब्रजभूमि के प्रति प्रेम अभिव्यक्त हुआ है, उसी तरह आप अपनी मातृभूमि के प्रति अपने मनोभावों को अभिव्यक्त कीजिए।
प्रश्न 11.
रसखान के इन सवैयों का शिक्षक की सहायता से कक्षा में आदर्श वाचन कीजिए। साथ ही किन्हीं दो सवैयों को कंठस्थ कीजिए।
उत्तर :
अध्यापक/अध्यापिका के सहायता से विद्यार्थी इन्हें स्वयं करें।
पाठेतर सक्रियता –
सूरदास द्वारा रचिंत कृष्ण के रूप-सौदर्य संबंधी पदों को पढ़िए।
उत्तर :
छात्र इसे स्वयं करें।
यह भी जानें –
सवैया छंद – यह एक वर्णिक छंद है जिसमें 22 से 26 वर्ण होते हैं। यह ब्रजभाषा का बहुप्रचलित छंद रहा है।
आठ सिद्धियाँ – अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व – ये आठ अलौकिक शक्तियाँ आठ सिद्धियाँ कहलाती हैं।
नव (नौ) निधियाँ – पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और खर्व- ये कुबेर की नौ निधियाँ कहलाती हैं।
JAC Class 9 Hindi सवैये Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
रसखान के काव्य की विशेषता लिखिए।
उत्तर :
रसखान की कविता का लक्ष्य श्रीकृष्ण एवं गोपियों की प्रेम-लीलाओं का वर्णन करना रहा है। यत्र-तत्र उन्होंने श्रीकृष्ण के बाल रूप का भी मनोहारी चित्रण किया है –
धूर भरे अति सोभित स्यामजू तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
खेल खात फिरै अँगना पग पैंजनी बाजति पीरी कछोटी।
रसखान ने श्रीकृष्ण तथा ब्रज के प्रति अपनी अगाध निष्ठा का भी परिचय दिया है –
मानुस हौं तो वही रसखानि, बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
प्रश्न 2.
रसखान की काव्य- भाषा पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
रसखान की भाषा ब्रजभाषा है। ब्रजभाषा अपनी पूरी मधुरता के साथ इनके काव्य में प्रयुक्त हुई है। अलंकारों और लोकोक्तियों के प्रयोग ने भाषा को सजीव बना दिया है। रसखान जाति से मुसलमान होते हुए भी हिंदी के परम अनुरागी थे। उनके हिंदी प्रेम एवं सफल काव्य पर मुग्ध होकर ठीक ही कहा गया है, “रसखान की भक्ति में प्रेम, श्रृंगार और सौंदर्य की त्रिवेणी का प्रवाह सतत बना रहा और उनकी भाषा का मधुर, सरल, सरस और स्वाभाविक प्रकार पाठकों को अपने साथ बहाने में सफल रहा।’
प्रश्न 3.
कवि मनुष्य के रूप में कहाँ जन्म लेना चाहता है और क्यों ?
उत्तर :
कवि श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। उन्होंने श्रीकृष्ण और उनकी भूमि के प्रति समर्पण भाव व्यक्त करते हुए कहा है कि वे अगले जन्म मनुष्य के रूप में जीवन पाकर ब्रज क्षेत्र के गोकुल गाँव में ग्वालों के बीच रहना चाहते हैं क्योंकि श्रीकृष्ण उनके साथ रहे थे और ग्वालों को उनकी निकटता प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
प्रश्न 4.
कवि तीनों लोकों का राज्य क्यों त्याग देने को तैयार है ?
उत्तर :
कवि तीनों लोकों का राज्य उस लाठी और कंबल के बदले में त्याग देने को तैयार है जो ब्रज क्षेत्र के ग्वाले गऊओं को चराते समय श्रीकृष्ण धारण किया करते थे। वह ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि वह उन्हें परम सुख की प्राप्ति के लिए श्रीकृष्ण व ब्रजक्षेत्र से जोड़े रखता है।
प्रश्न 5.
गोपी कैसा शृंगार करना चाहती है ?
उत्तर :
गोपी श्रीकृष्ण की भक्ति के वशीभूत होकर श्रीकृष्ण का स्वांग भरने को तैयार हो जाती है। गोपी श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु से अपना श्रृंगार करना चाहती है। वह श्रीकृष्ण का मोर पंख का मुकुट अपने सिर पर धारण करना चाहती है और गले में गुंजों की माला पहनना चाहती है। वह श्रीकृष्ण की तरह पीले वस्त्र पहनकर तथा हाथों में लाठी लेकर ग्वालों के साथ गाय चराने वन-वन भी फिरने के लिए तैयार है।
प्रश्न 6.
गोपी अपने होंठों पर मुरली क्यों नहीं रखना चाहती ?
उत्तर :
गोपी अपने होंठों की श्रृंगार करते समय श्रीकृष्ण की मुरली अपने होंठों पर इसलिए नहीं रखना चाहती क्योंकि वह मुरली को अपनी सौत मानती है। मुरली सदा श्रीकृष्ण के होंठों पर लगी रहती थी। इसी सौतिया डाह के कारण वह मुरली को अपना शत्रु मानती है और उसे अपने होंठों पर नहीं लगाना चाहती है।
प्रश्न 7.
गोपी श्रीकृष्ण द्वारा बजाई बाँसुरी की तान को क्यों सुनना नहीं चाहती ?
उत्तर :
गोपी श्रीकृष्ण द्वारा बजाई बाँसुरी की तान इसलिए नहीं सुनना चाहती क्योंकि उसकी बाँसुरी की तान में जादू-सा प्रभाव है। वह इसे सुनकर अपनी सुध-बुध खोकर श्रीकृष्ण के पीछे-पीछे चल देती है परंतु आज वह अपने पर नियंत्रण रखना चाहती है। इसलिए कानों में अँगुली डालकर बैठी है, जिससे उसे बाँसुरी की तान न सुनाई दे।
प्रश्न 8.
गोपी स्वयं को किस कारण विवश अनुभव करती है ?
उत्तर :
श्रीकृष्ण की बाँसुरी की धुन और उनकी मुसकान का प्रभाव अचूक है। जिसके कारण गोपियाँ अपने मन पर नियंत्रण नहीं रख पाती हैं और विवश होकर श्रीकृष्ण के पास चली जाती हैं। वे स्वयं को सँभाल नहीं पाती हैं। कवि ने श्रीकृष्ण के भक्ति – प्रेम में डूबी गोपी की विवशता का वर्णन किया है कि वह श्रीकृष्ण की भक्ति में डूबकर अपनी सुध-बुध खो बैठती है।
प्रश्न 9.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए –
कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।
उत्तर :
कवि रसखान ने श्रीकृष्ण और ब्रजक्षेत्र के प्रति अपने प्रेम-भाव को वाणी प्रदान करते हुए सभी प्रकार का सुख त्याग देने की बात की है। वह ब्रज क्षेत्र में उगी करील की कँटीली झाड़ियों पर करोड़ों सोने के महल न्योछावर करने को तैयार हैं। उन्हें केवल ब्रज क्षेत्र में किसी भी रूप में स्थान चाहिए। इसमें ब्रजभाषा का सरस प्रयोग सराहनीय है। तद्भव शब्दों का अधिकता से प्रयोग है। अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग है। प्रसाद गुण, अभिधा शब्द – शक्ति और शांत रस का प्रयोग किया गया है। सवैया छंद विद्यमान है।
प्रश्न 10.
कवि रसखान की भक्ति-पद्धति का परिचय दीजिए।
उत्तर :
रसखान की भक्ति अनेक पद्धतियों और सिद्धांतों का संयोग है। इन्होंने किसी भी बात की परवाह न करते हुए कृष्ण-भक्ति में स्वयं को डुबो दिया। इन्हें अपने भक्ति – क्षेत्र में जो अच्छा लगा, इन्होंने उसे अपना लिया। रसखान पर सगुण और निर्गुण दोनों का प्रभाव है। उन्होंने संतों के समान अपने आराध्य के गुणों का बखान किया है। इन्होंने दैन्यभाव को प्रकट किया है। इनकी भक्ति में समर्पण – भाव है। इनके काव्य में अनुभूति की गहनता है।
प्रश्न 11.
कवि रसखान किस चीज को पाने के लिए जीवन के सभी सुखों को त्याग देना चाहते थे ?
उत्तर :
कवि रसखान हर अवस्था में ब्रज क्षेत्र और अपने इष्ट को प्राप्त करना चाहते थे। उनके लिए परम सुख की प्राप्ति ब्रज क्षेत्र से जुड़ा रहना है। वे ब्रज- क्षेत्र में उसी करील की झाड़ियों पर करोड़ों महलों को न्योछावर करने से भी पीछे नहीं हटते। ब्रज क्षेत्र में रहनेवाले सूरज को पाने के लिए वे तीनों लोकों का राज्य भी त्यागने को तत्पर रहते हैं।
सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
1. मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन ॥
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन।
जौ खग हौं तो बसेरो करौं कालिंदी कूल कदंब की डारन ॥
शब्दार्थ : मानुष – मनुष्य। हौं – मैं। बसौं – रहना, बसना। ग्वारन – ग्वाले। कहा बस $-$ बस में न होना। नित $-$ सदा, नित्य। धेनु – गाय। मँझारन – बीच में। पाहन – पत्थर, चट्टान। गिरि – पर्वत। पुरंदर – इंद्र। खग – पक्षी। कालिंदी – यमुना नदी। कूल – किनारा। डारन – डालियाँ।
प्रसंग : प्रस्तुत सवैया हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित पाठ सवैये से लिया गया है जिसके रचयिता श्रीकृष्ण भक्त रसखान हैं। कवि कामना करता है कि अगले जन्म में वह चाहे किसी रूप में धरती पर वापिस आए पर वह ब्रज क्षेत्र में ही स्थान प्राप्त करे।
व्याख्या : रसखान कहते हैं कि यदि मैं अगले जन्म में मनुष्य का जीवन प्राप्त करूँ तो मेरी इच्छा है कि मैं ब्रज क्षेत्र के गोकुल गाँव में ग्वालों के बीच रहूँ। यदि मैं पशु बनूँ और मेरी इच्छा पूर्ण हो तो मैं नंद बाबा की गऊओं में गाय बनकर सदा चरूँ। यदि मैं पत्थर बनूँ तो उसी गोवर्धन पर्वत पर स्थान प्राप्त करूँ जिसे श्रीकृष्ण ने इंद्र का अभिमान तोड़ने के लिए छत्र के समान धारण कर लिया था। यदि मैं पक्षी बनूँ तो यमुना के किनारे कदंब की डालियों पर ही बसेरा करूँ। भाव है कि कवि किसी भी अवस्था में ब्रजक्षेत्र को त्यागना नहीं चाहता, वह वहीं रहना चाहता है।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य – सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) कवि मनुष्य रूप में कहाँ और क्यों जीवन पाना चाहता है ?
(ख) निर्जीव रूप में भी कवि जगह क्यों पाना चाहता है ?
(ग) कवि यमुना किनारे कदंब की शाखाओं पर पक्षी बनकर क्यों रहना चाहता है ?
(घ) सवैया में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) कवि अगले जन्म में कौन-सा पशु बनना चाहता है ?
(च) कवि गोकुल में किनके साथ रहना चाहता है ?
(छ) कवि किसके पशु चराने की कामना करता है ?
उत्तर :
(क) कवि अगले जन्म में मनुष्य के रूप में जीवन पाकर ब्रज क्षेत्र के गोकुल गाँव में ग्वालों के बीच रहना चाहता है क्योंकि श्रीकृष्ण उनके साथ रहे थे और ग्वालों को उनकी निकटता प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
(ख) कवि पत्थर बनकर निर्जीव रूप में गोवर्धन पर्वत पर जगह पाना चाहता है जिसे श्रीकृष्ण ने इंद्र के अभिमान को चूर करने के लिए अपनी अंगुली पर उठा लिया था।
(ग) कवि यमुना किनारे कदंब की शाखाओं पर पक्षी बनकर रहना चाहता है ताकि वह उन स्थलों को देख सके जहाँ श्रीकृष्ण विहार करते थे।
(घ) रसखान प्रत्येक स्थिति में श्रीकृष्ण की लीला – स्थली पर ही रहना चाहता है जिससे उसके प्रति अपनी अनन्यता प्रकट कर सके। कवि ने ब्रजभाषा की कोमल कांत शब्दावली का सहज प्रयोग किया है। सवैया छंद ने लयात्मकता की सृष्टि की है। तद्भव शब्दावली का अधिक प्रयोग है। प्रसाद गुण, अभिधा शब्द – शक्ति और शांत रस विद्यमान है। अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग सराहनीय है।
(ङ) कवि अगले जन्म में नंद बाबा की गायों में एक गाय बनना चाहता है जिससे वह श्रीकृष्ण की निकटता प्राप्त कर सके।
(च) कवि गोकुल में ग्वालों के साथ रहना चाहता है। वह श्रीकृष्ण के बाल सखा के रूप में ब्रजभूमि पर निवास करना चाहता है।
(छ) कवि नंद बाबा के पशु चराने की कामना करता है।
2. या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ-चराइ बिसारौं,
रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।
शब्दार्थ : या – इस। लकुटी – लकड़ी, लाठी। कामरिया – कंबल। तिहूँ – तीनों । तजि – छोड़; त्याग। आठहुँ सिद्धि – अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, इंशित्व और वाशित्व नामक आठ अलौकिक शक्तियाँ। नवौ निधि – पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और खर्व नामक कुबेर की नौ निधियाँ। गाइ – गाय। बिसारौं – भुला दूँ। तड़ाग – तालाब। निहारौं – देख़ँ। कोटिक – करोड़ों। कलधौत – सोने-चाँदी के महल। करील – कँटीली झाड़ियाँ। वारौौ – न्योछावर करूँ।
प्रसंग : प्रस्तुत सवैया हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित पाठ ‘सवैये’ से लिया गया है जिसके रचयिता रसखान हैं। कवि ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को प्रकट किया है। वे हर अवस्था में ब्रज क्षेत्र और अपने इष्ट को प्राप्त करना चाहते हैं।
व्याख्या : रसखान कहते हैं कि मैं ब्रज क्षेत्र में श्रीकृष्ण के ग्वालों की गऊओं को चराने के लिए प्रयुक्त इस लाठी और उनके द्वारा ओढ़े जाने वाले काले कंबल के बदले तीनों लोकों का राज्य त्याग दूँ। मैं नंद बाबा की गऊओं को चराने के बदले आठों सिद्धियाँ और नौ निधियों के सुख भी भुला दूँ। मैं ब्रज क्षेत्र के वनों, बागों और तालाबों को अपनी आँखों से कब निहार पाऊँगा ? मैं ब्रज क्षेत्र में उगी करील की कँटीली झाड़ियों पर करोड़ों महल को न्योछावर कर दूँ। भाव है कि रसखान ब्रज क्षेत्र के लिए जीवन के सभी सुखों को त्याग देना चाहते हैं। उनके लिए परम सुख की प्राप्ति ब्रज क्षेत्र से जुड़ा रहना है।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य – सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) कवि तीनों लोकों का राज्य किसके बदले त्याग देने को तैयार है ?
(ख) कवि अपनी आँखों से क्या निहारना चाहता है ?
(ग) ब्रज की कँटीली करील झाड़ियों पर कवि क्या न्योछावर कर देना चाहता है ?
(घ) प्रस्तुत सवैया में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) कवि ने किन आठ सिद्धियों की बात की है ?
(च) नौ निधियों के नाम लिखिए।
(छ) कवि ने किसके प्रति अपना प्रेम व्यक्त किया है ?
उत्तर :
(क) कवि तीनों लोकों का राज्य उस लाठी और काले कंबल के बदले त्याग देने को तैयार है जो श्रीकृष्ण ब्रज के ग्वाले की गऊओं को चराते समय धारण किया करते थे।
(ख) कवि अपनी आँखों से ब्रज के वन, बाग और तालाबों को निहारना चाहता है।
(ग) ब्रज-क्षेत्र की कँटीली झाड़ियाँ भी कवि के लिए इतनी मूल्यवान हैं कि वह उनके बदले करोड़ों महलों को उन पर न्योछावर कर देना चाहता है।
(घ) रसखान ने सवैया में श्रीकृष्ण और ब्रज क्षेत्र के प्रति अपने मन के प्रेम-भाव को वाणी प्रदान करते हुए अपने सब प्रकार के सुख त्याग देने और उस आनंद को पाने की इच्छा प्रकट की है। ब्रजभाषा का सरस प्रयोग सराहनीय है। तद्भव शब्दों का अधिकता से प्रयोग किया गया है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग सराहनीय है। प्रसाद गुण, अभिधा शब्द-शक्ति और शांत रस का प्रयोग किया गया है। सवैया छंद विद्यमान है।
(ङ) कवि ने जिन आठ सिद्धियों की बात की है, वे हैं – अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, इंशित्व, वशित्वा।
(च) नौ निधियों के नाम हैं- महापद्म, पद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील, खर्व।
(छ) कवि ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को प्रकट किया है। वे हर अवस्था में ब्रजक्षेत्र और अपने इष्ट को प्राप्त करना चाहते हैं।
3. मोरपखा सिर ऊपर राखिहाँ गुंज की माल गरें पहिरौंगी।
ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥
भावतो वोहि मेरो रसखानि सो तेरे कहें सब स्वाँग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी॥
शब्दार्थ : मोरपखा – मोरपंख। गुंज – घुंघची। गरें – गले। पहिरौंगी – पहनूँगी। पितंबर – पीत (पीला) वस्त्र। लकुटी – लाठी। ग्वारनि – ग्वालिन। स्वाँग – रूप धरना, नकल करना। अधरा – होंठ।
प्रसंग : प्रस्तुत सवैया भक्तिकाल के कवि रसखान द्वारा रचित है। इस सवैये में रसखान जी ने श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के निश्छल तथा निस्स्वार्थ प्रेम का चित्रण किया है। गोपियाँ श्रीकृष्ण के लिए कोई भी रूप धारण करने को तैयार हैं।
गोपियाँ श्रीकृष्ण की भक्ति के वशीभूत होकर श्रीकृष्ण का स्वाँग भरने को तैयार हो जाती हैं। रसखान जी वर्णन करते हैं कि गोपिका कहती हैं- मैं श्रीकृष्ण के सिर पर रखा हुआ मोरपंख अपने सिर पर धारण कर लूँगी। श्रीकृष्ण के गले में शोभा पानेवाली गुंजों की माला को अपने गले में पहन लूँगी। पीत वस्त्र ओढ़कर तथा श्रीकृष्ण की तरह लाठी हाथ में लेकर, गायों के पीछे ग्वालों के साथ-साथ घूमा करूँगी। रसखान जी कहते हैं कि गोपिका अपनी सखी से कहती है कि वे श्रीकृष्ण मेरे मन को प्रिय हैं तुम्हारी कसम ! मैं उनके लिए सब प्रकार के रूप धर लूँगी। परंतु श्रीकृष्ण के होंठों पर लगी रहनेवाली इस मुरली को मैं अपने होंठों पर कभी भी नहीं रखूँगी। यहाँ गोपी की सौतिया डाह चित्रित हुई है जो श्रीकृष्ण के लिए सब कुछ कर सकती है पर मुरली को अपना दुश्मन मानते हुए उसे अपने होंठों पर नहीं लगा सकती।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य – सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) गोपी कैसा शृंगार करना चाहती है ?
(ख) गोपी कैसा स्वांग धारण करना चाहती है ?
(ग) गोपी मुरली को अपने होंठों पर क्यों नहीं रखना चाहती है ?
(घ) इस पद का भाव तथा काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ङ) किसके प्रेम को किसके प्रति प्रकट किया गया है ?
(च) अपने होंठों पर बाँसुरी कौन, क्यों नहीं रखना चाहता है ?
(छ) मुरलीधर कौन है ?
(ज) ‘मोरपखा’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
(क) गोपी श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु से शृंगार करना चाहती है। वह अपने सिर पर उनका मोरपंख का मुकुट धारण करना चाहती है तथा गले में गुंजों की माला पहनना चाहती है। वह पीले वस्त्र पहनकर तथा हाथों में लाठी लेकर ग्वालों के साथ गाय चराने वन-वन भी फिरने के लिए तैयार है।
(ख) वह श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए उनके कहे अनुसार सब प्रकार का स्वांग धारण करने के लिए तैयार है।
(ग) श्रीकृष्ण के होंठों से लगे रहनेवाली मुरली को गोपी अपने होंठों से इसलिए नहीं लगाना चाहती क्योंकि वह मुरली को अपनी सौत मानती है जो सदा श्रीकृष्ण के होंठों से लगी रहती है। इसी सौतिया डाह के कारण वह मुरली को अपनी शत्रु मानती है और उसे अपने होंठों पर नहीं लगाना चाहती।
(घ) गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति निश्छल प्रेम की अभिव्यक्ति हुई है। गोपियों का श्रीकृष्ण का स्वांग भरना पर मुरली को होंठों से न लगाना उनकी सौतिया डाह को चित्रित करता है। अनुप्रास और यमक अलंकार की छटा दर्शनीय है। ब्रजभाषा है। सवैया छंद है। माधुर्य गुण है। संगीतात्मकता विद्यमान है। श्रृंगार रस है। भक्ति रस का सुंदर परिपाक है। भाषा सरस तथा प्रवाहमयी है।
(ङ) इस सवैये में रसखान जी ने श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के निश्छल तथा निःस्वार्थ प्रेम का चित्रण किया है। गोपियाँ श्रीकृष्ण के लिए कोई भी रूप धारण करने को तैयार हैं।
(च) गोपी अपने होंठों पर बाँसुरी नहीं रखना चाहती। वह बाँसुरी को अपनी सौत मानती है। उसे लगता है कि श्रीकृष्ण बाँसुरी को अधिक प्रेम करते हैं और गोपी के प्रति उनके हृदय में प्रेम का भाव नहीं है। गोपी को उन्होंने बाँसुरी के कारण भुला-सा दिया है।
(छ) मुरलीधर श्रीकृष्ण हैं जो यमुना किनारे कदंब की छाया में मग्न होकर मुरली बजाते थे।
(ज) मोरपखा मोर के पंखों से बना मुकुट है जिसे श्रीकृष्ण अपने सिर पर धारण करते हैं।
4. काननि दै अँगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।
मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तो गैहै ॥
टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुझहै।
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै ॥
शब्दार्थ : काननि – कानों में। मुरली – बाँसुरी। मंद – धीमी। अटा – अटारी, अट्टालिका, कोठा। टेरि – आवाज़ लगाना, पुकारना। सिगरे – सारे। वा – उस।
प्रसंग : प्रस्तुत सवैया हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित पाठ ‘सवैये’ से अवतरित किया गया है जिसके रचयिता कृष्ण-भक्त कवि रसखान हैं। श्रीकृष्ण की बाँसुरी की धुन और उनकी मुसकान का प्रभाव अचूक है। गोपियाँ स्वयं को इनके सामने विवश पाती हैं। वे स्वयं को सँभाल नहीं पातीं।
व्याख्या : रसखान कहते हैं कि कोई गोपी श्रीकृष्ण की बाँसुरी की मोहक तान के जादुई प्रभाव को प्रकट करते हुए कहती है कि हे सखी! जब श्रीकृष्ण बाँसुरी की मधुर धुन को धीमे-धीमे स्वर में बजाएँगे तब मैं अपने कानों को अँगुली से बंद कर लूँगी ताकि बाँसुरी की मधुर तान मुझ पर अपना जादुई प्रभाव न डाल सके। फिर चाहे वह रस की खान रूपी कृष्ण अट्टालिका पर चढ़कर मोहनी तान बजाते रहे तो भी कोई बात नहीं, वह चाहे गोधन नामक लोकगीत गाते रहें पर मुझ पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। हे ब्रज के सभी लोगो ! मैं पुकार – पुकारकर कह रही हूँ कि तब कोई हमें कितना भी समझाए पर मैं समझ नहीं पाऊँगी, मैं अपने आपको सँभाल नहीं पाऊँगी। हे री माँ, उनके मुख की मुसकान हमसे नहीं सँभाली जाती; नहीं सँभाली जाती; नहीं सँभाली जाती। भाव है कि गोपियाँ तो मानो श्रीकृष्ण की मधुर मुसकान पर अपने-आप को खो चुकी हैं। उनका हृदय अब उनके बस में नहीं है।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) किसका प्रभाव गोपी पर अचूक है ?
(ख) गोपी श्रीकृष्ण के द्वारा बजाई बाँसुरी की तान को क्यों नहीं सुनना चाहती ?
(ग) गोपी को किनकी कोई परवाह नहीं ?
(घ) गोपी अपने-आपको किस कारण विवश अनुभव करती है ?
(ङ) कृष्ण अपनी किन विशेषताओं के कारण गोपियों को प्रिय लगते हैं ?
(च) ‘गोधन’ से क्या तात्पर्य है ?
(छ) ‘माई री ‘ का प्रयोग क्यों किया गया है ?
(ज) ‘न जैहै, न जैहै’ की आवृत्ति क्या प्रदर्शित करती है ?
(झ) सवैया में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) श्रीकृष्ण की बाँसुरी की धुन और उनकी मुसकान का प्रभाव अचूक है। गोपियाँ स्वयं को इनके सामने विवश पाती हैं। वे स्वयं को सँभाल नहीं पातीं।
(ख) गोपी श्रीकृष्ण की बाँसुरी के जादुई प्रभाव से बचने के लिए बाँसुरी की धुन नहीं सुनना चाहती।
(ग) गोपी को कोई परवाह नहीं है कि कोई इसके बारे में क्या कहेगा।
(घ) श्रीकृष्ण की मधुर मुसकान और उनकी बाँसुरी की तान के कारण गोपी अपने मन पर नियंत्रण नहीं रख पाती और वह स्वयं को विवश अनुभव करती है।
(ङ) कृष्ण अपनी निम्नलिखित विशेषताओं के कारण गोपियों को प्रिय लगते हैं –
(क) मोहक रूप छटा (ख) बाँसुरी वादन (ग) लोक-गीतों का मधुर स्वर में गायन (घ) मधुर मुसकान।
(च) ‘गोधन’ एक लोकगीत है जिसे ग्वाले अपनी गायों को चराते समय गाते हैं।
(छ) ‘माई री ‘ का प्रयोग सामान्य रूप से आश्चर्य, दुःख, पीड़ा आदि भावों को अभिव्यक्त करने के लिए किया गया है। लड़कियाँ और औरतें प्रायः इस उद्गारात्मक शब्द का प्रयोग करती हैं।
(ज) ‘न जैहै, न जैहै’ की आवृत्ति गोपी के द्वारा की जानेवाली ज़िद और उन्माद की स्थिति को प्रदर्शित करती है।
(झ) श्रीकृष्ण के द्वारा बजाई जानेवाली बाँसुरी की मोहक तान और उनके मुख पर आई मुसकान ने गोपियों को विवश कर दिया है। उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि उनका हृदय अब उनके बस में नहीं है। ब्रजभाषा की कोमल-कांत शब्दावली ने कवि के कथन को सरसता प्रदान की है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द – शक्ति ने सरलता से भावों को प्रकट किया है। चाक्षुक बिंब योजना की गई है। अनुप्रास और स्वाभावोक्ति अलंकार का स्वाभाविक प्रयोग है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। सवैया छंद है।
सवैये Summary in Hindi
कवि-परिचय :
रसखान कृष्ण-भक्ति काव्य के सुप्रसिद्ध कवि हैं जिनका जन्म सन् 1548 ई० में राजवंश से संबंधित दिल्ली के एक समृद्ध पठान परिवार में हुआ था। इनका मूल नाम सैयद इब्राहिम था। श्रीकृष्ण की भक्ति के कारण भक्तजन इन्हें ‘रसखान’ कहने लगे थे। इनकी भक्ति भावना के कारण गोस्वामी विट्ठलनाथ ने इन्हें अपना शिष्य बना लिया था और तब ये ब्रजभूमि में जा बसे थे। ये जीवनभर वहीं रहे थे और सन् 1628 ई० के लगभग इनका देहावसान हो गया था। रसखान रीतिकालीन कवि थे। ये प्रेमी स्वभाव के थे। वैष्णवों के सत्संग और उपदेशों के कारण इनका प्रेम लौकिक से अलौकिक हो गया था। ये श्रीकृष्ण और उनकी लीलाभूमि ब्रज की प्राकृतिक सुंदरता पर मुग्ध थे। ॐ रसखान के द्वारा दो रचनाएँ प्राप्त हुई हैं – ‘सुजान रसखान’ और ‘प्रेम वाटिका’। ‘रसखान रचनावली’ के नाम से उनकी रचनाओं का संग्रह मिलता है।
रसखान की कविता में भक्ति की प्रधानता है। इन्हें श्रीकृष्ण से संबंधित प्रत्येक वस्तु प्रिय थी। उनका रूप-सौंदर्य, वेशभूषा, बाँसुरी और बाल क्रीड़ाएँ इनकी कविता का आधार हैं। ये ब्रजक्षेत्र, यमुना तट, वन-बाग, पशु-पक्षी, नदी-पर्वत आदि के प्रति गहरे प्रेम का भाव रखते थे। इन्हें श्रीकृष्ण के बिना संसार में कुछ भी प्रिय नहीं था। इनके प्रेम में गहनता और तन्मयता की अधिकता है जिस कारण वे प्रत्येक पाठक को गहरा प्रभावित करते हैं। इनकी भक्ति में प्रेम, श्रृंगार और सुंदरता का सहज समन्वित रूप दिखाई देता है। इनके प्रेम में निश्छल प्रेम और करुण हृदय के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। इन्होंने श्रीकृष्ण के बाल रूप के सुंदर – सहज सवैये लिखे हैं।
रसखान की भाषा उनके भावों के समान ही अति कोमल है जिसमें ज़रा सा भी बनावटीपन नहीं है। ये अपनी मधुर, सरस और प्रवाहमयी भाषा के लिए प्रसिद्ध हैं। इनके काव्य में शब्द इतने सरल और मोहक रूप में प्रयुक्त किए गए हैं कि वे झरने के प्रवाह के समान निरंतर पाठक को रस में सराबोर आगे बढ़ जाते हैं। उन्होंने अलंकारों का अनावश्यक बोझ अपनी कविता पर नहीं डाला। मुहावरों का स्वाभाविक ॐ प्रयोग विशेष सुंदरता प्रदान करने में समर्थ सिद्ध हुआ है। इन्होंने कविता की रचना के लिए परंपरागत पद शैलियों का अनुसरण नहीं किया। मुक्तक छंद शैली का प्रयोग इन्हें प्रिय है। कोमल-कांत ब्रजभाषा में रचित रसखान की कविता स्वाभाविकता के गुण से परिपूर्ण है। इन्हें दोहा, कवित्त और सवैया छंदों पर पूरा अधिकार है।
सवैयों का सार :
कृष्ण भक्त रसखान श्रीकृष्ण और कृष्ण-भूमि के प्रति समर्पण का भाव व्यक्त करते हुए कहते हैं कि यदि मैं मनुष्य रूप में जन्म लूँ तो मैं ब्रजक्षेत्र के गोकुल गाँव में ग्वालों के बीच जन्म लूँ। यदि मैं पशु रूप में पैदा होऊँ तो मैं नंद बाबा की गऊओं के झुंड में चरनेवाली गाय बनूँ। यदि मैं पत्थर बनूँ तो गोवर्धन पर्वत पर जगह पाऊँ जिसे श्रीकृष्ण ने इंद्र का अभिमान चूर करने के लिए उठाया था। यदि मैं पक्षी का जीवन प्राप्त करूँ तो यमुना किनारे कदंब की डालियों पर ही बसेरा करूँ।
श्रीकृष्ण के काले कंबल और गऊओं को चराने के लिए प्रयुक्त लाठी के बदले मैं तीनों लोकों का राज्य त्याग दूँ। आठों सिद्धियाँ और नौ निधियाँ, नंद बाबा की गऊओं को चराने में भुला दूँ। मैं अपनी आँखों से ब्रज के वन और बाग निहारता रहूँ और करोड़ों महलों को ब्रज की काँटेदार झाड़ियों पर न्योछावर कर दूँ।
श्रीकृष्ण की अनुपस्थिति में गोपियाँ स्वयं उनकी वेशभूषा में रहने की इच्छा करती हैं। सिर पर मोरपंख, गले में गुंज माल और पीले वस्त्र पहन वे ग्वालों के साथ घूमने की इच्छा करती हैं। वे वही सब कुछ करना चाहती हैं जो श्रीकृष्ण को प्रिय है पर वे बाँसुरी को अपने होंठों पर रखना पसंद नहीं करतीं। गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी की धुन और उनकी मुसकान के अचूक प्रभाव से स्वयं को विवश मानती हैं और स्वयं को सँभाल नहीं पातीं।