Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री
JAC Class 9 Hindi ग्राम श्री Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
कवि ने गाँव को ‘हरता जन मन’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
गाँव हरियाली से भरा हुआ है। वह बहुमूल्य रत्न पन्ना के समान है, जिसके कण-कण में हरियाली बसी हुई है। वह शांत है, स्निग्ध है और इसलिए कवि ने गाँव को ‘हरता जन मन’ कहा है।
प्रश्न 2.
कविता में किस मौसम के सौंदर्य का वर्णन है ?
उत्तर :
कविता में शीत ऋतु के अंत और वसंत के मौसम का वर्णन है।
प्रश्न 3.
गाँव को ‘मरकत डिब्बे-सा खुला’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
गाँव के खेत हरी-भरी लहलहाती फसलों से भरे हुए हैं। पेड़-पौधों पर हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है। तरह-तरह के फलों, सब्जियों और अनाज के पेड़-पौधे अपनी हरी-भरी सुंदरता से सबके हृदय को आकृष्ट करते हैं। गाँव में हरियाली की अधिकता के कारण ही उसे ‘मरकत डिब्बे-सा खुला’ कहा है।
प्रश्न 4.
अरहर और सनई के खेत कवि को कैसे दिखाई देते हैं ?
उत्तर :
कवि को अरहर और सनई के खेत सोने की करधनियों के समान शोभाशाली दिखाई देते हैं।
प्रश्न 5.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
(ख) हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोए
उत्तर :
(क) गंगा किनारे दूर-दूर तक फैली रेत धूप में सतरंगी आभा प्रकट करती है। जब गंगा की लहरे रेत को गीलाकर पीछे हट जाती हैं, तो उन लहरियों के निशान सूखी रेत पर साँपों के समान दिखाई देते हैं।
(ख) शीत ऋतु के जाने और वसंत के आगमन पर धूप में तेजी आने लगती है। वातावरण में गरमी बढ़ने लगती है। सरदी से भयभीत-सी वनस्पतियाँ भी सुख का अनुभव करने लगती हैं। ऐसा लगता है, जैसे सरदी की धूप को पाकर हँसमुख हरियाली भी सुस्ताने लगती है; उसे हल्की-हल्की नींद-सी आने लगती है।
प्रश्न 6.
निम्न पंक्तियों में कौन-सा अलंकार हैं ?
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक
उत्तर :
इन पंक्तियों में पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास और मानवीकरण अलंकार हैं।
प्रश्न 7.
इस कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है, वह भारत के किस भूभाग पर स्थित है?
उत्तर :
इस कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है, वह भारत में गंगा नदी के किनारे के किसी भूभाग पर स्थित है।
रचना और अभिव्यक्ति –
प्रश्न 8.
भाव और भाषा की दृष्टि से आपको यह कविता कैसी लगी? उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
‘ग्राम श्री’ भारतीय गाँवों में सर्वत्र फैली प्राकृतिक शोभा की सुंदर झाँकी है। वसंत के आगमन पर पेड़-पौधों का हरा-भरा रूप सबके मन को मोह लेता है। लहलहाती फसलें जहाँ पेट भरने का आधार बनती हैं, वहीं मन और आँखों को तृप्ति भी प्रदान करती हैं। यह कविता कल्पना के आधार पर नहीं है, बल्कि यथार्थ का चित्रण करती है। सूर्य की उजली धूप में खेतों की मखमली शोभा और अधिक निखर जाती है। नीले आकाश के नीचे हवा में हिलती हुई फसलें ऐसी प्रतीत होती हैं, जैसे वे यौवन को पाकर मस्ती में झूमने लगी हों।
सरसों के पीले-पीले फूलों की बहार, अरहर और सनई की स्वर्णिम किंकिणियाँ और अलसी की नीली कलियाँ हरी-भरी धरती पर अनूठी प्रतीत होती हैं। मटर के खेतों में रंग-बिरंगे फूलों पर रंग-बिरंगी तितलियाँ हर पल मँडराती रहती हैं। आम के पेड़ बौर से लद जाते हैं; कोयलें कूकने लगती हैं; कटहल महक उठते हैं; जामुन फूल उठते हैं; अमरूदों पर लाल-लाल चित्तियाँ पड़ जाती हैं तथा तरह-तरह की सब्ज़ियाँ अपनी शोभा बिखेरने लगती हैं। गंगा के किनारे तरबूजों की खेती लहलहाती है, तो जलीय पक्षी अपनी मस्ती में क्रीड़ा करते दिखाई देते हैं।
कवि ने प्राकृतिक रंगों को अति स्वाभाविक रूप से प्रस्तुत करने में सफलता पाई है। खड़ी बोली में रचित कविता में तत्सम शब्दावली का अधिक प्रयोग किया गया है। छंद-बद्ध कविता में लयात्मकता की सृष्टि हुई है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द-शक्ति के प्रयोग ने कथन को सरलता और स्पष्टता दी है। निश्चित रूप से भाव और भाषा की दृष्टि से ‘ग्राम श्री’ श्रेष्ठ कविता है, जिसमें चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है। यह प्रकृति का चित्रण करने वाला रंग-बिरंगा चित्र है।
प्रश्न 9.
आप जहाँ रहते हैं उस इलाके के किसी मौसम विशेष के सौंदर्य का कविता या गद्य में वर्णित कीजिए।
उत्तर :
जिस क्षेत्र में मैं रहता हूँ, वह भारत का ‘धान का कटोरा’ नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ धान की श्रेष्ठ किस्में उत्पन्न होती हैं, जो केवल भारत में ही नहीं खाई जातीं बल्कि विश्व के अधिकांश देशों को भी निर्यात की जाती हैं। वर्षा ऋतु का इस फसल के लिए बहुत बड़ा योगदान है। जुलाई-अगस्त महीनों में मानसून अपने पूरे रंग में आ जाता है। कई बार तो अचानक आकाश में बादल उमड़ते हैं और भरभूर वर्षा करते हैं। बच्चों को बारिश में भीगते हुए अपने-अपने स्कूलों में जाने-आने का विशेष आनंद आता है। गाँव के जो स्कूल कच्चे हैं वहाँ छुट्टी कर दी जाती है और बच्चे गलियों में नहाते हैं, भीगते हैं, खेलते हैं। कुछ किसान खेतों की ओर चल देते हैं, तो कुछ चौपाल में बैठ कर परस्पर मनोजन करते हैं। औरतें मिल जुलकर एक साथ घर के काम निपटाती हैं, लोकगीत गाती हैं। गलियों में पानी भर-भर कर बहता है। कहीं-कहीं तो ने छोटी नहर सी प्रतीत होती हैं। भैंसों को पानी में भीगना पसंद है, पर गायें सिर छिपाने की जगह ढूँढ़कर आराम से जुगाली करती हैं।
JAC Class 9 Hindi ग्राम श्री Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
कविता के आधार पर गंगा किनारे की चित्रात्मक छवि का अंकन कीजिए।
उत्तर :
कवि ने बनारस और इलाहाबाद में शिक्षा प्राप्त की थी, जहाँ उसने गंगा नदी की शोभा को निकटता से निहारा था। वहाँ की छवियाँ उसके मन में रची-बसी थीं। वसंत ऋतु आने पर पेड़-पौधों व फसलों पर ही बहार नहीं आती बल्कि जीव-जंतु भी अपने भीतर परिवर्तन को अनुभव करते हैं। गंगा की धाराएँ हर पल तटों को नहलाती हुई आगे बढ़ती हैं और उनके आगे बढ़ने से साँपों जैसे निशान रेत पर छूट जाते हैं। धूप में सूखी रेत तरह-तरह के रंगों में चमकती है। दूर-दूर से बहकर आए घास-पात और तिनके तटों की रेत पर बिखर जाते हैं। किसान नदी तट पर तरबूज उगाते हैं। बगुले अपने पंजों रूपी कंघी से अपनी कलगी सँवारते हैं। सुरखाब पानी पर तैरते हैं और पुलिया पर मगरौठी सोई रहती है।
प्रश्न 2.
‘ग्राम श्री’ कविता में कवि ने मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किस प्रकार किया है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि ने कविता में जड़ व चेतन तत्वों पर मानवीय भावों संबंधी और क्रियाओं के आरोप से उन्हें मनुष्य की तरह व्यवहार करते दिखाया है। प्रस्तुत कविता में सर्वत्र मानवीकरण अलंकार दिखाई देता है। बगुलों का अपने पैरों के पंजों रूपी कंघी से अपने पंखों को संवारते दिखाया गया है। इसी प्रकार अन्य स्थानों पर प्रकृति के विभिन्न रूपों को मानव के समान क्रियाकलाप करते दिखाया है।
प्रश्न 3.
धरती का तल श्यामल क्यों प्रतीत हो रहा था ?
उत्तर :
सारा गाँव प्राकृतिक सुषमा से ओत-प्रोत था। खेतों में दूर तक हरियाली ही हरियाली थी। रात की ओस के बाद जब सुबह-सवेरे सूर्य की किरणें उस पर पड़ती थी, तब प्रकृति ऐसे लगती थी जैसे चाँदी की चादर ओढ़े हुए हो। फसलें अपने गहरे हरे रंग से सबको अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। इसी कारण धरती का तल श्यामल प्रतीत हो रहा था।
प्रश्न 4.
वसंत ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं ? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
वसंत ऋतु में प्रकृति में निरंतर परिवर्तन होता है। कभी धूप निकलती है, तो कभी मंद-मंद हवाएँ चलने लगती हैं। धूप के निकलने पर आस-पास के पर्वत, घास, पेड़-पौधे और उन पर खिले हुए फूल बहुत सुंदर दिखाई देते हैं। चारों ओर हरियाली छा जाती है। भीनी-भीनी गंध सारे वातावरण में फैल जाती है। हरी-भरी धरती पर अलसी के पौधों की नीली-नीली कलियाँ भी झाँकने लगती हैं।
सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
1. फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटी जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली।
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्याम भू तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक!
शब्दार्थ : तलक – तक। रवि – सूर्य। तन – शरीर। हरित – हरे-भरे। रुधिर — रक्त। श्याम – गहरा हरा कुछ-कुछ श्याम रंग का। भू – धरती। नभ – आकाश। चिर – लंबे समय से। नील – नीला। फलक.- पर्दा, आकाश।
प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से लिया गया है, जिसके रचयिता सुप्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने हरे-हरे खेतों और प्रकृति की सुंदरता का मनोरम चित्रण किया है।
व्याख्या : कवि कहता है कि खेतों में दूर तक हरी-भरी फसलों की मखमली शोभा फैली है। सुबह-सवेरे जब सूर्य की किरणें प्रकट होती हैं तो ऐसा लगता है कि उन पर चाँदी जैसी उजली जाली-सी लिपट गई हो। फसलों के हरे-भरे तन पर धूप की चमक ऐसी प्रतीत होती है, जैसे उनमें विद्यमान उनका हरा रक्त निरंतर प्रवाहित हो रहा हो। फसलें गहरे हरे रंग की हैं, जिनके कारण धरती का तल श्यामल प्रतीत हो रहा है। सदा की तरह साफ़-स्वच्छ नीला आकाश उस पर झुका हुआ-सा दिखाई दे रहा है। भाव है कि हरी-भरी फसलों से भरी धरती पर झुका हुआ नीला आकाश अद्भुत दिखाई दे रहा है।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) खेतों में दूर तक फैली हरियाली कैसी दिखाई देती है ?
(ख) फसलों के हरे-भरे तिनकों में क्या झलकता प्रतीत होता है ?
(ग) साफ़-स्वच्छ नीला आकाश किस पर झुका हुआ है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) खेतों में दूर तक फैली हरियाली मखमल के समान कोमल दिखाई देती है।
(ख) फसलों के हरे-भरे तिनकों में उनकी हरी रक्त- रूपी शक्ति झलकती दिखाई देती है। इससे पौधे के स्वस्थ रूप की झलक मिलती है।
(ग) साफ़-स्वच्छ नीला आकाश हरी-भरी फसलों से भरी धरती पर झुका हुआ है।
(घ) प्रकृति चित्रण से संबंधित इस अवतरण में कवि ने गाँव की शोभा का वर्णन करते हुए हरे-भरे खेतों का सजीव चित्रण किया है। नीले आकाश और हरी फसलों के द्वारा अद्भुत रंग योजना की सृष्टि की गई है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। उपमा, अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश और रूपक अलंकारों का सहज-स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। तत्सम शब्दावली का सुंदर प्रयोग है।
2. रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली !
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली-पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली !
शब्दार्थ : वसुधा – धरती। सनई – सन, जिसकी छाल के रेशे से रस्सी बनाई जाती है। किंकिणियाँ – करधनी । तैलाक्त – तेल से युक्त। तीसी – अलसी नामक तेलहन।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इन पंक्तियों में कवि ने वसंत ऋतु के आगमन पर खेतों में दिखाई देने वाले अद्भुत परिवर्तन का सजीव चित्रण किया है।
व्याख्या : कवि कहता है कि गेहूँ- जौ की फसलों पर बालियाँ लग गई हैं, इसलिए सारी धरती रोमांचित – सी प्रतीत होती है। अरहर और सनई पर सुनहरे रंग की बालियाँ लग गई हैं, जो करधनी के समान शोभादायक प्रतीत होती हैं। सारे खेत में तेल की भीनी-भीनी गंध फैली हुई है। पीली-पीली सरसों सब तरफ़ फैली हुई है। कवि आश्चर्य में भरकर कहता है कि ज़रा देखो तो ! हरी-भरी धरती पर अलसी के पौधों की नीली- नीली कलियाँ भी झाँकने लगी हैं। भाव है कि हरे-भरे खेतों में नीले, पीले व सुनहरे रंग अलग से ही अपनी सुंदरता दिखाने लगे हैं।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) कवि के अनुसार पृथ्वी क्या देखकर रोमांचित है ?
(ख) सोने जैसी करधनियाँ किनकी हैं ?
(ग) नीली कलियों की शोभा कवि को कहाँ दिखाई दी थी ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि के अनुसार गेहूँ और जौ की बालियों को देखकर पृथ्वी रोमांचित है।
(ख) सोने की करधनियाँ अरहर और सनई के पौधों की हैं।
(ग) कवि को अलसी के पौधों की नीली कलियों की शोभा हरी-भरी धरती पर दिखाई दी थी।
(घ) कवि ने वसंत ऋतु के समय खेतों की हरियाली के साथ-साथ विभिन्न पौधों पर तरह-तरह की रंग – योजना का सजीव चित्रण किया है। ‘लो’ शब्द ने नाटकीयता और हैरानी के भाव को प्रकट करने में सफलता प्राप्त की है। गतिशील बिंब योजना है। दृश्य बिंब ने कवि के कथन को चित्रात्मकता का गुण प्रदान किया है। उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास और मानवीकरण अलंकारों का सहज सुंदर चित्रण किया गया है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। तत्सम शब्दाब्ली की अधिकता है।
3. रंग-रंग के फूलों में रिलमिल
हँस रही सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटक
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी!
फिरती हैं रंग रंग की तितली
रंग रंग के फूलों पर सुंदर
फूले गिरते हों फूल स्वयं
उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर !
शब्दार्थ : रिलमिल – मिल-जुलकर। छीमियाँ – फलियाँ। वृंत – डंठल।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने हरे-भरे खेतों में मटर की बेलों पर लटकी फलियों और फूलों पर उड़ती रंग-बिरंगी तितलियों की शोभा का चित्रण किया है।
व्याख्या : कवि कहता है कि मटर की बेलें तरह-तरह के रंगों के फूलों से मिलकर हँसती-मुस्कुराती खड़ी हैं। उनकी हरी-भरी फलियाँ अपने भीतर बीजों की लड़ियों को छिपाकर मखमल की पेटियों की तरह लटकी हुई हैं। बेलों पर लगे रंग-बिरंगे फूलों पर रंग- बिरंगी तितलियाँ मँडरा रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि फूलों पर फूल गिर रहे हों; डंठलों पर जैसे डंठल ही उड़-उड़कर घूम रहे हों।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) कवि ने मटरों की सुंदरता का वर्णन कैसे किया है ?
(ख) प्रकृति ने मखमली पेटियों में क्या छिपाया है ?
(ग) ‘फूलों पर फूल गिरते हुए’ किसके लिए कहा गया है ?
(घ) पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि ने मटरों को रंग-बिरंगे फूलों से लदी बेलों पर लटकते हुए प्रकट किया है, जो अति सुंदर हैं। मटरों की फलियाँ मखमली पेटियों
के समान कोमल हैं।
(ख) प्रकृति ने मखमली पेटियों में मटर के बीजों की लड़ियों को छिपाया है।
(ग) रंग-बिरंगी तितलियाँ मटर की बेलों पर लगे रंग-बिरंगे फूलों पर मँडरा रही हैं। कवि ने कल्पना करते हुए कहा है कि मानों रंग-बिरंगे फूल ही रंग-बिरंगे फूलों पर गिर रहे हों।
(घ) कवि ने मटर के खेतों में प्रकृति की अनूठी छटा का सुंदर चित्रण किया है। उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश, मानवीकरण और अनुप्रास अलंकारों का सहज-स्वाभाविक चित्रण किया गया है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। गतिशील बिंब योजना अति स्वाभाविक रूप से की गई है। अभिधा शब्द – शक्ति और प्रसाद युग विद्यमान है। शांत रस है। चाक्षुक बिंब ने दृश्य को सुंदर ढंग से प्रकट किया है।
4. अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढाक, पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली!
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आड़ू, नींबू, दाड़िम,
आलू, गोभी, बैंगन, मूली !
शब्दार्थ : रजत – चाँदी। स्वर्ण – सोना। मंजरियाँ – बौर। आम्र – आम। तरु – पेड़। दल – पत्ते। डाली – शाखा। कोकिला – कोयल। मुकुलित – अधखिला। दाड़िम – अनार।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने वसंत ऋतु के आगमन के साथ प्रकृति में आए परिवर्तन का सजीव चित्रण किया है।
व्याख्या : कवि कहता है कि आम के पेड़ों की शाखाएँ सोने-चाँदी के रंगों से युक्त बौर से लद गई हैं। ढाक और पीपल के पुराने पत्ते पेड़ों से गिर रहे हैं, ताकि उनका स्थान नए पत्ते ले सकें। कोयल मस्ती से भर उठी है। कटहल पेड़ों पर चिपके-लटके महकने लगे हैं। अधखिले जामुन के पेड़ शोभा देने लगे हैं और जंगल में झरबेरी मस्ती में झूमने लगी है। पेड़ों पर आडू, नींबू और अनार झूमने लगे हैं; खेतों में आलू, गोभी, बैंगन और मूली तैयार हो गई हैं। भाव है कि सारी प्रकृति तरह-तरह के पेड़-पौधों की शोभा से भर उठी है।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य – सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) कवि ने आम के पेड़ों की शोभा कैसे प्रकट की है ?
(ख) किन-किन पेड़ों के पत्ते झड़ने लगे थे ?
(ग) जंगल में प्रकृति के रंग को किसने प्रकट किया था ?
(घ) पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) आम के पेड़ सरदी जाते ही चाँदी और सोने जैसे रंग के बौर से लद गए हैं। कोयल उन पर मस्ती में भरकर कूकने लगी है।
(ख) ढाक और पीपल के पत्ते झड़ने लगे थे, ताकि उनकी जगह नए और सुंदर पत्ते ले सकें।
(ग) जंगल में प्रकृति के रंग को झरबेरी ने प्रकट किया था।
(घ) कवि ने प्रकृति में होने वाले परिवर्तन का सुंदर सजीव वर्णन किया है। तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है, पर वे सभी शब्द अति सरल और सामान्य बोलचाल की भाषा में प्रयुक्त किए जाते हैं। अनुप्रास, मानवीकरण और स्वाभावोक्ति अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है। अभिधा शब्द – शक्ति, प्रसाद गुण और शांत रस है। गणन शैली का प्रयोग है। लयात्मकता की सृष्टि स्वरमैत्री के कारण हुई है।
5. पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ीं,
पक गए सुनहले मधुर बेर,
अँवली से तरु की डाल जड़ी !
लहलह पालक, महमह धानिया,
लौकी औं सेम फलीं, फैलीं
मखमली टमाटर हुए लाल,
मिरचों की बड़ी हरी थैली !
शब्दार्थ : चित्तियाँ – धब्बे। सुनहले – सोने के रंग के। अँवली – छोटा आँवला। तरु – पेड़।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने वसंत ऋतु में तरह-तरह के फलों और सब्ज़ियों की विशेषताओं का सजीव चित्रण किया है।
व्याख्या : कवि कहता है कि अमरूद पककर पीले और मीठे हो गए हैं। उन पर छोटे-छोटे लाल धब्बे पड़ गए हैं, जिनसे उनकी सुंदरता बढ़ गई है। सुनहरे बेर पककर तैयार हो गए हैं और छोटे आँवलों से पेड़ों की शाखाएँ जड़ी गई हैं। खेतों में हरी-भरी पालक लहलहाने लगी है, तो धनिए की सुगंध महकने लगी है। लौकी और सेम की बेलें दूर-दूर तक फैल गई हैं और फल गई हैं। लाल रंग के मखमली टमाटरों से पौधे लद गए हैं। हरी मिर्चों से पौधे भर गए हैं, जिस कारण पौधे हरी-भरी थैली के समान दिखाई देने लगे हैं।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) पके हुए अमरूद कैसे दिखाई देते हैं ?
(ख) बेर और आँवले कैसे हो गए हैं ?
(ग) खेतों में सब्ज़ियों पर कैसी-कैसी बहार है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) पके हुए अमरूद पीले रंग के हो गए हैं, जिन पर लाल-लाल चित्तियाँ हैं। वे बहुत मीठे हैं।
(ख) बेर और आँवले शोभा दे रहे हैं। बेर पककर सुनहले हो गए हैं और आँवलों से पेड़ों की डालियाँ पूरी तरह जड़ी जा चुकी हैं।
(ग) खेतों में पालक लहलहा रही है; धनिया महक रहा है; लौकी और सेम की बेलें दूर तक फैली हुई हैं। लाल-लाल मखमली टमाटरों और हरी-भरी मिर्चों पर तो मानो बहार आई हुई है।
(घ) कवि ने खेतों में उगने वाली सब्ज़ियों और फलों की शोभा का सुंदर और सहज वर्णन किया है। पुनरुक्ति प्रकाश और अनुप्रास का स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। ‘लहलह’, ‘महमह’ में लयात्मकता है। स्वरमैत्री ने गेयता का गुण प्रदान किया है। अभिधा शब्द – शक्ति, प्रसाद गुण, चित्रात्मकता और दृश्य बिंब सहज सुंदर हैं।
6. बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूजों की खेती;
अँगुली भी कंघी से बगुले
कलँगी सँवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती सोई!
शब्दार्थ : बालू – रेत। सरपत – घास-पात, तिनके। तट – किनारा। सुरखाब – चक्रवाक पक्षी। पुलिन – नदी का किनारा।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने गंगा किनारे की रेत और वहाँ पर पक्षियों की क्रीड़ाओं का अति स्वाभाविक चित्रण किया है।
व्याख्या :कवि कहता है कि गंगा के किनारे पर सात रंगों में जगमगाती रेत पर नदी की लहरों से साँपों जैसे सुंदर लहरिया निशान बने हुए हैं। वहाँ फैली घास-पात और तिनके अति सुंदर लगते हैं। तट पर तरबूजों की खेती की गई है। सफ़ेद बगुलों में से कई अपने पंजे रूपी उँगलियों से कलगी सँवार रहे हैं, तो चक्रवाक पक्षी जल पर तैर रहे हैं। नदी के तट पर मगरौठी सोई रहती है। भाव यह है कि गंगा – किनारे का दृश्य अति मोहक है। प्रकृति ने अपने सभी रंग वहाँ बिखेर दिए हैं।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) कवि द्वारा गंगा किनारे का अंकित चित्र स्पष्ट कीजिए।
(ख) बगुले गंगा किनारे क्या कर रहे हैं ?
(ग) मगरौठी क्या कर रही है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) गंगा किनारे रंग-बिरंगी रेत दूर-दूर तक फैली हुई है, जिस पर लहरों के बहाव से साँप जैसे चिह्न अंकित हैं। घास-पात और तिनके न जाने कहाँ-कहाँ से बहकर वहाँ इकट्ठे हो गए हैं, जो सुंदर लगते हैं। तट पर तरबूजों की खेती की गई है।।
(ख) बगुले गंगा के तट पर अपने पंजे रूपी कँघी से अपनी कलगी सँवार रहे हैं।
(ग) मगरौठी नदी के तट पर आराम से सो रही है।
(घ) कवि ने गंगा तट पर प्राकृतिक दृश्य का अति सुंदर और स्वाभाविक चित्रण किया है। रेत पर साँप – सी लहरियाँ, तरबूजों की खेती और पक्षियों की क्रियाएँ अति सहज रूप से प्रस्तुत हुई हैं। अनुप्रास और स्वाभावोक्ति अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है। सामान्य बोलचाल के शब्दों की अधिकता है। अभिधात्मकता और प्रसादात्मकता ने कवि के कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है। चित्रात्मकता का गुण और चाक्षुक बिंब विद्यमान है।
7. हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोए,
भीगी अँधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में से खोए
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम-
जिस पर नीलम नभ आच्छादन-
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन !
शब्दार्थ : हिम-आतप – सरदी की धूप। अंधियाली – अँधेरे। निशि – रात। तारक – तारे। स्वप्नों – सपनों। मरकत — पन्ना नामक रत्न। आच्छादन – छाया। निरुपम – जिसे किसी की उपमा न दी जा सके। स्निग्ध – कोमल। निज – अपनी। हरता – आकर्षित करना।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने वसंत के आगमन पर ग्रामीण आँचल में बिखरी प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है।
व्याख्या : कवि कहता है कि प्रसन्नता से भरी हँसमुख हरियाली सरदी की धूप में सुख से अलसाई सो रही है। ओस से भीगी अँधेरी रात में आकाश में टिमटिमाते तारे भी मानो स्वप्न में खोए हुए हैं। सारा गाँव हरियाली से इस प्रकार भरा हुआ है, जैसे वह हरा-भरा बहुमूल्य पन्ना रत्न हो जिस पर नीलम ज़ैसा नीला आकाश छाया हुआ है। शीत ऋतु की समाप्ति पर सारा गाँव अनुपम प्रतीत हो रहा है। वह कोमल, अति सुंदर और शांत है; जो अपनी अपार शोभा से हर मानव के हृदय को आकर्षित करता है। भाव यह है कि शीत ऋतु की समाप्ति और वसंत के आगमन पर गाँव की शोभा अवर्णनीय व अद्भुत है।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) कवि ने हरियाली को सुख से अलसाई क्यों कहा है?
(ख) ‘भीगी अँधियाली’ क्या है ?
(ग) कवि ने गाँव को ‘मरकत डिब्बे – सा’ क्यों माना है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) वसंत आगमन पर सरदियों की ठिठुरन कम हो जाती है। धूप में थोड़ी तेज़ी बढ़ने लगती है। दिन-रात सरदी से ठिठुरती खेतों की हरियाली भी मानो गरमी पाकर अलसाने लगी थी। इसलिए कवि ने हरियाली को सुख से अलसाई – सी माना है।
(ख) ओस का पड़ना सरदियों का आवश्यक और स्वाभाविक गुण है। रात के अँधकार में ओस चुपचाप पेड़-पौधों तथा सारी प्रकृति को नहला देती है, इसलिए कवि ने उसे भीगी अँधियाली कहा है।
(ग) सारा गाँव हरी-भरी वनस्पतियों से भरा हुआ है। हरियाली तो उसके कण-कण में सिमटी हुई है, इसलिए कवि ने उसे ‘मरकत का डिब्बे – सा’ माना है।
(घ) कवि ने गाँव के कण-कण की शोभा का आधार प्रकृति को माना है। वसंत के आगमन पर प्रकृति का कण-कण खिल उठता है, महक जाता है; कवि ने तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया है। उपमा, मानवीकरण, अनुप्रास तथा पदमैत्री का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है। प्रसादगुण और अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग सराहनीय है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
ग्राम श्री Summary in Hindi
कवि-परिचय :
छायावादी काव्यधारा के कवि सुमित्रानंदन पंत कोमल भावों और सौंदर्य के कवि माने जाते हैं। इनका जन्म उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के कौसानी गाँव में सन् 1900 में हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में ही हुई थी। बाद में इन्होंने बनारस और इलाहाबाद में शिक्षा प्राप्त की थी, पर देश की स्वतंत्रता के लिए महात्मा गांधी के आह्वान पर इन्होंने कॉलेज छोड़ दिया था। इनका देहांत 28 दिसंबर, सन् 1977 में हुआ था।
पंत जी ने साहित्य को काव्य के अतिरिक्त आलोचक, कहानी, आत्मकथा आदि गद्य विधाओं की रचनाएँ दी हैं। इनकी प्रमुख काव्य रचनाएँ हैं – वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगांत, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, उत्तरा, कला और बूढ़ा चाँद, चिदंबरा, लोकायतन आदि। सन 1961 में इन्हें पद्मभूषण की उपाधि दी गई थी। इन्हें ‘कला और बूढ़ा चाँद’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा ‘चिदंबरा’ पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया था। इन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
पंत द्वारा प्रारंभिक कविताओं में प्रकृति चित्रण को विशेष महत्व दिया गया। इन्होंने प्रकृति को नारी रूप में चित्रित किया था। ये प्रगतिवादी कविता से प्रभावित होकर रूढ़ियों को समाज से मिटा देने के लिए तैयार थे। इनके प्रारंभिक काव्य में जो कोकिला मीठे गीत गाती थी, वही बाद में क्रांति के लिए उकसाने लगी थी –
गा कोकिल बरसा पावक कण
नष्ट भ्रष्ट हों जीर्ण पुरातन।
महर्षि अरविंद से भेंट करने के पश्चात ये अध्यात्मवादी हो गए। इनकी कविता में चिंतन की प्रधानता हो गई थी। ये सत्य पर विश्वास रखते हुए भौतिक समृद्धि की आवश्यकता को स्वीकार करते थे। लोकायतन लोक संस्कृति का महाकाव्य है।
वास्तव में पंत एक महान कवि थे, जिन्होंने प्रारंभिक सौंदर्य भावना के युग से आज के चेतना प्रधान युग तक की महान यात्रा की। वे भाषा का प्रयोग करने में अति निपुण थे। उन जैसा शब्द चयन की क्षमता से युक्त कवि बड़ी कठिनाई से प्राप्त होता है।
कविता का सार :
सुमित्रानंदन पंत द्वारा चौथे दशक में लिखी गई यह कविता प्राकृतिक सुषमा और समृद्धि का मनोरम वर्णन करने में सक्षम है। खेतों में दूर तक लहलहाती फसलें, फल-फूलों से लदी पेड़-पौधों की डालियाँ और गंगा की रेत कवि को गहराई से प्रभावित करती है। कवि को दूर-दूर तक खेतों में फैली हुई हरियाली मखमल के समान कोमल प्रतीत होती है, जिस पर सूर्य की किरणें चाँदी की जाली के समान बिखरी हुई हैं। हरी-भरी धरती पर नीले आकाश का पर्दा-सा फैला हुआ है। गेहूँ की बालियाँ, अरहर और सनई की सोने जैसी किंकिणियाँ शोभा देने वाली हैं।
मटर और छीमियों पर रंग-बिरंगी सुंदर तितलियाँ मँडराती फिरती हैं। आम की डालियाँ चाँदी-सोने की मंजरियों से लद गई हैं। ढाक और पीपल के पेड़ों से पत्ते झड़ने लगे हैं। कोयल मस्ती में डूबकर कूक रही है। कटहल, जामुन, झरबेरी, आडू, नींबू, अनार, आलू, गोभी, बैंगन और मूली अपना रंग-रूप बिखेरने लगे हैं। पीले-पीले अमरूदों पर लाल-लाल चित्तियाँ पड़ गई हैं। पीले-पीले बेर पक गए हैं। पेड़ों पर आँवले झूल रहे हैं।
पालक, धनिया, लौकी, सेम, टमाटर, मिर्च आदि सब ऋतु परिवर्तन के साथ अपनी-अपनी शोभा को लेकर प्रकट हो गए हैं। गंगा नदी के किनारे रेत पर पानी के बहाव से सतरंगी साँप से अंकित हो गए हैं। नदी के तट पर तरबूजों की खेती की गई है। किनारों पर बगुले अपने पैरों की उँगलियों रूपी कंघी से अपने पंख सँवारते शोभा देते हैं। जल में तैरती सुरखाब और पुल पर सोई मगरौठी सुंदर लगती है। सरदियों की धूप फैल गई है।
हरियाली अलसाई-सी प्रतीत हो रही है। सारा गाँव पन्ना का खुला डिब्बा-सा प्रतीत होता है, जिस पर साफ़-स्वच्छ आकाश रूपी नीलम फैला हुआ है। शीत ऋतु बीत जाने के बाद प्राकृतिक शोभा सभी के हृदय को अपने बस में कर रही है। सर्वत्र सुंदरता बिखरी हुई है।