Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 मेघ आए Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 मेघ आए
JAC Class 9 Hindi मेघ आए Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
बादलों के आने पर प्रकृति में जिन गतिशील क्रियाओं को कवि ने चित्रित किया है, उन्हें लिखिए।
उत्तर :
बादलों के आने पर प्रकृति प्रसन्नता से भरकर जिस प्रकार नाच उठती है उससे अनेक गतिशील क्रियाएँ प्रकट होती हैं। हवा नाचती- गाती आगे-आगे चली। पेड़ झुककर गरदन उचकाए झाँकने लगे। धूल रूपी आँधी घाघरा उठाकर भाग चली। नदी बाँकी चितवन उठा कर ठिठकी और उसका घूँघट सरका। बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की। लता किवाड़ की ओर से अकुलाई और बोली। तालाब हर्षाया और परात-भर कर पानी लाया। बादल क्षितिज रूपी अटारी तक आए और बिजली कौंधी।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित किसके प्रतीक हैं ?
धूल, पेड़, नदी, लता, ताल।
उत्तर :
- धूल – गाँव की घाघरा उठाकर भागने वाली छोटी लड़कियों का।
- पेड़ – गाँव के जाने-अनजाने आदमियों का।
- नदी – गाँव की युवतियों का।
- लता – विरहिनी प्रियतमा का।
- ताल – घर का कोई सदस्य या पुराना वफादार नौकर।
प्रश्न 3.
लता ने बादल रूपी मेहमान को किस तरह देखा और क्यों ?
उत्तर :
लता ने विरहिनी, प्रियतमा, नायिका या पत्नी के रूप में बादल रूपी प्रियतम की ओर लाज-भरी आँखों से देखा था, जिसमें उलाहना भरा हुआ था कि वे बहुत दिनों बाद आए। गाँव में प्रियतमा का अपने प्रियतम से सबके सामने खुले रूप में मिलने का रिवाज प्रायः नहीं होता।
प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की।
(ख) बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।
उत्तर :
(क) धरती मानो बादलों से कह रही हो कि क्षमा करो। अभी तक यह समझ रहे थे कि आकाश में उमड़-घुमड़ कर आए बादल बरसेंगे नहीं, पर अब यह भ्रम टूट गया है। इससे यह ध्वनि भी उत्पन्न होती है कि तुम्हारे कभी न आने का जो भ्रम बना हुआ था, वह अब टूट गया है।
(ख) नदी अपने प्रवाह को थोड़ा रोककर ठिठक कर खड़ी हो गई। नदी रूपी गाँव की नदी रूपी युवती ने अपने मुँह पर घूँघट सरका लिया और तिरछी नज़रों से सजे-सँवरे बादलों की ओर देखने लगी।
प्रश्न 5.
मेघरूपी मेहमान के आने से वातावरण में क्या परिवर्तन हुए ?
उत्तर:
मेघ रूपी मेहमान के आने से सारे वातावरण में तरह-तरह के परिवर्तन हुए। मेघ के आगमन पर बयार नाचने-गाने लगी अर्थात् हवा चलनी आरंभ हो गई। पेड़ मेघों को देखने के लिए गरदन ऊपर उठाकर झाँकने लगे। नदी भी एक पल के लिए रुककर मुख पर घूँघट डालकर तिरछी नजरों से मेघों को देखने की चेष्टा करने लगी। लता तो किवाड़ की आड़ में छिपकर मेघों को देर से आने का उपालंभ देने लगी। ताल खुशी से भरकर मेघों के स्वागत में अपना जल अर्पित करने को तैयार हो गए।
प्रश्न 6.
मेघों के लिए बन-ठन के, सँवर के आने की बात क्यों कही गई है ?
उत्तर:
दामाद की तरह मेघ गाँव में लंबे समय के बाद लौटा था। वह सज-सँवर कर, बन-ठन कर लौटा था, क्योंकि वह गाँव के सभी अपनों- परायों पर अपने व्यक्तित्व का प्रभाव डालना चाहता था।
प्रश्न 7.
कविता में आए मानवीकरण तथा रूपक अलंकार के उदाहरण खोज कर लिखिए।
उत्तर :
(क) जिन अंशों में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग हुआ है, वे निम्नलिखित हैं –
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के
आगे-आगे नाचती गाती बयार चली
पेड़ झुक झाँकने लगे, गरदन उचकाए
धूल भागी घाघरा उठाए
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की
‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’-
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
(ख) जिन अंशों में रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है, वे निम्नलिखित हैं –
गाती बयार
बाँकी चितवन
बूढ़े पीपल
अकुलाई लता
क्षितिज अटारी
प्रश्न 8.
कविता में जिन रीति-रिवाजों का मार्मिक चित्रण हुआ है, उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर :
नगर में रहने वाला विशिष्ट अतिथि (दामाद) जब गाँव पहुँचा तो उसका सबने मिलजुल कर स्वागत किया। गाँव से बाहर लगे बूढ़े बरगद ने आगे बढ़कर उसका अभिनंदन किया, उससे प्रेम-भरी बातचीत की। ताल द्वारे उसके पाँव धोने के लिए परात में पानी लाया गया। प्रियतमा एकदम उसके सामने नहीं आई, बल्कि किवाड़ के पीछे छिपी रही और उसने मंद स्वर में देर से आने का उलाहना दिया।
प्रश्न 9.
कविता में कवि ने आकाश में बादल और गाँव में मेहमान के (दामाद) आने का जो रोचक वर्णन किया है, उसे लिखिए।
उत्तर :
कवि ने आकाश में बादल और गाँव में दामाद आने का जो रूपक प्रकट किया है वह अति स्वाभाविक और प्रभावशाली है। नगर में रहने वाला कोई युवक जब दामाद के रूप में गाँव में जाता है तो वह सज-सँवर कर, बन-ठन कर जाता है। बादल भी वैसे ही बड़े बन-ठन कर गाँव पहुँचे। बादलों के आगे-आगे तो गति से बहती हवा चलती है और घरों की खिड़कियाँ दरवाजे स्वयं खुलने लगते हैं। दामाद के गाँव में पहुँचते ही छोटे-छोटे बच्चे उन्हें पहचान कर नाचते-कूदते उससे आगे-आगे भागते हुए उनके आगमन की पूर्व सूचना देने लगते हैं। गली-मोहल्ले के लोग खिड़कियों-दरवाजों से उत्सुकतापूर्वक उसकी झलक पाने की चेष्टा करने लगते हैं।
बादल आने पर पेड़ तेज़ हवा में झूमने लगते हैं, झुकने लगते हैं। आँधी चलने लगती है। दामाद के आने से गाँव के लोग झुककर गर्दन उचका कर उसे देखने का प्रयत्न करते हैं। छोटी-छोटी लकड़ियाँ प्रसन्नता की अधिकता के कारण अपने कपड़े समेट घर की ओर दौड़ पड़ती हैं। युवा नारियाँ बाँकी चितवन से घूँघट सरकाकर उधर देखने लगती हैं। जैसे ही बादल गाँव में पहुँचता है वैसे ही पीपल का बूढ़ा पेड़ उसे आशीर्वाद देते और स्वागत करते हुए उससे कहता है कि पूरे एक वर्ष बाद गाँव में आए हो। दामाद से भी घर के बड़े-बूढ़े देर से आने की प्रेम-भरी शिकायत करते हैं और उसका स्वागत करते हैं।
बादल आने पर आँगन में लगी बेल ओट में सरक जाती है तो दामाद के आने से लाज-भरी प्रियतमा अकुलाकर दरवाजों की ओट में हो जाती है। घर का कोई सदस्य दामाद के पैर धोने के लिए परात में पानी भर लाता है। आकाश में छाए बादल बरसकर अपने आगमन का उद्देश्य पूरा कर देते हैं, तो मिलन की घड़ी में दामाद और प्रियतमा की आँखें भी रिमझिम बरसने लगती हैं।
प्रश्न 10.
काव्य-सौंदर्य लिखिए –
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के
उत्तर :
नगर की ओर से बादल बहुत बन-ठन कर दामाद की तरह गाँव में पधारे और उनके पधारने से सब प्रसन्नता से भर उठे। कवि ने रूपक के प्रयोग से अति सुंदर चित्र – योजना की है। अनुप्रास अलंकार, मानवीकरण और उत्प्रेक्षा का प्रयोग अति स्वाभाविक रूप से प्रकट हुआ है। तद्भव और देशज शब्दावली के प्रयोग ने कथन को सहजता प्रदान की है। प्रसाद गुण विद्यमान है। स्वरमैत्री ने गेयता का गुण प्रदान किया है।
रचना और अभिव्यक्ति –
प्रश्न 11.
वर्षा के आने पर अपने आस-पास के वातावरण में हुए परिवर्तन को ध्यान से देखकर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर :
आकाश में छाए बादलों को देख लोग प्रसन्नता से खिल उठते हैं। ठंडी हवा बहने के कारण वातावरण की गर्मी कम हो जाती है। छोटे-बच्चे वर्षा के स्वागत में नाचने-गाने लगते हैं। घरों की छतों पर औरतें धूप में सूखने के लिए डाले कपड़े इकट्ठा करने लगती हैं। जैसे ही बूँदें गिरती हैं मिट्टी की सौंधी-सौंधी गंध वातावरण में फैल जाती है। छोटे-छोटे बच्चे बारिश में नहाने के लिए आँगन में आ जाते हैं।
वर्षा तेज़ होते ही गलियाँ पानी से भरने लगती हैं और कुछ ही मिनटों बाद वे बरसाती नालों की तरह भर-भरकर बहने लगती हैं। उस बहते पानी में कई घरों से, वे सामान भी बह कर गली में तैरने लगते हैं। जो समयाभाव के कारण संभलने से रह गए होते थे। वर्षा की बौछारों से सारे पेड़-पौधे नहा जाते हैं। महीनों से उन पर जमी धूल-मिट्टी बह जाती है और वे हरे-भरे रूप को पाकर साफ़-स्वच्छ हो जाते हैं। सारे खेत अपनी हरियाली से मोहक लगने लगते हैं। गर्मी से झुलसे पशुओं पर भी संतोष के भाव दिखाई देते हैं।
प्रश्न 12.
कवि ने पीपल को ही बड़ा बुजुर्ग क्यों कहा है ? पता लगाइए।
उत्तर :
पीपल के पेड़ की आयु काफी लंबी होती है, वे प्रायः गाँव की सीमा पर ही दूर से आने वालों को अपनी छाया से सुख प्रदान करते हैं। सघन छाया और फैलाव के कारण वे पशु-पक्षियों तथा यात्रियों को ही सुख – आराम नहीं देते, बल्कि अपनी लंबी आयु और उपयोगिता के कारण लोगों के हृदय में पवित्रता और सम्मान के प्रतीक भी माने जाते हैं। लोग उसके सामने श्रद्धा से झुकते हैं, उसकी पूजा करते हैं। कवि ने पीपल को इसीलिए बड़ा बुजुर्ग कहा है।
प्रश्न 13.
कविता में मेघ को ‘पाहुन’ के रूप में चित्रित किया गया है। हमारे यहाँ अतिथि (दामाद) को विशेष महत्व प्राप्त है लेकिन आज इस परंपरा में परिवर्तन आया है। आपको इसके क्या कारण नज़र आते हैं, लिखिए।
उत्तर
दामाद को आज भी भारतीय परिवारों में वैसा ही विशेष सम्मान प्राप्त है जैसा पहले था, पर अब सम्मान का स्वरूप बदल गया है। लोगों का जीवन के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन आ गया है। अब दामाद मेहमान-सा प्रतीत नहीं होता बल्कि वह परिवार का बेटा ही लगता है जिसके आगमन पर किसी आडंबर की आवश्यकता अनुभव नहीं होती। अपने-अपने काम में अतिव्यस्तता भी इस परंपरा में परिवर्तन का एक कारण हो सकता है।
भाषा-अध्ययन –
प्रश्न 14.
कविता में आए मुहावरों को छाँटकर अपने वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए।
उत्तर :
- बन-ठन के – सज-सँवर कर-अरे, सुबह-सवेरे बन-ठन कर कहाँ की तैयारी है? क्या तुम्हें स्कूल नहीं जाना ?
- झुक-झाँक करना ताक-झाँक करना – पड़ोसियों के घर इस तरह झुक-झाँक करना तुम्हें शोभा नहीं देता।
- सुध लेना – याद करना- अरे मोहन, कभी गाँव में बूढ़े माँ-बाप की सुध लेने चले जाया करो।
- गाँठ खुलना- भेद खुलना- रिश्वत तो गुप्ता जी वर्षों से ले रहे थे पर गाँठ अब खुली है
- बाँध टूटना – हौसला चूक जाना-वर्षों से बेचारी अपने एकमात्र पुत्र की गंभीर बीमारी को किसी प्रकार झेल रही थी पर उसकी मौत ने तो बाँध तोड़ दिया और वह फूट-फूट कर रो पड़ी।
प्रश्न 15.
कविता में प्रयुक्त आंचलिक शब्दों की सूची बनाइए।
उत्तर :
बन-ठन के सँवर के’, ‘पाहुन’, ‘घाघरा’, ‘बाँकी चितवन’, ‘ठिठकी’, ‘घूँघट सरके’, ‘जुहार’, ‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’, ‘हरसाया’, ‘अटारी’, ‘ढरके’।
प्रश्न 16.
मेघ आए कविता की भाषा सरल और सहज है-उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि ने आंचलिक भाषा में सजी-सँवरी कविता को मुख्य रूप से खड़ी बोली में रचा है जिसमें ग्रामीण परिवेश अति सुंदर ढंग से प्रकट हुआ है। भाषा अति सरल, सरस और सहज है। गतिशील बिंब योजना तो मन को मोह लेने वाली है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे आँखों के सामने मेघ रूपी दामाद गाँव में पधार गया हो जिस कारण हर प्राणी क्रियाशील हो उठा है। प्रतीकात्मकता का सहज-स्वाभाविक रूप अति सार्थक और सटीक है। बूढ़ा पीपल, धूल, अकुलाई लता, नदी, ताल आदि में प्रतीकात्मकता है। चित्रात्मकता का रूप तो अद्भुत है –
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।
कवि ने संवादात्मकता का प्रयोग करते हुए नाटकीयता की सृष्टि करने में सफलता प्राप्त की है –
(क) बरस बाद सुधि लीन्हीं –
(ख) क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की।
कवि की भाषा में मुहावरों का सटीक प्रयोग किया गया है जिसने कथन को गतिशीलता प्रदान की है, जैसे-
(क) मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के
(ख) पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए
(ग) बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की
(घ) क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की
(ङ) बाँध टूटा झर-झर मिलन
कवि ने ब्रजभाषा के शब्दों का प्रयोग कर भावों को स्वाभाविकता प्रदान की है। तद्भव तथा देशज शब्दों के साथ-साथ तत्सम शब्दावली का प्रयोग सहजता से हुआ है, जैसे-क्षितिज, दामिनी, क्षमा, अश्रु, मेघ आदि।
JAC Class 9 Hindi मेघ आए Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
शहरी पाहुन के आगमन पर गाँव में उमंग-उल्लास के रूप को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
जब शहरी पाहुन सज-संवर कर गाँव में आता है तो चारों ओर प्रसन्नता का वातावरण छा जाता है। उसके आगमन की खबर तेजी से फैल जाती है। गली-गली में दरवाज़े और खिड़कियाँ उसे उत्सुकतावश देखने के लिए खुल जाते हैं। लोग गरदन उचकाकर उसे देखने लगते हैं और गाँव की नारियाँ शरमाकर घूँघट सरकाकर तिरछी दृष्टि से उसे देखती हैं। प्रिया भी अपने पाहुन को घर आया देख प्रसन्न हो जाती है, परंतु दरवाज़े की ओट में छिपकर वह पाहुन को उपालंभ भी देती है। किंतु उसके हृदय के सारे भ्रम दूर हो जाते हैं। अतिथि और प्रियतमा का मिलन हो जाता है और उनके नेत्रों से प्रसन्नता के आँसू छलक पड़ते हैं।
प्रश्न 2.
बादलों की तुलना किसके साथ की गई है और कैसे ?
उत्तर :
कवि ने बादलों की तुलना शहरी मेहमान के साथ की गई है। जिस प्रकार शहरी मेहमान बन-सँवर कर आते हैं उसी प्रकार बादल भी बन-सँवर आए हैं और सारे आकाश में फैल गए हैं। गाँव के लोग बादलों को देखने के लिए अपने खिड़की-दरवाज़े उसी प्रकार खोल रहे हैं, जिस प्रकार शहरी मेहमान को देखने की उत्सुकता में लोग अपने घरों के खिड़की-दरवाज़े खोलते हैं।
प्रश्न 3.
‘मिलन के अश्रु ढलके’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
मिलन के अश्रु ढलके से कवि का अभिप्राय है कि धरती रूपी नायिका को यह भ्रम था कि बादल नहीं आएँगे। परंतु जब बादल रूपी मेहमान बन-सँवर कर आता है तब धरती रूपी नायिका का भ्रम दूर हो जाता है। धरती और मेघ का मिलन देखकर बादल ज़ोर-ज़ोर से बरसने लगते हैं अर्थात् नायिका और नायक के मिलन पर आँखों से खुशी के आँसू बहने लगते हैं।
प्रश्न 4.
बादलों के मेहमान बनकर आने पर उनका स्वागत किस प्रकार होता है ?
उत्तर :
गाँव में बादल एक साल बाद मेहमान की भाँति बन-सँवर कर आए हैं। उन्हें देखकर सारा गाँव खुशी से नाच उठता है। सभी अपने- अपने ढंग से बादल रूपी मेहमान के स्वागत की तैयारी में लग जाते हैं। गाँव के सबसे बूढ़े पेड़ पीपल ने बादलों का स्वागत झुककर वंदना करते हुए किया।जब घर में मेहमान आते हैं उनका स्वागत घर के बड़े लोग करते हैं। तालाब में लहरें उठने लगती हैं और वह भी अपने जल से मेहमान के चरण धोने के लिए तत्पर है। मेहमान की नायिका उसे यह ताना देती है कि वह एक साल बाद आया है। उसने तो उसके आने की उम्मीद छोड़ दी थी, अर्थात् धरती भी मेघों से मिलने को बेचैन थी और वह अपनी बेचैनी किसी को दिखाती नहीं है। इसलिए, वह आड़ में छिपकर अपने मेहमान का स्वागत करती है।
प्रश्न 5.
बादल कहाँ तक फैल गए हैं उनके सौंदर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर
बादल आकर क्षितिज तक फैल गए हैं। उनमें से बिजली चमक रही है। बिजली की चमक देखकर ऐसा लगता है, मानो बादल रूपी मेहमान क्षितिज रूपी अटारी पर आने से नायिका रूपी बिजली का तन-मन आभा से युक्त हो गया है।
प्रश्न 6.
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
प्रस्तुत अवतरण का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मेघों के आने से प्राकृतिक वातावरण में होने वाले परिवर्तनों का कवि ने बड़ा सजीव चित्रण किया है। अनुप्रास तथा मानवीकरण अलंकार से प्राकृतिक उपादानों को नया रूप प्रदान किया है। कवि ने मेघों को पाहुन का रूप देकर तथा प्राकृतिक उपादानों से मानवीय क्रियाएँ आरोपित कर चित्रात्मकता की सृष्टि की है। शब्द – योजना बड़ी सजीव तथा मनमोहक है। भाषा सरलता और सरसता से परिपूर्ण है।
सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
1. मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती गाती बयार चली,
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली,
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
शब्दार्थ : बन-ठन के – सज-सँवर कर। बयार – हवा। पाहुन – मेहमान। मेघ – बादल।
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश ‘क्षितिज’ में संकलित ‘मेघ आए’ कविता से अवतरित है। इसके रचयिता ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ हैं। इस कविता में कवि ने मेघ के आने की तुलना गाँव में आने वाले शहरी मेहमान से की है। जिस प्रकार मेहमान के आने पर गाँव में प्रसन्नता का वातावरण होता उसी प्रकार मेघों के आने पर धरती की प्रसन्नता का वर्णन है।
व्याख्या : कवि का कथन है कि आज बादल आज गाँव में आने वाले शहरी मेहमान की भाँति सज-सँवर कर आए हैं। वर्षा के आगमन की प्रसन्नता में हवा चलने लगी है अर्थात् मेहमान के आने की खबर सारे गाँव में फैल गई है। लोग बादलों को देखने के लिए उसी प्रकार अपने दरवाज़े- खिड़कियाँ खोल रहे हैं, जिस प्रकार गाँव के लोग शहर के मेहमान की झलक पाने के लिए उतावले होते हैं। कवि ने यहाँ मेघों और शहरी मेहमान की तुलना करके बड़ा सुंदर दृश्य उपस्थित किया है।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) गाँव में कौन आया है ?
(ख) मेघ किस प्रकार से आते हैं ?
(ग) गाँव में बादलों का कैसा स्वागत होता है ?
(घ) हवा बादलों का स्वागत कैसे करती है ?
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) गाँव में मेघ रूपी मेहमान आया है।
(ख) बादल बहुत बन-सँवर कर आते हैं। वे आकाश में चारों ओर छा गए हैं। आकाश पूरी तरह से बादलों से ढक गया है। (ग) गाँव में बादलों का स्वागत एक मेहमान की तरह होता है। उनके आने की खबर सारे गाँव में फैल जाती है। लोग बादलों को मेहमान की तरह अपने खिड़की-दरवाजे खोलकर देखने लग जाते हैं।
(घ) हवा बादलों को उड़ाकर आगे-आगे ले जाती है। यह ऐसा लगता है, जैसे हवा बादलों के आगे-आगे खुशी से नाचती हुई चल रही है।
(ङ) कवि ने मेघों के आने का सजीव चित्रण किया है। अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश व उपमा अलंकार की सुंदर घटा बिखरी है। मेघों का पाहुन की भाँति बन-सँवर कर आना मानवीकरण अलंकार की सृष्टि करता है। चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है। प्रकृति के आलंबन और मानवीकरण रूप का वर्णन है। भाषा सरल, सरस तथा प्रवाहमयी है।
2. पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
शब्दार्थ : उचकाए – उठाकर। बाँकी चितवन – तिरछी दृष्टि। ठिठकी – ठहर कर। मेघ – बादल।
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ द्वारा रचित कविता ‘मेघ आए’ से अवतरित है। इसमें कवि प्रकृति के मनमोहक रूप का वर्णन करता है। कवि ने मेघों को गाँव में आने वाले पाहुन के रूप में माना है तथा प्राकृतिक उपादानों के परिवर्तनशील सौंदर्य को चित्रित किया है
व्याख्या : कवि मेघों के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहता है कि मेघ गाँव में आने वाले पाहुन की भाँति बन-सँवर कर आ गए हैं। मेघों के रूप-सौंदर्य को देखने के लिए पेड़ गर्दन उचकाकर झाँकने लगे हैं। कवि प्राकृतिक उपादानों का मानवीकरण करते हुए कह रहा है कि मेघों के आने पर आँधी चलने लगी है। धूल शरमाकर अपना घाघरा उठाकर भाग खड़ी हुई है, नदी अपने प्रवाह को रोककर ठिठक कर खड़ी हो गई है। नदी ने अपने मुख पर घूँघट सरका लिया है और वह तिरछी नार से सजे-सँवरे मेघों को देख रही है। यहाँ कवि ने वर्णन किया है कि जब गाँव में कोई शहरी मेहमान आता है तो गाँव के वातावरण में जो परिवर्तन होते हैं, ठीक वैसे ही परिवर्तन प्रकृति में दिखाई दे रहे हैं।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) पेड़ों में क्या परिवर्तन हुआ है ?
(ख) पेड़ झुककर क्या देखने लगे ?
(ग) नदी को कवि ने कैसे चित्रित किया है ?
(घ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) पेड़ गरदन उचकाए अर्थात् शाखाएँ दाएँ-बाएँ हिलाकर मेघों को देखने लगे हैं।
(ख) तो हवा के चलने से पेड़ झुक रहे हैं जो कवि को ऐसा लगता है मानो पेड़ बादलों का रूप-सौंदर्य देखने के लिए झुक रहे हैं। वे बादलों का स्वागत और अभिनंदन कर रहे हैं।
(ग) नदी को कवि ने एक ऐसी नायिका के रूप में चित्रित किया है जो मेहमान को देखने आई है और घूँघट खिसकाकर, नारी सुलभ लज्जा तथा जिज्ञासा के कारण तिरछी दृष्टि से बादल रूपी मेहमान को देख रही है।
(घ) मेघों के आने पर प्राकृतिक वातावरण में होने वाले परिवर्तनों का कवि ने बड़ा सजीव चित्रण किया है। अनुप्रास तथा मानवीकरण अलंकार की अनुपम छटा बिखेरी है। कवि ने मेघों को पाहुन का रूप देकर तथा प्राकृतिक उपादानों से मानवीय क्रियाएँ करवाकर चित्रात्मकता की सृष्टि की है। शब्द योजना बड़ी सजीव तथा मनमोहक है। भाषा सरलता तथा सरसता से परिपूर्ण है।
3. बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
“बरस बाद सुधि लीन्हीं’
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
शब्दार्थ : जुहार – आदर के साथ झुककर किया गया नमस्कार। बरस वर्ष। सुधि – याद। लीन्हीं ली। अकुलाई व्याकुल। ओट – आड़। किवार – किवाड़, दरवाजा। हरसाया – हर्ष से भरा। ताल तालाब। मेघ – बादल।
प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ द्वारा रचित कविता ‘मेघ आए’ से अवतरित है। इसमें कवि ने मेघों के आने पर धरती पर उभरे प्राकृतिक सौंदर्य का बड़ा मनमोहक वर्णन किया है। कवि ने मेघों को पाहुन मानकर धरती के प्राकृतिक उपादानों को उनका स्वागत करते हुए चित्रित किया है।
व्याख्या : कवि का कथन है कि जिस प्रकार मेहमान के घर आने पर गाँव में बड़े जोर-शोर से उसका स्वागत किया जाता है उसी प्रकार मेघों के आने पर धरती पर भी उनका भव्य स्वागत हो रहा है। बूढ़े पीपल के वृक्ष ने आगे बढ़कर मेघ को झुककर नमस्कार किया। विरह के कारण व्याकुल लता ने किवाड़ की आड़ में छिपकर मेघ रूपी पाहुन को उलाहना दिया कि एक बरस के बाद तुम्हें हमारी याद आई अर्थात् एक वर्ष की प्रतीक्षा के बाद तुम आए हो।
हर्ष से भरा हुआ तालाब भी मेघ के स्वागत के लिए पानी से परात भरकर ले आया है। धरती पर मेघों का स्वागत उसी प्रकार हुआ जिस प्रकार गाँव में पाहुन का स्वागत होता है। गाँव के लोग उसे नमस्कार करते हैं। नायिका उसे देर से आने का उपालंभ देती है। परिवार का कोई सदस्य उसके चरण धोने के लिए परात में पानी लाता है। ठीक उसी प्रकार की क्रियाएँ मेघों के आने पर हुई हैं।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) बूढ़े पीपल ने ही सबसे पहले जुहार क्यों की ?
(ख) बूढ़े पीपल ने बादलों का स्वागत कैसे किया ?
(ग) लता ने बादलों को क्या कहा ?
(घ) बादलों के आने पर ताल की क्या स्थिति है ?
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) गाँव में प्रवेश करने से पहले मेघों को सबसे पहले पीपल का पेड़ ही मिला था। युगों से गाँव में सबसे पहले बुजुर्गों द्वारा पाहुन के स्वागत की परंपरा रही है।
(ख) बूढ़ा पीपल बादलों को झुककर नमस्कार करता है।
(ग) बादलों के विरह में व्याकुल लता के किवाड़ की आड़ में छिपकर उन्हें उलाहना देते हुए कहा कि एक वर्ष के बाद तुम्हें हमारी याद आई है।
(घ) बादलों के आने की प्रसन्नता में तालाब उनका स्वागत करते हुए पानी से परात को भरकर ले आता है।
(ङ) कवि ने मेघों के आने पर प्राकृतिक वातावरण में उत्पन्न परिवर्तनों का बड़ा सजीव अंकन किया है। अनुप्रास तथा मानवीकरण अलंकार का सुंदर वर्णन है। चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है। लता द्वारा किवाड़ की आड़ से मेघ से बात करने में उपालंभ का भाव प्रकट हुआ है। शब्द-योजना सटीक एवं सजीव है। भाषा सरल, सरस तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है। प्रतीकात्मकता का सुंदर प्रयोग है।
4. क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी,
‘क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की’
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
शब्दार्थ : क्षितिज – जहाँ धरती और आकाश मिलते हुए प्रतीत होते हैं। वह स्थान। गहराई – बादल छा गए। दामिनी – बिजली। दमकी भरम – भ्रम, भुलावा। अश्रु आँसू। ढरके गिरे।
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ द्वारा रचित कविता ‘मेघ आए’ में से अवतरित है। इसमें कवि ने मेघों के आने पर धरती पर उत्पन्न प्राकृतिक सौंदर्य का बड़ा मनोरम चित्रण किया है।
व्याख्या : कवि कहता है कि अब मेघ क्षितिज रूपी अटारी पर पहुँच गए हैं। मेघों के आ जाने पर बिजली चमक उठी है अर्थात मेहमान को देखकर नायिका का तन-मन आभा से भर उठा है। धरती रूपी नायिका मानो मेघों से कह रही है कि क्षमा कर दो। अभी तक हम समझ रहे थे कि मेघ नहीं बरसेंगे, पर अब यह भ्रम टूट गया है। मेघों और धरती के बीच की रुकावट समाप्त हो गई। मेघ झर-झर कर बरसने लगे। धरती और मेघों का मिलन हो गया है। इसी प्रकार अतिथि और नायिका का भी मिलन हो गया है। उनकी आँखों में खुशी के आँसू आ गए। आज मेघ भी अतिथि की भाँति बन-सँवर कर आकाश में छा गए हैं।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न :
(क) बादल कहाँ तक फैल गए हैं ?
(ख) बादलों के आने पर क्षितिज के सौंदर्य का वर्णन कीजिए।
(ग) क्या भ्रम था जो अब दूर हो गया है ?
(घ) ‘मिलन के अश्रु ढलके’ से क्या तात्पर्य है ?
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) बादल क्षितिज रूपी अटारी तक फैल गए थे।
(ख) बादल क्षितिज तक फैल गए हैं और बिजली चमक रही है जो ऐसा लगता है मानो बादल रूपी मेहमान के क्षितिज रूपी अटारी पर आने से नायिका रूपी बिजली का तन-मन आभा से युक्त हो गया है।
(ग) धरती को यह भ्रम था कि बादल नहीं बरसेंगे, किंतु अब उनके बरसने से धरती का यह भ्रम दूर हो गया है।
(घ) मेघों और धरती के बीच की बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं तो मेघ झर-झर कर बरसने लग जाते हैं। धरती और मेघों के मिलन के यह प्रेमाश्रु हैं।
(ङ) कवि ने मेघों और धरती के मिलन का बड़ा सुंदर वर्णन किया है। अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, रूपक तथा मानवीकरण का सहज और सुंदर प्रयोग सराहनीय है। लाक्षणिकता का प्रयोग किया गया है। तद्भव शब्दावली की अधिकता है। चित्रात्मकता ने सुंदर अभिव्यक्ति में सहायता दी है
मेघ आए Summary in Hindi
कवि-परिचय :
आधुनिक हिंदी कविता में श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की अपनी अलग ही पहचान है। इन्होंने कवि होने के साथ-साथ पत्रकारिता को अपना कर्मक्षेत्र बनाया था। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में सन् 1927 में हुआ था। इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। इन्होंने जीवनयापन के लिए अनेक कष्ट उठाए थे। ये कुछ समय के लिए आकाशवाणी से भी संबद्ध रहे थे। संपादक के रूप में उनकी प्रतिभा ‘दिनमान’ और बाल – पत्रिका ‘पराग’ में उभरी थी। सन् 1983 ई० में इनका निधन हो गया था।
सक्सेना जी ने कविता के साथ-साथ गद्य के क्षेत्र में भी गति दिखाई है। उनकी प्रसिद्ध काव्य- कृतियाँ काठ की घंटियाँ, एक सूनी नाव, बाँस का पुल, गर्म हवाएँ, जंगल का दर्द, कुआनो नदी, खूँटियों पर टंगे लोग हैं। इन्हें ‘दिनमान’ में ‘चरचे और चरखे’ के लिए प्रसिद्धि मिली थी। इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
सक्सेना जी की कविता में जीवनाभूति के विविध रंग दृष्टिगोचर होते हैं। उन्होंने ग्रामीण संवेदना के साथ शहरी मध्यवर्गीय जीवन में व्याप्त सुख-दुःख का बड़ा सफल उद्घाटन किया है। मानव मन की गुत्थियों के उलझाव को व्यक्त करने में भी इनकी कविता सफल रही है। आशा और विजय का संदेश इनकी कविताओं की अन्य उल्लेखनीय विशेषताएँ हैं। उनके काव्य की विविधता यह प्रमाणित करती है कि उनमें लोकोन्मुखता है।
इसलिए वे लोकजीवन को अपने लोकगीतों में प्रस्तुत करते रहे। गाँव में व्याप्त दरिद्रता का भी उन्होंने यथार्थ और मार्मिक चित्र अंकित किया है। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि उन्होंने बच्चों से लेकर प्रबुद्ध जनों तक के लिए साहित्य की रचना की। उन्होंने काव्य में सत्य की गहरी चोट है। उनकी कविताएँ भीतर तक कुरेदती हैं। उनकी कविता में अंधेरा और अकेलापन भी रोशनी की तरफ चलने का संकेत देता है –
अंधेरे को सूँघकर मैंने देखा है उसमें सूरज की गंध आती है।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता में क्रांति का स्वर भी है। वे शोषित-दलित वर्ग के लिए ‘धूल’ के माध्यम से चेतावनी देते हैं जिससे उसे अपनी शक्ति का एहसास हो। कवि ने लीक पर चलने वाले अर्थात् परंपरावादियों का विरोध किया है। कवि ने अपना रास्ता अपनी ही कुदाली से बनाने की प्रेरणा दी है। बनी बनाई लकीर पर चलना कमजोरी का प्रतीक है। संघर्ष द्वारा बनाया गया रास्ता ही जीवनोपयोगी होता है। नए पथ पर नए जीवन मूल्यों का निर्माण करने के लिए प्रकृति की स्वच्छंदता, अल्हड़ता, जीवनधर्म तथा रचनात्मक शक्ति का सहारा लेना चाहिए। वे कहते हैं –
लीक पर वे चलें जिनके चरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने ऐसे अनिर्मित पंथ प्यारे हैं।
इनकी भाषा सहज, सरल, व्यावहारिक, भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी है। इन्होंने अलंकृत अथवा असाधारण भाषा का प्रयोग नहीं किया है। वे अपनी बात सीधी-सादी भाषा में कह देते हैं। इन्होंने मुख्य रूप से मुक्तक रचनाएँ लिखी हैं। नए अप्रस्तुतों और बिंबों की रचना उनके काव्य की विशेषता है। चित्रात्मकता इनके काव्य की अन्य विशेषता है,। विषय-वस्तु की दृष्टि से इनके काव्य में जीवन के विभिन्न पक्षों को उजागर किया गया है। प्रेम-प्रसंगों के साथ ही कवि ने समसामयिक जीवन की विसंगतियों का भी यथार्थ अंकन किया है। इस कारण ये शिल्प-विधान की अपेक्षा विषय-वस्तु को अधिक महत्व देते हैं।
कविता का सार :
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता ‘मेघ आए’ प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त कविता है। इसमें कवि ने मेघों की तुलना गाँव में सज-संवरकर आने वाले दामाद के साथ की है। जिस प्रकार दामाद के आने पर गाँव में प्रसन्नता का वातावरण उत्पन्न हो जाता है उसी प्रकार मेघों के आने पर धरती के प्राकृतिक उपादान उमंग में झूम उठते हैं। कवि ने प्रकृति का मानवीकरण करते हुए उमंग, उत्साह तथा उपालंभ आदि भावों को बड़े सजीव ढंग से चित्रमयता के साथ वर्णित किया है। मेघ रूपी बादलों के आगे-आगे हवा नाचते-गाते हुए बढ़ती है।
गली-मुहल्ले की खिड़कियाँ एक-एक कर खुलने लगती हैं ताकि बने-ठने मेघों को देख सकें। पेड़ झुक-झुक कर गरदन उचकाकर उसे देखने लगे तो धूल शर्माते हुए घाघरा उठा कर आँधी के साथ भाग चली। बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर उसका स्वागत किया। गाँव का तालाब पानी-भरी परात लेकर प्रसन्नता से भर उठा। जब मेघ बरसने लगे तो धरती और बादलों का आपसी मिलन हो गया।