Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना
JAC Class 9 Hindi एक कुत्ता और एक मैना Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
गुरुदेव ने शांतिनिकेतन को छोड़ कहीं और रहने का मन क्यों बनाया?
उत्तर :
गुरुदेव का स्वास्थ्य ठीक नहीं था तथा शांतिनिकेतन में छुट्टियाँ भी चल रही थीं। इसलिए गुरुदेव ने शांतिनिकेतन छोड़कर कुछ दिन श्रीनिकेतन में रहने का मन बनाया। यह स्थान शांतिनिकेतन से दो मील दूर था। वे यहाँ कुछ समय एकांत में व्यतीत करना चाहते थे।
प्रश्न 2.
मूक प्राणी मनुष्य से कम संवेदनशील नहीं होते। पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जब गुरुदेव शांतिनिकेतन से श्रीनिकेतन रहने के लिए चले गए तो उनका कुत्ता दो मील की यात्रा करके तथा बिना किसी के राह दिखाए उनसे मिलने चला आया था। जब गुरुदेव ने उस पर अपना हाथ फेरा हो वह आँखें बंद करके आनंद के सागर में डूब गया था। जब गुरुदेव का चिताभस्म आश्रम में लाया गया तो यही कुत्ता आश्रम के द्वार से ‘उत्तरायण’ तक चिताभस्म के कलश के साथ गया और कुछ देर तक चुपचाप कलश के पास बैठा रहा। इसी प्रकार से एक लंगड़ी मैना बिना किसी भय के गुरुदेव के पास फुदकती रहती थी। इससे स्पष्ट है कि मूक प्राणी भी मनुष्य से कम संवेदनशील नहीं होते।
प्रश्न 3.
गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी कविता के मर्म को लेखक कब समझ पाया ?
उत्तर :
जब लेखक ने गुरुदेव की इस बात पर विचार किया कि मैना में भी करुण भाव हो सकता है तो उसे लगा कि सचमुच ही उसके मुख पर एक करुण भाव था। उसने सोचा, वह शायद मैना का विधुर पति था जो स्वयंवर-सभा के युद्ध में घायल होकर पराजित हो गया था अथवा मैना पति की विधवा पत्नी थी जो बिडाल के आक्रमण में पति को खोकर स्वयं थोड़ी-सी चोट खाकर लंगड़ी होकर एकांत में रह रही थी। उसकी यही दशा गुरुदेव को कविता लिखने के लिए प्रेरित कर गई होगी। यह सब सोचकर ही लेखक गुरुदेव द्वारा मैना पर रचित कविता का मर्म समझ सका।
प्रश्न 4.
प्रस्तुत पाठ एक निबंध है। निबंध गद्य – साहित्य की उत्कृष्ट किया है, जिसमें लेखक अपने भावों और विचारों को कलात्मक और लालित्यपूर्ण शैली में अभिव्यक्त करता है। इस निबंध में उपर्युक्त विशेषताएँ, कहाँ झलकती हैं ? किन्हीं चार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1. लेखक कब सपरिवार गुरुदेव से मिलने श्रीनिकेतन जाता है तो उस समय के वर्णन में कलात्मक और लालित्यपूर्ण शैली के दर्शन होते हैं, जैसे-“गुरुदेव बाहर एक कुर्सी पर चुपचाप बैठे अस्तगामी सूर्य की ओर ध्यान विस्मित नयनों से देख रहे थे। हम लोगों को देखकर मुस्कराए, बच्चों से जरा छेड़-छाड़ की, कुशल – प्रश्न पूछे और फिर चुप हो गए। ठीक उसी समय उनका कुत्ता धीरे-धीरे ऊपर आया और उनके पैरों के पास खड़ा होकर पूँछ हिलाने लगा। गुरुदेव ने उसकी पीठ पर हाथ फेरा। वह आँखें मूँदकर अपने रोम-रोम से उस स्नेह – रस का अनुभव करने लगा। ”
2. लेखक हिंदी मुहावरों का बाँग्ला में अनुवाद कर जब गुरुदेव से बात किया करता था तो वे मन ही मन मुसकराते थे और जब लेखक कभी किसी अतिथि को साथ ले जाते थे, तो वे हँसकर पूछा करते थे ‘दर्शनार्थी लेकर आए हो क्या ?”
3. गुरुदेव सुबह अपने बगीचे में टहलने के लिए निकला करते थे। लेखक एक दिन उनके साथ था। उनके साथ एक और पुराने अध्यापक थे। गुरुदेव एक – एक फूल – पत्ते को ध्यान से देखते हुए अपने बगीचे में टहल रहे थे और अध्यापक महाशय से बातें करते जा रहे थे। लेखक चुपचाप सुनता जा रहा था। गुरुदेव ने बातचीत के सिलसिले में एक बार कहा, “अच्छा साहब, आश्रम के कौए क्या हो गए ? उनकी आवाज़ सुनाई ही नहीं देती ?” न तो अध्यापक महाशय को यह खबर थी और न लेखक को ही। बाद में लेखक लक्ष्य किया कि सचमुच कई दिनों से आश्रम में कौए नहीं दीख रहे हैं। लेखक ने तब तक कौओं को सर्वव्यापक पक्षी ही समझ रखा था। अचानक उस दिन मालूम हुआ कि ये भले आदमी भी कभी-कभी प्रयास को चले जाते थे या चले जाने को बाध्य होते थे।
4. लेखक के घर की दीवार में बने छेद में रहने वाले मैना का जोड़ा जब घर के लोगों को देखता तो चहक – चहक कर कुछ कहता। लेखक को पक्षियों की भाषा तो समझ में नहीं आती थी पर निश्चित विश्वास था कि उनमें कुछ इस तरह की बातें हो जाया करती होंगी –
पत्नी – ये लोग यहाँ कैसे आ गए जी ?
पति – उँह बेचारे आ गए हैं, तो रह जाने दो। क्या कर लेंगे !
पत्नी – लेकिन फिर भी इनको इतना तो ख्याल होना चाहिए कि यह हमारा प्राइवेट घर है।
पति – आदमी जो हैं, इतनी अकल कहाँ ?
पत्नी – जाने भी दो
पति – और क्या !
प्रश्न 5.
आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस प्रकार कवि की मर्मभेदी दृष्टि ने इस भाषाहीन प्राणी की करुण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है, जो मनुष्य, मनुष्य के अंदर भी नहीं देख पाता। पशु-पक्षियों में अपने हित अनहित को पहचानने की एक अनुपम शक्ति होती है। अपने शुभेच्छु को देखकर उनका रोम-रोम स्नेह – रस का अनुभव करते लगता है तथा चेहरे से परितृप्ति झलकने लगती है। उस मूक प्राणी में कवि ने आत्मनिवेदन, दैन्य, करुणा और सहज बोध का जो भाव अपनी रहस्य- भेदिनी दृष्टि से देखा, वह मनुष्यों के भीतर भी दृष्टिगोचर नहीं होता।
मनुष्य ज्ञान संपन्न एवं अनुभूति प्रवण जीव है। किंतु विनय, दया, उदारता की जननी करुणा का दर्शन उसके भीतर भी नहीं होता, जिसका साक्षात्कार गुरुदेव ने उस मूक कुत्ते के भीतर किया तो उनके कर-स्पर्श से पुलकित हो परम तृप्ति का अनुभव करता था। इस प्रकार वह मूक प्राणी कुत्ता मानवों से भी कहीं अधिक संवेदनशील चित्रित किया गया है।
रचना और अभिव्यक्ति –
प्रश्न 6.
पशु-पक्षियों से प्रेम इस पाठ की मूल संवेदना है। अपने अनुभव के आधार पर ऐसे किसी प्रसंग से जुड़ी रोचक घटना को कलात्मक शैली में लिखिए।
उत्तर :
एक बार मैं स्कूल से घर आ रहा था। रास्ते में मुझे एक पिल्ला मिला। मुझे देखते ही वह मेरे पैरों से लिपट गया। वह बहुत प्यारा था। मैंने उसे प्यार से सहलाया और खाने के लिए बिस्कुट दिए। वह मेरे पीछे-पीछे मेरे घर आ गया। मेरी माँ ने देखा, तो उसे भी बड़ा प्यारा लगा। मैंने उसे पालने का निश्चय किया। मुझे तो ऐसा लगा जैसे मुझे कोई अनुपम साथी मिल गया हो। मैंने उसका नाम शेरू रखा।
वह सफ़ेद रंग का झबरेला सा बहुत प्यारा सा पिल्ला था। वह आज मेरे परिवार का सदस्य बन गया है। वह घर की रखवाली भी करता है और मेरे साथ खेलता भी है। जब भी मैं उसे आवाज लगाता हूँ, वह दौड़कर मेरे पास आता है। वह मेरे स्कूल से आने का इंतजार करता है। जैसे ही मुझे देखता है, अपनी पूँछ हिलाकर ‘कूँ कूँ’ की आवाज़ निकालकर मेरे पैरों पर लोटने लगता है।
भाषा अध्ययन –
प्रश्न 7.
गुरुदेव जरा मुस्कुरा दिए।
मैं जब यह कविता पढ़ता हूँ।
ऊपर दिए गए वाक्यों में एक वाक्य में अकर्मक क्रिया है और दूसरे में सकर्मक है। इस पाठ को ध्यान से पढ़कर सकर्मक और अकर्मक क्रिया वाले चार-चार वाक्य छाँटिए।
उत्तर :
(क) अकर्मक क्रिया के वाक्य :
1. मैं चुपचाप सुनता जा रहा था।
2. देखते हो, यह यूथभ्रष्ट है।
3. रोज फुदकती है।
4. क्या कर लेंगे।
(ख) सकर्मक क्रिया के वाक्य :
1. शायद मौज में आकर ही उन्होंने यह निर्णय किया हो।
2. मैं मय बाल-बच्चों के एक दिन श्रीनिकेतन जा पहुँचा।
3. मैं जब यह कविता पढ़ता हूँ।
4. कुछ और पहले की घटना याद आ रही है।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित वाक्यों में कर्म के आधार पर क्रिया-भेद बताइए –
(क) मीना कहानी सुनाती है।
(ख) अभिनव सो रहा है।
(ग) गाय घास खाती है।
(घ) मोहन ने भाई को गेंद दी।
(ङ) लड़कियाँ रोने लगीं।
उत्तर :
(क) सकर्मक क्रिया
(ख) अकर्मक क्रिया
(ग) सकर्मक क्रिया
(घ) सकर्मक क्रिया
(ङ) अकर्मक क्रिया।
प्रश्न 9.
नीचे पाठ में से शब्द-युग्मों के कुछ उदाहरण दिए गए हैं। जैसे-
उत्तर :
समय-असमय, अवस्था – अनावस्था
इन शब्दों में ‘अ’ उपसर्ग लगाकर नया शब्द बनाया गया है।
पाठ में से कुछ शब्द चुनिए और उनमें ‘अ’ एवं ‘अन्’ उपसर्ग लगाकर नए शब्द बनाइए।
उत्तर :
- निर्णय – अनिर्णय
- कारण – अकारण
- प्रचलित – अप्रचलित
- सहज – असहज
- देखा – अनदेखा
- अंग – अनंग
- कहा – अनकहा
- अधिक – अनधिक।
JAC Class 9 Hindi एक कुत्ता और एक मैना Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
गुरुदेव मैना के मनोभावों को कैसे जान सके ?
उत्तर
गुरुदेव की संवेदनशील दृष्टि एक-एक वस्तु और पशु-पक्षी सब पर रहती है। यहाँ तक कि आश्रम में कौवे न रहने पर भी उन्हें यह पता चल जाता था कि वे प्रवास पर गए हैं। इसी प्रकार जब लेखक गुरुदेव के पास उपस्थित था तो उनके सामने एक लंगड़ी मैना फुदक रही थी। गुरुदेव की प्रत्येक वस्तु का इतना ध्यान रहता था कि अपने समूह से बिछुड़ी हुई मैना के फुदकने में उसके अंदर में छिपे करुण-भाव का ज्ञान हो गया और उन्होंने उसकी चर्चा की।
इसके पूर्व द्विवेदी जी यही जानते थे कि मैना में करुणा का भाव नहीं होता है। वह दूसरों पर कृपा ही किया करती है किंतु गुरुदेव की बात से उन्हें ज्ञात हुआ कि मैना में भी करुणा होती है। द्विवेदी जी और गुरुदेव दोनों के विचार मैना के विषय में भिन्न थे क्योंकि कवि होने के नाते उसमें संवेदनशील अधिक थी, अतएव वह मैना के मनोभाव को अधिक निकट से जान सके थे।
प्रश्न 2.
‘एक कुत्ता और एक मैना’ पाठ का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
यह निबंध भावात्मक निबंध है। इस निबंध में एक कुत्ता और एक मैना के सहज-सरल जीवन की तरलता एवं करुण भावना पर प्रकाश डाला गया है। इस निबंध में एक कुत्ते की सहज गहरी स्वामिभक्ति तथा एक मैना की करुणाजनक कहानी की ओर संकेत किया है। कवींद्र रवींद्र ने कुत्ते की अनुपम ममता तथा मूक, किंतु गहरे स्नेह की चर्चा करते हुए कुत्ते के सहज स्नेह की अमिट रेखा खींचने का प्रयास किया गया है। उसी प्रकार से लेखक ने कवींद्र के विस्तृत जीवन-दर्शन पर प्रकाश डालते हुए, एक मैना के करुण -कलित जीवन की चिंता कर, उसके संबंध में कवींद्र को लिखी एक कविता के भाव-सौंदर्य को दिखाया है। लेखक ने इस संबंध में अपनी सबल शैली में एक कुत्ता और एक मैना के सरल और करुणामयी जीवन का सजीव चित्र खींचा है।
प्रश्न 3.
कुत्ते से संबंधित कविता का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कुत्ते से संबंधित कविता में कवींद्र ने लिखा था कि प्रतिदिन यह कुत्ता उनके आसन के पास चुपचाप तब तक बैठा रहता है जब तक वे इसे अपने हाथों से स्पर्श नहीं करते। उनके हाथों का स्पर्श पाकर वह आनंदित हो उठता है। यह मूक प्राणी अपने हाव-भाव से अपना आत्मनिवेदन, दीनता, प्रेम, करुणा आदि सब कुछ व्यक्त कर देता है। वे इस मूक प्राणी की करुणा दृष्टि में उस विशाल मानव-सत्य को देखते हैं, जो मनुष्य में नहीं है।
प्रश्न 4.
लेखक ने सपरिवार कहाँ जाने का निश्चय किया और क्यों ?
उत्तर :
लेखक ने कुछ दिनों के लिए सपरिवार रवींद्रनाथ टैगोर के पास जाने का निश्चय किया। रवींद्रनाथ टैगोर कुछ दिनों के लिए शांति निकेतन छोड़कर श्रीनिकेतन रहने चले गए थे। शांति निकेतन में छुट्टियाँ चल रही थीं, इसलिए सभी लोग वहाँ से बाहर चले गए थे। उस समय टैगोर कुछ अस्वस्थ थे, इसलिए लेखक ने सपरिवार रवींद्रनाथ टैगोर के दर्शन के लिए जाने का निश्चय किया।
प्रश्न 5.
गुरुदेव जी ने लेखक का ‘दर्शन’ शब्द क्यों पकड़ लिया था ?
उत्तर :
आरंभ में लेखक बाँग्ला भाषा में बात करते समय हिंदी मुहावरों के अनुवाद का प्रयोग करता था। जब कोई अतिथि उनसे मिलने आता था तो कहा करता था, ‘एक भद्र लोक आपनार दर्शनेर जन्य ऐसे छेन’। यह बात बाँग्ला की अपेक्षा हिंदी में अधिक प्रचलित थी। लेखक की बात सुनकर गुरुदेव मुस्करा देते थे क्योंकि लेखक की यह भाषा अधिक पुस्तकीय थी। इसी से गुरुदेव ने ‘दर्शन’ शब्द पकड़ लिया।
प्रश्न 6.
किस प्रसंग से पता चलता है कि गुरुदेव की पैनी दृष्टि अणु-अणु में पहुँचने वाली थी ?
उत्तर :
जब लेखक शांति निकेतन में नया आया था, उस समय वह गुरुदेव से ज्यादा खुला हुआ नहीं था। एक दिन गुरुदेव बगीचे में टहल रहे थे, लेखक उनके साथ थे, वे एक-एक फूल-पत्ते को ध्यान में देख रहे थे। अचानक गुरुदेव ने कहा कि आश्रम से कौए कहाँ गए, उनकी आवाज सुनाई नहीं पड़ती ? उससे पहले किसी का भी ध्यान इस ओर नहीं आया था, परंतु गुरुदेव के निरीक्षण – निपुण नयन उनको भी देख सके थे। इस तरह उनकी पैनी दृष्टि अणु-अणु में पहुँचने वाली थी।
प्रश्न 7.
गुरुदेव ने किसे यूथभ्रष्ट कहा और क्यों ?
उत्तर :
गुरुदेव ने मैना को यूथभ्रष्ट कहा है। यूथभ्रष्ट से अभिप्राय है, जो अपने सजातीय जीवों के समूह से निकाली अथवा निकल गई हो। ऐसा उन्होंने इसलिए कहा है क्योंकि मैना लँगड़ी थी। वह एक टाँग पर फुदकती थी। उसके आस-पास अन्य मैनाएँ उछल-कूद करती थीं, दाना चुगती थी परंतु लँगड़ी मैना को उनसे कोई मतलब नहीं था। वह अकेली दाना चुगती और इधर-उधर घूमती रहती थी।
प्रश्न 8.
लेखक के अनुसार मैना कैसा पक्षी है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार मैना अनुकंपा ही दिखाया करती है, उसे करुणा से कोई मतलब नहीं हैं। उन्होंने यह समझा था कि मैना नाच-गान और आनंद – नृत्य में समय बिताने वाला सुख – लोलुप पक्षी है परंतु गुरुदेव से बात करने के बाद लेखक को भी मैना करुणा भाव दिखाने वाला पक्षी लगा। उन्होंने देखा और समझा कि विषाद की वीथियाँ उस मैना को आँखों में तरंगें मारती हैं।
प्रश्न 9.
मैना से संबंधित कविता का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
मैना से संबंधित कविता में गुरुदेव ने लिखा था कि मैना अपने दल से अलग होकर पता नहीं किस अपराध की सजा भोग रही है, जबकि कुछ ही दूरी पर अन्य मैनाएँ घास पर उछल-कूद करती हुई आनंद मना रही हैं। लँगड़ी मैना चुपचाप अपना आहार चुगती है। वह अपने अकेलेपन का दोष किसी को नहीं देती है। उसकी चाल में कोई अभिमान नहीं है और न ही उसकी आँखों में कोई आग दिखाई देती है। वह अपने अकेलेपन में मस्त होकर जीवन व्यतीत कर रही है।
प्रश्न 10.
लेखक कवींद्र की सोच-शक्ति पर हैरान क्यों ?
उत्तर :
लेखक कवींद्र की पक्षियों के प्रति संवेदन-शक्ति को देखकर हैरान है। उन्होंने मैना की व्यथा को व्यक्त करने के लिए कविता की रचना की थी। लेखक मैना की व्यथा को समझ नहीं सका था, जबकि कवींद्र कवि ने मैना के दर्द, अकेलेपन को समझ लिया है। मैना की मूक वाणी को आवाज़ देने के लिए एक कविता की रचना कर दी।
प्रश्न 11.
मैना के जाने के बाद वातावरण कैसा हो गया था ?
उत्तर :
एक दिन मैना वहाँ से उड़ गई। सायंकाल के समय गुरुदेव ने उसे देखा नहीं था। जब वह अकेले कोने में जाया करती थी, उस समय अंधकार में झींगुर झनकारता था, हवा में बाँस के पत्ते आपस में झरझराते थे। पेड़ों को आवाज़ देता हुआ मध्य संध्या तारा भी दिखाई देता परंतु अब वहाँ मैना नहीं दिखाई देती। उसके जाने के बाद वातावरण वही था, परंतु अब वहाँ उदासी अधिक व्याप्त थी।
महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
1. उन दिनों छुट्टियाँ थीं। आश्रम के अधिकांश लोग बाहर चले गए थे। एक दिन हमने सपरिवार उनके ‘दर्शन’ की ठानी। ‘दर्शन’ को मैं जो यहाँ विशेष रूप से दर्शनीय बनाकर लिख रहा हूँ, उसका कारण यह है कि गुरुदेव के पास जब कभी मैं जाता था तो प्रायः वे यह कहकर मुस्करा देते थे कि ‘ दर्शनार्थी हैं क्या ?’
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. लेखक ने सपरिवार किसके दर्शन की ठानी ?
2. लेखक ‘दर्शन’ को क्यों विशेष बना रहे हैं ?
3. लेखक किस आश्रम में गए ?
4. ‘उन दिनों’ से लेखक का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
1. लेखक ने सपरिवार रवींद्रनाथ ठाकुर के दर्शन का निश्चय किया।
2. लेखक ‘दर्शन’ को इसलिए विशेष बना रहे हैं क्योंकि उनके जाने पर गुरुदेव ‘ दर्शनार्थी हैं क्या’ कहकर मुसकरा देते थे।
3. लेखक गुरुदेव के आश्रम में गए।
4. ‘उन दिनों’ से लेखक का तात्पर्य उन दिनों से है जब लेखक आश्रम में गुरुदेव रवींद्रनाथ से मिलने गए।
2. मैं जब यह कविता पढ़ता हूँ तब मेरे सामने श्रीनिकेतन के तितल्ले पर की वह घटना प्रत्यक्ष-सी हो जाती है। वह आँख मूँदकर अपरिसीम आनंद, वह ‘मूक हृदय का प्राणपत्र आत्मनिवेदन’ मूर्तिमान हो जाता है। उस दिन मेरे लिए वह एक छोटी-सी घटना थी, आज वह विश्व की अनेक महिमाशाली घटनाओं की श्रेणी में बैठ गई है। एक आश्चर्य की बात और इस प्रसंग में उल्लेख की जा सकती है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. यह गद्यांश किस पाठ का है ?
2. लेखक के सामने किसका आत्मनिवेदन मूर्तिमान हो जाता है ?
3. कविता पढ़ते हुए लेखक के सामने कौन-सी घटना प्रत्यक्ष हो जाती है ?
4. ‘आज वह विश्व की अनेक घटनाओं की श्रेणी में है’ – यहाँ लेखक किस घटना की ओर संकेत करता है ?
उत्तर
1. यह गद्यांश ‘एक कुत्ता और मैना’ पाठ का है। यह आत्म – कथानक शैली में लिखा गया है
2. लेखक के सामने आँख मूँदकर अपरिमित आनंद, वह ‘मूक हृदय का प्राणपत्र आत्मनिवेदन’ मूर्तिमान हो जाता है।
3. कविता पढ़ते हुए लेखक के सामने श्रीनिकेतन के तितल्ले पर ही घटना प्रत्यक्ष – सी हो जाती है।
4. इस वाक्य में लेखक श्रीनिकेतन के तितल्ले पर की घटित घटना की ओर संकेत करता है।
3. एक दूसरी बार मैं सबेरे गुरुदेव के पास उपस्थित था। उस समय एक लंगड़ी मैना फुदक रही थी। गुरुदेव ने कहा, “देखते हो, यह यूथभ्रष्ट है। रोज़ फुदकती है, ठीक यहीं आकर। मुझे इसकी चाल में एक करुण भाव दिखाई देता है।” गुरुदेव ने अगर कह न दिया होता तो मुझे उसका करुण भाव एकदम नहीं दीखता। मेरा अनुमान था कि मैना करुण भाव दिखाने वाला पक्षी है ही नहीं। वह दूसरों पर अनुकंपा ही दिखाया करती है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. लंगड़ी मैना कब फुदक रही थी ?
2. ‘यूथभ्रष्ट’ किसे कहा गया है ?
3. लेखक को अचानक क्या दिखाई दिया ?
4. लेखक का ‘मैना’ पक्षी के प्रति क्या अनुमान था ?
उत्तर :
1. जब लेखक सबेरे गुरुदेव के पास उपस्थित थे। उस समय लंगड़ी मैना फुदक रही थी।
2. मैना को ‘यूथभ्रष्ट’ कहा गया है।
3. लेखक को मैना की चाल में करुण भाव दिखाई देता है।
4. लेखक का ‘मैना’ पक्षी के प्रति अनुमान यह था कि मैना करुण भाव दिखाने वाला पक्षी है ही नहीं। वह दूसरों पर अनुकंपा ही दिखाती है।
4. उस मैना को क्या हो गया है, यही सोचता हूँ। क्यों वह दल से अलग होकर अकेली रहती है ? पहले दिन देखा था सेमर के पेड़ के नीचे मेरे बगीचे में। जान पड़ा जैसे एक पैर से लंगड़ा रही हो। इसके बाद उसे रोज़ सबेरे देखता हूँ- संगीहीन होकर कीड़ों का शिकार करती फिरती है। चढ़ जाती है बरामदें में। नाच-नाच कर चहलकदमी किया करती है, मुझसे ज़रा भी नहीं डरती।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. लेखक ने यह कथन किस आधार पर लिखा है ?
2. मैना को क्या हो गया था ? वह दल से अलग क्यों रहती है ?
3. मैना क्या करती रहती है ?
4. मैना का लंगड़ी होना कैसे ज्ञात हुआ ?
5. मैना किस प्रकार चहलकदमी किया करती थी ?
उत्तर
1. लेखक ने यह कथन मैना को लक्ष्य करके लिखी गई गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की कविता के आधार पर लिखा है।
2. मैना लंगड़ी हो गई है। उसका सहयोगी बिड़ाल के आक्रमण में मारा गया था। इसी दुख से दुखी होने के कारण वह दल में न रहकर अकेली रहती है।
3. मैना कीड़ों का शिकार करती है। वह बरामदे में चढ़ जाती है और नाच-नाचकर चहलकदमी करती रहती है।
4. लेखक ने उसे सेमर के पेड़ के नीचे एक पैर से लंगड़ाते हुए देखकर समझ लिया था कि वह लंगड़ी है।
5. मैना नाच नाचकर चहल कदमी किया करती है।
5. जब मैं इस कविता को पढ़ता हूँ तो उस मैना की करुण मूर्ति अत्यंत साफ़ होकर सामने आ जाती है। कैसे मैंने उसे देखकर भी नहीं देखा और किस प्रकार कवि की आँखें उस बेचारी के मर्मस्थल तक पहुँच गईं, सोचता हूँ तो हैरान हो जाता हूँ। एक दिन वह मैना उड़ गई। सायंकाल कवि ने उसे नहीं देखा। जब वह अकेले जाया करती है उस डाल के कोने में, जब झींगुर अंधकार में झनकारता रहता है, जब हवा में बाँस के पत्ते झरझराते रहते हैं, पेड़ों की फाँक में पुकारा करता है नींद तोड़ने वाला संध्यातारा ! कितना करुण है उसका गायब हो जाना!
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. लेखक किस कविता की बात कर रहा है ? यह कविता किसने और क्यों लिखी थी ?
2. लेखक हैरान क्यों है ?
3. इस कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
4. मैना के जाने के बाद के वातावरण का वर्णन कीजिए।
5. लेखक को कविता में किस भाव की प्रमुखता दिखाई देती है ?
उत्तर :
1. कवि मैना पर लिखी हुई कविता की बात कर रहा है। यह कविता गुरुदेव रवींद्रनाथ ने लंगड़ी मैना को देखकर उसकी व्यथा को व्यक्त करने के लिए लिखी थी।
2. कवि इस बात से हैरान है कि मैना को देखकर उसके मन में कुछ नहीं हुआ था जबकि गुरुदेव रवींद्रनाथ ने उस मैना के मन के दर्द को समझ लिया और उस पर कविता लिख दी।
3. मैना अपने दल से अलग होकर न मालूम किस अपराध का दंड भोग रही हैं। अन्य मैनाएँ आनंद मना रही है परंतु यह लंगड़ी मैना चुपचाप अपना आहार चुगती रहती है। वह अपने इस अकेलेपन का किसी पर दोष नहीं लगाती है। अपने में मस्त रहती है।
4. मैना के चले जाने के बाद भी अंधकार में झींगुर झनकारता है और हवा में बाँस के पत्ते झरझराते रहते हैं। पेड़ों के बीच में से सांध्यतारा भी दिखाई देता है परंतु मैना नहीं दिखाई देती। उसके जाने के बाद सारा वातावरण उदास दिखाई देता है।
5. लेखक को कविता में करुण-भाव की प्रमुखता दिखाई देती है।
एक कुत्ता और एक मैना Summary in Hindi
लेखक परिचय :
जीवन परिचय – आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1907 में बलिया जिले के आरत दूबे का छपरा नामक गाँव में हुआ था। संस्कृत महाविद्यालय काशी से शास्त्री की परीक्षा पास करने के पश्चात् इन्होंने ज्योतिष विषय में सन् 1930 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय से ज्योतिषाचार्य की उपाधि प्राप्त की। सन् 1930 में शांति निकेतन में इन्हें हिंदी अध्यापक के रूप में नियुक्त किया गया। सन् 1950 में इन्हें काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग का अध्यक्ष बनाया गया। इस पद पर दस वर्ष तक रहने के पश्चात् सन् 1960 में इन्हें पंजाब विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग का अध्यक्ष बनाया गया। यहाँ से अवकाश प्राप्त करने के पश्चात् ये भारत सरकार की हिंदी विषयक अनेक योजनाओं से जुड़े रहे। लखनऊ विश्वविद्यालय ने इन्हें डी० लिट० और भारत सरकार ने पद्म भूषण की उपाधि से अलंकृत किया था। सन् 1979 में इनका देहावसान हो गया।
रचनाएँ – आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने विभिन्न विधाओं पर सफलतापूर्वक लेखनी चलाई है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
समीक्षात्मक ग्रंथ – ‘सूर साहित्य’, ‘हिंदी साहित्य की भूमिका’, ‘मध्यकालीन धर्म साधना’, ‘सूर और उनका काव्य’, ‘नाथ-संप्रदाय’, ‘कबीर’, ‘मेघदूत’, ‘एक पुरानी कहानी’, ‘हिंदी साहित्य का आदिकाल’ तथा ‘लालित्य मीमांसा’।
उपन्यास – ‘वाणभट्ट की आत्मकथा’ तथा ‘चारु चंद्रलेख’।
निबंध – संग्रह – ‘ अशोक के फूल’, ‘विचार प्रवाह’, ‘विचार और वितर्क’ तथा ‘कल्पलता’।
भाषा शैली – भाषा विधान की दृष्टि से इनका तत्सम शब्दों के प्रति विशेष लगाव है। संस्कृत भाषा के साथ-साथ, संस्कृत साहित्य की गहरी छाप इनकी रचनाओं में मिलती है। इनका आदर्श दुरूहता नहीं है और न ही पांडित्य प्रदर्शन को इन्होंने अपने साहित्य में कहीं भी स्थान दिया है। सुबोध, सरल, स्वच्छ और सार्थक शब्दावली का प्रयोग इनकी रचनाओं में सर्वत्र प्राप्त होता है। वे सरल वाक्यों में ही अपनी बात कहते हैं।
संस्कृत शब्दों के साथ उर्दू के बोलचाल के शब्दों का प्रयोग भी इन्होंने किया है। इनकी शैली विचारात्मक, भावनात्मक, आत्मकथात्मक तथा व्यंग्यात्मक होती है। ‘एक कुत्ता और मैना’ पाठ में भी लेखक ने क्षीणवपु, प्रगल्भ, परितृप्ति, स्तब्ध, ईषत्, मर्मस्थल, अस्तगामी जैसे तत्सम शब्दों के साथ-साथ मौज, मालूम, परवा, मुखातिब, लापरवाही, प्राइवेट, अकल, चहलकदमी जैसे विदेशी शब्दों का भी भरपूर प्रयोग किया है।
इससे इनकी भाषा में प्रवाहमयता बनी रहती है। इस पाठ में लेखक ने आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग किया है, जैसे- ‘जब मैं इस कविता को पढ़ता हूँ तो उस मैना की करुणा मूर्ति अत्यंत साफ होकर सामने आ जाती है। कैसे मैंने उसे देखकर भी नहीं देखा।’ लेखक की भाषा-शैली कुछ स्थलों पर काव्यमय भी हो गई है, जैसे- ‘जब झींगुर अंधकार में झनकारता रहता है, जब हवा में बाँस के पत्ते झरझराते रहते हैं, पेड़ों की फाँक से पुकारा करता है नींद तोड़ने वाला संध्यतारा ! ‘ इस प्रकार इस पाठ में लेखक ने भावानुकूल भाषा का प्रयोग करते हुए अत्यंत रोचक शैली में गुरुदेव रवींद्रनाथ से संबंधित अपनी स्मृतियों को प्रस्तुत किया है।
पाठ का सार :
एक कुत्ता और एक मैना’ पाठ में हजारीप्रसाद द्विवेदी ने गुरुदेव रवींद्रनाथ से संबंधित अपनी स्मृतियों को आत्मकथात्मक शैली में प्रस्तुत किया है।
लेखक सपरिवार गुरुदेव के दर्शनार्थ उनके आश्रम में पहुँचा करते थे। गुरुदेव के प्रति लेखक की बड़ी श्रद्धा थी। गुरुदेव कुछ दिनों के लिए शांति निकेतन छोड़कर श्री निकेतन में रहने लगे थे। एक दिन लेखक सपरिवार कवींद्र के दर्शन के लिए वहाँ पहुँच गए। गुरुदेव ने बच्चों के साथ छेड़-छाड़ की, कुशल प्रश्न पूछे, फिर मूक हो गए। उसी समय एक कुत्ता वहाँ आ गया। वह अपनी पूँछ हिलाने लगा। गुरुदेव ने उसकी पीठ पर हाथ फेर दिया।
वह मूक प्राणी उस स्नेह रस के अनुभव से आनंदित हो गया। किसी भी मनुष्य की सहायता के बिना वह कुत्ता दो मील की यात्रा करके वहाँ आ पहुँचा था। अपने स्नेहदाता के वियोग से विह्वल हो वहाँ आने की तकलीफ उसने उठाई थी। उस मूक कुत्ते के संबंध में कवींद्र रवींद्र ने ‘आरोग्य’ में एक कविता लिखी थी। उस वाक्यहीन प्राणी के नीरव लोचनों के अंदर ‘भावों का भवन’ समाया हुआ था।
कवि ने उस प्राणी की करुण दृष्टि के भीतर विशाल मानव-सत्य का सौंदर्य देखा और दिखाया। वह कुत्ता गुरुदेव की मृत्यु होने पर उनके चिता भस्म के साथ ‘उत्तरायण’ तक जाने को भी तैयार हो गया। उस मूक प्राणी का हृदय भी अनुपम स्नेह का अजस्र स्रोत था। उस मूक पशु की अक्षुण्ण ममता ने कवींद्र की मानस – वीणा को झंकृत कर दिया और वहाँ से मनोहर कविता का मोहक नाद सुनाई दिया।
दूसरी बार की बात है; बगीचे में गुरुदेव फल-फूल, पत्ते पत्तों को ध्यान से देखते हुए टहल रहे थे। एक अध्यापक महोदय भी उनके साथ थे। बीच में गुरुदेव ने पूछा कि आश्रम से कौए कहाँ गए, उनकी आवाज़ क्यों नहीं सुनाई पड़ती ? सर्वव्यापक पक्षी समझते हुए किसी ने भी कौओं की ओर ध्यान नहीं दिया था। अतः कोई भी कौओं के अभाव को समझ न सका था। परंतु गुरुदेव के निरीक्षण-निपुण नयन उनको भी देख सके थे। उनकी पैनी दृष्टि अणु-अणु में पहुँचने वाली थी।
एक दिन लेखक गुरुदेव के निकट बैठे थे। उस समय एक लंगड़ी मैना फुदक रही थी। उसे देखकर रवि बाबू ने कहा कि मुझे उसकी चाल में करुण भाव दिखाई देता है। परंतु लेखक मैना को करुण भाव दिखाने वाला पक्षी न समझ सके थे। उनके दृष्टिकोण में वह अनुकंपा ही दिखाया करती है, न कि करुणा। उन्होंने यह समझा था कि मैना नाच-गान और आनंद-नृत्य में समय बिताने वाला सूख-लोलुच पक्षी है। अब गुरुदेव की बात उनके मन में बैठ गई। उन्होंने देखा और समझा कि विवाद की वीथियाँ उस मैना की आँखों में तरंगें मारती हैं।
शायद इसी मैना को सामने देखकर ही कवींद्र के मन की मैना बोली थी जो एक कविता के रूप में बाहर आई थी। कविता पढ़ने पर लेखक के सामने मैना की मूर्ति साफ़ हो गई। लेखक को अचंभा हुआ, साथ-ही-साथ खेद भी कि मैना को देखने पर भी उन्होंने नहीं देखा, परंतु कवि की सूक्ष्म दृष्टि मैना के मर्मस्थल तक पहुँच गई। कवि की आँखें कहाँ नहीं पहुँचती ? एक दिन वह मैना उड़ गई, न जाने कहाँ ? उसका गायब होना भी अत्यंत करुणाजनक था।
कठिन शब्दों के अर्थ :
- अन्यत्र – दूसरी ओर
- क्षीणवपु – कमज़ोर शरीर
- असमय – बेवक्त
- भीत – डरा
- ध्यान स्तिमित – ध्यान में लोन
- अहैतुक – निःस्वार्थ, बिना किसी मतलब के
- मर्मभेदी – हुदय को भेदने वाली
- अपरिसीमा – असीमित
- सर्वव्यापक – सब जगह रहनेवाला
- यूथभ्रष्ट – झुंड या समूह से निकला या निकाला गया
- अंबार – ढेर
- मुखातिब – संबोधित होकर
- परास्त – पराजित, हार
- ईशत् – कुछ, थोड़ी
- अविचार – बुरा विचार
- मर्मस्थल – हृदय
- तै पाया – निश्चित किया
- दर्शनार्थी – दर्शन करनेवाला
- प्रगल्भ – चतुर, होशियार, उत्साही, निर्लज्ज, बहुत बोलनेवाले
- अस्तगामी – अस्त होते हुए, ड्रबते हुए
- परितृप्ति – पूरा संतोष
- प्राणपण – जान की बाज़ी
- तितल्ला – तीसरी मंज़िल
- कलश – घड़ा
- प्रवास – दूसरी जगह जाना, यात्रा
- अनुकंपा – दया
- मुखरित – ध्वनि से गूँजन
- आहत – घायल
- बिड़ाल – बिलाव
- निर्वासन – देश निकाला
- अभियोग – आरोप