Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 4 मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 4 मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय
JAC Class 9 Hindi मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय Textbook Questions and Answers
बोध-प्रश्न –
प्रश्न 1.
लेखक का ऑपरेशन करने से सर्जन क्यों हिचक रहे थे ?
उत्तर :
जुलाई, सन् 1989 में लेखक को एक साथ तीन हार्ट अटैक हुए। उसकी नब्ज, साँस और धड़कन लगभग बंद हो गई। तब डॉक्टर बोर्नेस ने प्रयोग के तौर पर लेखक को नौ सौ वॉल्ट्स के शॉक्स दिए जिससे उसके प्राण लौट आए। इस प्रक्रिया में लेखक के हार्ट का लगभग साठ प्रतिशत हिस्सा नष्ट हो गया था। अब केवल चालीस प्रतिशत हार्ट बचा था और उसमें भी तीन अवरोध थे। इसी कारण ओपन हार्ट ऑपरेशन करने से सर्जन हिचक रहे थे। उन्हें डर था कि कहीं यह चालीस प्रतिशत हार्ट भी धड़कना बंद न कर दे। अंत में कुछ अन्य विशेषज्ञों की राय लेकर कुछ दिन बाद ऑपरेशन करने का निर्णय लिया गया।
प्रश्न 2.
‘किताबों वाले कमरे में रहने के पीछे लेखक के मन में क्या भावना थी ?
उत्तर :
लेखक को अर्द्धमृत्यु की स्थिति में वापस घर लाया गया। जब उसे बेडरूम में लिटाया जाने लगा तो लेखक ने किताबों वाले कमरे में रहने की इच्छा व्यक्त की। उसे चलने, बोलने और पढ़ने की सख्त मनाही थी। वह चुपचाप उन किताबों को देखता रहता था। किताबों वाले कमरे में रहने का मुख्य कारण उसका किताबों के प्रति लगाव था। उसे किताबों से अत्यधिक प्रेम था और किताबों के बीच रहकर वह अपने आपको भरा-भरा महसूस करता था। पिछले कई वर्षों से एक-एक करके उसने इन किताबों को जमा किया था। प्रत्येक किताब से उसका एक भावनात्मक रिश्ता था। इसी कारण उसने किताबों वाले कमरे में रहने की जिद्द की थी।
प्रश्न 3.
लेखक के घर में कौन-कौन सी पत्रिकाएँ आती थीं ?
उत्तर :
लेखक के पिता गाँधीवादी विचारधारा से प्रभावित थे और आर्य समाज रानीमंडी के प्रधान थे। उनके घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने पर भी कुछ पत्र-पत्रिकाएँ नियमित रूप से आती थीं। इनमें ‘आर्यमित्र’ साप्ताहिक, ‘वेदोदय’, ‘सरस्वती’, ‘गृहिणी’ आदि के साथ-साथ दो बाल-पत्रिकाएँ ‘बालसखा’ और ‘चमचम आती थीं। इन बाल-पत्रिकाओं में परियों, राजकुमारों, दानवों और सुंदर राजकन्याओं की कहानियाँ और रेखाचित्र होते थे।
प्रश्न 4.
लेखक को किताबें पढ़ने और सहेजने का शौक कैसे लगा ?
उत्तर :
लेखक के घर में बाल-पत्रिकाएँ आती थीं जिनमें मज़ेदार कहानियाँ होती थीं। लेखक हर समय उन्हें पढ़ता रहता। यहाँ तक कि खाना खाते समय भी वह थाली के पास पत्रिकाएँ रखकर पढ़ता। धीरे-धीरे उसने घर में आने वाली अन्य पत्रिकाओं ‘सरस्वती’ और आर्यमित्र’ को भी पढ़ना शुरू कर दिया। उसे सबसे अधिक प्रिय स्वामी दयानंद की जीवनी पर लिखी एक पुस्तक थी। इसमें अनेक चित्र थे और रोचक शैली में उनके जीवन की अनेक घटनाओं का वर्णन था। ये सभी घटनाएँ लेखक को प्रभावित करती थीं। इसी कारण वह बार-बार उसे पढ़ता। इस प्रकार उसे किताबें पढ़ने और सहेजने का शौक लग गया।
प्रश्न 5.
माँ लेखक की स्कूली पढ़ाई को लेकर क्यों चिंतित रहती थी ?
उत्तर :
लेखक अपने घर में आने वाली पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने में ही व्यस्त रहता था और स्कूल की पुस्तकों की ओर कम ध्यान उसकी माँ स्कूली पढ़ाई पर जोर देती। उसे डर था कि कहीं उसका बेटा फेल न हो जाए। वह लेखक के कक्षा की किताबें न पढ़ने के कारण चिंतित रहती। उसे यह भी डर था कि कहीं उसका पुत्र साधु बनकर घर से भाग न जाए। लेखक के पिता के समझाने पर लेखक ने कक्षा की किताबों को भी पढ़ना आरंभ किया।
प्रश्न 6.
स्कूल से इनाम में मिली अंग्रेज़ी की दोनों पुस्तकों ने किस प्रकार लेखक के लिए नयी दुनिया के द्वार खोल दिए ?
उत्तर :
स्कूल में अंग्रेज़ी में सबसे अधिक अंक प्राप्त करने के लिए इनाम के रूप में लेखक को दो अंग्रेज़ी की पुस्तकें मिलीं। इन पुस्तकों में पशु-पक्षियों तथा पानी के जहाज़ों का वर्णन था। उसके पिता ने अपनी अलमारी के एक खाने से चीजें हटाकर उन दो किताबों के लिए जगह बनाई। इस प्रकार अलमारी में किताबें रखने का सिलसिला आरंभ हो गया। लेखक किताबें इकट्ठी करने लगा और उन्हें अलमारी में रखता गया। धीरे-धीरे उसके पास एक समृद्ध पुस्तकालय हो गया। इस प्रकार स्कूल से मिली अंग्रेज़ी की दोनों पुस्तकों ने लेखक के लिए नयी दुनिया के द्वार खोल दिए। यही दो पुस्तकें उसके समृद्ध पुस्तकालय का आधार बनी थीं।
प्रश्न 7.
‘आज से यह खाना तुम्हारी अपनी किताबों का। यह तुम्हारी अपनी लाइब्रेरी’ – पिता के इस कथन से लेखक को क्या प्रेरणा मिली ?
उत्तर :
पिता के इस कथन से लेखक को पुस्तकें इकट्ठा करने की प्रेरणा मिली। पिता द्वारा अपनी अलमारी से एक खाना लेखक को किताबों के लिए दिए जाने पर लेखक बहुत खुश हुआ। उसने उस खाने में रखने के लिए अधिक-से-अधिक पुस्तकें इकट्ठी करना शुरू कर दिया। जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया, उसकी लाइब्रेरी में पुस्तकें भी बढ़ती चली गईं। एक-एक करके उसने लगभग एक हज़ार पुस्तकों की लाइब्रेरी बना ली। इस प्रकार पिता के स्नेहपूर्ण कहे गए उस कथन ने लेखक को पुस्तकें इकट्ठा करने और उन्हें पढ़ने की प्रेरणा दी।
प्रश्न 8.
लेखक की पहली पुस्तक खरीदने की घटना का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
लेखक को किताबें पढ़ने और इकट्ठा करने का बहुत शौक था। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वह किताबें खरीद नहीं पाता था। एक बार वह शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के ‘देवदास’ उपन्यास पर आधारित फ़िल्म का गीत गुनगुना रहा था। लेखक की माँ ने उसे फ़िल्म देखने की स्वीकृति दे दी। लेखक सिनेमाघर में फ़िल्म देखने चला गया। पहला शो छूटने में समय बाकी था, इसलिए वह आस-पास टहलने लगा। वहीं उसके एक परिचित की पुस्तकों की दुकान थी। उसने उसके काउंटर पर शरतचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित ‘देवदास’ उपन्यास पड़ा देखा। लेखक के पास दो रुपये थे। दुकानदार उसे उस पुस्तक को दस आने में देने के लिए तैयार हो गया। फ़िल्म देखने में डेढ़ रुपया लगता था। तब लेखक ने दस आने में ‘देवदास’ उपन्यास खरीदने का निर्णय लिया। यह उसके द्वारा अपने पैसों से खरीदी गई पहली पुस्तक थी।
प्रश्न 9.
‘इन कृतियों के बीच अपने को कितना भरा-भरा महसूस करता हूँ’ – का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से लेखक स्पष्ट करना चाहता है कि अनेक विद्वानों द्वारा लिखी पुस्तकें उसे बहुत ताजगी प्रदान करती थीं। उसकी लाइब्रेरी में रखी इन पुस्तकों को देखकर उसे बड़ा सुख मिलता था। ये पुस्तकें ही उसकी संचित पूँजी थीं। इन पुस्तकों को देखकर वह बहुत खुश होता था। अनेक लेखकों और चिंतकों की पुस्तकें उसके खालीपन को दूर कर देती थीं। अपनी इन पुस्तकों के बीच पहुँचकर वह नयापन महसूस करता था। वहाँ उसके जीवन की रिक्तता और नीरसता अपने आप दूर हो जाया करती थी। लेखक को अपने द्वारा संचित की गई पुस्तकों से बहुत अधिक प्रेम था।
JAC Class 9 Hindi मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
डॉक्टर बोर्जेस ने लेखक को शॉक्स क्यों दिए ? उससे लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर :
सन् 1989 में लेखक को तीन हार्ट अटैक हुए। सभी डॉक्टरों ने जवाब दे दिया। डॉक्टर बोर्जेस ने हिम्मत नहीं हारी। उसने लेखक की धड़कन लौटाने के लिए नौ सौ वाल्ट्स के शॉक्स दिए। उसका मत था कि यदि शरीर मृत है तो उसे दर्द महसूस ही नहीं होगा किंतु यदि एक कण प्राण भी शेष होंगे तो हार्ट रिवाइव कर सकता है। डॉक्टर बोर्जेस के इस प्रयोग से लेखक के प्राण तो लौटे किंतु उसका साठ प्रतिशत हार्ट सदा के लिए नष्ट हो गया।
प्रश्न 2.
अस्पताल से घर आकर लेखक कहाँ रहा और उसने क्या महसूस किया ?
उत्तर :
लेखक अस्पताल से अर्धमृत हालत में घर लाया गया और उसे पूर्ण रूप से विश्राम करने के लिए कहा गया। उसके चलने, बोलने और पढ़ने पर मनाही थी। अस्पताल से घर लाकर उसे किताबों वाले कमरे में रखा गया। वहाँ वह दिन-भर खिड़की के बाहर हवा में झूलते सुपारी के पेड़ के पत्ते और कमरे में रखी किताबों से भरी अलमारियों को देखता रहता। लेखक ने महसूस किया कि बचपन में पढ़ी परी – कथाओं में जिस प्रकार राजा के प्राण तोते में रहते थे, उसी प्रकार उसके प्राण भी मानो कमरे में रखी इन किताबों में बसे हैं। इन किताबों को लेखक ने बड़ी कठिनाई से एक-एक करके इकट्ठे किए थे।
प्रश्न 3.
पुस्तकालय अपने आपमें ज्ञान का संचित कोष होता है। वहाँ अथाह पुस्तकों का भंडार होता है। अपने विवेक के आधार पर बताइए कि पुस्तकालय का मानव जीवन में क्या स्थान है?
उत्तर :
पुस्तकालय आज जीवन का एक आवश्यक अंग बन गए हैं। इनमें अपार ज्ञान का कोष है। आज के आधुनिक तथा प्रतिस्पर्धा-युक्त वातावरण में इसका और भी अधिक महत्व है। व्यक्ति पुस्तकालय में जाकर उसमें रखी पुस्तकों का अध्ययन करता है। एक व्यक्ति इतनी अधिक मात्रा एवं संख्या में पुस्तकों को न खरीद सकता है और संजोकर रख सकता है। यह विद्यार्थियों तथा आम जन मानस के लिए शिक्षक, थियेटर, आदर्श तथा उत्प्रेरक है।
यह परामर्शदाता तथा उनका साथी भी है। सही अर्थों में पुस्तकालय जनता तथा विद्यार्थियों को विवेकशील तथा ज्ञानवान बनाने का काम करता है तथा कर रहा है। इनमें लेखकों के लेख, नेताओं के भाषण, व्यापार और मेलों की सूचनाएँ, स्त्रियों और बच्चों के उपयोग की अनेक पत्र-पत्रिकाएँ, नाटक, कहानी, उपन्यास हास्य व्यंग्यात्मक लेख आदि विशेष सामग्री रहती हैं। अतः इनके प्रयोग से व्यक्ति ज्ञानवान बनता है। यदि यह कहा जाए कि पुस्तकालय आज सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में बड़ा सहायक है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति न होगी।
प्रश्न 4.
पुस्तकें इकट्ठी करना तथा उन्हें क्रमबद्ध रूप में अलमारी में सजाकर रखना मानव की आदत में है। अपने विवेक के आधार पर बताइए कि क्या पुस्तकों को इकट्ठा करना या उन्हें सजाकर रखना ही उनका सही प्रयोग है या उनके अंदर के ज्ञान को आत्मसात् करना उसका प्रयोग है?
उत्तर :
हाँ, यह अक्सर देखा जाता है कि बहुत से लोग किताबे खरीदते हैं। उन्हें अलमारी में सजाकर रखते हैं किंतु पुस्तक के अंदर के ज्ञान को समझ नहीं पाते। वे ऐसे लोग होते हैं जो पुस्तकें इकट्ठी करने के तो शौकीन होते हैं किंतु उन्हें पढ़कर उनके ज्ञान को आत्मसात् नहीं करना चाहते। आज समाज के अधिकतर लोग दिखावे और प्रदर्शनी हेतु पुस्तकों का संचय करते हैं। पुस्तकें धूल चाटती रहती हैं किंतु उनके पास उन्हें पढ़ने का समय नहीं होता। वे उस ज्ञान से वंचित हो जाते हैं जिसे वे अपने साथ पुस्तक के रूप में घर तो ले आए किंतु उन्हें पढ़कर आत्मसात् नहीं कर पाए।
सच्चा ज्ञान पुस्तक के अंदर निहित उस शब्दावली में है जो मानव को कल्याणकारी बनाने का संदेश देती है, उसे सन्मार्ग पर आने के लिए प्रेरित करती है, उसकी इच्छा-शक्ति तथा आत्मविश्वास को बढ़ाने का काम करती है। अतः स्पष्ट है कि पुस्तकों को इकट्ठा करना इतना आवश्यक नहीं जितना आवश्यक पुस्तकों में निहित ज्ञान को आत्मसात् करना है।
प्रश्न 5.
मराठी के वरिष्ठ कवि विंदा करंदीकर ने लेखक की लाइब्रेरी देखकर लेखक से क्या कहा था ?
उत्तर :
मराठी के वरिष्ठ कवि विंदा करंदीकर ने लेखक से कहा था- ” भारती, ये सैकड़ों महापुरुष जो पुस्तक रूप में तुम्हारे चारों ओर विराजमान हैं, इन्हीं के आशीर्वाद से तुम बचे हो। इन्होंने तुम्हें पुनर्जीवन दिया है। ” तब लेखक ने कवि विंदा तथा पुस्तकों के महान लेखकों को मन-ही-मन प्रणाम किया था।
प्रश्न 6.
लेखक के प्राण कहाँ रहते थे और क्यों ?
उत्तर :
लेखक को लगता था कि उसकी स्थिति बिल्कुल उस राजा की तरह है जिसके प्राण तोते में थे और उसके अपने पुस्तकालय में रखी किताबों में थे। इसी कारण लेखक बीमारी के बाद अपने निजी पुस्तकालय में रहना चाहता था। वह इन किताबों के बिना अपने जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता था।
प्रश्न 7.
लेखक के माता-पिता क्या काम करते थे ?
उत्तर :
लेखक के पिता सरकारी नौकरी में थे। उन्होंने बर्मा रोड बनाते समय बहुत पैसा बनाया था। गाँधी जी के आह्वान पर उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी थी। बाद में उनके पिता आर्य समाज रानीमंडी के प्रधान बने। उनकी माता ने स्त्री-शिक्षा के लिए आदर्श कन्या पाठशाला की स्थापना की थी।
प्रश्न 8.
लेखक के पिता ने उन्हें आरंभ में स्कूल क्यों नहीं भेजा ?
उत्तर :
लेखक के पिता ने उन्हें बचपन में स्कूल नहीं भेजा था। उनके विचार में छोटे बच्चे स्कूल में ग़लत बातें सीखते हैं। पिता के अनुसार वे ग़लत संगत में पड़कर कहीं गाली-गलौच करना न सीख ले या फिर कहीं बुरे संस्कार न ग्रहण कर लें, इसलिए उन्हें पढ़ाने के लिए घर में ही अध्यापक रखा गया था।
प्रश्न 9.
लेखक के पिता ने उनसे क्या वचन लिया ?
उत्तर :
लेखक ने कक्षा दो तक की पढ़ाई घर पर की थी। तीसरी कक्षा में उन्हें स्कूल भेजा गया। स्कूल के पहले दिन उनके पिता ने उनसे वचन लिया कि वे स्कूल में मन लगाकर पढ़ेंगे। अन्य किताबों की तरह पाठ्यक्रम की किताबें भी ध्यान से पढ़ेंगे और अपनी माँ की उनके भविष्य को लेकर हो रही चिंताओं को दूर करेंगे।
प्रश्न 10.
क्या लेखक ने अपना निजी पुस्तकालय का सपना पूरा किया ?
उत्तर :
हाँ, लेखक ने अपना निजी पुस्तकालय का सपना पूरा किया। लेखक को पुस्तकें पढ़ने का बहुत शौक था। उसके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी इसलिए वह मोहल्ले की लाइब्रेरी में बैठकर किताबें पढ़ता था। कई बार कोई उपन्यास अधूरा रह जाता तो वह सोचता कि पैसे होते, तो वह खरीदकर पढ़ लेता। धीरे-धीरे उसने बचत करके अपने लिए किताबें खरीदनी शुरू की और अपना सपना पूरा किया।
प्रश्न 11.
‘मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय’ पाठ के आलोक में अपने विद्यालय के पुस्तकालय का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
हमारे विद्यालय का पुस्तकालय विद्यालय के प्रथम तल पर एक बहुत बड़े सभा भवन में स्थित है। इसमें विभिन्न विषयों की पुस्तकों और संदर्भ ग्रंथों से अलमारियाँ भरी हुई हैं। बीच में समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ आदि पढ़ने के लिए मेज़ – कुर्सियाँ लगी हुई हैं। प्रवेश-द्वार के पास पुस्तकालयाध्यक्ष अपने सहयोगियों के साथ बैठते हैं। यहाँ विभिन्न भाषाओं के समाचार-पत्र तथा अनेक विषयों से संबंधित पत्रिकाएँ आती हैं, जिनसे हमारे ज्ञान में वृद्धि होती है तथा मनोरंजन भी होता है। हमें घर पर पढ़ने के लिए पंद्रह दिनों के लिए दो पुस्तकें भी मिलती हैं। हमें हमारे पुस्तकालय से ज्ञान – प्राप्ति में बहुत सहायता मिलती है।
प्रश्न 12.
‘मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय’ में लेखक फ़िल्म न देखकर पुस्तक क्यों खरीदता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक को किताबें पढ़ने और इकट्ठा करने का बहुत शौक था। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वह किताबें खरीद नहीं पाता था। एक बार वह शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के ‘देवदास’ उपन्यास पर आधारित फ़िल्म का गीत गुनगुना रहा था। लेखक की माँ ने उसे फ़िल्म देखने की स्वीकृति दे दी। लेखक सिनेमाघर में फ़िल्म देखने चला गया। पहला शो छूटने में समय बाकी था, इसलिए वह आस-पास टहलने लगा।
वहीं उसके एक परिचित की पुस्तकों की दुकान थी। उसने उसके काउंटर पर शरतचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित ‘देवदास’ उपन्यास पड़ा देखा। लेखक के पास दो रुपये थे। दुकानदार उसे उस पुस्तक को दस आने में देने के लिए तैयार हो गया। फ़िल्म देखने में डेढ़ रुपया लगता था। तब लेखक ने दस आने में ‘देवदास’ उपन्यास खरीदने का निर्णय लिया। यह उसके द्वारा अपने पैसों से खरीदी गई पहली पुस्तक थी। इस प्रकार वह पैसों की बचत कर लेता है और देवदास फ़िल्म जिस पुस्तक पर आधारित थी, वह भी उसे प्राप्त हो जाती है।
प्रश्न 13.
आपको कौन-सी पुस्तक अच्छी लगती अच्छी लगती है और क्यों ?
उत्तर :
मेरी प्रिय पुस्तक तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस है क्योंकि उसमें केवल राम की कथा ही नहीं है बल्कि अनेक आदर्शों की स्थापना भी की गई है, जिनसे हमें अपना जीवन सँवारने की प्रेरणा मिलती है। हनुमान जैसा सेवक – धर्म, भरत लक्ष्मण का भाई के प्रति प्रेम, राम का मर्यादित स्वरूप, सुग्रीव – राम की मित्रता, शबरी के प्रति राम की भावनाएँ तथा राम-राज्य की परिकल्पना, रावण के वध द्वारा बुराई पर अच्छाई की विजय आदि सभी इन सब घटनाओं से जीवन को सद्आचरण से युक्त बनाने की प्रेरणा मिलती है तथा इनका अनुपालन करके देश और समाज को आदर्श बनाया जा सकता है।
मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय Summary in Hindi
पाठ का सार :
‘मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय’ पाठ धर्मवीर भारती द्वारा लिखित है। इसमें भारती जी ने अपनी पढ़ने-लिखने और पुस्तकें इकट्ठा करने की रुचि का वर्णन किया है। लेखक कहता है कि उसने एक-एक पुस्तक को बड़ी मेहनत से इकट्ठा किया है। अब उसके निजी पुस्तकालय में अनेक विधाओं से संबंधित लगभग एक हजार पुस्तकें इकट्ठा हो गई हैं।
जुलाई, 1989 को लेखक को तीन जबरदस्त हार्ट-अटैक हुए। सभी डॉक्टरों ने घोषित कर दिया कि अब उसमें प्राण नहीं रहे। पर एक डॉक्टर बोर्जेस ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने लेखक को नौ सौ वाल्ट्स के शॉक्स दिए। इस भयानक प्रयोग से लेखक के प्राण तो लौट आए किंतु उसका साठ प्रतिशत हृदय सदा के लिए नष्ट हो गया। दोबारा ऑपरेशन करने में खतरा था। अतः अन्य विशेषज्ञों की राय लेने के लिए ऑपरेशन कुछ दिन बाद करने का निर्णय लिया गया और लेखक को अस्पताल से घर लाया गया। उसे बिना हिले-डुले विश्राम करने की सलाह दी गई। लेखक ने जिद्द करके अपना बिस्तर किताबों वाले कमरे में लगवाया। वह सारा दिन किताबों को देखकर सोचता रहता कि शायद उसके प्राण इन किताबों में ही बसे हुए हैं।
लेखक अपने किताबें पढ़ने और सहेजने के शौक के बारे में बताता है कि उसके पिता सरकारी नौकरी करते थे। बाद में गांधी जी के प्रभाव में आकर उन्होंने नौकरी छोड़ दी थी। उस आर्थिक संकट के दौर में भी उनके घर में कई पत्र-पत्रिकाएँ नियमित रूप से आती थीं। इनमें दो पत्रिकाएँ ‘बाल सखा’ और ‘चमचम’ बाल पत्रिकाएँ थीं जो लेखक के लिए आती थीं। लेखक को उन्हें पढ़ने में बड़ा मज़ा आता था। इसके अतिरिक्त उसे स्वामी दयानंद की जीवनी पढ़ने में भी बड़ा आनंद आता था। लेखक सारा दिन वही पत्रिकाएँ पढ़ता था। लेखक की माँ उसकी कक्षा की किताबें न पढ़ने के कारण चिंतित रहती थी। एक दिन पिता द्वारा समझाने पर उसने स्कूली पुस्तकों को पढ़ना शुरू किया। स्कूल में अंग्रेजी में सबसे अधिक अंक पाने के कारण उसे दो अंग्रेज़ी की पुस्तकें इनाम में मिलीं। उसके पिता ने अपनी अलमारी का एक खाना उसे उन पुस्तकों को रखने के लिए दिया। तब से लेखक ने लगातार पुस्तकों को इकट्ठा करना आरंभ कर दिया।
लेखक बताता है कि उसके पिता की मृत्यु के बाद परिवार आर्थिक संकट में घिर गया। ऐसे में किताब खरीदकर पढ़ना उसके लिए असंभव था। अतः वह मुहल्ले की लाइब्रेरी में बैठकर घंटों पुस्तकें पढ़ता रहता। लेखक अपनी पहली खरीदी हुई पुस्तक के विषय में बताता है कि वह पुस्तक शरतचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित उपन्यास ‘देवदास’ था। उसकी माँ ने उसे दो रुपये ‘देवदास’ फ़िल्म देखने के लिए दिए। शो छूटने में देर होने के कारण वह आस-पास टहलने लगा। तब उसने एक किताबों की दुकान के काउंटर पर ‘देवदास’ उपन्यास पड़ा देखा। दुकानदार ने उसे वह दस आने में किताब दे दी। लेखक ने फ़िल्म देखने की बजाय किताब खरीदना बेहतर समझा।
इस प्रकार यह उसकी खरीदी हुई पहली पुस्तक थी। धीरे-धीरे उसका पुस्तकालय समृद्ध होता गया। उसके पास उपन्यास, नाटक तथा प्रत्येक विधा से संबंधित लगभग एक हजार पुस्तकों का निजी पुस्तकालय बन गया। लेखक इन पुस्तकों के बीच अपने आपको भरा-भरा महसूस करता है। लेखक का ऑपरेशन सफल होने पर उनसे मिलने आए मराठी के कवि विंदा करंदीकर ने लेखक के पुस्तकालय को देखकर कहा कि इन पुस्तकों के महान लेखकों के आशीर्वाद से ही उसे पुनर्जीवन मिला है। लेखक ने तब विंदा करंदीकर और पुस्तकों के रूप में उसके पुस्तकालय में विराजमान महापुरुषों को मन ही मन प्रणाम किया।
कठिन शब्दों के अर्थ :
- हार्ट-अटैक – दिल का दौरा।
- शॉक्स – झटके।
- मृत – मरा हुआ, जिसमें प्राण न बचे हों।
- अवरोध – रुकावट।
- अदर्धमृत्यु – अधमरा।
- बेडरूम – सोने का कमरा।
- आह्वान – बुलावा।
- आर्थिक – रुपये-पैसे से संबंधित।
- रोचक – मनोरंजन।
- सुसज्जित – सजी हुई।
- तत्कालीन – उस समय के।
- पाखंड – बाहरी आडंबर।
- अदम्य – जिसे दबाया न जा सके।
- प्रतिमाएँ – मूर्तियाँ।
- तमाम – सारा।
- हिमशिखर – बर्फ़ की चोटी।
- रूढ़ियाँ – प्रथाएँ।
- रोमांचित – पुलकित।
- नासमझ – जिसे कोई समझ न हो।
- फर्स्ट – प्रथम।
- द्वीप – वह भू-भाग जो चारों ओर से पानी से घिरा हो।
- लाइब्रेरी – पुस्तकालय।
- यूनिवर्सिटी – विश्वविद्यालय।
- सनक – धुन।
- प्रख्यात – प्रसिद्ध।
- दिवंगत – स्वर्गीय।
- अनूदित उपन्यास – जिस उपन्यास का एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद किया गया हो।
- आकर्षक – लुभावना।
- अनिच्छा – बेमन, इच्छा न होते हुए भी।
- कसक – पीड़ा।
- देहावसान – मृत्यु।
- विपन्न – गरीब।
- सहसा – अचानक।
- दाम – मूल्य, कीमत।
- हज़ारहा – हज़ार से अधिक।
- वरिष्ठ – बड़ा, पूजनीय।
- पुनर्जीवन – दोबारा जीवन।