Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 5 हामिद खाँ Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 5 हामिद खाँ
JAC Class 9 Hindi हामिद खाँ Textbook Questions and Answers
बोध-प्रश्न –
प्रश्न 1.
लेखक का परिचय हामिद खाँ से किन परिस्थितियों में हुआ ?
उत्तर :
हामिद खाँ से लेखक दो साल पहले तक्षशिला के नजदीक एक गाँव में मिला था। लेखक का कड़कड़ाती धूप और भूख-प्यास, से बुरा हाल था। उसने गाँव के तंग बाजार के चारों ओर चक्कर लगा लिया था लेकिन उसे कहीं कोई होटल दिखाई नहीं दिया था। अचानक लेखक को एक दुकान से चपातियाँ सिंकने की सोंधी महक आई। वह दुकान के अंदर गया। वहाँ दुकान का मालिक हामिद खाँ खाना बना रहा था। उसी दुकान पर लेखक का हामिद खाँ से परिचय हुआ। हामिद खाँ ने लेखक से खाने के पैसे भी नहीं लिए थे।
प्रश्न 2.
‘काश मैं आपके मुल्क में आकर यह सब अपनी आँखों से देख सकता।’ हामिद ने ऐसा क्यों कहा ?
उत्तर :
लेखक ने हामदि खाँ को बताया कि हमारे देश में हिंदू-मुसलमान में कोई फ़र्क नहीं है तथा वहाँ सभी मिल-जुलकर रहते हैं और बेखटके मुसलमानी होटल में जाया करते हैं। भारत में मुसलमानों की पहली मस्जिद का निर्माण भी लेखक के ही राज्य में हुआ था तथा वहाँ कभी भी हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगे नहीं होते। यह सब सुनकर हामिद खाँ यह कहता है कि काश मैं आपके मुल्क में आकर यह सब देख सकता। उसके देश में यह सब कुछ नहीं है।
प्रश्न 3.
लेखक कि यह बात कि उसके देश में हिंदू-मुसलमान मिलकर रहते हैं सुनकर हामिद खाँ को आश्चर्य हुआ और उसके मुख से पीड़ा युक्त स्वर निकला कि “काश, मैं आपके मुल्क में आकर यह सब देख सकता” हामिद के इस वाक्य में एक पीड़ा छिपी है। अपने विवेक के आधार पर बताइए कि वह पीड़ा क्या है और क्यों है?
उत्तर :
मानव एक विवेकशील प्राणी है। एक-दूसरे से लगाव करना और जोड़ना उसके स्वभाव में है। लेखक जब हामिद को यह बताता है कि उसके भारत देश में हिंदू-मुसलमान मिल-जुलकर रहते हैं तो मनुष्यता का यही लगाव हामिद को उसकी ओर खींचता है। उसके अंतर की पीड़ा उसके मुख पर आ जाती है। वह सहसा बोल पड़ता है कि काश वह हिंदू-मुसलमान एकता का यह दृश्य अपनी आँखों से देख पाता। वह ऐसा इसलिए कहता है क्योंकि उसके अपने देश में हिंदू-मुसलमान की एकता की बात तो दूर रही, आपसी प्रेम तक नहीं है। चहुँ ओर मार-काट, शत्रुता तथा आतंक का साया है। ऐसे में लेखक का प्रेम तथा सौहार्दयुक्त वातावरण की बात करने से हामिद की पीड़ा का मुखरित होना सहज स्वाभाविक है। हामिद की यह पीड़ा उसे अपने देश में उचित प्रेम, आदर तथा सम्मान न मिल पाने के कारण सामने आई है। हामिद ही क्यों, प्रत्येक मनुष्य प्यार और सम्मान का भूखा होता है।
प्रश्न 4.
मालाबार में हिंदू-मुसलमानों के परस्पर संबंधों को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
हामिद खाँ लेखक से कहता है कि वे हिंदू होकर मुसलमान के यहाँ खाना खा रहे हैं। उस समय लेखक विश्वास और गर्व के साथ हामिद खाँ को बताते हैं कि हमारे यहाँ तो बढ़िया चाय पीनी हो या बढ़िया पुलाव खाना हो तो लोग बिना झिझक मुसलमानी होटल में जाते हैं। वहाँ हिंदू-मुसलमान लोग आपस में कोई फ़र्क नहीं समझते हैं। दोनों संप्रदायों में दंगे न के बराबर होते हैं। भारत में मुसलमानों ने पहली मस्जिद केरल राज्य के ‘कोडुंगल्लूर’ नामक स्थान पर बनाई थी। मालाबार में हिंदू-मुसलमान भाईचारे के साथ रहते हैं।
प्रश्न 5.
तक्षशिला में आगजनी की खबर पढ़कर लेखक के मन में कौन-सा विचार कौंधा ? इससे लेखक के स्वभाव की किस
विशेषता का परिचय मिलता है ?
उत्तर :
तक्षशिला में सांप्रदायिक दंगों में आगजनी का समाचार पढ़कर लेखक को हामिद खाँ की याद आती है। उन्हें हामिद खाँ की मेहमाननवाजी तथा स्नेह याद आता है। वह भगवान से प्रार्थना करता है कि हामिद खाँ तथा उसकी दुकान आगजनी में बच जाए क्योंकि उसी दुकान में कड़कड़ाती धूप में छाया तथा भूखे पेट को खाना मिला था। लेखक का हामिद खाँ के लिए प्रार्थना करना यह दर्शाता है कि लेखक का हृदय मानवीय संवेदना से भरा हुआ है। उसके लिए हिंदू और मुसलमान में कोई अंतर नहीं है। उसे जहाँ प्यार, मान-सम्मान एवं विश्वास मिलता है उससे इंसानियत का संबंध बना लेता है। लेखक विश्व बंधुत्व एवं भाईचारे की भावना में विश्वास रखता है।
JAC Class 9 Hindi हामिद खाँ Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार गाँव का बाज़ार कैसा था ?
उत्तर :
लेखक तक्षशिला की कड़कड़ाती धूप तथा भूख-प्यास से बेहाल रेलवे स्टेशन से करीब पौना मील दूर एक गाँव में पहुँचा। वहाँ के बाज़ार की गलियाँ हाथ की रेखाओं के समान तंग थीं। चारों तरफ धुआँ, मच्छर तथा गंदगी थी। कहीं-कहीं से चमड़े की बदबू भी उठ रही थी। वहाँ लंबे कद के पठान अपनी सहज अलमस्त चाल में चलते नज़र आ रहे थे।
प्रश्न 2.
लेखक ने दुकान के अंदर क्या देखा ?
उत्तर :
लेखक को दुकानदार ने बेंच पर बैठने के लिए कहा। वहाँ से लेखक ने भीतर झाँककर देखा कि आँगन बेतरतीबी से लीपा हुआ था। दीवारों पर धूल चढ़ी हुई थी। एक कोने में चारपाई पर एक दढ़ियल बुड्ढा आदमी हुक्का पी रहा था। उसने हुक्के की आवाज़ में अपने आपको ही नहीं पूरे जहान को भुला रखा था।
प्रश्न 3.
हामिद खाँ को लेखक के हिंदू होने का विश्वास क्यों नहीं है ?
उत्तर :
लेखक हामिद खाँ को अपने यहाँ के हिंदू-मुसलमान संबंधों के विषय में बताता है तो उसे लेखक के हिंदू होने में विश्वास नहीं होता क्योंकि तक्षशिला में तो कोई हिंदू इतने गर्व तथा विश्वास से हिंदू-मुसलमानों के आपसी संबंधों की बात नहीं करता है। वहाँ हिंदू उन लोगों को आततायियों की संतान समझते हैं, इसलिए उन्हें भी अपनी आन के लिए लड़ना पड़ता है। लेखक को हामिद खाँ की बातों में सच्चाई नज़र आती है।
प्रश्न 4.
हामिद खाँ के अनुसार ईमानदारी और मुहब्बत का मानवीय रिश्तों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
हामिद खाँ लेखक से बहुत प्रभावित होता है। वह लेखक से कहता है कि हम किसी पर धौंस जमाकर या मज़बूर करके उससे प्यार मोल नहीं कर सकते हैं। जिस ईमान और मुहब्बत से आप खाना खाने होटल में आए उसका मेरे ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा है। यदि हिंदू-मुसलमान ईमान से आपस में मुहब्बत करें तो कितना अच्छा होगा। हामिद खाँ भी आपसी भाईचारे तथा विश्व-बंधुत्व की भावना में विश्वास रखता है, इसीलिए मानवीय रिश्तों की परिभाषा को समझता है।
प्रश्न 5.
हमें इस कहानी से क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर :
‘हामिद खाँ’ कहानी के लेखक ने इस कहानी के माध्यम से हिंदू-मुसलमान एकता तथा भाईचारे का संदेश दिया है। लेखक ने पाया है कि चारों तरफ मानवीय समस्याएँ तथा संवेदनाएँ समान हैं, उन्हें केवल आपसी प्यार से समझा जा सकता है। हम किसी पर धौंस जमाकर तथा उसे मजबूर करके उससे प्यार नहीं पा सकते। प्यार एवं मान-सम्मान पाने के लिए सौहार्दपूर्ण तथा आत्मीय व्यवहार करना पड़ता है। इस कहानी में लेखक तथा हामिद खाँ अनजान होते हुए भी छोटी-सी मुलाकात में एक-दूसरे से इंसानियत का संबंध जोड़ लेते हैं। दोनों एक-दूसरे के सौहार्दपूर्ण तथा आत्मीय व्यवहार से प्रभावित होते हैं। इसलिए लेखक दो वर्ष बाद भी हामिद खाँ को याद रखता है तथा उसकी सलामती की दुआ माँगता है। लेखक ने इस कहानी के माध्यम से विश्वास, भाईचारे तथा विश्व- बंधुत्व की शिक्षा दी है।
प्रश्न 6.
लेखक के अनुसार परदेश में क्या चीज़ आपकी रक्षा करती है ?
उत्तर :
लेखक ने अपने अनुभव से यह बात अच्छी तरह समझ ली थी कि परदेश में अपनी रक्षा के लिए कोई हथियार सहायक नहीं होता है। परदेश में यदि आपकी कोई रक्षा कर सकता है तो वह है आपकी मुस्कुराहट। मुस्कुराहट से सामने खड़े अजनबी को अपनेपन का एहसास करवाकर अपना बनाया जा सकता है। इसलिए अजनबियों के बीच मुस्कुराहट ही आपकी रक्षा करती है।
प्रश्न 7.
‘हामिद खाँ’ कहानी के आधार पर आप हामिद खाँ के विषय में क्या सोचते हैं ?
उत्तर :
हामिद खाँ पाकिस्तान के तक्षशिला के छोटे-से गाँव का रहने वाला था। हामिद खाँ की एक छोटी-सी दुकान थी। हामिद खाँ देखने में साधारण व्यक्ति लगता है, परंतु वह एक नेक दिल मुसलमान था जिसके दिल में विश्वबंधुत्व की भावना थी। वह भी आम लोगों की तरह मिल-जुलकर रहने में विश्वास करता था। उसे इस बात पर हैरानी हुई कि एक हिंदू मुसलमान की दुकान पर खाना खाने आया था, परंतु लेखक की बातें सुनकर उसे प्रसन्नता होती है। वह सोचता है कि कहीं तो हिंदू-मुसलमान मिल-जुलकर रहते हैं।
प्रश्न 8.
लेखक तक्षशिला के सांप्रदायिक दंगों की आग से हामिद खाँ की दुकान के बचे रहने की प्रार्थना क्यों करता है ?
उत्तर :
लेखक दो साल पहले तक्षशिला के खंडहर देखने गया था। वहाँ उसकी मुलाकात हामिद खाँ से होती है। हामिद खाँ की दुकान में लेखक को जो अपनापन और शांति मिली, वह आज तक नहीं भूल पाया था। इसलिए वह ईश्वर से प्रार्थना करता है कि जिस दुकान ने उस भूखे को दोपहर में छाया और खाना देकर उसकी आत्मा को तृप्त किया था, वह दुकान सांप्रदायिक दंगों से बची रहे।
प्रश्न 9.
हामिद खाँ कहानी में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘हामिद खाँ’ कहानी के माध्यम से लेखक हिंदू-मुसलमानों के बीच एकता तथा भाईचारे को दर्शाया है। लेखक ने पाया है कि चारों तरफ मानवीय समस्याएँ तथा संवेदनाएँ समान हैं। उन्हें आपसी प्यार से समझा जा सकता है। हम किसी पर धौंस जमाकर तथा उसे मज़बूर करके उससे प्यार नहीं पा सकते हैं। प्यार एवं मान-सम्मान पाने के लिए सौहार्दपूर्ण तथा आत्मीय व्यवहार करना पड़ता है। इस कहानी में लेखक तथा हामिद खाँ अनजान होते हुए भी छोटी-सी मुलाकात में एक-दूसरे से आत्मीय संबंध जोड़ लेते हैं। दोनों एक-दूसरे के सौहार्दपूर्ण तथा आत्मीय व्यवहार से प्रभावित होते हैं। इसलिए लेखक दो वर्ष बाद भी हामिद खाँ को याद रखता है तथा उसकी सलामती की दुआ माँगता है। लेखक ने इस कहानी के माध्यम से विश्वास, भाईचारे तथा विश्व- बंधुत्व की शिक्षा दी है।
प्रश्न 10.
‘हामिद खाँ’ को लेखक के हिंदू होने का विश्वास क्यों नहीं हो रहा था ? लेखक का हामिद खाँ पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर :
लेखक हामिद खाँ को अपने यहाँ के हिंदू-मुसलमानों के बीच के संबंधों के विषय में बताता है तो उसे लेखक के हिंदू होने पर विश्वास नहीं होता क्योंकि तक्षशिला में तो कोई हिंदू इतने गर्व तथा विश्वास से हिंदू-मुसलमानों के आपसी संबंधों की बात ही नहीं करता है। वहाँ हिंदू उन लोगों को आततायियों की संतान समझते हैं। इसलिए उन्हें भी अपनी आन के लिए लड़ना पड़ता है। लेखक को हामिद खाँ की बातों में सच्चाई नज़र आती है। वह लेखक से बहुत प्रभावित होता है। वह लेखक से कहता है कि हम किसी पर धौंस जमाकर या मज़बूर करके उससे प्यार मोल नहीं खरीद सकते हैं।
जिस ईमान और मुहब्बत से आप खाना खाने होटल में आए उसका मेरे ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा है। यदि हिंदू-मुसलमान ईमान से आपस में मुहब्बत करें तो कितना अच्छा होगा। हामिद खाँ भी आपसी भाईचारे तथा विश्व बंधुत्व की भावना में विश्वास रखता है। इसीलिए मानवीय रिश्तों के महत्व को समझता है। वह लेखक से खाने के पैसे नहीं ले रहा था क्योंकि वह लेखक को अपना मेहमान मान रहा था। लेकिन लेखक दुकानदार होने के कारण हामिद खाँ को रुपया देना चाहता था। हामिद ने सकुचाते हुए रुपया लिया और फिर वापस कर दिया और कहा कि मैं चाहता कि यह आपके हाथों में रहे। जब आप वापस पहुँचे तो किसी मुसलमानी होटल में जाकर पुलाव खाएँ तो उसको दें और तक्षशिला के इस भाई हामिद को याद कर लें।
प्रश्न 11.
‘हामिद खाँ’ कहानी का ‘हामिद खाँ’ आपको कैसा लगा ?
उत्तर :
हामिद खाँ पाकिस्तान के तक्षशिला के छोटे-से गाँव का रहने वाला था। हामिद खाँ की एक छोटी-सी दुकान थी। हामिद खाँ देखने में साधारण व्यक्ति लगता है, परंतु वह एक नेकदिल मुसलमान था, जिसके दिल में विश्व बंधुत्व की भावना थी। वह भी आम लोगों की तरह मिल-जुलकर रहने में विश्वास करता था। उसे इस बात पर हैरानी हुई कि एक हिंदू मुसलमान की दुकान पर खाना खाने आया था, परंतु लेखक की बातें सुनकर उसे प्रसन्नता होती है। वह सोचता है कि कहीं तो हिंदू-मुसलमान मिल-जुलकर रहते हैं। वह धर्म, जाति आदि के भेदभाव में विश्वास नहीं रखता। उसका हृदय मानवीय संवेदना से भरा हुआ है। उसे विश्व-बंधुत्व में विश्वास है। उसे इंसानियत के संबंधों में विश्वास है।
हामिद खाँ Summary in Hindi
पाठ का सार :
‘हामिद खाँ’ कहानी के रचयिता ‘श्री एस० के० पोट्टेकाट’ हैं। प्रस्तुत कहानी में लेखक को जाति, धर्म और संप्रदाय से दूर मानवीय सौहार्द को उभारने में सफलता मिली है। इस कहानी में लेखक ने बड़ी सादगी से हिंदू और मुसलमान दोनों के भीतर धड़कते हुए मानव हृदय की एकता का चित्रण किया है। लेखक तक्षशिला (पाकिस्तान) में हामिद खाँ के होटल में खाना खाने जाता है। इसी मुलाकात में दोनों के हृदय में एक-दूसरे के प्रति भाईचारे की भावना प्रकट होती है। लेखक ने पाया कि सभी जगह मानव की समस्याएँ और संवेदनाएँ समान हैं।
तक्षशिला में आगजनी का समाचार पढ़ते ही लेखक को हामिद खाँ की याद आती है। वह उसकी एवं दुकान की सलामती के लिए भगवान से प्रार्थना करता है। लेखक दो साल पहले तक्षशिला के पौराणिक खंडहर देखने गया था। वहाँ की कड़कड़ाती धूप और भूख-प्यास के कारण उसका बुरा हाल हो गया था। लेखक पौना मील दूरी पर बसे एक गाँव में गया। वहाँ का बाज़ार हस्त रेखाओं के समान तंग था। चारों ओर धुआँ, मच्छर और गंदगी थी। कहीं-कहीं चमड़े की बदबू भी थी। बाज़ार में लंबे कद के पठान अपनी अलमस्त चाल से चलते दिखाई दे रहे थे।
लेखक एक दुकान में गया, वहाँ चपातियाँ बन रही थीं। उसने काफ़ी विदेश भ्रमण किया था, इसलिए उसे पता था कि परदेश में मुस्कुराहट ही रक्षक और सहायक होती है। लेखक ने मुस्कुराते हुए दुकान में प्रवेश किया। अंदर एक पठान अंगीठी के पास बैठा चपातियाँ सेंक रहा था। लेखक को देखकर उसने अपना काम छोड़ दिया और उसकी ओर देखने लगा। लेखक के ‘खाने को कुछ मिलेगा’ पूछने पर उसने बताया कि चपाती और सालन है और बेंच पर बैठने का इशारा किया। लेखक ने दुकान के अंदर झाँककर देखा कि आँगन बेतरतीबी से लीपा हुआ था, दीवारें धूल से भरी हुई थीं और एक कोने में चारपाई पर एक दढ़ियल बुड्ढा हुक्का गुड़गुड़ा रहा था।
उसने हुक्के की आवाज में सारे जहान को भुला रखा था। अधेड़ उम्र के पठान ने लेखक से पूछा कि कहाँ के रहने वाले हो ? लेखक ने बताया हिंदुस्तान के दक्षिणी छोर मद्रास से आगे मालाबार का रहने वाला हूँ। वह पठान पूछता है कि आप हिंदू हो ? लेखक के हाँ कहने पर वह फीकी मुस्कुराहट से पूछता है कि आप मुसलमानी होटल में खाना खाओगे। लेखक उसे गर्व से बताता है कि हमारे यहाँ बढ़िया चाय पीना हो या बढ़िया पुलाव खाना हो तो लोग मुसलमानी होटल में जाते हैं। हमारे यहाँ हिंदू-मुसलमान मिल-जुलकर रहते हैं।
भारत में मुसलमानों की पहली मस्जिद का निर्माण हमारे ही राज्य कोडुंगल्लूर में हुआ था। वहाँ दोनों संप्रदाय में झगड़े न के बराबर होते हैं। लेखक की बात सुनकर पठान कहता है कि काश ! वह भारत में आकर सब कुछ अपनी आँखों से देख सकता। लेखक को लगता है कि उसे उनकी बात पर विश्वास नहीं है। यह पूछने पर वह पठान कहता है कि मुझे आपकी बात पर यकीन है लेकिन आपके हिंदू होने पर शक है। क्योंकि यहाँ पर कोई भी हिंदू इतने विश्वास से मुसलमानों से इस तरह बात नहीं कर सकता है। वे हमें आततायियों की संतान समझते हैं।
हमारी नियति यह है कि हमें अपनी आन के लिए उनसे लड़ना पड़ता है। लेखक को उसकी आवाज में सच्चाई लगती है। लेखक को वह अपना नाम हामिद खाँ बताता है। वह कहता है कि हम किसी पर धौंस जमाकर प्यार नहीं कर सकते हैं। आपकी ईमानदारी और मुहब्बत ने मेरे दिल पर गहरा प्रभाव डाला है। यदि सब इसी प्रकार मुहब्बत करते तो कितना अच्छा होता। एक छोटे लड़के ने लेखक के सामने खाने की थाली लगा दी। उसने बड़े चाव से खाना खाया।
लेखक ने हामिद खाँ से खाने के पैसे पूछे तो उसने मुस्कुराते हुए हाथ पकड़ लिया और बोला, “आपसे पैसे नहीं लूँगा। आप तो मेरे मेहमान हैं। ” लेकिन लेखक अपनी मुहब्बत की कसम देकर दुकानदार होने के कारण खाने के पैसे लेने को कहता है। हामिद खाँ ने रुपया लेकर लेखक को वापस कर दिया और कहा कि इस रुपए से आप वापस जाकर किसी मुसलमानी होटल में खाना खाएँ तो उसे दे देना और मुझे याद कर लेना। लेखक तक्षशिला के खंडहरों की ओर लौट गया। उसके बाद वह कभी हामिद खाँ से नहीं मिला। लेकिन लेखक को आज भी हामिद खाँ की आवाज एवं उसके साथ बिताए क्षणों की याद है। लेखक भगवान से प्रार्थना करता है कि तक्षशिला के सांप्रदायिक दंगों में हामिद खाँ और उसकी दुकान बच जाए क्योंकि उस दुकान ने लेखक को दोपहर के समय छाया तथा खाना देकर तृप्त किया था।
कठिन शब्दों के अर्थ :
- आगजनी – आग लगाने का काम।
- खबर – समाचार।
- आलम – दशा, हालत।
- विनती – प्रार्थना।
- बेहाली – दुर्दशा।
- सहज – स्वाभाविक।
- सड़ाँध – सड़ने की दुर्गध।
- उम्र – आयु।
- अलसाई चाल – सुस्त चाल।
- बेपरवाही – बिना किसी चिंता के।
- संजीदगी – शिष्टता, गंभीरता।
- दढ़ियल – दाड़ी वाला।
- सालन – सब्ज़ी।
- मेहमाननवाजी – अतिथि-सत्कार।
- नियति – भाग्य।
- सकून – शांति, सुख।
- तृप्त – संतुष्ट।