Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 15 नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 15 नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ
JAC Class 9 Hindi नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ Textbook Questions and Answers
(क) नए इलाके में –
प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) नए बसते इलाके में कवि रास्ता क्यों भूल जाता है ?
(ख) कविता में कौन-कौन से पुराने निशानों का उल्लेख किया गया है ?
(ग) कवि एक घर पीछे या दो घर आगे क्यों चल देता है ?
(घ) ‘वसंत का गया पतझड़’ और ‘बैसाख का गया भादों को लौटा’ से क्या अभिप्राय है ?
(ङ) कवि ने इस कविता में ‘समय की कमी की ओर क्यों इशारा किया है ?
(च) इस कविता में कवि ने शहरों की किस विडंबना की ओर संकेत किया है ?
उत्तर :
(क) नए बसते इलाके में कवि रास्ता इसलिए भूल जाता है क्योंकि वहाँ प्रतिदिन नए-नए मकान बनते रहते हैं जिस कारण उसे याद नहीं रहता कि उसे किधर से मुड़कर कहाँ जाना है क्योंकि उसकी याद की हुई सभी निशानियाँ मिट जाती हैं।
(ख) कविता में कवि ने पीपल के पेड़, ढहे हुए मकान, ज़मीन के खाली टुकड़े जहाँ से उसने बाएँ मुड़ना था तथा बिना रंग वाले लोहे के फाटक के इकमंजिले मकान को पुराने निशानों के रूप में उल्लेख किया है।
(ग) नई बस्ती में रोज़ नए-नए घर बन रहे हैं जिस कारण कवि को भ्रम हो जाता है कि वह सही जगह पर आया है या नहीं। इसी भ्रमित अवस्था में वह कभी एक घर पीछे या दो घर आगे चला जाता है और सही स्थान पर नहीं पहुँच पाता।
(घ) इन कथनों का यह अभिप्राय है कि महीनों बाद लौटकर आना।
(ङ) कवि ने इस कविता में समय की कमी की ओर इसलिए संकेत किया है क्योंकि आकाश में बादल घिर आए हैं और कभी भी वर्षा हो सकती है।
(च) इस कविता में शहरों की इस विडंबना की ओर संकेत किया गया है कि अपनेपन का भाव सर्वत्र समाप्त हो गया है। कोई किसी को नहीं पहचानता। सब अपने आप में सिमटे हुए हैं। उन्हें किसी के बारे न तो जानने की इच्छा है और न अपने बारे में बताने की। सब अपने द्वारा बनाए गए खोल में सिमटे रहना चाहते हैं। शहर लगातार फैलते जा रहे हैं। पुराने परिवेश की पहचान समाप्त होती जा रही है। जो कल था, वह आज नहीं है और जो आज है, वह कल नहीं होगा। पुरानी पहचान तो समाप्त ही हो गई है।
प्रश्न 2.
व्याख्या कीजिए –
(क) यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं
एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया
(ख) समय बहुत कम है तुम्हारे पास
आ चला पानी ढहा आ रहा अकास
शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देखकर।
उत्तर :
उत्तर के लिए व्याख्या भाग देखिए।
योग्यता- विस्तार –
प्रश्न :
पाठ में हिंदी महीनों के कुछ नाम आए हैं। आप सभी महीनों के नाम क्रम से लिखिए।
उत्तर :
चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भादों, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन।
(ख) खुशबू रचते हैं हाथ –
प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) ‘खुशबू रचने वाले हाथ’ कैसी परिस्थितियों में और कहाँ-कहाँ रहते हैं ?
(ख) कविता में कितने तरह के हाथों की चर्चा हुई है ?
(ग) कवि ने यह क्यों कहा है कि ‘खुशबू रचते हैं हाथ’ ?
(घ) जहाँ अगरबत्तियाँ बनती हैं, वहाँ का माहौल कैसा होता है ?
(ङ) इस कविता को लिखने का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर :
(क) खुशबू रचने वाले हाथ अत्यंत दयनीय दशा में कई गलियों के बीच और कई गंदे नालों को पार करने के बाद कूड़े-करकट की बदबू के बीच बसी हुई एक गंदी बस्ती में रहते हैं। वहाँ की बदबू से लोगों के सिर फटने लगते हैं, परंतु वे वहीं रहने के लिए विवश हैं।
(ख) कविता में छह तरह के हाथों की चर्चा हुई है जो बच्चों, जवानों और बूढ़ों के हैं। ये हाथ हैं- उभरी नसों वाले हाथ घिसे नाखूनों वाले हाथ, पीपल के पत्ते से नए-नए हाथ, जूही की डाल – से खुशबूदार हाथ, गंदे कटे-पिटे हाथ और ज़ख्म से फटे हुए हाथ।
(ग) कवि ने यह इसलिए कहा है क्योंकि ये लोग गंदगी तथा बदबू बस्ती में रहते हुए भी अपने हाथों से खुशबूदार अगरबत्तियाँ बनाते हैं।
(घ) जहाँ अगरबत्तियाँ बनती हैं वहाँ का माहौल सारी दुनिया की गंदगी और बदबू से भरा हुआ होता है।
(ङ) इस कविता को लिखने का मुख्य उद्देश्य अगरबत्तियाँ बनाने वालों की दयनीय दशा का चित्रण करते हुए यह बताना है कि खुशबू बनाने वाले स्वयं किस प्रकार नारकीय जीवन जीने को अभिशप्त हैं। समाज को उनके लिए भी कुछ करना चाहिए।
प्रश्न 2.
व्याख्या कीजिए –
(क) (i) पीपल के पत्ते – से नए-नए हाथ
जूही की डाल – से खुशबूदार हाथ
(ii) दुनिया की सारी गंदगी के बीच
दुनिया की सारी खुशबू
रचते रहते हैं हाथ
(ख) कवि ने इस कविता में ‘बहुवचन’ का प्रयोग अधिक किया है। इसका क्या कारण है ?
(ग) कवि ने हाथों के लिए कौन-कौन से विशेषणों का प्रयोग किया है ?
उत्तर :
(क) उत्तर के लिए व्याख्या भाग देखिए।
(ख) कवि ने मेहनत करने वाले निर्धन लोगों, उनकी बस्तियों, टोलों, अगरबत्तियों आदि का वर्णन इस कविता में किया है जो देश की बड़ी जनसंख्या और परिवेश का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए कवि ने ‘बहुवचन’ का प्रयोग अधिक किया है।
(ग) कवि ने हाथों के लिए जिन विशेषणों का प्रयोग किया है, वे हैं – उभरी नसों वाले, घिसे नाखुनों वाले, पीपल के पत्ते से नए-नए, जूही की डाल से खुशबूदार, गंदे कटे-पिटे, जख्म से फटे हुए।
योग्यता-विस्तार –
प्रश्न :
अगरबत्ती बनाना, माचिस बनाना, मोमबत्ती बनाना, लिफाफ़े बनाना, पापड़ बनाना, मसाले कूटना आदि लघु उद्योगों के विषय में जानकारी एकत्रित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
JAC Class 9 Hindi नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
‘नए इलाके में’ कविता में नगरीय बोध को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जनसंख्या बढ़ती जा रही है। नगरों की ज़मीन कम पड़ती जा रही है और ये गाँवों की ओर पसरते जा रहे हैं। गाँवों-कस्बों में अपनेपन की भावना अधिक होती है। सबकी अपनी एक पहचान होती है लेकिन जब वहाँ नगर फैल जाते हैं तब सब अपनी पहचान खो देते हैं। सारा वातावरण ही अनजाना-सा लगने लगता है। स्थान भी पराया और लोग भी पराये। कोई किसी को नहीं पहचानता। पड़ोसी को पड़ोसी का पता नहीं तो भला किसी पराये का क्या पता होगा। सब अपने आप में सिमटे हुए होते हैं। कोई पराया आदमी तो वहाँ पहुँचकर बेहाल – सा हो जाता है।
प्रश्न 2.
‘खुशबू रचते हैं हाथ’ में निहित विडंबना को प्रकट कीजिए।
उत्तर :
अगरबत्ती बनाने वाले नगरों, कस्बों और बस्तियों से दूर गंदे स्थानों पर रहकर तरह-तरह की सुगंधियों से युक्त अगरबत्तियाँ बनाते हैं। स्वयं को इन असहायों से अलग रखने वाले तथाकथित सभ्य जब अगरबत्तियाँ जलाते हैं, परमात्मा को प्रसन्न करने की कामना करते हैं या अपने परिवेश को सुवासित करते हैं तब वे एक बार भी नहीं सोचते कि इन्हें बनाने वाले कौन हैं? कैसे हैं? वे किस हालत में रहते हैं ?
प्रश्न 3.
कवि नए इलाकों में अपना रास्ता क्यों भूल जाता है ?
उत्तर :
कवि नए बस रहे इलाकों की बात करता है जहाँ प्रतिदिन नई इमारतें बनती दिख रही हैं। इससे कवि अपना पुराना रास्ता भूल जाता है क्योंकि इन नए इलाकों में उसके मंजिल तक पहुँचाने के लिए बनाए गए निशान खो गए हैं। नया रास्ता उसे समझ में नहीं आता है, इसलिए वह रास्ता भूल जाता है।
प्रश्न 4.
कवि किसके माध्यम से जीवन के किस रहस्य की ओर संकेत कर रहा है ?
उत्तर :
कवि नए बसते इलाकों के माध्यम से जीवन और संसार में परिवर्तनशीलता के नियम की बात कर रहा है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। संसार में प्रत्येक वस्तु परिवर्तनशील है। जो पहले था अब वह वैसा नहीं है और जो अब है, वह वैसा नहीं रहेगा। परिवर्तन ही जीवन का नाम है।
प्रश्न 5.
कवि को अपनी स्मृतियों पर भरोसा क्यों नहीं रहा है ?
उत्तर :
कवि को अपनी स्मृतियों पर भरोसा इसलिए नहीं रहा है क्योंकि जीवन में हर पल पुराना नए रूप में बदल रहा है। वर्षों पहले की पहचान अब धोखा देने लगी थी। नया बनने के कारण पुराने पहचान चिह्न व्यर्थ सिद्ध होने लगे हैं। उसे मुड़ना कहीं और होता है और मुड़ कहीं और जाता है। रात-दिन बनती-गिरती इमारतों ने उसकी यादों को धोखे में डाल दिया है।
प्रश्न 6.
कवि परिवर्तन से परेशान क्यों है ?
उत्तर :
कवि परिवर्तन और अपनी स्मृतियों से परेशान है। उसके पास समय कम है। परिवर्तन के कारण उसे कोई पहचानता नहीं है और वह किसी को पहचान नहीं पा रहा है। आकाश से पानी बरसने को तैयार है। वह सोच रहा है कि कोई उसे पहचान ले, पुकार ले और वह उस नए इलाके में फिर पुरानी पहचान प्राप्त कर ले।
प्रश्न 7.
‘खुशबू रचने वाले हाथ’ किस जगह रहते हैं ?
उत्तर :
‘खुशबू रचने वाले हाथ’ दुनिया को खुशबू देने के लिए अगरबत्तियाँ बनाते हैं। ये लोग दूसरों को खुशबू देकर स्वयं गंदगी में रहते हैं। इनके घर छोटी-छोटी बस्तियों में होते हैं। वहाँ कूड़े-करकट का ढेर लगा रहता है। इनके घरों के पास गंदे – बदबूदार नाले गुज़रते हैं।
प्रश्न 8.
अगरबत्तियाँ बनाने में कैसे-कैसे लोग काम करते हैं ?
उत्तर :
अगरबत्तियाँ बनाने में छोटे-बड़े और जवान सभी प्रकार के लोग लगे रहते हैं। कवि ने हाथों की पहचान के माध्यम से उन लोगों का वर्णन किया है। जैसे ‘पीपल के नए-नए पत्ते से हाथ’ अभिप्राय छोटे बच्चों के सुकोमल हाथ से है जो अगरबत्ती बनाने का काम करते हैं। नवयुवतियों के हाथों को जुही की डाल कहा है। बूढ़े लोगों के हाथ गंदे, कटे-पिटे और जख्मों से फटे हुए हैं।
नए इलाके में … खुशबू रचते हैं हाथ Summary in Hindi
कवि-परिचय :
जीवन-परिचय – अरुण कमल का जन्म 15 फरवरी, सन् 1954 ई० को बिहार के रोहतास जिले के नासरीगंज में हुआ था। अपनी शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् वे पटना विश्वविद्यालय में प्राध्यापक नियुक्त हो गए। इन्हें अध्ययन-अध्यापन के अतिरिक्त काव्य लेखन तथा अनुवाद कार्य में विशेष रुचि है। इन्हें साहित्य अकादमी तथा अन्य कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
रचनाएँ – अरुण कमल की काव्य रचनाएँ हैं – अपनी केवल धार, सबूत, नए इलाके में और पुतली में संसार। ‘कविता और समय इनकी आलोचनात्मक रचना है। इन्होंने ‘मायकोव्यस्की की आत्मकथा’ और ‘जंगल बुक’ का भी हिंदी में अनुवाद किया है तथा हिंदी के युवा कवियों की कविताओं का ‘वॉयसेज़’ नाम से अंग्रेज़ी में अनुवाद किया है।
काव्य की विशेषताएँ – अरुण कमल की कविताओं का मुख्य स्वर आम आदमी के जीवन की विभिन्न विसंगतियों को यथार्थ के धरातल पर प्रस्तुत करना है। इनकी रचनाओं में वर्तमान अव्यवस्था के विरुद्ध तीव्र आक्रोश का स्वर सुनाई देता है। इनकी कामना है कि समाज में मानवीय मूल्यों पर आधारित व्यवस्था का निर्माण हो। इनकी काव्य-भाषा अत्यंत सहज तथा व्यावहारिक खड़ी बोली है, जिसमें देशज शब्दों का सुंदर प्रयोग हुआ है।
कविताओं का सार :
1. नए इलाके में –
अरुण कमल द्वारा रचित कविता ‘नए इलाके में इस तथ्य की ओर संकेत करती है कि जीवन में सब कुछ परिवर्तनशील है। कवि नए बसते हुए क्षेत्रों में जाकर अक्सर रास्ता भूल जाता है क्योंकि वहाँ प्रतिदिन कोई-न-कोई नया मकान बन जाता है। वह उन निशानियों को ढूँढ़ता रह जाता है जिनके सहारे उसने अपनी मंजिल पर जाना था। प्रतिदिन बदलने वाले इस क्षेत्र में उसकी स्मृतियाँ भी उसे धोखा दे जाती हैं और वह जहाँ जाना चाहता है उससे दो घर आगे या पीछे पहुँच जाता है। उसे लगता है कि अब तो हर घर का दरवाजा खटखटा कर पूछना पड़ेगा कि क्या यही वह घर है जहाँ उसने जाना था अथवा कोई उसे पहचान कर ही पुकार लेगा कि इधर आओ, तुमने यहाँ आना था।
2. खुशबू रचते हैं हाथ –
‘खुशबू रचते हैं हाथ’ कविता में अरुण कमल ने समाज में व्याप्त विसंगतियों का चित्रण करते हुए बताया है कि जो लोग समाज को सुंदर बना रहे हैं, समाज उन्हें ही अभाव और गंदगी में जीवन व्यतीत करने के लिए विवश कर रहा है। ये लोग सुगंधित अगरबत्तियाँ बनाते हैं परंतु इन्हें अपना जीवन नारकीय स्थितियों में व्यतीत करना पड़ता है। इनके घर के आस-पास कूड़े-करकट के ढेर लगे हुए हैं। नालियों से बदबू आती रहती है। मेहनत कर-करके इनके शरीर कमज़ोर हो गए हैं। दुनिया की सारी गंदगी के बीच में रहकर भी ये लोग दुनियावालों के लिए सुगंधित अगरबत्तियाँ बनाते रहते हैं।
व्याख्या :
(क) नए इलाके में –
1. इन नए बसते इलाकों में
जहाँ रोज़ बन रहे हैं नए-नए मकान
मैं अकसर रास्ता भूल जाता हूँ
धोखा दे जाते हैं पुराने निशान
खोजता हूँ ताकता पीपल का पेड़
खोजता हूँ ढहा हुआ घर
और ज़मीन का खाली टुकड़ा जहाँ से बाएँ
मुड़ना था मुझे
फिर दो मकान बाद बिना रंगवाले लोहे के फाटक का
घर था इक मंज़िला
और मैं हर बार एक घर पीछे
चल देता हूँ
या दो घर आगे ठकमकाता
शब्दार्थ : इलाका – क्षेत्र। ताकता – देखता। ढहा – गिरा हुआ। ठकमकाता – धीरे-धीरे, डगमगाते हुए।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ अरुण कमल द्वारा रचित कविता ‘नए इलाके में’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने नई बसने वाली बस्तियों में प्रतिदिन होने वाले परिवर्तनों के आधार पर यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है।
व्याख्या : कवि कहता है कि जब भी मैं इस नई बस्ती में आता हूँ, प्रायः रास्ता भूल जाता हूँ। जिन निशानियों के आधार पर मुझे अपनी मंजिल पर जाना होता है वे पुराने निशान मिट चुके होते हैं, क्योंकि रोज नए-नए मकान बन जाते हैं और बस्ती का नक्शा बदल जाता है। वहाँ मैं पीपल का पेड़ और पुराना गिरा हुआ मकान ढूँढ़ता हूँ। वहीं एक खाली ज़मीन के टुकड़े के पास से मुझे मुड़ना था पर वह भी मुझे नहीं दिखाई देता। जिस घर में मुझे जाना था वह वहाँ दो मकान बाद बिना रंगवाले लोहे के फाटक का इक मंजिला मकान था। पर जब वहाँ ऐसा कुछ नहीं दिखाई देता तो मैं अपने आप को उस मकान से एक घर पीछे या उस मकान से दो घर आगे डगमगाते हुए चलता अनुभव करता हूँ।
2. यहाँ रोज़ कुछ बन रहा है
रोज़ कुछ घट रहा है
यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं
एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया
जैसे वसंत का गया पतझड़ को लौटा हूँ
जैसे बैसाख का गया भादों को लौटा हूँ
अब यही है उपाय कि हर दरवाज़ा खटखटाओ
और पूछो – क्या यही है वो घर ?
समय बहुत कम है तुम्हारे पास
आ चला पानी ढहा आ रहा अकास
शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देखकर।
शब्दार्थ : स्मृति याद। अकास आकाश।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ अरुण कमल द्वारा रचित कविता ‘नए इलाके में’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने नई बनती हुई बस्तियों की परिवर्तनशीलता पर विचार करते हुए स्पष्ट किया है कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं होता, निरंतर परिवर्तन होता रहता है।
व्याख्या : कवि कहता है कि नई बनने वाली बस्तियों में प्रतिदिन कुछ-न-कुछ नया बनता रहता है तथा पुराना कम होता जाता है। यहाँ पुरानी यादों के सहारे कुछ नहीं ढूँढ़ा जा सकता क्योंकि यहाँ होने वाले नव-निर्माण के कारण पुरानी निशानियाँ मिट जाती हैं। जैसे वसंत में कहीं गया व्यक्ति पतझड़ में लौटकर आए हो अथवा बैसाख का गया भादों में लौटे तो उसे सब कुछ बदला-बदला नज़र आता है। इसलिए सही मकान तलाश करने का अब तो केवल यही उपाय है कि हर घर का दरवाज़ा खटखटाकर पूछा जाए कि क्या यह वही घर है जहाँ उसको जाना है ? कवि को लगता है कि आकाश में बादल घिर आए हैं तथा वर्षा होने वाली है। लगता है कि कोई उसे पहचानकर पुकार लेगा कि इधर आ जाओ, यहीं तुम्हें आना था।
(ख) खुशबू रचते हैं हाथ –
1. कई गलियों के बीच
कई नालों के पार
कूड़े-करकट
के ढेरों के बाद
बदबू से फटते जाते इस
टोले के अंदर
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।
शब्दार्थ : टोले – बस्ती। खुशबू – सुगंध। रचते – बनते।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ अरुण कमल द्वारा रचित कविता ‘खुशबू रचते हैं हाथ’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने अगरबत्तियाँ बनाने वालों की दयनीय दशा का मार्मिक चित्रण किया है।
व्याख्या : इन पंक्तियों में कवि बताता है कि सुगंधित अगरबत्तियाँ बनाने वाले कैसे गंदे वातावरण में रहते हैं। कवि कहता है कि कई गलियों के बीच तथा कई गंदे नालों के पार कूड़े-करकट के ढेरों की बदबू से सने हुए वातावरण की एक बस्ती के अंदर रहने वाले लोग अपने हाथों से खुशबूदार अगरबत्तियाँ बनाते हैं।
2. उभरी नसोंवाले हाथ
घिसे नाखूनोंवाले हाथ
पीपल के पत्ते से नए-नए हाथ
जूही की डाल – से खुशबूदार हाथ
गंदे कटे-पिटे हाथ
जख़्म से फटे हुए हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।
शब्दार्थ : खुशबूदार – सुगंध से युक्त। जख़्म – घाव, चोट।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ अरुण कमल द्वारा रचित कविता ‘खुशबू रचते हैं हाथ’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने अगरबत्तियाँ बनाने वालों की दयनीय दशा का मार्मिक चित्रण किया है।
व्याख्या : कवि अगरबत्तियाँ बनाने वालों की दशा का वर्णन करते हुए लिखता है कि इनमें से कई लोगों के काम करने से हाथों की नसें उभर आई हैं तो कुछ के हाथों के नाखून घिस गए हैं। कुछ कोमल पीपल के पत्ते से हाथों वाले बच्चे हैं जो यह काम कर रहे हैं। कुछ यौवन से संपन्न युवतियाँ भी यही कार्य कर रही हैं जिनके हाथ जूही की डाल जैसे सुगंधित हैं। बूढ़े भी अपने गंदे और कटे-पिटे हाथों से यही कार्य करते हैं तथा घायल हाथों से भी लोगों को यही काम करना पड़ रहा है। ये सभी खुशबूदार अगरबत्तियाँ बनाते हैं।
3. यहीं इस गली में बनती हैं
मुल्क की
मशहूर अगरबत्तियाँ
इन्हीं गंदे मुहल्लों के गंदे लोग
बनाते हैं केवड़ा गुलाब खस और रातरानी
अगरबत्तियाँ
दुनिया की सारी गंदगी के बीच
दुनिया की सारी
खुशबू रचते रहते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।
शब्दार्थ : मुल्क – देश मशहूर प्रसिद्ध। रचना – बनाना।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ अरुण कमल द्वारा रचित कविता ‘खुशबू रचते हैं हाथ’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने अगरबत्तियाँ बनाने वालों की दयनीय दशा का मार्मिक चित्रण किया है।
व्याख्या : कवि कहता है कि ऐसे ही गंदे वातावरण तथा बदबूदार गलियों में देश की प्रसिद्ध सुगंधित अगरबत्तियाँ बनती हैं। इन्हीं गंदे मुहल्लों में रहने वाले गंदे लोग केवड़ा, गुलाब, खस और रात की रानी की सुगंध वाली अगरबत्तियाँ बनाते हैं। ये लोग दुनिया की सबसे गंदी बस्तियों में रहकर अपने हाथों से दुनिया के लिए सुगंध से युक्त अगरबत्तियाँ बनाते हैं।