Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन
JAC Class 9 Hindi वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन Textbook Questions and Answers
मौखिक –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –
प्रश्न 1.
रामन भावुक प्रकृति-प्रेमी के अलावा और क्या थे ?
उत्तर :
रामन भावुक प्रकृति-प्रेमी के अतिरिक्त एक जिज्ञासु वैज्ञानिक भी थे।
प्रश्न 2.
समुद्र को देखकर रामन के मन में कौन-सी दो जिज्ञासाएँ उठीं ?
उत्तर :
समुद्र को देखकर रामन के मन में दो जिज्ञासाएँ उठीं कि समुद्र का रंग नीला क्यों होता है और समुद्र का रंग कोई दूसरा क्यों नहीं होता।
प्रश्न 3.
रामन के पिता ने उनमें किन विषयों की सशक्त नींव डाली ?
उत्तर :
रामन के पिता ने उनमें गणित और भौतिकी विषयों की सशक्त नींव डाली थी।
प्रश्न 4.
वाद्ययंत्रों की ध्वनियों के अध्ययन के द्वारा रामन क्या करना चाहते थे ?
उत्तर :
वाद्ययंत्रों की ध्वनियों के अध्ययन के द्वारा रामन उनकी ध्वनियों के पीछे छिपे वैज्ञानिक रहस्यों की परतें खोलना चाहते थे।
प्रश्न 5.
सरकारी नौकरी छोड़ने के पीछे रामन की क्या भावना थी ?
उत्तर :
रामन ने सरकारी नौकरी इसलिए छोड़ दी थी क्योंकि वे मानते थे कि सरस्वती की साधना सरकारी नौकरी की सुख-सुविधाओं से अधिक महत्त्वपूर्ण है।
प्रश्न 6.
‘रामन प्रभाव’ की खोज के पीछे कौन-सा सवाल हिलोरें ले रहा था ?
उत्तर :
‘रामन प्रभाव’ की खोज के पीछे समुद्र के नीले रंग की वजह का सवाल हिलोरें ले रहा था।
प्रश्न 7.
प्रकाश – तरंगों के बारे में आइंस्टाइन ने क्या बताया ?
उत्तर :
आइंस्टाइन के अनुसार प्रकाश – तरंगें प्रकाश के अति सूक्ष्म कणों की तीव्र धारा के समान हैं।
प्रश्न 8.
रामन की खोज ने किन अध्ययनों को सहज बनाया ?
उत्तर :
रामन की खोज ने पदार्थों की आण्विक और परमाण्विक संरचना के अध्ययनों को सहज बनाया।
लिखित –
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –
प्रश्न 1.
कॉलेज के दिनों में रामन की दिली इच्छा क्या थी ?
उत्तर :
चपन से ही वैज्ञानिक रहस्यों को सुलझाने में लगे रहते थे। अपने कॉलेज के दिनों में उन्होंने शोधकार्यों में दिलचस्पी लेना प्रारंभ कर दिया था। उन्हीं दिनों उनका एक शोध – आलेख ‘फिलॉसॉफिकल’ मैगज़ीन में प्रकाशित भी हुआ था। उनकी दिली इच्छा यह थी कि वे अपना सारा जीवन शोधकार्य में लगा दें, किंतु उन दिनों इस कार्य को पूर्णकालिक व्यवसाय के रूप में अपनाने की कोई व्यवस्था नहीं थी।
प्रश्न 2.
वाद्ययंत्रों पर की गई खोजों से रामन ने कौन-सी भ्रांति तोड़ने की कोशिश की ?
उत्तर :
वाद्ययंत्रों की ध्वनियों पर किए जा रहे अपने शोधकार्यों में रामन ने वायलिन, चैलो, पियानो जैसे विदेशी वाद्यों के साथ ही वीणा, तानपूरा, मृदंगम् जैसे देशी वाद्यों पर भी काम किया था। उन्होंने वैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर पश्चिमी देशों की इस भ्रांति को भी तोड़ने की कोशिश की थी कि भारतीय वाद्ययंत्र विदेशी वाद्यों की तुलना में घटिया हैं।
प्रश्न 3.
रामन के लिए नौकरी संबंधी कौन-सा निर्णय कठिन था ?
उत्तर :
रामन के लिए सरकारी नौकरी छोड़कर कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर का पद स्वीकार करने का निर्णय लेना कठिन था। उन दिनों वे अत्यंत प्रतिष्ठित सरकारी पद पर थे। उन्हें अच्छा वेतन और अनेक सरकारी सुविधाएँ प्राप्त थीं। उन्हें नौकरी करते हुए भी दस साल हो चुके थे।
प्रश्न 4.
सर चंद्रशेखर वेंकट रामन को समय-समय पर किन-किन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया ?
उत्तर :
रामन को ‘रामन प्रभाव’ की खोज पर सन् 1924 ई० में रॉयल सोसायटी की सदस्यता से सम्मानित किया गया। सन् 1929 ई० में उन्हें ‘सर’ की उपाधि प्रदान की गई। सन् 1930 ई० में उन्हें भौतिकी में नोबेल पुरस्कार मिला। सन् 1954 ई० में इन्हें ‘भारत रत्न’ प्रदान किया गया। इन्हें रोम का मेत्यूसी पदक, रॉयल सोसाइटी का ह्यूज़ पदक, फ़िलाडेल्फ़िया इंस्टीट्यूट का फ्रैंकलिन पदक और सोवियत रूस का अंतर्राष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार भी मिला था।
प्रश्न 5.
‘रामन को मिलनेवाले पुरस्कारों ने भारतीय चेतना को जागृत किया।’ ऐसा क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :
रामन नोबेल पुरस्कार प्राप्त करनेवाले पहले भारतीय वैज्ञानिक थे। उन्हें अन्य पदक और पुरस्कार तब मिले थे जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था। उन्हें मिलनेवाले सम्मानों ने भारत को एक नया आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास दिया था। उनसे प्रेरणा प्राप्त कर अन्य भारतीय वैज्ञानिकों ने भी अलग-अलग क्षेत्रों में शोधकार्य प्रारंभ कर दिए थे। इस प्रकार उन्हें मिलनेवाले पुरस्कारों ने भारतीय चेतना को जागृत कर दिया था।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –
प्रश्न 1.
रामन के प्रारंभिक शोधकार्य को आधुनिक हठयोग क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
रामन कोलकाता में सरकारी नौकरी करते थे। इन दिनों भी उनकी वैज्ञानिक शोधकार्यों में रुचि बनी हुई थी। वे अपने कार्यालय से लौटते हुए बहू बाज़ार में स्थित डॉक्टर महेंद्र लाल द्वारा स्थापित ‘इंडियन एसोसिएशन फ़ॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस’ की प्रयोगशाला में उपलब्ध उपकरणों की सहायता से अपना शोधकार्य करते थे। उनका यह कार्य वास्तव में आधुनिक हठयोग का उदाहरण था जिसमें एक साधक अपने कार्यालय में कठिन परिश्रम करने के बाद बहू बाज़ार की साधारण – सी प्रयोगशाला में काम चलाऊ उपकरणों की सहायता से और अपनी प्रबल इच्छा-शक्ति के बल पर भौतिक विज्ञान को समृद्ध बनाने का प्रयास करता था।
प्रश्न 2.
रामन की खोज ‘रामन प्रभाव’ क्या है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
रामन ने अनेक ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया था। इसी के परिणाम को ‘रामन प्रभाव’ कहा गया है। इसके अनुसार जब एकवर्णीय प्रकाश की किरण किसी तरल या ठोस रवेदार पदार्थ से गुज़रती है तो गुज़रने के बाद उसके वर्ण में परिवर्तन आता है। इसका कारण यह होता है कि एकवर्णीय प्रकाश की किरण के फोटॉन जब तरल या ठोस रवे से गुज़रते हैं तो इनके अणुओं से टकराते हैं। इस कारण वे या तो ऊर्जा का कुछ अंश खो देते हैं या पा जाते हैं। दोनों ही स्थितियों में प्रकाश के वर्ण अथवा रंग में बदलाव आता है। एकवर्णीय प्रकाश की किरणों में सबसे अधिक ऊर्जा बैंगनी रंग के प्रकाश में होती है। इसके बाद नीले, आसमानी, हरे, पीले, नारंगी और लाल वर्ण आते हैं। एकवर्णीय प्रकाश-तरल या ठोस रवों से गुज़रते हुए जिस परिणाम में ऊर्जा खोता या पाता है, उसी हिसाब से उसका वर्ण परिवर्तित होता है।
प्रश्न 3.
‘रामन प्रभाव’ की खोज से विज्ञान के क्षेत्र में कौन-कौन से कार्य संभव हो सके ?
उत्तर :
‘रामन प्रभाव’ की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी। इससे प्रकाश की प्रकृति के संबंध में आइंस्टाइन ने जो कहा था उसका प्रायोगिक प्रमाण मिल गया क्योंकि एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन प्रकाश की किरण का तीव्रगामी सूक्ष्म कणों के प्रवाह के रूप में व्यवहार करती है। ‘रामन प्रभाव’ से पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना के अध्ययन में सहायता मिलती है। इस तकनीक द्वारा एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन के आधार पर पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की संरचना की सही जानकारी मिल जाती है। इससे पदार्थों का संश्लेषण प्रयोगशाला में करना तथा अनेक उपयोगी पदार्थों का कृत्रिम रूप से निर्माण भी संभव हो गया है।
प्रश्न 4.
देश को वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन प्रदान करने में सर चंद्रशेखर वेंकट रामन के महत्त्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
रामन केवल व्यक्तिगत प्रयोगों एवं वैज्ञानिक शोध-पत्र लेखन तक ही सीमित नहीं थे। उन्हें अपने भारतीय होने पर गर्व था। उनमें निहित राष्ट्रीय चेतना ने उन्हें देश में वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन के विकास की प्रेरणा दी। उन्हें स्मरण था कि किस प्रकार काम चलाऊ उपकरणों से वे बहू बाज़ार की प्रयोगशाला में वैज्ञानिक अनुसंधान में लगे रहते थे। इसलिए उन्होंने एक अत्यंत उन्नत प्रयोगशाला और शोध-संस्थान ‘रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट’ के नाम से बंगलौर में स्थापित की। उन्होंने भौतिक शास्त्र में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए ‘इंडियन जनरल ऑफ़ फीज़िक्स’ निकाला तथा ‘करेंट साइंस’ नामक पत्रिका का संपादन किया। उन्होंने अनेक शोधार्थियों का मार्गदर्शन भी किया था।
प्रश्न 5.
सर चंद्रशेखर वेंकट रामन के जीवन से प्राप्त होनेवाले संदेश को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
सर चंद्रशेखर वेंकट रामन के जीवन से हमें यह संदेश मिलता है कि मनुष्य अपने जीवन में जो करना चाहता है वह उसे कर सकता है यदि उसमें उस कार्य को करने की लगन तथा इच्छा हो। रामन की शोधकार्य में इच्छा थी परंतु उन्हें एम० ए० करने के बाद वित्त विभाग में सरकारी नौकरी करनी पड़ी। इससे वे विचलित नहीं हुए बल्कि समय निकालकर सामान्य – सी प्रयोगशाला में अपने शोध करते रहे।
जब उन्हें कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर की नौकरी मिली तो वे सरकारी सुख-सुविधाएँ छोड़कर प्रोफ़ेसर की कम सुविधाओं और वेतनवाली नौकरी करने लगे क्योंकि यहाँ पढ़ने-लिखने और शोधकार्य की सुविधा थी। उनकी इसी दूर – दृष्टि ने उन्हें विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक बना दिया। रामन के जीवन से हमें यह भी शिक्षा लेनी चाहिए कि हम अपने आस-पास घट रही विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं की छानबीन एक वैज्ञानिक दृष्टि से करें तो हम प्रकृति के अनेक रहस्यों का उद्घाटन रामन की तरह कर सकते हैं।
(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –
प्रश्न 1.
उनके लिए सरस्वती की साधना सरकारी सुख-सुविधाओं से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण थी।
उत्तर :
रामन कोलकाता के सरकारी वित्त विभाग में अच्छे वेतन और सुख-सुविधाओं वाली नौकरी करते थे। उन्हीं दिनों कोलकाता विश्वविद्यालय में एक प्रोफ़ेसर की आवश्यकता थी। सुप्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री सर आशुतोष मुखर्जी रामन की प्रतिभा तथा वैज्ञानिक रुचि से परिचित थे। उन्होंने रामन को विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर का पद स्वीकार करने के लिए कहा। सुख-सुविधाओं और अच्छे वेतन की सरकारी नौकरी छोड़कर कम वेतन और कम सुविधाओं वाली विश्वविद्यालय की नौकरी स्वीकार करना रामन के लिए हिम्मत का काम था। उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देकर विश्वविद्यालय की नौकरी स्वीकार कर ली क्योंकि वे मानते थे कि सरस्वती की साधना करना सरकारी सुख-सुविधाओं को भोगने से कहीं अधिक श्रेष्ठ है। इस प्रकार वे अध्ययन, अध्यापन और शोधकार्य में लग गए।
प्रश्न 2.
हमारे पास ऐसी न जाने कितनी ही चीजें बिखरी पड़ी हैं, जो अपने पात्र की तलाश में हैं।
उत्तर :
रामन चाहते थे कि प्रत्येक व्यक्ति अपने आसपास घट रही विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं की छानबीन एक वैज्ञानिक दृष्टि से करे। हमारे आसपास प्रकृति में अनेक ऐसी चीजें हैं, जिन्हें यदि हम ध्यान से देखें तो वे हमें अपनी ओर आकर्षित करती हैं और हमसे कहती हैं कि हमारे रहस्य को उद्घाटित करो। कोई रामन जैसा शोधार्थी ही प्रकृति के अज्ञात रहस्यों से परदा उठा सकता है।
प्रश्न 3.
यह अपने-आप में एक आधुनिक हठयोग का उदाहरण था।
उत्तर :
प्राचीनकाल में योगी अनेक कठिन साधनाओं के द्वारा हठयोग का अभ्यास करते थे परंतु रामन ने अच्छे वेतन और सुख-सुविधाओं से युक्त सरकारी नौकरी होते हुए भी अपना वैज्ञानिक शोधकार्य करने के लिए अपने कार्यालय के समय के बाद बहू बाजार की इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस की प्रयोगशाला में जाया करते थे। यहाँ रामन को पर्याप्त उपकरण भी उपलब्ध नहीं होते थे। फिर भी वे अपना शोधकार्य करते रहे। उनका यह कार्य आधुनिक हठयोग का ही उदाहरण है जिसमें एक साधन दफ्तर में कड़ी मेहनत करने के बाद बहू बाजार की सामान्य-सी प्रयोगशाला में अपनी इच्छा-शक्ति के बल पर भौतिक विज्ञान को समृद्ध कर रहा था।
(घ) उपयुक्त शब्द का चयन करते हुए रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
प्रश्न :
इंफ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी, इंडियन एसोसिएशन फ़ार द कल्टिवेशन ऑफ़ साइंस, फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन, भौतिकी, रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट
1. रामन का पहला शोध – पत्र …………………….. में प्रकाशित हुआ था।
2. रामन की खोज …………………. के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी।
3. कोलकाता की मामूली सी प्रयोगशाला का नाम ……………… था।
4. रामन द्वारा स्थापित शोध संस्थान …………………….. नाम से जानी जाती है
5. पहले पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन करने के लिए …………. का सहारा लिया जाता था।
उत्तर :
1. रामन का पहला शोध – पत्र फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन में प्रकाशित हुआ था।
2. रामन की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी।
3. कोलकाता की मामूली-सी प्रयोगशाला का नाम इंडियन एसोसिएशन फ़ॉर द कल्टिवेशन ऑफ़ साइंस था।
4. रामन द्वारा स्थापित शोध संस्थान रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट नाम से जानी जाती है।
5. पहले पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन करने के लिए इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाता था।
भाषा-अध्ययन –
प्रश्न 1.
नीचे कुछ समानदर्शी शब्द दिए जा रहे हैं जिनका अपने वाक्य में इस प्रकार प्रयोग करें कि उनके अर्थ का अंतर स्पष्ट हो सके।
(क) प्रमाण, (ख) प्रणाम, (ग) धारणा, (घ) धारण, (ङ) पूर्ववर्ती, (च) परवर्ती, (छ) परिवर्तन, (ज) प्रवर्तन
उत्तर :
(क) प्रमाण – इस बात का क्या प्रमाण है कि आप चौदह वर्ष के हैं ?
(ख) प्रणाम – राजेश सुबह उठकर अपने माता – पिता को प्रणाम करता है।
(ग) धारणा – अध्यापिका की सुमन के संबंध में अच्छी धारणा नहीं है।
(घ) धारण – राजा ने सुंदर मुकुट धारण किया हुआ है
(ङ) पूर्ववर्ती – इंदिरा गांधी से पूर्ववर्ती भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे।
(च) परवर्ती – हुमायूँ से परवर्ती मुग़ल सम्राट अकबर था।
(छ) परिवर्तन – प्रकृति में प्रतिपल परिवर्तन होता रहता है।
(ज) प्रवर्तन – हिंदी साहित्य में छायावाद का प्रवर्तन जयशंकर प्रसाद ने किया था।
प्रश्न 2.
रेखांकित शब्द के विलोम शब्द का प्रयोग करते हुए रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए –
उत्तर :
(क) मोहन के पिता मन से सशक्त होते हुए भी तन से अशक्त हैं।
(ख) अस्पताल के अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी रूप से नौकरी दे दी गई है।
(ग) रामन ने अनेक ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया।
(घ) आज बाज़ार में देशी और विदेशी दोनों प्रकार के खिलौने उपलब्ध हैं।
(ङ) सागर की लहरों का आकर्षण उसके विनाशकारी रूप को देखने के बाद अपकर्षण में परिवर्तित हो जाता है।
प्रश्न 3.
नीचे दिए उदाहरण में रेखांकित अंश में शब्द-युग्म का प्रयोग हुआ है-
उदाहरण: चाऊतान को गाने-बजाने में आनंद आता है।
उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित शब्द-युग्मों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
सुख-सुविधा, अच्छा-खासा, प्रचार- प्रसार, आस-पास
उत्तर :
सुख-सुविधा – रामन ने सरस्वती की साधना के लिए सुख-सुविधा त्याग दी।
अच्छा-खासा – सुंदरम अच्छा-खासा कमाता है, फिर भी उधार माँगता रहता है।
प्रचार-प्रसार – किसी भी उत्पाद का प्रचार-प्रसार दूरदर्शन के माध्यम से शीघ्र हो जाता है।
आस-पास – मीनाक्षी और कुंदा का घर आस- पास है।
प्रश्न 4.
प्रस्तुत पाठ में आए अनुस्वार और अनुनासिक शब्दों को निम्नलिखित तालिका में लिखिए –
उत्तर :
अनुस्वार – अनुनासिक
(क) अंदर – (क) ढूँढ़ते
(ख) अंक – (ख) ऊँचे
(ग) संस्था – (ग) भाँति
(घ) ढंग – (घ) पहुँचता
(ङ) संघर्ष – (ङ) जहाँ
प्रश्न 5.
पाठ में निम्नलिखित विशिष्ट भाषा प्रयोग आए हैं। सामान्य शब्दों में इनका आशय स्पष्ट कीजिए –
घंटों खोए रहते, स्वाभाविक रुझान बनाए रखना, अच्छा-खासा काम किया, हिम्मत का काम था, सटीक जानकारी, काफ़ी ऊँचे अंक हासिल किए, कड़ी मेहनत के बाद खड़ा किया था, मोटी तनख्वाह
उत्तर :
बहुत देर तक सोचते रहते, अपनी पसंद बनाए रखना, बहुत काम किया, आसान काम नहीं था, पूरी और सही जानकारी, बहुत अच्छे अंक प्राप्त किए, बहुत परिश्रम से बनाया था, बहुत अच्छा वेतन
प्रश्न 6.
पाठ के आधार पर मिलान कीजिए –
- नीला – कामचलाऊ
- पिता – रव
- तैनाती – भारतीय वाद्ययंत्र
- उपकरण – वैज्ञानिक रहस्य
- घटिया – समुद्र
- फोटॉन – नींव
- भेदन – कोलकाता
उत्तर :
- नीला – समुद्र
- पिता – नींव
- तैनाती – कोलकाता
- उपकरण – काम चलाऊ
- घटिया – भारतीय वाद्ययंत्र
- फोटॉन – रव
- भेदन – वैज्ञानिक रहस्य।
प्रश्न 7.
पाठ में आए रंगों की सूची बनाइए। इनके अतिरिक्त दस रंगों के नाम और लिखिए। पाठ में आए रंग – बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी और लाल।
उत्तर :
अन्य रंग – गुलाबी, काला, केसरिया, फ़िरोजी, गेहुँआ, सलेटी, बादामी, नसवारी, सफ़ेद, मेंहदी।
प्रश्न 8.
नीचे दिए गए उदाहरण के अनुसार ‘ही’ का प्रयोग करते हुए पाँच वाक्य बनाइए। उदाहरण: उनके ज्ञान की सशक्त नींव उनके पिता ने ही तैयार की थी।
उत्तर :
- रामन ने ही रामन-प्रभाव की खोज की थी।
- हनुमान ने ही लंका में जाकर सीता की खोज की थी।
- इंदु की पिटाई करनेवाली सगीता ही थी।
- भारत ने ही मोहाली में इंग्लैंड की क्रिकेट टीम को हराया था।
- राम ने ही रावण को बाण से मारा था।
योग्यता – विस्तार –
प्रश्न 1.
‘विज्ञान का मानव विकास में योगदान’ विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
प्रश्न 2.
भारत के किन-किन वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार मिला है ? पता लगाइए और लिखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
प्रश्न 3.
न्यूटन के आविष्कार के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
परियोजना कार्य –
प्रश्न 1.
भारत के प्रमुख वैज्ञानिकों की सूची उनके कार्यों / योगदानों के साथ बनाइए।
प्रश्न 2.
भारत के मानचित्र में तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली और कोलकाता की स्थिति दर्शाएँ।
प्रश्न 3.
उत्तर
पिछले बीस-पच्चीस वर्षों में उन वैज्ञानिक खोजों, उपकरणों की सूची बनाइए, जिसने मानव-जीवन बदल दिया है। विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
JAC Class 9 Hindi वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
रामन को ‘रामन प्रभाव’ की खोज की प्रेरणा कैसे मिली ?
उत्तर :
रामन को प्रकृति से बहुत लगाव था। सन् 1921 ई० में समुद्री यात्रा कर रहे थे। वे जहाज़ के डेक पर खड़े होकर नीले सागर को घंटों देखते रहते थे। उन्हें सागर की नील वर्णीय आभा बहुत अच्छी लगती थी। वे सोचने लगे कि समुद्र का रंग नीला ही क्यों होता है ? कोई और रंग क्यों नहीं होता ? रामन अपने मन में उत्पन्न इस प्रश्न का उत्तर ढूँढ़ने में लग गए और उन्होंने ‘रामन-प्रभाव’ की खोज कर ली।
प्रश्न 2.
रामन ने सरकारी नौकरी करते हुए भी शोधकार्य कैसे जारी रखा ?
उत्तर
रामन की हार्दिक इच्छा थी कि वे अपना सारा जीवन शोधकार्यों को समर्पित कर दें, किंतु उन दिनों शोधकार्य को एक व्यवसाय के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं हुई थी। इन दिनों सभी प्रतिभावान विद्यार्थी सरकारी नौकरी करना पसंद करते थे। रामन ने भी कोलकाता में सरकारी वित्त-विभाग में सहायक जनरल अकाउंटेंट की नौकरी कर ली। अपने कार्यालय के बाद वे बहू बाज़ार में डॉक्टर महेंद्र लाल द्वारा स्थापित इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस की प्रयोगशाला में उपलब्ध सामान्य उपकरणों के माध्यम से अपना शोधकार्य करते थे।
प्रश्न 3.
‘रामन की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति है।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
रामन की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति मानी जाती है। उनके ‘रामन प्रभाव’ के कारण ही प्रकाश की प्रकृति के संबंध में आइंस्टाइन के विचारों का प्रायोगिक प्रमाण मिल गया। आइंस्टाइन से पहले के वैज्ञानिक प्रकाश को तरंग के रूप में मानते थे, परंतु आइंस्टाइन ने बताया कि प्रकाश अति सूक्ष्म कणों की तीव्र धारा के समान है। इन अति सूक्ष्म कणों की तुलना आइंस्टाइन ने बुलेट से करते हुए उन्हें फोटॉन नाम दिया था। रामन के प्रयोगों ने आइंस्टाइन की इस धारणा का प्रत्यक्ष प्रमाण दे दिया, क्योंकि एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन स्पष्ट रूप से यह प्रमाणित करता है कि प्रकाश की किरण तीव्रगामी सूक्ष्म कणों के रूप में व्यवहार करती है। रामन की इस खोज के कारण ही पदार्थों की आण्विक एवं परमाण्विक संरचना के अध्ययन के लिए रामन स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाने लगा।
प्रश्न 4.
न्यूटन ने सेब को नीचे गिरते देख किस सिद्धांत की खोज की थी ?
उत्तर :
न्यूटन ने सेब को पेड़ से नीचे गिरते देखा तो उसे लगा कि पृथ्वी में ऐसी कोई शक्ति है जो सेब को नीचे की ओर खींच रही है। इसी रहस्य की खोज करते हुए उसने पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के सिद्धांत की खोज की थी।
प्रश्न 5.
रामन की शिक्षा पर किसका प्रभाव था ? उन्होंने अपनी शिक्षा कहाँ प्राप्त की ?
उत्तर :
रामन के पिता विशाखापत्तनम में गणित और भौतिकी के शिक्षक थे। पिता इन्हें बचपन से गणित और भौतिकी पढ़ाते थे। उन्हीं के कारण रामन की इन दो विषयों में दिलचस्पी बढ़ गई। उनके गणित और भौतिक से सशक्त ज्ञान की नींव उनके पिता ने तैयार की थी। रामन ने कॉलेज की पढ़ाई पहले ए०बी० एन० कॉलेज तिरुचिरापल्ली से और बाद में प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास से की।
प्रश्न 6.
रामन ने विश्वविद्यालय की नौकरी करना क्यों स्वीकर किया ?
उत्तर :
रामन के जीवन की एक इच्छा थी कि वे आजीवन शोधकार्य करते रहे, परंतु उस समय सुयोग्य छात्रों को अच्छी सरकारी नौकरियाँ बहुत जल्दी मिल जाती थीं। इसीलिए उन्होंने सरकारी नौकरी कर ली। जब उन्हें विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर के पद पर कार्य करने का निमंत्रण मिला तो उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इस नौकरी के पीछे उनका एक ही मकसद था कि वे विश्वविद्यालय में पढ़ाते हुए शोधकार्य भी कर सकते थे।
प्रश्न 7.
रामन को भारतीय संस्कृति से कैसा लगाव था ? अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि मिलने के बाद भी रामन का स्वभाव कैसा रहा?
उत्तर :
रामन को सदा ही अपनी भारतीय संस्कृति से बहुत लगाव रहा। वे अपनी भारतीय पहचान को बनाए रखने के लिए दक्षिण भारतीय पहनावा पहनते थे। अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि मिलने के बाद भी रामन के स्वभाव में कोई अंतर नहीं आया था। उनका रहन-सहन साधारण था। वे एक आम दक्षिण भारतीय व्यक्ति के समान रहते थे। वे कट्टर शाकाहारी थे। उन्हें मदिरापान से सख्त परहेज़ था। उनमें किसी भी प्रकार का कोई अहंकार नहीं था।
प्रश्न 8.
एक दीपक से अन्य कई दीपक जल उठते हैं” से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
रामन को अपने आरंभिक दिनों में शोधकार्यों के लिए बहुत अधिक परेशानी उठानी पड़ी थी। इसलिए उन्होंने एक अत्यंत उन्नत प्रयोगशाला और शोध संस्थान की स्थापना बंगलौर में की। उनकी बनाई इस प्रयोगशाला और शोध संस्थान में उनके शोध छात्रों ने काफ़ी अच्छा काम किया और कई छात्र बाद में उच्च पदों पर भी सुशोभित हुए। उनका जीवन एक दीपक के समान था जिसके प्रकाश की किरणों ने पूरे देश को आलोकित और प्रभावित किया।
प्रश्न 9.
रामन के अनुसार प्रकृति हमें क्या संदेश देती है और उसका रहस्यभेदन किस प्रकार किया जा सकता है ?
उत्तर :
रामन के अनुसार प्रकृति हमें यह संदेश देती है कि हम उसका निरीक्षण एक प्रकृति-प्रेमी के रूप में करें और उसमें हो रहे परिवर्तनों के सदस्यों को वैज्ञानिक धरातल पर ढूँढ़ने का प्रयास करें। प्रकृति का रहस्य- भेदन रामन के अनुसार निरंतर कार्य करते हुए किया जा सकता है। इसके लिए हमारे अंदर वैज्ञानिक सूझ-बूझ और जिज्ञासा की प्रवृत्ति होनी चाहिए।
वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन Summary in Hindi
लेखक-परिचय :
जीवन-परिचय- धीरंजन मालवे का जन्म बिहार राज्य के नालंदा जिले के हुँवरावाँ नामक गाँव में 9 मार्च, सन् 1952 ई० को हुआ था। इन्होंने एम० एससी० (सांख्यिकी), एम०बी०ए० तथा एल०एल०बी० तक शिक्षा प्राप्त की है। इन्होंने आकाशवाणी तथा बी०बी०सी० लंदन में कार्य किया है। इन्होंने विज्ञान से संबंधित विभिन्न विषयों का प्रसारण भी किया है। वर्तमान में वे प्रसार भारती से संबंधित हैं।
रचनाएँ – इन्होंने रेडियो विज्ञान पत्रिका ‘ज्ञान-विज्ञान’ का संपादन तथा प्रसारण किया है। इनके द्वारा रचित पुस्तक ‘विश्व – विख्यात भारतीय वैज्ञानिक’ भारतीय वैज्ञानिकों का संक्षिप्त जीवन प्रस्तुत करती है। इन्होंने पर्यावरण से संबंधित एक पुस्तक भी लिखी है।
भाषा-शैली – धीरंजन मालवे ने अपनी रचनाओं में सीधी, सरल और प्रभावशाली भाषा का प्रयोग किया है। विषयानुरूप वैज्ञानिक शब्दावली का भी इन्होंने प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया है। ‘वैज्ञानिक चेतना के वाहकः चंद्रशेखर वेंकट रामन’ पाठ में भी लेखक ने नीलवर्णीय आभा, असंख्य, समक्ष, जिज्ञासा, अतिशयोक्ति, समृद्ध, एकवर्णीय जैसे तत्सम शब्दों के साथ-साथ दौरान, इस्तेमाल, बावजूद, फ़ैसला, दौर जैसे उर्दू के तथा फिलॉसॉफ़िकल, वायलिन, पियानो, फोटॉन, इंफ्रारेड, स्पेक्ट्रोस्कोपी आदि अंग्रेज़ी के शब्दों का प्रयोग भी किया है। इनकी शैली वर्णन प्रधान तथा प्रवाहमयी है, जैसे- पेड़ से सेब गिरते हुए तो लोग सदियों से देखते आ रहे थे, मगर गिरने के पीछे छिपे रहस्य को न्यूटन से पहले और कोई समझ नहीं पाया था। ठीक उसी प्रकार विराट समुद्र की नील वर्णीय आभा को भी असंख्य लोग आदिकाल से देखते आ रहे थे, मगर इस आभा पर पड़े रहस्य के परदे को हटाने के लिए हमारे समक्ष उपस्थित हुए-सर चंद्रशेखर वेंकट रामन। इस प्रकार लेखक की भाषा-शैली सीधी, सरल एवं वैज्ञानिक शब्दावली से युक्त वर्णन प्रधान है।
पाठ का सार :
‘वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रामन’ नामक पाठ में धीरंजन मालवे ने रामन के जीवन और शोधकार्य का संक्षिप्त एवं तथ्यात्मक विवरण प्रस्तुत किया है, जैसे पेड़ से गिरते सेब को देखकर न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत खोज निकाला था, उसी प्रकार से चंद्रशेखर वेंकट रामन ने विराट सागर की नील-वर्णीय आभा देखकर रामन प्रभाव की खोज की थी। सन् 1921 ई० में की गई समुद्री यात्रा ने उन्हें इस ओर प्रेरित किया था।
चंद्रशेखर वेंकट रामन का जन्म 7 नवंबर, सन् 1888 ई० को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली नगर में हुआ था। इनके पिता विशाखापत्तनम में गणित और भौतिकी के शिक्षक थे। इनके पिता ने इन्हें बचपन से ही ये दोनों विषय पढ़ाए। इन्होंने ए०बी०एन० कॉलेज, तिरुचिरापल्ली और प्रेसीडेंसी कॉलेज चेन्नई में शिक्षा प्राप्त की थी। एम० ए० की परीक्षा उन्होंने अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की थी। कॉलेज के दिनों से ही इन्हें शोध कार्यों में रुचि थी। इनका पहला शोध आलेख फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन में प्रकाशित हुआ था।
इन्होंने कोलकाता में सरकारी वित्त विभाग में सहायक जनरल अकाउंटेंट के रूप में नौकरी कर ली। कार्यालय से समय मिलने पर वे बहू बाज़ार में स्थित डॉ० महेंद्र लाल सरकार द्वारा स्थापित इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस की प्रयोगशाला में अपना शोधकार्य करते रहते थे। इन्हीं दिनों इनका रुझान वाद्य यंत्रों की ओर हुआ तथा वाद्य यंत्रों में कंपन के आधार पर शोध कार्य करते हुए अनेक शोध-पत्र प्रकाशित किए। इनके शोध कार्यों तथा प्रतिभा से प्रभावित होकर सुप्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री सर आशुतोष मुखर्जी ने सन् 1917 में इन्हें कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर का पद ग्रहण करने का प्रस्ताव दिया जो इन्होंने स्वीकार कर लिया। इनके लिए सरस्वती की साधना सरकारी सुख-सुविधाओं से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण थी।
रामन प्रभाव की खोज के लिए इन्होंने ठोस और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया तो इन्हें ज्ञात हुआ कि जब एक वर्णीय प्रकाश की किरण किसी तरल पदार्थ अथवा ठोस रवेदार पदार्थ से गुज़रती है तो गुज़रने के बाद उसके वर्ण में परिवर्तन होता है। इसका कारण यह है कि जब एकवर्णीय प्रकाश की किरण के फोटॉन तरल या ठोस रवे से गुज़रते हैं तो इनके अणुओं के टकराने से या तो वे ऊर्जा का कुछ अंश खो देते हैं या पा लेते हैं। दोनों ही दशाओं में प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन हो जाता है। एकवर्णीय प्रकाश की किरणों में सबसे अधिक ऊर्जा बैंगनी रंग के प्रकाश में होती है। इसके बाद नीले, आसमानी, हरे, पीले, नारंगी और लाल वर्ण का नंबर आता है। लाल वर्णीय प्रकाश की ऊर्जा सबसे कम होती है।
रामन की इस खोज को भौतिकी के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि माना गया। इससे प्रकाश की प्रकृति के संबंध में आइंस्टाइन द्वारा व्यक्त विचारों का प्रायोगिक प्रमाण मिल गया। आइंस्टाइन से पहले के वैज्ञानिक प्रकाश को तरंग के रूप में मानते थे परंतु आइंस्टाइन ने इसे सूक्ष्म कणों की तीव्र धारा के समान कहा और इनकी तुलना बुलेट से करते हुए इसे फोटॉन नाम दिया। रामन की इस खोज के बाद पदार्थों की आण्विक और परमाण्विक संरचना के अध्ययन के लिए रामन स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाने लगा। इससे पदार्थों का संश्लेषण प्रयोगशाला में करना और अनेक उपयोगी पदार्थों का कृत्रिम रूप से निर्माण भी संभव हो गया।
रामन को ‘रामन प्रभाव’ की खोज पर सन् 1924 ई० में रॉयल सोसाइटी की सदस्यता से सम्मानित किया गया था। सन् 1929 ई० में इन्हें ‘सर’ की उपाधि प्रदान की गई तथा इससे अगले वर्ष उन्हें भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्हें रोम में मत्यूसी पदक, रॉयल सोसाइटी का हयूज़ पदक, फ़िलाडेल्फ़िया इंस्टीट्यूट का फ्रैंकलिन पदक, सोवियत रूस का अंतर्राष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार भी दिया गया था। सन् 1954 ई० में भारत सरकार ने इन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया था।
रामन को भारतीय संस्कृति से सदा गहरा लगाव रहा है। वे सदा दक्षिण भारतीय पहनावा पहनते थे। वे शुद्ध शाकाहारी थे। वे मदिरा से सख्त परहेज़ करते थे। जब वे नोबल पुरस्कार प्राप्त करने स्टॉकहोम गए थे तो वहाँ उन्होंने अल्कोहल पर रामन प्रभाव का प्रदर्शन किया था। उन्होंने वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करने के लिए बंगलौर में ‘रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट’ नाम से एक उन्नत प्रयोगशाला और शोध संस्थान की स्थापना की थी। उन्होंने ‘इंडियन जनरल ऑफ फिजिक्स’ नामक शोध-पत्रिका का प्रकाशन किया था तथा सैकड़ों शोधार्थियों का मार्गदर्शन किया था। इन्होंने ‘करेंट साइंस’ नामक विज्ञान-पत्रिका का संपादन भी किया था। 21 नवंबर, सन् 1970 ई० को इनका देहांत हो गया था।
कठिन शब्दों के अर्थ :
- नील-वर्णीय आभा – नीले रंग की चमक।
- असंख्य – अनेक, जिनकी गिनती न की जा सके।
- समक्ष – सामने।
- निहारना – देखना।
- जिज्ञासा – जानने की इच्छा।
- विश्वविख्यात – विश्व में प्रसिद्ध।
- अतिशयोक्ति – किसी बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहना।
- सशक्त – मज़बूत।
- कैरियर – व्यवसाय, पेशा।
- दौरान – मध्य।
- रुझान – झुकाव।
- नितांत – बिल्कुल।
- अभाव – कमी।
- समृद्ध – उन्नत।
- आकृष्ट – खिंचा हुआ, आकर्षित।
- भ्रांति – संदेह।
- सृजित – बनाया गया, रचा गया।
- माहौल – वातावरण।
- परिणति – परिणाम, फल।
- वर्ण – रंग।
- फोटॉन – प्रकाश का अंश।
- एकवर्णीय – एक रंग का।
- ऊर्जा – शक्ति, बल।
- तीव्रगामी – तेज़ी से जाने वाली।
- संश्लेषण – मिलान करना।
- कृत्रिम – बनावटी।
- अक्षुण्ण – दृढ़।
- आहूलादित – आनंदित।