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JAC Board Class 9 Maths Notes Chapter 1 संख्या पद्धति
प्राकृत संख्याएँ वस्तुओं की गिनती करने के लिए हम 1, 2, 3, 4,… आदि संख्याओं का प्रयोग करते हैं। इन संख्याओं को प्राकृत संख्याएँ कहते हैं। इनकी संख्या अनन्त होती है। प्राकृत संख्याओं के समूह को N द्वारा व्यक्त करते हैं।
जैसे N = {1, 2, 3, 4, 5,…..}
पूर्ण संख्याएं: यदि प्राकृत संख्याओं में 0 (शून्य) को सम्मिलित कर लिया जाए, तो प्राप्त संख्याओं के समूह को पूर्ण संख्याएँ कहा जाता है। इस समूह को W से व्यक्त किया जाता है।
जैसे W = {0, 1, 2, 3, 4….}
प्राकृत संख्याओं और पूर्ण संख्याओं के समुच्चय में अन्तर :
प्राकृत संख्याओं का समुच्चय N = {1, 2, 3…} है और पूर्ण संख्याओं का समुच्चय W = {0, 1, 2, 3….} है।
प्राकृत और पूर्ण संख्याओं के समुच्चय की तुलना करने पर, हम देखते हैं कि
- समस्त प्राकृत संख्याएँ पूर्ण संख्याएँ हैं।
- 0 के अतिरिक्त समस्त पूर्ण संख्याएँ प्राकृत संख्याएँ हैं।
- 1 सबसे छोटी प्राकृत संख्या है जबकि 0 सबसे छोटी पूर्ण संख्या है।
- प्राकृत तथा पूर्ण संख्याएँ अनन्त होती हैं।
पूर्णांक संख्याएँ : यदि प्राकृत संख्याओं में ऋण संख्याओं को भी सम्मिलित कर लिया जाए तो प्राप्त संख्याओं के संग्रह को पूर्णांक संख्याएँ कहा जाता है, और इन्हें Z or I प्रतीक से व्यक्त किया जाता हैं। ये दो प्रकार की होती हैं:
(i) धन पूर्णांक,
(ii) ऋण पूर्णांक
(i) संख्या रेखा पर शून्य के दार्यों और के पूर्णांक, धन पूर्णांक तथा शून्य के बायीं ओर के पूर्णांक, ऋण पूर्णांक कहलाते हैं।
(ii) शून्य, प्रत्येक धन पूर्णांक से छोटा तथा सभी ऋण पूर्णांकों से बड़ा होता है।
परिमेय संख्याएँ : ऐसी संख्याएँ जो \(\frac{p}{q}\) के रूप में व्यक्त की जा सकती हों तथा जहाँ p और पूर्णांक हों, परन्तु q ≠ 0, परिमेय संख्याएँ कहलाती हैं।
जैसे : \(\frac{1}{2}, \frac{2}{3}, \frac{-4}{5}, \frac{7}{3}, \frac{-6}{7}, \ldots\) इत्यादि।
- प्रत्येक प्राकृत संख्या परिमेय संख्या है।
- 0 एक परिमेय संख्या है।
- प्रत्येक पूर्णांक परिमेय संख्या है।
- प्रत्येक भिन्न परिमेय संख्या है।
- प्रत्येक परिमेय संख्या का दशमलव भिन्न के रूप में प्रसार किया जा सकता है।
परिमेय संख्याओं का दशमलव प्रसार दो प्रकार का होता है:
(i) सांत,
(ii) असांत (अनवसानी आवर्ती)।
सांत दशमलव प्रसार : परिमेय संख्याएँ, जो कि सदा \(\frac{p}{q}\) के रूप में होती है, p में q का भाग देने पर अन्त में शेषफल शुन्य प्राप्त होता है, तो वे दशमलव संख्याएँ सांत दशमलव प्रसार वाली परिमेय संख्याएँ कहलाती हैं।
जैसे : \(\frac{1}{2}\) = 0.5, \(\frac{3}{2}\) = 1.5, \(\frac{1}{8}\) = 0.125 आदि।
असांत दशमलव प्रसार : परिमेय संख्या को दशमलव संख्या में बदलते समय भाग की क्रिया निरन्तर चलती रहती है और शेषफल की निरंतरता बनी रहती है अर्थात् भागफल में अंकों की पुनरावृत्ति होती रहती है इस प्रकार की दशमलव संख्याओं को असांत आवर्ती दशमलव संख्या कहते हैं असांत दशमलव संख्या को संक्षिप्त रूप में लिखने के लिए पुनरावृत्ति वाले अंकों के ऊपर (-) रेखा खींचते हैं।
जैसे : \(\frac{3}{11}\) = 0.272727…….. = \(0 . \overline{27}\)
\(\frac{1}{3}\) = 0.333……. = \(0 . \overline{3}\) इत्यादि।
इन्हें असांत आवर्ती (Non-terminating Repeating) परिमेय संख्याएँ भी कहते हैं।
परिमेय संख्याओं के महत्त्वपूर्ण बिन्दु :
- प्राकृत संख्याएँ, पूर्ण संख्याएँ, पूर्णांक व भिन्नें सभी परिमेय संख्याएँ होती हैं।
- भिन्न के अंश और हर प्राकृत संख्याएँ होती हैं, जबकि परिमेय संख्या के अंश और हर पूर्णांक होते हैं। परन्तु परिमेय संख्या का हर शून्य नहीं होता।
- संख्या रेखा पर परिमेय संख्याएँ प्रदर्शित की जा सकती हैं।
- किसी परिमेय संख्या के अंश और हर को समान अशून्य पूर्णांक से गुणा करने अथवा भाग देने पर समतुल्य परिमेय संख्याएँ प्राप्त होती हैं।
- दो परिमेय संख्याओं के बीच में अनन्त परिमेय संख्याएँ निहित होती हैं।
- प्रत्येक परिमेय संख्या को सांत अथवा असांत आवर्ती दशमलव संख्या के रूप में लिखा जा सकता है।
- सांत परिमेय संख्या का हर सदैव 2m × 5n के रूप में होता है।
- यदि परिमेय संख्या का हर 2m × 5n के रूप में नहीं है तो वह असांत आवृत्ति होती है।
- यदि परिमेय संख्या के अंश तथा हर में एक के अतिरिक्त अन्य कोई उभयनिष्ठ गुणनखण्ड नहीं है तो वह परिमेय संख्या का मानक रूप (Standard form) कहलाता है।
- परिमेय संख्या ऋणात्मक हो सकती है किन्तु उसका हर सदैव धनात्मक ही लिया जाता है।