Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् Questions and Answers, Notes Pdf.
JAC Board Class 9th Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्
प्रत्यय से तात्पर्य – जो शब्द किसी संज्ञा शब्द, सर्वनाम शब्द, विशेषण शब्द अथवा धातु (क्रिया) शब्द के बाद (पीछे) जुड़कर किसी विशेष अर्थ को व्यक्त करते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं। ये प्रत्यय अपने मूल अर्थ में तो निरर्थक से प्रतीत होते हैं, किन्तु ये किसी शब्द के अन्त में जुड़कर शब्द-निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
परिभाषा – “वे शब्द, जिनको किसी शब्द या धातु के अन्त में जोड़ा जाता है, प्रत्यय कहलाते हैं।”
प्रतीयते विधीयते अनेन इति प्रत्ययः। अर्थात् जो शब्दांश शब्द या धातु के अन्त में लगकर उनके अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं, प्रत्यय कहलाते हैं।
प्रत्यय तीन प्रकार के होते हैं –
- कृत् प्रत्यय
- तद्धित प्रत्यय
- स्त्री प्रत्यय।
कृत् प्रत्यय – मूल क्रिया (धातु) शब्द के अन्त में भिन्न-भिन्न अर्थों का बोध कराने वाले जिन प्रत्ययों को जोड़कर संज्ञा, विशेषण, अव्यय तथा कहीं-कहीं क्रिया पद का निर्माण किया जाता है; उन प्रत्ययों को “कृत् प्रत्यय” कहते हैं। कृत् प्रत्ययों में क्त्वा’, ‘ल्यप्’, ‘तुमुन्’, ‘क्त’, ‘क्तवतु’, ‘शत’, ‘शानच्’ आदि प्रत्यय आते हैं।
तद्धित प्रत्यय – संज्ञा शब्द, सर्वनाम शब्द तथा विशेषण शब्द में जोड़े जाने वाले प्रत्यय तद्धित प्रत्यय कहे जाते हैं। जैसे ‘तरप्’, ‘तमप्’, ‘इनि’ आदि तद्धित प्रत्यय हैं।
स्त्री प्रत्यय – जो प्रत्यय विभिन्न शब्दों के अन्त में स्त्रीत्व का बोध कराने के लिए लगाये जाते हैं, उन्हें स्त्री प्रत्यय कहते हैं, जैसे ‘टाप’, ‘ङीप’ आदि स्त्री प्रत्यय हैं।
1. कृत् प्रत्यय
(i) क्त्वा प्रत्यय – ‘क्त्वा’ प्रत्यय में से प्रथम वर्ण ‘क’ का लोप होकर केवल ‘त्वा’ शेष रहता है। पूर्वकालिक क्रिया को बनाने के लिए ‘कर’ या ‘करके’ अर्थ में उपसर्गरहित क्रिया शब्दों में ‘क्त्वा’ प्रत्यय जोड़ा जाता है। इस प्रत्यय से बना हुआ शब्द अव्यय शब्द होता है। अतः उसके रूप नहीं चलते हैं, अर्थात् वह सभी विभक्तियों, सभी वचनों, सभी लिंगों तथा सभी पुरुषों में एक जैसा ही रहता है और उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता है। जैसे-‘वह पुस्तक पढ़कर खेलता है।’ इस वाक्य का संस्कृत में अनुवाद करने पर ‘स: पुस्तकं पठित्वा क्रीडति’ बना। इस वाक्य में दो क्रियाएँ हैं-प्रथम क्रिया ‘पढ़कर’ (पठित्वा) तथा दूसरी क्रिया ‘खेलता’ (क्रीडति) है।
दोनों क्रियाओं का कर्ता एक ही ‘वह’ (सः) है। यहाँ पठ् मूल क्रिया में ‘क्त्वा’ प्रत्यय जोड़ने पर ‘क्त्वा’ में ‘क’ का लोप करने पर ‘त्वा’ शेष रहा। ‘पठ् + त्वा’ धातु और प्रत्यय के मध्य ‘इ’ जोड़ने पर ‘पठित्वा’ पूर्वकालिक क्रिया का रूप बना, जिसका अर्थ-‘पढ़कर’ या ‘पढ़ करके’ हुआ। धातु और प्रत्यय के मध्य सब जगह ‘इ’ नहीं जुड़ता है। ‘इ’ केवल वहीं जुड़ता है. जहाँ क्रिया में ‘इ’ के जोड़े जाने की आवश्यकता होती है। यहाँ सन्धि के सभी नियम भी लगते हैं।
क्त्वा प्रत्ययान्त रूप
प्रकृति-प्रत्यय पृथक् करवाने पर मूलधातु + प्रत्यय करना होता है। जैसे- उषित्वा = वस् + क्त्वा न कि उस् + त्वा।
(ii) ल्यप् प्रत्यय-‘ल्यप्’ प्रत्यय में ल् तथा प् का लोप हो जाने पर ‘य’ शेष रहता है। धातु से पूर्व कोई उपसर्ग हो तो वहाँ क्त्वा’ के स्थान पर ‘ल्यप् प्रत्यय प्रयुक्त होता है। यह ‘ल्यप् प्रत्यय भी ‘कर’ या ‘करके’ अर्थ में होता है। यह अव्यय शब्द होता है अतः रूप नहीं चलते हैं। जिन उपसर्गों के साथ ल्यप् वाले रूप अधिक प्रचलित हैं, उनके उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं।
ल्यप् प्रत्ययान्त रूप
(iii) तुमुन् प्रत्यय-‘तुमुन्’ प्रत्यय में से ‘मु’ के उ एवं अन्तिम अक्षर न् का लोप हो जाने पर ‘तुम्’ शेष रहता है। ‘तुमुन्’ प्रत्यय से बना रूप अव्यय होता है। अतः उसके रूप नहीं चलते हैं। प्रत्यय से बने कतिपय (कुछ) रूपों के उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं –
तुमुन् प्रत्ययान्त रूप (तुमुन् प्रत्यय से बने रूप)
(iv) क्त एवं क्तवतु प्रत्यय – (i) किसी कार्य की समाप्ति का ज्ञान कराने के लिए अर्थात् भूतकाल के अर्थ में क्त और क्तवतु प्रत्यय होते हैं।
(ii) क्त प्रत्यय धातु से भाववाच्य या कर्मवाच्य में होता है और इसका ‘त’ शेष रहता है। क्तवतु प्रत्यय कर्तृवाच्य में होता है और उसका ‘तवत्’ शेष रहता है।
(iii) क्त और क्तवतु के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं। क्त प्रत्यय के रूप पुंल्लिंग में राम के समान, स्त्रीलिंग में ‘अ’ लगाकर रमा के समान और नपुंसकलिंग में फल के समान चलते हैं। क्तवतु के रूप पुल्लिंग में भगवत् के समान, स्त्रीलिंग में ‘ई’ जुड़कर नदी के समान तथा नपुंसकलिंग में जगत् के समान चलते हैं।
क्त प्रत्यय के उदाहरण
क्तवतु प्रत्यय के उदाहरण
(v) शतृ एवं शानच् प्रत्यय ‘शत’ प्रत्यय-वर्तमान काल में हुआ’ अथवा ‘रहा’, ‘रहे’ अर्थ का बोध कराने के लिए ‘शतृ’ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है। ‘शतृ’ प्रत्यय सदैव परस्मैपदी धातुओं (क्रिया-शब्दों) से ही जुड़ते हैं। ‘शतृ’ के ‘श्’ और तृ के ‘ऋ’ का लोप होकर ‘अत्’ शेष रहता है। शतृ प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं, यहाँ ‘शतृ प्रत्यय से बने कुछ क्रियापदों का संग्रह पुल्लिंग में दिया जा रहा है। छात्र इन्हें समझें और कण्ठाग्र कर लें।
शानच् प्रत्यय – ‘शतृ’ प्रत्यय के ही समान ‘शानच्’ प्रत्यय वर्तमान काल में हुआ’ अथवा ‘रहा’, ‘रही’, ‘रहे’ अर्थ का बोध कराने के लिए प्रयुक्त होता है। ‘शत’ प्रत्यय तो परस्मैपदी धातुओं (क्रिया-शब्दों) से ही जुड़ता है, किन्तु ‘शानच्’ प्रत्यय आत्मनेपदी धातुओं में ही जुड़ता है। शानच् प्रत्यय में से ‘श्’ और ‘च’ का लोप होकर ‘आन’ शेष रहता है। ‘आन’ के स्थान पर अधिकतर ‘मान’ हो जाता है। यहाँ ‘शानच्’ प्रत्यय से बने कुछ क्रियापदों का संग्रह पुल्लिंग में ही दिया जा रहा है। छात्र इन्हें समझें और कण्ठाग्र कर लें।
(vi) अनीयर’ प्रत्यय – अनीयर’ प्रत्यय ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ अर्थ में प्रयुक्त होता है। ‘अनीयर’ प्रत्यय में से र् का लोप होने पर ‘अनीय’ शेष रहता है। अनीयर प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं। यहाँ केवल पुल्लिंग के ही रूप दिये जा रहे हैं। छात्र इन्हें समझें और कण्ठाग्र कर लें।
(vii) तव्यत् प्रत्यय – ‘तव्यत्’ प्रत्यय ‘अनीयर’ प्रत्यय के समान ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ अर्थ में ही प्रयुक्त होता है। ‘तव्यत्’ प्रत्यय में से ‘त्’ का लोप होने पर ‘तव्य’ शेष रहता है। ‘तव्यत्’ प्रत्ययान्त शब्दों के तीनों लिंगों में रूप क्रमशः राम, रमा तथा फल की तरह चलते हैं। यहाँ केवल पुल्लिंग के ही रूप दिये जा रहे हैं। छात्र इन्हें समझें और स्मरण कर लें।
2. तद्धित प्रत्यय
(i) ‘तरप’ प्रत्यय-दो वस्तुओं में से एक को श्रेष्ठ (अच्छा) या निकृष्ट (खराब) बताने के लिए गुणवाचक विशेषण के शब्दों में ‘तरप्’ प्रत्यय जोड़ा जाता है। इसमें से ‘तर’ शेष रहता है और इसके तीनों लिंगों में क्रमशः राम (पुं.) रमा (स्त्री) तथा पल (न.) के रूप चलते हैं।
नोट – ‘तरप्’ प्रत्यय विशेषण शब्दों में लगता है। पुल्लिंग में इस प्रत्यय से बने शब्दों के रूप ‘राम’ के समान, स्त्रीलिंग में ‘रमा’ के समान तथा नपुंसकलिंग में ‘फल’ के समान चलते हैं।
(ii) ‘तमप्’ प्रत्यय-बहुतों में से एक को श्रेष्ठ (अच्छी) या निकृष्ट (खराब) बताने के लिए शब्द के साथ ‘तमप’ । प्रत्यय जोड़ा जाता है। इसमें से ‘तम’ शेष रहता है। ‘तमप्’ प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं।
(iii) इनि प्रत्यय – 1. हिन्दी के ‘वाला’ अर्थ वाले शब्दों यथा-धन वाला, सुख वाला, गुण वाला आदि के लिए संस्कृत में शब्दों के साथ इनि’ प्रत्यय लगाते हैं। ‘इनि’ का ‘इन्’ शेष रहता है। जैसे – दण्ड + इनि – दण्ड + इन् = दण्डिन्।
त्याग + इनि – त्याग + इन् = त्यागिन्। इनि प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं। इनके रूप पल्लिंग में ‘करिन्’ के समान, स्त्रीलिंग में ‘ई’ जोड़कर नदी के समान और नपुंसकलिंग के रूप इनि से बने मूल रूप के समान ही रहते हैं।
‘इनि’ प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिङ्गों में (प्रथमा विभक्ति एकवचन) निम्नानुसार हैं –
3. स्त्री प्रत्यय
(i) टाप् (आ) प्रत्यय – अजादि गण में अकारान्त शब्दों से यदि स्त्रीलिङ्ग बनाना हो तो टाप् प्रत्यय का प्रयोग करते हैं। ‘टाप्’ प्रत्यय का ‘आ’ शेष रहता है। इसमें पुल्लिङ्ग शब्द के अन्तिम ‘आ’ का लोप कर दिया जाता है। किन्तु कुछ शब्द इस प्रत्यय के अपवाद भी हैं, उनमें अक् को इक् होने के बाद टाप् प्रत्यय लगता है। ‘टाप्’ प्रत्यय में से ‘ट्’ और ‘य’ का लोप हो जाने पर ‘आ’ शेष रहता है।
जैसे – गायक-गायिका, बालक-बालिका आदि। शब्द
(ii) ङीप् प्रत्यय – 1. ऋकारान्त तथा नकारान्त पुल्लिङ्ग शब्दों के साथ ङीप् प्रत्यय जोड़कर स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाते हैं। ‘ङीप्’ और ‘प्’ का लोप हो जाने ‘ई’ शेष रहता है।
अभ्यास
प्रश्न: 1.
प्रत्यय की परिभाषा लिखिए।
उत्तर :
परिभाषा – वे शब्द, जिनका किसी शब्द या धातु से विधान किया जाता है (अन्त में जोड़ा जाता है), प्रत्यय कहलाते हैं।
प्रश्न: 2.
सुप् और तिङ्के अतिरिक्त प्रत्यय के कितने मुख्य भेद हैं ? लिखिए।
उत्तर :
सुप् और तिङ् प्रत्यय के अतिरिक्त प्रत्यय के 3 (तीन) मुख्य भेद हैं –
(i) कृत् प्रत्यय
(ii) तद्धित प्रत्यय
(iii) स्त्री प्रत्यय।
प्रश्न: 3.
किन्हीं चार कृत् प्रत्ययों का नाम निर्देश कीजिए।
उत्तर :
(i) क्त्वा
(ii) ल्यप्
(iii) शतृ
(iv) शानच्।
प्रश्न: 4.
‘के लिए’ का अर्थ व्यक्त करने हेतु धातु में कौन-सा प्रत्यय जोड़ा जाता है ?
उत्तर :
‘तुमुन्’ प्रत्यय।
प्रश्न: 5.
भूतकालिक प्रत्ययों के नाम बताइये।
उत्तर :
‘क्त’ तथा ‘क्तवतु’ प्रत्यय।
प्रश्न: 6.
‘क्त्वा’ तथा ‘ल्यप् प्रत्यय का प्रयोग कब करते हैं ?
उत्तर :
क्त्वा और ल्यप् दोनों ही पूर्वकालिक कृत् प्रत्यय हैं। जब दो क्रियाओं का कर्ता एक ही होता है तो जो क्रिया पूरी हो चुकी होती है, उसे बताने के लिए क्त्वा का प्रयोग करते हैं। क्त्वा’ का ‘त्व’ शेष रहता है। यह प्रत्यय ‘करके’ या ‘कर’ के अर्थ में प्रयोग होता है। लेकिन क्त्वा प्रत्यय वाली क्रिया के पूर्व कोई उपसर्ग लग जाता है तो क्त्वा के स्थान पर ‘ल्यप् प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न: 7.
‘तुमुन्’ प्रत्यय का प्रयोग किस विभक्ति के स्थान पर किया जाता है ? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘तुमुन्’ प्रत्यय का प्रयोग चतुर्थी विभक्ति के स्थान पर किया जाता है। क्योंकि ‘तुमुन् प्रत्यय ‘के लिए’,’को’, ‘निमित्त’ के अर्थ में प्रयुक्त होता है। इस प्रत्यय का तुम् शेष रहता है। ‘तुमुन्’ प्रत्ययान्त शब्द हेतुवाचक क्रिया के रूप में प्रयुक्त होते हैं। अत: वाक्य में इनके साथ एक मुख्य क्रिया अवश्य होती है जैसे मैं पढ़ना चाहता हूँ-अहं पठितुम् इच्छामि।
प्रश्न: 8.
‘चाहिए’ अर्थ का बोध कराने वाले प्रत्यय कौन-कौनसे हैं ?
उत्तर :
‘चाहिए’ अर्थ का बोध कराने वाले प्रत्यय ‘तव्यत्’ और ‘अनीयर्’ हैं।
प्रश्न: 9.
‘स्त्री प्रत्यय’ किसे कहते हैं ?
उत्तर :
पुल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए जिन प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें ‘स्त्री प्रत्यय’ कहते हैं।
प्रश्न: 10.
कृत् प्रत्यय एवं तद्धित प्रत्यय का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जिन प्रत्ययों का क्रिया से विधान होता है, कृत् प्रत्यय कहलाते हैं तथा जिन प्रत्ययों का विधान संज्ञा या विशेषण शब्दों के साथ होता है, तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं।
प्रश्न: 11.
निम्नलिखित पदों में प्रकृति-प्रत्यय को अलग कीजिए –
अधीतः, जग्धवान्, गृहीत्वा, उपगम्य, पातुम्।
उत्तरम् :
अधि + इ + क्त; अद् + क्तवतु ग्रह + क्त्वा, उपगम् + ल्यप, सी + तुमुन्।
प्रश्न: 12.
निम्नलिखित में प्रकृति-प्रत्यय का मेल कीजिए –
मा कर्ता + ङीप्, एडक + टाप्, भाग् + इनि, बहु + तमप्, निम्न + तरप्, रक्षा तव्यत्, युध् + शानच्, वस् + शत, स्तु + क्तवतु।
उत्तरम् :
की, एडका, भागी, बहुतमः, निम्नतरः, रक्षितव्यः, युध्यमानः, वसन् स्तुतवान्।
प्रश्न: 13.
निम्नलिखित प्रत्ययान्त शब्दों को ‘कृत्’ ‘तद्धित’ और ‘स्त्री’ प्रत्ययान्त के रूप में अलग-अलग छाँटिये
कोकिला, हन्त्री, शूद्रता, पीत्वा, नीति, भूता, पूजनम्, हन्तव्यः, लेखनीयः, भगवती, लघुता, शिशुत्वम्।
उत्तरम् :
- कृत् – पीत्वा, नीति, पूजनम्, हन्तव्यः, लेखनीयः।
- तद्धित् – शूद्रता, लघुता, शिशुत्वम्।
- स्त्री – कोकिला, हन्त्री, भूता, भगवती।
प्रश्न: 14.
प्रत्येक धातु में कोई पाँच प्रत्यय जोड़कर उनका एक-एक उदाहरण लिखिए –
पठ्, नम्, पच्, दा, लभ्, दृश्, गम्, हस्, इष्, लभ्।
उत्तरम् :
प्रश्न: 15.
अधोलिखितवाक्येषु रेखांकितपदानां प्रकृति-प्रत्यय-विभाग प्रत्ययान्तपदं वा लिखत –
(निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित पदों में प्रकृति-प्रत्यय अलग कीजिये अथवा प्रत्ययान्त शब्द लिखिए-)
- अहं शयनं परित्यज्य भ्रमणं गच्छामि।
- श्यामः पुस्तकं केतुं गमिष्यति।
- मया रामायणं श्रुतम्।
- फलं खादन् बालकः हसति।
- सुरेशः ग्राम गत्वा धावति।
- सर्वान् विचिन्त्य बू (वच्) + तव्यत्।
- मुकेशः भोजनं खाद + शतृ पुस्तकं पठति।
- सः गृहकार्यं कृ + क्त्वा क्रीडति।
- सीता ग्रामात् आ + गम् + ल्यप् नृत्यति।
- भारतः पठ् + तुमुन् इच्छति।
उत्तर :
- परि + त्यज् + ल्यप्
- क्री + तुमुन्
- श्रु + क्त
- खाद् + शतृ
- गम् + क्त्वा
- वक्तव्यम्
- खादन्
- कृत्वा
- आगत्य
- पठितुम्।
प्रश्न: 16.
निर्देशम् अनुसृज्य उदाहरणानुसारं संयोज्य वाक्यसंयोजनं क्रियताम्।
(निर्देश का अनुसरण करके उदाहरणानुसार जोड़कर वाक्यों को जोडिए।)
(क) पूर्ववाक्ये ‘क्त्वा’ प्रत्ययं प्रयुज्य वाक्यं संयोजयत –
(पहले वाक्य में ‘क्त्वा’ प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य-संयोजन कीजिए) महेशः खेलति। महेशः धावति।
उत्तरम् :
महेशः खेलित्वा धावति।
(ख) ‘तुमुन् प्रत्ययप्रयोगं कृत्वा वाक्यसंयोजनं क्रियताम्-
(तुमुन् प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य-संयोजन कीजिए
रामः वनं गच्छति। रामः अश्वम् आरोहति।
उत्तरम् :
रामः वनं गन्तुम् अश्वम् आरोहति।
(ग) पूर्ववाक्ये शतृप्रत्ययं प्रयुज्य वाक्यं पुनः लिखत –
(पूर्व वाक्य में ‘शतृ’ प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य को पुनः लिखिए-) छात्राः श्यामपट्ट स्पृशति। छात्रा: गृहं गच्छति।
उत्तरम् :
छात्राः श्यामपट्ट स्पृशन्तः गृहं गच्छन्ति।
(घ) ‘तुमुन्’ प्रत्ययं प्रयुज्य वाक्यं पुनः लिखत-
(तुमुन् प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य को पुनः लिखिए-) त्वं जलं पिबसि। त्वं कूपं गच्छसि।
उत्तरम् :
त्वं जलं पातुं कूपं गच्छसि।