Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions व्याकरणम् सन्धि-प्रकरणम् Questions and Answers, Notes Pdf.
JAC Board Class 9th Sanskrit व्याकरणम् सन्धि-प्रकरणम्
सन्धि शब्द की व्युत्पत्ति – सम् उपसर्गपूर्वक (धा) धातु से (उपसर्गे धोः किः) सूत्र से ‘कि’ प्रत्यय करने पर सन्धि शब्द की व्युत्पत्ति होती है।
सन्धि शब्द की परिभाषा – ‘वर्ण संधानं सन्धिः’ अर्थात् दो वर्णों का परस्पर मेल या संधान सन्धि कही जाती है।
पाणिनीय परिभाषा – ‘परः सन्निकर्षः संहिता’ वर्गों की अत्यन्त निकटता संहिता कही जाती है। वर्णों का परस्पर मेल सन्धि कहा जाता है। संस्कृत भाषा में एक पद में, धातु-उपसर्ग के बीच में तथा समास के बीच में सन्धि कार्य नित्य होता है। वाक्य में तो सन्धि वक्ता की विविक्षा पर होती है।
संहितैकपदे नित्या नित्या धातूपर्सगयोः।
नित्या समासे वाक्ये तु सा विवक्षामपेक्षते।
सन्धि का अर्थ-सामान्यतया ‘सन्धि’ शब्द का अर्थ मेल, समझौता या जोड़ है, किन्तु सन्धि प्रकरण में इसका अर्थ थोड़ा भिन्न होते हुए यह है कि जब एक से अधिक स्वर अथवा व्यञ्जन वर्ण अत्यधिक निकट होने के कारण, मिलकर एक रूप धारण करते हैं, तो वह सन्धि का ही परिणाम होता है और यही सन्धि करना कहलाता है। सन्धियुद्ध पद में दो या दो से अधिक शब्दों को अलग-अलग करके रखना सन्धि-विच्छेद करना कहलाता है। जैसे-‘हिम + आलयः’ में हिम के ‘म’ में ‘अ’ के सामने आलय का ‘आ’ मौजूद है। यहाँ दोनों ओर ‘अ’ + आ’ स्वर हैं। इन दोनों स्वर वणो को मिलाकर एक दीर्घ ‘आ’ हो गया है, जिससे हिम + आलयः’ को मिलाकर ‘हिमालयः’ एक सन्धियुक्त पद बन गया है। ‘हिमालयः’ का सन्धि-विच्छेद करने पर ‘हिम + आलयः’ ये दो पद अलग-अलग होंगे। यह स्वर सन्धि के ‘दीर्घ’ भेद का उदाहरण है।
इसी प्रकार ‘सद् + जनः’ में सद् के ‘द्’ व्यञ्जन वर्ण तथा इसके समीप में सामने जनः के ‘ज’ व्यञ्जन वर्गों में परस्पर मेल होन पर ‘द्’ को ‘ज्’ में बदलने पर ‘सज्जनः’ सन्धियुक्त पद बन जाता है। यह व्यञ्जन सन्धि के अन्तर्गत ‘श्चुत्व’ भेद का उदाहरण है।
इसी प्रकार ‘नमः + ते’ में नमः के ‘म्’ के आगे विद्यमान विसर्ग (:) को ‘त’ सामने होने के कारण ‘स्’ होने से ‘नमस्ते’ सन्धियुक्त पद बन गया। यह विसर्ग सन्धि के अन्तर्गत ‘सत्व’ भेद का उदाहरण है।
इस प्रकार सन्धियाँ तीन प्रकार की होती हैं और ये ही इनके भेद कहे जाते हैं। सन्धि के भेद-सामान्य रूप से सन्धि के तीन प्रमुख भेद माने गये हैं –
- स्वर या अच् सन्धि
- व्यञ्जन या हल सन्धि
- विसर्ग सन्धि।
1. अच् (स्वर) सन्धि – जहाँ स्वरों का परस्पर मेल होता है वहाँ स्वर सन्धि होती है। स्वर सन्धि के दीर्घ, गुण, यण, वृद्धि अयादि, पूर्व रूप और.पररूप भेद हैं।
2. हल (व्यञ्जन) सन्धि – जहाँ व्यञ्जन वर्णों का परस्पर मेल होता है वहाँ व्यञ्जन सन्धि होती है। व्यञ्जन सन्धि के श्चुत्व, ष्टुत्व, णत्व, षत्व और छत्व आदि भेद हैं।
3. विसर्ग सन्धि – जहाँ विसर्ग के स्थान पर परिवर्तन होता है, वहाँ विसर्ग सन्धि होती है। विसर्ग के स्थान पर सकार, रुत्व, उत्व होता है और विसर्ग का लोप होता है।
(i) स्वर या अच् सन्धि
1. दीर्घ सन्धि
अकः सवर्णे दीर्घ: – जब (अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ) स्वरों के पश्चात् (आगे) ह्रस्व या दीर्घ “अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ स्वर आयें तो दोनों सवर्ण (एक जैसे) स्वरों को मिलाकर एक दीर्घ वर्ण ‘आ’, ‘ई’, ‘ऊ’, ‘ऋ’ हो जाता है। जैसे – रत्न + आकरः + रत्नाकरः।
यहाँ पर रत्न के ‘न’ में ह्रस्व अकार है, उसके बाद आकरः’ का दीर्घ ‘आ’ आता है, अत: ऊपर के नियम के अनुसार दोनों (ह्रस्व ‘अ’ और दीर्घ ‘आ’) के स्थान में दीर्घ ‘आ’ हो गया। इसी प्रकार –
(i) अ/आ + अ/आ आ
(ii) इ/ई + इ/ई-ई
(iii) उ/ऊ + /उ/ऊ-ऊ
(iv) ऋ/ऋ + ऋ/ऋऋ
अन्य उदाहरण –
2. गुण सन्धि
आद् गुण: –
1. अ अथवा आ के बाद इ अथवा ई आये तो दोनों के स्थान में ‘ए’ हो जाता है।
2. अ अथवा आ के बाद उ अथवा ऊ आये तो दोनों के स्थान में ‘ओ’ हो जाता है।
3. अ अथवा आ के बाद ऋ आये तो ‘अर्’ हो जाता है।
4. अ अथवा आ के बाद ल आये तो ‘अल्’ हो जाता है।
जैसे – देव + इन्द्रः = देवेन्द्रः। यहाँ पर देव के ‘व’ में ‘अ’ है, उसके बाद इन्द्रः की ‘इ’ है, इसलिए ऊपर के नियम के अनुसार दोनों (देव के ‘अ’ और इन्द्र की ‘इ’) के स्थान में ‘ए’ हो गया। इसी प्रकार –
(i) अ/आ+इ/ई-ए,
(ii) अ/आ+उ/ऊ-ओ,
(iii) अ/आ+ऋ/ऋ = अर्
(iv) अ/आ+लु = अल्।
3. वृद्धि सन्धि
वृद्धिरेचि – यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ए’ या ‘ऐ’ आये तो दोनों के स्थान में ‘ऐ’ और यदि ‘ओ’ या ‘औ’ आवे तो दोनों के स्थान में ‘औ’ वृद्धि हो जाती है। जैसे-अद्य +एव = अद्यैव। यहाँ अद्य के ‘घ’ में स्थित ‘अ’ तथा उसके बाद ‘एव’ का प्रथम वर्ण ‘ए’ मौजूद है। अतः (अ+ ए =ऐ) अ तथा ए के स्थान में ‘ऐ’ वृद्धि हो जायेगी। अतः अद्य + एव मिलाने पर अद्यैव रूप बना। इसी प्रकार –
(i) अ/आ+ए/ए=ऐ
(ii) अ/आ/+ओ/औ=औ।
अन्य उदाहरण –
4. यण सन्धि
इको यणचि-इ अथवा ई के बाद असमान स्वर आने पर इ, ई का य उ अथवा ऊ के बाद असमान स्वर आने पर उ, ऊ का व्, ऋ के बाद असमान स्वर आने पर ऋको र् तथा लु के बाद असमान स्वर आने पर ल के स्थान में ल हो जाता है।
अर्थात् – (1) जब इ या ई के बाद इ, ई को छोड़कर कोई दूसरा स्वर आये तब इ, ई के स्थान में ‘य्’ हो जाता है।
(2) जब उ या ऊ के बाद उ, ऊ को छोड़कर कोई दूसरा स्वर आये तब ‘उ, ऊ’ के स्थान में ‘व्’ हो जाता है।
(3) जब ऋ या ऋ के बाद ऋ, ऋ को छोड़कर कोई दूसरा स्वर आये तब ‘ऋ, ऋ’ के स्थान में ‘र’ हो जाता है।
जैसे – यदि + अपि = यद्यपि। यहाँ ‘यदि’ के ‘दि’ में ‘इ’ है। इसके बाद ‘अपि’ के आदि में ‘अ’ स्वर है जो कि असमान है। अतः ‘इ’ के स्थान में ‘य’ होने पर ‘य + द् + य् + अपि’ रूप बना। इनको मिलाने पर ‘यद्यपि’ रूप बना।
इसी प्रकार –
(i) इ/ई + असमान स्वरय्
(ii) उ/ऊ + असमान स्वर: = व्
(iii) ऋ/ऋ + असमान स्वर = र्
(iv) ल + असमान स्वर = ल।
अन्य उदाहरण –
असमान स्वर = य् + असमान स्वर
प्रति + उवाच = प्रत्युवाच
इति + औत्सुक्यम् = इत्यौत्सुक्यम्
इति + उक्त्वा = इत्युक्त्वा
प्रति + आह = प्रत्याह
यदि + अपि = यद्यपि
इति + ऊचुः = इत्यूचुः
प्रति + एकम् = प्रत्येकम्
वारि + आनय = वायोनय
दधि + अत्र = दध्यत्र
सति + अपि = सत्यपि।
2. ई + असमान स्वर = य् + असमान स्वर
महती + आकाङ्क्षा = महत्याकङ्क्षा
देवी + औदार्यम् = देव्यौदार्यम
सुधी + उपास्यः = सुध्युपास्यः
गौरी + औ = गौयौं, महती
महती + उत्कण्ठा = महत्युत्कण्ठा
पार्वती + उवाच = पार्वत्युवाच
पृथिवी + उवाच = पृथिव्युवाच
नदी + अत्र = नद्यत्र।
3. उ + असमान स्वर = व् + असमान स्वर
मधु + अत्र = मध्वत्र
मधु + अरिः = मध्वरिः
अनु + अयः = अन्वयः
अस्तु + इति = अस्त्विति
सु + आगतम् = स्वागतम्
साधु + इति = साध्विति
गुरु + आदेशः = गुर्वादेशः
गुरु + औदार्यम् = गुरूदार्यम्
मधु + आनयः = मध्वानयः
गुरु + आज्ञा = गुर्वाज्ञा।
4. ऊ + असमान स्वर = व् + असमान स्वर
वधु + आदेशः = वध्वादेशः
चमू + आनयनम् = चम्वानयनम्
वधु + आगमनम् = वध्वागमनम्
चमू + आगमनम् = चम्वागमनम्
5. ऋ + असमान स्वर = र् + असमान स्वर
धातृ + अंशः = धात्रंशः
पितृ + आदेशः = पित्रादेशः
मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा
मातृ + उपदेशः = मात्रुपदेशः
6. लृ + असमान स्वर = ल् + असमान स्वर
लृ + आकृति = लाकृतिः
5. अयादि सन्धि
एचोऽयवायावः – ए, ऐ, ओ, औ के बाद जब कोई असमान स्वर आता है, तब ‘ए’ के स्थान पर ‘अय’, ‘ओ’ के स्थान पर ‘अव’, ‘ऐ’ के स्थान पर ‘आय’ तथा ‘औ’ के स्थान पर ‘आव’ हो जाता है। जैसे- भो + अति = भवति। यहाँ ‘भो’ में ‘ओ’ है तथा उसके बाद ‘अति’ का प्रथम वर्ण ‘अ’ है, जो कि असमान स्वर है; ऊपर के नियम के अनुसार ‘ओ’ के
स्थान में ‘अव्’ हुआ, तब ‘भव + अति’ रूप बना, इन सबको मिलाने पर ‘भवति’ रूप बना। इसी प्रकार
(i) ए + असमान स्वर = अय्
(ii) ओ + असमान स्वर = अव्
(iii) ऐ + असमान स्वर =आय्
(iv) औ + असमान स्वर = आव्।
अन्य उदाहरण –
6. पूर्वरूप सन्धि
एङः पदान्तादति – यदि पद के अन्त में ‘ए’ अथवा ‘ओ’ हों तथा इनके बाद ह्रस्व ‘अ’ हो तो ‘अ’ का पूर्वरूप (5). हो जाता है। जैसे –
7. परसवर्ण सन्धि
अनुस्वारस्य ययि परसवर्ण: – यदि पद के मध्य अनुस्वार के आगे किसी वर्ग का कोई वर्ण हो तो अनुस्वार के स्थान पर उसी वर्ग का पंचम वर्ण हो जाता है। जैसे –
शाम् / शां + तः = शान्तः
सम् / सं + चयः = सञ्चयः
कुम् / कुं + ठितः = कुण्ठितः
गुम / गुं + फितः = गुम्फितः
(ii) व्यञ्जन सन्धि
परिभाषा – व्यञ्जन का किसी व्यञ्जन के साथ या स्वर के साथ मेल होने पर व्यञ्जन में जो परिवर्तन होता है, उसे व्यञ्जन सन्धि कहते हैं। इसे हल सन्धि भी कहते हैं। जैसे – ‘वागीशः = वाक् + ईशः’ यहाँ स्वर ई के साथ मेल होने पर क् के स्थान में ग् परिवर्तन होकर वागीशः’ शब्द बना।
नोट – व्यञ्जन सन्धि के अनेक भेद हैं। उनमें से श्चुत्व, ष्टुत्व, जश्त्व, चर्व एवं अनुस्वार भेदों का यहाँ निरूपण किया जा रहा है।
1. श्चुत्व सन्धि
स्तोः श्चुना श्चुः – जब स् (वर्ण) अथवा त वर्ग (त् थ् द् ध् न्) के आगे या सामने श् (वर्ण) अथवा च वर्ग (च् छ् ज् झ् ज्) हो तो स् (वर्ण) को श् (वर्ण) और त् थ् द् ध् न् (त वर्ग) टो क्रमशः च् छ् ज् झ् ञ् (च वर्ग) हो जाता है । अर्थात् स् के आगे श् या च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ्) का कोई वर्ण होगा तो स् के स्थान पर श् हो जाता है । इसी तरह ‘त्’ के स्थान पर ‘च’थ्’ के स्थान पर ‘छ’, ‘द्’ के स्थान पर ‘ज्’, ‘ध्’ के स्थान पर ‘झ्’ तथा ‘न्’ के स्थान पर ‘ब्’ हो जाता है। इसी को श्चुत्व सन्धि कहा जाता है। जैसे –
हरिस् + शेते = हरिश्शेते (स् को श् होने पर)
रामस् चिनोति रामश्चिनोति (स् को श् होने पर)
सत् + छात्रः = सच्छात्रः (त् को च् होने पर)
सत् + चित् = सच्चित् (त् को च् होने पर)
क्थ् + झटति = कछ्झटति (थ् को छ् होने पर)
उद् + ज्वलः = उज्ज्वलः (द् को ज् होने पर)
सद् + जनः = सज्जनः (द् को ज् होने पर)
बुध् + झटति = बझ्झटति (ध् को झ् बुध्)
बुध् + झटति = बुझ्झटति (ध् को झ् होने पर)
शाङ्गिन् + जयः = शाङ्गिञ्जयः (न को ज होने पर)
शत्रून् + जयति = शत्रूष्ठज्यति (न् को ब् होने पर)
2. ष्टुत्व सन्धि
ष्टुना ष्टुः – जब वर्ण स् त् थ् द् ध् न् के पहले अथवा बाद में वर्ण ष् ट् ठ् ड् द् ण् में से कोई भी वर्ण आता है तो स् त् थ् द् ध् न् को क्रमशः ष् ट् ठ् ड् ढ् ण् वर्ण हो जाता है। ष् के बाद तवर्गीय वर्ण को क्रमश: टवर्गीय वर्ण हो जाता है। इसी को ष्टुत्व सन्धि कहते हैं। जैसे –
रामस् + षष्ठः = रामष्षष्ठः (स् को ए होने पर)
रामस् + टीकते = रामष्टीकते (स् को ष् होने पर)
तत् + टीका = तट्टीका (त् को ट् होने पर)
मत् + टीका = मट्टीका (त् को ट् होने पर)
कथ + ठक्कुरः = कठ्ठक्कुरः (थ् को ठ् होने पर)
उद् + डयनम् = उड्डयनम् (द् को ड् होने पर)
एतद् + ढक्का = एतड्ढक्का (द् को ड् होने पर)
बध् + ढौकसे बढ्ढौकसे (ध् को द होने पर)
बुध् + डीन = बुडीनः (ध् को द होने पर)
महान् + डामरः = महाण्डामरः (न् को ण् होने पर)
चक्रिन् + ढौकसे = चक्रिण्डौकसे (न् को ण होने पर)
इष + तः = इष्टः (त् को ट् होने पर)
पेष् + ता = पेष्टा (त् को ट होने पर)
3. णत्वविधानम्
रषाभ्यां नो णः समानपदे। अट्कुप्वाङ् नुमव्यायेऽपि ऋवर्णान्नस्य णत्वं वाच्यम्।
(अर्थात् यदि र, ष, ऋ तथा ऋ के बाद ‘न्’ आये तो उसका ‘ण’ हो जाता है।) जैसे –
पितृ + नाम् = पितृणाम्
तिस + नाम् = तिसृणाम्
जीर् + नम् = जीर्णम्
पूर् + नः = पूर्णः
कन् + णः = कण्णः
पूष + ना = तृष्
गीर् + ना = तृष्णा
गीर् + नः = गीर्णः
मुष् + नाति = मुष्णाति
कृष् + नः = कृष्णः
नोट – यदि र, ष, ऋ, ऋ तथा ‘न्’ के बीच में कोई स्वर, कवर्ग, पवर्ग, य, व, र, ह्, तथा अनुस्वार आ जायें तो भी ‘न्’ का ‘ण’ हो जाता है जैसे – रामे + न = रामेण। किन्तु पदान्त ‘न्’ का ‘ण’ नहीं होता यथा – रामा + न् = रामान् ।
4. षत्वविधानम्
अपदान्तस्य मूर्धन्यः। इण्कोः। आदेशप्रत्यययोः। (अर्थात् ‘अ’ तथा ‘आ’ को छोड़कर यदि कोई स्वर ह, य, व, र, ल तथा विसर्ग (:) के बाद ‘स्’ आये और वह ‘स्’ पदान्त का न हो, तो उसका ‘ए’ हो जाता है।) जैसे –
दिक् + सु = दिक्षु, दिक्षु
सर्पिः + सु = सर्पिषु
मातृ + सु = मातृषु
नटे + सु = नटेषु
हरि + सु = हरिषु
यजु + सु = यजुषु
भानु + सु = भानुषु
धनून् + सि = धषि
रामे + सु = रामेषु
चतुर् + सु = चतुर्यु
(iii) विसर्ग सन्धि
परिभाषा – जब विसर्ग के स्थान पर कोई भी परिवर्तन होता है तब वह विसर्ग सन्धि कही जाती है। विसर्ग (:) का स्वर-वर्ण अथवा व्यञ्जन वर्ण से मेल होने पर जब विसर्ग में कोई परिवर्तन होता है तो उसे ‘विसर्ग सन्धि’ कहते हैं।
1. सत्व सन्धि
विसर्जनीयस्य सः – अदि विसर्ग के परे (सामने) क् ख् च् छ, ट, ठ्, त्, थ्, श्, य् फ् अथवा स् वर्गों में से कोई एक वर्ण होता है, तो विसर्ग (:) का (त्, थ् आने पर) स्, (च, छ् आने पर) श् तथा (ट्, ठ् आने पर) ए हो जाता है । इसी को सत्व सन्धि कहते हैं। जैसे –
2. उत्वसन्धि
(I) अतो रोरप्लुतादप्लुते – जब विसर्ग (:) के पहले ह्रस्व ‘अ’ हो तथा विसर्ग (:) के परे (बाद में) भी ह्रस्व ‘अ’ स्वर हो तो विसर्ग (:) के स्थान पर ‘ओ’ तथा बाद में आने वाले ह्रस्व ‘अ’ के स्थान पर अवग्रह चिह्न (s) लगा दिया
जाता है। जैसे –
बालकः + अयम् = बालकोऽयम्।
(विसर्ग को ओ होने से तथा पर ‘अ’ को ‘s’ अवग्रह होने पर)
कः + अपि = कोऽपि।
(विसर्ग को ओ होने से तथा पर ‘अ’ को ‘s’ अवग्रह होने पर)
लक्ष्मणः + अस्ति = लक्ष्मणोऽस्ति।
(विसर्ग को ओ होने से तथा पर ‘अ’ को ‘s’ अवग्रह होने पर)
रामः + अगच्छत् = रामोऽगच्छत्।
(विसर्ग को ओ होने से तथा पर ‘अ’ को ‘s’ अवग्रह होने पर)
रामः + अवदत्= रामोऽवदत्।
(विसर्ग को ओ होने से तथा पर ‘अ’ को ‘s’ अवग्रह होने पर)
(II) हशि च- यदि विसर्ग (:) के पूर्व (पहले) ह्रस्व ‘अ’ हो और विसर्ग (:) के आगे किसी भी वर्ग का तीसरा (ग, ज, ड्, द्, ब्), चौथा (घ, झ, द, ध्, भ), पाँचवां (ङ्, ज्, ण, न, म्)अथवा य, र, ल, व, ह-इन बीस वर्गों में से कोई भी एक वर्ण हो तो विसर्ग (:) के पूर्व वाले ‘अ’ तथा विसर्ग (:) दोनों के स्थान पर ‘ओ’ हो जाता है। जैसे –
विशेष ध्यातव्य – उपुर्यक्त दोनों उत्व सन्धियों में होने वाले विसर्ग (:) को उत्व सन्धि के नियम से ‘उ’ हो जाता है और फिर ‘अ + उ’ को मिलाकर गुण सन्धि के नियम से ‘ओ’ हो जाता है तथा ओ से परे अकार रहने पर अकार का पूर्वरूप होने से ऽ हो जाता है।
3. रुत्व सन्धि
ससजुषोरु: – यदि विसर्ग के पूर्व अ, आ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो और उस विसर्ग (:) के बाद कोई स्वर, वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवां अक्षर, य, र, ल, व्, ह वर्ण हों तो विसर्ग को ‘र’ हो जाता है। जैसे –
4. रेफ लोप सन्धि
रोरि – यदि विसर्ग के बाद ‘र’ हो तो विसर्ग का ‘र’ हो जाता है तथा ‘रोरि सूत्र द्वारा ‘र’ का लोप हो जाता है । यदि ‘र’ के पहले अ, इ, उ हों तो उनका दीर्घ हो जाता है। जैसे –
पुनः + रमते (पुन + र् + रमते) = पुनारमते।
हरिः + रम्यः (हरि + र् + रम्यः) = हरीरम्यः।
भानुः + राजते (भानु + र् + राजते) = भानूराजते।
कविः + राजते (कवि + र् + राजते) = कवीराजते।
शम्भुः + राजते (शम्भु + र् + राजते) = शम्भूराजते।
अभ्यास : 1
प्रश्न – अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिविच्छेदं कुरुत-(निम्नलिखित पदों में सन्धि-विच्छेद कीजिए-)
- पाण्डवाग्रजः
- गत्वैकं
- प्रत्येक:
- भवनम्:
- पावकः
- प्रेजते
- कीटोऽपि
- वध्वागमः
- सर्वेऽस्मिन्
- गंगैषा
- लाकृति
- हरिश्शेते:
- तट्टीका
- विष्णुस्त्राता
- देवो वन्द्यः।
उत्तरम् :
- पाण्डव + अग्रजः
- गत्वा + एकं
- प्रति + एकं
- भो + अनम्
- पौ + अक:
- प्र + एजते
- कोटः + अपि
- वधू + आगमः
- सर्वे + अस्मिन्
- गंगा + एषा
- ल + आकृति
- हरिः + शेते
- तत् + टीका
- विष्णुः + त्राता
- देवो + वन्द्यः।
अभ्यास : 2
प्रश्न – अधोलिखितेषु पदेषु संधि कृत्वा संधिनामोल्लेखं कुरुत (निम्नलिखित पदों में सन्धि करके सन्धि का नाम बताइए-)
- श्री + ईशः
- साधु + ऊचुः
- देव + ऋषिः
- रमा + ईशः
- सदा + एव
- महा + ओषधिः
- दधि + अत्र
- नै + अकः
- जे + अः
- प्र + एजते
- सत् + चि
- पेष् + ताः
- रामे + सु
- राम + स्
- शिवस + अर्च्य।
उत्तरम् :
- श्रीशः (दीर्घ सन्धिः)
- साधूचुः (दीर्घ सन्धि)
- देवर्षिः (गुण सन्धि)
- रमेशः (गा सन्धि)
- सदैव (वृद्धि सन्धि)
- महौसधिः (वृद्धि सन्धि)
- दध्यत्र (यण् सन्धि)
- नायकः (अयादि सन्धिः)
- जयः (अयादि सन्धिः)
- प्रेजते (पररूप सन्धिः)
- सच्चित् (श्चुत्व सन्धिः)
- पेष्टारष्टुत्व सन्धिः)
- रमेसु (षत्वविधानम्)
- रामः (विसर्ग सन्धि)
- शिवोऽर्च्य (उत्व सन्धिः)।
अभ्यास : 3
प्रश्न: – अधोलिखितेषु वाक्येषु स्थूलपदेषु सन्धिनियमान् आधारीकृत्य सन्धिविच्छेदं कुरुत (निम्नलिखित वाक्यों में स्थूल पदों में सन्धि-नियमों को आधार बनाकर सन्धि-विच्छेद कीजिए-)
- अद्याहम् आपणं गमिष्यामि।
- पर्वतानां नृपः हिमालयः अस्ति।
- अद्य राधा विद्यालयं न गमिष्यति।
- तव नाम रवीन्द्रः अस्ति?
- प्रातःकाले सूर्योदयः भवति।
- इन्द्रः हि सुरेन्द्रः अस्ति।
- सिंहः मृगेन्द्रः भवति।
- सायंकाले चन्द्रोदयः भवति।
- प्रतिजनस्य हृदये परमेश्वरः वसति।
- राकेशः कुत्र निवसति?
- देवर्षिः नारदः महान् अस्ति।
- रमेशः स्वगृहस्य नायकः अस्ति।
- राजर्षिः प्रतापवान् आसीत्।
- रमनः श्रेष्ठः गायकः अस्ति।
- स्वामी दयानन्दः महर्षिः आसीत्।
- प्रतिगृहे पावकः भवति।
- श्यामः कुशल: नाविकः अस्ति।
- राहुलः धावकः अस्ति।
- अयम् आश्रमः पवित्रः अस्ति।
- तव गृहे परमैश्वर्यम् अस्ति।
उत्तराणि :
- अद्य + अहम्
- हिम + आलयः
- विद्या + आलयम्
- रवि + इन्द्रः
- सूर्य + उदयः
- सुर + इन्द्रः
- मृग + इन्द्रः
- चन्द्र + उदयः
- परम + ईश्वरः
- राका + ईश:
- देव + ऋषिः
- नै + अक:
- राजा + ऋषि:
- गै + अक:
- महा + ऋषिः
- पौ + अक:
- नौ + इक:
- धौ + अक:
- पो + इत्र:
- परम + ऐश्वर्यम्।
अभ्यास : 4
प्रश्न: – अधोलिखितवाक्येषु स्थूलपदेषु सन्धिनियमान् आधारीकृत्य सन्धिविच्छेदं कुरुत (निम्नलिखित वाक्यों में स्थूल पदों में सन्धि-नियमों को आधार बनाकर सन्धि-विच्छेद कीजिए-)
- तव हृदये परमौदार्यम् अस्ति ।
- निम्बः महौषधम् भवति ।
- त्वच्छ, तदैव अहम् गमिष्यामि ।
- यथा माता करोति तथैव पुत्रः करोति।
- एतस्मिन् पात्रे तण्डुलौदनम् अस्ति।
- सः किं प्रत्युवाच।
- इत्युक्त्वा सः अगच्छत्।
- मम हृदये अत्यौत्सुक्यम् अस्ति।
- त्वं गुर्वाज्ञा न जानासि।
- मम गृहे तव स्वागतम्।
- त्वं पठ, इंति पित्रादेशः।
- समयेऽस्मिन् सः कुत्र भविष्यति?
- वृक्षेऽस्मिन् कः तिष्ठति?
- रामः विद्यालये सच्छात्रः अस्ति।
- गगनमण्डल: उज्ज्वलः अस्ति।
- राहुलः सज्जनः बालकः अस्ति।
- जनकस्य मनः कुण्ठितः आसीत्।
- भिक्षुकः शान्तः आसीत्।
- माता नाविकं पश्यति।
- बालानां हृदयः निश्छलः भवति।
उत्तराणि :
- परम + औदार्यम्
- महा + औषधम्
- तदा + एव
- तथा + एव
- तण्डुल + ओदनम्
- प्रति + उवाच
- इति + उक्त्वा
- अति + औत्सुक्यम्
- गुरु + आज्ञा
- सु + आगतम्
- पितृ + आदेश:
- समये + अस्मिन्
- वृक्षे + अस्मिन्
- सत् + छात्र:
- उद् + ज्वल:
- सत् + जनः
- कुम् + ठित:
- शाम् + तः
- नौ + इकम्
- निः + छलः
अभ्यास : 5
प्रश्न: – अधोलिखितवाक्येषु स्थूलपदेषु सन्धिनियमान् आधारीकृत्य सन्धि कुरुत –
(निम्नलिखित वाक्यों में स्थूल पदों में सन्धि-नियमों को आधार बनाकर सन्धि कीजिए-)
- पूर्णिमायाः दिवसे पूर्ण: रजनी + ईशः उदेति।
- मम दुःख + अन्तः अवश्यमेव भविष्यति।
- रमा प्रात: देव + आलयम् गच्छति।
- उपवने पदम् + आकरः अस्ति।
- सोहनः पुस्तक + आलयं गच्छति।
- मम विद्या + आलय: निकटमस्ति।
- मोहितः प्रवीण: विद्या + अर्थी अस्ति।
- जलाय महती + इच्छा भवति।
- सोहनस्य अभि + इष्टः देवः रामः अस्ति।
- शंकरः गौरी + ईशः अस्ति।
- विष्णुः लक्ष्मी + ईशः अस्ति।
- चन्द्रः एव सुधा + आकरः भवति।
- रवीन्द्रः कवि + इन्द्रः आसीत्।
- मम गृहे विवाह + उत्सवः अस्ति।
- हरि + ईशः प्रवीण: छात्रः अस्ति।
- हिम + आलये विविधाः वृक्षाः सन्ति।
- रल + आकरः गम्भीरः भवति।
- तव जनकस्य नाम परम + आनन्दः अस्ति।
- जनस्य उपरि पितृ + ऋणं भवति।
- नर + इन्द्रः चालकः अस्ति।
उत्तराणि :
- रजनीश:
- दुःखान्तः
- देवालयम्
- पद्माकरः
- पुस्तकालयं
- विद्यालयः
- विद्यार्थी
- महतीच्छा
- अभीष्टः
- गौरीशः
- लक्ष्मीश:
- सुधाकरः
- कवीन्द्रः
- विवाहोत्सवः
- हरीश:
- हिमालये
- रत्नाकरः
- परमानन्दः
- पितृणम्
- नरेन्द्रः।
अभ्यास : 6
प्रश्न: – अधोलिखितवाक्येषु स्थूलपदेषु सन्धिनियमान् आधारीकृत्य सन्धिं कुरुत (निम्नलिखित वाक्यों में स्थूल-पदों में सन्धि-नियमों को आधार बनाकर सन्धि कीजिए-)
- पुष्प + इन्द्रः कुत्र गमिष्यति?
- शिवः एव महा + ईशः अस्ति।
- पर + उपकारः महान् गुणः भवति।
- हित + उपदेशः लाभकारी भवति।
- रामः पुरुष + उत्तमः आसीत्।
- अद्य विद्यालये महा + उत्सवः भविष्यति।
- अद्यापि गगनमण्डले सप्त + ऋषयः दीप्यन्ति।
- ग्रीष्मानन्तरे वर्षा + ऋतुः आगमिष्यति।
- सदा सत्यस्य विजयः भो + अति।
- सः देवं ध्यै + अति।
- हरे + ए रोचते भक्तिः।
- सदा + एव सत्यं वद।
- मम उपरि तु ईश्वर + औदार्यम् अस्ति।
- अद्य जनकस्य गृहे वधू + आगमनम् भविष्यति।
- पुरुषो + अयम् बलवान् अस्ति।
- शय्यां हरिस् + शेते।
- रीना सत् + चरित्रा बालिका अस्ति।
- मम मित्रं सद् + जनः अस्ति।
- विद्यालये अहम् + पठामि।
- बालिका गृहम् + गच्छति।
उत्तराणि :
- पुष्पेन्द्रः
- महेश:
- परोपकार:
- हितोपदेशः
- पुरुषोत्तमः
- महोत्सवः
- सप्तर्षयः
- वर्षर्तुः
- भवति
- ध्यायति
- हरये
- सदैव
- ईश्वरौदार्यम्
- वध्वागमनम्
- पुरुषोऽयम्
- हरिश्शेते
- सच्चरित्रा
- सज्जन:
- अहं पठामि
- गृहं गच्छति।