Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम् Questions and Answers, Notes Pdf.
JAC Board Class 9th Sanskrit व्याकरणम् संज्ञा-शब्दरूप-प्रकरणम्
1. अकारान्त पुल्लिंग’बालक’ शब्द
नोट – इसी प्रकार ह्रस्व ‘अ’ पर समाप्त होने वाले पुँल्लिंग संज्ञा शब्द- मोहन, शिव, नृप (राजा), राम, सुत (बेटा), गज (हाथी), पुत्र, कृष्ण, जनक (पिता), पाठ, ग्राम, विद्यालय, अश्व (घोड़ा), ईश्वर (ईश या स्वामी), बुद्ध, मेघ (बादल), नर (मनुष्य), युवक (जवान), जन (मनुष्य), पुरुष, वृक्ष, सूर्य, चन्द्र (चन्द्रमा), सज्जन, विप्र (ब्राह्मण), क्षत्रिय, दुर्जन (दुष्ट पुरुष), प्राज्ञ (विद्वान्), लोक (संसार), उपाध्याय (गुरु), वृद्ध (बूढ़ा), शिष्य, प्रश्न, सिंह (शेर), वेद, क्रोश (कोस), धर्म ,सागर (समुद्र), कृषक (किसान), छत्र (विद्यार्थी), मानव, भ्रमर, सेवक, समीर (हवा), सरोवर और यज्ञ आदि के रूप चलते हैं।
विशेष – जिस शब्द में र, ऋ अथवा ष् होता है, उसके तृतीया एकवचन के तथा षष्ठी बहुवचन के रूप में ‘न्’ के स्थान पर ‘ण’ हो जाता है। जैसे-‘राम’ शब्द में ‘र’ है। अत: तृतीया एकवचन में रामेण और षष्ठी बहुवचन में ‘रामाणाम्’ रूप बने हैं, किन्तु ‘बालक’ शब्द में र, ऋ अथवा ष् न होने से ‘बालकेन’ व ‘बालकानाम्’ रूप बनते हैं।
2. इकारान्त पुल्लिंग’कवि’ शब्द
नोट – इस प्रकार ह्रस्व ‘इ’ पर समाप्त होने वाले सभी पुल्लिंग संज्ञा शब्द-हरि (विष्णु या किसी पुरुष का नाम), बह्नि (आग), यति, (संन्यासी), नृपति (राजा), भूपति (राजा), गणपति (गणेश), प्रजापति (ब्रह्मा), रवि (सूर्य), कपि (बन्दर), अग्नि (आग), मुनि, जलधि (समुद्र), ऋषि, गिरि (पहाड़), विधि (ब्रह्मा), मरीचि (किरण), सेनापति, धनपति (सेठ), विद्यापति (विद्वान्), असि (तलवार), शिवि (शिवि नाम का राजा), ययाति (ययाति नाम का राजा) और अरि (शत्रु) आदि के रूप चलते हैं।
विशेष – जिन शब्दों में र, ऋ अथवा ष् होता है, उनमें तृतीया एकवचन में व षष्ठी बहुवचन में ‘न्’ के स्थान पर ‘ण’ हो जाता है। जैसे-हरि शब्द (रि में र होने के कारण)तृतीया एकवचन में हरिणा’ होगा तथा षष्ठी बहुवचन में ‘हरीणाम्’ होगा किन्तु ‘कवि’ में र्, ऋ अथवा ए नहीं होने के कारण ‘कविना’ तथा कवीनाम्’ ही हुए हैं।
3. उकारान्त पुल्लिंग ‘गुरु’ शब्द
नोट – इसी प्रकार भानु, साधु, शिशु, इन्दु, रिपु, शत्रु, शम्भु, विष्णु आदि शब्दों के रूप चलते हैं।
4. उकारान्त पुंल्लिग ‘साधु’ शब्द
नोट – इसी प्रकार गुरु, भानु, तरु, बन्धु (भाई), रिपु (शत्रु), शिशु, वायु, प्रभु, विधु, ऋतु, सिन्धु, बिन्दु, बहु, इक्षु, शत्रु आदि उकारान्त शब्दों के रूप भी चलते हैं।
5. ऋकारान्त पुंल्लिंग ‘पितृ’ (पिता) शब्द
नोट – इसी प्रकार ह्रस्व (छोटी) ‘ऋ’ से अन्त होने वाले अन्य पुल्लिग शब्दों-भ्रातृ (भाई) और जामात (जमाई, दामाद) आदि के रूप चलेंगे।
6. विद्वस्’ (विद्वान्) शब्द पुंल्लिंग
7. नकारान्त राजन् (राजा) शब्द पुंल्लिंग
8. नकारान्त आत्मन् (आत्मा) शब्द पुँल्लिंग
नोट- इसी प्रकार अध्वन् (मार्ग), मूर्धन् (सिर), अश्मन् (पत्थर) आदि शब्दों के रूप आत्मन् की भाँति ही चलेंगे।
9. तकारान्त पुंल्लिंग ‘गच्छत्’ (जाता हुआ) शब्द
10. आकारान्त स्त्रीलिंग ‘रमा’ शब्द
नोट – इसी प्रकार दीर्घ (बड़े) ‘आ’ से अन्त होने वाले अन्य स्त्रीलिंग शब्दों-बाला (लड़की), लता, कन्या (लड़की), रक्षा, कथा (कहानी), क्रीडा (खेल), पाठशाला (विद्यालय), शीला, लीला, सीता, गीता, विमला, प्रमिला, प्रभा, विभा, सुधा (अमृत), चेष्टा (यल), विद्या, कक्षा, व्यथा (कष्ट) और बालिका (लड़की) आदि के रूप चलते हैं।
विशेष – जिन शब्दों में र, ऋ अथवा ष् वर्ण (अक्षर) होता है, उनमें षष्ठी बहुवचन में ‘न्’ के स्थान पर ‘ण’ हो जाता है। जैसे- रमा शब्द में ‘र’ है। अतः षष्ठी बहुवचन में ‘रमाणाम्’ रूप बनेगा किन्तु लता शब्द में र, ऋ अथवा ष् वर्ण (अक्षर) नहीं है। अतः षष्ठी बहुवचन में लतानाम् रूप ही होगा।
11. इकारान्त स्त्रीलिंग’मति’ (बुद्धि शब्द
नोट – इसी प्रकार ह्रस्व (छेटी) ‘इ’ से अन्त होने वाले स्त्रीलिंग शब्दों-प्रकृति (स्वभाव),शक्ति (सामर्थ्य), तिथि, भीति (भय), गति (दशा), कृति (रचना), वृत्ति (पेशा), बुद्धि, सिद्धि, सृष्टि (उत्पत्ति), श्रुति (वेद), स्मृति (यादगार), भूमि (पृथ्वी), प्रीति (प्रेम), भक्ति और सूक्ति (सुभाषित) आदि के रूप चलते हैं।
12. ईकारान्त स्त्रीलिंग ‘नदी’ शब्द
नोट – इसी प्रकार दीर्घ (बड़ी) ‘ई’ से अन्त होने वाले स्त्रीलिंग शब्दो-देवी, भगवती, सरस्वती, श्रीमती, कुमारी (अविवाहिता), गौरी (पार्वती), मही (पृथ्वी), पुत्री (बेटी), पत्नी, राज्ञी (रानी), सखी (सहेली), दासी (सेविका), रजनी (रात्रि), महिषी (रानी, भैंस), सती, वाणी, नगरी, पुरी, जानकी और पार्वती आदि शब्दों के रूप चलते हैं।
13. मातृ (माता) ऋकारान्त स्त्रीलिंग शब्द
इसी प्रकार ह्रस्व (छोटी) ‘ऋ’ से अन्त होने वाले अन्य सभी स्त्रीलिंग शब्दों-दुहितु (पुत्री) और यातृ (देवरानी) आदि के रूप चलेंगे।
नोट – ‘मातृ’ शब्द के द्वितीया विभक्ति के बहुवचन के ‘मातृः’ इस रूप को छोड़कर शेष सभी रूप ‘पितृ’ शब्द के समान ही चलते हैं।
14. अकारान्त नपुंसकलिंग’फल'(फल-परिणाम) शब्द
नोट – इस ‘फल’ शब्द के ‘तृतीया विभक्ति’ के एकवचन से लेकर ‘सम्बोधन विभक्ति’ के एकवचन तक के ये 16 (सोलह) रूप ‘बालक’ शब्द के रूपों के समान ही चलते हैं।
इसी प्रकार पुस्तक, कमल, नगर (शहर), पुर (शहर), गृह (घर), पुष्प (फूल), पत्र (पत्ता, चिट्ठी), हृदय, सुख, दुःख, जल (पानी), ज्ञान (जानकारी), गमन (जाना) आदि अकारान्त नपुंसकलिंग शब्दों के रूप चलेंगे। जिन शब्दों में र, ऋ अथवा ए होगा उनके प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में तथा द्वितीया विभक्ति के बहुवचन के रूपों में “नि’ के स्थान पर ‘णि’ हो जायेगा। जैसे-गृहम्, गृहे, गृहाणि (प्रथमा में) तथा गृहम् गृहे, गृहाणि (द्वितीया में) इसी प्रकार षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में भी ‘गृहाणाम् रूप बनेगा। इसी प्रकार ‘सम्बोधन’ विभक्ति के बहुवचन में भी ‘हे गृहाणि’ रूप ही बनेगा।
15. उकारान्त नपुंसकलिंग’मधु’ (शहद) शब्द
अन्य उपयोगी शब्द-रूप :
1. अकारान्त पुल्लिंग ‘राम’ शब्द
नोट – ये सभी रूप ‘बालक’ शब्द के समान ही हैं।
2. दातृ (देने वाला) ऋकारान्त पुल्लिंग शब्द
नोट – इसी प्रकार ह्रस्व ‘ऋ’ से अन्त होने वाले अन्य पुल्लिंग शब्दों-कर्तृ (करने वाला), नेतृ (ले जाने वाला), वक्तृ (बोलने वाला), नप्त (नाती), सवितृ (सूर्य), श्रोतृ (सुनने वाला), भर्तृ (स्वामी), निर्मातृ (बनाने वाला), धातृ (ब्रह्मा), भोक्तृ (खाने वाला) और हर्तृ (चुराने वाला) आदि के रूप चलेंगे।
3. उकारान्त स्त्रीलिंग’धेनु’ (गाय) शब्द
नोट – इस प्रकार ह्रस्व ‘उ’ से अन्त होने वाले स्त्रीलिंग शब्दों-तनु (शरीर), रेणु (धूल), रज्जु (रस्सी), कामधेनु, चञ्चु (चोंच) और हनु (ठोड़ी) आदि के रूप चलते हैं।
विशेष – धेनु शब्द के चतुर्थी, पञ्चमी, षष्ठी और सप्तमी विभक्ति के एकवचन के दो-दो रूप बनते हैं। इनमें से प्रथम रूप नदी शब्द के समान बनता है तथा द्वितीय रूप भानु शब्द के समान बनता है। इन दो रूपों में से किसी भी एक रूप को प्रयोग में लाया जा सकता है।
4. इकारान्त नपुंसकलिंग’दधि’ (दही) शब्द
नोट – इसी प्रकार ‘अस्थि’ (हड्डी) के सभी रूप चलेंगे।
5. इकारान्त नपुंसकलिंग वारि’ (जल) शब्द
6. तकारान्त पुल्लिंग’वदत्'(बोलता हुआ)
शतृ प्रत्यान्त शब्द
नोट – ये सम्पूर्ण रूप ‘गच्छत्’ तकारान्त पुल्लिग के समान है।
7. तकारान्त पुल्लिंग भगवत् (भगवान्) शब्द
नोट – क्तवतु (कृदन्त) प्रत्यय, मतुप् (तद्धित) प्रत्ययान्त शब्दों के रूप इसी के समान चलेंगे। शतृ प्रत्ययान्त पठत् के प्रथमा एकवचन में आन् के स्थान पर अन् लगेगा। शेष रूप इस ‘भगवत्’ के समान ही चलेंगे।
8. नपुंसकलिंग पयस्’ (दूध, जल) शब्द
नोट -इसी प्रकार ‘मनस् (मन) के सम्पूर्ण रूप चलेंगे।
9. इकारान्त पुल्लिंग’हरि'(विष्णु) शब्द
नोट – ये सभी रूप ‘कवि’ शब्द के समान ही हैं।
10. इकारान्त पुल्लिंग ‘पति’ (स्वामी) शब्द
नोट – ‘पति’ शब्द का जब किसी शब्द के साथ समास होता है जैसे-भूपति, नृपति आदि, तो इसके रूप ‘पति’ की तरह न चलकर ‘कवि’ की तरह चलते हैं।
अभ्यास
1. कोष्ठके प्रदत्तं निर्देशानुसारम् उचित विभक्तिपदेन रिक्तस्थानानि पूर्तिं कुरुत –
(कोष्ठक में दिये निर्देशानुसार उचित विभक्ति पद से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-)
- ……………… पत्रं पतति। (वृक्ष-पञ्चमी)
- ……………….. हरीशः विनम्रः।(छात्र-सप्तमी)
- भो ……………… पत्रं पठ। (महेश-सम्बोधन)
- ………………. किं हसन्ति ? (भवान्-प्रथम)
- …………….. शनैः शनैः लिखति (केशव-प्रथमा)
- गोपालः जलेन ………………. प्रक्षालयति। (मुख-द्वितीया)
- सेवकः स्कन्धेन ……. वहति। (भार-द्वितीया)
- सः …………….. कोमलः। (स्वभाव-तृतीया)
- कोऽर्थः ………………. यो न विद्वान् न धार्मिकः। (पुत्र-तृतीया)
- भक्तः …………….. हरिं भजति। (मुक्ति-चतुर्थी)
- ………………. क्रीडनकं रोचते। (शिशु-चतुर्थी)
- …………….. ‘ज्ञानं गुरुतरम्। (धन-पंचमी)
- ……………. गङ्गा प्रभवति। (हिमालय-पंचमी)
- ………………. हेतोः वाराणस्यां तिष्ठति। (अध्ययन-षष्ठी)
- ………………. ओदनं पचति ।(स्थाली-सप्तमी)
उत्तरम् :
- वृक्षात्
- छात्रेषु
- महेश!
- भवन्तः
- केशवः
- मुखं
- भारं
- स्वभावेन
- पुत्रेण
- मुक्तये
- शिशवे
- धनात्
- हिमालयात्
- अध्ययनस्य
- स्थाल्याम्।
2. कोष्ठकात् उचितविभक्तियुक्तं पदं चित्वा वाक्यपूर्तिः क्रियताम् –
(कोष्ठक से उचित विभक्तियुक्त पद को चुनकर वाक्य-पूर्ति कीजिए-)
- ………………. पुरोहितः गलथयत्। (शुद्धोदनाय, शुद्धोदनस्य, शुद्धोदने)
- मम ……………….. स्वां दुहितरं यच्छ। (पिता, पित्रा, पित्रे)
- शान्तनुः ………………….. वरम् अयच्छत्। (भीष्माय, भीष्मे, भीष्मात्)
- अयि ………………. मम मित्रं भविष्यति।। (चटकपोत!, चटकपोतं, चटकपोतैः)
- अस्मिन् ……………. प्रत्येकं स्व-स्वकृत्ये निमग्नो भवति। (जगत्, जगता, जगति)
- कस्मिंश्चिद् ………………. एका निर्धना वृद्धा स्त्री न्यवसत्। (ग्रामेन, ग्रामे, ग्रामस्य)
- सा ……………….. बहिः आगन्तव्यम्। (ग्रामात्, ग्रामे, ग्रामान्)
- लुब्धया ……………… लोभस्य फलं प्राप्तम्। (बालिका, बालिकया, बालिकायाः)
- इन्दुः …………….. प्रकाशं लभते। (भानुना, भानोः, भानवे)
- ………………. गङ्गा सर्वश्रेष्ठा। (नद्याम्, नद्याः नदीषु)
- भो भगवन्! ………………. दयस्व। (मयि, माम्, अहं)
- ……………… सर्वत्र पूज्यते। (विद्वान्, विद्वांसः विद्वांसौ)
- रविः प्रतिदिनं …………….. नमति। (ईश्वराय, ईश्वरे, ईश्वरम्)
- सः …………… पश्यति। (राजानम्, राज्ञाम्, राज्ञा)
- रामः ………………. पटुतरः। (मोहनेन, मोहनस्य, मोहनात्)
उत्तरम् :
- शुद्धोदनस्य
- पित्रे
- भीष्माय
- चटकपोत !
- जगति
- ग्रामे
- ग्रामात्
- बालिकया
- भानुना
- नदीषु
- मयि
- विद्वान्
- ईश्वरम्
- राजानम्
- मोहनात्।
3. समुचितं विभक्तिप्रयोगं कृत्वा रिक्तस्थानानि पूरयत –
(उचित विभक्ति का प्रयोग करके रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-)
- …………… कुत्र गच्छति ? (भवत्)
- ……………. मोदकं रोचते। (बालक)
- ………………. अभितः वनं अस्ति। (ग्राम)
- कर्णः ………………. सह नगरं गच्छति। (पिता)
- …………….. उद्भवति। (हिमालय)
- …………….. कक्षायां बालकाः पठन्ति। (इदम्)
- सः …………….. अधितिष्ठति। (आसन)
- मुनिः …………….. लोकं जयति। (सत्य)
- नृपः ………………. क्रुध्यति। (दुर्जन)
- बालक: …………….. बिभेति। (चोर)
उत्तरम् :
- भवान्
- बालकाय
- ग्रामम्
- पित्रा
- हिमालयात्
- अस्याम्
- आसनम्
- सत्येन
- दुर्जनेभ्यः
- चोरात्।