JAC Board Class 9th Social Science Solutions History Chapter 1 फ्रांसीसी क्रांति
JAC Class 9th History फ्रांसीसी क्रांति InText Questions and Answers
विद्यार्थियों हेतु निर्देश: पाठ्य-पुस्तक में इस अध्याय के विभिन्न पृष्ठों पर बॉक्स के अन्दर क्रियाकलाप दिए हुए हैं। इन क्रियाकलापों के अन्तर्गत पूछे गए प्रश्नों के क्रमानुसार उत्तर निम्न प्रकार से हैं
क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-5)
प्रश्न 1.
बताएँ कि चित्रकार ने कुलीन व्यक्ति को मकड़े और किसान को मक्खी के रूप में क्यों चित्रित किया
उत्तर:
चित्रकार ने कुलीन व्यक्ति को मकड़े और किसान को मक्खी के रूप में इसलिए चित्रित किया है, क्योंकि मक्खियाँ अपना भोजन प्राप्त करने के लिए कठिन परिश्रम करती हुईं इधर-उधर भटकती रहती हैं। जबकि मकड़ा एक जाल बनाकर मक्खियों को फँसा लेता है एवं बिना कोई मेहनत किये बैठे-बिठाये भोजन प्राप्त कर लेता है।
ठीक उसी प्रकार तत्कालीन फ्रांसीसी समाज में कुलीन वर्गों ने एक ऐसा राजतन्त्र विकसित कर लिया था, जिसमें किसान कड़ी मेहनत से रोजी-रोटी की व्यवस्था करते थे तथा कुलीन वर्ग उसे बिना कोई मेहनत किये ‘कर’ के रूप में प्राप्त कर लेता था। चित्रकार द्वारा इस तरह का चित्रण तत्कालीन फ्रांसीसी समाज में शोषक वर्ग और उसके द्वारा निर्मित विधि-व्यवस्था को निरूपित करता है।
क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-6)
प्रश्न 2.
नीचे दिए गए शब्दों में से सही शब्द चुनकर चित्र 4 के रिक्त स्थानों को भरें: खाद्य दंगे, अन्नाभाव, मृतकों की संख्या में वृद्धि, खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमत, कमजोर शरीर।
उत्तर:
क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-7)
प्रश्न 1.
यहाँ आर्थर यंग क्या सन्देश देने की कोशिश कर रहे हैं? ‘गुलामों’ से उनका क्या आशय है? वह किसकी आलोचना कर रहे हैं? सन् 1787 ई. में उन्हें किन खतरों का आभास होता है?
उत्तर:
- यहाँ आर्थर यंग यह सन्देश देने की कोशिश कर रहे हैं कि पादरी एवं कुलीन वर्ग गुलामों की जगह स्वतन्त्र लोगों की सेवा लेने के खतरों के प्रति पूरी तरह सावधान हैं।
- गुलामों से उनका आशय फ्रांसीसी सामाजिक व्यवस्था के शिकार लोगों से है।
- वह पादरी तथा कुलीन वर्गों की आलोचना कर रहे हैं जिन्होंने भोली-भाली गरीब जनता को अपना शिकार बनाया है।
- सन् 1787 ई. में उन्हें उस खतरे का आभास होता है जब पीड़ित लोगों का विलाप एक ऐसे दंगे का रूप ले सकता है जिसमें स्वयं पादरी एवं कुलीन वर्ग के परिवार सुरक्षित नहीं होंगे।
क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-8)
प्रश्न 1.
तृतीय एस्टेट के प्रतिनिधि मध्य में एक मेज पर खड़े असेम्बली अध्यक्ष बेयली की ओर हाथ उठाकर शपथ लेते हैं। क्या आप मानते हैं कि उस समय बेयली निर्वाचित प्रतिनिधियों की ओर पीठ करके खड़ा रहा होगा? बेयली को इस तरह दर्शाने (चित्र 5) के पीछे डेविड का क्या इरादा प्रतीत होता है ?
उत्तर:
नहीं, मेरा मानना है कि बेयली उस समय निर्वाचित प्रतिनिधियों की ओर पीठ करके खड़ा नहीं रहा होगा। बेयली को इस तरह से दर्शाकर डेविड ने यह इरादा दर्शाया है कि निर्वाचित प्रतिनिधि बेयली के प्रति अपना समर्थन व्यक्त कर रहे थे।
क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-13)
प्रश्न 1.
पाठ्य पुस्तक के पृष्ठ 12-13 पर दिए बॉक्स 1 में स्वतन्त्रता, समानता एवं बन्धुत्व के प्रतीकों की पहचान करें।
उत्तर:
टूटी हुई जंजीर – स्वतन्त्रता की सूचक विधिपट समानता का सूचक नीला-सफेद-लाल फ्रांस के राष्ट्रीय रंग जो उसकी जनता के बीच बन्धुत्व के सूचक हैं।
प्रश्न 2.
ले बार्बिये के पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणा-पत्र’ पाठ्य पुस्तक के पृष्ठ 11 के (चित्र 8) में चित्रित प्रतीकों की व्याख्या करें।
उत्तर:
चित्र में एक महिला को नीले, सफेद और लाल रंग के वस्त्र में दर्शाया गया है, ये रंग फ्रांस के राष्ट्रीय रंग हैं। महिला के हाथ में टूटी हुई जंजीर है, जो स्पष्ट करती है कि फ्रांस की जनता अब आजाद है। परन्तु दूसरी ओर डेनों वाली स्त्री का चित्र है, जो स्वयं कानून का प्रतीक है। इससे संदेश मिलता है कि जनता की स्वतन्त्रता कानून के दायरे में ही है। दोनों चित्रों को विधि पट पर दर्शाया गया है जिससे संदेश मिलता है कि कानून सभी के लिए समान है।
प्रश्न 3.
सन् 1791 ई. के संविधान में नागरिकों को दिए गए राजनीतिक अधिकारों के घोषणा-पत्र (स्रोत ग)के अनुच्छेद 1 एवं 6 में दिए गए अधिकारों से तुलना करें।क्या दोनों दस्तावेज एक-दूसरे के अनुरूप हैं? क्या दोनों दस्तावेजों से एक ही विचार का बोध होता है?
उत्तर:
- अनुच्छेद (1) के तहत् सभी नागरिकों को समान अधिकार दिया गया है, जबकि अनुच्छेद (6) के तहत् सभी नागरिकों को प्रत्यक्ष रूप से अथवा अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से कानून के निर्माण में भाग लेने का अधिकार दिया गया है।
- दोनों दस्तावेजों में घोषित अधिकार एक-दूसरे के पूरक हैं।
- दोनों दस्तावेजों से एक ही विचार का बोध नहीं होता है। अनुच्छेद (1) में लोगों की प्राकृतिक स्वतन्त्रता तथा समानता के अधिकारों पर जोर दिया गया है, किन्तु अनुच्छेद (6) के तहत् लोगों की सम्प्रभुता एवं कानून के निर्माण में सबकी सहभागिता की घोषणा की गई है तथा कानून के समक्ष समानता के उनके अधिकार की चर्चा की गई है।
प्रश्न 4.
सन् 1791 ई.के संविधान से फ्रांसीसी समाज के कौन-से समूह लाभान्वित हुए होते? किन समूहों को इससे असन्तोष हो सकता था? ‘मरा’ ने भविष्य के बारे में कौन-से पूर्वानुमान (स्रोत खोलगाए थे?
उत्तर:
- सन् 1791 ई. के संविधान से फ्रांसीसी समाज के तृतीय एस्टेट के सदस्यों को सर्वाधिक लाभ पहुँचा होगा।
- प्रथम तथा द्वितीय एस्टेट्स के सदस्यों अर्थात् पादरी एवं कुलीन वर्गों के लिये निराश होने के पर्याप्त कारण मौजूद थे। एक तरफ उनको मिली हुई सभी विशेष सुविधाएँ समाप्त कर दी गईं तथा दूसरी तरफ अब दी गईं सुविधाओं के अनुपात में उन्हें ‘कर’ भी अदा करना था।
- ‘मरा’ भविष्य के विकास के बारे में यह राय रखता है कि यदि लोग कुलीन वर्ग की गुलामी की जंजीरों को उतार कर फेंक सकते हैं तो आगे चलकर उसी तरह की पुनरावृत्ति अन्य अमीरों के साथ भी हो सकती है।
प्रश्न 5.
फ्रांस की घटनाओं से निरंकुश राजतन्त्र वाले प्रशा, ऑस्ट्रिया, हंगरी या स्पेन आदि देशों पर पड़ने वाले प्रभावों की कल्पना कीजिए। फ्रांस में हो रही घटनाओं की खबरों पर राजाओं, व्यापारियों, किसानों, कुलीनों एवं पादरियों ने कैसी प्रतिक्रिया दी होगी?
उत्तर:
- फ्रांस की घटनाओं की छाया पड़ोस के निरंकुश राजतन्त्र वाले देशों प्रशा ऑस्ट्रिया हंगरी या स्पेन आदि पर भी अवश्य पड़ी होगी। इन देशों ने अपनी निरंकुशता कम करके नागरिकों का शोषण कम कर दिया होगा, क्योंकि उन्हें भय होने लगा होगा कि फ्रांस की घटना यहाँ भी दोहराई जा सकती हैं।
- इन राज्यों में राजा, कुलीन वर्ग तथा पादरी सभी फ्रांस की घटनाओं से डर गये होंगे। उन्होंने गरीबों का शोषण और उन पर अत्याचार करना कम कर दिया होगा, जबकि किसान, मजदूर तथा व्यापारी वर्ग इन राज्यों में फ्रांस जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति का स्वागत करने के लिये तैयार बैठे होंगे।
क्रियाकलाप ( पृष्ठ संख्या-15)
प्रश्न 1.
चित्र 10 को ध्यान से देखें और उन वस्तुओं की सूची बनाएँ जिन्हें आपने राजनीतिक प्रतीकों के रूप में बॉक्स 1 में देखा है (लाल टोपी, टूटी हुई जंजीर, छड़ों का बींदार गट्ठर, अधिकारों का घोषणा-पत्र)। पिरामिड समानता का प्रतीक है, जिसे अक्सर एक त्रिभुज के रूप में दिखाया जाता था। इन प्रतीकों की सहायता से इस चित्र की व्याख्या करें। स्वतन्त्रता की प्रतिमूर्ति इस महिला मूर्ति के बारे में आपके क्या विचार हैं?
उत्तर:
- महिला के हाथ में स्थित लाल टोपी तथा अधिकारों का घोषणा-पत्र दो राजनीतिक चिह्न हैं।
- पिरामिड की त्रिभुजीय आकृति समानता की सूचक है, क्योंकि इसकी तीनों भुजाएँ यह प्रदर्शित करती हैं कि सरकार बनाने वाली तीनों एस्टेट्स की शक्तियाँ एवं अधिकार बराबर हैं।
- स्वतन्त्रता की प्रतिमूर्ति यह महिला मूर्ति, सच्ची स्वतन्त्रता की सूचक है, क्योंकि सदियों तक महिलाओं को उनकी स्वतन्त्रता से दूर रखा गया था।
क्रियाकलाप ( पृष्ठ संख्या-16)
प्रश्न 1.
1. डेस्मॉलिन्स और रोबेस्प्येर के विचारों की तुलना करें। राज्य शक्ति के प्रयोग से दोनों का क्या तात्पर्य है?
2. निरंकुशता के विरुद्ध स्वतन्त्रता की लड़ाई से रोबेस्प्येर का क्या मतलब है?
3. डेस्मॉलिन्स स्वतन्त्रता को कैसे देखता है?
4. एक बार फिर स्रोत (ग) देखें। व्यक्तिगत अधिकारों के बारे में संविधान में कौन-से प्रावधान थे? इस विषय पर अपनी कक्षा में चर्चा करें।
उत्तर:
- रोबेस्प्येर का मानना था कि क्रान्ति के दौरान लोकतान्त्रिक सरकार के लिये आतंक का उपयोग न्यायोचित था, जबकि डेस्मॉलिन्स मानते थे कि राजदण्ड का उपयोग स्थापित कानून के अनुरूप हो।
- निरंकुशता के विरुद्ध स्वतन्त्रता की लड़ाई से रोबेस्प्येर का मतलब देश के अन्दर तथा बाहर गणतन्त्र के दुश्मनों को समूल नष्ट कर देने से था।
- डेस्मॉलिन्स के लिये स्वतन्त्रता से तात्पर्य था खुशहाली, विवेक , समानता, न्याय आदि। वे इसे अधिकारों की घोषणा के रूप में लेते थे।
- संविधान के नियमों के तहत् व्यक्ति को स्वतन्त्रता, समानता, सम्पत्ति, सुरक्षा एवं शोषण का विरोध करने के अधिकार दिये गये थे।
क्रियाकलाप ( पृष्ठ संख्या-17)
प्रश्न 1.
यहाँ चित्रित जनसमूह, उनकी वेशभूषा, भूमिका एवं क्रियाकलाप का वर्णन करें। इस चित्र से क्रांतिकारी उत्सव की कैसी छवि बनती है?
उत्तर:
चित्र में दर्शाया गया जनसमूह उत्सव मना रहा है। उसकी वेशभूषा गौरवमयी इतिहास को प्रदर्शित कर रही है जिसमें प्राचीन यूनान व रोम की सभ्यताओं के प्रतीकों का प्रयोग किया गया है। इस उत्सव के द्वारा क्रान्तिकारी सरकार ने जनता की वफादारी हासिल करने का प्रयास किया है। अत: एक अच्छी छवि का प्रदर्शन हो रहा है।
क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या 18)
प्रश्न 1.
1. चित्र 12 में अंकित औरतों, उनकी क्रियाओं, उनके हाव-भाव एवं उनके हाथ की वस्तुओं का विवरण दें।गौर से देखें कि क्या वे सभी एक ही सामाजिक वर्ग की लगती हैं?
2. चित्रकार ने इस आकृति में किन प्रतीकों को शामिल किया है? इन प्रतीकों के क्या मायने हैं?
3. क्या महिलाओं को देखकर लगता है कि वे सार्वजनिक रूप से वही कर रही हैं जिसकी उनसे उम्मीद की जाती थी?
4. आप क्या सोचते हैं चित्रकार, महिलाओं के साथ है या उनके विरोध में खड़ा है? कक्षा में अपनी राय पर विचार-विमर्श कीजिए। उनके हाथों में ढोल, त्रिशूल तराजू, लालटोपी, भाला तलवार डण्डा आदि दिखाई दे रहे हैं तथा उनके हाव-भाव क्रान्ति के लिए बढ़ती हुई महिलाओं के लग रहे हैं।
उत्तर:
- चित्र 12 में दिखायी गई सभी स्त्रियाँ तृतीय एस्टेट्स की लगती हैं। उनके हाथों में ढोल त्रिशूल, तराज, लाल टोपी, भाला, तलवार, डण्डा आदि दिखाई दे रहे हैं तथा उनके हाव-भाव क्रान्ति के लिए आगे बढ़ती हुई महिलाओं के लग रहे हैं।
- चित्रकार ने अपने चित्र में निम्नलिखित प्रतीकों को शामिल किया हैमहिलाएँ-न्याय की देवी की सूचक हैं। तराजू-समानता का सूचक है। त्रिशूल, भाला, फरसा तथा तलवार-ये शक्ति एवं विद्रोह के सूचक हैं।
- नहीं, महिलाओं की मुद्रायें सार्वजनिक जीवन में उनसे अपेक्षित पारम्परिक व्यवहार के विचार को प्रदर्शित नहीं करती हैं।
- मेरे विचार से चित्रकार महिलाओं के साथ है वह महिलाओं की गतिविधियों के प्रति सहानुभूति रखता है।
क्रियाकलाप (पृष्ठ-20)
प्रश्न 1.
ओलम्प दे गूज द्वारा तैयार किये गये घोषणा-पत्र (स्रोत छ ) तथा पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणा-पत्र’ (स्रोत ग)की तुलना करें।
उत्तर:
पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणा-पत्र (स्रोत ग) केवल मानव तथा नागरिक के अधिकारों की बात करता है। इस घोषणा-पत्र में महिलाओं के अधिकारों की चर्चा किसी भी अनुच्छेद में नहीं की गई है। जबकि ओलम्प दे गूज द्वारा तैयार किया गया घोषणा-पत्र (स्रोत छ) पुरुष एवं महिला के अधिकारों की चर्चा समानता के आधार पर करता है।
प्रश्न 2.
कल्पना करें कि आप चित्र 13 की कोई महिला हैं और शोमेत ( स्रोत ज )के तर्कों का जवाब दें।
उत्तर:
यह सही है कि कुछ कार्यों को महिलाएँ अच्छी प्रकार से कर सकती हैं तथा कुछ को पुरुष अच्छी प्रकार से कर सकते हैं। लेकिन परिवार एवं समाज के विकास के लिए एक-दूसरे के कार्यों में सहयोग करना आवश्यक है। अत: महिलाओं को उनकी पसंद का कार्य करने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए क्योंकि किसी कार्य को करने की क्षमता एवं योग्यता कार्य करने वाले पर व्यक्तिगत रूप से निर्भर होती है।
क्रियाकलाप ( पृष्ठ संख्या-22 )
प्रश्न 1.
इस चित्र का अपने शब्दों में वर्णन करें। चित्रकार ने लोभ, समानता, न्याय, राज्य द्वारा चर्च की सम्पत्ति का अधिग्रहण आदि विचारों को सम्प्रेषित करने के लिए किन प्रतीकों का सहारा लिया है?
उत्तर:
- लोभ: मोटे आदमी के प्रतीक द्वारा प्रतिरोध करना।
- समानता: पुरुष तथा महिला का एक साथ होना।
- न्याय: दो व्यक्ति दु:खी होकर जा रहे हैं। जो इस बात का प्रतीक हैं कि न्याय नहीं किया गया।
- राज्य द्वारा चर्च की सम्पत्ति का अधिग्रहण: चित्र में एक व्यक्ति को दाब मशीन में लगाकर दबाया जा रहा है, जो राजा द्वारा चर्च की सम्पत्ति के अधिग्रहण का प्रतीक है।
क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-24)
प्रश्न 1.
इस अध्याय में आपने जिन क्रान्तिकारी व्यक्तियों के बारे में पढ़ा है उनमें से किसी एक के बारे में और जानकारियाँ इकट्ठा करें। उस व्यक्ति की संक्षिप्त जीवनी लिखें।
उत्तर:
ओलम्प दे गूज (1748-1793) ओलम्प दे गूज फ्रांसीसी क्रान्ति में सर्वाधिक सक्रिय भूमिका निभाने वाली महिलाओं में से एक थी। उसने संविधान तथा पुरुष एवं नागरिकों के अधिकार सम्बन्धी घोषणा-पत्र का विरोध किया। क्योंकि इस घोषणा-पत्र ने प्रत्येक मनुष्य को प्राप्त मौलिक अधिकारों से महिलाओं को दूर रखा।
उसने स्वयं महिलाओं तथा नागरिकों के अधिकार सम्बन्धी एक घोषणा-पत्र को सन् 1791 ई. में तैयार किया। उसने इसे महारानी तथा नेशनल असेम्बली के सदस्यों को भेजा तथा उसने इन लोगों से इस घोषणा-पत्र पर कार्यवाही करने की माँग की। सन् 1793 ई. में उसने जैकोबिन सरकार द्वारा बलपूर्वक महिलाओं के क्लबों को बन्द कराये जाने की आलोचना की। उसके ऊपर नेशनल कन्वेंशन ने देशद्रोह का मुकदमा चलाकर फाँसी दे दी।
प्रश्न 2.
फ्रांसीसी क्रान्ति के दौरान ऐसे अखबारों का जन्म हुआ जिनमें हर दिन और हर हफ्ते की घटनाओं का ब्यौरा दिया जाता था। किसी एक घटना के बारे में जानकारियाँ और तस्वीरें इकट्ठा करें तथा अखबार के लिए एक लेख लिखें। आप चाहें तो मिराब्यो, ओलम्प दे गूज या रोबेस्प्येर आदि के साथ काल्पनिक साक्षात्कार भी कर सकते हैं। दो या तीन का समूह बना लें। हर समूह फ्रांसीसी क्रांति पर एक दीवार पत्रिका बनाकर बोर्ड पर लटकाए।
उत्तर:
(अ) बास्तील के अन्त पर अखबार में लेख:
14 जुलाई, सन् 1789 ई. को पेरिस शहर में खतरे की घंटी बज उठी। चारों ओर यही चर्चा फैली हुई है कि शीघ्र ही राजा, सेना को जनता पर गोली चलाने का आदेश देने जा रहा है। लगभग 7000 की संख्या में पुरुष और महिलाएँ टॉउन हॉल के सामने एकत्रित हो गये तथा जन-सेना का गठन करने का निश्चय किया। फिर इस जन-सेना की एक टुकड़ी बास्तील किले की जेल की ओर गोला-बारूद पाने की उम्मीद में बढ़ गई।
गुस्साई भीड़ ने बास्तील के किले की जेल को तोड़ डाला। इसके बाद सैन्य बल के साथ जन समूह की झड़प हुई जिसमें बास्तील का कमाण्डर मारा गया। इस जन-सेना ने वहाँ बन्द कैदियों को मुक्त कर दिया। यद्यपि, इन कैदियों की संख्या केवल 7 थी। इस तरह दमन के सूचक बास्तील के किले को ढहाकर उसका अन्त कर दिया गया।
(ब) काल्पनिक साक्षात्कार
1. मिराब्यो के साथ साक्षात्कार:
पत्रकार : श्रीमान्, आप कुलीन वर्ग से सम्बन्ध रखते हैं, किन्तु आप यहाँ उन लोगों के साथ हैं जो कुलीनता का विरोध कर रहे हैं।
मिराब्यो : हाँ, मैं कुलीन वर्ग में पैदा हुआ हूँ पर इसका मतलब यह नहीं है कि अगर वे गलती करें तो उनका विरोध नहीं किया जाए।
पत्रकार : श्रीमान्, क्या आप समाज के कुछ वर्गों को जन्म के आधार पर दिए जाने वाली विशेष सुविधाओं एवं अधिकारों आदि का समर्थन करेंगे?
मिराब्यो : नहीं, मैं समाज के कुछ वर्गों को जन्म के आधार पर दिये जाने वाली किसी भी प्रकार की विशेष सुविधाओं एवं अधिकारों का समर्थन नहीं करना चाहूँगा।
2. ओलम्प दे गूज के साथ साक्षात्कार:
पत्रकार : मैडम, आप संविधान तथा पुरुष व नागरिक अधिकारों के घोषणा-पत्र का विरोध क्यों कर रही हैं?
गूज : हाँ, मैं इसलिए इनका विरोध कर रही हूँ कि इनमें महिलाओं के उन अधिकारों की चर्चा भी नहीं की गई, जो नागरिक होने के नाते प्रत्येक व्यक्ति को मौलिक अधिकार के रूप में प्राप्त होते हैं।
पत्रकार : क्या कारण है कि आपने जैकोबिन सरकार की आलोचना की?
गूज : मैंने जैकोबिन सरकार की आलोचना इसलिए की कि इसने जबरन महिला क्लबों को बन्द करवा दिया।
3. रोबेस्प्येर के साथ साक्षात्कार:
पत्रकार : श्रीमान्, आप प्रजातन्त्र को किस तरह स्थापित एवं संगठित करेंगे?
रोबेस्प्येर : प्रजातन्त्र की स्थापना एवं संगठन के लिये सर्वप्रथम मैं आतंक के खिलाफ स्वतन्त्रता की जंग को देश तथा देश के बाहर जीतना चाहूँगा।
पत्रकार : क्रान्ति के दौरान एक प्रजातान्त्रिक सरकार को कौन-सा तरीका अपनाना चाहि?
रोबेस्प्येर : क्रान्ति के दौरान एक प्रजातान्त्रिक सरकार को आतंक का रास्ता अपनाना चाहिए।
पत्रकार : श्रीमान्, आतंक से आपका क्या अभिप्राय है?
रोबेस्प्येर : आतंक कुछ और नहीं बल्कि कठोर, तुरन्त व अनम्य न्याय की नीति है जिसकी सहायता से पितृभूमि एवं गणतन्त्र की सुरक्षा की जा सकती है।
JAC Class 9th History फ्रांसीसी क्रांति Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
फ्रांस में क्रान्ति की शुरुआत किन परिस्थितियों में हुई?
उत्तर:
सन् 1789 ई. में हुई फ्रांस की क्रान्ति इतिहास की एक प्रमुख घटना थी। इस क्रान्ति के समय फ्रांस में राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक दशा की स्थिति अत्यन्त शोचनीय थी। अन्ततः फ्रांस में निरंकुश राजतन्त्र का अन्त करके लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था की स्थापना की गई। इस क्रान्ति के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे
1. राजनीतिक कारण:
फ्रांस के शासक स्वेच्छाचारी और निरंकुश थे। वे राजा के दैवी और निरंकुश अधिकारों के सिद्धान्त में विश्वास करते थे अतः वे प्रजा के सुख-दुःख, हित-अहित की कोई चिन्ता न करके अपनी इच्छानुसार कार्य करते थे। वे जनता पर नए ‘कर’ लगाते रहते थे और ‘कर’ के रूप में वसूले गए धन को मनमाने ढंग से विलासिता के कार्यों पर व्यय करते थे। सम्पूर्ण देश के लिए एक समान कानून व्यवस्था भी नहीं थी। इस प्रकार फ्रांस की जनता शासकों की निरंकुशता से बहुत परेशान थी।
2. आर्थिक कारण:
फ्रांस द्वारा अनेक युद्धों में भाग लेने के कारण उसकी आर्थिक दशा अत्यन्त खराब हो चुकी थी। राजदरबार की शान-शौकत एवं कुलीन वर्ग के व्यक्तियों की विलासप्रियता के कारण साधारण जनता पर अनेक प्रकार के ‘कर’ लगाये जाते थे और उनकी वसूली निर्दयतापूर्वक की जाती थी। फ्रांस में कुलीन वर्ग और पादरी करों का भार वहन करने में समर्थ थे, परन्तु उन्हें करों से मुक्त रखा गया। इस प्रकार दयनीय आर्थिक दशा भी फ्रांस की क्रान्ति का एक बड़ा कारण बनी।
3. सामाजिक कारण:
फ्रांस में क्रान्ति से पूर्व बहुत बड़ी सामाजिक असमानता थी। पादरी एवं कुलीन वर्ग के लोगों का जीवन बहुत विलासी था तथा उन्हें विशेषाधिकार प्राप्त थे। इसके विपरीत किसानों तथा मजदूरों का जीवन नारकीय था। वे विभिन्न प्रकार के करों एवं बेगार के बोझ के नीचे पिस रहे थे। समाज में बुद्धिजीवी वर्ग अर्थात् वकील, डॉक्टर, अध्यापक एवं व्यापारी आदि का सम्मान नहीं था। अत: फ्रांस की मध्यमवर्गीय धनी एवं शिक्षित जनता; कुलीन वर्ग के लोगों तथा चर्च के उच्च अधिकारियों से सदैव द्वेष रखती थी। अतः क्रान्ति प्रारम्भ होते ही तृतीय वर्ग की सम्पूर्ण जनता ने इसका पूर्ण समर्थन किया।
4. दार्शनिकों एवं लेखकों के विचारों का प्रभाव:
फ्रांस जैसी दशा यूरोप के लगभग अन्य सभी देशों में थी। फ्रांस के दार्शनिकों और लेखकों के क्रान्तिकारी विचारों के परिणामस्वरूप फ्रांस में ही सबसे पहले क्रान्ति हुई। फ्रांस के लेखकों एवं दार्शनिकों के विचारों ने राज्य के खिलाफ क्रान्ति की भावना का बीजारोपण किया। इनमें मॉण्टेस्क्यू, वाल्टेयर, रूसो आदि दार्शनिकों ने फ्रांस की क्रान्ति को जन्म देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
5. तात्कालिक कारण:
5 मई, सन् 1789 ई. को लुई सोलहवें द्वारा नये कर लगाने के लिए एस्टेट्स जेनराल के अधिवेशन की तिथि निर्धारित की गई। इस बैठक में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय एस्टेट के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। एस्टेट्स जेनराल के नियम के अनुसार, प्रत्येक वर्ग को एक मत देने का अधिकार था, परन्तु तृतीय एस्टेट वर्ग के प्रतिनिधि इस मत से सहमत नहीं थे।
उनका मत था कि इस बार सम्पूर्ण सभा द्वारा मतदान कराया जाना चाहिए जिसमें प्रत्येक सदस्य को एक मत देने का अधिकार होगा। इस बात से सम्राट लुई सोलहवाँ सहमत नहीं हुआ। अन्ततः तृतीय एस्टेट के प्रतिनिधि विरोध स्वरूप सभा से बाहर चले गए, इस बात ने फ्रांसीसी क्रान्ति की पृष्ठभूमि तैयार की।
प्रश्न 2.
फ्रांसीसी समाज के किन तबकों को क्रान्ति का फायदा मिला? कौन-से समूह सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर हो गए? क्रान्ति के नतीजों से समाज के किन समूहों को निराशा हुई होगी?
उत्तर:
- सन् 1789 ई. में हुई फ्रांस की क्रान्ति से समाज के निम्न वर्ग; जैसे-मजदूर, किसान एवं शिक्षित वर्ग को सबसे अधिक लाभ हुआ। इस वर्ग के लोगों में फ्रांस की जनसंख्या के लगभग 90 प्रतिशत किसान सम्मिलित थे।
- इस क्रान्ति के द्वारा उच्च वर्ग के लोगों, राज-परिवार, पादरियों तथा सामन्तों को सत्ता छोड़ने के लिए बाध्य किया गया।
- फ्रांस की क्रान्ति से कुलीन वर्ग के लोगों को अत्यधिक निराशा हुई। इस वर्ग के लोगों की जमीनें जब्त कर ली गईं एवं उनके सभी विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए।
प्रश्न 3.
उन्नीसवीं और बीसवीं सदी की दुनिया के लिए फ्रांसीसी क्रान्ति कौन-सी विरासत छोड़ गई?
उत्तर:
सन् 1789 ई. में हुई फ्रांस की क्रान्ति के उन्नीसवीं एवं बीसवीं सदी की दुनिया पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े
- फ्रांस की क्रान्ति के परिणामस्वरूप यूरोप के अन्य देशों; जैसे-जर्मनी, इटली आदि में राष्ट्रीयता की भावना का जन्म हुआ जिससे स्वेच्छाचारी शासन की समाप्ति हुई तथा सभी देशों में मनुष्यों की समानता पर बल दिया जाने लगा।
- इस क्रान्ति के परिणामस्वरूप विश्व के लोगों में सामन्तवाद के विरुद्ध आन्दोलन को एक नई दिशा मिली और सामन्तवाद का स्थान प्रजातन्त्र ने लेना प्रारम्भ कर दिया।
- इस क्रान्ति ने प्रचलित कानूनों का रूप बदल दिया, सामाजिक मान्यताएँ बदल डाली और आर्थिक ढाँचे में आश्चर्यजनक परिवर्तन किए।
- इस क्रान्ति के परिणामस्वरूप अन्य देशों के शासक वर्ग ने सजगता दिखाते हुए अपनी जनता का अधिक से अधिक कल्याण करने का प्रयत्न करना प्रारम्भ कर दिया।
- इस क्रान्ति से भारत सहित अनेक अफ्रीकी एवं एशियाई देशों के स्वतन्त्रता आन्दोलनों को प्रेरणा मिली।
प्रश्न 4.
उन जनवादी अधिकारों की सूची बनाएँ, जो आज हमें मिले हुए हैं और जिनका उद्गम फ्रांसीसी क्रान्ति में है।
उत्तर:
फ्रांसीसी क्रान्ति ही प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सभी जनवादी अधिकारों की उत्पत्ति का स्रोत है। स्वतन्त्रता, समानता तथा भ्रातृत्व फ्रांसीसी क्रान्ति के मार्गदर्शन के सिद्धान्त हैं। हमारे देश में संविधान ने स्वतन्त्रता, समानता तथा भ्रातृत्व के सिद्धान्त को ध्यान में रखते हुए सभी नागरिकों को छः मौलिक अधिकार प्रदान किए हैं, जो निम्नलिखित
- समानता का अधिकार,
- स्वतन्त्रता का अधिकार,
- शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार.
- धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार,
- शोषण के विरुद्ध अधिकार,
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार।
प्रश्न 5.
क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि सार्वभौमिक अधिकारों के सन्देश में नाना अन्तर्विरोध थे?
उत्तर:
हाँ, मैं इस तर्क से सहमत हूँ कि सार्वभौमिक अधिकारों के सन्देश में विभिन्न प्रकार के निम्नांकित अन्तर्विरोध थे
- सार्वभौमिक अधिकारों के अन्तर्गत सभी को समान अधिकारों की बात तो की गयी लेकिन महिलाओं एवं अन्य शोषित वर्ग के विकास एवं संरक्षण के लिए कोई प्रावधान नहीं था।
- सार्वभौमिक अधिकारों के सन्देश में शोषण के प्रतिरोध का अधिकार तो दिया लेकिन दास प्रथा, जाति प्रथा, रंगभेद आदि को समाप्त करने के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं किये गये।
- सार्वभौमिक अधिकारों के अन्तर्गत कानून सम्मत अधिकार प्रदान किये गये हैं लेकिन कानून बनाने का अधिकार कुछ ही चुने हुए लोगों को है जिससे शोषित एवं दमित वर्ग को उचित प्रतिनिधित्व मिलना आसान नहीं है। क्योंकि उनके लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं है।
- इसमें सार्वजनिक शिक्षा के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा गया था।
- इसमें व्यापार तथा व्यवसाय की स्वतन्त्रता का अधिकार नहीं दिया गया था।
- सभी देशों में एक निश्चित आयु के पूर्व लोगों को मताधिकार नहीं दिया गया। फ्रांस में 25 वर्ष या उससे अधिक उम्र के उन्हीं पुरुषों को मताधिकार मिला, जो सरकार को कम-से-कम तीन दिन की मजदूरी के बराबर की राशि ‘कर’ के रूप में भुगतान करते थे।
- इन अधिकारों का सबसे बड़ा दोष यह था कि इनके साथ मानव के कर्तव्य निश्चित नहीं किए गए थे। अत: कर्त्तव्य के बिना अधिकार महत्वहीन ही थे। अन्त में यह कहा जा सकता है कि सार्वजनिक शिक्षा का अधिकार न होना तथा व्यवसाय की स्वतन्त्रता का अधिकार न होना एवं एक निश्चित आयु के बाद सभी को मताधिकार प्राप्त न होना इन अधिकारों के अन्तर्विरोध को प्रकट करता है।
प्रश्न 6.
नेपोलियन के उदय को कैसे समझा जा सकता है?
उत्तर:
जैकोबिन सरकार के पतन के बाद एक नया संविधान बना। इस संविधान में दो चुनी गई विधान परिषदों का प्रावधान था। इन परिषदों ने पाँच सदस्यों वाली एक कार्यपालिका ‘डिरेक्ट्री’ को नियुक्त किया। डिरेक्ट्री के सदस्य अक्सर विधान परिषदों में झगड़ते रहते थे।
डिरेक्ट्री की राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाकर नेपोलियन सेना की मदद से तानाशाह बन गया और सन् 1804 ई. में नेपोलियन बोनापार्ट ने स्वयं को फ्रांस का सम्राट घोषित कर दिया। इस प्रकार सैनिक तानाशाह नेपोलियन बोनापार्ट के उदय का मार्ग प्रशस्त हुआ। उसका शासन असीम एवं निरंकुश था, वह सम्पूर्ण यूरोप का शासक बनना चाहता था।
शासक के रूप में उसने फ्रांस में एक कुशल एवं सक्षम शासन की स्थापना की और फ्रांसीसी जनता को क्रान्ति से उत्पन्न अराजकता से मुक्ति दिलाई। नेपोलियन ने शिक्षा को बढ़ावा दिया और व्यापार एवं उद्योग को सुधारने के लिए उपयुक्त कदम उठाये। उसने निजी सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए कानून बनाये और दशमलव पद्धति पर आधारित नाप-तौल की एक समान प्रणाली चलाई।
प्रारम्भ में तो जनता को नेपोलियन मुक्तिदाता लगता था और उससे जनता को स्वतन्त्रता मिलने की उम्मीद थी, परन्तु शीघ्र ही उसकी सेनाओं को लोग हमलावर मानने लगे। आखिरकार सन् 1815 ई. में वॉटर लू के युद्ध में उसकी हार हुई। नेपोलियन के क्रान्तिकारी विचारों, जैसे-स्वतन्त्रता एवं आधुनिक कानूनों की धारणा ने यूरोप के लोगों पर एक अमिट छाप छोड़ी।