JAC Board Class 9th Social Science Solutions History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद
JAC Class 9th History वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद InText Questions and Answers
विद्यार्थियों हेतु आवश्यक निर्देश-पाठ्य:
पुस्तक में इस अध्याय के विभिन्न पृष्ठों पर बॉक्स के अन्दर क्रियाकलाप दिए हुए हैं। इन क्रियाकलापों के अन्तर्गत पूछे गए प्रश्नों के क्रमानुसार उत्तर निम्न प्रकार से हैं
क्रियाकलाप ( पृष्ठ संख्या-81)
प्रश्न 1.
एक मील लम्बी रेल की पटरी के लिए 1,760 से 2,000 तक स्लीपरों की जरूरत थी। यदि 3 मीटर लम्बी बड़ी लाइन की पटरी बिछाने के लिए एक औसत कद के पेड़ से 3-5 स्लीपर बन सकते हैं तो हिसाब लगाकर देखें कि एक मील लम्बी पटरी बिछाने के लिए कितने पेड़ काटने होंगे?
उत्तर:
1 मील लम्बी पटरी बिछाने के लिए आवश्यक स्लीपरों की औसत संख्या = \(\frac{1760+2000}{2}\) =1880
1 पेड़ से बनाये जा सकने वाले स्लीपरों की औसत संख्या =\(\frac{3+5}{2}\)
1 मील लम्बी पटरी बिछाने के लिए काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या = \(\frac{1880}{4}\) = 470
क्रियाकलाप ( पृष्ठ संख्या-83)
प्रश्न 1.
यदि 1862 ई. में भारत सरकार की बागडोर आपके हाथ में होती और आप पर इतने व्यापक पैमाने पर रेलों के लिए स्लीपर और ईंधन आपूर्ति की जिम्मेदारी होती तो आप इसके लिए कौन-कौन से कदम उठाते?
उत्तर:
यदि 1862 ई. में भारत सरकार की बागडोर मेरे हाथ में होती और मुझ पर इतने व्यापक पैमाने पर रेलों के स्लीपर और ईंधन आपूर्ति की जिम्मेदारी होती तो मैं निम्नलिखित कदम उठाता
- ईंधन तथा स्लीपरों के लिए रेलवे को लकड़ी की आपूर्ति तो की जाती, किन्तु अवन्यीकरण की कीमत पर कदापि नहीं।
- विभिन्न वैकल्पिक संसाधनों, जैसे-लोहे अथवा पत्थरों के स्लीपर का उपयोग किया जाता। ईंधन की आपूर्ति के लिए कोयले का उपयोग किया जाता।
- जितनी मात्रा में पेड़ों की कटाई आवश्यक होती उतने ही नवीन पेड़ भी लगाये जाते।
क्रियाकलाप (पृष्ठ संख्या-86)
प्रश्न 1.
वन-प्रदेशों में रहने वाले बच्चे पेड़-पौधों की सैकड़ों प्रजातियों के नाम बता सकते हैं। आप पेड़-पौधों की कितनी प्रजातियों के नाम जानते हैं ?
उत्तर:
फलदार पेड़-आम, अमरूद, नींबू, जामुन, केले आदि। औषधि वाले-तुलसी, नीम आदि। काँटेदार-बबूल, बेर आदि।
क्रियाकलाप ( पृष्ठ संख्या-96)
प्रश्न 1.
जहाँ आप रहते हैं क्या वहाँ के जंगली इलाकों में कोई बदलाव आए हैं? ये बदलाव क्या हैं और क्यों हुए हैं?
उत्तर:
हाँ, हमारे यहाँ के जंगली इलाकों में कई बदलाव दिखाई देते हैं। ये बदलाव निम्नलिखित हैं
- इन वन क्षेत्रों में बड़े जंगली जानवरों के शिकार पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है।
- इन क्षेत्रों में वृक्षों की संख्या बढ़ गयी है।
- वन क्षेत्रों में जगह-जगह पर वन सुरक्षा अधिकारियों द्वारा चैक पोस्ट स्थापित कर दिए गए हैं।
- वन क्षेत्रों में प्रवेश प्रतिबन्धित कर दिया गया है।
- हाथी दाँत एवं जंगली बिल्लियों की खालों के अवैध व्यापार को रोका गया है तथा इन जानवरों पर बहुत अधिक ध्यान दिया जा रहा है।
- वन क्षेत्रों से होकर बहने वाली नदियों को साफ कर दिया गया है।
प्रश्न 2.
एक औपनिवेशिक वनपाल और एक आदिवासी के बीच जंगल में शिकार करने के मसले पर होने वाली बातचीत के संवाद लिखें।
उत्तर:
- औपनिवेशिक वनपाल: तुम कौन हो? यहाँ वन में क्या कर रहे हो?
- आदिवासी: श्रीमान् जी, मैं एक आदिवासी हूँ। मैं यहाँ नजदीक के गाँव में रहता हूँ। यहाँ वन में कन्द-मूल, फल एकत्रित करने एवं खरगोश का शिकार करने आया हूँ।
- औपनिवेशिक वनपाल: क्या तुम नहीं जानते कि वन में शिकार करना प्रतिबन्धित है?
- आदिवासी: लेकिन श्रीमान् जी, मेरे बच्चे पिछले पाँच दिनों से भूखे हैं, मैं उनकी भोजन की जरूरत पूरी करने के लिए यहाँ आया हूँ।
- औपनिवेशिक वनपाल: मैं ये सब नहीं जानता। मैं बस इतना जानता हूँ कि वन में शिकार करना गैर-कानूनी है। यह एक कानूनन अपराध है, इसकी तुम्हें सजा अवश्य मिलेगी।
- आदिवासी: लेकिन श्रीमान् यह वन तो हम आदिवासियों का ही है। इसी से तो हमारी रोजी-रोटी चलती है। अगर हमें शिकार करने से रोका गया तो हमारा क्या होगा? हमारा परिवार तो भूखा ही मर जाएगा।
- औपनिवेशिक वनपाल: देखो, तुम मुझसे बहस कर रहे हो। इसकी तुम्हें भारी कीमत चुकानी पर है।
- आदिवासी: श्रीमान् जी, प्राचीन समय से ही हम यहाँ रहते आये हैं। हम जंगलों पर ही निर्भर हैं। कृपया हमें शिकार करने दीजिए। हम आपको भी शिकार में से हिस्सा दे देंगे।
- औपनिवेशिक वनपाल: नहीं। कदापि नहीं, चुप रहो! हमें अपने वन संरक्षण अधिकारी को तुम्हारी रिपोर्ट करनी ही पड़ेगी। चलो मेरे साथ चलो।
[औपनिवेशिक वनपाल आदिवासी को पकड़कर अपने साथ लेकर चला जाता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार सामान्य परिस्थिति में हथकड़ी नहीं लगेगी]
JAC Class 9th History वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
औपनिवेशिक काल के वन प्रबन्धन में आए परिवर्तनों ने इन समूहों को कैसे प्रभावित किया
1. झूम खेती करने वालों को।
2. घुमंतू और चरवाहा समुदायों को।
3. लकड़ी और वन-उत्पादों का व्यापार करने वाली कम्पनियों को।
4. बागान मालिकों को।
5. शिकार खेलने वाले राजाओं और अंग्रेज अफसरों को।
उत्तर:
औपनिवेशिक काल के वन प्रबन्धन में आये परिवर्तनों ने विभिन्न समूहों को निम्नलिखित प्रकार प्रभावित किया
1. झूम खेती करने वालों पर प्रभाव:
औपनिवेशिक काल के वन प्रबन्धन की नीति में परिवर्तन का झूम खेती करने वालों पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। खेती की इस पद्धति पर प्रतिबन्ध लगा दिये जाने के कारण उन्हें कोई दूसरा व्यवसाय अपनाना पड़ा तथा उनके स्वतन्त्र जीवनयापन की प्राचीन व्यवस्था चरमरा गई। विभिन्न क्षेत्रों में उनका शोषण होने लगा। साथ ही नई नीति ने एक तरह से उन्हें बंधुआ मजदूर बना दिया।
2. घुमंतू और चरवाहा समुदायों पर प्रभाव:
वन प्रबन्धन की नई नीति के तहत् घुमंतू और चरवाहा समुदायों को सुरक्षित वनों में अपनी गतिविधियाँ चलाने से रोक दिया गया। फलत: उनकी रोजी-रोटी प्रभावित हुई। वनोत्पादों के व्यापार को रोके जाने से इन समुदायों के लिए आय के स्रोत बन्द हो गये तथा इनका जीवनयापन कठिन हो गया।
3. लकड़ी और वन:
उत्पादों का व्यापार करने वाली कम्पनियों पर प्रभाव-वन प्रबन्धन की नीति के तहत् इन कम्पनियों को लकड़ी एवं वनोत्पाद का व्यापार करने का एकाधिकार दे दिया गया। इस समूह के लोगों को इस नीति का सर्वाधिक लाभ पहुँचा। इसके फलस्वरूप उन्होंने अपने तथा सरकार के लिए विशाल -मात्रा में वनों के दोहन एवं आदिवासियों के शोषण द्वारा धन एकत्र किया।
4. बागान मालिकों पर प्रभाव:
वन प्रबन्धन की नई नीति से बागान मालिकों को अपने व्यवसाय से बहुत अधिक लाभ हुआ। अवन्यीकरण के पश्चात् चाय, कॉफी, रबर आदि के नये-नये बागानों का विकास किया गया। इन बागानों में भूमिहीन आदिवासियों से मुफ्त काम करवाया जाता था। चूँकि इन उत्पादों का निर्यात होता था अतः सरकार एवं कम्पनियों दोनों को बहुत अधिक लाभ हुआ।
5. शिकार खेलने वाले राजाओं और अंग्रेज अफसरों पर प्रभाव:
हालांकि वन प्रबन्धन की नई नीति में जंगलों में शिकार करना प्रतिबन्धित कर दिया गया था किन्तु इसमें भेदभाव बरता गया। राजा-महाराजा एवं ब्रिटिश अधिकारी इन नियमों के निर्माण के बावजूद शिकार करते रहे। उनके साथ सरकार की मौन सहमति थी। चूँकि बड़े जंगली जानवरों को वे आदिम, असभ्य तथा बर्बर समुदाय का सूचक मानते थे अत: भारत को सभ्य बनाने के नाम पर इन जानवरों का शिकार चलता रहा।
प्रश्न 2.
बस्तर और जावा के औपनिवेशिक वन प्रबन्धन में क्या समानताएँ हैं?
उत्तर:
भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के सुदूर दक्षिण में स्थित बस्तर एक जिला है, जबकि जावा, इण्डोनेशिया देश में स्थित एक द्वीप है। भारत अंग्रेजों का एवं इण्डोनेशिया डचों का उपनिवेश रहा है। औपनिवेशिक काल में बस्तर तथा जावा दोनों में वन प्रबन्धन में निम्नलिखित समानताएँ थीं
- रेलवे तथा जहाज निर्माण के लिए अत्यधिक संख्या में पेड़ों की कटाई की गई।
- दोनों ही स्थानों पर शिकार को प्रतिबन्धित कर दिया गया।
- घुमंतू तथा चरवाहे समुदायों को वनों में प्रवेश करने से रोका गया।
- वनवासी समुदायों द्वारा पेड़ों की कटाई का विरोध करने पर उन्हें प्रताड़ित किया गया।
- वनोत्पाद से सम्बन्धित स्थानीय लोगों द्वारा किये जाने वाले व्यापार को रोका गया।
- वन भूमि को ग्रामीण, सुरक्षित तथा संरक्षित वनों में वर्गीकरण कर दिया गया।
- वनवासी समुदायों को जंगल में स्थित अपने घरों में रहने के लिए या तो किराया देने के लिए अथवा बेगारी के लिए मजबूर किया गया।
- वनों की कटाई तथा बगीचों के विकास के लिए यूरोपीय फर्मों को लाइसेंस प्रदान किये गये।
- दोनों ही स्थानों पर औपनिवेशिक वन प्रबन्धन का उद्देश्य सरकारी सत्ता को लाभ पहुँचाना तथा स्थानीय वनों में या आस-पास रहने वालों का शोषण करना था।
- इन नीतियों के निर्माण में दोनों ही स्थानों पर स्थानीय लोगों को शामिल नहीं किया गया, बल्कि यूरोपीय विशेषज्ञों ने इन नीतियों का अपने हितों के लिए निर्माण किया।
प्रश्न 3.
सन् 1880 ई.से सन् 1920 ई.के बीच भारतीय उपमहाद्वीप के वनाच्छादित क्षेत्र में 97 लाख हेक्टेयर की गिरावट आई। पहले के 10.86 करोड़ हेक्टेयर से घटकर यह क्षेत्र 9.89 करोड़ हेक्टेयर रह गया था। इस गिरावट में निम्नलिखित कारकों की भूमिका बताएँ
रेलवे, जहाज निर्माण, कृषि-विस्तार, व्यावसायिक खेती, चाय-कॉफी के बागान, आदिवासी और किसान।
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप के वनाच्छादित क्षेत्र की गिरावट में विभिन्न कारकों की भूमिका निम्नलिखित थी
1. रेलवे:
औपनिवेशिक शासकों को रेलवे के विस्तार के लिए स्लीपरों की आवश्यकता थी जो कठोर लकड़ी के बनाए जाते थे। एक मील रेलवे लाइन बिछाने के लिए 1,760 से लेकर 2,000 स्लीपरों की आवश्यकता पड़ती थी। सन् 1946 ई. तक लगभग 7,65,000 किलोमीटर रेलवे लाइनें भारत के विभिन्न भागों में बिछाई गई हैं जिससे लाखों की संख्या में वृक्ष, रेलवे की भेंट चढ़ गए। रेल-इंजनों में भी लकड़ी का कोयला जलने से वनों को भारी क्षति हुई।
2. जहाज निर्माण:
ब्रिटेन में 19वीं सदी की शुरुआत तक बलूत (ओक) के वन समाप्त होने लगे थे। इसकी वजह से शाही नौसेना हेतु बनाये जाने वाले जहाजों के लिए मजबूत लकड़ी की आवश्यकता महसूस की जाने लगी। अत: भारत में मजबूत लकड़ी प्राप्त करने के लिए टीक (सागौन) और साल के वृक्ष लगाये जाने लगे। अन्य सभी प्रकार के वृक्षों को साफ कर दिया गया। भारत से बड़े पैमाने पर लकड़ी इंग्लैण्ड भेजी जाने लगी अत: भारतीय उपमहाद्वीप के वनों से आच्छादित भू-भाग में तेजी से कमी आ गई।
3. कृषि-विस्तार:
सन् 1600 ई. में भारत का लगभग 1/6 भू-भाग कृषि के अधीन था, परन्तु जनसंख्या वृद्धि के साध-साथ खाद्यान्नों की माँग बढ़ने लगी अत: किसान कृषि-क्षेत्र का विस्तार करने लगे। इसके लिए वनों को साफ करके नए खेत बनाए जाने लगे इसके अतिरिक्त खानाबदोशों और चरवाहों के क्रियाकलापों पर प्रतिबन्धों ने भी इन लोगों को कृषि अपनाने के लिए विवश किया। अत: सन् 1880-1920 ई. के मध्य कृषि योग्य भूमि के क्षेत्रफल में 67 लाख हेक्टेयर का विस्तार हुआ अत: वन तीव्रता से समाप्त होने लगे।
4. व्यावसायिक खेती:
व्यावसायिक खेती भी वन-क्षेत्रों की कमी के लिए उत्तरदायी थी। किसानों ने कृषि के व्यवसायीकरण के पश्चात् बाजार में बेचने के लिए फसलों का उत्पादन करना आरम्भ कर दिया जिससे उन्हें अधिक-सेअधिक लाभ प्राप्त हो सके। देश के विस्तृत वन क्षेत्रों से वनों को साफ किया गया और वहाँ चाय एवं कॉफी की खेती की गई।
5. चाय:
कॉफी के बागान-यूरोप में चाय-कॉफी की बहुत अधिक माँग थी। औपनिवेशिक सरकार ने वनों पर नियन्त्रण स्थापित करके बड़ी सस्ती दरों पर यूरोपीय लोगों को बड़े क्षेत्र दे दिए। इन क्षेत्रों से वनों को साफ किया गया तथा चाय एवं कॉफी के बागान स्थापित कर दिए गए।
6. आदिवासी और किसान:
आदिवासी एवं स्थानीय किसान भी वन क्षेत्रों में कमी के लिए उत्तरदायी हैं। व्यावसायिक कृषि के लिए वनों को साफ किया गया। इसके अतिरिक्त उन्होंने ईंधन के लिए पेड़ों को काटा जिससे वनों का अत्यधिक विनाश हुआ।
प्रश्न 4.
युद्धों से जंगल क्यों प्रभावित होते हैं?
उत्तर:
युद्धों से जंगल (वन) प्रभावित होते हैं क्योंकि
- विरोधी सेना सबसे पहले भोजन संसाधन और छिपने की जगहों को नष्ट करना चाहती है। इन दोनों की आपूर्ति में वन काफी सहायक होते हैं।
- थल सेना एवं वायु सेना की दृश्यता स्पष्ट करने के लिए भी जंगलों को जला दिया जाता है, क्योंकि वे एक अवरोध के रूप में काम करते हैं।
- युद्धरत सेना को तुरन्त रास्ता उपलब्ध करवाने के लिए वनों को काटकर रास्ता सुगम किया जाता है।
- युद्ध के समय विभिन्न सरकारें लकड़ी के विशाल भण्डारों एवं आरा मिलों को स्वयं भी जला डालती हैं जिससे ये संसाधन शत्रु के हाथ न लग पाएँ।
- आधुनिक समय में आक्रमण से बचने के लिए सेनाएँ तथा युद्ध सामग्री को घने वनों में छिपा देती हैं ताकि उन पर कोई हमला न कर सके। शत्रु विरोधी सैनिकों एवं उनकी युद्ध सामग्री पर कब्जा करने के लिए वनों को निशाना बनाते हैं।
- युद्ध में व्यस्त हो जाने पर बहुत से देशों का ध्यान वनों का सुव्यवस्थित ढंग से विकास करने के कार्यों से हट जाता है और परिणामस्वरूप बहुत से वन लापरवाही का शिकार हो जाते हैं।