JAC Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 4 जलवायु

JAC Board Class 9th Social Science Notes  Geography Chapter 4 जलवायु

→ मौसम की अवस्थाओं तथा विविधताओं का एक विशाल क्षेत्र में लम्बी समयावधि (लगभग 30 वर्ष से अधिक) का कुल योग ही जलवायु है।

→ मौसम एक विशेष समय में एक क्षेत्र के वायुमंडल की अवस्था को बताता है। मौसम तथा जलवायु के तत्व एक ही होते हैं; जैसे-तापमान, वायुमंडलीय दाब, पवन, आर्द्रता, वर्षण आदि।

→ महीनों के औसत वायुमण्डलीय अवस्था के आधार पर वर्ष को ग्रीष्म/शीत या वर्षा ऋतु में विभाजित किया गया है।

→ भारत की जलवायु को मानसूनी जलवायु कहा जाता है।

→ देश के जलवायु प्रतिरूप में सामान्यतया एकरूपता होते हुए भी जलवायु अवस्था में स्पष्ट प्रादेशिक भिन्नताएँ हैं।

→ वर्षण की दृष्टि से देश में वर्षण के रूप, प्रकार, मात्रा तथा वितरण में ऋतुवत् भिन्नताएँ देखने को मिलती हैं।

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→ गर्मियों में राजस्थान के मरुस्थलीय प्रदेश का तापमान 50° सेण्टीग्रेड तक पहुँच जाता है जबकि जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में तापमान लगभग 20° सेण्टीग्रेड तक रहता है।

→ शीत ऋतु में जम्मू-कश्मीर में द्रास का तापमान – 45° सेण्टीग्रेड तक हो जाता है, जबकि तिरुवनंतपुरम् में यह 22″ सेण्टीग्रेड तक बना रहता है।

→ सामान्यतया देश के तटीय क्षेत्रों के तापमान में अन्तर कम रहता है।

→ किसी भी देश की जलवायु को नियन्त्रित करने वाले कारकों में अक्षांश, ऊँचाई, वायुदाब, पवन तंत्र, समुद्र से दूरी, महासागरीय धाराएँ एवं उच्चावच आदि प्रमुख हैं।

→ जेट धाराएँ लगभग 27° से 30° उत्तर अंक्षाशों के बीच स्थित होती हैं इसलिए इन्हें उपोष्ण कटिबंधीय पश्चिमी जेट धाराएँ कहा जाता है।

→ भारत की जलवायु मानसूनी पवनों से बहुत अधिक प्रभावित होती है।

→ भारत में मानसून का समय जून के आरम्भ से लेकर सितम्बर के मध्य तक होता है। इसके आगमन के समय वर्षा में वृद्धि हो जाती है।

→ भारत में मुख्यतः चार ऋतुएँ होती हैं-शीत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु तथा मानसून आगमन एवं मानसून वापसी की ऋतु।

→ शीत ऋतु नवम्बर के मध्य से प्रारम्भ होकर फरवरी तक रहती है तथा ग्रीष्म ऋतु मार्च से मई तक रहती है।

→ लू, ग्रीष्मकाल का एक महत्वपूर्ण लक्षण है। ये धूल भरी गर्म एवं शुष्क पवनें होती हैं जो कि दिन के समय भारत के उत्तर एवं उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में चलती हैं।

→ भारत में मेघालय राज्य में स्थित मॉसिनराम विश्व में सबसे अधिक वर्षा प्राप्त करने वाला क्षेत्र है।

→ मानसनी पवनें समस्त भारतवासियों को जल प्रदान कर कृषि प्रक्रिया में सहयोग प्रदान करती हैं एवं सांस्कृतिक दृष्टि से सम्पूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधती हैं। भारतीय प्रायद्वीप पर मानसून की एकता का प्रभाव बहुत ही स्पष्ट है।

→ मौसम – किसी क्षेत्र में एक विशेष समय में वायुमण्डल की अवस्था को मौसम कहते हैं।

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→ जलवायु – किसी विस्तृत क्षेत्र में एक लम्बी अवधि (सामान्यत: 30 वर्ष से अधिक) में पाई जाने वाली मौसम की औसत अवस्थाओं के कुल योग को जलवायु कहते हैं।

→ वर्षण – वह जल जो वायुमण्डल से धरातल पर वर्षा, हिम, ओले एवं ओस के रूप में गिरता है।

→ मानसून – मानसून अरबी भाषा के मौसिम शब्द से बना है, जिसका अर्थ है-वर्षभर पवनों का ऋतु-अनुसार परिवर्तन है।

→ मानसून पवनें मौसम के अनुसार अपनी दिशा बदलने वाली पवनों को मानसूनी पवनें कहते हैं। ये पवनें ग्रीष्म ऋतु में समुद्र से स्थल की ओर एवं शीत ऋतु में स्थल से समुद्र की ओर प्रवाहित होती हैं।

→ व्यापारिक पवनें – उपोष्ण उच्च दाब कटिबन्ध से विषुवत् रेखीय निम्न दाब कटिबन्ध की ओर सदैव एक ही दिशा में चलने वाली पवनों को व्यापारिक पवनें कहते हैं। जेट धाराएँ-27° से 30° उत्तरी अक्षांशों के मध्य ऊपरी वायुमण्डल में बहुत तीव्र गति से चलने वाली पवनों को जेट वायुधाराएँ कहते हैं।

→ चक्रवात – निम्न वायुदाब का एक क्षेत्र जिसमें हवाएँ लगभग अण्डाकार होकर चलती हैं।

→ पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ – शीत ऋतु में भूमध्य सागर से पछुआ पवनों के साथ पश्चिम से पूर्व की ओर चलने वाले चक्रवात को, जिससे उत्तरी-पश्चिमी भारत में वर्षा होती है, पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ कहते हैं।

→ उष्ण कटिबन्धीय जलवायु – सम्पूर्ण वर्ष अपेक्षाकृत उच्च तापमान एवं मुख्य रूप से शुष्क शीत ऋतु।

→ अंत: उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र-यह विषुवतीय अक्षांशों में विस्तृत गर्त एवं निम्न दाब का क्षेत्र होता है।

→ यहीं पर उत्तरी – पूर्वी एवं दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनें मिलती हैं। यह अभिसरण क्षेत्र विषुवत् वृत से 5° उत्तर में स्थित होता है। इसे मानसून ऋतु में मानसून गर्त के नाम से भी जाना जाता है।

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→ कोरिआलिस बल – पृथ्वी के घूर्णन के कारण उत्पन्न आभासी बल को कोरिआलिस बल कहते हैं। इस बल के कारण पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में दाहिनी ओर एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती हैं। इसे फेरेल का नियम भी कहते हैं।

→ दक्षिणी दोलन – विभिन्न ऋतुओं में विषवत् वृत के आधार पर पवनों की स्थिति बदलते रहने की प्रक्रिया को दक्षिणी दोलन कहते हैं।

→ एलनीनो – ठंडी पेरू जलधारा के स्थान पर अस्थायी रूप से गर्म जलधारा के निकास को एलनीनो कहा जाता है। एलनीनो की उपस्थिति समुद्र के तापमान को बढ़ा देती है एवं सम्बन्धित क्षेत्र में व्यापारिक पवनों को मन्द कर देती

→ मानसून – प्रस्फोट-अचानक एवं तीव्र गति के साथ घनघोर वर्षा होने की स्थिति को मानसून का प्रस्फोट कहते हैं।

→ महावट – शीतकाल में होने वाली वर्षा को महावट कहा जाता है।

→ लु-ये स्थानीय पवनें होती हैं जो उत्तरी एवं उत्तरी-पश्चिमी भारत में ग्रीष्म ऋतु के दौरान चलती हैं। ये धूलभरी, गर्म एवं शुष्क पवनें होती हैं।

→ काल वैशाखी – ग्रीष्म ऋतु में उत्तर भारत की गर्म पवनों अर्थात् लू के आर्द्र पवनों से मिलने के कारण पश्चिमी बंगाल, असम में आने वाले भीषण तूफान जिनसे कभी-कभी मानसून के पूर्व ही वर्षा हो जाती है। इन तूफानों में होने वाली मूसलाधार वर्षा को काल वैशाखी कहते हैं।

→ आम्र वर्षा – केरल एवं कर्नाटक के तटीय क्षेत्रों में मानसून पूर्व होने वाली ग्रीष्मकालीन वर्षा।

→ पवनमुखी भाग – पर्वत का वह भाग जो पवनों के सामने पड़ता है। इसे पवनमुख ढाल कहते हैं। यहाँ पर पवनें अधिक वर्षा करती हैं।

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→ पवनाविमुख ढाल – पर्वत के दूसरी ओर का भाग जहाँ वर्षा करने के पश्चात् शुष्क पवनें उतरती हैं। यहाँ पर पवनें वर्षा नहीं करती हैं।

→ वृष्टि छाया क्षेत्र – पवनाविमुख ढालों पर कम वर्षा वाला क्षेत्र।

→ क्वार की उमस – वह स्थिति जब उच्च तापमान एवं आर्द्रता वाली अवस्था के कारण दिन का मौसम कष्टदायक हो जाता है। इसे सामान्यत: ‘क्वार की उमस’ के नाम से जाना जाता है।

→ यह स्थिति सामान्यत – उत्तरी भारत में अक्टूबर एवं नवम्बर के महीने में होती है।

→ जलग्रहण क्षेत्र – वह क्षेत्र जिसमें से नदी अपना जल ग्रहण करती है।

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