JAC Class 10 Social Science Notes Economics Chapter 1 विकास 

JAC Board Class 10th Social Science Notes Economics Chapter 1 विकास

→ विकास की धारणा

  • विकास अथवा प्रगति की धारणा प्राचीन काल से ही हमारे साथ है।
  • प्रत्येक व्यक्ति की अपनी आकांक्षाएँ व इच्छाएँ होती हैं कि वह क्या करना चाहता है और अपना जीवन कैसे जीना चाहता है।
  • विभिन्न श्रेणी के व्यक्तियों के विकास के लक्ष्य भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे एक भूमिहीन ग्रामीण मजदूर विकास के लक्ष्य के अन्तर्गत अपने लिए काम करने के अधिक दिन एवं पर्याप्त मजदूरी चाहता है, स्थानीय विद्यालय उनके बच्चों को उत्तम शिक्षा प्रदान करे, कोई सामाजिक भेदभाव न हो एवं गाँव में उनका समुदाय चुनाव लड़कर नेता बन सके आदि मानकर
    चलता है।

→ आय व लक्ष्य

  • लोगों के लिए विकास के लक्ष्यों की भिन्नता के कारण एक के लिए जो विकास है वह दूसरे के लिए विकास न हो। यहाँ तक कि वह दूसरे के लिए विनाशकारी भी हो सकता है।
  • विभिन्न लोगों की इच्छाएँ एवं आकांक्षाएँ अलग-अलग होती हैं। वे ऐसी चीजें चाहते हैं जो उनके लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हों अर्थात् वे चीजें जो उनकी इच्छाओं तथा आकांक्षाओं को पूरा कर सकें। इन इच्छाओं और आकांक्षाओं की पूर्ति ही विकास के लक्ष्य हैं। ये लक्ष्य दो प्रकार के हैं आर्थिक लक्ष्य एवं गैर-आर्थिक लक्ष्य ।

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→ राष्ट्रीय विकास

  • लोग विकास के लिए मिले-जुले लक्ष्यों को देखते हैं जो बेहतर आय के साथ-साथ जीवन में अन्य महत्त्वपूर्ण चीजों के बारे में भी होते हैं।
  • विश्व के विभिन्न देशों की तुलना करने का प्रमुख आधार उनकी आय होती है।
  • राष्ट्रीय आय विकास का एक महत्त्वपूर्ण मापदण्ड है जिन देशों की राष्ट्रीय आय अधिक होती है उन्हें कम आय वाले देशों से अधिक विकसित समझा जाता है। यह बात इस मान्यता पर आधारित है कि अधिक आय का अर्थ मानवीय आवश्यकताओं की सभी वस्तुओं का उपलब्ध होना है।
  • दोनों देशों की तुलना करने के लिए राष्ट्रीय आय एक उपयुक्त माप नहीं है क्योंकि विभिन्न देशों में जनसंख्या अलग-अलग होती है। अतः इससे हमें यह ज्ञात नहीं होता है कि औसत व्यक्ति क्या कमा सकता है।
  • दो देशों के मध्य तुलना करने के लिए प्रतिव्यक्ति आय को एक अच्छा आधार माना जाता है। औसत आय को प्रतिव्यक्ति आय भी कहा जाता है। देश की कुल आय में कुल जनसंख्या से भाग देकर प्रतिव्यक्ति आय ज्ञात कर ली जाती है।
  • विश्व बैंक की विश्व विकास रिपोर्ट के अनुसारं देशों के विकास के आधार पर वर्गीकरण करते समय प्रतिव्यक्ति आय मापदण्ड का प्रयोग किया गया है।
  • सन् 2017 में जिन देशों की प्रतिव्यक्ति आय US डॉलर 12.056 प्रतिवर्ष या उससे अधिक थी उन्हें समृद्ध देश कहा गया है तथा जिन देशों की प्रतिव्यक्ति आय US डॉलर 995 प्रतिवर्ष या उससे कम है, ऐसे देशों को निम्न आय वाला देश कहा गया है । इस दृष्टि से भारत मध्य आय वर्ग वाले देशों की श्रेणी में आता है क्योंकि सन् 2017 में भारत की प्रतिव्यक्ति आय ‘US डॉलर 1820 प्रतिवर्ष थी।

→ आय व अन्य मापदण्ड

  • दो या दो से अधिक देशों अथवा राज्यों के मध्य प्रतिव्यक्ति आय के अतिरिक्त तुलना के अन्य प्रमुख आधारों में शिशु-मृत्यु दर, साक्षरता दर, निवल उपस्थिति अनुपात, मानव विकास सूचकांक एवं उपलब्ध सुविधाएँ शामिल हैं।
  • यह जरूरी नहीं है कि जेब में रखा रुपया वे सब वस्तुएँ तथा सेवाएँ खरीद सके, जिनकी आपको एक अच्छा जीवन जीने के लिए जरूरत हो सकती है।
  • जीवन में अनेक महत्त्वपूर्ण चीजों के लिए सबसे अच्छा तथा सस्ता तरीका इन चीजों व सेवाओं को सामूहिक रूप से उपलब्ध कराना है।
  • स्वास्थ्य तथा शिक्षा की मौलिक सुविधाओं के पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने के कारण केरल में शिशु मृत्यु दर कम है।
  • संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू. एन. डी. पी.) द्वारा प्रकाशित मानव विकास रिपोर्ट विभिन्न देशों की तुलना लोगों के । शैक्षिक स्तर, उनकी स्वास्थ्य स्थिति एवं प्रतिव्यक्ति आय के आधार पर करती है।
  • विकास की धारणीयता तुलनात्मक स्तर पर ज्ञान का नया क्षेत्र है जिसमें वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री, दार्शनिक तथा अन्य सामाजिक वैज्ञानिक संयुक्त रूप से कार्य कर रहे हैं।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. विकास: विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होने के साथ-साथ निर्धनता, असमानता, अशिक्षा एवं बीमारी में कमी भी हो अर्थात् लोगों के आर्थिक स्तर में सुधार हो एवं उनका जीवन स्तर ऊँचा हो।

2. राष्ट्रीय विकास: किसी राष्ट्र का आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक विकास।

3. बहुराष्ट्रीय कम्पनी: ये वे कम्पनियाँ हैं जिनका एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियंत्रण अथवा स्वामित्व होता है।

4. आर्थिक विकास: आर्थिक विकास एक सतत् प्रक्रिया है जिसके द्वारा राष्ट्रीय आय एवं प्रतिव्यक्ति आय में दीर्घकालीन और निरन्तर वृद्धि होती है।

5. औसत आय: किसी देश की राष्ट्रीय आय को उसकी कुल जनसंख्या से भाग देने से प्राप्त राशि होती है। इसे प्रति व्यक्ति आय भी कहते हैं।

6. अर्थव्यवस्था: उन विभिन्न प्रणालियों और संगठनों का समूह जो लोगों को आजीविका प्रदान करते हैं।

7. मानव विकास: यह लोगों की इच्छाओं और उनके जीवन-स्तर में वृद्धि लाने की एक प्रक्रिया है ताकि वे एक उद्देश्यपूर्ण एवं सक्रिय जीवन जी सकें।

8. विश्व बैंक: सन् 1944 में स्थापित अन्तर्राष्ट्रीय बैंक। इस बैंक का उद्देश्य निर्धन, साधनहीन एवं विकासशील देशों को वित्त व तकनीकी सहायता उपलब्ध कराना है।

9. राष्ट्रीय आय: किसी समयावधि में एक अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं में कुल प्रवाह का मौद्रिक मूल्य।

10. विकसित देश: उच्चतम प्रतिव्यक्ति आय एवं उच्च जीवन स्तर की विशेषता वाले देश।

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11. निम्न आय वाला देश: वे देश जिनकी प्रतिव्यक्ति आय US डॉलर 995 प्रतिवर्ष या उससे कम है, निम्न आय वाले . देश कहलाते हैं।

12. शिशु मृत्यु दर: किसी वर्ष में पैदा हुए 1000 जीवित बच्चों में से एक वर्ष की आयु से पहले मर जाने वाले बच्चों का अनुपात।

13. साक्षरता दर: 7 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों में साक्षर जनसंख्या का अनुपात।

14. निवल उपस्थिति अनुपात: किसी आयु विशेष के विद्यालय जाने वाले कुल बच्चों का उस आयु वर्ग के कुल बच्चों के मध्य अनुपात।

15. यू. एन. डी. पी.: संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, जो विश्व के विभिन्न देशों की विभिन्न दशाओं का अध्ययन कर उनकी मानव विकास रिपोर्ट प्रकाशित करता है।

16. मानव विकास रिपोर्ट: संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा विभिन्न देशों के शिक्षा, स्वास्थ्य व आय आदि की दशा … के आधार पर प्रकाशित किया जाने वाला वार्षिक प्रतिवेदन।

17. एच. डी. आई.: मानव विकास सूचकांक। यह विश्व के देशों में विकास स्तर को समझने व तुलना करने में सहायक होता है।

18. विकास की धारणीयता: विकास का जो स्तर हमने प्राप्त किया है, वह भावी पीढ़ी के लिए भी बना रहे। .

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JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 3 जल संसाधन 

JAC Board Class 10th Social Science Notes Geography Chapter 3 जल संसाधन

पाठ सारांश

  • हमारे धरातल के लगभग तीन-चौथाई भाग पर जल का विस्तार पाया जाता है। जिसमें प्रयोग में लाने योग्य अलवणीय जल का अनुपात बहुत कम है।
  • सतही अपवाह एवं भौमजल स्रोत से हमें अलवणीय जल की प्राप्ति होती है।
  • हमें प्राप्त होने वाले अलवणीय जल का लगातार नवीनीकरण एवं पुनर्भरण जलीय-चक्र द्वारा होता रहता है।
  • जल एक चक्रीय संसाधन है। यदि इसका उचित तरीके से उपयोग किया जाए तो इसकी कमी नहीं होगी।
  • जल के नवीकरण-योग्य संसाधन होने के बावजूद आज विश्व के अनेक देशों व क्षेत्रों में जल की कमी दिखाई देती है।
  • भारत में तीव्र गति से उद्योगों की बढ़ती संख्या के कारण अलवणीय जल संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है।
  • वर्तमान समय में भारत में कुल विद्युत का लगभग 22 प्रतिशत भाग जल-विद्युत से प्राप्त किया जाता है।
  • यह एक चिंता का विषय है कि लोगों की आवश्यकता के लिए प्रचुर मात्रा में जल उपलब्ध होने के बावजूद यह घरेलू व औद्योगिक अपशिष्टों, रसायनों, कीटनाशकों एवं कृति में प्रयुक्त किए जाने वाले उर्वरकों द्वारा प्रदूषित है। ऐसा जल मानव उपयोग के लिए खतरनाक है।
  • हमारे देश में प्राचीनकाल से ही सिंचाई के लिए पत्थरः मलबे से बाँध निर्माण, जलाशय अथवा झीलों के तटबन्ध व नहरों जैसी उत्कृष्ट जलीय कृतियाँ बनायी गयी हैं।
  • हमारे देश में चन्द्रगुप्त मौर्य के.शासनकाल में बड़े पैमाने पर बाँध, झील व सिंचाई क्षेत्रों का निर्माण करवाया गया।
  • 11वीं सदी में बनवाई गई भोपाल झील अपने समय की सबसे बड़ी कृत्रिम झीलों में से एक थी।
  • परम्परागत बाँध, नदियों तथा वर्षा जल को एकत्रित करने के पश्चात् उसे खेतों की सिंचाई हेतु उपलब्ध करवाते थे।
  • वर्तमान में बाँधों का उद्देश्य न केवल सिंचाई अपितु विद्युत उत्पादन, घरेलू व औद्योगिक उपयोग, जल आपूर्ति, बाढ़ नियन्त्रण, मनोरंजन, आंतरिक नौचालन तथा मछली पालन इत्यादि भी है।
  • बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं में भाखड़ा नांगल व हीराकुड परियोजना आदि प्रमुख हैं। पं. जवाहरलाल नेहरू गर्व से बाँधों को ‘आधुनिक भारत के मन्दिर’ कहते थे।
  • बहुउद्देशीय परियोजनाएँ एवं बड़े-बड़े बाँध नये सामाजिक आन्दोलनों, जैसे-नर्मदा बचाओ आन्दोलन एवं टिहरी बाँध आन्दोलन के कारण भी बन गये हैं। इन परियोजनाओं का विरोध मुख्य रूप से स्थानीय समुदायों के अपने स्थान से बड़े पैमाने पर विस्थापन के कारण है।
  • नर्मदा बचाओ आन्दोलन एक गैर सरकारी संगठन (NGO) है। यह गुजरात में नर्मदा नदी. पर सरदार सरोवर बाँध के विरोध में जनजातीय लोगों, किसानों, पर्यावरणविदों तथा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को लामबंद करता है।
  • जल संरक्षण हेतु भारत के पहाड़ी व पर्वतीय क्षेत्रों में लोगों ने ‘गुल’ अथवा ‘कुल’ (पश्चिमी हिमालय) जैसी वाहिकाएँ, नदी की धारा का रास्ता बदलकर खेतों में सिंचाई के लिए निर्मित की हैं।
  • राजस्थान में पीने का जल एकत्रित करने के लिए ‘छत वर्षाजल संग्रहण’ एक प्रचलित तकनीक है।
  • शुष्क व अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र में खेतों में वर्षा जल एकत्रित करने के लिए गड्ढे बनाये जाते हैं। राजस्थान के जैसलमेर जिले में ‘खादीन’ (खडीन) व अन्य क्षेत्रों में ‘जोहड़’ इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
  • मेघालय राज्य में नदियों व झरनों के जल को बाँस से बने पाइप द्वारा एकत्रित करके सिंचाई की जाती है। यह लगभग 200 वर्ष पुरानी विधि है जो आज भी प्रचलित है।
  • तमिलनाडु भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ सम्पूर्ण राज्य में प्रत्येक घर में छत वर्षाजल संरक्षण ढाँचों का निर्माण अनिवार्य कर दिया गया है। इसका उल्लंघन करने पर कानूनी कार्यवाही का भी प्रावधान है।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 3 जल संसाधन 

→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. अलवणीय जल: नमकरहित अर्थात् मीठे जल को अलवणीय जल कहा जाता है।

2. भौमजल स्रोत: धरातल के नीचे चट्टानों की दरारों व छिद्रों में अवस्थित जल, भौमजल कहलाता है।

3. सतही अपवाह: धरातल पर स्थित विभिन्न जलस्रोत-नदियाँ, झीलें, नहरें, या, विभिन्न जलाशय सतही अपवाह कहलाते

4. भूजल पुनर्भरण: वर्षा के रूप में पृथ्वी पर गिरने वाला पानी कई माध्यमों से मिट्टी में समाहित होकर भूमिगत जल स्तर तक पहुँचता है और भूजल स्तर की मात्रा में वृद्धि करता है। इसे ही हम भूजल पुनर्भरण कहते हैं।

5. जलीय चक्र: जल समुद्र, झील, तालाब, खेतों आदि से वाष्प बनकर उड़ता रहता है। जल-वाष्प हवा में संघनित होकर बादलों में बदल जाती है। यह संघनित जल-वाष्प पुनः वर्षा के रूप में धरती पर आ जाती है। धरती से जल पुनः सागरों आदि में पहुँचता है तथा पुनः जल का वाष्पीकरण होकर यही प्रक्रिया चलती रहती है। इस प्रकार जल एक चक्र के रूप में गतिशील रहता है। इसे ही जलीय चक्र कहते हैं।

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6. जलभृत: जिन शैलों में होकर भूमिगत जल प्रवाहित होता है, उन्हें जलभृत (जलभरा) कहते हैं।

7. जल दुर्लभता: माँग की तुलना में जल की कमी को जल-दुर्लभता कहते हैं।

8. जल-संरक्षण: जल संरक्षण से आशय है जल का बचाव करना, जल को व्यर्थ नहीं बहाना, जल का दुरुपयोग नहीं करना और जल को जरूरत के समय के लिए बचाकर खना।

9. जल-प्रबन्धन: लगातार बढ़ती जनसंख्या के लिए पेयजल एवं कृषि फसलों की सिंचाई हेतु जल की भविष्य में आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए किये जाने वाले प्रयास जल-प्रबंधन कहलाते हैं।

10. पनिहारिन: सिर पर मटकों को रखकर जल लाने वाली महिलाएँ पनिहारिन कहलाती हैं।

11. अतिशोषण: अत्यधिक मात्रा में जल निकालने को अभिशोषण कहते हैं।

12. अपशिष्ट: उद्योगों से अपसारित होने वाले कूड़े-करकट को अपशिष्ट कहते हैं।

13. निम्नीकृत-संसाधनों की गुणवत्ता में कमी लाने को निम्नीकृत कहते हैं।

14. जलीय कृतियाँ-वे बाँध, जलाशय, झीलें, नहरें, कुएँ, बावड़ी आदि जिनमें वर्षा जल संग्रहीत किया जाता है, जलीय कृतियाँ कहलाती हैं।

15.. परिपाटी-परम्परा को ही परिपाटी कहते हैं।

16. जल-संसाधन-धरातल के ऊपर एवं भूगर्भ के आन्तरिक भागों में पाये जाने वाले समस्त जल-भण्डारों को जल संसाधन कहते हैं।

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17. बहुउद्देशीय नदी परियोजना-एक नदी घाटी परियोजना जो एक साथ कई उद्देश्यों; जैसे-सिंचाई, बाढ़-नियन्त्रण, जल व मृदा का संरक्षण, जल विद्युत, जल परिवहन, पर्यटन का विकास, मत्स्य पालन, कृषि एवं औद्योगिक विकास आदि की पूर्ति करती है, बहुउद्देशीय नदी परियोजना कहलाती है, जैसे-भाखड़ा- नांगल परियोजना, चम्बल घाटी परियोजना . आदि।

18. टाँका-वर्षा जल को एकत्रित करने के लिए बनाया गया भूमिगत टैंक या कुऔं, टाँका कहलाता है।

19. सिंचाई-वर्षा की कमी या अभाव होने पर फसलों को कृत्रिम रूप से जल पिलाना सिंचाई कहलाता है।

20. जल-विद्युत-जल की गतिशील शक्ति का उपयोग कर तैयार की गई विद्युत को जल-विद्युत कहते हैं।

21. बाँस ड्रिप सिंचाई-बाँस की पाइप द्वारा बूंद-बूंद करके पेड़-पौधों की सिंचाई करना बाँस ड्रिप सिंचाई कहलाता है।

22. पालर पानी (Palar Pani)-पश्चिमी राजस्थान में वर्षा जल को पालर पानी भी कहां जाता है।

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23. वर्षा-जल संग्रहण-वर्षा द्वारा भूमिगत जल की क्षमता में वृद्धि करने की तकनीक वर्षा-जल संग्रहण कहलाती है। इसमें वर्षा-जल को रोकने एवं एकत्रित करने के लिए विशेष ढाँचों जैसे-कुएँ, गड्ढे, बाँध आदि का निर्माण किया जाता है। इससे न केवल जल का संग्रहण होता है बल्कि जल भूमिगत होने की अनुकूल परिस्थितियाँ प्राप्त होती हैं।

24. मृदा-पृथ्वी की ऊपरी सतह जो चट्टानों एवं ह्यूमस से बनती है, मृदा कहलाती है।

25. वन-वृक्षों से भरा हुआ विस्तृत क्षेत्र वन कहलाता है।

26. बाँध-बहते हुए जल को रोकने के लिए खड़ी की गई एक बाधा जो आमतौर पर जलाशय, झील अथवा जलभरण बनाती है; बाँध कहलाती है।

27. बाढ़-किसी विस्तृत भू-भाग का लगातार कई दिनों तक अस्थायी रूप से जलमग्न रहना बाढ़ कहलाता है।

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JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 2 वन और वन्य जीव संसाधन 

JAC Board Class 10th Social Science Notes Geography Chapter 2 वन और वन्य जीव संसाधन

पाठ सारांश

  • हमारा धरातल अत्यधिक जैव विविधताओं से भरा हुआ है।
  • धरातल पर मानव एवं अन्य जीव-जन्तु एक जटिल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं।
  • पारिस्थितिकी तंत्र में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका वनों की होती है क्योंकि ये प्राथमिक उत्पादक हैं जिन पर अन्य सभी जीव निर्भर करते हैं।
  • हमारे देश में समस्त विश्व की जैव उपजातियों की 8 प्रतिशत संख्या (लगभग 16 लाख) पायी जाती है। जैव विविधता की दृष्टि से भारत विश्व के सबसे समृद्ध देशों में से एक है।
  • अनुमानतः भारत में 10 प्रतिशत वन्य वनस्पतियों एवं 20 प्रतिशत स्तनधारियों के लुप्त होने का खतरा बना हुआ है।
  • हमारे देश में वनों के अन्तर्गत लगभग 807276 वर्ग किमी. क्षेत्रफल है। यह देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 24.56% भाग है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण एवं प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ (IUCN) ने पौधों और प्राणियों की जातियों को सामान्य जातियाँ, संकटग्रस्त जातियाँ, सुभेद्य जातियाँ, दुर्लभ जातियाँ, स्थानिक जातियाँ एवं लुप्त जातियाँ आदि श्रेणियों में विभाजित किया है।
  • भारत में वन विनाश उपनिवेश काल में रेलवे लाइनों का विस्तार, कृषि, व्यवसाय, वाणिज्य, वानिकी एवं खनन क्रियाओं में वृद्धि से हुआ है।
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भी वन संसाधनों के सिकुड़ने में कृषि का फैलाव एक महत्त्वपूर्ण कारक रहा है।
  • वन सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 1951 और 1980 के बीच लगभग 26,200 वर्ग किमी वन क्षेत्र को कृषि भूमि में बदला गया।
  • जनजाति क्षेत्रों में स्थानान्तरी (झूमिंग) कृषि से बहुत अधिक वनों का विनाश हुआ है।
  • भारत में नदी घाटी परियोजनाओं के निर्माण ने भी वन विनाश को प्रोत्साहित किया है। सन् 1952 से नदी घाटी परियोजनाओं के कारण 5,000 वर्ग किमी से भी अधिक वन क्षेत्रों को नष्ट करना पड़ा है तथा यह प्रक्रिया अभी भी रुकी नहीं है।
  • अरुणाचल प्रदेश एवं हिमाचल प्रदेश में मिलने वाला हिमालय यव (चीड़ की प्रकार का एक सदाबहार वृक्ष) औषधि पौधा है जो संकट के कगार पर है।
  • भारत में जैव-विविधता को कम करने वाले प्रमुख कारकों में वन्य जीवों के आवासों का विनाश, जंगली जानवरों का शिकार करना, पर्यावरण प्रदूषण एवं वनों में आग लगना आदि है।
  • भारत में वन्य जीवों की सुरक्षा हेतु भारतीय वन्य जीवन (रक्षण) अधिनियम, 1972 को लागू किया गया है, जिसमें वन्य जीवों की सुरक्षा हेतु अनेक प्रावधान हैं।
  • बाघों के संरक्षण हेतु प्रोजेक्ट टाइगर चलाया जा रहा है जो विश्व की प्रमुख वन्य जीव परियोजनाओं में से एक है।
  • वन्य जीव अधिनियम 1980 व 1986 के अंतर्गत सैकड़ों तितलियों, पतंगों, भंगों तथा एक ड्रैगनफ्लाई को भी संरक्षित जातियों में सम्मिलित किया है।
  • राजकीय स्तर पर वनों को आरक्षित-वन, रक्षित-वन एवं अवर्गीकृत-वन में विभाजित किया गया है।
  • हिमालय क्षेत्र का प्रसिद्ध चिपको आन्दोलन कई क्षेत्रों में वनों की कटाई को रोकने में सफल रहा है।
  • भारत में संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रमों की औपचारिक शुरुआत 1988 में ओडिशा राज्य द्वारा संयुक्त वन प्रबंधन का पहला प्रस्ताव पास करने के साथ हुई थी।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 2 वन और वन्य जीव संसाधन 

→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. जैव-विविधता: पेड़-पौधों एवं प्राणि-जगत में जो विभिन्न प्रकार की प्रजातियाँ मिलती हैं, जैव-विविधता कहलाती हैं। दूसरे शब्दों में, जैव-विविधता वनस्पति व प्राणियों में पाए जाने वाले जातीय विभेद को प्रकट करती है।

2. वनस्पतिजात (Flora): वनस्पतिजात से तात्पर्य किसी विशेष क्षेत्र या समय के पादपों से है।

3. प्राणिजात: सभी प्रकार के पशु-पक्षी, जीवाणु, सूक्ष्म-जीवाणु व मनुष्य मिलकर प्राणिजात कहलाते हैं।

4. सामान्य जातियाँ: वन और वन्य-जीवों की ऐसी प्रजातियाँ जिनकी संख्या जीवित रहने के लिए सामान्य मानी जाती है, जैसे-चीड़, साल, पशु, कृंतक (रोडेंट्स)।

5. संकटग्रस्त जातियाँ: ऐसी जातियाँ जिनके लुप्त होने का खतरा है, जैसे-काला हिरण, गैंडा, मगरमच्छ, भारतीय जंगली गधा, शेर की पूँछ वाला बंदर, मणिपुरी हिरण।

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6. सुभेद्य जातियाँ: ये वे प्रजातियाँ हैं, जिनकी संख्या लगातार घट रही हैं और जो शीघ्र ही संकटग्रस्त होने की स्थिति में हैं। उदाहरण-नीली भेड़, एशियाई हाथी, गंगा की डॉल्फिन आदि।

7. दुर्लभ जातियाँ-जीव: जन्तु व वनस्पति की वे प्रजातियाँ जिनकी संख्या बहुत कम रह गई है, दुर्लभ प्रजातियाँ कहलाती हैं।

8. स्थानिक जातियाँ: प्राकृतिक या भौगोलिक सीमाओं से अलग विशेष क्षेत्रों में पायी जाने वाली प्रजातियाँ स्थानिक – प्रजातियाँ कहलाती हैं, जैसे-अंडमानी चील, निकोबारी कबूतर, अरुणाचली मिथुन व अंडमानी जंगली सुअर आदि।

9. लुप्त जातियाँ: ये वे जातियाँ हैं जिनके रहने के आवासों में खोज करने पर वे अनुपस्थित पाई गई हैं, जैसे-एशियाई चीता, गुलाबी सिर वाली बत्तख आदि।

10. वन-वह बड़ा भू: भाग जो वृक्षों और झाड़ियों से ढका होता है।

11. पारिस्थितिकी तन्त्र: मानव और दूसरे जीवधारी मिलकर एक जटिल तंत्र का निर्माण करते हैं, उसे पारिस्थितिकी तन्त्र कहा जाता है।

12. आरक्षित वन: ये वे वन हैं जो इमारती लकड़ी अथवा वन उत्पादों को प्राप्त करने के लिए स्थायी रूप से सुरक्षित कर लिए गए हैं और इनमें पशुओं को चराने तथा खेती करने की अनुमति नहीं दी जाती।

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13. रक्षित वन: ये वे वन हैं जिनमें पशुओं को चराने व खेती करने की अनुमति कुछ विशिष्ट प्रतिबन्धों के साथ प्रदान की जाती है।

14. अवर्गीकृत वन: अन्य सभी प्रकार के वन व बंजर भूमि जो सरकार, व्यक्तियों एवं समुदायों के स्वामित्व में होते हैं, अवर्गीकृत वन कहलाते हैं। इनमें लकड़ी काटने व पशुओं को चराने पर सरकार की ओर से कोई रोक नहीं होती है।

15. सामुदायिक वनीकरण: यह वन सुरक्षा हेतु लोगों का, लोगों के लिए, लोगों द्वारा संचालित एक विशिष्ट कार्यक्रम

16. राष्ट्रीय उद्यान: ऐसे रक्षित क्षेत्र जहाँ वन्य प्राणियों सहित प्राकृतिक वनस्पति और प्राकृतिक सुन्दरता को एक साथ सुरक्षित रखा जाता है। ऐसे स्थानों की सुरक्षा को उच्च स्तर प्रदान किया जाता है। इसकी सीमा में पशुचारण प्रतिबन्धि .त होता है। इसकी सीमा में किसी भी व्यक्ति को भूमि का अधिकार नहीं मिलता है।

17. वन्य जीव पशु विहार: ये वे रक्षित क्षेत्र हैं जहाँ कम सुरक्षा का प्रावधान है। इसमें वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए अन्य गतिविधियों की अनुमति होती है। इसमें किसी भी अच्छे कार्य के लिए भूमि का उपयोग हो सकता है।

18. प्रोजेक्ट टाइगर: देश में बाघों की संख्या में तेजी से गिरावट को देखकर बाघों के संरक्षण के लिए सन् 1973 से संचालित विशेष बाघ परियोजना।

19. स्थानांतरी कृषि: यह कृषि का सबसे आदिम रूप है। कृषि की इस पद्धति में वन के एक छोटे टुकड़े के पेड़ और झाड़ियों को काटकर उसे साफ कर दिया जाता है। इस प्रकार से कटी हुई वनस्पति को जला दिया जाता है और उससे प्राप्त हुई राख को मिट्टी में मिला दिया जाता है। इस भूमि पर कुछ वर्षों तक कृषि की जाती है। भूमि की उर्वरता समाप्त हो जाने पर किसी दूसरी जगह पर यही क्रिया पुनः दुहरायी जाती है। इसे ‘स्लैश और बर्न कृषि’ भी कहा जाता है। पूर्वोत्तर भारत में इसे झूमिंग (Jhuming) कृषि के नाम से जाना जाता है।

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JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास

JAC Board Class 10th Social Science Notes Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास

पाठ सारांश

  • हमारे पर्यावरण में पाये जाने वाला ऐसा पदार्थ अथवा तत्व जिसमें मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करने की क्षमता हो, संसाधन कहलाता है।
  • मानव स्वयं संसाधनों का एक महत्वपूर्ण भाग है। वह पर्यावरण में पाए जाने वाले पदार्थों को संसाधनों में परिवर्तित कर उनका उपयोग करता है।
  • संसाधनों को उनकी उत्पत्ति, समाप्यता, स्वामित्व एवं विकास के स्तर के आधार पर निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है

(अ) उत्पत्ति के आधार पर:

  1. जैव संसाधन, (मनुष्य, वनस्पतिजात, प्राणीजात आदि),
  2. अजैव संसाधन (चट्टानें व धातुएँ आदि)।

(ब) समाप्यता के आधार पर:

  1. नवीकरण योग्य, (सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल, वन तथा वन्य जीवन आदि)
  2. अनवीकरण योग्य (खनिज व जीवाश्म ईंधन आदि)।

(स) स्वामित्व के आधार पर:

  1. व्यक्तिगत (भूमि, घर, बाग, चरागाह, तालाब व कुआँ आदि),
  2. सामुदायिक (चारण भूमि, श्मशान भूमि, खेल के मैदान व पिकनिक स्थल आदि),
  3. राष्ट्रीय (सड़कें, नहरें, रेल लाइनें, – खनिज पदार्थ, जल संसाधन आदि),
  4. अन्तर्राष्ट्रीय (तट रेखा से 200 समुद्री मील की दूरी से परे खुले महासागरीय संसाधन आदि)।

(द) विकास के स्तर के आधार पर:

  1. संभावी, (राजस्थान व गुजरात में पवन और सौर ऊर्जा की संभावना),
  2. विकसित (सर्वेक्षण के बाद उपयोग की गुणवत्ता व मात्रा का निर्धारण करने वाले संसाधन),
  3. भंडार (हाइड्रोजन ऊर्जा),
  4. संचित कोष (बाँधों में जल व वन आदि)

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास

  • संसाधन मानव के जीवनयापन के साथ-साथ जीवन की गुणवत्ता बनाये रखने के लिए भी अति आवश्यक हैं।
  • मानव ने संसाधनों को प्रकृति की देन समझकर उनका अंधाधुंध उपयोग किया है जिससे अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं, जिनमें पर्यावरण-प्रदूषण, भूमि-निम्नीकरण, भूमंडलीय-तापन व ओजोन-परत का क्षय आदि प्रमुख हैं।
  • विश्व स्तर पर उभरते पर्यावरण संरक्षण एवं सामाजिक-आर्थिक विकास की समस्याओं का समाधान ढूँढ़ने के लिए जून, 1992 में ब्राजील के रियो-डी-जेनेरो नामक शहर में प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय पृथ्वी-सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें 100 से भी अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भाग लिया।
  • संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए उनका उचित प्रकार से नियोजन आवश्यक है।
  • 1968 ई. में ‘क्लब ऑफ रोम’ ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यवस्थित तरीके से संसाधन संरक्षण की वकालत की।
  • भारत में भूमि पर पर्वत, पठार, मैदान तथा द्वीप जैसी विभिन्न प्रकार की भू-आकृतियाँ पाई जाती हैं।
  • भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किमी. है लेकिन वर्तमान में इसके 93 प्रतिशत भाग के ही भू-उपयोग सम्बन्धी आँकड़े उपलब्ध हैं।
  • भारत की राष्ट्रीय वन नीति, 1952 द्वारा निर्धारित वनों के तहत 33 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र वांछित है जो पारिस्थितिकी सन्तुलन बनाए रखने हेतु जरूरी है।
  • भारत में संसाधनों के नियोजन के लिए प्रथम पंचवर्षीय योजना से ही प्रयास किये जा रहे हैं।
  • एक लम्बे समय तक निरन्तर भूमि संरक्षण एवं प्रबन्ध की अवहेलना तथा निरन्तर भू-उपयोग के कारण भू-संसाधनों का निम्नीकरण हो रहा है जो एक गम्भीर समस्या है।
  • वनारोपण, चारागाहों का उचित प्रबंधन, पशुचारण नियंत्रण एवं खनन नियंत्रण आदि द्वारा भूमि निम्नीकरण की समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
  • मनुष्य की समस्त प्रारम्भिक आवश्यकताओं का आधार मृदा संसाधन है। मृदा जैव और अजैव दोनों प्रकार के पदार्थों से बनती है। खनिज व जैव-पदार्थों का प्राकृतिक सम्मिश्रण है।
  • भारत में उच्चावच, भू-आकृतियाँ, जलवायु एवं वनस्पति की विविधता के कारण अनेक प्रकार की मृदाओं का विकास हुआ है जो निम्नलिखित हैं
  1. जलोढ़ मृदा
  2. काली मृदा
  3. लेटराइट मृदा
  4. लाल व पीली मृदा
  5. मरुस्थलीय मृदा
  6. वन मृदा।
  • जलोढ़ मृदा देश की सबसे महत्वपूर्ण मृदा है। यह बहुत उपजाऊ होती है।
  • काली मृदा कपास की खेती के लिए प्रसिद्ध है।
  • मृदा अपरदन, मृदा की सबसे महत्वपूर्ण समस्या है। इससे मृदा की उर्वर-शक्ति का निरन्तर ह्रास होता रहता है।
  • मृदा के संरक्षण हेतु कई उपाय किये जा सकते हैं, जिनमें समोच्च रेखीय जुताई, पट्टीनुमा कृषि, सीढ़ीदार कृषि आदि प्रमुख हैं।
  •  पर्यावरण की पुनर्स्थापना के लिए लोगों द्वारा इसका प्रबन्धन आवश्यक है। सुखोमाजरी गाँव एवं झबुआ जिले में इस प्रकार का कार्य हुआ है। वहाँ के लोगों ने भूमि निम्नीकरण प्रक्रिया को समाप्त कर दिखाया है।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास

→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. संसाधन: हमारे पर्यावरण में उपलब्ध वे समस्त दार्थ या तत्व जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने में प्रयोग किये जाते हैं और जिनका उपयोग करने के लिए तकनीकी 7 उपलब्ध है, जो आर्थिक रूप से संभाव्य एवं सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य हैं, संसाधन कहलाते हैं।

2. जैव संसाधन: वे संसाधन जिनका जैवमण्डल में एक निश्चित जीवन-चक्र होता है, जैव संसाधन (जैविक संसाध न) कहलाते हैं, जैसे-वनस्पति, मनुष्य, पशु-पक्षी, छोटे जीव, वन्य-प्राणी, मछली आदि।

3. अजैव संसाधन: वें संसाधन जिनमें एक निश्चित जीवन-क्रिया का अभाव होता है अर्थात् निर्जीव वस्तुओं से बने होते हैं, अजैव संसाधन कहलाते हैं, जैसे-लोहा, सोना, चाँदी, कोयला, चट्टानें आदि।

4. नवीकरण योग्य संसाधन: वे समस्त संसाधन जिनको भौतिक, रासायनिक अथवा यांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा नवीकृत या पुनः उत्पन्न किया जा सकता है, नवीकरण योग्य संसाधन कहलाते हैं। उन्हें पुनः पूर्ति योग्य संसाधन भी कहा जाता है, जैसे-सौर-ऊर्जा, पवन-ऊर्जा, जल, वन, कृषि आदि।

5. अनवीकरण योग्य संसाधन: वे समस्त संसाधन जिनको एक बार उपयोग में लेने के पश्चात् पुनः पूर्ति किया जाना सम्भव नहीं है, अनवीकरण योग्य संसाधन कहलाते हैं। ये संसाधन सीमित मात्रा में होते हैं, जैसे-कोयला, खनिज तेल, यूरेनियम, प्राकृतिक गैस आदि।

6. प्राकृतिक संसाधन: प्रकृति से प्राप्त विभिन्न पदार्थ या तत्व जिनका कोई मानवीय उपयोग होता है, प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं, जैसे-सूर्य का प्रकाश, खनिज, धरातल, मिट्टी, जल, वायु व वनस्पति। ये संसाधन प्रकृति द्वारा मनुष्य को दिए गए निःशुल्क उपहार हैं।

7. मानवीय संसाधन: मानव द्वारा विकसित किए गए संसाधन, मानवीय संसाधन कहलाते हैं, जैसे-भवन, गाँव, स्वास्थ्य, शिक्षा, मशीन, उद्योग, सड़क आदि।

8. संभावी संसाधन: किसी प्रदेश विशेष में वे समस्त विद्यमान संसाधन जिनका अब तक उपयोग नहीं किया गया है, संभावी संसाधन कहलाते हैं।

9. विकसित संसाधन: वे समस्त संसाधन जिनका सर्वेक्षण किया जा चुका है एवं उनके उपयोग की गुणवत्ता व मात्रा का निर्धारण किया जा चुका है, विकसित संसाधन कहे जाते हैं।

10. भंडार: हमारे पर्यावरण में उपलब्ध वे समस्त पदार्थ जो मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं परन्तु उपयुक्त प्रौद्योगिकी के अभाव में पहुँच से बाहर हैं, भंडार में सम्मिलित किये जाते हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास

11. संचित कोष: भण्डार का वह हिस्सा जिसे तकनीकी ज्ञान की सहायता से उपयोग में लाया जा सकता हैं लेकिन जिसका प्रयोग अभी तक आरम्भ नहीं किया गया है, संचित-कोष कहलाता है।

12. पुनःचक्रीय संसाधन: ऐसे संसाधन जिनका उपयोग बार-बार किया जा सकता है, पुनः चक्रीय संसाधन कहलाते हैं, जैसे-लोहा, सोना, चाँदी आदि धातुएँ । इन धातुओं को बार-बार पिघलाकर विभिन्न रूपों में उपयोग किया जा सकता है।

13. अचक्रीय संसाधन: ऐसे संसाधन जिनका उपयोग बार-बार नहीं किया जा सकता, अचक्रीय संसाधन कहलाते हैं, जैसे-जीवाश्म ईंधन, कोयला, खनिज-तेल, प्राकृतिक गैस आदि संसाधन एक बार प्रयोग कर लेने के पश्चात् समाप्त हो जाते हैं।

14. सतत् पोषणीय विकास: सतत् पोषणीय विकास पर्यावरण को बिना हानि पहुँचाए किया जाने वाला विकास है। इसमें वर्तमान विकास प्रक्रिया का निर्धारण भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाता है।

15. संसाधन नियोजन: संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए सर्वमान्य रणनीति को संसाधन नियोजन कहते हैं।

16. संसाधन संरक्षण: प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का अर्थ है-उनका नियोजित एवं विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग करना ताकि हमें अपने संसाधनों का एक लम्बे समय तक पर्याप्त लाभ प्राप्त हो सके।

17. परती भूमि: वह भूमि जिस पर एक या अधिक ऋतुओं में कृषि नहीं की मई हो ताकि उसकी उर्वरता बढ़ सके, परती भूमि कहलाती है।

18. बंजर भूमि: भूमि का वह भाग जिसका कोई उपयोग नहीं होता है, बंजर भूमि कहलाती है।

19. शुद्ध (निवल) बोया गया क्षेत्र: एक कृषि वर्ष में कुल बोया गया क्षेत्र, शुद्ध (निवल) बोया गया क्षेत्र कहलाता

20. चारागाह: घास उत्पन्न करने वाली वह भूमि जिसका उपयोग पशुओं को चराने के लिए किया जाता है।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास

21. सकल कृषित क्षेत्र: एक कृषि वर्ष में एक बार से अधिक बोए गए क्षेत्र को शुद्ध .(निवल) बोए गए क्षेत्र में जोड़ देना सकल कृषित क्षेत्र कहलाता है।

22. भूमि निम्नीकरण: मानवीय क्रिया-कलापों के कारण भूमि की गुणवत्ता का कम हो जाना भूमि निम्नीकरण कहलाता है।

23. रक्षक मेखला: फसलों के बीच में वृक्षों की कतारें लगाना रक्षक मेखला कहलाता है।

24. मृदा: पृथ्वी की भूपर्पटी की वह सबसे ऊपरी परत जो बारीक विखण्डित चट्टान चूर्ण से बनी होती है और पेड़-पौधों के लिए उपयोगी होती है, मृदा कहलाती है।

25. बांगर: पुरानी जलोढ़ मृदा। इस प्रकार की मृदा में कंकर ग्रन्थियों की मात्रा अधिक होती है।

26. खादर: नवीन जलोढ़ मृदा। इस प्रकार की मृदा में बांगर मृदा की तुलना में अधिक बारीक कण पाये जाते हैं।

27. मृदा अपरदन: मृदा के कटाव एवं उसके बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहते हैं।

28. उत्खात: भूमि-ऐसी भूमि जो अवनलिकाओं के कारण कृषि योग्य नहीं रहती, उत्खात भूमि कहलाती है।

29. खड्ड-भूमि: चम्बल नदी के बेसिन में उत्खात भूमि को खड्ड-भूमि कहा जाता है।

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30. चादर अपरदन: जब बहते हुए जल के साथ विस्तृत क्षेत्र की मृदा की ऊपरी परत बह जाती है तो उसे चादर अपरदन कहते हैं।

31. अवनलिका अपरदन: जब बहता हुआ जल मृत्तिकायुक्त मृदाओं को काटते हुए गहरी वाहिकाएँ बनाता है तो उन्हें अवनलिका अपरदन कहते हैं।

32. पवन अपरदन: पवन द्वारा मैदानी अथवा ढालू क्षेत्र से मृदा को उड़ा ले जाने की क्रिया पवन अपरदन कहलाती है।

33. समोच्च जुताई: ढोल वाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के समानान्तर हल चलाने को समोच्च जुताई कहते हैं।

34. पट्टी कृषि: बड़े खेतों को पट्टियों में बाँटकर उनके बीच में फसल उगाई जाती है तथा पट्टियों में घास उगायी जाती है जिससे पवन के वेग का प्रभाव फसलों पर नहीं पड़ता। इस प्रकार से की जाने वाली कृषि को पट्टी कृषि कहते हैं।

35. निक्षालन: निक्षालन मृदा अपरदन की एक प्रक्रिया है जिसमें मृदा के तत्व भारी वर्षा के कारण बह जाते हैं।

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JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

JAC Board Class 10th Social Science Notes History Chapter 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

→ मुद्रित का महत्व्

  • मुद्रित अर्थात् छपी हुई सामग्री के बिना विश्व की कल्पना करना हमारे लिए मुश्किल है।
  • छपाई अर्थात् मुद्रण की सबसे पहली तकनीक चीन, जापान और कोरिया में विकसित हुई।
  • लगभग 594 ई. से चीन में स्याही लगे काठ के ब्लॉक या तख्ती पर कागज को रगड़कर किताबों को छापा जाने लगा था।
  • एक लम्बे समय तक चीनी राजतन्त्र मुद्रित सामग्री का सबसे बड़ा उत्पादक रहा है।
  • जापान में सर्वप्रथम चीनी बौद्ध प्रचारक 768-770 ई. के आस-पास छपाई की तकनीक को लाये थे।
  • 868 ई. में छपी ‘डायमंड सूत्र’ जापान की सबसे प्राचीन पुस्तक है।
  • 13वीं सदी के मध्य में, ‘त्रिपीटका कोरियाना’ वुडब्लॉक्स मुद्रण के रूप में बौद्ध ग्रंथों का कोरियाई संग्रह है जिसे लगभग 80,000 वुडब्लॉक्स पर उकेरा गया। 2007 में इन ग्रंथों को यूनेस्को ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में दर्ज किया गया।
  • 1753 ई. में एदो (टोक्यो) में जन्मे कितागावा उतामारो ने उकियो (तैरती दुनिया के चित्र) नामक एक नयी चित्रशैली को जन्म दिया।

→ यूरोप में मुद्रण:

  • 11वीं शताब्दी में रेशम मार्ग से चीनी कागज यूरोप पहुँचा।
  • 1295 ई. में मार्कोपोलो (महान खोजी यात्री) चीन में लम्बे समय तक रहने के बाद अपने साथ वहाँ से वुडब्लॉक वाली छपाई की तकनीक लेकर इटली वापस आया।
  • पुस्तकों की माँग बढ़ने के साथ-साथ यूरोप के पुस्तक विक्रेता समस्त विश्व में इनका निर्यात करने लगे।
  • गुटेनबर्ग ने जैतून प्रेस का आविष्कार किया। यही जैतून प्रेस ही प्रिंटिंग प्रेस का मॉडल या आदर्श बना।
  • गुटेनबर्ग ने अपनी जैतून प्रेस से सर्वप्रथम बाईबिल छापी। इनके द्वारा निर्मित प्रेस को मुवेबल टाइप प्रिंटिंग मशीन के नाम से जाना गया।
  • 1450-1550 ई. के मध्य यूरोप के अधिकांश देशों में छापेखाने लग गए थे।
  • छापेखाने के आविष्कार से एक नये पाठक वर्ग का जन्म हुआ।
  • पुस्तकों तक पहुँच आसान हो जाने से पढ़ने की एक नयी संस्कृति का विकास हुआ।

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→  धार्मिक विवाद व मुद्रण

  • छापेखाने के आविष्कार से लोगों के विचारों के आदान-प्रदान का रास्ता खुला। अब लोग शासन के विचारों से असहमति व्यक्त करते हुए अपने विचारों को छापकर जनता में प्रचारित कर सकते थे।
  • प्रसिद्ध धर्म सुधारक मार्टिन लूथर किंग ने रोमन कैथोलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना की तथा पिच्चानवेस्थापनाओं का लेखन किया।
  • लूथर ने मुद्रण के विषय में कहा, “मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है, सबसे बड़ा तोहफा।”

→  मुद्रण और प्रतिरोध

  • मुद्रित साहित्य के बल पर कम शिक्षित लोग धर्म की भिन्न-भिन्न व्याख्याओं से परिचित हुए।
  • 17वीं व 18वीं शताब्दी के दौरान यूरोप में साक्षरता में तेजी से वृद्धि हुई।
  • यूरोप में विभिन्न सम्प्रदायों के चर्चों ने गाँवों में विद्यालयों की स्थापना की तथा उनमें किसानों व कारीगरों को शिक्षा प्रदान की जाने लगी। 18वीं शताब्दी के प्रारम्भ में यूरोप में पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ जिनमें समसामयिक घटनाओं की सूचना के साथ-साथ मनोरंजन भी होता था।
  • 18वीं शताब्दी के मध्य तक लोगों को यह विश्वास हो चुका था कि पुस्तकों के माध्यम से प्रगति संभव है। किताबें ही निरंकुशवाद व आतंकी राजसत्ता से मुक्ति दिला सकती हैं। • 18वीं शताब्दी में फ्रांसीसी उपन्यासकार लुई सेबेस्तिएँ मर्सिए ने घोषणा की, “छापाखाना प्रगति का सबसे ताकतवर औजार है, इससे बन रही जनमत की आँधी में निरंकुशवाद उड़ जाएगा।”

→  मुद्रण संस्कृति और फ्रांसीसी क्रांति

  • कई इतिहासकारों का मत है कि फ्रांसीसी क्रान्ति के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण मुद्रण संस्कृति ने ही किया था।
  • 1780 ई. के दशक तक राजशाही और उसकी नैतिकता का मखौल उड़ाने वाले साहित्य का बहुत अधिक लेखन हो चुका था।
  • 19वीं सदी के अन्त में यूरोप में प्राथमिक शिक्षा की अनिवार्यता ने पाठ्य-पुस्तकों के प्रकाशन को बढ़ावा दिया।
  • फ्रांस में मात्र बाल पुस्तकें छापने के लिए एक प्रेस अथवा मुद्रणालय स्थापित किया गया।
  • 19वीं शताब्दी में उपन्यास छपने शुरू हुए तो महिलाएँ उनकी अहम पाठक मानी गईं।
  • जेन ऑस्टिन, ब्रॉण्ट बहनें व जॉर्ज इलियट आदि प्रसिद्ध अग्रणी लेखिकाएँ थीं।

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→  तकनीकी परिष्कार व मुद्रण

  • 18वीं शताब्दी के आखिर तक प्रेस धातु से बनने लगे थे।
  • 17वीं सदी से ही किराए पर पुस्तकें देने वाले पुस्तकालय अस्तित्व में आ चुके थे।
  • 19वीं शताब्दी के मध्य तक न्यूयॉर्क के रिचर्ड एम. हो. ने शक्ति चालित बेलनाकार प्रेस का निर्माण किया।
  • 19वीं सदी में ही पत्रिकाओं ने उपन्यासों को धारावाहिक के रूप में छापकर लिखने की एक विशेष शैली को जन्म दिया।

→  भारत का मुद्रण संसार

  • भारत में प्राचीन काल से ही संस्कृत, अरबी, फारसी और विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में हस्तलिखित पांडुलिपियों की प्राचीन एवं समृद्ध परम्परा थी।
  • पाण्डुलिपियाँ ताड़ के पत्तों या हाथ से बने कागज पर नकल कर बनायी जाती थीं।
  • भारत में सर्वप्रथम प्रिंटिंग प्रेस गोवा में पुर्तगाली धर्म प्रचारकों के साथ आया था।
  • कैथोलिक पुजारियों ने सर्वप्रथम 1579 ई. में कोचीन में प्रथम तमिल पुस्तक तथा 1713 ई. में मलयालम पुस्तक छापी।
  • ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 17वीं शताब्दी के अंत तक छापेखाने का आयात करना प्रारम्भ कर दिया।
  • जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने 1780 ई. में ‘बंगाल गजट’ नामक एक साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया।
  • 19वीं सदी में भारत में अलग-अलग समूह औपनिवेशिक समाज में हो रहे परिवर्तनों से जूझते हुए धर्म की अपने-अपने अनुसार व्याख्या प्रस्तुत कर रहे थे।

→  धार्मिक सुधार पर मुद्रण का प्रभाव

  • 16वीं शताब्दी की प्रसिद्ध पुस्तक ‘तुलसीदास कृत रामचरितमानस’ का प्रथम मुद्रित संस्करण 1810 ई. में कलकत्ता से प्रकाशित हुआ।
  • 1870 ई. के दशक तक पत्र-पत्रिकाओं में सामाजिक व राजनीतिक विषयों पर टिप्पणी करते हुए कैरिकेचर व कार्टून प्रकाशित होने लगे।
  • भारत में महिलाओं की जिन्दगी व उनकी भावनाओं पर भी सामग्री का प्रकाशन होना प्रारम्भ हुआ।
  • हिन्दी भाषा में छपाई की शुरुआत 1870 ई. के दशक में हुई।

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→  महिलाएँ और मुद्रण तथा जनता

  • 20वीं शताब्दी के आरम्भ में महिलाओं के लिए मुद्रित तथा कभी-कभी उनके द्वारा सम्पादित पत्रिकाएँ लोकप्रिय हो गयीं।
  • 19वीं सदी में भारत में निर्धन वर्ग भी बाजार से पुस्तकें खरीदने की स्थिति में आ गया था।
  • 20वीं शताब्दी में भारत में सार्वजनिक पुस्तकालय खुलने लगे जिससे किताबों तक लोगों की पहुँच में वृद्धि हुई।
  • 1820 ई. के दशक में कलकत्ता सर्वोच्च न्यायालय ने प्रेस की स्वतन्त्रता को नियन्त्रित करने वाले कुछ कानून पास किए तथा कम्पनी ने ब्रिटिश शासन का उत्सव मनाने वाले अखबारों के प्रकाशन को प्रोत्साहन देना प्रारम्भ किया।
  • 1857 ई. की क्रान्ति के पश्चात् प्रेस की स्वतन्त्रता के प्रति रवैया बदल गया तथा नाराज अंग्रेजों ने देसी प्रेस को बन्द करने की माँग की।
  • 1878 ई. में आयरिश प्रेस कानून की तरह वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट भारत में लागू किया गया।

→  महत्त्वपूर्ण तिथियां व घटनाएं

तिथि चीन में स्याही लगे काठ के ब्लॉक या तखी पर कागज को रगड़कर किताबें छपना प्रारम्भ हुआ।
1. सन् 594 ई. इस अवधि के दौरान चीनी बौद्ध प्रचारक छपाई की तकनीक लेकर जापान गये।
2. सन् 768-770 ई. जापान की सबसे पुरानी पुस्तक ‘डायमण्ड सूत्र’ का प्रकाशन। इस पुस्तक में पाठ के साथ-साथ काष्ठ पर चित्र खुदे थे।
3. सन् 868 ई. मार्कोपोलो नामक महान खोजी यात्री चीन में कई वर्ष खोज करने के पश्चात् इटली वापस लौटा।
4. सन् 1295 ई. स्ट्रॉसबर्ग के योहान गुटेनबर्ग ने जैतून प्रेस का आविष्कार किया। इस मशीन के द्वारा उन्होंने सर्वप्रथम बाईबिल पुस्तक छापी। इस मशीन को मूवेबल टाइप प्रिटिंग प्रेस भी कहा जाता था।
5. सन् 1448 ई. रोमन चर्च द्वारा प्रतिबन्ध्रित पुस्तकों की सूची रखना प्रारम्भ हुआ।
6. सन् 1558 ई. कैथोलिक पुजारियों ने कोचीन में प्रथम तमिल पुस्तक का प्रकाशन किया।
7. सन् 1579 ई. कैथोलिक पुजारियों ने प्रथम मलयालम पुस्तक का प्रकाशन किया।
8. सन् 1713 ई. एदो में कितागावा उतामारो का जंन्म। इन्होंने उकियो (तैरती दुनिया के चित्र) नामक एक नयी चित्र शैली को जन्म दिया।
9. सन् 1753 ई. 1780 ई. के दशक तक राजशाही व उसकी नैंतिकता का मजाक उड़ाने वाले साहित्य का पर्याप्त लेखन हो चुका था।
10. सन् 1780 ई. जेम्स ऑगस्टस हिक्की द्वारा बंगाल गजट, नामक एक साप्ताहिक पत्रिका का सम्पादन किया गया।
11. सन् 1810 ई. तुलसीदास कृत रामचरितमानस का पहला मुद्रित संस्करण कलकत्ता से प्रकाशित।
12. सन् 1821 ई. राजा राममोहन राय द्वारा संवाद कौमुदी का प्रकाशन।
13. सन् 1857 ई. भारत में प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम।
14. सन् 1867 ई. देवबन्द मिशनरी की स्थापना जिसने मुसलमान पाठकों को रोजमर्रा का जीवन जीने का तरीका एवं सिद्धान्त बताने वाले विभिन्न फतवे जारी किये।
15. सन् 1878 ई. भारत में आयरिश प्रेस कानून की तर्ज पर वर्नाक्यूलर एक्ट लागू किया गया।
16. सन् 1907 ई. ब्रिटिश सरकार द्वारा पंजाब के क्रान्तिकारियों को कालापानी भेजा गया।
17. सन् 1908 ई. पंजाब के क्रान्तिकारियों को कालापानी भेजने का अपने पत्र ‘केसरी’ में विरोध करने पर बाल गंगाधर तिलक को अंग्रेजी सरकार द्वारा कैद कर लिया गया।
18. सन् 1919 ई. रॉलेट एक्ट के अधीन कार्यरत षड्यन्त्र समिति ने विभिन्न समाचार-पत्रों के विरुद्ध जुर्माना आदि कार्यवाहियों को और अधिक कठोर बना दिया।
19. सन् 1920 ई. इ दशक में हॉलैण्ड-इंग्लैण्ड में लोकप्रिय पुस्तकों की एक सस्ती भृंखला-शिलिंग श्रृंखला के तहत छापी गई।
20. सन् 1930 ई. आर्थिक मन्दी के कारण प्रकाशकों में पुस्तकों की बिक्री गिरने का भय व्याप्त।
21. सन् 1938 ई. कानपुर के मिल मजदर काशीबाबा ने छोटे-बडे सवाल लिखकर और छापकर जातीय तथा वर्गीय शोषण के मध्य का रिश्ता समझाने का त्रयास किया।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. खुशनवीसी: सुलेखन। सुन्दर एवं कलात्मक लेखन कला को खुशनवीसी (सुलेखन) कहा जाता है।

2. वेलम: चर्मपत्र अथवा जानवरों के चमड़े से बनी लेखन की सतह को वेलम कहा जाता है।

3. गाथा गीत: लोकगीत का ऐतिहासिक आख्यान जिसे गाया या सुनाया जाता है।

4. कम्पोजीटर: छपाई के लिए इबारत कम्पोज करने वाला व्यक्ति कम्पोजीटर कहलाता है।

5. गैली: वह धात्विक फ्रेम जिसमें टाइप बिछाकर इबारत बनायी जाती थी।

6. शराबघर: वह स्थान जहाँ व्यक्ति शराब पीने, कुछ खाने व मित्रों से मिलने व विचार-विमर्श के लिए आते थे।

7. प्लाटेन: लेटर प्रेस छपाई में प्लाटेन एक बोर्ड होता है जिसे कागज के पीछे दबाकर टाइप की छाप प्राप्त की जाती थी। पहले यह बोर्ड काठ का होता था, बाद में यह इस्पात का बनने लगा।

8. प्रोटेस्टेंट धर्म सुधार: 16वीं शताब्दी में यूरोप में रोमन कैथोलिक चर्च में सुधार का आन्दोलन। इस आन्दोलन से कैथोलिक ईसाई मत के विरोध में कई धाराएँ निकलीं। मार्टिन लूथर किंग प्रोटेस्टेंट सुधारकों में से एक थे।

9. धर्म विरोधी: इन्सान अथवा विचार जो चर्च की मान्यताओं से असहमत हों। मध्य काल में चर्च विधर्मियों अथवा धर्म द्रोह के प्रति कठोर था। उसे लगता था कि लोगों की आस्था, उनके विश्वास पर मात्र उसका अधिकार है जहाँ उसकी बात ही अन्तिम है।

10. इन्कवीजीशन: इसे धर्म अदालत भी कहते हैं। विधर्मियों की पहचान करने एवं दण्ड देने वाली रोमन कैथोलिक संस्था।

11. पंचांग: सूर्य व चन्द्रमा की गति, ज्वार-भाटा के समय और लोगों के दैनिक जीवन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ देने वाला वार्षिक प्रकाशन पंचांग कहलाता है।

12. सम्प्रदाय: किसी धर्म का एक उपसमूह सम्प्रदाय कहलाता है।

13. चेयबुक (गुटका): पॉकेट बुक के आकार की पुस्तकों के लिए प्रयोग किया जाने वाला शब्द। सामान्यतया इन्हें फेरीवाले बेचते थे। ये गुटका सोलहवीं सदी की मुद्रण क्रान्ति के समय से बहुत अधिक लोकप्रिय हुआ।

14. उलेमा: इस्लामी कानून व शरियत के विद्वान।

15. निरंकुशवाद: शासन संचालन की एक ऐसी व्यवस्था जिसमें किसी एक व्यक्ति को सम्पूर्ण शक्ति प्राप्त हो तथा उस पर न संवैधानिक पाबन्दी लगी हो और न ही कानूनी पाबन्दी।

16. फतवा: अनिश्चय अथवा असमंजस की स्थिति में इस्लामी कानून को जानने वाले विद्वान, सामान्यतया मुफ्ती के द्वारा की जाने वाली वैधानिक घोषणा।

17. बिब्लियोथीक ब्ल्यू: फ्रांस में छपने वाली सस्तो मूल्य को छोटी पुस्तकें। इनकी छपाई घटिया कागज पर होती थी तथा ये पुस्तकें नीली जिल्द में बँधी होतीगीं।

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JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 4 औद्योगीकरण का युग 

JAC Board Class 10th Social Science Notes History Chapter 4 औद्योगीकरण का युग

→ औद्योगीकरण का सूत्रपात

  • सन् 1900 में म्यूजिक कंपनी ई.टी.पॉल द्वारा संगीत की एक किताब प्रकाशित की गई जिसकी जिल्द पर ‘नयी सदी के उदय’ (डॉन ऑफ द सेंचुरी) का ऐलान करने वाली तस्वीर दी गई।
  • विश्व स्तर पर विभिन प्रकार की तस्वीरें आधुनिक विश्व की विजय गाथा को प्रस्तुत करती हैं। इस गाथा में आधुनिक विश्व को तीव्र तकनीकी परिवर्तनों, आविष्कारों, मशीनों, कारखानों, रेलवे एवं वाष्पपोतों की दुनिया के रूप में प्रदर्शित किया गया है।
  • 17वीं व 18वीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के व्यापारी गाँव में किसानों व कारीगरों को पैसे देकर उनसे अन्तर्राष्ट्रीय बाजार के लिए उत्पादन करवाते थे। इस प्रकार की व्यवस्था से शहरों व गाँवों के मध्य एक घनिष्ठ सम्बन्ध विकसित हो गया।

JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 4 औद्योगीकरण का युग 

→ कारखानों का उदय

  • इंग्लैण्ड में सर्वप्रथम 1730 ई. के दशक में कारखानों का खुलना प्रारम्भ हुआ।
  • कपास (कॉटन) नए युग का प्रथम प्रतीक थी।
  • 18वीं शताब्दी में रिचर्ड आर्कराइट ने सूती कपड़ा मिल को रूपरेखा पेश की।
  • 19वीं शताब्दी के आरम्भ में कारखाने इंग्लैंड के भूदृश्य का अभिन्न अंग बने।

→ औद्योगिक परिवर्तन की बढ़ती रफ्तार

  • सूती उद्योग व कपास उद्योग ब्रिटेन के सबसे अधिक विकसित उद्योग थे।
  • 1840 ई. के दशक में औद्योगीकरण के प्रथम चरण में कपास उद्योग सबसे बड़ा उद्योग बन चुका था। इसके पश्चात् लौह व इस्पात उद्योग इससे आगे निकल गये।
  • न्यूकॉमेन द्वारा बनाए गए भाप के इंजन में सुधार कर जेम्स वॉट गन् 1871 ई. में नए इंजन का पेटेंट करवाया। उसके दोस्त मैथ्यू बूल्टन ने इस मॉडल का उत्पादन किया।
  • महारानी विक्टोरिया के समय में ब्रिटेन में मानवीय श्रम की कोई कमी नहीं थी। अधिकांश उत्पाद केवल हाथ से ही तैयार किये जाते थे। उच्च वर्ग के लोगों (कुलीन व पूंजीपति वर्ग) द्वारा हाथों से बनी वस्तुओं को तरजीह देना इसका मुख्य कारण था।
  • जिन देशों में श्रमिकों की कमी होती थी वहाँ कारखानों के मालिक मशीनों का प्रयोग करते थे।
  • 1840 ई. के दशक के पश्चात् शहरों में निर्माण की गतिविधियों में तीव्र गति से वृद्धि होने से लोगों के लिए नये रोजगार के अवसर उत्पन्न हुए।

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→ भारतीय वस्त्र उद्योग

  • उद्योगों में मशीनीकरण से पहले अन्तर्राष्ट्रीय वस्त्र बाजार में भारत के रेशमी व सूती वस्त्रों का ही एकाधिकार रहता था।
  • ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत में राजनीतिक सत्ता स्थापित कर व्यापार पर एकाधिकार करना प्रारम्भ कर दिया।
  • ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने वस्तु व्यापार में सक्रिय व्यापारियों एवं दलालों को समाप्त करने एवं बुनकरों पर अत्यधिक प्रत्यक्ष नियन्त्रण स्थापित करने की कोशिश की।
  • कम्पनी ने वेतनभोगी कर्मचारियों (जिन्हें गुमाश्ता कहा जाता था) की नियुक्ति की जो बुनकरों पर निगरानी रखने, माल एकत्रित करने तथा कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने जैसे काम करते थे।
  • 19वीं सदी के प्रारम्भ में ब्रिटेन के वस्तु उत्पादों के निर्यात में अत्यधिक वृद्धि हुई।
  • भारत में मैनचेस्टर का कपड़ा आने से भारत के कपड़ा बुनकरों के समक्ष अपने जीवनयापन की समस्या उत्पन्न हो गई।
  • भारत में प्रथम वस्त्र कारखाना बम्बई (मुम्बई) में 1854 ई. में स्थापित हुआ था।
  • बंगाल में देश की प्रथम जूट मिल 1855 ई. में तथा 1862 ई. में दूसरी मिल शुरू हुई।
  • भारत के प्रारम्भिक उद्यमियों में द्वारकानाथ टैगोर, डिनशॉ पेटिट, जमशेद नुसरवानजी टाटा, सेठ हुकुमचन्द आदि थे।
  • जैसे-जैसे भारतीय व्यापार पर यूरोपीय औपनिवेशिक नियन्त्रण स्थापित होता चला गया वैसे-वैसे भारतीय व्यापारियों का व्यवसाय समाप्त होने लगा। भारत में कारखानों के विस्तार ने मजदूरों की माँग में वृद्धि कर दी।
  • नए मजदूरों की भर्ती के लिए उद्योगपति प्रायः एक जॉबर रखते थे जो मुख्यतः कोई पुराना व विश्वस्त कर्मचारी होता था।

→ औद्योगिक विकास का अनूठापन

  • भारत में कई यूरोपीय कम्पनियों ने ब्रिटिश सरकार से सस्ती कीमत पर जमीन लेकर चाय व कॉफी के बागानों की स्थापना की एवं खनन, नील व जूट व्यवसाय में धन का निवेश किया।
  • प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् छोटे-छोटे उद्योगों की मात्रा में तीव्र गति से वृद्धि हुई तथा मैनचेस्टर को भारतीय बाजार में पुरानी हैसियत पुनः हासिल नहीं हो पायी।
  • बीसवीं सदी में हथकरघों पर बने कपड़े के उत्पादन में तीव्र गति से वृद्धि होने लगी।

→ विज्ञापन और बाजार

  • ब्रिटिश निर्माताओं ने विज्ञापनों के माध्यम से नये उपभोक्ता उत्पन्न किये।
  • औद्योगीकरण के प्रारम्भ से ही विज्ञापनों ने विभिन्न उत्पादों के बाजार को फैलाने में एवं एक नयी उपभोक्ता संस्कृति के निर्माण में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।
  • मैनचेस्टर के उद्योगपति भारत में बेचने वाले कपड़ों के बण्डलों पर लेबल (जिस पर ‘मेड इन नचेस्टर’ लिखा होता था) लगाते थे। इससे खरीदारों को कम्पनी का नाम और उत्पादन के स्थान का पता चल जाता था। इसके अलावा लेबल वस्तुओं की गुणवत्ता का भी प्रतीक था।
  • 19वीं शताब्दी के अंत में निर्माताओं ने अपने उत्पादों को बेचने के लिए कैलेण्डरों को छपवाना शुरू किया जिन पर देवताओं की तस्वीर छपी होती थी।
  • भारतीय निर्माताओं के विज्ञापन स्वदेशी वस्तुओं के राष्ट्रवादी संदेश के वाहक बन गये थे।

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→  महत्त्वपूर्ण तिथियाँ एवं घटनाएँ |

तिथि घटनाएँ
1. 1730 ई. इंग्लैण्ड में सबसे पहले 1730 ई. के दशक में कारखाने खुले।
2. 1764 ई. जेम्स हरग्रीव्ज द्वारा स्पिनिंग जेनी नामक कताई की मशीन का निर्माण किया गया।
3. 1772 ई. ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अफसर हेनरी पतूलो ने भारतीय वस्त्रों की प्रशंसा की।
4. 1780 ई. बम्बई व कलकत्ता का व्यापारिक बन्दरगाहों के रूप में विकास प्रारम्भ हुआ।
5. 1840 है. इस दशक तक औद्योगीकरण के प्रथम चरण में कपास उद्योग ब्रिटेन का सबसे बड़ा उद्योग बना।
6. 1854 ई. बम्बई में प्रथम कपड़ा मिल की स्थापना हुई।
7. 1871 ह. जेम्स वॉट ने न्यूकॉमेन द्वारा बनाये गये भाप के इंजन में सुधार कर नये इंजन का पेटेंट करा लिया।
8. 1874 ई. मद्रास (वर्तमान चेन्नई)में प्रथम कताई एवं बुनाई मिल की स्थापना हुई।
9. 1900 ई. ई. टी. पॉल म्यूजिक कम्पनी द्वारा संगीत की एक पुस्तक का प्रकाशन, जिसके मुख पृष्ठ पर दर्शायी तस्वीर में ‘नई सदी के उदय’ की घोषणा की गयी थी।
10. 1901 ई. उद्योगपति जे. एन. टाटा ने जमशेदपुर में भारत का पहला लौह इस्पात संयन्त्र स्थापित किया।
11. 1917 ई. मारवाड़ी व्यवसायी सेठ हुकुमचन्द द्वारा कलकत्ता (कोलकाता) में पहली जूट मिल स्थापित की गयी।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. प्राच्य: भूमध्य सागर के पूर्व में स्थित देश। सामान्यतया यह शब्द एशिया के लिए प्रयोग किया जाता है। पश्चिम के देशों की नजर में प्राच्य क्षेत्र पूर्व आधुनिक, पारस्परिक एवं रहस्यमय थे।

2. आदि: किसी वस्तु की प्रथम अथवा प्रारम्भिक अवस्था का संकेत।

3. स्टेपलर: ऐसा व्यक्ति जो देशों के हिसाब से ऊन को स्टेपल करता है अथवा छाँटता है।

4. कार्डिंग: वह प्रक्रिया जिसमें ऊन या कपास आदि रेशों को कताई के लिए तैयार किया जाता है।

5. फुलर: ऐसा व्यक्ति जो फुल करता है अर्थात् चुन्नटों के सहारे कपड़े को समेटता है।

6. स्पिनिंग जेनी: जेम्स हरग्रीब्ज द्वारा सन् 1764 ई. में बनाई गई इस मशीन ने कताई की प्रक्रिया तेज कर दी। इस मशीन के प्रयोग से श्रमिकों की माँग घट गयी। इस मशीन का एक ही पहिया घुमाने वाला एक श्रमिक अनेक तकलियों को घुमा देता था और एक साथ कई धागे बनने लगते थे।

7. बुनकर: कपड़ों की बुनाई करने वाला व्यक्ति।

8. जॉबर: इसे अलग-अलग क्षेत्रों में मिस्त्री या सरदार भी कहा जाता था। यह उद्योगपतियों का पुराना व विश्वस्त कर्मचारी होता था। वह कारखानों में काम करने के लिए अपने गाँव से लोगों को लाता था। बदले में वह उनसे धन व उपहार लेता था।

9. फ्लाई शटल: रस्सियों एवं पुलियों के माध्यम से चलने वाला एक यांत्रिक औजार, जिसका बुनाई के लिए प्रयोग किया जाता है। यह क्षैतिज धागे (ताना) को लम्बवत् धागे (बाना) में पिरो देती है। इसके आविष्कार से बुनकरों को बड़े करघे चलाना एवं चौड़े अरज का कपड़ा बनाने में बहुत मदद मिली।

10. आदि: औद्योगीकरण-औद्योगीकरण का प्रारम्भिक चरण जिसमें थोक उत्पादन अन्तर्राष्ट्रीय बाजार के लिए कारखानों में नहीं वरन् विकेन्द्रित इकाइयों में ले जाया जाता था।

11. कॉटेजर: यूरोप में अपने जीवनयापन के लिए साझा ज़मीनों से जलावन की लकड़ी, बोरियाँ, सब्जियाँ, भूसा और चारा आदि बीनकर काम चलाने वाले छोटे किसान।

12. गुमाश्ता: ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा बुनकरों पर निगरानी रखने, माल इकट्ठा करने एवं कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने के लिए नियुक्त वेतनभोगी कर्मचारी।

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JAC Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 8 लोकतंत्र की चुनौतियाँ

JAC Board Class 10th Social Science Notes Civics Chapter 8 लोकतंत्र की चुनौतियाँ

  • समकालीन विश्व में लोकतंत्र शासन का एक प्रमुख रूप है।
  • सम्पूर्ण विश्व के एक-चौथाई भाग में अभी भी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था नहीं है।
    विश्व के एक-चौथाई भागों में लोकतंत्र स्थापित करने की चुनौती है।
  • विश्व की अधिकांश लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के समक्ष अपना विस्तार करना एक चुनौती है।
  • प्रत्येक लोकतांत्रिक व्यवस्था के समक्ष लोकतंत्र को मजबूत करने की एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।
  • राजनीतिक सुधारों का कार्य मुख्य रूप से राजनीतिक कार्यकर्ता, राजनीतिक दल, आन्दोलन एवं राजनीतिक रूप से सतर्क नागरिकों के द्वारा ही किया जा सकता है।
  • लोगों को जागरूक, जानकार एवं लोकतंत्र के रखवाले के तौर पर सक्रिय करने के लिए सूचना का अधिकार एक महत्त्वपूर्ण कानून है जो भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाता है।
  • लोकतंत्र शासन का वह स्वरूप है जिसमें लोग अपने शासकों का चुनाव स्वयं करते हैं।
  • चुनाव में लोगों को वर्तमान शासकों को बदलने एवं अपनी पसंद बताने का पर्याप्त अवसर और विकल्प मिलना चाहिए।
  • सरकारों और सामाजिक समूहों के मध्य सत्ता की साझेदारी लोकतंत्र के लिए अति आवश्यक है।
  • अच्छे लोकतंत्र की कोई बनी-बनाई परिभाषा नहीं है। अच्छा लोकतंत्र वही है जैसे उसे हम सोचते तथा बनाने की आकांक्षा रखते हैं।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. चुनौती: हम आमतौर पर उन्हीं मुश्किलों को चुनौती कहते हैं जो महत्त्वपूर्ण तो हैं लेकिन जिन पर जीत भी हासिल की जा सकती है। यदि किसी मुश्किल के भीतर ऐसी संभावना है कि उस मुश्किल से छुटकारा मिल सके तो उसे हम चुनौती कहते हैं।

2. लोकतंत्र की चुनौतियाँ: एक देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुनिश्चित बनाने के लिए आने वाली विभिन्न समस्याएँ लोकतंत्र की चुनौतियाँ कहलाती हैं।

3. राजनीतिक सुधार: लोकतंत्र की विभिन्न चुनौतियों के बारे में सभी सुझाव या प्रस्ताव राजनीतिक सुधार या लोकतांत्रिक सुधार कहलाते हैं।

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JAC Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 7 लोकतंत्र के परिणाम 

JAC Board Class 10th Social Science Notes Civics Chapter 7 लोकतंत्र के परिणाम

→ लोकतंत्र के परिणाम

  • लोकतन्त्र शासन की अन्य व्यवस्थाओं से श्रेष्ठ है क्योंकि यह नागरिकों में समानता को बढ़ावा देता है, व्यक्ति की गरिमा को बढ़ाता है तथा इसमें गलतियों को सुधारने की गुंजाइश रहती है।
  • विश्व के अधिकांश लोग अन्य किसी भी वैकल्पिक शासन व्यवस्थाओं की तुलना में लोकतन्त्र को अधिक पसन्द करते है।

→  उत्तरदायी, जिम्मेदार व वैध शासन

  • लोकतन्त्र में सबसे बड़ी चिन्ता का विषय यह होता है कि लोगों को अपना शासक चुनने का अधिकार एवं शासकों पर नियन्त्रण बरकरार रहे।
  • लोकतन्त्र में फैसले नियम-कानून के अनुसार होते हैं।
  • लोकतन्त्र में नागरिकों को फैसले लेने में नियमों के पालन होने का पता लगाने का अधिकार होने के साथ ही इसके साधन भी उपलब्ध होते हैं जिसे पारदर्शिता कहते हैं।
  • लोकतान्त्रिक सरकार नागरिकों को निर्णय प्रक्रिया में हिस्सेदार बनाने एवं स्वयं को उसके प्रति जवाबदेह बनाने वाली कार्यविधि विकसित कर लेती है।
  • सरकार व उसके कामकाज के बारे में नागरिकों द्वारा सूचना के अधिकार के तहत जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
  • वैध शासन व्यवस्था के मामले में लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था निश्चित रूप से अन्य शासन व्यवस्थाओं से श्रेष्ठ है।

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→ आर्थिक संवृद्धि और विकास

  • सन् 1950 से 2000 ई. के मध्य सभी लोकतान्त्रिक शासन एवं तानाशाही शासन व्यवस्था के कामकाज की तुलना करने पर पाया गया कि आर्थिक समृद्धि के मामले में तानाशाही शासन व्यवस्था वाले देशों का रिकॉर्ड थोड़ा अच्छा है।
  • लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था राजनीतिक समानता पर आधारित होती है।
  • वास्तविक जीवन में लोकतान्त्रिक व्यवस्थाएँ आर्थिक असमानताओं को कम करने में अधिक सफल नहीं हो पायी हैं।

→  सामाजिक विविधताओं में सामंजस्य

  • लोकतान्त्रिक व्यवस्था से सद्भावपूर्ण सामाजिक जीवन उपलब्ध करवाने की उम्मीद करना उचित है।
  • लोकतन्त्र तब तक ही लोकतन्त्र रहता है जब तक प्रत्येक नागरिक को किसी-न-किसी मौके पर बहुमत का हिस्सा बनने का अवसर मिलता है।
  • व्यक्ति की गरिमा बनाए रखने एवं स्वतन्त्रता के मामले में लोकतान्त्रिक व्यवस्था किसी भी अन्य शासन प्रणाली से बहुत अच्छी है।
  • भारत में लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था ने कमजोर एवं भेदभाव का शिकार हुई जातियों के लोगों के समान दर्जे और समान अवसर के दावे को बल दिया है।

JAC Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 7 लोकतंत्र के परिणाम 

→  प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. पारदर्शिता: लोकतन्त्र में यदि कोई नागरिक यह जानना चाहे कि फैसले लेने में नियमों का पालन हुआ है या नहीं तो वह इसका पता कर सकता है। उसे यह न सिर्फ जानने का अधिकार है बल्कि उसके पास इसके साधन भी उपलब्ध हैं, इसे ही पारदर्शिता कहते हैं।

2. लोकतन्त्र: शासन की वह व्यवस्था, जिसमें शासन की अन्तिम शक्ति जनता के हाथों में रहती है।

3. तानाशाही व्यवस्था: शासन की वह व्यवस्था जिसमें समस्त शक्तियाँ एक ही व्यक्ति के हाथ में हों, उसे तानाशाही शासन व्यवस्था कहा जाता है। इस शासन व्यवस्था में तानाशाह शासक अपनी इच्छानुसार शासन चलाता है तथा किसी को भी उसका विरोध करने की इजाज़त नहीं होती।

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JAC Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 6 राजनीतिक दल 

JAC Board Class 10th Social Science Notes Civics Chapter 6 राजनीतिक दल

→ राजनीतिक दल

  • लोकतन्त्र में राजनीतिक दलों का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान होता है।
  • अधिकांश लोग आमतौर पर राजनीतिक दलों के बारे में अच्छी राय नहीं रखते हैं। सामाजिक व राजनीतिक विभाजनों के लिए राजनीतिक दलों को ही दोषी माना जाता है।|
  • राजनीतिक दल चुनाव लड़ने एवं सरकार में राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने के उद्देश्य से कार्य करते हैं।
  • किसी भी राजनीतिक दल की पहचान उसकी नीतियों और उसके सामाजिक आधार से होती है।
  • राजनीतिक दल के तीन प्रमुख अंग हैं-नेता, सक्रिय सदस्य एवं अनुयायी या समर्थक।

→ राजनीतिक दल के कार्य

  • अधिकांश लोकतांत्रिक देशों में चुनाव राजनीतिक दलों द्वारा खड़े किए गए उम्मीदवारों के मध्य लड़ा जाता है।
  • राजनीतिक दल अलग-अलग नीतियों एवं कार्यक्रमों को मतदाताओं के समक्ष रखते हैं और मतदाता अपनी पसन्द की नीतियाँ व कार्यक्रम का चुनाव करते हैं।
  • राजनीतिक दल देश के कानून निर्माण में निर्णायक भूमिका का निर्वाह करते हैं।
  • राजनीतिक दल ही सरकार का गठन करते हैं एवं उसका संचालन करते हैं।
  • चुनाव में पराजित होने वाला दल शासक दल के विरोधी पक्ष की भूमिका का निर्वाह करता है।

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→ राजनीतिक दलों का योगदान

  • जनमत निर्माण में राजनीतिक दलों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। ये विभिन्न मुद्दों को उठाकर उन पर बहस करते हैं।
  • राजनीतिक दल ही सरकार द्वारा संचालित कल्याणकारी कार्यक्रमों को जनता तक पहुँचाते हैं।

→ राजनीतिक दलों का उदय

  • संसार के लगभग सभी देशों में राजनीतिक दल मिलते हैं।
  • राजनीतिक दलों का जन्म प्रतिनिधित्व पर आधारित लोकतांत्रिक व्यवस्था के उभार के साथ जुड़ा हुआ है।
  • लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था वाले देशों में नागरिकों का कोई भी समूह राजनीतिक दल का निर्माण कर सकता है।
  • भारतीय चुनाव आयोग द्वारा पंजीकृत राजनीतिक दलों की संख्या 750 से भी अधिक है।
  • कई देशों में सिर्फ एक ही दल को सरकार बनाने व चलाने की अनुमति होती है जैसा कि चीन में देखने को मिलता है जहाँ सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी को शासन करने की अनुमति है।
  • एक दलीय व्यवस्था एक लोकतान्त्रिक विकल्प नहीं है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका व ग्रेट ब्रिटेन में दो दलीय व्यवस्था तथा भारत में बहुदलीय व्यवस्था है।
  • जब किसी बहुदलीय व्यवस्था में कई पार्टियाँ चुनाव लड़ने तथा सत्ता में आने के लिए एकजुट होती हैं तब इसे गठबन्धन या मोर्चा कहते हैं।
  • विश्व के संघीय व्यवस्था वाले लोकतन्त्रों में दो प्रकार के राजनीतिक दल मिलते हैं। संघीय इकाइयों में से केवल एक इकाई में अस्तित्व रखने वाले दल तथा कई या संघ की सभी इकाइयों में अस्तित्व रखने वाले दल।

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→ राष्ट्रीय व क्षेत्रीय दल:

  • चुनाव आयोग में प्रत्येक पार्टी को अपना पंजीकरण कराना पड़ता है। चुनाव आयोग द्वारा राजनीतिक दलों को विभिन्न नियमों के आधार पर मान्यता प्राप्त दल व राष्ट्रीय दल आदि की मान्यता प्रदान की जाती है।
  • भारत में 2017 तक सात दल राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त थे।
  • 1 जनवरी, 1998 को ममता बनर्जी के नेतृत्व में बनी ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस को 2016 में राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता मिली।
  • 1984 ई. में स्व. कांशीराम के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी का गठन हुआ। यह पार्टी मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में सक्रिय है।
  • 1980 ई. में पुराने भारतीय जनसंघ को पुनर्जीवित करके भारतीय जनता पार्टी का निर्माण हुआ।
  • भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सी.पी.आई.) का गठन 1925 ई. में हुआ था।
  • भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी (सी. पी. आई.-एम) का गठन 1964 ई. में हुआ था। यह मार्क्सवाद व लेनिनवाद में आस्था रखती है।
  • 1885 ई. में गठित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस विश्व के सबसे पुराने दलों में से एक है।
  • राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का निर्माण 1999 ई. में हुआ था। यह पार्टी कांग्रेस से विभाजित होकर बनी थी।
  • कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सी.पी.आई-एम), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सी.पी.आई.), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अतिरिक्त अन्य सभी प्रमुख दलों को चुनाव आयोग ने राज्यीय (प्रान्तीय) दल के रूप में मान्यता दी है। इन्हें क्षेत्रीय दल भी कहते हैं।

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→ राजनीतिक दलों की चुनौतियाँ

  • राजनीतिक दलों के समक्ष अनेक चुनौतियाँ हैं। लोकतन्त्र का प्रभावी उपकरण बने रहने के लिए राजनीतिक दलों को इन चुनौतियों का सामना करना चाहिए।
  • राजनैतिक दलों के समक्ष प्रमुख चुनौतियों में पार्टी के भीतर आन्तरिक लोकतंत्र का न होना, वंशवाद का होना, धन व अपराधियों की बढ़ती घुसपैठ, पार्टियों के मध्य विकल्पहीनता की स्थिति होना आदि प्रमुख हैं।

→ दल-बदल और दलगत सुधार

  • विधायकों एवं संसदों को दल बदल करने से रोकने के लिए संविधान में संशोधन किया गया है।
  • राजनीतिक दलों पर लोगों द्वारा दबाव बनाना तथा सुधार की इच्छा रखने वालों का खुद राजनीतिक दलों में शामिल होना राजनीतिक दलों के सुधारने के दो अन्य तरीके हैं।
  • लोकतन्त्र की गुणवत्ता लोकतंत्र में लोगों की भागीदारी से ही निर्धारित होती है।

JAC Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 6 राजनीतिक दल 

→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

1. राजनीतिक दल: राजनीतिक दल लोगों का एक समूह होता है जो चुनाव लड़ने तथा सरकार में राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने के उद्देश्य से कार्य करता है।

2. एक दलीय शासन व्यवस्था: कई देशों में सिर्फ एक ही दल को सरकार बनाने और चलाने की अनुमति होती है। इसे एक दलीय शासन व्यवस्था कहा जाता है।

3. दो दलीय व्यवस्था: कुछ देशों में सत्ता आमतौर पर दो मुख्य दलों के मध्य ही बदलती रहती है। इसे दो दलीय व्यवस्था कहते हैं।

4. बहुदलीय व्यवस्था: जब अनेक दल सत्ता के लिए होड़ में होते हैं और दो दलों से अधिक के लिए अपने बल पर या दूसरों से गठबंधन करके सत्ता में आने का ठीक-ठाक अवसर हो तो उसे बहुदलीय व्यवस्था कहते हैं।

5. गठबंधन: इसे मोर्चा भी कहते हैं। जब किसी बहुदलीय व्यवस्था में अनेक पार्टियाँ चुनाव लड़ने तथा सत्ता में आने के लिए आपस में हाथ मिला लेती हैं तो इसे गठबंधन कहते हैं।

6. शासक दल: वह राजनीतिक दल जिसकी सरकार होती है। राष्ट्रीय दल-वह दल जिसका आधार व्यापक हो तथा लोकसभा चुनाव में पड़े कुल वोटों का अथवा चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में पड़े कुल वोटों का 6 प्रतिशत प्राप्त करता है और लोकसभा के चुनाव में कम-से-कम चार सीटों पर विजय प्राप्त करता है तो उसे राष्ट्रीय दल की मान्यता मिलती है।

7. मान्यता प्राप्त दल: चुनाव आयोग से कुछ विशेषाधिकार और अन्य लाभ प्राप्त करने वाले बड़े व स्थापित राजनीतिक दलों को मान्यता प्राप्त दल कहते हैं।

8. प्रांतीय दल: इन्हें क्षेत्रीय दल भी कहते हैं। वह दल जिसका जन्म किसी विशेष क्षेत्र अथवा राज्य में होता है तथा वे उस क्षेत्र के निवासियों के लिए कार्य करते हैं, प्रान्तीय दल कहलाते हैं।

9. दल-बदल: चुनावों में किसी दल विशेष के टिकट पर चुने जाने के पश्चात् उस राजनीतिक दल को छोड़कर अन्य किसी राजनीतिक दल में सम्मिलित हो जाना दल-बदल कहलाता है।

10. शपथ-पत्र: एक लिखित दस्तावेज़ जो किसी अधिकारी को सौंपा गया हो तथा जिसमें कोई व्यक्ति अपने बारे में निजी सूचना देता है और उनके सही होने के बारे में शपथ उठाता है। इस पर सूचना देने वाले के हस्ताक्षर भी होते हैं।

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JAC Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 5 जन-संघर्ष और आंदोलन 

JAC Board Class 10th Social Science Notes Civics Chapter 5 जन-संघर्ष और आंदोलन

→ लोकतंत्र एवं दबाव समूह

  • लोकतंत्र में सत्ताधारी स्वच्छन्द नहीं हैं। वे अपने ऊपर पड़ने वाले प्रभाव एवं दबाव से मुक्त नहीं रह सकते।
  • लोकतंत्र में प्रायः हितों एवं नजरियों के द्वन्द्व की अभिव्यक्ति संगठित तरीके से होती है। जिनके पास सत्ता होती है उन्हें परस्पर विरोधी माँगों एवं दबावों में संतुलन बैठाना पड़ता है।

→ नेपाल में जनसंघर्ष

  • हमारे पड़ोसी देश नेपाल में लोकतन्त्र 1990 ई. के दशक में स्थापित हुआ था।
  • फरवरी 2005 में नेपाल के राजा ज्ञानेन्द्र ने तत्कालीन प्रधानमंत्री को अपदस्थ कर जनता द्वारा निर्वाचित सरकार को भंग कर दिया।
  • अप्रैल 2006 ई. में नेपाल में एक जन आन्दोलन हुआ जिसका उद्देश्य शासन की बागडोर राजा के हाथ से लेकर पुनः जनता के हाथों में सौंपना था।
  • संसद की सभी बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने संयुक्त रूप से एक सप्तदलीय गठबन्धन (सेवेन. पार्टी अलायन्स एस.पी.ए.) का गठन किया तथा देश की राजधानी काठमांडू में चार दिवसीय बन्द. का आह्वान किया जो जल्द ही अनियतकालीन बन्द में परिवर्तित हो गया। आन्दोलनकारियों ने 21 अप्रैल का राजा को ‘अल्टीमेटम’ दे दिया।
  • 24 अप्रैल, 2006 अल्टीमेटम का अंतिम दिन था। इस दिन राजा को जनता की तीन माँगों को मानना पड़ा। सप्तदलीय गठबंधन (एस. पी. ए.) ने गिरिजा प्रसाद कोईराला को अन्तरिम सरकार का प्रधानमन्त्री चुना।
  • संसद को बहाल किया गया तथा इसने अपनी बैठक में कई कानून पारित किए जिसमें राजा की कई शक्तियों को वापस लेने का भी कानून था। इस संघर्ष को नेपाल के लोकतन्त्र के लिए ‘दूसरा आन्दोलन’ कहा गया।
  • नेपाल 2008 में राजतन्त्र को समाप्त कर संघीय लोकतान्त्रिक गणराज्य बना तथा 2015 में यहाँ एक नया संविधान अंगीकार किया गया।

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→ बोलिविया का जल युद्ध:

  • बोलिविया एक गरीब लातिनी अमेरिकी देश है। विश्व बैंक ने बोलिवियाई सरकार पर नगरपालिका द्वारा की जा रही जल की आपूर्ति से अपना नियन्त्रण छोड़ने हेतु दबाव बनाया।
  • बोलिविया सरकार द्वारा कोचबंबा शहर में जलापूर्ति के अधिकार एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी को बेचने तथा उसके द्वारा पानी के मासिक बिल में अत्यधिक मात्रा में वृद्धि किये जाने के कारण जनता भड़क उठी। अन्त में सरकार को अपना निर्णय वापस लेना पड़ा। इस आन्दोलन को ‘बोलिविया के जल युद्ध’ के नाम से जाना जाता है।

→ लोकतंत्र और जनसंघर्ष

  • लोकतन्त्र का विकास जनसंघर्ष के माध्यम से होता है तथा लोकतान्त्रिक संघर्ष का समाधान जनता की व्यापक गोलबंदी (लामबन्दी) के माध्यम से होता है।
  • बोलिविया में पानी के निजीकरण के विरुद्ध संचालित आन्दोलन का नेतृत्व ‘फेडेकोर’ (FEDECOR) नामक संगठन ने किया था।
  • बोलिविया की ‘सोशलिस्ट पार्टी’ ने भी इस आन्दोलन को समर्थन दिया। इस पार्टी ने 2006 में देश की सत्ता प्राप्त की।

JAC Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 5 जन-संघर्ष और आंदोलन 

→ दबाव समूह और आंदोलन

  • जब समान पेशे, हित, आकांक्षा अथवा मत के लोग एक समान उद्देश्य की प्राप्ति हेतु एकजुट होते हैं तब दबाव समूह का निर्माण होता है।
  • वर्ग विशेष के हित समूह समाज के किसी विशेष हिस्से अथवा समूह के हितों को बढ़ावा देते हैं जबकि जन-सामान्य के हित समूह या लोग कल्याणकारी समूह किसी विशेष हित की जगह सामूहिक हित का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • दबाव समूह एवं आन्दोलन अपने लक्ष्य एवं गतिविधियों के लिए जनता का समर्थन व सहानुभूति प्राप्त करने के लिए अनेक तरीके अपनाते हैं जिनमें सूचना अभियान चलाना, बैठकें आयोजित करना, मीडिया को प्रभावित करना, हड़ताल करना, सरकार के काम-काज में बाधा डालना, राजनीतिक दल बनाना व राजनीतिक दलों द्वारा अपने मुद्दे उठवाना आदि प्रमुख है।
  • यद्यपि दबाव समूह और आन्दोलन समह दलीय राजनीति में स्पष्ट रूप से भाग नहीं लेते लेकिन वे राजनीतिक दलों पर प्रभाव डालते हैं। दबाव समूह एवं आन्दोलन से लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हुई हैं।
  • विभिन्न दबाव समूहों के सक्रिय रहने से कोई एक समूह समाज के ऊपर प्रभुत्व स्थापित नहीं कर सकता। इनसे सरकार को परस्पर विरोधी हितों के मध्य सामंजस्य बैठाना एवं शक्ति संतुलन करना सम्भव होता है।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. माओवादी: चीमी क्रांति के नेता माओ की विचारधारा का अनुसरण करने वाले साम्यवादी। माओवादी श्रमिकों और किसानों के शासन को स्थापित करने के लिए सशस्त्र क्रांति के माध्यम से सरकार को उखाड़ फेंकना चाहते हैं।

2. दबाव समूह: मान हित वाले लोगों के समूह को दबाव समूह के नाम से जाना जाता है। ये अपने हितों को प्राप्त करने के लिए सरकार पर दबाव डालते हैं।

3. हित समूह: समाज के किसी विशेष हिस्से अथवा समूह के हितों को बढ़ावा देने वाले संगठन।।

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JAC Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले 

JAC Board Class 10th Social Science Notes Civics Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले

→ लैंगिक विभाजन:

  • लैंगिक असमानता सामाजिक असमानता का एक रूप है जो प्रत्येक स्थान पर दिखाई देती है।
  • लैंगिक असमानता का आधार स्त्री व मुरुषों के विषय में प्रचलित रूढ़ छवियाँ तथा तयशुदा सामाजिक भूमिकाएँ हैं न कि उनकी जैविक बनावट।
  • श्रम के लैंगिक विभाजन में औरतें घर के अन्दर का सारा काम; जैसे-खाना बनाना, सफाई करना, कपड़े धोना तथा बच्चों की देख-रेख करना आदि कार्य करती हैं जबकि मर्द घर के बाहर का काम करते हैं।

→ नारीवाद

  • महिलाओं के राजनीतिक तथा वैधानिक दर्जे को ऊँचा उठाने, उनके लिए शिक्षा और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने की माँग करने तथा उनके निजी व पारिवारिक जीवन में भी बराबरी की मांग करने वाले आन्दोलनों को नारीवादी आन्दोलन कहते हैं।
  • लैंगिक विभाजन की राजनीतिक अभिव्यक्ति तथा इस प्रश्न पर राजनीतिक गोलबंदी ने सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भूमिका को बढ़ाने में सहायता की है।
  • स्वीडन, नॉर्वे व फिनलैण्ड जैसे स्कैंडिनेवियाई देशों में सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी का स्तर बहुत ऊँचा है।

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→ भारत में महिलाओं की स्थिति

  • भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् महिलाओं की स्थिति में बहुत सुधार आया है लेकिन आज भी वे पुरुषों से बहुत पीछे हैं। भारतीय समाज आज भी पितृ-प्रधान है।
  • भारत में महिलाओं की साक्षरता दर 54 प्रतिशत जबकि पुरुषों की साक्षरता दर 76 प्रतिशत है।
  • राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका है निर्वाचित संस्थाओं में महिलाओं के लिए कानूनी रूप से एक उचित हिस्सा तय कर देना। भारत में पंचायती राज के अन्तर्गत कुछ ऐसी ही व्यवस्था की गई है।
  • आज भारत के ग्रामीण तथा शहरी स्थानीय निकायों में 10 लाख से अधिक निर्वाचित महिलाएँ हैं। नोट: 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार भारत में महिला साक्षरता दर 65.46% व पुरुष साक्षरता 82.14% दर रही थी।

→ धार्मिक विभाजन

  • धार्मिक विभाजन प्रायः राजनीति के मैदान में अभिव्यक्त होता है।
  • गाँधीजी के मतानुसार, धर्म को कभी भी राजनीति से अलग नहीं किया जा सकता। धर्म से उनका अभिप्राय हिन्दू या इस्लाम जैसे धर्म से न होकर नैतिक मूल्यों से था जो सभी धर्मों से जुड़े हुए हैं।
  • महात्मा गाँधी जी का मानना था कि राजनीति धर्म द्वारा स्थापित मूल्यों से निर्देशित होनी चाहिए।

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→ साम्प्रदायिकता

  • साम्प्रदायिक राजनीति इस सोच पर आधारित होती है कि धर्म ही मुख्य रूप से सामाजिक समुदाय का निर्माण करता है।
  • साम्प्रदायिकता हमारे देश के लोकतन्त्र के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती रही है।
  • भारतीय संघ ने किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में स्वीकार नहीं किया है।

→ जातीय विभाजन

  • लिंग व धर्म के आधार पर विभाजन तो समस्त विश्व में देखा जा सकता है पर जाति पर आधारित विभाजन केवल भारतीय समाज में ही देखने को मिलता है।
  • भारत में वर्ण व्यवस्था, अन्य जाति समूहों से भेदभाव तथा उन्हें अपने से अलग मानने की धारणा पर आधारित है।
  • भारतीय जनगणना में प्रत्येक 10 वर्ष पश्चात् सभी नागरिकों के धर्म को भी दर्ज किया जाता है।

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→ जातीय राजनीति

  • भारतीय संविधान में किसी भी प्रकार के जातिगत भेदभाव पर रोक लगायी गयी है।
  • भारत में साम्प्रदायिकता की तरह जातिवाद भी इस मान्यता पर आधारित है कि जाति ही सामाजिक समुदाय के गठन का एकमात्र आधार है।
  • आर्थिक असमानता का एक महत्त्वपूर्ण आधार जाति भी है क्योंकि इससे विभिन्न संसाधनों तक लोगों की पहुँच निर्धारित होती है।
  • जातिवाद तनाव, टकराव एवं हिंसा को भी बढ़ावा प्रदान करता है।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. श्रम का लैंगिक विभाजन: श्रम के विभाजन का वह तरीका जिसमें घर के अन्दर के समस्त कार्य परिवार की महिलाएँ करती हैं या अपनी देखरेख में घरेलू नौकरों अथवा नौकरानियों से करवाती हैं।

2. नारीवादी: महिला और पुरुषों के समान अधिकारों एवं अवसरों में विश्वास करने वाली महिला या पुरुष।

3. पितृ-प्रधान: इसका शाब्दिक अर्थ तो पिता का शासन है पर इस शब्द का प्रयोग महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक महत्त्व, अधिक शक्ति देने वाली व्यवस्था के लिए भी किया जाता है।

4. लिंग-अनुपात: प्रति एक हजार पुरुषों के पीछे महिलाओं की संख्या लिंग अनुपात कहलाती है।

5. पारिवारिक कानून: विवाह, तलाक, गोद लेना तथा उत्तराधिकार जैसे परिवार से जुड़े मामलों से सम्बन्धित कानून। हमारे देश में सभी धर्मों के लिए अलग-अलग पारिवारिक कानून हैं।

6. वर्ण-व्यवस्था: जाति समूहों का पदानुक्रम जिसमें एक जाति के लोग प्रत्येक स्थिति में सामाजिक पायदान में सबसे ऊपर रहेंगे तो किसी जाति समूह के लोग क्रमागत के रूप में उनके नीचे रहेंगे।

7. शहरीकरण: ग्रामीण क्षेत्रों से निकलकर लोगों का शहरों में बसना शहरीकरण कहलाता है। जातिवाद-विवाह, कार्य तथा आहार के उद्देश्यों के लिए सामाजिक समूहों में लोगों का संगठन जातिवाद कहलाता है।

8. साम्प्रदायिकता: साम्प्रदायिकता समाज की वह स्थिति है जिसमें विभिन्न धार्मिक समूह अन्य समूहों पर अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने का प्रयास करते हैं। साम्प्रदायिक राजनीति-किसी एक धार्मिक समूह की सत्ता एवं वर्चस्व तथा अन्य समूहों की उपेक्षा पर आधारित राजनीति को साम्प्रदायिक राजनीति कहते हैं।

9. धर्मनिरपेक्ष: सभी धर्मों को समान महत्त्व प्रदान करना।

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