JAC Class 10 Social Science Notes History Chapter 4 औद्योगीकरण का युग 

JAC Board Class 10th Social Science Notes History Chapter 4 औद्योगीकरण का युग

→ औद्योगीकरण का सूत्रपात

  • सन् 1900 में म्यूजिक कंपनी ई.टी.पॉल द्वारा संगीत की एक किताब प्रकाशित की गई जिसकी जिल्द पर ‘नयी सदी के उदय’ (डॉन ऑफ द सेंचुरी) का ऐलान करने वाली तस्वीर दी गई।
  • विश्व स्तर पर विभिन प्रकार की तस्वीरें आधुनिक विश्व की विजय गाथा को प्रस्तुत करती हैं। इस गाथा में आधुनिक विश्व को तीव्र तकनीकी परिवर्तनों, आविष्कारों, मशीनों, कारखानों, रेलवे एवं वाष्पपोतों की दुनिया के रूप में प्रदर्शित किया गया है।
  • 17वीं व 18वीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के व्यापारी गाँव में किसानों व कारीगरों को पैसे देकर उनसे अन्तर्राष्ट्रीय बाजार के लिए उत्पादन करवाते थे। इस प्रकार की व्यवस्था से शहरों व गाँवों के मध्य एक घनिष्ठ सम्बन्ध विकसित हो गया।

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→ कारखानों का उदय

  • इंग्लैण्ड में सर्वप्रथम 1730 ई. के दशक में कारखानों का खुलना प्रारम्भ हुआ।
  • कपास (कॉटन) नए युग का प्रथम प्रतीक थी।
  • 18वीं शताब्दी में रिचर्ड आर्कराइट ने सूती कपड़ा मिल को रूपरेखा पेश की।
  • 19वीं शताब्दी के आरम्भ में कारखाने इंग्लैंड के भूदृश्य का अभिन्न अंग बने।

→ औद्योगिक परिवर्तन की बढ़ती रफ्तार

  • सूती उद्योग व कपास उद्योग ब्रिटेन के सबसे अधिक विकसित उद्योग थे।
  • 1840 ई. के दशक में औद्योगीकरण के प्रथम चरण में कपास उद्योग सबसे बड़ा उद्योग बन चुका था। इसके पश्चात् लौह व इस्पात उद्योग इससे आगे निकल गये।
  • न्यूकॉमेन द्वारा बनाए गए भाप के इंजन में सुधार कर जेम्स वॉट गन् 1871 ई. में नए इंजन का पेटेंट करवाया। उसके दोस्त मैथ्यू बूल्टन ने इस मॉडल का उत्पादन किया।
  • महारानी विक्टोरिया के समय में ब्रिटेन में मानवीय श्रम की कोई कमी नहीं थी। अधिकांश उत्पाद केवल हाथ से ही तैयार किये जाते थे। उच्च वर्ग के लोगों (कुलीन व पूंजीपति वर्ग) द्वारा हाथों से बनी वस्तुओं को तरजीह देना इसका मुख्य कारण था।
  • जिन देशों में श्रमिकों की कमी होती थी वहाँ कारखानों के मालिक मशीनों का प्रयोग करते थे।
  • 1840 ई. के दशक के पश्चात् शहरों में निर्माण की गतिविधियों में तीव्र गति से वृद्धि होने से लोगों के लिए नये रोजगार के अवसर उत्पन्न हुए।

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→ भारतीय वस्त्र उद्योग

  • उद्योगों में मशीनीकरण से पहले अन्तर्राष्ट्रीय वस्त्र बाजार में भारत के रेशमी व सूती वस्त्रों का ही एकाधिकार रहता था।
  • ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत में राजनीतिक सत्ता स्थापित कर व्यापार पर एकाधिकार करना प्रारम्भ कर दिया।
  • ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने वस्तु व्यापार में सक्रिय व्यापारियों एवं दलालों को समाप्त करने एवं बुनकरों पर अत्यधिक प्रत्यक्ष नियन्त्रण स्थापित करने की कोशिश की।
  • कम्पनी ने वेतनभोगी कर्मचारियों (जिन्हें गुमाश्ता कहा जाता था) की नियुक्ति की जो बुनकरों पर निगरानी रखने, माल एकत्रित करने तथा कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने जैसे काम करते थे।
  • 19वीं सदी के प्रारम्भ में ब्रिटेन के वस्तु उत्पादों के निर्यात में अत्यधिक वृद्धि हुई।
  • भारत में मैनचेस्टर का कपड़ा आने से भारत के कपड़ा बुनकरों के समक्ष अपने जीवनयापन की समस्या उत्पन्न हो गई।
  • भारत में प्रथम वस्त्र कारखाना बम्बई (मुम्बई) में 1854 ई. में स्थापित हुआ था।
  • बंगाल में देश की प्रथम जूट मिल 1855 ई. में तथा 1862 ई. में दूसरी मिल शुरू हुई।
  • भारत के प्रारम्भिक उद्यमियों में द्वारकानाथ टैगोर, डिनशॉ पेटिट, जमशेद नुसरवानजी टाटा, सेठ हुकुमचन्द आदि थे।
  • जैसे-जैसे भारतीय व्यापार पर यूरोपीय औपनिवेशिक नियन्त्रण स्थापित होता चला गया वैसे-वैसे भारतीय व्यापारियों का व्यवसाय समाप्त होने लगा। भारत में कारखानों के विस्तार ने मजदूरों की माँग में वृद्धि कर दी।
  • नए मजदूरों की भर्ती के लिए उद्योगपति प्रायः एक जॉबर रखते थे जो मुख्यतः कोई पुराना व विश्वस्त कर्मचारी होता था।

→ औद्योगिक विकास का अनूठापन

  • भारत में कई यूरोपीय कम्पनियों ने ब्रिटिश सरकार से सस्ती कीमत पर जमीन लेकर चाय व कॉफी के बागानों की स्थापना की एवं खनन, नील व जूट व्यवसाय में धन का निवेश किया।
  • प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् छोटे-छोटे उद्योगों की मात्रा में तीव्र गति से वृद्धि हुई तथा मैनचेस्टर को भारतीय बाजार में पुरानी हैसियत पुनः हासिल नहीं हो पायी।
  • बीसवीं सदी में हथकरघों पर बने कपड़े के उत्पादन में तीव्र गति से वृद्धि होने लगी।

→ विज्ञापन और बाजार

  • ब्रिटिश निर्माताओं ने विज्ञापनों के माध्यम से नये उपभोक्ता उत्पन्न किये।
  • औद्योगीकरण के प्रारम्भ से ही विज्ञापनों ने विभिन्न उत्पादों के बाजार को फैलाने में एवं एक नयी उपभोक्ता संस्कृति के निर्माण में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।
  • मैनचेस्टर के उद्योगपति भारत में बेचने वाले कपड़ों के बण्डलों पर लेबल (जिस पर ‘मेड इन नचेस्टर’ लिखा होता था) लगाते थे। इससे खरीदारों को कम्पनी का नाम और उत्पादन के स्थान का पता चल जाता था। इसके अलावा लेबल वस्तुओं की गुणवत्ता का भी प्रतीक था।
  • 19वीं शताब्दी के अंत में निर्माताओं ने अपने उत्पादों को बेचने के लिए कैलेण्डरों को छपवाना शुरू किया जिन पर देवताओं की तस्वीर छपी होती थी।
  • भारतीय निर्माताओं के विज्ञापन स्वदेशी वस्तुओं के राष्ट्रवादी संदेश के वाहक बन गये थे।

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→  महत्त्वपूर्ण तिथियाँ एवं घटनाएँ |

तिथि घटनाएँ
1. 1730 ई. इंग्लैण्ड में सबसे पहले 1730 ई. के दशक में कारखाने खुले।
2. 1764 ई. जेम्स हरग्रीव्ज द्वारा स्पिनिंग जेनी नामक कताई की मशीन का निर्माण किया गया।
3. 1772 ई. ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अफसर हेनरी पतूलो ने भारतीय वस्त्रों की प्रशंसा की।
4. 1780 ई. बम्बई व कलकत्ता का व्यापारिक बन्दरगाहों के रूप में विकास प्रारम्भ हुआ।
5. 1840 है. इस दशक तक औद्योगीकरण के प्रथम चरण में कपास उद्योग ब्रिटेन का सबसे बड़ा उद्योग बना।
6. 1854 ई. बम्बई में प्रथम कपड़ा मिल की स्थापना हुई।
7. 1871 ह. जेम्स वॉट ने न्यूकॉमेन द्वारा बनाये गये भाप के इंजन में सुधार कर नये इंजन का पेटेंट करा लिया।
8. 1874 ई. मद्रास (वर्तमान चेन्नई)में प्रथम कताई एवं बुनाई मिल की स्थापना हुई।
9. 1900 ई. ई. टी. पॉल म्यूजिक कम्पनी द्वारा संगीत की एक पुस्तक का प्रकाशन, जिसके मुख पृष्ठ पर दर्शायी तस्वीर में ‘नई सदी के उदय’ की घोषणा की गयी थी।
10. 1901 ई. उद्योगपति जे. एन. टाटा ने जमशेदपुर में भारत का पहला लौह इस्पात संयन्त्र स्थापित किया।
11. 1917 ई. मारवाड़ी व्यवसायी सेठ हुकुमचन्द द्वारा कलकत्ता (कोलकाता) में पहली जूट मिल स्थापित की गयी।

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→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. प्राच्य: भूमध्य सागर के पूर्व में स्थित देश। सामान्यतया यह शब्द एशिया के लिए प्रयोग किया जाता है। पश्चिम के देशों की नजर में प्राच्य क्षेत्र पूर्व आधुनिक, पारस्परिक एवं रहस्यमय थे।

2. आदि: किसी वस्तु की प्रथम अथवा प्रारम्भिक अवस्था का संकेत।

3. स्टेपलर: ऐसा व्यक्ति जो देशों के हिसाब से ऊन को स्टेपल करता है अथवा छाँटता है।

4. कार्डिंग: वह प्रक्रिया जिसमें ऊन या कपास आदि रेशों को कताई के लिए तैयार किया जाता है।

5. फुलर: ऐसा व्यक्ति जो फुल करता है अर्थात् चुन्नटों के सहारे कपड़े को समेटता है।

6. स्पिनिंग जेनी: जेम्स हरग्रीब्ज द्वारा सन् 1764 ई. में बनाई गई इस मशीन ने कताई की प्रक्रिया तेज कर दी। इस मशीन के प्रयोग से श्रमिकों की माँग घट गयी। इस मशीन का एक ही पहिया घुमाने वाला एक श्रमिक अनेक तकलियों को घुमा देता था और एक साथ कई धागे बनने लगते थे।

7. बुनकर: कपड़ों की बुनाई करने वाला व्यक्ति।

8. जॉबर: इसे अलग-अलग क्षेत्रों में मिस्त्री या सरदार भी कहा जाता था। यह उद्योगपतियों का पुराना व विश्वस्त कर्मचारी होता था। वह कारखानों में काम करने के लिए अपने गाँव से लोगों को लाता था। बदले में वह उनसे धन व उपहार लेता था।

9. फ्लाई शटल: रस्सियों एवं पुलियों के माध्यम से चलने वाला एक यांत्रिक औजार, जिसका बुनाई के लिए प्रयोग किया जाता है। यह क्षैतिज धागे (ताना) को लम्बवत् धागे (बाना) में पिरो देती है। इसके आविष्कार से बुनकरों को बड़े करघे चलाना एवं चौड़े अरज का कपड़ा बनाने में बहुत मदद मिली।

10. आदि: औद्योगीकरण-औद्योगीकरण का प्रारम्भिक चरण जिसमें थोक उत्पादन अन्तर्राष्ट्रीय बाजार के लिए कारखानों में नहीं वरन् विकेन्द्रित इकाइयों में ले जाया जाता था।

11. कॉटेजर: यूरोप में अपने जीवनयापन के लिए साझा ज़मीनों से जलावन की लकड़ी, बोरियाँ, सब्जियाँ, भूसा और चारा आदि बीनकर काम चलाने वाले छोटे किसान।

12. गुमाश्ता: ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा बुनकरों पर निगरानी रखने, माल इकट्ठा करने एवं कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने के लिए नियुक्त वेतनभोगी कर्मचारी।

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