Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग Important Questions and Answers.
JAC Board Class 12 Geography Important Questions Chapter 8 निर्माण उद्योग
बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)
प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखें –
1. निम्नलिखित में से किस उद्योग में चूने का पत्थर कच्चे माल के रूप में प्रयोग होता है।
(A) एल्यूमीनियम
(B) सीमेंट
(C) चीनी
(D) पटसन।
उत्तर:
(B) सीमेंट
2. सार्वजनिक क्षेत्र के इस्पात यन्त्रों के इस्पात का विक्रय किस संस्था द्वारा होता है ?
(A) HAL
(B) SAIL
(D) MNCC
(C) TATA
उत्तर:
(B) SAIL
3. किस उद्योग में बॉक्साइट कच्चे माल के रूप में प्रयोग होता है ?
(A) एल्यूमीनियम
(B) सीमेंट
(C) पटसन
(D) इस्पात
उत्तर:
(A) एल्यूमीनियम
4. किस उद्योग में टेलीफोन व कंप्यूटर बनाए जाते हैं ?
(A) इस्पात
(B) एल्यूमीनियम
(C) इलैक्ट्रॉनिक्स
(D) सूचना प्रौद्योगिकी
उत्तर:
(D) सूचना प्रौद्योगिकी
5. निर्माण किस वर्ग की क्रिया है ?
(A) प्राथमिक
(B) द्वितीयक
(C) तृतीयक
(D) चतुर्थक।
उत्तर:
(B) द्वितीयक
6. कौन – सा उद्योग कृषि आधारित उद्योग है ?
(A) लोहा-इस्पात
(B) सूती वस्त्र
(C) एल्यूमीनियम
(D) सीमेंट।
उत्तर:
(B) सूती वस्त्र
7. पहली सूती वस्त्र मिल मुम्बई में कब लगाई गई ?
(A) 1834
(B) 1844
(C) 1854
(D) 1864.
उत्तर:
(C) 1854
8. अधिकतर पटसन मिलें किस बेसिन में स्थित हैं ?
(A) महानदी
(B) दामोदर
(C) हुगली
(D) कोसी।
उत्तर:
(C) हुगली
9. भारत में प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति इस्पात खपत है
(A) 30 कि० ग्रा०
(B) 31 कि० ग्रा०
(C) 32 कि० ग्रा०
(D) 33 कि० ग्रा०
उत्तर:
(C) 32 कि० ग्रा०
10. भारत में एल्यूमीनियम का उत्पादन है।
(A) 50 करोड़ टन
(B) 60 करोड़ टन
(C) 70 करोड़ टन
(D) 80 करोड़ टन।
उत्तर:
(B) 60 करोड़ टन
11. किस नगर को भारत की इलैक्ट्रोनिक राजधानी कहते हैं ?
(A) मुम्बई
(B) कोलकाता
(C) बंगलौर
(D) पुणे।
उत्तर:
(C) बंगलौर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions )
प्रश्न 1.
जमशेदपुर में टाटा इस्पात केन्द्र कब स्थापित किया गया ?
उत्तर:
सन् 1907 में।
प्रश्न 2.
उद्योगों के स्वामित्व के आधार पर तीन वर्ग बताओ।
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र, सहकारी क्षेत्र।
प्रश्न 3.
भारत में इस्पात का कुल उत्पादन बताओ।
उत्तर:
-311 लाख टन।
प्रश्न 4.
भारत में पहली आधुनिक सूती मिल कब व कहां लगाई गई ?
उत्तर:
1854 में मुम्बई में।
प्रश्न 5.
भारत में चीनी मिलों की कुल संख्या कितनी है ?
उत्तर:
506.
प्रश्न 6.
भारत में चीनी का कुल उत्पादन बताओ।
उत्तर:
1.77 करोड़ टन।
प्रश्न 7.
भारत में इलेक्ट्रोनिक उद्योग का सबसे बड़ा केन्द्र बताओ।
उत्तर:
बंगलौर
प्रश्न 8.
गुजरात राज्य में एक प्रमुख उद्योग बताओ।
उत्तर:
पेट्रो रसायन।
प्रश्न 9.
छोटा नागपुर क्षेत्र में दो औद्योगिक केन्द्र बताओ।
उत्तर:
रांची, बोकारो।
प्रश्न 10.
हुगली औद्योगिक प्रदेश में मुख्य उद्योग कौन-सा है ?
उत्तर:
पटसन उद्योग।
प्रश्न 11.
उद्योगों के उत्पादों के उपयोग के आधार पर वर्गीकरण करो।
उत्तर:
- वस्तु आधारभूत उद्योग
- पूंजीगत वस्तु उद्योग
- मध्यवर्ती वस्तु उद्योग
- उपभोक्ता वस्तु उद्योग।
प्रश्न 12.
कच्चे माल के आधार पर चार प्रकार के उद्योग बताओ।
उत्तर:
- कृषि आधारित
- वन आधारित
- खनिज आधारित
- प्रसंस्कृत कच्चे माल पर आधारित उद्योग।
प्रश्न 13.
केलिको सूत्री वस्त्र मिल कहां स्थित है ?
उत्तर:
अहमदाबाद में।
प्रश्न 14.
सूती वस्त्र उद्योग की अवस्थिति किन कारकों पर निर्भर करती है ?
उत्तर:
- कच्चे माल
- ईंधन
- रसायन
- मशीनें
- श्रमिक
- परिवहन
- बाज़ार।
प्रश्न 15.
सूती वस्त्र उद्योग के प्रमुख केन्द्र पंचभुज प्रदेश बनाते हैं ? इसके पांच बिन्दु कौन-से हैं ?
उत्तर:
अहमदाबाद, मुम्बई, शोलापुर, नागपुर, इंदौर – उज्जैन।
प्रश्न 16.
भारत के किस राज्य में सूती वस्त्र मिलें सर्वाधिक हैं ?
उत्तर:
तमिलनाडु में 439 मिलें।
प्रश्न 17.
भारत में लौह तथा अलौह उद्योगों का एक-एक उदाहरण दो।
उत्तर:
लौह उद्योग – लौह इस्पात
अलौह उद्योग – तांबा।
प्रश्न 18.
राऊरकेला लोह-इस्पात कारखाना किस देश के सहयोग से लगाया गया ?
उत्तर:
जर्मनी।
प्रश्न 19.
भिलाई लौह इस्पात कारखाना किस देश के सहयोग से लगाया गया ?
उत्तर:
“रूस
प्रश्न 20.
दुर्गापुर लौह इस्पात कारखाना किस देश के सहयोग से लगाया गया ?
उत्तर:
इंग्लैंड
प्रश्न 21.
शक्ति के उत्पादन पर आधारित एक उद्योग बताओ।
उत्तर:
एल्युमिनियम।
प्रश्न 22.
बाज़ार की निकटता पर आधारित एक उद्योग का नाम लिखिए।
उत्तर:
सूती वस्त्र उद्योग।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
विनिर्माण उद्योग से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
कच्चे माल (Raw Material) को मशीनों की सहायता के रूप बदल कर अधिक उपयोगी तैयार माल प्राप्त करने की क्रिया को निर्माण उद्योग कहते हैं । यह मनुष्य का एक सहायक या गौण या द्वितीयक (Secondary) व्यवसाय है। इसलिए निर्माण उद्योग में जिस वस्तु का रूप बदल जाता है, वह वस्तु अधिक उपयोगी हो जाती है तथा निर्माण द्वारा उस पदार्थ की मूल्य वृद्धि हो जाती है जैसे लकड़ी से लुग्दी तथा काग़ज़ बनाया जाता है। कपास से धागा और कपड़ा बनाया जाता है। खनिज लोहे से इस्पात तथा कल-पुर्जे बनाए जाते हैं।
प्रश्न 2.
भारी उद्योग किसे कहते हैं ?
उत्तर:
भारी उद्योग ( Heavy Industry ):
खनिज पदार्थों का प्रयोग करने वाले आधारभूत उद्योगों को भारी उद्योग कहते हैं । इन उद्योगों में भारी पदार्थों का आधुनिक मिलों में निर्माण किया गया है। ये उद्योग किसी देश के औद्योगीकरण की आधारशिला हैं । लोहा – इस्पात उद्योग, मशीनरी, औज़ार तथा इंजीनियरिंग सामान बनाने के उद्योग भारी उद्योग के वर्ग में गिने जाते हैं।
प्रश्न 3.
उद्योगों का वर्गीकरण किस विभिन्न प्रकार से किया जा सकता है ?
उत्तर:
उद्योगों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधार पर किया जाता है –
(i) उद्योगों के आकार तथा कार्यक्षमता के आधार पर उद्योग दो प्रकार के होते हैं –
(क) बड़े पैमाने के उद्योग
(ख) छोटे पैमाने के उद्योग।
(ii) औद्योगिक विकास के आधार पर उद्योग दो प्रकार के होते हैं –
(क) कुटीर उद्योग
(ख) आधुनिक शिल्प उद्योग।
(iii) स्वामित्व के आधार पर उद्योग दो-तीन प्रकार के होते हैं –
(क) सार्वजनिक उद्योग (जिनकी व्यवस्था सरकार स्वयं करती है),
(ख) निजी उद्योग
(ग) सहकारी उद्योग।
(iv) कच्चे माल के आधार पर उद्योग दो प्रकार के होते हैं –
(क) कृषि पर आधारित उद्योग
(ख) खनिजों पर आधारित उद्योग।
(v) वस्तुओं के आधार पर उद्योग दो प्रकार के होते हैं –
(क) हल्के उद्योग,
(ख) भारी उद्योग।
(vi) इसी प्रकार उद्योगों को अनेक विभिन्न वर्गों में रखा जाता है। जैसे हस्तकला उद्योग, ग्रामीण उद्योग, घरेलू उद्योग आदि।
प्रश्न 4.
भारत के पाँच लोहा तथा इस्पात केन्द्र वाले नगरों के नाम लिखो।
उत्तर:
लोहा – इस्पात नगर (Steel Towns) – भारत में निम्नलिखित नगरों में आधुनिक इस्पात कारखाने स्थित हैं। इन्हें लोहा-इस्पात नगर भी कहा जाता है।
- जमशेदपुर (झारखण्ड)
- बोकारो (झारखण्ड)
- भिलाई (छत्तीसगढ़)
- राऊरकेला (उड़ीसा)
- भद्रावती (कर्नाटक)।
प्रश्न 5.
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में अपनाई गई औद्योगिक नीति के क्या उद्देश्य थे ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता के पश्चात् सामाजिक तथा आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए औद्योगिक नीति अपनाई गई। इस नीति में आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए क्षेत्रों में उद्योग स्थापित किए गए ताकि प्रादेशिक असन्तुलन को कम किया जा सके।
औद्योगिक नीति के उद्देश्य इस प्रकार थे –
- रोज़गार के अधिक अवसर प्रदान करना।
- उद्योगों में उच्च उत्पादकता प्राप्त करना।
- प्रादेशिक असन्तुलन को दूर करना।
- कृषि आधारित उद्योगों का विकास करना।
- निर्यात प्रधान उद्योगों को बढ़ावा देना।
प्रश्न 6.
भारत में स्वामित्व के आधार पर कौन-कौन से प्रकार के उद्योग हैं?
उत्तर:
स्वामित्व के आधार पर भारत में तीन प्रकार के उद्योगों को मान्यता दी गई है –
- सार्वजनिक उद्योग (Public Sector ) – ऐसे उद्योगों का संचालन सरकार स्वयं करती है। इसके अन्तर्गत भारी तथा आधारभूत उद्योग हैं; जैसे भिलाई इस्पात केन्द्र, नंगल उर्वरक कारखाना आदि।
- निजी उद्योग (Private Sector ) – ऐसे उद्योग किसी निजी व्यक्ति के अधीन होते हैं, जैसे जमशेदपुर का इस्पात उद्योग
- सहकारी उद्योग (Co-operative Sector ) – जब कुछ व्यक्ति किसी सहकारी समिति द्वारा किसी उद्योग की स्थापना करते हैं, जैसे चीनी उद्योग।
प्रश्न 7.
भारत में सूती वस्त्र उद्योग के वितरण के पाँच लक्षण बताओ।
उत्तर:
- भारत में सूती वस्त्र उद्योग व्यापक रूप से वितरित
- इसका मुम्बई तथा अहमदाबाद में संकेन्द्रक है।
- यह कृषि आधारित उद्योग है ।
- कपड़े का उत्पादन मिल सैक्टर, पावरलूम तथा हथकरघों द्वारा होता है।
- यह भारत का सबसे बड़ा उद्योग है।
प्रश्न 8.
भारत में कच्चे माल के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण करो
उत्तर:
- कृषि-आधारित उद्योग
- वन – आधारित उद्योग
- खनिज आधारित उद्योग
- असैम्बली उद्योग।
प्रश्न 9.
उद्योगों के समूहीकरण के लिए प्रयोग किए जाने वाले चार सूचकांक बताओ।
उत्तर:
- औद्योगिक इकाइयों की संख्या
- श्रमिकों की संख्या
- कुल उत्पादन
- कुल शक्ति का प्रयोग।
प्रश्न 10.
सूती वस्त्र उद्योग की क्या समस्याएं हैं ?
उत्तर:
सूती वस्त्र उद्योग भारत का सबसे बड़ा संगठित उद्योग है परन्तु इस उद्योग की कई समस्याएं हैं –
- देश में लम्बे रेशे वाली कपास का उत्पादन कम है। यह कपास विदेशों से आयात करनी पड़ती है।
- सूती कपड़ा मिलों की मशीनरी पुरानी है जिससे उत्पादकता कम है तथा लागत अधिक है।
- मशीनरी के आधुनिकीकरण के लिए स्वचालित मशीनें लगाना आवश्यक है। इसके लिए पर्याप्त पूंजी की आवश्यकता है।
- देश में हथकरघा उद्योग से स्पर्धा है तथा विदेशी बाज़ार में चीन तथा जापान के तैयार वस्त्र से स्पर्धा तीव्र है ।
प्रश्न 11.
दिए गए चित्र का अध्ययन करो इसमें भारत के एक प्रमुख इस्पात संयन्त्र को दर्शाया गया है तथा निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो।
(i) यह संयन्त्र किस राज्य में स्थित है ?
उत्तर:
उड़ीसा
(ii) इस संयन्त्र को लौह अयस्क कहां से प्राप्त होता है ?
उत्तर:
किरुबुरु खान से।
(iii) इस संयन्त्र से विद्युत् तथा जल प्राप्ति के साधन बताओ।
उत्तर:
मन्दिरा बांध से जल, हीराकुड बांध से विद्युत्।
प्रश्न 12.
जल गुणवत्ता से क्या अभिप्राय है ? भारत में जल गुणवत्ता क्यों कम हो रही है ? कोई दो कारण बताओ।
उत्तर:
जल गुणवत्ता से तात्पर्य है जल की शुद्धता तथा अनावश्यक बाहरी पदार्थों से रहित जल। भारत में जल गुणवत्ता कम होने के दो कारण हैं –
(i) उद्योगों तथा रासायनिक पदार्थों के अपशिष्ट पदार्थ जल प्रदूषित करते हैं। इससे जल मानव उपयोग के योग्य नहीं रहता।
(ii) विषैले पदार्थ झीलों, नदियों, जलाशयों में प्रवेश करते हैं तथा जल प्रदूषण के कारण जल गुणवत्ता कम करते हैं।
प्रश्न 13.
भारत में 1991 के पश्चात् नई औद्योगिक नीति के अधीन आरम्भ किए गए तीन महत्त्वपूर्ण पग बताओ।
उत्तर:
इस नई औद्योगिक नीति के अधीन उत्पादकता तथा रोजगार बढ़ाने के लिए 1991 में उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण की नीति अपनाई गई है –
- औद्योगिक लाइसेंस व्यवस्था को समाप्त किया गया है।
- औद्योगिक अवस्थिति कार्यक्रम का उदारीकरण किया गया है।
- आयात शुल्क को कम या समाप्त किया गया है।
प्रश्न 14.
वस्त्रोत्पादन उद्योग मुम्बई में अहमदाबाद की ओर क्यों बढ़े हैं ? उपयुक्त उदाहरण की सहायता से व्याख्या करो
उत्तर:
भारत में सूती वस्त्र उद्योग सबसे पहले मुम्बई में स्थापित किया गया। यहां पर्याप्त मात्रा में पूंजी उपलब्ध थी तथा विदेशों से मशीनरी मंगवाने की सुविधा प्राप्त थी, परन्तु यहां कच्चे माल की प्राप्ति भारत के कई राज्यों पंजाब, मध्य प्रदेश, गुजरात से कपास मंगवा कर पूरी की जाती थी। कुछ समय के पश्चात् यहां श्रमिकों की मज़दूरी बढ़ने, मिलों के लिए पर्याप्त स्थान की कमी, हड़तालों आदि की समस्याओं के कारण यह उद्योग मुम्बई से हट कर अहमदाबाद की ओर बढ़ने लगा। अहमदाबाद में कपास पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध थी । पूंजी के पर्याप्त साधन थे। मिलों के लिए खुले स्थान उपलब्ध थे। मुम्बई में जो समस्याएं थीं वे समस्याएं अहमदाबाद में नहीं थीं। इसलिए अहमदाबाद शीघ्र ही ‘भारत का मानचेस्टर’ बन गया।
प्रश्न 15.
चीनी उद्योग उत्तरी भारत से दक्षिणी भारत की ओर स्थानान्तरित क्यों हो रहा है ?
उत्तर:
भारत में गन्ने की उपज के लिए आदर्श दशाएं दक्षिणी भारत में पाई जाती हैं, परन्तु गन्ने का अधिक उत्पादन उत्तरी मैदान में है, जहां उपजाऊ मिट्टी क्षेत्र है । परिणामस्वरूप चीनी की अधिकतर मिलें भी गन्ना उत्पादन क्षेत्र में हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार राज्य में देश की चीनी का 60% उत्पादन होता था, परन्तु अब यह उत्पादन दिनों दिन कम होता जा रहा है। चीनी उद्योग प्रायद्वीपीय भारत में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु राज्य में विकसित हो रहा है। इसके निम्नलिखित कारण हैं
- दक्षिणी भारत में गन्ने के लिए उष्ण कटिबन्धीय जलवायु मिलती है
- दक्षिणी भारत में गन्ने का प्रति हेक्टेयर उत्पादन अधिक है
- दक्षिणी भारत में गन्ना अधिक मोटा होता है
- दक्षिणी भारत में गन्ने का पिड़ाई का समय अधिक होता है
- दक्षिणी भारत में अधिकांश मिलों में आधुनिक मशीनरी लगाई गई है जिससे उत्पादकता अधिक है।
- दक्षिणी भारत में चीनी के कारखाने सहकारी क्षेत्र में लगाए जा रहे हैं।
प्रश्न 16.
कोलकाता क्षेत्र तथा छोटा नागपुर क्षेत्रों में उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले पाँच कारकों के प्रभाव की तुलना कीजिए।
उत्तर:
कोलकाता क्षेत्र –
1. स्थिति – यह औद्योगिक क्षेत्र हुगली नदी के किनारे स्थित है। यहां कोलकाता बन्दरगाह से सीधे रूप से आयात-निर्यात की सुविधाएं प्राप्त हैं।
2. कच्चे माल – हुगली क्षेत्र में असम से चाय तथा पश्चिमी बंगाल से पटसन कच्चे माल के रूप में प्राप्त हैं।
3. शक्ति के साधन – यहां शक्ति के साधनों की कमी है। कोयला रानीगंज से प्राप्त होता है। खनिज तेल असम से प्राप्त होता है।
4. यातायात के साधन – यहां जल यातायात तथा रेल सड़क मार्गों की सुविधाएं हैं।
5. श्रमिक – यहां घनी जनसंख्या के कारण सस्ते, कुशल श्रमिक प्राप्त हैं।
छोटा नागपुर क्षेत्र –
1. यह औद्योगिक क्षेत्र दामोदर घाटी में छोटा नागपुर क्षेत्र में स्थित है। यहाँ कोलकाता से आयात-निर्यात की सुविधा है, परन्तु इस पर परिवहन व्यय अधिक है।
2. इस पठार पर कई खनिज पदार्थ कोयला, लोहा आदि पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। इसे भारत का ‘रुहर’ भी कहते हैं।
3. यहां शक्ति के साधन अधिक प्राप्त हैं। झरिया से कोयला, D. V. C. से जल विद्युत् प्राप्त होती है।
4. यातायात के साधन अधिक उन्नत तथा पर्याप्त नहीं हैं।
5. यहां बिहार- उड़ीसा राज्यों से सस्ते श्रमिक प्राप्त हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
भारत में औद्योगिक विकास के लिए सभी आवश्यक दशाएं विद्यमान हैं। स्पष्ट करें।
उत्तर:
औद्योगिक विकास को आर्थिक विकास के स्तर को मापने के लिए मापदण्ड के रूप में उपयोग किया जाता है । भारत में औद्योगिक विकास के लिए सभी आवश्यक दशाएं विद्यमान हैं। विशाल और विविध प्राकृतिक संसाधनों के साथ इसकी विशाल जनसंख्या सस्ते श्रमिक सुलभ कराती हैं तथा निर्मित वस्तुओं की खपत के लिए विशाल बाज़ार भी प्रदान करती हैं । उद्योगों के लिए कच्चे माल, खनिज तथा शक्ति के साधन पर्याप्त हैं।
प्रश्न 2.
औद्योगिक क्रान्ति से पहले भारतीय उद्योगों की क्या स्थिति थी ?
उत्तर:
यूरोप में औद्योगिक क्रान्ति से पूर्व भारत औद्योगिक दृष्टि से विकसित देश था। भारतीय उद्योग कृषि के साथ एकीकृत थे तथा घरेलू उद्योग राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के अंग थे । भारतीय दस्तकार और कारीगर, कपड़ा बुनना, मिट्टी के बर्तन बनाना, बांस के उपकरण, आभूषण तथा धातुओं की वस्तुएँ बनाना जानते थे। वे लकड़ी और चमड़े की वस्तुएँ भी बनाते थे। भारत जलयान निर्माण के लिए भी प्रसिद्ध था।
प्रश्न 3.
औद्योगिक क्रान्ति प्राप्ति के पश्चात् भारत के औद्योगिक इतिहास का नया अध्याय शुरू हुआ। उदाहरण देकर पुष्टि करो।
उत्तर:
- भारत में औद्योगीकरण की शुरुआत सन् 1854 में मुख्यतः भारतीय पूंजी और उद्यम से मुम्बई (बम्बई) में सूती वस्त्र बनाने के कारखाने की स्थापना से हुई।
- पहली जूट मिल 1855 में कोलकाता के निकट रिसर में स्काटिश पूंजी और प्रबन्ध से लगाई गई थी।
- कोयले का खनन भी लगभग उसी समय शुरू हुआ।
- इसके बाद कागज़ के कारखाने और रासायनिक उद्योग भी शुरू किये गये।
- सन् 1875 में कुल्टी में कच्चा लोहा बनाने का कारखाना खोला गया।
- 1907 में जमशेदपुर में टाटा लोहा और इस्पात कम्पनी की स्थापना के बाद भारत में औद्योगिक इतिहास का नया अध्याय शुरू हुआ।
प्रश्न 4.
उद्योगों का निर्मित वस्तुओं के आधार पर वर्गीकरण करें।
उत्तर:
उद्योगों का अन्य सामान्य वर्गीकरण, निर्मित वस्तुओं के स्वरूप के आधार पर किया जाता है। इस प्रकार उद्योगों को सात वर्गों में रखा जाता है –
- धातु उद्योग
- यान्त्रिक इंजीनियरी उद्योग
- बिजली इंजीनियरी उद्योग
- रसायन और सम्बन्धित उद्योग
- वस्त्र उद्योग
- खाद्य उद्योग
- बिजली उत्पादन उद्योग और
- इलैक्ट्रोनिक तथा संचार उद्योग हैं।
प्रश्न 5.
उदारीकरण की नीति के प्रमुख उपाय बताओ।
उत्तर:
उदारीकरण की नीति के प्रमुख उपाय ये थे –
- निवेश सम्बन्धी बाधाएं हटा दी गईं।
- व्यापार को बन्धन मुक्त कर दिया गया।
- कुछ क्षेत्रों में विदेशी प्रौद्योगिकी आयात करने की छूट दी गई।
- विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (विनियोग ) की अनुमति दी गई।
- पूंजी बाजार में पहुंच की बाधाओं को हटा दिया गया।
- औद्योगिक लाइसेंस पद्धति को सरल और नियन्त्रण मुक्त कर दिया गया।
- सार्वजनिक क्षेत्र के सुरक्षित क्षेत्रों को घटा दिया गया तथा
- सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ चुने हुए उपक्रमों का विनिवेशीकरण किया गया अर्थात् इन्हें निजी कम्पनियों को बेच दिया गया।
प्रश्न 6.
ऐसे उद्योग, जिनके उत्पाद कच्चे माल की तुलना में काफ़ी कम वज़न के होते हैं, कच्चे माल के स्रोत के निकट लगाए जाते हैं। उदाहरण सहित स्पष्ट करो।
उत्तर:
भारत में चीनी उद्योग, उत्तरी मैदानों या दक्षिणी राज्यों के गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में ही लगाए जाते हैं। 100 किलो गन्ने से लगभग 12 किलो चीनी बनती है, शेष खोई रह जाती है। यदि गन्ने को लम्बी दूरियों तक ले जाना पड़े तो खोई के परिवहन की लागत, चीनी की उत्पादन लागत को बढ़ा देगी। इसी प्रकार लुग्दी उद्योग, तांबा प्रगलन और कच्चा लोहा (पिग आयरन) उद्योग अपने कच्चे माल द्वारा ही आकर्षित होते हैं। लोहा और इस्पात उद्योग में उपयोग में आने वाले लौह-अयस्क और कोयला, दोनों ही भारी वज़न खोने वाले और लगभग समान भार के होते हैं । अतः अनुकूलतम अवस्थिति इन दोनों के स्रोतों के मध्य होगी, जैसे कि जमशेदपुर में है।
प्रश्न 7.
“सूती वस्त्र तैयार करने वाले कारखानों का वितरण व्यापक है।” इस कथन की व्याख्या सूती वस्त्र उद्योग के विकेन्द्रीकरण के सन्दर्भ में करो।
उत्तर:
आरम्भ में सूती वस्त्र उद्योग मुम्बई नगर में केन्द्रित था। सूती वस्त्र उद्योग ने अपने विकास के दौरान काफ़ी उतार-चढ़ाव देखे हैं विशाल घरेलू बाजार, जल विद्युत् के विकास, कपास की प्राप्ति, कोयला क्षेत्रों से निकटता तथा कुशल श्रमिकों के कारण यह उद्योग सारे देश में फैल गया। इसे सूती वस्त्र उद्योग का विकेन्द्रीकरण कहते हैं। सबसे पहले यह उद्योग गुजरात राज्य में अच्छी कपास प्राप्त होने के कारण अहमदाबाद में स्थापित हुआ।
तमिलनाडु राज्य में जल विद्युत् की प्राप्ति के कारण चेन्नई, कोयम्बटूर, उद्योग के महत्त्वपूर्ण केन्द्र बने। कोलकाता में विशाल मांग क्षेत्र तथा रानीगंज कोयला क्षेत्र से निकटता के कारण यह उद्योग विकसित हुआ। उत्तर प्रदेश में कानपुर, मोदीनगर, मध्य प्रदेश में इन्दौर और ग्वालियर, राजस्थान में कोटा और जयपुर में आधुनिक मिलें स्थापित हुई हैं। यहाँ घनी जनसंख्या के कारण यह उद्योग उन्नत हुआ है। लम्बे रेशे वाली कपास पर उत्पादन के कारण इस उद्योग का विकास पंजाब तथा हरियाणा राज्य में हो रहा है।
प्रश्न 8.
प्रमुख औद्योगिक प्रदेशों के नाम लिखो।
उत्तर:
प्रमुख औद्योगिक प्रदेश –
- मुम्बई – पुणे प्रदेश
- हुगली प्रदेश
- बंगलौर – तमिलनाडु प्रदेश
- गुजरात प्रदेश
- छोटा नागपुर प्रदेश और
- विशाखापटनम – गुंटूर प्रदेश,
- गुड़गांव – दिल्ली-मेरठ प्रदेश
- कोल्लम – तिरुवनन्तपुरम् प्रदेश।
प्रश्न 9.
गौण औद्योगिक प्रदेश कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
गौण औद्योगिक प्रदेश –
- अम्बाला – अमृतसर
- सहारनपुर – मुजफ्फरनगर – बिजनौर
- इंदौर- देवास-उज्जैन
- जयपुर – अजमेर
- कोल्हापुर – दक्षिण कन्नड़
- उत्तरी मालाबार
- मध्य मालाबार
- आदिलाबाद – निजामाबाद
- इलाहाबाद – वाराणसी – मिर्जापुर
- भोजपुर – मुंगेर
- दुर्ग – रायपुर
- बिलासपुर – कोरबा और
- ब्रह्मपुत्र घाटी।
प्रश्न 10.
औद्योगिक ज़िलों के नाम लिखो।
उत्तर:
औद्योगिक ज़िले –
- कानपुर
- हैदराबाद
- आगरा
- नागपुर
- ग्वालियर
- भोपाल
- लखनऊ
- जलपाईगुड़ी
- कटक
- गोरखपुर
- अलीगढ़
- कोटा
- पूर्णिया
- जबलपुर और
- बरेली।
प्रश्न 11.
ज्ञान आधारित उद्योग पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर:
ज्ञान आधारित उद्योग (Knowledge based Industries ) – सूचना प्रौद्योगिकी के विकास का देश की अर्थव्यवस्था तथा लोगों की जीवन शैली पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है। सूचना प्रौद्योगिकी में हुई क्रान्ति ने आर्थिक और सामाजिक परिवर्तनों के द्वार खोल दिए हैं। भारतीय साफ्टवेयर उद्योग अर्थव्यवस्था का सबसे तेज़ी से बढ़ने वाले क्षेत्र के रूप में उभरा है। इस उद्योग का कुल व्यापार सन् 2000-01 में 377.50 अरब रुपयों का हो गया है।
सूचना प्रौद्योगिकी साफ्टवेयर और सेवा उद्योग की भारत के सकल घरेलू उत्पाद में दो प्रतिशत की भागीदारी है। भारत का साफ्टवेयर का निर्यात सन् 2000-01 में 283.50 अरब रुपयों का हो गया। भारत के साफ्टवेयर उद्योग ने उत्कृष्ट कोटि के उत्पादन तैयार करने में उल्लेखनीय विशिष्टता प्राप्त कर ली है। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काम करने वाली अधिकतर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के भारत में या तो साफ्टवेयर विकास केन्द्र हैं या अनुसन्धान विकास केन्द्र हैं।
वितरण – इलेक्ट्रॉनिक उद्योग के अन्तर्गत टेलीफोन, सैल्यूलर फोन, कम्प्यूटर, अन्तरिक्ष विज्ञान, मौसम विज्ञान के उपकरण, हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर आदि व्यापक रूप से तैयार किये जाते हैं। बंगलौर इलेक्ट्रॉनिक उद्योग की राजधानी है। हैदराबाद, दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता, कानपुर, लखनऊ तथा कोयम्बटूर आदि 18 केन्द्रों में प्रौद्योगिकी पार्क विकसित किए गए हैं।
प्रश्न 12.
निम्नलिखित उद्योगों पर संक्षिप्त टिप्पणियां लिखें-
(i) पेट्रो रसायन उद्योग
(ii) पालिमर्स उद्योग
(iii) कृत्रिम रेशे उद्योग।
उत्तर:
(i) पेट्रो – रसायन उद्योग (Petrochemicals ):
इस उद्योग में विविध प्रकार के उत्पाद शामिल हैं। पेट्रोलियम परिष्करण उद्योग का विस्तार बड़ी तेज़ी से हुआ है। कच्चे (क्रूड) पेट्रोलियम से अनेक वस्तुएं प्राप्त की जाती हैं, जिनका अनेक नए उद्योगों में कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है। इन सभी को सम्मिलित रूप में पेट्रो- रसायन उद्योग कहा जाता है। मुम्बई पेट्रो-कैमिकल उद्योगों का केन्द्र है। विभिन्न कारखाने इन स्थानों पर लगाए गये हैं – औरैया (उत्तर प्रदेश), जामनगर, गांधार, हजीरा (गुजरात), नागोथाने, रत्नागिरी (महाराष्ट्र), हल्दिया (प० बंगाल) और विशाखापट्टनम (आन्ध्र प्रदेश )। रसायन एवं पेट्रो रसायन विभाग के प्रशासनिक नियन्त्रण में पेट्रो रसायन क्षेत्र के तीन संगठन कार्य कर रहे हैं।
(1) सार्वजनिक क्षेत्र का प्रतिष्ठावान इण्डियन पेट्रो-केमिकल कॉरपोरेशन लिमिटेड का कार्य कर रहा है।
(2) दूसरा है पेट्रोफिल्स कोआपरेटिव लिमिटेड।
(3) तीसरा है- सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लास्टिक इंजीनियरिंग एण्ड टैक्नोलॉजी।
(ii) पालिमर्स (Polymers) – पालिमर्स का निर्माण एथलीन और प्रोपीलीन से होता है। ये पदार्थ कच्चे तेल के परिष्करण की प्रक्रिया के दौरान प्राप्त होते हैं। प्लास्टिक उद्योग में पालिमर्स को कच्चे माल के रूप में उपयोग करते हैं। पालिमर्स में पालिथिलीन व्यापक रूप में प्रयोग किया जाने वाला थर्मोप्लास्टिक है। प्लास्टिक को सबसे पहले चादरों, चूर्ण, रेजिन और गोलियों या गुटिकाओं में बदला जाता है। इसके बाद ही इसका उपयोग प्लास्टिक उत्पादों के निर्माण के लिए किया जाता है।
प्लास्टिक उत्पादों को उनकी मज़बूती, लचीलेपन, जल और रासायनिक प्रतिरोध और कम कीमत के कारण पसन्द किया जाता है। सन् 1961 में मफतलाल कम्पनी द्वारा स्थापित नेशनल आर्गेनिक केमिकल इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने मुम्बई में पहला नैप्था आधारित रसायन उद्योग स्थापित किया था। मुम्बई, बरौनी, मैटूर, पिंपरी और रिसरा, प्लास्टिक पदार्थों के प्रमुख उत्पादक हैं। सन् 2000-01 में पालिमर्स का उत्पादन 34.41 लाख टन था। देश में लगभग 19,000 छोटे बड़े कारखाने हैं, जो लगभग 35 लाख टन वर्जित पालिमर्स का कच्चे माल के रूप में उपयोग करते हैं।
(iii) कृत्रिम रेशे (Synthetic fibres ) – कृत्रिम रेशे मज़बूत, टिकाऊ, प्रक्षालन योग्य तथा सिकुड़न प्रतिरोधी होते हैं। इसीलिए वस्त्र उत्पादन में इनका व्यापक उपयोग किया जाता है । ये वस्त्र गांवों और शहरों दोनों में ही समान रूप से लोकप्रिय हैं। नायलॉन और पालिएस्टर के धागे बनाने के कारखाने कोटा, पिंपरी, मुम्बई, मोदीनगर, पुणे, उज्जैन, नागपुर और उधना में लगाए गए हैं। एक्रिलिक स्टेपल रेशे कोटा और वडोदरा में बनाए जाते हैं। पोलीएस्टर स्टेपल रेशों के उत्पादन के लिए कारखाने ठाणे, गाजियाबाद, मनाली, कोटा और वडोदरा में लगाए गए हैं। कृत्रिम रेशों का उत्पादन 2000-01 में 15.67 लाख टन था।
प्रश्न 13.
हुगली औद्योगिक प्रदेश के विकास में सहायक किन्हीं तीन कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
- हुगली नदी पर कोलकाता पत्तन के निकट स्थित होने के कारण यह क्षेत्र देश का अग्रणी औद्योगिक क्षेत्र बना।
- यह क्षेत्र जलमार्ग, सड़क मार्ग तथा रेलमार्ग द्वारा पृष्ठभूमि से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है
- चाय बागानों का इस क्षेत्र के विकास में योगदान है। असम और पश्चिमी बंगाल की उत्तरी पहाड़ियों में चाय के बागान विकसित हैं। पटसन की कृषि भी सहायक है।
- दामोदर घाटी के कोयला क्षेत्रों तथा छोटा नागपुर पठार के लौह-अयस्क के निक्षेप हुगली प्रदेश के निकट स्थित हैं।
प्रश्न 14.
भारत में चीनी मिलें गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में क्यों संकेन्द्रित हैं ? किन्हीं पांच कारणों से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश तथा तमिलनाडु देश में गन्ना उत्पन्न करने वाले प्रमुख राज्य हैं। इन राज्यों में अधिकतर चीनी मिलें केन्द्रित हैं। इसके कारण हैं-
- गन्ना एक भार ह्रास वाली फ़सल है। इसलिए चीनी मिलें गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में उगाई जाती हैं
- गन्ने का प्रयोग काटने के तुरन्त पश्चात् ही कर लेना चाहिए वरना गन्ने में सुक्रोज़ की मात्रा घट जाती है।
- गन्ने को काटने के पश्चात् 24 घण्टों के अन्दर ही पेरा जाना चाहिए तो अधिक चीनी की मात्रा प्राप्त होती है।
- परिवहन लागत भी कम हो जाती है यदि दूरी कम हो।
- चीनी मिलें उन क्षेत्रों में लगाई जाती हैं जहां गन्ने में सुक्रोज मात्रा अधिक हो।
प्रश्न 15.
‘गुजरात औद्योगिक प्रदेश’ की किन्हीं पांच विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गुजरात औद्योगिक प्रदेश – यह प्रदेश भारत का तीसरा प्रमुख औद्योगिक प्रदेश हैं तथा देश के आन्तरिक भाग में स्थित है। इस प्रदेश के विकास के निम्नलिखित कारण हैं-
- यह क्षेत्र कपास उत्पन्न करने वाले प्रदेश के बीच स्थित है
- यहां गंगा सतलुज के मैदान सूती कपड़ा के मांग क्षेत्र के निकट हैं
- यहां सस्ते मूल्य पर कुशल श्रमिक प्राप्त हो जाते हैं।
- यहां मुम्बई तथा कांडला बन्दरगाहों से आयात-निर्यात की सुविधा है।
- खम्बात क्षेत्र में अंकलेश्वर में खनिज तेल की खोज ने कई पेट्रो रसायन उद्योगों को जन्म दिया है
- अधिकतर सूती वस्त्र उद्योग अहमदाबाद में है जिसे ‘भारत का मानचेस्टर’ भी कहते हैं।
निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions )
प्रश्न 1.
उद्योगों का स्थानीयकरण किन तत्त्वों पर निर्भर करता है ? उदाहरण सहित व्याख्या करो।
उत्तर:
किसी स्थान पर उद्योगों की स्थापना के लिए कुछ भौगोलिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक तत्त्वों का होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए कच्चा माल, शक्ति के साधन, श्रम, पूंजी और बाज़ार उद्योगों के महत्त्वपूर्ण निर्धारक हैं। इन्हें उद्योगों के आधारभूत कारक भी कहते हैं। ये सभी कारक मिल-जुल कर प्रभाव डालते हैं। प्रत्येक कारक का महत्त्व समय, स्थान और उद्योगों के अनुसार बदलता रहता है। इन अनुकूल तत्त्वों के कारण किसी स्थान पर अनेक उद्योग स्थापित हो जाते हैं। यह क्षेत्र स्थानीयकरण के कारकों को दो वर्गों में
एक औद्योगिक क्षेत्र (Industrial Region) बन जाता है। उद्योगों के बांटा जाता है –
(i) भौगोलिक कारक
(ii) ग़ैर- भौगोलिक कारक।
भौगोलिक कारक (Geographical Factors)
1. कच्चे माल की निकटता (Nearness of Raw Material) – उद्योग कच्चे माल के स्रोत के निकट ही स्थापित किए जाते हैं। कच्चा माल उद्योगों की आत्मा है। उद्योग वहीं पर स्थापित किए जाते हैं, जहां कच्चा माल अधिक मात्रा में कम लागत पर आसानी से उपलब्ध हो सके। इसलिए लोहे और चीनी के कारखाने कच्चे माल की प्राप्ति- स्थान के निकट लगाए जाते हैं। शीघ्र खराब होने वाली वस्तुएं जैसे डेयरी उद्योग भी उत्पादक केन्द्रों के निकट लगाए जाते हैं।
भारी कच्चे माल के उद्योग उन वस्तुओं के मिलने के स्थान के निकट ही लगाए जाते हैं। इस्पात उद्योग कोयला तथा लोहा खानों के निकट स्थित हैं। कागज की लुगदी के कारखाने तथा आरा मिलें कोणधारी वन प्रदेशों में स्थित हैं। उदाहरण – कच्चे माल की प्राप्ति के कारण ही चीनी उद्योग उत्तर प्रदेश में, पटसन उद्योग पश्चिमी बंगाल में, सूती वस्त्र उद्योग महाराष्ट्र में तथा लोहा इस्पात उद्योग झारखण्ड, उड़ीसा में लगे हुए हैं।
2. शक्ति के साधन (Power Resources ) – कोयला, पेट्रोलियम तथा जल-विद्युत् शक्ति के प्रमुख साधन हैं। भारी उद्योगों में शक्ति के साधनों का अधिक मात्रा में प्रयोग किया जाता है। इसलिए अधिकतर उद्योग उन स्थानों पर लगाए जाते हैं जहां कोयले की खानें समीप हों या पेट्रोलियम अथवा जल-विद्युत् उपलब्ध हो। भारत में दामोदर घाटी, कोयले के कारण ही प्रमुख औद्योगिक केन्द्र हैं।
खाद व रासायनिक उद्योग, एल्यूमीनियम उद्योग, कागज़ उद्योग, जल-विद्युत् शक्ति केन्द्रों के निकट लगाए जाते हैं, क्योंकि इनमें अधिक मात्रा में सस्ती बिजली की आवश्यकता होती है। उदाहरण – भारत में इस्पात उद्योग झरिया तथा रानीगंज की कोयला खानों के समीप स्थित हैं। पंजाब में भाखड़ा योजना से जल-विद्युत् प्राप्ति के कारण खाद का कारखाना नंगल में स्थित है। एल्यूमीनियम उद्योग एक ऊर्जा – गहन (Energy intensive) उद्योग है जो रेनूकूट में (उत्तर प्रदेश) विद्युत् शक्ति उपलब्धता के कारण स्थापित है।
3. यातायात के साधन (Means of Transport ) – उन स्थानों पर उद्योग लगाए जाते हैं जहां सस्ते, उत्तम, कुशल और शीघ्रगामी यातायात के साधन उपलब्ध हों। कच्चा माल, श्रमिक तथा मशीनों को कारखानों तक पहुंचाने के लिए सस्ते साधन चाहिएं। तैयार किए हुए माल को कम खर्च पर बाज़ार तक पहुंचाने के लिए उत्तम परिवहन साधन बहुत सहायक होते हैं। उदाहरण – जल यातायात सबसे सस्ता साधन है। इसलिए अधिक उद्योग कोलकाता, चेन्नई आदि बन्दरगाहों के स्थान पर हैं जो अपनी पृष्ठ भूमि (Hinterland) से रेल मार्ग तथा सड़क मार्गों द्वारा जुड़ी हुई हैं। दिल्ली परिवहन का एक केन्द्र बिन्दु है तथा उद्योग अधिक हैं।
4. कुशल श्रमिक (Skilled Labour ) – कुशल श्रमिक अधिक और अच्छा काम कर सकते हैं, जिससे उत्तम तथा सस्ता माल बनता है। किसी स्थान पर लम्बे समय से एक ही उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों के कारण औद्योगिक केन्द्र बन जाते हैं । आधुनिक मिल उद्योग में अधिक कार्य मशीनों द्वारा होता है, इसलिए कम श्रमिकों की आवश्यकता होती है। कुछ उद्योगों में अत्यन्त कुशल तथा कुछ उद्योगों में अर्द्ध- कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है। श्रम प्रधान उद्योग (Labour intensive) उद्योग कुशल तथा सस्ते श्रम क्षेत्रों की ओर आकर्षित होते हैं। उदाहरण – मेरठ और जालन्धर में खेलों का सामान बनाने, लुधियाना में हौज़री उद्योग तथा वाराणसी में जरी उद्योग, मुरादाबाद में पीतल के बर्तन बनाने तथा फिरोजाबाद में चूड़ी बनाने का उद्योग कुशल श्रमिकों के कारण ही हैं।
5. जल की पूर्ति (Water Supply) – कई उद्योगों में प्रयोग के लिए जल की विशाल राशि की आवश्यकता होती है; जैसे लोहा – इस्पात उद्योग, खाद्य संसाधन कागज़ उद्योग, रसायन तथा पटसन उद्योग, इसलिए ये उद्योग झीलों, नदियों तथा तालाबों के निकट लगाए जाते हैं। उदाहरण – जमशेदपुर में लोहा – इस्पात उद्योग खोरकाई तथा स्वर्ण रेखा नदियों के संगम पर स्थित हैं।
6. जलवायु (Climate ) – कुछ उद्योगों में जलवायु का मुख्य स्थान होता है। उत्तम जलवायु मनुष्य की कार्य- कुशलता पर भी प्रभाव डालती है। सूती कपड़े के उद्योग के लिए आर्द्र जलवायु अनुकूल होती है। इस जलवायु बार-बार नहीं टूटता। वायुयान उद्योग के लिए शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। उदाहरण – मुम्बई में सूती कपड़ा उद्योग आर्द्र जलवायु के कारण तथा बंगलौर में वायुयान उद्योग (Aircraft) शुष्क जलवायु के कारण स्थित हैं।
7. बाज़ार से निकटता (Nearness to Market ) – मांग क्षेत्रों का उद्योग के निकट होना आवश्यक है। इससे कम खर्च पर तैयार माल बाज़ारों में भेजा जाता है। माल की खपत जल्दी हो जाती है तथा लाभ प्राप्त होता है। शीघ्र खराब होने वाली वस्तुओं के उद्योग जैसे डेयरी उद्योग, खाद्य उद्योग बड़े नगरों के निकट लगाए जाते हैं।
यहां अधिक जनसंख्या के कारण लोगों की माल खरीदने की शक्ति अधिक होती है। एशिया के देशों में अधिक जनसंख्या है, परन्तु निर्धन लोगों के कारण ऊँचे मूल्य वाली वस्तुओं की मांग कम है। यही कारण है कि विकासशील देशों में निर्माण उद्योगों की कमी है। छोटे-छोटे पुर्जे तैयार करने वाले उद्योग बड़े कारखानों के निकट लगाए जाते हैं, जहां इन पुर्जों का प्रयोग होता है।
8. सस्ती व समतल भूमि ( Cheap and Level Land ) – भारी उद्योगों के लिए समतल मैदानी भूमि की बहुत आवश्यकता होती है। इसी कारण से जमशेदपुर का इस्पात उद्योग दामोदर नदी घाटी के मैदानी क्षेत्र में स्थित है।
ग़ैर-भौगोलिक कारक (Non-Geographical Factors)
1. पूंजी की सुविधा (Capital) – उद्योग उन स्थानों पर लगाए जाते हैं जहां पूंजी पर्याप्त मात्रा में ठीक समय पर तथा उचित दर पर मिल सके। निर्माण उद्योग को बड़े पैमाने पर चलाने के लिए अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों में पूंजी लगाने के कारण उद्योगों का विकास हुआ है। राजनीतिक स्थिरता और बिना डर के पूंजी विनियोग उद्योगों के विकास में सहायक है। उदाहरण – दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता आदि नगरों में बड़े-बड़े पूंजीपतियों और बैंकों की सुविधा के कारण ही औद्योगिक विकास हुआ है।
2. पूर्व आरम्भ (Early Start ) – जिस स्थान पर कोई उद्योग पहले से ही स्थापित हों, उसी स्थान पर उस उद्योग के अनेक कारखाने स्थापित हो जाते हैं । मुम्बई में सूती कपड़े के उद्योग तथा कोलकाता में जूट उद्योग इसी कारण से केन्द्रित हैं। किसी स्थान पर अचानक किसी ऐतिहासिक घटना के कारण सफल उद्योग स्थापित हो जाते हैं । अलीगढ़ में ताला उद्योग इसका उदाहरण है।
3. सरकारी नीति (Government Policy) – सरकार के संरक्षण में कई उद्योग विकास कर जाते हैं, जैसे देश में चीनी उद्योग सन् 1932 के पश्चात् संरक्षण से ही उन्नत हुआ है। सरकारी सहायता से कई उद्योगों को बहुत-सी सुविधाएं प्राप्त हो जाती हैं। सरकार द्वारा लगाए टैक्सों से भी उद्योग पर प्रभाव पड़ता है। मथुरा में तेल शोधनशाला, कपूरथला में रेल कोच फैक्टरी तथा जगदीशपुर में उर्वरक कारखाना सरकारी नीति के अधीन लगाए गए हैं। भिलाई तथा राउरकेला इस्पात कारखाना जनजातीय विकास के कारण स्थित है।
4. अन्य कारक (Other Factors) – कई उद्योग सुविधाओं के कारण लग जाते हैं; जैसे बैंकिंग सुविधा बीमे की सुविधा, राजनीतिक स्थिरता, सुरक्षा आदि।
प्रश्न 2.
भारतीय लोहे तथा इस्पात उद्योग का विवरण दो। भारत में लगाए गए नए कारखानों का वर्णन करो।
उत्तर:
वर्तमान युग को “इस्पात युग” (Steel Age) कहा जाता है। लोहा इस्पात उद्योगों से ही सभी मशीनें, परिवहन के साधन तथा इंजीनियरिंग का सामान तैयार किया जाता है। भारत में लोहा इस्पात उद्योग बहुत पुराना है। भारत में इस्पात उद्योग के लिए अनुकूल साधन मौजूद हैं। पर्याप्त मात्रा में उत्तम लोहा, कोयला, मैंगनीज़, चूने का पत्थर मिलता है। भारत में संसार का सबसे सस्ता इस्पात बनता है इस्पात – भारत में लोहा – इस्पात उद्योग में आधुनिक ढंग का पहला कारखाना सन् 1907 में साकची जमशेदपुर (बिहार) में जमशेद जी टाटा द्वारा लगाया गया जो अब झारखण्ड राज्य में है।
निजी क्षेत्र के प्रमुख इस्पात केन्द्र-
I. जमशेदपुर में (TISCO) टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी।
स्थिति के भौगोलिक कारण (Geographical Factors for Location)
1. कच्चा लोहा – सिंहभूमि ज़िले में कच्चा लोहा निकट ही से प्राप्त हो जाता है। उड़ीसा की मयूरभंज खानों से 75 कि० मी० दूरी से कच्चा लोहा मिलता है।
2. कोयला – कोक कोयले (Coking Coal) के क्षेत्र झरिया तथा रानीगंज के निकट ही हैं।
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3. अन्य खनिज पदार्थ – चूने का पत्थर गंगपुर से, मैगनीज़ बिहार से तथा क्वार्टज़ मिट्टी कालीमती स्थान से आसानी से प्राप्त हो जाती है।
4. नदियों की सुविधा – रेत तथा जल कई नदियों से जैसे दामोदर, स्वर्ण रेखा, खोरकाई से प्राप्त हो जाते हैं 5. सस्ते व कुशल श्रमिक – बिहार, बंगाल राज्य के घनी जनसंख्या वाले प्रदेशों में सस्ते व कुशल श्रमिक आसानी से मिलते हैं।
6. बन्दरगाहों की सुविधा – कोलकाता बन्दरगाह निकट है तथा आयात व निर्यात की आसानी है।
7. यातायात के साधन – रेल, सड़क व जलमार्गों के यातायात के सुगम व सस्ते साधन प्राप्त हैं।
8. खपत – इस प्रदेश में अनेक उद्योगों के कारण लोहा-इस्पात की खपत भी अधिक है।
9. समतल भूमि – नदी घाटियों में समतल व सस्ती भूमि प्राप्त है, जहां कारखाने लगाए जा सकते हैं।
II. बर्नपुर में इण्डियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (IISCO ) – पश्चिमी बंगाल में यह निजी क्षेत्र से इस्पात कारखाना स्थित है। यह कारखाना सन् 1972 से केन्द्र द्वारा नियन्त्रित है। यहां निम्नलिखित सुविधाएं प्राप्त हैं-
(1) रानीगंज तथा झरिया से 137 कि० मी० की दूरी पर कोयला प्राप्त होता है।
( 2 ) लोहा झारखण्ड में सिंहभूम क्षेत्र से।
(3) चूने का पत्थर उड़ीसा से, गंगपुर क्षेत्र से
(4) जल दामोदर नदी से प्राप्त हो जाता है।
(5) कोलकाता बन्दरगाह से आयात-निर्यात तथा व्यापार की सुविधाएं प्राप्त हैं।
III. विश्वेश्वरैया (Vishvesveraya) आयरन एण्ड स्टील लिमिटेड ( VISL) – यह कारखाना कर्नाटक राज्य में भद्रा नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित भद्रावती स्थान पर सन् 1923 में लगाया गया।
सुविधाएं (Factors ) –
- हैमेटाइट लोहा बाबा बूदन पहाड़ियों से
- लकड़ी का कोयला (Charcoal) कादूर के वनों से
- जल विद्युत् जोग जल प्रपात तथा शिव समुद्रम् प्रपात से।
- चूने का पत्थर भंडी गुड्डा से प्राप्त होता है।
- शिमोगा से मैंगनीज़ प्राप्त होता है।
सार्वजनिक क्षेत्र से लोहा इस्पात केन्द्र – देश में इस्पात उद्योग में वृद्धि करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड (HSL) कम्पनी की स्थापना की गई। इसके अधीन विदेशी सहायता से चार इस्पात कारखाने लगाए गए हैं –
I. भिलाई – यह कारखाना छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में भिलाई स्थान पर रूस की सहायता से लगाया गया है।
- यहां लोहा 97 कि० मी० दूरी से धाली – राजहारा पहाड़ी से प्राप्त होता है।
- कोयला कोरबा तथा झरिया खानों से मिलता है।
- मैंगनीज़ बालाघाट क्षेत्र से तथा चूने का पत्थर नंदिनी खानों से प्राप्त होता है।
- तांदुला तालाब से जल प्राप्त होता है।
- यह नगर कोलकाता – नागपुर रेलमार्ग पर स्थित है। इस कारखाने की उत्पादन क्षमता को 25 लाख टन से बढ़ाकर 40 लाख टन किया जा रहा है।
II. दुर्गापुर – यह इस्पात कारखाना पश्चिमी बंगाल में इंग्लैण्ड की सहायता से लगाया गया है।
- यहां लोहा सिंहभूम क्षेत्र से प्राप्त होता है।
- कोयला रानीगंज क्षेत्र से प्राप्त होता है।
- गंगपुर क्षेत्र में डोलोमाइट व चूने का पत्थर मिलता है।
- दामोदर नदी से जल तथा विद्युत् प्राप्त होती है।
इस कारखाने की उत्पादन क्षमता को 16 लाख टन से बढ़ाकर 24 लाख टन किया जा रहा है।
III. राऊरकेला – यह कारखाना उड़ीसा में जर्मनी की फ़र्म क्रुप एण्ड डीमग की सहायता से लगाया गया –
- यहां लोहा उड़ीसा के बोनाई क्षेत्र से प्राप्त होता है।
- कोयला झरिया तथा रानीगंज से प्राप्त होता है।
- चूने का पत्थर पुरनापानी तथा मैंगनीज़ ब्राजमदा क्षेत्र से प्राप्त होता है।
- हीराकुड बांध से जल तथा जल विद्युत् मिल जाती है।
इस कारखाने की उत्पादन क्षमता को 18 लाख टन से बढ़ा कर 28 लाख टन करने की योजना है।
IV. बोकारो – यह कारखाना झारखण्ड में बोकारो नामक स्थान पर रूस की सहायता से लगाया गया है।
- इस केन्द्र की स्थिति कच्चे माल के स्रोतों के मध्य में है। यहां बोकारो, झरिया से कोयला, उड़ीसा के क्योंझर क्षेत्र से लोहा प्राप्त होता है।
- जल विद्युत् हीराकुड तथा दामोदर योजना से।
- जल बोकारो तथा दामोदर नदियों से।
इस कारखाने की उत्पादन क्षमता को 25 लाख टन से बढ़ा कर 40 लाख टन किया जा रहा है।
सातवीं पंचवर्षीय योजना के नए कारखाने – सातवीं पंचवर्षीय योजना में तीन नए कारखाने लगाए जाने की योजना बनाई गई है।
- आन्ध्र में विशाखापट्टनम।
- तमिलनाडु में सेलम।
- कर्नाटक में होस्पेट के निकट विजय नगर।
उत्पादन – देश में उत्पादन बढ़ जाने के कारण कुछ ही वर्षों में भारत संसार के प्रमुख इस्पात देशों में स्थान प्राप्त कर लेगा। 2009 में देश में तैयार इस्पात का उत्पादन 597 लाख टन था। यन्त्रों आदि के लिए स्पैशल इस्पात का उत्पादन 5 लाख टन था। भारत में इस्पात की प्रति व्यक्ति खपत केवल 32 किलोग्राम है जबकि अमेरिका में 500 किलोग्राम है। भारत से प्रतिवर्ष 20 लाख टन लोहा तथा इस्पात विदेशों को निर्यात किया जाता है, जिसका मूल्य 2000 करोड़ ₹ है।
भविष्य – 24 जनवरी, 1973 को स्टील अथारिटी ऑफ इण्डिया (SAIL) की स्थापना की गई है। यह संगठन लोहा-इस्पात, उत्पादन व निर्यात का कार्य सम्भालेगा। विभिन्न कारखानों की क्षमता को बढ़ाकर उत्पादन 1000 लाख टन तक ले जाने का लक्ष्य है । देश में इस्पात बनाने के लिए छोटे-छोटे कारखाने (Mini Steel Plants) लगाकर उत्पादन बढ़ाया जाएगा।
प्रश्न 3.
भारत में सूती कपड़ा उद्योग का विवरण दो। यह उद्योग किन कारणों से मुम्बई तथा अहमदाबाद में केन्द्रित है ?
उत्तर:
सूती कपड़ा उद्योग भारत का प्राचीन उद्योग है। ढाका की मलमल दूर-दूर के देशों में प्रसिद्ध थी। यह उद्योग घरेलू उद्योग के रूप में उन्नत था, परन्तु अंग्रेज़ी सरकार ने इस उद्योग को समाप्त करके भारत को इंग्लैण्ड से बने कपड़े की एक मण्डी बना दिया। भारत में पहली आधुनिक कपड़ा मिल सन् 1818 में कलकत्ता (कोलकाता) में स्थापित की गई।
महत्त्व (Importance ) –
- यह उद्योग भारत का सबसे बड़ा तथा प्राचीन उद्योग है।
- इसमें 10 लाख मज़दूर काम करते हैं। (3) सब उद्योगों में से अधिक पूंजी इसमें लगी हुई है।
- इस उद्योग के माल के निर्यात से 57000 करोड़ की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
- इस उद्योग पर रंगाई, धुलाई, रासायनिक उद्योग निर्भर करते हैं। इस उद्योग में 50 लाख ₹ के रासायनिक पदार्थ प्रयोग होते हैं।
सूती कपड़ा उद्योग का स्थानीयकरण (Location) –
भारत में इस उद्योग की स्थापना के लिए निम्नलिखित अनुकूल सुविधाएं हैं-
- अधिक मात्रा में कपास।
- उचित मशीनें।
- मांग का अधिक होना।
उत्पादन (Production ) – देश में 2009 में 1824 कपड़ा मिलें थीं। इन कारखानों में 200 लाख तकले तथा 2 लाख करघे हैं। इन मिलों में लगभग 200 करोड़ किलोग्राम सूत तथा 3000 करोड़ मीटर कपड़ा तैयार किया जाता है।
वितरण (Distribution ) – सूती कपड़े के कारखाने सभी प्रान्तों में हैं। लगभग 80 नगरों में सूती मिलें फैली हुई हैं। इन प्रदेशों में सूती कपड़ा उद्योग की उन्नति निम्नलिखित कारणों से है-
1. महाराष्ट्र – यह राज्य सूती कपड़ा उद्योग में सबसे आगे है। यहां 119 मिलें हैं। मुम्बई आरम्भ से ही सूती वस्त्र उद्योग का प्रमुख केन्द्र है । इसलिए इसे सूती वस्त्रों की राजधानी (Cotton-Polis of India) कहते है। मुम्बई के अतिरिक्त नागपुर, पुणे, शोलापुर, अमरावती प्रसिद्ध केन्द्र हैं ।
मुम्बई नगर में सूती कपड़ा उद्योग की उन्नति के निम्नलिखित कारण हैं-
- पूर्व आरम्भ – भारत की सबसे पहली आधुनिक मिल मुम्बई में ही खोली गई।
- पूंजी – मुम्बई के व्यापारियों ने कपड़ा मिलें खोलने में बहुत धन लगाया।
- कपास – आस-पास के खानदेश तथा बरार प्रदेश की काली मिट्टी के क्षेत्र में उत्तम कपास मिल जाती है।
- उत्तम बन्दरगाह – मुम्बई एक उत्तम बन्दरगाह है, जहां मशीनरी तथा कपास आयात करने तथा कपड़ा निर्यात करने की सुविधा है।
- नम जलवायु – सागर से निकटता तथा नम जलवायु इस उद्योग के लिए आदर्श है।
- सस्ते श्रमिक – घनी जनसंख्या के कारण सस्ते श्रमिक प्राप्त हो जाते हैं।
- जल विद्युत् – कारखानों के लिए सस्ती बिजली टाटा विद्युत् केन्द्र से प्राप्त होती है।
- यातायात – मुम्बई रेलों व सड़कों द्वारा देश के भीतरी भागों से मिला हुआ है।
- जल प्राप्ति – कपड़े की धुलाई, रंगाई के लिए पर्याप्त जल मिल जाता है।
2. गुजरात – गुजरात राज्य का इस उद्योग में दूसरा स्थान है। अहमदाबाद प्रमुख केन्द्र है, जहां 75 मिलें हैं। अहमदाबाद को भारत का मानचेस्टर (Manchester of India) कहते हैं। इसके अतिरिक्त सूरत, बड़ौदा, राजकोट प्रसिद्ध केन्द्र हैं। यहां सस्ती भूमि व उत्तम कपास के कारण उद्योग का विकास हुआ है।
3. तमिलनाडु – इस राज्य में पन- बिजली के विकास तथा लम्बे रेशे के कपास की प्राप्ति के कारण यह उद्योग बहुत उन्नत है। मुख्य केन्द्र मदुराई, कोयम्बटूर, सेलम, चेन्नई हैं।
4. पश्चिमी बंगाल – इस राज्य में अधिकतर मिलें हुगली क्षेत्र में हैं। यहां रानीगंज से कोयला, समुद्री आर्द्र जलवायु, सस्ते मज़दूर व अधिक मांग के कारण यह उद्योग स्थित है ।
5. उत्तर प्रदेश – यहां अधिकतर (14) मिलें कानपुर में स्थित हैं। कानपुर को उत्तरी भारत का मानचेस्टर कहते हैं। यह कपास उत्पन्न करने वाला राज्य है। यहां घनी जनसंख्या के कारण सस्ते मज़दूर हैं व सस्ते कपड़े की मांग अधिक है। इसके अतिरिक्त आगरा, मोदीनगर, बरेली, वाराणसी, सहारनपुर प्रमुख केन्द्र हैं।
6. मध्य प्रदेश में इन्दौर, ग्वालियर, उज्जैन, भोपाल।
7. आन्ध्र प्रदेश में हैदराबाद तथा वारंगल।
8. कर्नाटक में मैसूर तथा बंगलौर।
9. पंजाब में अमृतसर, फगवाड़ा, अबोहर, लुधियाना।
(x) हरियाणा में भिवानी।
(xi) अन्य नगर देहली, पटना, कोटा, जयपुर, कोचीन।
प्रश्न 4.
भारत में चीनी उद्योग के महत्त्व, उत्पादन तथा प्रमुख केन्द्रों का वर्णन करो।
अथवा
भारत में चीनी उद्योग के उत्पादन एवं वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चीनी उद्योग (Sugar Industry ) – चीनी उद्योग भारत का प्राचीन उद्योग है। सन् 1932 में सरकार ने विदेशों से आने वाली चीनी पर कर लगा दिया। इस प्रकार बाहर से आने वाली चीनी महंगी हो गई तथा देश में चीनी उद्योग का विकास शुरू हुआ।
महत्त्व – देश की अर्थव्यवस्था में चीनी उद्योग का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
- चीनी उद्योग भारत का दूसरा बड़ा उद्योग है जिसमें 1 अरब से अधिक पूंजी लगी हुई है।
- देश की 506 मिलों में 4 लाख मज़दूर काम करते हैं।
- इस उद्योग में देश के 2 करोड़ कृषकों को लाभ होता है।
- भारत विश्व की 10% चीनी उत्पन्न करता है और चौथे स्थान पर है।
- इस उद्योग के बचे-खुचे पदार्थों पर अल्कोहल, खाद, मोम, कागज़ उद्योग निर्भर करते हैं।
उत्पादन – यह उद्योग कृषि पर आधारित (Agro based) है। इसलिए यह उद्योग गन्ना उत्पन्न करने वाले क्षेत्रों में स्थित है। भारत में चीनी मिलों की संख्या 504 है जिनमें चीनी का उत्पादन लगभग 150 लाख टन है, जो विश्व में सबसे अधिक है। अधिकतर कारखाने उत्तर प्रदेश तथा बिहार राज्य में हैं।
उत्तरी भारत में सुविधाएं –
- भारत का 50% गन्ना उत्तर प्रदेश में उत्पन्न होता है।
- अधिक जनसंख्या के कारण खपत अधिक है तथा सस्ते श्रमिक प्राप्त हैं।
- सस्ती जल-विद्युत् तथा बिहार से कोयला मिल जाता है।
- यातायात के उत्तम साधन हैं।
कठिनाइयां (Problems ) – भारत में चीनी उद्योग को कई कठिनाइयां हैं। भारत में गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज कम है। गन्ने में रस की मात्रा कम है। गन्ना प्राप्त न होने के कारण मिलें वर्ष में कुछ महीने बन्द रहती हैं। गन्ने की कीमतें ऊंची हैं। चीनी उद्योग के बचे-खुचे पदार्थों (By- Products) का ठीक उपयोग नहीं होता । इन कारणों से चीनी पर लागत अधिक है।
भविष्य (Future ) – चीनी उद्योग गन्ने की अनुकूल उपज दशाओं के कारण दक्षिणी भारत में बढ़ रहा है। दक्षिणी भारत में कोयम्बटूर में गन्ना अनुसन्धान केन्द्र है। यहां गन्ने में रस की मात्रा तथा प्रति एकड़ उत्पादन भी अधिक है। चीनी उद्योग का वितरण – भारत में चीनी उद्योग गन्ना उत्पन्न करने वाले क्षेत्रों में स्थित है। गन्ना एक भारी कच्चा माल है। इसलिए यह उद्योग कच्चे माल के स्रोत के समीप ही चलाया जाता है। भारत में 2/3 कारखाने उत्तर प्रदेश तथा बिहार राज्यों में हैं जो भारत की 60% चीनी उत्पन्न करते हैं ।
1. उत्तर प्रदेश – भारत में उत्तर प्रदेश चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। गन्ना उत्पादन में भी यह प्रदेश प्रथम स्थान पर है। यहां चीनी मिलें दो क्षेत्रों में पाई जाती हैं-
(क) तराई क्षेत्र – गोरखपुर, बस्ती, सीतापुर, फैज़ाबाद
(ख) दोआब क्षेत्र – सहारनपुर, मेरठ, मुज़फ्फरनगर
उत्तरी भारत में सुविधाएं –
- भारत का 50% गन्ना उत्तर प्रदेश में उत्पन्न होता है।
- अधिक जनसंख्या के कारण खपत अधिक है तथा सस्ते श्रमिक प्राप्त हैं।
- सस्ती जल विद्युत् तथा बिहार से कोयला मिल जाता है।
- यातायात के उत्तम साधन हैं।
- जल के पर्याप्त साधन उपलब्ध हैं।
2. महाराष्ट्र – महाराष्ट्र भारत का चीनी का दूसरा बड़ा उत्पादक राज्य है। प्रमुख केन्द्र कोल्हापुर, पुणे, शोलापुर हैं।
3. आन्ध्र प्रदेश – यहां गन्ने का अधिक उत्पादन होता है। प्रमुख मिलें विशाखापट्टनम, हैदराबाद, विजयवाड़ा, हास्पेट, पीठापुरम में हैं।
4. अन्य केन्द्र –
- कर्नाटक में – बेलगांव, रामपुर, पाण्डुपुर।
- बिहार में – चम्पारण, सारण, मुज़फ्फरपुर, दरभंगा, पटना।
- तमिलनाडु में – कोयम्बटूर, तिरुचिरापल्ली, रामनाथपुरम।
- पंजाब में – नवांशहर, भोगपुर, फगवाड़ा, धूरी, अमृतसर।
- हरियाणा में – यमुनानगर, पानीपत, रोहतक।
- राजस्थान में – चित्तौड़गढ़, उदयपुर।
- गुजरात में – अहमदाबाद, भावनगर।
- उड़ीसा में – गंजम
चीनी उद्योग की कठिनाइयां (Problems ) – भारत में चीनी उद्योग को कई कठिनाइयां हैं। भारत में गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज कम है। गन्ने में रस की मात्रा कम है। गन्ना प्राप्त न होने के कारण मिलें वर्ष में कुछ महीने बन्द रहती हैं। गन्ने की कीमतें ऊंची हैं। चीनी उद्योग के बचे-खुचे पदार्थों (By-Produces) का ठीक उपयोग नहीं होता। इन कारणों से चीनी पर लागत अधिक है।
भविष्य – पिछले कुछ वर्षों से चीनी उद्योग दक्षिणी भारत की ओर स्थानान्तरित कर रहा है। कोयम्बटूर में गन्ना खोज केन्द्र भी स्थापित किया गया है। दक्षिणी भारत में गन्ना अधिक मोटा होता है तथा इसमें रस की मात्रा अधिक होती है। दक्षिणी भारत में गन्ने की पिराई का समय भी अधिक होता है। गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज भी अधिक है। यहां
आधुनिक चीनी मिलें सहकारी क्षेत्र में लगाई गई हैं।
प्रश्न 5.
भारत में औद्योगिक समूहों के विकास का वर्णन करो। इनका वर्गीकरण करके अस्तित्व की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
भारत के विभिन्न प्रदेशों में उद्योगों के केन्द्रीयकरण के कारण कई औद्योगिक क्षेत्रों और समूहों का विकास हुआ है। ये औद्योगिक समूह यूरोप तथा संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे भारी समूह नहीं हैं। ये छोटे-छोटे समूह एक-दूसरे के पास स्थित हैं। इनमें काम करनें वाले श्रमिकों की औसत दैनिक संख्या के आधार पर इन्हें तीन वर्गों में बांटा जाता है-
(1) मुख्य औद्योगिक प्रदेश – यहां दैनिक श्रमिक संख्या 1 लाख 50 हज़ार / 1,50,000 से अधिक होती है।
(2) लघु औद्योगिक प्रदेश – यहां दैनिक श्रमिक संख्या 25 हज़ार से अधिक होती है।
(3) छोटे औद्योगिक प्रदेश – यहां दैनिक श्रमिक संख्या 25 हज़ार से कम होती है
भारत के विभिन्न प्रदेशों में निम्नलिखित 8 बड़े औद्योगिक प्रदेशों का विकास हुआ है –
1. हुगली औद्योगिक प्रदेश – यह प्रदेश भारत की प्रमुख औद्योगिक पेटी है । इस प्रदेश का विस्तार खुले समुद्र से 97 किलोमीटर अन्दर तक हुगली नदी के दोनों किनारों के साथ-साथ है। इस क्षेत्र के विकास के लिए निम्नलिखित सुविधाएं हैं-
- हुगली नदी के किनारे कोलकाता बन्दरगाह द्वारा आयात-निर्यात की सुविधाएं प्राप्त हैं।
- दामोदर घाटी क्षेत्र से कोयला तथा लोहे का प्राप्त होना।
- यह क्षेत्र गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदान की घनी जनसंख्या वाले पृष्ठ प्रदेश में रेलों तथा सड़कों द्वारा जुड़ा हुआ है।
- आसाम में चाय, डेल्टा प्रदेश से पटसन की प्राप्ति ने इस क्षेत्र में औद्योगिक विकास में सहायता की है।
- कोलकाता एक व्यापारिक केन्द्र है। यहां बिहार तथा उड़ीसा राज्यों से सस्ते श्रमिक प्राप्त हो जाते हैं ।
इस प्रदेश की भौगोलिक स्थिति भी अनुकूल है। यहां से विदेशों को कच्चे माल के निर्यात तथा मशीनरी व तैयार माल के आयात की सुविधा है। गंगा नदी पर फरक्का बांध के निर्माण तथा हल्दिया बन्दरगाह के बन जाने से महत्त्वपूर्ण लाभ प्राप्त होंगे। इस क्षेत्र में लोहा, इस्पात, पटसन, कागज़, चमड़ा तथा अन्य कई उद्योगों का विकास हुआ है।
2. मुम्बई – पुणे औद्योगिक प्रदेश – यह देश का दूसरा प्रमुख औद्योगिक प्रदेश है। इसका विकास सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना के कारण हुआ है । यह प्रदेश मुम्बई, थाना, कल्याण तथा पुणे तक फैला हुआ है। इस प्रदेश के विकास के लिए निम्नलिखित तत्त्व सहायक रहे हैं-
- मुम्बई बन्दरगाह से आयात-निर्यात की सुविधाएं।
- मुम्बई तथा थाना के मध्य रेल मार्ग का निर्माण होना।
- स्वेज नहर मार्ग के विकास के कारण विदेशों से अधिक सम्पर्क स्थापित होना।
- पश्चिमी घाट से जल-विद्युत् का प्राप्त होना।
- महाराष्ट्र और गुजरात के पृष्ठ प्रदेश से उत्तम कपास तथा सस्ते श्रमिकों का प्राप्त होना।
- भोर घाट तथा थाल घाट मार्गों के खुलने से रेल तथा सड़क मार्गों द्वारा परिवहन साधनों से पृष्ठ प्रदेश के साथ सम्बन्ध स्थापित होना।
- यहां सूती वस्त्र उद्योग, खनिज तेल शोधक उद्योग, रासायनिक उद्योग तथा इंजीनियरिंग उद्योगों का विकास हुआ है।
3. अहमदाबाद बड़ौदा औद्योगिक प्रदेश – यह प्रदेश भारत का तीसरा प्रमुख औद्योगिक प्रदेश है तथा देश के आन्तरिक भाग में स्थित है। इस प्रदेश के विकास के निम्नलिखित कारण हैं –
- यह क्षेत्र कपास उत्पन्न करने वाले प्रदेश के बीच स्थित है।
- यहां गंगा सतलुज के मैदान सूती कपड़ा के मांग क्षेत्र के निकट हैं।
- यहां सस्ते मूल्य पर कुशल श्रमिक प्राप्त हो जाते हैं।
- यहां मुम्बई तथा कांडला बन्दरगाहों से आयात-निर्यात की सुविधा है।
- खम्बात क्षेत्र में अंकलेश्वर में खनिज तेल की खोज ने कई पेट्रो रसायन उद्योगों को जन्म दिया है।
- अधिकतर सूती वस्त्र उद्योग अहमदाबाद में है जिसे ‘भारत का मानचेस्टर’ भी कहते हैं।
4. मदुराई, कोयम्बटूर, बंगलौर औद्योगिक प्रदेश – दक्षिणी भारत के इस प्रदेश में चेन्नई, कोयम्बटूर, मदुराई, बंगलौर तथा मैसूर में विभिन्न उद्योगों की स्थापना हुई है। यहां उद्योग के केन्द्रीयकरण के कई कारण हैं –
- यहां मैटूर, पाइकारा, शिव समुद्रम आदि योजनाओं से सस्ती जल – विद्युत् प्राप्त होती है।
- यहां सस्ते, कुशल श्रमिक प्राप्त हैं
- घनी जनसंख्या के कारण मांग अधिक है।
- जलवायु कई उद्योगों के अनुकूल है।
- इस क्षेत्र में उत्तम कपास की प्राप्ति हो जाती है।
इसलिए कोयम्बटूर में सूती कपड़ा, कॉफी की मिलें, चमड़े के कारखाने तथा सीमेंट मिलों का विकास हुआ है। बंगलौर में हिन्दुस्तान वायुयान केन्द्र, मशीन टूल्स, टेलीफोन उद्योग तथा विद्युत् उपकरण उद्योग स्थापित हुए हैं। अन्य केन्द्रों में सूती कपड़ा, ऊनी कपड़ा, रेशमी वस्त्र, रासायनिक उद्योग, मोटर गाड़ियों के उद्योग तथा चमड़ा उद्योग मिलते हैं।
5. छोटा नागपुर पठार औद्योगिक प्रदेश – बिहार तथा पश्चिमी बंगाल राज्यों में इस क्षेत्र का विकास दामोदर घाटी हुआ है। यहां कई लोहा – इस्पात कारखाने जैसे जमशेदपुर, बोकारो, दुर्गापुर आदि स्थापित हो गए हैं। इसे भारत का रुहर प्रदेश भी कहते हैं। यहां औद्योगिक विकास के लिए कई सुविधाएं हैं-
- झरिया तथा रानीगंज से कोयला प्राप्त होना।
- बिहार, झारखण्ड तथा उड़ीसा से खनिज लोहे की प्राप्ति।
- कोलकाता बन्दरगाह की सुविधाएं प्राप्त होना।
- दामोदर घाटी योजना से जल विद्युत् तथा तापीय विद्युत् की सुविधा।
- कई इंजीनियरिंग सामान बनाने के उद्योगों का रांची, चितरंजन, सिन्द्री आदि शहरों में स्थापित हो जाना।
6. दिल्ली तथा निकटवर्ती प्रदेश – स्वतन्त्रता के पश्चात् अनेक औद्योगिक गुच्छों का विकास हुआ है।
- उत्तर प्रदेश में आगरा-मथुरा-मेरठ – सहारनपुर क्षेत्र
- हरियाणा में फ़रीदाबाद – गुड़गांव – अम्बाला क्षेत्र
- दिल्ली का निकटवर्ती क्षेत्र
इस प्रदेश के विकास में कई भौगोलिक तत्त्वों का योगदान है-
- भाखड़ा नंगल योजना से जल विद्युत् प्राप्ति।
- हरदुआगंज़ तथा फ़रीदाबाद से ताप विद्युत् प्राप्ति।
- कृषि आधारित उद्योगों (चीनी तथा वस्त्र उद्योग) के लिए कच्चे माल की प्राप्ति।
- मथुरा के तेल शोधन कारखाने से तेल प्राप्ति तथा पेट्रो- रासायनिक पदार्थों की प्राप्ति।
- कृषि क्षेत्र के कारण अधिक मांग
प्रमुख केन्द्र – इस प्रदेश में शीशा, रसायन, कागज़, इलेक्ट्रॉनिक्स, साइकिल, वस्त्र तथा चीनी उद्योग स्थापित है।
- आगरा में शीशा उद्योग
- गुड़गांव में कार फैक्टरी तथा I.D. P. L. की इकाई।
- फ़रीदाबाद में इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग
- सहारनपुर तथा यमुनानगर में कागज़ उद्योग
- मोदी नगर, सोनीपत, पानीपत, बल्लभगढ़ में वस्त्र उद्योग
7. विशाखापट्टनम:
गुंटूर प्रदेश – यह औद्योगिक प्रदेश विशाखापट्टनम ज़िले से लेकर दक्षिण में कुर्नूल और प्रकाशम ज़िलों तक विस्तृत है। इस प्रदेश का औद्योगिक विकास मुख्यतः विशाखापट्टनम और मछलीपटनम के पत्तनों और इनके पृष्ठ प्रदेश की समृद्ध कृषि तथा खनिजों के विशाल भंडार पर आश्रित है। गोदावरी द्रोणी के कोयला क्षेत्र इस प्रदेश को शक्ति और ऊर्जा प्रदान करते हैं। 1941 में विशाखापट्टनम में जलयान निर्माण उद्योग लगाया गया था।
पेट्रोलियम परिष्करणशाला आयातित कच्चे तेल पर आधारित है तथा इसने अनेक पेट्रो रसायन उद्योगों को जन्म दिया है। इस प्रदेश के प्रमुख उद्योग हैं – चीनी, वस्त्र, जूट, कागज़, उर्वरक, सीमेंट, एल्यूमीनियम और इंजीनियरी के हल्के सामान। गुंटूर जिले में एक सीसा – जस्ता प्रगलन संयंत्र भी चालू है। विशाखापट्टनम में स्थित लोहे और इस्पात का कारखाना बैलाडिला के लौह-अयस्क का उपयोग करता है। इस प्रदेश के प्रमुख औद्योगिक केन्द्र ये हैं: विशाखापट्टनम, विजयवाड़ा, विजयनगर, राजामुन्दरी, गुंटूर, एलुरू और कुर्नूल।
8. कोल्लम – तिरुवनन्तपुरम प्रदेश:
इस प्रदेश का विस्तार तिरुवनन्तपुरम, कोल्लम, अलप्पुजा, एर्णाकुलम और त्रिशुर जिलों में हैं। रोपण कृषि और जल विद्युत् ने इस प्रदेश को औद्योगिक आधार प्रदान किया है। यह प्रदेश देश की खनिज पट्टी से दूर है। अतः यहां मुख्य रूप से कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण से संबंधित और बाज़ारोन्मुख हल्के उद्योग ही विकसित हुए हैं।
इस प्रदेश के मुख्य उद्योग ये हैं – सूती वस्त्र, चीनी, रबड़, माचिस, कांच, रासायनिक उर्वरक और मछली आधारित उद्योग। इनके अलावा खाद्य प्रसंस्करण, कागज़, नारियल रेशे के उत्पाद, एल्यूमीनियम और सीमेंट उद्योग भी उल्लेखनीय हैं। कोच्चि में तेल परिष्करणशाला ने इस प्रदेश के उद्योगों में एक नया आयाम जोड़ दिया है । इस प्रदेश के प्रमुख औद्योगिक केन्द्र ये हैं : कोल्लम्, तिरुवनन्तपुरम्, अलवाए, कोच्चि और अलप्पुजा।