JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. कोपेन के A प्रकार की जलवायु के लिए निम्न में से कौन-सी दशा अर्हक है?
(A) सभी महीनों में उच्च वर्षा
(B) सबसे ठण्डे महीने का औसत मासिक तापमान हिमांक बिन्दु से अधिक
(C) सभी महीनों का औसत मासिक तापमान 18° सेल्सियस से अधिक
(D) सभी महीनों का औसत तापमान 10° सेल्सियस के नीचे।
उत्तर:
(C) सभी महीनों का औसत मासिक तापमान 18° सेल्सियस से अधिक।

2. जलवायु के वर्गीकरण से सम्बन्धित कोपेन की पद्धति को व्यक्त किया जा सकता है
(A) अनुप्रयुक्त
(B) व्यवस्थित
(C) जननिक
(D) आनुभाविक।
उत्तर:
(D) आनुभाविक।

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3. भारतीय प्रायद्वीप के अधिकतर भागों को कोपेन की पद्धति के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा
(A) “AF”
(B) “BSh”
(C) “Cfb”
(D) “Am”
उत्तर:
(D) “Am”

4. निम्नलिखित में से कौन-सा साल विश्व का सबसे गर्म साल माना जाता है-जाएगा?
(A) 1990
(B) 1998
(C) 1885
(D) 1950
उत्तर:
(B) 1998

5. नीचे लिखे गए चार जलवायु के समूहों में से कौन आई दशाओं को प्रदर्शित करता है?
(A) A-B-C-E
(B) A-C-D-E
(C) B-C-D-E
(D) A-C-D-F
उत्तर:
(D) A-C-D-F

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6. विश्व में उपोष्ण मरुस्थलीय जलवायु किन अक्षांशों के बीच पाई जाती है?
(A) 5°-20°
(B) 15°-30°
(C) 15°-35°
(D) 30°-40°
उत्तर:
(B)15°-30°.

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
जलवायु के वर्गीकरण के लिए कोपेन के द्वारा किन दो जलवायविक चरों का प्रयोग किया गया है?
उत्तर:
कोपेन ने वनस्पति के वितरण और जलवायु के बीच एक घनिष्ठ संबंध की पहचान की। उन्होंने वर्षा एवं तापमान के मध्यमान वार्षिक एवं मध्यमान मासिक आंकड़ों का प्रयोग किया।

प्रश्न 2.
वर्गीकरण की जननिक प्रणाली आनुभविक प्रणाली से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
जननिक वर्गीकरण जलवायु को उनके कारणों के आधार पर संगठित करने का प्रयास हैं। परन्तु, आनुभविक वर्गीकरण प्रेक्षित किए गए विशेष रूप से तापमान एवं वर्षण से सम्बन्धित आंकड़ों पर आधारित होता है।

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प्रश्न 3.
किस प्रकार की जलवायुओं में तापांतर बहुत कम होता है?
उत्तर:

  1. उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु (Af)
  2. समुद्री पश्चिमी तटीय जलवायु (cfb)

प्रश्न 4.
सौर कलंकों में वृद्धि होने पर किस प्रकार की जलवायविक दशाएं प्रचलित होगी?
उत्तर:
सौर कलंकों की संख्या बढ़ने से मौसम ठंडा और आर्द्र हो जाता है और तूफ़ानों की संख्या बढ़ जाती है।

प्रश्न 5.
A एवं B प्रकार को जलवायुओं की जलवायविक दशाओं की तुलना करें।
उत्तर:
A प्रकार की जलवायु:
यह जलवायु उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु है, जो मकर रेखा और कर्क रेखा के बीच पाई जाती है। यहाँ वार्षिक तापांतर बहुत कम होता है। तापमान समान रूप से ऊँचा रहता है (30°C) मानसून क्षेत्रों में सीत ऋतु, शुष्क होती है।

B प्रकार की जलवायु:
यह शुष्क जलवायु है जहां न्यून वर्षा होती है। यह जलवायु 15° -60° उत्तर व दक्षिणी अक्षांशों के मध्य मिलती है। यहां उत्तरती पवनों के कारण वर्षा कम होती है। महाद्वीपों के आन्तरिक भागों में भी वर्षा कम होती है इसमें स्टैपी तथा अर्द्ध मरुस्थली जलवायु मिलती हैं। ग्रीष्म काल में तापमान ऊँचे रहते हैं।

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प्रश्न 6.
C तथा A प्रकार के जलवायु में आप किस प्रकार की वनस्पति पाएंगे?
उत्तर:
A प्रकार की जलवायु में उष्ण कटिबन्धीय सदाहरित वन पाए जाते हैं। मानसून क्षेत्रों में पर्णपाती वन तथा घास के मैदान पाए जाते हैं।
C प्रकार की जलवायु में शीतोष्ण कटिबन्धीय बन पाए जाते हैं। शुष्क क्षेत्रों में लम्बी जड़ों वाले मोटे पत्तों वाले वृक्ष पाए जाते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Question)

प्रश्न-ग्रीन हाउस गैसों से आप क्या समझते हैं?
प्रश्न 1.
ग्रीन हाउस गैसों की सूची तैयार करो।
उत्तर:

ग्रीन हाउस प्रभाव

भू-पृष्ठ से वायुमंडल के अप्रत्यक्ष रूप से गर्म होने की संकल्पना को ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं, जिसे सामान्यतः सूर्यातप (लघु तरंगें) वायुमंडली प्रभाव भी कहते हैं। स्पष्टतया वायुमंडल का प्रभाव एक शीशे की भान्ति काम करता है, जो आने वाली सौर ऊर्जा की लघु तरंगों को अपने से होकर गुज़रने देता है, लेकिन बाहर जाने वाले पार्थिव विकिरण की दीर्घ तरंगों को रोकता कांच है। इस प्रकार यह भू-पृष्ठीय तापमान को उस तापमान से कांच ऊँचा रखता है, जो इस प्रक्रिया के अभाव में होता है। आप स्वयं एक ग्रीन हाउस का निर्माण कर सकते हैं।

खिड़कियां बन्द करके अपनी कार को दो घंटे के लिए धूप में खड़ी कर पृथ्वी दीजिए। अब कार के अंदर के तापमान का अनुभव कीजिए। यह बाहर के तापमान से अधिक होगा। शीत ऋतु में, ग्रीन लघु तरंगों दीर्घ तरंगों के रूप का अवशोषण में ऊष्मा विकिरण हाउस में कांच की छत की पारदर्शिता का उपयोग लघु तरंगों को ट्रैप करके टमाटर उगाने के लिए किया जा सकता है।
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विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन JAC Class 11 Geography Notes

→ जलवायु (Climate): किसी स्थान पर एक लम्बे समय की वायुमण्डलीय दशाओं (35 वर्ष के कुल योग। को जलवायु कहते हैं। यह एक लम्बे समय का औसत मौसम होता है।

→ जलवायु के तत्त्व (Elements of Climate): जलवायु के निम्नलिखित तत्त्व हैं

  • अक्षांश
  • समुद्र तल से ऊंचाई
  • जल व स्थल का वितरण
  • वायु दाब
  • प्रचलित पवनें
  • सागरीय धाराएं
  • पर्वतीय अवरोध।

→ जलवायु वर्गीकरण (Classification of Climate): यह जलवायु का एक क्रमबद्ध वर्णन है जिससे। सुगम रूप से विश्लेषण किया जा सके।

→ विभिन्न वर्गीकरण (Different Classification): जलवायु वर्गीकरण का प्रथम प्रयास यूनानी विद्वानों द्वारा किया गया। उन्होंने तापमान के आधार पर पृथ्वी को तीन भागों में बांटा है।

  • उष्ण कटिबन्ध
  • शीतोष्ण कटिबन्ध
  • शीत कटिबन्ध।

विभिन्न वर्गीकरण विभिन्न विद्वानों-कोपन, थार्नवेट तथा टिवार्था द्वारा प्रस्तुत किए गए हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. मानव के लिए वायुमण्डल का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक निम्नलिखित में से कौन-सा है?
(A) जलवाष्प
(B) धूलकण
(C) नाइट्रोजन
(D) ऑक्सीजन।
उत्तर:
(D) ऑक्सीजन।

2. निम्नलिखित में से वह प्रक्रिया कौन-सी है जिसके द्वारा जल द्रव से गैस में बदल जाता है?
(A) संघनन
(B) वाष्पीकरण
(C) वाष्पोत्सर्जन
(D) अवक्षेपण।
उत्तर:
(B) वाष्पीकरण।

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3. निम्नलिखित में से कौन-सा वायु की उस दशा को दर्शाता है जिसमें नमी उसकी पूरी क्षमता के अनुरूप होती है?
(A) सापेक्ष आर्द्रता
(B) निरपेक्ष आर्द्रता
(C) विशिष्ट आर्द्रता
(D) संतृप्त हवा।
उत्तर:
(D) संतृप्त हवा।

4. निम्नलिखित प्रकार के बादलों में से आकाश में सबसे ऊंचा बादल कौन-सा है?
(A) पक्षाभ
(B) मेघवर्षी
(C) स्तरी
(D) कपासी।
उत्तर:
(A) पक्षाभ।

5. भारत में अधिकतर वर्षा कौन-सी होती है?
(A) पर्वतीय वर्षा
(B) चक्रवातीय वर्षा
(C) पर्वतीय वर्षा
(D) वाताग्रीय वर्षा।
उत्तर:
(B) पर्वतीय वर्षा।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न-निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिएप्रश्न
प्रश्न 1.
वर्षण के तीन प्रकारों के नाम लिखो।
उत्तर:
किसी क्षेत्र पर वायु मण्डल से गिरने वाली समस्त जल राशि को वर्षण कहा जाता है। वर्षण मुख्य रूप से तरल व ठोस रूप में पाई जाती है। इसके विभिन्न रूप हैं:

  1. वर्षा
  2. हिम वर्षा
  3. ओलावृष्टि
  4. ओस प्रश्न

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प्रश्न 2.
सापेक्ष आर्द्रता की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सापेक्ष आर्द्रता (Relative Humidity):
किसी तापमान पर वायु में कुल जितनी नमी समा सकती है उसका जितना प्रतिशत अंश उस वायु में मौजूद हो, उसे सापेक्ष आर्द्रता कहते हैं। ग्रहण करने की क्षमता दूसरे शब्दों में यह वायु की निरपेक्ष नमी तथा उसकी वाष्प धारण करने की क्षमता में प्रतिशत अनुपात है।
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प्रश्न 3.
ऊंचाई के साथ जलवाष्प की मात्रा तेजी से क्यों घटती है?
उत्तर:
ऊंचाई के साथ जब हवा ऊपर उठती है तो वह फैलती है तथा तापमान गिर जाता है। आर्द्रता संघनित हो जाती है तथा वर्षा के रूप में गिरती है। इस प्रकार ऊंचाई के साथ जलवाष्प की मात्रा कम होती जाती है।

प्रश्न 4.
बादल कैसे बनते हैं? बादलों का वर्गीकरण करो।
उत्तर:
वायु में धूलि कणों पर लदे जल बिन्दुओं के समूह को बादल कहते हैं। जल कण बादलों के रूप में तैरते रहते हैं। ऊंचाई के अनुसार मेघ तीन प्रकार के होते हैं

  1. उच्च स्तरीय मेघ-जो 10000 मीटर तक ऊंचे होते हैं। जैसे पक्षाभ, कपासी मेघ।
  2. मध्यम,स्तरीय मेघ-3000-6000 मीटर तक ऊंचे जैसे कपासी शिखर मेघ।
  3. निम्न स्तरीय मेघ-3000 मीटर से कम ऊंचे जैसे वर्षा मेघ।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए :
प्रश्न 1.
विश्व के वर्षण वितरण के प्रमुख लक्षणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
संसार में वर्षा का वितरण समान नहीं है। भूपृष्ठ पर होने वाली कुछ वर्षा का 19 प्रतिशत महाद्वीपों पर तथा 81 प्रतिशत महासागरों पर प्राप्त होता है। संसार की औसत वार्षिक वर्षा 975 मिलीमीटर है।

  1. अधिक वर्षा वाले क्षेत्र-इन क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा का औसत 200 सेंटीमीटर है। भूमध्यरेखीय क्षेत्र तथा मानसूनी प्रदेशों के तटीय भागों में अधिक वर्षा होती है।
  2. सामान्य वर्षा वाले क्षेत्र-इन क्षेत्रों में 100 से 200 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा होती है। यह क्षेत्र उष्ण कटिबन्ध में स्थित हैं तथा मध्यवर्ती पर्वतों पर मिलते हैं।
  3. कम वर्षा वाले क्षेत्र-महाद्वीपों के मध्यवर्ती भाग तथा शीतोष्ण कटिबन्ध के पूर्वी तटों पर 25 से 100 सेंटीमीटर वर्षा होती है।
  4. वर्षा विहीन प्रदेश-गर्म मरुस्थल, ध्रुवीय प्रदेश तथा वृष्टि छाया प्रदेशों में 25 सेंटीमीटर से कम वर्षा होती है।

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प्रश्न 2.
संघनन कैसे होता है? संघनन के विभिन्न रूप क्या हैं? ओस और तुषार बनने की प्रक्रिया बताओ।
उत्तर:
संघनन (Condensation):
जिस क्रिया द्वारा वायु के जल-वाष्प जल के रूप में बदल जाएं, उसे संघनन कहते हैं। जल-कणों के वाष्प का गैस से तरल अवस्था में बदलने की क्रिया को संघनन कहते हैं। (“Change of water-vapour into water is called condensation.”) वायु का तापमान कम होने से उस वायु की वाष्प धारण करने की शक्ति कम हो जाती है। कई बार तापमान इतना कम हो जाता है कि वायु जल-वाष्प को सहार नहीं सकती और जल-वाष्प तरल रूप में वर्षा के रूप में गिरता है। इस क्रिया के उत्पन्न होने के कई कारण हैं

  1. जब वायु लगातार ऊपर उठ कर ठण्डी हो जाए।
  2. जब नमी से लदी वायु किसी पर्वत के सहारे ऊंची उठ कर ठण्डी हो जाए।
  3. जब गर्म तथा ठण्डी वायु-राशियां आपस में मिलती हैं।

संघनन के परिणाम कई रूपों में प्रकट होते हैं जिनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं
1. कोहरा (Fog):
वायु में अनेक प्रकार के जल-कण मिट्टी व रेत के कणों पर तैरते रहते हैं। कोहरा एक प्रकार का बादल है जो धरातल के निकट वायु में धूल के कणों पर लटके हुए जल-बिन्दुओं से बनता है। (“Fog is condensed vapour hanging in the air.”) ठण्डे धरातल या ठण्डी वायु के सम्पर्क से नमी से भरी हुई वायु जल्दी ठण्डी हो जाती है। वायु में उड़ते रहने वाले धूलि-कणों पर जल-वाष्प का कुछ भाग जल-बिन्दुओं के रूप में जमा हो जाता है जिससे वातावरण धुंधला हो जाता है तथा 200 मीटर से अधिक दूरी की वस्तु दिखाई नहीं देती और वायुयानों की उड़ानें स्थगित करनी पड़ती हैं।

यह प्राय: साफ़ तथा शान्त मौसम में, शीत ऋतु की लम्बी रातों के कारण बनता है जबकि धरातल पूरी तरह ठण्डा हो जाता है। इसे भूमि का कोहरा (Ground Fog) भी कहते हैं। नदियों, झीलों व समुद्रों के समीप के प्रदेशों में भी कोहरा मिलता है। औद्योगिक नगरों में धुएं के साथ उड़ी हुई राख पर जल-बिन्दु टिकने से कोहरा छाया रहता है। ऐसी धुएं मिली धुंध को Smog कहते हैं। न्यूफाउंडलैण्ड (Newfound-land) के तट पर खाड़ी की गर्म धारा तथा लैब्रेडोर की ठण्डी धारा मिलने के कारण कोहरा छाया रहता है।

2. धुन्ध (Mist):
हल्के कोहरे को धुन्ध कहते हैं। (“A thin fog is called Mist.) कोहरे तथा धुन्ध में कोई विशेष अन्तर नहीं होता क्योंकि दोनों एक जैसी दशाओं में बनते हैं। कोहरे की अपेक्षा धुन्ध में संघनता कम होती है तथा दो कि० मी० तक की दूरी पर भी वस्तुएं दिखाई पड़ जाती हैं। कोहरे में शुष्कता अधिक होती है, परन्तु धुन्ध में नमी अधिक होती है। जल की बूंदें बड़े आकार की होती हैं। शीत ऋतु में शीतोष्ण कटिबन्ध में धुन्ध एक साधारणसी बात है। सूर्य निकलने या तेज़ हवाओं के कारण धुन्ध जल्दी समाप्त हो जाती है।

3. मेघ (Clouds):
वायु के ठण्डे होने से या संघनन के कारण बादल बनते हैं। मुक्त वायु में धूलि-कणों पर लदे जल-बिन्दुओं के समूह को मेघ कहते हैं। वायु के ठण्डा होने से जल-वाष्प जल-कणों का रूप धारण कर लेते हैं। छोटे-छोटे कण आपस में मिल कर बड़े कणों की रचना करते हैं। ये इतने भारी नहीं होते कि वर्षा के रूप में नीचे गिरें। ये जल-कण वायु में तैरते रहते हैं तथा धूल के वाष्प-ग्राही कणों पर द्रव के रूप में जम जाते हैं। इन कणों के पुँज को मेघ कहते हैं। ज्योंही ये कण बड़ा रूप धारण कर लेते हैं तथा वायु से भारी हो जाते हैं तो वर्षा के रूप में पृथ्वी पर आ जाते हैं। मेघ 12,000 मीटर तक की ऊँचाई तक मिलते हैं क्योंकि इससे ऊपर जल-वाष्प नहीं होते।

बादलों के प्रकार (Types of Clouds)-ऊँचाई के अनुसार मेघ तीन प्रकार के होते हैं

  1. उच्च स्तरीय मेघ (High Clouds)-6,000 से 10,000 मीटर तक ऊँचे, जैसे-पक्षाभ, स्तरी तथा कपासी मेघ।
  2. मध्यम स्तरीय मेघ (Medium Clouds)-3,000 से 6,000 मीटर तक ऊँचे, जैसे-मध्य कपासी शिखर मेघ।
  3. निम्न स्तरीय मेघ (Low Clouds)-3,000 मीटर तक ऊंचे मेघ जिनमें स्तरीय कपासी मेघ, वर्षा स्तरी मेघ, कपासी मेघ, कपासी वर्षा मेघ शामिल हैं।

4. ओले (Hail Stones):
जब संघनन की क्रिया 0°C या 32°F से कम तापमान पर होती है तो जल-वाष्प हिम कणों में बदल जाते हैं। कई बार तूफान (Thunder Storm) के कारण होने वाली वर्षा में ये हिम-कण ठोस ओलों के रूप में गिरते हैं। नीचे से ऊपर जाने वाली धाराएं जल-कणों को बार-बार हिमकणों के सम्पर्क में लाती हैं तथा उनका आकार बड़ा हो जाता है। धाराओं के वेग के कम होने से ये नीचे गिरने लगते हैं।

5. हिम (Snow):
जब संघनन हिमांक (Freezing point = 32°F) से कम तापमान पर होता है तो जल-कण हिम में बदल जाते हैं और हिमपात (Snowfall) होता है। ठंडी तथा कम नमी वाली वायु द्वारा ही हिमपात होता है। अत्यन्त ठण्डे प्रदेशों में, ऊँचे पर्वतीय भागों में तथा टुण्ड्रा प्रदेश की समस्त वर्षा हिमपात के रूप में होती है।

6. ओस (Dew):
पृथ्वी तल तथा कई वस्तुओं पर संघनित जल की छोटी-छोटी बूंदों को ओस कहते हैं। यह भूतल पर पेड़-पौधों, घास, टीन या स्लेट पर टिकी होती है। रात को धरातल विकिरण (Rapid radiation) के कारण बहुत ठण्डा हो जाता है। ठण्डे धरातल के सम्पर्क में आने वाली वायु जल्दी ही संतृप्त हो जाती है।

जब इसका तापमान ओसांक से भी कम हो जाता है, तब संघनन होता है और कुछ जल–वाष्प जल-बूंदों के रूप में कई वस्तुओं पर बैठ जाता है। ओस के निर्माण के लिए ओसांक 0°C तापमान से ऊपर होना चाहिए। पंजाब में जनवरी में साफ आसमान के कारण रात को अधिक ओस पड़ती है। ओस बनने के लिए अनुकूल ये हैं

  1. लम्बी रातें (Long Nights)
  2. स्वच्छ व निर्मल आकाश (Clear Sky)
  3. शान्त वायुमण्डल का होना (Calm Atmosphere)
  4. वनस्पति का होना (Presence of Vegetation)
  5. उच्च सापेक्ष आर्द्रता (High Relative Humidity)

7. पाला (Frost):
जब संघनन की क्रिया हिमांक 0°C (32°F) से कम तापमान पर हो तो जलवाष्प ओस की बूंदों के रूप में नहीं गिरता. अपितु छोटे-छोटे सफेद हिम कणों के रूप में पृथ्वी तल पर परत के रूप में फैल जाता है। इसे पाला कहते हैं। इस प्रकार धरातल पर अधिक विस्तार में हिम कणों के जमाव को पाला कहते हैं।

शीत ऋतु में रात को घास, पेड़-पौधों, भूतल तथा जल की सतह पर हिम की परत के रूप में पाला जम जाता है। पर्वतीय घाटियों में वायु बहाव (Air Drainage) के कारण रात को पाला जम जाता है। मध्य अक्षांशों में शीत ऋतु में पाला साधारणसी बात है। पंजाब में कई बार जनवरी मास में पाला पड़ता है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल

वायुमंडल में जल JAC Class 11 Geography Notes

→ आर्द्रता (Humidity): वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा को आर्द्रता कहते हैं। वायुमण्डल के कुल भार का 2% भाग जलवाष्प के रूप में मौजूद है। यह जलवाष्प महासागरों, समुद्रों, झीलों, नदियों आदि के जल से वाष्पीकरण द्वारा प्राप्त होता है।

→ ओसांक (Dew Point): संतृप्त वायु के ठण्डे होने से जल-वाष्प जल के रूप में बदल जाता है। जिस तापमान पर किसी वायु का जलवाष्प जल रूप में बदलना शुरू हो जाता है उस तापमान को ओसांक कहते हैं। संघनन (Condensation)-जिस क्रिया द्वारा वायु के जलवाष्प जल के रूप में बदल जाएं, उसे संघनन कहते हैं।

→ संघनन के रूप (Forms of Condensation)

  • पाला तथा हिम।
  • ओस, कोहरा, धुंध।
  • बादल।

→ निरपेक्ष आर्द्रता (Absolute Humidity): किसी समय किसी तापमान पर वायु में जितनी नमी मौजूद हो उसे वायु की निरपेक्ष आर्द्रता कहते हैं।

→ सापेक्ष आर्द्रता (Relative Humidity): किसी तापमान पर वायु में कुल जितनी नमी समा सकती है उसका प्रतिशत अंश उस वायु में मौजूद हो, उसे सापेक्ष आर्द्रता कहते हैं। किसी ताप पर विद्यमान वाष्प की मात्रा उसी ताप पर वायु का वाष्प ग्रहण करने की क्षमता। दूसरे शब्दों में यह वायु की निरपेक्ष नमी तथा उसकी वाष्प धारण करने की क्षमता में प्रतिशत अनुपात है।

→ वृष्टि (Precipitation): किसी क्षेत्र पर वायुमण्डल से गिरने वाली समस्त जल राशि को वृष्टि कहा जाता है। वृष्टि मुख्य रूप से तरल व ठोस रूप में पाई जाती है। इसके विभिन्न रूप हैं!

  • वर्षा
  • हिम वर्षा
  • ओला वृष्टि
  • ओस
  • पाला
  • सहिम वृष्टि।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल

→ वर्षा (Rainfall): वायु में आर्द्रता ही वर्षा का आधार है। वर्षा होने का मुख्य कारण संतृप्त वायु का ठण्डा होना है। वर्षा की क्रिया कई पदों में होती है

  • संघनन।
  • बादलों का बनना।
  • मेघ से जल कणों का बनना। इस प्रकार जल कणों का पृथ्वी पर गिरना वर्षा कहलाता है।

→ वर्षा के प्रकार (Types of Rainfall):

  • संवहनीय वर्षा-संवाहिक धाराओं के कारण संवहनीय वर्षा होती है।
  • पर्वतीय वर्षा- इस प्रकार की वर्षा किसी पर्वत के सहारे उठती हुई नम पवनों के कारण होती है। सम्मुख। ढलान पर अधिक वर्षा होती है, विमुख ढाल पर कम वर्षा होती है तथा यह वर्षा छाया प्रदेश होता है।
  • चक्रवातीय वर्षा- यह वर्षा गर्म तथा शीत वायु राशियों के मिलने से चक्रवातों के कारण होती है।

→ वर्षा का वितरण (Distribution of Rainfall): वर्षा के वितरण को प्रभावित करने वाले तत्त्व

  • अक्षांश
  • समुद्र से दूरी
  • प्रचलित पवनें
  • महासागरीय धाराएं
  • ऊँचाई
  • पर्वतों की दिशा।

→ विश्व में वर्षा का वितरण

  1. भू-मध्य रेखीय प्रदेश भारी वर्षा वाले क्षेत्र
  2. व्यापारिक पवन पेटियां पूर्वी तटीय भागों पर वर्षा
  3. उपोष्ण कटिबन्धीय प्रदेश – कम वर्षा वाले क्षेत्र (मरुस्थल)
  4. भूमध्य सागरीय प्रदेश – शीतकालीन वर्षा क्षेत्र
  5. ध्रुवीय क्षेत्र – इस प्रदेश में हिमपात होता है।।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

JAC Class 9 Hindi एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा Textbook Questions and Answers

मौखिक –

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक- दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
अग्रिम दल का नेतृत्व कौन कर रहा था ?
उत्तर :
अग्रिम दल का नेतृत्व उपनेता प्रेमचंद कर रहा था।

प्रश्न 4.
लेखिका को सागरमाथा नाम क्यों अच्छा लगा ?
उत्तर :
लेखिका ने नेपालियों को एवरेस्ट को सागरमाथा नाम से पुकारते हुए सुना, तो उसे भी यह नाम अच्छा लगा।

प्रश्न 2.
लेखिका को ध्वज जैसा क्या लगा ?
उत्तर :
लेखिका को एवरेस्ट की चोटी पर बर्फ का एक बड़ा फूल लहराते हुए ध्वज जैसा लगा।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

प्रश्न 3.
हिमस्खलन से कितने लोगों की मृत्यु हुई और कितने घायल हुए ?
उत्तर :
हिमस्खलन से किसी की मृत्यु नहीं हुई, पर नौ पुरुष सदस्य घायल हुए थे।

प्रश्न 5.
मृत्यु के अवसाद को देखकर कर्नल खुल्लर ने क्या कहा ?
उत्तर :
मृत्यु के अवसाद को देखकर कर्नल खुल्लर ने कहा था कि ऐसे साहसपूर्ण अभियानों में होने वाली मृत्यु को सहज रूप से स्वीकार किया जाना चाहिए।

प्रश्न 6.
रसोई सहायक की मृत्यु कैसे हुई ?
उत्तर :
अनुकूल जलवायु न होने के कारण रसोई सहायक की मृत्यु हुई थी।

प्रश्न 7.
कैंप – चार कहाँ और कब लगाया गया ?
उत्तर:
कैंप- चार साउथ कोल में 29 अप्रैल, सन् 1984 को सात हजार नौ सौ मीटर की ऊँचाई पर लगाया गया था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

प्रश्न 8.
लेखिका ने शेरपा कुली को अपना परिचय किस तरह दिया ?
उत्तर :
लेखिका ने कहा कि वह बिलकुल नौसिखिया है और एवरेस्ट उसका पहला अभियान है।

प्रश्न 9.
लेखिका की सफलता पर कर्नल खुल्लर ने उसे किन शब्दों में बधाई दी ?
उत्तर :
कर्नल खुल्लर ने कहा कि उसकी इस अनूठी उपलब्धि के लिए वे उसके माता-पिता को बधाई देना चाहते हैं। देश को उस पर गर्व है और वह अब एक ऐसे संसार में वापस जाएगी, जो एकदम भिन्न होगा।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
नज़दीक से एवरेस्ट को देखकर लेखिका को कैसा लगा ?
उत्तर :
जब लेखिका ने सर्वप्रथम एवरेस्ट को देखा, तो उसे उसकी चोटी पर दिखाई देने वाला एक भारी बर्फ़ का बड़ा फूल जैसे उसकी चोटी पर लहराते हुए ध्वज की तरह लगा। यह दृश्य शिखर की ऊपरी सतह के आसपास एक सौ पचास किलोमीटर अथवा इससे भी अधिक तेज़ गति से चलने वाली हवा से बनता है। बर्फ़ का यह ध्वज दस किलोमीटर या इससे भी अधिक लंबा हो सकता है। वह एवरेस्ट की इस सुंदरता के प्रति विचित्र रूप से आकर्षित हुई।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

प्रश्न 2.
डॉ० मीनू मेहता ने क्या जानकारियाँ दीं ?
उत्तर :
डॉ० मीनू मेहता ने उन्हें अभियान में सहायता देने वाली बातें बताईं। उन्होंने उन्हें एलुमिनियम की सीढ़ियों से अस्थाई पुल बनाना, रस्सियों का उपयोग करना तथा बर्फ़ की आड़ी-तिरछी दीवारों पर रस्सियों को बाँधना सिखाया। उन्होंने उन्हें उनके अग्रिम दल के द्वारा किए गए तकनीकी कार्यों की भी जानकारी दी।

प्रश्न 4.
तेनजिंग ने लेखिका की तारीफ़ में क्या कहा ?
उत्तर :
लेखिका ने जब अपने बारे में यह कहा कि वह बिल्कुल नौसिखिया है और यह उसका पहला अभियान है, तो तेनजिंग ने उसकी प्रशंसा करते हुए कहा कि वह एक पर्वतीय लड़की है। वह पहले प्रयास में अवश्य शिखर पर पहुँच जाएगी।

प्रश्न 5.
लेखिका को किनके साथ चढ़ाई करनी थी ?
उत्तर :
लेखिका को अंगदोरजी, ल्हाटू, की, जय और मीनू के साथ चढ़ाई करनी थी। की, जय और मीनू उससे बहुत पीछे रह गए थे जबकि वह साउथ कोल कैंप पहुँच गई थी। बाद में वे भी आ गए। अगले दिन सुबह 6.20 पर वह अंगदोरजी के साथ चढ़ाई के लिए निकल पड़ी, जबकि अन्य कोई भी व्यक्ति उस समय उनके साथ चलने के लिए तैयार नहीं था।

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प्रश्न 6.
लोपसांग ने तंबू का रास्ता कैसे साफ़ किया ?
उत्तर :
एक बहुत बड़ा बर्फ़ का पिंड ल्होत्से के ग्लेशियर से टूटकर लेखिका के तंबू पर गिर गया था और लेखिका चारों तरफ़ से बर्फ़ की कब्र में दब गई थी। उस समय लोपसांग ने अपनी स्विस छुरी से तंबू का रास्ता साफ़ किया। फिर लेखिका के पास से बड़े-बड़े हिमपिंडों को हटाने के बाद उसने जमी हुई बर्फ़ की खुदाई करके लेखिका को बर्फ़ की कब्र से बाहर निकाला।

प्रश्न 7.
साउथ कोल कैंप पहुँचकर लेखिका ने अगले दिन की महत्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी कैसे शुरू की ?
उत्तर :
लेखिका ने साउथ कोल कैंप पहुँचकर अगले दिन की अपनी महत्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी शुरू कर दी। इसके लिए उसने खाने-पीने का सामान, कुकिंग गैस तथा कुछ ऑक्सीजन के सिलिंडर एकत्र किए। बाद में वह पीछे रह गए अपने साथियों की सहायता करने के लिए नीचे चली गई।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
उपनेता प्रेमचंद ने किन स्थितियों से अवगत कराया ?
उत्तर :
एवरेस्ट पर जानेवाले दल के उपनेता प्रेमचंद थे। वे एक अनुभवी पर्वतारोही थे। उपनेता प्रेमचंद ने उन्हें हिमपात से बचने के लिए समझाया, क्योंकि उनका कैंप हिमपात के क्षेत्र में पड़ता था। प्रेमचंद ने उन्हें रस्सियों से पुल बनाने के लिए तैयार रहने के लिए भी कहा, क्योंकि उनके द्वारा बनाया गया पुल हिमपात से कभी भी टूट सकता था। उन्होंने उन्हें ग्लेशियर से भी सावधान रहने के लिए कहा। साथ ही हिमपात से बनी दरारों से भी सावधान रहने की चेतावनी दी।

प्रश्न 2.
हिमपात किस तरह होता है और उससे क्या-क्या परिवर्तन आते हैं ?
उत्तर :
आकाश से बर्फ के गिरने को हिमपात कहते हैं। हिमपात में आकाश से बर्फ के खंड बेढंगे तरीके से जमीन पर गिरते हैं। इससे ग्लेशियर बहने लगते हैं और उनके बहने से अकसर बर्फ में हलचल हो जाती है। इससे बर्फ की बड़ी-बड़ी चट्टानें तुरंत गिर जाती हैं और खतरनाक स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ग्लेशियर के बहने से धरातल पर दरारें पड़ जाती हैं। यही दरारें कभी-कभी बर्फ के गहरे और चौड़े सुराखों में बदल जाती हैं, जिनमें धँसने से लोगों की मौत भी हो जाती है।

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प्रश्न 3.
लेखिका के तंबू में गिरे बर्फ़ पिंड का वर्णन किस तरह किया गया है ?
उत्तर :
लेखिका के तंबू पर जब बर्फ़ का पिंड गिरा, तब वह गहरी नींद में सो रही थी। जब पिंड का एक हिस्सा उसके सिर के पिछले हिस्से से टकराया, तो उसकी नींद खुल गई। उस समय रात के साढ़े बारह बजे का समय था। उसी समय एक ज़ोर का धमाका हुआ और कोई ठंडी व बहुत भारी वस्तु उसके शरीर को कुचलती चली गई। उसे साँस लेने में भी कठिनाई होने लगी। बर्फ़ का एक लंबा पिंड उनके कैंप के ऊपर ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर गिरा था। वह एक विशाल हिमपुंज बन गया था। वह एक एक्सप्रेस रेलगाड़ी की तेज़ गति और भीषण आवाज़ के साथ सीधी ढलान से उनके कैंप पर गिरा था।

प्रश्न 4.
‘की’ लेखिका को देखकर हक्का-बक्का क्यों रह गया ?
उत्तर :
लेखिका जब साउथ कोल कैंप पहुँची, तो अगले दिन की चढ़ाई की तैयारी में व्यस्त हो गई। जब उसकी सारी तैयारी पूरी हो गई तो उसने देखा कि की, जय और मीनू अभी तक नहीं आए हैं। दोपहर बाद उसने अपने इन साथियों की सहायता करने का निश्चय किया। वह एक थरमस में जूस और दूसरे में गरम चाय लेकर नीचे चल पड़ी। रास्ते में उसे मीनू और जय मिले। जय ने उससे चाय लेकर पी और उसे अधिक नीचे जाने से रोका। परंतु लेखिका जय की बात अनसुनी करके नीचे की ओर उतरने लगी। थोड़ा और नीचे उतरने पर उसे की मिला। वह उसे देखकर हक्का-बक्का रह गया कि वह कहाँ से आ गई ? उसने उसे इतना जोखिम उठाने के लिए टोका। लेखिका ने उसे समझाया कि वह भी एक पर्वतारोही है और अपने साथियों की सहायता करना वह अपना फ़र्ज समझती है। की हँसा और जूस पीकर उसके साथ ऊपर चल पड़ा।

प्रश्न 5.
एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए कुल कितने कैंप बनाए गए ? उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर :
एवरेस्ट पर चढ़ाई करने के लिए शिखर कैंप और बेस कैंप के अतिरिक्त चार कैंप लगाए गए थे। कैंप – एक तक इन्होंने सामान ढोकर चढ़ाई का अभ्यास किया। कैंप-दो पर दल सोलह मई को प्रातः आठ बजे पहुँचा था। कैंप – तीन 15-16 मई को बुद्ध पूर्णिमा के दिन ल्होत्से की बर्फ़ीली सीधी ढलान पर नाइलॉन के बने सुंदर रंगीन तंबुओं से लगाया गया था। इसे ग्लेशियर से टूटकर आए हिमखंड ने गिरा दिया था। कैंप-चार साउथ कोल में सात हजार नौ सौ मीटर की ऊँचाई पर लगाया गया था। यह कैंप सुरक्षा और आराम की दृष्टि से अच्छा कैंप था।

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प्रश्न 6.
चढ़ाई के समय एवरेस्ट की चोटी की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर :
चढ़ाई के समय एवरेस्ट की चोटी पर तेज़ हवाएँ चल रही थीं। इन तेज़ हवाओं के कारण भुरभुरी बर्फ़ के कण वातावरण में चारों ओर उड़ रहे थे। इससे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। वहाँ आगे की चढ़ाई शेष नहीं थी। एकदम सीधी ढलान नीचे जा रही थी। चोटी पर इतनी भी जगह नहीं थी कि वहाँ एक साथ दो व्यक्ति खड़े हो सकते। चोटी के चारों ओर हज़ारों मीटर लंबी सीधी ढलान थी। उन्होंने वहाँ की बर्फ़ की खुदाई करके अपने लिए खड़े रहने का सुरक्षित स्थान बनाया।

प्रश्न 7.
सम्मिलित अभियान में सहयोग एवं सहायता की भावना का परिचय बचेंद्री के किस कार्य से मिलता है ?
उत्तर :
जब बचेंद्री साउथ कोल कैंप पहुँची, तो उसने अगले दिन की चढ़ाई की पूरी तैयारी कर ली। की, जय और मीनू के साथ उसने अगले दिन की चढ़ाई करनी थी, परंतु वे अभी तक वहाँ पहुँचे नहीं थे। इससे वह चिंतित हो उठी और एक थरमस में जूस व दूसरे में गरम चाय लेकर वह उन्हें ढूँढने नीचे की ओर चल पड़ी। कैंप से बाहर आते ही उसकी मीनू से मुलाकात हो गयी। आगे जाने पर जेनेवा स्पर की चोटी पर उसे जय मिला। उसने चाय पीकर उसे धन्यवाद दिया तथा नीचे जाने से रोका। परंतु वह कुछ नीचे गई, तो उसे की मिल गया। वह उसे वहाँ देखकर हैरान रह गया तथा जूस पीकर उसके साथ ऊपर की ओर चल पड़ा। बचेंद्री के इस कार्य से उसकी सहयोग और सहायता की भावना का परिचय मिलता है।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
एवरेस्ट जैसे महान अभियान में खतरों को और कभी-कभी तो मृत्यु भी आदमी को सहज भाव से स्वीकार करनी चाहिए।
उत्तर :
इस पंक्ति में लेखिका स्पष्ट करना चाहती है कि एवरेस्ट की चोटी पर जाने का अभियान बहुत खतरनाक होता है। तेज हवाओं, हिमपात, बर्फ़ की चट्टानों के खिसकने आदि का कुछ पता नहीं चलता। इन प्राकृतिक आपदाओं का सामना करते हुए यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु भी हो जाए तो उसे भी सहज रूप से स्वीकार कर लेना चाहिए, क्योंकि ऐसे महान अभियानों में यह भी संभव है।

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प्रश्न 2.
सीधे धरातल पर दरार पड़ने का विचार और इस दरार का गहरे-चौड़े हिम-विदर में बदल जाने का मात्र ख्याल ही बहुत डरावना था। इससे भी ज्यादा भयानक इस बात की जानकारी थी कि हमारे संपूर्ण प्रयास के दौरान हिमपात लगभग एक दर्जन आरोहियों और कुलियों को प्रतिदिन छूता रहेगा।
उत्तर :
हिमपात और ग्लेशियर के बहने से बड़ी-बड़ी बर्फ की चट्टानों के गिरने की बात सुनने के बाद लेखिका को यह सुनना और भी भयभीत करने वाला लग रहा था कि इन बड़ी-बड़ी बर्फ़ की चट्टानों के गिरने से कई बार धरातल पर दरारें पड़ जाती हैं। ये दरारें बहुत गहरी और चौड़ी बर्फ से ढकी हुई गुफाओं में बदल जाती हैं, जिनमें धँसकर मनुष्य का जीवित रहना संभव नहीं है। इसके अतिरिक्त उसे यह जानकारी और भी अधिक भयानक लगी कि इनके सारे अभियान में यह हिमपात लगभग एक दर्जन पर्वतारोहियों और कुलियों को प्रतिदिन प्रभावित करता रहेगा। उन्हें इसका सामना करना पड़ेगा।

प्रश्न 3.
बिना उठे ही मैंने अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकाला। मैंने इनको अपने साथ लाए लाल कपड़े में लपेटा, छोटी-सी पूजा-अर्चना की और इनको बर्फ में दबा दिया। आनंद के इस क्षण में मुझे अपने माता-पिता का ध्यान आया।
उत्तर :
जब लेखिका एवरेस्ट की चोटी पर पहुँची, तो बहुत रोमांचित हो उठी। वह प्रथम भारतीय महिला थी, जो यहाँ पहुँची थी। इस पल की प्रसन्नता को अपने आराध्य और माता-पिता के आशीर्वादों का फल मानते हुए उसने झुके हुए ही अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकालकर लाल कपड़े में लपेटी और उनकी सहज भाव से संक्षिप्त पूजा करने के बाद उन्हें बर्फ में दबा दिया। अपनी सफलता के इन पलों में उसे अपने माता-पिता की याद भी आ गई, जिनके आशीर्वाद से वह इस सफलता तक पहुँची थी।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
इस पाठ में प्रयुक्त निम्नलिखित शब्दों की व्याख्या पाठ का संदर्भ देकर कीजिए –
उत्तर :
निहारा है, धसकना, खिसकना, सागरमाथा, जायज़ा लेना, नौसिखिया।
निहारा है – लेखिका ने नमचे बाज़ार में पहुँचकर ही सबसे पहले एवरेस्ट को देखा था। वह उसे देखते ही उसके सौंदर्य पर मुग्ध हो गई थी। इसलिए लेखिका ने इसे मात्र ‘देखा’ न कहकर ‘निहारा ‘ कहती है।
धसकना – ग्लेशियर के पिघलने से धरती धसक जाती थी।
खिसकना – हिमपात से बर्फ़ की चट्टानें खिसक जाती थीं।
सागरमाथा – नेपालियों ने एवरेस्ट का नाम सागरमाथा रखा हुआ था, जो लेखिका को भी अच्छा लगा क्योंकि एवरेस्ट की चोटी से चारों ओर हिम का सागर-सा लहराता दिखाई देता है जिसमें चोटी उस सागर के माथे के समान चमकती रहती है।
जायज़ा लेना – पर्वतारोहियों से पहले अग्रिम दल मार्ग का जायजा लेता था।
नौसिखिया – जब तेनजिंग ने लेखिका से उसका परिचय पूछा तो अपना परिचय देते हुए उसने स्वयं को पर्वतारोहण के क्षेत्र में नौसिखिया बताया। यहाँ नौसिखिया का अर्थ नया-नया सीखने वाला अथवा अनाड़ी का भाव व्यक्त करता है।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियों में उचित विराम चिह्नों का प्रयोग कीजिए –
उत्तर :
(i) उन्होंने कहा तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए –
(ii) क्या तुम भयभीत थीं
(iii) तुमने इतनी बड़ी जोखिम क्यों ली बचेंद्री
उत्तर :
(i) उन्होंने कहा, “तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो। तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए।”
(ii) “क्या तुम भयभीत थीं ?”
(iii) “तुमने इतनी बड़ी जोखिम क्यों ली बचेंद्री ?”

प्रश्न 3.
नीचे दिए उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित शब्द-युग्मों का वाक्य में प्रयोग कीजिए –
उदाहरण: हमारे पास एक वॉकी-टॉकी था।
टेढ़ी-मेढ़ी, हक्का-बक्का, गहरे-चौड़े, इधर-उधर, आस-पास, लंबे-चौड़े
उत्तर :
टेढ़ी-मेढ़ी : विंध्याचल में सड़कें टेड़ी-मेढ़ी हैं।
हक्का-बक्का : सुरेश को अचानक आया देखकर राजेश हक्का-बक्का रह गया।
गहरे-चौड़े : भूकंप से चमोली की धरती में गहरे-चौड़े खड्डे बन गए।
इधर-उधर : कृष्णन सदा इधर-उधर की हाँकता रहता है, मतलब की बात नहीं करता।
आस-पास : समीना के घर के आस-पास बहुत हरियाली है।
लंबे-चौड़े : नेता वायदे तो लंबे-चौड़े करते हैं, परंतु पूरा एक भी नहीं करते।

प्रश्न 4.
उदाहरण के अनुसार विलोम शब्द बनाइए –
उदाहरण: अनुकूल – प्रतिकूल।
नियमित, विख्यात, आरोही, निश्चित, सुंदर
उत्तर :
नियमित अनियमित, विख्यात कुख्यात, आरोही अवरोही, निश्चित – अनिश्चित, सुंदर – कुरूप।

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों में उपयुक्त उपसर्ग लगाइए – जैसे : पुत्र- सुपुत्र।
वास, व्यवस्थित, कूल, गति, रोहण, रक्षित
उत्तर :
वास – निवास, निवास, व्यवस्थित अव्यवस्थित, कूल अनुकूल, गति प्रगति, रोहण आरोहण, रक्षित सुरक्षित

प्रश्न 6.
निम्नलिखित क्रिया-विशेषणों का उचित प्रयोग करते हुए रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
अगले दिन, कम समय में, कुछ देर बाद, सुबह तक
(i) मैं ……………. यह कार्य कर लूँगा।
(ii) बादल घिरने के ………….. ही वर्षा हो गई।
(iii) उसने बहुत …………… इतनी तरक्की कर ली।
(iv) नाइकेसा को …………… गाँव जाना था।
उत्तर
(i) मैं सुबह तक यह कार्य कर लूँगा।
(ii) बादल घिरने के कुछ देर बाद ही वर्षा हो गई।
(iii) उसने बहुत कम समय में इतनी तरक्की कर ली।
(iv) नाङकेसा को अगले दिन गाँव जाना था।

योग्यता विस्तार –

प्रश्न 1.
इस पाठ में आए दस अंग्रेज़ी शब्दों का चयन कर उनका अर्थ लिखिए।
उत्तर :

  • बेस कैंप = आधार शिविर
  • ग्लेशियर = हिमनदी
  • एक्सप्रेस = शीघ्रगामी, तेज़
  • फोटो = छायाचित्र
  • प्लूम = पिच्छक
  • साउथ = दक्षिण
  • कुकिंग गैस = खाना पकाने वाली गैस
  • रेगुलेटर = नियंत्रक
  • सिलिंडर = बेलन
  • जूस = रस

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प्रश्न 2.
पर्वतारोहण से संबंधित दस चीज़ों के नाम लिखिए।
उत्तर :
फावड़ा, रस्सी, ऑक्सीजन, वॉकी-टॉकी, एल्युमिनियम की सीढ़ियाँ, छुरी, थरमस, कुकिंग गैस, जूस, खाना।

प्रश्न 3.
तेनजिंग शेरपा की पहली चढ़ाई के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 4.
इस पर्वत का नाम ‘एवरेस्ट’ क्यों पड़ा ? जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
आगे बढ़ती भारतीय महिलाओं की पुस्तक पढ़कर उनसे संबंधित चित्रों का संग्रह कीजिए एवं संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करके लिखिए –
(क) पी० टी० उषा
(ख) आरती साहा
(ग) किरन बेदी
प्रश्न 2.
रामधारी सिंह दिनकर का लेख – ‘हिम्मत और जिंदगी’ पुस्तकालय से लेकर पढ़िए।
प्रश्न 3.
‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ – इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा’ पाठ के आधार पर बचेंद्री के चरित्र की किन्हीं चार विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
बचेंद्री के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
(i) साहसी – बचेंद्री एक साहसिक महिला हैं। एवरेस्ट अभियान में आने वाली कठिनाइयों को जानते हुए भी वे एवरेस्ट अभियान पर जाने के लिए तैयार हो जाती हैं। वे एवरेस्ट के प्रति विचित्र रूप से आकर्षित थीं और इसकी कठिनतम चुनौतियों का सामना करना चाहती थीं।

(ii) सहृदय – बचेंद्री दूसरों के सुख-दुख में सहायता देने वाली महिला हैं। वे अपने साथियों से पहले ही साउथ कोल कैंप पहुँच गई थीं। जब उनके साथी की, जय और मीनू बहुत देर तक वहाँ न आए तो उनकी सहायता करने का निश्चय करके एक थरमस में जूस और दूसरे में गरम चाय लेकर नीचे की ओर चल पड़ी। कैंप के बाहर ही उनकी भेंट मीनू से हो गई। जय उसे जेनेवा स्पर चोटी पर मिला। उसने चाय पी और बचेंद्री को और नीचे जाने से रोका। पर वे नीचे गईं जहाँ उसे देखकर की हैरान रह गया। उसने जूस पीकर प्यास बुझाई। इस प्रकार बचेंद्री ने अपने साथियों की मदद की।

(iii) स्पष्टवादी – बचेंद्री जो मन में सोचती हैं, स्पष्ट कह देती हैं। तेनजिंग को अपना परिचय देते हुए उसने स्पष्ट कह दिया था कि वे पर्वतारोहण के क्षेत्र में नौसिखिया हैं और एवरेस्ट उसका प्रथम अभियान है। तेनजिंग ने उसका उत्साह बढ़ाते हुए कहा था कि वह एक पक्की पहाड़ी लड़की है। वह पहले ही प्रयास में एवरेस्ट की चोटी पर पहुँच जाएगी।

(iv) आस्थावान – बचेंद्री एक आस्तिक महिला हैं। वे एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचकर घुटनों के बल बैठकर एवरेस्ट की चोटी का चुंबन करती हैं और फिर अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकालकर एक लाल कपड़े में लपेटकर पूजा करने के बाद उन्हें वहीं गाड़ देती हैं। यह सब उनके अपने आराध्य के प्रति आस्था को व्यक्त करता है। इस अवसर पर वे अपने माता-पिता को भी स्मरण करती हैं।

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प्रश्न 2.
पैरिच पहुँचने पर लेखिका के दल को क्या समाचार मिला ?
उत्तर :
पैरिच पहुँचने पर लेखिका के दल को हिमस्खलन होने का समाचार मिला। खुंभु हिमपात पर जाने वाले अभियान दल के रास्ते के बाईं ओर सीधी पहाड़ी धँस गई थी। ल्होत्से की ओर बहुत बड़ी बर्फ़ की चट्टान नीचे खिसक आई थी। इस प्रकार के हिमस्खलन से सोलह शेरपा कुलियों के दल में से एक की मृत्यु हो गई थी और चार घायल हो गए थे।

प्रश्न 3.
पर्वतारोहियों के अग्रिम दल के उपनेता प्रेमचंद ने पर्वतारोहियों को किस बात से अवगत करवाया ?
उत्तर :
उपनेता प्रेमचंद ने पर्वतारोहियों के सदस्यों को उनकी पहली बाधा खुंभु हिमपात की स्थिति से अवगत करवाया। उनके दल ने कैंप एक के लिए; जो हिमपात के ऊपर बना था; रास्ता साफ कर दिया था। प्रेमचंद ने बताया कि उन लोगों को पुल बनाकर, रस्सियाँ बाँधकर तथा झंडियों से रास्ता चिह्नित करना है। उन्होंने यह भी बताया कि हिमपात के कारण मौसम में अनियमित और अनिश्चित बदलाव होने के कारण सभी काम व्यर्थ हो सकते हैं। यह भी हो सकता है कि उन्हें बर्फ़ में रास्ता खोलने का काम दोबारा शुरू करना पड़े।

प्रश्न 4.
हिमपात और ग्लेशियर क्या हैं ? ग्लेशियर के बहने से क्या होता है ?
उत्तर :
आकाश से बर्फ़ की वर्षा को हिमपात कहते हैं। ग्लेशियर हिमनदी को कहते हैं। नदी का पानी बर्फ बन जाता है, जो गर्मी पाकर पिघलने लगता है। ग्लेशियर के बहने से जमी हुई बर्फ पिघलने लगती है। इससे बर्फ़ की बड़ी-बड़ी चट्टानें टूटकर पहाड़ से नीचे गिर जाती हैं। इनके नीचे गिरने से जो कुछ भी इनके नीचे होता है, वह दब जाता है।

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प्रश्न 5.
लेखिका के लिए कौन-सा ख्याल डरावना था ?
उत्तर :
लेखिका और अन्य सदस्यों को बताया गया था कि ग्लेशियर के बहने से अकसर बर्फ़ में हलचल हो जाती है और बर्फ़ की बड़ी-बड़ी चट्टानें गिरने लगती हैं। अधिक खतरनाक स्थिति होने पर धरातल पर दरार पड़ने लगती है। इस दरार के गहरे होने पर चौड़ी बर्फ़ की गुफा बन जाती है। यदि इसमें कोई व्यक्ति धँस जाता है, तो उसकी मृत्यु भी हो सकती है। यह ख्याल लेखिका को बहुत डरावना लग रहा था।

प्रश्न 6.
हिमपिंड के ग्लेशियर से टूटकर गिर जाने पर क्या हुआ और लेखिका को आश्चर्य क्यों हुआ ?
उत्तर :
15-16 मई, सन् 1984 को लेखिका अपने साथियों के साथ कैंप में सो रही थी। रात को लगभग 12:30 बजे ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर एक हिमपिंड लेखिका के कैंप के ऊपर ऐसे आ गिरा, जैसे एक्सप्रेस रेलगाड़ी तेज गति से भीषण गर्जना करते हुए आती है। हिमपिंड के गिरने से कैंप तहस-नहस हो गया था। हिमपिंड के गिरने से उनका कैंप पूरी तरह से नष्ट हो गया था; कैंप में सोए हुए प्रत्येक व्यक्ति को चोट भी लगी थी, परंतु किसी की भी इतनी बड़ी दुर्घटना में मृत्यु नहीं हुई थी। उसी बात पर लेखिका को आश्चर्य हो रहा था।

प्रश्न 7.
अंगदोरजी कैसे चढ़ाई करने वाले थे और उनकी स्थिति कैसी हो जाती थी ?
उत्तर :
अंगदोरजी बिना ऑक्सीजन के चढ़ाई करने वाले थे। इस कारण से उनके पैर ठंडे पड़ जाते थे। इसलिए वे ऊँचाई पर लंबे समय तक खुले में और रात में शिखर कैंप पर नहीं जाना चाहते थे। अपनी इस स्थिति के कारण उन्हें या तो उसी दिन चोटी पर चढ़कर साउथ कोल वापस आना था या फिर ऊपर जाने का अपना निश्चय छोड़ देना था।

प्रश्न 8.
साउथ कोल से बाहर निकलते समय का वातावरण कैसा था ?
उत्तर :
जब लेखिका और अंगदोरजी साउथ कोल से बाहर निकले, तो दिन चढ़ गया था। हल्की-हल्की हवा चल रही थी। ठंड बहुत अधिक थी। जमी हुई बर्फ़ की सीधी तथा ढलान वाली चट्टानें बहुत अधिक सख्त और भुरभुरी थीं। उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था, जैसे शीशे की चादरें बिछी हुई हों।

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प्रश्न 9.
लेखिका कितने बजे एवरेस्ट पर पहुँची और उसने वहाँ क्या किया ?
उत्तर :
अंगदोरजी तथा सहायक ल्हाटू के साथ लेखिका 23 मई, सन् 1984 के दिन दोपहर एक बजकर सात मिनट पर एवरेस्ट की चोटी पर पहुँची थी। वह वहाँ पहुँचने वाली पहली भारतीय महिला थी। वहाँ पहुँचकर उसने बर्फ़ को अपने माथे पर लगाकर ‘सागरमाथे’ के ताज का चुंबन लिया। उन्होंने दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकालकर छोटी-सी पूजा की और उन्हें लाल कपड़े में लपेटकर बर्फ में दबा दिया। उसने उस आनंद के क्षण में अपने माता-पिता को याद किया।

प्रश्न 10.
नमचे बाज़ार के बारे में आप क्या जानते हैं ? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
नमचे बाज़ार शेरपालैंड का एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण नगरीय क्षेत्र है। अधिकांश शेरपा इसी स्थान तथा यहीं के आस-पास के गाँवों के होते हैं। इसी स्थान से लेखिका ने पहली बार एवरेस्ट को निहारा था। यह नेपालियों में ‘सागरमाथा’ के नाम से प्रसिद्ध है। स्थानीय लोगों की ‘सागरमाथा’ के प्रति अत्यंत श्रद्धा है।

प्रश्न 11.
प्लूम किसे कहते हैं? यह कैसे बनता है ?
उत्तर :
कूल बर्फ के एक बड़े तथा भारी फूल को प्लूम कहते हैं। यह पर्वत की चोटी पर लहरता हुआ इस प्रकार दिखाई देता है, जैसे कोई ध्वज हो। यह बर्फ का पर्वत शिखर की ऊपरी सतह के आस-पास 150 किलोमीटर अथवा इससे भी अधिक गति से हवा चलने के क्योंकि सूखी बर्फ़ तेज हवा के कारण पर्वत के शिखर पर उड़ती रहती है। बर्फ का यह ध्वज दस किलोमीटर या इससे भी अधिक लंबा हो सकता है।

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प्रश्न 12.
‘बेस कैंप’ पहुँचने से पहले लेखिका और उसके दल को कौन-सी सूचना मिली।
उत्तर :
बेस कैंप पहुँचने से पहले लेखिका और उसके दल को रसोई सहायक की मृत्यु की सूचना मिली, जो जलवायु अनुकूल न होने के कारण मृत्यु का ग्रास बन गया था। यह समाचार लेखिका और उसके दल को हिलाकर रख देने वाला था। लेखिका और उसका दल निश्चित रूप से किसी आशाजनक स्थिति में नहीं चल रहे थे।

प्रश्न 13.
लेखिका किसे देख भौचक्की रह गई और देर तक निहारती रही ? ‘एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
बेस कैंप पहुँचकर लेखिका ने दूसरे दिन एवरेस्ट पर्वत तथा उसकी अन्य श्रेणियों को देखा। यह दृश्य इतना सुंदर और मन को भा जाने वाला था कि लेखिका आश्चर्यचकित होकर खड़ी रह गई। वह पर्वत श्रेणी को ही निहारती रही कि किस प्रकार एवरेस्ट ल्होत्से और नुत्से की ऊँचाइयों से घिरा हुई है। साथ-ही-साथ लेखिका टेढ़ी-मेढ़ी बर्फ़ीली नदी को भी निहार रही थी, जिसे देखकर उसे सुखद आनंद का अनुभव हो रहा था।

प्रश्न 14.
लेखिका और उसके दल के लिए तीसरा दिन क्या करने के लिए निश्चित था ?
उत्तर :
लेखिका और उसके साथियों के लिए तीसरा दिन हिमपात से कैंप एक तक सामान ढोकर चढ़ाई का अभ्यास करने के लिए निश्चित था। लेखिका और उसकी साथी पर्वतारोही रीता गोंबू साथ-साथ चढ़ रहे थे। इन दोनों के पास एक ही वॉकी-टॉकी था। इसी वॉकी-टॉकी के माध्यम से चढ़ाई की प्रत्येक जानकारी लेखिका और उसकी साथी बेस कैंप तक पहुँचा रही थी। जब लेखिका और उसकी साथी रीता गोंबू कैंप पहुँचे, तो कर्नल खुल्लर बहुत प्रसन्न हुए; कैंप एक में पहुँचने वाली केवल ये दो ही महिलाएँ थीं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

प्रश्न 15.
अप्रैल मास में तेनजिंग से हुई मुलाकात से लेखिका का मनोबल कैसे बढ़ा ?
उत्तर :
अप्रैल मास में लेखिका बेस कैंप में थी। इसी कैंप में तेनज़िंग अपनी सबसे छोटी पुत्री डेकी के साथ लेखिका और उसके साथियों से मिलने आए थे। तेनजिंग इस बात पर विशेष जोर दे रहे थे कि दल के प्रत्येक सदस्य तथा प्रत्येक शेरपा कुली से बातचीत की जाए। जब लेखिका की परिचय देने की बारी आई, तो लेखिका ने कहा कि वह बिलकुल ही नौसिखिया है और एवरेस्ट उसका पहला अभियान है। तब तेनजिंग ने लेखिका के कंधे पर अपना हाथ रखते हुए कहा, “तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो। तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए।” तेनजिंग के इन शब्दों से लेखिका का मनोबल अत्यंत ऊँचा उठ गया।

प्रश्न 16.
साउथ कोल कैंप पहुँचकर लेखिका ने अगले दिन की चढ़ाई की तैयारी के लिए क्या-क्या किया ? वह चिंतित क्यों थी ?
उत्तर :
लेखिका जैसे ही साउथ कोल कैंप पहुँची, वह अगले दिन की अपनी महत्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी में जुट गई। उसने खाना, कुकिंग गैस तथा कुछ ऑक्सीजन सिलिंडर इकट्ठे किए। लेखिका चिंतित थी, क्योंकि उसके साथी जय और मीनू अभी बहुत पीछे थे। लेखिका को अगले दिन इन्हीं लोगों के साथ चढ़ाई करनी थी। लेखिका के साथी इसलिए धीरे आ रहे थे, क्योंकि वे बिना ऑक्सीजन के चल रहे थे।

प्रश्न 17.
साउथ कोल के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर :
साउथ कोल पृथ्वी पर बहुत अधिक कठोर स्थानों में से एक है। इसी कारण यह प्रसिद्ध है। साउथ कोल लेखिका और उसके दल के लिए एक बेस कैंप था। अन्य कैंप की अपेक्षा यहाँ अधिक सुरक्षा और आराम उपलब्ध था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

प्रश्न 18.
लेखिका एवरेस्ट की चोटी पर कब पहुँची ?
उत्तर :
लेखिका 23 मई 1984 के दिन दोपहर एक बजकर सात मिनट पर एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। वह एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचने वाली प्रथम भारतीय महिला थी। वहाँ पहुँचकर लेखिका ने अपने अदम्य साहस और अथाह परिश्रम का परिचय दिया था।

एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा Summary in Hindi

लेखिका – परिचय :

जीवन-परिचय – एवरेस्ट विजेता बचेंद्री पाल का जन्म उत्तराखंड के चमोली जिले के बंपा गाँव में 24 मई, सन् 1954 ई० को हुआ था। इनकी माता का नाम हंसादेई नेगी और पिता का नाम किशन सिंह पाल है। ये अपने माता-पिता की तीसरी संतान हैं। आर्थिक कठिनाई के कारण इनके पिता ने इन्हें आठवीं कक्षा तक पढ़ाया। बाद में इन्होंने सिलाई-कढ़ाई करके खर्चा जुटाया और दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। बचेंद्री के प्राचार्य ने इनके पिता को इन्हें आगे पढ़ाने के लिए समझाया। अनेक विषम परिस्थितियों से जूझते हुए इन्होंने एम० ए० (संस्कृत) और बी० एड० तक की शिक्षा प्राप्त की। बचेंद्री पाल को पहाड़ों पर चढ़ने का बचपन से ही शौक था। इन्हें पाँच-छह मील पहाड़ की चढ़ाई चढ़ कर और उतरकर विद्यालय जाना पड़ता था। जब इंडियन माउंटेन फाउंडेशन ने एवरेस्ट अभियान पर जाने के लिए महिलाओं की खोज की, तो वे इस दल में शामिल हो गईं। ट्रेनिंग करते हुए इन्होंने सात हजार पाँच सौ मीटर ऊँची मान चोटी पर सफलापूर्वक चढ़ाई की थी। कई महीने अभ्यास करने के बाद में ये एवरेस्ट विजय पर गईं और 23 मई, 1984 ई० को एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचने वाली प्रथम भारतीय महिला बन गईं।

रचनाएँ – बचेंद्री पाल ने एवरेस्ट विजय की अपनी रोमांचक पर्वतारोहण – यात्रा का संपूर्ण विवरण स्वयं लिखा है

भाषा-शैली – लेखिका ने अपनी एवरेस्ट विजय का विवरण अत्यंत ही सहज तथा बोलचाल की भाषा में लिखा है। इसमें यथास्थान तत्सम प्रधान शब्दों की अधिकता है; जैसे- दुर्गम, शिखर, हिमपात, अवसाद, प्रवास, आरोही, उपस्कर, शंकु आदि। इनके साथ ही विदेशी शब्दों का प्रयोग भी सहज भाव से किया गया है; जैसे- बेस कैंप, किलोमीटर, खराब, जोखिम, नाइलॉन, सख्त, ऑक्सीजन, सिलिडंर आदि। लेखिका की शैली अत्यंत रोचक तथा प्रवाहमयी है। कहीं-कहीं इनकी शैली चित्रात्मक भी हो गई है; जैसे- ‘यह क्या हो गया था ? एक लंबा बर्फ़ का पिंड हमारे कैंप के ठीक ऊपर से होते हुए ग्लेशियर से टूटकर नीचे आ गिरा था और उसका विशाल हिमपुंज बन गया था। हिमखंडों, बर्फ के टुकड़ों तथा जमी हुई बर्फ़ के इस विशाल पुंज ने एक एक्सप्रेस रेलगाड़ी की तेज़ गति और भीषण गर्जना के साथ, सीधी ढलान से नीचे आते हुए कैंप को तहस-नहस कर दिया।’ लेखिका की भाषा – शैली की सहजता पाठक को सहज ही एवरेस्ट यात्रा का आनंद प्रदान करती है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

पाठ का सार :

बचेंद्री पाल द्वारा रचित ‘एवरेस्ट विजय’ में उनकी अपनी रोमांचक पर्वतारोहण-यात्रा का संपूर्ण विवरण है, जिसमें से कुछ अंश ‘एवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा’ पाठ के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसमें लेखिका के एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचकर तिरंगा झंडा लहराने का वर्णन किया गया है।

लेखिका एवरेस्ट अभियान दल के साथ 7 मार्च, सन् 1984 ई० को दिल्ली से काठमांडू के लिए हवाई जहाज़ से रवाना हो गई। एक अग्रिम दल इनसे पहले ही जा चुका था, जिससे इनके ‘बेस कैंप’ पहुँचने से पहले ही बर्फ़ गिरने से रुके हुए कठिन मार्गों को साफ़ किया जा सके। शेरपालैंड के नमचे बाज़ार से उसने सर्वप्रथम एवरेस्ट को देखा। नेपाली इसे सागरमाथा कहकर पुकारते हैं। एवरेस्ट पर उसे एक भारी बर्फ का बड़ा फूल, जिसे अंग्रेज़ी में प्लूम कहते हैं, दिखाई दिया। यह एवरेस्ट के शिखर की ऊपरी सतह के आसपास 150 किलोमीटर अथवा इससे भी तेज़ गति से हवा के चलने से बनता था। यह दस किलोमीटर या इससे भी लंबा हो सकता था। शिखर पर जाने वालों को इन तूफ़ानों को झेलना पड़ता था। लेखिका इस विवरण से भयभीत नहीं हुई। वह एवरेस्ट के प्रति विचित्र प्रकार से आकर्षित थी तथा इसके लिए सब प्रकार की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार थी। जब इनका दल 26 मार्च को पैरिच पहुँचा, तो इन्हें बर्फ़ के खिसकने से हुई शेरपा कुली की मृत्यु का समाचार मिला।

हिमपात के समय बर्फ़ के खंड बेतरतीब से गिरते हैं और ग्लेशियर के बहने से बड़ी-बड़ी चट्टानें फ़ौरन गिर जाती हैं। ऐसे में धरातल पर दरार पड़ जाने से खतरनाक स्थिति बन जाती है। हमें बताया गया कि यह हिमपात सारे प्रवास के दौरान हमारे साथ रहेगा। दूसरे दिन वे अपना अधिकांश सामान हिमपात के आधे रास्ते तक ले गए और डॉ० मीनू मेहता से उन्होंने एलुमिनियम की सीढ़ियों से अस्थाई पुल बनाना, रस्सियों का उपयोग, बर्फ़ की आड़ी-तिरछी दीवारों पर रस्सी बाँधना आदि सीखा।

तीसरे दिन रीता गोबू के साथ लेखिका ने हिमपात से कैंप तक सामान ढोकर चढ़ाई की। बेस कैंप को सूचना देने के लिए उनके पास वॉकी-टॉकी थी, जिससे उन्होंने कर्नल खुल्लर को अपने कैंप पर पहुँचने की सूचना दी। अंगदोरजी, लोपसांग और गगन बिस्सा 29 अप्रैल को साउथ कोल पहुँच गए, जहाँ उन्होंने सात हज़ार नौ सौ मीटर पर चौथा कैंप लगाया।

जब अप्रैल में लेखिका बेस कैंप में थी, तो तेनजिंग अपनी सबसे छोटी पुत्री डेकी के साथ उसके पास आए थे तथा उन्होंने दल के प्रत्येक सदस्य के साथ बात की थी। लेखिका ने जब स्वयं को पर्वतारोहण में नौसिखिया बताया, तो उन्होंने लेखिका के कंधे पर अपना हाथ रख कर कहा कि वह एक पर्वतीय लड़की है। इसलिए पहले ही प्रयास में एवरेस्ट के शिखर पर पहुँच जाएगी।

15-16 मई, सन् 1984 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन वह ल्होत्से की बर्फ़ीली सीधी ढलान पर लगाए गए तंबू के कैंप तीन में थी। लेखिका के साथ लोपसांग और तशारिंग तथा अन्य लोग दूसरे तंबुओं में थे। लेखिका गहरी नींद में सोई हुई थी कि अचानक रात में साढ़े बारह बजे के लगभग उसके सिर के पिछले हिस्से में एक सख्त चीज़ आकर टकराई, जिससे उसकी नींद खुल गई। तभी एक ज़ोरदार धमाका भी हुआ। उसे ऐसा लगा, जैसे कोई ठंडी और भारी वस्तु उसे कुचलती हुई जा रही है। उसे साँस लेने में कठिनाई होने लगी।

यह एक लंबा बर्फ़ का पिंड था, जो उनके कैंप के ठीक ऊपर ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर आ गिरा था। उससे प्रत्येक व्यक्ति को चोट लगी थी। आश्चर्य इस बात का था कि इस दुर्घटना में मौत किसी की नहीं हुई थी। लोपसांग की छुरी की मदद से तंबू का रास्ता साफ़ किया गया। उन्होंने ही लेखिका को बर्फ़ की कब्र से खींच कर बाहर निकाला था। सुबह तक सुरक्षा दल वहाँ पहुँच गया और 16 मई को सुबह आठ बजे सभी कैंप-दो में पहुँच गए। कर्नल खुल्लर ने सुरक्षा दल के इस कार्य को बहुत साहसिक बताया था। उन्होंने लेखिका से पूछा कि क्या वह इस हादसे से भयभीत है और वापस जाना चाहती है? इस पर लेखिका ने कहा कि वह भयभीत तो है, पर वापस नहीं जाएगी।

साउथ कोल कैंप पहुँचते ही लेखिका ने अपनी महत्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी शुरू कर दी। उसने भोजन, कुकिंग गैस तथा ऑक्सीजन के सिलेंडर एकत्र कर लिए। जय और मीनू पीछे रह गए थे। लेखिका उनके लिए एक थरमस में जूस और दूसरे में गर्म चाय लेकर बर्फीली हवाओं का सामना करते हुए नीचे चल पड़ी। पहले उसकी मुलाकात मीनू से और फिर जय से हुई। अंत में थोड़ा नीचे उतरने पर उसे की मिला। उसने लेखिका के इस प्रकार आने पर आश्चर्य व्यक्त किया और जूस पीकर उसके साथ चल पड़ा। थोड़ी देर बाद साउथ कोल कैंप से ल्हाटू और बिस्सा भी उनसे मिलने नीचे आ गए। बाद में सभी साउथ कोल कैंप में आ गए।

अगले दिन सुबह चार बजे उठकर लेखिका ने बर्फ़ पिघलाकर चाय बनाई और बिस्कुट चॉकलेट का नाश्ता कर लगभग साढ़े पाँच बजे तंबू से बाहर निकल आई। अंगदोरजी तुरंत चढ़ाई शुरू करना चाहते थे। एक ही दिन में साउथ कोल से चोटी तक जाना और लौटना बहुत कठिन और मेहनत का कार्य था। अन्य कोई उनके साथ चलने के लिए तैयार नहीं था। सुबह 6:20 पर लेखिका और अंगदोरजी साउथ कोल से निकल पड़े और दो घंटे से भी कम समय में शिखर कैंप पर पहुँच गए। उसे लगा कि वे दोपहर के एक बजे तक चोटी पर पहुँच जाएँगे।

ल्हाटू उनके पीछे आ रहा था। जब वे दक्षिणी शिखर के नीचे आराम कर रहे थे, तो ल्हाटू भी वहाँ पहुँच गया। चाय पीकर उन्होंने फिर चढ़ाई शुरू कर दी। वे नायलॉन की रस्सी के सहारे आगे बढ़ रहे थे। दक्षिण शिखर पर हवा की गति बढ़ गई थी, जिस कारण वहाँ भुरभुरी बर्फ के कण चारों ओर उड़ रहे थे। इस कारण कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। तभी उसने देखा कि आगे चढ़ाई नहीं है, केवल ढलान ही एकदम सीधे नीचे चली गई है।

यह 23 मई, सन् 1984 का दिन था। दोपहर का एक बजकर सात मिनट का समय था। लेखिका इस समय एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। वह भारत की प्रथम महिला थी, जो इस प्रकार एवरेस्ट की चोटी पर पहुँची थी। वहाँ एक साथ दो व्यक्ति खड़े नहीं हो सकते थे। चारों ओर हज़ारों मीटर लंबी सीधी ढलान थी। उन्होंने बर्फ़ खोदकर स्वयं को ढंग से खड़ा रहने लायक बनाया। फिर घुटनों के बल बैठकर बर्फ़ से अपने माथे को लगाकर सागरमाथे के ताज का चुंबन लिया।

वहीं उसने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकालकर लाल कपड़े में लपेटकर उनकी पूजा कर वहीं बर्फ में दबा दिया। तभी उसे अपने माता-पिता की भी याद आ गई। उसने अंगदोरजी को नमस्कार किया। उन्होंने ही उसे यहाँ तक पहुँचने की प्रेरणा दी थी। लेखिका ने उन्हें बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट पर चढ़ने की बधाई दी, तो उन्होंने भी लेखिका को गले से लगाकर कहा कि तुमने अच्छी चढ़ाई की।

कुछ देर बाद वहाँ सोनम पुलजर आ गए और उन्होंने फ़ोटो खींची। ल्हाटू ने एवरेस्ट पर चारों के होने की सूचना दल के नेता को दे दी थी। कर्नल खुल्लर इस सफलता से बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने लेखिका से कहा कि तुम्हारी इस उपलब्धि के लिए मैं तुम्हारे माता-पिता को बधाई देना चाहूँगा। देश को तुम पर गर्व है। अब तुम ऐसे संसार में वापस जाओगी, जो पहले से एकदम भिन्न होगा।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • शिखर – चोटी, पहाड़ की चोटी।
  • अभियान – चढ़ाई।
  • अग्रिम – पेशगी, अगाऊ।
  • दुर्गम – कठिन।
  • प्लूम – पिच्छक।
  • हिमपात – बर्फ़ का गिरना।
  • अवसाद – उदासी।
  • ग्लेशियर – बर्फ़ की नदी।
  • अव्यवस्थित – बेतरतीब।
  • प्रवास – यात्रा में रहना।
  • हिम-विदर – बर्फ़ में पड़ी हुई दरार।
  • आरोहियों – ऊपर चढ़ने वाले।
  • विख्यात – प्रसिद्ध।
  • अभियांत्रिकी – तकनीकी।
  • नौसिखिया – अनाड़ी, नया-नया सीखने वाला।
  • श्रमसाध्य – परिश्रम से होने वाला।
  • आरोहण – ऊपर की ओर चढ़ना।
  • शंकु – नोक।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 ल्हासा की ओर

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 ल्हासा की ओर Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 ल्हासा की ओर

JAC Class 9 Hindi ल्हासा की ओर Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
थोड्ला के पहले के आखिरी गाँव पहुँचने पर भिखमंगे के वेश में होने के बावजूद लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला जबकि दूसरी यात्रा के समय भद्र वेश भी उन्हें उचित स्थान नहीं दिला सका। क्यों ?
उत्तर :
उन्हें रहने के लिए उचित स्थान इसलिए नहीं मिला था क्योंकि वे वहाँ शाम के समय पहुँचे थे। इस समय वहाँ के लोग छड् पीकर अपने होश-हवास गँवा बैठते हैं। उन्हें अच्छे-बुरे की पहचान नहीं रहती है। उनकी मनोवृत्ति भी बदल जाती है। इसलिए उनके भद्रवेश में होने पर भी उन्हें उचित स्थान नहीं मिल सका था।

प्रश्न 2.
उस समय के तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण यात्रियों को किस प्रकार का भय बना रहता था ?
उत्तर :
उस समय के तिब्बत में हथियार का कानून न होने के कारण वहाँ लोग पिस्तौल, बंदूक लिए फिरते थे। डकैत यात्रियों को मारकर उनका सामान लूट लेंते थे। इस प्रकार यात्रियों में सदा अपनी जान-माल का भय बना रहता था कि न मालूम कब उन्हें लूट लिया जाए अथवा जान से मार दिया जाएगा।

प्रश्न 3.
लेखक लड्कोर के मार्ग में अपने साथियों से किस कारण पिछड़ गया ?
उत्तर :
लेखक लड्कोर के मार्ग में अपने साथियों से इस कारण पिछड़ गया था क्योंकि उसका घोड़ा धीरे-धीरे चल रहा था। जब वह घोड़े को जोर देने लगता तो उसका घोड़ा और अधिक सुस्त हो जाता था। जहाँ दो रास्ते फूट रहे थे वहाँ से वह बाएँ रास्ते पर मील-डेढ़ मील चला गया तो उसे पता चला कि वह गलत रास्ते पर जा रहा है। लड्कोर रास्ता तो दाहिनेवाला था। वहाँ से लौटकर उसने सही रास्ता पकड़ा। इस प्रकार वह साथियों से पिछडता गया।

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प्रश्न 4.
लेखक ने शेकर विहार में सुमति को उनके यजमानों के पास जाने से रोका परंतु दूसरी बार रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया ?
उत्तर :
दूसरी बार लेखक ने सुमति को यजमानों के पास जाने से इसलिए नहीं रोका क्योंकि वहाँ एक मंदिर में उसे बुद्धवचन की एक सौ तीन पोथियाँ मिल गई थीं। इनमें से एक-एक पोथी पंद्रह-पंद्रह सेर से कम नहीं थी। वह इन पोथियों के पठन-पाठन में लीन हो गया था।

प्रश्न 5.
अपनी यात्रा के दौरान लेखक को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
उत्तर :
अपनी यात्रा के दौरान लेखक को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उसे दुर्गम मार्ग की कठिन चढ़ाई चढ़नी पड़ी। मार्ग में मामूली स्थानों पर रुकना पड़ा। डाकुओं-लुटेरों से बचने के लिए भिखमंगों के समान टोपी उतारकर और जीभ निकालकर उनसे दया की भीख माँगते हुए पैसा माँगा। लेखक का घोड़ा बहुत सुस्त था जिस कारण वह अपने साथियों से पिछड़ गया था और लड्कोर जाते हुए गलत रास्ते पर चला गया था। लेखक को सुमति के क्रोध का शिकार भी बनना पड़ा था। भारवाहक न मिलने पर लेखक को अपना सामान अपने कंधे पर लादकर ही यात्रा करनी पड़ी। खाने-पीने को जो मिला उसी में गुजारा करना पड़ा।

प्रश्न 6.
प्रस्तुत यात्रा- वृत्तांत के आधार पर बताइए कि उस समय का तिब्बती समाज कैसा था ?
उत्तर :
उस समय का तिब्बती समाज अंधविश्वासों से जकड़ा हुआ था। लोग बौद्ध संन्यासियों के द्वारा दिए गए गंडे-तावीज़ों को अपनी रक्षा का आधार मानते थे। समाज में कानून-व्यवस्था अत्यंत दयनीय स्थिति में थी। लोग बंदूक, पिस्तौल आदि लेकर खुलेआम घूमते थे। मार्ग में चोर – लुटेरों का डर रहता था। डकैत यात्रियों को मारकर लूटते थे। पुलिस गवाहों के अभाव में कुछ नहीं कर पाती थी। जान जाने के डर से कोई किसी के विरुद्ध गवाही नहीं देता था। वहाँ जाति-पाति, छुआछूत का भेदभाव नहीं था। स्त्रियाँ परदा नहीं करती थीं। अपरिचितों को भी घर के भीतर आने की मनाही नहीं थी। यात्रियों को आवास तथा खाने-पीने की सुविधा दी जाती थी। ये लोग छङ् नामक मादक पेय का पान करते थे।

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प्रश्न 7.
“मैं अब पुस्तकों के भीतर था।” नीचे दिए गए वाक्यों में से कौन-सा इस वाक्य का अर्थ बतलाता है –
(क) लेखक पुस्तकें पढ़ने में रम गया।
(ख) लेखक पुस्तकों की शैल्फ़ के भीतर चला गया।
(ग) लेखक के चारों ओर पुस्तकें ही थीं।
(घ) पुस्तक में लेखक का परिचय और चित्र छपा था।
उत्तर :
(क) लेखक पुस्तकें पढ़ने में रम गया।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 8.
सुमति के यजमान और अन्य परिचित लोग लगभग हर गाँव में मिले। इस आधार पर आप सुमति के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का चित्रण कर सकते हैं?
उत्तर :
सुमति इस क्षेत्र के लोगों से अच्छी प्रकार से परिचित हैं। वहाँ के लोग भी सुमति का आदर करते हैं। सुमति अपने यजमानों के लिए बोधगया के वस्त्रों के गंडे लेकर आते हैं। वे व्यवहार कुशल, मृदुभाषी, अच्छे सहयात्री एवं ‘क्षणे रूष्ठा क्षणे तुष्ठा’ स्वभाव के व्यक्ति हैं। लेखक लड्कोर का मार्ग भूल जाता है तो देर से पहुँचने पर सुमति लेखक पर क्रोधित हो जाते हैं, परंतु समझाने पर शांत हो जाते हैं।

प्रश्न 9.
” हालाँकि उस वक्त मेरा भेष ऐसा नहीं था कि उन्हें कुछ भी खयाल करना चाहिए था।” उक्त कथन के अनुसार हमारे आचार – व्यवहार के तरीके वेशभूषा के आधार पर तय होते हैं। आपकी समझ से यह उचित है अथवा अनुचित, विचार व्यक्त करें।
उत्तर :
हमारी समझ से यह उचित नहीं है कि किसी की वेशभूषा के आधार पर ही उस व्यक्ति के संबंध में कोई धारणा बना ली जाए। सीधी- साधी और स्वच्छ वेशभूषावाला व्यक्ति भी अच्छा एवं संस्कारी हो सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि बहुत अधिक कीमती तथा आडंबरपूर्ण वेशभूषा धारणा करके ही व्यक्ति श्रेष्ठ बन जाता है। महात्मा गांधी सामान्य – सी वेशभूषा धारण करते हुए भी देश को अहिंसात्मक आंदोलनों द्वारा स्वतंत्र करा गए। लाल बहादुर शास्त्री जैसा छोटा-सा व्यक्ति अपनी सादगी तथा सामान्य सी वेशभूषा से भारत का प्रधानमंत्री बन गया। इसलिए किसी भी वेशभूषा के आधार पर हमें आचार-व्यवहार के तरीके तय नहीं करने चाहिए।

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प्रश्न 10.
यात्रा-वृत्तांत के आधार पर तिब्बत की भौगोलिक दशा का शब्द-चित्र प्रस्तुत करें। वहाँ की दशा आपके राज्य/शहर से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर :
तिब्बत की ओर जानेवाला मार्ग अत्यंत दुर्गम है। वहाँ के डाँड़े सबसे अधिक खतरे के स्थान हैं। सोलह-सत्रह हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित डाँड़ा थोड्ला पार करना बहुत ही कठिन है। इनके दोनों ओर दूर-दूर तक कोई गाँव नहीं होता है। यहाँ एक ओर हिमालय पर्वत की बरफ़ से ढकी हजारों चोटियाँ तो दूसरी ओर बरफ और हरियाली से रहित नंगे पर्वत हैं। कहीं-कहीं कम बरफ़ से ढकी पर्वत की चोटियाँ भी हैं। यात्रा पैदल अथवा घोड़ों पर की जाती है। मैं दिल्ली में रहता हूँ। यहाँ की भौगोलिक दशा तिब्बत से बिलकुल भिन्न है।

यहाँ अनेक बहुमंजिला भवन, साफ़-सुथरी बड़ी-बड़ी सड़कें, छोटी-छोटी पहाड़ियाँ, मेट्रो रेल, हवाई अड्डा, अंतर्राज्यीय बस अड्डा, रेलवे स्टेशन आदि हैं। यात्रा के लिए कारें, बसें, स्कूटर, मोटर साइकिल, ताँगे, रिक्शा आदि पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हैं। यहाँ सरदियों में ठंड और गरमियों में गरमी रहती है। यमुना यहाँ की मुख्य नदी है। देश की राजधानी होने के कारण यहाँ सदा कोई-न-कोई कार्यक्रम होता रहता है। दिल्ली की सीमाएँ उत्तर दा कोई-न-कोई व प्रदेश और हरियाणा से लगती हैं।

प्रश्न 11.
आपने भी किसी स्थान की यात्रा अवश्य की होगी। यात्रा के दौरान हुए अनुभवों को लिखकर प्रस्तुत करें।
उत्तर :
गत वर्ष गरमियों की छुट्टियों में हमारे विद्यालय की ओर से विद्यार्थियों का एक दल शिमला भ्रमण के लिए भेजने की योजना बनी थी। मैंने भी अपना नाम उसके लिए लिखवा दिया। मैंने पहले कभी कोई पर्वतीय स्थान नहीं देखा था इसलिए स्वाभाविक था कि मैं इस यात्रा के लिए बहुत उत्सुक था। 20 मई को विद्यार्थियों का हमारा यह दल शिमला के लिए रवाना हुआ। श्री रामसिंह जी हमारे पी० टी० आई० थे और वे हमारे साथ संरक्षक के रूप में गए थे।

रात्रि के साढ़े दस बजे हम दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुँच गए। गाड़ी ग्यारह बजे चलनी थी। हमने द्वितीय श्रेणी के शयनयान में अपने पूर्व निर्धारित स्थान ले लिए। भयंकर गरमी पड़ रही थी। शरीर पसीने से तर-बतर था। साधारण कमीज़ – पैंट भी पहनना मुश्किल हो रहा था। मेरे एक दो साथियों ने तो कमीज़े उतार कर कंधे पर डाल ली थीं। ग्यारह बजे गाड़ी चल दी। हम अपने- अपने स्थान पर सो गए।

प्रातः साढ़े छह बजे गाड़ी कालका स्टेशन पर रुकी। यहाँ से हमें गाड़ी बदलनी थी। शिमला के लिए गाड़ी प्लेटफार्म पर लगी हुई थी। छह डब्बों की नन्ही-सी गाड़ी खिलौने जैसी लग रही थी। खिलौना – गाड़ी के डब्बे छोटे-छोटे थे और रेलवे लाइन ‘नैरो गॉज’ थी। हमें गाड़ी में मुश्किल से स्थान मिला। हज़ारों भ्रमणार्थी शिमला जा रहे थे। गाड़ी ठीक साढ़े सात बजे चल पड़ी। गाड़ी की गति पर्याप्त धीमी थी और वह पर्वत की पीठ पर मानो रेंगते हुए चढ़ रही थी। खिड़की से बाहर का दृश्य आनंदमयी था।

दूर तक घाटियों में फैली हरियाली दिखाई पड़ती थी। देवदार, चीड़ और कैल के वृक्ष प्रहरियों की तरह सिर ऊँचा किए पहाड़ियों पर स्थान-स्थान पर खड़े थे। गाड़ी कभी विशेष प्रकार से बने मेहराबदार पुलों पर से गुज़रती तो कभी छोटी-बड़ी सुरंगों में से गुज़रती। बड़ौग स्टेशन पर गाड़ी साढ़े दस बजे पहुँची। स्टेशन छोटा-सा था परंतु बहुत सुंदर फूलों से सजा था। यहाँ पर हमने जलपान किया। बड़ौग की सुरंग सबसे लंबी थी।

जब गाड़ी सुरंग से गुज़रती तो गाड़ी में हलका अँधेरा-सा छा जाता। विभिन्न डब्बों से सीटियाँ बजाने और नारे लगाने की आवाज़ें आने लगतीं। हमने भी मिलकर गाने गाने शुरू कर दिए। हवा में हलकी ठंडक अनुभव होने लगी। हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि मई के अंत में भी लोग स्वेटर पहने हुए थे।

हमारी गाड़ी एक बजे दोपहर को शिमला पहुँच गई। प्लेटफार्म पर लाल रंग की पोशाक पहने कुली लंबी लाइन में बैठे थे। गाड़ी के पहुँचते ही उनमें हलचल प्रारंभ हो गई। देखते-ही-देखते वे गाड़ी पर टूट पड़े। यात्रियों के नीचे उतरने से पहले ही कुली गाड़ी में घुस गए और उन्होंने यात्रियों के सामान पर कब्ज़ा कर लिया। भाव-ताव के पश्चात बहुत से कुली पीठ पर सामान लेकर चल पड़े। हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि कुली सिर की अपेक्षा पीठ पर सामान ढो रहे थे।

हमारे ठहरने की व्यवस्था कॉली – बॉरी की धर्मशाला में थी। माँ दुर्गा के प्राचीन मंदिर के साथ यात्रियों के रुकने के लिए कमरे बने हैं। बड़ी संख्या में बंगाली यात्री वहाँ ठहरे थे। कुछ देर विश्राम करने के पश्चात हमने भोजन किया। सायंकाल को हम लोग तैयार होकर मॉल रोड की सैर के लिए चले। मॉल रोड पर बहुत भीड़ थी। एक सिरे पर लाला लाजपत राय का बुत उँगली उठाकर मानो भ्रमणार्थियों को सचेत कर रहा था जो रिज के दूसरी ओर गांधी जी छड़ी थापे, मुसकराते हुए खड़े थे।

दौलत सिंह पार्क में हिमाचल के निर्माता यशवंत सिंह परमार की मूर्ति थी तो उसके सामने इंदिरा गांधी जी का बुत था। रिज पर हज़ारों लोग इकट्ठे थे। कुछ बच्चे घुड़सवारी कर रहे थे। छाया चित्र लेनेवाले कैमरे के साथ व्यस्त थे। रिज पर मेले का सा दृश्य था। मॉल रोड पर हमें आयु, हर वेश-भूषा एवं हर प्रांत का व्यक्ति दिखाई पड़ा। ऐसा लगता था कि लघु भारत यहाँ आ बसा है।

दूसरे दिन हम हिमाचल पर्यटन विभाग की बसों में बैठकर कुफ़री, वाइल्ड फ़्लावर हॉल, क्रिंग नैनी और नालदेरा की यात्रा के लिए गए। नालदेरा का गोल्फ़ का मैदान बहुत सुंदर है। कुफ़री में हमने यॉक पर बैठकर फोटो खिंचवाए और रेस्तराँ में जलपान किया। वाइल्ड फ़्लावर हॉल में फूलों का मेला-सा लगा था। चारों ओर रंग-बिरंगे फूलों पर तितलियों के झुंड मँडरा रहे थे। तीसरे दिन हम जाखू पर्वत पर पिकनिक के लिए गए। शिमला शहर के मध्य में स्थित यह चोटी सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। रिज से लगभग पंद्रह सौ फुट की ऊँचाई पर स्थित इस चोटी पर हनुमान जी का भव्य मंदिर है। पूरे रास्ते में बंदरों के झुंड मिले। हमने उन्हें चने खिलाए। चौथे दिन प्रातः नौ बजे हम वापस चल पड़े।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 ल्हासा की ओर

प्रश्न 12.
यात्रा-वृत्तांत गद्य साहित्य की एक विधा है। आपकी इस पाठ्य-पुस्तक में कौन-सी विधाएँ हैं? प्रस्तुत विधा उनसे किन मायनों में अलग है ?
उत्तर :
हमारी पाठ्य-पुस्तक में गद्य साहित्य की कहानी, निबंध, डायरी, रिपोर्ताज, व्यंग्य-लेख, संस्मरण और यात्रा-वृत्तांत विधाओं की रचनाएँ प्राप्त होती हैं। यात्रा-वृत्तांत इन सब विधाओं से इस प्रकार अलग है कि इसमें यात्रा करनेवाले व्यक्ति के अपने अनुभवों के अतिरिक्त उस यात्रा-स्थल की भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक स्थिति का भी ज्ञान हो जाता है। इसमें कहानी जैसी रोचकता के साथ-साथ संस्मरण जैसा आँखों देखा हाल भी प्राप्त हो जाता है।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 13.
किसी भी बात को अनेक प्रकार से कहा जा सकता है, जैसे –
सुबह होने से पहले हम गाँव में थे।
पौ फटने वाली थी कि हम गाँव में थे।
तारों की छाँव रहते-रहते हम गाँव पहुँच गए।
नीचे दिए गए वाक्य को अलग-अलग तरीके से लिखिए-
‘जान नहीं पड़ता था, कि घोड़ा आगे जा रहा है या पीछे।”
उत्तर :
(क) पता नहीं लगता था कि घोड़ा आगे जा रहा है या पीछे।
(ख) घोड़े के आगे या पीछे जाने का पता नहीं लगता है।
(ग) घोड़े के अपने स्थान से आगे जाने या पीछे हटने का पता नहीं लगता था।

प्रश्न 14.
ऐसे शब्द जो किसी ‘अंचल’ यानी प्रदेश विशेष में प्रयुक्त होते हैं उन्हें आंचलिक शब्द कहा जाता है। प्रस्तुत पाठ में से आंचलिक शब्द ढूँढकर लिखिए।
उत्तर :
चोडी, खोटी, छङ्, डाँड़ा, कुची-कुची, कंडे, थुकपा, भरिया, कन्जुर।

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प्रश्न 15.
पाठ में कागज, अक्षर, मैदान के आगे क्रमशः मोटे, अच्छे और विशाल शब्दों का प्रयोग हुआ है। इन शब्दों से विशेषता उभरकर आती है। पाठ में से कुछ ऐसे ही और शब्द छाँटिए जो किसी की विशेषता बता रहे हों।
उत्तर :
भद्र (यात्री), गरीब (झोंपड़े), परित्यक्त (चीनी किले), विकट (डाँड़ा थोड्ला), अच्छी (जगह), टोटीदार ( बरतन)।

पाठेतर सक्रियता –

यह यात्रा राहुल जी ने 1930 में की थी। आज के समय यदि तिब्बत की यात्रा की जाए तो राहुल जी की यात्रा से कैसे भिन्न होगी ?
उत्तर :
आधुनिक युग में यात्रा के अनेक साधन उपलब्ध हैं, जैसे- कार, बस, जीप, हेलीकॉप्टर, हवाई जहाज आदि। इसलिए आज के समय यदि तिब्बत की यात्रा की जाए तो यह यात्रा बहुत सुखद होगी तथा यात्री को तिब्बत के प्राकृतिक सौंदर्य का संपूर्ण आनंद प्राप्त होगा।

क्या आपके किसी परिचित को घुमक्कड़ी/यायावरी का शौक है? उसके इस शौक का उसकी पढ़ाई/काम आदि पर क्या प्रभाव पड़ता होगा, लिखें।
अपठित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
उत्तर :
आम दिनों में समुद्र किनारे के इलाके बेहद खूबसूरत लगते हैं। समुद्र लाखों लोगों को भोजन देता है और लाखों उससे जुड़े दूसरे कारोबारों में लगे हैं। दिसंबर 2004 को सूनामी या समुद्री भूकंप से उठनेवाली तूफानी लहरों के प्रकोप ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया है कि कुदरत की यह देन सबसे बड़े विनाश का कारण बन सकती है।

प्रकृति कब अपने ही ताने-बाने को उलटकर रख देगी, कहना मुश्किल है। हम उसके बदलते मिजाज को उसका कोप कह लें या कुछ और मगर यह अबूझ पहेली अकसर हमारे विश्वासों के चीथड़े कर देती है और हमें यह अहसास करा जाती है कि हम एक कदम आगे नहीं, चार कदम पीछे हैं। एशिया के एक बड़े हिस्से में आनेवाले उस भूकंप ने कई द्वीपों को इधर-उधर खिसकाकर एशिया का नक्शा ही बदल डाला।

प्रकृति ने पहले भी अपनी ही दी हुई कई अद्भुत चीजें इन्सान से वापस ले ली हैं जिसकी कसक अभी तक है। दुःख जीवन को माँजता है, उसे आगे बढ़ने का हुनर सिखाता है। वह हमारे जीवन में ग्रहण लाता है, ताकि हम पूरे प्रकाश की अहमियत जान सकें और रोशनी को बचाए रखने के लिए जतन करें। इस जतन से सभ्यता और संस्कृति का निर्माण होता है। सुनामी के कारण

दक्षिण भारत और विश्व के अन्य देशों में जो पीड़ा हम देख रहे हैं, हमारे जीवन में जोश, उत्साह और शक्ति भर देते हैं। 13 वर्षीय मेघना और अरुण दो दिन अकेले खारे समुद्र में तैरते हुए जीव-जंतुओं से मुकाबला करते हुए किनारे आ लगे। इंडोनेशिया की रिजा पडोसी के दो बच्चों को पीठ पर लादकर पानी के बीच तैर रही थी कि एक विशालकाय साँप ने उसे किनारे का रास्ता दिखाया।

मछुआरे की बेटी मैगी ने रविवार को समुद्र का भयंकर शोर सुना उसकी शरारत को समझा, तुरंत अपना बेड़ा उठाया और अपने परिजनों को उसपर बिठा उतर आई समुद्र में, 41 लोगों को लेकर। महज 18 साल की यह जलपरी चल पड़ी पगलाए सागर से दो-दो हाथ करने। दस मीटर से ज्यादा ऊँची सूनामी लहरें जो कोई बाधा, रुकावट मानने को तैयार नहीं थीं, इस लड़की के बुलंद इरादों के सामने बौनी ही साबित हुई।

जिस प्रकृति ने हमारे सामने भारी तबाही मचाई है, उसी ने हमें ऐसी ताकत और सूझ दे रखी है कि हम फिर से खड़े होते हैं और चुनौतियों से लड़ने का एक रास्ता ढूँढ़ निकालते हैं। इस त्रासदी से पीड़ित लोगों की सहायता के लिए जिस तरह पूरी दुनिया एकजुट हुई है, वह इस बात का सबूत है कि मानवता हार नहीं मानती।
(क) कौन-सी आपदा को सूनामी कहते हैं ?
(ख) ‘दुःख जीवन को माँजता है, उसे आगे बढ़ने का हुनर सिखाता है’-आशय स्पष्ट कीजिए।
(ग) मैगी, मेघना और अरुण ने सूनामी जैसी आपदा का सामना किस प्रकार किया?
(घ) प्रस्तुत गद्यांश में दृढ़ निश्चय’ और ‘महत्व’ के लिए किन शब्दों का प्रयोग हुआ है ?
(ङ) इस गद्यांश के लिए एक शीर्षक ‘नाराज समुद्र’ हो सकता है। आप कोई अन्य शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
(क) समुद्री भूकंप से उठनेवाली तूफ़ानी लहरों के प्रकोप को सूनामी कहते हैं।
(ख) इस कथन का आशय यह है कि दुख सहन करने के बाद मनुष्य में हिम्मत आ जाती है और वह विपत्तियों का सामना करते हुए जीवन में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ता रहता है।
(ग) मैगी ने अपने 41 परिजनों को बेड़े में बैठाकर दस मीटर से ज्यादा ऊँची सूनामी लहरों का मुकाबला करते हुए बचाया। मेघना और अरुण दो दिनों तक अकेले खारे समुद्र में तैरते हुए जीव-जंतुओं से मुकाबला करते हुए किनारे पर आ लगे थे।
(घ) ‘दृढ़ निश्चय’ के लिए ‘बुलंद इरादों’ तथा ‘महत्व’ के लिए ‘अहमियत’ शब्दों का प्रयोग किया गया है।
(ङ) इस गद्यांश के लिए अन्य शीर्षक ‘साहस की विजय’ हो सकता है।

JAC Class 9 Hindi ल्हासा की ओर Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
नेपाल से तिब्बत जाने वाले मुख्य मार्ग की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
नेपाल से तिब्बत जानेवाला रास्ता व्यापारिक ही नहीं सैनिक रास्ता भी था। इस रास्ते से नेपाल और हिंदुस्तान की चीजें तिब्बत जाया करती थीं। इस रास्ते पर जगह-जगह फ़ौजी चौकियाँ और किले बने हुए थे। इनमें चीनी सेना रहती थी। अब बहुत-से फ़ौजी मकान गिर चुके हैं और किले में कुछ किसानों ने अपने बसेरे बना लिए हैं।

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प्रश्न 2.
शेकर की खेती के मुखिया कौन थे ? वहाँ लेखक को क्या मिला ?
उत्तर :
शेकर की खेती के मुखिया भिक्षु नम्से थे। वे बहुत भद्रपुरुष थे। वे लेखक से अत्यंत प्रेमपूर्वक मिले थे। यहाँ एक अच्छा मंदिर था। जहाँ लेखक को कन्जुर की एक सौ तीन हस्तलिखित पोथियाँ रखी हुई थीं। एक-एक पोथी पंद्रह-पंद्रह सेर की थी तथा बड़े मोटे कागज़ पर अच्छे अक्षरों में लिखी हुई थीं। वह इन पोथियों को पढ़ने में लीन हो गया।

प्रश्न 3.
‘ल्हासा की ओर’ यात्रा-वृत्तांत का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘ल्हासा की ओर’ यात्रा-वृत्तांत के माध्यम से लेखक ने तिब्बत-यात्रा की कठिनाइयों का वर्णन करते हुए वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य, सामाजिक जीवन तथा प्रशासनिक व्यवस्था से पाठकों को परिचित कराया है। तिब्बत के स्थानीय लोगों के यात्रियों के प्रति सहज व्यवहार से पाठकों को यात्रा करने की प्रेरणा मिलती है।

प्रश्न 4.
ल्हासा की सामाजिक स्थिति कैसी है ?
उत्तर :
ल्हासा की सामाजिक स्थिति अन्य समाजों से अच्छी है। यहाँ जाति-पाति और छुआछूत का भेदभाव नहीं है। यहाँ की औरतें परदा नहीं करती हैं। घर में निम्न श्रेणी के भिखमंगों के अतिरिक्त किसी को भी किसी भी घर में आने की मनाही नहीं है। अपरिचित लोग भी घर के अंदर तक जा सकते हैं। वे लोग जल्दी से दूसरों पर विश्वास कर लेते हैं।

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प्रश्न 5.
ल्हासा की चाय की क्या विशेषता है ?
उत्तर :
वहाँ चाय मक्खन और सोडा नमक डालकर बनाई जाती है। आप वहाँ किसी से भी कहकर चाय बनवा सकते हैं। उसके लिए चाय, मक्खन और सोडा – नमक देना पड़ता है। वे लोग चाय चोड़ी में कूटकर उसे दूधवाली चाय के रंग की बनाकर मिट्टी के टोंटीदार बरतन में रखकर आपको दे देंगे। यदि आप चूल्हे से दूर बैठे हैं और आपको डर है कि वे सारा मक्खन आपकी चाय में नहीं डालेंगी तो आप स्वयं जाकर चोड़ी में चाय मथकर ला सकते हैं। चाय का रंग तैयार हो जाने पर, उसमें नमक- मक्खन, डालने की जरूरत होती है।

प्रश्न 6.
डाँड़ा थोङ्ला क्या है ? यह डाकुओं के लिए सबसे अच्छी जगह क्यों है ?
उत्तर :
तिब्बत में डाँड़ा पहाड़ की ऊँची जमीन को कहते हैं। थोङ्ला तिब्बत की सीमा पर स्थित एक स्थान का नाम है। डाँड़े तिब्बत में सबसे खतरनाक जगह है, सोलह-सत्रह फीट की ऊँचाई होने के कारण उनके दोनों तरफ मीलों तक कोई गाँव दिखाई नहीं देता है। इसे बहुत सँभलकर पार करना पड़ता है।

इस स्थान पर मीलों तक आदमी दिखाई नहीं पड़ता है इसलिए वह जगह डाकुओं के लिए अच्छी है। ऐसे निर्जन स्थानों पर डाकुओं का यात्रियों को लूटना आसान है। यहाँ पर पुलिस भी नहीं आती है। यहाँ डकैत पहले आदमी को मारता है फिर देखता है कि उसके पास कुछ है या नहीं। इसलिए यह स्थान डाकुओं के लिए उपयुक्त है। वहाँ किसी के आने का डर नहीं है।

प्रश्न 7.
तिब्बत की पुलिस के संबंध में लेखक के क्या विचार थे ?
उत्तर :
तिब्बत की पुलिस निर्जन पहाड़ों में जाने को तैयार नहीं है। उनकी खुफिया पुलिस इन जगहों के लिए पैसा खर्च करने के लिए तैयार नहीं है। यहाँ पर हथियार रखने संबंधी कोई कानून नहीं है, इसलिए सभी के बंदूक, पिस्तौल आदि हैं। पुलिस किसी भी अपराधी को पकड़ना भी चाहे तो उसे गवाही के लिए कोई आदमी नहीं मिलता है। यदि गाँव में खून हो जाए तो वहाँ खूनी को सज़ा मिल सकती है।

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प्रश्न 8.
लेखक ने सुमति को यजमानों के पास जाने से कैसे रोका ?
उत्तर :
सुमति तिरी – समाधि-गिरि के आस-पास गाँवों में जाना चाहता था। वहाँ उसके यजमान थे। वह यजमानों को गंडे देकर दक्षिणा प्राप्त करना चाहता था। परंतु लेखक ने उसे अपने यजमानों के पास जाने के लिए मना कर दिया क्योंकि सुमति एक बार यजमानों के पास चला गया तो वह सप्ताह – भर भी वापिस नहीं आएगा। इससे लेखक की यात्रा बाधित होगी। इसलिए लेखक ने सुमति को यजमानों के पास न जाने से होनेवाली हानि के बदले में ल्हासा पहुँचकर रुपए देने की बात कहकर, सुमति को जाने से रोका।

प्रश्न 9.
तिब्बत में जमीन की स्थिति कैसी है? वहाँ खेती कैसे होती है?
उत्तर :
तिब्बत की ज़मीन बहुत अधिक छोटे-बड़े जागीरदारों में बँटी है। इन जागीरों का बहुत बड़ा हिस्सा बौद्ध मठों के हाथ में है। अपनी-अपनी जागीर पर जागीरदार, कुछ पर स्वयं खेती करते हैं तथा कुछ पर मजदूरों से करवाते हैं। वहाँ मजदूर बेगार पर मिल जाते हैं। खेती का प्रबंध देखने के लिए वहाँ कोई भिक्षु भेजा जाता है, जो सभी प्रबंध देखता है, वह जागीर के आदमियों के लिए राजा से कम नहीं होता है। इस प्रकार तिब्बत में खेती का प्रबंध बौद्ध भिक्षुओं के हाथ में है।.

प्रश्न 10.
‘ल्हासा की ओर’ किस प्रकार की विधा है ? लेखक इस पाठ के माध्यम से क्या बताना चाहता है?
उत्तर :
‘ल्हासा की ओर’ राहुल सांकृत्यायन द्वारा रचित एक श्रेष्ठ यात्रा-वृत्तांत है। इसमें लेखक ने अपनी तिब्बत-यात्रा का वर्णन किया है। अपनी इस यात्रा के माध्यम से लेखक ने बताना चाहा है कि तिब्बत में यात्रियों की सुविधाओं के साथ-साथ बहुत-सी कठिनाइयों का भी सामना करना पडता है।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. यह व्यापारिक ही नहीं सैनिक रास्ता भी था, इसीलिए जगह-जगह फ़ौजी चौकियाँ और किले बने हुए हैं, जिनमें कभी चीनी पलटन रहा करती थी। आजकल बहुत-से फ़ौजी मकान गिर चुके हैं। दुर्ग के किसी भाग में, जहाँ किसानों ने अपना बसेरा बना लिया है, वहाँ घर कुछ आबाद दिखाई पड़ते हैं। ऐसे ही परित्यक्त एक चीनी किला था। हम वहाँ चाय पीने के लिए ठहरे। तिब्बत में यात्रियों के लिए बहुत-सी तकलीफ़ें भी हैं और कुछ आराम की बातें भी। वहाँ जाति-पाति, छुआछूत का सवाल ही नहीं है और न औरतें परदा ही करती हैं। बहुत निम्न श्रेणी के भिखमंगों को लोग चोरी के डर से घर के भीतर नहीं आने देते, नहीं तो बिलकुल घर के भीतर चले जा सकते हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) चीनी पलटन कहाँ रहती थी ?
(ख) किले के कुछ भागों में किसने अपना बसेरा बना लिया है ?
(ग) लेखक चाय पीने हेतु कहाँ रुका ?
(घ) जाति-पाति – छुआछूत का भेदभाव कहाँ नहीं है ?
(ङ) तिब्बत में लोग अपने घरों में किन्हें नहीं आने देते थे और क्यों ?
उत्तर :
(क) चीनी पलटन जगह-जगह बनी फ़ौजी चौकियों और किलों में रहती थी।
(ख) किले के कुछ भागों में किसानों ने अपना बसेरा बना लिया है।
(ग) लेखक चाय पीने के लिए एक चीनी किले में रुका।
(घ) तिब्बत में जाति-पाति – छुआछूत का भेदभाव नहीं है।
(ङ) तिब्बत में लोग बहुत निम्न श्रेणी के भिखमंगों को चोरी के भय से घरों के भीतर नहीं आने देते, नहीं तो बिलकुल घर के भीतर चले जा सकते हैं।

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2. अब हमें सबसे विकट डाँड़ा थोङ्ला पार करना था। डाँड़े तिब्बत में सबसे खतरे की जगहें हैं। सोलह-सत्रह हजार फीट की ऊँचाई होने के कारण उसकी दोनों तरफ़ मीलों तक कोई गाँव-गिराँव नहीं होते। नदियों के मोड़ और पहाड़ों के कोनों के कारण बहुत दूर तक आदमी को देखा नहीं जा सकता। डाकुओं के लिए यही सबसे अच्छी जगह है। तिब्बत में गाँव में आकर खून हो जाए, तब तो खूनी को सजा भी मिल सकती हैं, लेकिन इन निर्जन स्थानों में मरे हुए आदमियों के लिए कोई परवाह नहीं करता।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) डाँड़ा थोङ्ला कैसी जगह है ?
(ख) डाँड़ा थोङ्ला में बहुत दूर-दूर तक आदमी क्यों नहीं दिखाई देते ?
(ग) डाँड़ा थोङ्ला किसके लिए सबसे अच्छी जगह है और क्यों ?
(घ) तिब्बत को निर्जन स्थानों पर किनकी परवाह नहीं होती ?
उत्तर :
(क) तिब्बत में डाँड़ा थोङ्ला सबसे खतरे की जगह है। उसकी ऊँचाई सोलह-सत्रह हज़ार फुट है।
(ख) डाँड़ा थोङ्ला की ऊँचाई अधिक होने के कारण तथा नदियों के मोड़ और पहाड़ों के कोनों के कारण बहुत दूर तक आदमी दिखाई नहीं देते।
(ग) डाँड़ा थोङ्ला डाकुओं के लिए सबसे अच्छी जगह है क्योंकि यहाँ दूर-दूर तक आदमी को देखा नहीं जा सकता।
(घ) तिब्बत को निर्जन स्थानों पर मरे हुए आदमियों की परवाह नहीं होती।

3. सर्वोच्च स्थान पर डाँड़े के देवता का स्थान था, जो पत्थरों के ढेर, जानवरों की सींगों और रंग-बिरंगे कपड़े की झंडियों से सजाया गया .. था। अब हमें बराबर उतराई पर चलना था। चढ़ाई तो कुछ दूर थोड़ी मुश्किल थी, लेकिन उतराई बिलकुल नहीं। शायद दो-एक और सवार साथी हमारे साथ चल रहे थे। मेरा घोड़ा कुछ धीमे चलने लगा। मैंने समझा कि चढ़ाई की थकावट के कारण ऐसा कर रहा है, और उसे मारना नहीं चाहता था। धीरे-धीरे वह बहुत पिछड़ गया, और मैं दोन्क्विकस्तो की तरह अपने घोड़े पर झूमता हुआ चला जा रहा था।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) डाँड़े के देवता का स्थान किनसे सजाया गया था ?
(ख) प्रस्तुत गद्यांश का लेखक कौन हैं? यह किस शैली में रचित है ?
(ग) घोड़े को धीरे चलता देखकर लेखक ने क्या समझा ?
(घ) लेखक किसके समान घोड़े पर झूम रहा था ?
उत्तर :
(क) डाँड़े के देवता का स्थान पत्थरों के ढेर, जानवरों की सींगों और रंग-बिरंगे कपड़े की झंडियों से सजाया गया था।
(ख) प्रस्तुत गद्यांश के लेखक राहुल सांकृत्यायन हैं। यह आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया है।
(ग) घोड़े को धीरे चलता देखकर लेखक ने समझा कि घोड़ा चढ़ाई की थकावट के कारण ऐसा कर रहा है।
(घ) लेखक दोन्निक्वक्स्तो के समान घोड़े पर झूमता हुआ चला जा रहा था।

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4. आसपास के गाँव में भी सुमति के कितने ही यजमान थे, कपड़े की पतली-पतली चिरी बत्तियों के गंडे खतम नहीं हो सकते थे, क्योंकि बोधगया से लाए कपड़े के खतम हो जाने पर किसी कपड़े से बोधगया का गंडा बना लेते थे। वह अपने यजमानों के पास जाना चाहते थे। मैंने सोचा, यह तो हफ़्ता-भर उधर ही लगा देंगे। मैंने उनसे कहा कि जिस गाँव में ठहरना हो, उसमें भले ही गंडे बाँट दो, मगर आसपास के गाँवों में मत जाओ, इसके लिए मैं तुम्हें ल्हासा पहुँचकर रुपए दे दूँगा। सुमति ने स्वीकार किया।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) लेखक किस स्थान के आस-पास के गाँवों की बात कर रहा है ? वहाँ की क्या विशेषता है ?
(ख) यजमान किसे कहते हैं ? सुमति उन्हें गंडे क्यों देते हैं ?
(ग) सुमति यजमानों के पास क्यों जाना चाहते हैं ? लेखक उन्हें क्यों नहीं जाने देना चाहते ?
(घ) लेखक ने सुमति को गाँवों में न जाने के लिए कैसे मनाया ?
(ङ) सुमति ने पैसा कहाँ लेना स्वीकार कर लिया था ?
उत्तर :
(क) लेखक तिड्री के आस-पास के गाँवों की बात कर रहा है। पहाड़ों से घिरे हुए तिड्री के मैदान टापू जैसे दिखाई देते थे। मैदान में एक छोटी-सी पहाड़ी थी। इस पहाड़ी को तिड्री – समाधि – गिरि कहा जाता है।
(ख) यजमान वह व्यक्ति होता है जो किसी ब्राह्मण अथवा धर्मगुरु से कोई धार्मिक कार्य करवाता है। सुमति अपने यजमानों को गंडे इसलिए देते हैं क्योंकि उनके यजमानों को यह विश्वास है कि इन गंडों को बोधगया से लाए गए कपड़े से बनाया गया है। यह गंडे उनकी रक्षा करेंगे। यजमान गंडों के बदले सुमति को दक्षिणा देते हैं।
(ग) सुमति यजमानों के पास इसलिए जाना चाहते हैं कि वे अपने यजमानों को गंडे दे सकें तथा उनसे दक्षिणा प्राप्त कर सकें। लेखक उन्हें वहाँ इसलिए नहीं जाने देना चाहता क्योंकि इस प्रकार उनकी यात्रा में बाधा आ जाएगी। सुमति वहाँ हफ़्ता – भर लगा सकते हैं।
(घ) लेखक ने सुमति को अन्य गाँवों में न जाने के लिए यह कहकर मना लिया कि जिस गाँव में ठहरना हो वहाँ के यजमानों को गंडे बाँट दो परंतु आसपास के अन्य गाँवों में मत जाओ। इससे होनेवाली हानि के बदले लेखक उसे ल्हासा पहुँचकर रुपए दे देगा।
(ङ) सुमति ने ल्हासा में पैसे लेना स्वीकार कर लिया था।

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5. तिब्बत की ज़मीन बहुत अधिक छोटे-बड़े जागीरदारों में बँटी है। इन जागीरों का बहुत ज्यादा हिस्सा मठों (विहारों) के हाथ में है। अपनी- अपनी जागीर में हरेक जागीरदार कुछ खेती खुद भी करता है जिसके लिए मज़दूर बेग़ार में मिल जाते हैं। खेती का इंतज़ाम दिखाने के लिए वहाँ कोई भिक्षु भेजा जाता है जो जागीर के आदमियों के लिए राजा से कम नहीं होता।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) तिब्बत में ज़मीन की स्थिति कैसी है ?
(ख) तिब्बत में जागीरदार खेती कैसे और किनसे कराते हैं ?
(ग) तिब्बत में खेती का प्रबंध देखनेवाले भिक्षुओं की क्या स्थिति है ?
(घ) ‘बेगार’ से क्या आशय है ?
(ङ) दो विदेशी शब्द चुनकर लिखिए।
उत्तर :
(क) तिब्बत की ज़मीन अनेक छोटी-बड़ी जागीरों में बँटी हुई है। इनमें से अधिकतर जागीरों पर मठों का अधिकार है। वे ही इसका प्रबंध करते हैं।
(ख) तिब्बत में जागीरदार कुछ खेती स्वयं भी करते हैं और कुछ बेगार में मिलनेवाले मज़दूरों से कराते हैं।
(ग) तिब्बत में खेती का प्रबंध देखनेवाले मठों के भिक्षुओं को वहाँ काम करनेवाले एक राजा के रूप में सम्मान देते थे। उनके लिए वे उनके अन्नदाता थे।
(घ) ‘बेगार’ उन व्यक्तियों को कहते हैं जो बिना कोई निश्चित पारिश्रमिक लिए काम करते हैं।
(ङ) जागीर, इंतज़ाम।

ल्हासा की ओर Summary in Hindi

लेखक परिचय :

जीवन – राहुल सांकृत्यायन आधुनिक हिंदी – साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। इनका जन्म उत्तर- प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पंदहा गाँव में सन् 1893 ई० में हुआ था। इनका मूल नाम केदारनाथ पांडेय था। शुरू से इनके स्वभाव में घुमक्कड़ी प्रवृत्ति विद्यमान थी। इसी कारण बाद में वे साधु बन गए और नाम पड़ा दामोदर। इन्होंने आरंभिक शिक्षा रानी की सराय गाँव में ग्रहण की थी। इन्होंने मिडिल की परीक्षा निज़ामाबाद के मिडिल स्कूल से पास की और संस्कृत सीखने काशी आ गए।

ये स्वभाव से ही घुमक्कड़ थे। इन्होंने संपूर्ण भारत की और लगभग एक तिहाई विश्व के महत्त्वपूर्ण देशों की यात्रा की। श्रीलंका, तिब्बत, नेपाल, ईरान, चीन, जापान, मंचूरिया, इंग्लैंड, सोवियत संघ आदि देशों की यात्राओं ने इनके जीवन-दर्शन और दिशा को निर्मित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अत्यंत कठिन परिस्थितियों में एक से अधिक बार तिब्बत की यात्रा करके वे दुर्लभ प्राचीन भारतीय ग्रंथों की प्रतियाँ खोजकर लाए। अनेक वर्षों तक वे रूस में भारतीय दर्शन के अध्यापक रहे। सन् 1930 में इन्होंने श्रीलंका जाकर बौद्ध धर्म ग्रहण किया, तब इनका नाम राहुल सांकृत्यायन हुआ। सन् 1963 ई० में इनका निधन हो गया।

रचनाएँ – राहुल जी सही अर्थों में महापंडित थे। उन्होंने अपनी रचनाओं से हिंदी साहित्य की अधिकांश विधाओं को समृद्ध किया है। इनके द्वारा रचित पुस्तकों की संख्या लगभग 150 है। मेरी जीवन-यात्रा (छह भाग), दर्शन – दिग्दर्शन, बाइसवीं सदी, जय यौधेय, बोल्गा से गंगा, भागो नहीं दुनिया को बदलो, दिमागी गुलामी, घुमक्कड़ शास्त्र आदि इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। इन्होंने आदि हिंदी की कहानियाँ, दक्खिनी हिंदी काव्य – धारा और हिंदी काव्य – धारा प्रस्तुत कर हिंदी साहित्य की लुप्तप्राय सामग्री का उद्धार किया। वे बौद्ध धर्म के विख्यात विद्वान और व्याख्याता थे। इन्होंने बौद्ध-धर्म के अनेक ग्रंथों का हिंदी में अनुवाद किया जिसमें मज्झिम निकाय, दीर्घनिकाय और विनय पिटक प्रमुख हैं।

भाषा-शैली – राहुल सांकृत्यायन आलोचक, भाषाशास्त्री, समाज – चिंतक, इतिहास – वेत्ता और गद्यकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनका पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, तिब्बती, चीनी, जापानी, रूसी एवं सिंहली भाषाओं पर अधिकार था। इनमें विषय एवं भाव के अनुरूप भाषा प्रयोग की अद्भुत क्षमता थी। ‘ल्हासा की ओर’ यात्रा – वृत्तांत में लेखक ने सहज, सरल भाषा तथा रोचक शैली में अपनी तिब्बत – यात्रा का वर्णन किया है। लेखक ने बोलचाल के पलटन, आबाद, बरतन, तकलीफ़, फ़ौजी आदि शब्दों के अतिरिक्त परित्यक्त, भद्र, मनोवृत्ति, श्वेत, शिखर आदि तत्सम प्रधान तथा खोटी, चोङी, डाँडा, थुक्पा, कन्जुर आदि देशज शब्दों का भी प्रयोग किया है। शैली में चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है, जैसे- ” आप दो बजे सूरज की ओर मुँह करके चल रहे हैं, ललाट धूप से जल रहा है और पीछे का कंधा बरफ़ हो रहा है। ”

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पाठ का सार :

‘ल्हासा की ओर’ राहुल सांकृत्यायन द्वारा रचित यात्रा – वृत्तांत है जिसमें उन्होंने ने अपनी तिब्बत यात्रा का वर्णन किया है। लेखक नेपाल से तिब्बत जाने वाले मुख्य मार्ग से ल्हासा जा रहे हैं। फरी – कलिड्याङ् मार्ग के प्रारंभ होने से पहले भारत का व्यापार नेपाल और तिब्बत से इसी मार्ग से होता था। चीनी पलटन उस मार्ग पर बनी हुई चौकियों और किलों में रहती थी। अब फ़ौजी मकान गिर गए हैं तथा किलों में किसानों ने अपने घर बना लिए हैं। ऐसे ही किसी किले में लेखक चाय पीने के लिए रुकता है।

तिब्बत में यात्रियों को सुविधाएँ भी हैं और कुछ कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है। वहाँ छुआछूत, परदा प्रथा, जातिगत भेद आदि कुछ भी नहीं है। यात्री घर के अंदर तक जाकर बहुओं अथवा सास को चाय पकाने के लिए कह सकते हैं। वह चाय बनाकर मिट्टी के टोटीदार बरतन में लाकर दे देगी। जब वे उस किले से चलने लगे तो एक व्यक्ति ने इनसे राहदारी माँगी। इन्होंने दो चिटें उसे दे दीं। उसी दिन वे थोड्ला के पहले के अंतिम गाँव में पहुँच गए थे। यहाँ भी लेखक के साथ चल रहे बौद्ध भिक्षु सुमति के जान-पहचान के लोग रहते थे। इसलिए उन्हें ठहरने के लिए अच्छी जगह मिल गई थी।

अब लेखक और उसके साथी को बहुत मुश्किल डाँड़ा थोड्ला पार करना था। तिब्बत में डाँड़े अत्यंत खतरनाक स्थान माने जाते हैं। सोलह- सत्रह हजार फीट की ऊँचाई होने के कारण उनके दोनों तरफ दूर-दूर तक कोई गाँव नहीं होता है। डाकुओं के लिए यह बहुत सुरक्षित जगह है। इन निर्जन स्थानों पर यदि किसी का खून भी कर दिया जाए तो कोई चिंता नहीं करता है। डाकू भी पहले आदमी को मार देते हैं और बाद में उसका माल लूटते हैं। लेखक और उसका साथी ऐसे किसी व्यक्ति को देखकर भिखमंगों की तरह उनसे ‘दया करके एक पैसा दे दो’ कहकर भीख माँगने लगते थे।

वहाँ पहाड़ की ऊँची चढ़ाई देखकर लेखक ने सुमति को लड्कोर तक दो घोड़ों का प्रबंध करने के लिए कहा। अगले दिन वे घोड़ों पर सवार होकर ऊपर की ओर चलने लगे। डाँडे से पहले उन्होंने एक स्थान पर चाय पी और दोपहर के समय डाँड़े के ऊपर जा पहुँचे। इनके दक्षिण की तरफ पूर्व से पश्चिम तक हिमालय की बरफ़ से ढकी हज़ारों चोटियाँ थीं तथा दूसरी ओर हरियाली और बरफ से रहित बिलकुल नंगे पहाड़ थे।

चढ़ाई कुछ कठिन थी परंतु उतराई सहज थी। लेखक अपने घोड़े पर झूमता हुआ गलत रास्ते पर चला गया। रास्ते में किसी से पूछकर लौटकर सही रास्ते पर आया। जब वह देर से पहुँचा तो सुमति लेखक पर गुस्सा होने लगा। लेखक ने सारा दोष अपने सुस्त घोड़े को दिया। सुमति शीघ्र ही शांत हो गया। लङ्कोर में इन्हें ठहरने के लिए अच्छा स्थान मिल गया। यहाँ के यजमानों ने उन्हें चाय-सत्तू और गरमा-गरम थुक्पा खाने को दिया।

इसके बाद वे तिड्री के पहाड़ों से घिरे हुए टापू जैसे विशाल मैदान में पहुँच गए। वहीं एक छोटी-सी पहाड़ी है, जिसे तिड्री-समाधि-गिरि कहते हैं। यहाँ के गाँवों में सुमति के अनेक यजमान थे। सुमति कपड़ों की पतली-पतली चिरी हुई बत्तियों के गंडे यजमानों को बाँटते थे। लेखक ने सुमति को आस-पास के गाँवों में जाने से मना कर दिया और ल्हासा पहुँचकर उसे रुपये देने की बात कही।

सुमति ने स्वीकार कर लिया। दूसरे दिन वे वहाँ से चल पड़े। सुमति के परिचित यजमान तिड्री में भी थे परंतु वे शंकर विहार की ओर चलने लगे। वहाँ के भिक्षु नम्से बहुत भद्र पुरुष थे। वहाँ के मंदिर में कन्जुर मुद्धवचन की हस्तलिखित एक सौ तीन, पोथियाँ थीं। एक-एक पोथी पंद्रह- चंद्रह सेर से कम नहीं थी। सुमति आस-पास के यजमानों से मिलने चला गया और लेखक पोथियाँ पढ़ने लगा। अंत में भिक्षु नमसे से विदा लेकर वे अपना-अपना सामान पीठ पर लादकर चल पड़े।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 ल्हासा की ओर

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • पलटन – सेना, फ़ौज
  • आबाद – बसा हुआ, जहाँ लोग रहते हों
  • अपरिचित – अनजान
  • भद्र – सभ्य
  • डाँड़ा – ऊँची ज़मीन
  • दोन्क्विक्स्तो – स्पेन के उपन्यासकार सावतज के उपन्यास ‘डॉन क्विकजोर’ का नायक
  • दुर्ग – किला।
  • परित्यक्त – छोड़ा हुआ
  • राहदारी – रास्ते का कर
  • विकट – भयंकर, कठिन
  • परवाह – चिंता
  • कंडे – उपले, थोपा हुआ सूखा गोबर
  • गंडे – तावीज़े

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

JAC Class 9 Hindi ग्राम श्री Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि ने गाँव को ‘हरता जन मन’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
गाँव हरियाली से भरा हुआ है। वह बहुमूल्य रत्न पन्ना के समान है, जिसके कण-कण में हरियाली बसी हुई है। वह शांत है, स्निग्ध है और इसलिए कवि ने गाँव को ‘हरता जन मन’ कहा है।

प्रश्न 2.
कविता में किस मौसम के सौंदर्य का वर्णन है ?
उत्तर :
कविता में शीत ऋतु के अंत और वसंत के मौसम का वर्णन है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

प्रश्न 3.
गाँव को ‘मरकत डिब्बे-सा खुला’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
गाँव के खेत हरी-भरी लहलहाती फसलों से भरे हुए हैं। पेड़-पौधों पर हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है। तरह-तरह के फलों, सब्जियों और अनाज के पेड़-पौधे अपनी हरी-भरी सुंदरता से सबके हृदय को आकृष्ट करते हैं। गाँव में हरियाली की अधिकता के कारण ही उसे ‘मरकत डिब्बे-सा खुला’ कहा है।

प्रश्न 4.
अरहर और सनई के खेत कवि को कैसे दिखाई देते हैं ?
उत्तर :
कवि को अरहर और सनई के खेत सोने की करधनियों के समान शोभाशाली दिखाई देते हैं।

प्रश्न 5.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
(ख) हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोए
उत्तर :
(क) गंगा किनारे दूर-दूर तक फैली रेत धूप में सतरंगी आभा प्रकट करती है। जब गंगा की लहरे रेत को गीलाकर पीछे हट जाती हैं, तो उन लहरियों के निशान सूखी रेत पर साँपों के समान दिखाई देते हैं।
(ख) शीत ऋतु के जाने और वसंत के आगमन पर धूप में तेजी आने लगती है। वातावरण में गरमी बढ़ने लगती है। सरदी से भयभीत-सी वनस्पतियाँ भी सुख का अनुभव करने लगती हैं। ऐसा लगता है, जैसे सरदी की धूप को पाकर हँसमुख हरियाली भी सुस्ताने लगती है; उसे हल्की-हल्की नींद-सी आने लगती है।

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प्रश्न 6.
निम्न पंक्तियों में कौन-सा अलंकार हैं ?
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक
उत्तर :
इन पंक्तियों में पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास और मानवीकरण अलंकार हैं।

प्रश्न 7.
इस कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है, वह भारत के किस भूभाग पर स्थित है?
उत्तर :
इस कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है, वह भारत में गंगा नदी के किनारे के किसी भूभाग पर स्थित है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 8.
भाव और भाषा की दृष्टि से आपको यह कविता कैसी लगी? उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
‘ग्राम श्री’ भारतीय गाँवों में सर्वत्र फैली प्राकृतिक शोभा की सुंदर झाँकी है। वसंत के आगमन पर पेड़-पौधों का हरा-भरा रूप सबके मन को मोह लेता है। लहलहाती फसलें जहाँ पेट भरने का आधार बनती हैं, वहीं मन और आँखों को तृप्ति भी प्रदान करती हैं। यह कविता कल्पना के आधार पर नहीं है, बल्कि यथार्थ का चित्रण करती है। सूर्य की उजली धूप में खेतों की मखमली शोभा और अधिक निखर जाती है। नीले आकाश के नीचे हवा में हिलती हुई फसलें ऐसी प्रतीत होती हैं, जैसे वे यौवन को पाकर मस्ती में झूमने लगी हों।

सरसों के पीले-पीले फूलों की बहार, अरहर और सनई की स्वर्णिम किंकिणियाँ और अलसी की नीली कलियाँ हरी-भरी धरती पर अनूठी प्रतीत होती हैं। मटर के खेतों में रंग-बिरंगे फूलों पर रंग-बिरंगी तितलियाँ हर पल मँडराती रहती हैं। आम के पेड़ बौर से लद जाते हैं; कोयलें कूकने लगती हैं; कटहल महक उठते हैं; जामुन फूल उठते हैं; अमरूदों पर लाल-लाल चित्तियाँ पड़ जाती हैं तथा तरह-तरह की सब्ज़ियाँ अपनी शोभा बिखेरने लगती हैं। गंगा के किनारे तरबूजों की खेती लहलहाती है, तो जलीय पक्षी अपनी मस्ती में क्रीड़ा करते दिखाई देते हैं।

कवि ने प्राकृतिक रंगों को अति स्वाभाविक रूप से प्रस्तुत करने में सफलता पाई है। खड़ी बोली में रचित कविता में तत्सम शब्दावली का अधिक प्रयोग किया गया है। छंद-बद्ध कविता में लयात्मकता की सृष्टि हुई है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द-शक्ति के प्रयोग ने कथन को सरलता और स्पष्टता दी है। निश्चित रूप से भाव और भाषा की दृष्टि से ‘ग्राम श्री’ श्रेष्ठ कविता है, जिसमें चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है। यह प्रकृति का चित्रण करने वाला रंग-बिरंगा चित्र है।

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प्रश्न 9.
आप जहाँ रहते हैं उस इलाके के किसी मौसम विशेष के सौंदर्य का कविता या गद्य में वर्णित कीजिए।
उत्तर :
जिस क्षेत्र में मैं रहता हूँ, वह भारत का ‘धान का कटोरा’ नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ धान की श्रेष्ठ किस्में उत्पन्न होती हैं, जो केवल भारत में ही नहीं खाई जातीं बल्कि विश्व के अधिकांश देशों को भी निर्यात की जाती हैं। वर्षा ऋतु का इस फसल के लिए बहुत बड़ा योगदान है। जुलाई-अगस्त महीनों में मानसून अपने पूरे रंग में आ जाता है। कई बार तो अचानक आकाश में बादल उमड़ते हैं और भरभूर वर्षा करते हैं। बच्चों को बारिश में भीगते हुए अपने-अपने स्कूलों में जाने-आने का विशेष आनंद आता है। गाँव के जो स्कूल कच्चे हैं वहाँ छुट्टी कर दी जाती है और बच्चे गलियों में नहाते हैं, भीगते हैं, खेलते हैं। कुछ किसान खेतों की ओर चल देते हैं, तो कुछ चौपाल में बैठ कर परस्पर मनोजन करते हैं। औरतें मिल जुलकर एक साथ घर के काम निपटाती हैं, लोकगीत गाती हैं। गलियों में पानी भर-भर कर बहता है। कहीं-कहीं तो ने छोटी नहर सी प्रतीत होती हैं। भैंसों को पानी में भीगना पसंद है, पर गायें सिर छिपाने की जगह ढूँढ़कर आराम से जुगाली करती हैं।

JAC Class 9 Hindi ग्राम श्री Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
कविता के आधार पर गंगा किनारे की चित्रात्मक छवि का अंकन कीजिए।
उत्तर :
कवि ने बनारस और इलाहाबाद में शिक्षा प्राप्त की थी, जहाँ उसने गंगा नदी की शोभा को निकटता से निहारा था। वहाँ की छवियाँ उसके मन में रची-बसी थीं। वसंत ऋतु आने पर पेड़-पौधों व फसलों पर ही बहार नहीं आती बल्कि जीव-जंतु भी अपने भीतर परिवर्तन को अनुभव करते हैं। गंगा की धाराएँ हर पल तटों को नहलाती हुई आगे बढ़ती हैं और उनके आगे बढ़ने से साँपों जैसे निशान रेत पर छूट जाते हैं। धूप में सूखी रेत तरह-तरह के रंगों में चमकती है। दूर-दूर से बहकर आए घास-पात और तिनके तटों की रेत पर बिखर जाते हैं। किसान नदी तट पर तरबूज उगाते हैं। बगुले अपने पंजों रूपी कंघी से अपनी कलगी सँवारते हैं। सुरखाब पानी पर तैरते हैं और पुलिया पर मगरौठी सोई रहती है।

प्रश्न 2.
‘ग्राम श्री’ कविता में कवि ने मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किस प्रकार किया है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि ने कविता में जड़ व चेतन तत्वों पर मानवीय भावों संबंधी और क्रियाओं के आरोप से उन्हें मनुष्य की तरह व्यवहार करते दिखाया है। प्रस्तुत कविता में सर्वत्र मानवीकरण अलंकार दिखाई देता है। बगुलों का अपने पैरों के पंजों रूपी कंघी से अपने पंखों को संवारते दिखाया गया है। इसी प्रकार अन्य स्थानों पर प्रकृति के विभिन्न रूपों को मानव के समान क्रियाकलाप करते दिखाया है।

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प्रश्न 3.
धरती का तल श्यामल क्यों प्रतीत हो रहा था ?
उत्तर :
सारा गाँव प्राकृतिक सुषमा से ओत-प्रोत था। खेतों में दूर तक हरियाली ही हरियाली थी। रात की ओस के बाद जब सुबह-सवेरे सूर्य की किरणें उस पर पड़ती थी, तब प्रकृति ऐसे लगती थी जैसे चाँदी की चादर ओढ़े हुए हो। फसलें अपने गहरे हरे रंग से सबको अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। इसी कारण धरती का तल श्यामल प्रतीत हो रहा था।

प्रश्न 4.
वसंत ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं ? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
वसंत ऋतु में प्रकृति में निरंतर परिवर्तन होता है। कभी धूप निकलती है, तो कभी मंद-मंद हवाएँ चलने लगती हैं। धूप के निकलने पर आस-पास के पर्वत, घास, पेड़-पौधे और उन पर खिले हुए फूल बहुत सुंदर दिखाई देते हैं। चारों ओर हरियाली छा जाती है। भीनी-भीनी गंध सारे वातावरण में फैल जाती है। हरी-भरी धरती पर अलसी के पौधों की नीली-नीली कलियाँ भी झाँकने लगती हैं।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटी जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली।
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्याम भू तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक!

शब्दार्थ : तलक – तक। रवि – सूर्य। तन – शरीर। हरित – हरे-भरे। रुधिर — रक्त। श्याम – गहरा हरा कुछ-कुछ श्याम रंग का। भू – धरती। नभ – आकाश। चिर – लंबे समय से। नील – नीला। फलक.- पर्दा, आकाश।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से लिया गया है, जिसके रचयिता सुप्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने हरे-हरे खेतों और प्रकृति की सुंदरता का मनोरम चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि खेतों में दूर तक हरी-भरी फसलों की मखमली शोभा फैली है। सुबह-सवेरे जब सूर्य की किरणें प्रकट होती हैं तो ऐसा लगता है कि उन पर चाँदी जैसी उजली जाली-सी लिपट गई हो। फसलों के हरे-भरे तन पर धूप की चमक ऐसी प्रतीत होती है, जैसे उनमें विद्यमान उनका हरा रक्त निरंतर प्रवाहित हो रहा हो। फसलें गहरे हरे रंग की हैं, जिनके कारण धरती का तल श्यामल प्रतीत हो रहा है। सदा की तरह साफ़-स्वच्छ नीला आकाश उस पर झुका हुआ-सा दिखाई दे रहा है। भाव है कि हरी-भरी फसलों से भरी धरती पर झुका हुआ नीला आकाश अद्भुत दिखाई दे रहा है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) खेतों में दूर तक फैली हरियाली कैसी दिखाई देती है ?
(ख) फसलों के हरे-भरे तिनकों में क्या झलकता प्रतीत होता है ?
(ग) साफ़-स्वच्छ नीला आकाश किस पर झुका हुआ है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) खेतों में दूर तक फैली हरियाली मखमल के समान कोमल दिखाई देती है।
(ख) फसलों के हरे-भरे तिनकों में उनकी हरी रक्त- रूपी शक्ति झलकती दिखाई देती है। इससे पौधे के स्वस्थ रूप की झलक मिलती है।
(ग) साफ़-स्वच्छ नीला आकाश हरी-भरी फसलों से भरी धरती पर झुका हुआ है।
(घ) प्रकृति चित्रण से संबंधित इस अवतरण में कवि ने गाँव की शोभा का वर्णन करते हुए हरे-भरे खेतों का सजीव चित्रण किया है। नीले आकाश और हरी फसलों के द्वारा अद्भुत रंग योजना की सृष्टि की गई है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। उपमा, अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश और रूपक अलंकारों का सहज-स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। तत्सम शब्दावली का सुंदर प्रयोग है।

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2. रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली !
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली-पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली !

शब्दार्थ : वसुधा – धरती। सनई – सन, जिसकी छाल के रेशे से रस्सी बनाई जाती है। किंकिणियाँ – करधनी । तैलाक्त – तेल से युक्त। तीसी – अलसी नामक तेलहन।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इन पंक्तियों में कवि ने वसंत ऋतु के आगमन पर खेतों में दिखाई देने वाले अद्भुत परिवर्तन का सजीव चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि गेहूँ- जौ की फसलों पर बालियाँ लग गई हैं, इसलिए सारी धरती रोमांचित – सी प्रतीत होती है। अरहर और सनई पर सुनहरे रंग की बालियाँ लग गई हैं, जो करधनी के समान शोभादायक प्रतीत होती हैं। सारे खेत में तेल की भीनी-भीनी गंध फैली हुई है। पीली-पीली सरसों सब तरफ़ फैली हुई है। कवि आश्चर्य में भरकर कहता है कि ज़रा देखो तो ! हरी-भरी धरती पर अलसी के पौधों की नीली- नीली कलियाँ भी झाँकने लगी हैं। भाव है कि हरे-भरे खेतों में नीले, पीले व सुनहरे रंग अलग से ही अपनी सुंदरता दिखाने लगे हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि के अनुसार पृथ्वी क्या देखकर रोमांचित है ?
(ख) सोने जैसी करधनियाँ किनकी हैं ?
(ग) नीली कलियों की शोभा कवि को कहाँ दिखाई दी थी ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि के अनुसार गेहूँ और जौ की बालियों को देखकर पृथ्वी रोमांचित है।
(ख) सोने की करधनियाँ अरहर और सनई के पौधों की हैं।
(ग) कवि को अलसी के पौधों की नीली कलियों की शोभा हरी-भरी धरती पर दिखाई दी थी।
(घ) कवि ने वसंत ऋतु के समय खेतों की हरियाली के साथ-साथ विभिन्न पौधों पर तरह-तरह की रंग – योजना का सजीव चित्रण किया है। ‘लो’ शब्द ने नाटकीयता और हैरानी के भाव को प्रकट करने में सफलता प्राप्त की है। गतिशील बिंब योजना है। दृश्य बिंब ने कवि के कथन को चित्रात्मकता का गुण प्रदान किया है। उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास और मानवीकरण अलंकारों का सहज सुंदर चित्रण किया गया है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। तत्सम शब्दाब्ली की अधिकता है।

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3. रंग-रंग के फूलों में रिलमिल
हँस रही सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटक
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी!
फिरती हैं रंग रंग की तितली
रंग रंग के फूलों पर सुंदर
फूले गिरते हों फूल स्वयं
उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर !

शब्दार्थ : रिलमिल – मिल-जुलकर। छीमियाँ – फलियाँ। वृंत – डंठल।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने हरे-भरे खेतों में मटर की बेलों पर लटकी फलियों और फूलों पर उड़ती रंग-बिरंगी तितलियों की शोभा का चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि मटर की बेलें तरह-तरह के रंगों के फूलों से मिलकर हँसती-मुस्कुराती खड़ी हैं। उनकी हरी-भरी फलियाँ अपने भीतर बीजों की लड़ियों को छिपाकर मखमल की पेटियों की तरह लटकी हुई हैं। बेलों पर लगे रंग-बिरंगे फूलों पर रंग- बिरंगी तितलियाँ मँडरा रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि फूलों पर फूल गिर रहे हों; डंठलों पर जैसे डंठल ही उड़-उड़कर घूम रहे हों।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने मटरों की सुंदरता का वर्णन कैसे किया है ?
(ख) प्रकृति ने मखमली पेटियों में क्या छिपाया है ?
(ग) ‘फूलों पर फूल गिरते हुए’ किसके लिए कहा गया है ?
(घ) पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि ने मटरों को रंग-बिरंगे फूलों से लदी बेलों पर लटकते हुए प्रकट किया है, जो अति सुंदर हैं। मटरों की फलियाँ मखमली पेटियों
के समान कोमल हैं।
(ख) प्रकृति ने मखमली पेटियों में मटर के बीजों की लड़ियों को छिपाया है।
(ग) रंग-बिरंगी तितलियाँ मटर की बेलों पर लगे रंग-बिरंगे फूलों पर मँडरा रही हैं। कवि ने कल्पना करते हुए कहा है कि मानों रंग-बिरंगे फूल ही रंग-बिरंगे फूलों पर गिर रहे हों।
(घ) कवि ने मटर के खेतों में प्रकृति की अनूठी छटा का सुंदर चित्रण किया है। उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश, मानवीकरण और अनुप्रास अलंकारों का सहज-स्वाभाविक चित्रण किया गया है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। गतिशील बिंब योजना अति स्वाभाविक रूप से की गई है। अभिधा शब्द – शक्ति और प्रसाद युग विद्यमान है। शांत रस है। चाक्षुक बिंब ने दृश्य को सुंदर ढंग से प्रकट किया है।

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4. अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढाक, पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली!
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आड़ू, नींबू, दाड़िम,
आलू, गोभी, बैंगन, मूली !

शब्दार्थ : रजत – चाँदी। स्वर्ण – सोना। मंजरियाँ – बौर। आम्र – आम। तरु – पेड़। दल – पत्ते। डाली – शाखा। कोकिला – कोयल। मुकुलित – अधखिला। दाड़िम – अनार।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने वसंत ऋतु के आगमन के साथ प्रकृति में आए परिवर्तन का सजीव चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि आम के पेड़ों की शाखाएँ सोने-चाँदी के रंगों से युक्त बौर से लद गई हैं। ढाक और पीपल के पुराने पत्ते पेड़ों से गिर रहे हैं, ताकि उनका स्थान नए पत्ते ले सकें। कोयल मस्ती से भर उठी है। कटहल पेड़ों पर चिपके-लटके महकने लगे हैं। अधखिले जामुन के पेड़ शोभा देने लगे हैं और जंगल में झरबेरी मस्ती में झूमने लगी है। पेड़ों पर आडू, नींबू और अनार झूमने लगे हैं; खेतों में आलू, गोभी, बैंगन और मूली तैयार हो गई हैं। भाव है कि सारी प्रकृति तरह-तरह के पेड़-पौधों की शोभा से भर उठी है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य – सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने आम के पेड़ों की शोभा कैसे प्रकट की है ?
(ख) किन-किन पेड़ों के पत्ते झड़ने लगे थे ?
(ग) जंगल में प्रकृति के रंग को किसने प्रकट किया था ?
(घ) पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) आम के पेड़ सरदी जाते ही चाँदी और सोने जैसे रंग के बौर से लद गए हैं। कोयल उन पर मस्ती में भरकर कूकने लगी है।
(ख) ढाक और पीपल के पत्ते झड़ने लगे थे, ताकि उनकी जगह नए और सुंदर पत्ते ले सकें।
(ग) जंगल में प्रकृति के रंग को झरबेरी ने प्रकट किया था।
(घ) कवि ने प्रकृति में होने वाले परिवर्तन का सुंदर सजीव वर्णन किया है। तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है, पर वे सभी शब्द अति सरल और सामान्य बोलचाल की भाषा में प्रयुक्त किए जाते हैं। अनुप्रास, मानवीकरण और स्वाभावोक्ति अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है। अभिधा शब्द – शक्ति, प्रसाद गुण और शांत रस है। गणन शैली का प्रयोग है। लयात्मकता की सृष्टि स्वरमैत्री के कारण हुई है।

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5. पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ीं,
पक गए सुनहले मधुर बेर,
अँवली से तरु की डाल जड़ी !
लहलह पालक, महमह धानिया,
लौकी औं सेम फलीं, फैलीं
मखमली टमाटर हुए लाल,
मिरचों की बड़ी हरी थैली !

शब्दार्थ : चित्तियाँ – धब्बे। सुनहले – सोने के रंग के। अँवली – छोटा आँवला। तरु – पेड़।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने वसंत ऋतु में तरह-तरह के फलों और सब्ज़ियों की विशेषताओं का सजीव चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि अमरूद पककर पीले और मीठे हो गए हैं। उन पर छोटे-छोटे लाल धब्बे पड़ गए हैं, जिनसे उनकी सुंदरता बढ़ गई है। सुनहरे बेर पककर तैयार हो गए हैं और छोटे आँवलों से पेड़ों की शाखाएँ जड़ी गई हैं। खेतों में हरी-भरी पालक लहलहाने लगी है, तो धनिए की सुगंध महकने लगी है। लौकी और सेम की बेलें दूर-दूर तक फैल गई हैं और फल गई हैं। लाल रंग के मखमली टमाटरों से पौधे लद गए हैं। हरी मिर्चों से पौधे भर गए हैं, जिस कारण पौधे हरी-भरी थैली के समान दिखाई देने लगे हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) पके हुए अमरूद कैसे दिखाई देते हैं ?
(ख) बेर और आँवले कैसे हो गए हैं ?
(ग) खेतों में सब्ज़ियों पर कैसी-कैसी बहार है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) पके हुए अमरूद पीले रंग के हो गए हैं, जिन पर लाल-लाल चित्तियाँ हैं। वे बहुत मीठे हैं।
(ख) बेर और आँवले शोभा दे रहे हैं। बेर पककर सुनहले हो गए हैं और आँवलों से पेड़ों की डालियाँ पूरी तरह जड़ी जा चुकी हैं।
(ग) खेतों में पालक लहलहा रही है; धनिया महक रहा है; लौकी और सेम की बेलें दूर तक फैली हुई हैं। लाल-लाल मखमली टमाटरों और हरी-भरी मिर्चों पर तो मानो बहार आई हुई है।
(घ) कवि ने खेतों में उगने वाली सब्ज़ियों और फलों की शोभा का सुंदर और सहज वर्णन किया है। पुनरुक्ति प्रकाश और अनुप्रास का स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। ‘लहलह’, ‘महमह’ में लयात्मकता है। स्वरमैत्री ने गेयता का गुण प्रदान किया है। अभिधा शब्द – शक्ति, प्रसाद गुण, चित्रात्मकता और दृश्य बिंब सहज सुंदर हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री

6. बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूजों की खेती;
अँगुली भी कंघी से बगुले
कलँगी सँवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती सोई!

शब्दार्थ : बालू – रेत। सरपत – घास-पात, तिनके। तट – किनारा। सुरखाब – चक्रवाक पक्षी। पुलिन – नदी का किनारा।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने गंगा किनारे की रेत और वहाँ पर पक्षियों की क्रीड़ाओं का अति स्वाभाविक चित्रण किया है।

व्याख्या :कवि कहता है कि गंगा के किनारे पर सात रंगों में जगमगाती रेत पर नदी की लहरों से साँपों जैसे सुंदर लहरिया निशान बने हुए हैं। वहाँ फैली घास-पात और तिनके अति सुंदर लगते हैं। तट पर तरबूजों की खेती की गई है। सफ़ेद बगुलों में से कई अपने पंजे रूपी उँगलियों से कलगी सँवार रहे हैं, तो चक्रवाक पक्षी जल पर तैर रहे हैं। नदी के तट पर मगरौठी सोई रहती है। भाव यह है कि गंगा – किनारे का दृश्य अति मोहक है। प्रकृति ने अपने सभी रंग वहाँ बिखेर दिए हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि द्वारा गंगा किनारे का अंकित चित्र स्पष्ट कीजिए।
(ख) बगुले गंगा किनारे क्या कर रहे हैं ?
(ग) मगरौठी क्या कर रही है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) गंगा किनारे रंग-बिरंगी रेत दूर-दूर तक फैली हुई है, जिस पर लहरों के बहाव से साँप जैसे चिह्न अंकित हैं। घास-पात और तिनके न जाने कहाँ-कहाँ से बहकर वहाँ इकट्ठे हो गए हैं, जो सुंदर लगते हैं। तट पर तरबूजों की खेती की गई है।।
(ख) बगुले गंगा के तट पर अपने पंजे रूपी कँघी से अपनी कलगी सँवार रहे हैं।
(ग) मगरौठी नदी के तट पर आराम से सो रही है।
(घ) कवि ने गंगा तट पर प्राकृतिक दृश्य का अति सुंदर और स्वाभाविक चित्रण किया है। रेत पर साँप – सी लहरियाँ, तरबूजों की खेती और पक्षियों की क्रियाएँ अति सहज रूप से प्रस्तुत हुई हैं। अनुप्रास और स्वाभावोक्ति अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है। सामान्य बोलचाल के शब्दों की अधिकता है। अभिधात्मकता और प्रसादात्मकता ने कवि के कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है। चित्रात्मकता का गुण और चाक्षुक बिंब विद्यमान है।

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7. हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोए,
भीगी अँधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में से खोए
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम-
जिस पर नीलम नभ आच्छादन-
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन !

शब्दार्थ : हिम-आतप – सरदी की धूप। अंधियाली – अँधेरे। निशि – रात। तारक – तारे। स्वप्नों – सपनों। मरकत — पन्ना नामक रत्न। आच्छादन – छाया। निरुपम – जिसे किसी की उपमा न दी जा सके। स्निग्ध – कोमल। निज – अपनी। हरता – आकर्षित करना।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ग्राम श्री’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि ने वसंत के आगमन पर ग्रामीण आँचल में बिखरी प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि प्रसन्नता से भरी हँसमुख हरियाली सरदी की धूप में सुख से अलसाई सो रही है। ओस से भीगी अँधेरी रात में आकाश में टिमटिमाते तारे भी मानो स्वप्न में खोए हुए हैं। सारा गाँव हरियाली से इस प्रकार भरा हुआ है, जैसे वह हरा-भरा बहुमूल्य पन्ना रत्न हो जिस पर नीलम ज़ैसा नीला आकाश छाया हुआ है। शीत ऋतु की समाप्ति पर सारा गाँव अनुपम प्रतीत हो रहा है। वह कोमल, अति सुंदर और शांत है; जो अपनी अपार शोभा से हर मानव के हृदय को आकर्षित करता है। भाव यह है कि शीत ऋतु की समाप्ति और वसंत के आगमन पर गाँव की शोभा अवर्णनीय व अद्भुत है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने हरियाली को सुख से अलसाई क्यों कहा है?
(ख) ‘भीगी अँधियाली’ क्या है ?
(ग) कवि ने गाँव को ‘मरकत डिब्बे – सा’ क्यों माना है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) वसंत आगमन पर सरदियों की ठिठुरन कम हो जाती है। धूप में थोड़ी तेज़ी बढ़ने लगती है। दिन-रात सरदी से ठिठुरती खेतों की हरियाली भी मानो गरमी पाकर अलसाने लगी थी। इसलिए कवि ने हरियाली को सुख से अलसाई – सी माना है।
(ख) ओस का पड़ना सरदियों का आवश्यक और स्वाभाविक गुण है। रात के अँधकार में ओस चुपचाप पेड़-पौधों तथा सारी प्रकृति को नहला देती है, इसलिए कवि ने उसे भीगी अँधियाली कहा है।
(ग) सारा गाँव हरी-भरी वनस्पतियों से भरा हुआ है। हरियाली तो उसके कण-कण में सिमटी हुई है, इसलिए कवि ने उसे ‘मरकत का डिब्बे – सा’ माना है।
(घ) कवि ने गाँव के कण-कण की शोभा का आधार प्रकृति को माना है। वसंत के आगमन पर प्रकृति का कण-कण खिल उठता है, महक जाता है; कवि ने तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया है। उपमा, मानवीकरण, अनुप्रास तथा पदमैत्री का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है। प्रसादगुण और अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग सराहनीय है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।

ग्राम श्री Summary in Hindi

कवि-परिचय :

छायावादी काव्यधारा के कवि सुमित्रानंदन पंत कोमल भावों और सौंदर्य के कवि माने जाते हैं। इनका जन्म उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के कौसानी गाँव में सन् 1900 में हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में ही हुई थी। बाद में इन्होंने बनारस और इलाहाबाद में शिक्षा प्राप्त की थी, पर देश की स्वतंत्रता के लिए महात्मा गांधी के आह्वान पर इन्होंने कॉलेज छोड़ दिया था। इनका देहांत 28 दिसंबर, सन् 1977 में हुआ था।

पंत जी ने साहित्य को काव्य के अतिरिक्त आलोचक, कहानी, आत्मकथा आदि गद्य विधाओं की रचनाएँ दी हैं। इनकी प्रमुख काव्य रचनाएँ हैं – वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगांत, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, उत्तरा, कला और बूढ़ा चाँद, चिदंबरा, लोकायतन आदि। सन 1961 में इन्हें पद्मभूषण की उपाधि दी गई थी। इन्हें ‘कला और बूढ़ा चाँद’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा ‘चिदंबरा’ पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया था। इन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

पंत द्वारा प्रारंभिक कविताओं में प्रकृति चित्रण को विशेष महत्व दिया गया। इन्होंने प्रकृति को नारी रूप में चित्रित किया था। ये प्रगतिवादी कविता से प्रभावित होकर रूढ़ियों को समाज से मिटा देने के लिए तैयार थे। इनके प्रारंभिक काव्य में जो कोकिला मीठे गीत गाती थी, वही बाद में क्रांति के लिए उकसाने लगी थी –

गा कोकिल बरसा पावक कण
नष्ट भ्रष्ट हों जीर्ण पुरातन।

महर्षि अरविंद से भेंट करने के पश्चात ये अध्यात्मवादी हो गए। इनकी कविता में चिंतन की प्रधानता हो गई थी। ये सत्य पर विश्वास रखते हुए भौतिक समृद्धि की आवश्यकता को स्वीकार करते थे। लोकायतन लोक संस्कृति का महाकाव्य है।
वास्तव में पंत एक महान कवि थे, जिन्होंने प्रारंभिक सौंदर्य भावना के युग से आज के चेतना प्रधान युग तक की महान यात्रा की। वे भाषा का प्रयोग करने में अति निपुण थे। उन जैसा शब्द चयन की क्षमता से युक्त कवि बड़ी कठिनाई से प्राप्त होता है।

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कविता का सार :

सुमित्रानंदन पंत द्वारा चौथे दशक में लिखी गई यह कविता प्राकृतिक सुषमा और समृद्धि का मनोरम वर्णन करने में सक्षम है। खेतों में दूर तक लहलहाती फसलें, फल-फूलों से लदी पेड़-पौधों की डालियाँ और गंगा की रेत कवि को गहराई से प्रभावित करती है। कवि को दूर-दूर तक खेतों में फैली हुई हरियाली मखमल के समान कोमल प्रतीत होती है, जिस पर सूर्य की किरणें चाँदी की जाली के समान बिखरी हुई हैं। हरी-भरी धरती पर नीले आकाश का पर्दा-सा फैला हुआ है। गेहूँ की बालियाँ, अरहर और सनई की सोने जैसी किंकिणियाँ शोभा देने वाली हैं।

मटर और छीमियों पर रंग-बिरंगी सुंदर तितलियाँ मँडराती फिरती हैं। आम की डालियाँ चाँदी-सोने की मंजरियों से लद गई हैं। ढाक और पीपल के पेड़ों से पत्ते झड़ने लगे हैं। कोयल मस्ती में डूबकर कूक रही है। कटहल, जामुन, झरबेरी, आडू, नींबू, अनार, आलू, गोभी, बैंगन और मूली अपना रंग-रूप बिखेरने लगे हैं। पीले-पीले अमरूदों पर लाल-लाल चित्तियाँ पड़ गई हैं। पीले-पीले बेर पक गए हैं। पेड़ों पर आँवले झूल रहे हैं।

पालक, धनिया, लौकी, सेम, टमाटर, मिर्च आदि सब ऋतु परिवर्तन के साथ अपनी-अपनी शोभा को लेकर प्रकट हो गए हैं। गंगा नदी के किनारे रेत पर पानी के बहाव से सतरंगी साँप से अंकित हो गए हैं। नदी के तट पर तरबूजों की खेती की गई है। किनारों पर बगुले अपने पैरों की उँगलियों रूपी कंघी से अपने पंख सँवारते शोभा देते हैं। जल में तैरती सुरखाब और पुल पर सोई मगरौठी सुंदर लगती है। सरदियों की धूप फैल गई है।

हरियाली अलसाई-सी प्रतीत हो रही है। सारा गाँव पन्ना का खुला डिब्बा-सा प्रतीत होता है, जिस पर साफ़-स्वच्छ आकाश रूपी नीलम फैला हुआ है। शीत ऋतु बीत जाने के बाद प्राकृतिक शोभा सभी के हृदय को अपने बस में कर रही है। सर्वत्र सुंदरता बिखरी हुई है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 बच्चे काम पर जा रहे हैं

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 बच्चे काम पर जा रहे हैं Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 बच्चे काम पर जा रहे हैं

JAC Class 9 Hindi बच्चे काम पर जा रहे हैं Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने से आपके मन-मस्तिष्क में जो चित्र उभरता है उसे लिखकर व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
सर्दियों की धुंध-भरी सड़क पर छोटे-छोटे बच्चों को काम पर जाते देखना दुखदायी है। उनकी आयु अभी काम पर जाने की नहीं बल्कि खेलने-कूदने और विद्यालय जाने की है। यदि वे अभी से बड़ों वाला कार्य करने को विवश कर दिए गए हैं तो उनके बचपन का क्या हुआ ?

प्रश्न 2.
कवि का मानना है कि बच्चों के काम पर जाने की भयानक बात को विवरण की तरह न लिखकर सवाल के रूप में पूछा जाना चाहिए कि ‘काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे ?’ कवि की दृष्टि में किसी बात का विवरण न देते हुए उसे प्रश्न के रूप में क्यों पूछा जाना चाहिए ?
उत्तर :
छोटे बच्चों को काम पर भेजने का कार्य उनके माता-पिता, अभिभावक और जीवन की विवशताएँ हैं इसलिए समाज से प्रश्न किया जाना चाहिए कि ‘बच्चे काम पर क्यों जा रहे हैं ?’ यदि बच्चों ने काम पर जाना आरंभ कर दिया तो उनका बचपन कहाँ गया ? उनके जीवन के लिए शिक्षा – प्राप्ति का समय कहाँ गया ? उनकी खेल-कूद कहाँ गई ? वे बच्चे तो अपना बचपन खोकर जल्दी ही बड़े हो गए।

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प्रश्न 3. :
सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से बच्चे वंचित क्यों हैं?
उत्तर :
बच्चे सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से वंचित हैं। उनके माँ-बाप गरीब हैं। उनके पास पेट भरने के लिए रोटी नहीं है तो उनके पास उनके लिए खेल-खिलौने कहाँ से आ सकते हैं? इसलिए उनके बच्चे खेलते नहीं, बल्कि काम करने के लिए जाते हैं।

प्रश्न 4.
दिन-प्रतिदिन के जीवन में हर कोई बच्चों को काम पर जाते देख रही है/ देख रहा है, फिर भी किसी को कुछ अटपटा नहीं लगता। इस उदासीनता के क्या कारण हो सकते हैं ?
उत्तर :
प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में प्राप्त किए जाने वाले सुखों तक ही सीमित है। उसे दूसरों के बच्चों के स्कूल जाने या न जाने से कोई मतलब नहीं है। वे सब स्वार्थी हैं। घरों – दुकानों उद्योगों में छोटे-छोटे बच्चे कम वेतन पर काम करते हैं। वे खेतों में काम करते हैं; कूड़ा बीनते हैं; भीख माँगते हैं पर पढ़ते नहीं हैं। माँ – बाप भी खुश हैं कि वे कुछ तो कमाकर लाते हैं। उनसे खाना तो नहीं माँगते। उन सब की उदासीनता के अपने-अपने कारण हैं, पर सबसे बड़ा कारण तो ग़रीबी है।

प्रश्न 5.
आपने अपने शहर में बच्चों को कब-कब और कहाँ-कहाँ काम करते हुए देखा है ?
उत्तर :
हमने अपने शहर में बच्चों को दुकानों में काम देखा है; घर-बाहर की सफ़ाई करते देखा है; कूड़ा बीनते और बोझ ढोते देखा है। उन्हें घरों में नौकर के रूप में देखा है; ढाबों पर खाना पकाते-परोसते देखा है।

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प्रश्न 6.
बच्चों का काम पर जाना धरती के एक बड़े हादसे के समान क्यों है ?
उत्तर :
बच्चों का काम पर जाना एक भयानक प्रश्न है, यह एक हादसे के समान है। यदि वे अभी से काम पर जाने लगेंगे तो वे स्कूल जा सकेंगे; खेल-कूद नहीं सकेंगे। उनका बचपन अधूरा रह जाएगा। वे अनपढ़ रह जाएँगे और जीवन में उचित मार्ग प्राप्त नहीं कर सकेंगे। बचपन में ही बिगड़े हुए लोगों की संगत पाकर बिगड़ जाएँगे। उनकी बुद्धि का विकास ठीक प्रकार से नहीं हो सकेगा।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 7.
काम पर जाते किसी बच्चे के स्थान पर अपने-आपको रखकर देखिए। आपको जो महसूस होता है उसे लिखिए।
उत्तर :
यदि मैं अपने-आपको काम पर जाते किसी बच्चे के स्थान पर रखूं तो मेरा रोम-रोम काँप उठता है। मुझे अपने तन पर मैले-कुचैले कपड़े, पाँव में टूटी हुई चप्पल, मैला-गंदा शरीर और उलझे हुए बाल अनुभव कर स्वयं से ऐसा एहसास होता है जो सुखद नहीं है। मेरा पेट खाली हो और मन में नौकरी देने वाले मालिक की गालियाँ गरज रही हों तो मेरे मन में पीड़ा का उठना स्वाभाविक ही है। कोहरे या कीचड़ से भरी सड़क पर अकेले पैदल ही काम करने के लिए आगे बढ़ना निश्चित रूप से बहुत भयानक है।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 8.
आपके विचार से बच्चों को काम पर क्यों नहीं भेजा जाना चाहिए ? उन्हें क्या करने के मौके मिलने चाहिए ?
उत्तर :
मेरे विचार में बच्चों को काम पर नहीं भेजा जाना चाहिए। उन्हें पढ़ने-लिखने का पूरा मौका मिलना चाहिए ताकि वे शिक्षा प्राप्त कर अपने जीवन को सँवार सकें। उन्हें खेलने-कूदने का उचित अवसर मिलना चाहिए ताकि वे तन-मन से स्वस्थ बन सकें। उन्हें अपने माता-पिता, सगे-संबंधियों और पास-पड़ोस से पूरा प्रेम मिलना चाहिए। ऐसा होने से ही उन के व्यक्तित्व का समुचित विकास हो सकेगा।

यह भी जानें –

संविधान के अनुच्छेद 24 में कारखानों आदि में बालक/बालिकाओं के नियोजन के प्रतिषेध का उल्लेख किया गया है, जिसके अनुसार ‘चौदह वर्ष से कम आयु के किसी बच्चे को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जाएगा।’

JAC Class 9 Hindi बच्चे काम पर जा रहे हैं Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि ने कविता में किस सामाजिक-आर्थिक विडंबना की ओर संकेत किया है ? कवि क्या चाहता है ?
उत्तर :
हमारे समाज में व्याप्त निर्धनता ही बच्चों को स्कूल जाने से रोकने की प्रमुख अवरोधक है। आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग के लोग अपने साथ छोटे-छोटे बच्चों को भी सहायता के लिए लगा लेते हैं। उनके द्वारा कमाए गए थोड़े से पैसे भी उनके जीवन का आधार बनने लगते हैं। वे उन्हें इसी लालच में पढ़ने के लिए स्कूल नहीं भेजते।

वे बच्चों को उचित दिशा नहीं दिलाते। जिन स्थानों पर छोटे-छोटे बच्चे काम करते हैं वहाँ के लोग भी कम पैसों से अधिक काम करवाने की स्वार्थ सिद्धि में आत्मिक प्रसन्नता प्राप्त कर बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित नहीं करते। कवि ने इसी सामाजिक-आर्थिक विडंबना की ओर संकेत करते हुए इसे भयानक माना है और चाहा कि बच्चे शिक्षा प्राप्त करें; खेलें कूदें और अपने बचपन से दूर न हों।

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प्रश्न 2.
कवि ने किसे भयानक माना है और इस बात को किस रूप में प्रकट करना चाहता है ?
उत्तर :
कवि ने छोटे-छोटे बच्चों का पढ़ाई-लिखाई और खेल-कूद छोड़कर, परिवार की आर्थिक मजबूरी के कारण मेहनत-मज़दूरी के लिए जाना बहुत भयानक माना है। कवि बाल मज़दूरी की बात समाज के समक्ष एक विकराल प्रश्न के रूप में उपस्थित करना चाहता है। वह समाज से पूछना चाहता है कि छोटे बच्चों से इस प्रकार उनका बचपन क्यों छीन लिया गया है ?

प्रश्न 3.
कवि समाज से क्या जानना चाहता है ?
उत्तर :
कवि छोटे-छोटे बच्चों को काम पर जाते देखकर, समाज से यह जानना चाहता है कि इन बच्चों का बचपन कहाँ खो गया है। क्या इनकी गेंदें आकाश में खो गई हैं? क्या इनकी पुस्तकों को दीमकों ने खा लिया है? यदि नहीं, तो ये बच्चे अन्य बच्चों की तरह खेलते क्यों नहीं हैं, पढ़ते क्यों नहीं हैं? इन पर कैसी मजबूरी आ गई है जिसके कारण यह काम पर जाने लग गए हैं?

प्रश्न 4.
कवि के अनुसार दुनिया किसके बिना अधूरी है ? कैसे ?
उत्तर :
कवि के अनुसार दुनिया स्वच्छंद और स्वाभाविक बचपन के बिना अधूरी है। बच्चों का बचपन तभी खिल सकता है जब बच्चे खेल के मैदान और स्कूलों में विद्या – प्राप्ति के लिए दिखाई दें। इस दुनिया का अस्तित्व बच्चों की खिलखिलाहट, भोलेपन तथा स्वाभाविक जीवन से है। यदि बच्चों का बचपन ही उनके पास नहीं है, तो दुनिया बेजान है, अधूरी है।

प्रश्न 5.
‘हैं सभी चीजें हस्वमामूल’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
‘हैं सभी चीजें हस्वमामूल’ से अभिप्राय यह है कि छोटे बच्चों के लिए खेलों और मनोरंजन के लिए आवश्यक सभी सामग्रियाँ अभी भी वैसी हैं जैसी पहले थीं। उनमें कोई कमी नहीं हुई है। अभी भी उनके लिए विद्यालय है; मैदान है; घरों के आँगन हैं पर उनमें विवशता के मारे बच्चे नहीं हैं अर्थात् बच्चे वहाँ जाने की अपेक्षा काम पर जाने के लिए विवश हैं।

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प्रश्न 6.
यदि आपके घर में ऐसा कोई बच्चा कार्य कर रहा है तो आप उसके लिए क्या करना चाहेंगे ?
उत्तर :
यदि हमारे घर ऐसा कोई बच्चा कार्य कर रहा है तो उसकी देखभाल भी अपने बच्चों के समान करेंगे। उसकी पढ़ाई के लिए प्रबंध करेंगे। उससे वही काम करवाए जाएँगे जो उसके उम्र के अनुसार सही होंगे। उसे खेलने-कूदने का उचित अवसर देंगे। उसके बचपन को पूरा ध्यान रखेंगे, जिससे वह अपना बचपन पूरी तरह जी सके और अपना व्यक्तित्व निखार सके।

प्रश्न 7.
‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ कविता का मूल भाव स्पष्ट करें।
उत्तर :
‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ कवि राजेश जोशी की रचना है। इसमें कवि ने समाज की सामाजिक-आर्थिक विडंबना की ओर संकेत किया है। आज के भौतिकवादी युग में मानव मानव से दूर तो हुआ ही है, पर साथ ही उसने बच्चों के बचपन को भी छीन लिया है। घर की आर्थिक स्थिति ने बच्चों को खेल-कूद और शिक्षा से दूर कर दिया है। सर्दियों के कोहरे में बच्चे स्कूल और खेलने का मैदान छोड़कर काम के लिए जा रहे हैं जो आज के समाज के लिए सबसे भयानक बात है।

बच्चों के खेल-खिलौने, पुस्तकें नष्ट हो गई हैं क्या ? तभी तो बच्चे काम के लिए जा रहे हैं। यदि वास्तव में ऐसा ही है तो दुनिया अधूरी हो जाएगी। दुनिया का अस्तित्व बच्चों के स्वाभाविक बचपन है। बच्चों का काम पर जाना बहुत भयानक बात है, इसे रोकना चाहिए। कवि कविता के माध्यम से दुनिया के सामने बाल मजदूरी के विकट विषय को रखना चाहता है तथा उनके लिए कुछ करने के लिए दूसरों को प्रेरित करना चाहता है।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर – 

1. कोहरे से ढकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह-सुबह
बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे ?

शब्दार्थ : कोहरा – धुंध। विवरण- वर्णन, विस्तार। सवाल – प्रश्न।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ बच्चे काम पर जा रहे हैं’ से लिया गया है, जिसके रचयिता श्री राजेश जोशी हैं। कवि को छोटे-छोटे बच्चों का खेल – कूद और पढ़ाई छोड़कर काम पर जाना बहुत बुरा लगता है।

व्याख्या : कवि कहता है कि सर्दियों में धुंध से ढकी सड़क पर सुबह-सुबह छोटे-छोटे बच्चे मेहनत-मज़दूरी करने जा रहे हैं। बच्चों का पढ़ाई-लिखाई और खेल – कूद को छोड़कर काम करने के लिए जाना हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है। इसे बढ़ा-चढ़ाकर लिखना और विवरण की तरह लिखना बहुत भयानक है। इसे इस प्रकार नहीं लिखा जाना चाहिए बल्कि इसे प्रश्न के रूप में लिखा जाना चाहिए कि बच्चे अपनी छोटी-सी आयु में काम करने के लिए क्यों जा रहे हैं ? भाव है कि उन्हें काम पर नहीं जाना चाहिए, बल्कि उन्हें भी अन्य बच्चों की तरह ही भोला-भाला जीवन जीना चाहिए।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) बच्चे किस समय कहाँ जा रहे हैं ?
(ख) कवि ने किसे भयानक माना है ?
(ग) कवि इस बात को किस रूप में प्रकट करना चाहता है ?
(घ) पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) बच्चे सर्दियों की सुबह-सवेरे धुंध में काम करने जा रहे हैं, ताकि वे अपना और अपनों का पेट भर सकें; घर का खर्च चला सकें।
(ख) कवि ने बच्चों के द्वारा विवशतावश पढ़ाई-लिखाई और खेल – कूद छोड़कर काम करने के लिए जाना बहुत भयानक माना है।
(ग) कवि इस बात को समाज के समक्ष प्रश्न के रूप में उपस्थित करना चाहता है और उससे पूछना चाहता है कि बच्चों से इस प्रकार उनका बचपन क्यों छीन लिया गया है ?
(घ) कवि को बच्चों के बचपन नष्ट होने और छोटी आयु में उन पर काम-काज का बोझ लादने से बहुत पीड़ा है। वह इसे भयानक मानता है। इससे बच्चे बचपन का अर्थ ही नहीं समझ पाएँगे। चित्रात्मकता के गुण से युक्त खड़ी बोली में रचित अवतरण में तत्सम और तद्भव शब्दावली का सहज प्रयोग किया गया है। अनुप्रास और प्रश्न अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है। अभिधा शब्द – शक्ति और प्रसाद गुण विद्यमान है। अतुकांत छंद का प्रयोग है।

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2. क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्या दीमकों ने खा लिया है
सारी रंग-बिरंगी किताबों को
क्या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन
खत्म हो गए हैं एकाएक
तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में ?

शब्दार्थ : अंतरिक्ष – आकाश। भूकंप – आकाश। भूकंप – भूचाल। मदरसों- विद्यालयों। एकाएक – अचानक।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ से अवतरित है जिसके रचयिता श्री राजेश जोशी हैं। अपने माता-पिता की सहायता करने के लिए बच्चे पढ़ाई-लिखाई और खेल – कूद छोड़कर नौकरी करने लगे हैं। उनका बचपन खो गया है। कवि ने इसीलिए समाज से प्रश्न किया है।

व्याख्या : कवि जानना चाहता है कि बच्चों की सारी गेंदें क्या आकाश में खो गई हैं? क्या उनकी रंग-बिरंगी पुस्तकों को दीमकों ने खा लिया है या उनके सारे खिलौने बड़े-बड़े काले पहाड़ों के नीचे दबकर नष्ट हो गए हैं ? बच्चे अब खेलते क्यों नहीं ? वे पढ़ते क्यों नहीं ? क्या उनके विद्या – प्राप्ति के स्थान अर्थात विद्यालय किसी भयंकर भूकंप के कारण ढह गए हैं ? क्या खेलने के लिए सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन अचानक ही समाप्त हो गए हैं ? यदि वास्तव में ऐसा ही है तो इस दुनिया में बाकी बचा ही क्या है ? यह दुनिया बच्चों के कारण ही है। यदि बच्चों का बचपन उनके पास नहीं तो दुनिया किसलिए है ? इसका कोई औचित्य शेष नहीं रहा।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि की दृष्टि में बच्चों के लिए क्या करना आवश्यक है ?
(ख) बच्चों की प्रिय वस्तुओं के बारे में कवि क्या जानना चाहता है ?
(ग) एकाएक क्या नष्ट हो गया प्रतीत होता है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि की दृष्टि में बच्चों के लिए खेलना-कूदना और पढ़ना आवश्यक है।
(ख) कवि बच्चों की प्रिय वस्तुओं के बारे में जानना चाहता है कि वे सब कहाँ नष्ट हो गई हैं। बच्चों की गेंदें, रंग-बिरंगी पुस्तकें, खिलौने आदि कहाँ गए, जिनसे खेल – कूदकर बच्चे प्रसन्न होते थे, उनका बचपन उनके पास रहता था।
(ग) विद्यालयों की इमारतें, मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन एकाएक नष्ट हो गए प्रतीत होते हैं
(घ) कवि को बच्चों के बचपन नष्ट हो जाने पर गहरी पीड़ा है। वह जानना चाहता है कि उनके खेलने की सामग्री कहाँ गई। अतुकांत छंद का प्रयोग है। सामान्य बोल-चाल की शब्दावली का सहज प्रयोग किया गया है। उर्दू की शब्दावली का सहजता से प्रयोग सराहनीय है। प्रश्न अलंकार के प्रयोग ने कवि के विस्मय को जागृत किया है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 बच्चे काम पर जा रहे हैं

3. कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज्यादा यह
कि हैं सारी चीजें हस्बमामूल
पर दुनिया की हजारों सड़कों से गुजरते हुए
बच्चे, बहुत छोटे-छोटे बच्चे
काम पर जा रहे हैं।

शब्दार्थ : अगर – यदि। हस्बमामूल – चीजें, यथावत्, वस्तुएँ वैसी ही हैं जैसी होनी चाहिए।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ से लिया गया है जिसके रचयिता श्री राजेश जोशी हैं। कवि को बच्चों का नौकरी पर जाना बहुत दुखदायी प्रतीत होता है क्योंकि उनका समय खेलने-कूदने और पढ़ने-लिखने का है न कि मेहनत-मज़दूरी करने का।

व्याख्या : कवि कहता है कि यदि बच्चों की गेंदें, रंग-बिरंगी पुस्तकें, खिलौने, विद्यालय, मैदान, बाग़-बगीचे और घरों के आँगन एकाएक समाप्त हो गए हैं तो यह बहुत भयानक है, क्योंकि इस कारण बच्चे खेलने और पढ़ने से वंचित हैं। उससे भयानक बात यह है कि ये सारी वस्तुएँ ज्यों की त्यों हैं। इनमें से कुछ भी नष्ट नहीं है, हुआ है पर दुनिया के हजारों छोटे-छोटे बच्चे काम पर जा रहे हैं। वे अपनी भूख मिटाने और अपने माता-पिता के बोझ को कम करने के लिए काम पर सड़कों से गुज़रते हुए जा रहे हैं। उनका बचपन तो न जाने कहाँ पीछे छूट गया है ? यह बहुत भयानक बात है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि की दृष्टि में अधिक भयानक क्या है ?
(ख) ‘हैं सभी चीजें हस्बमामूल’ का भावार्थ क्या है ?
(ग) छोटे-छोटे बच्चे कहाँ जा रहे हैं और क्यों ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि की दृष्टि में भयानक यह है कि छोटे-छोटे बच्चों की गेंदें, खिलौने, रंग-बिरंगी पुस्तकें आदि सब पहले की तरह हैं, पर उन सबको छोड़कर उन्हें काम करने के लिए जाना पड़ रहा है। वे असमय ही अपना बचपन खो बैठे हैं।
(ख) ‘ हैं सभी चीज़ें हस्बमामूल’ का भावार्थ है कि छोटे बच्चों के लिए खेलों और मनोरंजन के लिए आवश्यक सारी सामग्रियाँ अभी भी वैसी हैं जैसे पहले थीं। उनमें कोई कमी नहीं हुई है। अभी उनके लिए विद्यालय हैं; मैदान हैं; घरों के आँगन हैं पर उनमें विवशता के मारे बच्चे नहीं हैं।
(ग) छोटे-छोटे बच्चे काम करने के लिए जा रहे हैं, ताकि वे अपनी भूख मिटाने के लिए खाना प्राप्त कर सकें; अपने माता-पिता की सहायता कर सकें।
(घ) कवि ने छोटे बच्चों के द्वारा काम पर जाने पर दुख प्रकट किया है और माना है कि उन्हें खेल-कूद और पढ़ने-लिखने के कार्य में समय लगाना चाहिए। तद्भव शब्दावली के साथ विदेशी शब्दावली का प्रयोग किया है। अतुकांत छंद का प्रयोग हुआ है। पुनरुक्ति – प्रकाश का प्रयोग स्वाभाविक है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द-शक्ति ने काव्य को सरलता – सरसता प्रदान की है।

बच्चे काम पर जा रहे हैं Summary in Hindi

कवि-परिचय :

आधुनिक युग की पीड़ा और आपाधापी से उत्पन्न परेशानी को वाणी प्रदान करने में सक्षम कवि राजेश जोशी का जन्म सन् 1946 में मध्य प्रदेश के नरसिंहगढ़ जिले में हुआ था। अध्यापन कार्य के अलावा इन्होंने पत्रकारिता भी की। इन्होंने रूसी और जर्मन भाषाओं का भी ज्ञान प्राप्त किया था जिनका सदुपयोग इन्होंने साहित्यिक रचनाओं के सृजन में किया था।

श्री राजेश जोशी ने काव्य-लेखन के अतिरिक्त कहानियाँ, नाटक, लेख, टिप्पणियाँ भी लिखी हैं। इन्होंने कुछ नाट्य रूपांतर भी किए हैं तथा कुछ लघु फ़िल्मों के लिए पटकथाएँ भी लिखी हैं। इन्होंने संस्कृत में लिखित भर्तृहरि के काव्य की अनुरचना ‘भूमि का कल्पतरु यह भी’ नाम से की है। मायकोवस्की की कविता का अनुवाद ‘पतलून पहिना बादल’ नाम से किया है। इनके द्वारा भारतीय भाषाओं के साथ-साथ अंग्रेजी, रूसी और जर्मन भाषाओं में अनूदित साहित्य भी हिंदी साहित्य को दिया गया है।

श्री राजेश जोशी के प्रमुख काव्य संग्रह हैं – एक दिन बोलेंगे पेड़, मिट्टी का चेहरा, नेपथ्य में हँसी और दो पंक्तियों के बीच साहित्य अकादमी के द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। कवि की कविता में समाज-चित्रण पर विशेष बल दिया गया है। इसमें मानव के प्रति गहरी निष्ठा का भाव और जीवन के प्रति आस्था का स्वर विद्यमान है। मानवता की रक्षा के सद्प्रयास और निरंतर संघर्ष के पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा दी गई है। कवि को विश्व के नष्ट होने का खतरा जितना अधिक प्रतीत होता है, उतना ही अधिक वे जीवन की संभावनाओं की खोज के लिए बेचैन दिखाई देता है। कवि की भाषा में सहजता है, गति है, सरलता और सरसता है। उसमें स्थानीय बोली की पुट है। सीधे-सादे शब्दों में गहरे भावों को वहन करने की क्षमता विद्यमान है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 बच्चे काम पर जा रहे हैं

कविता का सार :

आज के भौतिकतावादी युग में मानव मानव से दूर तो हुआ ही है, पर साथ ही उसने बच्चों के बचपन को भी छीन लिया है। सामाजिक और आर्थिक विषमताओं ने बच्चों को खेल-कूद और शिक्षा से दूर कर दिया है। सर्दियों की कोहरे से भरी सड़क पर ‘बच्चे सुबह-सवेरे काम पर जा रहे हैं’ जो समय की सबसे भयानक बात है। कवि जानना चाहता है कि क्या बच्चों की खेलने की सारी गेंदें अंतरिक्ष में खो गई हैं या दीमकों ने उनकी रंग-बिरंगी किताबों को खा लिया है? क्या उनके सारे खिलौने नष्ट हो गए हैं? क्या सारे विद्यालय, बाग-बगीचे और घरों के आँगन अचानक समाप्त हो गए हैं? यदि बच्चों से उनके बचपन में ही काम लिया जाने लगा तो यह विश्व के लिए बहुत खतरनाक है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions )

प्रश्न – दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. कौन – सा परिवर्तन तेज़ गति से होता है?
(A) दरार
(B) वलन
(C) भूकम्प
(D) भूमण्डलीय तापन
उत्तर:
(C) भूकम्प।

2. किस आपदा का सम्बन्ध मानवीय क्रियाओं से है?
(A) भूकम्प
(B) ज्वालामुखी
(C) पर्यावरण प्रदूषण
(D) टारनेडो
उत्तर:
(C) पर्यावरण प्रदूषण।

3. पहला भू- शिखर सम्मेलन कब हुआ ?
(A) 1974
(B) 1984 में
(C) 1994 में
(D) 1998 में।
उत्तर:
(C) 1994 में।

4. पहला भू- शिखर सम्मेलन कहां हुआ था?
(A) रियो डी जनेरो
(B) टोकियो
(C) न्यूयार्क
(D) लन्दन।
उत्तर:
(A) रियो डी जनेरो।

5. सुनामी त्रासदी कब हुई?
(A) 2001 में
(B) 2002 में
(C) 2003 में
(D) 2004 में।
उत्तर:
(D) 2004 में।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

6. भू-स्खलन किस प्रकार की आपदा है?
(A) वायु मण्डलीय
(B) भौमिक
(C) जलीय
(D) जैविक
उत्तर:
(B) भौमिक।

7. भारतीय प्लेट प्रतिवर्ष किस दर से खिसक रही है?
(A) 1 सें० मी०
(B) 2 सें० मी०
(C) 3 सें० मी०
(D) 4 सें० मी०
उत्तर:
(A) 1 सें० मी।

8. दक्षिणी भारत में भ्रंश रेखा का विकास कहां हुआ है?
(A) कोयना के निकट
(B) लातूर के निकट
(C) अहमदाबाद के निकट
(D) भोपाल के निकट
उत्तर:
(B) लातूर के निकट।

9. भूकम्प से समुद्र में उठने वाली लहरों को क्या कहते हैं?
(A) लहरें
(B) दरार
(C) सुनामी
(D) ज्वार।
उत्तर:
(C) सुनामी

10. तूफ़ान महोर्मि का मुख्य कारण है
(A) सुनामी
(B) ज्वार
(C) उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात
(D) मानसून।
उत्तर:
(C) उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

11. भारत में कितना क्षेत्र बाढ़ प्रभावित है?
(A) 1 करोड़ हेक्टेयर
(B) 2 करोड़ हेक्टेयर
(C) 3 करोड़ हेक्टेयर
(D) 4 करोड़ हेक्टेयर
उत्तर:
(D) 4 करोड़ हेक्टेयर।

12. भारत के कुल क्षेत्र का कितने % भाग सूखाग्रस्त रहता है?
(A) 9%
(B) 12 %
(C) 19%
(D) 25 %.
उत्तर:
(C) 19 %.

13. भारत में आपदा प्रबन्धन नियम कब बनाया गया?
(A) 2001 में
(B) 2002 में
(C) 2005 में
(D) 2006 में।
उत्तर:
(C) 2005 में।

14. भूकम्प किस प्रकार की आपदा है?
(A) वायुमण्डलीय
(B) भौमिकी
(C) जलीय
(D) जीव – मण्डलीय।
उत्तर:
(B) भौमिकी .

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Quesrtion)

प्रश्न 1.
भारत में प्रभाव डालने वाले प्राकृतिक आपदाओं के नाम लिखो।
उत्तर:
बाढ़ें, सूखा, भूकम्प तथा भू-स्खलन।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक आपदाओं का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
आकस्मिक भूगर्भिक हलचलें।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 3.
वर्तमान समय में भारत में आये विनाशकारी भूचाल का नाम लिखो।
उत्तर:
भुज, गुजरात – 26 जनवरी, 2001.

प्रश्न 4.
भू विभिन्न भूकम्पीय तरंगों के नाम लिखो।
उत्तर:

प्रश्न 5.
भूकम्प मापक यन्त्र को क्या कहते हैं?
उत्तर:
सिज़्मोग्राफ।

प्रश्न 6.
भूकम्प की तीव्रता किस पैमाने पर मापी जाती है?
उत्तर:
रिक्टर पैमाने पर।

प्रश्न 7.
लाटूर भूकम्प (महाराष्ट्र ) का क्या कारण था?
उत्तर:
भारतीय प्लेट का उत्तर की ओर खिसकना।

प्रश्न 8.
भूकम्प किस सिद्धान्त से सम्बन्धित है?
उत्तर:
प्लेट टेक्टानिक।

प्रश्न 9.
रिक्टर पैमाने पर कितने विभाग होते हैं?
उत्तर:
1-9 तक।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 10.
कोएना भूकम्प का क्या कारण था?
उत्तर:
कोयना जलाशय में अत्यधिक जलदाब।

प्रश्न 11.
सूखा किसे कहते हैं?
उत्तर:
वर्षा की कमी के कारण खाद्यान्नों की कमी होना।

प्रश्न 12.
भारत में सूखे का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
अनिश्चित वर्षा।

प्रश्न 13.
भारत में कितना क्षेत्रफल भाग बाढ़ों तथा सूखे से प्रभावित है?
उत्तर:
सूखे से 10% भाग तथा बाढ़ों से 12% भाग।

प्रश्न 14.
भारत में बाढ़ों का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
भारी मानसून वर्षा तथा चक्रवात।

प्रश्न 15.
दक्षिणी प्रायद्वीप में बाढ़ें कम हैं। क्यों?
उत्तर:
मौसमी नदियों के कारण।

प्रश्न 16.
भू-स्खलन किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब कोई जलभृत भाग किसी ढलान से अचानक नीचे गिरते हैं।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 17.
तीन प्रदेशों के नाम लिखो जो चक्रवातों से प्रभावित हैं।
उत्तर:
उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु

प्रश्न 18.
भूकम्प के आने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
विवर्तनिक हलचलें।

प्रश्न 19.
भारत में अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र के एक जिले का नाम लिखिए।
उत्तर:
बीकानेर

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Quesrtion)

प्रमुख प्राकृतिक आपदाएं कौन-सी हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक आपदाएं वे भूगर्भिक हलचलें हैं जो अचानक ही भू-तल पर परिवर्तन लाकर जन और धन व सम्पत्ति की हानि करती हैं। सूखा, बाढ़ें, चक्रवात, भू-स्खलन, भूकम्प विभिन्न प्रकार की मुख्य प्राकृतिक आपदाएं हैं।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली जन-धन की हानि का वर्णन करो।
उत्तर:
विश्व में प्रतिवर्ष प्राकृतिक आपदाओं से एक लाख व्यक्तियों की जानें जाती हैं तथा 20,000 करोड़ रुपये की सम्पत्ति की हानि होती है। यह मानवीय विकास के लिए एक रुकावट है। U.NO. के अनुसार 1990-99 के दशक को प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा का दशक घोषित किया गया प्राकृतिक आपदाओं से ग्रस्त विश्व के प्रमुख 10 देशों में से भारत एक देश है। प्रति वर्ष 6 करोड़ लोग इनसे प्रभावित होते हैं। विश्व की 50% प्राकृतिक आपदाएं भारत में अनुभव की जाती हैं। फिर भी भारत में इन आपदाओं से सुरक्षा के लिए एक व्यापक प्रबन्ध किया गया है जिसमें भूकम्पीय स्टेशन, चक्रवात, बाढ़ें, राडार, जल प्रवाह के बारे में सूचनाएं प्राप्त की जाती हैं तथा सुरक्षा के प्रबन्ध किए जाते हैं।

प्रश्न 3.
भू-स्खलन से क्या अभिप्राय है? इनके प्रभाव बताओ।
उत्तर- भू-स्खलन (Landslides ):
भूमि के किसी भाग के अचानक फिसल कर पहाड़ी से नीचे गिर जाने की क्रिया को भू-स्खलन कहते हैं। कई बार भूमिगत जल चट्टानों में भर कर उनका भार बढ़ा देता है। यह जल भृत चट्टानें ढलान के साथ नीचे फिसल जाती हैं। इनके कई प्रकार होते हैं।

  1. सलम्प (Slumps ): जब चट्टानें थोड़ी दूरी से गिरती हैं।
  2. राक सलाइड (Rockslide ): जब चट्टानें अधिक दूरी से अधिक भार में गिरती हैं।
  3. राक फाल (Rockfall): जब किसी भृत से चट्टानें टूट कर गिरती हैं।

कारण (Causes):

  1. जब वर्षा का जल या पिघलती हिम एक सनेहक (Lubricant ) के रूप में कार्य करता है।
  2. तीव्र ढलान के कारण।
  3. भूकम्प के कारण।
  4. किसी सहारे के हट जाने पर।
  5. भ्रंशन या खदानों के कारण।
  6. ज्वालामुखी विस्फोट के कारण।

प्रभाव (Effects):

  1. भवन, सड़कें, पुल आदि का नष्ट होना।
  2. चट्टानों के नीचे दबकर लोगों की मृत्यु हो जाना।

सड़क मार्गों का अवरुद्ध हो जाना।

  1. नदियों के मार्ग अवरुद्ध होने से बाढ़ें आना।
  2. 1957 में कश्मीर में भू-स्खलन से राष्ट्रीय मार्ग बन्द हो गया था।
  3. गत वर्षों में टेहरी गढ़वाल में बादल फटने से भू-स्खलन हुआ।

प्रश्न 4.
भारत में उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों पर नोट लिखो।
उत्तर:
चक्रवात (Cyclones) :
भारत में उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात खाड़ी बंगाल तथा अरब सागर में उत्पन्न होते हैं। चक्रवात पवनों का एक भँवर होता है जो मूसलाधार वर्षा प्रदान करता है। ये प्रायः अक्तूबर-नवम्बर के महीनों में चलते हैं। इनकी दिशा परिवर्तनशील होती है। ये प्रायः पश्चिम की ओर तथा उत्तर-पश्चिम, उत्तर पूर्व की ओर चलते हैं। इनका प्रभाव तमिलनाडु आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा के तटों पर होता है।

प्रभाव (Effects):

  1. ये चक्रवात मूसलाधार वर्षा, तेज़ पवनें तथा घने मेघ लाते हैं। औसत रूप से 50 सें०मी० वर्षा एक दिन में होती है।
  2. ये चक्रवात जन-धन हानि व्यापक रूप से करते हैं।
  3. खाड़ी बंगाल में निम्न वायु दाब केन्द्र बनने से ये चक्रवात उत्पन्न होते हैं।
  4. ये चक्रवात एक दिन में पूर्वी तट से गुज़र कर प्रायद्वीप को पार करके पश्चिमी तट पर पहुँच जाते हैं।
  5. गोदावरी, कृष्णा, कावेरी डेल्टाओं में भारी हानि होती है।
  6. सुन्दरवन डेल्टा तथा बंगला देश में भी भारी हानि होती है।

प्रश्न 5.
(i) प्राकृतिक आपदायें किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के धरातल पर आन्तरिक हलचलों द्वारा अनेक परिवर्तन होते रहते हैं। इनसे मानव पर हानिकारक प्रभाव पड़ते हैं। इन्हें प्राकृतिक आपदायें कहते हैं।

(ii) कुछ सामान्य आपदाओं के नाम बताएं।
उत्तर;
सामान्य आपदाएं इस प्रकार हैं- ज्वालामुखी विस्फोट, भूकम्प, सागरकम्प, सूखा, बाढ़, चक्रवात, मृदा अपरदन, अपवाहन, पंकप्रवाह, हिमधाव।

(iii) संकट किसे कहते हैं ?
उत्तर;
अंग्रेज़ी भाषा में प्राकृतिक आपदाओं को प्राकृतिक संकट भी कहा जाता है। फ्रैंच भाषा में डेस (Des) का अर्थ बुरा (bad) तथा (Aster) का अर्थ सितारे (Stars) से है। मानवीय जीवन और अर्थव्यवस्था को भारी हानि पहुँचाने वाली प्राकृतिक आपदाओं को संकट और महाविपत्ति कहते हैं।

(iv) भूकम्प का परिमाण क्या होता है?
उत्तर:
भूकम्प की शक्ति को रिक्टर पैमाने पर मापा जाता है, जिसे परिमाण कहते हैं । यह भूकम्प द्वारा विकसित भूकम्पीय उर्जा की माप होती है।

(v) भूकम्प की तीव्रता किसे कहते हैं?
उत्तर:
भूकम्प द्वारा होने वाली हानि की माप को तीव्रता कहते हैं।

(vi) भारत के अधिक तथा अत्यधिक भूकम्पीय खतरे वाले क्षेत्रों के नाम बताएं पूर्वी भारत,
उत्तर:
भूकम्प की दृष्टि से भारत के अत्यधिक खतरे वाले क्षेत्रों के नाम हैं- हिमालय पर्वत, उत्तर- कच्छ रत्नागिरी के आस-पास का पश्चिमी तटीय तथा अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह। अधिक खतरे वाले क्षेत्र हैं- गंगा का मैदान, पश्चिमी राजस्थान।

(vii) चक्रवात की उत्पत्ति के लिए आधारभूत आवश्यकताएं कौन-सी हैं?
उत्तर:
-जब कमज़ोर रूप से विकसित कम दबाव क्षेत्र के चारों ओर तापमान की क्षैतिज प्रवणता बहुत अधिक होती है तब उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात बन सकता है। चक्रवात उष्मा का इंजन है तथा इसे सागरीय तल से उष्मा मिलती है।

(viii) चक्रवात की गति और सामान्य अवधि कितनी होती है?
उत्तर:
चक्रवात की गति 150 km तथा अवधि एक सप्ताह तक होती है।

(ix) भारत के बाढ़ प्रवण क्षेत्रों के नाम बताएं।
उत्तर:

  1. गंगा बेसिन, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिमी बंगाल
  2. असाम में ब्रह्मपुत्र घाटी
  3. उड़ीसा प्रदेश।

(x) भू-स्खलन किसे कहते हैं?
उत्तर:
आधार शैलों का भारी मात्रा में तेज़ी से खिसकना भू-स्खलन कहलाता है। तीव्र पर्वतीय ढलानों पर भूकम्प के कारण अचानक शैलें खिसक जाती हैं।

(xi) आपदा प्रबन्धन किसे कहते हैं?
उत्तर:
आपदाओं से सुरक्षा के उपाय, तैयारी तथा प्रभाव को कम करने की क्रिया को आपदा प्रबन्धन कहते हैं। इसमें राहत कार्यों की व्यवस्था भी शामिल की जाती है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 6.
भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में आए भू-स्खलन से निपटने के लिए आप कौन-से सुझाव देंगे?
उत्तर:

  1. अधिक भू-स्खलन सम्भावी क्षेत्रों में सड़क और बड़े बाँध बनाने जैसे निर्माण कार्य तथा प्रतिबंधित करने चाहिए।
  2. इस क्षेत्रों में कृषि नदी घाटी तथा कम ढाल वाले क्षेत्रों तक सीमित होनी चाहिए तथा बड़ी विकास परियोजनाओं पर नियन्त्रण होना चाहिए।
  3. स्थानान्तरी कृषि वाली उत्तर पूर्वी राज्यों (क्षेत्रों) में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर खेती करनी चाहिए।

प्रश्न 7.
सूखे से बचाव के उपाय के कोई तीन कारण लिखें, जिनको हम अपनाकर सूखे के प्रभाव से बच सकते हैं?
उत्तर:

  1. सूखाग्रस्त क्षेत्रों में भूमिगत जल, वर्षा जल तथा धरातलीय जल को नष्ट होने से बचना चाहिए।
  2. जल सिंचाई की लघु परियोजनाओं पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए।
  3. नहरों को पक्का करके पानी को नष्ट होने से बचाना चाहिए।

प्रश्न 8.
उत्तराखण्ड में आई प्राकृतिक आपदा का वर्णन करो।
उत्तर:
जून, 2013 में उत्तराखण्ड में हुई भारी वर्षा तथा बाढ़ के कारण अत्यन्त तबाही हुई। इसके कारण चल रही चाल धाम यात्रा को रोकना पड़ा 15-16 जून को अलकनंदा तथा मंदाकनी नदियों में बाढ़ के कारण नदियों ने अपने मार्ग बदल लिए। केदारनाथ धाम मन्दिर में झुके हज़ारों व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो गए। बहुत से लोगों का विचार है कि बादलों के फटने से यह आपदा आई। भूस्खलन के कारण सड़क मार्ग बन्द हो गए। वायु सेना ने आपदा में फंसे लोगों की बचाया। सन् 2014 में केदारनाथ यात्रा का मार्ग खोल दिया गया है।

प्रश्न 9.
सुभेद्यता किसे कहते हैं?
उत्तर:
सुभेद्यता किसी व्यक्ति, व्यक्तियों के समूह या क्षेत्र में नुकसान पहुँचाने का भय है, जिससे वह व्यक्ति, व्यक्तियों के समूह या क्षेत्र प्रभावित होता है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में सूखाग्रस्त क्षेत्रों का वर्णन करते हुए इसके कारणों तथा प्रभाव का उल्लेख करो।
उत्तर:
सूखा (Drought): सूखा एक प्राकृतिक विपदा है। जब किसी विस्तृत क्षेत्र में खाद्यान्नों का अभाव हो जाता है तो उसे सूखा कहते हैं (Drought is defined as widespread and extreme scarcity of food.) इसके प्रभाव से जनसंख्या का अधिकांश भाग भुखमरी का शिकार हो जाता है । भारत तथा संसार के कई भागों में सूखा भयानक रूप में पड़ता रहा है जिससे लाखों लोग मृत्यु का शिकार हो जाते थे आधुनिक समय में सन् 1943 में बंगाल के अकाल से 15 लाख व्यक्ति भुखमरी से मर गए। आजकल यातायात के तीव्र साधनों द्वारा शीघ्र ही सहायता पहुंच जाने के कारण सूखा तथा अकाल पहले जैसे नहीं रहे।

इतिहास (History): भारत एक विशाल देश है जिसका क्षेत्रफल लगभग 33 करोड़ हेक्टेयर है तथा औसत वार्षिक वर्षा 117 सें०मी० तक है। अधिकतर वर्षा ग्रीष्मकाल में होती है। भारत की कृषि तथा अर्थव्यवस्था मानसून पवनों पर निर्भर करती है। मानसून वर्षा बहुत अनिश्चित तथा अनियमित है। वर्षा की परिवर्तिता (Variablity) के कारण भारत के किसी-न-किसी भाग में सूखे की हालत बनी ही रहती है। औसत रूप से भारत में प्रत्येक पांच वर्षों में एक वर्ष सूखे का होता है।

(On an average, one year in every five years is a drought year.) भारत में 1966, 1968, 1973, 1979 में भयंकर सूखा पड़ा। 1984-85 से 1987-88 तक निरन्तर तीन वर्ष सूखा पड़ने से भारत में खाद्यान्न के उत्पादन में कमी रही। 1987-88 के सूखे का प्रभाव 15 राज्यों तथा 6 संघ राज्यों पर पड़ा। इसके प्रभाव से 267 ज़िलों तथा 3 लाख गांवों में 28 करोड़ लोग तथा 17 करोड़ पशु प्रभाव ग्रस्त हुए। पिछले 100 वर्षों के इतिहास में भारत में सन् 1877, 1899, 1918, 1972 तथा 1987 के वर्षों में भयानक सूखा पड़ा।

प्रभावित क्षेत्र लाख वर्ग कि०मी०:

वर्ष प्रभावित क्षेत्र लाख वर्ग कि०मी० देश के क्षेत्रफल का $\%$ भाग
1877 20 61
1899 19 63
1918 22 70
1972 14 44
1987 16 50

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ 1

भारत में सूखाग्रस्त क्षेत्र (Drought Areas in India) – सामान्य स्थिति में भारत के 16% क्षेत्र तथा 12% जनसंख्या पर सूखे का प्रभाव पड़ता है। सूखे का अधिक प्रभाव उन क्षेत्रों पर पड़ता है जहां वर्षा की परिवर्तिता का गुणांक (Co-efficient of Variability of Rainfall) 20% से अधिक है । निम्नलिखित क्षेत्र प्रायः सूखाग्रस्त रहते हैं-

क्षेत्र राज्य क्षेत्रफल वार्षिक वर्षा
1. मरुस्थलीय तथा अर्द्ध-मरुस्थलीय प्रदेश राजस्थान, हरियाणा (दक्षिण-पश्चिमी) 60 लाख 10 सें॰मी०
2. पश्चिमी घाट के पूर्व में स्थित प्रदेश मध्य प्रदेश, गुजरात 37 , 15 सें॰मी०
3. अन्य क्षेत्र मध्यवर्ती महाराष्ट्र कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, दक्षिण तमिलनाडु, कच्छ, बिहार, कालाहांडी (उड़ीसा), रायलसीमा (आन्ध्र प्रदेश) 10, 20 सें॰मी०

भारत में सामान्यतः सूखे की स्थिति निम्नलिखित क्षेत्रों में होती है।

  1. जब वार्षिक वर्षा 100 सें०मी० से कम हो।
  2. वर्षा की परिवर्तिता 75% से अधिक हो।
  3. जहां कुल क्षेत्रफल के 30% से कम भाग में जल सिंचाई प्राप्त हो।
  4. जहां 20% से अधिक वर्षा की परिवर्तिता का गुणांक हो तो सामान्य सूखा पड़ता है।
  5. जहां 40% से अधिक वर्षा की परिवर्तिता का गुणांक हो वहां स्थायी रूप से सूखा रहता है।

सूखे के कारण (Causes of Droughts ):
1. मानसून पवनों का कमज़ोर पड़ना (Weak Monsoons ):
भारत में अधिकतर कृषि क्षेत्र वर्षा पर निर्भर (Rainfed) है। ग्रीष्मकालीन मानसून पवनों के कमज़ोर पड़ने से सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। मानसून पवनें जब निश्चित समय से देर से आरम्भ होती हैं तो फ़सलें नष्ट हो जाती हैं। सन् 1987 में मानसून पवनें सारे देश में 1 जुलाई की अपेक्षा 27 जुलाई को आरम्भ हुईं तथा देश के 35 जलवायु खण्डों में 25 में सामान्य से कम वर्षा हुई। इस से अधिकतर क्षेत्रों में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

2. वार्षिक वर्षा का कम होना (Low Rainfall):
भारत के 12% क्षेत्रफल में वार्षिक वर्षा 60 सें०मी० से कम है। इन क्षेत्रों में सूखे की स्थिति बनी रहती है। एक अनुमान है कि भारत का 1/3 कृषि क्षेत्र वर्षा की कमी के कारण सूखाग्रस्त रहता है।

3. सिंचाई साधनों का कम होना (Inadequate means of Irrigation):
सिंचाई साधनों की कमी के कारण भी कई प्रदेशों में कृषि को नियमित जल न मिलने से सूखा पड़ता है।

4. पारिस्थितिक असन्तुलन (Ecological Imbalance):
औद्योगिक विकास, बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई से पारिस्थितिक सन्तुलन बिगड़ता जा रहा है। इससे वर्षा अनियमित, अनिश्चित तथा संदिग्ध होती जा रही है।

5. वर्षा की परिवर्तिता (Variability of Rainfall):
कई प्रदेशों में वर्षा बहुत संदिग्ध है। विशेषकर कम वर्षा वाले क्षेत्रों में वर्षा की अधिक परिवर्तिता सूखे का कारण बनती है। उदाहरण के लिए हिसार नगर में अगस्त मास की औसत वर्षा 12.37 सें०मी० है। परन्तु सन् 1925 में इस मास में यहां केवल 2.03 सें०मी०, सन् 1926 से 56.36 सें०मी० वर्षा हुई। प्रायः जहां वर्षा का परिवर्तिता का गुणांक 40% से अधिक है वहां सदा सूखे की स्थिति रहती है।

6. मौसमी वर्षा (Seasonal Rainfall): शीत ऋतु के शुष्क होने के कारण भी सूखे की स्थिति बन जाती है।

7. नदियों का अभाव (Absence of Rivers ): कई प्रदेशों में नदियों के अभाव से भी सूखे में वृद्धि होती है।

8. लम्बी शुष्क ऋतु तथा उच्च तापमान (Long dry Speeds):
कई बार लम्बे समय तक शुष्क मौसम चलता रहता है। साथ-ही-साथ उच्च तापमान के कारण वाष्पीकरण भी अधिक हो जाता है जिससे सूखा भयंकर रूप धारण कर लेता है।

सूखे के प्रभाव (Effects of Drought ):

  1. कृषि (Agriculture): सूखे के कारण अधिकांश भागों में फसलों की बुआई देर से आरम्भ होती है। कई विशाल क्षेत्रों में बुआई बिल्कुल नहीं होती। इससे कृषि उत्पादन कम हो जाता है। 1987 में निर्धारित लक्ष्य में खाद्यान्नों का उत्पादन 60 लाख टन कम था।
  2. कृषि मज़दूर (Agricultural Labour ): ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी बढ़ जाती है। छोटे किसानों तथा कृषि मज़दूरों को कोई काम नहीं मिलता। भूमि मज़दूर भुखमरी का शिकार हो जाते हैं।
  3. खरीफ की फसल (Kharif Crop ): खरीफ की फसल जून – जुलाई में बोई जाती है। सूखे की हालत में इस फसल पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे खाद्यान्न, तिलहन, दालों का उत्पादन कम हो जाता है।
  4. अर्थव्यवस्था पर प्रभाव (Effect on Economy ): सूखे की स्थिति में कीमतें बढ़ जाती हैं तथा अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
  5. पशुओं का चारा (Fodder for Cattle ): सूखे के कारण चारे की कमी होती है तथा हज़ारों पशु भुखमरी का शिकार हो जाते हैं।
  6. पानी की कमी (Shortage of Water ): पीने के पानी की कमी हो जाती है । जल सिंचाई तथा जल विद्युत् उत्पादन के लिए पानी की कमी हो जाती है। कई क्षेत्रों में भूमिगत जल स्तर नीचा हो जाता है।

सूखे से बचाव के उपाय (Measures to Control Drought): सरकार तथा जनता ने सूखे से बचाव के लिए निम्न उपाय किए हैं।

  1. सूखाग्रस्त क्षेत्रों में भूमिगत जल, वर्षा जल तथा धरातलीय जल को नष्ट होने से बचाया जा रहा है।
  2. फसलों के हेर-फेर की विधि द्वारा ऐसी फसलों की कृषि की जाती है जो सूखे को सहार सकें शुष्क कृषि पर अधिक जोर दिया जा रहा है।
  3. जल सिंचाई की लघु योजनाओं पर अधिक जोर दिया जा रहा है।
  4. नहरों को पक्का करके पानी को नष्ट होने से बचाया जा रहा है।
  5. शुष्क भागों में, ट्रिकल (Trickle) जल सिंचाई विधि का प्रयोग किया जा रहा है।
  6. सूखाग्रस्त क्षेत्रों में पीने का पानी तथा पशुओं के लिए चारे का उचित प्रबन्ध किया जा रहा है।

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प्रश्न 2.
भारत में बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का वर्णन करो। बाढ़ों के कारणों का उल्लेख करते हुए इनसे होने वाली क्षति का वर्णन करो। बाढ़ नियन्त्रण के उपाए बताओ।
उत्तर:
बाढ़ समस्या (Flood Problem):
सूखे की भान्ति बाढ़ भी एक प्राकृतिक विपदा है क्षेत्रों से धन-जन की हानि होती है। कई बार प्रत्येक वर्ष भारत के किसी-न-किसी भाग में बाढ़ों द्वारा विस्तृत एक भाग में भयानक सूखे की स्थिति है तो दूसरे भाग में बाढ़ की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इससे समस्या अधिक गम्भीर हो जाती है। भारत में बाढ़ें एक मौसमी समस्या है जब मानसून की अनियमित वर्षा से नदियों में बाढ़ आ जाती है। जब नदी के किनारों के ऊपर से पानी बह कर समीपवर्ती क्षेत्रों में दूर-दूर तक फैल जाता है तो इसे बाढ़ का नाम दिया जाता है।

भारत ‘नदियों का देश’ है जहां अनेक छोटी-बड़ी नदियां बहती हैं। ये नदियां वर्षा ऋतु में भरपूर बहती हैं, परन्तु शुष्क ऋतु में इनमें बहुत कम जल होता है। निरन्तर भारी वर्षा के कारण बाढ़ें उत्पन्न होती हैं। वर्षा की तीव्रता तथा वर्षाकाल की अवधि अधिक होने से बाढ़ों को सहायता मिलती है। मानसून के पूर्व आरम्भ या देर तक समाप्त होने से
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बाढ़ें उत्पन्न होती हैं। ब्रह्मपुत्र नदी में मई-जून के मास में बाढ़ें साधारण बात है। उत्तरी भारत की नदियों में वर्षा ऋतु में बढ़ें आती हैं। नर्मदा नदी में अचानक बाढ़ें (flash floods ) आती हैं। तटीय भागों में चक्रवातों के कारण मई तथा अक्तूबर मास में भयानक बाढ़ें आती हैं। सन् 1990 में मई मास में आन्ध्र प्रदेश में खाड़ी बंगाल के चक्रवात से भारी क्षति हुई जिसमें लगभग 1000 व्यक्ति मर गए।

बाढ़ग्रस्त क्षेत्र (Flood Affected Areas):
भारत में मैदानी भाग तथा नदी घाटियों में अधिक बाढ़ें आती हैं। देश का लगभग 1/8 भाग बाढ़ों से प्रभावित रहता है। 60 प्रतिशत बाढ़ें अधिक वर्षा के कारण उत्पन्न होती हैं। असम, बिहार, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिमी बंगाल राज्य स्थायी रूप से बाढ़ग्रस्त रहते हैं। इन प्रदेशों में अधिक वर्षा तथा बड़ी-बड़ी नदियों के कारण बाढ़ समस्या गम्भीर है। एक अनुमान के अनुसार देश में 78 लाख हेक्टेयर भूमि पर प्रति वर्ष बाढ़ें आती हैं। नदी घाटियों के अनुसार बाढ़ क्षेत्रों को निम्नलिखित वर्गों में बांटा जाता है।

1. हिमालय क्षेत्र की नदियां (The Rivers of the Himalayas):
इस भाग में गंगा तथा ब्रह्मपुत्र दो प्रमुख नदियां हैं जिनमें प्रत्येक वर्ष बाढ़ें आती हैं। गंगा घाटी में यमुना, घाघरा, गंडक तथा कोसी जैसी सहायक नदियां शामिल हैं। इन नदियों में जल की मात्रा अधिक होती है। इनकी ढलान तीव्र होती है तथा इन नदियों के मार्ग में परिवर्तन होता रहता है। उत्तर प्रदेश तथा बिहार के विस्तृत क्षेत्रों में बाढ़ों से भारी क्षति पहुंचती है। देश में बाढ़ों से कुल क्षति का 33% भाग उत्तर प्रदेश में तथा 27% भाग बिहार में होता है। कोसी नदी को बाढ़ों के कारण “शोक की नदी” (River of Sorrow) कहा जाता है।

ब्रह्मपुत्र नदी असम, मेघालय तथा बंगलादेश में बाढ़ों से हानि पहुंचाती है। ब्रह्मपुत्र घाटी भारत में सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है। यहां अधिक वर्षा तथा रेत व मिट्टी के जमाव से बाढ़ें उत्पन्न होती हैं। भूकम्प के आने के कारण नदियां अपना मार्ग बदल लेती हैं तथा बाढ़ समस्या अधिक गम्भीर हो जाती हैं। दामोदर घाटी में दामोदर नदी के कारण भयंकर बाढ़ें आती रही हैं । इस नदी को ‘बंगाल का शोक’ भी कहा जाता था परन्तु दामोदर घाटी योजना के पूरा होने के बाद बाढ़ समस्या कम हो गई है।

2. उत्तर-पश्चिमी भारत (North-Western India):
इस भाग में जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश शामिल हैं। यहां जेहलम, चिनाब, सतलुज, ब्यास तथा रावी नदियों के कारण बाढ़ें उत्पन्न होती हैं। बरसाती नदियों में भी बाढ़ें आती हैं।

3. मध्य भारत (Central India ):
इस भाग में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश तथा उड़ीसा शामिल हैं। यहां ताप्ती, नर्मदा तथा चम्बल नदियों में कभी-कभी बाढ़ें आती हैं। यहां अधिक वर्षा के कारण बाढ़ें उत्पन्न होती हैं।

4. प्रायद्वीपीय क्षेत्र (Peninsular Region ):
इस क्षेत्र में महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों में उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के कारण बाढ़ें आती हैं। कई बार ज्वार-भाटा के कारण डेल्टाई क्षेत्रों में रेत और मिट्टी के जमाव से भी बाढ़ें आती हैं।

बाढ़ों के कारण (Causes of Floods): भारत एक उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी देश है। यहां मानसूनी वर्षा के अधिक होने से बाढ़ की समस्या गम्भीर हो जाती है। बाढ़ें निम्नलिखित कारणों से आती हैं।

  1. भारी वर्षा (Heavy Rainfall): किसी भाग में एक दिन में निरन्तर वर्षा की मात्रा 15 सें० मी० से अधिक होने से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  2. चक्रवात (Cyclones): भारत के पूर्वी तट पर खाड़ी बंगाल के तीव्र गति के चक्रवातों से भयानक बाढ़ें आती हैं। जैसे – मई, 1990 में आन्ध्र प्रदेश में चक्रवातों द्वारा निरन्तर वर्षा से नदी क्षेत्रों में बाढ़ उत्पन्न होने से भारी हानि हुई।
  3. वनों की कटाई (Deforestation ): नदियों के ऊपरी भागों में वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से अचानक बाढ़ें उत्पन्न हो जाती हैं। शिवालिक की पहाड़ियों, असम, मेघालय तथा छोटा नागपुर के पठार में वृक्षों की कटाई के कारण बाढ़ की समस्या गम्भीर है।
  4. नदी तल का ऊंचा उठना (Rising of the River Bed ): रेत तथा बजरी जमाव से नदी तल ऊंचा उठ जाता है जिससे समीपवर्ती क्षेत्रों में बाढ़ का जल फैल जाता है।
  5. अपर्याप्त जल प्रवाह (Inadequate Drainage ): कई निम्न क्षेत्रों में जल प्रवाह प्रबन्ध न होने से बाढ़ें उत्पन्न हो जाती हैं।

बाढ़ों से क्षति (Damage due to Floods)”:
बाढ़ों से कृषि क्षेत्र में फसलों की हानि होती है। मकानों, संचार साधनों तथा रेलों, सड़कों को क्षति पहुंचती है। बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में कई बीमारियां फैल जाती हैं। देश में लगभग 2 करोड़ हेक्टेयर भूमि बाढ़ग्रस्त क्षेत्र है जिसमें से 25 लाख हेक्टेयर भूमि में फसलें नष्ट हो जाती हैं। प्रति वर्ष औसत रूप से करोड़ जनसंख्या पर बाढ़ से क्षति का प्रभाव पड़ता है। लगभग 30 हज़ार पशुओं की हानि होती है। एक अनुमान है कि औसत रूप से प्रति वर्ष 505 व्यक्तियों की बाढ़ के कारण मृत्यु हो जाती है। इस प्रकार देश में लगभग ₹1500 करोड़े की आर्थिक क्षति पहुंचती है। सन् 1990 में देश में कुल क्षति ₹ 41.25 करोड़ की थी तथा 50 लाख हेक्टेयर भूमि बाढ़ग्रस्त 162 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुए। ₹28 करोड़ की फसलें नष्ट हुईं। 862 जानें गईं तथा 1,22,498 पशु मारे गये।

बाढ़ों की रोकथाम (Flood Control):
भारत में प्राचीन समय से बाढ़ों की रोकथाम के लिए उपाय किए जाते हैं। प्रायः नदियों के साथ-साथ तटबंध बनाकर बाढ़ नियन्त्रण किया जाता था। सन् 1954 में राष्ट्रीय बाढ़ नियन्त्रण योजना शुरू की गई। इस योजना के अधीन बाढ़ नियन्त्रण के लिए कई उपाय किए गए।

  1. नदियों के जल सम्बन्धी आंकड़े इकट्ठे किए गए।
  2. नदियों के साथ तटबन्ध बनाये गये। देश में लगभग 15,467 कि० मि० लम्बे तटबन्धों का निर्माण किया गया।
  3. निम्न क्षेत्रों में लगभग 30,199 कि० मी० लम्बी जल प्रवाह नलिकायें बनाई गई हैं।
  4. 762 नगरों तथा 4,700 गांवों को बाढ़ों से सुरक्षित किया गया है।
  5. कई नदियों पर जलाशय बन कर बाढ़ों पर नियन्त्रण किया गया है; जैसे- दामोदर घाटी बहुमुखी योजना तथा भाखड़ा नंगल योजना ।
  6. देश में बाढ़ों का पूर्व अनुमान लगाने के लिए (Flood Forecasting) 157 केन्द्र स्थापित किए गए हैं।
  7. नदियों के ऊपरी भागों में वन रोपण किया गया है।
  8. सातवीं पंचवर्षीय योजना के अन्त तक 2710 करोड़ बाढ़ नियन्त्रण पर व्यय किए गए जबकि आठवीं पंचवर्षीय योजना पर ₹9470 करोड़ के व्यय का अनुमान है।
  9. केरल तट पर सागरीय प्रभाव से बचाव के लिए 42 कि० मी० लम्बी समुद्री दीवारों का निर्माण किया गया तथा कर्नाटक तट पर 73 कि० मी० लम्बी समुद्री दीवारें बनाई गईं।
  10. देश में बाढ़ के पूर्व निर्माण संगठन (Flood Fore-casting Organisation) की स्थापना की गई है। इसके अधीन 157 केन्द्र स्थापित किए गए हैं जिनकी संख्या इस शताब्दी के अन्त तक 300 हो जाएगी।
  11. महानदी घाटी में हीराकुड बांध, दामोदर घाटी में कई बांध, सतलुज नदी पर भाखड़ा डैम, ब्यास नदी पर पौंग डैम तथा ताप्ती नदी पर डकई बांध बनाकर बाढ़ों की रोकथाम की गई है।

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प्रश्न 3.
भूकम्प की परिभाषा दो भारत में भूकम्प क्षेत्रों के वितरण का वर्णन करो।
उत्तर:
भूकम्प (Earthquake ):
पृथ्वी के किसी भाग के अचानक हिलने को भूकम्प कहते हैं। इस हलचल से भूपृष्ठ पर झटके (Tremors) अनुभव किए जाते हैं। भूकम्पीय तरंगें सभी दिशाओं में लहरों की भान्ति आगे बढ़ती हैं। ये तरंगें उद्गम (Focus ) से आरम्भ होती हैं। ये तरंगें तीन प्रकार की होती हैं – P- Waves, S- Waves, L-Waves.

भूकम्प के कारण (Causes of Earthquake ):
भूकम्प के सामान्य कारण ज्वालामुखी विस्फोट, भू-हलचलें, चट्टानों का लचीलापन तथा स्थानीय कारण है। आधुनिक युग में भूकम्पों को टेकटानिक प्लेटों से सम्बन्धित किया गया है। भारत में सामान्य रूप से भारतीय प्लेट तथा यूरेशियन प्लेट आपस में टकराती हैं। ये एक दूसरे के नीचे धँसने का यत्न करती हैं। हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में इनका सम्बन्ध वलन व भ्रंशन क्रिया से है। दक्षिणी भारत एक स्थिर भूखण्ड है तथा भूकम्प बहुत कम होते हैं। भूकम्पों की तीव्रता रिक्टर पैमाने से मापी जाती है जिसका मापक 1 से 9 तक होता है। अधिक तीव्र भूकम्प भारत के निम्नलिखित क्षेत्रों में अनुभव किए जाते हैं।
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1. हिमालयाई क्षेत्र (Himalayan Zone ):
इस क्षेत्र में क्रियाशील भूकम्प जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों में आते हैं जिनसे बहुत हानि होती है। यह भूकम्प भारतीय प्लेट तथा यूरेशियम प्लेट के आपसी टकराव के कारण उत्पन्न होते हैं। भारतीय प्लेट प्रति वर्ष 5 सें० मी० की गति से उत्तर तथा उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ रही है। यहां 1905 में कांगड़ा में, 1828 में कश्मीर में, 1936 में क्वेटा में तथा 1950 में असम में भयानक भूकम्प अनुभव किए गए।

2. सिन्धु-गंगा प्रदेश (Indo-Gangetion Zone ):
इस क्षेत्र में सामान्य तीव्रता के भूकम्प अनुभव किए जाते हैं। इनकी तीव्रता 6 से 6.5 तक होती है। परन्तु इन सघन बसे क्षेत्रों में बहुत हानि होती है।

3. प्रायद्वीपीय क्षेत्र (Peninsular Zone):
यह एक स्थिर क्षेत्र है परन्तु फिर भी यहां भूकम्प अनुभव किए जाते हैं। 1967 में कोयना, 1993 में लातूर, 2001 में भुज के भूकम्प बहुत विनाशकारी थे। कोयना भूकम्प कोयला डैम के जलाशय में जल के अत्यधिक दबाव के कारण आया। परन्तु वर्तमान भूकम्प भारतीय प्लेट की उतर की ओर गति के कारण आए हैं।

4. अन्य भूकम्पीय क्षेत्र (Other Sesonic Zones)

  1. बिहार – नेपाल क्षेत्र
  2. उत्तर-पश्चिमी हिमालय
  3. गुजरात क्षेत्र
  4. कोयना क्षेत्र।

भारत के प्रमुख विनाशकारी भूकम्प

केन्द्र तीव्रता वर्ष
कच्छ 8.0 1819
कच्छ 7.5 1869
मेघालय 8.7 1865
बंगाल 8.5 1885
असम 8.0 1897
कांगड़ा 8.0 1905
असम 8.7 1950
कोयना 6.3 1967
हिमाचल प्रदेश 7.5 1973
लातूर 6.0 1993
भुज 8.0 2001

भूकम्प के परिणाम:
केवल बसे हुए क्षेत्रों के आने वला भूकम्प ही आपदा या संकट बनता है। भूकम्प का प्रभाव सदैव विध्वंसक होता है। भूकम्प के कारण प्राकृतिक पर्यावरण में कई तरह से परिवर्तन हो जाते हैं। भूकम्पीय तरंगों से धरातल में दरारें पड़ जाती हैं जिनसे कभी-कभी पानी के फव्वारे छूटने लगते हैं। इसके साथ बड़ी भारी मात्रा में रेत बाहर आ जाता है तथा इससे रेत के बांध बन जाते हैं। क्षेत्र के अपवाह तन्त्र में उल्लेखनीय परिवर्तन भी देखे जा सकते हैं। नदियों के मार्ग बदल जाने से बाढ़ आ जाती है।

पहाड़ी क्षेत्रों में भू-स्खलन हो जाते हैं तथा इनके साथ भारी मात्रा में चट्टानी मलबा नीचे आ जाता है। इससे बृहतक्षरण होता है। हिमानियाँ फट जाती हैं तथा इनके हिमधाव सुदूर स्थित स्थानों पर बिखर जाते हैं। नए जल प्रपातों और सरिताओं की उत्पत्ति भी हो जाती है। भूकम्पीय आपदाओं से मनुष्य निर्मित भवन बच नहीं पाते हैं। सड़कें, रेलमार्ग, पुल और टेलीफोन की लाइनें टूट जाती हैं। गगनचुम्बी भवनों और सघन जनसंख्या वाले कस्बों और नगरों पर भूकम्पों का सबसे बुरा असर होता है।

सुनामी लहरें (Tsunami Tidal Waves):
समुद्री तली पर भूकम्प उत्पन्न होने से 30 मीटर तक ऊंची ज्वारीय लहरें (सुनामी) उत्पन्न होती है। 26 दिसम्बर, 2004 को हिन्द महासागर में इण्डोनेशिया के निकट उत्पन्न भूकम्प के कारण भयंकर सुनामी लहरें उत्पन्न हुईं। इनका प्रभाव इण्डोनेशिया, थाइलैण्ड, म्यानमार, भारत तथा श्रीलंका के तटों पर अनुभव किया गया। इन भयंकर लहरों के कारण इन क्षेत्रों में लगभग 2 लाख लोगों की जानें गईं तथा करोड़ों रुपयों की सम्पत्ति की हानि हुई है।

यह पृथ्वी के इतिहास में सबसे भयंकर प्राकृतिक आपदा थी भूकम्प के प्रभाव को कम करना भूकम्प के प्रभाव को कम करने का सबसे अच्छा तरीका हैं । इसकी निरन्तर खोज-खबर रखना तथा लोगों को इसके आने की सम्भावना की सूचना देना इससे आशंकित क्षेत्रों से लोगों को हटाया जा सकता है। भूकम्प से अत्यधिक खतरे वाले क्षेत्र में भूकम्प रोधी भवन बनाने की आवश्यकता है। भूकम्प की आशंका वाले क्षेत्रों में लोगों को भूकम्प रोधी भवन और मकान बनाने की सलाह दी जा सकती है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 4.
चक्रवात किसे कहते हैं? चक्रवातों द्वारा क्षति का वर्णन करो।
उत्तर:
चक्रवात (Cyclones):
600 कि०मी० या इससे अधिक व्यास वाले चक्रवात, पृथ्वी के वायुमण्डलीय तूफानों में सबसे अधिक विनाशक और भयंकर होते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप संसार में चक्रवातों द्वारा सबसे अधिक दुष्प्रभावित क्षेत्र हैं। संसार में आने वाले चक्रवातों में से 6 प्रतिशत यही आते हैं।
उत्पत्ति: जब कमज़ोर रूप से विकसित कम दबाव के क्षेत्र के चारों ओर तापमान की क्षैतिज प्रवणता बहुत अधिक होती है, तब उष्ण कटिबंधीय चक्रवात बन सकता है। चक्रवात ऊष्मा का इंजिन है तथा इसे सागरीय तल से ऊष्मा मिलती है। संघनन के बाद मुक्त ऊष्मा, चक्रवात के लिए गतिज ऊर्जा (Kinetic energy) में बदल जाती है।

चक्रवात की उत्पत्ति की निम्नलिखित अवस्थाएं हैं।

  1. महासागरीय तल का तापमान 26° से अधिक।
  2. बन्द समदाब रेखाओं का आविर्भाव।
  3. निम्न वायुदाब, 1,000 मि。बा० से कम होना।
  4. चक्रीय गति के क्षेत्रफल, प्रारम्भ में इनके अर्धव्यास 30 से 50 कि०मी० फिर क्रमश: 100-200 कि०मी० और 1,000 कि०मी० तक भी बढ़ जाते हैं।
  5. ऊर्ध्वाधर रूप में पवन की गति का प्रारम्भ में 6 कि०मी० की ऊंचाई तक बढ़ना तथा इसके बाद और भी ऊंचा उठाना।

ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात की संरचना:

  1. ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में बहुत अधिक दाब प्रवणता (14-17 मि०बा० / 100 कि०मी०) होती है। कुछ चक्रवातों में यह इससे भी अधिक ऊंची अर्थात् 60 मि० बा० / 100 कि०मी० होती है।
  2. पवन पट्टी केन्द्र से 10 से 150 कि०मी० या कभी – कभी इससे भी अधिक दूरी में फैली होती है। धरातल पर पवन का चक्रवातीय परिसंचरण होता है। तथा ऊंचाई पर यह प्रति चक्रवातीय बन जाता है।
  3. ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की क्रोड कोष्ण होती है। चक्रवात का केन्द्र सामान्यतः मेघ विहीन होता है। इसे चक्रवात की आंख कहते हैं। चक्रवात की आंख बहुत ऊंचाई तक फैले ऊर्ध्वाधर बादलों से घिरी होती है।
  4. ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात से सामान्यतः 50 सें०मी० से अधिक वर्षा होती है। कभी-कभी वर्षा 100 सें०मी० से भी अधिक हो जाती है।
  5. चक्रवात अपने पूरे तन्त्र के साथ लगभग 20 कि०मी० प्रति घंटा औसत गति से आगे बढ़ता है। जैसे-जैसे चक्रवात स्थल पर बढ़ता जाता है, समुद्री जल के अभाव में इसकी ऊर्जा घटती जाती है। इससे चक्रवात समाप्त हो जाता है। चक्रवात की जीवन अवधि 5 से 7 दिनों की होती है।

चक्रवातों द्वारा क्षति:
प्रभंजन की गति वाली पवनों, प्रभंजन की लहरों तथा मूसलाधार वर्षा से उत्पन्न बाढ़ों के कारण ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का विनाशकारी प्रभाव पड़ता है। अधिकतर तूफ़ान अत्यन्त तेज़ पवनों और तूफ़ानी लहरों के द्वारा भारी क्षति पहुंचाते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में ढाल पर अत्यन्त तीव्रता से बहने वाला वर्षा जल अपने सामने आने वाली हर वस्तु को अपनी चपेट में लेकर भारी नुकसान करता है। तूफ़ानी लहरों की तीव्रता, पवन की गति, दाब प्रवणता, समुद्र की तली की स्थलाकृतियों तथा तटरेखा की बनावट पर निर्भर करती है। अनेक क्षेत्रों में चक्रवातों की चेतावनी व्यवस्था के बावजूद, ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात धन-जन को अपार क्षति पहुंचाते हैं।

क्षेत्र: अरब सागर की तुलना में बंगाल की खाड़ी में तूफ़ानों की संख्या कहीं अधिक है। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में अधिकतर तूफान अक्तूबर और नवम्बर के महीनों में आते हैं। मानसून ऋतु का प्रारंभिक भाग भी बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में ऊष्ण कटिबंधीय तूफ़ानों की उत्पत्ति के अनुकूल है। मानसून ऋतु में अधिकतर चक्रवात 10° उ० तथा 15° उ० अक्षांशों के मध्य ही उत्पन्न होते हैं। जून में बंगाल की खाड़ी के लगभग सभी तूफ़ान 92° पू० देशांतर के पश्चिम में 16° उ० और 21° उ० अक्षांश के मध्य जन्म लेते हैं। जुलाई में खाड़ी के तूफ़ानों का जन्म 18° 3० अक्षांश के उत्तर में तथा 90° पू० देशान्तर के पश्चिम में होता है। यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि जुलाई के सभी तूफ़ान पश्चिमी पथ का अनुसरण करते हैं। ये सामान्यत: 20° उ० तथा 25° उ० अक्षांशों के मध्य तक ही सीमित रहते हैं तथा हिमालय की गिरिपद पहाड़ियों की ओर अपेक्षाकृत बहुत कम मुड़ते हैं।

क्षति का प्रभाव कम करना:
अधिकतर चक्रवातीय क्षति, तेज़ पवनों, मूसलाधार वर्षा और समुद्र में उठने वाली ऊँची तूफ़ानी, ज्वारीय लहरों के द्वारा होती है। पवनों की तुलना में चक्रवातीय वर्षा के कारण आई बाढ़ अधिक विनाशकारी होती है। आज चक्रवातों की चेतावनी व्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार होने से तथा पर्याप्त और सामयिक कार्यवाही से चक्रवात से मरने वालों की संख्या में कमी आई है। अन्य उपाय जैसे : चक्रवातों के आने के समय सुरक्षा के लिए आय स्थलों के तटबंधों, बांधों, जलाशयों के निर्माण से और तट पर वन रोपण से भी बहुत सहायता मिलती है। फ़सलों और गो- पशुओं बी से भी लोगों को क्षति पूर्ति में काफ़ी मदद मिलती है। उपग्रहों से प्राप्त चित्रों के द्वारा चक्रवात के पथ के बारे में चेतावनी देना अब सम्भव हो गया है। कम्प्यूटर द्वारा बनाए गए मॉडलों की सहायता से चक्रवात की पवनों की दिशा और तीव्रता तथा इसके पथ की दिशा की काफ़ी हद तक सही भविष्यवाणी की जा सकती है।

प्रश्न 5.
आपदा प्रबन्धन पर एक लेख लिखें।
उत्तर:
आपदा प्रबन्धन ( Disaster Management ):
आपदा प्रबन्धन में निवारक और संरक्षी उपाय, तैयारी तथा मानवों पर आपदा के प्रभाव को कम करने के लिए राहत कार्यों की व्यवस्था तथा आपदा प्रवण क्षेत्रों के सामाजिक, आर्थिक पक्ष शामिल किए जाते हैं। आपदा प्रबन्ध की सम्पूर्ण प्रक्रिया को तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है। प्रभाव चरण, पुनर्वास और पुनर्निर्माण चरण तथा समन्वित दीर्घकालीन विकास और तैयारी चरण। प्रभाव चरण के तीन अंग हैं।

  1. आपदा की भविष्यवाणी करना,
  2. आपदा के प्रेरक कारकों की बारीकी से खोजबीन, तथा
  3. आपदा आने के बाद प्रबन्धन के कार्य जलग्रहण क्षेत्र में हुई वर्षा का अध्ययन करके बाढ़ की भविष्यवाणी की जा सकती है।

उपग्रहों के द्वारा चक्रवातों के मार्ग, गति आदि की खोज-खबर ली जा सकती है। इस प्रकार प्राप्त सूचनाओं के आधार पर पूर्व चेतावनी तथा लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के प्रयत्न शुरू किए जा सकते हैं। आपदा के लिए ज़िम्मेदार कारकों की बारीकी से की गई खोजबीन लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने, भोजन, वस्त्र और पेय जल की आपूर्ति के लिए कार्यदल नियुक्त किए जा सकते हैं। आपदाएँ मृत्यु और विनाश के चिह्न छोड़ जाती हैं। प्रभावित लोगों को चिकित्सा सुविधा और अन्य विभिन्न प्रकार की सहायता की ज़रूरत होती है। दीर्घकालीन विकास के चरण के अन्तर्गत विविध प्रकार के निवारक और सुरक्षापायों की योजना बना लेनी चाहिए। संसार के लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए यूनेस्को ने 1990-2000 के दौरान प्राकृतिक आपदा राहत दशक मनाया था। संसार के अन्य देशों के साथ भारत ने भी दशक के दौरान अक्तूबर में विश्व आपदा राहत दिवस मनाया था। इस अवसर पर भूकंप, बाढ़ और चक्रवात प्रवण क्षेत्रों के लोगों के लिए भारत सरकार ने जो करणीय और अकरणीय कर्म प्रचारित किए थे, वे बहुत उपयोगी हैं।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 6.
सुनामी से क्या अभिप्राय हैं? इसकी उत्पत्ति कैसे होती है? 26 दिसम्बर, 2004 को हुए सुनामी संकट के प्रभाव बताओ।
उत्तर:
सुनामी (Tsunami ):
सुनामी एक जापानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘तटीय तरंगें’, ‘Tsu’ शुद्ध का अर्थ है-तट तथा ‘Nami’ शब्द का अर्थ है ‘तरंगें ‘। इसे प्रायः ज्वारीय लहरें (Tidal waves) या भूकम्पीय तरंगें (Seismic waves) भी कहा जाता है।
सुनामी अचानक ही ऊंचा उठने वाली विनाशकारी तरंगें हैं। इससे गहरे जल में हलचल होती है। इसकी ऊंचाई प्रायः 10 मीटर तक होती है। सुनामी उस दशा में उत्पन्न होती है जब सागरीय तली में भूकम्पीय क्रिया के कारण हल चल होती है तथा महासागर में सतह के जल का लम्बरूप में विस्थापन होता है। हिन्द महासागर में सुनामी तरंगें बहुत कम अनुभव की गई हैं। अधिकतर सुनामी प्रशान्त महासागर में घटित होती हैं।

सुनामी की उत्पत्ति (Origin of Tsunami ):
पृथ्वी आंतरिक दृष्टि से एक क्रियाशील ग्रह है। अधिकतर भूकम्प विवर्तनिक प्लेटों (Tectomic plates) की सीमाओं पर उत्पन्न होते हैं। सुनामी अधिकतर प्रविष्ठन क्षेत्र (Subduction zone) के भूकम्प के कारण उत्पन्न होती है। यह एक ऐसा क्षेत्र हैं दो प्लेटें एक दूसरे में विलीन (converge) होती हैं। भारी पदार्थों से बनी प्लेट हल्की प्लेट के नीचे खिसक जाती है। समुद्र अधस्तल का विस्तारण होता है। यह क्रिया एक कम गहरे भूकम्प को जन्म देती है।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ 6
26 दिसम्बर, 2004 की सुनामी आपदा (Tsunami Disaster of 26th December, 2004 ):
प्रात: 7.58 बजे के समय पर, काले रविवार (Black Sunday) को 26 दिसम्बर, 2004 को क्रिस्मस से एक दिन बाद सुनामी त्रासदी घटी यह विशाल, विनाशकारी सुनामी लहर हिन्द महासागर के तटीय प्रदेशों से टकराई। इस लहर के कारण इण्डोनेशिया से लेकर भारत तक के देशों में 3 लाख व्यक्ति इस त्रासदी का शिकार हो गए। महासागरी तली पर उत्पन्न एक भूकम्प उत्पन्न हुआ जिसका अधिकेंदर सुमात्रा (इण्डोनेशिया) ने 257 कि०मी० दक्षिण पूर्व में था। यह भूकम्प रिक्टर पैमाने पर 8.9 शक्ति का था।

इन लहरों के ऊंचे उठने से जल की एक ऊंची दीवार उत्पन्न हो गई। आधुनिक युग के इतिहास में यह एक महान् त्रासदी के रूप में अंकित की जाएगी। सन् 1900 के पश्चात् यह चौथा बड़ा भूकम्प था। इस भूकम्प के कारण उत्पन्न सुनामी लहरों से हीरोशिमा बम्ब की तुलना में लाखों गुणा अधिक ऊर्जा का विस्फोट हुआ। इसलिए इसे भूकम्प प्रेरित प्रलयकारी लहर भी कहा जाता है। यह भारतीय तथा बर्मा की प्लेटों के मिलन स्थान पर घटी जहां लगभग 1000 कि०मी० प्लेट सीमा खिसक गई।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ 7

इसके प्रभाव से सागर तल 10 मीटर ऊंचा उठ गया तथा ऊपरी जल हज़ारों घन मीटर की मात्रा में विस्थापित हो गया । इसकी गति लगभग 700 कि०मी० प्रति घण्टा थी । इसे अपने उद्गम स्थान से भारतीय तट तक पहुंचने में दो घण्टे का समय लगा। इस त्रासदी ने तटीय प्रदेशों के इतिहास तथा भूगोल को बदल कर रख दिया है।

सुनामी त्रासदी के प्रभाव (Effects of Tsunami Disaster ):
हिन्द महासागर के तटीय देशों इण्डोनेशिया, मलेशिया, थाइलैंड, म्यांमार, भारत, श्रीलंका तथा मालदीव में विनाशकारी प्रभाव पड़े। भारत में सब से अधिक प्रभावित तमिलनाडु, पांडिचेरी, आन्ध्र प्रदेश, केरल राज्य थे अण्डमान तथा निकोबार द्वीप में इस लहर का सब से अधिक प्रभाव पड़ा। इण्डोनेशिया में लगभग 1 लाख व्यक्ति, थाइलैंड में 10,000 व्यक्ति, श्रीलंका में 30,000 व्यक्ति तथा भारत में 15,000 व्यक्ति इस प्रलय के शिकार हुए।

भारत में सब से अधिक क्षति तमिलनाडु के नागापट्टनम जिले में हुई जहां जल नगर में 1.5 कि०मी० अन्दर तक घुस गया। संचार, परिवहन साधन तथा विद्युत् सप्लाई में विघ्न पड़ा बहुत से श्रद्धालु वेलान कन्नी (Velan Kanni) के पुलिन (Beach) पर सागर जल में वह गए। विनाशकारी तट लौटती लहरें हज़ारों लोगों को वहा कर ले गईं। मैरीन पुलिन (एशिया के सब से बड़े पुलिन) पर 3 कि०मी० लम्बे क्षेत्र में सैंकड़ों लोग सागर की लपेट में आ गए। यहां लाखों रुपयों के चल-अंचल संसाधनों की बर्बादी हुई।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ 5
कल्पाक्कम अणु शक्ति घर में जल प्रवेश करने से अणु शक्ति के रीएक्टरों को बन्द करना पड़ा। मामलापुरम के विश्व प्रसिद्ध मन्दिर को तूफ़ानी लहरों से बहुत क्षति हुई।

सब से अधिक मौतें अण्डमान-निकोबार द्वीप पर हुईं। ग्रेट निकोबार के दक्षिणी द्वीप पर जो कि भूकम्प के अधिकेन्द्र से केवल 150 कि०मी० दूर था, सब से अधिक प्रभाव पड़ा। निकोबार द्वीप पर भारतीय नौ सेना का एक अड्डा नष्ट हो गया। ऐसा लगता है कि इन द्वीपों का बहुत-सा क्षेत्र समुद्र ने निगल लिया है। इस प्रकार सुनामी लहरों ने इन द्वीप समूहों के भूगोल को बदल दिया तथा यहां पुनः मानचित्रण करना पड़ेगा। इस देश के आपदाओं के शब्द कोश में एक नया शद्ध सुनामी आपदा जुड़ गया है। अमेरिकन वैज्ञानिकों के अनुसार इस कारण पृथ्वी अपनी धुरी से डगमगा गई और उसका परिभ्रमण तेज़ हो गया जिससे दिन हमेशा के लिए एक सैकिंड कम हो गया। सुनामी लहरें सचमुच प्रकृति का कहर हैं।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर

Jharkhand Board JAC Class 12 History Solutions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Solutions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर

Jharkhand Board Class 12 History एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर In-text Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 171

प्रश्न 1.
मैकेन्जी और उनके देशज सूचनादाताओं को चित्रकार ने किस प्रकार चित्रित किया है? उनके तथा उनके सूचनादाताओं के विषय में दर्शकों पर किस प्रकार के विचार डालने का प्रयास किया गया है?
उत्तर:
दिए गए चित्र में कॉलिन मैकेन्जी तथा उनके सहायकों को दर्शाया गया है। यह चित्र, चित्रकार थॉमस हिकी द्वारा बनाए गए तैलचित्र का किसी अज्ञात चित्रकार द्वारा बनाया गया प्रतिरूप है। इस चित्र में मैकेन्जी को ब्रिटिश पहनावे में दिखाया गया है। मैकेन्जी के बायीं ओर दूरबीन थामे उनका चपरासी स्निाजी और दायीं ओर उनके ब्राह्मण सहायक हैं। ब्राह्मण सहायकों में एक जैन पंडित तथा दूसरा तेलुगू ब्राह्मण है। इस चित्र द्वारा दर्शकों पर यह प्रभाव डालने की कोशिश की गई है कि मैकेन्जी एक अभियन्ता, सर्वेक्षक तथा मानचित्रकार था। स्थानीय लोगों के साथ उसका यह चित्र यह दर्शाता है कि उसने भारतीय इतिहास से सम्बन्धित तथ्यों का सर्वेक्षण करने की कोशिश की है।

पृष्ठ संख्या 173

प्रश्न 2.
आपके विचार में विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय व्यापार को प्रोत्साहित करने के इच्छुक क्यों थे? उनके द्वारा किए गए विनिमयों से किन समूहों को लाभ पहुँचा होगा?
उत्तर:
विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय निम्नलिखित कारणों से व्यापार को प्रोत्साहित करना चाहते थे-
(1) व्यापार से प्राप्त राजस्व राज्य की समृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान देता था।
(2) राजा अपनी सेना के लिए अच्छी नस्ल के शक्तिशाली घोड़े प्राप्त करना चाहता था।
(3) राजा अपने राज्य में घोड़ों, हाथियों, रत्नों, चन्दन, मोती तथा अन्य वस्तुओं का आयात बढ़ाना चाहता था । उपर्युक्त विनिमयों से राज्य, शासक वर्ग, व्यापारी वर्ग, शिल्पी वर्ग, विदेशी व्यापारी वर्ग, समृद्ध जनता आदि को लाभ पहुँचा होगा।

पृष्ठ संख्या 176

प्रश्न 3.
नक्शे (चित्र 7.4) पर बने तीन अंचलों को पहचानिए। मध्य भाग को ध्यान से देखिए क्या आप नदियों से जुड़ती हुई नहरों को देख सकते हैं? आप कितनी किलेबन्द दीवारों को देख सकते हैं? क्या धार्मिक केन्द्र किलेबन्द था?
उत्तर:
उपर्युक्त पृष्ठ पर बने विजयनगर के रेखाचित्र को देखने पर निम्नलिखित तीन अंचल दिखाई देते हैं –
(i) दक्षिण में किलेबन्द केन्द्रीय शाही भाग तथा शाही केन्द्र
(ii) हम्पी तथा पवित्र केन्द्र
(iii) उत्तर-पूर्व में स्थित अनेगंदी
यहाँ नदियाँ तथा उनसे जुड़ी नहरें तथा जलाशय देखे जा सकते हैं। किलेबन्द दीवारें स्पष्ट दिखाई दे रही हैं। धार्मिक केन्द्र किलेबन्द है।

पृष्ठ संख्या 176

प्रश्न 4.
क्या आप आज किसी शहर में ये अभिलक्षण देख सकते हैं? आपके विचार में पेस ने उद्यानों तथा जल स्त्रोतों को विशेष उल्लेख के लिए क्यों चुना?
उत्तर:
प्राचीन वास्तुकला के ऐसे अभिलक्षण नवीन शहरों में नहीं दिखाई देते, परन्तु प्राचीन शहरों में आज भी ऐसे अभिलक्षण शेष हैं नवीन शहरों के स्थापत्य में भी बाग-बगीचों, जलाशयों, पार्कों आदि का पूरा ध्यान रखा जाता है। पेस आजकल की पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित विजयनगर में मौजूद उद्यानों तथा जलस्रोतों को देखकर बहुत ही प्रभावित हुआ इसलिए उसने उद्यानों तथा जलस्रोतों का उल्लेख विशेष रूप से किया।

पृष्ठ संख्या 178

प्रश्न 5.
इन दो (चित्र 7.6 तथा 7.7) प्रवेश द्वारों के बीच समानताओं तथा विभिन्नताओं का वर्णन कीजिए आपके विचार में विजयनगर के शासकों ने इण्डो-इस्लामी स्थापत्य के तत्त्वों को क्यों अपनाया?
उत्तर:
पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ संख्या 178 पर दिए गए चित्र संख्या 76 तथा 77 के प्रवेश द्वारों पर ऊंचे शिखर बनाए गए हैं। परन्तु चित्र 77 में शिखर आयताकार है तथा 7.6 में शिखर गोलाकार है। चूँकि तत्कालीन समय में धीरे-धीरे इण्डो-इस्लामिक स्थापत्यकला का विकास हो रहा था; अतः विजयनगर के शासकों द्वारा भी इस स्थापत्य- कला का प्रयोग मन्दिरों में किया गया।

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पृष्ठ संख्या 179

प्रश्न 6.
आपके विचार में ये टुकड़े मूलतः किस प्रकार के बर्तनों का हिस्सा थे?
उत्तर:
चीनी मिट्टी से बने बर्तनों के ये टुकड़े सम्भवतः इस्लामी पच्चीकारी से बने मर्तबानों और अन्य घड़े जैसे बर्तनों का हिस्सा थे।

पृष्ठ संख्या 179

प्रश्न 7.
क्या इस मस्जिद में इण्डो-इस्लामी स्थापत्य के चारित्रिक तत्त्व विद्यमान हैं?
उत्तर:
चित्र को देखकर यह प्रतीत होता है कि इस मस्जिद में इण्डो-इस्लामिक तत्त्व विद्यमान हैं।

पृष्ठ संख्या 180

प्रश्न 8.
क्या आप इन चित्रों (चित्र 7.11 तथा 7.12 ) के विषयों को पहचान सकते हैं?
उत्तर:
इन चित्रों से सम्बन्धित विषय-वस्तु सम्भवतः इस प्रकार है –
(1) मोड़े को चारा खिलाना
(2) ऊँचे चबूतरे पर बैठे योगी के सामने नतमस्तक भक्त
(3) घोड़े की लगाम खींचता हुआ सेवक
(4) मृर्गों का शिकार करते हुए शिकारी
(5) पशुओं को हाँकता हुआ व्यक्ति
(6) एक योगी संत प्रवचन देता हुआ इत्यादि।

पृष्ठ संख्या 181

प्रश्न 9.
चित्र 7.13 तथा 7.15 की तुलना कीजिए तथा उन अभिलक्षणों की सूची बनाइए जो दोनों में हैं, और साथ ही उनकी भी जो इनमें से केवल एक में ही देखे जा सकते हैं। चित्र 7.14 में बनी मेहराब की तुलना चित्र 7.6 में बनी मेहराब से कीजिए कमल महल में नौ मीनारें थीं-बीच में एक ऊँची तथा आठ उसकी भुजाओं के साथ-साथ छायाचित्र तथा खड़े रेखाचित्र में आप कितनी कितनी मीनारें देख पाते हैं? यदि आप कमल महल का फिर से नामकरण करते तो इसे क्या कहते ?
उत्तर:
चित्र 7.13 तथा 7.15 में समान तत्त्व इस प्रकार हैं –
(1) दोनों में समान रूप के मेहराब दिखाई देते हैं।
(2) दोनों में एक समान सीढ़ियाँ दिखाई देती हैं।
(3) दोनों में प्रथम तल की आकृति एकसमान दिखाई देती है।

असमानता चित्र 7.13 में छह मीनारें दिखाई देती हैं। चित्र 7.15 में पाँच मीनारें स्पष्ट दिखाई देती हैं। चित्र सं. 7.14 में बनी मेहराब की तुलना 7.14 चित्र संख्या में मेहराब का सूक्ष्म चित्रण किया गया है, जिससे यह अधिक सुन्दर तथा कलात्मक प्रतीत होता है। चित्र 76 में बनी मेहराब में कलात्मक कार्य स्पष्ट नहीं है। यदि मैं फिर से इस भवन का नामकरण करता तो मैं इतने उत्कृष्ट और सुन्दर भवन के निर्माता के नाम पर इसका नाम कृष्ण महल रखता।

पृष्ठ संख्या 182

प्रश्न 10.
चित्र 7.16 (क) तथा 7.16 (ख) की तुलना चित्र 7.17 से कीजिए प्रत्येक में दिखाई देने वाले अभिलक्षणों की सूची बनाइए क्या आपको लगता है कि ये वास्तव में हाथियों के अस्तबल थे?
उत्तर:
दोनों चित्रों में तुलना के मुख्य बिन्दु निम्नलिखित हैं –
(1) चित्र 7.16 (क) में अस्तबल का सम्पूर्ण क्षेत्र दिखाया गया है।
(2) चित्र 7.16 (ख) में वास्तविक कक्ष अथवा
खाली स्थान का रेखाचित्र बनाया गया है। इन चित्रों में विशालकाय दरवाजों तथा तत्कालीन समय युद्ध में हाथियों की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि यह भवन हाथी- खाना यानी कि हाथियों का अस्तबल रहा हो।

पृष्ठ संख्या 183

प्रश्न 11.
क्या आप नृत्य के दृश्यांशों को पहचान सकती हैं? आपके विचार में हाथियों और घोड़ों को पटलों पर क्यों चित्रित किया गया था?
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्न पाठ्यपुस्तक के चित्र 7.18 से सम्बन्धित है। यहाँ नृत्य के प्रमुख दृश्य इस प्रकार हैं –
(1) नृत्य करते विभिन्न पुरुष
(2) नृत्य करती विभिन्न महिलाएँ
(3) नृत्य-संगीत में विभिन्न वाद्य यन्त्रों का प्रयोग जैसे मृदंग, ढोल, तुरही आदि। इस चित्र में हाथियों तथा घोड़ों को पृथक् पृथक् पटलों पर इसलिए दिखाया गया है क्योंकि यहाँ पाँचों खानों को अलग-अलग दिखाया गया है।

पृष्ठ संख्या 183 चर्चा कीजिए

प्रश्न 12.
नायकों ने विजयनगर के शासकों की भवन निर्माण परम्पराओं को जारी क्यों रखा?
उत्तर:
विजयनगर शहर पर आक्रमण के पश्चात् विजयनगर की कई संरचनाएँ विनष्ट हो गई थीं, परन्तु नायकों ने महलनुमा संरचनाओं के निर्माण की परम्परा को जारी रखा। इनमें से कई भवन आज भी मौजूद हैं। विजयनगर राज्य के सेना प्रमुख नायक कहलाते थे। वे भी राजाओं की भाँति साधन-सम्पन्न, समृद्ध तथा शक्तिशाली थे।

उन्होंने भी अपनी शक्ति प्रतिष्ठा तथा गौरव का प्रदर्शन करने के लिए अनेक भव्य भवनों का निर्माण करवाया और विजयनगर के शासकों की भवन निर्माण परम्परा को जारी रखा। वे दुर्गों तथा मन्दिरों आदि का निर्माण कर जनसाधारण की लोकप्रियता को प्राप्त करने के लिए भी लालायित रहते थे इसलिए उन्होंने अनेक दुर्गों तथा मन्दिरों का निर्माण करवाया। मदुराई के नायकों द्वारा बनवाया गया एक गोपुरम उल्लेखनीय है।

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पृष्ठ संख्या 185

प्रश्न 13.
नक्शे में दिए गए स्केल का प्रयोग कर मुख्य गोपुरम् से केन्द्रीय देवालय की दूरी नापिए जलाशय से देवालय तक जाने के लिए सबसे आसान मार्ग कौनसा रहा होगा?
उत्तर:
(1) पूर्वी प्रवेश द्वार अथवा गोपुरम् से मुख्य देवालय की दूरी लगभग 450 मीटर है।
(2) जलाशय से देवालय तक जाने का सबसे आसान मार्ग देवालय का उत्तर-पश्चिमी द्वार है।

पृष्ठ संख्या 186

प्रश्न 14.
स्तम्भ पर आप जो देख रहे हैं, उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर-स्तम्भ को देखने पर इसके दो भाग क्रमश: दायें और बायें भाग दिखाई दे रहे हैं। बायें भाग पर अलंकृत मयूर, हाथ में फरसा लिए हुए एक व्यक्ति, ढोल बजाते हुए तथा नृत्य करते हुए मनुष्य दिखाई दे रहे हैं। दायें भाग पर अलंकृत जानवर सिंह आकृति एवं देवाकृति तथा हाथी की आकृति दिखाई दे रही हैं दायें भाग में अधिक जटिल उत्कीर्णन है।

पृष्ठ संख्या 187

प्रश्न 15.
क्या आपको लगता है कि वास्तव में इस प्रकार के रथ बनाए जाते होंगे ?
उत्तर:
चित्र संख्या 7.24 में विट्ठल मन्दिर में रथ के आकार का एक मन्दिर दर्शाया गया है। ऐसा प्रतीत होता है। कि वास्तव में इस प्रकार के रथ नहीं बनाए जाते थे।

पृष्ठ संख्या 188 चर्चा कीजिए

प्रश्न 16.
आनुष्ठानिक स्थापत्य की पूर्ववर्ती परम्पराओं को विजयनगर के शासकों ने कैसे और क्यों अपनाया तथा रूपान्तरित किया?
उत्तर:
विजयनगर के शासकों ने पूर्वकालिक परम्पराओं को अपनाया और उनमें नवीनता का समावेश किया और उन्हें रूपान्तरित किया। गोपुरम और मण्डप – अब राजकीय प्रतिकृति मूर्तियाँ मन्दिरों में प्रदर्शित की जाने लगीं और राजा की मन्दिरों की यात्राओं को महत्त्वपूर्ण राजकीय अवसर माना जाने लगा जिन पर साम्राज्य के महत्त्वपूर्ण नायक भी उनके साथ जाते थे अब विशाल गोपुरम का निर्माण किया जाने लगा। गोपुरम अथवा राजकीय प्रवेश द्वार केन्द्रीय देवालयों की मीनारों को बना प्रतीत कराते थे और लम्बी दूरी से ही मन्दिर के होने का संकेत देते थे। अन्य विशिष्ट अभिलक्षणों में मण्डप तथा लम्बे स्तम्भों वाले गलियारे सम्मिलित हैं। ये प्रायः मन्दिर परिसर में स्थित देवस्थलों के चारों ओर बने थे।

विरुपाक्ष मन्दिर इस मन्दिर के सामने बना मण्डप राजा कृष्णदेव राय ने अपने सिंहासनारोहण के उपलक्ष्य में बनवाया था। इसे सूक्ष्मता से उत्कीर्णित स्तम्भों से सजाया गया था। पूर्वी गोपुरम के निर्माण का श्रेय भी कृष्णदेव राय को ही दिया जाता है। इन परिवर्धनों के परिणामस्वरूप केन्द्रीय देवालय पूरे परिसर के एक छोटे भाग तक सीमित रह गया था। मन्दिर के सभागारों का प्रयोग मन्दिर के सभागारों का प्रयोग विविध प्रकार के कार्यों के लिए होता था। इनमें से कुछ ऐसे थे जिनमें देवताओं की मूर्तियाँ, संगीत, नृत्य और नाटकों के विशेष कार्यक्रमों को देखने के लिए रखी जाती थीं अन्य सभागारों का प्रयोग देवी-देवताओं के विवाह के उत्सव पर आनन्द मनाने और कुछ अन्य का प्रयोग देवी-देवताओं को झूला झुलाने के लिए होता था।

विट्ठल मन्दिर यहाँ के प्रमुख देवता विठ्ठल थे जो सामान्यतः महाराष्ट्र में पूजे जाने वाले विष्णु के एक रूप हैं इस देवता की पूजा को कर्नाटक में शुरू करना उन माध्यमों का प्रतीक है जिनसे एक सामाजिक संस्कृति के निर्माण के लिए विजयनगर के शासकों ने अलग-अलग परम्पराओं को आत्मसात किया अन्य मन्दिरों की भाँति, इस मन्दिर में भी कई सभागार तथा रथ के आकार का एक अनूठा मन्दिर भी है। रथ गलियाँ- मन्दिर परिसरों की एक चारित्रिक विशेषता रथ गलियाँ हैं जो मन्दिर के गोपुरम से सीधी रेखा में जाती हैं। इन गलियों का फर्श पत्थर के टुकड़ों से बनाया गया था और इनके दोनों ओर स्तम्भ वाले मण्डप थे जिनमें व्यापारी अपनी दुकानें लगाया करते थे।

पृष्ठ संख्या 189

प्रश्न 17.
अंग्रेजी वर्णमाला का कौनसा अक्षर प्रयोग नहीं किया गया था? मानचित्र में दिए गए पैमाने का प्रयोग करते हुए किसी एक छोटे वर्ग की लम्बाई नापिए उत्तर – यहाँ अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर ‘I’ का प्रयोग नहीं किया गया है। मानचित्र में दिए गए पैमाने का प्रयोग करते हुए वर्ग ‘M’ की लम्बाई 4 किमी. प्राप्त होती है।

पृष्ठ संख्या 189

प्रश्न 18.
इस मानचित्र में कौनसा पैमाना प्रयोग किया गया है ?
उत्तर:
इस मानचित्र में वर्ग पैमाने का प्रयोग किया गया है।

पृष्ठ संख्या 190

प्रश्न 19.
किसी एक मन्दिर को पहचानिए दीवारों, एक केन्द्रीय देवालय तथा मन्दिर तक जाने वाले रास्तों के अवशेषों को खोजिए। मानचित्र पर उन वर्गों को नाम दीजिए जिनमें मन्दिर का नक्शा स्थित है।
उत्तर:
(1) वर्ग H में एक केन्द्रीय मन्दिर स्थित है।
(2) दीवारों, केन्द्रीय देवालय तथा मन्दिर तक जाने वाले मार्ग हेतु चित्र 730 को देखने पर रास्तों के अवशेष परिलक्षित होते हैं।
(3) वर्ग CHJ में एक केन्द्रीय मन्दिर का नक्शा स्थित है।

पृष्ठ संख्या 190

प्रश्न 20.
गोपुरम्, सभागारों, स्तम्भावलियों तथा केन्द्रीय देवालय को पहचानिए बाहरी प्रवेश द्वार से केन्द्रीय देवलय तक पहुँचने के लिए आप किन भागों से होकर गुजरेंगे?
उत्तर:
यह प्रश्न पाठ्यपुस्तक के चित्र 7.30 से सम्बन्धित है। इसमें केंद्रीय देवालय का भाग (A) से, गोपुरम् (H) से तथा (J) (I) (C) से सभागारों को दर्शाया गया है। बाहरी मार्गों से केन्द्रीय देवालय तक पहुँचने हेतु निम्न मार्गों का प्रयोग किया जाएगा.– (H) मार्ग जो उत्तर की ओर बना है। (F) मार्ग जो पूर्व की ओर स्थित है (E) मार्ग पश्चिम की ओर, तथा (G) मार्ग गोपुरम् के सामने है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 100-150 शब्दों में दीजिए –

प्रश्न 1.
पिछली दो शताब्दियों में हम्पी के भग्नावशेषों के अध्ययन में कौन-सी पद्धतियों का प्रयोग किया गया है? आपके अनुसार यह पद्धतियाँ विरुपाक्ष मन्दिर के पुरोहितों द्वारा प्रदान की गई जानकारी का किस प्रकार पूरक रही?
अथवा
हम्पी की खोज की कहानी पर प्रकाश डालिए।
अथवा
हम्पी की खोज कैसे हुई? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
हम्पी के भग्नावशेषों के अध्ययन की पद्धतियाँ –
(1) हम्पी के भग्नावशेष 1800 ई. में एक अभियन्ता तथा पुराविद् कर्नल कॉलिन मैकेन्जी द्वारा प्रकाश में लाए गए थे। कर्नल मैकेन्जी ईस्ट इण्डिया कम्पनी में कार्यरत थे। उन्होंने इस स्थान का पहला सर्वेक्षण मानचित्र तैयार किया। उनकी प्रारम्भिक जानकारियाँ विरुपाक्ष मन्दिर तथा पंपादेवी के पूजास्थल के पुरोहितों की स्मृतियों पर आधारित थीं।

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(2) कालान्तर में 1856 ई. से छायाचित्रकारों ने यहाँ के भवनों के चित्र संकलित करने शुरू किये जिससे शोधकर्ता उनका अध्ययन करने में सफल हुए।

(3) 1836 ई. से ही अभिलेखकत्ताओं ने यहाँ और हम्पी के अन्य मन्दिरों से अनेक दर्जन अभिलेखों का संग्रह करना शुरू कर दिया था।

(4) इतिहासकारों ने इन स्रोतों का विदेशी यात्रियों के वृत्तान्तों तथा तेलुगु, कन्नड़, तमिल तथा संस्कृत में लिखे गए साहित्य से मिलान किया ताकि विजयनगर शहर और साम्राज्य के इतिहास का पुनर्निर्माण किया जा सके।

(5) हमारे अनुसार ये पद्धतियाँ विरुपाक्ष मन्दिर के पुरोहितों के द्वारा प्रदान की गई जानकारी की पर्याप्त सीमा तक पूरक सिद्ध हुई।

प्रश्न 2.
विजयनगर की जल आवश्यकताओं को किस प्रकार पूरा किया जाता था?
अथवा
विजयनगर कालीन सिंचाई व्यवस्था की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
(1) विजयनगर की जल आवश्यकताओं की पूर्ति विजयनगर की जल आवश्यकताओं की पूर्ति तुंगभद्रा नदी द्वारा निर्मित एक प्राकृतिक कुंड से होती थी। यह नदी उत्तर-पूर्व दिशा में बहती है। आस-पास का भूदृश्य रमणीय ग्रेनाइट की पहाड़ियों से परिपूर्ण है जो शहर को चारों ओर से घेरे हुए हैं। इन पहाड़ियों से कई जल- धाराएँ आकर नदी में मिलती हैं।

(2) हौजों का निर्माण लगभग सभी जल धाराओं के साथ-साथ बाँध बना कर भिन्न-भिन्न आकारों के हौज बनाए गए थे। चूंकि यह प्रायद्वीप के सबसे शुष्कं क्षेत्रों में से एक था, इसलिए पानी के संचयन और इसे शहर तक ले जाने के लिए व्यापक प्रबन्ध करना आवश्यक था। यहाँ के सबसे महत्त्वपूर्ण जलाशय कमलपुरम का निर्माण पन्द्रहवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में हुआ था। इस हौज के पानी से न केवल आस-पास के खेतों को सींचा जाता था बल्कि इसे एक नहर के माध्यम से ‘राजकीय केन्द्र’ तक भी ले
जाया जाता था।

(3) हिरिया नहर – हिरिया नहर यहाँ की सबसे महत्त्वपूर्ण जल सम्बन्धी संरचना थी। इस नहर में तुंगभद्रा नदी पर बने बांध से पानी लाया जाता था और इसे ‘धार्मिक केन्द्र’ से ‘शहरी केन्द्र’ को अलग करने वाली पाटी की सिंचाई करने में प्रयुक्त किया जाता था।

(4) अन्य जल के स्रोत सामान्य नगर निवासियों के लिए कुएँ, वर्षा के पानी वाले जलाशय तथा मन्दिरों के जलाशय जल के स्रोतों का कार्य करते थे।

प्रश्न 3.
शहर के किलेबन्द क्षेत्र में कृषि क्षेत्र को रखने के आपके विचार में क्या फायदे और नुकसान थे?
उत्तर:
शहर के किलेबन्द क्षेत्र में कृषि क्षेत्र को रखने के फायदे –
(1) इससे शत्रु सेना को खाद्य सामग्री से वंचित करके उसे समर्पण के लिए बाध्य किया जा सकता था।
(2) शत्रु सेना खाद्य सामग्री को क्षति नहीं पहुँचा सकती थी।
(3) कई बार शत्रु की घेराबन्दी कई महीनों और कभी-कभी वर्षों तक जारी रहती थी ऐसी संकटपूर्ण परिस्थितियों से निपटने के लिए शासकों द्वारा किलेबन्द क्षेत्रों के अन्दर ही विशाल अन्नागारों का निर्माण करवाया जाता था।
(4) विजयनगर के शासकों ने किलेबन्द क्षेत्र में पानी पहुँचाने की उत्तम व्यवस्था की थी। इससे खेतों की सिंचाई भली प्रकार से की जा सकती थी। था।
(5) किलेबन्द कृषि क्षेत्र जंगली जानवरों से सुरक्षित शहर के किलेबन्द क्षेत्र में कृषि क्षेत्र को रखने के नुकसान –
(1) यह व्यवस्था बहुत महँगी थी तथा इसकी देखभाल के लिए बड़ी संख्या में कर्मचारियों की आवश्यकता पड़ती थी।
(2) इस व्यवस्था में किसानों को अनेक कठिनाइयों एवं असुविधाओं का सामना करना पड़ता था। शत्रु सेना द्वारा घेरावन्दी होने पर किसानों के लिए बीज, उर्वरक, यन्त्र आदि की व्यवस्था करना अत्यन्त कठिन हो जाता था।

प्रश्न 4.
आपके विचार में महानवमी डिब्बा से सम्बद्ध अनुष्ठानों का क्या महत्त्व था?
अथवा
महानवमी के डिब्बा के अवसर पर आयोजित किन्हीं दो उत्सवों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
महानवमी डिब्बा’ विजयनगर शहर के सबसे ऊंचे स्थानों में से एक पर स्थित एक विशालकाय मंच है। इसका आधार लगभग 11,000 वर्ग फीट तथा ऊँचाई 40 फीट है। साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि इस पर लकड़ी की एक संरचना बनी थी। मंच का आधार उभारदार उत्कीर्णन से परिपूर्ण है। ‘महानवमी डिब्बा’ से जुड़े अनुष्ठान सम्भवतः महानवमी से सम्बद्ध थे, जो उत्तरी भारत में दशहरा, बंगाल में दुर्गा पूजा तथा प्रायद्वीपीय भारत में नवरात्रि अथवा महानवमी के अवसर पर निष्पादित किए जाते थे। इस अवसर पर विजयनगर के शासक अपनी प्रतिष्ठा, शक्ति तथा अधिराज्य का प्रदर्शन करते थे। इस अवसर पर निम्नलिखित अनुष्ठान आयोजित किए जाते थे-

  • मूर्ति की पूजा
  • राज्य के अश्व की पूजा
  • भैंसों तथा अन्य जानवरों की बलि।

इस अवसर के प्रमुख आकर्षक थे-
(1) नृत्य
(2) कुश्ती की प्रतिस्पर्द्धा
(3) साज लगे घोड़ों, हाथियों तथा रथों और सैनिकों की शोभायात्रा
(4) प्रमुख नायकों एवं अधीनस्थ राजाओं द्वारा सम्राट और उसके अतिथियों को दी जाने वाली औपचारिक भेंट इन उत्सवों के गहन सांकेतिक अर्थ थे त्यौहार के अन्तिम दिन राजा अपनी और अपने नायकों की सेना का खुले मैदान में आयोजित भव्य समारोहों में निरीक्षण करता था। इस अवसर पर नायक राजा के लिए बड़ी मात्रा में भेंट तथा निश्चित कर भी लाते थे।

प्रश्न 5.
चित्र 7.33 विरुपाक्ष मन्दिर के एक अन्य
स्तम्भ का रेखाचित्र है। क्या आप कोई पुष्प विषयक रूपांकन देखते हैं? किन जानवरों को दिखाया गया है? आपके विचार में उन्हें क्यों चित्रित किया गया है? मानव आकृतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) रेखाचित्र में अनेक फूलदार पेड़-पौधों तथा पशु-पक्षियों का चित्रण किया गया है पशु-पक्षियों में मोर, बत्तख, घोड़ा आदि सम्मिलित हैं। उस समय मन्दिर विभिन्न प्रकार की धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के केन्द्र होते थे। पेड़-पौधों तथा पशु-पक्षियों का चित्रण सम्भवत: प्रवेशद्वार को सुन्दर और आकर्षक बनाने तथा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने हेतु किया गया था। इससे मन्दिर का निर्माण करने वाले शासकों की प्रकृति के प्रति रुचि, कलानुराग तथा धार्मिक निष्ठा का बोध होता है।

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(2) विभिन्न पशु-पक्षी, देवी-देवताओं के साथ वाहन के रूप में भी जुड़े हुए थे। इसलिए उन्हें देवी-देवताओं का वाहन मान कर पूजा जाता था।

(3) रेखाचित्र में मानव आकृतियों का भी चित्रण किया गया है। मानव आकृतियों में देवी देवता तथा संत पुरुष सम्मिलित हैं। स्तम्भ के ऊपरी भाग में एक स्त्री बैठी हुई है जिसके हाथ में फूल हैं। एक देवता के सिर पर घंटी, ताज तथा गले में मालाएँ हैं। वह अनेक प्रकार के आभूषण धारण किए हुए है। उसके एक हाथ में गदा है। एक योद्धा को शिवलिंग की पूजा करते हुए दिखाया गया हैं, इसके हाथ में धनुष है तथा वह नृत्य की मुद्रा में शिव को चल चढ़ा रहा है। निम्नलिखित पर लघु निबन्ध लिखिए (लगभग 250- 300 शब्दों में)-

प्रश्न 6.
‘शाही केन्द्र’ शब्द शहर के जिस भाग के लिए प्रयोग किए गए हैं, क्या वे उस भाग का सही वर्णन करते हैं?
उत्तर:
शाही केन्द्र:
‘शाही केन्द्र’ अथवा ‘राजकीय केन्द्र’ बस्ती के दक्षिण- पश्चिमी भाग में स्थित था।
(1) बड़ी संरचनाएँ – शाही केन्द्र’ की लगभग तीसा संरचनाओं की पहचान महलों के रूप में की गई है। ये अपेक्षाकृत बड़ी संरचनाएँ हैं जो आनुष्ठानिक कार्यों से सम्बन्धित नहीं होती थीं। इन इमारतों तथा मन्दिरों के बीच एक अन्तर यह था कि मन्दिर पूर्ण रूप से राजगिरी से बने हुए थे जबकि अन्य इमारतें नष्ट की हुई वस्तुओं से बनाई गई थीं।

(2) राजा का भवन – राजकीय केन्द्र की कुछ अधिक विशिष्ट संरचनाओं के नाम भवनों के आकार तथा उनके कार्यों के आधार पर रखे गए हैं। ‘राजा का भवन’ नामक संरचना इस क्षेत्र में सबसे विशाल है, परन्तु इसके राजकीय आवास होने का कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिला है। इसके दो सबसे प्रभावशाली मंच हैं, जिन्हें प्राय: सभा मंडप’ तथा ‘महानवमी डिब्बा’ कहा जाता है। सम्पूर्ण क्षेत्र ऊँची दोहरी दीवारों से घिरा है और इनके बीच में एक गली है।

(3) सभा मंडप सभा मंडप एक ऊँचा मंच है जिसमें पास-पास तथा निश्चित दूरी पर लकड़ी के स्तम्भों के लिए छिद्र बने हुए हैं। इसमें इन स्तम्भों पर टिकी दूसरी मंजिल तक जाने के लिए सीढ़ी बनी हुई थी।

(4) महानवमी डिब्बा महानवमी डिब्बा विजयनगर शहर के सबसे ऊँचे स्थानों में से एक पर स्थित एक विशालकाय मंच है। इसका आधार लगभग 11,000 वर्ग फीट तथा ऊँचाई 40 फीट है। प्राप्त साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि इस पर लकड़ी की एक संरचना बनी थी। मंच का आधार उभारदार उत्कीर्णनों से परिपूर्ण है।

(5) ‘महानवमी डिब्बा’ से जुड़े अनुष्ठान ‘महानवमी डिब्बा’ से जुड़े अनुष्ठान थे उत्तर भारत का दशहरा, बंगाल में दुर्गापूजन तथा प्रायद्वीपीय भारत के नवरात्रि या महानवमी।

(6) इस अवसर पर होने वाले धर्मानुष्ठान- इस अवसर पर होने वाले धर्मानुष्ठान निम्नलिखित थे-
(1) मूर्ति की पूजा
(2) राज्य के अश्व की पूजा तथा
(3) भैंसों और अन्य जानवरों की बलि।
(7) प्रमुख आकर्षण – इस अवसर के प्रमुख आकर्षण थे –
(1) नृत्य
(2) कुश्ती प्रतिस्पर्द्धा
(3) साज लगे घोड़ों, हाथियों तथा रथों और सैनिकों की शोभायात्रा
(4) प्रमुख नायकों और अधीनस्थ राजाओं द्वारा राजा और उसके अतिथियों को दी जाने वाली औपचारिक भेंट इन उत्सवों के गहन प्रतीकात्मक अर्थ थे। विद्वानों की मान्यता है कि ‘महानवमी डिब्बा’ के चारों -ओर का स्थान सशस्त्र व्यक्तियों, स्त्रियों तथा बड़ी संख्या में जानवरों की शोभायात्रा के लिए पर्याप्त नहीं था राजकीय केन्द्र में स्थित अनेक और संरचनाओं की भाँति यह भी एक पहेली बना हुआ है।

(8) ‘शाही केन्द्र’ शब्द शहर के जिस भाग के लिए प्रयोग किए गए हैं, वे उस भाग का सही वर्णन करते ‘शाही केन्द्र’ प्राय: राजमहलों, किलों, राजदरबारों और राजनीतिक गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र होता है। परन्तु इस केन्द्र में 60 से भी अधिक मन्दिर सम्मिलित थे।

प्रश्न 7.
कमल महल और हाथियों के अस्तबल जैसे भवनों का स्थापत्य हमें उनके बनवाने वाले शासकों के विषय में क्या बताता है?
उत्तर:
कमल महल का स्थापत्य:
‘कमल महल’ (लोटस महल) विजयनगर राज्य के ‘राजकीय केन्द्र’ के सबसे सुन्दर भवनों में से एक है। इसे यह नाम उन्नीसवीं शताब्दी के अंग्रेज यात्रियों ने दिया था। इतिहासकार इस सम्बन्ध में निश्चित नहीं हैं कि यह भवन किस कार्य के लिए बना था फिर भी प्रसिद्ध पुराविद् कर्नल मैकेन्जी के द्वारा बनाए गए मानचित्र से यह सुझाव मिलता है कि यह परिषदीय सदन था, जहाँ राजा अपने परामर्शदाताओं से मिलता था। ‘कमल महल’ के भग्नावशेषों से ज्ञात होता है कि यह महल अत्यन्त भव्य था और इसका स्थापत्य उच्चकोटि का था। हाथियों का अस्तबल कमल महल के निकट हाथियों का अस्तबल है।

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इसमें एक ही पंक्ति में अनेक कमरे बने हुए हैं। इस अस्तबल में बड़ी संख्या में हाथी रखे जाते थे। विजयनगर के शासक पराक्रमी और महत्त्वाकांक्षी थे। उस समय युद्धों में हाथियों का प्रयोग मुख्य रूप से किया जाता था। अतः विजयनगर के शासक हाथियों की उपयोगिता को देखते हुए हाथियों के अस्तबल बनवाते थे तथा उनकी देख-रेख पर विपुल धन खर्च करते थे। हाथियों के अस्तबल का स्थापत्य भी उच्चकोटि का था।

कमल महल और ‘हाथियों के अस्तबल’ को देखने से ज्ञात होता है कि इन इमारतों की स्थापत्यकला में इंडो- इस्लामिक शैली का प्रयोग किया गया है। विजयनगर के शासक कला-प्रेमी थे तथा उनकी स्थापत्य कला में गहरी रुचि थी। वे प्रजावत्सल शासक थे तथा उन्होंने विशाल महलों और सेना के काम में आने वाले भवनों का निर्माण करवाया। वे इनके निर्माण पर प्रचुर धन खर्च करते थे। इससे पता चलता है कि विजयनगर के शासकों की आर्थिक स्थिति अत्यन्त सुदृढ़ थी तथा वे जन-कल्याण के कार्यों, सामारिक भवनों और राजमहलों के निर्माण में रुचि लेते थे। इन इमारतों को देखने से विजयनगर के शासकों की शक्ति, प्रतिष्ठा, कलाप्रियता, स्तवा तथा अधिराज्य के बारे में जानकारी मिलती है।

प्रश्न 8.
स्थापत्य में कौन-कौनसी परम्पराओं ने विजयनगर के वास्तुविदों को प्रेरित किया? उन्होंने इन परम्पराओं में किस प्रकार बदलाव किए?
अथवा
विजयनगर की स्थापत्य कला की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
स्थापत्य की परम्पराएँ विजयनगर के शासकों ने स्थापत्य की प्रचलित परम्पराओं को अपनाया। उन्होंने उन परम्पराओं में नवीनता का समावेश किया और उन्हें विकसित किया।
स्थापत्य में नवीन तत्त्वों का समावेश- विजयनगर के शासकों ने मन्दिर स्थापत्य में निम्नलिखित तत्वों का समावेश करवाया
(1) गोपुरम – विजयनगर में विशाल स्तर पर संरचनाएँ बनाई गई जो राजकीय सत्ता की प्रतीक थीं। इनका सबसे अच्छा उदाहरण रायगोपुरम अथवा राजकीय प्रवेशद्वार थे। इनके सामने केन्द्रीय देवालयों की मीनारें बहुत ही छोटी जान पड़ती थीं ये लम्बी दूरी से ही मन्दिर के होने का संकेत दे देते थे।

(2) मंडप तथा गलियारे अन्य विशिष्ट अभिलक्षणों में मण्डप तथा लम्बे स्तम्भों वाले गलियारे सम्मिलित हैं। ये प्रायः मन्दिर परिसर में स्थित देव स्थलों के चारों ओर बने थे।

(3) विरुपाक्ष मन्दिर विरुपाक्ष मन्दिर का निर्माण कई शताब्दियों में हुआ था। मुख्य मन्दिर के सामने बना मण्डप राजा कृष्णदेव राय ने अपने सिंहासनारोहण के उपलक्ष्य में बनवाया था। इसे ऐसे स्तम्भों से सजाया गया था जो बारीकी से उत्कीर्णित थे। पूर्वी गोपुरम के निर्माण का श्रेय भी कृष्णदेव राय को ही दिया जाता है।

(4) मन्दिर के सभागारों का प्रयोग सभागारों का प्रयोग विविध प्रकार के कार्यों के लिए होता था। कुछ सभागारों में देवताओं की मूर्तियाँ संगीत, नृत्य और नाटकों के विशेष कार्यक्रमों को देखने के लिए रखी जाती थीं। अन्य सभागारों का प्रयोग देवी-देवताओं के विवाह के उत्सव पर आनन्द मनाने के लिए होता था।

(5) विठ्ठल मन्दिर – विठ्ठल मन्दिर विजयनगर राज्य का एक अन्य प्रसिद्ध मन्दिर था यहाँ के प्रमुख देवता विठ्ठल थे, जो सामान्यतः महाराष्ट्र में पूजे जाने वाले विष्णु के एक रूप हैं अन्य मन्दिरों की भाँति इस मन्दिर में भी कई सभागार तथा रथ के आकार का एक अनूठा मन्दिर भी है।

(6) हजार राम मन्दिर – विजयनगर साम्राज्य के अत्यन्त भव्य एवं विशाल मन्दिरों में हजार राम मन्दिर की गिनती की जाती है। इसकी दीवारों पर उत्कीर्ण हाथी और घोड़ों की मूर्तियाँ अत्यन्तु सुन्दर और कलात्मक हैं।

(7) रथ गलियाँ मन्दिर परिसरों की एक चारित्रिक विशेषता रथ गलियाँ हैं जो मन्दिर के गोपुरम से सीधी रेखा में जाती हैं। इन गलियों का फर्श पत्थर के टुकड़ों से बनाया गया था और इनके दोनों ओर स्तम्भ वाले मंडप थे, जिनमें व्यापारी अपनी दुकानें लगाया करते थे।

(8) किलेबन्दियाँ शहर की किलेबन्दी की गई तथा सड़कें बनाई गई। किलेबन्दी द्वारा खेतों को भी घेरा गया। दुर्ग में प्रवेश के लिए प्रवेशद्वार थे। कला इतिहासकार इस शैली को ‘इंडो-इस्लामिक’ कहते हैं क्योंकि इसका विकास विभिन्न क्षेत्रों की स्थानीय स्थापत्य की परम्पराओं के साथ सम्पर्क से हुआ।

(9) सड़कें सड़कें सामान्यतः पहाड़ी भू-भाग से बचकर घाटियों से होकर ही इधर-उधर घूमती थीं।

(10) हौज, जलाशय और नहर विजयनगर की जल आवश्यकताओं की पूर्ति का स्त्रोत तुंगभद्रा नदी द्वारा निर्मित एक प्राकृतिक कुण्ड है। नदी के आस-पास का भूदृश्य सुन्दर ग्रेनाइट की पहाड़ियों से परिपूर्ण है। लगभग सभी जलधाराओं के साथ-साथ बाँध बनाकर अलग-अलग आकारों के हौज बनाए गए। इन महत्वपूर्ण होजों में कमलपुरम जलाशय’ उल्लेखनीय हैं।

प्रश्न 9.
अध्याय के विभिन्न विवरणों से आप विजयनगर के सामान्य लोगों के जीवन की क्या छवि पाते हैं?
उत्तर:
विजयनगर के सामान्य लोगों का जीवन अध्याय के विभिन्न विवरणों से विजयनगर के सामान्य लोगों के जीवन के बारे में निम्नलिखित जानकारी मिलती
(1) आवासीय मुहल्ला यहाँ मुसलमानों का एक आवासीय मुहल्ला भी था। यहाँ स्थित मकबरों तथा मस्जिदों के विशिष्ट नमूने भी हैं। फिर भी उनकी स्थापत्य कला हम्पी में मिले मन्दिरों के मण्डपों की स्थापत्य कला से मिलती- जुलती है।

(2) सामान्य लोगों के आवास सोलहवीं शताब्दी |के पुर्तगाली यात्री बरबोसा ने सामान्य लोगों के आवास के बारे में लिखा है कि, “लोगों के अन्य आवास छप्पर के हैं, पर फिर भी सुदृद हैं, और व्यवसाय के आधार पर कई 7 खुले स्थानों वाली गलियों में व्यवस्थित हैं।”

(3) पूजा स्थल और छोटे मन्दिर क्षेत्र सर्वेक्षण से ज्ञात होता है कि इस सम्पूर्ण क्षेत्र में अनेक पूजा स्थल और छोटे मन्दिर थे जो विविध प्रकार के सम्प्रदायों से सम्बन्धित थे। ये पूजा स्थल और छोटे मन्दिर सम्भवत: विभिन्न समुदायों द्वारा संरक्षित थे।

(4) सामान्य लोगों के पानी के स्रोत सर्वेक्षणों से यह भी पता चलता है कि कुएं, वर्षा के पानी वाले जलाशय और मन्दिरों के जलाशय सम्भवतः सामान्य नगर निवासियों के लिए पानी के स्रोत का कार्य करते थे।

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(5) कृषि विजयनगर राज्य के लोगों का जीवन- निर्वाह करने का प्रमुख साधन कृषि था। यहाँ अनेक प्रकार के खाद्यानों, फलों तथा सब्जियों की खेती की जाती थी। नहरों, जलाशयों आदि से खेतों की सिंचाई की जाती थी। विजयनगर में कृषि क्षेत्रों को भी किलेबन्दी द्वारा घेरा गया था। इससे कृषक आक्रमणकारियों के आक्रमणों के भय से मुक्त होकर कृषि कार्य में संलग्न रहते थे। यहाँ गेहूँ, चावल, मकई, दाल, काले चना, जौ, सेम, मूंग, अंगूर, सन्तरे, नींबू, अनार, आम आदि की खेती की जाती थी।

(6) खान-पान यहाँ के सामान्य लोग शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों थे। ये लोग गेहूं, जौ, चावल, दूध, दही, साग-सब्जी के अतिरिक्त मांस आदि का भी सेवन करते थे। नूनिज के अनुसार यहाँ के बाजारों में मांस बड़ी मात्रा में बिकता था। ब्राह्मण मांस नहीं खाते थे। सामान्य वर्ग के पुरुष धोती, कमीज, कुर्ता, टोपी अथवा पगड़ी पहनते थे तथा कन्धे पर एक दुपट्टा डालते थे। सामान्य वर्ग की स्वियों धोती और चोली पहनती थीं।

एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर JAC Class 12 History Notes

→ विजयनगर की स्थापना- विजयनगर साम्राज्य की स्थापना चौदहवीं शताब्दी में की चरमोत्कर्ष पर यह उत्तर में कृष्णा नदी से लेकर प्रायद्वीप के सुदूर दक्षिण तक फैला हुआ था। 1565 में विजयनगर पर आक्रमण कर इसे खूब लूटा गया और बाद में यह उजड़ गया।

→ हम्पी की खोज- 1800 ई. में कर्नल कालिन मैकेन्जी नामक एक अभियन्ता तथा पुराविद ने हम्पी के भग्नावशेषों की खोज की मैकेन्जी ईस्ट इण्डिया कम्पनी में कार्यरत थे। उन्होंने इस स्थान का पहला सर्वेक्षण मानचित्र तैयार किया। 1836 से ही अभिलेखकर्त्ताओं ने यहाँ और हम्पी के अन्य मन्दिरों से कई दर्जन अभिलेखों को एकत्रित करना शुरू कर दिया था।

→ राय, नायक तथा सुल्तान – विजयनगर साम्राज्य की स्थापना दो भाइयों हरिहर तथा बुक्का द्वारा 1336 ई. में की गई थी। अपनी उत्तरी सीमाओं पर विजयनगर के शासकों ने दक्कन के सुल्तानों तथा उड़ीसा के गजपति शासक से संघर्ष किया। विजयनगर के शासक अपने आपको राय कहते थे।

→ शासक और व्यापारी-चौदहवीं से सोलहवीं सदी तक के काल में युद्धकला शक्तिशाली अश्वसेना पर आधारित होती थी, इसलिए प्रतिस्पद्ध राज्यों के लिए अरब तथा मध्य एशिया से घोड़ों का आयात बहुत महत्त्वपूर्ण था। यह व्यापार प्रारम्भ में अरब व्यापारियों द्वारा नियन्त्रित था। व्यापारियों के स्थानीय समूह भी इन विनिमयों में भाग लेते थे। 1498 में | पुर्तगाली भी व्यापारिक और सैनिक केन्द्र स्थापित करने का प्रयास करने लगे। तत्कालीन राजनीति में पुर्तगाली भी एक महत्त्वपूर्ण शक्ति बनकर उभरे। विजयनगर मसालों, वस्त्रों, रत्नों के अपने बाजारों के लिए प्रसिद्ध था। यहाँ की समृद्ध जनता रत्नों, आभूषणों आदि महंगी विदेशी वस्तुओं की माँग करती थी।

→ विजयनगर के शासक विजयनगर साम्राज्य का पहला राजवंश ‘संगम’ कहलाता था इस राजवंश ने 1485 तक शासन किया। सुलुवों ने संगम राजवंश को उखाड़ फेंका। ये सैनिक कमांडर थे। इन्होंने 1503 ई. तक शासन किया। इसके बाद तुलुव राजवंश की स्थापना हुई। कृष्णदेव राय तुलुव वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था।

→ कृष्णदेव राय – कृष्णदेव राय के शासन की प्रमुख विशेषता विजयनगर साम्राज्य का विस्तार तथा सुदृढ़ीकरण था। उसने 1512 तक तुंगभद्रा और कृष्णा नदियों के बीच के क्षेत्र रायचूर दोआब पर अधिकार कर लिया। उसने उड़ीसा के शासकों को पराजित किया और बीजापुर के सुल्तान को बुरी तरह पराजित किया। उसने अनेक भव्य मन्दिर बनवाये तथा मन्दिरों में भव्य गोपुरमों को जोड़ा। उसने नगलपुरम नामक उपनगर की स्थापना की।

→ अराविदु राजवंश – 1542 तक विजयनगर साम्राज्य में अराविदु राजवंश की सत्ता की स्थापना हुई। यह राजवंश सत्रहवीं शताब्दी के अंत तक सत्तारूढ़ बना रहा।

→ राक्षसी – तांगड़ी (तालीकोटा) का युद्ध – 1565 ई. में राक्षसी तांगड़ी (तालीकोटा) के युद्ध में बीजापुर, गोलकुण्डा, अहमदनगर की संयुक्त सेनाओं ने विजयनगर की सेनाओं को बुरी तरह पराजित किया। विजयी सेनाओं ने विजयनगर पर धावा बोलकर उसे खूब लूटा। कुछ ही वर्षों में यह शहर पूरी तरह से उजड़ गया।

→ राय तथा नायक – विजयनगर साम्राज्य में शक्ति का प्रयोग करने वालों में सेना प्रमुख होते थे, जो सामान्यतः किलों पर नियन्त्रण रखते थे तथा उनके पास सशस्त्र सैनिक होते थे ये ‘नायक’ कहलाते थे। कई नायकों ने विजयनगर के शासकों की प्रभुसत्ता के आगे समर्पण किया था, परन्तु ये अवसर पाकर विद्रोह कर देते थे तथा इन्हें सैनिक कार्यवाही के द्वारा ही अधीनता में लाया जाता था।

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→ अमर नायक प्रणाली- अमर नायक प्रणाली विजयनगर साम्राज्य की एक प्रमुख राजनीतिक खोज थी। अमर नायक सैनिक कमांडर थे जिन्हें राय (शासक) द्वारा प्रशासन के लिए राज्य क्षेत्र दिए जाते थे वे किसानों, शिल्पकर्मियों तथा व्यापारियों से भू-राजस्व तथा अन्य कर वसूल करते थे। वे राजस्व का कुछ भाग व्यक्तिगत उपयोग तथा घोड़ों और हाथियों के निर्धारित दल के रख-रखाव के लिए अपने पास रख लेते थे। अमर नायक राजा को वर्ष में एक बार भेंट भेजा करते थे और राजकीय दरबार में उपहारों के साथ स्वयं उपस्थित हुआ करते थे। राजा कभी-कभी उन्हें ‘एक 5 से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित कर उन पर अपना नियन्त्रण रखता था, परन्तु सत्रहवीं शताब्दी में इनमें से कई नायकों ने अपने स्वतन्त्र राज्य स्थापित कर लिए।

→ विजयनगर जल सम्पदा विजयनगर की भौगोलिक स्थिति के विषय में सबसे चौकाने वाला तथ्य तुंगभद्रा नदी द्वारा निर्मित एक प्राकृतिक कुंड है। यह नदी उत्तर-पूर्व दिशा में बहती है। आस-पास का भू-दृश्य सुन्दर ग्रेनाइट की पहाड़ियों से परिपूर्ण है। यहाँ लगभग सभी धाराओं के साथ-साथ बाँध बनाकर अलग-अलग आकारों के हौज बनाए गए थे।

इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण हौजों में एक का निर्माण पन्द्रहवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में हुआ जिसे आज ‘कमलपुरम जलाशय’ कहा जाता है। सबसे महत्त्वपूर्ण जल सम्बन्धी संरचनाओं में एक हिरिया नहर को आज भी देखा जा सकता है। इस नहर में तुंगभद्रा पर बने बाँध से पानी लाया जाता था और इसे ‘धार्मिक केन्द्र’ से ‘शहरी केन्द्र’ को अलग करने वाली घाटी को सिंचित करने में प्रयोग किया जाता था।

→ किलेबन्दियाँ तथा सड़कें विजयनगर की एक विशाल किलेबन्दी थी जिसे दीवारों से घेरा गया था। पन्द्रहवीं शताब्दी में फारस के शासक द्वारा कालीकट ( कोजीकोड) भेजे गए दूत अब्दुररज्जाक ने दुर्गों की सात पंक्तियों का उल्लेख किया है। इनसे न केवल शहर को बल्कि कृषि में प्रयुक्त आस-पास के क्षेत्र तथा जंगलों को भी घेरा गया था। सबसे बाहरी दीवार शहर के चारों ओर बनी पहाड़ियों को आपस में जोड़ती थी। गारे या जोड़ने के लिए किसी भी वस्तु का निर्माण में कहीं भी प्रयोग नहीं किया गया था।

इस किलेबन्दी की सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि इससे खेतों को भी घेरा गया था अब्दुररज्जाक के अनुसार “पहली, दूसरी और तीसरी दीवारों के बीच जुते हुए खेत, बगीचे तथा आवास हैं।” दूसरी किलेबन्दी नगरीय केन्द्र के आन्तरिक भाग के चारों ओर बनी हुई थी। तीसरी किलेबन्दी से शासकीय केन्द्र को घेरा गया था जिसमें महत्त्वपूर्ण इमारतों के प्रत्येक समूह को ऊँची दीवारों से घेरा गया था।

→ सुरक्षित प्रवेश द्वार दुर्ग में प्रवेश के लिए अच्छी तरह सुरक्षित प्रवेश द्वार थे, जो शहर को मुख्य सड़कों से जोड़ते थे प्रवेश द्वार विशिष्ट स्थापत्य के नमूने थे प्रवेश द्वार पर बनी मेहराब और साथ ही द्वार के ऊपर बनी गुम्बद तुर्की सुल्तानों द्वारा प्रवर्तित स्थापत्य के प्रमुख तत्त्व माने जाते हैं। कला इतिहासकार इस शैली को इंडो- इस्लामिक ( हिन्द-इस्लामी ) कहते हैं, क्योंकि इसका विकास विभिन्न क्षेत्रों की स्थानीय स्थापत्य की परम्पराओं के साथ सम्पर्क से हुआ।

→ सड़कें – सड़कें सामान्यतः पहाड़ी भू-भाग से बचकर घाटियों से होकर ही इधर-उधर घूमती थीं। सबसे महत्त्वपूर्ण सड़कों में से कई मन्दिर के प्रवेश द्वारों से आगे बढ़ी हुई थीं और इनके दोनों ओर बाजार थे।

→ शहरी केन्द्र – पुरातत्वविदों ने कुछ स्थानों में परिष्कृत चीनी मिट्टी पाई है और उनका यह सुझाव है कि सम्भव है कि इन स्थानों में धनी व्यापारी रहते होंगे। यह मुस्लिम रिहायशी मुहल्ला भी था। यहाँ स्थित मकबरों तथा मस्जिदों के विशिष्ट कार्य हैं। फिर भी उनका स्थापत्य हम्पी में मिले मन्दिरों के मण्डपों के स्थापत्य से मिलता-जुलता है। क्षेत्र सर्वेक्षण संकेत करते हैं कि इस सम्पूर्ण क्षेत्र में बहुत से पूजा स्थल और छोटे मन्दिर थे, जो विभिन्न प्रकार के सम्प्रदायों के प्रचलन की ओर संकेत करते हैं। कुएँ, बरसात के पानी वाले जलाशय और मन्दिरों के जलाशय सम्भवतः सामान्य नगर-निवासियों के पानी के स्रोत का कार्य करते थे।

→ राजकीय केन्द्र-राजकीय केन्द्र बस्ती के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित था। इस केन्द्र में 60 से भी अधिक मन्दिर सम्मिलित थे। लगभग 30 संरचनाओं की पहचान महलों के रूप में की गई है। ये अपेक्षाकृत बड़ी संरचनाएँ हैं जो आनुष्ठानिक कार्यों से सम्बन्धित नहीं थीं।

→ महानवमी डिब्बा – ‘राजा का भवन’ नामक संरचना, अन्तः क्षेत्र में सबसे विशाल है। इसके दो सबसे प्रभावशाली मंच हैं, जिन्हें सामान्यतः ‘सभामंडप’ तथा ‘महानवमी डिब्बा’ कहा जाता है। सभामंडप एक ऊँचा मंच है। जिसमें पास-पास तथा निश्चित दूरी पर लकड़ी के स्तम्भों के लिए छेद बने हुए हैं। इसमें दूसरी मंजिल तक जाने के लिए सीढ़ी बनी हुई थी।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर

शहर के सबसे ऊंचे स्थानों में से एक पर स्थित ‘महानवमी डिब्बा’ एक विशालकाय मंच है जो लगभग 11,000 वर्ग फीट के आधार से 40 फीट की ऊंचाई तक जाता है। साक्ष्यों से पता चलता है कि इस पर लकड़ी की एक संरचना बनी थी। इस संरचना से जुड़े अनुष्ठान सम्भवतः सितम्बर तथा अक्टूबर के महीनों में मनाए जाने वाले दस दिन के हिन्दू त्यौहार; जैसे- दशहरा, दुर्गापूजा, नवरात्रि या महानवमी आदि के अवसर पर निष्पादित किए जाते थे । इस अवसर पर विजयनगर के शासक अपनी शक्ति प्रभाव तथा अधिराज्य का प्रदर्शन करते थे।

→ लोटस (कमल) महल – राजकीय केन्द्र के सबसे सुन्दर भवनों में लोटस (कमल) महल है। इसका यह नामकरण उन्नीसवीं शताब्दी के अंग्रेज यात्रियों ने किया था। मैकेन्जी के अनुसार यह भवन परिषदीय सदन था, जहाँ राजा अपने परामर्शदाताओं से मिलता था।

→ राजकीय केन्द्र में मन्दिर – यद्यपि अधिकांश मन्दिर धार्मिक केन्द्र में स्थित थे, परन्तु राजकीय केन्द्र में भी कई मन्दिर स्थित थे। इनमें ‘हजारराम मन्दिर’ अत्यन्त भव्य एवं दर्शनीय है। सम्भवतः इसका प्रयोग केवल राजा और उनके परिवार द्वारा किया जाता था। इसकी दीवारों पर बनाई गई पटल मूर्तियाँ सुरक्षित हैं। इनमें मन्दिर की आन्तरिक दीवारों पर उत्कीर्णित रामायण से लिए गए कुछ दृश्यांश सम्मिलित हैं।

→ धार्मिक केन्द्र तुंगभद्रा नदी के तट से लगा विजयनगर शहर का उत्तरी भाग पहाड़ी है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार ये पहाड़ियाँ रामायण में उल्लिखित बाली और सुग्रीव के वानर राज्य की रक्षा करती थीं। कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार स्थानीय मातृदेवी पम्पा देवी ने इन पहाड़ियों में विरुपाक्ष नामक देवता से विवाह के लिए तप किया था। विरुपाक्ष राज्य के संरक्षक देवता थे तथा शिव का एक रूप माने जाते थे।

→ धार्मिक केन्द्र में मन्दिर निर्माण धार्मिक क्षेत्र में मन्दिर निर्माण का एक लम्बा इतिहास रहा है। सामान्यतः शासक अपने आपको ईश्वर से जोड़ने के लिए मन्दिर निर्माण को प्रोत्साहन देते थे। मन्दिर शिक्षा के केन्द्रों के रूप में भी कार्य करते थे । मन्दिर महत्त्वपूर्ण धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक केन्द्रों के रूप में विकसित हुए ।

→ विजयनगर के स्थान का चयन- यह सम्भव है कि विजयनगर के स्थान का चयन वहाँ विरुपाक्ष तथा पम्पा देवी के मन्दिरों के अस्तित्व से प्रेरित था । विजयनगर के शासक भगवान् विरुपाक्ष की ओर से शासन करने का दावा करते थे। सभी राजकीय आदेशों पर प्रायः कन्नड़ लिपि में श्री विरुपाक्ष’ शब्द अंकित होता था। शासक देवताओं से अपने घनिष्ठ सम्बन्धों के प्रतीक के रूप में ‘हिन्दू सूरतराणा’ विरुद का प्रयोग करते थे। इसका शाब्दिक अर्थ हैं – ‘हिन्दू सुल्तान’

→ ‘गोपुरम’ और ‘मण्डप’ – राय गोपुरम अथवा राजकीय प्रवेशद्वार राजकीय सत्ता की प्रतीक संरचनाएँ थीं। ये प्रायः केन्द्रीय देवालयों की मीनारों को बौना प्रतीत कराते थे और लम्बी दूरी से ही मन्दिर के होने का संकेत देते थे। ये सम्भवतः शासकों की शक्ति की याद भी दिलाते थे जो इतनी ऊँची मीनारों के निर्माण के लिए आवश्यक साधन, तकनीक तथा कौशल जुटाने में सक्षम थे। अन्य विशिष्ट संरचनाओं में मण्डप तथा लम्बे स्तम्भों वाले गलियारे उल्लेखनीय थे। ये प्रायः मन्दिर परिसर में स्थित देवालयों के चारों ओर बने थे।

→ विरुपाक्ष मन्दिर – विरुपाक्ष मन्दिर का निर्माण कई शताब्दियों में हुआ था। मुख्य मन्दिर के सामने बना मण्डप राजा कृष्णदेव राय ने अपने राज्यारोहण के उपलक्ष्य में बनवाया था। इसे बारीकी से उत्कीर्णित स्तम्भों से सजाया गया था। कृष्णदेव राय को ही पूर्वी गोपुरम के निर्माण का श्रेय दिया जाता है। मन्दिर के सभागारों का प्रयोग विविध प्रकार के कार्यों के लिए होता था। इनमें से कुछ ऐसे थे जिनमें देवताओं की मूर्तियाँ संगीत, नृत्य और नाटकों के विशेष कार्यक्रमों को देखने के लिए रखी जाती थीं।

→ विट्ठल मन्दिर – यहाँ के प्रमुख देवता विट्ठल थे, जो सामान्यतः महाराष्ट्र में पूजे जाने वाले विष्णु के एक रूप हैं। अन्य मन्दिरों की भाँति इस मन्दिर में भी कई सभागार तथा रथ के आकार का एक अनूठा मन्दिर भी है। मन्दिर परिसरों की एक चारित्रिक विशेषता रथ गलियाँ हैं जो मन्दिर के गोपुरम से सीधी रेखा में जाती हैं। इन गलियों का फर्श पत्थर के टुकड़ों से बनाया गया था और इसके दोनों ओर स्तम्भ वाले मण्डप थे, जिनमें व्यापारी अपनी दुकानें लगाया करते थे।

JAC Class 12 History Solutions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर

→ महलों, मन्दिरों तथा बाजारों का अंकन 1986 में हम्पी को राष्ट्रीय महत्त्व के स्थल के रूप में मान्यता मिली, इसके बाद 1980 के दशक के आरम्भ में विविध प्रकार के अभिलेखन प्रयोग से व्यापक तथा गहन सर्वेक्षणों के माध्यम से, विजयनगर से मिले भौतिक अवशेषों के सूक्ष्मता से प्रलेखन की एक महत्त्वपूर्ण परियोजना का शुभारम्भ किया गया। लगभग 20 वर्षों के काल में सम्पूर्ण विश्व के दर्जनों विद्वानों ने इस जानकारी को इकट्ठा और संरक्षित करने का कार्य किया। इन सर्वेक्षणों से हजारों संरचनाओं के अंशों—छोटे देवस्थानों और आवासों से लेकर विशाल मन्दिरों तक को पुनः उजागर किया गया।

उनका प्रलेखन भी किया गया। जॉन एम. फ्रिट्ज, जार्ज मिशेल तथा एम.एस. नागराज ने लिखा है कि, “विजयनगर के स्मारकों के उसके अध्ययन में हमें नष्ट हो चुकी लकड़ी की वस्तुओं-स्तम्भ, टेक (ब्रेकेट), धरन, भीतरी छत, लटकते हुए छज्जों के अन्दरुनी भाग तथा मीनारों की एक पूरी श्रेणी की कल्पना करनी पड़ती है, जो प्लास्टर से सजाए और सम्भवतः चटकीले रंगों से चित्रित थे।” यद्यपि लकड़ी की संरचनाएँ अब नहीं हैं और केवल पत्थर की संरचनाएँ अस्तित्व में हैं। यात्रियों द्वारा छोड़े गए विवरण तत्कालीन गतिशील जीवन के कुछ आयामों को पुनर्निर्मित करने में सहायक हुए हैं।

→ पेस द्वारा कृष्णदेव राय का वर्णन पेस ने कृष्णदेव राय का वर्णन करते हुए लिखा है कि, “मझला कद, गोरा रंग और अच्छी काठी, कुछ मोटा, राजा के चेहरे पर चेचक के दाग हैं।”

कालरेखा 1

महत्त्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन

लगभग 1200-1300 ईसवी दिल्ली सल्तनत की स्थापना (1206)
लगभग 1300-1400 ईसवी विजयनगर साम्राज्य की स्थापना (1336); बहमनी राज्य की स्थापना (1347); जौनपुर, कश्मीर और मदुरई में सल्तनतें
लगभाग 1400-1500 ईसवी उड़ीसा के गजपति राज्य की स्थापना (1435); गुजरात और मालबा की सल्तनतों की स्थापना; अहमदाबाद, बीजापुर तथा बरार सल्तनतों का उदय (1490)
लगभग 1500-1600 ईसवी पुर्तगालियों द्वारा गोवा पर विजय (1510); बहमनी राज्य का विनाश; गोलकुंडा की सल्थनत का उदय (1518); बाबर द्वारा मुगल साप्राज्य की स्थापना (1526)

 

कालरेखा 2

विज्ययगगर की खोज व संरक्षण की मुखय घटनाएँ

1800 कॉलिन मैकेन्जी द्वारा विजयनगर की यात्रा
1856 अलेक्जैंडर ग्रनिलो द्वारा हम्पी के पुरातात्विक अवशेषों के पहले विस्तृत चित्र लेना
1876 पुरास्थल की मन्दिर की दीवारों के अभिलेखों का जे.एफ. फ्लीट द्वारा प्रलेखन आरम्भ
1902 जॉन मार्शल के अधीन संरक्षण कार्य आरम्भ
1986 हम्पी को यूनेस्को द्वारा ‘विश्व पुरातत्व स्थल’ घोषित किया जाना

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-रूपांतरण

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Vyakaran रचना के आधार पर वाक्य-रूपांतरण Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10 Hindi Vyakaran रचना के आधार पर वाक्य-रूपांतरण

प्रश्न 1.
वाक्य किसे कहते हैं?
उत्तर :
एक विचार को पूर्णता से प्रकट करने वाले सार्थक शब्द-समूह को वाक्य कहते हैं।
जैसे – अशोक पुस्तक पढ़ता है। राम दिल्ली गया। एक वाक्य में कम-से-कम दो शब्द-कर्ता और क्रिया अवश्य होने चाहिए लेकिन वार्तालाप की स्थिति में कभी एक शब्द भी पूरे वाक्य का काम कर जाता है।
जैसे – आप कहाँ गए थे?
दिल्ली!
बीमार कौन है ?
माता जी।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-रूपांतरण 1

प्रश्न 2.
रचना के आधार पर वाक्य कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
रचना के आधार पर वाक्य तीन प्रकार के सरल वाक्य, संयुक्त वाक्य और मिश्र वाक्य होते हैं।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-रूपांतरण

प्रश्न 3.
सरल वाक्य किसे कहते हैं ?
उत्तर :
सरल वाक्य स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त होने वाला उपवाक्य है। इसमें एक उद्देश्य, एक विधेय और एक ही समापिका क्रिया होती है। इसमें कर्ता, कर्म, पूरक, क्रिया और क्रिया-विशेषण में से कुछ घटकों का प्रयोग होता है। जैसे –

  • नकुल हँसता है।
  • रजत रुचि का छोटा भाई है।
  • आप क्या लेंगे?
  • बालक खेलता है।
  • राधा धीरे-धीरे चल रही है।
  • परिश्रम करने वाले विद्यार्थी सदा सफल रहते हैं।

प्रश्न 4.
संयुक्त वाक्य किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिस वाक्य में दो या दो से अधिक उपवाक्य स्वतंत्र रूप में समुच्चय बोधक अथवा योजक द्वारा जुड़े हुए हों, उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं। जैसे-अशोक पुस्तक पढ़ता है, परंतु शीला नहीं पढ़ती।

  • आशीष पुस्तक पढ़ता है और शीला लेख लिख रही है।
  • आप चाय पीएँगे या आप के लिए ठंडा लाऊँ ।
  • हम लोग घूमने गए और वहाँ चार दिन रहे।
  • चुपचाप बैठो या यहाँ से चले जाओ।
  • सत्य बोलो परंतु कटु सत्य मत बोलो।
  • मोहन बीमार है अतः आने में असमर्थ है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-रूपांतरण

प्रश्न 5.
मिश्र वाक्य किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिस वाक्य में एक प्रधान उपवाक्य हो और एक या अधिक आश्रित उपवाक्य हों, उसे मिश्र वाक्य कहा जाता है। मिश्र वाक्य में उपवाक्य परस्पर व्याधिकरण योजकों जैसे कि, यदि, अगर, तो, तथापि, यद्यपि, इसलिए आदि से जुड़े होते हैं। जैसे-खाने-पीने का मतलब है कि मनुष्य स्वस्थ बने।
खाने-पीने का मतलब है-स्वतंत्र या प्रधान उपवाक्य।
कि-समुच्चयबोधक या योजक।
मनुष्य स्वस्थ बने-आश्रित उपवाक्य।
जब बाघ और शिकारी घात लगाकर निकलते हैं तब उनकी शक्ल देखने लायक होती है।
जो अपने वचन का पालन नहीं करता, वह विश्वास खो बैठता है।
रुचि ने कहा कि वह चंडीगढ़ जा रही है।
जहाँ-जहाँ हम गए, हमारा सत्कार हुआ।
मैं आपके पास आ रहा हूँ, जिससे कुछ योजना बन सके।

मिश्र वाक्य में आने वाले आश्रित वाक्य तीन प्रकार के होते हैं –

संज्ञा उपवाक्य – मुख्य अथवा प्रधान उपवाक्य की किसी संज्ञा या संज्ञा पदबंध के बदले आने वाला उपवाक्य संज्ञा उपवाक्य कहलाता है। जैसे-राकेश बोला कि मैं लखनऊ जा रहा हूँ। यहाँ ‘मैं लखनऊ जा रहा हूँ’ उपवाक्य, प्रधान वाक्य ‘राकेश बोला’ क्रिया के कर्म के रूप में प्रयुक्त हुआ है। अतः यह संज्ञा उपवाक्य है।
मेरे जीवन का मूल उद्देश्य है कि मैं विद्या प्राप्त करूँ।
संज्ञा वाक्य के आरंभ में ‘कि’ योजक का प्रयोग होता है।

विशेषण उपवाक्य – मुख्य या प्रधान उपवाक्य के किसी संज्ञा या सर्वनाम शब्द की विशेषता बताने वाला उपवाक्य विशेषण उपवाक्य कहलाता है।

मैंने एक भिखारी देखा जो बहुत भूखा-प्यासा था।
जो व्यक्ति सच्चरित्र होता है, उसे सभी चाहते हैं।

क्रिया – विशेषण उपवाक्य – मुख्य अथवा प्रधान उपवाक्य की क्रिया के संबंध में किसी प्रकार की सूचना देने वाला उपवाक्य क्रिया-विशेषण उपवाक्य कहा जाता है। क्रिया-विशेषण उपवाक्य पाँच प्रकार के होते हैं –

(i) कालवाची उपवाक्य –
ज्योंही मैं स्टेशन पहुंचा, त्योंही गाड़ी ने सीटी बजाई।
जब पानी बरस रहा था, तब मैं घर के भीतर था।

(ii) स्थानवाची उपवाक्य –
जहाँ तुम पढ़ते थे वहीं मैं पढ़ता था।
जिधर तुम जा रहे हो, उधर आगे रास्ता बंद है।

(iii) रीतिवाची उपवाक्य –
मैंने वैसे ही किया है जैसे आपने बताया था।
वह उसी प्रकार खेलता है जैसा उसके कोच सिखाते हैं।

(iv) परिमाणवाची उपवाक्य –
जैसे-जैसे आमदनी बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे महँगाई बढ़ती जाती है।
तुम जितना पढ़ोगे उतना ही तुम्हारा लाभ होगा।

(v) परिमाणवाची (कार्य-कारिणी) उपवाक्य –
वह जाएगा ज़रूर क्योंकि उसका साक्षात्कार है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-रूपांतरण

प्रश्न 6.
कोष्ठक में दिए गए निर्देशों के अनुसार वाक्यों में उचित परिवर्तन कीजिए –
(क) रमा को पुस्तक खरीदनी थी, इसलिए बाज़ार गई। (सरल वाक्य)
(ख) कल फूलपुर में मेला है और हम वहाँ जाएँगे। (सरल वाक्य)
(ग) झाड़ियों के पीछे छिपकर बैठी बिल्ली कुत्ते के जाने की प्रतीक्षा करने लगी। (संयुक्त वाक्य)
(घ) आओ अंदर बैठकर देर तक बातें करें। (संयुक्त वाक्य)
(ङ) सुबह पहली बस पकड़ो और शाम तक लौट आओ। (सरल वाक्य)
(च) मैंने उस व्यक्ति को देखा जो पीड़ा से कराह रहा था। (सरल वाक्य)
(छ) उसने नौकरी के लिए प्रार्थना-पत्र लिखा। (मिश्र वाक्य)
(ज) दिन-रात मेहनत करने वालों को सोच-समझकर खर्च करना चाहिए। (मिश्र वाक्य)
(झ) मैंने उस बच्चे को देखा जो स्कूटर चला रहा था। (सरल वाक्य)
(ब) वहाँ एक गाँव था। वह गाँव बहुत बड़ा था। वह गाँव चारों ओर जंगल से घिरा था। उस गाँव में आदिवासियों के परिवार रहते थे। (सरल वाक्य)
(ट) मज़दूर खूब मेहनत करता है परंतु उसे उसका लाभ नहीं मिलता। (सरल वाक्य)
(ठ) मैंने एक दुबले-पतले व्यक्ति को भीख माँगते देखा। (मिश्र वाक्य)
(ड) जो व्यक्ति परिश्रम करते हैं, उन्हें अधिक समय तक निराश नहीं होना पड़ता। (सरल वाक्य)
(ढ) मेरा विचार है कि आज घूमने चलें। (सरल वाक्य)
(ण) मैंने उसे पढ़ाकर नौकरी दिलाई। (संयुक्त वाक्य)
(त) वह फल खरीदने के लिए बाजार गया। (मिश्र वाक्य)
(थ) तुम बस रुकने के स्थान पर चले जाओ। (मिश्र वाक्य)
(द) शशि गा रही है और नाच रही है। (सरल वाक्य)
(ध) अध्यापक अपने शिष्यों को अच्छा बनाना चाहता है। (मिश्र वाक्य)
(न) बालिकाएँ गा रही हैं और नाच रही हैं। (सरल वाक्य)
उत्तर :
(क) रमा पुस्तकें खरीदने के लिए बाज़ार गई।
(ख) कल हम फूलपुर के मेले में जाएँगे।
(ग) बिल्ली झाड़ियों के पीछे छिपकर बैठ गई और कुत्ते के जाने की प्रतीक्षा करने लगी।
(घ) आओ अंदर बैठे और देर तक बातें करें।
(ङ) सुबह पहली बस पकड़कर शाम तक लौट आओ।
(च) मैंने पीड़ा से कराहते उस व्यक्ति को देखा।
(छ) उसने प्रार्थना-पत्र लिखा जो नौकरी के लिए था।
(ज) जो दिन-रात मेहनत करते हैं, उन्हें सोच-समझकर खर्च करना चाहिए।
(झ) मैंने स्कूटर चला रहे बच्चे को देखा।
(अ) चारों ओर जंगल से घिरे उस बहुत बड़े गाँव में आदिवासियों के परिवार रहते थे।
(ट) मजदूर को खूब मेहनत करने पर भी उसका लाभ नहीं मिलता।
(ठ) मैंने एक व्यक्ति को भीख माँगते देखा जो दुबला-पतला था।
(ड) परिश्रमी व्यक्तियों को अधिक समय तक निराश नहीं होना पड़ता।
या
परिश्रम करने वाले व्यक्तियों को अधिक समय तक निराश नहीं होना पड़ता।
(ढ) मेरे विचार में आज घूमने चलें; या मेरा विचार घूमने के लिए चलने का है।
(ण) मैंने उसे पढ़ाया और नौकरी दिलवाई।
(त) वह बाजार गया क्योंकि उसे फल खरीदने थे।
(थ) तुम उस स्थान पर चले जाओ जहाँ बस रुकती है।
(द) शशि नाच-गा रही है।
(ध) अध्यापक चाहते हैं कि उसके शिष्य अच्छे बनें।
(न) बालिकाएँ नाच-गा रही हैं।

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प्रश्न 7.
वाक्य रूपांतरण किसे कहते हैं ?
उत्तर :
सरल वाक्य को संयुक्त एवं मिश्र बनाना, संयुक्त को सरल एवं मिश्र बनाना रूपांतरण कहलाता है। जैसे –
(i) सरल से मिश्र और संयुक्त वाक्य बनाना –
सरल – बारिश में बच्चे भीग रहे हैं। मिश्र-क्योंकि बारिश हो रही है, इसलिए बच्चे उसमें भीग रहे हैं।
संयुक्त – बारिश हो रही है और बच्चे उसमें भीग रहे हैं।

(ii) मिश्र से सरल वाक्य बनाना –
मिश्र – जब तक मोहन घर पहुँचा तब तक उसके पिता चल चुके थे।
सरल – मोहन के घर पहुँचने से पूर्व उसके पिता चल चुके थे।

(ii) मिश्र से सरल और संयुक्त वाक्य बनाना
मिश्र – मैंने एक आदमी देखा जो बहुत बीमार था।
सरल – मैंने एक बहुत बीमार आदमी देखा।
संयुक्त – मैंने एक आदमी देखा और वह बहुत बीमार था।

(iv) संयुक्त से सरल और मिश्र वाक्य बनाना
संयुक्त – मोहन बहुत खिलाड़ी है लेकिन फेल कभी नहीं होता।
सरल – मोहन बहुत खिलाड़ी होने पर भी फेल कभी नहीं होता।
मिश्र – यद्यपि मोहन बहुत खिलाड़ी है तथापि फेल कभी नहीं होता।

(v) सरल वाक्यों से एक मिश्र वाक्य बनाना –
सरल – पुस्तक में एक कठिन प्रश्न था। कक्षा में उस प्रश्न को कोई भी हल नहीं कर सका। मैंने उस प्रश्न को हल कर दिया।
मिश्र – पुस्तक के जिस कठिन प्रश्न को कक्षा में कोई भी हल नहीं कर सका मैंने उसे हल कर दिया है।

(vi) सरल वाक्यों से संयुक्त और मिश्र वाक्य बनाना –
सरल वाक्य – इस वर्ष हमारे विद्यालय में बहुत-से वक्ता पधारे। कुछ वक्ता धर्म पर बोले। कुछ वक्ता साहित्य पर बोले। कुछ वक्ता वैज्ञानिक विषयों पर बोले।
संयुक्त वाक्य में रूपांतरण – इस वर्ष हमारे विद्यालय में पधारने वाले बहुत-से वक्ताओं में से कुछ धर्म पर, कुछ साहित्य पर और कुछ वैज्ञानिक विषयों पर बोले।
मिश्र वाक्य में रूपांतरण – इस वर्ष हमारे विद्यालय में जो बहुत-से वक्ता पधारे उनमें से कुछ धर्म पर, कुछ साहित्य पर और कुछ वैज्ञानिक विषयों पर बोले।

(vii) वाच्य की दृष्टि से रूपांतरण-राम नहीं खाता। = राम से नहीं खाया जाता।

(viii) सकर्मक से अकर्मक में रूपांतरण-मोहन पेड़ काट रहा है। = मोहन से पेड़ कट रहा है।

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प्रश्न 8.
कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार बदलिए –
1. बालिकाएँ नाच रही हैं और गा रही हैं। (सरल वाक्य में)
2. अध्यापक अपने शिष्यों को अच्छा बनाना चाहता है। (मिश्र वाक्य में)
3. मैंने एक बहुत मोटा व्यक्ति देखा। (मिश्र वाक्य में)
4. मैं बाज़ार जाऊँगा और कपड़े खरीदूंगा। (सरल वाक्य में)
5. आप खूब परिश्रम करते हैं और अच्छे अंक प्राप्त करते हैं। (सरल वाक्य में)
6. मेरा निर्णय आज मौन रहने का है। (मिश्र वाक्य में)
7. शाहनी ने दुपट्टे से सिर ढका। हवेली को अंतिम बार देखा। (सरल वाक्य में)
8. शाहनी ने हिचकियों को रोका और रूंधे गले से कहा। (सरल वाक्य में)
9. चातक थोड़ी देर चुप रहकर बोला। (संयुक्त वाक्य में)
10. मैंने गौरा को देखा और उसे पालने का निश्चय किया। (सरल वाक्य में)
11. मैंने एक व्यक्ति देखा। वह बहुत ग़रीब था। (मिश्र वाक्य में)
12. बच्चा भूखा था। वह रोने लगा। माँ ने उसे गोद में ले लिया। (मिश्र वाक्य में)
13. मोहन कल यहाँ आया। उसने राम से बात की। वह चला गया। (संयुक्त वाक्य में)
14. मैंने एक व्यक्ति देखा। वह बहुत दुबला-पतला था। (मिश्र वाक्य में)
15. सड़क पार करता हुआ एक व्यक्ति बस से टकराकर मर गया। (मिश्र वाक्य में)
16. यही वह बच्चा है, जिसे बैल ने मारा था। (सरल वाक्य में)
17. रमेश जा रहा था। लता हँस रही थी। (मिश्र वाक्य में)
उत्तर :
1. बालिकाएँ नाच और गा रही हैं।
2. अध्यापक चाहता है कि उसके शिष्य अच्छे बनें।
3. मैंने एक व्यक्ति देखा, जो बहुत मोटा था।
4. मैं बाज़ार जाकर कपड़े खरीदूंगा।
5. आप खूब परिश्रम कर अच्छे अंक प्राप्त करते हैं।
6. मेरा निर्णय है कि मैं आज मौन रहूँ।
7. शाहनी ने दुपट्टे से सिर ढककर हवेली को अंतिम बार देखा।
8. शाहनी ने हिचकियों को रोक कर रुंधे गले से कहा।
9. चातक थोड़ी देर चुप रहा और बोला।
10. मैंने गौरा को देखकर, उसे पालने का निश्चय कर लिया।
11. मैंने एक व्यक्ति देखा, जो बहुत ग़रीब था।
12. क्योंकि बच्चा भूख से रो रहा था, इसलिए माँ ने उसे गोद में ले लिया।
13. मोहन ने कल यहाँ आकर राम से बात की और चला गया।
14. मैंने एक व्यक्ति देखा, जो बहुत दुबला-पतला था।
15. जो व्यक्ति सड़क पार कर रहा था, वह बस से टकराकर मर गया।
16. इस बच्चे को बैल ने मारा था।
17. रमेश गा रहा था तो लता हँस रही थी।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-रूपांतरण

प्रश्न 9.
नीचे लिखे वाक्यों का निर्देशानुसार रूपांतरण कीजिए –

  1. जापान में चाय पीने की एक विधि है जिसे ‘चा-नो-यू’ कहते हैं। (सरल वाक्य में)
  2. तताँरा को देखते ही वामीरो फूट-फूट कर रोने लगी। (मिश्र वाक्य में)
  3. तताँरा की व्याकुल आँखें वामीरो को ढूँढ़ने में व्यस्त थीं। (संयुक्त वाक्य में)

उत्तर :

  1. जापान में चाय पीने की एक विधि को ‘चा-नो-यू’ कहते हैं।
  2. जैसे ही वामीरो ने तताँरा को देखा वैसे ही वह फूट-फूट कर रोने लगी।
  3. तताँरा की आँखें व्याकुल थीं और वे वामीरो को ढूंढने में व्यस्त थीं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला

JAC Class 9 Hindi कैदी और कोकिला Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कोयल की कूक सुनकर कवि की क्या प्रतिक्रिया थी ?
उत्तर :
आधी रात के गहरे अँधेरे में कोयल की कूक सुनकर कवि जानना चाहता था कि वह क्यों कूक रही है ? उसे क्या कष्ट है ? वह किसका संदेश देना चाहती है ? कवि स्वयं तो कारावास की पीड़ा झेलने के कारण आधी रात तक जागने के लिए विवश था, पर वह जानना चाहता था कि कोयल के लिए ऐसी कौन-सी विवशता है ?

प्रश्न 2.
कवि ने कोकिल के बोलने के किन कारणों की संभावना बताई ?
उत्तर :
कवि ने कोकिल के बोलने का कारण यह बताया कि वह किसी पीड़ा के बोझ से दबी हुई है, जिसे वह अपने भीतर सहेजकर नहीं रख सकती। उसने गुलामी व अत्याचार की आग की भयंकर लपटों को देखा है या उसे भी सारा देश एक कारागार के रूप में दिखाई देने लगा है।

प्रश्न 3.
किस शासन की तुलना तम के प्रभाव से की गई और क्यों ?
उत्तर :
कवि ने अंग्रेज़ी शासन की तुलना तम अर्थात अंधकार के प्रभाव से की है। अंधकार निराशा का प्रतीक है; दुखों का आधार है। अंग्रेजी शासन ने भारतवासियों के हृदय में निराशा का अंधकार भर दिया था। देशभक्तों को दुखों के अतिरिक्त कुछ नहीं दिया था।

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प्रश्न 4.
कविता के आधार पर पराधीन भारत की जेलों में दी जाने वाली यंत्रणाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
पराधीन भारत की जेलों में अंग्रेज़ी शासन ने भयंकर यंत्रणाओं का प्रबंध किया था, ताकि देशभक्त उनसे भयभीत हो जाएँ तथा अपने उद्देश्य से पीछे हट जाएँ। जेलों में कैदियों की छाती पर बैलों की तरह फीता लगाकर चूना आदि पिसवाया जाता था; पेट से बाँधकर हल जुतवाया जाता था; कोल्हू चलवाकर तेल निकलवाया जाता था; ईंटों और पत्थरों की गिट्टियाँ तुड़वाई जाती थीं; उन्हें भूखा-प्यासा रखा जाता था; उनके हँसने- रोने पर भी रोक थी। वे अपने हृदय के भावों को प्रकट नहीं कर सकते थे।

प्रश्न 5.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) मृदुल वैभव की रखवाली-सी, कोकिल बोलो तो!
(ख) हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ, खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कुँआ।
उत्तर :
(क) कवि कोयल से जानना चाहता है कि वह रात के अंधकार में अचानक क्यों कूक पड़ी। वह तो प्रकृति के कोमल सौंदर्य रूपी वैभव की रक्षा करती है। उसे अचानक क्या हो गया कि आधी रात को ऊँचे स्वर में कूक उठी।
(ख) कवि ने अंग्रेजी शासनकाल में जेलों में ढाए जाने वाले अत्याचारों का उल्लेख करते हुए कहा है कि उसे पेट पर फीता बाँधकर पशुओं की तरह कोल्हू चलाना पड़ता है, पर ऐसा करके भी वह अंग्रेज सरकार की अकड़ को तोड़ता है।

प्रश्न 6.
अर्ध रात्रि में कोयल की चीख से कवि को क्या अंदेशा है ?
उत्तर :
अर्ध रात्रि में कोयल की चीख से कवि को अंदेशा है कि या तो वह पागल हो गई है या उसने जंगल की आग की विनाशकारी ज्वालाओं को देख लिया है।

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प्रश्न 7.
कवि को कोयल से ईर्ष्या क्यों हो रही है ?
उत्तर :
कवि को कोयल से ईर्ष्या हो रही है, क्योंकि कवि के अनुसार कोयल को हरे-भरे पेड़ों पर रहने का अवसर मिलता है, जबकि वह दस फुट की अँधेरी कोठरी में रह रहा है। वह सारे आकाश में उड़ने के लिए स्वतंत्र है, जबकि कवि के पास काल कोठरी का सीमित स्थान है। कोयल का कूकना मधुर गीत कहलाता है, जबकि कवि का रोना भी गुनाह माना जाता है।

प्रश्न 8.
कवि के स्मृति – पटल पर कोयल के गीतों की कौन-सी मधुर स्मृतियाँ अंकित हैं, जिन्हें वह अब नष्ट करने पर तुली है ?
उत्तर :
कवि के स्मृति – पटल पर कोयल के गीतों की अनेक मधुर स्मृतियाँ अंकित हैं। वह हर रोज़ सुबह-सवेरे कूककर लोगों को नींद से जगाती थी; उन्हें कर्मक्षेत्र की ओर प्रवृत्त करती थी। सुबह-सवेरे जब घास के तिनकों पर सूर्य की किरणें टकराती थीं, तो ओस की बूँदें जगमगा उठती थीं; तब विंध्य पर्वत के झरनों और पर्वतों पर उसकी कूक के मधुर गीत बिखर जाते थे।

प्रश्न 9.
हथकड़ियों को गहना क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
देश की स्वतंत्रता के लिए प्रयासरत देशभक्तों को हथकड़ियों में जकड़ दिया गया था, जो उनके लिए गहने के समान थे। वे उन्हें सदा याद करबाती थीं कि जिस प्रकार वे बँधे हुए हैं, उसी प्रकार सारा देश गुलामी के बंधनों में जकड़ा हुआ है। इससे उनके मन में देश भक्ति का भाव बढ़ता था। उन्हें हथकड़ियाँ अपना गहना लगती थीं, वही उनका श्रृंगार थीं।

प्रश्न 10.
‘काली तू … ऐ आली!’ – इन पंक्तियों में ‘काली’ शब्द की आवृत्ति से उत्पन्न चमत्कार का विवेचन कीजिए।
उत्तर :
कवि ने अपनी पंक्तियों में ‘काली’ विशेषण का प्रयोग अति सुंदर ढंग से चमत्कार उत्पन्न करने के लिए किया है। कोयल का रंग काला है, तो रात भी काली है। रात के कालेपन में निराशा और पीड़ा का भाव भी छिपा हुआ है। अंग्रेज़ी शासन की काली करतूत के कारण ही देशभक्तों को चोर-लुटेरों के साथ काली काल कोठरियों में बंद किया गया था। सारे देश को उन्होंने अपने काले कार्यों से ही गुलाम बना रखा था।

अंग्रेजी राज्य की काली वैचारिक लहरें और उनकी काली कल्पनाएँ हमारे देश के लिए भयावह थीं। कवि की काल कोठरी भी काली थी; उसकी टोपी काली थी और ओढ़ा जाने वाला कंबल भी काला था। उसको बाँधी गई लोहे की जंजीरें भी काली थीं। पहरे के लिए अंग्रेज़ों के द्वारा नियुक्त पहरेदार भी सर्पिणी के समान काली प्रवृत्ति से युक्त थे, जो दिन-रात गालियाँ देते रहते थे। कवि ने ‘काली’ शब्द से चमत्कार की सृष्टि करने में पूर्ण सफलता पाने के साथ-साथ अपने परिवेश को चित्रात्मकता के गुण से प्रकट करने में सफलता प्राप्त की है।

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प्रश्न 11.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) किस दावानल की ज्वालाएँ हैं दीखीं ?
(ख) तेरे गीत कहावें वाह, रोना भी है मुझे गुनाह !
देख विषमता तेरी-मेरी, बजा रही तिस पर रणभेरी!
उत्तर :
(क) काली कोयल अँधेरी काली रात में कूक उठी। कवि जानना चाहता है कि उसने किस जंगल में लगी आग की लपटों को देख लिया? सारा देश अंग्रेजों के द्वारा दी जाने वाली गुलामी रूपी आग में झुलस ही रहा है। क्या उसका प्रभाव जंगल के प्राणियों पर भी कपड़ा है या सारा देश ही कारावास बन चुका है ? प्रश्न-शैली का प्रयोग कवि के कथन को प्रभावात्मकता देने में सफल हुआ है। तत्सम शब्दों का प्रयोग सहज है। अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है। प्रतीक योजना विद्यमान है।

(ख) कवि कोयल से कहता है कि जब वह गाती है, तो उसकी प्रशंसा की जाती है; पर जेल में उसका रोना भी गुनाह माना जाता है। दोनों की स्थिति में बड़ा अंतर है। इस पर भी देश की स्वतंत्रता के लिए बजाई जाने वाली रणभेरी रूपी प्रयत्न निरंतर चल रहे हैं। अंग्रेज़ी शासन स्वतंत्रता सेनानियों को कष्ट दे रहा है, पर वह उन्हें अपनी राह में आगे बढ़ने से रोक नहीं पा रहा। खड़ी बोली के प्रयोग में तत्सम शब्दावली के प्रयोग के साथ उर्दू शब्दों का प्रयोग भी अति सहज है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। अनुप्रास और पदमैत्री का स्वाभाविक प्रयोग है। अभिधा शब्द-शक्ति ने कथन को सरलता – सरसता दी है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 12.
कवि जेल के आसपास अन्य पक्षियों का चहकना भी सुनता होगा, लेकिन उसने कोकिला की ही बात क्यों की है ?
उत्तर :
कवि ने निश्चित रूप से जेल के आसपास अन्य पक्षियों का चहकना सुना होगा, पर वे दिन के उजाले में चहकते होंगे। वे आधी रात के अंधकार में नहीं चहके होंगे। कोकिला रात को तब कुहकी थी, जब कवि अपनी पीड़ा की गहराई को अनुभव कर रहा था। उसे ऐसा प्रतीत हुआ कि उसकी तरह कोयल भी स्वयं को देश रूपी कारागार में अनुभव कर रही है। कोयल बाहर रो रही थी और कवि कारागार के भीतर। इसलिए एक-सी स्थिति को अनुभव करने के कारण कवि ने कोकिला की ही बात की थी।

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प्रश्न 13.
आपके विचार से स्वतंत्रता सेनानियों और अपराधियों के साथ एक-सा व्यवहार क्यों किया जाता होगा ?
उत्तर :
ब्रिटिश शासन के अंतर्गत स्वतंत्रता सेनानियों को अपराधी माना जाता था और उनके साथ वैसा ही व्यवहार किया जाता था, जैसा चोर- डाकुओं व बटमारों से किया जाता था। चोर, डाकू और बटमारों के द्वारा गिने-चुने लोगों की ही धन-संपत्ति छीनी जाती है पर स्वतंत्रता सेनानी तो अंग्रेज़ सरकार को ही निर्मूल कर देना चाहते थे।

पाठेतर सक्रियता –

पराधीन भारत की कौन-कौन सी जेलें मशहूर थीं, उनमें स्वतंत्रता सेनानियों को किस-किस तरह की यातनाएँ दी जाती थीं ? इस बारे में जानकारी प्राप्त कर जेलों की सूची एवं स्वतंत्रता सेनानियों के नामों को राष्ट्रीय पर्व पर भित्ति पत्रिका के रूप में प्रदर्शित करें।
स्वतंत्र भारत की जेलों में अपराधियों को सुधारकर हृदय परिवर्तन के लिए प्रेरित किया जाता है। पता लगाइए कि इस दिशा में कौन-कौन से कार्यक्रम चल रहे हैं ?
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

JAC Class 9 Hindi कैदी और कोकिला Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
कविता के आधार पर कवि की चरित्रगत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
कवि माखनलाल चतुर्वेदी देशभक्त थे, जिन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर देश की परतंत्रता को समाप्त करने के लिए जी-जान से प्रयत्न किया था। अंग्रेज़ी शासन द्वारा उन्हें कारागार में चोर, डाकुओं और बटमारों के साथ बंद किए जाने पर भी वे हताश नहीं हुए थे। वे संवेदनशील थे। कोकिल के रात के समय कूकने पर उनकी संवेदना उससे भी जुड़ गई थी। वे कल्पनाशील थे। अंग्रेजी सरकार के द्वारा दिए जाने वाले कष्ट उन्हें तोड़ नहीं पाए थे। वे वचन के पक्के थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए एक बार मन में ठान लेने पर वे इस मार्ग से पीछे नहीं हटे थे।

प्रश्न 2.
कारागार में कवि की कैसी दशा थी ?
उत्तर :
स्वतंत्रता सेनानी होने के बाद भी कारागार में कवि को डाकू, चोर व ठगों के साथ बंद किया गया था। उसे पेट भर भोजन भी नहीं दिया जाता था। रात-दिन उस पर कड़ा पहरा रहता था। उसे हथकड़ियों में जकड़कर रखा गया था। इसके अतिरिक्त उसे कोल्हू चलाना पड़ता था तथा हथौड़े से ईंट-पत्थर भी तोड़ने पड़ते थे।

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प्रश्न 3.
बंदी जीवन में भी कवि निरुत्साहित क्यों नहीं था ?
उत्तर :
बंदी जीवन में अनेक कष्टों को सहन करते हुए भी कवि निरुत्साहित नहीं था। उसका मन देश को स्वतंत्र करवाने के लिए बिगुल बजा रहा था। वह गाँधी जी के देश की स्वतंत्रता हेतु लिए गए व्रत में अपने प्राणों को पूर्ण रूप से समर्पित कर उसमें अपना पूरा सहयोग देना चाहता था।

प्रश्न 4.
‘कैदी और कोकिला’ कविता का संदेश / उद्देश्य/मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कैदी और कोकिला’ कविता के माध्यम से कवि ने तत्कालीन ब्रिटिश शासकों द्वारा किया है। स्वतंत्रता आंदोलन करने वाले देशभक्तों पर किए जाने वाले अत्याचारों का वर्णन किया है। कवि ने स्पष्ट किया है कि स्वतंत्रता सेनानी जेल में बंद होने पर भी अपना साहस नहीं खोते थे तथा महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए अहिंसापूर्ण स्वतंत्रता संग्राम में सहर्ष अपना पूरा योगदान देने के लिए तत्पर रहते थे।

प्रश्न 5.
कवि ने रात के अँधेरे में किसे संबोधित किया है और क्यों ?
उत्तर :
कवि अंग्रेजी शासन में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए किए जाने वाले प्रयत्नों के कारण जेल में बंद है। जेल के सभी कैदी सो गए हैं; केवल कवि जाग रहा है। कवि ने रात के समय में कोयल की उपस्थिति अनुभव की। उसने बात करने के उद्देश्य से कोयल को संबोधित किया था। कवि कोयल से पूछता है कि वह इतनी रात को क्यों जाग रही है ? उसे नींद क्यों नहीं आ रही है ?

प्रश्न 6.
कोयल से क्या जानना चाहता है ?
उत्तर :
कवि कोयल से यह जानना चाहता है कि वह आधी रात को क्यों जाग रही है ? वह किस पीड़ा से परेशान होकर कूकी है ? क्या उसे नींद नहीं आ रही या वह पागल है या उसे जंगल में लगी आग की लपटें दिखाई दी हैं ? वह क्यों इतनी बेचैन है ?

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प्रश्न 7.
कवि ने ‘दावानल की ज्वालाएँ’ किसे कहा है ?
उत्तर :
कवि के समय में हमारा देश गुलाम था। देश को आज़ाद करवाने के प्रयत्न किए जा रहे थे, जिससे भारतीयों को भयंकर और दुखदायी कष्टों का सामना करना पड़ रहा था। इसलिए कवि के लिए परतंत्रता ही ‘दावानल की ज्वालाएँ’ थीं।

प्रश्न 8.
कवि किन कष्टों के कारण रात भर जागता रहता था और कोयल से वह क्या जानना चाहता था ?
उत्तर :
अंग्रेज़ी सरकार ने कवि को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण जेल में बंद किया था। जेल में अंग्रेज़ अधिकारी कैदियों को तरह- तरह के कष्ट देते थे। कैदियों को पेट भर खाना नहीं मिलता था। कवि वहाँ के कष्टों से परेशान रात भर जागता रहता था। कवि ने कोयल से उसके आधी रात के समय कूकने का कारण जानने की इच्छा व्यक्त की। वह उससे उसके कष्टों के विषय में जानना चाहता था, जिससे परेशान होकर वह रात के समय जाग रही थी।

प्रश्न 9.
कवि को कारागार में दंड रूप में कौन-कौन से शारीरिक परिश्रम के काम करने पड़ते थे ?
उत्तर :
कवि देश की स्वतंत्रता के प्रयत्नों के कारण जेल में बंद था। जेल में कैदियों को कई तरह से शारीरिक कष्ट दिए जाते थे। ये कष्ट उनसे काम करवाकर दिए जाते थे। कवि को जेल में तेल निकालने के लिए पशुओं की तरह कोल्हू चलाना पड़ता था; हथौड़ों से ईंट-पत्थर की गिट्टियाँ तोड़ना, पेट की सहायता से हल जोतना, बैलों की तरह छाती से फीता लगाकर चूना आदि पीसने का काम करना पड़ता था।

प्रश्न 10.
रात के समय कोकिला किस कारण आई थी ?
उत्तर :
कवि ने कोकिला को स्वतंत्रता से प्यार करने वाले पक्षी के रूप में चित्रित किया है। कवि के अनुसार वह भी देश को गुलामी में बँधे देखकर रो रही थी। जो लोग देश आज़ाद करवाने का प्रयत्न कर रहे थे, उन्हें ब्रिटिश अधिकारी कष्ट दे रहे थे। कोयल आधी रात को कारागार में बंद स्वतंत्रता सेनानियों के कष्टों में सहभागी बनने और उनके कष्टों पर मरहम लगाने के लिए आई थी। वह उनके साथ मिलकर रोना चाहती थी।

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प्रश्न 11.
कवि ने अपने आस-पास के वातावरण में किन-किन काली वस्तुओं की गणना की है ?
उत्तर :
कवि के अनुसार ब्रिटिश शासन में चारों ओर गुलामी का अंधकार फैला हुआ था, जहाँ सभी ओर काला – ही – काला दिखाई देता था। कवि ने अपने आस-पास के वातावरण में कोयल को काला माना है; रात काली है, अंग्रेज़ी शासन काला है, लहर काली है, कवि की कल्पना काली है, काल-कोठरी काली है, उसकी टोपी काली है, कंबल काला है और उसको बाँधने वाली जंजीरें भी काली हैं।

प्रश्न 12.
कोयल की कूक ‘चमकीला गीत’ क्यों है ?
उत्तर :
आधी रात में कवि को कोयल के कूकने की आवाज सुनाई देती है। कवि अपना दुख कोयल के साथ बाँटना चाहता था। कवि में कोयल की कूक आशा व उत्साह का भाव और स्वर प्रदान करती थी, जिस कारण वह अपनी निराशा से मुक्ति पाता था। वह उसे प्रेरणा प्रदान करती थी। कवि को कोकिला का स्वर देशभक्ति में डूबा हुआ-सा प्रतीत होता था। इसलिए कवि को लग रहा था कि वह अपने ‘चमकीले गीत’ से उसमें कष्टों को सहने का उत्साह भरने आई है।

प्रश्न 13.
कवि ने अपनी और कोकिला की अवस्थाओं में किस प्रकार तुलना की है ?
उत्तर :
कवि ने अपनी और कोकिला की अवस्था में बहुत अंतर माना है। कोकिला को रहने के लिए पेड़ की हरी-भरी शाखाएँ मिली हैं, जबकि कवि दस फुट की काली कोठरी में रहता है। कोकिल खुले आसमान में विचरण करती है और वह काली कोठरी में बंद है, जहाँ सब कुछ काला ही काला है। कोकिल कूकती है, तो सबको अच्छा लगता है, उसमें जीवन का रंग दिखाई देता है। परंतु कवि रोता है, तो उसमें दुख दिखाई देता है और उसका रोना गुनाह माना जाता है।

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प्रश्न 14.
कवि ने किसके व्रत का पालन करने का निश्चय किया था और कैसे ?
उत्तर :
कवि ने महात्मा गांधी के द्वारा देश की आज़ादी हेतु लिए गए व्रत का पालन करने का निश्चय किया था। कवि कारागार में बंद था, परंतु उसका हृदय देश की आज़ादी के लिए कुछ करने के लिए मचल रहा था। वह वहाँ बंद रहकर भी अपनी रचना के माध्यम से आज़ादी की रणभेरी बजाना चाहता था। वह लोगों को जागृत करना चाहता था कि वें महात्मा गाँधी के आज़ादी के स्वप्न को पूरा करने में सहयोग दें।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. क्या गाती हो ?
क्यों रह-रह जाती हो ?
कोकिल बोलो तो!
क्या लाती हो ?
संदेशा किसका है ?
कोकिल बोलो तो!
ऊँची काली दीवारों के घेरे में,
डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में,
जीने को देते नहीं पेट भर खाना,
मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना!
जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है,
शासन, या तम का प्रभाव गहरा है ?
हिमकर निराश कर चला रात भी काली,
इस समय कालिमामयी जगी क्यूँ आली ?

शब्दार्थ : कोकिल – कोयल। बटमारों – रास्ते में यात्रियों को लूट लेने वाले। तम – अंधकार। हिमकर – चंद्रमा। कालिमामयी – काली। आली – सखी।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से लिया गया है, जिसके रचयिता श्री माखनलाल चतुर्वेदी हैं। स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण ब्रिटिश सरकार ने कवि को जेल की कोठरी में बंद कर दिया था। आधी रात के समय किसी कोयल के कूकने की आवाज़ को सुनकर कवि को ऐसा अहसास हुआ कि कोयल भी पूरे देश को एक कारागार के रूप में देखने लगी है, इसलिए वह आधी रात में चीख उठी है।

व्याख्या – कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहता है कि हे काली कोयल ! तुम क्या गाती हो ? कुछ कूक कर फिर चुप हो जाती हो। तुम अपनी बात एक साथ क्यों नहीं कह पाती ? क्यों रह रह जाती हो ? अरी कोयल ! बताओ कि तुम अपने साथ किसका संदेश लाई हो ? तुम किसकी बात सुनाना चाहती हो ? मैं तो कारागार की इन ऊँची-ऊँची काली दीवारों के घेरे में बंद हूँ; जहाँ डाकू, चोर और राह चलते लोगों को ठगने वाले ठगों का डेरा है। अपराधियों के बीच मैं भी बंद हूँ। कारागार के अधिकारी जीने के लिए आवश्यक खाना नहीं देते; पेट भूख के कारण खाली रहता है। ये न हमें जीने देते हैं और न मरने देते हैं। हम तड़पकर रह जाते हैं। हमारे ऊपर दिन- रात कड़ा पहरा रहता है। यह अंग्रेज़ी शासन की व्यवस्था है या अंधकार का गहरा प्रभाव है – कुछ समझ में नहीं आता। आकाश में कुछ समय पहले चंद्रमा दिखाई दिया था, पर वह भी निराश कर चला गया। बस, सब तरफ़ रात का गहरा अंधकार छाया हुआ है। इस अँधेरी – काली रात में हे सखी रूपी कोयल ! तू क्यों जाग रही है ? ज़रा बता कि तुझे किस कारण नींद नहीं आई ?

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने रात के अँधेरे में किसे संबोधित किया है और क्यों ?
(ख) कवि को कारागार में किसके साथ बंद किया गया था ?
(ग) कवि ने अंग्रेज़ी शासन की तुलना किससे की है ?
(घ) कवि को जेल में क्यों बंद किया गया था ? कोयल की कूक का कवि पर क्या प्रभाव पड़ा था ?
(ङ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि ने रात में कोयल की उपस्थिति अनुभव की थी और उसे संबोधित किया था। कारागार में शेष सब सो रहे थे; केवल कवि जाग रहा था और कोयल भी रात के अँधेरे में कूक रही थी।
(ख) कवि को कारागार में डाकुओं, चोरों और राह चलते लोगों को लूटने वाले लुटेरों के साथ बंद किया गया था।
(ग) कवि ने अंग्रेज़ी शासन की तुलना गहरे अँधेरे से की है।
(घ) ब्रिटिश शासन के विरुद्ध आंदोलनों में लिप्त होने के कारण कवि को जेल की कोठरी में बंद कर दिया गया था। आधी रात के समय किसी कोयल के कूकने की आवाज़ को सुनकर कवि को ऐसा अहसास हुआ कि कोयल भी पूरे देश को एक कारागार के रूप में देखने लगी है, इसलिए वह आधी रात में चीख उठी है।
(ङ) कवि ने अंग्रेज़ों के कारागार में अत्याचारों और अपमान को झेला था। उसे चोर – लुटेरों के साथ बंद किया गया था। दिन-रात उस पर कड़ा पहरा रहता था। भूख-प्यास के कारण कवि न तो जी पाता था और न ही मर पाता था। वह निराशा के भावों से भर गया था। कवि ने खड़ी बोली का प्रयोग किया है, जिसमें तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग सराहनीय है। अभिधा शब्द – शक्ति और प्रसाद गुण ने कथन को सरलता – सरसता से प्रकट किया है। अनुप्रास और पुनरुक्ति प्रकाश अलंकारों के स्वाभाविक प्रयोग ने काव्य-सौंदर्य में वृद्धि की है। गेयता का गुण विद्यमान है। करुण रस है।

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2. क्यों हूक पड़ी ?
वेदना बोझ वाली – सी;
कोकिल बोलो तो!
क्या लूटा ?
मृदुल वैभव की
रखवाली-सी,
कोकिल बोलो तो!
क्या हुई बावली ?
अर्धरात्रि को चीखी,
कोकिल बोलो तो!
किस दावानल की
ज्वालाएँ हैं दीखीं ?
कोकिल बोलो तो!

शब्दार्थ : हूक – चीख। वेदना – पीड़ा। मृदुल – कोमल। बावली – पागल। अद्धर्धात्रि – आधी रात। दावानल – जंगल की आग।

प्रसंग : प्रस्तुत प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं, जिसे श्री माखनलाल चतुर्वेदी ने लिखा है। अंग्रेज़ी सरकार ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण कवि को कारागार में बंद कर दिया था। कवि वहाँ के कष्टों से परेशान रात-भर जागता रहता था। कवि ने आधी रात के समय कूकने वाली कोयल को संबोधित करते हुए उसके कष्टों के बारे में जानने की इच्छा प्रकट की थी।

व्याख्या – कवि पूछता है कि अरी कोयल ! तू अचानक क्यों कूक पड़ी? क्या कोई पीड़ा का भाव तुझे बोझ तले दबा रहा है ? तू बता तो सही कि वह क्या है ? तेरा क्या लूट गया है और तुझे किसने लूट लिया है ? तू आधी रात को भी जाग रही है। किसी कोमल वैभव की रक्षा करने वाली जैसी कोयल ! तुम बताओ तो सही। क्या तुम पागल हो गई हो, जो आधी रात के समय इस प्रकार ज़ोर से चीखी थी ? तुझे जंगल में लगी किस आग की लपटें दिखाई दी थीं? बताओ तो सही। भाव यह है कि अंग्रेज़ी शासन की गुलामी की आग की लपटें देशवासियों को जला रही थीं, पर जंगलं में ऐसी कौन-सी लपटें प्रकट हो गई थीं जिनसे परेशान होकर कोयल को आधी रात के समय कूकना पड़ा था।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि कोयल से क्या जानना चाहता है ?
(ख) कवि ने कोयल के लिए किस विशेषण का प्रयोग किया है ?
(ग) कवि ने ‘दावानल की ज्वालाएँ’ किसे माना है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) कवि किन कष्टों में कहाँ रातभर जागता रहता था और कोयल से वह क्या जानना चाहता था ?
(च) कवि ने कोयल की कूक’ को ‘हूक’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
(क) कवि कोयल से जानना चाहता है कि वह आधी रात के समय किस पीड़ा से परेशान होकर कूकी थी ? क्या वह पागल है या उसे जंगल में लगी आग की लपटें दिखाई दी थीं?
(ख) कवि ने कोयल के लिए ‘मृदुल वैभव की रखवाली-सी’ विशेषण का प्रयोग किया है।
(ग) कवि ने भयंकर और दुखदायी संकटों को ‘दावानल की ज्वालाएँ’ माना है। हमारा देश उस समय अंग्रेजी शासन का गुलाम था, इसलिए हमारे लिए परतंत्रता ही ‘दावानल की ज्वालाएँ’ थीं। कवि नहीं जानता कि आधी रात के समय कूकने वाली कोयल के लिए ‘दावानल की ज्वालाएँ’ क्या थीं।
(घ) स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लेने के कारण विदेशी सरकार द्वारा कवि को कारागार में बंद कर दिया गया था। वह परेशान था और उसे आधी रात के समय कूकने वाली कोयल भी परेशान प्रतीत हुई थी। मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि किसी दुख से पीड़ित व्यक्ति को अन्य प्राणी भी उसी दुख से पीड़ित प्रतीत होने लगता है। कवि ने उपमा और अनुप्रास अलंकारों का सहज स्वाभाविक प्रयोग किया है। लयात्मकता का प्रयोग किया गया है। तत्सम शब्दावली की अधिकता है। प्रसाद गुण, अभिधा शब्द-शक्ति और बेचैनी का भाव प्रस्तुत हुआ है।
(ङ) अंग्रेज़ी सरकार ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण कवि को कारागार में बंद कर दिया था। कवि वहाँ के कष्टों से परेशान रातभर जागता रहता था। आधी रात के समय कूकने वाली कोयल को संबोधित करते हुए कवि ने उसके कष्टों के बारे में जानने की इच्छा प्रकट की थी।
(च) कवि स्वयं अंग्रेज़ी शासन के व्यवहार से परेशान था। उसे कोयल की कूक भी परेशानी से भरी हुई प्रतीत होती है। इसलिए कवि ने उसे हूक कहा है।

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3. क्या ? – देख न सकती जंजीरों का गहना ?
हथकड़ियाँ क्यों ? यह ब्रिटिश राज का गहना,
कोल्हू का चर्रक चूँ ? – जीवन की तान,
गिट्टी पर अँगुलियों ने लिखे गान!
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर कूआ,
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूआ।
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली,
इसलिए रात में गजब ढा रही आली ?
इस शांत समय में,
अंधकार को बेध, रो रही क्यों हो ?
कोकिल बोलो तो !
चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज
इस भाँति बो रही क्यों हो ?
कोकिल बोलो तो!

शब्दार्थ : मोट खींचना – चरस खींचना (जेल में बैल की तरह छाती से फीता लगाकर चूना आदि पीसना )। गिट्टी – ईंट-पत्थर के टुकड़े। जूआ वह लकड़ी जो पाट को घुमाने का काम करती है; हल चलाने वाले बैलों के गले पर रखी जाने वाली लकड़ी। आली – सखी।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता श्री माखनलाल चतुर्वेदी हैं। कवि ने कैदियों को कारागार में दिए जाने वाले तरह-तरह के कष्टों की ओर संकेत किया है।

व्याख्या : कवि कोकिल को संबोधित करता हुआ कहता है कि क्या तुम अंग्रेज़ी शासकों के द्वारा जेल में मुझे पहनाए हुए जंजीररूपी गहनों को नहीं देखती ? ये हथकड़ियाँ नहीं हैं, बल्कि ये ब्रिटिश राज के द्वारा पहनाए गए गहने हैं। जब हम कोल्हू चलाते हैं; तेल निकालते हैं, तो उसके घूमने से उत्पन्न ‘चर्रक चूँ’ की आवाज़ ही जीवन की तान है। उससे हमें जीवन जीने का उत्साह मिलता है। हम ईंट-पत्थरों को हथौड़ों से तोड़ते हैं। हमारी अँगुलियों पर उनके द्वारा चोटों के रूप में गीत लिखे गए हैं। मैं जेल में बैलों की तरह छाती से फीता लगाकर चूना आदि पीसता हूँ। मैं इससे परेशान नहीं होता, बल्कि मुझे तो इससे संतोष होता है कि ऐसा कर मैं अंग्रेज़ राज की अकड़ का कुआँ खाली कर रहा हूँ।

दिन के समय काम करते हुए मुझे दुख देने वाली और आँखों में आँसू लाने वाली करुणा का भाव क्यों जगे ? मैं नहीं चाहता कि अंग्रेज़ी-राज के पहरेदार मेरी पीड़ा को देखें पर कोयल रूपी मेरी सखि ! हृदय में छिपा पीड़ा का भाव रात के अँधेरे में गज़ब ढा रहा है। मैं दुख की अधिकता से फूट रहा हूँ, आँसू बहा रहा हूँ। अरी कोयल ! तुम बताओ कि अँधेरे को भेद कर इस शांत समय में तुम क्यों रो रही हो ? पता नहीं, तुम चुपचाप इस प्रकार मधुर विद्रोह के बीज क्यों बो रही हो ? अरी कोयल ! तुम कुछ तो बोलो और बताओ कि रात के अँधेरे में क्यों कूक रही हो ?

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने किसे गहने कहा है ?
(ख) कवि को कारागार में दंड रूप में कौन-कौन से शारीरिक परिश्रम के काम करने पड़ते थे ?
(ग) कवि दिन के समय अपनी पीड़ा के भावों को क्यों नहीं प्रकट करना चाहता ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) कवि ने कारागार में किन कष्टों की ओर संकेत किया है ?
(च) कवि के अनुसार ब्रिटिश अकड़ का कुआँ किस प्रकार खाली हुआ ?
(छ) रात के समय कोकिल किस कारण से आई थी ?
(ज) ‘मोट’ और ‘जूआ’ क्या है ?
(झ) कवि ने कोकिल के कूकने को ‘रो रही क्यों हो’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
(क) कवि ने ब्रिटिश सरकार द्वारा पहनाई गई लोहे की हथकड़ियों को गहने है।
(ख) कवि को कारागार में तेल निकालने के लिए पशुओं की तरह कोल्हू चलाना पड़ता था; हथौड़ों से ईंट-पत्थर की गिट्टियाँ बनानी पड़ती थी। इसके अतिरिक्त उसे पेट की सहायता से हल जोतने, बैलों की तरह छाती से फीता लगाकर चूना पीसने आदि का काम करना पड़ता था।
(ग) कवि नहीं चाहता था कि कारागार की कठिनाइयों से व्यथित उसके मन की दशा कारागार के पहरेदार जानें। इसलिए वह दिन के समय अपनी पीड़ा के भावों को प्रकट नहीं करना चाहता था।
(घ) कवि ने कारागार में स्वतंत्रता सेनानियों को दी जाने वाली यातनाओं का सजीव चित्रण किया है, जिससे उनकी क्रूरता का परिचय मिलता है। चित्रात्मकता के गुण ने कवि के कथन में छिपी पीड़ा को वाणी प्रदान की है। रूपक और अनुप्रास अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। करुण रस विद्यमान है। तद्भव और सामान्य बोलचाल के शब्दों का प्रयोग किया गया है, जिससे कथन को सरलता और स्वाभाविकता प्राप्त हुई है। अभिधा शब्द – शक्ति का प्रयोग है।
(ङ) कवि ने कारागार में कैदियों को दिए जाने वाले तरह-तरह के कष्टों की ओर संकेत किया है।
(च) स्वाधीनता प्राप्त करने के लिए देशभक्तों ने ब्रिटिश सरकार के द्वारा दी जाने वाली यंत्रणाओं को चुपचाप झेला था, जिससे उन्होंने ब्रिटिश अकड़ का कुआँ खाली किया था।
(छ) रात के समय कोकिल स्वतंत्रता सेनानियों के कष्टों में सहभागी बनने और उनके कष्टों पर मरहम लगाने के लिए आई थी। वह उनके साथ मिलकर रोना चाहती थी।
(ज) ‘मोट’ कुएँ से पानी निकालने के लिए चमड़े का बना डोल है और ‘जूआ’ लकड़ी का मोटा लट्ठा है, जो बैलों के कंधे पर रखा जाता है। उसमें हल बाँधकर खेत जोता जाता है।
(झ) कवि ने कोकिल के कूकने को ‘रो रही हो क्यों’ इसलिए कहा है क्योंकि मधुर स्वर में कूकने वाली कोकिल उनके विद्रोही स्वर को प्रेरणा दे रही थी; अंग्रेज़ी शासन के प्रति उनके आक्रोश को बढ़ा रही थी। कवि के अनुसार कोयल की ब्रिटिश अत्यचारों और अनाचार में त्रस्त है। इसलिए कवि को उसका स्वर रोने जैसा प्रतीत होता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला

4. काली तू, रजनी भी काली,
शासन की करनी भी काली,
काली लहर कल्पना काली,
मेरी काल कोठरी काली,
टोपी काली, कमली काली,
मेरी लौह – श्रृंखला काली,
पहरे की हुंकृति की ब्याली,
तिस पर है गाली, ऐ आली!
इस काले संकट – सागर पर
मरने की, मदमाती !
कोकिल बोलो तो!
अपने चमकीले गीतों को
क्योंकर हो तैराती !
कोकिल बोलो तो!

शब्दार्थ : रजनी – रात। शृंखला – जंजीर। हुंकृति – हुँकार। ब्याली – सर्पिनी। आली – सखी।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता
श्री माखनलाल चतुर्वेदी हैं। इन पंक्तियों में कवि ने कारागार के वातावरण का चित्रण किया है

व्याख्या : कवि कहता है कि हे कोकिल ! तू काले रंग की है और यह रात भी काली और अँधेरी है। अंग्रेज़ी शासन द्वारा किए जाने वाले अत्याचारपूर्ण कार्य भी काले हैं। मेरे मन में उत्पन्न होने वाली कल्पनाएँ भी काली हैं तथा सारे वातावरण में भी निराशा भरी हुई है। मैं जिस काल कोठरी में बंद हूँ, वह काली है। मेरी टोपी काली है और कंबल भी काला है। जिन लोहे की जंजीरों से मैं बँधा हुआ वे भी काली हैं।

कारागार के पहरेदार सर्पिनी जैसी हुँकारें भरते रहते हैं। हे कोयल रूपी सखी! वे पहरेदार इस पर भी गालियाँ देते रहते हैं; कड़वा और भद्दा बोलते हैं। देश के परतंत्रता रूपी इस काले संकट – सागर पर मरकर इसे आजाद करवाने की मदमाती इच्छा जागृत होती है। हे कोयल ! तुम बताओ कि इस अँधेरी रात में अपने चमकीले गीतों को क्यों तैरा रही हो ? सब दिशाओं में कूक – कूक कर क्यों फैला रही हो ? अरी कोयल ! तुम कुछ तो बोलो।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने अपने आस-पास की किन-किन काली वस्तुओं की गणना की है ?
(ख) पहरेदारों की हुँकार कवि को कैसी प्रतीत होती है ?
(ग) ‘काला संकट – सागर’ क्या है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) कवि ने किस वातावरण का चित्रण किया है ?
(च) ‘काली’ विशेषण किन-किन अर्थों को स्पष्ट करता है ?
(छ) कोयल की कूक ‘चमकीला गीत’ क्यों है ?
उत्तर :
(क) कवि के अनुसार कोयल काली है; रात काली है; अंग्रेज़ी शासन काला है, लहर काली है, कवि की कल्पना काली है; काल कोठरी काली है, उसकी टोपी काली है, कंबल काला है और उसको बाँधने वाली जंज़ीरे भी काली हैं।
(ख) पहरेदारों की हुँकार, कवि को सर्पिणी जैसी विषैली प्रतीत होती है।
(ग) देश पर विदेशी शासन ‘काला संकट – सागर’ है, जिसमें सारे देशवासी निरंतर डूब रहे हैं।
(घ) कवि ने कारागार में तरह-तरह के कष्ट उठाए थे। उसे प्रतीत होता था कि वह पीड़ा के अँधेरे में डूबा हुआ है, जिसके चारों तरफ़ गहरा कालापन छाया हुआ है। दृश्य बिंब योजना है, जिससे निराशा का भाव टपकता है। अनुप्रास, रूपक और पदमैत्री का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है। अभिधा शब्द का प्रयोग कथन की सरलता – सरसता का आधार बना है। प्रसाद गुण तथा करुण रस विद्यमान है। तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित रूप प्रकट किया गया है।
(ङ) कवि ने कारागार के वातावरण का चित्रण किया है।
(च) कवि ने ‘काली’ विशेषण का साभिप्राय प्रयोग किया है, जो निम्नलिखित अर्थों को प्रकट करता है –
(1) काला रंग – कोकिल, रात, टोपी, कंबल, लोहे की जंज़ीर।
(2) भयानकता – काली लहर, काली कल्पना, काली काल – कोठरी।
(3) अन्याय / क्रूरता – शासन की करनी, संकट – सागर।
(छ) कोकिल की कूक कवि को आशा व उत्साह का भाव और स्वर प्रदान करती थी, जिस कारण वह अपनी निराशा से मुक्ति पाता था। वह उसे प्रेरणा प्रदान करती थी। कवि को कोकिल का स्वर देशभक्ति में डूबा हुआ प्रतीत होता था, इसलिए उसने उसे ‘चमकीला गीत’ कहा है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला

5. तुझे मिली हरियाली डाली,
मुझे नसीब कोठरी काली!
तेरा नभ-भर में संचार
मेरा दस फुट का संसार!
तेरे गीत कहावें वाह,
रोना भी है मुझे गुनाह!
देख विषमता तेरी-मेरी,
बजा रही तिस पर रणभेरी!
इस हुंकृति पर,
अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ?
कोकिल बोलो तो!
मोहन के व्रत पर,
प्राणों का आसव किसमें भर दूँ!
कोकिल बोलो तो!

शब्दार्थ : नसीब – भाग्य, प्राप्त होना। नभ – आकाश। गुनाह – अपराध। विषमता – कठिनाई। हुंकृति – हुँकार। कृति – रचना। मोहन – मोहनदास करमचंद गांधी अर्थात महात्मा गांधी। आसव – रस। कोकिल – कोयल।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता श्री माखनलाल चतुर्वेदी हैं। कवि कारागार की पीड़ा से पीड़ित है। वह चाहकर भी अपने सुख-दुख को प्रकट नहीं कर पाता।

व्याख्या : कवि कहता है कि हे कोकिल, तुम्हें तो रहने के लिए पेड़ों की हरी-भरी शाखाएँ मिली हैं, पर मुझे यहाँ कारागार की काली कोठरी प्राप्त हुई है; जिसमें मैं बंद रहता हूँ। तुम सारे आकाश में उड़ती-फिरती हो; संचरण करती हो, पर मेरा संसार इस दस फुट की जेल की कोठरी तक सीमित रह गया है। जब तू कूकती है, तो लोग उसे मधुर गीत कहते हैं; जब मैं दुख में भरकर रोता हूँ, तो उसे भी गुनाह माना जाता है।

ज़रा तू अपनी और मेरी विषमता को देख। कितना बड़ा अंतर है हम दोनों में ! पर इस अवस्था में भी मैं निरुत्साहित नहीं हूँ। मेरा मन देश की आज़ादी के लिए रणभेरी बजा रहा है। मैं अपने मन में उत्पन्न होने वाली हुँकार पर अपनी रचना से और क्या प्रदान करूँ। अरी कोकिल ! मुझे बताओ कि मोहनदास करमचंद गांधी अर्थात महात्मा गांधी ने देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए जो व्रत लिया है, उसे मैं किसके प्राणों में रस रूप में भर दूँ। अरी कोकिल! तुम बोलो तो सही।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) कवि ने अपनी और कोकिल की अवस्थाओं में किस प्रकार तुलना की है ?
(ख) कवि का हृदय क्या कर रहा है ?
(ग) कवि ने किसके व्रत का पालन करने का निश्चय किया था ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
(ङ) कवि किस पीड़ा से पीड़ित है ?
(च) ‘नभ-भर का संचार’ से क्या आशय है ?
(छ) कवि के लिए ‘दस फुट का संसार’ क्या है ?
(ज) ‘मोहन का व्रत’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
(क) कवि कहता है कि कोकिल को रहने के लिए हरी-भरी शाखाएँ प्राप्त हुईं, तो उसे काली कोठरी मिली। कोकिल का संचरण सारे आकाश में होता है, तो कवि का संसार दस फुट की कोठरी है। कोकिल का कूकना गीत कहलाता है, तो कवि का रोना भी गुनाह है।
(ख) कवि का हृदय देश की आज़ादी का आह्वान करते हुए रणभेरी बजा रहा है।
(ग) कवि ने महात्मा गांधी द्वारा लिए गए आज़ादी के व्रत का पालन करने का निश्चय किया है।
(घ) कवि ने देश की आज़ादी के लिए उसी रास्ते को अपनाने का निश्चय किया था, जो महात्मा गांधी ने निर्धारित किया था। पंक्तियों में कवि ने सामान्य बोलचाल के शब्दों का प्रयोग किया है। लयात्मकता की सृष्टि हुई है। अभिधात्मकता ने कवि के कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है। पदमैत्री और अनुप्रास का स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। प्रसाद गुण विद्यमान है।
(ङ) कवि कारागार में बंद होने की पीड़ा से पीड़ित है। वह चाहकर भी अपना दुःख-सुख व्यक्त नहीं कर पाता।
(च) ‘नभ- भर का संचार’ से कवि का तात्पर्य स्वतंत्रता से है; खुले आकाश में विहार करने से है।
(छ) छोटी-सी काल कोठरी कवि के लिए ‘दस फुट का संसार’ है।
(ज) ‘मोहन का व्रत ‘ महात्मा गाँधी (मोहनदास करमचंद गाँधी ) के द्वारा स्वतंत्रता के लिए निरंतर अहिंसात्मक संघर्ष करते रहना है।

कैदी और कोकिला Summary in Hindi

कवि-परिचय :

गांधीवादी विचारधारा से गहरे प्रभावित श्री माखनलाल चतुर्वेदी देश की स्वतंत्रता से पूर्व युवा वर्ग में संघर्ष और बलिदान की भावना भरने में समर्थ कवि और प्रखर पत्रकार थे। इनका जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद ज़िले के बाबई गाँव में सन् 1889 ई० में हुआ। इनका बचपन आर्थिक अभावों में बीता था। जीवन के संघर्षों ने इनकी पत्नी को टी०बी० का शिकार बना दिया था। इन्हें केवल 16 वर्ष की अवस्था में ही शिक्षक बनना पड़ा था। बाद में इन्होंने अध्यापन का कार्य छोड़कर ‘प्रभा’ नामक पत्रिका का संपादन सँभाल लिया। इन्होंने ‘कर्मवीर’ और ‘प्रताप’ पत्रिकाओं का भी संपादन किया था। ‘कर्मवीर’ में राष्ट्रीय भावनाएँ भरी रहती थीं। इनका देहांत सन् 1968 में हुआ। श्री चतुर्वेदी की प्रमुख रचनाएँ हैं – हिम किरीटनी, साहित्य देवता, हिम तरंगिनी, वेणु लो गूँजे धरा, माता, युग चरण, मरण, ज्वार, बिजुली काजर आँज रही आदि। इनकी संपूर्ण रचनाएँ माखनलाल चतुर्वेदी ग्रंथावली के खंडों में संकलित हैं।

इनकी रचनाओं में ब्रिटिश राज्य के प्रति विद्रोह का भाव मुखरित हुआ है। भले ही इनका जीवन छायावादी युग में विकसित हुआ, पर इनका काव्य छायावाद से अलग रहा। इनके काव्य में राष्ट्रीय और सांस्कृतिक भावों की प्रमुखता है। इनमें स्वतंत्रता की चेतना के साथ देश के लिए त्याग और बलिदान की भावना प्रमुख है। इसलिए इन्हें ‘एक भारतीय आत्मा’ भी कहा जाता है। ‘पुष्प की अभिलाषा’ नामक कविता के माध्यम से इन्होंने राष्ट्र के प्रति त्याग और बलिदान की भावना को अभिव्यक्त किया है –

मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जावें वीर अनेक।

श्री चतुर्वेदी स्वाधीनता आंदोलन के दौरान अनेक बार जेल गए थे। उन्होंने प्रेम, भक्ति-भाव और प्रकृति-संबंधी काव्य की रचना भी की थी। वे कष्टों को जीवन में आने वाला आवश्यक हिस्सा मानते थे। वे नवयुवकों को संकटों से जूझने की प्रेरणा देते थे और इसे ही सच्चा सौंदर्य मानते थे। वे नवयुवकों को मातृभूमि की पूजा के लिए स्वयं को अर्पित करने के लिए प्रेरित करते थे।

इन्होंने अपने काव्य की रचना खड़ी बोली में की। ये कविता में शिल्प की अपेक्षा भावों को महत्व देते थे। इन्होंने परंपरागत छंद योजना की थी। इन्होंने कविता में उर्दू और फ़ारसी शब्दावली का प्रयोग करने के साथ-साथ तत्सम शब्दावली का भी पर्याप्त प्रयोग किया था, पर फिर भी इन्हें बोलचाल के सामान्य शब्दों के प्रति विशेष मोह था जिस कारण इनकी भाषा जनसामान्य में प्रचलित हुई थी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला

कविता का सार :

कवि ने यह कविता ब्रिटिश उपनिवेशवाद के शोषण- तंत्र का विश्लेषण करने हेतु लिखी थी। भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के साथ ब्रितानी शासन ने क्रूरता का व्यवहार करते हुए उन्हें दमन चक्र में पीस डालने का प्रयत्न किया था। उन्हें तरह-तरह की यातनाएँ दी थीं। कवि ने जेल में एकांकी और उदास जीवन व्यतीत करते हुए कोकिल (कोयल) से अपने हृदय की पीड़ा और असंतोष का भाव व्यक्त किया था।

कोकिल जब आधी रात में कूकती थी, तो कवि को प्रतीत होता था कि वह भी सारे देश को एक कारागार के रूप में देखने लगी है और मधुर गीत गाने के स्थान पर मुक्ति के लिए चीखने लगी है। कवि कोकिल से पूछता है कि वह बार-बार क्यों कूकती है ? वह किसका संदेश लाई है? देशभक्तों और स्वतंत्रता सेनानियों को डाकू, चोरों व बटमारों के लिए बनाई जेलों में बंदकर अंग्रेजों ने उन पर तरह-तरह के

अत्याचार ढाए हैं। क्या कोकिल भी स्वयं को कैदी अनुभव करती है? अंग्रेजों ने देशभक्तों को हथकड़ियों में जकड़ दिया था। उनसे बलपूर्वक मज़दूरों का कार्य लिया जाता था। कोयल काले रंग की थी, तो विदेशी शासन भी काला था। कवि की काल-कोठरी काली थी; टोपी काली थी; कंबल काला था और पहरेदारों की हुँकार भी नागों के समान काली थी। कवि का संसार बस दस फुट की कोठरी ही था, जहाँ उसका रोना भी गुनाह था। जेल में बस कष्ट-ही-कष्ट थे, पर फिर भी गांधीजी के आह्वान पर देश की स्वतंत्रता के लिए प्रयत्न तो करना ही था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

JAC Class 9 Hindi यमराज की दिशा Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि को दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल क्यों नहीं हुई ?
उत्तर :
कवि की माँ ने उसे समझाया था कि कभी भी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके सोना नहीं चाहिए क्योंकि दक्षिण दिशा यमराज की है और यमराज को क्रोधित करना उचित नहीं। दक्षिण दिशा के प्रति वह सदा सचेत रहा और वह कभी भी उस दिशा की ओर पैर करके नहीं सोया, इसलिए उसे दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल नहीं हुई।

प्रश्न 2.
कवि ने ऐसा क्यों कहा कि दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था ?
उत्तर :
दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था क्योंकि वह उस छोर को नहीं पा सकता था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

प्रश्न 3.
कवि के अनुसार आज हर दिशा दक्षिण दिशा क्यों हो गई है ?
उत्तर
पहले लोग मानते थे कि मौत के देवता यमराज की दिशा दक्षिण है पर अब तो हर दिशा ही मौत की दिशा है। मौत तो सर्वव्यापक है। सभी तरफ फैलते विध्वंस, नाश, हिंसा, मृत्यु आदि के चिह्नों को साफ-स्पष्ट देखा जा सकता था। यमराज के आलीशान महल सभी दिशाओं में हैं और सभी महलों में यमराज विद्यमान है, इसलिए आज हर दिशा दक्षिण दिशा हो गई है।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए –
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं
उत्तर :
धरती पर प्रत्येक दिशा मौत के चिह्नों से युक्त है। कोई भी तो ऐसा स्थान नहीं बचा जहाँ मानव-मानव आपस में उलझते न हों, लड़ते- झगड़ते न हों। हर तरफ घृणा और हिंसा का राज्य फैला है। मौत का देवता यमराज अपने आलीशान महलों में हर दिशा में दहकती आँखों सहित एक साथ विराजमान है। सर्वत्र मौत का ही राज है

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 5.
कवि की माँ ईश्वर से प्रेरणा पाकर उसे कुछ मार्ग-दर्शन देती है। आप की माँ भी समय-समय पर आप को सीख देती होंगी –
(क) वह आपको क्या सीख देती हैं ?
(ख) क्या उसकी हर सीख आप को उचित जान पड़ती है ? यदि हाँ, तो क्यों और नहीं तो क्यों नहीं ?
उत्तर :
कवि की माँ ईश्वर से प्रेरणा प्राप्त कर उसे मार्ग-निर्देश नहीं देती थी बल्कि सभी की माँ ऐसा ही करती है। हर माँ अपने बच्चों की सलामती चाहती है, उन के स्वस्थ जीवन की कामना करती है। वह कदापि नहीं चाहती कि उस के बच्चों पर किसी प्रकार का कभी कोई कष्ट आए। वह उन कष्टों को अपने ऊपर ले लेना चाहती है। उसने जो संस्कार अपने पूर्वजों से पाया था उसे अपने बच्चों को देती है।

(क) मेरी माँ भी मुझे सदा तरह-तरह की सीख देती है। ईश्वर के प्रति श्रद्धा-विश्वास करना, अपने से बड़ों का कहना मानना, उन का आदर करना, समय का पालन करना, साफ-स्वच्छ रहना, अच्छा खाना, पढ़ाई करना, दूसरों की सहायता करना, खेलना-कूदना, देश-भक्ति, मीठा बोलना, लड़ाई-झगड़े से बचना, बुराइयों से दूर रहना आदि न जाने कितनी बातों के बारे में वह सीख देती रहती है।

(ख) मुझे अपनी माँ की हर सीख उचित जान पड़ती है। उसके पास जीवन का अनुभव है। वह उसी अनुभव की सीख ही तो मुझे देती है। माँ से बढ़ कर मेरा हितैषी कौन हो सकता है? मुझे उस ने जन्म दिया है, मेरा पालन-पोषण किया है। वह मेरी सहारा है। वह मेरे जीवन को सँवारना चाहती है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

प्रश्न 6.
कभी-कभी उचित – अनुचित निर्णय के पीछे ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक हो जाता है, इसके क्या कारण हो सकते हैं ?
उत्तर :
ईश्वर सर्वव्यापक है पर वह भी दिखाई नहीं देता। उसे अपने भावों – विचारों से समझा जा सकता है। कभी-कभी उचित – अनुचित निर्णय के पीछे ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक होता है। ऐसा करने से मन को दृढ़ता प्राप्त होती है, दिशा निर्देश मिलता है और हम मानसिक सहारा प्राप्त करते हैं। मानव के चंचल मन पर नियंत्रण पाने का रास्ता मिलता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि मनुष्य को प्रत्येक कार्य स्वयं करना होता है, पर मन की शक्ति कोई सहारा तो अवश्य पाना चाहती है। वह सहारा ही ईश्वर है जिसे दिशा देने के लिए ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक हो जाता है।

JAC Class 9 Hindi यमराज की दिशा Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘यमराज की दिशा’ कविता के भाषा-शिल्प पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर
कविता में भाव सीधे होकर भी गंभीर हैं तथा भाषा आसान होकर गहरी है। कवि ने खड़ी बोली का प्रयोग किया है जिसमें तत्सम, तद्भव शब्दावली के प्रयोग के साथ-साथ सरल उर्दू के शब्दों का प्रयोग भी किया गया है। मुक्त छंद का प्रयोग करने में कवि को निपुणता प्राप्त है। अभिधा के प्रयोग ने कथन को सरलता-सरसता प्रदान की है। प्रसाद गुण सर्वत्र विद्यमान है। अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, स्मरण अलंकारों के सहज प्रयोग ने कथन को सरसता प्रदान की है।

प्रश्न 2.
कवि ने अपनी माँ के परमात्मा के प्रति आस्था और विश्वास को किस प्रकार प्रकट किया है ?
उत्तर :
कवि की माँ को परमात्मा में आस्था और विश्वास था। वह अपना सुख-दुःख सभी कुछ परमात्मा से बाँटती थी। वह ऐसा दिखाती थी कि वह ईश्वर को जानती है, उनसे बात करती है, प्रत्येक कार्य में उनसे सलाह लेती है और उनकी सलाह के अनुसार कार्य करती है। ईश्वर पर विश्वास करती हुई वह जिंदगी जीने और दुःख सहने के रास्ते ढूँढ़ लेती थी।

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प्रश्न 3.
क्या कवि अपनी माँ की बात मानता था ? कैसे ?
उत्तर :
कवि ने छोटेपन से ही अपनी माँ को सभी प्रकार की समस्याओं से लड़ते हुए देखा था। उसके लिए माँ की बात सत्य थी। उसकी माँ जो कहती थी उसे वह मान लेता था। बचपन में उसकी माँ ने उसे दक्षिण दिशा में पैर करके सोने को मना किया था, क्योंकि यह दिशा यमराज देवता की है। वह यमराज का अनादर करके उन्हें क्रोधित करना नहीं चाहती थी। कवि उनकी बात मानकर कभी भी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके नहीं सोया।

प्रश्न 4.
कवि ने ऐसा क्यों कहा है कि आज प्रत्येक दिशा दक्षिण दिशा है ?
उत्तर :
कवि को उसकी माँ ने बताया था कि दक्षिण दिशा यमराज की है, वह मौत का देवता है। इस दिशा में पैर करके सोना ठीक नहीं है परंतु कवि के अनुसार वर्तमान समय सभी दिशाएँ दक्षिण दिशा हो गई हैं। इसका कारण यह है कि आज सभी दिशाओं में मौत बसती है। चारों ओर विध्वंस, हिंसा, मार-काट, दंगे-फसाद हो रहे हैं। सारे संसार में मौत किसी-न-किसी रूप में तांडव कर रही है। मनुष्य-मनुष्य को मार रहा है इसलिए कवि को आज सभी दिशाएँ दक्षिण ही लगती हैं। आज चारों ओर मृत्यु का देवता अपने आलीशान महल में विराजमान है।

प्रश्न 5.
क्या आपकी माँ आपको सीख देती है ? यदि हाँ, तो उस सीख के विषय में लिखिए।
उत्तर :
संसार में सभी माएँ अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा देती हैं। मेरी माँ ने भी मुझे अच्छी शिक्षा दी है। मुझे उनकी हर बात उचित लगती है क्योंकि उनके पास अपने जीवन का अनुभव होता है। वे मेरी शुभचिंतक भी हैं, वे मुझे तरह-तरह की सीख देती है, जैसे- ईश्वर के प्रति श्रद्धा और विश्वास करना, अपने से बड़ों का सम्मान करना और कहना मानना, समय पर सभी काम करना, दूसरों की मदद करना, सभी प्रकार की बुराइयों से बचकर रहना, एक अच्छा इंसान बनकर देश की सेवा करना आदि।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

प्रश्न 6.
‘यमराज की दिशा’ का मूल भाव स्पष्ट करें।
उत्तर :
‘यमराज की दिशा’ कविता के कवि चंद्रकांत देवताले हैं। उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से सभ्यता के विकास की खतरनाक दिशा की ओर संकेत करते हुए चेतावनी- भरे स्वर में कहा है कि वर्तमान में मानव कहीं भी सुरक्षित नहीं है। जीवन-विरोधी ताकतें संसार में चारों ओर फैल रही हैं। कवि की माँ के अनुसार मृत्यु की दिशा दक्षिण थी। वे उसका सम्मान करने के लिए कहती थी। परंतु आज सभी दिशाएँ यमराज का घर बन चुकी हैं। विश्व के प्रत्येक कोने में हिंसा, विध्वंस तथा नाश और मौत का साम्राज्य है, इसलिए आज सभी दिशाएँ दक्षिण दिशा बन चुकी हैं।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. माँ की ईश्वर से मुलाकात हुई या नहीं
कहना मुश्किल है
पर वह जताती थी जैसे
ईश्वर से उसकी बातचीत होती रहती है
और उससे प्राप्त सलाहों के अनुसार
जिंदगी जीने और दुख बरदाश्त करने के
रास्ते खोज लेती है

शब्दार्थ : ईश्वर भगवान। जताती प्रकट करती। बरदाश्त – सहन।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘यमराज की दिशा’ से अवतरित है, जिसके रचयिता श्री चंद्रकांत देवताले हैं। कवि ने अपनी माँ की सहनशक्ति और समझ के साथ-साथ उसकी आस्तिकता के भाव को प्रकट किया है। वह जीवन की प्रत्येक विपरीत स्थिति को आसानी से अपने आपको अनुकूल बना लेती थी।

व्याख्या : कवि कहता है कि यह कहना तो कठिन है कि उसकी माँ की कभी ईश्वर से भेंट हुई थी या नहीं, पर वह सदा ऐसा प्रकट करती थी जैसे वह ईश्वर को जानती थी और उसकी उससे बातचीत होती रहती थी। माँ के जीवन में जो-जो कष्ट आते थे वह ईश्वर को बताती थी, उस की सलाह लेती थी और सलाहों के अनुसार ही कार्य करती थी। वह जिंदगी जीने और दुख सहने के रास्ते ढूंढ़ लेती थी। ईश्वर पर विश्वास करती हुई वह सभी समस्याओं पर विजय प्राप्त कर लेती थी।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 1.
(क) माँ क्या जताया करती थी ?
(ख) माँ ईश्वर से क्या प्राप्त किया करती थी ?
(ग) माँ दुख सहन करने के रास्ते किस प्रकार खोज लेती थी ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) माँ जताया करती थी कि वह ईश्वर को जानती थी और उसकी उससे प्रायः बातचीत होती रहती थी।
(ख) माँ ईश्वर से सलाह प्राप्त किया करती थी कि किस प्रकार वह जीवन में आए कष्टों का निवारण कर सके और अपने परिवार को सुख-भरा जीवन दे सके।
(ग) माँ ईश्वर की सलाह पर जीवन में आए तरह-तरह के दुख सहने के रास्ते खोज लेती थी।
(घ) कवि ने अपनी माँ के परमात्मा के प्रति आस्था और विश्वास को प्रकट करते हुए माना है कि वह परिवार के सुखों के लिए सदा प्रयत्न करती थी और उसमें कष्टों को सहने की अपार क्षमता थी। सामान्य बोल-चाल के शब्दों का सहज प्रयोग किया गया है। अभिधा शब्द – शक्ति और प्रसाद गुण ने कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है। ‘मुलाकात’, ‘सलाह’, ‘बरदाशत’, ‘खोज’ जैसे सामान्य उर्दू शब्दों का प्रयोग कथन को स्वाभाविकता प्रदान करता है। अतुकांत छंद का प्रयोग है। स्मरण अलंकार विद्यमान है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

2. माँ ने एक बार मुझे कहा था –
दक्षिण की तरफ़ पैर करके मत सोना
वह मृत्यु की दिशा है।
और यमराज को क्रुद्ध करना
बुद्धिमानी की बात नहीं
तब मैं छोटा था
और मैंने यमराज के घर का पता पूछा था
उसने बताया था –
तुम जहाँ भी हो वहाँ से हमेशा दक्षिण में

शब्दार्थ : क्रुद्ध – कुपित, नाराज।

प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘यमराज की दिशा’ से लिया गया है जिसके रचयिता श्री चंद्रकांत देवताले हैं। कवि ने अपनी माँ के विचारों और भावों को प्रकट किया है और कहा है कि वह यमराज को कभी क्रोधित नहीं करना चाहती थी।

व्याख्या – कवि पुरानी यादों को ताजा करते हुए कहता है कि एक बार उसकी माँ ने उससे कहा था कि दक्षिण दिशा की तरफ पैर करके कभी मत सोना, क्योंकि दक्षिण दिशा मौत के देवता यमराज की है। मौत के देवता को क्रोधित करना अकलमंदी नहीं है। तब कवि आयु में छोटा था। उसने अपनी माँ से यमराज के घर का पता पूछा था तो उसने कहा था कि वह जहाँ भी है, उसके दक्षिण में ही यमराज रहता है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य- सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न :
(क) कवि की माँ ने कवि को क्या कभी न करने को कहा था ?
(ख) माँ ने किसे बुद्धिमानी की बात नहीं माना था ?
(ग) कवि ने अपनी माँ से क्या जानने की इच्छा की थी ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि की माँ ने उसे कभी भी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके न सोने की बात कही थी।
(ख) माँ ने मौत के देवता यमराज को नाराज करना बुद्धिमानी की बात नहीं मानी थी।
(ग) कवि ने अपनी माँ से जानना चाहा था कि मौत के देवता यमराज का घर कहाँ है।
(घ) कवि की माँ ने समझाया था कि दक्षिण दिशा यमराज की है। उस तरफ कभी भी पैर करके नहीं सोना चाहिए। तत्सम और तद्भव शब्दावली के सहज – समन्वित प्रयोग द्वारा कवि ने अपनी बात सरलता – सरसता से प्रकट की है। अभिधा शब्द – शक्ति और प्रसाद गुण का प्रयोग है। अतुकांत छंद है। कथोपकथन शैली ने नाटकीयता की सृष्टि की है।

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3. माँ की समझाइश के बाद
दक्षिण दिशा में पैर करके मैं कभी नहीं सोया
और इससे इतना फ़ायदा ज़रूर हुआ
दक्षिण दिशा पहचानने में
मुझे कभी मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा
मैं दक्षिण में दूर-दूर तक गया
और मुझे हमेशा माँ याद आई
दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था
होता छोर तक पहुँच पाना
तो यमराज का घर देख लेता

शब्दार्थ : समझाइश – समझाने। फ़ायदा – लाभ। छोर – किनारा।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘यमराज की दिशा’ से ली गई है जिसके रचयिता श्री चंद्रकांत देवताले हैं। कवि ने अपनी माँ की सीख को जीवन भर माना था और कभी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके नहीं सोया था।

व्याख्या : कवि कहता है कि माँ के द्वारा समझा देने के बाद वह कभी भी दक्षिण दिशा की तरफ पैर करके नहीं सोया था। इससे और कोई लाभ हुआ हो या नहीं पर इतना अवश्य हुआ कि उसे कभी भी दक्षिण दिशा को पहचानने में दिक्कत नहीं हुई। कवि कहता है कि वह दक्षिण दिशा में दूर-दूर तक घूमा है और उसे दक्षिण दिशा में लाँघ लेना संभव नहीं था। यदि ऐसा होता तो वह उस छोर पर पहुँच कर यमराज का घर देख लेने में सफल हो जाता, पर ऐसा हो नहीं सका।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(क) माँ के समझाने के बाद कवि ने क्या काम कभी नहीं किया ?
(ख) कवि को किस बात को करने में कभी कठिनाई नहीं हुई ?
(ग) कवि यमराज का घर देखने में सफल क्यों नहीं हुआ ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) माँ के समझाने के बाद कवि कभी भी दक्षिण दिशा की तरफ पैर करके नहीं सोया।
(ख) कवि को कभी भी दक्षिण दिशा को ढूँढ़ने में कठिनाई नहीं हुई।
(ग) कवि कभी यमराज का घर देखने में सफल नहीं हुआ, क्योंकि वह दक्षिण दिशा के पार कभी पहुँच ही नहीं पाया।
(घ) कवि ने माँ के समझाने के बाद कभी भी दक्षिण में पैर करके सोने का साहस तो नहीं किया, पर यमराज के घर के विषय में जानने की जिज्ञासा अवश्य की जिसे वह कभी ढूँढ़ नहीं पाया। पुनरुक्ति प्रकाश और अनुप्रास अलंकारों का सहज प्रयोग किया गया है। तत्सम और तद्भव शब्दों के साथ उर्दू के सरल शब्दों का समन्वित प्रयोग है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द – शक्ति ने कथन को सरलता-सरसता प्रदान की है। अतुकांत छंद है।

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4. पर आज जिधर भी पैर करके सोओ
वही दक्षिण दिशा हो जाती है
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं
माँ अब नहीं है
और यमराज की दिशा भी वह नहीं रही
जो माँ जानती थी।

शब्दार्थ दहकती – जलती।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘यमराज की दिशा’ से ली गई है जिसके रचयिता श्री चंद्रकांत देवताले हैं। कवि का मानना है कि चाहे यमराज की दिशा दक्षिण है पर आज तो उसका साम्राज्य तो सारी दिशाओं में हो गया है। आज सभी दिशाओं में विध्वंस, हिंसा और मौत का तांडव हो रहा है। मौत तो सर्वत्र अपना राज्य जमा चुकी है।

व्याख्या : कवि कहता है कि आज तो जिधर भी पैर करके सोओ वही दिशा दक्षिण हो जाती है। हर दिशा में मौत बसती है। हर दिशा में यमराज का आलीशान महल है और अपने हर महल से यह अपनी दहकती आँखों के साथ विराजते हैं। कवि की माँ अब जीवित नहीं है। वह यमराज की जिस दिशा के बारे में जानती थी वह भी अब यमराज की नहीं रही। यमराज की दिशाएँ तो सभी हैं। वह तो सारे विश्व में हर तरफ है, वह तो सर्वव्यापक हो गया है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न
(क) कवि के लिए हर दिशा दक्षिण क्यों हो जाती है ?
(ख) यमराज की दिशा अब कौन-सी है ?
(ग) कवि की माँ कहाँ गई ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) विध्वंस, हिंसा, मार-काट, दंगे-फसाद आदि के कारण सारे संसार में मौत का तांडव हो रहा है। मनुष्य मनुष्य को मार रहा है, इसलिए कवि के लिए केवल दक्षिण दिशा ही यमराज की दिशा नहीं रही बल्कि हर दिशा ही दक्षिण दिशा हो गई है।
(ख) कवि के अनुसार सभी दिशाएँ ही अब यमराज की दिशाएँ हैं।
(ग) कवि की माँ यमराज के घर जा चुकी है।
(घ) कवि का मानना है कि अब यमराज केवल दक्षिण दिशा में नहीं रहता है। इस संसार में व्याप्त हिंसा ने उसके आलीशान महल भी सभी दिशाओं में बनवा दिए हैं, जिनमें यमराज अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं। कवि की भाषा में लाक्षणिकता का गुण विद्यमान है जिसने कथन को गहनता – गंभीरता प्रदान की है। प्रसाद गुण और अतुकांत छंद का प्रयोग है। अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग किया गया है।

यमराज की दिशा Summary in Hindi

कवि-परिचय :

निम्न मध्य वर्ग के जीवन की नस-नस से परिचित कवि श्री चंद्रकांत देवताले प्रयोगधर्मी कविता के जाने-माने हस्ताक्षर हैं। इनका जन्म सन् 1936 में गाँव जौलखेड़ा, जिला बैतूल, मध्यप्रदेश में हुआ था। प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् इन्होंने उच्च शिक्षा इंदौर से प्राप्त की थी। इन्होंने हिंदी विषय में अपनी पीएच० डी० की उपाधि सागर विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी। इन्होंने जीविकोपार्जन के लिए अध्यापन-कार्य को चुना था। साठोत्तरी हिंदी कविता के क्षेत्र को इन्होंने विशिष्ट योगदान दिया।

श्री देवताले के द्वारा रचित प्रमुख रचनाएँ हैं – हड्डियों में छिपा ज्वर, दीवारों पर खून से, लकड़बग्घा हँस रहा है, भूखंड तप रहा है, पत्थर की बेंच, इतनी पत्थर रोशनी, उजाड़ में संग्रहालय आदि। इनके द्वारा रचित कविताएँ अति मार्मिक और सामयिक हैं जिनका सीधा संबंध आम आदमी और युग से है। इनकी कविताओं का अनुवाद लगभग सभी भारतीय भाषाओं में और अनेक विदेशी भाषाओं में हुआ है। कवि को अपने लेखन कार्य के लिए ‘माखन लाल चतुर्वेदी पुरस्कार’, ‘मध्य प्रदेश का शासन का शिखर सम्मान’ आदि अनेक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।

श्री देवताले की कविता का सीधा संबंध गाँवों, कस्बों और निम्नमध्य वर्ग के जीवन से है। उसमें मानव जीवन अपनी विविधता और विडंबनाओं के साथ उपस्थित हुआ है। कवि को व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार, बेईमानी आदि के प्रति गहरा आक्रोश है। मानवीय संवेदनाओं से भी कवि का हृदय भरा हुआ है। वह असहाय और निर्धन वर्ग के प्रति विशेष प्रेम के भावों को अपने हृदय में संजोए हुए है।

उसकी वाणी में लुकाव – छिपाव नहीं है। वह अपनी बात सीधे और मारक ढंग से कहता है। कवि की भाषा खड़ी बोली है। सरल-सरस और भावपूर्ण भाषा में उसने अपनी बात को कहने का गुण प्राप्त किया है। उसकी भाषा में पारदर्शिता है। तत्सम और तद्भव शब्दावली को समन्वित प्रयोग के साथ-साथ उर्दू शब्दावली का प्रयोग भी सहज रूप से करने की क्षमता कवि ने दिखाई है।

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कविता का सार :

कवि ने अपनी कविता में सभ्यता के विकास की खतरनाक दिशा की ओर संकेत करते हुए चेतावनी भरे स्वर में कहा है कि इस युग में मानव कहीं भी सुरक्षित नहीं है। इसका जीवन चारों ओर से संकट में घिरा हुआ है। जन-विरोधी ताकतें निरंतर फैलती जा रही हैं। कवि अपनी माँ को याद करते हुए कहता है कि वह ईश्वरीय भक्ति-भाव और आस्था के सहारे जीवन-शक्ति प्राप्त कर लेती थी। उसमें दुखों को सहन करने की अपार शक्ति थी।

वह मानती थी कि दक्षिण दिशा मृत्यु के देवता की है, इसलिए उस तरफ पैर करके कभी नहीं सोना चाहिए। यमराज को नाराज करना बुद्धिमत्ता नहीं है। कवि इसके बाद कभी भी दक्षिण दिशा में पाँव करके नहीं सोया, पर कवि मानता है कि अब तो सभी दिशाओं में यमराज हैं। आलीशान महल है और वे हर दिशा में अपनी दहकती आँखों के साथ विराजते हैं। अब तो हर दिशा में हिंसा, विध्वंस, नाश और मौत के चिह्न फैले हुए हैं।