JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 यमराज की दिशा

JAC Class 9 Hindi यमराज की दिशा Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि को दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल क्यों नहीं हुई ?
उत्तर :
कवि की माँ ने उसे समझाया था कि कभी भी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके सोना नहीं चाहिए क्योंकि दक्षिण दिशा यमराज की है और यमराज को क्रोधित करना उचित नहीं। दक्षिण दिशा के प्रति वह सदा सचेत रहा और वह कभी भी उस दिशा की ओर पैर करके नहीं सोया, इसलिए उसे दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल नहीं हुई।

प्रश्न 2.
कवि ने ऐसा क्यों कहा कि दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था ?
उत्तर :
दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था क्योंकि वह उस छोर को नहीं पा सकता था।

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प्रश्न 3.
कवि के अनुसार आज हर दिशा दक्षिण दिशा क्यों हो गई है ?
उत्तर
पहले लोग मानते थे कि मौत के देवता यमराज की दिशा दक्षिण है पर अब तो हर दिशा ही मौत की दिशा है। मौत तो सर्वव्यापक है। सभी तरफ फैलते विध्वंस, नाश, हिंसा, मृत्यु आदि के चिह्नों को साफ-स्पष्ट देखा जा सकता था। यमराज के आलीशान महल सभी दिशाओं में हैं और सभी महलों में यमराज विद्यमान है, इसलिए आज हर दिशा दक्षिण दिशा हो गई है।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए –
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं
उत्तर :
धरती पर प्रत्येक दिशा मौत के चिह्नों से युक्त है। कोई भी तो ऐसा स्थान नहीं बचा जहाँ मानव-मानव आपस में उलझते न हों, लड़ते- झगड़ते न हों। हर तरफ घृणा और हिंसा का राज्य फैला है। मौत का देवता यमराज अपने आलीशान महलों में हर दिशा में दहकती आँखों सहित एक साथ विराजमान है। सर्वत्र मौत का ही राज है

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 5.
कवि की माँ ईश्वर से प्रेरणा पाकर उसे कुछ मार्ग-दर्शन देती है। आप की माँ भी समय-समय पर आप को सीख देती होंगी –
(क) वह आपको क्या सीख देती हैं ?
(ख) क्या उसकी हर सीख आप को उचित जान पड़ती है ? यदि हाँ, तो क्यों और नहीं तो क्यों नहीं ?
उत्तर :
कवि की माँ ईश्वर से प्रेरणा प्राप्त कर उसे मार्ग-निर्देश नहीं देती थी बल्कि सभी की माँ ऐसा ही करती है। हर माँ अपने बच्चों की सलामती चाहती है, उन के स्वस्थ जीवन की कामना करती है। वह कदापि नहीं चाहती कि उस के बच्चों पर किसी प्रकार का कभी कोई कष्ट आए। वह उन कष्टों को अपने ऊपर ले लेना चाहती है। उसने जो संस्कार अपने पूर्वजों से पाया था उसे अपने बच्चों को देती है।

(क) मेरी माँ भी मुझे सदा तरह-तरह की सीख देती है। ईश्वर के प्रति श्रद्धा-विश्वास करना, अपने से बड़ों का कहना मानना, उन का आदर करना, समय का पालन करना, साफ-स्वच्छ रहना, अच्छा खाना, पढ़ाई करना, दूसरों की सहायता करना, खेलना-कूदना, देश-भक्ति, मीठा बोलना, लड़ाई-झगड़े से बचना, बुराइयों से दूर रहना आदि न जाने कितनी बातों के बारे में वह सीख देती रहती है।

(ख) मुझे अपनी माँ की हर सीख उचित जान पड़ती है। उसके पास जीवन का अनुभव है। वह उसी अनुभव की सीख ही तो मुझे देती है। माँ से बढ़ कर मेरा हितैषी कौन हो सकता है? मुझे उस ने जन्म दिया है, मेरा पालन-पोषण किया है। वह मेरी सहारा है। वह मेरे जीवन को सँवारना चाहती है।

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प्रश्न 6.
कभी-कभी उचित – अनुचित निर्णय के पीछे ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक हो जाता है, इसके क्या कारण हो सकते हैं ?
उत्तर :
ईश्वर सर्वव्यापक है पर वह भी दिखाई नहीं देता। उसे अपने भावों – विचारों से समझा जा सकता है। कभी-कभी उचित – अनुचित निर्णय के पीछे ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक होता है। ऐसा करने से मन को दृढ़ता प्राप्त होती है, दिशा निर्देश मिलता है और हम मानसिक सहारा प्राप्त करते हैं। मानव के चंचल मन पर नियंत्रण पाने का रास्ता मिलता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि मनुष्य को प्रत्येक कार्य स्वयं करना होता है, पर मन की शक्ति कोई सहारा तो अवश्य पाना चाहती है। वह सहारा ही ईश्वर है जिसे दिशा देने के लिए ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक हो जाता है।

JAC Class 9 Hindi यमराज की दिशा Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘यमराज की दिशा’ कविता के भाषा-शिल्प पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर
कविता में भाव सीधे होकर भी गंभीर हैं तथा भाषा आसान होकर गहरी है। कवि ने खड़ी बोली का प्रयोग किया है जिसमें तत्सम, तद्भव शब्दावली के प्रयोग के साथ-साथ सरल उर्दू के शब्दों का प्रयोग भी किया गया है। मुक्त छंद का प्रयोग करने में कवि को निपुणता प्राप्त है। अभिधा के प्रयोग ने कथन को सरलता-सरसता प्रदान की है। प्रसाद गुण सर्वत्र विद्यमान है। अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, स्मरण अलंकारों के सहज प्रयोग ने कथन को सरसता प्रदान की है।

प्रश्न 2.
कवि ने अपनी माँ के परमात्मा के प्रति आस्था और विश्वास को किस प्रकार प्रकट किया है ?
उत्तर :
कवि की माँ को परमात्मा में आस्था और विश्वास था। वह अपना सुख-दुःख सभी कुछ परमात्मा से बाँटती थी। वह ऐसा दिखाती थी कि वह ईश्वर को जानती है, उनसे बात करती है, प्रत्येक कार्य में उनसे सलाह लेती है और उनकी सलाह के अनुसार कार्य करती है। ईश्वर पर विश्वास करती हुई वह जिंदगी जीने और दुःख सहने के रास्ते ढूँढ़ लेती थी।

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प्रश्न 3.
क्या कवि अपनी माँ की बात मानता था ? कैसे ?
उत्तर :
कवि ने छोटेपन से ही अपनी माँ को सभी प्रकार की समस्याओं से लड़ते हुए देखा था। उसके लिए माँ की बात सत्य थी। उसकी माँ जो कहती थी उसे वह मान लेता था। बचपन में उसकी माँ ने उसे दक्षिण दिशा में पैर करके सोने को मना किया था, क्योंकि यह दिशा यमराज देवता की है। वह यमराज का अनादर करके उन्हें क्रोधित करना नहीं चाहती थी। कवि उनकी बात मानकर कभी भी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके नहीं सोया।

प्रश्न 4.
कवि ने ऐसा क्यों कहा है कि आज प्रत्येक दिशा दक्षिण दिशा है ?
उत्तर :
कवि को उसकी माँ ने बताया था कि दक्षिण दिशा यमराज की है, वह मौत का देवता है। इस दिशा में पैर करके सोना ठीक नहीं है परंतु कवि के अनुसार वर्तमान समय सभी दिशाएँ दक्षिण दिशा हो गई हैं। इसका कारण यह है कि आज सभी दिशाओं में मौत बसती है। चारों ओर विध्वंस, हिंसा, मार-काट, दंगे-फसाद हो रहे हैं। सारे संसार में मौत किसी-न-किसी रूप में तांडव कर रही है। मनुष्य-मनुष्य को मार रहा है इसलिए कवि को आज सभी दिशाएँ दक्षिण ही लगती हैं। आज चारों ओर मृत्यु का देवता अपने आलीशान महल में विराजमान है।

प्रश्न 5.
क्या आपकी माँ आपको सीख देती है ? यदि हाँ, तो उस सीख के विषय में लिखिए।
उत्तर :
संसार में सभी माएँ अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा देती हैं। मेरी माँ ने भी मुझे अच्छी शिक्षा दी है। मुझे उनकी हर बात उचित लगती है क्योंकि उनके पास अपने जीवन का अनुभव होता है। वे मेरी शुभचिंतक भी हैं, वे मुझे तरह-तरह की सीख देती है, जैसे- ईश्वर के प्रति श्रद्धा और विश्वास करना, अपने से बड़ों का सम्मान करना और कहना मानना, समय पर सभी काम करना, दूसरों की मदद करना, सभी प्रकार की बुराइयों से बचकर रहना, एक अच्छा इंसान बनकर देश की सेवा करना आदि।

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प्रश्न 6.
‘यमराज की दिशा’ का मूल भाव स्पष्ट करें।
उत्तर :
‘यमराज की दिशा’ कविता के कवि चंद्रकांत देवताले हैं। उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से सभ्यता के विकास की खतरनाक दिशा की ओर संकेत करते हुए चेतावनी- भरे स्वर में कहा है कि वर्तमान में मानव कहीं भी सुरक्षित नहीं है। जीवन-विरोधी ताकतें संसार में चारों ओर फैल रही हैं। कवि की माँ के अनुसार मृत्यु की दिशा दक्षिण थी। वे उसका सम्मान करने के लिए कहती थी। परंतु आज सभी दिशाएँ यमराज का घर बन चुकी हैं। विश्व के प्रत्येक कोने में हिंसा, विध्वंस तथा नाश और मौत का साम्राज्य है, इसलिए आज सभी दिशाएँ दक्षिण दिशा बन चुकी हैं।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. माँ की ईश्वर से मुलाकात हुई या नहीं
कहना मुश्किल है
पर वह जताती थी जैसे
ईश्वर से उसकी बातचीत होती रहती है
और उससे प्राप्त सलाहों के अनुसार
जिंदगी जीने और दुख बरदाश्त करने के
रास्ते खोज लेती है

शब्दार्थ : ईश्वर भगवान। जताती प्रकट करती। बरदाश्त – सहन।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘यमराज की दिशा’ से अवतरित है, जिसके रचयिता श्री चंद्रकांत देवताले हैं। कवि ने अपनी माँ की सहनशक्ति और समझ के साथ-साथ उसकी आस्तिकता के भाव को प्रकट किया है। वह जीवन की प्रत्येक विपरीत स्थिति को आसानी से अपने आपको अनुकूल बना लेती थी।

व्याख्या : कवि कहता है कि यह कहना तो कठिन है कि उसकी माँ की कभी ईश्वर से भेंट हुई थी या नहीं, पर वह सदा ऐसा प्रकट करती थी जैसे वह ईश्वर को जानती थी और उसकी उससे बातचीत होती रहती थी। माँ के जीवन में जो-जो कष्ट आते थे वह ईश्वर को बताती थी, उस की सलाह लेती थी और सलाहों के अनुसार ही कार्य करती थी। वह जिंदगी जीने और दुख सहने के रास्ते ढूंढ़ लेती थी। ईश्वर पर विश्वास करती हुई वह सभी समस्याओं पर विजय प्राप्त कर लेती थी।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 1.
(क) माँ क्या जताया करती थी ?
(ख) माँ ईश्वर से क्या प्राप्त किया करती थी ?
(ग) माँ दुख सहन करने के रास्ते किस प्रकार खोज लेती थी ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) माँ जताया करती थी कि वह ईश्वर को जानती थी और उसकी उससे प्रायः बातचीत होती रहती थी।
(ख) माँ ईश्वर से सलाह प्राप्त किया करती थी कि किस प्रकार वह जीवन में आए कष्टों का निवारण कर सके और अपने परिवार को सुख-भरा जीवन दे सके।
(ग) माँ ईश्वर की सलाह पर जीवन में आए तरह-तरह के दुख सहने के रास्ते खोज लेती थी।
(घ) कवि ने अपनी माँ के परमात्मा के प्रति आस्था और विश्वास को प्रकट करते हुए माना है कि वह परिवार के सुखों के लिए सदा प्रयत्न करती थी और उसमें कष्टों को सहने की अपार क्षमता थी। सामान्य बोल-चाल के शब्दों का सहज प्रयोग किया गया है। अभिधा शब्द – शक्ति और प्रसाद गुण ने कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है। ‘मुलाकात’, ‘सलाह’, ‘बरदाशत’, ‘खोज’ जैसे सामान्य उर्दू शब्दों का प्रयोग कथन को स्वाभाविकता प्रदान करता है। अतुकांत छंद का प्रयोग है। स्मरण अलंकार विद्यमान है।

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2. माँ ने एक बार मुझे कहा था –
दक्षिण की तरफ़ पैर करके मत सोना
वह मृत्यु की दिशा है।
और यमराज को क्रुद्ध करना
बुद्धिमानी की बात नहीं
तब मैं छोटा था
और मैंने यमराज के घर का पता पूछा था
उसने बताया था –
तुम जहाँ भी हो वहाँ से हमेशा दक्षिण में

शब्दार्थ : क्रुद्ध – कुपित, नाराज।

प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘यमराज की दिशा’ से लिया गया है जिसके रचयिता श्री चंद्रकांत देवताले हैं। कवि ने अपनी माँ के विचारों और भावों को प्रकट किया है और कहा है कि वह यमराज को कभी क्रोधित नहीं करना चाहती थी।

व्याख्या – कवि पुरानी यादों को ताजा करते हुए कहता है कि एक बार उसकी माँ ने उससे कहा था कि दक्षिण दिशा की तरफ पैर करके कभी मत सोना, क्योंकि दक्षिण दिशा मौत के देवता यमराज की है। मौत के देवता को क्रोधित करना अकलमंदी नहीं है। तब कवि आयु में छोटा था। उसने अपनी माँ से यमराज के घर का पता पूछा था तो उसने कहा था कि वह जहाँ भी है, उसके दक्षिण में ही यमराज रहता है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य- सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न :
(क) कवि की माँ ने कवि को क्या कभी न करने को कहा था ?
(ख) माँ ने किसे बुद्धिमानी की बात नहीं माना था ?
(ग) कवि ने अपनी माँ से क्या जानने की इच्छा की थी ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि की माँ ने उसे कभी भी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके न सोने की बात कही थी।
(ख) माँ ने मौत के देवता यमराज को नाराज करना बुद्धिमानी की बात नहीं मानी थी।
(ग) कवि ने अपनी माँ से जानना चाहा था कि मौत के देवता यमराज का घर कहाँ है।
(घ) कवि की माँ ने समझाया था कि दक्षिण दिशा यमराज की है। उस तरफ कभी भी पैर करके नहीं सोना चाहिए। तत्सम और तद्भव शब्दावली के सहज – समन्वित प्रयोग द्वारा कवि ने अपनी बात सरलता – सरसता से प्रकट की है। अभिधा शब्द – शक्ति और प्रसाद गुण का प्रयोग है। अतुकांत छंद है। कथोपकथन शैली ने नाटकीयता की सृष्टि की है।

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3. माँ की समझाइश के बाद
दक्षिण दिशा में पैर करके मैं कभी नहीं सोया
और इससे इतना फ़ायदा ज़रूर हुआ
दक्षिण दिशा पहचानने में
मुझे कभी मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा
मैं दक्षिण में दूर-दूर तक गया
और मुझे हमेशा माँ याद आई
दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था
होता छोर तक पहुँच पाना
तो यमराज का घर देख लेता

शब्दार्थ : समझाइश – समझाने। फ़ायदा – लाभ। छोर – किनारा।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘यमराज की दिशा’ से ली गई है जिसके रचयिता श्री चंद्रकांत देवताले हैं। कवि ने अपनी माँ की सीख को जीवन भर माना था और कभी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके नहीं सोया था।

व्याख्या : कवि कहता है कि माँ के द्वारा समझा देने के बाद वह कभी भी दक्षिण दिशा की तरफ पैर करके नहीं सोया था। इससे और कोई लाभ हुआ हो या नहीं पर इतना अवश्य हुआ कि उसे कभी भी दक्षिण दिशा को पहचानने में दिक्कत नहीं हुई। कवि कहता है कि वह दक्षिण दिशा में दूर-दूर तक घूमा है और उसे दक्षिण दिशा में लाँघ लेना संभव नहीं था। यदि ऐसा होता तो वह उस छोर पर पहुँच कर यमराज का घर देख लेने में सफल हो जाता, पर ऐसा हो नहीं सका।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(क) माँ के समझाने के बाद कवि ने क्या काम कभी नहीं किया ?
(ख) कवि को किस बात को करने में कभी कठिनाई नहीं हुई ?
(ग) कवि यमराज का घर देखने में सफल क्यों नहीं हुआ ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) माँ के समझाने के बाद कवि कभी भी दक्षिण दिशा की तरफ पैर करके नहीं सोया।
(ख) कवि को कभी भी दक्षिण दिशा को ढूँढ़ने में कठिनाई नहीं हुई।
(ग) कवि कभी यमराज का घर देखने में सफल नहीं हुआ, क्योंकि वह दक्षिण दिशा के पार कभी पहुँच ही नहीं पाया।
(घ) कवि ने माँ के समझाने के बाद कभी भी दक्षिण में पैर करके सोने का साहस तो नहीं किया, पर यमराज के घर के विषय में जानने की जिज्ञासा अवश्य की जिसे वह कभी ढूँढ़ नहीं पाया। पुनरुक्ति प्रकाश और अनुप्रास अलंकारों का सहज प्रयोग किया गया है। तत्सम और तद्भव शब्दों के साथ उर्दू के सरल शब्दों का समन्वित प्रयोग है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द – शक्ति ने कथन को सरलता-सरसता प्रदान की है। अतुकांत छंद है।

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4. पर आज जिधर भी पैर करके सोओ
वही दक्षिण दिशा हो जाती है
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं
माँ अब नहीं है
और यमराज की दिशा भी वह नहीं रही
जो माँ जानती थी।

शब्दार्थ दहकती – जलती।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘यमराज की दिशा’ से ली गई है जिसके रचयिता श्री चंद्रकांत देवताले हैं। कवि का मानना है कि चाहे यमराज की दिशा दक्षिण है पर आज तो उसका साम्राज्य तो सारी दिशाओं में हो गया है। आज सभी दिशाओं में विध्वंस, हिंसा और मौत का तांडव हो रहा है। मौत तो सर्वत्र अपना राज्य जमा चुकी है।

व्याख्या : कवि कहता है कि आज तो जिधर भी पैर करके सोओ वही दिशा दक्षिण हो जाती है। हर दिशा में मौत बसती है। हर दिशा में यमराज का आलीशान महल है और अपने हर महल से यह अपनी दहकती आँखों के साथ विराजते हैं। कवि की माँ अब जीवित नहीं है। वह यमराज की जिस दिशा के बारे में जानती थी वह भी अब यमराज की नहीं रही। यमराज की दिशाएँ तो सभी हैं। वह तो सारे विश्व में हर तरफ है, वह तो सर्वव्यापक हो गया है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न
(क) कवि के लिए हर दिशा दक्षिण क्यों हो जाती है ?
(ख) यमराज की दिशा अब कौन-सी है ?
(ग) कवि की माँ कहाँ गई ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) विध्वंस, हिंसा, मार-काट, दंगे-फसाद आदि के कारण सारे संसार में मौत का तांडव हो रहा है। मनुष्य मनुष्य को मार रहा है, इसलिए कवि के लिए केवल दक्षिण दिशा ही यमराज की दिशा नहीं रही बल्कि हर दिशा ही दक्षिण दिशा हो गई है।
(ख) कवि के अनुसार सभी दिशाएँ ही अब यमराज की दिशाएँ हैं।
(ग) कवि की माँ यमराज के घर जा चुकी है।
(घ) कवि का मानना है कि अब यमराज केवल दक्षिण दिशा में नहीं रहता है। इस संसार में व्याप्त हिंसा ने उसके आलीशान महल भी सभी दिशाओं में बनवा दिए हैं, जिनमें यमराज अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं। कवि की भाषा में लाक्षणिकता का गुण विद्यमान है जिसने कथन को गहनता – गंभीरता प्रदान की है। प्रसाद गुण और अतुकांत छंद का प्रयोग है। अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग किया गया है।

यमराज की दिशा Summary in Hindi

कवि-परिचय :

निम्न मध्य वर्ग के जीवन की नस-नस से परिचित कवि श्री चंद्रकांत देवताले प्रयोगधर्मी कविता के जाने-माने हस्ताक्षर हैं। इनका जन्म सन् 1936 में गाँव जौलखेड़ा, जिला बैतूल, मध्यप्रदेश में हुआ था। प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् इन्होंने उच्च शिक्षा इंदौर से प्राप्त की थी। इन्होंने हिंदी विषय में अपनी पीएच० डी० की उपाधि सागर विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी। इन्होंने जीविकोपार्जन के लिए अध्यापन-कार्य को चुना था। साठोत्तरी हिंदी कविता के क्षेत्र को इन्होंने विशिष्ट योगदान दिया।

श्री देवताले के द्वारा रचित प्रमुख रचनाएँ हैं – हड्डियों में छिपा ज्वर, दीवारों पर खून से, लकड़बग्घा हँस रहा है, भूखंड तप रहा है, पत्थर की बेंच, इतनी पत्थर रोशनी, उजाड़ में संग्रहालय आदि। इनके द्वारा रचित कविताएँ अति मार्मिक और सामयिक हैं जिनका सीधा संबंध आम आदमी और युग से है। इनकी कविताओं का अनुवाद लगभग सभी भारतीय भाषाओं में और अनेक विदेशी भाषाओं में हुआ है। कवि को अपने लेखन कार्य के लिए ‘माखन लाल चतुर्वेदी पुरस्कार’, ‘मध्य प्रदेश का शासन का शिखर सम्मान’ आदि अनेक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।

श्री देवताले की कविता का सीधा संबंध गाँवों, कस्बों और निम्नमध्य वर्ग के जीवन से है। उसमें मानव जीवन अपनी विविधता और विडंबनाओं के साथ उपस्थित हुआ है। कवि को व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार, बेईमानी आदि के प्रति गहरा आक्रोश है। मानवीय संवेदनाओं से भी कवि का हृदय भरा हुआ है। वह असहाय और निर्धन वर्ग के प्रति विशेष प्रेम के भावों को अपने हृदय में संजोए हुए है।

उसकी वाणी में लुकाव – छिपाव नहीं है। वह अपनी बात सीधे और मारक ढंग से कहता है। कवि की भाषा खड़ी बोली है। सरल-सरस और भावपूर्ण भाषा में उसने अपनी बात को कहने का गुण प्राप्त किया है। उसकी भाषा में पारदर्शिता है। तत्सम और तद्भव शब्दावली को समन्वित प्रयोग के साथ-साथ उर्दू शब्दावली का प्रयोग भी सहज रूप से करने की क्षमता कवि ने दिखाई है।

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कविता का सार :

कवि ने अपनी कविता में सभ्यता के विकास की खतरनाक दिशा की ओर संकेत करते हुए चेतावनी भरे स्वर में कहा है कि इस युग में मानव कहीं भी सुरक्षित नहीं है। इसका जीवन चारों ओर से संकट में घिरा हुआ है। जन-विरोधी ताकतें निरंतर फैलती जा रही हैं। कवि अपनी माँ को याद करते हुए कहता है कि वह ईश्वरीय भक्ति-भाव और आस्था के सहारे जीवन-शक्ति प्राप्त कर लेती थी। उसमें दुखों को सहन करने की अपार शक्ति थी।

वह मानती थी कि दक्षिण दिशा मृत्यु के देवता की है, इसलिए उस तरफ पैर करके कभी नहीं सोना चाहिए। यमराज को नाराज करना बुद्धिमत्ता नहीं है। कवि इसके बाद कभी भी दक्षिण दिशा में पाँव करके नहीं सोया, पर कवि मानता है कि अब तो सभी दिशाओं में यमराज हैं। आलीशान महल है और वे हर दिशा में अपनी दहकती आँखों के साथ विराजते हैं। अब तो हर दिशा में हिंसा, विध्वंस, नाश और मौत के चिह्न फैले हुए हैं।

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