JAC Board Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी
→ एक काल्पनिक गाँव पालमपुर की कहानी का मूल उद्देश्य उत्पादन सम्बन्धी क्रियाओं; जैसे-कृषि, लघुस्तरीय विनिर्माण, डेयरी, परिवहन आदि से परिचित कराना है।
→ उत्पादन की इन समस्त क्रियाओं को पूरा करने के लिए विभिन्न संसाधनों; जैसे-भूमि, पूँजी, श्रम व मानवकृत वस्तुओं आदि की आवश्यकता होती है।
→ पालमपुर गाँव सड़क से जुड़ा हुआ है। इस सड़क पर बैलगाड़ी, भैंसागाड़ी के साथ-साथ मोटर साइकिल, जीप, ट्रैक्टर, ट्रक आदि देखे जा सकते हैं। इस गाँव में एक-तिहाई परिवार दलित वर्ग के रहते हैं जिनके मकान घास-फंस और मिट्टी के बने हुए हैं।
→ पालमपुर गाँव में विद्युत, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि का पर्याप्त विकसित तन्त्र मौजूद है।
→ भारतीय गाँवों में उत्पादन की प्रमुख क्रिया खेती (कृषि) है। इस गाँव में कृषि के साथ-साथ लघु व कुटीर उद्योग, परिवहन कार्य व दुकानदारी भी सहायक क्रियाओं के रूप में पाई जाती हैं। इन्हें गैर कृषि क्रियायें कहा जाता है।
→ उत्पादन का उद्देश्य उन वस्तुओं और सेवाओं को उपलब्ध कराना है जिनकी मानव को आवश्यकता होती है। उत्पादन के लिए आवश्यक तत्व हैं- भूमि तथा प्राकृतिक संसाधन (वन, खनिज, जल), श्रम-मानवीय व यांत्रिक, भौतिक पूँजी (भवन, मशीन, औजार), मानव पूँजी (ज्ञान व उद्यम) आदि।
→ पालमपुर गाँव की लगभग 75% जनसंख्या कृषि कार्यों से अपनी आजीविका चलाती है। भूमि माप की मानक इकाई हेक्टेयर है किन्तु गाँव में भूमि की माप-बीघा, गुंठा जैसी क्षेत्रीय इकाइयों में भी की जाती है।
→ पालमपुर में समस्त भूमि पर खेती की जाती है, कोई भाग खाली नहीं छोड़ा जाता। यहाँ खरीफ व रबी दोनों फसलों के साथ-साथ आलू व गन्ने की खेती भी की जाती है।
→ पालमपुर में किसान एक वर्ष में दो के स्थान पर तीन फसलें लेते हैं क्योंकि यहाँ सिंचाई की अच्छी व्यवस्था है। एक वर्ष में किसी भूमि पर एक से ज्यादा फसल पैदा करने को बहुविध फसल प्रणाली कहते हैं।
→ सम्पूर्ण भारत में केवल 40% से भी कम क्षेत्र में सिंचाई की उचित व्यवस्था है, शेष क्षेत्र में कृषि मुख्यतः वर्षा पर ही आधारित है। एक वर्ष में किसी भूमि पर एक से अधिक फसलें पैदा करने को ‘बहुविध फसल प्रणाली’ के नाम से जाना जाता है।
→ सन् 1960 के दशक के अन्त में हुई हरित क्रान्ति के कारण किसानों को एच.वाई.वी. बीज तथा प्राकृतिक खाद के स्थान पर रासायनिक खाद तथा कीटनाशकों का प्रयोग समझ में आया, जिससे उनके कृषि उत्पादनों में गुणात्मक वृद्धि हुई।
→ अनेक क्षेत्रों में हरित क्रान्ति के कारण उर्वरकों के अधिक प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता धीरे-धीरे कम हो रही है। नलकपों से लगातार सिंचाई के कारण भौम जल-स्तर कम हो रहा है। अतः भविष्य में विकास को सुनिश्चित करने के लिए हमें पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देने की अधिक आवश्यकता है।
→ पालमपुर गाँव के लगभग एक -तिहाई परिवार जो दलित हैं उनके पास भूमि नहीं है लेकिन फिर भी वे खेती का कार्य दूसरों की भूमि पर करते हैं जिन्हें ‘खेतिहर मजदूर’ के नाम से जाना जाता है।
→ ग्रामीण परिवेश में खेतिहर मजदूरों की दयनीय दशा है क्योंकि सरकार द्वारा खेतों में काम करने वाले श्रमिकों के लिए एक दिन का न्यूनतम वेतन 300/- (मार्च 2017) भी नहीं मिलता।
→ आधुनिक तरीकों से कृषि करने के लिए अब ज्यादा पूँजी की जरूरत होती है, छोटे किसान इस धन की व्यवस्था साहूकारों या महाजनों से करते हैं जिनकी ब्याज दर बहुत ऊँची होती है, जिसे चुकाने के लिए इन्हें बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं।
→ छोटे और मझोले किसानों के पास कृषि उत्पादन के अधिशेष इतने नहीं बचते कि वे बचत कर सकें या अगली फसल के लिए पूँजी की व्यवस्था कर सकें लेकिन बड़े किसानों के पास पर्याप्त अधिशेष के चलते वे कृषि कार्यों के लिए मशीनें ट्रैक्टर, हार्वेस्टर आदि की व्यवस्था भी कर लेते हैं।
→ गाँवों में कृषि के अलावा अब डेयरी उद्योग भी पनपने लगे हैं। इसमें दुग्ध संग्रहण एवं शीतलन के द्वारा दूध को दूर-दराज के शहरों और कस्बों में भेजा जाता है।