JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

JAC Board Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

→ जब शिक्षा, प्रशिक्षण तथा स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश किया जाता है तो जनसंख्या मानव पूँजी में परिवर्तित हो जाती है।

→ जनसंख्या, उत्पादन में अपनी भूमिका एक संसाधन के रूप में निभाती है जो सकल राष्ट्रीय उत्पाद के सृजन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। यह जनसंख्या का एक सकारात्मक पहलू है।

→ यही जनसंख्या उस समय एक समस्या के रूप में सामने आती है जब इसके लिए प्राथमिक आवश्यकताओं; जैसे- भोजन, वस्त्र, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की पूर्ति करना होता है। यह जनसंख्या का एक नकारात्मक पहलू है।

→ जब मानवीय संसाधन रूपी जनसंख्या को शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के माध्यम से विकसित किया जाता है तब हम इसे मानव-पूँजी निर्माण कहते हैं जो कि देश की उत्पादन क्षमता में भौतिक पूँजी निर्माण की भाँति वृद्धि करता है।

→ समाज में उच्च आय से केवल शिक्षित और स्वस्थ लोगों को ही लाभ नहीं होता बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से समाज के सभी लोगों को लाभ होता है। इसीलिए मानव पूँजी उत्पादन के अन्य संसाधनों से श्रेष्ठ बताई जाती है।

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→ बच्चों में शिक्षा के द्वारा उनकी गुणवत्ता को बढ़ाया जाता है जिससे कुल उत्पादकता में वृद्धि के साथ-साथ देश की संवृद्धि भी होती है।

→ भूमि और पूँजी में निवेश की भाँति जनसंख्या में निवेश द्वारा भविष्य में उच्च प्रतिफल प्राप्त होता है। जापान जैसे प्राकृतिक संसाधनों से हीन देश मानव संसाधन पर निवेश और कुशल उपयोग करके आज धनी देश बन गये हैं।

→ शिक्षित माता – पिता अपने बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान इसलिए देते हैं कि वे स्वयं शिक्षा और स्वास्थ्य के महत्व से अशिक्षित की अपेक्षा ज्यादा परिचित होते हैं।

→ जनसंख्या की गुणवत्ता साक्षरता – दर, जीवन-प्रत्याशा से निरूपित व्यक्तियों के स्वास्थ्य और देश के लोगों द्वारा प्राप्त कौशल निर्माण पर निर्भर करती है। मानव के विभिन्न क्रियाकलापों को प्राथमिक , द्वितीयक व तृतीयक क्षेत्रों में विभाजित किया गया है, इन्हीं क्षेत्रों के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।

→ मानव द्वारा धनोपार्जन हेतु जो क्रियाएँ की जाती हैं उन्हें आर्थिक क्रियाएँ कहा जाता है।

→ अनार्थिक क्रियाएँ वे क्रियाएँ हैं जो स्व-उपभोग हेतु या दान-पुण्य के लिए की जाती हैं।

→ किसी व्यक्ति के पारिश्रमिक का निर्धारण उसकी योग्यता और शिक्षा के आधार पर किया जाता है।

→ देश की संवृद्धि दर निर्धारण में जनसंख्या की गुणवत्ता महत्वपूर्ण कारक है।

→ शिक्षा व्यक्ति के लिए नये क्षितिज, नई आकांक्षाएँ तथा जीवन मूल्य विकसित करने में अहम् भूमिका निभाती है इसीलिए प्राथमिक शिक्षा को सभी के लिए अनिवार्य किया गया है। लड़कियों की शिक्षा पर भी विशेष बल दिया जा रहा है।

→ सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में शिक्षा पर व्यय सन् 1951-52 के 0.64 प्रतिशत से बढ़कर सन् 2015-16 में 3 प्रतिशत के लगभग हो गया है। साक्षरता दर 1951 के 18 प्रतिशत से बढ़कर 2011 में 74 प्रतिशत हो गई है।

→ वर्ष 2011 में केरल के कुछ जिलों में साक्षरता दर 94 प्रतिशत है जबकि बिहार में 62 प्रतिशत ही है।

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→ बारहवीं योजना में 18-23 वर्ष आयु वर्ग के नामांकन में 25.2 प्रतिशत तक की वृद्धि 2017-18 में तथा वर्ष 2020-21 तक 30 प्रतिशत तक वृद्धि करने का प्रयास जारी है।

→ भारत में सर्वशिक्षा अभियान हेतु पाठ्यक्रम, स्कूल लौटो शिविर तथा मिड-डे-मील जैसी योजनाओं के द्वारा सभी को शिक्षा प्रदान करने की सरकार द्वारा कोशिशें की जा रही हैं।

→ किसी फर्म में स्वस्थ व्यक्तियों को ही रोजगार दिया जाता है क्योंकि एक स्वस्थ व्यक्ति ही उत्पादन वृद्धि में सहयोग कर सकता है।

→ सरकार द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं, परिवार कल्याण कार्यक्रमों और पौष्टिक भोजन की उपलब्धि से जनसंख्या की जीवन प्रत्याशा में वृद्धि, शिशु मृत्यु दर तथा जन्म दर में कमी आई है।

→ आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार 2014 में जीवन प्रत्याशा 68.3 वर्ष से अधिक हो गयी है। 2016 में शिशु मृत्युदर घटकर 34 पर आ गयी है।

→ बेरोजगार उस व्यक्ति को कहा जाता है जो प्रचलित मजदूरी पर काम करने की इच्छा रखता है लेकिन उसे कोई काम नहीं मिलता है। बेरोजगारों में केवल 15 वर्ष से 59 वर्ष के लोगों को शामिल किया जाता है।

→ भारतीय ग्रामों में मौसमी व प्रच्छन्न बेरोजगारी तथा शहरों में शिक्षित बेरोजगारी दिखाई देती है।

→ बेरोजगारी के कारण तेजी से स्वास्थ्य स्तर में गिरावट तथा विद्यालय प्रणाली से अलगाव में वृद्धि होने लगती है।

→ शिक्षा के माध्यम व व्यक्ति की लगन और मेहनत से कई प्रकार के आधुनिक आर्थिक क्रियाकलापों को जन्म देकर देश की एक बड़ी समस्या बेरोजगारी को कुछ हद तक कम किया जा सकता है।

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