JAC Board Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती
→ स्वतन्त्र भारत के समक्ष सर्वाधिक कठिन चुनौती निर्धनता की समस्या है।
→ भारत एवं विश्व में निर्धनता की प्रवृतियों को निर्धनता रेखा की अवधारणा के माध्यम से समझाया गया है।
→ जिन्हें हम निर्धन समझते हैं वे गाँवों के भूमिहीन श्रमिक या शहरों की भीड़ भरी झुग्गियों में रहने वाले लोग हो सकते हैं। ये निर्धन लोग दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी या ढाबों पर काम करने वाले बाल श्रमिक अथवा भिखारी भी हो सकते हैं।
→ एक व्यक्ति तब निर्धन माना जाता है जब उसकी आय या उपभोग का स्तर इतना कम होता है कि वह अपनी मूलभूत न्यूनतम आवश्यकताओं को भी पूर्ण नहीं कर पाता है।
→ महात्मा गाँधी सदैव इस बात पर जोर देते थे कि भारत सही मायने में तभी स्वतन्त्र होगा जब यहाँ का सबसे निर्धन व्यक्ति भी मानवीय व्यथा से मुक्त होगा।
→ सामाजिक वैज्ञानिकों द्वारा निर्धनता को अनेक सूचकों जैसे आय और उपभोग के स्तर, निरक्षरता के स्तर, कुपोषण के कारण रोग प्रतिरोधी क्षमता की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, रोजगार के अवसरों की कमी, सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता की कमी आदि के माध्यम से देखा जाता है।
→ निर्धनता के प्रति असुरक्षा एक माप है जो कुछ विशेष समुदायों या व्यक्तियों के आने वाले वर्षों में निर्धन होने या बने रहने की सम्भावना को प्रदर्शित करता है।
→ असुरक्षा का निर्धारण परिसम्पत्तियों, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों का जीविका के लिए विभिन्न समुदायों के पास उपलब्ध विकल्पों से होता है।
→ निर्धनता रेखा की अवधारणा के माध्यम से निर्धनता का आकलन सामान्य आय एवं उपभोग स्तर के आधार पर समझाया जाता है।
→ व्यक्तियों की मूल आवश्यकताएँ काल एवं स्थान के अनुसार भिन्न होती हैं इसीलिए काल एवं स्थान के अनुसार निर्धनता रेखा भी भिन्न होती है।
→ निर्धनता रेखा का आकलन सामान्यतः प्रत्येक 5 वर्ष बाद ‘राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन’ द्वारा किया जाता है।
→ भारत में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के परिवार निर्धनता के प्रति सर्वाधिक असुरक्षित हैं। आर्थिक समूहों ‘ में सर्वाधिक असुरक्षित समूह-ग्रामीण कृषि श्रमिक परिवार व अनियमित मजदूर परिवार हैं।
→ निर्धन परिवार के सभी लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है किन्तु कुछ लोगों, जैसे महिलाओं, वृद्धों और लड़कियों को अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
→ वर्ष 2011-12 में भारत का निर्धनता अनुपात 22 प्रतिशत था, लेकिन सभी राज्यों में इसकी दर एक समान नहीं है।
→ भारत के उड़ीसा, असम, बिहार, बंगाल, त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश राज्यों में निर्धनता अन्य राज्यों की अपेक्षा एक गम्भीर समस्या है।
→ पंजाब और हरियाणा राज्यों में उच्च कृषि वृद्धि दर के द्वारा, केरल में मानव संसाधन विकास द्वारा तथा पश्चिमी बंगाल में भूमि सुधार उपायों के माध्यम से निर्धनता को कम करने में सफलता हासिल की गई है।
→ भारत में निर्धनता के प्रमुख कारण हैं
- ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान आर्थिक विकास का निम्न स्तर।
- जनसंख्या में उच्च वृद्धि दर का पाया जाना।
- गाँवों से शहरों की ओर पलायन की प्रवृत्ति ने नगरीय क्षेत्रों में निर्धनता को बढ़ावा दिया।
- भूमि और संसाधनों का असमान वितरण।
- भारत में भूमि संसाधनों की कमी और भूमि का उप विभाजन।
- भारतीयों में सामाजिक दायित्वों और धार्मिक अनुष्ठानों की प्रवृत्ति का अधिक पाया जाना।
- अत्यधिक ऋणग्रस्तता भी निर्धनता का प्रमुख कारण है।
→ भारत में निर्धनता उन्मूलन हेतु उपाय
- भारत सरकार द्वारा आर्थिक संवृद्धि दर को प्रोत्साहन देना।
- राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम, 2005 (मनरेगा) पारित किया गया।
- राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम प्रारम्भ करना।
- प्रधानमन्त्री रोजगार योजना शुरू करना।
- ग्रामीण रोजगार सृजन योजना लागू करना।
- स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना प्रारम्भ करना।
- प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना प्रारम्भ करना।
- अंत्योदय अन्न योजना प्रारम्भ करना आदि।
→ देश की प्रगति के बाद भी निर्धनता उन्मूलन एक महत्वपूर्ण चुनौती है। आशा है कि अगले 10-15 वर्षों में निर्धनता उन्मूलन में अधिक प्रगति होगी जो प्रमुख रूप से उच्च आर्थिक संवृद्धि, सभी को प्राथमिक शिक्षा उपलब्धि पर जोर, जनसंख्या विकास में कमी, महिलाओं और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बढ़ते सशक्तीकरण से सम्भव हो सकेगा।