Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ Important Questions and Answers.
JAC Board Class 12 Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ
बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)
प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखो
1. इनमें से मानव की प्राथमिक क्रिया कौन-सी नहीं है ?
(A) मत्स्यन
(B) वानिकी
(C) शिकार करना
(D) उद्योग।
उत्तर:
(D) उद्योग।
2. इनमें से मानव की प्राचीनतम क्रिया कौन-सी है?
(A) मत्स्य न
(B) एकत्रीकरण
(C) कृषि
(D) उद्योग।
उत्तर:
(B) एकत्रीकरण
3. एकत्रीकरण की क्रिया किस प्रदेश में है?
(A) अमेज़न बेसिन
(B) गंगा बेसिन
(C) हवांग-हो बेसिन
(D) नील बेसिन।
उत्तर:
(A) अमेज़न बेसिन
4. सिनकोना वृक्ष की छाल से प्राप्त होती है
(A) रबड़
(B) टैनिन
(C) कुनीन
(D) गम।
उत्तर:
(C) कुनीन
5. कौन-सी जनजाति मौसमी पशुचारण की प्रथा करता है?
(A) पिग्मी
(B) रेड इण्डियन
(C) बकरवाल
(D) मसाई।
उत्तर:
(C) बकरवाल
6. गहन निर्वाह कृषि की मुख्य फ़सल कौन-सी है?
(A) चावल
(B) गेहूँ
(C) मक्का
(D) कपास।
उत्तर:
(A) चावल
7. विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि में कौन-सी मुख्य फ़सल है?
(A) गेहूँ
(B) चावल
(C) मक्का
(D) पटसन।
उत्तर:
(A) गेहूँ
8. फ़ैजण्डा खेतों पर किस फ़सल की कृषि होती है?
(A) चाय
(B) कहवा
(D) गन्ना।
(C) कोको
उत्तर:
(B) कहवा
9. केलों की रोपण कृषि किस प्रदेश में है ?
(A) अफ्रीका
(B) पश्चिमी द्वीप समूह
(C) ब्राज़ील
(D) जापान।
उत्तर:
(B) पश्चिमी द्वीप समूह
10. डेनमार्क किस कृषि के लिए प्रसिद्ध है?
(A) मिश्रित कृषि
(B) पशुपालन
(C) डेयरी उद्योग
(D) अनाज कृषि।
उत्तर:
(C) डेयरी उद्योग
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
प्रश्न 1.
‘आर्थिक क्रियाओं’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मानव के वे क्रियाकलाप, जिनसे आय प्राप्त होती है।
प्रश्न 2.
कोई चार प्राथमिक क्रियाओं के नाम लिखो।
उत्तर:
आखेट, मत्स्यन, वानिकी, कृषि।।
प्रश्न 3.
आदिम कालीन मानव के दो क्रियाकलाप बताओ।
उत्तर:
आखेट तथा एकत्रीकरण ।
प्रश्न 4.
भारत में शिकार पर क्यों प्रतिबन्ध लगाया गया है?
उत्तर:
जंगली जीवों के संरक्षण के लिए।
प्रश्न 5.
चिकल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यह ज़ोपोरा वृक्ष के दूध से बनता है।
प्रश्न 6.
उस वृक्ष का नाम लिखें जिसकी छाल से कनीन बनती है।
उत्तर:
सिनकोना।
प्रश्न 7.
व्यापारिक उद्देश्य के लिए एकत्रीकरण द्वारा प्राप्त तीन वस्तुओं के नाम लिखो। .
उत्तर:
कुनीन, रबड़, बलाटा, गम।
प्रश्न 8.
पशुधन पालन का आरम्भ क्यों हुआ?
उत्तर:
केवल आखेट से जीवन का भरण पोषण न होने के कारण पशुधन पालन आरम्भ हुआ।
प्रश्न 9.
सहारा क्षेत्र तथा एशिया के मरुस्थल में कौन-से पशु पाले जाते हैं ?
उत्तर:
भेड़ें, बकरियां, ऊंट।
प्रश्न 10.
पर्वतीय क्षेत्र तथा टुण्ड्रा प्रदेश में कौन-से जीव पाले जाते हैं?
उत्तर:
तिब्बत में याक, एण्डीज़ में लामा, टुण्ड्रा में रेण्डियर।
प्रश्न 11.
कौन-से जाति समूह हिमालय पर्वत में मौसमी स्थानान्तरण करते हैं?
उत्तर:
गुज्जर, बकरवाल, गद्दी, भोटिया।
प्रश्न 12.
किस प्रकार के क्षेत्र में गहन निर्वाहक कृषि की जाती है?
उत्तर:
मानसून प्रदेश के सघन बसे प्रदेशों में।
प्रश्न 13.
रोपण कृषि का आरम्भ किसने किया?
उत्तर:
यूरोपियन लोगों ने अपनी कालोनियों में रोपण कृषि आरम्भ की।
प्रश्न 14.
वे तीन युग बताओ जिनमें सभ्यता खनिजों पर आधारित थी?
उत्तर:
तांबा युग, कांसा युग, लौह युग।
प्रश्न 15.
उस देश का नाम बताइए जहां व्यावहारिक रूप से हर किसान सहकारी समिति का सदस्य है।
उत्तर:
डेनमार्क जिसे सहकारिता का देश कहते हैं।
प्रश्न 16.
मानव की सबसे पुरानी दो आर्थिक क्रियाएं लिखो।
उत्तर:
आखेट तथा मत्स्यन।
प्रश्न 17.
सोवियत संघ में सामूहिक कृषि को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
कोल खहोज़।
प्रश्न 18.
भूमध्य सागरीय कषि के एक उत्पादन का नाम लिखिए।
उत्तर:
अंगूर।
प्रश्न 19.
भारत व श्रीलंका में चाय बागानों का विकास सर्वप्रथम किस देश ने किया था ?
उत्तर:
ब्रिटेन।
प्रश्न 20.
प्राथमिक व्यवसाय में लगे हुए श्रमिक किस रंग (कलर) वाले श्रमिक कहलाते हैं ?
उत्तर:
लाल कलर श्रमिक।
प्रश्न 21.
रेडियर कहां पाला जाता है ?
उत्तर:
टुंड्रा (Tundra) प्रदेश में।
प्रश्न 22.
रोपन कृषि किन प्रदेशों में की जाती है ?
उत्तर:
पश्चिमी द्वीप समूह, भारत, श्रीलंका।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
आर्थिक क्रियाकलाप क्या है? इनके विभिन्न वर्ग बताओ।
उत्तर:
मनुष्य अपने जीवन यापन के लिए कुछ क्रियाकलाप अपनाता है। मानवीय क्रियाकलाप जिनसे आय प्राप्त होती है, आर्थिक क्रियाकलाप कहलाते हैं। इसे मुख्यतः चार वर्गों में बांटा जाता है –
- प्राथमिक
- द्वितीयक
- तृतीयक
- चतुर्थक।
प्रश्न 2.
आदिम कालीन मानव के जीवन निर्वाह के दो साधन बताओ।
उत्तर:
आदिम कालीन मानव अपने जीवन निर्वाह के लिए पूर्णतः पर्यावरण पर निर्भर था। पर्यावरण से दो प्रकार के खाद्य पदार्थ उपलब्ध थे
- पशुओं का आखेट करके।
- खाने योग्य जंगली पौधे एवं कन्द मूल एकत्रित करके।
प्रश्न 3.
उन तीन प्रदेशों के नाम लिखो जहां वर्तमान समय में भोजन संग्रह (एकत्रीकरण) प्रचलित है।
उत्तर:
भोजन संग्रह (एकत्रीकरण) विश्व के इन प्रदेशों में किया जाता है –
- उच्च अक्षांश के क्षेत्र जिसमें उत्तरी कनाडा, उत्तरी यूरेशिया एवं दक्षिणी चिली।
- निम्न अक्षांश के क्षेत्र जिसमें अमेजन बेसिन, उष्णकटिबन्धीय अफ्रीका।
- ऑस्ट्रेलिया एवं दक्षिणी पूर्वी एशिया का आन्तरिक प्रदेश।
प्रश्न 4.
चलवासी पशुचारण से क्या अभिप्राय है? इससे मूल आवश्यकताओं की पूर्ति कैसे होती है?
उत्तर:
चलवासी पशुचारण एक प्राचीन जीवन निर्वाह व्यवसाय रहा है। पशुचारक अपने भोजन, वस्त्र, शरण, औजार एवं यातायात के लिए पशुओं पर निर्भर रहते थे। वे अपने पालतू पशुओं के साथ पानी एवं चरागाहों की उपलब्धता की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान तक फिरते रहते थे। ये पशु इन्हें कपड़े, शरण, औज़ार तथा यातायात की मूल आवश्यकताएं प्रदान करते थे।
प्रश्न 5.
चलवासी पशुचारकों की संख्या अब घट रही है। क्यों ? दो कारण दो।
उत्तर:
विश्व में लगभग 10 मिलियन पशु चारक हैं जो चलवासी हैं। इनकी संख्या दिन प्रतिदिन दो कारणों से घट रही है।
- राजनीतिक सीमाओं का अधिरोपण
- कई देशों द्वारा नई बस्तियों की योजना बनाना।
प्रश्न 6.
वाणिज्य पशुधन पालन से क्या अभिप्राय है? इसकी विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
वाणिज्य पशुधन पालन एक बड़े पैमाने पर अधिक व्यवस्थित पशुपालन व्यवसाय है। इसमें भेड़, बकरी, गाय, बैल, घोड़े पाले जाते हैं जो मानव को मांस, खालें एवं ऊन प्रदान करते हैं।
विशेषताएं:
- यह एक पूंजी प्रधान क्रिया है तथा वैज्ञानिक ढंगों पर व्यवस्थित क्रिया है।
- पशुपालन विशाल क्षेत्र पर रैंचों पर होता है।
- इसमें मुख्य ध्यान पशुओं के प्रजनन, जननिक सुधार, बीमारियों पर नियन्त्रण तथा स्वास्थ्य पर दिया जाता है।
- उत्पादित वस्तुओं को विश्व बाजारों में निर्यात किया जाता है।
प्रश्न 7.
महत्त्वपूर्ण रोपण कृषि के अधीन फ़सलों के नाम लिखो।
उत्तर:
महत्त्वपूर्ण रोपण फ़सलें निम्नलिखित हैं चाय, कहवा तथा कोको; रबड़, कपास, नारियल, गन्ना, केले तथा अनानास।
प्रश्न 8.
‘बुश-फैलो’ कृषि से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
स्थानान्तरी कृषि को बुश-फैलो कृषि कहते हैं। वन क्षेत्रों को काटकर या जलाकर भूमि का एक टुकड़ा कृषि के लिए साफ़ किया जाता है। इसे कर्तन एवं दहन कृषि (‘Slash and Burn’) या Bush fallow कृषि कहते हैं।
प्रश्न 9.
झूमिंग से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में स्थानान्तरी कृषि को झूमिंग (Jhumming) कहते हैं। असम, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, नागालैंड में आदिकालीन निर्वाह कृषि की जाती है, वृक्षों को काटकर, जलाकर, कृषि के लिए एक टुकड़ा साफ किया जाता है। कुछ वर्षों के पश्चात् जब खेतों की उर्वरता कम हो जाती है तो नए टुकड़े पर कृषि आरम्भ की जाती है। इससे खेतों का हेर-फेर होता है।
प्रश्न 10.
डेयरी फार्मिंग का विकास नगरीकरण के कारण हुआ है। सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
डेयरी उद्योग मांग क्षेत्रों के समीप लगाया जाता है। यह उद्योग अधिकतर नगरों, औद्योगिक तथा व्यापारिक क्षेत्रों के निकट लगाया जाता है। इसका औद्योगिकीकरण तथा नगरीकरण से गहरा सम्बन्ध है। नगरों में जनसंख्या की वृद्धि के कारण दुग्ध पदार्थों की मांग अधिक होती है। इसीलिए यूरोप के औद्योगिक क्षेत्रों के निकट तथा महानगरों के निकट डेयरी उद्योग का विकास हुआ है।
प्रश्न 11.
धान की गहन जीविकोपार्जी कृषि के क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व अधिक क्यों है?
उत्तर:
धान की कृषि मानसून क्षेत्रों में की जाती है। कृषि के सभी कार्य मानवीय हाथों से किए जाते हैं। इसलिए सस्ते तथा अधिक श्रम की आवश्यकता होती है। श्रम की अधिक मांग के कारण इन क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व उच्च रहता है।
प्रश्न 12.
विस्तृत भूमि अधिकांशतः मशीनों की सहायता से क्यों की जाती है?
उत्तर:
बड़ी-बड़ी जोतों पर मशीनों की सहायता से, बड़े पैमाने पर कृषि की जाती है। इन क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व कम है। भूमि एवं मनुष्य अनुपात अधिक है। श्रम महंगा है तथा कम उपलब्ध है। इसलिए कृषि कार्यों में बड़े पैमाने पर कृषि यन्त्रों का प्रयोग होता है।
प्रश्न 13.
खनन को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन करो।
उत्तर:
खनन कार्य को प्रभावित करने वाले कारक-खनन कार्य की लाभप्रदता दो बातों पर निर्भर करती है –
- भौतिक कारकों में खनिज निक्षेपों के आकार, श्रेणी एवं उपस्थिति की अवस्था को सम्मिलित करते हैं।
- आर्थिक कारकों जिसमें खनिज की मांग, विद्यमान तकनीकी ज्ञान एवं उसका उपयोग, अवसंरचना के विकास के लिए उपलब्ध पूंजी एवं यातायात व श्रम पर होने वाला व्यय आता है।
प्रश्न 14.
धरातलीय एवं भूमिगत खनन में अन्तर. स्पष्ट करो।
उत्तर:
खनन की विधियां उपस्थिति की अवस्था एवं अयस्क की प्रकृति के आधार पर खनन के दो प्रकार हैं धरातलीय एवं भूमिगत खनन।
धरातलीय खनन (Open cast Mining):
धरातलीय खनन को विवृत खनन.भी कहा जाता है। यह खनिजों के खनन का सबसे सस्ता तरीका है, क्योंकि इस विधि में सुरक्षात्मक पूर्वोपायों एवं उपकरणों पर अतिरिक्त खर्च अपेक्षाकृत निम्न कम होता है एवं उत्पादन शीघ्र व अधिक होता है।
भूमिगत खनन (Underground Mining):
जब अयस्क धरातल के नीचे गहराई में होता है तब भूमिगत अथवा कूपकी खनन विधि का प्रयोग किया जाता है। इस विधि में लंबवत् कूपक गहराई तक स्थित हैं, जहां से भूमिगत गैलरियां खनिजों तक पहुंचने के लिए फैली हैं। इन मार्गों से होकर खनिजों का निष्कर्षण एवं परिवहन धरातल तक किया जाता है। खदान में कार्य करने वाले श्रमिकों तथा निकाले जाने वाले खनिजों के सुरक्षित और प्रभावी आवागमन हेतु इसमें विशेष प्रकार की लिफ्ट बोधक (बरमा), माल ढोने की गाड़ियां तथा वायु संचार प्रणाली की आवश्यकता होती है। खनन का यह तरीका जोखिम भरा है क्योंकि जहरीली गैसें, आग एवं बाढ़ के कारण कई बार दुर्घटनाएं होने का भय रहता है। भारत की कोयला खदानों में आग लगने एवं बाढ़ आने की कई दुर्घटनाएँ हुई हैं।
प्रश्न 15.
विकसित देश खनन कार्य से पीछे क्यों हट रहे हैं?
उत्तर:
विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश उत्पादन की खनन, प्रसंस्करण एवं शोधन कार्य से पीछे हट रहे हैं क्योंकि इसमें श्रमिक लागत अधिक आने लगी है। जबकि विकासशील देश अपने विशाल श्रमिक शक्ति के बल पर अपने देशवासियों के ऊंचे रहन-सहन को बनाए रखने के लिए खनन कार्य को महत्त्व दे रहे हैं। अफ्रीका के कई देश, दक्षिण अमेरिका के कुछ देश एवं एशिया में आय के साधनों का पचास प्रतिशत तक खनन कार्य से प्राप्त होता है।
प्रश्न 16.
ऋतु प्रवास क्या होता है ?
उत्तर:
जब ग्रीष्म ऋतु में चरवाहे पहाड़ी ढलानों पर चले जाते हैं परन्तु शीत ऋतु में मैदानी भागों में प्रवास करते हैं।
प्रश्न 17.
प्राथमिक क्रियाएँ क्या हैं ?
उत्तर:
प्र.यमिक क्रियाकलाप-इस क्रियाकलाप में मुख्य उत्पाद पर्यावरण से सीधे रूप से प्राप्त किए जाते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
प्राथमिक क्रियाकलापों से क्या अभिप्राय है? ये किस प्रकार पर्यावरण पर निर्भर हैं ? उदाहरण दें।
उत्तर:
प्राथमिक क्रियाकलाप (Primary Activities)-प्राथमिक क्रियाकलाप वे क्रियाएं हैं जिसमें मुख्य उत्पाद पर्यावरण से सीधे-रूप से प्राप्त किए जाते हैं। इस प्रकार ये क्रियाएं प्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण पर निर्भर हैं क्योंकि ये पृथ्वी के संसाधनों जैसे भूमि, जल, वनस्पति, भवन निर्माण सामग्री एवं खनिजों का उपयोग करती है।
उदाहरण:
इन क्रियाकलापों में आखेट; भोजन संग्रह, पशुचारण, मत्स्यन, वानिकी, कृषि एवं खनन।
प्रश्न 2.
‘आदिमकालीन समाज जंगली पशुओं पर निर्भर था।’ उदाहरण सहित व्याख्या करो।
उत्तर:
(i) आदिमकालीन समाज जंगली पशुओं पर निर्भर था। अतिशीत एवं अत्यधिक गर्म प्रदेशों के रहने वाले लोग आखेट द्वारा जीवन-यापन करते थे। प्राचीन-काल के आखेटक पत्थर या लकड़ी के बने औज़ार एवं तीर इत्यादि का प्रयोग करते थे, जिससे मारे जाने वाले पशुओं की संख्या सीमित रहती थी।
(ii) तकनीकी विकास के कारण यद्यपि मत्स्य-ग्रहण आधुनिकीकरण से युक्त हो गया है, तथापि तटवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोग अब भी मछली पकड़ने का कार्य करते हैं। अवैध शिकार के कारण जीवों की कई जातियां या तो लुप्त हो गई हैं या संकटापन्न हैं।
प्रश्न 3.
आदिमकालीन निर्वाह कृषि (स्थानान्तरी कृषि) से क्या अभिप्रायः है? इसके विभिन्न प्रकार बताओ।
उत्तर:
स्थानान्तरी कृषि (आदिमकालीन निर्वाह कृषि) (Shifting Agriculture) यह कृषि का बहुत प्राचीन ढंग है। यह कृषि उष्ण कटिबन्धीय वन प्रदेशों में आदिवासियों का मुख्य धन्धा है।
वनों को काट कर तथा:
झाड़ियों को जला कर भूमि को साफ कर लिया जाता है। वर्षा काल के पश्चात् उसमें फ़सलें बोई जाती हैं। जब दो तीन फ़सलों के पश्चात् उस भूमि का उपजाऊपन नष्ट हो जाता है, तो उस क्षेत्र को छोड़कर दूसरी भूमि में कृषि की जाती है। यहां खेत बिखरे-बिखरे होते हैं, यह कृषि छोटे पैमाने पर होती है तथा स्थानीय मांग को ही पूरा कर पाती है। यह कृषि प्राकृतिक दशाओं के अनुकूल होने के कारण ही होती है। इसमें खाद, उत्तम बीजों या यन्त्रों का कोई प्रयोग नहीं होता। इस प्रकार की कृषि में खेतों का हेरफेर होता है। इस कृषि पर लागत कम होती है। संसार में इस कृषि के क्षेत्रों का विस्तार कम होता जा रहा है। क्योंकि उपज कम होने तथा मृदा उर्वरता घटने की समस्याएं हैं।
प्रदेश तथा फ़सलें-प्रायः
इस कृषि में मोटे अनाजों की कृषि होती है जैसे चावल, मक्की, शकरकन्द, ज्वार आदि। भारत में अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड तथा मिज़ोरम प्रदेश में झूमिंग (Jhumming) नामक कृषि की जाती है। मध्य अमेरिका में उसे मिलपा (Milpa), मलेशिया तथा इन्डोनेशिया में लदांग (Ladang) कहते हैं।
प्रश्न 4.
गहन निर्वाह कृषि से क्या अभिप्राय है? इसके दो मुख्य प्रकार बताओ। (H.B. 2013)
उत्तर:
गहन निर्वाह कृषि (Intensive Subsistance Farming) गहन निर्वाह कृषि मानसून प्रदेशों में घनी जनसंख्या वाले क्षेत्रों में की जाती है। इसमें छोटे-छोटे खेतों पर प्रचुर मात्रा में श्रम लगाकर, उच्च उपज प्रति हेक्टेयर प्राप्त करके वर्ष में कई फ़सलें प्राप्त की जाती हैं।
गहन निर्वाह कृषि के प्रकार-गहन निर्वाह कृषि के दो प्रकार हैं –
(i) चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि-इसमें चावल प्रमुख फसल होती है। अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है एवं कृषि कार्य में कृषक का सम्पूर्ण परिवार लगा रहता है। भूमि का गहन उपयोग होता है एवं यन्त्रों की अपेक्षा मानव श्रम का अधिक महत्त्व है। उर्वरता बनाए रखने के लिए पशुओं के गोबर का खाद एवं हरी खाद का उपयोग किया जाता है। इस कृषि में प्रति इकाई उत्पादन अधिक होता है, परन्तु प्रति कृषक उत्पादन कम है।
(ii) चावल रहित गहन निर्वाह कृषि-मानसून एशिया के अनेक भागों में उच्चावच, जलवायु, मृदा तथा अन्य भौगोलिक कारकों की भिन्नता के कारण धान की फ़सल उगाना प्रायः सम्भव नहीं है। उत्तरी चीन, मंचूरिया, उत्तरी कोरिया एवं उत्तरी जापान में गेहं, सोयाबीन, जौ एवं सरघम बोया जाता है। भारत में सिंध-गंगा के मैदान के पश्चिमी भाग में गेहूं एवं दक्षिणी व पश्चिमी शुष्क प्रदेश में ज्वार-बाजरा प्रमुख रूप से उगाया जाता है।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त नोट लिखें
(i) उद्यान कृषि
(ii) बाज़ार के लिए सब्जी खेती
(ii) ट्रक कृषि
(iv) पुष्प कृषि
(v) फल उद्यान।।
उत्तर:
(i) उद्यान कृषि (Horticulture) – उद्यान कृषि व्यापारिक कृषि का एक सघन रूप है। इसमें मुख्यतः। सब्जियां, फल और फूलों का उत्पादन होता है। इस कृषि का विकास संसार के औद्योगिक तथा नगरीय क्षेत्रों के पास होता है। यह कृषि छोटे पैमाने पर की जाती है। परन्तु इसमें उच्च स्तर का विशेषीकरण होता है। भूमि पर सघन कृषि होती है। सिंचाई तथा खाद का प्रयोग किया जाता है। वैज्ञानिक ढंग, उत्तम बीज तथा कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग किया जाता है। उत्पादों को बाजार में तुरन्त बिक्री करने के लिए यातायात की अच्छी सुविधाएं होती हैं। इस प्रकार प्रति व्यक्ति आय बहुत अधिक होती है।
(ii) बाज़ार के लिए सब्जी खेती (Market Gardening) – बड़े-बड़े नगरों की सीमाओं पर सब्जियों की कृषि की जाती है।
(ii) ट्रक कृषि (Truck Farming) – नगरों से दूर, अनुकूल जलवायु तथा मिट्टी के कारण कई प्रदेशों में सब्जियों या फलों की कृषि की जाती है।
(iv) पुष्प कृषि (Flower Culture) – इस कृषि द्वारा विकसित प्रदेशों में फूलों की मांग को पूरा किया जाता है।
(v) फल उद्यान (Fruit Culture) – उपयुक्त जलवायु के कारण कई क्षेत्रों में विशेष प्रकार के फलों की कृषि की जाती है।
प्रश्न 6.
खाद्यान्न की बड़े पैमाने पर की जाने वाली यान्त्रिक कृषि में प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम होता है, परन्तु प्रति व्यक्ति उत्पादन ऊंचा होता है। क्यों?
उत्तर:
(1) खाद्यान्न की बड़े पैमाने पर कृषि शीत-उष्ण घास के मैदानों में की जाती है। इसे विस्तृत कृषि कहते हैं। यह कृषि बड़े-बड़े फ़ार्मों पर मुख्यतः यान्त्रिक कृषि होती है। इसमें ट्रैक्टर, कम्बाईन, हारवेस्टर आदि मशीनों द्वारा सभी कार्य किए जाते हैं। एक मशीन प्रायः 50 से 100 मानवीय श्रमिकों का कार्य कर सकती है। इसलिए उपज पर उत्पादन खर्च कम होता है। परन्तु प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम होता है।
(2) इन क्षेत्रों में औसत प्रति हेक्टेयर उत्पादन 15 क्विटल होता है। जबकि यूरोप में खाद्यान्न की सघन कृषि द्वारा नीदरलैण्ड, बेल्जियम आदि देशों में प्रति हेक्टेयर उत्पादन 50 क्विटल से अधिक होता है।
(3) यह कृषि कम जनसंख्या वाले प्रदेशों में होती है, जैसे कनाडा, अर्जेन्टाइना, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में कम जनसंख्या वाले क्षेत्र गेहूं उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र हैं। यहां प्रति व्यक्ति उत्पादन बहुत अधिक है क्योंकि श्रमिकों की संख्या कम होती है।
(4) यहां काफ़ी मात्रा में गेहूं निर्यात के लिए बच जाता है। इसलिए इन प्रदेशों को संसार का अन्न भण्डार (Granaries of the world) कहा जाता है।
प्रश्न 7.
सामूहिक कृषि तथा सहकारी कृषि में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
सहकारी कृषि: | सामूहिक कृषि: |
(i) जब कृषकों का एक समूह अपनी कृषि से अधिक लाभ कमाने के लिए स्वेच्छा से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य सम्पन्न करे उसे सहकारी |कृषि कहते हैं।
इसमें व्यक्तिगत फार्म अक्षुण्ण रहते हुए सहकारी रूप में कृषि की जाती है। |
(i) इस प्रकार की कृषि का आधारभूत सिद्धान्त अह। होता है कि इसमें उत्पादन के साधनों का स्वामित्व सम्पूर्ण समाज एवं सामूहिक श्रम पर आधारित होता है। कृषि का यह प्रकार पूर्व सोवियत संघ में प्रारम्भ हुआ था जहां कृषि की दशा सुधारने एवं उत्पादन में वृद्धि व आत्मनिर्भरता प्राप्ति के लिए सामूहिक कृषि प्रारम्भ की गई। इस प्रकार की सामूहिक कृषि को सोवियत संघ में कोलखहोज़ का नाम दिया गया। |
(ii) सहकारी संस्था कृषकों को सभी रूप में सहायता करती है। यह सहायता कृषि कार्य में आने वाली सभी चीजों की खरीद करने, कृषि उत्पाद को | उचित मूल्य पर बेचने एवं सस्ती दरों पर प्रसंस्कृत साधनों को जुटाने के लिए होती है। | (ii) सभी कृषक अपने संसाधन जैसे भूमि, पशुधन एवं श्रम को मिलाकर कृषि कार्य करते हैं। ये अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भूमि का छोटा-सा भाग अपने अधिकार में भी रखते हैं। सरकार उत्पादन का वार्षिक लक्ष्य निर्धारित करती है एवं उत्पादन को सरकार ही निर्धारित मूल्य पर खरीदती है। लक्ष्य से अधिक उत्पन्न होने वाला
भाग सभी सदस्यों को वितरित कर दिया जाता है या बाजार | में बेच दिया जाता है। |
(iii) सहकारी आन्दोलन एक शताब्दी पूर्व प्रारम्भ हुआ था एवं पश्चिमी यूरोप के डेनमार्क, नीदरलैण्ड, बेल्जियम, स्वीडन एवं इटली में यह सफलतापूर्वक चला। सबसे अधिक सफलता इसे डेनमार्क में मिली जहां प्रत्येक कृषक इसका सदस्य है। | (iii) उत्पादन एवं भाड़े पर ली गई मशीनों पर कृषकों को कर चुकाना पड़ता है। सभी सदस्यों को उनके द्वारा किए गए कार्य की प्रकृति के आधार पर भुगतान किया जाता है। असाधारण कार्य करने वाले सदस्य को नकद या । माल के रूप में पुरस्कृत किया जाता है। पूर्व सोवियत संघ की समाजवादी सरकार ने इसे प्रारम्भ किया जिसे अन्य समाजवादी देशों ने भी अपनाया। सोवियत संघ के विघटन के बाद इस प्रकार की कृषि में भी संशोधन किया गया है। |
प्रश्न 8.
संसार की रोपण कृषि की किन्हीं छः फसलों के नाम बताइए। रोपण कृषि की किन्हीं चार विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोपण फसलें
- चाय .
- कॉफी
- कोको
- कपास
- गन्ना
- केला
रोपण कृषि की विशेषताएं:
- रोपण कृषि में कृषि खेत को बागान कहा जाता है।
- इसमें अधिक पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है।
- इस कृषि में उच्च प्रबन्ध एवं तकनीकी नितांत आवश्यक है।
- इसमें वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाता है।
- यह एक फसली कृषि है जिसका निर्यात किया जाता है।
- इस फसल की उपज के लिए सस्ते श्रमिक आवश्यक हैं।
- इसके लिए यातायात विकसित होता है, जिसके द्वारा बागान एवं बाज़ार सुचारु रूप से जुड़े रहते हैं क्योंकि यह व्यावहारिक कृषि है।
प्रश्न 9.
निर्वाह कृषि किसे कहते हैं ? इस प्रकार की कृषि के दो वर्गों के नाम बताइए। एक वर्ग की तीन तीन मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
निर्वाह कृषि से अभिप्राय ऐसी कृषि से है जिसके सम्पूर्ण अथवा अधिकतर उत्पादों का उपयोग स्वयं कृषक परिवार करता है। कृषि उत्पादों का कम भाग निर्यात होता है।
निर्वाह कृषि को दो वर्गों में बांटा जा सकता है –
(i) आदिकालीन निर्वाह कृषि
(ii) गहन निर्वाह कृषि मुख्य विशेषताएं
(i) आदिकालीन निर्वाह कृषि
- इस कृषि को कर्तन एवं दहन कृषि (Slash and Burn) भी कहते हैं।
- इसका चलन उष्ण कटिबंधीय वन क्षेत्रों में है। जहां विभिन्न जनजातियां इस प्रकार की खेती अफ्रीका और दक्षिण पूर्वी एशिया में करती हैं।
- वन जलाकर कृषि के लिए भूमि तैयार की जाती है। (4) खेत बहुत छोटे-छोटे होते हैं। प्रति एकड़ उपज बहुत कम है।
- खेती पुराने औजारों जैसे-लकड़ी, कुदाल, फावड़े आदि से की जाती है।
- कुछ समय पश्चात् जब मिट्टी का उपजाऊपन कम हो जाता है तब कृषक पुराने खेत छोड़ कर नए. क्षेत्र में वन लाकर कृषि के लिए भूमि तैयार करता है।
तुलनात्मक प्रश्न (Comparison Type Questions)
प्रश्न-निम्नलिखित में अन्तर स्पष्ट करो
(क) जीविका कृषि तथा व्यापारिक कृषि।
(ख) गहन कृषि तथा विस्तृत कृषि।
उत्तर:
(क) जीविका कृषि (Subsistance Agriculture):
इस कृषि-प्रणाली द्वारा स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति करना होता है। इस कृषि का मुख्य उद्देश्य भूमि के उत्पादन से अधिक-से-अधिक जनसंख्या का भरण-पोषण किया जा सके। इसे निर्वाहक कृषि भी कहते हैं। स्थानान्तरी कृषि, स्थानबद्ध कृषि तथा गहन कृषि जीविका कृषि कहलाती है। इस कृषि द्वारा बढ़ती हुई जनसंख्या की मांग को पूरा किया जाता है।
प्रदेश (Areas):
यह कृषि एशिया के मानसूनी प्रदेशों में होती है। चीन, जापान, कोरिया, भारत, बंगला देश, बर्मा (म्यनमार), इण्डोनेशिया, दक्षिण-पूर्वी एशिया में गहन जीविका कृषि होती है। भारत में जीविका कृषि मध्य प्रदेश, बुन्देलखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा दक्षिणी बिहार के पिछड़े हुए भागों में होती है।
विशेषताएं (Characteristics):
इस कृषि में आई प्रदेशों में चावल की फसल प्रमुख होती है, परन्तु कम वर्षा या सिंचित क्षेत्रों में मोटे अनाज, गेहूं, दालें, सोयाबीन, तिलहन उत्पन्न की जाती है।
- खेत छोटे आकार के होते हैं।
- साधारण यन्त्र प्रयोग करके मानव श्रम पर अधिक जोर दिया जाता है।
- खेतों से अधिक उत्पादन प्राप्त करने तथा मिट्टी का उपजाऊपन कायम रखने के लिए हर प्रकार की खाद, रासायनिक उर्वरक का प्रयोग किया जाता है।
- भूमि का पूरा उपयोग करने के लिए साल में दो, तीन या चार-चार फसलें भी प्राप्त की जाती हैं। शुष्क ऋतु में अन्य खाद्य फसलों की भी कृषि की जाती है।
- भूमि के चप्पे-चप्पे पर कृषि की जाती है। पहाड़ी ढलानों पर सीढ़ीदार खेत बनाए जाते हैं। अधिकतर कार्य मानव-श्रम द्वारा किए जाते हैं।
- चरागाहों के भूमि प्राप्त न होने के कारण पशुपालन कम होता है।
व्यापारिक कृषि (Commercial Agriculture):
इस कृषि में व्यापार के उद्देश्य से फ़सलों की कृषि की जाती है। यह जीविका कृषि से इस प्रकार भिन्न है कि इस कृषि द्वारा संसार के दूसरे देशों को कृषि पदार्थ निर्यात किए जाते हैं। अनुकूल भौगोलिक. दशाओं में एक ही मुख्य फ़सल के उत्पादन पर जोर दिया जाता है ताकि व्यापार के लिए अधिक-से-अधिक उत्पादन प्राप्त हो सके।
प्रदेश (Areas):
व्यापारिक कृषि में कई प्रकार से कृषि पदार्थ बिक्री के लिए प्राप्त किए जाते हैं –
- इस प्रकार की कृषि शीत-उष्ण घास के मैदानों में अधिक है जहां गेहूं की कृषि बड़े पैमाने पर की जाती है।
- उष्ण कटिबन्ध में रोपण कृषि द्वारा चाय, गन्ना, कहवा आदि फ़सलों की कृषि की जाती है।
- यूरोप में मिश्रित कृषि द्वारा कृषि तथा पशुपालन पर जोर दिया जाता है।
- उद्यान कृषि तथा डेयरी फार्मिंग भी व्यापारिक कृषि का ही एक अंग है।
विशेषताएं (Characteristics):
- यह आधुनिक कृषि की एक प्रकार है।
- इसमें उत्पादन मुख्यतः बिक्री के लिए किया जाता है।
- यह कृषि केवल उन्नत देशों में ही होती है।
- यह बड़े पैमाने पर की जाती है।
- इस कृषि में फ़सलों तथा पशुओं के विशेषीकरण पर ध्यान दिया जाता है।
- इसमें रासायनिक खाद, उत्तम बीज, मशीनों तथा जल-सिंचाई साधनों का प्रयोग किया जाता है।
- यह कृषि क्षेत्र यातायात के उत्तम साधनों द्वारा मांग क्षेत्रों से.जुड़े होते हैं।
- इस कृषि पर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का बहुत प्रभाव पड़ता है।
(ख) गहन कृषि (Intensive Agriculture):
थोड़ी भूमि से अधिक उपज प्राप्त करने के ढंग को गहन कृषि कहते हैं। इस उद्देश्य के लिए प्रति इकाई भूमि पर अधिक मात्रा में श्रम और पूंजी लगाई जाती है। अधिक जनसंख्या के कारण प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि कम होती है। इस सीमित भूमि से अधिक-से-अधिक उपज प्राप्त करके स्थानीय खपत की पूर्ति की जाती है।
प्रदेश (Areas):
यह कृषि प्राय: मानसून देशों में की जाती है। जापान, चीन, बंगला देश, भारत, फिलपाइन्स, हिन्द, चीन के देशों में गहन कृषि की जाती है। इन देशों में जनसंख्या घनत्व अधिक है। कृषि योग्य भूमि सीमित है। इन देशों में अधिक वर्षा वाले भागों में धान प्रधान गहन कृषि की जाती है। इस कृषि में एक वर्ष में, एक खेत से, धान की तीन चार फ़सलें उत्पन्न की जाती हैं। कम वर्षा वाले, कम उपजाऊ क्षेत्रों में अन्य फ़सलों के हेर-फेर के साथ धान की कृषि की जाती है।
विशेषताएं (Characteristics) –
- यह प्राचीन देशों की कषि प्रणाली है।
- खेतों का आकार बहुत छोटा होता है।
- कृषि में मानव श्रम अधिक मात्रा में लगाया जाता है। मशीनों का प्रयोग कम होता है।
- चरागाहों की कमी के कारण पशुचारण का कम विकास होता है।
- खाद, उत्तम बीज, कीटनाशक दवाइयां, सिंचाई के साधन तथा फ़सलों का हेर-फेर का प्रयोग किया जाता है।
- इस कृषि में खाद्यान्नों की अधिक कृषि की जाती है।
- इससे प्रति हेक्टेयर उपज काफ़ी अधिक होती है; परन्तु प्रति व्यक्ति उपज कम रहती है।
- यह कृषि स्थानीय खपत को पूरा करने के उद्देश्य से की जाती है ताकि घनी जनसंख्या वाले देश आत्मनिर्भरता प्राप्त कर सकें।
- इस कृषि में खेतों पर ही भारवाहक पशु पाले जाते हैं तथा मछली पकड़ने का धन्धा भी किया जाता है।
- भूमि कटाव रोकने के उपाय किए जाते हैं, मिट्टी का उपजाऊपन कायम रखा जाता है, पर्वतीय ढलानों पर सीढ़ीदार खेत बनाए जाते हैं।
- किसान लोग कई सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी इस प्रकार की कृषि करने के कारण बहुत कुशल होते हैं।
विस्तृत कृषि (Extensive Agriculture):
कम जनसंख्या वाले प्रदेशों में कृषि योग्य भूमि अधिक होने के कारण बड़े-बड़े फार्मों पर होने वाली कृषि को विस्तृत कृषि कहते हैं। कृषि यन्त्रों के अधिक प्रयोग के कारण इसे यान्त्रिक कृषि भी कहते हैं। इस कृषि में एक ही फ़सल के उत्पादन पर जोर दिया जाता है ताकि उपज को निर्यात किया जा सके। इसलिए इसका दूसरा नाम व्यापारिक कृषि भी है। यह कृषि मुख्यत: नए देशों में की जाती है। इसमें अधिक-से-अधिक क्षेत्र में कृषि करके अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। यह एक आधुनिक कृषि प्रणाली है जिसका विकास औद्योगिक क्षेत्रों में खाद्यान्नों की मांग बढ़ने के कारण हुआ है।
प्रदेश (Areas):
यह कृषि मध्य अक्षांशों में शीत-उष्ण कटिबन्धीय घास के मैदानों में की जाती है। रूस में स्टैप प्रदेश उत्तरी अमेरिका में प्रेयरीज़, अर्जेन्टाइना में पम्पास के मैदानों तथा ऑस्ट्रेलिया में डाऊनज़ क्षेत्र में गेहूं की खेती बड़े पैमाने पर होती है। इन प्रदेशों में प्राचीन काल में चलवासी चरवाहे घूमा करते थे। भूमि का मूल्य बढ़ जाने के कारण विस्तृत खेती के क्षेत्र धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं।
विशेषताएं (Characteristics):
- यह कृषि समतल भूमि वाले क्षेत्रों पर की जाती है जहां खेतों का आकार बहुत बड़ा होता है।
- कृषि यन्त्रों का अधिक प्रयोग किया जाता है। जैसे ट्रैक्टर, हारवैस्टर, कम्बाईन, धैशर आदि।
- खाद्यान्नों को सुरक्षित रखने के लिए बड़े-बड़े गोदाम या ऐलीवेटरज़ बनाए जाते हैं। इस कृषि में प्रति हेक्टेयर उपज कम होती है, परन्तु कम जनसंख्या के कारण प्रति व्यक्ति उपज अधिक होती है।
- यह कृषि व्यापारिक दृष्टिकोण से की जाती है ताकि खाद्यान्नों को मांग क्षेत्रों को निर्यात किया जा सके।
- इसमें श्रमिकों का उपयोग कम किया जाता है।
- इस कृषि में कम वर्षा के कारण जल सिंचाई के साधन प्रयोग किए जाते हैं।
- इस कृषि में रासायनिक खाद का अधिक प्रयोग किया जाता है ताकि कुल उत्पादन में अधिक वृद्धि हो सके।
निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)
प्रश्न 1.
भोजन संग्रहण से क्या अभिप्राय है? इसकी मुख्य विशेषताएं तथा क्षेत्र बताओ। इन कार्यकलाप से एकत्र होने वाले उत्पाद लिखो। भोजन संग्रहण का विश्व में क्या भविष्य है ?
उत्तर:
भोजन संग्रहण मानव का प्राचीनतम कार्यकलाप है। मानव खाने योग्य पौधों एवं कन्दमूल पर निर्वाह करता था।
विशेषताएं:
- यह कठोर जलवायुविक दशाओं में किया जाता है।
- इसे अधिकतर आदिमकालीन समाज के लोग करते हैं जो भोजन, वस्त्र एवं शरण की आवश्यकता की पूर्ति हेतु पशुओं और वनस्पति का संग्रह करते हैं।
- इस कार्य के लिए बहुत कम पूंजी एवं निम्न स्तरीय तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है।
- इसमें भोजन अधिशेष भी नहीं रहता है एवं प्रति व्यक्ति उत्पादकता भी कम होती है।
क्षेत्र-भोजन संग्रह विश्व के दो भागों में किया जाता है –
- उच्च अक्षांश के क्षेत्र जिसमें उत्तरी कनाडा, उत्तरी यूरेशिया एवं दक्षिणी चिली आते हैं।
- निम्न अक्षांश के क्षेत्र जिसमें अमेजन बेसिन, उष्णकटिबन्धीय अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया एवं दक्षिणी पूर्वी एशिया का आन्तरिक प्रदेश आता है।
उत्पाद-आधुनिक समय में भोजन संग्रह के कार्य का कुछ भागों में व्यापारीकरण भी हो गया है।
- ये लोग कीमती पौधों की पत्तियां, छाल एवं औषधीय पौधों को सामान्य रूप से संशोधित कर बाजार में बेचने का कार्य भी करते हैं।
- पौधे के विभिन्न भागों का ये उपयोग करते हैं। उदाहरण के तौर पर छाल का उपयोग कुनैन, चमड़ा तैयार करना एवं कार्क के लिए;
- पत्तियों का उपयोग, पेय पदार्थ, दवाइयां एवं कांतिवर्द्धक वस्तुएं बनाने के लिए; रेशे को कपड़ा बनाने; दृढ़फल को भोजन एवं तेल के लिए
- पेड़ के तने का उपयोग रबड़, बलाटा, गोंद व राल बनाने के लिए करते हैं।
- संग्रहण का भविष्य-विश्व स्तर पर संग्रहण का अधिक महत्त्व नहीं है। इन क्रियाओं के द्वारा प्राप्त उत्पाद विश्व बाज़ार में प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते। कई प्रकार की अच्छी किस्म एवं कम दाम वाले कृत्रिम उत्पादों ने कई उत्पादों का स्थान ले लिया है।
प्रश्न 2.
विचरणशील पशुपालन की मुख्य विशेषताओं तथा क्षेत्रों का वर्णन करो।
उत्तर:
पशुपालन (Pastoralism):
सभ्यता के विकास में पशुओं का पालन एक महत्त्वपूर्ण कार्य था। विभिन्न जलवायु में रहने वाले लोगों ने अपने प्रदेशों के जानवरों को चुना तथा पशुपालन के लिए अपनाया जैसे घास के मैदानों में पशु तथा घोड़े; टुण्ड्रा प्रदेश में भेड़ें तथा रेडियर, ऊष्ण मरुस्थलों में ऊंट; एण्डीज़ तथा हिमालय के ऊंचे पर्वतों पर
लामा तथा याक। ये पशु दूध, मांस, ऊन तथा खालों के प्रमुख साधन थे। आज भी शीतोष्ण तथा ऊष्ण घास के मैदानों में विचरणशील पशुचारण प्रचलित है।
विचरणशील पशुचारण (Pastoral Nomadism):
यह पशुओं पर निर्वाहक क्रिया है। ये लोग स्थायी तौर पर नहीं रहते। उन्हें खानाबदोश कहते हैं। प्रत्येक जाति का एक निश्चित क्षेत्र होता है। पशु प्रकृति वनस्पति पर निर्भर करते हैं। जिन घास के मैदानों में अधिक वर्षा तथा लम्बी घास होती है वहां पशु पाले जाते हैं। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भेड़ें पाली जाती हैं। ऊंची-नीची ढलानों पर भेड़ें पाली जाती हैं। 6 प्रकार के पशु मुख्य रूप से पाले जाते हैं, भेड़ें, बकरियां, ऊंट, पशु, घोड़े तथा गधे।
क्षेत्र (Areas):
पशुपालन के 7 बड़े क्षेत्र हैं-उच्च अक्षांशीय ध्रुवीय क्षेत्र, स्टैप, दक्षिणी-पश्चिमी एशिया पर्वतीय क्षेत्र, सहारा, अरब मरुस्थल, उप-सहारा सवाना, एण्डीज़ तथा एशिया के उच्च पठार।
- सबसे बड़ा क्षेत्र सहारा के मंगोलिया तक 13000 कि० मी० लम्बा है।
- एशियाई टुण्ड्रा के दक्षिणी भाग में ।
- दक्षिणी पश्चिमी अफ्रीका। ये प्रदेश अधिक गर्म, अति शुष्क, अति टण्टे हैं ! आजकल 15 से 20 मिलियन लोम विचरालाल पशचारण में लगे हैं।
प्रश्न 3.
संसार के विभिन्न प्रदेशों में वाणिज्यिक पश पालन का वर्णन करो।
उत्तर:
व्यापारिक पशु पालन (Commercial Grazing)-संसार में विभिन्न घास के मैदानों में बड़े पैमाने पर, वैज्ञानिक ढंगों द्वारा, चारे की फसलों की सहायता से पशु पालन होता है। इसे व्यापारिक पशु पालन कहते हैं। शीत उष्ण घास के मैदानों में विचरणशील पशु चारण का स्थान व्यापारिक पशु पालन ने ले लिया है। इन प्रदेशों में 20 सें. मी. वर्षा के कारण घास के मैदान मिलते हैं। ये मैदान सभी महाद्वीपों में बिखरे हुए हैं।
निम्नलिखित शीत उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में व्यापारिक पशु पालन का विकास हुआ है –
1. उत्तरी अमेरिका का प्रेयरी क्षेत्र (Prairies):
संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में शीत-उष्ण घास के मैदानों को प्रेयरी के मैदान कहते हैं। इस प्रदेश में थोड़ी वर्षा के कारण घास अधिक होती है। सैंकड़ों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विशाल चरागाहों पर रैंच (Ranch) बनाए गए हैं। यहां उत्तम नस्ल की जरसी तथा फ्रिजीयन गाय पाली जाती हैं। इस विशाल मैदान पर मिश्रित खेती के रूप में पशु पालन होता है। यहां गोश्त के लिए पशु तथा ऊन के लिए भेड़ें पाली जाती हैं। ऐडवर्ड पठार तथा मैक्सिको पठार में भेड़ें चराई जाती हैं। मांस प्रदान करने वाले पशु अधिकतर मक्का क्षेत्र (Corn belt) में मिलते हैं। यहां पशुओं को मोटा-ताजा बनाने के लिए मक्की की फसल प्रयोग की जाती है। इसलिए DET GICT “In U.S.A., corn goes to the market on hoofs.”
2. पम्पास क्षेत्र:
दक्षिणी अमेरिका में अर्जेन्टाइना, ब्राज़ील तथा युरुगए देशों में शीत-उष्ण घास के मैदानों में व्यापारिक पशु पालन होता है। अर्जेन्टाइना में पम्पास क्षेत्र पैटागोनिया तथा टेराडेल फ्यूगो क्षेत्र में पशु तथा भेड़ें चराई जाती हैं। यहां समशीत जलवायु, 50 सें० मी० से 100 सें० मी० वर्षा, एल्फा-एल्फा (Alafa-Alafa) घास तथा विशाल चरागाहों की सुविधाएं प्राप्त हैं। बड़े-बड़े रैंच (Ranch) बनाकर चारों तरफ तारों की बाड़ लगाई जाती है। अधिकतर पशु मांस के लिए पाले जाते हैं। दक्षिणी भाग में पहाड़ी ढलानों पर ऊन के लिए भेड़ें पाली जाती हैं।
3. ऑस्ट्रेलिया:
ऑस्ट्रेलिया संसार का महत्त्वपूर्ण व्यापारिक पशु पालन क्षेत्र है। यहां शीत-उष्ण घास के मैदानों को डाऊन्स (Downs) कहते हैं। यहां पशु पालन के प्रमुख क्षेत्र दक्षिण-पूर्वी भाग तथा पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में हैं। यहां ऊन तथा मांस के लिए भेड़ें पाली जाती हैं। न्यू साऊथ वेल्ज़, विक्टोरिया तथा दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया राज्यों में पशु पालन के लिए अनुकूल दशाएं प्राप्त हैं। यहां विशाल घास के मैदान उपलब्ध हैं। सारा वर्ष सम-शीत जलवायु के कारण पशु खुले क्षेत्रों तथा बड़े-बड़े फार्मों पर रखे जा सकते हैं। आर्टिजियन कुओं द्वारा जल प्राप्त हो जाता है। ऑस्ट्रेलिया संसार में ऊन का सबसे बड़ा उत्पादक एवं निर्यातक देश है। परन्तु इन प्रदेशों में शुष्क जलवायु के कारण पानी की कमी की समस्या है। जंगली कुत्ते तथा चूहे भी पशु पालन में बहुत बड़ी रुकावट हैं।
4. न्यूजीलैण्ड:
इस देश का आर्थिक विकास पशु पालन पर आधारित है। यहां प्रति व्यक्ति पशुओं का घनत्व संसार में सबसे अधिक है। यहां पर्याप्त वर्षा, सम-शीत उष्ण जलवायु, विशाल पर्वतीय ढलानों पर सारा साल उपलब्ध विशाल चरागाहें, उत्तम नस्ल के पशु, चारे की फसलों का प्राप्त होना आदि अनुकूल दशाओं के कारण व्यापारिक पशु पालन का विकास हुआ है। यह देश उत्तम भेड़ों के मांस (Mutton) के लिए प्रसिद्ध है। उत्तरी टापू तथा दक्षिणी टापू में भेड़ों के अतिरिक्त दूध देने वाले पशु भी पाले जाते हैं। यहां से मांस, ऊन, मक्खन, पनीर भी निर्यात किया जाता है।
5. दक्षिणी अफ्रीका:
दक्षिणी अफ्रीका के पठार पर मिलने वाले घास के मैदान को वैल्ड (Veld) कहते हैं। यहां औसत वार्षिक वर्षा 75 सें० मी० के लगभग है। समुद्र के प्रभाव के कारण सामान्य तापमान मिलते हैं। दक्षिणी अफ्रीका में अधिकतर भेड़ें तथा अंगोरा बकरियां मांस एवं ऊन के लिए पाली जाती हैं। यहां दूध के लिए स्थानीय नस्ल के पशु पाले जाते हैं। यहां आदिवासी लोग पशु चारण का काम करते हैं। परन्तु श्वेत जातियों के सम्पर्क के कारण ही व्यापारिक पशु पालन का विकास सम्भव हुआ है।
प्रश्न 4.
रोपण कृषि से क्या अभिप्राय है? इसकी विशेषताएं, क्षेत्र तथा फ़सलों का वर्णन करो।
उत्तर:
रोपण कृषि (Plantation Farming):
यह एक विशेष प्रकार की व्यापारिक कृषि है। इसमें किसी एक नकदी की फ़सल की बड़े पैमाने पर कृषि की जाती है। यह कृषि बड़े-बड़े आकार से खेतों या बाग़ान पर की जाती है इसलिए इसे बाग़ाती कृषि भी कहते हैं। रोपण कृषि की मुख्य फ़सलें रबड़, चाय, कहवा, कोको, गन्ना, नारियल, केला आदि हैं।
प्रदेश (Areas):
रोपण कृषि के मुख्य क्षेत्र उष्ण कटिबन्ध में मिलते हैं –
- पश्चिमी द्वीपसमूह, क्यूबा, जमैका आदि।
- पश्चिमी अफ्रीका में गिनी तट।
- एशिया में भारत, श्रीलंका, मलेशिया तथा इण्डोनेशिया।
विशेषताएं (Characteristics)
- यह कृषि बड़े-बड़े आकार के फ़ार्मों पर की जाती है। इन बागानों का आकार 40 हेक्टेयर से 60,000 हेक्टेयर तक होता है।
- इसमें केवल एक फ़सल पर बिक्री के लिए कृषि पर जोर दिया जाता है। इसका अधिकतर भाग निर्यात कर दिया जाता है।
- इस कृषि में वैज्ञानिक विधियों, मशीनों, उर्वरक, अधिक पूंजी का प्रयोग होता है ताकि प्रति हेक्टेयर उपज को बढ़ाया जा सके, उत्तम कोटि का अधिक मात्रा में उत्पादन हो।
- इन बागानों पर बड़ी संख्या में कुशल श्रमिक काम करते हैं। ये श्रमिक स्थानीय होते हैं। कुछ प्रदेशों में दास श्रमिकों या नीग्रो लोग भी काम करते हैं। श्रीलंका के चाय के बागान तथा मलेशिया में रबड़ के बागान पर भारत के तमिल लोग काम करते हैं।
- इन बागानों पर अधिकतर पूंजी, प्रबन्ध व संगठन यूरोपियन लोगों के हाथ में है।
- रोपण कृषि के प्रमुख क्षेत्र समुद्र के किनारे स्थित हैं जहां सड़कों, रेलों, नदियों तथा बन्दरगाहों की यातायात की सुविधाएं प्राप्त हैं।
- रोपण कृषि के बाग़ान विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में अधिक भूमि प्राप्त होने के कारण लगाए जाते हैं।
- रोपण कृषि में वार्षिक फ़सलों की बजाय चिरस्थायी वृक्षों या झाड़ी वाली फ़सलों की कृषि की जाती है।
क्षेत्र –
- अधिकतर रोपण कृषि ब्रिटिश लोगों द्वारा स्थापित की गई। मलेशिया में रबड़, भारत और श्रीलंका में चाय के बागान हैं।
- फ्रांसीसी लोगों ने पश्चिमी अफ्रीका में कोको तथा कहवा के बाग़ लगाए।
- ब्रिटिश लोगों के पश्चिमी द्वीप समूह में गन्ने व केले के बाग़ लगाए।
- स्पेनिश तथा अमरीकी लोगों ने नारियल तथा गन्ने के बाग़ान फिलीपाइन्ज़ में लगाए।
प्रश्न 5.
मिश्रित कृषि तथा डेयरी फार्मिंग में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर
मिश्रित कृषि
(Mixed Agriculture)
जब फ़सलों की कृषि के साथ-साथ पशु पालन आदि सहायक धन्धे भी अपनाए जाते हैं तो उसे मिश्रित कृषि कहते हैं। इस कृषि में दो प्रकार की फ़सलें उत्पन्न की जाती हैं-खाद्यान्न तथा चारे की फ़सलें। संयुक्त राज्य अमेरिका में मक्का पट्टी (Corn Belt) में मांस प्राप्त करने के लिए पशुओं को मक्का खिलाया जाता है।
प्रदेश (Areas):
यह कृषि समस्त यूरोप में, उत्तरी अमेरिका के पूर्वी भाग में, पम्पास, दक्षिणी अफ्रीका, दक्षिण पूर्वी ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूज़ीलैंड में अपनाई जाती है।
विशेषताएं (Characteristics):
- इस कृषि में खाद्यान्नों को चारे की फ़सलों के साथ हेर-फेर के साथ उगाते हैं।
- कृषि के लिए वैज्ञानिक ढंग प्रयोग किए जाते हैं।
- इस कृषि में यन्त्रों, मकानों, गोदामों, खाद तथा श्रमिकों आदि पर बहुत अधिक धन व्यय किया जाता है।
- इस कृषि में किसानों की आय के कई साधन बन जाते हैं। बाजार में गिरावट आने से हानि से रक्षा होती है। श्रमिकों को पूरा वर्ष नियमित रूप से काम मिलता रहता है।
डेयरी फार्मिंग (Dairy Farming):
दूध तथा दूध से बने पदार्थ जैसे मक्खन, पनीर, जमाया हुआ दूध, पाऊडर दूध आदि प्राप्त करने के लिए दुधारू पशुओं को पालने के धन्धे को डेयरी फार्मिंग कहते हैं।
आवश्यक भौगोलिक दशाएं (Geographical Conditions):
डेयरी उद्योग के विकास के लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएं अनुकूल होती हैं –
- जलवायु-डेयरी उद्योग के लिए सम-शीत-उष्ण जलवायु अनुकूल रहती है।
- चरागाहों का होना-दुधारू पशुओं के लिए विशाल प्राकृतिक चरागाहों की आवश्यकता होती है।
- मांग क्षेत्रों से समीपता-दूध के शीघ्र खराब होने के कारण डेयरी उद्योग अधिकतर नगरों, औद्योगिक तथा व्यापारिक क्षेत्रों के निकट लगाया जाता है।
- निपुण श्रमिक-पशुओं की नस्ल सुधार, दूध दोहने के यन्त्रों का प्रयोग, अनुसन्धान तथा वैज्ञानिक विधियों के प्रयोग के लिए निपुण श्रमिक चाहिए।
- पूंजी-पशुओं के लिए शैड बनाना, डॉक्टरी सहायता देना, चारे की फ़सल उगाने, गोदाम बनाने तथा मशीनों के निर्माण के लिए काफ़ी पूंजी की आवश्यकता होती है।
प्रमुख क्षेत्र (Areas):
संसार के बड़े-बड़े डेयरी क्षेत्र सम-शीत-उष्ण कटिबन्ध में स्थित देशों में हैं।
- उत्तर-पश्चिमी यूरोप में इंग्लैण्ड, आयरलैंड, बैल्जियम, डेनमार्क, नीदरलैण्ड, स्विट्ज़रलैण्ड, फ्रांस आदि देशों में डेयरी उद्योग बहुत उन्नत है।
- उत्तर-पूर्वी अमेरिकन क्षेत्रों में अन्धमहासागर से लेकर महान् झीलों तक यू० एस० ए० तथा कनाडा में डेयरी उद्योग मिलता है।
- ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण-पूर्वी भाग न्यूज़ीलैण्ड में।
- दक्षिणी अफ्रीका में।
- पम्पास घास के मैदानों में।
- एशिया में जापान तथा भारत में
विशेषताएं (Characteristics):
- इस कृषि में खाद्यान्नों को चारे की फ़सलों के साथ हेर-फेर के साथ उगाते हैं।
- कृषि के लिए वैज्ञानिकादंग प्रयोग किए जाते हैं।
- इस कृषि में यन्त्रों, मकानों, गोदामों, खाद तथा श्रमिकों आदि पर बहुत अधिक धन व्यय किया जाता है।
- इस कृषि में किसानों की आय के कई साधन बन जाते हैं। बाजार में गिरावट आने से हानि से रक्षा होती है। श्रमिकों को पूरा वर्ष नियमित रूप से काम मिलता रहता है।
डेयरी फार्मिंग (Dairy Farming):
दूध तथा दूध से बने पदार्थ जैसे मक्खन, पनीर, जमाया हुआ दूध, पाऊडर दूध आदि प्राप्त करने के लिए दुधारू पशुओं को पालने के धन्धे को डेयरी फार्मिंग कहते हैं।
आवश्यक भौगोलिक दशाएं (Geographical Conditions):
डेयरी उद्योग के विकास के लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएं अनुकूल होती हैं –
- जलवायु-डेयरी उद्योग के लिए सम-शीत-उष्ण जलवायु अनुकूल रहती है।
- चरागाहों का होना-दुधारू पशुओं के लिए विशाल प्राकृतिक चरागाहों की आवश्यकता होती है।
- मांग क्षेत्रों से समीपता-दूध के शीघ्र खराब होने के कारण डेयरी उद्योग अधिकतर नगरों, औद्योगिक तथा व्यापारिक क्षेत्रों के निकट लगाया जाता है।
- निपुण श्रमिक-पशुओं की नस्ल सुधार, दूध दोहने के यन्त्रों का प्रयोग, अनुसन्धान तथा वैज्ञानिक विधियों के प्रयोग के लिए निपुण श्रमिक चाहिए।
- पूंजी-पशुओं के लिए शैड बनाना, डॉक्टरी सहायता देना, चारे की फ़सल उगाने, गोदाम बनाने तथा मशीनों के निर्माण के लिए काफ़ी पूंजी की आवश्यकता होती है।
प्रमुख क्षेत्र (Areas):
संसार के बड़े-बड़े डेयरी क्षेत्र सम-शीत-उष्ण कटिबन्ध में स्थित देशों में हैं।
- उत्तर-पश्चिमी यूरोप में इंग्लैण्ड, आयरलैंड, बैल्जियम, डेनमार्क, नीदरलैण्ड, स्विट्ज़रलैण्ड, फ्रांस आदि देशों में डेयरी उद्योग बहुत उन्नत है।
- उत्तर-पूर्वी अमेरिकन क्षेत्रों में अन्धमहासागर से लेकर महान् झीलों तक यू० एस० ए० तथा कनाडा में डेयरी उद्योग मिलता है।
- ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण-पूर्वी भाग न्यूज़ीलैण्ड में।
- दक्षिणी अफ्रीका में।
- पम्पास घास के मैदानों में।
- एशिया में जापान तथा भारत में