JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 16 पतझर में टूटी पत्तियाँ

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 16 पतझर में टूटी पत्तियाँ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 16 पतझर में टूटी पत्तियाँ

JAC Class 10 Hindi पतझर में टूटी पत्तियाँ Textbook Questions and Answers

मौखिक –

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग क्यों होता है ?
अथवा
शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग-अलग कैसे हैं ? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
शुद्ध सोना और गिन्नी का सोने में क्या अंतर है ?
उत्तर :
शुद्ध सोना बिलकुल शुद्ध होता हैं; इसमें किसी तरह की कोई मिलावट नहीं होती। इसके विपरीत गिन्नी के सोने में ताँबा मिला होता है। इसी कारण वह अधिक चमकदार और मज़बूत होता है।

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प्रश्न 2.
प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जो शुद्ध आदर्शों के साथ-साथ व्यावहारिकता का भी प्रयोग करते हैं, उन्हें प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट कहते हैं।

प्रश्न 3.
पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श क्या है ?
उत्तर :
पाठ के अनुसार शुद्ध आदर्श है-‘अपने सिद्धांतों, सत्य आदि का पालन करना’। इसमें व्यंवहारवाद के लिए कोई स्थान नहीं होता।

प्रश्न 4.
लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड़’ का इंजन लगने की बात क्यों कही है?
उत्तर :
जापानियों का दिमाग बहुत तेज्ञ गति से चलता है। वे हर काम को जल्दी निपय देना चाहते हैं। इसी कारण लेखक ने जापानियों के दिमाग में स्पीड का इंजन लगने की बात कही है।

प्रश्न 5.
जापानी में चाय पीने की विधि को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
जापानी में चाय पीने की विधि को चा-नो-यू कहते हैं।

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प्रश्न 6.
जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की क्या विशेषता है ?
उत्तर :
जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान पर पूरी तरह से शांति होती है। यही उस स्थान की मुख्य विशेषता है।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्याकहारिकता की तुलना ताँबे से क्यों की गई है?
उत्तर :
लेखक के अनुसार शुद्ध आदर्श सोने के समान खो होते है। सोने की तरह ही उनमें पूर्ण शुद्धता होती है। अतः वे सोने के समान मूल्यवान हैं। दूसरी ओर व्यावहारिकता ताँबे के समान है, जो शुद्ध आदर्शरूपी सोने में मिलकर उसे चमक प्रदान करती है। व्यावहारिकता ताँबे के समान ऊपरी तौर पर चमकदार होती है।

प्रश्न 2.
चाजीन ने कौन-सी क्रियाएँ गरिमापूर्ण बंग से पूरी की ?
उत्तर :
जापानी विधि से चाय पिलाने वाले को चाजीन कहा गया है। जब लेखक और उसके मित्र वहाँ चाय पीने गए, तो उसने कमर झुकाकर प्रणाम किया और उन्हें बैठने की जगह दिखाई। उसके बाद अँगीठी सुलगाकर उसने चायदानी रखी। वह दूसरे कमरे में जाकर बर्तन लेकर आया और उन बर्तनों को उसने तौलिए से साफ़ किया। इन्हीं क्रियाओं को उसने अत्यंत गरिमापूर्ण ढंग से पूरा किया था।

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प्रश्न 3.
‘टी-सेंरेमनी’ में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था और क्यों ?
उत्तर :
‘टी-सेंरेमनी’ में तीन आदमियों को प्रवेश दिया जाता था। ‘ टी-सेंरमनी’ की मुख्य विशेषता वहाँ की शांति होती है। यदि अधिक व्यक्तियों को प्रवेश दिया जाए, तो वहाँ शांति भंग होने की आशंका रहती है। एक समय में तीन व्यक्ति ही शांतिपूर्ण चाय पीने के उस ढंग का सही आनंद उठा सकते हैं।

प्रश्न 4.
चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयय में क्या परिवर्तन महसूल किया?
उत्तर :
चाय पीने के बाद लेखक ने महसूस किया कि उसके दिमाग के दौड़ने की गति धीर-धीर कम हो रही थी। कुछ देर बाद दिमाग की गति बिलकुल बंद हो गई और उसका दिमाग पूरी तरह शांत हो गया। लेखक को ऐसा प्रतीत हुआ मानो वह अनंतकाल में जी रहा है। उसे अपने चारों ओर इसनी शांति महसूस हो रही थी कि उसे सन्नाटा भी साफ़ सुनाई दे रहा था।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
गाधीजी में नेतृत्व की अद्भुत कमता थी; उदाहरण साित्त इस बात की पुष्टि कीजिए।
उत्तर :
गंधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी। यह बात उनके अहिंसात्मक आंदोलनों से स्पष्ट हो जाती है। वे अकेले चलते थे और लाखोंलोग उनके पीछे हो जाते थे। नमक का कानून तोड़ने के लिए जब उन्होंने जनता का आहवान किया तो उनके नेतृत्व में हज़ारों लोग उनके साथ पैदल ही दाँडी यात्रा पर निकल पड़े थे। इसी प्रकार से असहयोग आंदोलन के समय भी उनकी एक आवाज़ पर देश के हज़ारों नौज़वान अपनी पढ़ाई छोड़कर उनके नेतृत्व में आंदोलन के पथ पर चल पड़े थे।

प्रश्न 2.
आपके विचार से कौन-से ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं ? वर्तमान समय में इन मूल्यों की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मेरे विचार में ईमानदारी, सत्य बोलना, अहिंसा, पारस्परिक प्रेमभाव, सदाचार, परिश्रम करना, निरंतर कर्म करते रहना, मानव धर्म का पालन करना, देश और समाज के प्रति निष्ठावान रहना, दूसरों की सहायता करना आदि शाश्वत मूल्य हैं। वर्तमान समय में जबकि सर्वत्र भ्रष्टाचार, अनाचार, हिंसा, द्वेष, आलसीपन, कदाचार आदि दुर्भावों का बोलबाला है, हम इन शाश्वत मूल्यों को अपनाकरं अपना, अपने परिवार, समाज तथा देश का नाम ऊँचा कर सकते हैं। ये शाश्वत मूल्य ही हमें सद्मार्ग दिखा सकते हैं।

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प्रश्न 3.
अपने जीवन की किसी ऐसी घटना का उल्लेख कीजिए जब –
1. शुद्ध आदर्श से आपको हानि-लाभ हुआ हो।
2. शुद्ध आदर्श में व्यावहारिकता का पुट देने से लाभ हुआ हो।
उत्तर :
1. एक बार एक सज्जन हमारे घर का दरवाज़ा खटखटा रहे थे। मैंने बाहर जाकर देखा। वे पिताजी के बारे में पूछ रहे थे। मैंने उन्हें बैठक में बैठाया और पिताजी को बुला लाया। उन सज्जन के जाने के बाद पिताजी ने मुझे डाँटा और कहा कि बिना मुझसे पूछे किसी को भी अंदर मत लाया करो। मैंने काम अच्छा किया था, परंतु मुझे फल उसके अनुसार नहीं मिला। इसके विपरीत एक बार मैं कक्षा का काम करके नहीं गया। जब अध्यापक जी ने पूछा कि काम क्यों नहीं किया, तो मैंने स्पष्ट उत्तर दे दिया कि कल मेरी तबियत खराब थी। मेरे सत्य बोलने पर अध्यापक जी ने मुझे कोई दंड नहीं दिया। यह मेरे सत्य बोलने का अच्छा फल था।

2. एक बार मैं अपनी दुकान पर बैठा हुआ था; पिंताजी कहीं गए हुए थे। एक ग्राहक कुछ सामान लेने आया। उसका कुल मूल्य दो हज़ार रुपये बना। ग्राहक इस पर कुछ रियायत चाहता था। मुझे ज्ञात था कि इस सामान की बिक्री पर हमें लगभग तीस प्रतिशत लाभ हो रहा है। मैंने उसे दस प्रतिशत की छूट दे दी। इस प्रकार मैंने अपने आदर्शों की रक्षा करते हुए अपनी व्यवहारिकता से लाभ लिया और ग्राहक को भी प्रसन्न कर दिया। अब वह व्यक्ति सदा हमारी दुकान से ही सामान खरीदता है।

प्रश्न 4.
‘शुद्ध सोने में ताँबे की मिलावट या ताँबे में सोना’, गांधीजी के आदर्श और व्यवहार के संदर्भ में यह बात किस तरह झलकती है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कुछ लोगों का मत है कि गांधीजी ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ थे। वे व्यावहारिकता को पहचानते थे। उन्होंने केवल आदर्शों का सहारा नहीं लिया, बल्कि वे आदर्शों के साथ-साथ व्यावहारिकता को मिलाकर चले। लेखक के अनुसार इसके लिए गांधीजी ने कभी भी अपने आदर्शों को व्यावहारिकता के स्तर पर नहीं उतरने दिया। वे अपने आदर्शों को उसी ऊँचाई पर रखते थे; उन्हें नीचे नहीं गिराते थे। उन्होंने व्यावहारिकता को ऊँचा उठाकर उसे आदर्शों की ऊँचाई तक पहुँचाया। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि उन्होंने कभी भी सोने में ताँबा मिलाने का प्रयत्न नहीं किया बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ाई। उन्होंने अपनी व्यावहारिकता को ऊँचा उठाकर आदर्शों के रूप में प्रतिष्ठित किया।

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प्रश्न 5.
‘गिरगिट’ कहानी में आपने समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पल-पल में बदल डालने की एक बानगी देखी। इस पाठ के अंश ‘गिन्नी का सोना’ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए कि ‘आदर्शवादिता’ और ‘व्यावहारिकता’ इनमें से जीवन में किसका महत्व है ?
उत्तर :
‘गिन्नी का सोना’ पाठ के माध्यम में लेखक बताना चाहता है कि जीवन में व्यवहारवादी लोग लाभ-हानि का हिसाब-किताब लगाने में अधिक निपुण होते हैं। इसलिए वे आदर्शवादी लोगों से कहीं आगे निकल जाते हैं, परंतु समाज की दृष्टि में उनका महत्व अधिक नहीं होता है। इसके विपरीत जो आदर्शवादी व्यक्ति हैं, वे व्यवहारिकता को अपने आदर्शों के अनुरूप ढाल लेते हैं और अपने साथ-साथ समाज की भी उन्नति करते हैं। इसलिए जीवन में आदर्शोन्मुखी व्यावहारिकता का ही अधिक महत्व है।

प्रश्न 6.
लेखक के मित्र ने जापानी लोगों के मानसिक रोग के क्या-क्या कारण बताए ? आप इन कारणों से कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर :
लेखक के मित्र ने बताया कि जापान में मानसिक रोगियों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। इसका कारण जापानी लोगों के जीवन का तेज़ गति से चलना है। वे लोग दौड़ रहे हैं। उनका दिमाग निरंतर कार्यशील रहता है। उसने यह भी बताया कि जापानी अब अमेरिका से आगे बढ़ने की होड़ में लगे हैं। वे एक महीने का काम एक दिन में करने का प्रयत् करते हैं। उनका दिमाग लगातार कुछ नया करने के लिए सोचता रहता है।

इससे धीरे-धीरे उनके दिमाग पर तनाव बढ़ रहा है और वे मानसिक रोग के शिकार हो रहे हैं। मेरे विचार से जीवन में संघर्ष करना और आगे बढ़ना अच्छी बात है, किंतु अपने आपको केवल दूसरे से आगे बढ़ने के लिए निरंतर काम में उलझाए रखना उचित नहीं है। काम के साथ-साथ स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी ज़रूरी है।

प्रश्न 7.
लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक का मत है कि हम अकसर बीते हुए दिनों के बारे में सोचते हैं या भविष्य के रंगीन सपनों में डूबे रहते हैं। वास्तव में सत्य केवल वर्तमान है और हमें उसी में जीना चाहिए। अतीत को हम चाहकर भी लौटा नहीं सकते और भविष्य को हमने देखा नहीं है। आने वाला कल कैसा होगा, कोई नहीं जानता।

अतः अतीत और भविष्य के बारे में सोचकर अपने आपको दुखी करने का कोई लाभ नहीं है। वर्तमान, जो सामने दिखाई दे रहा है, उसी को सत्य मानकर उसका भरपूर आनंद उठाने का प्रयास करना चाहिए। वर्तमान के एक-एक पल को जीना ही वास्तव में जीवन जीना है। इसी आधार पर लेखक ने वर्तमान जीवन में जीने के लिए कहा है।

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(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –

I

प्रश्न 1.
1. समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो वह आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुआ है।
2. जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्टों’ के जीवन से आदर्श धंरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी व्यावहारिक सूझ-बूझ ही आगे आने लगती है।
II
3. हमारे जीवन की रफ़्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं, बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं, तब अपने आप से लगातार बड़बड़ाते रहते हैं।
4. सभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढंग से की कि उसकी हर भंगिमा से लगता था मानो जयजयवंती के सुर गूँज रहे हों।
I
उत्तर :
1. लेखक यहाँ स्पष्ट करना चाहता है कि समाज को शाश्वत मूल्य देने का श्रेय आदर्शवादी लोगों को है। वे अपने आदर्शों से समाज को एक आदर्श मार्ग दिखाते हैं और उन्हें उस पर चलने की प्रेरणा देते हैं। आदर्शवादी लोग समाज को जीने और रहने योग्य बनाते हैं। वे समाज को निरंतर एक दिशा देकर ऊँचा उठाने का प्रयास करते है। उन्हीं के कारण ही समाज में सद्गुणों का विकास होता है।

2. लेखक कहता है कि जो लोग आदर्शों के साथ-साथ व्यावहारिकता को भी लेकर चलते हैं, उन्हें ‘ प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ कहा जाता है। ऐसे लोग आदर्शों को केवल थोड़ा-सा अपनाते हैं। जब व्यावहारिकता का वर्णन होने लगता है, तो ये लोग धीरे-धीरे अपने आदर्शों को छोड़ते चले जाते हैं और उनकी व्यावहारिक सूझ-बूझ ही सामने आने लगती। जिन आदर्शों की वे बात करते हैं, वे कहीं भी दिखाई नहीं देते।

II

3. यहाँ लेखक ने अपने जापानी मित्र के माध्यम से जापान के लोगों के बारे में बताया है कि उनके जीवन की रफ़्तार अत्यंत तेज़ है। वे लोग निरंतर दौड़ते प्रतीत होते हैं। लेखक कहता है कि यह रफ्तार उनके जीवन में ही नहीं अपितु चलने और बोलने में भी है। उनका दिमाग निरंतर कुछ-न-कुछ सोचता रहता है। वे प्रत्येक क्षण कुछ-न-कुछ करते रहते हैं। यहाँ तक कि जब वे अकेले होते हैं, तो भी वे अपने आपसे लगातार बड़बड़ाते रहते हैं।

4. लेखक के कहने का आशय है कि जापानी विधि से चाय बनाने वाला व्यक्ति प्रत्येक कार्य अत्यंत गरिमापूर्ण ढंग से कर रहा था। उसकी क्रियाओं को देखकर ऐसा अनुभव हो रहा था मानो जयजयवंती नामक मधुर राग बज रहा हो। उसकी इन क्रियाओं को देखकर एक मधुरता और अपनेपन का अहसास होता था। चाय बनाने वाले व्यक्ति की समस्त क्रियाएँ एकदम गरिमापूर्ण एवं अनूठी थीं, जो मन को शांति प्रदान करती थीं।

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भाषा-अध्ययन –

I

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए –
व्यावहारिकता, आदर्श, सूझबूझ, विलक्षण, शाश्वत
उत्तर :
व्यावहारिकता – प्रत्येक व्यक्ति के लिए व्यावहारिकता का ज्ञान जरूरी है।
आदर्श – हमें अपने जीवन में कुछ आदर्श अपनाने चाहिएँ।
सूझबूझ – सूझबूझ से लिए गए निर्णय सदैव लाभकारी होते हैं।
विलक्षण – सचिन में विलक्षण प्रतिभा है।
शाश्वत ईश्वर का नाम शाश्वत है।

प्रश्न 2.
‘लाभ-हानि’ का विग्रह इस प्रकार होगा-लाभ और हानि
यहाँ द्वंद्व समास है जिसमें दोनों पद प्रधान होते हैं। दोनों पदों के बीच योजक शब्द का लोप करने के लिए योजक चिहून लगाया जाता है। आगे दिए गए द्वंद्व समास का विग्रह कीजिए –
(क) माता-पिता = ………..
(ङ) अन्न-जल = ………..
(ख) पाप-पुण्य = ………..
(च) घर-बाहर = ………..
(ग) सुख-दुख = ………..
(ए) देश-विदेश = ………..
(घ) रात-दिन = ………..
उत्तर :
(क) माता-पिता = माता और पिता
(ख) पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
(ग) सुख-दुख = सुख और दुख
(घ) रात-दिन = रात और दिन
(ङ) अन्न-जल = अन्न और जल
(च) घर-बाहर = घर और बाहर
(छ) देश-विदेश = देश और विदेश

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प्रश्न 3.
नीचे दिए गए विशेषण शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए –
(क) सफल = ………….
(ख) विलक्षण = ………
(ग) व्यावहारिक = …………
(घ) सजग = …………..
(ङ) आदर्शवादी = ……….
(च) शुद्ध = ………..
उत्तर :
(क) सफल = सफलता
(ख) विलक्षण = विलक्षणता
(ग) व्यावहारिक = व्यावहारिकता
(घ) सजग = सजगता
(ङ) आदर्शवादी = आदर्शवादिता
(च) शुद्ध = शुद्धता

प्रश्न 4.
नीचे दिए गए वाक्यों में रेखांकित अंश पर ध्यान दीजिए और शब्द के अर्थ को समझिए –
(क) शुद्ध सोना अलग है।
(ख) बहुत रात हो गई अब हमें सोना चाहिए।
ऊपर दिए गए वाक्यों में सोना’ का क्या अर्थ है? पहले वाक्य में ‘सोना’ का अर्थ है धातु ‘स्वर्ण’। दूसरे वाक्य में ‘सोना’ का अर्थ है ‘सोना’ नामक क्रिया। अलग-अलग संदर्भो में ये शब्द अलग अर्थ देते हैं अथवा एक शब्द के कई अर्थ होते हैं। ऐसे शब्द अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं। नीचे दिए गए शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ स्पष्ट करने के लिए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
उत्तर, कर, अंक, नग
उत्तर :

  • उत्तर – इन सभी प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
  • उत्तर – ध्रुव तारा उत्तर दिशा में दिखाई देता है। कर
  • इस पुल का उद्घाटन नेताजी के कर-कमलों से हुआ।
  • कर – हमें समय पर आय कर जमा करवाना चाहिए।
  • अंक – तुमने परीक्षा में कितने अंक प्राप्त किए हैं?
  • अंक – बालक दौड़कर माँ के अंक में छिप गया।
  • नग – रेखा की अंगूठी में कई नग जड़े हैं।
  • नग – नगराज हिमालय हमारे देश की उत्तर दिशा में है।

II

प्रश्न 5.
नीचे दिए गए वाक्यों को संयुक्त वाक्य में बदलकर लिखिए –
(क) 1. अँगीठी सुलगायी।
2. उस पर चायदानी रखी।
1. चाय तैयार हुई।
2. उसने वह प्यालों में भरी।
(ग) 1. बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया।
2. तौलिये से बरतन साफ़ किए।
उत्तर :
(क) अँगीठी सुलगायी और उस पर चायदानी रखी।
(ख) चाय तैयार हुई और उसने प्यालों में भरी।
(ग) बगल के कमरे में जाकर कुछ बरतन ले आया और उन्हें तौलिये से साफ़ किया।

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प्रश्न 6.
नीचे दिए गए वाक्यों से मिश्र वाक्य बनाइए –
(क) 1. चाय पीने की यह एक विधि है।
2. जापानी में उसे चा-नो-यू कहते हैं।
(ख) 1. बाहर बेढब-सा एक मिट्टी का बरतन था।
2. उसमें पानी भरा हुआ था।
(ग) 1. चाय तैयार हुई।
2. उसने वह प्यालों में भरी।
3. फिर वे प्याले हमारे सामने रख दिए।
उत्तर :
(क) चाय पीने की यह एक विधि है, जिसे जापानी में चा-नो-यू कहते हैं।
(ख) बाहर बेढब-सा एक मिट्टी का बरतन था, जिसमें पानी भरा हुआ था।
(ग) जैसे ही चाय तैयार हुई, उसने उसे प्यालों में भरकर प्याले हमारे सामने रख दिए।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
I. गांधीजी के आदर्शों पर आधारित पुस्तकें पढ़िए ; जैसे-महात्मा गांधी द्वारा रचित ‘सत्य के प्रयोग’ और गिरिराज किशोर द्वारा रचित उपन्यास ‘गिरमिटिया’।
उत्तर
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
II. पाठ में वर्णित ‘टी-सेरेमनी’ का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना-कार्य – 

प्रश्न 1.
भारत के नक्शे पर वे स्थान अंकित कीजिए जहाँ चाय की पैदावार होती है। इन स्थानों से संबंधित भौगोलिक स्थितियाँ क्या हैं और अलग-अलग जगह की चाय की क्या विशेषताएँ हैं, इनका पता लगाइए और परियोजना पुस्तिका में लगाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi पतझर में टूटी पत्तियाँ Important Questions and Answers

निबंधात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1.
कुछ लोगों का गांधी जी के बारे में क्या कहना है ? ‘गिन्नी का सोना’ प्रसंग के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक कहता है कि कुछ लोग गांधीजी को ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ अर्थात व्यावहारिक आदर्शवादी मानते हैं। ऐसे लोगों का गांधी जी के बारे में यह कहना यह है कि वे व्यावहारिकता से भली-भाँति परिचित थे। उन्हें समय और अवसर को देखकर कार्य करने की पूरी समझ थी। वे व्यावहारिकता की असली कीमत जानते थे। इसी कारण वे अपने विलक्षण आदर्श चला सके। यदि उन्हें व्यावहारिकता की समझ न होती, तो वे केवल कल्पना में ही रहते और लोग भी उनके पीछे-पीछे न चलते।

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प्रश्न 2.
लेखक ने व्यवहारवादियों और आदर्शवादियों में क्या अंतर बताया है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार व्यवहारवादी हमेशा समय और अवसर का लाभ उठाते हैं। वे सदा सजग रहते हैं और इसी कारण उन्हें सफलता भी अधिक मिलती है। वे अपने व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति करने में अन्य लोगों से बहुत आगे रहते हैं। दूसरी ओर आदर्शवादी केवल अपना भला नहीं करते अपितु दूसरों को भी अपने साथ उन्नति के मार्ग पर लेकर चलते हैं। आदर्शवादी सदैव समाज को सही दिशा देने का प्रयास करते हैं। जहाँ आदर्शवादियों ने समाज को ऊपर उठाया है, वहीं व्यवहारवादियों ने समाज को सदा गिराया ही है।

प्रश्न 3.
‘व्यक्ति विशेष की उन्नति समाज की उन्नति है’-विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
किसी भी समाज की उन्नति उसके व्यक्तियों पर निर्भर करती है। यदि व्यक्ति उन्नति करता है, तो समाज की उन्नति अपने आप हो जाती है। एक व्यक्ति से परिवार बनता है, परिवारों से गाँव बनता है और गाँवों से देश व समाज का निर्माण होता है। एक व्यक्ति की उन्नति का प्रभाव सीधे समाज पर पड़ता है। व्यक्ति समाज की सबसे छोटी इकाई है, किंतु इसका सीधा संबंध समाज से है। अत: कहा: जा सकता है कि व्यक्ति विशेष की उन्नति समाज की उन्नति है।

प्रश्न 4.
‘गिन्नी का सोना’ प्रसंग का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘गिन्नी का सोना’ प्रसंग में लेखक ने व्यवहारवादी लोगों को गिन्नी के सोने के समान बताया है। जिस प्रकार गिन्नी के सोने में शदध सोने और ताँबे का मिश्रण होता है, उसी प्रकार व्यवहारवादी लोगों में भी आदर्शों और व्यावहारिकता का मिश्रण होता है। लेखक का मानना जाता है, तो वह गलत है। लेखक का मत है कि पूर्ण व्यवहारवादी लोगों से समाज का कल्याण नहीं हो सकता। व्यावहारिकता से समाज का कभी लाभ नहीं होता। व्यावहारिकता व्यक्ति को सफलता तो दिला सकती है, किंतु समाज का कल्याण केवल आदर्शवादिता से ही संभव है।

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट से तात्पर्य है-‘शुद्ध आदर्शों के साथ-साथ व्यावहारिकता का प्रयोग करने वाले।’ शुद्ध आदर्श भी शुद्ध सोने के समान होते हैं, किंतु कुछ लोग उनमें व्यावहारिकता का थोड़ा-सा ताँबा लगाकर काम चलाते हैं। इस स्थिति में इन्हें प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट कहा जाता है।

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प्रश्न 2.
मानवीय जीवन की रफ़्तार क्यों बढ़ गई है?
उत्तर :
मानवीय जीवन की रफ्तार इसलिए बढ़ गई है, क्योंकि इस संसार में कोई चलता नहीं बल्कि दौड़ रहा है। कोई किसी से बोलता नहीं बल्कि बक रहा है। अकेलेपन में भी हम अपने आप से ही बड़बड़ाते रहते हैं।

प्रश्न 3.
मानव होने के नाते हम प्रायः कहाँ उलझे रहते हैं ?
उत्तर :
मानव एक चिंतनशील एवं कल्पनाशील प्राणी है, इसलिए कभी हम गुजरे हुए दिनों की खट्टी-मिट्ठी यादों में उलझे रहते हैं, तो कभी भविष्य के रंगीन सपने देखते हैं। हम या तो भूतकाल में खोए रहते हैं या फिर भविष्य के बारे में सोचते हैं।

प्रश्न 4.
लेखक की दृष्टि में सत्य क्या है?
उत्तर :
लेखक की दृष्टि में मनुष्य के सामने जो वर्तमान हैं, वही सत्य है। इसलिए हमें केवल उसी में जीना चाहिए। वास्तव में भूतकाल और भविष्यकाल दोनों ही मिथ्या हैं। उनके बारे में सोचने से कोई लाभ नहीं है।

प्रश्न 5.
‘गिन्नी का सोना’ पाठ में लेखक ने किसे और क्यों श्रेष्ठ बताया है?
उत्तर :
का सोना’ पाठ में लेखक ने आदर्शवादियों और व्यवहारवादियों में से आदर्शवादियों को श्रेष्ठ बताया है। आदर्शवादी इसलिए श्रेष्ठ हैं, क्योंकि वे स्वयं भी उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होते हैं और अन्य लोगों को भी उन्नति के मार्ग पर अपने साथ ले जाते हैं।

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प्रश्न 6.
समाज को आदर्शवादियों ने क्या दिया है? उसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर :
समाज को आदर्शवादियों ने शाश्वत मूल्यों की भेंट दी है। ये शाश्वत मूल्य मानव को भटकने से बचाएँगे; उन्हें सद्मार्ग दिखाएंगे। उन्हें जीवन में आने वाले कष्टों से लड़ने की शक्ति तथा साहस प्रदान करेंगे।

प्रश्न 7.
‘झेन की देन’ पाठ में लेखक ने चाय पीने के विषय में क्या जानकारी दी है?
उत्तर :
‘झेन की देन’ पाठ में लेखक बताता है कि जापान में चाय पीने का ढंग बड़ा ही निराला था। वहाँ चाय पीने की जगह एकदम शांतिपूर्ण थी। लेखक और उसके मित्रों को प्याले में दो बूट चाय लाकर दी गई। इस चाय को उन्होंने धीरे-धीरे बूंद-बूंद करके लगभग डेढ़ घंटे में पीया।

प्रश्न 8.
लेखक को चाय पीते समय किस बात का ज्ञान हुआ?
उत्तर :
लेखक को चाय पीते समय ज्ञान हुआ कि मनुष्य व्यर्थ में ही भूतकाल और भविष्यकाल की चिंता में उलझा रहता है, जबकि वास्तविकता तो वर्तमान है जो हमारे सामने घट रहा है। वह यह भी बताता है कि जो वर्तमान को जीता है, वही सही अर्थों में आनंद को प्राप्त करता है।

प्रश्न 9.
जापान में किस प्रकार की बीमारियाँ हैं और वहाँ के कितने प्रतिशत लोग इससे बीमार हैं?
उत्तर :
लेखक के अनुसार जापान में मानसिक बीमारियाँ अधिक हैं। वहाँ के लोग निरंतर दिमागी-कार्य में डूबे रहते हैं। मस्तिष्क का ज़रूरत से अधिक प्रयोग करने के कारण वे मानसिक बीमारियों के शिकार हो गए हैं। पाठ के अनुसार वहाँ के लगभग अस्सी प्रतिशत लोग मनोरोगी हैं।

प्रश्न 10.
लेखक ने ‘टी-सेरेमनी’ में चाय पीते समय क्या निर्णय लिया?
उत्तर :
लेखक ने टी-सेरेमनी में चाय पीते-पीते यह निर्णय लिया कि अब वह कभी भी अतीत और भविष्य के बारे में नहीं सोचेगा। उसे लगा कि जो वर्तमान हमारे सामने है, वही सत्य है। भूतकाल और भविष्य दोनों ही मिथ्या हैं। क्योंकि भूतकाल चला गया है, जो कभी लौटकर नहीं आएगा और भविष्य अभी आया ही नहीं है। अतः इन दोनों के बारे में सोचना छोड़कर वर्तमान में जीने में ही वास्तविक आनंद है।

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प्रश्न 11.
‘टी सेरेमनी’ की तैयारी और उसके प्रभाव पर चर्चा कीजिए।
अथवा
चा-नो-मू की पूरी प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
अथवा
टी-सेरेमेनी क्या है?
उत्तर :
जापान में चाय पीने की एक विशेष विधि है, जिससे मस्तिष्क का तनाव कम हो जाता है। इस विधि को ‘चा-नो-मू’ कहते हैं। ‘टी-सेरेमनी’ में चाय पिलानेवाला अँगीठी सलगाने से लेकर प्याले में चाय डालने तक की सभी क्रियाएँ अत्यंत गरिमापूर्ण ढंग से करता है। इस सेरेमनी में तीन से अधिक लोगों को प्रवेश नहीं दिया जाता। यहाँ का वातावरण शांतिपूर्ण होता है।

प्याले में दो-दो घूट चाय दी जाती है, जिसे बूंद-बूंद करके लगभग डेढ़ घंटे में पीया जाता है। यह चाय पीने के बाद ऐसा अनुभव होता है जैसे दिमाग के दौड़ने की गति धीरे-धीरे कम हो गई है। कुछ देर बाद दिमाग बिलकुल शांत हो जाता है और ऐसा लगता है जैसे अनंतकाल में जी रहे हों। अपने चारों ओर इतनी शांति महसूस होती है कि सन्नाटा भी साफ सुनाई देता है।

प्रश्न 12.
जापान में मानसिक रोग के क्या कारण बताए हैं? उससे होने वाले प्रभाव का उल्लेख करते हुए लिखिए कि इसमें ‘टी सेरेमनी’ की क्या उपयोगिता है?
उत्तर :
जापान में मानसिक रोग का प्रमुख कारण वहाँ के लोगों का निरंतर दिमागी कार्यों में डूबे रहना है। वे आगे बढ़ने की होड़ में एक महीने का काम एक दिन में करने का प्रयास करते हैं, जिससे उनके दिमाग पर तनाव बढ़ जाता है और वे मानसिक न जाते हैं। ‘टी सेरेमनी’ में चाय-पान करते समय अतीत और भविष्य की न सोचकर वर्तमान में जीने का संकल्प किया जाता है, जिससे सभी प्रकार के मानसिक तनावों से मुक्ति मिल जाती है। ‘टी सेरेमनी’ का शांतिपूर्ण वातावरण और एक-एक घुट लेकर चाय पीने से वे वर्तमान में जी कर तनाव रहित हो जाते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 16 पतझर में टूटी पत्तियाँ

प्रश्न 13.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
असल में दोनों काल मिथ्या हैं। एक चला गया है, दूसरा आया नहीं है। हमारे सामने जो वर्तमान क्षण है, वही सत्य है। उसी में जीना चाहिए। चाय पीते-पीते उस दिन मेरे दिमाग से भूत और भविष्य दोनों काल उड़ गए थे। केवल वर्तमान क्षण सामने था और वह अनंत काल जितना विस्तृत था।
(क) गद्यांश में किन दो कालों के बारे में बात की गई है और उनकी क्या विशेषता है?
(ख) लेखक ने किस काल को सत्य माना है और क्यों?
(ग) गद्यांश से लेखक क्या समझाना चाहता है?
उत्तर :
(क) गद्यांश में भूत और भविष्य कालों के बारे में बात की गई है। भूतकाल बीत गया है और भविष्य काल अभी आया नहीं है, इसलिए इनके विषय में विचार करना व्यर्थ है।
(ख) लेखक ने वर्तमान काल को सत्य माना है क्योंकि वही हमारे सामने सत्य स्वरूप में उपस्थित है। इसलिए हमें वर्तमान में ही जीना चाहिए।
(ग) इस गद्यांश से लेखक यह समझाना चाहता है कि हमें वर्तमान में जीना चाहिए, भूत और भविष्य के विषय में सोच कर परेशान नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 14.
भूत, भविष्य और वर्तमान में किसे सत्य माना गया है?
उत्तर :
लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, क्योंकि वहीं हमारे सामने सत्य स्वरूप में उपस्थित है।

पतझर में टूटी पत्तियाँ Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन – रवींद्र केलेकर का जन्म 7 मार्च सन 1925 को कोंकण क्षेत्र में हुआ था। छात्र जीवन से ही इनका झुकाव गोवा को मुक्त करवाने की ओर था। इसी कारण वे गोवा मुक्ति आंदोलन में शामिल हो गए। केलेकर की रुचि पत्रकारिता में भी रही। ये गांधीवादी दर्शन से बहुत प्रभावित थे। इनके लेखन पर भी इसका प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। रवींद्र केलेकर को समय-समय पर अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें गोवा कला अकादमी द्वारा दिया गया साहित्य पुरस्कार भी शामिल है।

रचनाएँ – रवींद्र केलेकर ने हिंदी के साथ-साथ कोंकणी और मराठी भाषा में भी लिखा है। इन्होंने अपनी रचनाओं में जनजीवन के विविध पक्षों, मान्यताओं और व्यक्तिगत विचारों को देश और समाज के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया है। इनके द्वारा की गई टिप्पणियों में चिंतन की मौलिकता के साथ-साथ मानवीय सत्य तक पहुँचने की सहज चेष्टा है। इनके गद्य की एक विशेषता थोड़े में ही बहुत कुछ कह देना है। सरल और थोड़े शब्दों में लिखना कठिन काम माना जाता है, किंतु रवींद्र केलेकर ने यह कार्य अपनी रचनाओं में बड़ी सरलता से कर दिखाया है।

इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं उजवादाचे सूर, समिधा, सांगली ओथांबे (कोंकणी); कोंकणीचे राजकरण, जापान जसा दिसला (मराठी); पतझर में टूटी पत्तियाँ(हिंदी)। – रवींद्र केलेकर ने काका कालेलकर की अनेक पुस्तकों का संपादन और अनुवाद भी किया है।

भाषा-शैली – रवींद्र केलेकर की भाषा-शैली अत्यंत सरल, स्पष्ट और सरस है। सामान्य पाठक भी इनकी भाषा को सरलता से समझ लेता है। वे बहुत ही नपे-तुले शब्दों में अपनी बात को समझाते हैं। उनकी भाषा में कहीं भी नीरसता का अनुभव नहीं होता। भाषा क में प्रवाहमयता और प्रभावोत्पादकता सर्वत्र दिखाई देती है।

इनकी भाषा में तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशी सभी शब्दों का मिश्रण है। इनकी भाषा की सरलता और सहजता देखते ही बनती है; उदाहरणस्वरूप-“अक्सर हम या तो गुज़रे हुए दिनों की खट्टी मीठी यादों में उलझे रहते हैं या भविष्य के रंगीन सपने देखते रहते हैं। हम या तो भूतकाल में रहते हैं या भविष्यकाल में। असल में दोनों काल मिथ्या हैं। एक चला गया है, दूसरा आया नहीं है।” रवींद्र केलेकर की शैली की विशेषता उसकी संक्षिप्तता है। कहीं-कहीं उन्होंने आत्मकथात्मक शैली और कहीं सूक्ति शैली का भी प्रयोग किया है।

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पाठ का सार :

प्रस्तुत पाठ में लेखक रवींद्र केलेकर ने दो अलग-अलग प्रसंगों के माध्यम से एक जागरूक और सक्रिय नागरिक बनने की प्रेरणा दी है। पहले प्रसंग ‘गिन्नी का सोना’ में लेखक ने जीवन में अपने लिए सुख-साधन जुटाने वालों के स्थान पर उन लोगों का अधिक महत्व बताया है, जो संसार को जीने और रहने योग्य बनाते हैं। दूसरे प्रसंग ‘झेन की देन’ में बौद्ध दर्शन में वर्णित शांतिपूर्ण जीवन के विषय में बताया गया है।

I. गिन्नी का सोना –

इस प्रसंग में लेखक कहता है कि गिन्नी का सोना शुद्ध सोने से भिन्न होता है। इसमें ताँबा मिला होता है। यह चमकदार और अधिक मज़बूत होता है। शुद्ध आदर्श भी शुद्ध सोने के समान होते हैं। कुछ लोग शुद्ध आदर्शों में व्यावहारिकता का मिश्रण करते हैं। ऐसे लोगों को ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ कहा जाता है। लेखक कहता है कि कुछ लोग गांधीजी को ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ कहते हैं, किंतु गांधीजी व्यावहारिकता को आदर्शों के स्तर पर ले जाते थे। इस प्रकार वे सोने में ताँबा नहीं बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसका मूल्य बढ़ा दिया करते थे।

लेखक ने आदर्शवादियों और व्यवहारवादियों में से आदर्शवादियों को श्रेष्ठ बताया है। आदर्शवादी स्वयं भी उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होते हैं और अन्य लोगों को भी उन्नति के मार्ग पर अपने साथ ले जाते हैं। समाज को शाश्वत मूल्यों की देन आदर्शवादियों की ही है।

II. झेन की देन –

प्रस्तुत प्रसंग में लेखक कहता है कि जापानी लोगों को मानसिक बीमारियाँ अधिक होती हैं। इसका कारण यह है कि जापान में जीवन की गति बहुत तेज़ है। उनका मस्तिष्क निरंतर क्रियाशील रहता है, जिससे वे तनाव और मानसिक रोगों के शिकार हो जाते हैं। लेखक बताता है कि जापान में चाय पीने की एक विशेष विधि है, जिससे मस्तिष्क का तनाव कम होता है। जापान में इस विधि को चा-नो-यू कहते हैं। लेखक अपने मित्रों के साथ एक ‘टी सेरेमनी’ में जाता है। वहाँ चाय पिलाने वाला उनका स्वागत करता है और अँगीठी सुलगाने से लेकर प्याले में चाय डालने तक की सभी क्रियाएँ अत्यंत गरिमापूर्ण ढंग से करता है।

लेखक कहता है कि इस विधि से चाय पीने की मुख्य विशेषता वहाँ का शांतिपूर्ण वातावरण है। वहाँ तीन से अधिक लोगों को प्रवेश नहीं दिया जाता। लेखक और उसके मित्रों को वहाँ प्याले में दो-दो घूँट चाय दी गई, जिसे उन्होंने बूँद-बूँद करके लगभग डेढ़ घंटे में पीया। तब लेखक ने अनुभव किया कि वहाँ का वातावरण अत्यंत शांत होने के कारण उनके मस्तिष्क की गति भी धीरे-धीरे धीमी हो गई थी।

लेखक को लगा जैसे वह अनंतकाल में जी रहा है। लेखक को चाय पीते हुए भी ज्ञान हुआ कि मनुष्य व्यर्थ में ही भूतकाल और भविष्यकाल में उलझा रहता है। वास्तविक सत्य तो वर्तमान है, जो हमारे सामने घटित हो रहा है। वर्तमान में जीना ही जीवन का वास्तविक आनंद उठाना है।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

व्यावहारिकता – समय और अवसर देखकर कार्य करने की सुझ, चंद लोग – कुछ लोग, प्रैक्टिकल आइडियॉलिस्ट – व्यावहारिक आदर्शवादी, बखान – वर्णन करना, बयान करना, सूझ-बुझ – काम करने की समझ, स्तर – श्रेणी, के स्तर – के बेराबर, सजग – सचेत, कीमत – मूल्य, शाश्वत – जो सदैव एक सा रहे, जो बदला न जा सके, शुद्ध सोना – 24 कैरेट का (बिना मिलावट का) सोना, गिन्नी का सोना 22 कैरेट (सोने में ताँबा मिला हुआ) का सोना, जिससे गहने बनवाए जाते हैं, अस्सी फ़ीसदी – अस्सी प्रतिशत,

मानसिक – मस्तिष्क संबंधी, दिमागी, मनोरुग्ण – तनाव के कारण मन से अस्वस्थ, रु़्तार – गति, प्रतिस्पदर्धा – होड़, स्पीड – गति, टी-सेंरेमनी – जापान में चाय पीने का विशेष आयोजन, तातामी – चटाई, चा-नो-यू – जापानी भाषा में टी-सेरमनी का नाम, पर्णकुटी – पत्तों से बनी कुटिया, बेढब-सा – बेडौल, चाजीन – जापानी विधि से चाय पिलाने वाला, गरिमापूर्ण – सलीके से, भंगिमा – मुद्रा, जयजयवंती – एक राग का नाम, खदबदाना – उबलना, सिलसिला – क्रम, उलझन – असमंजस की स्थिति, अनंतकाल – वह काल जिसका अंत न हो, सन्नाटा – खामोशी, मिध्या – भ्रम, विस्तृत – विशाल।

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