Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ
बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)
प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
(i) निम्नलिखित में से कौन-सी एक अनुक्रमिक प्रक्रिया है?
(A) निक्षेप
(B) ज्वालामुखीयता
(C) पटल-विरूपण
(D) अपरदन।
उत्तर:
अपरदन।
2. जलयोजन प्रक्रिया निम्नलिखित पदार्थों में से किसे प्रभावित करती है?
(A) ग्रेनाइट
(B) क्वार्ट्ज
(C) चीका (क्ले) मिट्टी
(D) लवण।
उत्तर:
लवण।
3. मलवा अवधाव को किस श्रेणी में सम्मिलित किया जा सकता है?
(A) भूस्खलन
(B) तीव्र प्रवाही वृहत् संचलन
(C) मंद प्रवाही वृहत् संचलन
(D) अवतलन/धसकन।
उत्तर:
मंद प्रवाही वृहत् संचलन।
4. निम्न में कौन-सा कारक बृहत क्षरण को प्रभावित नहीं करता?
(A) विवर्तन
(B) चट्टानों का प्रकार
(C) गुरुत्वाकर्षण
(D) जलवायु।
उत्तर:
चट्टानों का प्रकार।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
अपक्षय पृथ्वी पर जैव विविधता के लिए उत्तरदायी है। कैसे?
उत्तर:
जैविक अपक्षय, जीवों की वृद्धि या संचलन से उत्पन्न अपक्षय-वातावरण एवं भौतिक परिवर्तन से खनिजों एवं आयन्स के स्थानान्तर की दिशा में एक योगदान है। केंचुओं, दीमकों, चूहों, कुंतकों इत्यादि जैसे जीवों द्वारा बिल खोदने एवं वेजिंग (फान) के द्वारा नयी सतहों (Surfaces) का निर्माण होता है जिससे रासायनिक प्रक्रिया के लिए अनावृत्त (Expose) सतह में नमी एवं हवा के वेधन में सहायता मिलती है। मानव भी वनस्पतियों को अस्त-व्यस्त कर, खेत जोतकर एवं मिट्टी में कृषि करके धरातलीय पदार्थों में वायु, जल एवं खनिजों के मिश्रण तथा उनमें नये सम्पर्क स्थापित करने में सहायक होता है।
सड़ने वाले पौधों एवं पशुओं के पदार्थ; ह्यमिक, कार्बनिक एवं अन्य अम्ल जैसे तत्त्वों के उत्पादन में योगदान देते हैं जिससे कुछ तत्त्वों का सड़ना, क्षरण तथा घुलन बढ़ जाता है। शैवाल, खनिज पोषकों (Nutrients) लौह एवं मैंगनीज़ ऑक्साइड के संकेद्रण में सहायक होता है। पौधों की जड़ें धरातल के पदार्थों पर ज़बरदस्त दबाव डालती हैं तथा उन्हें यान्त्रिक ढंग (Mechanically) से तोड़कर अलग-अलग कर देती हैं।
प्रश्न 2.
वृहत संचलन जो वास्तविक तीव्र एवं गोचर/अवगमन हैं वे क्या हैं? सूची बद्ध कीजिए।
उत्तर:
वृहत संचलन की सक्रियता के कई कारक होते हैं। वे इस प्रकार हैं
- प्राकृतिक एवं कृत्रिम साधनों द्वारा ऊपर के पदार्थों के टिकने के आधार का हटाना।
- ढालों की प्रवणता एवं ऊंचाई में वृद्धि,
- पदार्थों के प्राकृतिक अथवा कृत्रिम भराव से जुड़ने के कारण उत्पन्न अतिभार,
- अत्यधिक वर्षा, संतृप्ति एवं ढाल के पदार्थों के स्नेहन (Lubrication) द्वारा उत्पन्न अतिभार,
- मूल ढाल की सताह पर से पदार्थ या भार का हटना,
- भूकम्प आना,
- विस्फोट या मशीनों का कम्पन (Vibration),
- अत्यधिक प्राकृतिक रिसाव,
- झीलों, जलाशयों एवं नदियों से भारी मात्रा में जल निष्कासन एवं परिणामस्वरूप ढालों एवं नदी तटों के नीचे से जल का मंद गति से बहना,
- प्राकृतिक वनस्पति का अन्धाधुन्ध विनाश।
प्रश्न 3.
विभिन्न गतिशील एवं शक्तिशाली बहिर्जनिक भू-आकृतिक कारक क्या हैं तथा वह क्या प्रधान कार्य सम्पन्न करते हैं?
उत्तर:
गतिशील एवं शक्तिशाली बहिर्जनिक, भू-आकृतिक कारक, प्रवाहित जल, हिमानी, हवा, लहरें धाराएँ हैं। ये धरातल के पदार्थों को हटाने, ले जाने तथा निक्षेप के कार्य सम्पन्न करते हैं। इनका उद्देश्य भू-आकृतियों का विघर्षण करना है। प्रश्न
प्रश्न 4.
क्या मृदा निर्माण में अपक्षय एक आवश्यक अनिवार्यता है?
उत्तर:
मृदा निर्माण अपक्षय पर निर्भर करता है। अपक्षय शैलों को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ने तथा मृदा निर्माण के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। यह अपरदन में सहायक हैं। मलबे के परिवहन तथा निक्षेप से ही मृदा निर्माण होता है।
प्रश्न 5.
क्या भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ एक-दूसरे से स्वतन्त्र हैं? यदि नहीं तो क्यों? सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
दोनों क्रियाएं सामूहिक रूप से कार्य करती हैं। कभी एक क्रिया प्रधान होती है तो कभी दूसरी क्रिया प्रधान होती है। दोनों क्रियाओं में विखण्डन तथा अपघटन होता है। दोनों में जल, दाब तथा गैसें सहायक होती हैं।
रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ: रासायनिक अपक्षय में क्रियाओं का एक समूह कार्य करता है जैसे विलयन, कार्बोनेटीकरण, जल योजन, ऑक्सीकरण। ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइ-ऑक्साइड इन क्रियाओं को तीव्र गति प्रदान करती है। भौतिक अपक्षय क्रियाएँ: ये क्रियाएं यांत्रिक क्रियाएं हैं जिनमें निम्नलिखित बल कार्य करते हैं:
- गुरुत्वाकर्षण बल
- तापमान वृद्धि के कारण विस्तारण बल
- जल का दवाब इन बलों के कारण शैलों का विघटन होता है। ये प्रक्रियाएं लघु व मन्द होती हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
हमारी पृथ्वी भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के दो विरोधात्मक वर्गों के खेल का मैदान है। विवेचना करो।
उत्तर:
धरातल पृथ्वी मण्डल के अन्तर्गत उत्पन्न हुए बाह्य बलों एवं पृथ्वी के अन्दर अद्भुत आन्तरिक बलों से अनवरत प्रभावित होता है तथा यह सर्वदा परिवर्तनशील है। बाह्य बलों को बहिर्जनिक (Exogenic) तथा आन्तरिक बलों को अन्तर्जनित (Endogenic) बल कहते हैं। बहिर्जनिक बलों की क्रियाओं का परिणाम होता है-उभरी हुई भू-आकृतियों का विघर्षण (Wearing down) तथा बेसिन/निम्न क्षेत्रों/गों का भराव (अधिवृद्धि/तल्लोचन) धरातल पर अपरदन के माध्यम से उच्चावच के मध्य अन्तर के कम होने के तथ्य को तल सन्तुलन (Gradation) कहते हैं।
अन्तर्जनित शक्तियां निरन्तर धरातल के भागों को ऊपर उठाती हैं या उनका निर्माण करती हैं तथा बहिर्जनिक प्रक्रियाएं उच्चावच में भिन्नता को सम (बराबर) करने में असफल रहती हैं। अतएव भिन्नता तब तक बनी रहती है जब तक बहिर्जनिक एवं अन्तर्जनित बलों के विरोधात्मक कार्य चलते रहते हैं। सामान्यतः अन्तर्जनित बल मूल रूप से भू-आकृति निर्माण करने वाले बल हैं तथा बहिर्जनिक प्रक्रियाएं मुख्य रूप से भूमि विघर्षण बल होती हैं।
प्रश्न 2.
“बाह्यजनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएं अपनी अन्तिम ऊर्जा सूर्य की गर्मी से प्राप्त करती हैं।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
धरातल पर बाह्य भू-आकृतिक क्रियाएं भिन्न-भिन्न अक्षांशों में भिन्न-भिन्न होती हैं। यह सूर्य से प्राप्त गर्मी में भिन्नता के कारण हैं। विभिन्न जलवायु प्रदेशों में तथा ऊंचाई में अन्तर के कारण सूर्यताप प्राप्ति में स्थानीय विभिन्नता पाई जाती है। इस प्रकार वायु का वेग, वर्षा की मात्रा, हिमानी, तुषार आदि क्रियाओं में विभिन्नता सूर्यातप के कारण हैं।
निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Question)
प्रश्न 1.
आप किस प्रकार मदा निर्माण प्रक्रियाओं और मृदा निर्माण कारकों के बीच अन्तर करेंगे? जलवायु और भौतिक क्रियाओं की मृदा निर्माण में क्या भूमिका है? दो महत्त्वपूर्ण कारकों के रूप लिखो।
उत्तर:
मृदा निर्माण के कारक सभी मृदा निर्माण की प्रक्रियाएं अपक्षय से जुड़ी हैं। लेकिन कई अन्य कारक अपक्षय के अंतिम उत्पाद को प्रभावित करते हैं। इनमें से पांच प्राथमिक कारक हैं। ये अकेले अथवा सम्मिलित रूप से विभिन्न प्रकार की मृदाओं के विकास के लिए उत्तरदायी हैं। ये कारक हैं
समय (Time):
आदर्श दशाओं में एक पहचान योग्य मृदा परिच्छेदिका का विकास 200 वर्षों में हो सकता है। परन्तु कम अनुकूल परिस्थितियों में यह समय हज़ारों वर्षों का हो सकता है। समय तथा अन्य विशिष्ट कारकों-जलवायु, जनक सामग्री, स्थलाकृति तथा जैविक पदार्थ के प्रभावों द्वारा मृदा विकास की दर निर्धारित होती है।
मृदा निर्माण की प्रक्रियाएँ (Processes of Soil Formation):
मृदा निर्माण में अनेक प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं और किसी सीमा तक मृदा परिच्छेदिका को प्रभावित कर सकती हैं। ये प्रक्रियाएं निम्नलिखित हैं
(i) अवक्षालन:
यह मृत्तिका अथवा अन्य महीन कणों का यांत्रिक विधि से स्थान परिवर्तन है, जिसमें वे मृदा परिच्छेदिका में नीचे ले जाए जाते हैं।
(ii) संपोहन:
यह मृदा परिच्छेदिका के निचले संस्तरों में ऊपर से बहाकर लाए गए पदार्थों का संचयन है।
(iii) केलूवियेशन:
यह निक्षालन के समान पदार्थ का नीचे की ओर संचलन है, परन्तु जैविक संकुल यौगिकी के प्रभाव में।
(iv) निक्षालन:
इसमें घोल रूप में पदार्थों को किसी संस्तर से हटाकर नीचे की ओर ले जाना है।
1. जनक पदार्थ (Parent Material):
कमजोर तरीके से संयोजित बलुआ पत्थर से बनी मृदा बलुई होगी और शैल चट्टान से बनी मृदा उथली तथा महीन गठन वाली होगी। इसी प्रकार मृत्तिका निर्माण में अपघट्य गहरे रंग वाले खनिजों का उच्च प्रतिशत क्वार्ट्ज की अपेक्षा अधिक सहायक है। इस प्रकार जनक पदार्थ अपक्षय की विभिन्न दरों द्वारा मृदा निर्माण को प्रभावित करता है। मूल शैल तट स्थान (In Situ) या अवशिष्ट मृदा या लाए गए निक्षेप (परिवहन कृत) (Transported) भी हो सकती है।
2. जलवायु (Climate):
आर्द्र क्षेत्रों में अत्यधिक अपक्षय तथा निक्षालन के कारण अम्लीय मृदा का निर्माण होता है। निम्न वर्षा वाले क्षेत्रों में चूने के संचयन या धारण के कारण क्षारीय मृदा का निर्माण होता है। विभिन्न प्रकार के मृदा निर्माण में जलवायु एक
अत्यधिक प्रभावी कारक है, विशेषकर तापमान और वर्षा के प्रभावों के कारण वनस्पति पर अपने प्रभाव के कारण, जलवायु मृदा निर्माण में परोक्ष भूमिका भी निभाती है।
3. जीवजात (Vegetation):
जैविक उत्सर्ग एवं अपशिष्ट पदार्थों के अपघटन तथा जीवित पौधों तथा पशुओं की क्रियाओं का मदा विकास में विशेष हाथ होता है। बिलकारी प्राणी जैसे-छछंदर, प्रेअरी डॉग, केंचुआ, चींटी और दीमक आदि धीरे-धीरे जैविक पदार्थों का अपघटन करके तथा दुर्बल अम्ल तैयार करके, जो शीघ्र ही खनिजों को घोल देता है, मृदा विकास में सहायक होते हैं।
4. स्थलाकृति (Topographes):
पहाड़ियों के तीव्र ढालों पर मृदा आवरण पतला होता है और इसका कारण पृष्ठीय प्रवाह के कारण भूपृष्ठ का अपरदन है। इसके विपरीत पहाड़ियों के मंद ढालों पर मृदा की परत मोटी होती है। इसका कारण वनस्पति की प्रचुरता
और पर्याप्त जल का मृदा के नीचे गहराई तक चला जाना है। स्थल-रुद्ध गर्तों में प्रवाहित जल का अधिकांश भाग आता है, जो घनी वनस्पति आवरण के लिए सहायक है, लेकिन ऑक्सीकरण की कमी के कारण अपघटन धीमा हो जाता है। इससे ऐसी मृदा की उत्पत्ति होती है, जो जैविक पदार्थों में समृद्ध होती है। स्थलाकृति, जल एवं तापमान के साथ अपने सम्बन्ध के द्वारा मृदा निर्माण को प्रभावित करती है।
भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ JAC Class 11 Geography Notes
→ अनावरण (Denudation): पृथ्वी के धरातल को समतल करने की क्रिया को अनावरण कहते हैं। बाह्य कार्यकर्ता धरातल को समतल करने का यत्न करते हैं।
→ अपरदन (Erosion): भूतल पर कांट-छांट तथा खुरचने की क्रिया को अपरदन कहते हैं। यह कार्य गतिशील कारकों द्वारा जैसे जल, हिम नदी, वायु द्वारा होता है।
→ अपक्षरण (Weathering): पृथ्वी की बाहरी स्थिर शक्तियों द्वारा चट्टानों को विखण्डन तथा अपघटन की क्रिया से तोड़ने-फोड़ने के कार्य को अपक्षरण कहते हैं। अपक्षरण चट्टानों को कमजोर करके अपरदन में सहायता करता है।
→ अपक्षरण के कारक (Factors):
- चट्टानों की संरचना
- भूमि का ढाल
- जलवायु
- वनस्पति
- शैल सन्धियां।
→ अपक्षरण के प्रकार (Types of Weathering):
- भौतिक अथवा यान्त्रिक अपक्षरण
- रासायनिक
→ भौतिक अपक्षरण (Physical Weathering): यान्त्रिक साधनों द्वारा चट्टानों के विघटन (संरचना के परिवर्तन के बिना) को भौतिक अपक्षरण कहते हैं। यह क्रिया तापमान, पाला, पवन तथा वर्षा द्वारा होती है।
→ रासायनिक अपक्षरण (Chemical Weathering): रासायनिक विधियों से चट्टानों के अपने ही स्थान पर अपघटन को रासायनिक अपक्षरण कहते हैं। ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन आदि गैसों के प्रभाव से निम्नलिखित क्रियाओं द्वारा अपक्षरण होता है
- ऑक्सीकरण
- कार्बोनेटीकरण
- जलयोजन
- घोलीकरण।
→ मृदा (Soil):
मृदा भूतल की ऊपरी सतह का आवरण है। यह चट्टानों के चूर्ण तथा वनस्पति के गले-सड़े अंश की एक पतली पर्त है।
→ मृदा संस्तर (Soil Horizons): मृदा के पार्श्व चित्र में तीन पर्ते या संस्तर पाए जाते हैं
- अ-संस्तर
- ब-संस्तर
- स-संस्तर।
→ मृदा का महत्त्व (Importance of Soils): मृदा एक मूल्यवान् प्राकृतिक सम्पदा है। मानवता मृदा पर निर्भर है, अनेक मानवीय तथा आर्थिक क्रियाएं मृदा पर निर्भर हैं।
→ मृदा अपरदन (Soil Erosion): भू-तल की ऊपरी सतह से उपजाऊ मृदा का उड़ जाना या बह जाना मृदा अपरदन कहलाता है। जल, वायु तथा वर्षा मृदा अपरदन के प्रमुख कारक हैं।
→ मृदा अपरदन के प्रकार (Types of Soil Erosion):
- धरातलीय अपरदन
- नालीदार कटाव
- वायु
→ अपरदन। मृदा अपरदन के कारण (Causes of Soil Erosion):
- मूसलाधार वर्षा
- तीव्र ढलान
- तीव्र गति पवनें
- अनियन्त्रित पशुचारण
- स्थानान्तरी कृषि
- वनों की कटाई।
→ मृदा संरक्षण के उपाय (Methods of Soil Conservation): मृदा संरक्षण, बचाव, पुनर्निर्माण तथा । उपजाऊपन कायम रखना आवश्यक है। विभिन्न उपायों का प्रयोग किया जाता है
- वनारोपण
- नियन्त्रित पशुचारण
- सीढ़ीनुमा कृषि
- नदी बांध निर्माण
- फसलों का हेर-फेर।