JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. स्थलरूप विकास की किस अवस्था में अधोमुख कटाव प्रमुख होता है?
(A) तरुणावस्था
(B) प्रथम प्रौढावस्था
(C) अन्तिम प्रौढ़ावस्था
(D) जीर्णावस्था।
उत्तर:
तरुणावस्था।

2. एक गहरी घाटी जिसकी विशेषता सीढ़ीनुमा खड़े ढाल होते हैं, वह किस नाम से जानी जाती है?
(A) U. आकार घाटी
(B) अन्धी घाटी
(C) गार्ज
(D) कैनियन।
उत्तर:
कैनियन।

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3. निम्न में से किन प्रदेशों में रासायनिक अपक्षय प्रक्रिया यान्त्रिक अपक्षय प्रक्रिया से अधिक शक्तिशाली है?
(A) आर्द्र प्रदेश
(B) शुष्क प्रदेश
(C) चूना पत्थर प्रदेश
(D) हिमनद प्रदेश।
उत्तर:
आर्द्र प्रदेश।

4. निम्न में से कौन-सा वक्तव्य लेपीज़ (Lapies) शब्द को परिभाषित करता है?
(A) छोटे से मध्यम आकार के उथले गर्त
(B) ऐसे स्थलरूप जिनके ऊपरी खुलाव वृत्ताकार व नीचे से कोण के आकार के होते हैं
(C) ऐसे स्थलरूप जो धरातल से जल के टपकने से बनते हैं
(D) अनियमित धरातल जिनके तीखे कटक व खांच हों।
उत्तर:
अनियमित धरातल जिनके तीखे कटक व खांच हों।

5. शहरे, लम्बे विस्तृत गर्त या बेसिन जिनके शीर्ष दिवाल खड़े ढाल वाले व किनारे खड़े व अवतल होते हैं, उन्हें रहते हैं?
(A) सर्क
(B) पाश्विक हिमोढ़ा
(C) घाटी हिमनद
(C) एस्कर।
उत्तर:
(A) सर्क।

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6. तटीय भागों में जान-माल के लिये सबसे खतरनाक तरंग कौन-सी है?
(A) स्थानांतरणी तरंग
(B) अधःप्रवाह
(C) सुनामी
(D) भम्नोमि।
उत्तर:
सुनामी।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
चट्टानों में अधःकर्तित विसर्प और मैदानी भागों में जलोढ़ के सामान्य विसर्प क्या बताते हैं?
उत्तर:
नदी के बाढ़ मैदान तथा डैल्टा में मन्द ढाल के कारण जलोढ़ के विसर्प बनते हैं। ये विसर्प लूप आकार के होते हैं। ये क्षैतिज कटाव को प्रकट करते हैं। कठोर चट्टानों में गहरे कटाव के कारण अधः कर्तित विसर्प बनते हैं। ये लगातार उत्थान के कारण गहरे होते जाते हैं तथा गहरे गार्ज व कैनियन का रूप बन जाते हैं।

प्रश्न 2.
घाटी रंध्र अथवा युवाला का विकास कैसे होता है?
उत्तर;
चूना पत्थर चट्टानों के तल पर घुलन क्रिया द्वारा घोल गर्मों का विकास होता है। ये कार्ट क्षेत्र में मिलते हैं। यह एक प्रकार के छिद्र होते हैं जो ऊपर से वृत्ताकार व नीचे कीप की आकृति के होते हैं। कन्दराओं की छत गिरने से कई घोल रंध्र आपस में मिल जाते हैं जो लम्बी, तंग तथा विस्तृत खाइयाँ बनती हैं जिन्हें घाटी रंध्रया युवाला कहते हैं।

प्रश्न 3.
हिमनद घाटियों में कई रैखिक निक्षेपण स्थल रूप मिलते हैं। इनकी अवस्थिति व नाम बताएं।
उत्तर:
हिमनदी घाटी में मृतिका के निक्षेप से कई स्थल कम मिलते हैं जिन्हें हिमोढ़ कहते हैं। हिमनदी के समानांतर पार्शिवक हिमोढ़ बनते हैं। दो पार्शिवक हिमोढ़ मिल कर मध्य भाग में मध्यस्थ हिमोढ़ बनाते हैं। हिमनदी के तल पर तलस्थ हिमोढ़ मिलते हैं। हिमनद के अन्तिम भाग में अन्तस्थ हिमोढ़ मिलते हैं।

(ग) निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
आई व शुष्क जलवायु प्रदेशों में प्रवाहित जल ही सबसे महत्त्वपूर्ण भू-आकृतिक कारक है। विस्तार से वर्णन करो।
उत्तर;
भू-तल को समतल करने वाले बाह्य कार्यकर्ताओं में नदी का कार्य सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। वर्षा का जो जल धरातल पर बहते पानी (Run off) के रूप में बह जाता है, नदियों का रूप धारण कर लेता है। नदी का कार्य तीन प्रकार का होता है

  1. अपरदन (Erosion)
  2. परिवहन (Transportation)
  3. निक्षेप (Deposition)

1. अपरदन (Erosion) नदी का मुख्य कार्य अपनी तली तथा किनारों पर अपरदन करना है।
अपरदन की विधियां (Types of Erosion): नदी का अपरदन निम्नलिखित विधियों द्वारा होता है

  • रासायनिक अपरदन (Chemical Erosion): यह अपरदन घुलन क्रिया (Solution) द्वारा होता है। नदी जल के सम्पर्क में आने वाली चट्टानों के नमक (Salts) घुलकर पानी के साथ मिल जाते हैं।
  • भौतिक अपरदन (Mechanical Erosion): नदी के साथ बहने वाले कंकड़, पत्थर आदि नदी की तली तथा किनारों को काटते रहते हैं। किनारों के कटने से नदी चौड़ी और तल के कटने से गहरी होती है।

भौतिक कटाव तीन प्रकार के होते हैं
(a) शीर्षवत् अपरदन (Down Cutting)
(b) तटीय अपरदन (Side Cutting)
(c) संनिघर्षण (Attrition)

नदी के अपरदन द्वारा निम्नलिखित भू-आकार बनते हैं:
I. ‘V’ आकार घाटी (‘V’ Shaped Valley):
नदी पर्वतीय भाग में अपने तल को गहरा करती है जिसके कारण ‘V’ आकार की गहरी घाटी बनती है। ऐसी घाटियों को कैनियन (Canyons) या प्रपाती खड्ड कहते हैं और जो कठोर तथा शुष्क प्रदेशों में बनती हैं।
उदाहरण: (i) अमेरिका (U.S.A.) में कोलोरेडो घाटी में ग्रैंड कैनियन (Grand Canyon) 200 किलोमीटर लम्बी तथा 2,000 मीटर गहरी है। यह (I) आकार की है।

II. गार्ज (Gorges):
पर्वतीय भाग में बहुत गहरे और तंग नदी मार्ग को गार्ज (Gorge) या कन्दरा कहते हैं। पर्वतीय प्रदेश ऊंचे उठते रहते हैं, परन्तु नदियां लगातार गहरा कटाव करती रहती हैं। इस प्रकार ऐसे नदी का निर्माण होता है जिसकी दीवारें लम्बवत् होती हैं। असम में ब्रह्मपुत्र नदी तथा हिमाचल प्रदेश में सतलुज नदी गहरे गार्ज बनाती हैं।

III. जल प्रपात तथा क्षिप्रिका (Waterfall and Rapids):
जब अधिक ऊँचाई से जल अधिक वेग से कठोर चट्टान खड़े ढाल पर बहता है तो उसे जल प्रपात कहते हैं। जलप्रपात चट्टानों की भिन्न-भिन्न रचना के कारण बनते हैं।
(क) जब कठोर चट्टानों की परत नर्म चट्टानों की परत पर क्षैतिज (Horizontal) अवस्था में हो तो नीचे की नर्म चट्टानें जल्दी कट जाती हैं। चट्टान के सिरे पर जल-प्रपात बनता है। जल-प्रपात पीछे की ओर खिसकता मुलायम चट्टानें रहता है जिससे एक संकरी मगर गहरी घाटी का निर्माण होता है।
उदाहरण: (i) यू० एस० ए० में नियाग्रा जलप्रपात जो कि 120 मीटर ऊंचा है।
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(ii) विक्टोरिया जलप्रपात में पानी 50 मीटर की ऊंचाई से गिरता है।
(ख) जब कठोर तथा नर्म चट्टानें एक दूसरे के समानान्तर लम्बवत् (Vertical) हों तो कठोर चट्टान की ढाल पर जल-प्रपात बनता है।
उदाहरण: अमेरिका में यैलो स्टोन नदी (Yellow Stone River) का जल-प्रपात। जब कठोर तथा मुलायम चट्टानों की पर्ते एक-दूसरे के ऊपर बिछी हों तथा कुछ झुकी हों तो क्षिप्रिका (Rapids) की एक श्रृंखला बन जाती है। क्षिप्रिका कांगो नदी (Congo River) में लिविंगस्टोन फाल्ज (Livingstone Falls) नाम के 32 झरनों की एक श्रृंखला है।

IV. जलज गर्त (Pot Holes):
नदी के जल में चट्टानें भंवर उत्पन्न हो जाते हैं। नरम चट्टानों में गड्ढे बन जाते हैं। इनमें जल के साथ छोटे-बड़े पत्थर घूमते हैं। इन पत्थरों के घुमाव (Drilling) से भयानक गड्ढे बनते हैं जिन्हें जलज गर्त कहते हैं।
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2. परिवहन (Transportation):
अपरदन के पश्चात् नदी का दूसरा प्रधान कार्य परिवहन (Transportation) होता है। नदी खुर्चे हुए पदार्थ को अपने साथ बहाकर ले जाती है। इस पदार्थ को नदी का भार (Load of the River) कहते हैं।
नदी का परिवहन कार्य दो तत्त्वों पर निर्भर करता है

  1. नदी का वेग (Velocity of River): नदी के वेग तथा परिवहन शक्ति में निम्नलिखित अनुपात होता हैपरिवहन शक्ति = (नदी का वेग)
  2. जल की मात्रा (Volume of Water): नदी में जल की मात्रा तथा आकार के बढ़ जाने से नदी अधिक भार बहाकर ले जा सकती है।

3. निक्षेप (Deposition):
नदी का निक्षेप का कार्य रचनात्मक होता है। आर्थिक महत्त्व के स्थल रूप बनते हैं। अपरदन व निक्षेप एक-दूसरे के पूरक हैं। दोनों की दशाएं उलट होती हैं। नदी की निचली घाटी में निक्षेप की क्रिया होती है। यह निक्षेप नदी के तल में या नदी के किनारों पर या सागर में होता है। नदी की गहराई कम हो जाती है, परन्तु चौड़ाई बढ़ने लगती है। निक्षेप क्रिया द्वारा निम्नलिखित भू-आकार बनते हैं

(i) जलोढ़ पंख (Alluvial Fans):
जब नदी पर्वत के सहारे नीचे उतर कर समतल भाग में प्रवेश करती है तो नदी का वेग एकदम कम हो जाता है; इसलिए पर्वतों की ढाल के आधार के पास अर्द्ध-वृत्ताकार रूप में पदार्थों का जमाव होता है जिसे जलोढ़ पंख कहते हैं। कई जलोढ़ पंखों के मिलने से भाबर क्षेत्र बना है।
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(ii) विसर्प अथवा घुमाव (Meanders):
नदी जब अपरदन अपरदन बल खाते हुए बहती है तो उसके टेढ़े-मेढ़े रास्ते में छोटेमोटे घुमाव पड़ जाते हैं जिन्हें नदी विसर्प (Meanders) निक्षेप कहते हैं। नदी के अवतल किनारों (Concave sides) पर तेज़ धारा के कारण-कटाव होता है परन्तु नदी के उत्तल किनारों (Convex sides) पर धीमी धारा के कारण निक्षेप निक्षेप होता है।
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(iii) गो-खुर झील (Ox-bow Lake):
जब दो घुमाव अति निकट आते हैं तो एक-दूसरे को काटते (Intersect) हैं तथा मिल जाते हैं। नदी में जब बाढ़ आती है तो नदी घुमाव के लम्बे मार्ग को छोड़ कर फिर छोटे (Short cut) व पुराने मार्ग से बहने लगती है। एक घुमाव का किनारा दूसरे घुमाव के किनारे से मिल जाता है। इस प्रकार एक धनुषाकार का घुमाव नदी से कट जाता है। इसे गो-खुर झील (Ox-bow Lake) कहते हैं। गंगा नदी के मार्ग में ऐसी कई गोखुर झीलें हैं।
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(iv) बाढ़ का मैदान (Flood Plain):
जब नदी में बाढ़ आती है तो नदी का भार किनारों को पार कर के दूरदूर तक जमा हो जाता है। इसमें कीचड़ और जलोढ़ मिट्टी (Silt) फैल जाती है। इसे बाढ़ का मैदान कहते हैं। ये मैदान बहुत उपजाऊ होते हैं तथा प्रति वर्ष इनमें उपजाऊ मिट्टी की नई परत बिछ जाती है, जैसे-भारत में गंगा का मैदान, चीन में ह्वांग-हो (Hwang-Ho) का मैदान।
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(v) तटबन्ध (Leeves):
नदी के दोनों किनारों पर मिट्टी के जमाव द्वारा कम ऊंचाई वाले टीलों को तटबन्ध (Leeves) कहते हैं। बार-बार जमाव के कारण नदी का तल तथा किनारे बड़े ऊंचे होते हैं। कई बार बाढ़ के समय में किनारे टूट जाते हैं तो बहुत हानि होती है। भयंकर बाढ़ें आती हैं। चीन की ह्वांग-हो नदी की भीषण बाढ़ों का यही कारण है। इसलिए इसे ‘चीन का शोक’ कहते हैं।

(vi) डेल्टा (Delta):
समुद्र में गिरने से पहले नदी का भार अधिक हो जाता है तथा नदी की धारा बहुत धीमी हो जाती है। फलस्वरूप नदी अपने मुख पर अपने भार का निक्षेप कर देती है। समुद्र में नदी का निक्षेप एक मैदान के रूप में आगे बढ़ता है जिससे त्रिकोणाकार का स्थल रूप भूमध्य सागर बनता है जिसे डेल्टा कहते हैं। यह यूनानी भाषा के शब्द सिकन्द्रिया डेल्टा से मिलता-जुलता है तथा इसका प्रयोग सब से नील नदी पोर्ट सइद पहले नील नदी के डेल्टा के लिए किया गया था। डेल्टे दो प्रकार के होते हैं
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(क) नियमित (Regular): यह त्रिकोण आकार का होता है, जैसे-गंगा या नील नदी का डेल्टा।
(ख) अनियमित या पंजा डेल्टा (Irregular or Bird’s Foot Delta): यह डेल्टा पक्षी के पंजे के समान होता है जिससे बहुत-सी वितरिकाएं (Distributaries) होती हैं, जैसे-संयुक्त राज्य अमेरिका में मिसीसिपी (Mississippi) नदी का डैल्टा। विभक्त धाराओं के जाल से बनी नदी को गुम्फित नदी कहते हैं। नील, पो, वालग आदि डेल्टाओं से गंगा, ब्रह्मपुत्र डेल्टा सब से बड़ा है जिसका क्षेत्रफल 1,25,000 वर्ग० कि० मी० है।

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प्रश्न 2.
हिमनदी ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों को निम्न पहाड़ियों व मैदानों में कैसे परिवर्तित करते हैं या किस प्रक्रिया से यह कार्य सम्पन्न होता है? बताइए।
उत्तर:
हिमनदी (Glacier): खिसकते हुए हिम पिण्ड को हिमनदी कहते हैं। (A Glacier is a large mass of moving ice.)
हिमनदी के कारण: हिमनदी हिम क्षेत्रों से जन्म लेती है। लगातार हिमपात के कारण हिम खण्डों का भार बढ़ जाता है। यह हिम समूह निचले ढलान की ओर खिसकने लगता है इसे हिमनदी कहते हैं। हिमनदी के खिसकने के कई कारण हैं

  1. अधिक हिम का भार (Pressure)
  2. ढाल (Slope)
  3. गुरुत्वाकर्षण शक्ति (Gravity)

हिमनदी के प्रकार (Types of Glaciers): आकार व क्षेत्रफल की दृष्टि से हिमनदियां दो प्रकार की होती हैं

  1. घाटी हिमनदी (Valley Glaciers)
  2. महाद्वीपीय हिमनदी (Continental Glaciers)

1. घाटी हिमनदी (Valley Glaciers):
इन्हें पर्वतीय हिमनदी (Mountain Glaciers) भी कहते हैं। ये हिम नदी ऊँचे पर्वतों की चोटियों से उतर कर घाटियों में बहती है। सबसे पहले आल्पस पर्वत (Alps) में मिलने के कारण इन्हें अल्पाइन (Alpine) हिमनदी भी कहते हैं। हिमालय पर्वत पर इस प्रकार के कई हिमनद हैं, जैसे-गंगोत्री हिमनद।

2. महाद्वीपीय हिमनदी (Continental Glaciers):
विशाल ध्रुवीय क्षेत्रों में फैले हुए हिमनद को महाद्वीपीय हिमनदी या हिम चादर (ice sheets) कहते हैं । लगातार हिमपात, नीचे तापक्रम तथा कम वाष्पीकरण के कारण हिम पिघलती नहीं। संसार की सबसे बड़ी हिम चादर अण्टार्कटिका (Antartica) 130 लाख वर्ग कि०मी० क्षेत्र में 4000 फुट मोटी है।

ग्रीनलैंड में ऐसी चादर का क्षेत्रफल 17 लाख वर्ग कि०मी० है। हिम क्षेत्रों में खिसकते हुए हिम पिण्ड को हिमनदी कहते हैं। जल की भांति हिमनदी अपरदन, परिवहन तथा निक्षेप तीनों कार्य करती है। हिमनदी पर्वतीय प्रदेशों में अपरदन का कार्य, मैदानों में निक्षेप का कार्य तथा पठारों पर रक्षात्मक कार्य करती है। अपरदन (Erosion): हिमनदी अनेक क्रियाओं द्वारा अपरदन का कार्य करती है

  1. उखाड़ना (Plucking)
  2. गड्ढे बनाना (Grooving)
  3. 41411 (Grinding)

हिमनदी अपने मार्ग से बड़े-बड़े पत्थरों को उखाड़ कर गड्ढे उत्पन्न कर देती है। यह पत्थर चट्टानों के साथ रगड़ते, घिसते चलते हैं तथा हिमनदी की तली तथा किनारों को चिकना बनाते हैं। पर्वतीय प्रदेशों की रूपरेखा बदल जाती है।

अपरदन द्वारा बने भू-आकार:
I. हिमागार (Cirque):
पर्वतीय ढलानों पर गोल आकार के गड्ढों को हिमागार या सर्क कहते हैं। (“Cirques are semi-circular hollows at the side of
mountain.”) इनका आकार आराम कुर्सी के समान होता है। पाले द्वारा तुषार चीरण (Frost Wedging) की क्रिया से इनका आकार बड़ा हो जाता है। कभी-कभी इन गड्ढों में झील बन जाती है जिसे टार्न झील (Tarn Lake) कहते हैं। इन्हें फ्रांस में सर्क, स्कॉटलैण्ड में कौरी (Corrie) तथा जर्मनी में कैरन (Karren) कहते हैं।

II. श्रृंग (Horn):
जब किसी पहाड़ी के चारों ओर के सर्क आपस में मिल जाते हैं तो उनके पीछे के कटाव से नुकीली चोटियां बनती हैं। स्विटज़रलैण्ड में आल्पस पर्वत की एक प्रसिद्ध शृंग मैटर हार्न (Matter Horn) है तथा हिमालय पर्वत से त्रिशूल पर्वत।

III. कॉल (Col):
किसी पहाड़ी के दोनों ओर के हिमागारों के आपस में मिलने के कारण घोड़े की काठी जैसी आकृति वाला दर्रा बन जाता है जिसे कॉल कहते हैं।

IV. यू-आकार की घाटी (U-Shaped Valley):
जब हिमनदी किसी ‘V’ आकार की नदी घाटी में प्रवेश करती है तो उस घाटी का रूप ‘U’ अक्षर जैसा बन जाता है। यह घाटी गहरी हो जाती है। इसकी तली सपाट तथा चौरस होती है। इसके किनारे खड़े ढाल वाले होते हैं। इसे हिमानी द्रोणी (Glacial trough) भी कहते हैं। जैसे उत्तरी अमेरिका में सेंट लारेंस घाटी (St. Lawrence Valley) समुद्र में डूबी हुई ‘U’ आकार की घाटियों को फियोर्ड (Fiord) कहते हैं, जैसे-नार्वे के तट पर।

V. लटकती घाटी (Hanging Valley):
हिमनदी की मुख्य घाटी अधिक गहरी होती है परन्तु उसमें मिलने वाली सहायक घाटी कम गहरी होती है। जब हिम पिघलती है तो सहायक घाटी मुख्य घाटी से ऊँची रह जाती है तथा मुख्य घाटी की दीवार के साथ संगम स्थल पर लटकती हुई प्रतीत होती है। इस लटकती घाटी का जल मुख्य घाटी में गिरता है तो प्रपात (Water Fall) का निर्माण होता है।

निक्षेप (Deposition):
जब हिमनदी पिघलती है तो उसका अधिकांश भाग अग्र भाग (snout) के निकट ही जमा हो जाता है। हिमनदी अपने भार को विभिन्न आकार तथा विस्तार के टीलों के रूप में जमा करती है। इन टीलों को हिमोढ़ (Moraines) कहते हैं। हिमोढ़ लम्बे कटक (Ridge) के रूप में लगभग 100 फीट ऊँचे होते हैं।

निक्षेप के स्थान के आधार पर हिमोढ़ चार प्रकार के होते हैं
1. पाश्विक हिमोढ़ (Lateral Moraines):
हिमनदी के किनारों के साथ-साथ बने लम्बे तथा संकरे हिमोढ़ को पाश्विक हिमोढ़ कहते हैं।

2. मध्यवर्ती हिमोढ़ (Medial Moraines):
दो मध्यवर्ती हिमोढ़ हिमनदियों के संगम के कारण उनके भीतरी किनारे वाले हिमोढ़ मिल कर एक हो जाते हैं। उसे मध्यवर्ती हिमोढ़ कहते हैं। कश्मीर में पर्वतीय चरागाह इन्हीं पर विकसित पाश्विक हिमोढ़ हुए हैं।

3. अन्तिम हिमोढ़ (Terminal Moraines):
अन्तिम हिमोढ़ हिमनदी के पिघल जाने पर हिमनदी के अन्तिम किनारे पर बने हिमोढ़ को अन्तिम हिमोढ़ कहते हैं।

4. तलस्थ हिमोढ़ (Ground Moraines):
हिमनदी की तली या आधार पर जमे हुए पदार्थ के ढेर को तलस्थ हिमोढ़ कहते हैं।

5. अन्य भू-आकार:
हिमनदी से पिघला हुआ जल कई स्थलाकारों को जन्म देता है। जलधाराओं से बारीक मिट्टी के निक्षेप से बाह्य मैदान (Out-wash plain) बनता है। उल्टी नाव या अंडे की शक्ल जैसी पहाड़ियां बनती हैं जिन्हें ड्रमलिन (Drumlin) कहते हैं। रेत, बजरी के निक्षेप से बनी कम ऊंचाई की श्रेणयों को एस्कर (Esker) कहते हैं। हिमनदी की अन्तिम सीमा पर टीलों की दीवार बन जाती है जिसे केमवेदिका कहते हैं।

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प्रश्न 3.
मरुस्थली क्षेत्रों में पवनें कैसे अपना कार्य करती हैं? क्या मरुस्थलों में यही एक कारक स्थलरूपों का निर्माण करता है?
उत्तर:
मरुस्थलों व शुष्क प्रदेशों में वनस्पति व नमी की कमी के कारण वायु अपरदन, परिवहन तथा निक्षेप कार्य करती है। इसलिए इसे शुष्क स्थल रूपरेखा (Arid Tropography) या वातज स्थल रूपरेखा भी कहते हैं। अपरदन के रूप-वायु अपरदन निम्नलिखित क्रियाओं से होता है

  1. नीचे का कटाव (Under Cutting)
  2. नालीदार कटाव (Gully Erosion)
  3. खुरचना (Scratching)
  4. चिकनाना (Polishing)

अपरदन (Erosion): वायु द्वारा अपरदन तीन प्रकार से होता है
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(ग) अपघर्षण (Abrasion):
वायु के धूलि-कण इसके अपरदन के यन्त्र (Tools) हैं। तीव्र गति वाली वायु धूलि-कणों को एक शक्ति के साथ चट्टानों से टकराती है। ये कण एक रेगमार (Sand paper) की भान्ति कटाव करते हैं। इस अपघर्षण की क्रिया से कई भू-आकार बनते हैं।

(i) छत्रक (Mushroom):
चट्टानों के निचले भाग व चारों तरफ से नीचे का कटाव (Under cutting) होता है। इस कटाव से एक पतले से आधार स्तम्भ (Pillar) के ऊपरी छतरी के आकार की चट्टानें खड़ी रहती हैं। नीचे की चट्टानें एक गुफा के समान कट जाती हैं। इसे छत्रक (Mushroom) या गारा (Gara) कहते हैं। चित्र-छत्रक जोधपुर के निकट छत्रक शैल मिलते हैं।
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(ii) ज्यूज़न (Zeugen):
ढक्कनदार दवात के आकार के स्थल रूपों को ज्यूज़न कहते हैं। ऊपरी भाग कठोर तथा कम चौड़ा होता है परन्तु निचला नरम भाग अधिक कटाव के कारण अधिक चौड़ा होता है।

(iii) यारडांग (Yardang):
वायु के लगातार एक ही दिशा में कटाव के कारण नुकीली चट्टानों का निर्माण होता है। इन्हें यारडांग कहते हैं। ये पसलियों (Ribs) की भान्ति तीव्र ढाल वाले होते हैं। ये भू-आकार चट्टानों के लम्ब (Vertical) रूप के कारण बनते हैं।

(iv) पुल तथा खिड़की (Bridge and Win-dow):
लम्बे समय तक कटाव के कारण चट्टानों की बीच बड़े-बड़े छिद्र बन जाते हैं। चट्टानों के आर-पार एक मेहराब (Arch) की आकृति का निर्माण हो जाता है, जैसे-U.S.A में Hope Window.

(v) इन्सेलबर्ग (Inselberg):
कठोर चट्टानों के ऊंचे टीलों को इन्सेलबर्ग कहते हैं। चारों ओर से कटाव के कारण ये तिरछी ढाल वाले तथा गुम्बदाकार होते हैं। ये ग्रेनाइट (Granite) तथा नीस (Gneiss) जैसी कठोर चट्टानों से बने होते हैं।

निक्षेप (Deposition): जब वायु का वेग कम हो जाता है तो उसे अपना भार कहीं-न-कहीं छोड़ना पड़ता है। इस निक्षेप से रेत के टीले तथा लोएस प्रदेश बनते हैं।

I. रेत के टीले (Sand Dunes):
जब रेत के मोटे कण टीलों के रूप में जमा हो जाते हैं तो उन्हें बालू का स्तूप कहते हैं (Sand dunes are hills of wind blown sand.)

  1. लम्बे बालूका स्तूप (Longitudinal dunes): ये प्रचलित वायु की दिशा के समानान्तर बनते हैं। इनकी आकृति लम्बी पहाड़ी की भान्ति होती है।
  2. आड़े बालूका स्तूप (Transverse dunes): ये प्रचलित पवन की दिशा के समकोण पर बनते हैं। इनकी शक्ल अर्द्ध-चन्द्राकार होती है।
  3. बरखान (Barkhans): यह अर्द्ध-चन्द्राकार टीले हैं जिनमें पवन मुखी ढाल उत्तल (Convex) तथा पवन विमुखी ढाल अवतल (Concave) होता है। इनकी आकृति दरांती (Sickle) या दूज के चांद (Crescent Moon) के समान होती है। बरखाना तुर्की शब्द है जिसका अर्थ है बालू की पहाड़ी। ये टीले खिसकते रहते हैं।

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II. लोएस (Loess):
दूर स्थानों से उठाकर लाई हुई बारीक मिट्टी के जमाव को लोएस कहते हैं। मरुस्थलों की सीमा पर रेत के बारीक कणों के निक्षेप में से लोएस प्रदेश बनते हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण प्रदेश चीन के उत्तर-पश्चिमी भाग में पीली मिट्टी का लोएस प्रदेश है जो 3 लाख वर्ग मील के क्षेत्र में फैला हुआ है। यह मिट्टी मध्य एशिया के गोबी मरुस्थल से लाई गई है। यह उपजाऊ मिट्टी है।

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प्रश्न 4.
चूना चट्टानें आर्द्र व शुष्क जलवायु में भिन्न व्यवहार करती है। क्यों? चूना प्रदेशों में प्रमुख भू आकृतिक प्रक्रिया कौन सी है और इसके परिणाम क्या हैं?
उत्तर:
भूमिगत जल का कार्य (Work Underground Water):
भूमिगत जल का महत्त्वपूर्ण कार्य चूने के प्रदेशों में होता है। भूमिगत जल ऐसे प्रदेशों में विशेष प्रकार की भू-रचना का निर्माण करता है। ऐसे प्रदेश के पत्थरों के रेगिस्तान, वनस्पतिहीन तथा असमतल होते हैं। जल को वायुमण्डल से कार्बन डाइऑक्साइड मिल जाती है। इसमें चूने का पत्थर घुल जाता है। ‘कार्ट’ शब्द यूगोस्लाविया के चूने की चट्टानों के प्रदेश से लिया गया है। इस प्रकार चूने की चट्टानों के प्रदेश की भू-रचना को कार्ट भू-रचना कहते हैं। ऐसे प्रदेश फ्रांस में, संयुक्त राज्य अमेरिका में, फ्लेरेडा तथा केन्टुकी प्रदेश, मैक्सिको में यूकाटन प्रदेश तथा भारत में खासी, रोहतास, पहाड़ियां, कांगड़ा घाटी व जबलपुर क्षेत्र हैं।

भूमिगत जल के कार्य (Works of Under-ground Water):
नदी, पवन, हिमनदी की तुलना में भूमिगत जल का कार्य कम महत्त्वपूर्ण है। इसका कारण भूमिगत जल की मन्द गति है। कम गति के कारण वास्तव में परिवहन का कार्य नहीं होता। अतः भूमिगत जल का कार्य मुख्यतः दो प्रकार से होता है

  • अपरदन (Erosion)
  • निक्षेप (Deposition)

I. अपरदन के रूप (Kinds of Erosion): भूमिगत जल द्वारा अपरदन के कई रूप हैं

  1. घुलने की क्रिया (Solution)
  2. जलगति क्रिया (Hydraulic Action)
  3. अपघर्षण (Abrasion)

अपरदन से बने भू-आकार (Land formed by Erosion):
(i) लैपीज़ (Lappies):
चूने के घुल जाने से गहरे गड्ढे बन जाते हैं। इनके बीच एक-दूसरे के समानान्तर पतली नुकीली पहाड़ियां दिखाई देती हैं। इन तेज़-धारी वाली पहाड़ियां (Knife-edged Ridges) को लैपीज़ या कैरन (Karren), क्लिन्ट (Clint) या बोगाज़ (Bogaz) कहते हैं। ऐसे प्रदेश में धरातल कटा-फटा दिखाई देता है। इन गड्ढों की दीवारें सीधी होती हैं।

(ii) घोल छिद्र (Sink Holes):
भूमिगत जल घुलन क्रिया से दरारों को बड़ा करता है तथा बड़े-बड़े तथा चौड़े गड्ढे बना देता है। इन खुले गड्ढों द्वारा नदियां नीचे चली जाती हैं। इन्हें डोलाइन (Doline) या विलय छिद्र (Swallow Holes) या घोल छिद्र (Sink Holes) कहते हैं। कई घोल छिद्रों के आपस में मिल जाने से एक गड्ढा बन जाता है जिसे युवाला (Uvala) कहते हैं। इन छिद्रों के कारण धरातल का जल-प्रवाह लुप्त हो जाता है तथा शुष्क घाटियां (Dry Valleys) बनती हैं। नदी जल भमि के नीचे अपनी घाटी बनाता है जिन्हें आधी घाटियां (Blind Valleys) कहते हैं। कई गड्ढों में वर्षा का पानी भर जाने से कार्ट झील (Karst Lake) बन जाती है।

(iii) गुफाएं (Caves):
घुलन क्रिया से भूमि के निचले भाग खोखले हो जाते हैं। धरातल पर कठोर भाग छत के रूप में खड़े रहते हैं। इस प्रकार भूमि के भीतर की मीलों लम्बी-चौड़ी गुफाएं बन जाती हैं। गहरी कन्दराओं को पोनोर (Ponor) कहते हैं, परन्तु लम्बी बरामदों जैसी गुफाओं में गैलरी (Galleries) का निर्माण होता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के केन्टुकी के प्रदेश की मैमथ गुफाएं (Mammoth caves) संसार भर में प्रसिद्ध हैं जोकि 48 कि० मी० लम्बी हैं। भारत में मध्य प्रदेश के बस्तर जिले में कोतामसर (Kotamsar) की गुफाएं प्रसिद्ध हैं जिनका बड़ा अक्ष (Chamber) 100 मीटर लम्बा तथा 12 मीटर ऊंचा है।

(iv) प्राकृतिक पुल (Natural Bridges): जहां गुफाओं के कुछ अश नीचे धंस जाते हैं और कठोर भाग खड़े रहते हैं तो प्राकृतिक पुल बनते हैं जैसे आयरलैण्ड में मार्बल आर्क (Marble Arch)।

(v) राजकुण्ड (Poljes): गुफाओं की छतों के गिर जाने से भूतल पर बड़े-बड़े गड्ढे बन जाते हैं। इन विशाल गड्ढों को राजकुण्ड (Poljes) कहा जाता है।

II. निक्षेप (Deposition):
भूमिगत जल द्वारा निक्षेप निम्नलिखित दशाओं में होता है

  1. जब जल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा कम हो जाए।
  2. जल की घुलन शक्ति कम हो जाए।
  3. अधिक वाष्पीकरण से जल भाप बन जाए।
  4. जल की मात्रा कम हो जाए।
  5. खनिज के घुल जाने के पश्चात् जल स्वयं ही निक्षेप करता है।
  6. दबाव तथा तापक्रम कम होने से।

निक्षेप से बने भू-आकार (Land forms formed by Deposition): भूमिगत जल बड़ी मात्रा में खनिज पदार्थ घोल लेता है। इस पदार्थ के निक्षेप से कई भू-आकार बनते हैं
1. स्टैलैक्टाइट (Stalactite):
गुफा की छत से टपकते जल में चूना घुला रहता है। जब जल वाष्प बन जाता है तो चूने का कुछ अंश छत पर जमा हो जाता है। धीरे-धीरे उसकी लम्बाई नीचे की ओर बढ़ जाती है। इन पतले, नुकीले, लटकते हुए स्तम्भों को स्टैलैक्टाइट (Stalactite) कहते हैं। यह स्तम्भ मुड़ कर बाजे की पाइप (Organ Pipe) का रूप धारण कर लेते हैं। विचित्र आकार के कारण इन्हें लटकते हुए परदे (Hanging Curtains) भी कहा जाता है।

2. स्टैलैगमाइट (Staiagmite):
गुफा को छत से रिसने वाला जल नीचे फर्श पर चूने का निक्षेप करता है। यह जमाव ऊपर की ओर स्तम्भ का रूप धारण कर लेता है। इस मोटे व बेलनाकार स्तम्भ को स्टैलैगमाइट (Stalagmite) कहते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में एक गुफा में एक ऐसे स्तम्भ का आकार 60 मीटर तथा ऊंचाई 30 मीटर तक है।

3. कन्दरा स्तम्भ (Cave Pillar):
ये दोनों स्तम्भ बढ़ते-बढ़ते आपस में मिल जाते हैं तो गुफा की दीवार की भान्ति कन्दरा स्तम्भ (Cave Pillar) बन जाते हैं। ये स्तम्भ खोखले होते हैं। ये खटकाने से बहुत सुन्दर आवाज़ करते हैं। स्टैलैक्टाइट

4. हम्स (Hums):
ये विस्तृत चूने के ढेर होते स्टैलैगमाइट हैं। ये गुम्बदादार (Dome-shaped) होते हैं। ये विशाल गड्ढों में पॉलजी (Poljes) में जमा होते रहते हैं।

5. ड्रिप स्टोन (Drip Stone):
जब गुफा की छत से जल छिद्र से न गिर कर छत की दरारों से टपकता है, तो गुफा की तली में परदे के समान चूने का लम्बवत् चित्र-स्टैलैक्टाइट और स्टैलैगमाइट जमाव हो जाता है। इस जमाव को ड्रिप स्टोन कहते हैं।
JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास 19

भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास JAC Class 11 Geography Notes

→ अनावरण के बाह्य कार्यकर्ता (External agents of change): निम्नलिखित प्रमुख बाह्य कार्यकर्ता जो भूतल पर परिवर्तन लाते हैं

  • अपक्षय
  • नदी
  • हिम नदी
  • पवन
  • सागरीय तरंगें।

→ नदी मार्ग के भाग (Sections of River Course): नदी मार्ग को निम्नलिखित तीन भागों में बांटा जा सकता है

  • ऊपरी भाग या पर्वतीय भाग।
  • मध्यवर्ती भाग या मैदानी भाग
  • निचला भाग या डैल्टा भाग।

→ नदी का अपरदन कार्य (Work of Erosion by River) नदी द्वारा अपरदन के दो प्रकार हैं: घोलीकरण, यांत्रिक अपरदन-तटीय अपरदन, शीर्षवत् अपरदन तथा संनिघर्षण। अपरदन द्वारा निम्नलिखित भू-आकार बनते हैं

  • V-आकार घाटी
  • गार्ज तथा कैनियन
  • जलप्रपात
  • झरने।

नदी द्वारा निक्षेप से बनने वाले भू-आकार (Landforms formed by River Deposition)

  • जलोढ़ पंख
  • विसर्प
  • गोखुर झील
  • बाढ़ के मैदान
  • डैल्टा।

→ हिमनदी (Glaciers): खिसकते हुए हिम पिण्ड को हिम नदी कहते हैं। हिमनदी हिम क्षेत्रों से जन्म लेतीहै। आकार व क्षेत्रफल की दृष्टि से हिमनदियां दो प्रकार की हैं
घाटी हिम नदी।, महाद्वीपीय हिम नदी।

→ हिमनदी द्वारा अपरदन (Erosion by a glaciers): हिमनदी अपरदन का कार्य निम्नलिखित क्रियाओं द्वारा करती है

  • उखाड़ना
  • गड्ढे बनाना
  • पीसना
  • चिकनाना।

→ इसके अपरदन से निम्नलिखित भू-आकार बनते हैं।

  • हिमागार
  • श्रृंग
  • कॉल
  • U-आकार घाटी
  • लटकती घाटी।

→ हिमनदी द्वारा निक्षेप (Deposition by glaciers): हिमनदी के पिघलने पर इसके मलबे का निक्षेप होता है। यह निक्षेप टीलों के रूप में होता है जिसे हिमोढ़ कहते हैं। हिमोढ़ चार प्रकार के होते हैं|

  • पाश्विक हिमोढ़
  • मध्यवर्ती हिमोढ़
  • अन्तिम हिमोढ़
  • तलस्थ हिमोढ़।

→ वायु द्वारा अपरदन (Wind Erosion): वायु अपरदन निम्नलिखित क्रियाओं से होता है

  • नीचे का कटाव
  • नालीदार कटाव,
  • खुरचना
  • चिकनाना। वायु अपरदन में अपवाहन, अपघर्षण तथा संनिघर्षण महत्त्वपूर्ण हैं।

वायु अपरदन से:

  • छत्रक
  • यारडांग
  • ज्यूज़ेन
  • पुल
  • इन्सेलबर्ग बनते हैं।

→ वायु निक्षेप (Wind deposition): जब वायु का वेग कम होता है तो निक्षेप से रेत के टीले तथा लोएस निक्षेप बनते हैं। रेत के टीले तीन प्रकार के होते हैं

  • लम्बे बालूका स्तूप
  • आड़े बालूव’ स्तूप
  • बरखान टीले।

→ सागरीय तरंगें (Sea Waves): सागरीय तरंगों का कार्य तटों तक सीमित होता है। यह अपरदन ल दाब क्रिया, अपघर्षण, घुलन क्रिया द्वारा होता है। लहरों के अपरदन से खाड़िया, मृगु, गुफाएं, वात छिद्र तथा स्टक बनते हैं। लहरों द्वारा निक्षेप से पुलिन, रोधिकाएं, लैगून तथा स्पिट बनते हैं।

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