JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. जाइरे बेसिन में किस प्रकार की जलवायु मिलती है?
(A) मानसूनी
(B) रूम सागरीय
(C) भूमध्य रेखीय
(D) ध्रुवीय।
उत्तर;
(C) भूमध्य रेखीय।

2. शीत ऋतु की वर्षा वाला खण्ड कौन-सा है?
(A) भूमध्य रेखीय
(B) रूमं सागरीय।
(C) मानसून
(D) टुण्ड्रा।
उत्तर:
(B) रूमं सागरीय।

3. यदि वाष्पीकरण वर्षा से कम हो तो जलवायु कैसी होती है ?
(A) शुष्क
(B) आर्द्र
(C) शीत
(D) उष्ण।
उत्तर:
(B) आर्द्र

4. वाष्पोत्सर्जन में कौन-सी क्रिया होती है?
(A) महासागरों से वाष्पीकरण
(B) पेड़-पौधों से वाष्पीकरण
(C) जल वाष्प का सघनन
(D) धूल-कणों पर जल वाष्प का जमना।
उत्तर:
(B) पेड़-पौधों से वाष्पीकरण।

5. H शब्द किस प्रकार के प्रदेशों की जलवायु प्रकट करता है?
(A) भूमध्य रेखीय
(B) भूमध्य सागरीय
(C) उच्च भूमियां
(D) मानसून
उत्तर:
(C) उच्च भूमियां।

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6. निम्नलिखित में से कौन-सा मौसम तथा जलवायु का तत्त्व नहीं है?
(A) तापमान
(B) आर्द्रता
(C) दृश्यता
(D) वृष्टि।
उत्तर:
(C) दृश्यता।

7. ऊष्ण ऋतु से पूर्णतः रहित ध्रुवीय जलवायु को कोपेन ने दर्शाया है:
(A) A अक्षर द्वारा
(C) D अक्षर द्वारा
(B) B अक्षर द्वारा
(D) E अक्षर द्वारा।
उत्तर:
(D) E अक्षर द्वारा।

8. निम्नलिखित में से कौन-से जलवायु प्रकार की प्रमुख विशेषताएं ऊंचा तापमान, ऊंची सापेक्षिक आर्द्रता, सारा वर्ष होने वाली अधिक वर्षा और कम वार्षिक तापान्तर है?
(A) विषुवतीय जलवायु
(B) सवाना जलवायु
(C) मानसून जलवायु
(D) चीन तुल्य जलवायु।
उत्तर:
(A) विषुवतीय जलवायु।

9. भूमध्य सागरीय जलवायु की विशेषता है:
(A) वर्ष भर वर्षा
(B) मुख्यतः शीत ऋतु में वर्षा
(C) मुख्यतः ग्रीष्म ऋतु में वर्षा
(D) 10 सेंटीमीटर से कम वार्षिक वर्षा।
उत्तर:
(B) मुख्यत: शीत ऋतु में वर्षा।

10. कौन-सी जलवायु में वार्षिक तापान्तर सर्वाधिक होता है?
(A) सवाना जलवायु
(B) उष्ण मरुस्थलीय जलवायु
(C) स्टेपी जलवायु
(D) उच्च पर्वतीय जलवायु।
उत्तर:
(B) उष्ण मरुस्थलीय जलवायु।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अमेज़न बेसिन में किस प्रकार की जलवायु मिलती है?
उत्तर:
भूमध्यरेखीय जलवायु।

प्रश्न 2.
शीत ऋतु की वर्षा वाला खण्ड कौन-सा है?
उत्तर:
भूमध्यसागरीय।

प्रश्न 3.
A शब्द किस प्रकार की जलवायु का प्रतीक है?
उत्तर:
आर्द्र उष्ण कटिबन्धीय जलवायु।

प्रश्न 4.
दो उष्ण मरुस्थलों के नाम लिखो।
उत्तर:
सहारा तथा थार।

प्रश्न 5.
आर्द्र उष्ण कटिबन्धीय जलवायु की सीमा कौन – सी समताप रेखा निर्धारित करती है?
उत्तर:
20°C समताप रेखा।

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प्रश्न 6.
उष्ण कटिबन्ध में कौन-सी तीन प्रकार की जलवायु मिलती है?
उत्तर:

  1. विषुवतीय रेखीय
  2. सवाना
  3. मानसूनी जलवायु।

प्रश्न 7.
शुष्क जलवायु के दो प्रकार बताओ।
उत्तर:
अर्ध-मरुस्थलीय, स्टेपी।

प्रश्न 8.
शुष्क मरुस्थल किन अक्षांशों के निकट मिलते हैं?
उत्तर:
कर्क रेखा तथा मकर रेखा।

प्रश्न 9.
भूमध्य सागरीय जलवायु खण्ड में शीत ऋतु की वर्षा का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
वायुदाब पेटियों का खिसकना।

प्रश्न 10.
टैगा जलवायु में कौन-से वन मिलते हैं?
उत्तर:
कोणधारी वन।

प्रश्न 11.
ध्रुवीय जलवायु में उष्णतम मास का तापमान कितना होता है?
उत्तर:
10°C से कम।

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प्रश्न 12.
टैगा जलवायु खण्ड में न्यूनतम ताप कहां मापा गया है?
उत्तर:
वर्खोयांस्क ( 50°C)।

प्रश्न 13.
भारत किस प्रकार की जलवायु वाला देश है?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय मानसून जलवायु।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
जलवायु विज्ञान की परिभाषा दो।
उत्तर:
जलवायु विज्ञान (Climatology ):
पृथ्वी के चारों ओर वायु का एक विस्तृत आवरण फैला हुआ है। इन वायुमण्डलीय अवस्थाओं ( तापमान, वायुदाब, पवनें, आर्द्रता) का अध्ययन करने वाले शास्त्र को जलवायु विज्ञान कहते हैं। इनमें केवल वायुमण्डलीय क्रियाओं का ही नहीं अपितु जलवायु के विभिन्न तत्त्वों एवं नियन्त्रणों का अध्ययन भी किया जाता है।

प्रश्न 2.
विभिन्न प्रकार के जलवायविक वर्गीकरण के मुख्य आधारों के नाम लिखो।
उत्तर:
संसार की मुख्य जलवायु वर्गीकृत प्रकारों की पहचान इन तत्त्वों के आधार पर की जाती है

  1. तापमान (Temperature)
  2. वर्षा (Rainfall)
  3. वाष्पीकरण (Evaporation)
  4. वाष्पोत्सर्जन (Evapotranspiration)
  5. जल सन्तुलन (Water Balance)।

प्रश्न 3.
तीन प्रसिद्ध जलवायविक वर्गीकरण कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
संसार में दो प्रसिद्ध भूगोलवेत्ताओं द्वारा प्रस्तुत किए गए तथा इन्हीं के नाम पर प्रसिद्ध वर्गीकरण निम्नलिखित हैं

  1. थार्नवेट वर्गीकरण (Thornthwaite Classification)
  2. कोपेन वर्गीकरण (Koppen Classification)
  3. ट्रिवार्था का वर्गीकरण

प्रश्न 4.
वृष्टि की एक निश्चित मात्रा आर्द्र और शुष्क जलवायु विभाजक सीमा क्यों नहीं होती?
उत्तर:
केवल वर्षा की मात्रा के आधार पर ही आर्द्र और शुष्क जलवायु की सीमा निर्धारित नहीं होती है। औसत वार्षिक वर्षा के साथ-साथ वर्षा का मौसमी वितरण देखा जाता है। तापमान तथा वाष्पीकरण का प्रभाव भी महत्त्वपूर्ण होता है। ये चारों कारक मिलकर किसी प्रदेश की शुष्क या आर्द्र जलवायु निर्धारित करते हैं।

प्रश्न 5.
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण में किस प्रकार के जलवायु आंकड़े प्रयोग किये जाते हैं?
उत्तर:

  1. तापमान
  2. वर्षा
  3. वर्षा तथा तापमान का वनस्पति से सम्बन्ध।

प्रश्न 6.
किस प्रकार की जलवायु में वार्षिक तापान्तर कम-से-कम होता है?
उत्तर:
भूमध्यरेखीय खण्ड में वार्षिक तापान्तर सबसे कम होता है। ये प्रायः 5° सैंटीग्रेड से कम होता है। इस खण्ड में वर्ष भर समान रूप से वर्षा होती है तथा मेघ छाये रहते हैं, उच्च तापमान मिलते हैं तथा दिन-रात सदा समान होते हैं परिणामस्वरूप वार्षिक तापान्तर कम होता है।

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प्रश्न 7.
ग्रीष्मकाल में 10° C समताप रेखा का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
टुण्ड्रा खण्ड में सबसे अधिक गर्म मास का तापमान 10° C से कम रहता है। ग्रीष्म ऋतु बहुत छोटी होती है तथा उपज काल भी बहुत छोटा होता है। यह समताप रेखा ध्रुवों की ओर वृक्षों की सीमा निर्धारित करती है। (limit of tree growth) 10° C से कम तापमान के कारण टुण्ड्रा खण्ड में वृक्ष नहीं होते।

प्रश्न 8.
पश्चिमी यूरोपीय जलवायु उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका में केवल पतली समुद्र तटीय पट्टियों में ही क्यों पाई जाती है?
उत्तर:
उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका में पश्चिमी यूरोपीय खण्ड एक तंग पट्टी के रूप में चिल्ली तथा कनाडा में मिलता है। निरन्तर ऊंचे रॉकीज तथा एण्डीज पर्वतों की रोक के कारण इस खण्ड का विस्तार सीमित है।

प्रश्न 9.
निम्न अक्षांशीय मरुस्थलीय जलवायु की तुलना स्टेपी जलवायु से करो।
उत्तर:

मरुस्थलीय जलवायु स्टेपी जलवायु
(1) मरुस्थलीय जलवायु 20 30 अक्षांशों के पश्चिमी भागों में मिलती है। (1) स्टेपी जलवायु 30 45 अक्षांशों में महाद्वीपों के अन्दरूनी भागों में पाई जाती है।
(2) इस जलवायु में औसत वार्षिक तापमान 38 रहता है। (2) इस जलवायु में औसत वार्षिक तापमान 20 रहता है।
(3) वार्षिक वर्षा 20 से० मी० से कम होती है। (3) औसत वार्षिक वर्षा 30 से० मी॰ से अधिक रहती है।
(4) प्राकृतिक वनस्पति का अभाव होता है। केवल कांटेदार झाड़ियां पाई जाती हैं। (4) यहां छोटी हरी घास मिलती है जिस पर पशु पालन होता है।


निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
कोपेन द्वारा जलवायु वर्गीकरण की पद्धति का वर्णन करो तथा प्रत्येक जलवायु प्रकार का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
कोपेन की जलवायु वर्गीकरण की पद्धति ब्लादिमीर कोपेन द्वारा विकसित की गई जलवायु के वर्गीकरण की आनुभाविक पद्धति का सबसे व्यापक उपयोग किया जाता है। कोपेन ने वनस्पति के वितरण और जलवायु के बीच एक घनिष्ठ सम्बन्ध की पहचान की। उन्होंने तापमान तथा वर्षण के कुछ निश्चित मानों का चयन करते हुए उनका वनस्पति के वितरण से संबंध स्थापित किया और इन मानों का उपयोग जलवायु के वर्गीकरण के लिए किया । वर्षा एवं तापमान के मध्यमान वार्षिक एवं मध्यमान मासिक आँकड़ों पर आधारित यह एक आनुभाविक पद्धति है।

उन्होंने जलवायु के समूहों एवं प्रकारों को पहचान करने के लिए बड़े तथा छोटे अक्षरों के प्रयोग का आरंभ किया। सन् 1918 में विकसित तथा समय के साथ संशोधित हुई कोपेन की यह पद्धति आज भी लोकप्रिय और प्रचलित है। कोपेन ने पाँच प्रमुख जलवायु समूह निर्धारित किए जिनमें से चार तापमान पर और एक घर्षण पर आधारित है बड़े अक्षरों का प्रयोग
बड़े अक्षर A, C, D तथा E आर्द्र जलवायुओं को तथा B अक्षर शुष्क जलवायुओं को निरूपित करता है।

सारणी : कोपेन के अनुसार जलवायु समूह

समूह लक्षण
A. उष्णकटिबंधीय सभी महीनों का औसत तापमान 18° सेल्सियस से अधिक-आर्द्र जलवायु।
B. शुष्क जलवायु औसत वार्षिक वर्षा (से॰मी०) औसत वार्षिक तापमान (° सेल्सियस) के दुगुने से कम।
C. कोष्ण शीतोष्ण सर्वाधिक ठंडे महीने का औसत तापमान 3° सेल्सियस से अधिक किन्तु 18° सेल्सियस से कम मध्य अक्षांशीय जलवायु।
D. शीतल हिम-वन वर्ष के सर्वाधिक ठंडे महीने का औसत तापमान. शून्य डिग्री तापमान से 3° नीचे।
E. शीत सभी महीनों का औसत तापमान 10° सेल्सियस से कम।
H. उच्चभूमि ऊँचाई के कारण सर्द।

छोटे अक्षरों का प्रयोग
जलवायु समूहों को तापक्रम एवं वर्षा की मौसमी विशेषताओं के आधार पर कई उप-प्रकारों में विभाजित किया गया है जिसको छोटे अक्षरों द्वारा अभिहित किया गया है। शुष्कता वाले मौसमों को छोटे अक्षरों f, m, w और s द्वारा इंगित किया गया है। इसमेंfशुष्क मौसम के न होने को, m मानसून जलवायु को, w शुष्क शीत ऋतु को और s शुष्क ग्रीष्म ऋतु को इंगित करता है। छोटे अक्षर a, b, c तथा d तापमान की उग्रता वाले भाग को दर्शाते हैं। B समूह की जलवायुओं को उपविभाजित करते हुए स्टैपी अथवा अर्ध-शुष्क के लिए S तथा मरुस्थल के लिए W जैसे बड़े अक्षरों का प्रयोग किया गया है।

समूह प्रकार कुट अक्षर लक्षण
(A) उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु उष्णकटिबंधीय आर्द्र Af कोई शुष्क ऋतु नहीं।
उष्णकटिबंधीय मानसून Am मानसून, लघु शुष्क ॠतु
उष्पकटिबंधीय आर्द्र एवं शुष्क Aw जाड़े की शुष्क ऋतु
(B) शुष्क जलवायु उपोष्ण कटिबंधीय स्टैपी BSh निम्न अक्षांशीय अर्द्ध शुष्क एवं शुष्क
उपोष्ण कटिबंधीय मरुस्थल BWh निम्न अक्षांशीय शुष्क
मध्य अक्षांशीय स्टैपी BSk मध्य अक्षांशीय अर्ध शुष्क अथवा शुष्क
मध्य अक्षांशीय मरुस्थल BWk मध्य अक्षांशीय शुष्क
(C) कोष्ण शीतोष्ण (मध्य अक्षांशीय जलवायु) आर्द्र उपोष्ण कटिबंधीय Cfa मध्य अक्षांशीय अर्द्ध शुष्क अथवा शुष्क
भूमध्य सागरीय Csa शुष्क गर्म ग्रीष्म
समुद्री पश्चिमी तटीय Cfb एवं CFc कोई शुष्क ऋतु नहीं, कोष्ण तथा शीतल ग्रीष्म
(D) शीतल हिम-वन जलवायु आर्द्र महाद्वीपीय Df कोई शुष्क ऋतु नहीं, भीषण जाड़ा
उप-उत्तर ध्रुवीय DW जाड़ा शुष्क तथा अत्यंत भीषण
(E) शीत जलवायु टुंड्रा Et सही अर्थों में कोई ग्रीष्म नहीं
ध्रुवीय हिमटोपी Ef सदैव हिमाच्छादित हिम
(F) उच्चभूमि उच्च भूमि H हिमाच्छादित उच्च भूमियाँ

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

प्रश्न 2.
जलवायु परिवर्तन से क्या अभिप्राय है? कारण स्पष्ट करें।
उत्तर:
जलवायु परिवर्तन
जिस प्रकार की जलवायु का अनुभव हम अब कर रहे हैं वह थोड़े बहुत उतार-चढ़ाव के साथ विगत 10 हज़ार वर्षों से अनुभव की जा रही है। अपने प्रादुर्भाव से ही पृथ्वी ने जलवायु में अनेक परिवर्तन देखे हैं। भूगर्भिक अभिलेखों से हिमयुगों और अंतर – हिमयुगों में क्रमशः परिवर्तन की प्रक्रिया परिलक्षित होती है। भू-आकृतिक लक्षण, विशेषतः ऊँचाइयों तथा उच्च अक्षांशों में हिमनदियों के आगे बढ़ने व पीछे हटने के शेष चिह्न प्रदर्शित करते हैं। हिमानी निर्मित झीलों में अवसादों का निक्षेपण उष्ण एवं शीत युगों के होने को उजागर करता है। वृक्षों के तनों में पाए जाने वाले वलय भी आर्द्र एवं शुष्क युगों की उपस्थिति का संकेत देते हैं । ऐतिहासिक अभिलेख भी जलवायु की अनिश्चितता का वर्णन करते हैं। ये सभी साक्ष्य इंगित करते हैं कि जलवायु परिवर्तन एक प्राकृतिक एवं सतत प्रक्रिया है।

भारत में जलवायु
भारत में भी आर्द्र एवं शुष्क युग आते-जाते रहे हैं। पुरातत्व खोजें दर्शाती हैं कि ईसा से लगभग 8,000 वर्ष पूर्व राजस्थान मरुस्थल की जलवायु आर्द्र एवं शीतल थी। ईसा से 3,000 से 1,700 वर्ष पूर्व यहाँ वर्षा अधिक होती थी लगभग 2,000 से 1,700 वर्ष ईसा पूर्व यह क्षेत्र हड़प्पा संस्कृति का केन्द्र था। शुष्क दशाएँ तभी से गहन हुई हैं। लगभग 50 करोड़ से 30 करोड़ वर्ष पहले भू-वैज्ञानिक काल के कूम्ब्रियन, आर्डोविसियन तथा सिल्युरिसन युगों में पृथ्वी गर्म थी। प्लीस्टोसीन युगांतर के दौरान हिमयुग और अंतर हिमयुग अवधियां रही हैं। अंतिम प्रमुख हिमयुग आज से 18,000 वर्ष पूर्व था। वर्तमान अंतर हिमयुग 10,000 वर्ष पूर्व आरंभ हुआ था।

अभिनव पूर्व काल में जलवायु:
सभी कालों में जलवायु परिवर्तन होते रहे हैं। पिछली शताब्दी के 90 के दशक में चरम मौसमी घटनाएँ घटित हुई हैं। 1990 के दशक में शताब्दी का सबसे गर्म तापमान और विश्व में सबसे भयंकर बाढ़ों को दर्ज किया है। सहारा मरुस्थल के दक्षिण में स्थित साहेल प्रदेश में 1967 से 1977 के दौरान आया विनाशकारी सूखा ऐसा ही एक परिवर्तन था। 1930 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका के वृहत मैदान के दक्षिण-पश्चिमी भाग में, जिसे ‘धूल का कटोरा’ कहा जाता है, भीषण सूखा पड़ा।

फसलों की उपज अथवा फसलों के विनाश, बाढ़ों तथा लोगों के प्रवास संबंधी ऐतिहासिक अभिलेख परिवर्तनशील जलवायु के प्रभावों के बारे में बताते हैं। यूरोप अनेकों बार उष्ण, आर्द्र, शीत एवं शुष्क युगों से गुज़रा है। इनमें से महत्त्वपूर्ण प्रसंग 10वीं और 11वीं शताब्दी की उष्ण एवं शुष्क दशाओं का है, जिनमें बाइकिंग कबीले ग्रीनलैंड में जा बसे थे। यूरोप ने सन् 1550 से सन् 1850 के दौरान लघु हिम युग का अनुभव किया है। 1885 से 1940 तक विश्व के तापमान में वृद्धि की प्रवृत्ति पाई गई है । 1940 के बाद तापमान में वृद्धि की दर है ।

जलवायु परिवर्तन के कारण: जलवायु परिवर्तन के अनेक कारण हैं। इन्हें खगोलीय और पार्थिव कारणों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

  1. खगोलीय कारणों का सम्बन्ध सौर कलंकों की गतिविधियों से उत्पन्न सौर्थिक निर्गत ऊर्जा में परिवर्तन से है। सौर कलंक सूर्य पर काले धब्बे होते हैं, जो एक चक्रीय ढंग से घटते-बढ़ते रहते हैं । कुछ मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार सौर कलंकों की संख्या बढ़ने पर मौसम ठंडा और आर्द्र हो जाता है और तूफानों की संख्या बढ़ जाती है। सौर कलंकों की संख्या घटने से उष्ण एवं शुष्क दशाएँ उत्पन्न होती हैं यद्यपि ये खोजे आँकड़ों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण नहीं हैं।
  2. एक अन्य खगोलीय सिद्धांत ‘मिलैंकोविच दोलन’ है, जो सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के कक्षीय लक्षणों में बदलाव के चक्रों, पृथ्वी की डगमगाहट तथा पृथ्वी के अक्षीय झुकाव में परिवर्तनों के बारे में अनुमान लगाता है । ये सभी कारक सूर्य से प्राप्त होने वाले सूर्यातप में परिवर्तन ला देते हैं जिसका प्रभाव जलवायु पर पड़ता है।
  3. ज्वालामुखी क्रिया जलवायु परिवर्तन का एक अन्य कारण है। ज्वालामुखी उद्भेदन वायुमंडल में बड़ी मात्रा में ऐरोसोल फेंक देता है। ये ऐरोसोल लंबे समय तक वायुमंडल में विद्यमान रहते हैं और पृथ्वी की सतह पर पहुँचने वाले सौर्यिक विकिरण को कम कर देते हैं । हाल ही में हुए पिनाटोबा तथा एल सियोल ज्वालामुखी उद्भेदनों के बाद पृथ्वी का औसत तापमान कुछ हद तक गिर गया था
  4. जलवायु पर पड़ने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण मानवोद्भवी कारण वायुमंडल में ग्रीन हाऊस गैसों का बढ़ता सांद्रण है। इससे भूमंडलीय तापन हो सकता है।

भूमंडलीय तापन
ग्रीन हाऊस गैसों की उपस्थिति के कारण वायुमंडल एक हरित गृह की भांति व्यवहार करता है। वायुमंडल प्रवेशी सौर विकिरण का पोषण भी करता है किन्तु पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर उत्सर्जित होने वाली अधिकतम दीर्घ तरंगों को अवशोषित कर लेता है। वे गैसें जो विकिरण की दीर्घ तरंगों का अवशोषण करती हैं, हरित गृह गैसें कहलाती हैं। वायुमंडल का तापन करने वाली प्रक्रियाओं को सामूहिक रूप से ‘हरित गृह प्रभाव’ (Green house effect) कहा जाता है।

प्रश्न 3.
भूमण्डलीय ऊष्मन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भूमण्डलीय ऊष्मन (Global Warming): भूमण्डलीय ऊष्मन का अर्थ है पृथ्वी के औसत तापमान में वायुमण्डल को गर्म करने के साधन वायुमण्डलीय गैसों के परमाणु एवं अणु ग्रीन हाउस गैसों विशेषकर जल, कार्बन डाइऑक्साइड तथा मेथैन द्वारा सूर्य प्रकाश का अवशोषण तथा पश्च विकिरण करते हैं। महासागरों से होने वाले वाष्पन से वायुमण्डल में जल का संकेंद्रण नियंत्रित होता है। वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड ज्वालामुखी क्रिया द्वारा लाया जाता है। कार्बन डाइऑक्साइड की उतनी ही मात्रा वर्षण द्वारा हटा दी जाती है और महासागरों में कैल्शियम कार्बोनेट के रूप में जमा कर दी जाती है। मेथैन, जो कार्बन डाइऑक्साइड से बीस गुना अधिक प्रभावी है, लकड़ी में बैक्टीरिया के उपापचय तथा घास चरने वाले पशुओं द्वारा उत्पन्न की जाती है। मेथैन का बड़ी शीघ्रता से कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में ऑक्सीकरण होता है।

मानवीय क्रियाओं का प्रभाव:
मानवीय क्रियाओं, जैसे जीवाश्मी तेल को जलाने तथा विभिन्न कृषीय क्रियाओं द्वारा मेथैन एवं कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में जमा की जा रही है। वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा संपूर्ण विश्व की जलवायु को बदलने में मुख्य भूमिका अदा करती है। यह गैस सूर्यातप के लिए पारदर्शी है, लेकिन बाहर जाने वाले दीर्घ तरंगी पार्थिव विकिरण को अवशोषित कर लेती है। अवशोषित पार्थिव विकिरण भूपृष्ठ पर वापस विकिरित कर दिया जाता है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में कोई भी उल्लेखनीय परिवर्तन वायुमण्डल के निचले स्तर के तापमान में परिवर्तन लाएगा।

तीव्र औद्योगीकरण तथा कृषि और परिवहन क्षेत्रों में हुई तकनीकी क्रांति के फलस्वरूप वायुमण्डल में बड़े पैमाने पर कार्बन डाइऑक्साइड, मेथैन तथा क्लोरोफ्लोरो कार्बन गैसें पहुंचाई जाती हैं। इनमें से कुछ गैस वनस्पति द्वारा उपभोग कर ली जाती हैं तथा कुछ भाग महासागरों में घुल जाता है। फिर भी लगभग 50 प्रतिशत भाग वायुमण्डल में बच जाता है।

  1. पिछले 100 वर्षों में, मेथैन का संकेंद्रण दुगुने से अधिक बढ़ गया है, (7.0 × 10-7 से 15.5 × 10-7 तक)।
  2. कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 20 प्रतिशत से अधिक (2.90 × 10-4 से 3.49 × 10-4 तक) हो गई है।
  3. 1880-1890 में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा लगभग 290 भाग प्रति दस लाख थी, जो बढ़ कर 1980 में 315 भाग प्रति दस लाख, 1990 में 340 भाग प्रति दस लाख और 2000 से 400 भाग प्रति दस लाख हो गई है।
  4. इसका अर्थ यह हुआ कि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का अनुपात बढ़कर 1950 तक 9 प्रतिशत तथा 1990 तक लगभग 17 प्रतिशत अधिक हो गया है। गत दशक में इसकी वृद्धि की दर और भी बढ़ गई है

औद्योगीकरण का प्रभाव:
अनेकों जलवायविक प्राचलों में से तापमान नगरीकरण तथा औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। नगरीय क्षेत्रों की तापीय विशेषताएं समीपवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों से काफ़ी भिन्न हैं। गत 50 वर्षों के तापमान आंकड़ों के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि भारत में शीत ऋतु में तापमान में 0.7° से. तथा ग्रीष्म ऋतु में 1.4° से० बढ़ जाता है।

कृषि का प्रभाव:
मानव जलवायु परिवर्तन का एक इंजन समझा जाता है। उदाहरणार्थ चावल उत्पादन करने वाले किसान, कोयला खनिक, डेयरी में लगे लोग तथा स्थानांतरी कृषक भी भूमंडलीय ऊष्मन में अपना-अपना योगदान देते हैं। कुछ अनुमानों के अनुसार विश्व में चावल का उत्पादन 20 प्रतिशत मेथैन तथा कोयला खनन 6 प्रतिशत मेथैन वायुमंडल में जोड़ता है। स्थानांतरी खेती के फलस्वरूप होने वाले वनों के कटाव से 20 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड गैस वायुमंडल में जमा कर दी जाती है। इसी प्रकार औद्योगीकरण द्वारा 25 प्रतिशत क्लोरोफ्लोरो कार्बन गैस वायुमंडल के ऐरोसॉल में जोड़ दी जाती है। फलस्वरूप भूमंडलीय तापमान वृद्धि लगभग 1.5° से० है।

वायुमंडलीय ऊष्मन के प्रभाव समुद्र तल के जल का ऊपर उठना:
आज इस बात के लिए काफ़ी चिंता जताई जा रही है कि कार्बन डाइऑक्साइड तथा मेथेन गैस की वायुमंडल में निरंतर वृद्धि से तापमान इस सीमा तक बढ़ जाएगा कि इससे ग्रीनलैंड तथा अंटार्कटिक महाद्वीप में बर्फ पिघलना आरंभ हो जाएगा। फलत: समुद्र तल ऊपर उठेगा जिससे तटीय भाग तथा द्वीप डूब जाएंगे। इससे वाष्पन एवं वर्षा के प्रतिरूपों में परिवर्तन आएगा, पौधों की नई-नई बीमारियां तथा नाशक जीवों की समस्याएं खड़ी होंगी और अंटार्कटिका के ऊपर स्थित ओजोन छिद्र बड़ा हो जाएगा।

अतीत में हुए जलवायविक परिवर्तनों की भरोसेमंद तस्वीर प्राप्त करने के उद्देश्य से अनेक देशों में विशेषकर अंटार्कटिक तथा ग्रीनलैंड की हिम टोपियों में पिछले 1,00,000 वर्षों के दौरान बर्फ़ में फंसी गैसों का विश्लेषण करने के लिए बर्फ कोरिंग कार्यक्रम को लिया गया है। इसके परिणाम बड़े रोचक निकले हैं और भूमंडलीय ऊष्मन की घटना से आगे बढ़कर पृथ्वी के अभिनव इतिहास की झलक दिखाते हैं। पृथ्वी के इतिहास के पिछले 10,000 वर्षों में जलवायु की प्रवृत्ति उसके पहले के वर्षों की तुलना में विशेष रूप से स्थिर रही है। ग्रीनलैंड के बर्फ़-कोर में ऑक्सीजन समस्थानिक अभिलेखों के अध्ययन से यह पता चलता है कि उत्तरी गोलार्द्ध में शीतलन प्रवृत्ति 1725 से 1920 तक चली। इनका संबंध ज्वालामुखी राख के निष्कासन से रहा, जो दो या तीन दशकों के नियमित अंतराल पर होता रहा लेकिन 1945 के बाद किसी प्रमुख ज्वालामुखी विस्फोट तथा वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड संकेंद्रण की मात्रा में वृद्धि के बिना ही भूमंडलीय तापमान में वृद्धि से ऊष्मन शुरू हुआ है।

भविष्य: वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी है कि 2020 तक समस्त विश्व में पिछले 1,000 वर्षों की तुलना में तापमान अधिक होगा। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ती हुई मात्रा भूमंडलीय तापमान को बढ़ाने का कार्य करेगी।

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