Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 धूल Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 धूल
JAC Class 9 Hindi धूल Textbook Questions and Answers
मौखिक –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –
प्रश्न 1.
हीरे के प्रेमी उसे किस रूप में पसंद करते हैं ?
उत्तर :
हीरे के प्रेमी हीरे को साफ़-सुथरे, तराशे हुए और आँखों में चकाचौंध पैदा करने वाले रूप में पसंद करते हैं।
प्रश्न 2.
लेखक ने संसार में किस प्रकार के सुख को दुर्लभ माना है?
उत्तर :
लेखक ने संसार में उस सुख को दुर्लभ माना है, जो जवानी में अखाड़े की मिट्टी में सनने से मिलता है।
प्रश्न 3.
मिट्टी की आभा क्या है? उसकी पहचान किससे होती है ?
उत्तर :
मिट्टी की आभा धूल है। मिट्टी के रंग-रूप की पहचान उसकी धूल से ही होती है।
लिखित –
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –
प्रश्न 1.
धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना क्यों नहीं की जा सकती ?
उत्तर :
धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना इसलिए नहीं की जा सकती, क्योंकि शिशुओं को धूल में खेलना अच्छा लगता है। धूल से सना शिशु का मुख उसकी सहजता को और भी अधिक निखार देता है। इसी कारण शिशुओं को ‘धूलि भरे हीरे’ कहा गया है।
प्रश्न 2.
हमारी सभ्यता धूल से क्यों बचना चाहती है ?
उत्तर :
आधुनिक युग का अभिजात वर्ग धूल से इसलिए बचना चाहता है, ताकि उसकी दिखावे की चमक-दमक फीकी न पड़ जाए। ये लोग अपने बच्चों को धूल-मिट्टी में खेलने से मना करते हैं। वे धूल से सने हुए शिशु को इसलिए नहीं उठाते कि कहीं उनके वस्त्र मैले न हो जाएँ।
प्रश्न 3.
अखाड़े की मिट्टी की क्या विशेषता होती है ?
उत्तर :
अखाड़े की मिट्टी साधारण धूल नहीं होती। यह मिट्टी अखाड़े में दाव आज़माने वाले जवानों के शरीर पर लगे तेल, मट्ठे और उनकी मेहनत से बहे हुए पसीने से सिझाई हुई होती है। अखाड़े में मेहनत करने से पसीने से तर-बतर जवानों के शरीर पर यह मिट्टी ऐसे फिसलती है, जैसे वह कुआँ खोदकर बाहर निकला हो।
प्रश्न 4.
श्रद्धा, भक्ति, स्नेह की व्यंजना के लिए धूल सर्वोत्तम साधन किस प्रकार है ?
उत्तर :
लोग कहते हैं कि धूल के समान तुच्छ कोई नहीं है, जबकि सती धूल को माथे से लगाकर उसके प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करती है। वीर योद्धा धूल को आँखों से लगाकर उसके प्रति अपनी श्रद्धा जताते हैं तथा युलिसिस ने विदेश से लौटने के बाद अपने देश के प्रति अपना स्नेह व्यक्त करने के लिए इथाका की धूलि को चूमा था। इस प्रकार धूल श्रद्धा, भक्ति और स्नेह व्यक्त करने का सर्वोत्तम साधन है।
प्रश्न 5.
इस पाठ में लेखक ने नगरीय सभ्यता पर क्या व्यंग्य किया है ?
उत्तर :
इस पाठ में लेखक ने बताया है कि जो लोग गाँव से जुड़े हुए हैं, वे यह कल्पना नहीं कर सकते कि धूल के बिना भी कोई शिशु हो सकता है। वे धूल से सने हुए बच्चे को ‘धूलि भरे हीरे’ कहते थे। आधुनिक नगरीय सभ्यता बच्चों को धूल में खेलने से मना करती है, क्योंकि यदि वे धूल से सने बच्चे को उठाएँगे तो मैले हो जाएँगे। नगर वाले गोधूलि अथवा धूलि का महत्व जानते ही नहीं हैं क्योंकि नगरों में तो धूल-धक्कड़ होते हैं, गोधूलि नहीं होती। लेखक नगरीय सभ्यता को हीनभावना से युक्त मानता है।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –
प्रश्न 1.
लेखक ‘बालकृष्ण’ के मुँह पर छाई गोधूलि को श्रेष्ठ क्यों मानता है ?
उत्तर :
लेखक का मानना है कि जिस प्रकार फूल के ऊपर धूल के महीन कण शोभा पाते हैं, उसी प्रकार से बालकृष्ण के मुँह पर छाई हुई गोधूलि उनके मुख की शोभा को और अधिक निखार देती है। उनके मुख की ऐसी कांति आधुनिक युग में प्रचलित प्रसाधन-सामग्री के उपयोग से नहीं आ सकती। गोधूलि की सहजता ने बालकृष्ण के मधुर स्वरूप को और भी अधिक आकर्षक बना दिया है। इसलिए लेखक ने बालकृष्ण के मुँह पर छाई गोधूलि को श्रेष्ठ माना है।
प्रश्न 2.
लेखक ने धूल और मिट्टी में क्या अंतर बताया है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार धूल और मिट्टी में विशेष अंतर नहीं है। उसके अनुसार धूल और मिट्टी में केवल उतना ही अंतर है, जितना कि शब्द और रस, देह और प्राण अथवा चाँद और चाँदनी में होता है। जिस प्रकार ये अलग-अलग होते हुए भी एक हैं, उसी प्रकार धूल और मिट्टी अलग नाम होकर भी एक हैं। मिट्टी की आभा का नाम धूल है और मिट्टी के रंग-रूप की पहचान उसकी धूल से ही होती है। मिट्टी और धूल एक दूसरे के पूरक हैं। धूल ही मिट्टी के आरंभ को प्रस्तुत करती है।
प्रश्न 3.
ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के कौन-कौन से सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है ?
उत्तर :
संध्या के समय जब गोपालक गायें चराकर गाँव में लौटते हैं, तो उनके और उनकी गायों के चलने से उत्पन्न हुई धूल वातावरण में ऐसे भर जाती है कि संध्या के समय को गोधूलि का नाम दे दिया गया है। गाँव की अमराइयों के पीछे अस्त होते हुए सूर्य की किरणें धूलि पर पड़ती हैं, तो वह धूल भी स्वर्णमय हो जाती है। सूर्यास्त के बाद जब गाँव की कच्ची डगर से कोई बैलगाड़ी निकल जाती है, तो उसके पीछे उड़ने वाली धूल रूई के बादल के समान दिखाई देती है और चाँदनी रात में मेले जाने वाली बैलगाड़ियों के पीछे उड़ने वाली धूल चाँदी जैसी लगती है।
प्रश्न 4.
‘हीरा वही घन चोट न टूटे’ – का संदर्भ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक का विचार है कि धूल में लिपटा किसान आज भी तथाकथित अभिजात वर्ग की उपेक्षा का पात्र है। किसान सब की उपेक्षा सहकर भी अपनी मिट्टी से प्यार करता है और अपने परिश्रम से अन्न पैदा करता है। उसके हाथ, पैर, मुँह आदि पर छाई हुई धूल उसके परिश्रमी होने का प्रमाण है। वह ऐसा हीरा है, जो धूल भरा है। हीरा अपनी कठोरता के लिए जाना जाता है, जो हथौड़े की चोट से भी नहीं टूटता। इसी प्रकार से भारतीय किसान भी कठोर परिश्रम से नहीं घबराता, इसलिए वह अटूट है।
प्रश्न 5.
धूल, धूलि, धूली, धूरि और गोधूलि की व्यंजनाओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक ने धूल को जीवन का यथार्थवादी गद्य कहा है। धूलि को वह उसकी कविता मानता है। धूली को वह छायावादी दर्शन मानता है, जिसकी वास्तविकता उसे संदिग्ध लगती है। धूरि को लेखक ने लोक-संस्कृति का नवीन जागरण माना है। गोधूलि से अभिप्राय संध्या के समय उड़ने वाली उस धूल से है, जो गायें चराकर गाँव की ओर लौटते समय ग्वालों और गायों के पैरों से उठती है। इस प्रकार लेखक ने चारों को अलग-अलग रूप में चित्रित किया है।
प्रश्न 6.
‘धूल’ पाठ का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘धूल’ पाठ में लेखक ने धूल के माध्यम से निम्न वर्ग के महत्व को स्पष्ट किया है। उनका मानना है कि धूल से सना व्यक्ति घृणा अथवा उपेक्षा का पात्र नहीं होता, बल्कि धूल तो परिश्रमी व्यक्ति का परिधान है। धूल से सना शिशु ‘धूलि भरा हीरा’ कहलाता है। धूल में सना किसान-मजदूर सच्चा हीरा है, जो देश की उन्नति में सहायक है। आधुनिक सभ्यता में पले लोग धूल से घृणा करते हैं। वे नहीं जानते कि धूल अथवा मिट्टी ही जीवन का सार है। मिट्टी से ही सब पदार्थ उत्पन्न होते हैं। इसलिए सती मिट्टी को सिर से, सिपाही आँखों से तथा आम नागरिक स्नेह से स्पर्श करता है।
प्रश्न 7.
कविता को विडंबना मानते हुए लेखक ने क्या कहा है ?
उत्तर
लेखक ने कहा है कि गोधूलि पर अनेक कवियों ने कविताएँ लिखी हैं, परंतु वे उस धूलि को सजीवता से चित्रित नहीं कर पाए, जो कि संध्या के समय गायें चराकर लौटते समय ग्वालों और गायों के पैर से उठकर सारे वातावरण में फैल जाती है। अधिकांश कवि शहरों के रहने वाले हैं। शहरों में धूल-धक्कड़ तो होता है, परंतु गाँव की गोधूलि नहीं होती। इसलिए वे अपनी कविताओं में गाँव की गोधूलि का सजीव वर्णन नहीं कर पाए हैं। अभिप्राय यह है कि कवियों ने जिसे देखा नहीं, महसूस नहीं किया, भोगा नहीं – उसी को अपनी कविताओं में उतार दिया। इसमें कविता यथार्थ से परे हो गई है। इसी को लेखक ने कविता की विडंबना माना है।
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –
प्रश्न 1.
फूल के ऊपर जो रेणु उसका श्रृंगार बनती है, वही धूल शिशु के मुँह पर उसकी सहज पार्थिवता को निखार देती है।
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि शिशु धूल-मिट्टी से सना हुआ ही अच्छा लगता है। धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना नहीं की जा सकती। इस प्रकार धूल से सने शिशु को ‘धूलि भरे हीरे’ कहा गया है। लेखक के अनुसार जैसे फूल के ऊपर पड़े हुए धूल के कण उसकी शोभा को बढ़ा देते हैं, वैसे ही शिशु के मुँह पर पड़ी हुई धूल उसके सहज स्वरूप को और भी निखार देती है।
प्रश्न 2.
‘धन्य-धन्य’ वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की ‘ – लेखक इन पंक्तियों द्वारा क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
लेखक कहना चाहता है कि धूल भरे बच्चे को गोद में उठाए हुए व्यक्ति को सौभाग्यशाली अवश्य माना जाता है, परंतु साथ ही ‘धूल भरे बच्चों को उठाने से मैले हुए’ कहने से यह स्पष्ट होता है कि कवि ने धूल को गंदगी जैसा माना है। इसी पंक्ति में ‘ऐसे लरिकान’ से यह भावार्थ निकलता है कि ये बच्चे निम्न वर्ग के हैं इसलिए धूल से लिपटे हैं। इस प्रकार वह व्यक्ति चमक-दमक देखता है, गुण नहीं। उसे हीरे पसंद हैं, धूलि भरे हीरे नहीं।
प्रश्न 3.
मिट्टी और धूल में अंतर है, लेकिन उतना ही, जितना शब्द और रस में, देह और प्राण में, चाँद और चाँदनी में।
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि मिट्टी और धूल में कोई अंतर नहीं है। दोनों एक ही हैं। मिट्टी और धूल की अभिन्नता स्पष्ट करने के लिए लेखक उदाहरण देता है कि जैसे शब्द और रस दो होते हुए भी एक हैं। शब्द के बिना रस उत्पन्न नहीं होता। देह और प्राण अलग-अलग होते हुए भी अभिन्न हैं, क्योंकि प्राण के बिना देह मृत है और देह के बिना प्राण का कोई अस्तित्व नहीं है। चाँद और चाँदनी अलग-अलग हैं, परंतु चाँद के बिना चाँदनी नहीं हो सकती। इसी प्रकार से मिट्टी है, तो धूल है। मिट्टी की पहचान धूल से ही होती है।
प्रश्न 4.
हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम-से-कम उस पर पैर तो रखे।
उत्तर :
लेखक के अनुसार हमारी देशभक्ति का स्तर इतना गिर गया है कि हम अपने देश की मिट्टी को आदर देने के स्थान पर उसका तिरस्कार करते हैं। हम अपने देश को छोड़कर विदेशों की ओर भाग रहे हैं। इसलिए लेखक चाहता है कि हम चाहे अपने देश की मिट्टी के प्रति समर्पित न हों, परंतु हमें अपने देश को छोड़कर विदेश नहीं जाना चाहिए। हमारे पैर हमारी धरती पर टिके रहे।
प्रश्न 5.
वे उलटकर चोट भी करेंगे और तब काँच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा।
उत्तर :
लेखक ने यह संबोधन भारत के किसानों और मज़दूरों के लिए किया है। लेखक ने इन्हें ‘धूल भरे हीरे’ कहा है। आधुनिक अभिजात वर्ग इनकी अपेक्षा करता है और काँच जैसी क्षणभंगुर वस्तुओं के पीछे भाग रहा है। इन किसान-मज़दूरों की उपेक्षा करना तथा इन्हें तुच्छ मानना उचित नहीं है, क्योंकि इनमें दृढ़ता तथा परिश्रम करने की शक्ति है। जब ये अपनी शक्ति पहचान कर अभिजात वर्ग पर अपनी उपयोगिता सिद्ध कर देंगे, तो आधुनिकतावादियों के पास काँच और हीरे में भेद करने का अवसर नहीं होगा।
भाषा-अध्ययन –
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के उपसर्ग छाँटिए –
उदाहरण : विज्ञापित – वि (उपसर्ग) ज्ञापित
संसर्ग, उपमान, संस्कृति, दुर्लभ, निद्वंद्व, प्रवास, दुर्भाग्य, अभिजात, संचालन।
उत्तर :
संसर्ग – सम् (सर्ग), उपमान – उप (मान), संस्कृति सम्-कृ – सम्-कृ + क्तिन्
दुर्लभ – दुर् (लभ), निद्वंद्व – निर् (द्वंद्व), प्रवास – प्र (वास)
दुर्भाग्य – दुर् (भाग्य), अभिजात – अभि (जात), संचालन – सम् (चालन)
प्रश्न 2.
लेखक ने इस पाठ में धूल चूमना, धूल माथे पर लगाना, धूल होना जैसे प्रयोग किए हैं। धूल से संबंधित अन्य पाँच प्रयोग और बताइए तथा उन्हें वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर :
- धूल में मिलना – रोहित ने बहुत परिश्रम से चित्र बनाया था, लेकिन सीमा ने उस पर पानी डालकर उसे धूल में मिला दिया।
- धूल फाँकना – सतीश पढ़-लिखकर भी कोई काम न मिलने के कारण इधर-उधर धूल फाँकता फिर रहा है
- धूल चाटना – पुलिस के डंडे खाकर चोर धूल चाटने लगा।
- धूल उड़ना – सुमिता जब चुनाव हार गई, तब उसके घर पर धूल उड़ने लगी।
- धूल समझना – रावण अपने सामने सबको धूल समझता था।
योग्यता विस्तार –
प्रश्न 1.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की कविता ‘मिट्टी की महिमा’, नरेश मेहता की कविता ‘मृत्तिका’ तथा सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की ‘धूल’ शीर्षक से लिखी कविताओं को पुस्तकालय से ढूँढ़कर पढ़िए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
परियोजना कार्य –
प्रश्न 1.
इस पाठ में लेखक ने शरीर और मिट्टी को लेकर संसार की असारता का जिक्र किया है। इस असारता का वर्णन अनेक भक्त कवियों ने अपने काव्य में किया है। ऐसी कुछ रचनाओं का संकलन कर कक्षा में भित्ति पत्रिका पर लगाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
JAC Class 9 Hindi धूल Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
‘नीच को धूरि समान’ कथन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
कवि का कथन है कि धूलि के समान नीच कौन है ? कोई नहीं। इस संबंध में लेखक का कहना है कि कवि के इस कथन को वेद- वाक्य के समान सत्य नहीं मान लेना चाहिए, क्योंकि धूल तो इस देश की पवित्र मिट्टी है। इस मिट्टी को सती श्रद्धावश अपने सिर पर धारण करती है; देशभक्त इसे अपनी आँखों से लगाते हैं और प्रत्येक नागरिक देशप्रेम के कारण अपने देश की मिट्टी का प्रेम से स्पर्श करता है। इसलिए धूल नीच न होकर श्रद्धा, भक्ति और स्नेह के योग्य है।
प्रश्न 2.
किसान के हाथ-मुँह पर छाई धूल हमारी आधुनिक सभ्यता से क्या कहती है ?
उत्तर :
किसान के हाथ-मुँह पर छाई धूल हमारी आधुनिक सभ्यता से कहती है कि वह धूल परिश्रम की प्रतीक है। इसी के फलस्वरूप किसान देश के लिए अनाज पैदा करता है। हमारी आधुनिक सभ्यता को इन्हें हेय-दृष्टि से देखने के स्थान पर इनका सम्मान करना चाहिए. क्योंकि ये वे सच्चे हीरे हैं, जो घन की चोट से भी नहीं टूटते। किसान कभी भी परिश्रम से जी नहीं चुराता; वह कठोर-से-कठोर स्थिति में भी अपना काम करता रहता है।
प्रश्न 3.
हमारी आधुनिक सभ्यता में धूल की उपेक्षा क्यों की जाती है ?
उत्तर :
हमारी आधुनिक सभ्यता में पले-बढ़े लोग चमक-दमक तथा दिखावे के पीछे भागते हैं। उन्हें धूल से सने हुए लोगों से नफ़रत है। वे अपने बच्चों को धूल-मिट्टी में खेलने से मना करते हैं। वे काँच के समान चमकीली वस्तुओं के पीछे दीवाने हैं। वे यह नहीं सोचते कि काँच क्षणभंगुर होता है। इसके विपरीत परिश्रम की धूल में लिपटा हुआ हीरा ही असली है। वे शारीरिक श्रम को हीनदृष्टि से देखने के कारण भी धूल की उपेक्षा करते हैं।
प्रश्न 4.
गोधूलि गाँव में ही क्यों होती है ?
उत्तर :
गोधूलि गाँव की संपत्ति है गाँव के कच्चे रास्तों पर संध्या के समय जब ग्वाले अपनी गायों को चराकर लौटते हैं, तो उनके तथा गायों के पैरों से उड़ने वाली धूल अस्त होते हुए सूर्य की सुनहरी किरणों में रंगकर स्वर्णमयी हो जाती है। इसी धूल को गोधूलि कहते हैं इसके विपरीत शहर की पक्की सड़कों पर यह दृश्य दिखाई नहीं देता। इसलिए गोधूलि गाँव में ही होती है।
प्रश्न 5.
लेखक ने किसे हीरे के समान कीमती कहा है और क्यों ?
उत्तर :
लेखक ने से भरे हुए बच्चों को हीरे के समान कीमती कहा है। ऐसा इसलिए कहा गया है, क्योंकि धूल से बच्चों का बचपन लिपटा होता है। बच्चा धूल में खेलकर बड़ा होता है। बच्चों को ज़मीन पर खेलना अच्छा लगता है। उसका सारा शरीर धूल से भर जाता है, इसी कारण वह हीरे से अधिक कीमती है।
प्रश्न 6.
प्रसाधन-सामग्री की तुलना किससे की गई है और क्यों ?
उत्तर :
प्रसाधन – सामग्री की तुलना गोधूलि से की गई है, क्योंकि गोधूलि से ही प्रकृति अपना श्रृंगार करती है। फूल, गलियाँ, पेड़-पौधे इत्यादि सभी इससे भरकर अपना अलग रंग प्रस्तुत करते हैं। बच्चे भी गोधूलि से भरे होते हैं। उस समय सब समान लगते हैं- कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। सभी का रूप उसके परिवार वालों को आकर्षित करता है। इसलिए प्रसाधन-सामग्री को गोधूलि के समक्ष तुच्छ माना गया है।
प्रश्न 7.
बड़े लोग अपने बड़प्पन को दिखाने के लिए क्या ढोंग करते हैं ?
उत्तर :
बड़े लोग जब गाँवों में जाते हैं, उस समय अपनी महानता दिखाने के लिए धूल से भरे बच्चों को गोद में उठा लेते हैं। लोग उन्हें इस तरह बच्चों को उठाते देख उनकी प्रशंसा करते हैं कि किस प्रकार उन्होंने मैले-कुचैले धूल से भरे बच्चों को अपनी गोद में उठा रखा है। उन्हें अपनी मिट्टी से प्यार है। यह ढोंग उन्हें आम लोगों की नज़र में महान बना देता है।
प्रश्न 8.
मिट्टी का हमारे जीवन में क्या महत्व है ?
उत्तर :
मिट्टी का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। हमारा शरीर अंत में मिट्टी में विलीन हो जाता है। जीवन जीने के लिए जितने भी सार तत्व अनिवार्य होते हैं, वे सब हमें मिट्टी से मिलते हैं। हमारे जीवन के रूप, रस, गंध, स्पर्श सभी मिट्टी से संबंधित हैं। धूल भी मिट्टी का अंश है, जिसमें बच्चे अपने को पहचानते हैं।
प्रश्न 9.
गोधूलि गाँव की संपत्ति क्यों है ?
उत्तर :
गोधूलि गाँव की संपत्ति मानी जाती है। शहरों में धूल तो है, परंतु वह गोधूलि नहीं है; क्योंकि संध्या के समय जब ग्वाले गाएँ चराकर घरों को लौटते हैं, तो उनके तथा गायों के पदचापों से उठने वाली धूल से वहाँ के वातावरण में अद्भुत आकर्षण दिखाई देता है। जब इस धूल पर अस्त होते हुए सूर्य की सुनहरी किरणें पड़ती हैं; तो धूल स्वर्णिम हो जाती है। ये सब दृश्य गाँवों में ही दिखाई देते हैं। शहरों में ऊँची-ऊँची इमारतों में सूर्य भी छिप जाता है। वहाँ गोधूलि के समय गाँवों जैसा वातावरण दिखाई नहीं देता है। इसलिए गोधूलि को गाँव की संपत्ति माना गया है।
प्रश्न 10.
लेखक धूल पर पैर रखने का आग्रह क्यों कर रहा है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार आज की पीढ़ी चमक-दमक में खो गई है। उसे अपनी मिट्टी से प्यार नहीं है। वह काँच के टुकड़े प्राप्त करने के लिए विदेशों में जाकर रहना पसंद करती है। इसलिए लेखक कहता है कि हम एक बार अपनी मिट्टी में पैर रखें, जिसमें हमें हमारी सभ्यता की सुगंध मिलेगी। लेखक चाहता है कि हम अपनी धरती पर टिके रहे तथा अपना देश छोड़कर
प्रश्न 11.
विदेश न जाएँ। मानव शरीर किससे बना हुआ है ?
उत्तर :
मानव शरीर मिट्टी से बना हुआ है। यही मिट्टी मानव के शरीर को मज़बूत बनाती है। इसी से उसके शरीर में शक्ति का संचार होता है।
प्रश्न 12.
मिट्टी हमें किसका ज्ञान करवाती है ?
उत्तर :
मानव शरीर मिट्टी से बना है। इसी से मानव में शक्ति का संचार होता है। संसार में रूप, रस, गंध और स्पर्श का ज्ञान मिट्टी से ही होता है। यह हमें किसी को पहचानने तथा उसके गुणों व अवगुणों से अवगत करवाने का काम करती है।
प्रश्न 13.
लेखक को किस प्रकार का शिशु अच्छा लगता है और क्यों ?
उत्तर :
लेखक को धूल से लथपथ तथा उसमें सना हुआ बालक अति सुंदर लगता है। धूल उसके तन को शोभा युक्त बनाती है; उसके शरीर में चमक तथा कांति उत्पन्न करती है। धूल से युक्त बालक का शरीर सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है। ऐसा बालक हीरे की चमक को भी फीका कर देता है।
प्रश्न 14.
मिट्टी की आभा क्या है ? उसकी पहचान कैसे होती है ?
उत्तर :
मिट्टी की आभा ‘धूल’ है। इसी धूल से मिट्टी के रंग-रूप को देखा और जाना जा सकता है। यही धूल मिट्टी के महत्व को प्रतिपादित करती है; उसकी विभिन्नता को एक रूप देकर मिट्टी के गुणों से लोगों को परिचित करवाती है।
प्रश्न 15.
‘धूल’ किस प्रकार की रचना है ? लेखक ने इस रचना के माध्यम से क्या कहना चाहा है ?
उत्तर :
धूल’ डॉ० रामविलास शर्मा द्वारा रचित एक ललित निबंध है। लेखक की यह कृति ग्रामीण अंचल से अवश्य जुड़ी है, लेकिन इसने संपूर्ण मानव जाति को एक बहुमूल्य संदेश देना चाहा है। लेखक ने ‘धूल’ रचना के माध्यम से मिट्टी के महत्व, उपयोगिता तथा महिमा का वर्णन किया है। इसमें लेखक ने मानव-जीवन में मिट्टी का स्थान निर्धारित करते हुए धूल को उसकी आभा कहा है।
प्रश्न 16.
लेखक ने ‘धूल’ निबंध में बहुत-से मुहावरों का वर्णन किया है। आप भी ‘धूल’ से संबंधित कुछ मुहावरे लिखिए।
उत्तर :
धूल से संबंधित निम्नलिखित मुहावरे हो सकते हैं –
- धूल चाटना
- धूल झाड़ना
- धूल चूमना
- धूल में मिलना
- धूल उड़ाना
- धूल में उड़ना
- धूल फाँकना
- धूल समझना
प्रश्न 17.
लेखक ने धूल के महत्व को किस प्रकार रेखांकित किया है ?
उत्तर :
लेखक ने धूल के महत्व को रेखांकित करते हुए बताया है कि सती धूल को माथे से लगाकर स्वयं को सौभाग्यशाली समझती है तथा योद्धा इसी धूल को अपनी आँखों से लगाकर स्वयं को परमवीर समझता है। युलिसिस नामक योद्धा ने स्वदेश लौटने पर सबसे पहले अपने देश इथाका की धूलि को ही चूमा था।
धूल Summary in Hindi
लेखक परिचय :
जीवन-परिचय – सुप्रसिद्ध आलोचक, निबंधकार, विचारक एवं कवि श्री रामविलास शर्मा जी का जन्म 10 अक्टूबर, सन् 1912 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था। इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एम० ए० तथा पी०एच डी० की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1938 से ही वे अध्यापन क्षेत्र में आ गए। वर्ष 1943 से 1974 ई० तक इन्होंने बलवंत राजपूत कॉलेज, आगरा के अंग्रेजी विभाग में कार्य किया और विभाग के अध्यक्ष रहे। प्रगतिवादी समीक्षा-पद्धति को हिंदी में सम्मान दिलाने वाले लेखकों में डॉ० रामविलास शर्मा का स्थान प्रमुख है।
प्रगतिशील लेखक संघ के मंत्री के रूप में मार्क्सवादी साहित्य- दृष्टि को समझने का इन्हें पर्याप्त अवसर मिला और इन्होंने उसका भरपूर प्रयोग अपनी रचनाओं में किया। इनका मार्क्सवादी साहित्य-समीक्षा के अग्रणी समीक्षकों में इनका नाम लिया जा सकता है। रामविलास शर्मा जी ने कबीर, तुलसी, भारतेंदु, रामचंद्र शुक्ल, प्रेमचंद आदि पर नवीन ढंग से विचार किया और प्राचीन मान्यताओं को खंडित किया। डॉ० रामविलास शर्मा स्पष्ट वक्ता एवं स्वतंत्र चिंतक थे।
आपने ‘हंस’ मासिक पत्रिका के ‘काव्य-विशेषांक’ का संपादन किया तथा दो वर्ष तक आगरा से निकलने वाली ‘समालोचना’ पत्रिका का भी संपादन किया। सन् 2000 में दिल्ली में इनकी मृत्यु हुई।
रचनाएँ – शर्मा जी की ख्याति हिंदी समालोचक के रूप में अधिक रही है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
निराला की साहित्य साधना (तीन खंड), भारतेंदु और उनका युग, प्रेमचंद और उनका युग, महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण, भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिंदी (तीन खंड), भाषा और समाज, भारत में अंग्रेज़ी राज और मार्क्सवाद (दो खंड), इतिहास दर्शन, भारतीय संस्कृति और हिंदी प्रदेश आदि।
भाषा-शैली – ‘ धूल’ रामविलास शर्मा का ललित निबंध है, जिसमें लेखक ने प्रसंगानुकूल भावपूर्ण भाषा-शैली का प्रयोग किया है। लेखक ने सहज, सरल तथा व्यावहारिक हिंदी भाषा के शब्दों का अधिक प्रयोग किया है जिसमें कहीं-कहीं शिशु, पार्थिवता, संसर्ग, विज्ञापित, विडंबना आदि तत्सम प्रधान शब्दों के साथ-साथ सिझाई, बाटे, कनिया, मट्ठा आदि देशज शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। लेखक ने धूल चाटने, धूल झाड़ने, धूल चूमने, धूल होना आदि मुहावरों का सटीक प्रयोग किया है। लेखक ने काव्यात्मक भावपूर्ण शैली का बहुत सफलता से प्रयोग किया है; जैसे- ‘फूल के ऊपर जो रेणु उसका श्रृंगार बनती है, वही धूल शिशु के मुख पर उसकी सहज पार्थिवता निखार देती है।’ अतः कह सकते हैं कि इस पाठ में लेखक ने सहज, स्वाभाविक तथा भावपूर्ण भाषा-शैली में ‘ धूल’ के महत्व को रेखांकित किया है।
पाठ का सार :
‘धूल’ पाठ में डॉ० रामविलास शर्मा ने धूल की महिमा, महत्व और उपयोगिता का वर्णन किया है। लेखक पाठ का प्रारंभ कविता की इस पंक्ति से करता है- ‘जिसके कारण धूलि भरे हीरे कहलाए’। लेखक का मानना है कि हीरे को तो साफ-सुथरा चमकाकर रखा जाता है, परंतु धूल से लिपटा हुआ शिशु इतना प्यारा लगता है कि वह धूल से भरा हीरा सबका मन मोह लेता है। धूल से सने हुए बालकृष्ण सबके मन के मोहन हैं। आधुनिक सभ्यता में पले हुए लोग बच्चों को धूल में खेलने से रोकते हैं। उन्हें लगता है कि धूल में खेलने से उनका स्तर गिर जाएगा। इसके विपरीत किसी कवि ने धूल-भरे शिशुओं को गोद में लेने वाले लोगों को सौभाग्यशाली मानते हुए लिखा है-‘धन्य धन्य वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की।’
लेखक के अनुसार जो लोग भोले-भाले धूल भरे शिशु को उठाने से शरीर का मैला होना मानते हैं, उन्हें तो अखाड़े की मिट्टी से सने हुए लोगों के शरीर से बदबू ही आने लगेगी। परंतु जो बचपन से ही धूल में खेलता रहा है, उसे जवानी में अखाड़े की मिट्टी से दूर नहीं रखा जा सकता। अखाड़े की मिट्टी साधारण धूल नहीं है वह तो तेल, मट्ठे और मेहनत के पसीने से सनी हुई वह मिट्टी है, जो पसीने से तर शरीर पर ऐसे फिसलती है जैसे कोई कुआँ खोदकर बाहर निकल आया हो। अखाड़े में मेहनत करने से व्यक्ति की मांसपेशियाँ फूल उठती हैं और अखाड़े में चित्त लेटकर वह स्वयं को सारे संसार को जीतने वाला मानता है।
मानव शरीर मिट्टी का बना हुआ है और मिट्टी ही उसके शरीर को मज़बूत बनाती है। फूल मिट्टी की उपज हैं। संसार में रूप, रस, गंध और स्पर्श का ज्ञान भी इसी से होता है। मिट्टी और धूल में उतना ही अंतर है, जितना कि शब्द व रस, देह व प्राण तथा चाँद व चाँदनी में होता है। मिट्टी की आभा का नाम धूल है, जिससे उसके रंग-रूप की पहचान होती है। धूल वह है, जो सूर्यास्त के पश्चात गाँव में गोधूलि, शिशु के मुख पर धूल तथा फूल की पंखुड़ियों पर साकार सौंदर्य बनकर छा जाती है। गोधूलि पर कवियों ने बहुत लिखा है। यह गाँव में होती है, शहरों में नहीं। यह गो और गोपालों के पदों से उत्पन्न होती है। एक प्रसिद्ध पुस्तक-विक्रेता के निमंत्रण-पत्र में गोधूलि की बेला में आने का आग्रह पढ़कर लेखक सोचता है कि शहर के धूल-धक्कड़ में गोधूलि कहाँ ?
धूलि के महत्व को रेखांकित करते हुए लेखक बताता है कि सती इसे माथे से और योद्धा आँखों से लगाता है। युलिसिस ने विदेश से स्वदेश लौटने पर सबसे पहले अपने देश इथाका की धूलि चूमी थी। यूक्रेन के मुक्त होने पर सैनिक ने वहाँ की धूल का अत्यंत श्रद्धा से स्पर्श किया था। जहाँ श्रद्धा, भक्ति, स्नेह की व्यंजना धूल से होती है, वहीं घृणा के लिए धूल चाटने, धूल झाड़ने आदि मुहावरों का प्रयोग किया जाता है। धूल जीवन का यथार्थ व धूलि उसकी कविता है। मिट्टी काली, पीली, लाल आदि अनेक रंगों की होती है, परंतु धूलि शरत के धुले उजले बादलों जैसी होती है। किसान के हाथ, पैर, मुँह आदि पर छाई हुई धूल के नीचे ही असली हीरे हैं। जब हम यह जान जाएँगे, तब हम हीरे से लिपटी हुई धूल को माथे से लगाना सीख जाएँगे।
कठिन शब्दों के अर्थ :
- खरादा हुआ – सुडौल और चिकना।
- रेणु – धूल।
- नयन-तारा – आँखों का तारा, बहुत प्यारा।
- पार्थिवता – मिट्टी से बना।
- अभिजात – कुलीन, उच्च वर्ग।
- प्रसाधन सामग्री – श्रृंगार की वस्तु।
- संसर्ग – संपर्क।
- गात – शरीर।
- कनिया – गोद।
- लरिकान – शिशुओं।
- विज्ञापित – सूचित।
- वंचित – विमुख, रहित, अलग।
- रिझाई – पकाई हुई, सनी हुई।
- निद्वर्वद्व – बिना किसी दुविधा के, जहाँ कोई द्वंद्व न हो।
- व्यंजित – व्यक्त करना।
- असारता – सारहीनता, जिसका कोई सार न हो।
- सूक्ष्मबोध – गहराई से समझना।
- अमराइयों – आम के बागों।
- उपरांत – बाद।
- गोधूलि की बेला – संध्या का समय।
- विडंबना – छलना।
- बाटे – हिस्से।
- प्रवास – विदेश में रहना।
- असूया – ईर्ष्या।