JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

Jharkhand Board Class 12 Political Science दो ध्रुवीयता का अंत InText Questions and Answers.

पृष्ठ 24

प्रश्न 1.
पाठ्यपुस्तक की पृष्ठ संख्या 24 पर दिये गये मानचित्र में स्वतंत्र मध्य एशियाई देशों को चिह्नित करें।
उत्तर;
स्वतंत्र मध्य एशियाई देश ये हैं-

  1. उज्बेकिस्तान
  2. ताजिकिस्तान
  3. कजाकिस्तान
  4. किरगिझस्तान
  5. तुर्कमेनिस्तान।

प्रश्न 2.
मैंने किसी को कहते हुए सुना है कि, “सोवियत संघ का अन्त समाजवाद का अन्त नहीं है। ” क्या यह संभव है?
उत्तर:
यह सही है कि सोवियत संघ का अन्त समाजवाद का अन्त नहीं है। यद्यपि सोवियत संघ समाजवादी विचारधारा का प्रबल समर्थक तथा उसका प्रतीक था, लेकिन वह समाजवाद के एक रूप का प्रतीक था। समाजवाद के अनेक रूप हैं और समाजवादी विचारधारा के उन रूपों को अभी भी विश्व के अनेक देशों ने अपना रखा है। दूसरे, समाजवाद एक विचारधारा है जिसमें देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार विकास होता रहा है और अब भी हो रहा है। इसलिए सोवियत संघ का अन्त समाजवाद का अन्त नहीं है।

पृष्ठ 28

प्रश्न 1.
सोवियत और अमरीकी दोनों खेमों के शीत युद्ध के दौर के पाँच-पाँच देशों के नाम लिखिए।
उत्तर:
शीत युद्ध के दौर के सोवियत और अमरीकी खेमों के 5-5 देशों के नाम निम्नलिखित हैं-

  • अमरीकी खेमे के देश:
    1. संयुक्त राज्य अमेरिका
    2. इंग्लैंड
    3. फ्रांस
    4. पश्चिमी जर्मनी
    5. इटली।
  • सोवियत खेमे के देश:
    1. सोवियत संघ
    2. पूर्वी जर्मनी
    3. पोलैंड
    4. रोमानिया
    5. हंगरी।

Jharkhand Board Class 12 Political Science दो ध्रुवीयता का अंत Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
सोवियत अर्थव्यवस्था की प्रकृति के बारे में निम्नलिखित में से कौनसा कथन गलत है?
(क) सोवियत अर्थव्यवस्था में समाजवाद प्रभावी विचारधारा थी।
(ख) उत्पादन के साधनों पर राज्य का स्वामित्व / नियन्त्रण होना।
(ग) जनता को आर्थिक आजादी थी।
(घ) अर्थव्यवस्था के हर पहलू का नियोजन और नियन्त्रण राज्य करता था।
उत्तर:
(ग) जनता को आर्थिक आजादी थी।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित को कालक्रमानुसार सजाएँ।
(क) अफगान – संकट
(ग) सोवियत संघ का विघटन
(ख) बर्लिन – दीवार का गिरना
(घ) रूसी क्रान्ति।
उत्तर:
(क) रूसी क्रान्ति, (1917)
(ख) अफगान संकट, (1979)
(ग) बर्लिन – दीवार का गिरना (1989)
(घ) सोवियत संघ का विघटन, (1991)।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में कौनसा सोवियत संघ के विघटन का परिणाम नहीं है?
(क) संयुक्त राज्य अमरीका और सोवियत संघ के बीच विचारधारात्मक लड़ाई का अन्त
(ख) स्वतन्त्र राज्यों के राष्ट्रकुल ( सी आई एस ) का जन्म
(ग) विश्व – व्यवस्था के शक्ति सन्तुलन में बदलाव
(घ) मध्य-पूर्व में संकट
उत्तर:
(घ) मध्य-पूर्व में संकट

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में मेल बैठाएँ-

(1) मिखाइल गोर्बाचेव (क) सोवियत संघ का उत्तराधिकारी
(2) शॉक थेरेपी (ख) सैन्य समझौता
(3) रूस (ग) सुधारों की शुरुआत
(4) बोरिस येल्तसिन (घ) आर्थिक मॉडल
(5) वारसॉ (ङ) रूस के राष्ट्रपति

उत्तर:

(1) मिखाइल गोर्बाचेव (ग) सुधारों की शुरुआत
(2) शॉक थेरेपी (घ) आर्थिक मॉडल
(3) रूस (क) सोवियत संघ का उत्तराधिकारी
(4) बोरिस येल्तसिन (ङ) रूस के राष्ट्रपति
(5) वारसॉ (ख) सैन्य समझौता

प्रश्न 5.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें।
(क) सोवियत राजनीतिक प्रणाली”…………”की विचारधारा पर आधारित थी।
(ख) सोवियत संघ द्वारा बनाया गया सैन्य गठबन्धन” …………था।
(ग) ………… पार्टी का सोवियत राजनीतिक व्यवस्था पर दबदबा था।
(घ) …………. ने 1985 में सोवियत संघ में सुधारों की शुरुआत की।
(ङ) …………. का गिरना शीतयुद्ध के अन्त का प्रतीक था।
उत्तर:
(क) समाजवाद
(ख) वारसॉ पैक्ट
(ग) कम्युनिस्ट
(घ) मिखाइल गोर्बाचेव
(ङ) बर्लिन की दीवार।

प्रश्न 6.
सोवियत अर्थव्यवस्था को किसी पूँजीवादी देश जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका की अर्थव्यवस्था से अलग करने वाली किन्हीं तीन विशेषताओं का जिक्र करें।
उत्तर:

  1. सोवियत अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध और राज्य के नियन्त्रण में थी जबकि पूँजीवादी देशों में मुक्त व्यापार की नीति को अपनाया गया था।
  2. सोवियत अर्थव्यवस्था समाजवादी अर्थव्यवस्था पर आधारित थी जबकि अमेरिका ने पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को अपनाया था।
  3. सोवियत अर्थव्यवस्था में भूमि और अन्य उत्पादक सम्पदाओं तथा वितरण व्यवस्था पर राज्य का ही स्वामित्व और नियन्त्रण था जबकि पूँजीवादी देशों में निजीकरण को अपनाया गया था।

प्रश्न 7.
किन बातों के कारण गोर्बाचेव सोवियत संघ में सुधार के लिए बाध्य हुए?
उत्तर:
गोर्बाचेव द्वारा सोवियत संघ में सुधार के कारण
गोर्बाचेव निम्नलिखित कारणों से सोवियत संघ में सुधार करने के लिए बाध्य हुए-
(1) अर्थव्यवस्था का गतिरुद्ध हो जाना:
सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था कई सालों तक गतिरुद्ध हुई। इससे उपभोक्ता वस्तुओं की बड़ी कमी हो गयी थी। लोगों का जीवन कठिन हो गया था। गोर्बाचेव ने जनता से अर्थव्यवस्था के गतिरोध को दूर करने का वायदा किया था। अतः वह सुधार लाने के लिए बाध्य हुआ।

(2) पश्चिम के देशों की तुलना में पिछड़ जाना:
सोवियत संघ हथियारों के निर्माण की होड़ में प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे (मसलन परिवहन, ऊर्जा) के मामले में पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत पिछड़ गया था। पश्चिमी देशों की तरक्की के बारे में सोवियत संघ के आम नागरिकों की जानकारी बढ़ी। अपने पिछड़ेपन की पहचान से लोगों को राजनीतिक मनोवैज्ञानिक रूप से धक्का लगा। गोर्बाचेव ने सोवियत संघ को पश्चिम की बराबरी पर लाने का वायदा किया था । इसलिए वह सुधार लाने को बाध्य हुआ।

(3) प्रशासनिक ढाँचे की त्रुटियाँ;
सोवियत संघ के गतिरुद्ध प्रशासन, नौकरशाही में भारी भ्रष्टाचार और सत्ता के केन्द्रीकृत होने आदि के कारण आम जनता शासन से अलग-थलग पड़ गयी थी। गोर्बाचेव ने जनता को विश्वास में लेने के लिए प्रशासनिक ढाँचे में ढील देने का वायदा किया था। अतः गोर्बाचेव प्रशासनिक ढाँचे में सुधार लाने के लिए बाध्य हो गए थे।

प्रश्न 8.
भारत जैसे देशों के लिए सोवियत संघ के विघटन के क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
सोविय संघ के विघटन के भारत पर प्रभाव
सोवियत संघ के विघटन से भारत जैसे देशों के लिए निम्नलिखित परिणाम हुए-

  1. सोवियत संघ भारत का एक सच्चा व महान् मित्र रहा था। भारत को अपने आर्थिक विकास के लिए सोवियत संघ से भारी मात्रा में आर्थिक, सैनिक व तकनीकी सहायता प्राप्त होती थी। सोवियत संघ के विघटन के बाद अब भारत की अपने आर्थिक विकास के लिए अमरीका व अन्य पश्चिमी देशों पर निर्भरता बढ़ गयी; जिन्होंने भारत पर आर्थिक सहायता के द्वारा दबाव की कूटनीति थोपी।
  2. सोवियत संघ के पतन के परिणामस्वरूप शीतयुद्ध समाप्त हो गया तथा अन्तर्राष्ट्रीय तनावपूर्ण वातावरण एवं संघर्ष में कमी आई। इससे हथियारों की तेज दौड़ में कमी आई। भारत जैसे देशों के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति की सम्भावना दिखाई दी तथा वे अपने विकास की तरफ अधिक ध्यान देने को उन्मुख हुए।
  3. सोवियत संघ के पतन के बाद भारत जैसे राष्ट्रों के लिए अमेरिका या अन्य किसी राष्ट्र से नजदीकी सम्बन्ध बनाने के लिए किसी गुट में शामिल होने की बाध्यता नहीं रही।
  4. भारत जैसे देशों में लोग पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शक्तिशाली व महत्त्वपूर्ण मानने लगे। परिणामस्वरूप मिश्रित अर्थव्यवस्था को छोड़कर भारत में उदारीकरण और वैश्वीकरण की नीतियां अपना ली गईं।
  5. सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत ने विश्व की एकमात्र महाशक्ति अमेरिका के साथ मजबूती के रिश्ते बनाने की ओर रुख किया।

प्रश्न 9.
शॉक थेरेपी क्या थी? क्या साम्यवाद से पूँजीवाद की तरफ संक्रमण का यह सबसे बेहतर तरीका था?
उत्तर:
साम्यवादी के पतन के बाद पूर्व सोवियत संघ के गणराज्य एक सत्तावादी, समाजवादी व्यवस्था से लोकतांत्रिक पूँजीवादी व्यवस्था तक के कष्टप्रद संक्रमण से होकर गुजरे। रूस, मध्य एशिया के गणराज्य और पूर्वी यूरोप के देशों में पूँजीवाद की ओर संक्रमण का एक खास मॉडल अपनाया गया। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष द्वारा निर्देशित इस मॉडल को ‘शॉक थेरेपी’ कहा गया । भूतपूर्व ‘दूसरी दुनिया’ के देशों में शॉक थेरेपी की गति और गहनता अलग-अलग रही परंतु इसकी दिशा और चरित्र बड़ी सीमा तक एक जैसे थे।

हर देश को पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की ओर पूरी तरह मुड़ना था। ‘शॉक थेरेपी’ की सर्वोपरि मान्यता थी कि मिल्कियत का सबसे प्रभावी रूप निजी स्वामित्व होगा। इसके अंतर्गत राज्य की संपदा के निजीकरण और व्यावसायिक स्वामित्व के ढाँचे को तुरंत अपनाने की बात शामिल थी। सामूहिक ‘फार्म’ को निजी ‘फार्म’ में बदला गया और पूँजीवादी पद्धति से खेती शुरू हुई।

‘शॉक थेरेपी’ से इन अर्थव्यवस्थाओं के बाहरी व्यवस्थाओं के प्रति रूझान बुनियादीतौर पर बदल गए। पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाने के लिए वित्तीय खुलापन, मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता और मुक्त व्यापार की नीति महत्त्वपूर्ण मानी गई। अंततः इस संक्रमण में सोवियत खेमे के देशों के बीच मौजूद व्यापारिक गठबंधनों को समाप्त कर दिया गया। खेमे के प्रत्येक देश को एक-दूसरे से जोड़ने की जगह पर प्रत्यक्ष रूप से पश्चिमी मुल्कों से जोड़ा गया। इस तरह धीरे-धीरे इन देशों को पश्चिमी अर्थतंत्र में समाहित किया गया।

साम्यवाद से पूँजीवाद की ओर संक्रमण के ‘शॉक थेरेपी’ के तरीके को सबसे बेहतर तरीका नहीं कहा जा सकता। अधिक बेहतर उपाय यह होता कि इन देशों में पूँजीवादी सुधार तुरन्त किये जाने की अपेक्षा धीरे-धीरे किये जाते। एकदम से ही सभी प्रकार के परिवर्तनों को लाद देने से सोवियत खेमे में अनेक नकारात्मक प्रभाव पड़े, जैसे- इससे इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से तहस-नहस हो गई; इससे जनता को अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा; समाज में गरीबी – अमीरी का भेद बढ़ा तथा जल्दबाजी में लोकतंत्रीकरण का काम भी सही ढंग से नहीं हो पाया।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित कथन के पक्ष या विपक्ष में एक लेख लिखें -” दूसरी दुनिया के विघटन के बाद भारत को अपनी विदेश नीति बदलनी चाहिए और रूस जैसे परम्परागत मित्र की जगह संयुक्त राज्य अमरीका से दोस्ती करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।”
उत्तर:
उक्त कथन के विपक्ष में तर्क-दूसरी दुनिया के विघटन के बाद भी भारत को अपनी विदेश नीति बदलने की आवश्यकता नहीं है। रूस को छोड़कर अमेरिका से ज्यादा दोस्ती भारत के लिए निम्न तथ्यों के आलोक में उचित नहीं कही जा सकती करता है।

  1. अमेरिका भारत के महत्त्व को कम करने के लिए पाकिस्तान को भारत के विरुद्ध खड़ा करता आ रहा है
  2. अमेरिका भारत की स्वतन्त्र विदेश नीति को प्रभावित करके अपना पिछलग्गू बनाना चाहता है।
  3. अमेरिका भारत को शक्तिशाली रूप में देखना पसन्द नहीं करता है। इस हेतु वह भारत के प्रयासों का विरोध
  4. चीन-अमेरिकी – पाक धुरी भी भारत और अमेरिका के सम्बन्धों में कटुता का कारण बनती रही है।
  5. आतंकवाद की समस्या से निपटने में भी अमेरिका दोहरी नीति अपनाये हुए है।

उक्त कथन के पक्ष में तर्क- उक्त कथन के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं:

  1. सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् अब विश्व में अमेरिका ही सुपर शक्ति है, इसलिए अब भारत को अमरीका के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध बनाए रखना चाहिए।
  2. भारत और अमरीका दोनों ही देशों में लोकतंत्र है, दोनों ने ही आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनाई हुई है। अतः भारत को अमरीका के साथ सम्बन्ध बढ़ाने की नीति अपनानी चाहिए।
  3. संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत को समय-समय पर विभिन्न प्रकार की सहायता की है। शीत युद्ध की समाप्ति के बाद भारत द्वारा उदारीकरण की नीति अपनाने से भारत को अमरीका से सम्बन्ध बढ़ाने चाहिए।
  4. भारत और अमरीका दोनों ही आतंकवाद विरोधी देश हैं।

दो ध्रुवीयता का अंत JAC Class 12 Political Science Notes

→ सोवियत प्रणाली:

  • समाजवादी सोवियत गणराज्य रूस में हुई 1917 की समाजवादी क्रान्ति के बाद अस्तित्व में आया।
  • सोवियत प्रणाली की धुरी कम्युनिस्ट पार्टी थी।
  • वियत अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध और राज्य के नियन्त्रण में थी।
  • दूसरे विश्व युद्ध के बाद पूर्वी यूरोप के देश सोवियत संघ के अंकुश में आ गए। इन सभी देशों की राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था को सोवियत संघ की समाजवादी प्रणाली में ढाला गया । इन्हें ही
  • समाजवादी खेमे के देश या दूसरी दुनिया कहा गया । इनका नेता सोवियत संघ था। इस प्रकार द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ महाशक्ति के रूप में उभरा।
  • अमरीका को छोड़कर शेष विश्व की तुलना में सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था कहीं ज्यादा विकसित थी।
  • लेकिन, सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा कसता चला गया।

यह प्रणाली सत्तावादी होती गयी और नागरिकों का जीवन कठिन होता चला गया। सोवियत संघ में कम्युनिस्ट पार्टी का शासन था जिसका सभी संस्थाओं पर गहरा अंकुश था तथा यह दल जनता के प्रति उत्तरदायी नहीं था। सोवियत संघ के 15 गणराज्यों में रूसी गणराज्य का हर मामले में वर्चस्व था। अन्य क्षेत्रों की जनता उपेक्षित और दमित महसूस करती थी। हथियारों की होड़ में सोवियत संघ ने समय-समय पर अमरीका को बराबर टक्कर दी लेकिन उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी।

वह प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे के मामले में पश्चिमी देशों की तुलना में पीछे रह गया। यह अपने नागरिकों की राजनीतिक और आर्थिक आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सका। 1979 में अफगानिस्तान में हस्तक्षेप से उसकी अर्थव्यवस्था और कमजोर हुई। उपभोक्ता वस्तु की कमी हो गयी। 1970 के दशक के अन्तिम वर्षों में यह व्यवस्था लड़खड़ाने लगी थी।

→ गोर्बाचेव और सोवियत संघ का विघटन:
1980 के दशक के मध्य में गोर्बाचेव सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने। उसने पश्चिम के देशों के साथ सम्बन्धों को सामान्य बनाने, सोवियत संघ को लोकतान्त्रिक रूप देने और वहाँ सुधार करने का फैसला किया। इस फैसले की अकल्पनीय परिणतियाँ हुईं

  • पूर्वी यूरोप की साम्यवादी सरकारें जनता के दबाव में एक के बाद एक गिर गईं। वहाँ लोकतान्त्रिक व्यवस्था की स्थापना हुई।
  •  देश के अन्दर आर्थिक-राजनीतिक सुधारों और लोकतन्त्रीकरण का जहाँ साम्यवादी दल के नेताओं द्वारा विरोध किया गया, वहीं जनता और तेजी से सुधार चाहती थी। परिणामतः 1991 में सोवियत संघ के तीन बड़े गणराज्यों रूस, यूक्रेन और बेलारूस ने सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा की। इन्होंने पूँजीवाद और लोकतन्त्र को अपना आधार बनाया। इन्होंने स्वतन्त्र राज्यों के राष्ट्रकुल का गठन किया। बाकी गणराज्यों को राष्ट्रकुल का संस्थापक सदस्य बनाया गया।
  • रूस को सुरक्षा परिषद् में सोवियत संघ की सीट मिली। सोवियत संघ के अन्तर्राष्ट्रीय करार और सन्धियों को निभाने की जिम्मेदारी रूस को सौंपी गयी। इस प्रकार सोवियत संघ का पतन हुआ।

सोवियत संघ के विघटन का घटना चक्र:
→ मार्च, 1985: मिसाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव चुने गए। बोरिस येल्तसिन को रूस की कम्युनिस्ट पार्टी का प्रमुख बनाया। सोवियत संघ में सुधारों की श्रृंखला शुरू की।

→ 1988: लिथुआनिया में आजादी के लिए आंदोलन शुरू एस्टोनिया और लताविया में भी फैला ।

→ अक्टूबर, 1989: सोवियत संघ ने घोषणा की कि ‘वारसा समझौते’ के सदस्य अपना भविष्य तय करने के लिए स्वतंत्र हैं। नवम्बर में बर्लिन की दीवार गिर।

→ फरवरी, 1990: शुरुआत गोर्बाचेव ने सोवियत संसद ड्यूमा के चुनाव के लिए बहुदलीय राजनीति की सोवियत सत्ता पर कम्युनिष्ट पार्टी का 72 वर्ष पुराना एकाधिकार समाप्त।

→ जून, 1990: रूसी संसद ने सोवियत संघ से अपनी स्वतंत्रता घोषित की।

→ मार्च, 1990: लिथुआनिया स्वतंत्रता की घोषणा करने वाला पहला सोवियत गणराज्य बना।

→ जून, 1991: येल्तसिन का कम्युनिस्ट पार्टी से इस्तीफा रूस के राष्ट्रपति बने।

→ अगस्त, 1991: कम्युनिस्ट पार्टी के गरमपंथियों ने गोर्बाचेव के खिलाफ एक असफल तख्तापलट किया।

→  सितम्बर, 1991: एस्टोनिया, लताविया और लिथुआनिया बाल्टिक गणराज्य संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य बने।

→ दिस0म्बर, 1991: रूस, बेलारूस और उक्रेन ने 1922 की सोवियत संघ के निर्माण से संबद्ध संधि को समाप्त करके स्वतंत्र राष्ट्रों का राष्ट्रकुल बनाया। आर्मेनिया, अजरबैजान, माल्दोवा, कजाकिस्तान, किरगिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान भी राष्ट्रकुल का हिस्सा बने। 1993 में जार्जिया राष्ट्रकुल का सदस्य बना संयुक्त राष्ट्रसंघ में सोवियत संघ की सीट रूस को मिली।

→ 25 दिसंबर, 1991: गोर्बाचेव ने सोवियत संघ के राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दिया सोवियत संघ का अंत

→  सोवियत संघ का विघटन क्यों हुआ?

  • सोवियत संघ की राजनीतिक-आर्थिक संस्थाएं अन्दरूनी कमजोरी के कारण लोगों की आकांक्षाएँ पूरा नहीं कर सकीं। यही सोवियत संघ के पतन का प्रमुख कारण रहा।
  • परमाणु हथियार, सैन्य साजो-सामान तथा पूर्वी यूरोप के पिछलग्गू देशों के विकास पर हुए खर्चों से सोवियत संघ पर गहरा आर्थिक दबाव बना, सोवियत व्यवस्था इसका सामना नहीं कर सकी।
  • पश्चिमी देशों की तरक्की के बारे में सोवियत संघ की जनता को यह जानकारी मिली कि सोवियत संघ पश्चिमी देशों से काफी पीछे है। इससे जनता को राजनीतिक मनोवैज्ञानिक धक्का लगा।
  • गतिरुद्ध प्रशासन, भारी भ्रष्टाचार, पार्टी का जनता के प्रति जवाबदेह न होना, खुलापन का अभाव तथा केन्द्रीकृत सत्ता के कारण जनता शासन से अलग-थलग पड़ चुकी थी। सरकार का जनाधार
  • खिसक गया था।
  • गोर्बाचेव ने जब सुधारों को लागू किया तो आकांक्षाओं- अपेक्षाओं का जनता का जो ज्वार उमड़ा, शासक उसका सामना नहीं कर सका। जहाँ आम जनता और तीव्र सुधार चाहती थी, वहाँ सत्ताधारी वर्ग इस बात से असन्तुष्ट था कि गोर्बाचेव सुधारों में बहुत जल्दबाजी दिखा रहे हैं। फलतः गोर्बाचेव का समर्थन हर तरफ से जाता रहा।
  • रूस, बाल्टिक गणराज्यों, उक्रेन तथा जार्जिया में राष्ट्रवादी भावनाओं और सम्प्रभुता की इच्छा का उभार सोवियत संघ के विघटन का तात्कालिक कारण सिद्ध हुआ।

विघटन की परिणतियाँ:
→  सोवियत संघ के विघटन से प्रमुख परिणाम ये निकले:

  • शीत युद्ध के दौर की समाप्ति हुई।
  • अमेरिका विश्व में अकेला महाशक्ति बन बैठा। इस प्रकार एकध्रुवीय विश्व का उदय हुआ।
  •  उदारवादी लोकतन्त्र राजनीतिक जीवन को सूत्रबद्ध करने की सर्वश्रेष्ठ धारणा के रूप में उभरा।
  •  सोवियत संघ से अलग होकर अनेक नये देशों का उदय हुआ।

साम्यवादी शासन के बाद ‘शॉक थेरेपी’:
→  साम्यवाद के पतन के बाद सोवियत संघ के गणराज्य एक सत्तावादी, समाजवादी व्यवस्था से लोकतान्त्रिक पूँजीवादी व्यवस्था तक के कष्टप्रद संक्रमण से होकर गुजरे। यथा-

  • निजी स्वामित्व को मान्यता: राज्य की सम्पदा का निजीकरण और पूँजीवादी ढाँचे को तुरन्त अपनाने पर बल दिया गया।
  • मुक्त व्यापार: मुक्त व्यापार को पूर्ण रूप से अपनाना जरूरी माना गया।
  • पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाना: पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाने के लिए वित्तीय खुलापन, मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता और मुक्त व्यापार की नीति पर बल दिया गया।
  • पश्चिमी देशों से प्रत्यक्ष सम्बन्ध की स्थापना: सोवियत खेमे के देशों के बीच मौजूद व्यापारिक गठबन्धनों को समाप्त कर प्रत्येक देश को सीधे पश्चिमी देशों से जोड़ा गया।

→  शॉक थेरेपी के परिणाम:

  • ‘शॉक थेरेपी’ से पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई। पूरा राज्य नियन्त्रित औद्योगिक ढाँचा चरमरा गया। 90 प्रतिशत उद्योगों को निजी कम्पनियों को बेचा गया।
  • रूसी मुद्रा रूबल के मूल्य में नाटकीय ढंग से गिरावट आयी। मुद्रास्फीति इतनी बढ़ गई कि लोगों की जमा पूँजी जाती रही।
  • पुराने व्यापारिक ढाँचे के स्थान पर कोई वैकल्पिक व्यवस्था स्थापित नहीं हो पायी।
  • खाद्यान्न सुरक्षा व्यवस्था, समाज कल्याण की पुरानी व्यवस्था को नष्ट कर दिया गया। इससे अमीर-गरीब की खाई और बढ़ गयी
  • लोकतान्त्रिक संस्थाओं के निर्माण के कार्य को प्राथमिकता के साथ नहीं किया गया। फलतः संसद एक कमजोर संस्था रह गयी। न्यायिक संस्कृति और न्यायपालिका की स्वतन्त्रता स्थापित नहीं हो पायी।
  • अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्था के पुनर्जीवन का आधार बना – खनिज तेल, प्राकृतिक गैस और धातु।

→  संघर्ष और तनाव:

  • अनेक गणराज्यों में गृहयुद्ध और बगावत हुई।
  • इन देशों में बाहरी ताकतों की दखल बढ़ी।
  • अनेक में हिंसक अलगाववादी आन्दोलन चले।
  • मध्य एशियाई गणराज्य पेट्रोलियम के विशाल तेल भण्डारों के कारण बाहरी ताकतों और तेल कम्पनियों की आपसी प्रतिस्पर्द्धा का अखाड़ा बन गये अमेरिका इस क्षेत्र में सैनिक ठिकाना बनाना चाहता है और रूस इन राज्यों को अपना निकटवर्ती विदेश मानता है और उसका मानना है कि इन्हें रूस के प्रभाव में रहना चाहिए। चीनियों ने भी सीमावर्ती क्षेत्र में आकर व्यापार शुरू कर दिया है।

→  पूर्व – साम्यवादी देश और भारत:
भारत के सम्बन्ध रूस के साथ गहरे हैं। भारत-रूस सम्बन्धों का इतिहास आपसी विश्वास और साझे हितों का इतिहास है। ये सम्बन्ध जनता की अपेक्षाओं से मेल खाते हैं। रूस और भारत दोनों का सपना बहुध्रुवीय विश्व का है। भारत को रूस के साथ अपने सम्बन्धों के कारण अनेक मसलों में फायदे हुए हैं, जैसे कश्मीर समस्या, ऊर्जा आपूर्ति, चीन के साथ सम्बन्धों में सन्तुलन लाना आदि रूस का भारत से लाभ यह है कि भारत उसके हथियारों का एक बड़ा खरीददार देश है। रूस ने तेल के संकट की घड़ी में भारत की हमेशा मदद की। रूस भारत की परमाणविक योजना के लिए महत्त्वपूर्ण है।

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