JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र Textbook Exercise Questions and Answers

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Jharkhand Board Class 12 Political Science सत्ता के वैकल्पिक केंद्र InText Questions and Answers

पृष्ठ 56

प्रश्न 1.
क्या भारत दक्षिण-पूर्व एशिया का हिस्सा नहीं है? भारत के पूर्वोत्तरी राज्य आसियान देशों के इतने निकट क्यों हैं?
उत्तर:
भारत दक्षिण-पूर्व एशिया का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह दक्षिण एशिया का हिस्सा है। भारत आसियान देशों क पड़ोसी देश है, इसलिए भारत के पूर्वोत्तरी राज्य आसियान देशों के काफी निकट हैं।

पृष्ठ 57

प्रश्न 2.
आसियान क्षेत्रीय मंच (ARF) के सदस्य कौन हैं?
उत्तर:
कम्बोडिया, इण्डोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, थाईलैण्ड, वियतनाम इत्यादि।

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पृष्ठ 58

प्रश्न 5.
आसियान क्यों सफल रहा और दक्षेस (सार्क) क्यों नहीं? क्या इसलिए कि उस क्षेत्र में कोई बहुत बड़ा देश नहीं है?
उत्तर:
आसियान इसलिए सफल रहा क्योंकि इसके सदस्य देशों ने टकराव की जगह बातचीत को बढ़ावा देने की नीति अख्तियार करते हुए निवेश, श्रम और सेवाओं के मामले में मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने में सफलता पायी है। इसने आसियान देशों का साझा बाजार और उत्पादन आधार तैयार किया है तथा इस क्षेत्र के सामाजिक और आर्थिक विकास में सहयोग किया है। दक्षेस (सार्क) इसलिए सफल नहीं रहा क्योंकि इसके सदस्य देश बातचीत के माध्यम से टकराव को टालकर एक साझा बाजार स्थापित करने में असफल रहे हैं और निवेश, श्रम तथा सेवाओं के मामलों में इसे मुक्त व्यापार क्षेत्र नहीं बना सके हैं।

पृष्ठ 60

प्रश्न 6.
कार्टून में (पृष्ठ संख्या 60 ) साइकिल का प्रयोग आज के चीन के दोहरेपन को इंगित करने के लिए किया गया है। यह दोहरापन क्या है? क्या हम इसे अन्तर्विरोध कह सकते हैं?
उत्तर:
चीन विश्व में सर्वाधिक साइकिल प्रयोग करने वाला देश है। इस कार्टून में साइकिल का प्रयोग दोहरापन दर्शाता है क्योंकि एक तरफ तो चीन साम्यवादी विचारधारा वाले देशों का नेता होने की बात करता है, जबकि दूसरी ओर अपनी अर्थव्यवस्था में डालर अर्थात् पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को आमंत्रित कर रहा है। कार्टून में दोनों पहियों में अगला पहिया जहाँ साम्यवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहा है, वहीं पीछे का पहिया पूँजीवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहा है। यह एक प्रकार का विचारधारागत अन्तर्विरोध है।

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प्रश्न 7.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2019 में भारत का दौरा किया। 2018 में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन गए थे । इन दौरों में जिन समझौतों पर हस्ताक्षर हुए उनके बारे में पता करें।
उत्तर:
अप्रैल, 2018 में प्रधानमंत्री मोदी चीन यात्रा पर गए यात्रा के दौरान द्विपक्षीय व राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों पर वार्ता हुई इसके अतिरिक्त सीमा विवाद को शीघ्रता से निपटाने के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की, द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने पर भी दोनों पक्षों में सहमति हुई। अक्टूबर, 2019 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत यात्रा पर आये। शी जिनपिंग ने तमिलनाडु के महाबलीपुरम में भारतीय प्रधानमंत्री के साथ औपचारिक वार्ता में भाग लिया। इसके अतिरिक्त बीजा नियमों में शिथिलता देने, सीमाविवाद को शीघ्र सुलझाने, कैलाश मानसरोवर के लिए नाथूला से नया रास्ता खोलने, आतंकवाद को रोकने, इन्फ्रास्ट्रक्चर और मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के लिए चीन को आमंत्रित करने, दो इंडस्ट्रियल पार्क बनाने, रेलवे का आधुनिकीकरण करने, अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग करने जैसे समझौतों पर हस्ताक्षर हुए।

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प्रश्न 1.
तिथि के हिसाब से इन सबको क्रम दें-
(क) विश्व व्यापार संगठन में चीन का प्रवेश
(ख) यूरोपीय आर्थिक समुदाय की स्थापना
(ग) यूरोपीय संघ की स्थापना
(घ) आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना।
उत्तर:
(ख) यूरोपीय आर्थिक समुदाय की स्थापना (1957)
(घ) आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना (1967)
(ग) यूरोपीय संघ की स्थापना (1992)
(क) विश्व व्यापार संगठन में चीन का प्रवेश (2001 )।

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प्रश्न 2.
‘ASEAN way’ या आसियान शैली क्या है?
(क) आसियान के सदस्य देशों की जीवन शैली है।
(ख) आसियान सदस्यों के अनौपचारिक और सहयोगपूर्ण कामकाज की शैली को कहा जाता है।
(ग) आसियान सदस्यों की रक्षा नीति है।
(घ) सभी आसियान सदस्य देशों को जोड़ने वाली सड़क है।
उत्तर:
(ख) आसियान सदस्यों के अनौपचारिक और सहयोगपूर्ण कामकाज की शैली को कहा जाता है।

प्रश्न 3.
इनमें से किसने ‘खुले द्वार’ की नीति अपनाई?
(क) चीन
(ख) दक्षिण कोरिया
(ग) जापान
(घ) अमरीका।
उत्तर:
(क) चीन।

प्रश्न 4.
खाली स्थान भरें-
(क) 1962 में भारत और चीन के बीच ……… और ……….. को लेकर सीमावर्ती लड़ाई हुई थी।
(ख) आसियान क्षेत्रीय मंच के कामों में ………… और ……… करना शामिल है।
(ग) चीन ने 1972 में ……………. के साथ दोतरफा संबंध शुरू करके अपना एकांतवास समाप्त किया।
(घ) ………….. योजना के प्रभाव से 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना हुई।
(ङ) आसियान का एक स्तम्भ है जो इसके सदस्य देशों की सुरक्षा के मामले देखता है।
उत्तर;
(क) अरुणाचल, लद्दाख
(ख) आसियान के देशों की सुरक्षा, विदेश नीतियों में तालमेल
(ग) अमेरिका
(घ) मार्शल
(ङ) सुरक्षा समुदाय।

प्रश्न 5.
क्षेत्रीय संगठनों को बनाने के उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर;
क्षेत्रीय संगठनों को बनाने के उद्देश्य हैं-

  1. अपने-अपने इलाके (क्षेत्र) में चलने वाली ऐतिहासिक दुश्मनियों और कमजोरियों का क्षेत्रीय स्तर पर समाधान ढूंढ़ना।
  2. अपने-अपने क्षेत्रों में अधिक शांतिपूर्ण और सहकारी क्षेत्रीय व्यवस्था विकसित करना।
  3. अपने क्षेत्र के देशों की अर्थव्यवस्थाओं का समूह बनाने की दिशा में काम करना।
  4. बाहरी हस्तक्षेप का डटकर मुकाबला करना।

प्रश्न 6.
भौगोलिक निकटता का क्षेत्रीय संगठनों के गठन पर क्या असर होता है?
उत्तर:
भौगोलिक निकटता का क्षेत्रीय संगठनों के गठन पर सकारात्मक असर पड़ता है। यथा-

  1. इसके कारण उस क्षेत्र के देशों की कई समस्यायें, धर्म, संस्कृति, रीति-रिवाज तथा भाषाएँ समान होती हैं, जिससे क्षेत्रीय संगठन के निर्माण में मदद मिलती है।
  2. इसके कारण क्षेत्र विशेष के देशों में क्षेत्रीय संगठन बनाने की भावना विकसित होती है और इस भावना के विकास के साथ पारस्परिक संघर्ष और युद्ध का स्थान, पारस्परिक सहयोग और शांति ले लेती है।
  3. क्षेत्रीय निकटता और भौगोलिक एकता मेल-मिलाप के साथ आर्थिक सहयोग तथा अन्तर्देशीय व्यापार को बढ़ावा देती है।
  4. भौगोलिक निकटता के कारण उस क्षेत्र विशेष के राष्ट्र बड़ी आसानी से सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था कर सकते
  5. एक क्षेत्र के विभिन्न राष्ट्र यदि क्षेत्रीय संगठन बना लें तो वे परस्पर सड़क मार्गों और रेल सेवाओं से आसानी से जुड़ सकते हैं।

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प्रश्न 7.
‘आसियान- विजन 2020′ की मुख्य-मुख्य बातें क्या हैं? उत्तर–‘आसियान-विजन 2020’ की मुख्य-मुख्य बातें ये हैं-

  1. आसियान-विजन 2020 में अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में आसियान की एक बहिर्मुखी भूमिका को प्रमुखता दी गई है।
  2. आसियान द्वारा टकराव की जगह बातचीत द्वारा हल निकालने की नीति पर बल दिया गया है। इस नीति से आसियान ने कम्बोडिया के टकराव एवं पूर्वी तिमोर के संकट को संभाला है।
  3. आसियान – विजन 2020 के तहत एक आसियान सुरक्षा समुदाय, एक आसियान आर्थिक समुदाय तथा एक आसियान सामाजिक तथा सांस्कृतिक समुदाय बनाने की संकल्पना की गई है।
  4. आसियान अपने सदस्य देशों, सहभागी सदस्यों और गैर- क्षेत्रीय संगठनों के बीच निरन्तर संवाद और परामर्श को महत्त्व देगा।

प्रश्न 8.
आसियान समुदाय के मुख्य स्तंभों और उनके उद्देश्यों के बारे में बताएँ।
उत्तर:
आसियान समुदाय के मुख्य स्तंभ- 2003 में आसियान ने तीन मुख्य स्तंभ बताये हैं। ये हैं

  1. आसियान सुरक्षा समुदाय,
  2. आसियान आर्थिक समुदाय और
  3. आसियान सामाजिक- सांस्कृतिक समुदाय।

आसियान समुदाय के मुख्य स्तंभों के उद्देश्य-आसियान समुदाय के तीनों मुख्य स्तंभों के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. आसियान सुरक्षा समुदाय – यह क्षेत्रीय विवादों को सैनिक टकराव तक न ले जाकर उन्हें बातचीत के द्वारा सुलझाने का प्रयास करता है।
  2. आसियान आर्थिक समुदाय – आसियान आर्थिक समुदाय का उद्देश्य आसियान देशों का साझा बाजार और उत्पादन आधार तैयार करना तथा इस इलाके के सामाजिक और आर्थिक विकास में मदद करना है। यह संगठन इस क्षेत्र के देशों के आर्थिक विवादों को निपटाने के लिए बनी मौजूदा व्यवस्था को भी सुधारता है।
  3. आसियान सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय – इसका मुख्य उद्देश्य आसियान क्षेत्र का सामाजिक और सांस्कृतिक विकास करना है। इस हेतु यह सदस्य देशों में संवाद और परामर्श के लिए रास्ता तैयार करता है।

प्रश्न 9.
आज की चीनी अर्थव्यवस्था नियंत्रित अर्थव्यवस्था से किस तरह अलग है?
उत्तर:
चीन की नियंत्रित अर्थव्यवस्था और आज की अर्थव्यवस्था में अन्तर आज की चीनी अर्थव्यवस्था, उसकी नियंत्रित अर्थव्यवस्था से भिन्नता लिए हुए है। दोनों के अन्तर को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-
(1) नियंत्रित अर्थव्यवस्था बनाम खुले द्वार की अर्थव्यवस्था:
चीन की नियंत्रित अर्थव्यवस्था में कृषि और उद्योगों पर राज्य का नियंत्रण था। विदेशी बाजारों से तकनीक और सामान खरीदने पर प्रतिबंध था। इसमें विदेशी व्यापार न के बराबर था, प्रति व्यक्ति आय बहुत कम थी तथा औद्योगिक उत्पादन पर्याप्त तेजी से नहीं बढ़ पा रहा था। चीन ने 1970 के बाद अमेरिका से सम्बन्ध बनाकर अपने राजनीतिक और आर्थिक एकांतवास को खत्म किया। कृषि, उद्योग, सेना और विज्ञान-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आधुनिकीकरण पर बल दिया तथा विदेशी पूँजी और प्रौद्योगिकी के ‘निवेश से उच्चतर उत्पादकता को प्राप्त करने पर बल दिया गया।

(2) राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था बनाम निजीकरण की बाजारमूलक अर्थव्यवस्था:
चीन की नियंत्रित अर्थव्यवस्था में कृषि तथा उद्यमों पर राज्य का नियंत्रण था। लेकिन चीन की वर्तमान अर्थव्यवस्था निजीकरण लिये हुए बाजारमूलक अर्थव्यवस्था है।

(3) रोजगार तथा सामाजिक कल्याण सम्बन्धी अन्तर:
चीन की राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था में सभी नागरिकों को ‘रोजगार और सामाजिक कल्याण योजनाओं का लाभ देने के दायरे में लाया गया। लेकिन वर्तमान चीन की बाजारमूलक अर्थव्यवस्था का लाभ सभी नागरिकों को नहीं मिल रहा है।

(4) विदेशी निवेश सम्बन्धी अन्तर;
चीन की नियन्त्रित अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेश नगण्य रहा जबकि वर्तमान अर्थव्यवस्था में वह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए आकर्षक देश बनकर उभरा है।

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प्रश्न 10.
किस तरह यूरोपीय देशों ने युद्ध के बाद की अपनी परेशानियाँ सुलझाई? संक्षेप में उन कदमों की चर्चा करें जिनसे होते हुए यूरोपीय संघ की स्थापना हुई।
उत्तर:
यूरोपीय देशों ने दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात् आपसी बातचीत, सहयोग एवं परस्पर विश्वासों के आधार पर अपनी परेशानियों को दूर किया। यथा यूरोपीय देशों की प्रमुख समस्यायें – 1945 के बाद यूरोपीय देशों की प्रमुख समस्यायें निम्नलिखित थीं:

  1. 1945 तक यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्थाएँ बर्बाद हो गयी थीं।
  2. 1945 तक यूरोपीय देशों की वे मान्यताएँ और व्यवस्थाएँ ध्वस्त हो गईं जिन पर यूरोप खड़ा हुआ था।
  3. यूरोप के देशों में प्राचीन समय से ही दुश्मनियाँ चली आ रही थीं।

समस्याओं का निवारण- यूरोप के देशों ने अपनी समस्याओं का निवारण निम्न प्रकार से किया:

  1. शीत युद्ध से सहायता – 1945 के बाद यूरोप के देशों में मेल-मिलाप को शीत युद्ध से भी मदद मिली।
  2. मार्शल योजना से अर्थव्यवस्था का पुनर्गठन – अमरीका से यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए जबरदस्त मदद मिली। इसे मार्शल योजना के नाम से जाना जाता है।
  3. सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था – अमेरिका ने नाटो के तहत एक सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था को जन्म दिया।

यूरोपीय संघ की स्थापना के प्रमुख कदम-

  1. यूरोपीय परिषद् का गठन – 1949 में गठित यूरोपीय परिषद् राजनैतिक सहयोग के मामले में एक अगला कदम साबित हुआ।
  2. अर्थव्यवस्था के पारस्परिक एकीकरण की प्रक्रिया – यूरोप के पूँजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था के आपसी एकीकरण की प्रक्रिया चरणबद्ध ढंग से आगे बढ़ी और इसके परिणामस्वरूप 1957 में यूरोपियन इकॉनोमिक कम्युनिटी का गठन व यूरोपीय संसद का गठन हुआ तथा 1992 में मॉस्ट्रिस्ट संधि के द्वारा यूरोपीय संघ की स्थापना हुई।
  3. यूरोपीय संघ एक विशाल राष्ट्र-राज्य के रूप में- अब यूरोपीय संघ स्वयं काफी हद तक एक विशाल राष्ट्र-राज्य की तरह ही काम करने लगा है। यद्यपि यूरोपीय संघ का कोई संविधान नहीं बन सका है, तथापि इसका अपना झंडा, गान, स्थापना दिवस और अपनी मुद्रा है।

प्रश्न 11.
यूरोपीय संघ को क्या चीजें एक प्रभावी क्षेत्रीय संगठन बनाती हैं?
उत्तर:
यूरोपीय संघ एक प्रभावी क्षेत्रीय संगठन के रूप में यूरोपीय संघ को निम्न तत्त्व एक प्रभावी क्षेत्रीय संगठन सिद्ध करते हैं:

  1. समान राजनैतिक रूप-यूरोपीय संघ यूरोपीय देशों का एक ऐसा राजनैतिक संगठन है जिसका अपना झंडा, गान, स्थापना दिवस तथा मुद्रा है। इससे साझी विदेश नीति और सुरक्षा नीति में मदद मिली है।
  2. सहयोग की नीति – यूरोपीय संघ ने सहयोग की नीति अपनाते हुए यूरोप के देशों में परस्पर सहयोग को बढ़ावा दिया है। इससे इसका प्रभाव बढ़ा है।
  3. यूरोपीय संघ का आर्थिक प्रभाव – यूरोपीय संघ का आर्थिक प्रभाव बहुत जबरदस्त है। 2005 में यह विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। विश्व व्यापार संगठन के अन्दर भी यह एक महत्त्वपूर्ण समूह के रूप में कार्य करता है। इसकी आर्थिक शक्ति का प्रभाव इसके नजदीकी देशों पर ही नहीं, बल्कि एशिया और अफ्रीका के दूर-दराज के देशों पर भी है।
  4. राजनैतिक और कूटनीतिक प्रभाव – यूरोपीय संघ का राजनैतिक और कूटनीतिक प्रभाव भी कम नहीं है। इसके दो सदस्य देश
    •  ब्रिटेन और
    •  फ्रांस सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य हैं। यूरोपीय संघ के कई और देश सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों में शामिल हैं।
  5. सैनिक तथा तकनीकी प्रभाव – यूरोपीय संघ के पास विश्व की दूसरी सबसे बड़ी सेना है। इसका कुल रक्षा बजट अमेरिका के बाद सबसे अधिक है। इसके दो देशों – ब्रिटेन और फ्रांस के पास परमाणु हथियार हैं। अंतरिक्ष विज्ञान तथा संचार प्रौद्योगिकी के मामले में यूरोपीय संघ का विश्व में द्वितीय स्थान है।

प्रश्न 12.
चीन और भारत की उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मौजूदा एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था को चुनौती दे सकने की क्षमता है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने तर्कों से अपने विचारों को पुष्ट करें।
उत्तर:
हम इस कथन से सहमत हैं कि चीन और भारत में मौजूदा विश्व – व्यवस्था को चुनौती देने की क्षमता है। इसके समर्थन में अग्र तर्क दिये जा सकते हैं: संजीव पास बुक्स

  1. चीन और भारत दोनों एशिया के दो प्राचीन, महान शक्तिशाली, साधन- सम्पन्न देश हैं। दोनों में परस्पर सुदृढ़ मित्रता और सहयोग अमेरिका के लिए चिंता का कारण बन सकता है।
  2. चीन और भारत दोनों ही विशाल जनसंख्या वाले देश हैं। इतना विशाल जनमानस अमेरिका के निर्मित माल के लिए एक विशाल बाजार प्रदान कर सकता है। दोनों देश पश्चिमी व अन्य देशों को कुशल और अकुशल सस्ते श्रमिक दे सकते हैं।
  3. भारत और चीन दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएँ उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएँ हैं। तेजी से आर्थिक विकास करके ये आर्थिक क्षेत्र में एकध्रुवीय विश्व को चुनौती दे सकते हैं।
  4. दोनों ही राष्ट्र अपने यहाँ वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यों में परस्पर सहयोग करके प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आश्चर्यजनक प्रगति कर एकध्रुवीय विश्व को चुनौती प्रस्तुत कर सकते हैं।
  5. दोनों देश विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण लेते समय अमेरिकी एकाधिकार की प्रवृत्ति को नियंत्रित कर सकते हैं।
  6. दोनों देश बहुउद्देश्यीय योजनाओं में, यातायात के साधनों के विकास में, जल-विद्युत निर्माण क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग और आदान-प्रदान की नीतियाँ अपनाकर अपने को शीघ्र महाशक्ति की श्रेणी में ला सकते हैं।

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प्रश्न 13.
मुल्कों की शांति और समृद्धि क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों को बनाने और मजबूत करने पर टिकी है। इस कथन की पुष्टि करें।
उत्तर:
विश्व शांति और समृद्धि के लिए क्षेत्रीय आर्थिक संगठन आवश्यक है। प्रत्येक देश की शांति और समृद्धि क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों के निर्माण और उन्हें सुदृढ़ बनाने पर टिकी है क्योंकि-

  1. क्षेत्रीय आर्थिक संगठन बनने पर कृषि, उद्योग-धन्धों, व्यापार, यातायात, आर्थिक संस्थाओं आदि को बढ़ावा मिलता है।
  2. क्षेत्रीय आर्थिक संगठन बनने पर लोगों को प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में रोजगार मिलेगा। इससे बेरोजगारी और गरीबी दूर होगी।
  3. क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों के निर्माण से जब रोजगार बढ़ेगा और गरीबी दूर होगी तो लोगों की क्रय शक्ति बढ़ेगी। वे अपने बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार, यातायात आदि की अच्छी सुविधाएँ प्रदान करेंगे।
  4. सभी देश चाहते हैं कि उनके उद्योगों को कच्चा माल मिले तथा अतिरिक्त संसाधनों का निर्यात हो। यह तभी संभव हो सकता है कि सभी पड़ोसी देशों में शांति तथा सहयोग की भावना हो और यह भावना क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों के माध्यम से पैदा होती है। इस प्रकार क्षेत्रीय संगठन समृद्धि और शांति लाते हैं।

प्रश्न 14.
भारत और चीन के बीच विवाद के मामलों की पहचान करें और बताएँ कि वृहत्तर सहयोग के लिए इन्हें कैसे निपटाया जा सकता है। अपने सुझाव भी दीजिए।
उत्तर:
भारत और चीन के बीच विवाद के मुद्दे – भारत और चीन के बीच विवाद के प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित हैं।

  1. सीमा विवाद – दोनों देशों के बीच सीमा विवाद 1962 से चला आ रहा है
  2. मैकमोहन रेखा – मैकमोहन रेखा, जो भारत तथा चीन के क्षेत्र की सीमा निश्चित करती है कि सम्बन्ध में दोनों देशों में मतभेद है।
  3. अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश सम्बन्धी मुद्दा – अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश के क्षेत्र के सम्बन्ध में दोनों देशों के बीच विवाद चला आ रहा है।
  4. तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा का मुद्दा – तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा की भारत में उपस्थिति चीन के लिए निरंतर एक परेशानी का कारण रही है।
  5. चीन का पाकिस्तान को हथियारों की आपूर्ति करना – चीन ने सदैव पाकिस्तान को हथियारों की आपूर्ति की है, जिनका प्रयोग पाकिस्तान भारत के विरुद्ध करता है।

वृहत्तर सहयोग हेतु मतभेदों को निपटाने के लिए सुझाव: वृहत्तर सहयोग के लिए भारत-चीन मतभेदों को निपटाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं।

  1. दोनों देशों की सरकारें, नेतागण, जनसंचार माध्यम पारस्परिक बातचीत के द्वारा हर विवाद का समाधान निकाल सकते हैं
  2. दोनों देश अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर यथासंभव समान दृष्टिकोण अपना कर और परस्पर सहयोग कर इन्हें निपटाने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
  3. दोनों देश पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण फैलाने वाली समस्याओं के समाधान में सहयोग दे सकते हैं।
  4. दोनों देशों के प्रमुख नेता समय-समय पर एक-दूसरे के देशों की यात्राएँ करें तथा अपने विचारों का अदानप्रदान करें जिससे दोनों देशों में सद्भाव और मित्रता स्थापित हो।
  5. भारत और चीन के पारस्परिक व्यापार को बढ़ावा दिया जाये।

सत्ता के वैकल्पिक केंद्र JAC Class 12 Political Science Notes

→ परिचय:
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद द्वि-ध्रुवीयता का अन्त हो गया । आज विश्व में स्वतंत्र देशों ने मिलकर अनेक असैनिक संगठन, जैसे—यूरोपीय संघ और आसियान आदि, खड़े किए हैं जिनका मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों का आर्थिक विकास करना है। इन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इसके अतिरिक्त विश्व में चीन के आर्थिक क्षेत्र में बढ़ते कदमों ने भी विश्व राजनीति में नाटकीय प्रभाव डाला है। चीन की आर्थिक व्यवस्था में बढ़ोतरी व यूरोपियन संघ तथा आसियान जैसे संगठनों के द्वारा आर्थिक क्षेत्र में जो प्रयास किये गये हैं, उनसे ऐसा लगने लगा है कि आज विश्व में अमरीका के अलावा सत्ता के अन्य विकल्प भी मौजूद हैं।

→ यूरोपीय संघ
लम्बे समय से यूरोपीय नेताओं का यह स्वप्न रहा था कि यूरोपीय राज्यों का एक संघ या साझी राजनीतिक- आर्थिक व्यवस्था बनाई जाए। विश्व युद्धों ने इस स्वप्न को आवश्यकता में बदल दिया।

→ यूरोपीय संघ का उद्भव:

  • मार्शल योजना के तहत 1948 ई. में ‘यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन ‘ की स्थापना की गई। इसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों ने व्यापार व आर्थिक मामलों में परस्पर मदद शुरू की।
  • 1949 में गठित यूरोपीय परिषद् राजनैतिक सहयोग के मामले में एक अगला कदम साबित हुई।
  • यूरोप के पूँजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था के आपसी एकीकरण की प्रक्रिया चरणबद्ध ढंग से आगे बढ़ी, परिणामस्वरूप 1957 में यूरोपीयन इकॉनामिक कम्युनिटी का गठन हुआ यूरोपियन पार्लियामेंट के गठन के बाद इस प्रक्रिया ने राजनीतिक स्वरूप प्राप्त कर लिया।

सोवियत गुट के पतन के बाद इस प्रक्रिया में तेजी आयी और 1992 में इस प्रक्रिया की परिणति यूरोपीय संघ की स्थापना के रूप में हुई। एक लम्बे समय बना यूरोपीय संघ आर्थिक सहयोग वाली व्यवस्था से बदलकर ज्यादा से ज्यादा राजनैतिक रूप लेता गया है यूरोपीय संघ स्वयं काफी हद तक एक विशाल राष्ट्र-राज्य की तरह ही काम करने लगा है। अन्य देशों से संबंधों के मामले में इसने काफी हद तक साझी विदेश और सुरक्षा नीति भी बना ली है। यूरोपीय संघ का आर्थिक, राजनैतिक, कूटनीतिक तथा सैनिक प्रभाव बहुत जबरदस्त है। 2016 में यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी और इसका सकल घरेलू उत्पादन 17000 अरब डालर से ज्यादा था जो अमरीका के लगभग है।

विश्व व्यापार में इसकी हिस्सेदारी अमरीका सें तीन गुनी ज्यादा है। यह विश्व व्यापार संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संगठनों के अंदर एक महत्त्वपूर्ण समूह के रूप में काम करता है। यूरोपीय संघ के दो सदस्य देश ब्रिटेन और फ्रांस सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य हैं। यूरोपीय देश के कई और देश सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों में शामिल हैं। सैनिक ताकत के हिसाब से यूरोपीय संघ के पास दुनिया की सबसे बड़ी सेना है। यूरोपीय संघ के दो देशों- ब्रिटेन और फ्रांस के पास परमाणु हथियार हैं। अंतरिक्ष विज्ञान और संचार प्रौद्योगिकी के मामले में भी यूरोपीय संघ का दुनिया में दूसरा स्थान है। अधिराष्ट्रीय संगठन के तौर पर यूरोपीय संघ आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक मामलों में दखल देने में सक्षम है।

यूरोपीय एकता के महत्त्वपूर्ण पड़ाव
→ अप्रैल, 1951: पश्चिमी यूरोप के छह देशों – फ्रांस, पश्चिम जर्मनी, इटली, बेल्जियम, नीदरलैंड और लक्जमबर्ग ने पेरिस संधि पर दस्तखत करके यूरोपीय कोयला और इस्पात समुदाय का गठन (Euratom) किया ।

→ मार्च 1957: संजीव पास बुक्स इन्हीं छह देशों ने रोम की सन्धि के माध्यम से यूरोपीय आर्थिक समुदाय (EEC) और यूरोपीय एटमी ऊर्जा समुदाय ( Euratom) का गठन किया।

→ जनवरी, 1973: डेनमार्क, आयरलैंड और ब्रिटेन ने भी यूरोपीय समुदाय की सदस्यता ली।

→ जून, 1979: यूरोपीय संसद के लिए पहला प्रत्यक्ष चुनाव।

→ जनवरी, 1981: यूनान ( ग्रीस) ने यूरोपीय समुदाय की सदस्यता ली।

→ जून, 1985: शांगेन संधि ने यूरोपीय समुदाय के देशों के बीच सीमा नियंत्रण समाप्त किया

→ जनवरी, 1986: स्पेन ओर पुर्तगाल भी यूरोपीय समुदाय में शामिल हुए।

→ अक्टूबर, 1990: जर्मनी का एकीकरण।

→ फरवरी, 1992: यूरोपीय संघ के गठन के लिए मास्ट्रिस्ट संधि पर दस्तखत।

→ जनवरी, 1993: एकीकृत बाजार का गठन।

→ जनवरी, 2002: नई मुद्रा यूरो को 12 सदस्य देशों ने अपनाया।

→ मई, 2004: साइप्रस, चेक गणराज्य, एस्टोनिया, हगरी, लताविया, लिथुआनिया, माल्टा, पोलैंड, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया भी यूरोपीय संघ में शामिल।

→ जनवरी, 2007: बुल्गारिया और रोमानिया यूरोपीय संघ में शामिल स्लोवेनिया ने यूरो को अपनाया।

→ दिसम्बर, 2009: लिस्बन संधि लागू हुई।

→ 2012: यूरोपीय संघ को नोबेल शांति पुरस्कार।

→ 2013: क्रोएशिया यूरोपीय संध का 28वाँ सदस्य बना।

→ 2016: ब्रिटेन में जनमत संग्रह, 51.9 प्रतिशत मतदाताओं ने फैसला किया कि ब्रिटेन यूरोपीय संघ से बाहर हो जाए।

JAC Class 12 Political Science Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

→ दक्षिण – पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) (Association of South-East Asian Nations)
गठन: आसियान का गठन 1967 को हुआ इसके 5 संस्थापक सदस्य देश – इंडोनेशिया, मलेशिया, थाइलैंड, फिलीपींस और सिंगापुर हैं। बाद के वर्षों में ब्रुनेई दारुस्सलाम, वियतनाम, लाओस, म्यांमार और कंबोडिया भी इसके सदस्य बने। इस प्रकार वर्तमान में इसके दस सदस्य देश हैं। उद्देश्य – इसके उद्देश्य हैं

  • क्षेत्र में आर्थिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक विकास को बढ़ावा देना;
  • क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा स्थापित करना;
  • साझे हितों, प्रशिक्षण, शोध-सुविधाओं, कृषि, व्यापार तथा उद्योग के क्षेत्रों में परस्पर सहयोग कायम करना;
  • समान उद्देश्यों व लक्ष्यों वाले दूसरे क्षेत्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ लाभप्रद व निकटतम संबंध कायम करना।

→ भूमिका व उपलब्धियाँ-

  • आसियान आर्थिक संवृद्धि, सामाजिक उन्नयन, सांस्कृतिक विकास और क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहा है।
  • आसियान ने आर्थिक सहयोग के उद्देश्य को भी सही रूप में पूरा किया है। मुक्त व्यापार क्षेत्र का गठन, आसियान आर्थिक समुदाय के गठन पर बल, चीन व कोरिया के साथ मुक्त व्यापार समझौता इसकी उपलब्धियाँ हैं।
  • आसियान ने सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है।
  • पूर्वी एशिया के देशों के बीच आसियान एक सेतु का कार्य कर रहा है।
  • यह टकराव के स्थान पर बातचीत को बढ़ावा देने की नीति अपनाए हुए है।
  • यह भारत तथा चीन के साथ व्यापारिक सम्बन्धों को सुदृढ़ करने की ओर प्रयासरत है।

→ चीनी अर्थव्यवस्था का उत्थान
1978 के बाद चीन की आर्थिक सफलता को देखकर इसको एक महाशक्ति के रूप में देखा जाने लगा है। जनसंख्या की दृष्टि से चीन सबसे आगे है। क्षेत्रफल की दृष्टि से चीन का विश्व में चौथा स्थान है। विश्व में चीन की थल सेना सबसे: जुलाई, 2013 को क्रोएशिया द्वारा यूरोपीय संघ की सदस्यता ग्रहण करने से यूरोपीय संघ के सदस्यों की कुल संख्या 28 हो गई है। बड़ी है। आज इसकी प्रति व्यक्ति जी एन पी विश्व में दूसरे स्थान पर है। आर्थिक सुधारों की शुरुआत करने के बाद से चीन सबसे जयादा तेजी से आर्थिक वृद्धि कर रहा है। 1949 में माओ के नेतृतव में हुई साम्यवादी क्रांति के बाद चीनी जनवादी गणराज्य की स्थापना के समय यहाँ की आर्थिकी सोवियत मॉडल पर आधारित थी।

इसने विकास का जो मॉडल अपनाया उसमें खेती से पूँजी निकालकर सरकारी नियंत्रण में बड़े उद्योग खड़े करने पर जोर था। इस मॉडल में चीन ने अभूतपूर्व स्तर पर औद्योगिक अर्थव्यवस्था खड़ा करने का आधार बनाने के लिए सारे संसाधनों का इस्तेमाल किया। सभी नागरिकों को रोजगार और सामाजिक कल्याण योजनाओं का लाभ देने के दायरे में लाया गया, स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराने के मामले में चीन सबसे विकसित देशों से भी आगे निकल गया।

चीनी नेतृत्व ने 1972 में अमरीका से संबंध बनाकर अपने राजनैतिक और आर्थिक एकांतवास को खत्म किया। चीन ने ‘शॉक थेरेपी’ पर अमल करने के बजाय अपनी अर्थव्यवस्था को चरणबद्ध ढंग से खोला 1982 में खेती का ओर 1998 में उद्योगों का निजीकरण किया व्यापार संबंधी अवरोधों को सिर्फ ‘विशेष आर्थिक क्षेत्रों’ के लिए ही हटाया गया जहाँ विदेशी निवेशक अपने उद्यम लगा सकते हैं। उद्योग और कृषि दोनों ही क्षेत्रों में चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर तेज रही व्यापार के नये कानून तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SE2) के निर्माण से विदेश व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई । अब चीन की योजना विश्व आर्थिकी से अपने जुडाव को और गहरा करके भविष्य की विश्व व्यवस्था को एक मनचाहा रूप देने की है।

चीन की आर्थिकी में तो नाटकीय सुधार हुआ है लेकिन वहाँ बेरोजगारी बढ़ी है। वहाँ महिलाओं के रोजगार और काम करने के हालात उतने ही खराब हैं जितने यूरोप में 18वीं और 19वीं सदी में थे। हालाँकि क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर चीन आर्थिक शक्ति बनकर उभरा है। 1977 के वित्तीय संकट के बाद आसियान देशों की अर्थव्यवस्था को टिकाए रखने में चीन के आर्थिक उभार ने काफी मदद की है। लातिनी अमरीका और अफ्रीका में निवेश और मदद की नीतियाँ बताती हैं कि विकासशील देशों के मामले में चीन एक नई विश्व शक्ति के रूप में उभरता जा रहा है।

चीन के साथ भारत के सम्बन्ध
→ सकारात्मक पक्ष-

  • दोनों देशों के बीच महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे हैं।
  • भारत और चीन के राजनीतिक सम्बन्ध उतार-चढ़ावों के बाद वर्तमान में सौहार्दपूर्ण हो रहे हैं।
  • भारत व चीन ने व्यापारिक तथा आर्थिक क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति की है। 1999 से दोनों के बीच व्यापार 30 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ रहा है।
  • दोनों ने चिकित्सा विज्ञान, बैंकिंग क्षेत्र, ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की सहमति जतायी है।
  • शिक्षा के क्षेत्र में भी दोनों के मध्य सहयोगी सम्बन्ध बढ़ रहे हैं

→ नकारात्मक पक्ष-

  • दोनों देशों के बीच सीमा विवाद लम्बे समय से चला आ रहा है।
  • तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा की भारत में उपस्थिति चीन के लिए निरंतर परेशानी का कारण रही है।
  • चीन का सैन्य आधुनिकीकरण भी भारतीय चिंता का विषय है।
  • चीन द्वारा पाकिस्तान को सैन्य सहायता व नाभिकीय सहायता भारत के लिए एक सिरदर्द है।
  • भारत के कुछ महत्त्वपूर्ण व संवेदनशील आर्थिक क्षेत्रों में चीनी कंपनियों की भागीदारी का बढ़ना भारतीय चिंता का विषय है।

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