JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 दुःख का अधिकार

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 दुःख का अधिकार Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 दुःख का अधिकार

JAC Class 9 Hindi दुःख का अधिकार Textbook Questions and Answers

मौखिक –

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें क्या पता चलता है ?
उत्तर :
किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें पता चलता है कि उस व्यक्ति का समाज में क्या स्तर है और वह किस वर्ग से संबंधित है।

प्रश्न 2.
खरबूजे बेचनेवाली स्त्री से कोई खरबूजे क्यों नहीं खरीद रहा था ?
उत्तर :
खरबूज़े बेचने वाली स्त्री से कोई खरबूजे इसलिए नहीं खरीद रहा था, क्योंकि उसके जवान बेटे को मरे हुए एक ही दिन हुआ था और वह सूतक में ही खरबूजे बेचने आ गई थी।

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प्रश्न 3.
उस स्त्री को देखकर लेखक को कैसा लगा ?
उत्तर :
उस स्त्री को रोते देखकर लेखक के मन में व्यथा-सी उठी, परंतु अभिजात वर्ग के होने के कारण वह उसके पास बैठकर उसके रोने का कारण न जान सका।

प्रश्न 4.
उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण क्या था ?
उत्तर :
उस स्त्री का लड़का सुबह मुँह – अँधेरे बेलों में से पके खरबूज़े चुन रहा था। तभी गीली मेड़ की ठंडक में विश्राम करते हुए साँप पर उसका पैर पड़ गया। साँप ने उसे डँस लिया, जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 5.
बुढ़िया को कोई भी क्यों उधार नहीं देता ?
उत्तर :
बुढ़िया का बेटा मर गया था, जिसके कारण लोगों को लगा कि अब बुढ़िया उधार नहीं चुका सकेगी। इसलिए कोई भी बुढ़िया को उधार नहीं देता।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्व है ?
उत्तर :
मनुष्य के जीवन में पोशाक का बहुत महत्व है। पोशाक को देखकर पता चलता है कि अमुक व्यक्ति उच्च वर्ग का है अथवा निम्न वर्ग का। पोशाक मनुष्य का समाज में स्तर निर्धारित करती है। पोशाक से ही मनुष्य की आर्थिक व सामाजिक स्थिति का ज्ञान होता है।

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प्रश्न 2.
पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती है ?
उत्तर :
पोशाक हमारे लिए तब बंधन और अड़चन बन जाती है, जब हम अपने स्तर से नीचे के लोगों की भावनाओं को समझना चाहते हैं। उस समय हमें लगता है कि हम समाज के भय से उनके साथ बैठकर उनका दुख-दर्द नहीं जान सकते। इस प्रकार पोशाक दो विभिन्न वर्गों में व्यवधान बनकर खड़ी हो जाती है।

प्रश्न 3.
लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नहीं जान पाया ?
उत्तर :
लेखक उस स्त्री के रोने का कारण इसलिए नहीं जान पाया, क्योंकि उसकी पोशाक उसे फुटपाथ पर रोती हुई निम्न वर्ग की स्त्री के पास बैठने से रोक रही थी। लेखक के मन में उस स्त्री को रोते देखकर दुख तो हो रहा था, परंतु अपनी उच्च वर्ग की पोशाक के कारण वह फुटपाथ पर बैठकर उस स्त्री के रोने का कारण नहीं पूछ पा रहा था।

प्रश्न 4.
भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था ?
उत्तर :
भगवाना शहर के पास डेढ़ बीघा ज़मीन में तरकारी आदि की खेती करके परिवार का पालन-पोषण करता था। इन दिनों उसने खरबूज़े बोये हुए थे, जिन्हें टोकरी में डालकर वह स्वयं अथवा उसकी माँ बाज़ार में बेचा करते थे

प्रश्न 5.
लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूजे बेचने क्यों चल पड़ी ?
उत्तर :
लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूज़े बेचने इसलिए चल पड़ी क्योंकि उसके पास जो जमा-पूँजी तथा गहने आदि थे, वह सब उसके मृत लड़के के क्रिया-कर्म में खर्च हो गए थे। उसके पोता-पोती भूख से तड़प रहे थे तथा बहू बुखार से तप रही थी। उसे कहीं से उधार मिलने की आशा नहीं थी। खाने-पीने और बहू के लिए दवा का प्रबंध करने के लिए पैसों की ज़रूरत थी, जिन्हें वह खरबूज़े बेचकर प्राप्त कर सकती थी।

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प्रश्न 6.
बुढ़िया के दुख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद क्यों आई ?
उत्तर :
रोती हुई बुढ़िया को देखकर लेखक को अपने पड़ोस में पुत्र की मृत्यु से दुखी संभ्रांत महिला की याद आ गई, जो अढ़ाई मास तक पलंग से उठ न सकी थी तथा उसे पंद्रह-पंद्रह मिनट बाद पुत्र-वियोग से मूर्छा आ जाती थी। दो-दो डॉक्टर हरदम उसकी सेवा के लिए उसके सिरहाने बैठे रहते थे, जबकि इस बुढ़िया को अगले दिन ही बाज़ार में खरबूज़े बेचने आना पड़ा। लेखक इस तुलना के फलस्वरूप अत्यंत व्यथित हो गया।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
बाज़ार के लोग खरबूज़े बेचनेवाली स्त्री के बारे में क्या-क्या कह रहे थे ? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
बाज़ार के लोग खरबूज़े बेचने वाली स्त्री को घृणा की दृष्टि से देखकर कह रहे थे कि जवान लड़के को मरे पूरा दिन भी नहीं हुआ और यह बेशर्म दुकान लगाकर बैठी है। दूसरा व्यक्ति उस स्त्री की नीयत खोटी बता रहा था, तो तीसरा उसे संबंधों से बढ़कर रोटी को महत्व देने वाली बता रहा था। पंसारी लाला उसे दूसरों का धर्म – ईमान खराब करने वाली कह रहा था, जो सूतक का ध्यान रखे बिना ही खरबूज़े बेचने बैठ गई है। इस तरह सभी अपने-अपने ढंग से उसे प्रताड़ित कर रहे थे।

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प्रश्न 2.
पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक को क्या पता चला ?
उत्तर :
आस-पास की दुकानों से पता करने पर लेखक को ज्ञात हुआ कि इस बुढ़िया का तेईस वर्ष का जवान बेटा था। घर में उसकी बहू और पोता-पोती भी हैं। उसका पुत्र शहर के पास डेढ़ बीघा ज़मीन में फल तरकारियाँ आदि बोकर परिवार का पालन-पोषण करता था। बाज़ार में फुटपाथ पर बैठकर वह अथवा उसकी माँ खरबूजे बेचा करते थे। परसों वह सुबह मुँह-अँधेरे बेलों से पके खरबूजे चुन रहा था कि उसका पैर मेड़ पर ठंडक में विश्राम कर रहे साँप पर पड़ गया। साँप ने उसे डॅस लिया था। बाद में ओझा से इलाज करवाने व नाग देवता की पूजा करने पर भी वह मर गया।

प्रश्न 3.
लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने क्या-क्या उपाय किए?
उत्तर :
वृद्धा के बेटे को साँप ने काट लिया था, जिसके कारण वह अचेत हो गया। लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने ओझा को बुलाया। उसने झाड़-फूँक करने के बाद नाग देवता की पूजा भी की। पूजा का प्रबंध करने के लिए घर में जो कुछ आटा और अनाज था, वह उसने दक्षिणा में दे दिया। ओझा प्रयत्न करता रहा, किंतु वह अपने प्रयास में सफल न हुआ। अंत में सर्प के विष से उसके लड़के का सारा शरीर काला पड़ गया और वह चल बसा। वृद्धा के सभी प्रयास विफल हो गए थे।

प्रश्न 4.
लेखक ने बुढ़िया के दुख का अंदाजा कैसे लगाया ?
उत्तर :
बुढ़िया के दुख का अंदाजा लगाने के लिए लेखक अपने पड़ोस में पुत्र की मृत्यु से दुखी संभ्रांत महिला के बारे में सोचने लगा। वह माता अपने पुत्र की मृत्यु के बाद अढ़ाई मास तक पलंग से उठ नहीं सकी थी। उसे बार-बार मूर्छा आ जाती थी। दो-दो डॉक्टर उसकी सेवा में हरदम उसके सिरहाने बैठे रहते थे। मूर्छा न आने की अवस्था में उसकी आँखों से आँसू बहते रहते थे। लेखक को लगा कि यह बुढ़िया भी इसी प्रकार से पुत्र की मृत्यु से दुखी होकर रो रही है, परंतु आर्थिक मजबूरी के कारण पुत्र की मृत्यु के अगले ही दिन खरबूजे बेचने आ बैठी है।

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प्रश्न 5.
इस पाठ का शीर्षक ‘दुख का अधिकार’ कहाँ तक सार्थक है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पाठ का शीर्षक ‘दुख का अधिकार’ पूरी तरह से उचित है। लेखक ने बताया है कि दुख सभी को दुखी करता है, चाहे वह अमीर हो या गरीब। लेखक के पंड़ोस की संभ्रांत महिला पुत्र-शोक से दुखी होकर अढ़ाई महीने तक पलंग से ही उठ नहीं पाई थी। वह रोती रहती थी या उसे मूर्छा पड़ जाती थी। उसका इलाज करने के लिए दो-दो डॉक्टर थे। सारा शहर उसके पुत्र की मृत्यु से दुखी था। इसके विपरीत गरीब बुढ़िया अपने पुत्र की मृत्यु के अगले दिन ही बाजार में खरबूज़े बेचने के लिए मजबूर थी और चाह कर भी उसके मरने का मातम नहीं मना सकती थी, क्योंकि उसे अपने भूखे पोते-पोती का पेट भरना था और बीमार बहू के लिए दवा लानी थी। इस प्रकार वह इतनी अभागी थी कि उसे मृत पुत्र का दुख मनाने का भी अधिकार नहीं थी।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिरजाने देतीं उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है।
उत्तर :
इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि मनुष्य की पहचान उसकी पोशाक से होती है। पहनी हुई पोशाक से ही पता चलता है कि व्यक्ति उच्च श्रेणी का है अथवा नहीं। पोशाक ही उस व्यक्ति की आर्थिक स्थिति का ज्ञान करवाती है। इसलिए जिस प्रकार कटी हुई पतंग एकदम से ज़मीन पर नहीं गिरती, उसी प्रकार से उच्च वर्ग की पोशाक पहने वाला व्यक्ति भी सरलता से निम्न वर्ग के व्यक्ति के पास बैठने का प्रयास नहीं करता। उसकी अभिजात्य वर्ग की पोशाक उसे फटेहाल व्यक्ति के पास बैठने से रोकती है। उसे यही चिंता रहती है कि फटेहाल व्यक्ति के पास उसे बैठा देखकर दुनिया क्या कहेगी ?

प्रश्न 2.
इनके लिए बेटा-बेटी, खसम – लुगाई, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है ?
उत्तर :
इस पंक्ति में लेखक उस व्यक्ति की विचारधारा को व्यक्त करता है, जो पुत्र की मृत्यु के अगले ही दिन खरबूज़े बेचने आई बुढ़िया के संबंध में यह वाक्य कहता है। उस व्यक्ति के विचार में इन नीच लोगों को किसी के मरने का दुख नहीं होता। ये किसी भी संबंध को नहीं मानते। इनके लिए पुत्र-पुत्री, पति-पत्नी तथा धर्म – ईमान का कोई महत्व नहीं होता। ये लोग केवल रोटी के लिए ही जीते हैं। इनका सबकुछ रोटी का टुकड़ा ही है। इसलिए यह बुढ़िया बेटे के मरने के एक दिन बाद ही खरबूज़े बेचने आ गई है।

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प्रश्न 3.
शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और दुखी होने का भी एक अधिकार होता है।
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से लेखक उन अभावग्रस्त अभागे लोगों की दशा का वर्णन कर रहा है, जिनके पास अपने किसी सगे व्यक्ति की मृत्यु पर शोक मनाने का समय भी नहीं है। वे निरंतर अपना पेट भरने की चिंता में लगे रहते हैं। उनकी अभावग्रस्त जिंदगी उन्हें अपने किसी संबंधी के मर जाने पर उसका दुख मनाने का अधिकार भी नहीं देती, जबकि हर किसी को दुखी होने का तो अधिकार है ही।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
निम्नांकित शब्द-समूहों को पढ़ो और समझो –
(i) कड्या, पतङ्ग, चञ्चल, ठण्डा, सम्बन्ध।
(i) कंघा, पतंग, चंचल, ठंडा, संबंध।
(iii) अक्षुण्ण, सम्मिलित, दुअन्नी, चवन्नी, अन्न।
(iv) संशय, संसद, संरचना, संवाद, संहार।
(v) अँधेरा, बाँट, मुँह, ईंट, महिला, में, मैं।
ध्यान दो कि झ ञ, ण, न् और म् ये पाँचों पंचमाक्षर कहलाते हैं। इनके लिखने की विधियाँ आपने ऊपर देखीं इसी रूप में या अनुस्वार के रूप में। इन्हें दोनों में से किसी भी तरीके से लिखा जा सकता है और दोनों ही शुद्ध हैं। हाँ, एक पंचमाक्षर जब दो बार आए तो अनुस्वार का प्रयोग नहीं होगा; जैसे-अम्मा, अन्न आदि। इसी प्रकार इनके बाद यदि अंतस्थ य, र, ल, व और ऊष्म श, ष, स, ह आदि हों तो अनुस्वार का प्रयोग होगा परंतु उसका उच्चारण पंचम वर्णों में से किसी भी एक वर्ण की भाँति हो सकता है; जैसे- संशय, संरचना में ‘न्, संवाद में ‘म्’ और संहार में ‘ङ्’।
(.) यह चिह्न है अनुस्वार का और (.) यह चिह्न है अनुनासिक का। इन्हें क्रमश: बिंदु और चंद्र-बिंदु भी कहते हैं। दोनों के प्रयोग और उच्चारण में अंतर है। अनुस्वार का प्रयोग व्यंजन के साथ होता है। अनुनासिक का स्वर के साथ।
उत्तर :
विद्यार्थी इसे ध्यान से पढ़ कर याद रखें।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के पर्याय लिखिए –
ईमान, बदन, अंदाज़ा, बेचैनी, गम, दर्जा, ज़मीन, जमाना, बरकत।
उत्तर :

  • ईमान – धर्म।
  • बदन – शरीर अंदाज़ा अनुमान।
  • बेचैनी – व्याकुलता।
  • गम – दुख।
  • दर्ज़ा – वर्ग।
  • ज़मीन – धरती।
  • ज़माना – युग।
  • बरकत – लाभ।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित उदाहरण के अनुसार पाठ में आए शब्द-युग्मों को छाँटकर लिखिए-
उदाहरण: बेटा-बेटी
उत्तर :
खसम – लुगाई, पोता-पोती, झाड़ना-फूँकना, दान-दक्षिणा, छन्नी- ककना, चूनी भूसी, दुअन्नी – चवन्नी।

प्रश्न 4.
पाठ के संदर्भ के अनुसार निम्नलिखित वाक्यांशों की व्याख्या कीजिए –
बंद दरवाज़े खोल देना, निर्वाह करना, भूख से बिलबिलाना, कोई चारा न होना, शोक से द्रवित हो जाना।
उत्तर :

  1. बंद दरवाज़े खोल देना – कुछ भी करने की आज़ादी। अच्छी पोशाक पहनने वाले को कहीं भी आने-जाने से रोका नहीं जाता, उसके लिए सभी रास्ते खुले होते हैं।
  2. निर्वाह करना – गुज़ारा करना। बुढ़िया और उसके परिवार का निर्वाह खरबूज़े आदि बेचकर होता था।
  3. भूख से बिलबिलाना – भूख के कारण तड़पना घर में खाने-पीने की सामग्री न होने के कारण बुढ़िया के पोते-पोतियाँ भूख से बिलबिला रहे थे।
  4. कोई चारा न होना- कोई उपाय न होना। बुढ़िया के पास इसके अतिरिक्त कोई और चारा नहीं था कि वह बाज़ार में खरबूजे बेचने जाती।
  5. शोक से द्रवित हो जाना – दुख देखकर करुणा से पिघल जाना। लेखक खरबूज़े बेचने वाली बुढ़िया के शोक से द्रवित था। किसी के दुख को देखकर स्वयं भी दुखी होने का भाव इस वाक्यांश से व्यक्त होता है।

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्द-युग्मों और शब्द-समूहों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
(i) छन्नी- ककना, अढ़ाई – मास, पास-पड़ोस, दुअन्नी चवन्नी, मुँह-अंधेरे, झाड़ना – फूँकना
(ii) फफक-फफककर, बिलख-बिलखकर, तड़प-तड़पकर, लिपट लिपटकर।
उत्तर :
(i) छन्नी- ककना – राम ने अपनी बेटी की शादी के लिए घर का छन्नी- ककना तक बेच दिया।
अढ़ाई – मास – हमारी वार्षिक परीक्षाएँ अढ़ाई – मास बाद शुरू होनी हैं।
पास-पड़ोस – रीना के पास-पड़ोस में कोई परचून की दुकान नहीं है।
दुअन्नी – चवन्नी – आजकल दुअन्नी – चवन्नी में चाय नहीं मिलती, इसके लिए पाँच रुपए देने पड़ते हैं।
मुँह – अंधेरे- विनोद और शारदा प्रतिदिन सुबह मुँह – अंधेरे ही घूमने जाते हैं।
झाड़ना-फूँकना – गीता डॉक्टर से इलाज करने की बजाय ओझा से झाड़ना – फूँकना करवाने में अधिक विश्वास रखती है।

(ii) फफक-फफककर – अपने पिताजी की मृत्यु का समाचार सुनते ही विशाल फफक-फफककर रोने लगा।
बिलख-बिलखकर – अध्यापक की डाँट पड़ते ही सुमन बिलख-बिलखकर रो पड़ी।
तड़प-तड़पकर – कार से टक्कर लगते ही सुखबीर ने तड़प-तड़पकर दम तोड़ दिया।
लिपट लिपटकर – साबिरा अपने पति की लाश से लिपट लिपटकर रोने लगी।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित वाक्य संरचनाओं को ध्यान से पढ़िए और इस प्रकार के कुछ और वाक्य बनाइए-
(क) 1. लड़के सुबह उठते ही भूख से बिलबिलाने लगे।
2. उसके लिए तो बजाज की दुकान से कपड़ा लाना ही होगा।
3. चाहे उसके लिए माँ के हाथों के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाएँ।
(ख) 1. अरे जैसी नीयत होती है, अल्ला भी वैसी ही बरकत देता है।
2. भगवाना जो एक दफे चुप हुआ तो फिर न बोला।
उत्तर :
(क) 1. राजेश विद्यालय से आते ही पेट दर्द से तड़फड़ाने लगा।
2. सलमा के लिए तो बाज़ार से मिठाई लानी ही होगी।
3. चाहे उसका घर-बार ही क्यों न बिक जाए, लेकिन उसे बेटी की शादी तो करनी ही है।
4. माँ-बाप की प्रसन्नता के लिए उसे विवाह करना ही होगा।

(ख) 1. जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा।
2. जो जैसा होता है, वैसा ही करता है।
3. सुरेश जो एक बार यहाँ आया तो फिर नहीं गया।
4. रश्मि जो एक दफे नाराज़ हुई तो फिर खुश न हुई।

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योग्यता विस्तार –

प्रश्न 1.
‘व्यक्ति की पहचान उसकी पोशाक से होती है।’ इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए। यदि आपने भगवाना की माँ जैसी किसी दुखिया को देखा है तो उसकी कहानी लिखिए। पता कीजिए कि कौन-से साँप विषैले होते हैं ? उनके चित्र एकत्र कीजिए और भित्ति पत्रिका में लगाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi दुःख का अधिकार Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘दुःख का अधिकार’ कहानी का मूल भाव क्या है ?
उत्तर :
‘दुःख का अधिकार’ कहानी में लेखक ने समाज में फैले अंधविश्वासों, जातिभेद, वर्गभेद आदि पर कटाक्ष किया है। लेखक के अनुसार किसी अपने के मरने का दुख सबको समान रूप से होता है; परंतु उच्च वर्ग जहाँ इस शोक को अपनी सुविधा के अनुसार कई दिनों तक मना सकता है, वहीं निम्न वर्ग के अभागे लोगों के पास अपने पुत्र की मृत्यु तक का शोक मनाने के लिए समय नहीं होता क्योंकि उन्हें पेट की आग रोटी कमाने के लिए विवश कर देती है। इस कहानी में लेखक के पड़ोस की संभ्रांत महिला पुत्र शोक में अढ़ाई महीने तक बिस्तर से नहीं उठ सकी थी, जबकि भगवाना की मृत्यु के एक दिन बाद ही उसकी माँ को परिवार के लिए रोटी जुटाने हेतु खरबूजे बेचने बाज़ार में आना पड़ा।

प्रश्न 2.
पड़ोस की दुकानों पर बैठे अथवा बाज़ार में खड़े लोगों को भगवाना की माँ से घृणा क्यों थी ?
उत्तर :
पड़ोस की दुकानों पर बैठे अथवा बाज़ार में खड़े लोगों को भगवाना की माँ से इसलिए घृणा हो रही थी क्योंकि कल ही उसका पुत्र भगवाना साँप के काटने से मरा था और आज वह बाज़ार में खरबूज़े बेचने आ गई थी। उन्हें लगता था कि उसे सूतक के दिनों में घर में रहना चाहिए था। जिन लोगों को उसके पुत्र के मरने का पता नहीं है, वे यदि उससे खरबूज़े खरीदेंगे तो उनका ईमान-धर्म नष्ट हो जाएगा। वे उसे बेहया मानते हैं।

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प्रश्न 3.
परचून की दुकान पर बैठे लाला ने भगवाना की माँ के संबंध में क्या कहा ?
उत्तर :
परचून की दुकान पर बैठे लाला ने पुत्र की मृत्यु के अगले दिन भगवाना की माँ को खरबूज़े बेचते हुए देखकर कहा कि इन लोगों को किसी के मरने – जीने की कोई चिंता नहीं होती है, फिर भी इन्हें दूसरों के धर्म-ईमान का तो ध्यान रखना चाहिए। जवान बेटे के मरने पर तेरह दिन का सूतक होता है। इस बीच छूत – छात का पूरा ध्यान रखा जाता है, परंतु यह तो यहाँ बाज़ार में खरबूज़े बेचने आ गई है। यहाँ हज़ारों लोग आते-जाते हैं। इनमें से किसी को क्या पता कि इसके घर सूतक है। यदि किसी ने इससे खरबूज़े लेकर खा लिए, तो उसका धर्म-ईमान ही नष्ट हो जाएगा। इन लोगों ने तो अँधेर मचा रखा है।

प्रश्न 4.
पोशाकें मनुष्य को कैसे बाँटती हैं और उसके लिए बंद दरवाजे कैसे खोलती हैं ?
उत्तर :
पोशाक मनुष्य के स्तर को प्रकट करती है। यदि कोई मनुष्य अच्छी, महँगी और चमकदार पोशाक पहनता है तो उसे सभ्य, उच्च वर्गीय और अमीर समझा जाता है। जब कोई व्यक्ति साधारण या फटे-पुराने वस्त्र पहनता है, तो उसे गरीब अथवा निम्न वर्ग का माना जाता है। इस तरह पोशाक के आधार पर मनुष्य के स्तर और आर्थिक स्थिति का अनुमान लगाकर उसे वर्गों में बाँटा जाता है।

पोशाक मनुष्य के लिए बंद दरवाजे खोलने का काम करती है। जब कोई मनुष्य साधारण कपड़े पहनकर किसी बड़े व्यक्ति से मिलने जाता है, तो चौकीदार उसे बाहर से ही भगा देता है। यदि कोई महँगे, अच्छे और शानदार कपड़े पहनकर बड़े आदमी से मिलने जाता है, तो चौकीदार भागकर उसकी गाड़ी का दरवाजा खोलता है और आने वाले व्यक्ति को सलाम करता है। इस प्रकार पोशाक व्यक्ति के लिए बंद दरवाज़े खोलने का काम करती है।

प्रश्न 5.
लेखक की पोशाक बुढ़िया से उसका दुख का कारण जानने में कैसे रुकावट बन गई ?
उत्तर :
लेखक उच्च वर्ग से संबंध रखता था और उसने अच्छी पोशाक पहन रखी थी। लेकिन उसकी अच्छी पोशाक फुटपाथ पर फटेहाल रोती हुई बुढ़िया के पास बैठकर रोने का कारण जानने में रुकावट पैदा कर रही थी। वह अपनी पोशाक के कारण यह साहस नहीं कर पा रहा था कि वह बुढ़िया के पास बैठकर उसके दुख को बाँट सके। वह यही सोच रहा था कि उसे फटेहाल बुढ़िया के पास बैठा देखकर लोग क्या कहेंगे।

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प्रश्न 6.
जिंदा आदमी और मुर्दा आदमी की परिस्थितियों में क्या अंतर है ?
उत्तर :
जिंदा आदमी और मुर्दा आदमी की परिस्थितियों में बहुत अंतर है। एक निर्धन जिंदा आदमी बिना कुछ खाए-पिए रह सकता है; फटे- पुराने कपड़े पहनकर अपना तन ढक सकता है। वह अपना जीवन किसी भी तरह गुज़ार सकता है, परन्तु मुर्दा आदमी को बिना कफ़न के विदा नहीं किया जा सकता। समाज और बिरादरी के डर से उसके लिए हमें नए कपड़े लाने पड़ते हैं। मुर्दे को नंगा विदा करना हमारे धर्म के भी विरुद्ध माना जाता है। इसलिए जिंदा और मुर्दा आदमी की परिस्थिति में अंतर है।

प्रश्न 7.
भगवाना की माँ को अपने हाथों के छन्नी- ककना क्यों बेचने पड़े ?
उत्तर :
भगवाना के इलाज में घर की जमा-पूँजी समाप्त हो गई थी, लेकिन वह फिर भी नहीं बचा। अब उसके मरने पर उसे नंगा तो विदा नहीं किया जा सकता था। उसके लिए कपड़े की दुकान से नया कपड़ा लाना था। इसलिए भगवाना की माँ ने अपने हाथ के मामूली से गहने छन्नी- ककना बेच दिए ताकि उसके बेटे का क्रिया-क्रम धर्मानुसार हो सके।

प्रश्न 8.
पुत्र के मरने के बाद बुढ़िया जिस साहस से खरबूजे बेचने आई थी, वह बाज़ार में आकर क्यों टूट गया ?
उत्तर :
जवान बेटे के मरने के अगले दिन बुढ़िया बाज़ार में खरबूज़े बेचने के लिए आ गई थी। अब उसके घर में कमाने वाला कोई नहीं था। जवान बहू और पोते को पालने के लिए पैसों की आवश्यकता थी, इसलिए वह साहस करके बाज़ार में खरबूज़े बेचने के लिए आ गई। परंतु बाज़ार में लोगों की चुभती आँखों और जली-कटी बातों ने उसका साहस तोड़ दिया। वह एक ओर बैठकर मुँह छिपाकर रोने लगी।

प्रश्न 9.
लेखक ने दुख मनाने के लिए सहूलियत की बात क्यों की ?
उत्तर :
समाज में रहने वाले छोटे-बड़े सभी व्यक्तियों को दुख मनाने की सहूलियत होनी चाहिए। दुख को प्रकट करने का अवसर मिलने पर दुखी व्यक्ति का मन हल्का हो जाता है; उस पर दुख का भार कम हो जाता है। जिस प्रकार रोने से मन हल्का हो जाता है, उसी प्रकार मृत्यु पर शोक मनाने से दुख कम हो जाता है। इसलिए लेखक ने दुख मनाने के लिए सहूलियत की बात की है।

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प्रश्न 10.
क्या दुखी होने का अधिकार सबके लिए समान है ?
उत्तर :
गरीब व्यक्ति परिवार के पालन-पोषण के लिए अपने परिवार की किसी जवान मौत के दुख को धकेलकर काम के लिए चला जाता है; उसके पास दुख मनाने का समय नहीं होता। वहीं दूसरी ओर अमीर व्यक्ति के पास समाज, रिश्तेदार आदि सभी एकत्रित होकर उसका दुख कम करने में लगे रहते हैं। उसके पास दुख मनाने का समय भी होता है और धन भी। इसलिए सबके लिए दुखी होने का अधिकार समान नहीं है।

प्रश्न 11.
बुढ़िया के पुत्र भगवाना की मृत्यु कैसे हुई ?
उत्तर :
भगवाना बुढ़िया का इकलौता पुत्र था। एक दिन सुबह मुँह – अँधेरे वह खेत से खरबूज़े तोड़ रहा था। मध्यम रोशनी होने के कारण कुछ चीजें स्पष्ट दिखाई नहीं दे रही थीं। वहीं पास में खेत की गीली मेड़ की तरावट में एक साँप विश्राम कर रहा था। खरबूज़े तोड़ते-तोड़ते अचानक भगवाना का पैर साँप के ऊपर जा पड़ा और साँप ने उसे काट लिया। इस प्रकार साँप के काटने से भगवाना की मृत्यु हुई।

प्रश्न 12.
बुढ़िया बाज़ार में खरबूज़े बेचने के लिए क्यों आई थी ?
उत्तर :
अपने परिवार की दयनीय स्थिति को देखते हुए बुढ़िया खरबूज़े बेचने बाज़ार में आई थी। पहले यह कार्य उसका पुत्र करता था। अब उनके पास कोई अन्य उपाय नहीं था। पुत्र के निधन के बाद बुढ़िया को उधार देने वाला भी कोई नहीं था। घर में बच्चे भूख से और भगवाना की पत्नी बुखार से तड़प रही थी। इन सभी विकट स्थितियों का ध्यान करते हुए बुढ़िया बाज़ार में खरबूज़े बेचने आई थी।

प्रश्न 13.
पोशाकें मनुष्य को किस प्रकार बाँटती हैं ?
उत्तर
पोशाकें मनुष्य को विभिन्न श्रेणियों में बाँटती हैं। यह मानव को स्थिति के अनुसार न चलाकर पोशाक के आधार पर अन्य लोगों से अलग करती है। पोशाक ही अमीर-गरीब का भेद स्पष्ट करती है। फटेहाली गरीबी का परिचायक बन जाती है, जबकि सुंदर व रंग-बिरंगे कपड़े अमीर तथा उच्चवर्गीय लोगों के परिचायक बन जाते हैं। आज समाज में पोशाकें इसी प्रकार मनुष्य को बाँटने का काम कर रही हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 दुःख का अधिकार

प्रश्न 14.
पाठ में लेखक ने ‘जिंदा आदमी नंगा भी रह सकता है’ कहकर समाज पर क्या व्यंग्य किया है?
उत्तर :
पाठ में लेखक ने ‘जिंदा आदमी नंगा भी रह सकता है’ कहकर समाज की उस परंपरा एवं रूढ़िवादिता पर व्यंग्य किया है, जिसमें जीवित व्यक्ति को चाहे जीवन भर तन ढँकने के लिए कोई कपड़ा न मिला हो, लेकिन मरने के बाद उसे नया कपड़ा कफ़न के रूप में अवश्य दिया जाता है। लेखक जानना चाहता है कि समाज को जिंदा व्यक्ति से अधिक मरे व्यक्ति की चिंता क्यों है?

प्रश्न 15.
लेखक को फुटपाथ पर बैठने से कौन और क्यों रोक रहा था ?
उत्तर :
लेखक को फुटपाथ पर बैठने से उसकी पोशाक रोक रही थी, क्योंकि उसने उच्चवर्ग की कीमती पोशाक पहन रखी थी। यह पोशाक लेखक को फुटपाथ पर रुकने तक की इज़ाजत नहीं दे रही थी, बैठने की बात तो दूर की थी। लेखक की पोशाक फुटपाथ पर बैठे लोगों तथा उसके बीच के फासले को स्पष्ट कर रही थी। इसी कारण लेखक फुटपाथ पर नहीं बैठा।

दुःख का अधिकार Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन-परिचय – आधुनिक युग के सुप्रसिद्ध कथाकार यशपाल का जन्म 3 दिसंबर, सन् 1903 को फिरोज़पुर छावनी में हुआ था। इनके पिता का नाम हीरालाल तथा माता का नाम प्रेम देवी था। इनके पूर्वज कांगड़ा जिले के निवासी थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गुरुकुल कांगड़ी में हुई थी। बाद में यशपाल फिरोज़पुर आकर पढ़ने लगे और यहीं से इन्होंने सन् 1921 में मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इन्होंने अपना प्रारंभिक जीवन आर्य समाज के प्रचारक के रूप में प्रारंभ किया तथा इनका मासिक वेतन आठ रुपए था।

सन् 1922 में इन्होंने नेशनल कॉलेज में प्रवेश लिया। यहीं इनकी भेंट सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी भगत सिंह तथा सुखदेव से हुई। इसके बाद यशपाल क्रांतिकारियों के विभिन्न दलों से जुड़ गए। लाहौर और रोहतक में इन्होंने बम बनाने का कार्य भी किया था। 7 अगस्त, 1936 को बरेली जेल में इनका विवाह प्रकाशवती से संपन्न हुआ। इन्होंने सात बार विदेश यात्राएँ भी की थीं। इन्हें अनेक उपाधियों और पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया। 26 दिसंबर सन् 1976 को इनका देहावसान हुआ।

रचनाएँ – यशपाल ने साहित्य रचना कॉलेज जीवन से ही प्रारंभ कर दी थी। इन्होंने उपन्यास, कहानी, निबंध, नाटक, यात्रा – विवरण, संस्मरण आदि गद्य की समस्त विधाओं में साहित्यिक रचनाएँ की हैं। इनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं-
उपन्यास – दादा कामरेड, देशद्रोही, दिव्या, पार्टी कामरेड, मनुष्य के रूप, अमिता, झूठा सच, बारह घंटे, अप्सरा का श्राप, क्यों फँसे, मेरी तेरी उसकी बात आदि।
नाटक – नशे – नशे की बात, रूप की परख, गुडबाई दर्देदिल।
यात्रा विवरण – लोहे की दीवार के दोनों ओर, राहबीती, स्वर्गोद्यान बिना साँप।
आत्मकथा – सिंहावलोकन।
निबंध – चक्कर क्लब, न्याय का संघर्ष, मार्क्सवाद, रामराज्य की कथा, जग का मुजरा।
संपादन – विप्लव।
कहानी-संग्रह – पिंजरे की उड़ान, वो दुनिया, तर्क का तूफान, ज्ञानदान, अभिशप्त, भस्मावृत चिनगारी, फूलों का कुरता, धर्मयुद्ध, उत्तराधिकारी, चित्र का शीर्षक, तुमने क्यों कहा था मैं सुंदर हूँ, उत्तमी की माँ, ओ भैरवी, सच बोलने की भूल आदि।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 दुःख का अधिकार

पाठ का सार :

‘दुःख का अधिकार’ कहानी के लेखक यशपाल हैं। इस कहानी में लेखक ने बताया है कि हमारे देश में कुछ ऐसे अभागे लोग भी हैं, जिन्हें दुख मनाने का भी अधिकार नहीं है। समाज में हमारी पोशाक देखकर हमारा स्तर निर्धारित किया जाता है। ऊँची और अच्छी पोशाक वाले निम्न व मामूली पोशाक वालों के साथ संबंध नहीं बना सकते। जैसे कटी हुई पतंग एकदम ज़मीन पर नहीं गिरती है, वैसे ही अच्छी पोशाक वाले मामूली अथवा गंदी पोशाक पहनने वालों की तरफ नहीं झुकते हैं। बाज़ार में फुटपाथ पर कुछ खरबूज़े टोकरी में और कुछ ज़मीन पर रखकर एक अधेड़ उम्र की औरत कपड़े से मुँह छिपाए सिर घुटनों पर रखकर रो रही थी। वह खरबूज़े बेचने के लिए लाई थी, परंतु उन्हें कोई खरीद नहीं रहा था। आस-पास की दुकानों पर बैठे लोग घृणा से उस स्त्री के संबंध में बातें कर रहे थे। लेखक उस स्त्री से उसके रोने का कारण जानना चाहता था, परंतु अपनी पोशाक का लिहाज़ कर वह फुटपाथ पर उसके साथ न बैठ सका।

वहीं एक आदमी कह रहा था कि क्या ज़माना आ गया है! जवान लड़के को मरे एक दिन भी नहीं हुआ कि यह बेहया दुकान लगाकर बैठी है। दूसरा कह रहा था कि जैसी नीयत होती है, अल्ला भी वैसी बरकत देता है। तीसरे का कहना था कि इन लोगों के लिए संबंध कुछ नहीं रोटी ही सबकुछ हैं। परचून की दुकान पर बैठे लाला ने कहा कि इन लोगों को दूसरे के धर्म-ईमान की भी चिंता नहीं है। जवान बेटे के मरने पर तेरह दिन का सूतक होता है और यह आज ही खरबूजे बेचने आ गई है। आस-पास के दुकानदारों से पता करने पर लेखक को ज्ञात हुआ कि उस अधेड़ स्त्री का तेईस वर्ष का बेटा था। घर में बहू और पोता-पोती भी हैं।

लड़का शहर के पास डेढ़ बीघा जमीन में तरकारियाँ बोता था, जिससे परिवार का पालन-पोषण होता था। वह परसों सुबह मुँह- अँधेरे बेलों से खरबूजे चुन रहा था कि उसका पैर साँप पर पड़ गया और साँप ने उसे डँस लिया। ओझा से इलाज करवाने तथा नाग देवता की पूजा करने के बाद भी अधेड़ स्त्री के पुत्र भगवाना का शरीर काला पड़ गया और वह मर गया। उसका क्रिया-कर्म करने में इनकी सारी जमा-पूँजी समाप्त हो गई। बच्चे भूख से बिलख रहे थे; बहू को बुखार हो गया था; बुढ़िया को कोई उधार देने वाला भी नहीं था।

वह रोते- बिलखते बाज़ार में खरबूज़े बेचने आ गई थी। कल जिसका बेटा चल बसा, मज़बूरी में उसे आज बाजार में खरबूजे बेचने पड़ रहे हैं। लेखक को याद आया कि पिछले साल उसके पड़ोस में एक स्त्री अपने पुत्र की मृत्यु के शोक में अढ़ाई मास तक पलंग से उठ न सकी थी। पुत्र-वियोग में बार-बार उसे मूर्छा आ जाती थी। दो-दो डॉक्टर उसकी सेवा में उपस्थित रहते थे। सारा शहर उसके पुत्र-शोक से दुखी था। आज इस बुढ़िया के पास शोक मनाने की सुविधा भी नहीं है और उसे यह अधिकार भी नहीं है कि वह दुखी हो सके। यह सब सोचते हुए लेखक चला जा रहा था, राह चलते ठोकरें खाता हुआ।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 दुःख का अधिकार

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • पोशाक – पहनावा।
  • दर्ज़ा – स्तर, हैसियत।
  • अनुभूति – अनुभव, तजुर्बा।
  • अड़चन – रुकावट, बाधा।
  • डलिया – टोकरी।
  • अधेड़ – ढलती अवस्था।
  • घृणा – नफ़रत।
  • व्यथा – दुख।
  • उपाय – तरीका।
  • बेहया – बेशर्म, निर्लज्ज।
  • नीयत – इरादा, मन में रहने वाला भाव, मंशा।
  • बरकत – लाभ।
  • खसम – पति।
  • लुगाई – पत्नी।
  • परचून की दुकान – पंसारी की दुकान।
  • सूतक – घर में पैदा होने वाले बच्चे अथवा घर में किसी के मरने पर परिवार वालों को लगने वाला अशौच। इस दशा में कुछ निश्चित दिनों तक छूत का ध्यान रखते हैं।
  • कछियारी – खेतों में तरकारी आदि की खेती करना।
  • निर्वाह – गुज़ारा।
  • तरावर – ठंडक।
  • दफे – बार।
  • छन्नी-ककना – मामूली गहने।
  • संभ्रांत – सम्मानित, प्रतिष्ठित, उच्च वर्ग की।
  • द्रवित – दया से पसीजना।
  • गम – दुख।
  • शोक – दुख।
  • सहूलियत – सुविधा।

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