Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य
JAC Class 9 Hindi कीचड़ का काव्य Textbook Questions and Answers
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक- दो पंक्तियों में दीजिए –
प्रश्न 1.
रंग की शोभा ने क्या कर दिया ?
उत्तर :
रंग की शोभा उत्तर दिशा में जमी थी। उस दिशा में लाल रंग ने आज कमाल ही कर दिया था।
प्रश्न 2.
बादल किसकी तरह हो गए थे ?
उत्तर :
बादल धुनी हुई रूई की बत्ती के समान हो गए थे।
प्रश्न 3.
लोग किन-किन चीज़ों का वर्णन करते हैं ?
उत्तर :
लोग आकाश, पृथ्वी और जलाशयों का वर्णन करते हैं।
प्रश्न 4.
कीचड़ से क्या होता है ?
उत्तर :
कीचड़ से पैर, शरीर और वस्त्र गंदे हो जाते हैं। किसी को अपने ऊपर कीचड़ लगाना अच्छा नहीं लगता है।
प्रश्न 5.
कीचड़ जैसा रंग कौन पसंद करते हैं ?
उत्तर :
पुस्तकों के गत्तों पर, घरों की दीवारों पर, कीमती कपड़ों के लिए हम सब कीचड़ के जैसा रंग पसंद करते हैं। कला के जानकार भी मटमैला रंग पसंद करते हैं।
प्रश्न 6.
नदी के किनारे कीचड़ कब सुंदर दिखता है ?
उत्तर :
नदी के किनारे का कीचड़ तब सुंदर दिखाई देता है जब उसके सूखकर टुकड़े हो जाते हैं।
प्रश्न 7.
कीचड़ कहाँ सुंदर लगता है ?
उत्तर :
नदी किनारे मीलों तक जब समतल और चिकना कीचड़ एक-सा फैला हुआ होता है तब और खंभात में मही नदी के आगे दूर-दूर तक फैला हुआ तथा पहाड़ के पहाड़ डुबो लेने की शक्ति रखनेवाला कीचड़ सुंदर लगता है।
प्रश्न 8.
‘पंक’ और ‘पंकज’ शब्द में क्या अंतर है ?
उत्तर
‘पंक’ कीचड़ को कहते हैं। ‘पंकज’ का अर्थ कमल है। पंकज पंक + ज अर्थात् कीचड़ से उत्पन्न होने वाला। ‘पंक’ शब्द घृणास्पद है और पंकज मन को आनंदित कर देता है।
लिखित –
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –
प्रश्न 1.
कीचड़ के प्रति किसी को सहानुभूति क्यों नहीं होती ?
उत्तर :
कीचड़ के प्रति किसी को सहानुभूति इसलिए नहीं होती क्योंकि कीचड़ में पैर डालना कोई पसंद नहीं करता। कीचड़ से शरीर गंदा हो जाता है। कीचड़ से वस्त्र मैले हो जाते हैं। अपने शरीर पर कीचड़ उड़े, यह किसी को पसंद नहीं है। सब कीचड़ से बचते हैं।
प्रश्न 2.
ज़मीन ठोस होने पर उसपर किनके पदचिह्न अंकित होते हैं ?
उत्तर :
जब कीचड़ ज़्यादा सूखकर ज़मीन को ठोस बना देती है तो उसपर गाय, बैल, भैंस, पाड़े, बकरे, भेड़ आदि के पदचिह्न दिखाई देने लगते हैं। कई बार इसपर आपस में लड़ते हुए पाड़े के सींगों के चिह्न भी दिखाई देते हैं।
प्रश्न 3.
मनुष्य को क्या ज्ञान होता जिससे वह कीचड़ का तिरस्कार न करता ?
उत्तर :
मनुष्य को यदि इस बात का ज्ञान होता है कि हम धान भी कीचड़ में से ही पैदा करते हैं तो वह कभी भी कीचड़ का तिरस्कार नहीं करता। भारत के उत्तरी-पूर्वी राज्यों में सबसे अधिक पैदा होनेवाली धान की फसल कीचड़ में ही उगती है।
प्रश्न 4.
पहाड़ लुप्त कर देनेवाली कीचड़ की क्या विशेषता है ?
उत्तर :
खंभात के पास मही नदी के मुख से आगे जहाँ तक देखते हैं कीचड़ ही कीचड़ दिखाई देता है। यह कीचड़ इतना गहरा है कि इसमें हाथी तो क्या पहाड़ तक लुप्त हो सकते हैं।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –
प्रश्न 1.
कीचड़ का रंग किन-किन लोगों को खुश करता है ?
उत्तर :
लेखक का मानना है कि कीचड़ का रंग बहुत सुंदर होता है। लोग पुस्तकों के गत्तों पर, घरों की दीवारों पर अथवा शरीर के कीमती कपड़ों के लिए कीचड़ के जैसे रंग पसंद करते हैं। कला के जानकारों को भी भट्टी में पकाए मिट्टी के बरतनों के लिए यही रंग पसंद है। फोटो लेते समय भी यदि उसमें मटमैलापन आ जाए तो फोटो के जानकार प्रसन्न हो जाते हैं।
प्रश्न 2.
कीचड़ सूखकर किस प्रकार के दृश्य उपस्थित करता है ?
उत्तर :
नदी किनारे जब कीचड़ सूख कर टुकड़े हो जाते हैं तो उसपर पड़ने वाली दरारें बहुत सुंदर लगती हैं। ज्यादा गरमी में जब इन टुकड़ों पर दरारें पड़ती हैं और ये टेढ़े हो जाते हैं, तब ये सुखाए हुए खोपरे जैसे दिखाई देते हैं। नदी किनारे मीलों तक फैला हुआ समतल और चिकना कीचड़ बहुत आकर्षक दृश्य उपस्थित करता है। इस कीचड़ के कुछ सूख जाने पर इसपर बने हुए बगुले तथा अन्य पक्षियों के चलने के निशान भी देखने में अच्छे लगते हैं।
प्रश्न 3.
सूखे हुए कीचड़ का सौंदर्य किन स्थानों पर दिखाई देता है ?
उत्तर :
नदी के किनारे जब कीचड़ के सूखकर टुकड़े हो जाते हैं तब सूखे हुए कीचड़ का सौंदर्य दिखाई देता है। यही कीचड़ के सूखे हुए टुकड़े अधिक गरमी के कारण टेढ़े होकर सूखे खोपरे जैसे दिखाई देते हैं। सूखे हुए कीचड़ पर चलनेवाले बगुले तथा अन्य पक्षियों के पद – चिह्न भी देखने में सुंदर लगते हैं। जब कीचड़ अधिक सूखकर ठोस हो जाता है तो उसपर गाय, बैल, भैंस, भेड़ आदि के अंकित पद – चिह्नों की शोभा निराली ही होती है।
प्रश्न 4.
कवियों की धारणा को लेखक ने वृत्ति-शून्य क्यों कहा है ?
उत्तर :
कवियों की धारणा को लेखक ने वृत्ति-शून्य इसलिए कहा है क्योंकि वे लेखक के इस तर्क को स्वीकार नहीं करेंगे कि जिस ‘पंक’ शब्द को सुनने मात्र से ही वे पंक से घृणा करने लगते हैं, उसी ‘पंक’ से उत्पन्न पंकज का नाम सुनने से उनका मन हर्षित होकर गाने क्यों लगता है ? उस ‘पंक’ से उनकी घृणा व्यर्थ है। हमारा अन्न भी कीचड़ से ही पैदा होता है। इसलिए कीचड़ का तिरस्कार करना उचित नहीं है। वे अपना तर्क देकर लेखक के तर्क को स्वीकार नहीं करेंगे।
(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –
प्रश्न 1.
नदी किनारे अंकित पदचिह्न और सींगों के चिह्नों से मानो महिषकुल के भारतीय युद्ध का पूरा इतिहास ही इस कर्दम लेख
में लिखा हो ऐसा भास होता है।
उत्तर :
नदी के किनारे के सूखे कीचड़ में जवान भैंसे जब अपने सींगों को उस सूखे कीचड़ में धँसाकर आपस में मस्त होकर जूझते होंगे तो उनके परस्पर टकराने से उस सूखे कीचड़ पर जो चिह्न बनते हैं उनसे ऐसा प्रतीत होता है मानो भैंसों के परिवार के भारतीय युद्ध का पूरा इतिहास ही इस कीचड़ पर एक लेख के रूप में लिख दिया गया है।
प्रश्न 2.
आप वासुदेव की पूजा करते हैं इसलिए वसुदेव को तो नहीं पूजते, हीरे का भारी मूल्य देते हैं किंतु कोयले या पत्थर का नहीं देते और मोती को कंठ में बाँध कर फिरते हैं किंतु उसकी मातुश्री को गले में नहीं बाँधते !” कम-से-कम इस विषय पर कवियों के साथ तो चर्चा न करना ही उत्तम !
उत्तर :
लेखक जब कवियों को समझाना चाहता है कि कीचड़ का तिरस्कार करना उचित नहीं है तो यह सोचकर कवि उसे कहेंगे कि जब वासुदेव की पूजा करने पर वसुदेव को नहीं पूजा जाता, हीरे के लिए अधिक मूल्य देते हैं पर कोयले या पत्थर का अधिक मूल्य नहीं देते तथा मोती कंठ में पहनते हैं परंतु सीपी को तो गले में नहीं बाँधते हैं – वह उनसे कीचड़ की श्रेष्ठता के संबंध में कोई चर्चा न करना ही उचित मानता है।
भाषा-अध्ययन –
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के तीन-तीन पर्यायवाची शब्द लिखिए –
उत्तर :
प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों में कारकों को रेखांकित कर उनके नाम भी लिखिए-
उत्तर :
- कीचड़ का नाम लेते ही सब बिगड़ जाता है। – संबंध
- क्या कीचड़ का वर्णन कभी किसी ने किया है ? – संबंध
- हमारा अन्न कीचड़ से ही पैदा होता है। – करण
- पदचिह्न उस पर अंकित होते हैं। – अधिकरण
- आप वासुदेव की पूजा करते हैं। – संबंध
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों की बनावट को ध्यान से देखिए और इनका पाठ से भिन्न किसी नए प्रसंग में वाक्य प्रयोग कीजिए –
आकर्षक, यथार्थ, तटस्थता, कलाभिज्ञ, पदचिह्न, अंकित, तृप्ति, सनातन, लुप्त, जागृत, घृणास्पद, युक्ति शून्य, वृत्ति।
उत्तर :
- आकर्षक – कन्याकुमारी में सूर्यास्त का दृश्य बहुत आकर्षक होता है।
- यथार्थ – प्रेमचंद के साहित्य में ग्राम्य जीवन का यथार्थ चित्रण देखने को मिलता है।
- तटस्थता – न्याय करते समय हमें तटस्थता की नीति अपनानी चाहिए।
- कलाभिज्ञ – कलादीर्घा में अनेक कलाभिज्ञ एकत्र हुए।
- पदचिह्न – हमें महापुरुषों के पदचिह्नों पर चलना चाहिए।
- अंकित – सुभाषचंद बोस का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।
- तृप्ति – गंगा – स्नान से मुझे तृप्ति मिली।
- सनातन – हमें अपनी सनातन परंपराओं का पालन करना चाहिए।
- लुप्त – मेरे देखते-देखते ही सुबह का तारा लुप्त हो गया।
- जागृत – जागृत अवस्था में स्वप्न देखना उचित नहीं है।
- घृणास्पद – गंदगी का ढेर देखना ही घृणास्पद है।
- युक्ति शून्य – जया के सभी तर्क युक्ति शून्य थे।
- वृत्ति – पीयूष विनम्र वृत्ति का बालक है।
प्रश्न 4.
नीचे दी गई संयुक्त क्रियाओं का प्रयोग करते हुए कोई अन्य वाक्य बनाइए –
(क) देखते-देखते वहाँ के बादल श्वेत पूनी जैसे हो गए।
उत्तर :
मेरे देखते-देखते ही गाड़ी चल पड़ी।
(ख) कीचड़ देखना हो तो सीधे खंभात पहुँचना चाहिए।
उत्तर :
सागर देखना हो तो सीधे कन्याकुमारी पहुँचना चाहिए।
(ग) हमारा अन्न कीचड़ में से ही पैदा होता है
उत्तर :
कमल कीचड़ में से ही पैदा होता है।
प्रश्न 5.
न नहीं, मत का सही प्रयोग रिक्त स्थानों पर कीजिए-
(क) तुम घर ………. जाओ।
(ख) मोहन कल ………. आएगा।
(ग) उसे ………… जाने क्या हो गया है ?
(घ) डाँटो …………. प्यार से कहो।
(ङ) मैं वहाँ कभी ………… जाऊँगा।
(च) ………… वह बोला ……….. मैं।
उत्तर :
(क) तुम घर मत जाओ।
(ख) मोहन कल नहीं आएगा।
(ग) उसे न जाने क्या हो गया है ?
(घ) डाँटो मत प्यार से कहो।
(ङ) मैं वहाँ कभी नहीं जाऊँगा।
(च) न वह बोला न मैं।
योग्यता-विस्तार –
1. विद्यार्थी सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य देखें तथा अपने अनुभवों को लिखें।
2. कीचड़ में पैदा होनेवाली फसलों के नाम लिखिए।
3. भारत के मानचित्र में दिखाएँ कि धान की फसल प्रमुख रूप में किन-किन प्रांतों में उपजाई जाती है ?
4. क्या कीचड़ ‘गंदगी’ है ? इस विषय पर अपनी कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
JAC Class 9 Hindi कीचड़ का काव्य Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
‘कीचड़ का काव्य’ पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘कीचड़ का काव्य’ काका कालेलकर द्वारा रचित एक ललित निबंध है। इस निबंध में लेखक ने कीचड़ की उपयोगिता का वर्णन किया है। लेखक के विचार में हमें कीचड़ के गंदेपन पर नहीं बल्कि उसकी मानव तथा पशु-पक्षियों के जीवन में उपयोगिता पर ध्यान देना चाहिए। मनुष्य मटमैला रंग पसंद करता है तथा पशु-पक्षियों को कीचड़ में क्रीड़ा करना और उसपर चलना अच्छा लगता है। देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में सबसे अधिक पैदा होनेवाली धान की फसल कीचड़ में ही उग पाती है। कमल जिसे पंकज कहते हैं ‘पंक’ कीचड़ में से ही उगता है। इस प्रकार लेखक ने कीचड़ को हेय न कह श्रद्धेय माना है।
प्रश्न 2.
लेखक ने कीचड़ की महानता कैसे सिद्ध की है ?
उत्तर :
कीचड़ की महानता सिद्ध करने के लिए लेखक ने तीन उदाहरण दिए हैं। लेखक के अनुसार यदि मनुष्य यह अच्छी तरह से समझ ले कि धान जैसी फसल कीचड़ में ही पैदा होती है तो वह कीचड़ का तिरस्कार नहीं करेगा। दूसरे उदाहरण में, लेखक यह बताता है कि पंक से ही पंकज अर्थात कमल पैदा होता है, इसलिए पंक, कीचड़ से घृणा करना उचित नहीं है। इसी प्रकार से मल की मलिनता से परेशान नहीं होना चाहिए क्योंकि कमल में मल शब्द का प्रयोग होता है और कमल मन को आनंदित करता है।
प्रश्न 3.
आज लेखक को पूर्व और उत्तर दिशा में क्या अंतर दिखाई दे रहा है ?
उत्तर :
आज लेखक को पूर्व दिशा में विशेष आकर्षण दिखाई नहीं दे रहा था, क्योंकि बादलों के कारण पूर्व दिशा रंगहीन थी। दूसरी ओर उत्तर दिशा की लालिमा देखते ही बन रही थी। वहाँ बादलों ने अभी अपने पैर नहीं रखे थे, परंतु कितनी देर तक उत्तर दिशा लाल रंग में रँगी रहेगी। कुछ ही देर में वहाँ भी बादल छा गए।
प्रश्न 4.
कवि कीचड़ का वर्णन क्यों नहीं करते हैं? वे किन-किन चीज़ों की सुंदरता का वर्णन करते हैं ?
उत्तर :
कवि कीचड़ का वर्णन नहीं करते हैं, क्योंकि कीचड़ में पैर डालने से ही शरीर के साथ-साथ मन भी गंदा अनुभव करने लगता है और कपड़े गंदे हो जाते हैं, इसलिए सभी कीचड़ से दूर रहना पसंद करते हैं।
कवि प्रकृति का चित्रण करते हैं-धरती, आकाश, जलाशयों आदि की सुंदरता का वर्णन करते हैं। उन्हें आकाश का खुलापन, धरती की हरियाली और जलाशयों का कल-कल ध्वनि करता जल अधिक आकर्षित करता है। उन्हें चारों ओर रंग बिखेरनेवाली चीजें अधिक पसंद आती हैं। इसलिए वे लोग कीचड़ का वर्णन नहीं करते हैं।
प्रश्न 5.
लेखक के अनुसार कीचड़ में कैसा सौंदर्य है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार कीचड़ में भी सौंदर्य है। कीचड़ का रंग बहुत सुंदर है। लोग पुस्तकों के गत्तों पर और घरों की दीवारों पर कीचड़ जैसे ही रंग पसंद करते हैं। कलाकारों को भी कीचड़ के रंग पसंद आते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि कीचड़ में भी सौंदर्य होता है।
प्रश्न 6.
लेखक कीचड़ देखने के लिए कहाँ जाने के लिए कह रहा है ?
उत्तर :
लेखक कहता है कि यदि कीचड़ देखने की इच्छा हो तो गंगा के किनारे या सिंधु नदी के किनारे जाना चाहिए। वहाँ कीचड़ का विशाल रूप दिखाई देगा। यदि वहाँ कीचड़ देखने से भी तृप्ति न मिले तो उसका विराट रूप देखने के लिए खंभात जाना चाहिए। वहाँ महानदी के मुख से आगे जहाँ तक भी नज़र जाए कीचड़ – ही कीचड़ देखने को मिलेगा। वहाँ कीचड़ इतना गहरा है कि उसमें पहाड़ भी डूब जाएँ।
प्रश्न 7.
कीचड़ में कौन-सा फूल और अन्न पैदा होता है ?
उत्तर :
पूर्वी क्षेत्रों में सबसे ज्यादा पैदा होनेवाली धान की फसल कीचड़ में ही होती है। हमारा राष्ट्रीय फूल कमल जो अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, वह भी कीचड़ में पैदा होता है। पंक, कीचड़ में पैदा होने के कारण उसे पंकज भी कहा जाता है।
कीचड़ का काव्य Summary in Hindi
लेखक – परिचय :
जीवन-परिचय – महात्मा गांधी के जीवन से अत्यंत प्रभावित काका कालेलकर अनूठे व्यक्तित्व के स्वामी थे। आपका जन्म महाराष्ट्र के सतारा नगर में सन् 1885 ई० में हुआ था। यह मराठी भाषी थे पर इन्हें हिंदी से विशेष लगाव था। यह महात्मा गांधी के साथ राष्ट्रभाषा प्रचार कार्य में लंबे समय तक जुड़े रहे। उस समय हिंदी के लिए ही ‘राष्ट्रभाषा’ शब्द का प्रयोग होता था। यह अनेक वर्षों तक साहित्य अकादमी में गुजराती भाषा के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते रहे। अपने जीवनकाल में इन्होंने देश-विदेश में दूर-दूर तक भ्रमण किया। यह घुमक्कड़ स्वभाव के थे। इनका देहावसान सन् 1982 में हुआ।
रचनाएँ – काका कालेलकर ने अपने जीवनकाल में लगभग 30 पुस्तकों की रचना की थी, जिनमें से प्रमुख हैं – हिमालनो प्रवास, लोकमाता (यात्रा – विवरण), स्मरण यात्रा संस्मरण, धर्मोदय (आत्मचरित), जीवननो आनंद, अवारनवार (निबंध-संग्रह)। इनकी अधिकांश पुस्तकों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है।
भाषा-शैली – काका कालेलकर मात्र घुमक्कड़ ही नहीं थे बल्कि अत्यंत उच्चकोटि के विद्वान और विचारक भी थे। उन्होंने स्वयं को केवल हिंदी के प्रचार तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि हिंदी – साहित्य को अपने लेखन से समृद्ध भी किया। यह घूमने-फिरने के शौकीन थे, इसलिए इन्होंने यात्रा – वृत्तांत के अंतर्गत हिंदी – साहित्य को देश-विदेश के लोगों का रहन-सहन, प्राकृतिक दृश्यों, स्वभावों, आदतों तथा विभिन्न समस्याओं से परिचित कराया। इनके द्वारा रचित निबंध विचारात्मक और विवरणात्मक शैली में हैं।
वर्णन में सजीवता का गुण लाने में इन्हें निपुणता प्राप्त है। तर्कपूर्ण ढंग से अपनी बात को प्रस्तुत करना इनकी लेखन शैली की विशिष्टता है। इनके चिंतन प्रधान निबंधों में भावात्मकता का पुट विद्यमान रहता है। अपनी सूक्ष्म दृष्टि से इन्होंने मानव मन में झाँकने की चेष्टा की है और किसी क्षेत्र के कण-कण को पहचानने का सफल प्रयत्न किया है। इनका लेखन कार्य अति प्रभावशाली है। सजीव और जीवंत भाषा – प्रयोग में यह सिद्धहस्त थे, इन्होंने तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग कर अपने विचारों को व्यक्त किया।
‘कीचड़ का काव्य’ निबंध में लेखक ने कीचड़ की उपयोगिता का काव्यमय भाषा – शैली में वर्णन किया है; जैसे- ” नदी के किनारे जब कीचड़ सूखकर उसके टुकड़े हो जाते हैं, तब वे कितने सुंदर दिखते हैं। ज्यादा गरमी से जब उन्हीं टुकड़ों में दरारें पड़ती हैं और वे टेढ़े हो जाते हैं, तब सुखाए हुए खोपरे जैसे दीख पड़ते हैं। ” इनके इन वर्णनों में चित्रात्मकता के भी दर्शन होते हैं।
पाठ का सार :
‘कीचड़ का काव्य’ काका कालेलकर द्वारा रचित ललित निबंध है। इस पाठ में लेखक ने कीचड़ की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए उसे श्रद्धेय बताया है। लेखक सूर्योदय का वर्णन करते हुए लिखता है कि आज सुबह पूर्व दिशा की अपेक्षा उत्तर दिशा में लालिमा थी जिसे कुछ ही देर बाद श्वेत कपास की पूनी जैसी रंगत के बादलों ने ढक दिया था। आकाश, पृथ्वी, जलाशयों का वर्णन तो सब करते हैं परंतु कीचड़ का वर्णन कोई नहीं करता है।
शायद इसलिए कि कीचड़ से स्वयं को गंदा करना किसी को भी अच्छा नहीं लगता है। लेखक को कीचड़ में भी सौंदर्य दिखाई देता है क्योंकि इसका रंग बहुत सुंदर है और लोग पुस्तकों के गत्ते पर घरों की दीवारों, कीमती कपड़ों आदि के लिए कीचड़ के जैसा रंग पसंद करते हैं। कलाकारों को भी यही रंग पसंद है पर कीचड़ का नाम लेते ही लोग नाक-भौं सिकोड़ लेते हैं।
लेखक नदी के किनारे सूखे हुए कीचड़ के टुकड़ों को सुखाए हुए खोपरों जैसा देखता है। नदी के किनारे दूर तक समतल और चिकने कीचड़ पर बगुलों और अन्य पक्षियों के पद- चिह्न लेखक को इन्हीं पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। कीचड़ जब अधिक सूखकर ठोस ज़मीन बन जाता है तो उसपर गाय, बैल, भैंस, भेड़ आदि के पद – चिह्न तथा अपने सींगों को कीचड़ से भरकर मल्ल युद्ध करनेवाले मदमस्त भैंसों के चिह्न इस दृश्य को और भी अधिक आकर्षक बना देते हैं के गंगा, सिंधु नदी के किनारे की कीचड़ से भी अधिक कीचड़ खंभात में माही नदी के मुख से आगे कीचड़ ही कीचड़ है जिसमें पहाड़ पहाड़ लुप्त हो सकते हैं।
हम लोग धान भी कीचड़ में पैदा करते हैं। कमल को पंकज भी कहते हैं जो कीचड़ से ही उत्पन्न होता है। मल से मलिनता का बोध होता है परंतु कमल में ‘मल’ शब्दांश के प्रयोग से कमल के समान मन खिल उठता है। लेखक कहता है कि यदि कवियों को ऐसे तर्क दें तो उन्हें नहीं समझाया जा सकता क्योंकि वे तो यही तर्क देंगे कि ‘वासुदेव की पूजा करते हैं परंतु वसुदेव की नहीं, हीरे कीमती होते हैं पर कोयला या पत्थर तो नहीं, मोती को गले में बाँधते हैं पर सीपी को तो नहीं।’ इसलिए वह कवियों से इस संबंध में कोई चर्चा नहीं करना चाहता।
कठिन शब्दों के अर्थ :
- पूर्व – पूर्व दिशा।
- आकर्षक – मुग्ध करनेवाला, रोचक।
- शोभा – सुंदरता।
- उत्तर – उत्तर दिशा।
- श्वेत – सफ़ेद।
- पूनी – धुनी हुई रूई की बत्ती।
- जलाशय – तालाब।
- तटस्थता – बिना भेदभाव के।
- कलाभिज्ञ – कला के जानकार।
- वार्मटोन – मटमैला रंग।
- विज्ञ – जानकार।
- खोपरे – नारियल।
- पद-चिहून – पैरों के निशान।
- अंकित – चिह्नित।
- कारवाँ – झुंड।
- पाड़े – भैंस के नर बच्चे।
- महिषकुल – भैंसों का परिवार।
- कर्दम – कीचड़।
- अल्पोक्ति – थोड़ा कहना।
- लुप्त – गायब।
- आहूलादकत्व – हर्ष का भाव।
- युक्तिशून्य – तर्क से रहित।
- वृत्ति – स्वभाव।