Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा Textbook Exercise Questions and Answers
JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा
Jharkhand Board Class 12 Political Science समकालीन विश्व में सरक्षा InText Questions and Answers
पृष्ठ 100
प्रश्न 1.
मेरी सुरक्षा के बारे में किसने फैसला लिया? कुछ नेताओं और विशेषज्ञों ने? क्या मैं अपनी सुरक्षा का फैसला नहीं कर सकती?
उत्तर:
यद्यपि व्यक्ति स्वयं अपनी सुरक्षा का फैसला कर सकता है, लेकिन यदि यह फैसला नेताओं और विशेषज्ञों द्वारा किया गया है तो हम उनके अनुभव और अनुसंधान का लाभ उठाते हुए उचित निर्णय ले सकते हैं।
प्रश्न 2.
आपने ‘शांति सेना’ के बारे में सुना होगा। क्या आपको लगता है कि ‘शांति सेना’ का होना स्वयं में एक विरोधाभासी बात है? (पृष्ठ 100 पर दिये कार्टून के आधार पर इस कथन पर टिप्पणी करें।)
उत्तर:
भारत द्वारा श्रीलंका में भेजी गई शांति सेना के बारे में हमने समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में पढ़ा है। इस कार्टून के द्वारा यह दर्शाने का प्रयत्न किया गया है कि जो सैनिक शक्ति का प्रतीक है, जिसकी कमर पर बन्दूक और युद्ध सामग्री है, वह कबूतर पर सवार है कबूतर को शांतिदूत माना जाता है लेकिन शक्ति के बल पर शान्ति स्थापित नहीं की जा सकती और यदि इसे शक्ति के बल पर स्थापित कर भी दिया गया तो वह शांति अस्थायी होगी तथा कुछ समय गुजरने के बाद वह एक नवीन संघर्ष, तनाव तथा हिंसात्मक घटनाओं को जन्म देगी।
पृष्ठ 102
प्रश्न 3.
पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ संख्या 102 पर दिये गये कार्टून का अध्ययन कीजिये इसके नीचे दिये गये दोनों प्रश्नों के उत्तर दीजिये।
(क) जब कोई नया देश परमाणु शक्ति सम्पन्न होने की दावेदारी करता है तो बड़ी ताकतें क्या रवैया अख्तियार करती हैं?
(ख) हमारे पास यह कहने के क्या आधार हैं कि परमाणविक हथियारों से लैस कुछ देशों पर तो विश्वास किया जा सकता है, परन्तु कुछ पर नहीं?
उत्तर:
(क) जब कोई नया देश परमाणु शक्ति सम्पन्न होने की दावेदारी करता है तो बड़ी ताकतें उसके प्रति शत्रुता एवं दोषारोपण का रवैया अख्तियार करती हैं। यथा- प्रथमतः वे यह कहती हैं कि इससे विश्व शान्ति एवं सुरक्षा के लिए खतरा बढ़ गया है। दूसरे, वे यह आरोप लगाती हैं कि एक नये देश के पास परमाणु शक्ति होगी तो उसके पड़ोसी भी अपनी सुरक्षा की चिन्ता की आड़ में परमाणु परीक्षण करने लगेंगे। इससे विनाशकारी शस्त्रों की बेलगाम दौड़ शुरू हो जायेगी।
तीसरे, ये बड़ी शक्तियाँ उसकी आर्थिक नाकेबंदी, व्यापारिक संबंध तोड़ने, निवेश बंद करने, परमाणु निर्माण में काम आने वाले कच्चे माल की आपूर्ति रोकने आदि के लिए कदम उठा देती हैं। चौथे, ये शक्तियाँ उस पर परमाणु विस्तार विरोधी संधियों पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डालती हैं। पांचवें, ये बड़ी शक्तियाँ उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर सत्ता को पलटने का प्रयास करती हैं।
(ख) हमारे पास यह कहने के कई आधार हैं कि परमाण्विक हथियारों से लैस कुछ देशों पर तो विश्वास किया जा सकता हैं, परन्तु कुछ पर नहीं। यथा-
- जो देश परमाणु शक्ति सम्पन्न बिरादरी के पुराने सदस्य हैं, वे कहते हैं कि यदि बड़ी शक्तियों के पास परमाणु हथियार हैं तो उनमें ‘अपरोध’ का पारस्परिक भय होगा जिसके कारण वे इन हथियारों का प्रथम प्रयोग नहीं करेंगे।
- परमाणु बिरादरी के देश परमाणुशील होने की दावेदारी करने वाले देशों पर यह दोष लगाते हैं कि वे आतंकवादियों की गतिविधियाँ रोक नहीं सकते। यदि कोई गलत व्यक्ति या सेनाध्यक्ष राष्ट्राध्यक्ष बन गया तो उसके काल में परमाणु हथियार किसी गलत व्यक्ति के हाथों में जा सकते हैं जो अपने पागलपन से पूरी मानव जाति को खतरे में डाल सकता है।
पृष्ठ 106
प्रश्न 4.
पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ संख्या 106 पर दिये गये कार्टून का अध्ययन करें। इसके नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर लिखें।
(क) अमरीका में सुरक्षा पर तो भारी-भरकम खर्च होता है जबकि शांति से जुड़े मामलों पर बहुत ही कम खर्च किया जाता है। यह कार्टून इस स्थिति पर क्या टिप्पणी करता है?
(ख) क्या हमारे देश में हालात इससे कुछ अलग हैं?
उत्तर;
(क) अमरीका विश्व का सर्वाधिक धनी देश है। वह अपनी आर्थिक शक्ति का प्रयोग सुरक्षा पैदल सेना, नौ-सेना, वायु-सेना, अस्त्र-शस्त्र, युद्ध – सामग्री, परमाणु शक्ति विस्तार, युद्ध सम्बन्धी प्रयोगशालाओं में प्रयोग व अनुसंधान पर तो भारी मात्रा में खर्च करता है, लेकिन शांति विभाग पर धन व्यय करने को धन की बर्बादी मानता है। अमेरिकी सन्दर्भ में यह उचित ही प्रतीत होता है क्योंकि वहाँ नागरिक समस्यायें कम हैं और देश की जनता आत्मनिर्भर है।
(ख) हमारे देश (भारत) में अमेरिका की तुलना में स्थिति भिन्न है। भारत एक विकासशील देश है। यहाँ गरीबी बहुत है, बेरोजगारी बढ़ रही है। इसलिए अमरीका की तुलना में भारत में सुरक्षा पर बहुत कम प्रतिशत व्यय होता है । यहाँ की सरकार आदिवासियों, पिछड़ी जातियों, वृद्धों, महिलाओं, वंचितों, किसानों, शिक्षा, स्वास्थ्य, औद्योगिक विकास आदि के लिए अपेक्षाकृत अधिक प्रयत्नशील है। इसके बावजूद भारत को बहुत-सी धनराशि सुरक्षा पर भी खर्च करनी पड़ रही है।
पृष्ठ 108
प्रश्न 5.
मानवाधिकारों के उल्लंघन की बात हो तो हम हमेशा बाहर क्यों देखते हैं? क्या हमारे अपने देश में इसके उदाहरण नहीं मिलते?
उत्तर:
1990 के दशक में रवांडा में जनसंहार, कुवैत पर इराक का हमला, पूर्वी तिमोर में इंडोनेशियाई सेना के रक्तपात इत्यादि घटनाओं पर तो हमने मानवाधिकारों के उल्लंघन की दुहाई दे डाली, लेकिन अपने देश में घटित हुए मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों पर हमने चुप्पी साध ली। इसका प्रमुख कारण मानव की यह प्रवृत्ति है कि वह दूसरों की बुराई को तलाशने में आनंद की अनुभूति करती है, जबकि अपनी गलत बात को छुपाती है या वह इसे दूसरों के समक्ष सही बताने की कोशिश करती है। हमारे देश में भी मानवाधिकार के उल्लंघन के मामले देखे जा सकते हैं जो समय-समय पर समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहे हैं।
Jharkhand Board Class 12 Political Science समकालीन विश्व में सरक्षा Text Book Questions and Answers
प्रश्न 1.
निम्नलिखित पदों को उनके अर्थ से मिलाएँ-
(1) विश्वास बहाली के उपाय (कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेजर्स CBMs) | (क) कुछ खास हथियारों के इस्तेमाल से परहेज। |
(2) अस्त्र नियंत्रण | (ख) राष्ट्रों के बीच सुरक्षा – मामलों पर सूचनाओं के आदान-प्रदान की नियमित प्रक्रिया। |
(3) गठबंधन | (ग) सैन्य हमले की स्थिति से निबटने अथवा उसके अपरोध के लिये कुछ राष्ट्रों का आपस में मेल करना। |
(4) निरस्त्रीकरण | (घ) हथियारों के निर्माण अथवा उनको हासिल करने पर अंकुश। |
उत्तर:
(1) विश्वास बहाली के उपाय (कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेजर्स CBMs) | (ख) राष्ट्रों के बीच सुरक्षा – मामलों पर सूचनाओं के आदान-प्रदान की नियमित प्रक्रिया। |
(2) अस्त्र नियंत्रण | (घ) हथियारों के निर्माण अथवा उनको हासिल करने पर अंकुश। |
(3) गठबंधन | (ग) सैन्य हमले की स्थिति से निबटने अथवा उसके अपरोध के लिये कुछ राष्ट्रों का आपस में मेल करना। |
(4) निरस्त्रीकरण | (क) कुछ खास हथियारों के इस्तेमाल से परहेज। |
प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से किसको आप सुरक्षा का परंपरागत सरोकार / सुरक्षा का अपारंपरिक सरोकार / खतरे की स्थिति नहीं का दर्जा देंगे-
(क) चिकेनगुनिया / डेंगू बुखार का प्रसार
(ख) पड़ोसी देश से कामगारों की आमद
(ग) पड़ोसी राज्य से कामगारों की आमद
(घ) अपने इलाके को राष्ट्र बनाने की माँग करने वाले समूह का उदय
(ङ) अपने इलाके को अधिक स्वायत्तता दिये जाने की माँग करने वाले समूह का उदय (च) देश की सशस्त्र सेना को आलोचनात्मक नजर से देखने वाला अखबार।
उत्तर:
(क) सुरक्षा का अपारम्परिक सरोकार
(ख) सुरक्षा का पारम्परिक सरोकार
(ग) खतरे की स्थिति नहीं
(घ) सुरक्षा का पारम्परिक सरोकार
(ङ) ख़तरे की स्थिति नहीं
(च) खतरे की स्थिति नहीं।
प्रश्न 3.
परम्परागत और अपारंपरिक सुरक्षा में क्या अंतर है? गठबंधनों का निर्माण करना और उनको बनाये रखना इनमें से किस कोटि में आता है?
उत्तर:
परम्परागत और अपारम्परिक सुरक्षा में निम्नलिखित अन्तर हैं
पारंपरिक सुरक्षा की धारणा | अपारंपरिक सुरक्षा की धारणा |
1. पारंपरिक धारणा का संबंध बाहरी तथा आंतरिक रूप से मुख्यतः राष्ट्र की सुरक्षा से है। | 1. सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा में राष्ट्र की सुरक्षा के साथ-साथ मानवीय अस्तित्व पर चोट करने वाले अन्य व्यापक खतरों और आशंकाओं को भी शामिल किया जाता है। |
2. सुरक्षा की पारंपरिक धारणा में सैन्य खतरे को किसी देश के लिये सबसे ज्यादा खतरनाक समझा जाता है। इसमें भू-क्षेत्रों, संस्थाओं और राज्यों की सुरक्षा प्रमुख होती है। | 2. सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा में सैन्य खतरों के साथसाथ मानवता की सुरक्षा तथा वैश्विक सुरक्षा पर भी बल दिया जाता है। |
3. इसमें बाहरी सुरक्षा के खतरे का स्रोत कोई दूसरा देश (मुल्क) होता है। | 3. इसमें सुरक्षा के खतरे का स्रोत विदेशी राष्ट्र के साथसाथ कोई अन्य भी हो सकता है। |
4. परम्परागत सुरक्षा में एक देश की सेना व नागरिकों को दूसरे देश की सेना से खतरा होता है। | 4. अपारम्परिक सुरक्षा में देश के नागरिकों को विदेशी सेना के साथ-साथ अपने देश की सरकारों से भी बचाना आवश्यक होता है। |
5. पारम्परिक सुरक्षा का सरोकार बाहरी खतरे या आक्रमण से निपटने के लिए युद्ध की स्थिति में आत्मसमर्पण, अपरोध या आक्रमणकारी को युद्ध में हराने के विकल्पों को अपनाने से है। | 5. अपारंपरिक सुरक्षा का सरोकार सुरक्षा के कई नये स्रोत हैं, जैसे—आतंकवाद, भयंकर महामारियों और मानव अधिकारों पर चिंताजनक प्रहारों से जनता की क्षा करना। |
गठबंधन का निर्माण और सुरक्षा कोटि- सैनिक गठबन्धनों का निर्माण करना तथा उन्हें बनाए रखना पारम्परिक सुरक्षा की कोटि में आता है। यह सैन्य सुरक्षा का एक साधन है।
प्रश्न 4.
तीसरी दुनिया के देशों और विकसित देशों की जनता के सामने मौजूद खतरों में क्या अंतर है?
उत्तर:
तीसरी दुनिया के देशों और विकसित देशों की जनता के सामने मौजूद खतरों में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित
- जहाँ विकसित देशों के लोगों को केवल बाहरी खतरे की आशंका रहती है, किंतु तीसरी दुनिया के देशों को आंतरिक व बाहरी दोनों प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ता है।
- तीसरी दुनिया के लोगों को पर्यावरण असंतुलन के कारण विकसित देशों की जनता के मुकाबले अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- आतंकवाद की घटनाएँ तीसरी दुनिया के देशों में अपेक्षाकृत अधिक हुई हैं।
- तीसरी दुनिया के देशों में मानवाधिकारों के उल्लंघन के रूप में मानवीय सुरक्षा को अधिक खतरा
- तीसरी दुनिया के देशों के लोगों को निर्धनता और कुपोषण का शिकार होना पड़ रहा है जबकि विकसित देशों के लोगों के समक्ष ये समस्याएँ नगण्य हैं।
- शरणार्थियों या आप्रवासियों की समस्या की चुनौती भी तीसरी दुनिया के देशों में अधिक है।
- एच. आई. वी., एड्स, बर्ड फ्लू और सार्स जैसी महामारियों की दृष्टि से भी तीसरी दुनिया के लोगों की स्थिति विकसित देशों के लोगों की तुलना में अत्यन्त दयनीय है।
- प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से भी तीसरी दुनिया के लोगों की जनहानि विकसित देशों के लोगों की तुलना में बहुत अधिक हो रही है।
प्रश्न 5.
आतंकवाद सुरक्षा के लिये परम्परागत खतरे की श्रेणी में आता है या अपरम्परागत?
उत्तर:
आतंकवाद, सुरक्षा के लिए अपरम्परागत खतरे की श्रेणी में आता है। चूँकि यह नई छिपी हुई चुनौती है। इसका सामना परम्परागत सैन्य तरीके से नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि वर्तमान में आतंकवादी घटनाओं से निपटने के लिए विश्व के राष्ट्र वैश्विक स्तर पर आपसी सहयोग का प्रयास कर रहे हैं।
प्रश्न 6.
सुरक्षा के परम्परागत दृष्टिकोण के हिसाब से बताएँ कि अगर किसी राष्ट्र पर खतरा मंडरा रहा हो तो उसके सामने क्या विकल्प होते हैं?
उत्तर:
सुरक्षा के परम्परागत दृष्टिकोण के हिसाब से किसी राष्ट्र पर खतरा मंडरा रहा हो तो उसके सामने तीन विकल्प होते हैं- आये।
- आत्मसमर्पण करना तथा दूसरे पक्ष की बात को बिना युद्ध किये मान लेना।
- युद्ध से होने वाले नाश को इस हद तक बढ़ाने के संकेत देना कि दूसरा पक्ष सहम कर हमला करने से बाज
- युद्ध ठन जाये तो अपनी रक्षा करना ताकि हमलावर देश अपने मकसद में कामयाब न हो सके और पीछे हट जाये अथवा हमलावर को पराजित कर देना।
प्रश्न 7.
‘शक्ति संतुलन’ क्या है? कोई देश इसे कैसे कायम करता है?
उत्तर:
शक्ति संतुलन का अर्थ:
शक्ति संतुलन का अर्थ है कि किसी भी देश को इतना सबल नहीं बनने दिया जाये कि वह दूसरों की सुरक्षा के लिए खतरा बन जाये शक्ति संतुलन के अन्तर्गत विभिन्न राष्ट्र अपने आपसी शक्ति सम्बन्धों को बिना किसी बड़ी शक्ति के हस्तक्षेप के स्वतन्त्रतापूर्वक संचालित करते हैं।
शक्ति संतुलन को बनाये रखने वाले साधन: शक्ति संतुलन को बनाये रखने वाले साधन निम्नलिखित हैं-
- मुआवजा या क्षतिपूर्ति: साधारणतया इसका अर्थ उस देश की भूमि को बाँटने से लिया जाता है जो शक्ति संतुलन के लिये खतरा होती है।
- हस्तक्षेप तथा अहस्तक्षेप: हस्तक्षेप राज्य या राज्यों के आंतरिक मामलों में तानाशाही दखलंदाजी होती है तथा उसमें अहस्तक्षेप, किसी विशिष्ट परिस्थिति में जानबूझकर कार्यवाही न करना ये दोनों शक्ति संतुलन को बनाये रखने के साधन हैं।
- गठबंधन बनाना: शक्ति संतुलन का एक अन्य तरीका सैन्य गठबंधन बनाना है। कोई देश दूसरे देश या देशों के साथ सैन्य गठबंधन कर अपनी शक्ति को बढ़ा लेते हैं। इससे क्षेत्र विशेष में शक्ति सन्तुलन बना रहता है।
- शस्त्रीकरण तथा निःशस्त्रीकरण – आज सभी राष्ट्र अपने शक्ति सम्बन्धों को बनाये रखने के लिये साधन के रूप में सैनिक शस्त्रीकरण को बड़ा महत्त्व देते हैं। वर्तमान में यह विश्व शांति तथा सुरक्षा अर्थात् संतुलन के लिये सबसे बड़ा और गम्भीर खतरा बन चुका है। इसके परिणामस्वरूप आज शस्त्रीकरण को छोड़कर निःशस्त्रीकरण पर बल दिया जाने लगा है।
प्रश्न 8.
सैन्य गठबन्धन के क्या उद्देश्य होते हैं? किसी ऐसे सैन्य गठबन्धन का नाम बताएँ जो अभी मौजूद है। इस गठबन्धन के उद्देश्य भी बताएँ।
उत्तर:
सैन्य गठबन्धन का उद्देश्य – सैन्य गठबंधन का उद्देश्य विरोधी देश के सैन्य हमले को रोकना अथवा उससे अपनी रक्षा करना होता है। सैन्य गठबन्धन में कई देश शामिल होते हैं। सैन्य गठबंधन बनाकर एक विशेष क्षेत्र में शक्ति संतुलन बनाये रखने का प्रयास किया जाता है। सामान्यतः सैन्य गठबन्धन संधि पर आधारित होते हैं जिसमें इस बात का लिखित में उल्लेख होता है कि एक राष्ट्र पर आक्रमण अन्य सदस्य राष्ट्रों पर भी आक्रमण समझा जायेगा।
विद्यमान सैन्य गठबंधन – नाटो – वर्तमान समय में ‘नाटो’ (North Atlantic Treaty Organization) अर्थात् उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) नाम का सैन्य गठबंधन कायम है। नाटो के मुख्य उद्देश्य निम्न हैं।
- संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में सभी अमेरिकी और पश्चिमी यूरोपीय देशों की सामूहिक सैन्य सुरक्षा को बनाये रखना।
- नाटो के एक सदस्य पर आक्रमण सभी पर आक्रमण समझा जाएगा और सभी मिलकर सैन्य प्रतिरोध करेंगे।
- पश्चिमी देशों के सैन्य वैचारिक, सांस्कृतिक और आर्थिक वर्चस्व को बनाये रखना।
- सदस्यों में आर्थिक सहयोग को बढ़ाना तथा उसके विवादों का शांतिपूर्ण समाधान करना।
प्रश्न 9.
पर्यावरण के तेजी से हो रहे नुकसान से देशों की सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? उदाहरण देते हुए अपने तर्कों की पुष्टि करें।
उत्तर:
विश्व स्तर पर पर्यावरण तेजी से खराब हो रहा है। पर्यावरण खराब होने से निस्संदेह मानव जाति को खतरा उत्पन्न हो गया है। वैश्विक पर्यावरण के नुकसान से देशों की सुरक्षा को निम्न खतरे पैदा हो रहे हैं।
- ग्लोबल वार्मिंग से हिमखण्ड पिघलने लगे हैं, जिसके कारण मालद्वीप तथा बांग्लादेश जैसे देश तथा भारत के मुम्बई जैसे शहरों के पानी में डूबने की आशंका पैदा हो गई है।
- पर्यावरण खराब होने से तथा धरती के ऊपर वायुमण्डल में ओजोन गैस की कमी होने से वातावरण में कई तरह की बीमारियाँ फैल गई हैं, जिसके कारण व्यक्तियों के स्वास्थ्य में गिरावट आ रही है।
- कृषि योग्य भूमि, जलस्रोत तथा वायुमण्डल के प्रदूषण से खाद्य उत्पादन में तथा यह मानव स्वास्थ्य के लिए घातक है। विकासशील देशों में स्वच्छ जल की उपलब्धता में कमी आई है। उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि पर्यावरण के तेजी से हो रहे नुकसान से देशों की सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हो गया है।
प्रश्न 10.
देशों के सामने फिलहाल जो खतरे मौजूद हैं उनमें परमाण्विक हथियार का सुरक्षा अथवा अपरोध के लिये बड़ा सीमित उपयोग रह गया है। इस कथन का विस्तार करें।
उत्तर:
विश्व में जिन देशों ने परमाणु हथियार प्राप्त कर रखे हैं, उनका यह तर्क है कि उन्होंने शत्रु देश के आक्रमण से बचने तथा शक्ति संतुलन कायम रखने के लिये इनका निर्माण किया है, परन्तु वर्तमान समय में इन हथियारों के होते हुये भी एक देश की सुरक्षा की पूर्ण गारंटी नहीं दी जा सकती। उदाहरण के लिये आतंकवाद तथा पर्यावरण के खराब होने से वातावरण में जो बीमारियाँ फैल रही हैं, उन पर परमाणु हथियारों के उपयोग का कोई औचित्य नहीं है। इसीलिये यह कहा जाता है कि वर्तमान समय में जो ख़तरे उत्पन्न हुये हैं, उनमें परमाण्विक हथियार का सुरक्षा अथवा अपरोध के लिये बड़ा सीमित उपयोग रह गया है।
प्रश्न 11.
भारतीय परिदृश्य को ध्यान में रखते हुये किस किस्म की सुरक्षा को वरीयता दी जानी चाहिये- पारंपरिक या अपारंपरिक ? अपने तर्क की पुष्टि में आप कौन-से उदाहरण देंगे?
उत्तर:
भारतीय परिदृश्य को ध्यान में रखते हुये भारत को पारम्परिक एवं अपारम्परिक दोनों प्रकार की सुरक्षा को वरीयता देनी चाहिये। क्योंकि भारत सैनिक दृष्टि से भी सुरक्षित नहीं है एवं अपारम्परिक ढंग से भी सुरक्षित नहीं है। भारत के दो पड़ौसी देशों पाकिस्तान और चीन के पास परमाणु हथियार हैं तथा उन्होंने भारत पर आक्रमण भी किया है। चीन की सैन्य क्षमता भारत से अधिक है। इसके साथ ही भारत के कई क्षेत्रों, जैसे- कश्मीर, नागालैंड, असम आदि में अलगाववादी हिंसक गुट तथा कुछ क्षेत्रों में नक्सलवादी समूह सक्रिय हैं।
अतः भारत को पारम्परिक सुरक्षा को वरीयता देना आवश्यक है। इसके साथ-साथ अपारम्परिक सुरक्षा की दृष्टि से भारत में कई समस्याएँ हैं, जिसके कारण भारत को अपारम्परिक सुरक्षा को भी वरीयता देनी चाहिये । उदाहरण के लिए भारत में आतंकवाद का निरन्तर विस्तार हो रहा है; एड्स जैसी महामारी बढ़ रही है; मानवाधिकारों का उल्लंधन हो रहा है; धार्मिक और जातीय संघर्ष की स्थिति बनी रहती है तथा निर्धनता जनित समस्याएँ बढ़ रही हैं। इसलिए भारत को पारम्परिक और अपारम्परिक दोनों ही सुरक्षा साधनों पर ध्यान देना चाहिए।
प्रश्न 12.
पाठ्यपुस्तक में पृष्ठ संख्या 116 में दिए गए कार्टून को समझें। कार्टून में युद्ध और आतंकवाद का जो संबंध दिखाया गया है उसके पक्ष या विपक्ष में एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
इस कार्टून में यह बताया गया है कि आजकल युद्ध और आतंकवाद में गहरा सम्बन्ध है। पिछले कुछ वर्षों में जो युद्ध लड़े गये हैं, उनका प्रमुख कारण आतंकवाद ही था। उदाहरण के लिए 2001 में आतंकवाद के कारण ही अमेरिका ने अफगानिस्तान में युद्ध लड़ा। दिसम्बर, 2001 में आतंकवाद के कारण ही भारत और पाकिस्तान में युद्ध की स्थिति बन गयी थी। युद्ध और आतंकवाद के गहरे सम्बन्ध को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है। युद्ध की जड़ में एक अहम कारण आतंकवाद है जो मानव सुरक्षा के लिए एक नया सरोकार बनाए हुए है। युद्ध के पक्षधर देश यह मानते हैं कि आतंकवाद को कुचलने के लिए सभी राष्ट्र एक हो जाएँ और वे तब तक युद्ध का मोर्चा खोले रहें जब तक आतंकवाद समाप्त नहीं हो जाता।
समकालीन विश्व में सरक्षा JAC Class 12 Political Science Notes
→ सुरक्षा क्या है?
सुरक्षा का बुनियादी अर्थ है खतरे से आजादी। सुरक्षा का सम्बन्ध बड़े गंभीर खतरों से है; ऐसे खतरे जिनको रोकने के उपाय न किये गये तो हमारे केन्द्रीय मूल्यों को अपूरणीय क्षति पहुँचेगी। फिर भी विभिन्न कालों तथा समाजों में सुरक्षा की धारणाओं में अन्तर रहा है। अतः सुरक्षा एक विवादग्रस्त धारणा है। सुरक्षा की विभिन्न धारणाओं को मोटे रूप से दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। ये वर्ग हैं।
(अ) सुरक्षा की पारंपरिक धारणा और
(ब) सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा। यथा
(अ) सुरक्षा की पारंपरिक धारणा – इसके दो रूप हैं।
(क) बाह्य सुरक्षा
(ख) आंतरिक सुरक्षा। यथा
(क) बाहरी सुरक्षा: बाहरी सुरक्षा की पारंपरिक धारणा से आशय राष्ट्रीय सुरक्षा की धारणा से है। इसमें सैन्य खतरे को किसी देश के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है। इस खतरे का स्रोत कोई दूसरा देश होता है जो सैन्य हमले की धमकी देकर संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता जैसे किसी देश के केन्द्रीय मूल्यों के लिए खतरा पैदा करता है। सैन्य कार्यवाही से जन-धन की भी अपार हानि होती है। बाह्य सुरक्षा की पारंपरिक नीतियाँ निम्नलिखित हैं।
→ आत्मसमर्पण: आत्मसमर्पण करना तथा दूसरे पक्ष की बात को बिना युद्ध किए मान लेना।
→ अपरोध तथा सुरक्षा नीति: सुरक्षा नीति का सम्बन्ध समर्पण करने से ही नहीं है, बल्कि इसका सम्बन्ध युद्ध की आशंका को रोकने से भी है, जिसे ‘अपरोध’ कहते हैं। युद्ध से होने वाले नाश को इस हद तक बढ़ाने के संकेत देना कि दूसरा पक्ष सहम कर हमला करने से रुक जाये।
→ रक्षा: युद्ध ठन जाये तो अपनी रक्षा करना ताकि हमलावर देश अपने मकसद में कामयाब न हो सके या पीछे हट जाए अथवा हमलावर को पराजित कर देना। इस प्रकार युद्ध को सीमित रखने अथवा उसको समाप्त करने का सम्बन्ध अपनी रक्षा करने से है।
→ शक्ति सन्तुलन: परम्परागत सुरक्षा नीति का एक अन्य रूप शक्ति सन्तुलन है। प्रत्येक देश की सरकार दूसरे देश से अपने शक्ति – सन्तुलन को लेकर बहुत संवेदनशील रहती है। प्रत्येक देश दूसरे देशों से शक्ति सन्तुलन का पलड़ा अपने पक्ष में बैठाने के लिए जी-तोड़ कोशिश करता है। शक्ति सन्तुलन बनाये रखने की यह कवायद ज्यादातर अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने की होती है, लेकिन आर्थिक और प्रौद्योगिकी की ताकत भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि सैन्य शक्ति का यही आधार है।
→ गठबंधन बनाना: पारंपरिक सुरक्षा नीति का चौथा तत्त्व है। गठबंधन बनाना गठबंधन में कई देश शामिल होते हैं और सैन्य हमले को रोकने अथवा उससे रक्षा करने के लिए समवेत कदम उठाते हैं। अधिकांश गठबंधनों को लिखित संधि से एक औपचारिक रूप मिलता है। गठबंधन राष्ट्रीय हितों पर आधारित होते हैं और राष्ट्रीय हितों के बदलने पर गठबंधन भी बदल जाते हैं। बाह्य – सुरक्षा की परम्परागत धारणा में किसी देश की सुरक्षा को ज्यादातर खतरा उसकी सीमा के बाहर से होता है। विश्व राजनीति में हर देश को अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी स्वयं उठानी होती है।
(ख) आन्तरिक सुरक्षा:
सुरक्षा की परम्परागत धारणा का दूसरा रूप आन्तरिक सुरक्षा का है। दूसरे विश्व युद्ध के से सुरक्षा के इस पहलू पर ज्यादा जोर नहीं दिया गया था क्योंकि दुनिया के अधिकांश ताकतवर देश अपनी अंदरूनी सुरक्षा के प्रति कमोबेश आश्वस्त थे। शीत युद्ध के दौर में दोनों गुटों के आमने-सामने होने से इन राष्ट्रों में बाह्य सुरक्षा का ही भय था या अपने उपनिवेशों को स्वतंत्रता देने की समस्या थी। लेकिन 1940-50 के दशकों में एशिया और अफ्रीका के नये स्वतंत्र हुए देशों के समक्ष दोनों प्रकार की सुरक्षा की चुनौतियाँ थीं
- एक तो इन्हें अपने पड़ौसी देशों से सैन्य हमले की आशंका थी।
- दूसरे, इन्हें आंतरिक सैन्य संघर्ष की भी चिन्ता करनी थी।
इसलिए इन देशों को सीमा पार के पड़ौसी देशों से खतरा था, तो भीतर से भी खतरे की आशंका थी। इन दोनों में मुख्य समस्या अलगाववादी आंदोलनों की थी, जो गृह-युद्धों का रूप ले रहे थे। इस प्रकार पड़ौसी देशों से युद्ध और आंतरिक संघर्ष नव स्वतंत्र देशों के सामने सुरक्षा की सबसे बड़ी चुनौती थे।
→ सुरक्षा के पारंपरिक तरीके-
सुरक्षा की परंपरागत धारणा में स्वीकार किया जाता है कि हिंसा का प्रयोग यथासंभव सीमित होना चाहिए अर्थात् युद्ध स्वयं अथवा दूसरों को जनसंहार से बचाने के लिए ही करना चाहिए तथा युद्ध के साधनों का भी सीमित प्रयोग करना चाहिए संघर्ष विमुख शत्रु, निहत्थे व्यक्ति तथा आत्मसमर्पण करने वाले शत्रु पर बल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही बल प्रयोग तभी किया जायें जब शेष सभी उपाय विफल हो गये हों। सुरक्षा के पारंपरिक तरीके इस संभावना पर आधारित हैं कि देशों के बीच एक न एक रूप में सहयोग हैं।
→ सुरक्षा के ये तरीके निम्नलिखित हैं।
- निरस्त्रीकरण: इसका आशय यह है कि सभी राज्य कुछ खास किस्म के हथियारों से बाज आएँ। 1972 की जैविक हथियार संधि, 1992 की रासायनिक हथियार संधि इसी का उदाहरण हैं। लेकिन महाशक्तियाँ परमाणविक हथियार का विकल्प नहीं छोड़ना चाहती थीं इसलिए दोनों ने अस्त्र – नियंत्रण का सहारा लिया।
- अस्त्र नियंत्रण: इसके अन्तर्गत हथियारों को विकसित करने अथवा उनको हासिल करने के सम्बन्ध में कुछ कायदे-कानूनों का पालन करना पड़ता है। अमरीका और सोवियत संघ ने अस्त्र – नियंत्रण की कई संधियों पर हस्ताक्षर किये हैं। इनमें
- एंटी बैलेस्टिक मिसाइल संधि (ABM) 1972,
- साल्ट-2 (SALT-II),
- स्टार्ट (START) प्रमुख हैं। परमाणु अप्रसार संधि (NPT) 1968 भी एक अर्थ में अस्त्र – नियंत्रण संधि ही है।
- विश्वास बहाली के उपाय; विश्वास बहाली की प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि प्रतिद्वन्द्वी देश किसी गलतफहमी या गफलत में पड़कर जंग के लिए आमादा न हो जाएँ। इस हेतु सैन्य टकराव और प्रतिद्वन्द्विता वाले देश को सूचनाओं और विचारों के नियमित आदान-प्रदान करना, एक हद तक अपनी सैन्य योजनाओं के बारे में बताना तथा अपने सैन्य बलों के बारे में सूचनाएँ देकर परस्पर विश्वास बहाली का प्रयास करते हैं।
(ब) सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा- सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा सिर्फ सैन्य खतरों से संबद्ध नहीं है। इसमें मानवीय अस्तित्व पर चोट करने वाले व्यापक खतरों और आशंकाओं को शामिल किया जाता है। इसमें राज्य के साथ- साथ व्यक्तियों, समुदायों तथा समूची मानवता की सुरक्षा को आवश्यक बताया गया है। इसी कारण सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा को ‘मानवता की सुरक्षा’ अथवा ‘विश्व- सुरक्षा’ कहा जाता है।
1. मानवता की सुरक्षा:
मानवता की सुरक्षा का विचार राज्य की सुरक्षा से व्यापक है। इसका प्राथमिक लक्ष्य व्यक्तियों की संरक्षा है। मानवता की सुरक्षा का संकीर्ण अर्थ लेने वाले पैरोकारों का जोर व्यक्तियों को हिंसक खतरों यानी खून खराबे से बचाने पर होता है। मानवता की सुरक्षा के व्यापक अर्थ में युद्ध, जन-संहार और आतंकवाद आदि हिंसक खतरों के साथ-साथ अकाल, महामारी और आपदाएँ भी शामिल हैं। मानवता की सुरक्षा के व्यापकतम अर्थ में आर्थिक सुरक्षा और मानवीय गरिमा की सुरक्षा को भी शामिल किया जाता है। इसमें जोर ‘अभाव से मुक्ति’ और ‘भय से मुक्ति’ पर जोर दिया जाता है।
2. विश्व सुरक्षा: वैश्विक ताम वृद्धि, अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, एड्स तथा बर्ड फ्लू जैसी समस्याओं व महामारियों के मद्देनजरु 1990 के दशक में विश्व – सुरक्षा की धारणा उभरी। चूंकि इन समस्याओं की प्रकृति वैश्विक है, इसलिए इनके समाधान के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग अति आवश्यक है।
→ खतरे के नये स्त्रोत
सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा के दोनों पक्ष:
- मानवता की सुरक्षा और
- विश्व सुरक्षा सुरक्षा के संबंध में खतरों की बदलती प्रकृति पर बल देते हैं। ये खतरे हैं-
- आतंकवाद
- मानवाधिकारों का उल्लंघन,
- निर्धनता,
- असमानता,
- शरणार्थी समस्या,
- एड्स, बर्ड फ्लू और सार्स जैसी महामारियाँ,
- एबोला वायरस, हैण्टावायरस और हैपेटाइटिस, टीबी, मलेरिया, डेंगू बुखार तथा हैजा जैसी पुरानी महामारियाँ।
सुरक्षा का मुद्दा: किसी मुद्दे को सुरक्षा का मुद्दा कहलाने के लिए एक सर्वस्वीकृत न्यूनतम मानक पर खरा उतरना आवश्यक है। जैसे- अगर किसी मुद्दे से राज्य या जनसमूह के अस्तित्व को खतरा हो रहा हो तो उसे सुरक्षा का मामला कहा जा सकता है, चाहे इस खतरे की प्रकृति कुछ भी हो।
→ सहयोगमूलक सुरक्षा
सुरक्षा पर मंडराते अनेक अपारंपरिक खतरों से निपटने के लिए आपसी सहयोग की आवश्यकता है।
- विभिन्न देशों के बीच सहयोग: यह सहयोग द्विपक्षीय, क्षेत्रीय, महादेशीय या वैश्विक स्तर का हो सकता है। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि खतरे की प्रकृति क्या है ?
- संस्थागत सहयोग: सहयोगात्मक सुरक्षा में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की संस्थाएँ, जैसे अन्तर्राष्ट्रीय संगठन, स्वयंसेवी संगठन, व्यावसायिक संगठन, निगम तथा जानी-मानी हस्तियाँ शामिल हो सकती हैं।
- बल प्रयोग: सहयोगमूलक सुरक्षा में अन्तिम उपाय के रूप में बल-प्रयोग किया जा सकता है; लेकिन यह बल प्रयोग सामूहिक स्वीकृति से तथा सामूहिक रूप में होना चाहिए।
→ भारत की सुरक्षा रणनीतियाँ
भारत को पारंपरिक (सैन्य) और अपारंपरिक खतरों का सामना करना पड़ा है। ये खतरे सीमा के अन्दर से भी हैं। और बाहर से भी। भारत की सुरक्षा नीति के चार प्रमुख घटक हैं। यथा-
- सैन्य क्षमता को मजबूत करना: भारत-पाक युद्ध, भारत-चीन युद्ध तथा दोनों देशों के साथ चलते सीमा विवाद तथा भारत के चारों तरफ परमाणु हथियारों से लैस देशों के होने के कारण भारत ने
- अपनी सैन्य क्षमता को मजबूत करने के लिए 1974 तथा फिर 1998 में परमाणु परीक्षण करने के फैसले किये।
- अन्तर्राष्ट्रीय कायदों और संस्थाओं को मजबूत करना: भारत ने अपने सुरक्षा हितों को बचाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय कायदों और संस्थाओं को मजबूत करने की नीति अपनायी । एशियाई एकता, उपनिवेशीकरण का विरोध, निरस्त्रीकरण, संयुक्त राष्ट्र संघ में विश्वास, गुट निरपेक्षता, परमाणु अप्रसार की भेदभाव भरी संधियों का विरोध करना, क्योटो प्रोटोकाल पर हस्ताक्षर आदि ऐसे ही कार्य हैं।
- देश की आंतरिक सुरक्षा: समस्याओं से निपटना – भारत की तीसरी सुरक्षा रणनीति देश की आंतरिक सुरक्षा – समस्याओं से निपटने की तैयारी से संबंधित है। नागालैंड, मिजोरम, पंजाब तथा कश्मीर के उग्रवादी समूहों से निपटना, राष्ट्रीय एकता को बनाए रखना, लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था को अपनाना आदि बातें इसके अन्तर्गत आती हैं।
- आर्थिक विकास की रणनीति: भारत ने गरीबी और अभाव से निजात दिलाने के लिए आर्थिक विकास की रणनीति भी अपनायी है।