Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना
Jharkhand Board Class 12 Political Science कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना InText Questions and Answers
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प्रश्न 1.
फ्रांस और कनाडा में ऐसी सूरत कायम हो, तो वहाँ कोई भी लोकतंत्र के असफल होने अथवा देश के टूटने की बात नहीं कहता। हम ही आखिर लगातार इतने शक में क्यों पड़े रहते हैं?
उत्तर:
फ्रांस में लोकतंत्र 1792 में स्थापित हुआ जबकि कनाडा एक संवैधानिक राजतंत्र है, जिसमें सम्राट राज्य का प्रमुख होता है। कनाडा एक संवैधानिक राजतंत्र 1867 में बना। भारत 1947 में आजाद हुआ और उसी समय भारत में लोकतंत्र कायम हुआ। भारत में नया नया लोकतंत्र कायम हुआ था इसलिए इतनी विविधताओं वाले देश में लोकतंत्र के असफल होने या देश के टूटने का शक लगातार लगा रहता है।
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प्रश्न 2.
इन्दिरा गाँधी के लिए स्थितियाँ सचमुच कठिन रही होंगी-पुरुषों के दबदबे वाले क्षेत्र में आखिर वे अकेली महिला थीं। ऊँचे पदों पर अपने देश में ज्यादा महिलाएँ क्यों नहीं हैं?
उत्तर:
श्रीमती इन्दिरा गाँधी भारत की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री बनीं लेकिन प्रारम्भिक काल में उनको सिण्डीकेट और प्रभावशाली वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं द्वारा अनेक चुनौतियाँ मिलीं, लेकिन पारिवारिक राजनीतिक विरासत और पर्याप्त राजनीतिक अनुभव के कारण उनको एक सामान्य महिला की अपेक्षा कम कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लेकिन भारत में ज्यादातर महिलाओं के समक्ष अनेक ऐसी चुनौतियाँ एवं समस्याएँ हैं जिनके कारण वे ऊँचे पदों पर नहीं आ पातीं। इनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं-
- भारतीय समाज पुरुष-प्रधान है। अधिकांश कानून पुरुषों द्वारा बनाए गए और महिलाओं को समाज में गैर- बराबरी का दर्जा दिया गया।
- लड़कों की तुलना में उनके जन्म और पालन-पोषण में नकारात्मक भेद-भाव किया जाता था।
- सती-प्रथा, बहुपत्नी विवाह, दहेज प्रथा, पर्दा प्रथा, कन्या वध या भ्रूण हत्या, विधवा विवाह की मनाही, अशिक्षा आदि ने नारियों को समाज में पछाड़े रखा।
- भारत में पुरुषों की संकीर्ण मानसिकता के कारण वे महिलाओं को सरकारी नौकरियाँ विशेषकर ऊँचे पदों पर नहीं देखना चाहते।
- शिक्षा के प्रचार- प्रसार, नारी जागृति तथा नारी सशक्तीकरण के कारण अब धीरे-धीरे देश के उच्च पदों पर महिलाएँ कार्य कर रही हैं, लेकिन अभी भी उनकी संख्या काफी कम है।
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प्रश्न 3.
क्या आज गैर-कांग्रेसवाद प्रासंगिक है? क्या मौजूदा पश्चिम बंगाल में वाममोर्चा के खिलाफ ऐसा ही तरीका अपनाया जा सकता है?
उत्तर:
गैर कांग्रेसवाद के जनक डॉ. राममनोहर लोहिया थे और गैर-कांग्रेसवाद आज भी उतना प्रासंगिक है जितना 1960 के दशक में था। बंगाल में वाममोर्चा के खिलाफ ऐसा तरीका अपनाया जा सकता है क्योंकि बंगाल में वाममोर्चा का एकाधिकार है जिसके कारण समाज में कुछ अलगाववादी तत्त्व सक्रिय हो गए हैं। इन सबको खत्म करने का ये तरीका कारगर हो सकता है।
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प्रश्न 4.
त्रिशंकु विधानसभा और गठबन्धन सरकार की इन बातों में नया क्या है? ऐसी बातें तो हम आए दिन सुनते रहते हैं।
उत्तर:
भारत में 1967 के चुनावों से गठबन्धन की राजनीति सामने आयी। त्रिशंकु विधानसभा और गठबंधन सरकार की घटना उन दिनों नई थी क्योंकि पहली बार चुनावों में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हुआ था, इसलिए अनेक गैर-कांग्रेसी पार्टियों ने एकजुट होकर संयुक्त विधायक दल बनाया और गैर-कांग्रेसी सरकारों को समर्थन दिया। इसी कारण इन सरकारों को संयुक्त विधायक दल की सरकार कहा गया। लेकिन वर्तमान समय में भारतीय दलीय व्यवस्था का स्वरूप बदल गया है। बहुदलीय व्यवस्था होने के कारण केन्द्र और राज्यों में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाता और त्रिशंकु विधान सभा या संसद का निर्माण हो रहा है। इसलिए आज गठबन्धन सरकार या त्रिशंकुं संसद आम बात हो गई है।
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प्रश्न 5.
इसका मतलब यह है कि राज्य स्तर के नेता पहले के समय में भी ‘किंगमेकर’ थे और इसमें कोई नयी बात नहीं है। मैं तो सोचती थी कि ऐसा केवल 1990 के दशक में हुआ।
उत्तर:
पार्टी के ऐसे ताकतवर नेता जिनका पार्टी संगठन पर पूर्ण नियन्त्रण होता है उन्हें ‘किंगमेकर’ कहा जाता है प्रधानमन्त्री हो या मुख्यमन्त्री, इनकी नियुक्ति में इनकी विशेष भूमिका होती है। भारत में राज्य स्तर पर किंगमेकर्स की शुरुआत केवल 1990 के दशक में नहीं बल्कि इससे पहले भी इस प्रकार की स्थिति पायी जाती थी। भारत में पहले कांग्रेसी नेताओं के एक समूह को अनौपचारिक तौर पर सिंडिकेट के नाम से इंगित किया जाता था। इस समूह के नेताओं का पार्टी के संगठन पर नियन्त्रण था। मद्रास प्रान्त के कामराज, मुम्बई सिटी के एस.के. पाटिल, मैसूर के एस. निजलिंगप्पा, आन्ध्र प्रदेश के एन. संजीव रेड्डी और पश्चिम बंगाल के अतुल्य घोष इस संगठन में शामिल थे। लाल बहादुर शास्त्री एवं श्रीमती इन्दिरा गाँधी, दोनों ही सिंडिकेट की सहायता से प्रधानमन्त्री पद पर आरूढ़ हुए।
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प्रश्न 6.
गरीबी हटाओ का नारा तो अब से लगभग चालीस साल पहले दिया गया था। क्या यह नारा महज एक चुनावी छलावा था?
उत्तर:
गरीबी हटाओ का नारा श्रीमती गाँधी ने तत्कालीन समय व परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए दिया। उन्होंने विपक्षी गठबन्धन द्वारा दिये गये इन्दिरा हटाओ नारे के विपरीत लोगों के सामने एक सकारात्मक कार्यक्रम रखा और इसे अपने मशहूर नारे ‘गरीबी हटाओ’ के जरिए एक शक्ल प्रदान की। इन्दिरा गाँधी ने सार्वजनिक क्षेत्र की संवृद्धि, ग्रामीण भू-स्वामित्व और शहरी सम्पदा के परिसीमन, आय और अवसरों की असमानता की समाप्ति तथा प्रिवीपर्स की समाप्ति पर अपने चुनाव अभियान में जोर दिया।
गरीबी हटाओ के नारे से श्रीमती गाँधी ने वंचित तबकों खासकर भूमिहीन किसान, दलित और आदिवासियों, अल्पसंख्यक महिलाओं और बेरोजगार नौजवानों के बीच अपने समर्थन का आधार तैयार करने की कोशिश की। लेकिन 1971 के भारत-पाक युद्ध और विश्व स्तर पर पैदा हुए तेल संकट के कारण गरीबी हटाओ का नारा कमजोर पड़ गया। 1971 में इन्दिरा गाँधी द्वारा दिया गया यह नारा महज पाँच साल के अन्दर ही असफल हो गया और 1977 में इन्दिरा गांधी को ऐतिहासिक पराजय का सामना करना पड़ा। इस प्रकार यह नारा महज एक चुनावी छलावा साबित हुआ।
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प्रश्न 7.
यह तो कुछ ऐसा ही है कि कोई मकान की बुनियाद और छत बदल दे फिर भी कहे कि मकान वही है। पुरानी और नयी कांग्रेस में कौनसी चीज समान थी?
उत्तर:
1969 में कांग्रेस के विभाजन तथा कामराज योजना के तहत कांग्रेस पार्टी की पुनर्स्थापना करने का प्रयास किया। श्रीमती इन्दिरा गाँधी और उनके साथ अन्य युवा नेताओं ने कांग्रेस पार्टी को नया स्वरूप प्रदान करने का प्रयास किया। यह पार्टी पूर्णतः अपने सर्वोच्च नेता की लोकप्रियता पर आश्रित थी। पुरानी कांग्रेस की तुलना में इसका सांगठनिक ढाँचा कमजोर था। अब इस पार्टी के भीतर कई गुट नहीं थे। अर्थात् अब यह कांग्रेस विभिन्न मतों और हितों को एक साथ लेकर चलने वाली पार्टी नहीं थी। इस प्रकार इन्दिरा कांग्रेस के बारे में यह कहा जा सकता है कि इसकी बुनियाद और छत बदल दी गई थी, लेकिन नाम वही था। पुरानी और नई कांग्रेस में एक बात समान थी कि दोनों को ही लोकप्रियता में समान स्थान प्राप्त था। पार्टी के सर्वोच्च नेता पर आश्रितता की नीति में भी कोई परिवर्तन नहीं आया तथा कांग्रेस की मूल विचारधारा में भी कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया।
Jharkhand Board Class 12 Political Science कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना TextBook Questions and Answers
प्रश्न 1.
1967 के चुनावों के बारे में निम्नलिखित में कौन-कौन से बयान सही हैं:
(क) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव में विजयी रही, लेकिन कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव वह हार गई।
(ख) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव भी हारी और विधानसभा के भी।
(ग) कांग्रेस को लोकसभा में बहुमत नहीं मिला, लेकिन उसने दूसरी पार्टियों के समर्थन से एक गठबन्धन सरकार बनाई।
(घ) कांग्रेस केन्द्र में सत्तासीन रही और उसका बहुमत भी बढ़ा।
उत्तर:
(क) सही
(ख) गलत
(ग) सही
प्रश्न 2.
निम्नलिखित का मेल करें:
(क) सिंडिकेट | (i) कोई निर्वाचित जन-प्रतिनिधि जिस पार्टी के टिकट से जीता हो, उस पार्टी को छोड़कर अगर दूसरे दल में चला जाए। |
(ख) दल-बदल | (ii) लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला एक मनभावन मुहावरा। |
(ग) नारा | (iii) कांग्रेस और इसकी नीतियों के खिलाफ अलग-अलग विचारधाराओं की पार्टियों का एकजुट होना। |
(घ) गैर-कांग्रेसवाद | (iv) कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह। |
उत्तर:
(क) सिंडिकेट | (iv) कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह। |
(ख) दल-बदल | (i) कोई निर्वाचित जन-प्रतिनिधि जिस पार्टी के टिकट से जीता हो, उस पार्टी को छोड़कर अगर दूसरे दल में चला जाए। |
(ग) नारा | (ii) लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला एक मनभावन मुहावरा। |
(घ) गैर-कांग्रेसवाद | (iii) कांग्रेस और इसकी नीतियों के खिलाफ अलग-अलग विचारधाराओं की पार्टियों का एकजुट होना। |
प्रश्न 3.
निम्नलिखित नारे से किन नेताओं का सम्बन्ध है?
(क) जय जवान, जय किसान
(ख) इन्दिरा हटाओ
(ग) गरीबी हटाओ।
उत्तर:
(क) लालबहादुर शास्त्री
(ख) विपक्षी गठबंधन
(ग) श्रीमती इन्दिरा गाँधी।
प्रश्न 4.
1971 के ‘ग्रैंड अलायंस’ के बारे में कौनसा कथन ठीक है?
(क) इसका गठन गैर- कम्युनिस्ट और गैर-कांग्रेसी दलों ने किया था।
(ख) इसके पास एक स्पष्ट राजनीतिक तथा विचारधारात्मक कार्यक्रम था।
(ग) इसका गठन सभी गैर-कांग्रेसी दलों ने एकजुट होकर किया था।
उत्तर:
(क) इसका गठन गैर- कम्युनिस्ट और गैर-कांग्रेसी दलों ने किया था।
प्रश्न 5.
किसी राजनीतिक दल को अपने अंदरूनी मतभेदों का समाधान किस तरह करना चाहिए? यहाँ कुछ समाधान दिए गए हैं। प्रत्येक पर विचार कीजिए और उसके सामने उसके फायदों और घाटों को लिखिए।
(क) पार्टी के अध्यक्ष द्वारा बताए गए मार्ग पर चलना।
(ख) पार्टी के भीतर बहुमत की राय पर अमल करना।
(ग) हरेक मामले पर गुप्त मतदान कराना।
(घ) पार्टी के वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं से सलाह करना।
उत्तर:
(क) लाभ – पार्टी के अध्यक्ष द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने से पार्टी में एकता और अनुशासन की भावना का विकास होगा। हानि – इससे एक व्यक्ति की तानाशाही या निरंकुशता स्थापित होने का खतरा बढ़ जाता है।
(ख) लाभ – मतभेदों को दूर करने के लिए बहुमत की राय जानने से यह लाभ होगा कि इससे अधिकांश की राय का पता चलेगा तथा पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र बढ़ेगा। हानि – बहुमत की राय मानने से अल्पसंख्यकों की उचित बात की अवहेलना की सम्भावना बनी रहेगी। (ग) लाभ – पार्टी के मतभेदों को दूर करने के लिए गुप्त मतदान की प्रक्रिया अपनाने से प्रत्येक सदस्य अपनी बात स्वतन्त्रतापूर्वक रख सकेगा। यह पद्धति अधिक लोकतांत्रिक तथा निष्पक्ष है। हानि – गुप्त मतदान में क्रॉस वोटिंग का खतरा बना रहता है।
(घ) लाभ – पार्टी के मतभेदों को दूर करने के लिए वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं की सलाह का विशेष लाभ होगा, क्योंकि वरिष्ठ नेताओं के पास अनुभव होता है तथा सभी सदस्य उनका आदर करते हैं। हानि – वरिष्ठ एवं अनुभवी व्यक्ति नये विचारों एवं मूल्यों को अपनाने से कतराते हैं।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से किसे / किन्हें 1967 के चुनावों में कांग्रेस की हार के कारण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है? अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए:
(क) कांग्रेस पार्टी में करिश्माई नेता का अभाव।
(ख) कांग्रेस पार्टी के भीतर टूट।
(ग) क्षेत्रीय, जातीय और साम्प्रदायिक समूहों की लामबंदी को बढ़ाना।
(घ) गैर-कांग्रेसी दलों के बीच एकजुटता।
(ङ) कांग्रेस पार्टी के अन्दर मतभेद।
उत्तर:
(कं) इसको कांग्रेस की हार के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि कांग्रेस के पास अनेक वरिष्ठ और करिश्माई नेता थे
(ख) यह कांग्रेस पार्टी की हार का सबसे बड़ा कारण था क्योंकि कांग्रेस दो गुटों में बँटती जा रही थी युवा तुर्क और सिंडिकेट युवा तुर्क (चन्द्रशेखर, चरणजीत यादव, मोहन धारिया, कृष्णकान्त एवं आर. के. सिन्हा) तथा सिंडिकेट (कामराज, एस. के पाटिल, अतुल्य घोष एवं निजलिंगप्पा) के बीच आपसी फूट के कारण कांग्रेस पार्टी को 1967 के चुनावों में हार का सामना करना पड़ा।
(ग) 1967 में पंजाब में अकाली दल, तमिलनाडु में डी. एम. के. जैसे दल अनेक राज्यों में क्षेत्रीय, जातीय और साम्प्रदायिक दलों के रूप में उभरे जिससे कांग्रेस प्रभाव व विस्तार क्षेत्र में कमी आयी तथा कई राज्यों में उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ा।
(घ) गैर-कांग्रेसी दलों के बीच पूर्णरूप से एकजुटता नहीं थी लेकिन जिन-जिन प्रान्तों में ऐसा हुआ वहाँ वामपंथियों अथवा गैर-कांग्रेसी दलों को लाभ मिला।
(ङ) कांग्रेस पार्टी के अन्दर मतभेद के कारण बहुत जल्दी ही आन्तरिक फूट कालान्तर में सभी के सामने आ गई और लोग यह मानने लगे कि 1967 के चुनाव में कांग्रेस की हार के कई कारणों में से यह कारण भी एक महत्त्वपूर्ण था।
प्रश्न 7.
1970 के दशक में इन्दिरा गाँधी की सरकार किन कारणों से लोकप्रिय हुई थी?
उत्तर:
1970 के दशक में श्रीमती गाँधी की लोकप्रियता के कारण – 1970 के दशक में श्रीमती गाँधी की लोकप्रियता के मुख्य कारण निम्नलिखित थे-
1. करिश्मावादी नेता:
इन्दिरा गाँधी कांग्रेस पार्टी की करिश्मावादी नेता थीं। वह भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री की पुत्री थीं और उन्होंने स्वयं को गाँधी-नेहरू परिवार का वास्तविक राजनीतिक उत्तराधिकारी बताया। वह देश की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री होने के कारण महिला मतदाताओं में अधिक लोकप्रिय हुईं।
2. प्रगतिशील कार्यक्रमों की घोषणा:
इन्दिरा गाँधी द्वारा 20 सूत्री कार्यक्रम प्रस्तुत करना, बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना, प्रिवीपर्स को समाप्त करना, श्री वी.वी. गिरि जैसे मजदूर नेता को दल के घोषित प्रत्याशी के विरुद्ध चुनाव जिता कर लाना आदि ने उनकी लोकप्रियता को बढ़ाया ।
3. कुशल एवं साहसिक चुनावी रणनीति:
इंदिरा गाँधी ने एक साधारण से सत्ता संघर्ष को विचारधारात्मक संघर्ष में बदल दिया । उन्होंने अपनी वामपंथी नीतियों की घोषणा कर जनता को यह दर्शाने में सफलता पाई कि कांग्रेस का सिंडीकेट धड़ा इन नीतियों के मार्ग में बाधाएँ डाल रहा है। चुनावों में श्रीमती गाँधी को इसका लाभ मिला।
4. भूमि सुधार कानूनों का क्रियान्वयन:
श्रीमती गाँधी ने भूमि सुधार कानूनों के क्रियान्वयन के लिए जबरदस्त अभियान चलाया तथा उन्होंने भू-परिसीमन के कुछ और कानून भी बनाए। जिसका प्रभाव चुनाव में उनके पक्ष में गया।
प्रश्न 8.
1960 के दशक की कांग्रेस पार्टी के सन्दर्भ में सिंडिकेट का क्या अर्थ है? सिंडिकेट ने कांग्रेस पार्टी में क्या भूमिका निभाई?
उत्तर:
सिंडिकेट का अर्थ- कांग्रेसी नेताओं के एक समूह को एक अनौपचारिक रूप से सिंडिकेट के नाम से पुकारा जाता था। इस समूह के नेताओं का पार्टी के संगठन पर अधिकार एवं नियन्त्रण था। सिंडिकेट के अगुआ के. कामराज थे। इसमें विभिन्न प्रान्तों के ताकतवर नेता जैसे बम्बई सिटी (अब मुम्बई) के एस. के. पाटिल, मैसूर ( अब कर्नाटक) के एस. निजलिंगप्पा, आन्ध्र प्रदेश के एन. संजीव रेड्डी और पश्चिम बंगाल के अतुल्य घोष शामिल थे। भूमिका – इन्दिरा गाँधी के पहले मन्त्रिमण्डल में इस समूह की निर्णायक भूमिका रही।
इसने तब नीतियों के निर्माण और क्रियान्वयन में भी अहम भूमिका निभायी थी। कांग्रेस का विभाजन होने के बाद सिंडिकेट के नेता कांग्रेसी कांग्रेस (ओ) में ही रहे । चूँकि इन्दिरा गाँधी की कांग्रेस (आर) ही लोकप्रियता की कसौटी पर सफल रही, इसलिए ये ताकतवर नेता 1971 के बाद प्रभावहीन हो गए।
प्रश्न 9.
कांग्रेस पार्टी किन मसलों को लेकर 1969 में टूट की शिकार हुई? कांग्रेस के 1969 के विभाजन के लिए उत्तरदायी किन्हीं पाँच कारकों का परीक्षण कीजिए।
अथवा
1969 में कांग्रेस में विभाजन के क्या कारण थे?
उत्तर:
1969 में कांग्रेस पार्टी के विभाजन या टूट के कारण 1969 में कांग्रेस के विभाजन एवं टूट के निम्नलिखित कारण थे:
- दक्षिणपंथी और वामपंथी विचारधाराओं के समर्थकों के मध्य कलह: 1967 के चौथे आम चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद कांग्रेस के कुछ नेता दक्षिणपंथी विचारधारा वालों के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहते थे और कुछ वामपंथी विचारधारा वाले दलों के साथ। कांग्रेस के नेताओं की यह कलह उसके विभाजन का मुख्य कारण बनी।
- राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के चयन को लेकर मतभेद: 1969 में राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस द्वारा समर्थित उम्मीदवार एन. संजीव रेड्डी को श्रीमती गाँधी व उनके समर्थकों ने मत न देकर एक स्वतन्त्र उम्मीदवार वी. वी. गिरि को समर्थन दिया। जिससे चुनाव में वी.वी. गिरि जीत गये। यह घटना कांग्रेस पार्टी के विभाजन का प्रमुख कारण बनी।
- युवा तुर्क एवं सिंडिकेट के बीच कलह: 1969 में कांग्रेस पार्टी के विभाजन का एक कारण युवा तुर्क (चन्द्रशेखर, चरणजीत यादव, मोहन धारिया, कृष्णकान्त एवं आर. के. सिन्हा) तथा सिंडिकेट (कामराज, एस. के. पाटिल, अतुल्य घोष एवं निजलिंगप्पा ) के बीच होने वाली कलह भी रही।
- वित्त विभाग, मोरारजी देसाई से वापस लेना: श्रीमती गाँधी की मोरारजी देसाई से वित्त विभाग को वापस लेने तथा बैंक राष्ट्रीयकरण के प्रस्ताव को मन्त्रिमण्डल में सर्वसम्मति से पारित कर देने की कार्यवाही ने भी कांग्रेस विभाजन को मुखरित किया।
- सिंडीकेट द्वारा श्रीमती गाँधी को पद से हटाने का प्रयास: 1969 में कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार के चुनाव हार जाने के बाद सिंडीकेट ने प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी को पद से हटाने का प्रयास किया परन्तु वे इसमें सफल न हो सके। उपर्युक्त घटनाओं के कारण कांग्रेस में आन्तरिक कलह इस कदर बढ़ गया कि नवम्बर, 1969 में कांग्रेस का विभाजन हो गया।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें:
इन्दिरा गाँधी ने कांग्रेस को अत्यन्त केन्द्रीकृत और अलोकतान्त्रिक पार्टी संगठन में तब्दील कर दिया, जबकि नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस शुरुआती दशकों में एक संघीय, लोकतान्त्रिक और विचारधाराओं के समाहार का मंच थी। नयी और लोकलुभावन राजनीति ने राजनीतिक विचारधारा को महज चुनावी विमर्श में बदल दिया। कई नारे उछाले गए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि उसी के अनुकूल सरकार की नीतियाँ भी बनानी थीं- 1970 के दशक के शुरुआती सालों में अपनी बड़ी चुनावी जीत के जश्न के बीच कांग्रेस एक राजनीतिक संगठन के तौर पर मर गई।
(क) लेखक के अनुसार नेहरू और इन्दिरा गाँधी द्वारा अपनाई गई रणनीतियों में क्या अन्तर था?
(ख) लेखक ने क्यों कहा है कि सत्तर के दशक में कांग्रेस ‘मर गई’?
(ग) कांग्रेस पार्टी में आए बदलावों का असर दूसरी पार्टियों पर किस तरह पड़ा?
उत्तर:
(क) जवाहर लाल नेहरू की तुलना में उनकी पुत्री और तीसरी प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी ने कांग्रेस पार्टी को बहुत ज्यादा केन्द्रीकृत और अलोकतान्त्रिक पार्टी संगठन के रूप में बदल दिया। नेहरू के काल में यह पार्टी संघीय लोकतान्त्रिक और विभिन्न विचारधाराओं को मानने वाले कांग्रेसी नेता और यहाँ तक कि विरोधियों को साथ लेकर चलने वाले एक मंच के रूप में कार्य करती थी।
(ख) लेखक ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि सत्तर के दशक में कांग्रेस की सर्वोच्च नेता श्रीमती इन्दिरा गाँधी एक अधिनायकवादी नेता थीं। उन्होंने मनमाने ढंग से मन्त्रिमण्डल और दल का गठन किया तथा पार्टी में विचार-विमर्श प्रायः मर गया।
(ग) कांग्रेस पार्टी में आए बदलाव के कारण दूसरी पार्टियों में परस्पर एकता बढ़ी। वे जनता पार्टी के रूप में लोगों के सामने आये। 1977 के चुनावों में विरोधी दलों ने कांग्रेस का सफाया कर दिया।
कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना JAC Class 12 Political Science Notes
→ पण्डित नेहरू के शासन काल में देश के सभी भागों में कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व बना रहा तथा कोई भी राजनीतिक पार्टी कांग्रेसी वर्चस्व को चुनौती देने में सक्षम नहीं थी। लेकिन नेहरू की मृत्यु के बाद कांग्रेस नेतृत्व के लिए अनेक चुनौतियाँ उत्पन्न होने लगीं।
→ राजनीतिक उत्तराधिकार की चुनौती:
राजनीतिक उत्तराधिकार की चुनौती मई, 1964 में नेहरू की मृत्यु के बाद उत्पन्न हुई जिसे लालबहादुर शास्त्री के प्रधानमन्त्री बनने के साथ ही हल कर लिया गया। शास्त्री 1964 1966 तक प्रधानमंत्री रहे। 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर के बाद शास्त्रीजी के निधन के उपरान्त फिर राजनीतिक उत्तराधिकार का मामला उठा। लालबहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद इन्दिरा गाँधी को देश की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री और तीसरा प्रधानमन्त्री बनने का अवसर मिला । उन्होंने अपने प्रतियोगी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोरारजी देसाई को पराजित किया। इन्दिरा गाँधी 1966 से 1977 तक और फिर 1980 से 1984 तक प्रधानमन्त्री पद पर रहीं। 1984 में उनकी हत्या कर दी गई।
→ चौथा आम चुनाव 1967:
भारतीय चुनावी राजनीति के इतिहास में 1967 के वर्ष को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पड़ाव माना जाता है। 1952 के बाद से पूरे देश में कांग्रेस पार्टी का जो दबदबा कायम था वह 1967 के चुनावों में समाप्त हो गया।
→ चुनावों का सन्दर्भ:
1960 के दशक में अनेक कारणों से देश गम्भीर आर्थिक संकट में था। आर्थिक स्थिति की विकटता के कारण कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई, खाद्यान्न की कमी तथा बढ़ती बेरोजगारी से लोगों की स्थिति बदतर हो गई और लोग सरकार के विरोध में उतर आये। कांग्रेस सरकार इसे भाँप नहीं सकी। मार्क्सवादी समाजवादी दल से अलग हुए मार्क्सवादी-लेनिनवादी गुट ने सशस्त्र कृषक विद्रोह का नेतृत्व किया तथा किसानों को संगठित किया। तीसरे, इस काल में गम्भीर साम्प्रदायिक दंगे भी हुए।
→ गैर-कांग्रेसवाद:
कांग्रेस विरोधी वोटों को चुनाव में बंटने से रोकने के लिए सभी विरोधी दलों ने एकजुट होकर सभी राज्यों में एक कांग्रेस विरोधी मोर्चा बनाया जिसे राममनोहर लोहिया ने ‘गैर-कांग्रेसवाद’ का नारा दिया।
चुनाव का जनादेश तथा गठबन्धन सरकारें: व्यापक जन- असन्तोष और राजनीतिक दलों के ध्रुवीकरण के इस माहौल में 1967 के चौथे आम चुनाव हुए। इन चुनावों को कांग्रेस को जैसे-तैसे लोकसभा में तो बहुमत मिल गया लेकिन उसकी सीटों की संख्या में भारी गिरावट आयी। सात राज्यों में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला। 2 अन्य राज्यों में भी दल-बदल के कारण कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी। मद्रास में डी.एम. के. ने सरकार बनायी तथा अन्य 8 राज्यों में गठबन्धन की सरकारें बनीं।
→ दल – बदल: 1967 से देश में राजनीति दल-बदल और ‘ आया राम-गया राम’ की राजनीति शुरू हुई, जिसकी वजह से भारतीय लोकतन्त्र को अस्थायी रूप से गहरा आघात लगा। कांग्रेस सिंडिकेट और इंडिकेट या पुरानी कांग्रेस और नई कांग्रेस के नाम से विभाजित हो गयी।
→ कांग्रेस में विभाजन:
1969 में कांग्रेस पार्टी का विभाजन हो गया, जिसके कई कारण थे, जैसे- दक्षिणपंथी एवं वामपंथी विषय पर कलह, राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के विषय में मतभेद, युवा तुर्क एवं सिंडीकेट के बीच कलह तथा मोरारजी से वित्त विभाग वापस लेना इत्यादि।
→ इंदिरा बनाम सिंडिकेट:
इंदिरा गाँधी को असली चुनौती विपक्ष से नहीं अपितु अपनी पार्टी के भीतर से मिली। उन्हें सिंडिकेट से निपटना पड़ा। ‘सिंडिकेट’ कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह था। इस समूह के नेताओं का पार्टी के संगठन पर नियंत्रण था। इसके अगुवा मद्रास प्रांत के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रह चुके के. कामराज थे। ‘सिंडिकेट’ ने इंदिरा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन नेताओं को उम्मीद थी कि इंदिरा गाँधी उनकी सलाहों पर अमल करेंगी लेकिन इसके विपरीत इंदिरा गाँधी ने सरकार और पार्टी के भीतर खुद का मुकाम बनाना शुरू किया। धीरे-धीरे और बड़ी सावधानी से उन्होंने सिंडिकेट को हाशिए पर ला खड़ा किया।
इस तरह इंदिरा गाँधी ने दो चुनौतियों का सामना किया। उन्हें ‘सिंडिकेट’ के प्रभाव से स्वतंत्र अपना मुकाम बनाया और 1967 के चुनावों में कांग्रेस ने जो जमीन खोयी थी उसे हासिल किया। 1967 में कांग्रेस कार्यसमिति ने दस सूत्री कार्यक्रम अपनाया। इस कार्यक्रम में बैंकों पर सामाजिक नियंत्रण, आम बीमा के राष्ट्रीयकरण, शहरी संपदा और आय के परिसीमन, खाद्यान्न का सरकारी वितरण, भूमि सुधार तथा ग्रामीण गरीबों को आवासीय भूखंड देने के प्रावधान शामिल थे।
→ राष्ट्रपति पद का चुनाव, 1969:
सिंडिकेट और इंदिरा गाँधी के बीच की गुटबाजी 1969 में राष्ट्रपति पद के चुनाव के समय सामने आ गई। तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु के कारण राष्ट्रपति का पद खाली था। इंदिरा गाँधी की असहमति के बावजूद सिंडिकेट ने तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष को कांग्रेस पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना दिया। इंदिरा गाँधी ने ऐसे समय में तत्कालीन उपराष्ट्रपति वी.वी. गिरि को बढ़ावा दिया कि वे राष्ट्रपति पद के लिए अपना नामांकन भरें।
→ 1971 का चुनाव और कांग्रेस का पुनर्स्थापन:
1969 में कांग्रेस के विभाजन के बाद यद्यपि इन्दिरा गाँधी की सरकार अल्पमत में आ गयी थी, लेकिन वह डी. एम. के. तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थन से टिकी रही। अब श्रीमती गाँधी की सरकार ने भूमि सुधार कानूनों के क्रियान्वयन, भू-परिसीमन के कानून, बैंक राष्ट्रीयकरण तथा प्रिवी पर्स की समाप्ति आदि के द्वारा अपना समाजवादी रंग पेश किया तथा 1970 में लोकसभा भंग कर 1971 में चुनाव कराएं। 1971 के चुनावों में श्रीमती इन्दिरा गाँधी को ऐतिहासिक जीत प्राप्त हुई। श्रीमती इन्दिरा गाँधी की जीत के कई कारण थे, जैसे- श्रीमती गाँधी का चमत्कारिक नेतृत्व, समाजवादी नीतियाँ, कांग्रेसी दल पर श्रीमती गाँधी की पकड़, श्रीमती गाँधी के पक्ष में वोटों का ध्रुवीकरण तथा गरीबी हटाओ का नारा। 1971 के चुनावों में जहाँ श्रीमती गाँधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया, वहीं उनके विरोधियों ने इन्दिरा हटाओ का नारा दिया, जिसे मतदाताओं ने पसन्द नहीं किया तथा श्रीमती गाँधी के पक्ष में मतदान किया।
→ कांग्रेस की पुनर्स्थापना:
1971 के लोकसभा चुनावों के तुरन्त बाद पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में एक बड़ा राजनीतिक और सैन्य संकट उठ खड़ा हुआ। 1971 के चुनावों के बाद पूर्वी पाकिस्तान के मुद्दे को लेकर युद्ध छिड़ गया। इसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश बना। इन घटनाओं से इन्दिरा गाँधी की लोकप्रियता में चार चाँद लग गए। विपक्ष के नेताओं तक ने उसके राज्य कौशल की प्रशंसा की। 1972 के राज्य विधानसभा के चुनावों में उनकी पार्टी को व्यापक सफलता मिली। उन्हें गरीबों, वंचितों के रक्षक और एक मजबूत राष्ट्रवादी नेता के रूप में देखा गया। पार्टी के अन्दर अथवा बाहर उसके विरोध की कोई गुंजाइश न बची। कांग्रेस को लोकसभा चुनावों के साथ-साथ राज्य स्तर के चुनावों में भी भारी सफलता प्राप्त हुई।