Jharkhand Board JAC Class 11 History Solutions Chapter 6 तीन वर्ग Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 11 History Solutions Chapter 6 तीन वर्ग
Jharkhand Board Class 11 History तीन वर्ग In-text Questions and Answers
पृष्ठ 137 क्रियाकलाप 1:
प्रश्न 1.
विभिन्न मानकों; जैसे व्यवसाय, भाषा, धन और शिक्षा पर आधारित श्रेणीबद्ध सामाजिक ढाँचे की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन फ्रांस का समाज मुख्य रूप से तीन वर्गों में विभाजित था –
(1) पादरी वर्ग
(2) अभिजात वर्ग तथा
(3) कृषक वर्ग।
1. पादरी वर्ग – यूरोप में ईसाई समाज का मार्गदर्शन बिशपों तथा पादरियों द्वारा किया जाता था। ये प्रथम वर्ग के अंग थे। बिशपों के पास भी विस्तृत जागीरें थीं और वे शानदार महलों में रहते थे। कुछ धार्मिक व्यक्ति मठों में रहते थे। ये भिक्षु कहलाते थे। ये लोग अपना समय प्रार्थना करने, अध्ययन करने आदि में व्यतीत करते थे। स्त्री और पुरुष दोनों ही भिक्षु का जीवन अपना सकते थे। पादरियों, भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों के लिए विवाह करना वर्जित था। मठों के साथ स्कूल या कॉलेज और अस्पताल सम्बद्ध थे।
2. अभिजात वर्ग-अभिजात वर्ग दूसरे वर्ग में रखा गया था। बड़े-बड़े भू-स्वामी तथा अभिजात वर्ग राजा के अधीन होते थे। अभिजात वर्ग की एक विशेष हैसियत थी। उनका अपनी सम्पदा पर स्थायी तौर पर पूर्ण नियन्त्रण था। वे अपनी सेना रखते थे, अपना स्वयं का न्यायालय लगा सकते थे और अपनी मुद्रा भी प्रचलित कर सकते थे।
वे अपनी भूमि पर बसे सभी लोगों के मालिक थे। उनका घर ‘मेनर’ कहलाता था। उनकी व्यक्तिगत भूमि कृषकों द्वारा जोती जाती थी। उसका अपना मेनर, भवन होता था। वह गाँवों पर नियन्त्रण रखता था। प्रतिदिन के उपभोग की प्रत्येक वस्तु जागीर पर मिलती थी। नाइट (कुशल घुड़सवार) लार्ड से सम्बद्ध थे। लार्ड नाइट को भूमि का एक भाग देता था जिसे फीफ कहा जाता था। बदले में नाइट अपने लार्ड को एक निश्चित रकम देता था तथा युद्ध में उसकी ओर से लड़ने का वचन देता था।
3. कृषक वर्ग – कृषक वर्ग को तीसरे वर्ग में रखा गया। कृषक दो प्रकार के होते थे –
(1) स्वतन्त्र कृषक
(2) कृषि – दास (सर्फ )।
स्वतन्त्र कृषक अपनी भूमि को लार्ड के काश्तकार के रूप में देखते थे। पुरुष कृषक सैनिक सेवा में योगदान देते थे। कृषक परिवारों को लार्ड की जागीर पर जाकर काम करना पड़ता था। उन्हें बेगार भी देनी पड़ती थी। कृषि दासों को उन भूखण्डों पर भी खेती करनी पड़ती थी जो केवल लार्ड के स्वामित्व में थी, इसके लिए उन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती थी।
4. चौथा वर्ग – नगरवासी – कालान्तर में नगरों का विकास हुआ। नगरों में रहने वाले लोग या तो स्वतन्त्र कृषक या भगोड़े कृषि – दास थे, जो कार्य की दृष्टि से अकुशल श्रमिक होते थे। बाद में साहूकारों और वकीलों का प्रादुर्भाव हुआ। इस प्रकार नगरों में रहने वाले लोगों ने चौथा वर्ग बना लिया था नगरों में रहने वाले मध्यम वर्ग के लोग भी थे जिनमें व्यापारी, व्यवसायी, शिल्पकार, लेखक, विद्वान आदि थे। यद्यपि इनके पास पर्याप्त धन था, परन्तु अभिजात वर्ग की तुलना में इन्हें कम महत्त्व दिया जाता था। व्यवसायियों की अनेक श्रेणियाँ बनी हुई थीं।
प्रश्न 2.
मध्यकालीन फ्रांस की तुलना मेसोपोटामिया तथा रोमन साम्राज्य से करें।
उत्तर:
1. मध्यकालीन फ्रांस की मेसोपोटामिया से तुलना – मेसोपोटामिया का समाज तीन वर्गों में विभाजित –
(1) उच्च वर्ग
(2) मध्यम वर्ग
(3) निम्न वर्ग।
उच्च वर्ग में राजा उसका परिवार, सामन्त, पुरोहित, उच्च पदाधिकारी आदि सम्मिलित थे। अधिकांश धन-दौलत पर इसी वर्ग का अधिकार था । मध्यम वर्ग में व्यापारी, कारीगर, बुद्धिजीवी तथा स्वतन्त्र किसान थे। निम्न वर्ग में अर्द्ध स्वतन्त्र किसान तथा दास लोग सम्मिलित थे। इस वर्ग के लोगों को किसी प्रकार के अधिकार प्राप्त नहीं थे । मध्यकालीन फ्रांस में भी समाज तीन वर्गों में विभाजित था।
ये तीन वर्ग थे –
(1) पादरी वर्ग
(2) अभिजात वर्ग
(3) कृषक वर्ग। समाज में पादरी वर्ग तथा अभिजात वर्ग का बोलबाला था। इस वर्ग के लोग विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। ये लोग कृषकों का शोषण करते थे । कृषक वर्ग की दशा शोचनीय थी।
2. मध्यकालीन फ्रांस की रोमन साम्राज्य से तुलना – पूर्ववर्ती काल में रोमन समाज अनेक वर्गों में बँटा हुआ था। ये वर्ग थे –
(1) सैनेटर
(2) अश्वारोही या नाइट वर्ग
(3) सम्माननीय जनता का वर्ग
(4) फूहड़ निम्नतर वर्ग।
परवर्तीकाल में रोमन समाज निम्नलिखित वर्गों में विभाजित था –
(1) अभिजात वर्ग – इस काल में सैनेटर तथा नाइट एकीकृत होकर अभिजात वर्ग बन चुके थे।
(2) मध्य वर्ग – इस वर्ग में सेना तथा नौकरशाही से सम्बन्धित लोग थे। इसमें धनी सौदागर तथा किसान भी शामिल थे।
(3) निम्न वर्ग – इस वर्ग में ग्रामीण श्रमिक, कामगार, शिल्पकार, दास आदि शामिल थे।
दूसरी ओर मध्यकालीन फ्रांस में समाज तीन प्रमुख वर्गों में विभाजित था –
(1) पादरी वर्ग
(2) अभिजात वर्ग तथा
(3) कृषक वर्ग। कालान्तर में वहाँ नगरों में रहने वाले एक चौथे वर्ग का भी प्रादुर्भाव हुआ।
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क्रियाकलाप 2: मध्यकालीन मेनर, महल और पूजा के स्थान पर विभिन्न सामाजिक स्तर के व्यक्तियों से अपेक्षित व्यवहार के तरीकों की उदाहरण देते हुए चर्चा कीजिए।
उत्तर:
1. मध्यकालीन मेनर के व्यक्तियों से अपेक्षित व्यवहार – अभिजात वर्ग का घर मेनर कहलाता था। लार्ड का अपना मेनर – भवन होता था। वह गाँवों पर नियन्त्रण रखता था। कुछ लार्ड अनेक गाँवों के मालिक थे। स्त्रियाँ वस्त्र कातती तथा बुनती थीं और बच्चे लार्ड की मदिरा – सम्पीडक में कार्य करते थे । लार्ड जंगलों में जाकर शिकार करते थे। एक नए वर्ग का उदय हुआ जो ‘नाइट्स’ कहलाते थे। वे लार्ड से सम्बद्ध थे। लार्ड नाइट को भूमि का एक भाग (फीफ) देते थे और उसकी रक्षा का वचन देते थे।
सामन्ती मेनर की तरह फीफ की भूमि को कृषक जोतते थे। बदले नाइट अपने लार्ड को एक निश्चित रकम देता था और युद्ध में उसकी ओर से लड़ने का वचन देता था । अभिजात वर्ग की व्यक्तिगत भूमि कृषकों द्वारा जोती जाती थी जिनको आवश्यकता पड़ने पर युद्ध के समय पैदल सैनिकों के रूप में कार्य करना पड़ता था और साथ ही साथ अपने खेतों पर भी काम करना पड़ता था।
2. मध्यकालीन महल के व्यक्तियों से अपेक्षित व्यवहार – अभिजात वर्ग की एक विशेष हैसियत थी। उनके पास एक शक्तिशाली सेना होती थी। वे अपना स्वयं का न्यायालय लगा सकते थे और यहाँ तक कि अपने सिक्के भी चला सकते थे। वे अपनी भूमि पर बसे सभी लोगों के स्वामी थे। वे विस्तृत क्षेत्रों के मालिक थे जिनमें उनके शानदार महल, निजी खेत, जोत व चरागाह और उनके असामी- कृषकों के घर और खेत होते थे।
उनका घर ‘मेनर’ कहलाता था। उनकी व्यक्तिगत …भूमि कृषकों द्वारा जोती जाती थी। वे आवश्यकता पड़ने पर युद्ध के समय पैदल सैनिकों के रूप में भी कार्य करते थे। वे शानदार महलों में निवास करते थे। इन महलों में सभी प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त थीं तथा अभिजात वर्ग के लोग ऐश्वर्यपूर्ण न व्यतीत करते थे। उनकी सेवा के लिए सैकड़ों नौकर-चाकर होते थे1
3. मध्यकालीन पूजा के स्थान पर व्यक्तियों से अपेक्षित व्यवहार – यूरोप में पूजा-स्थल के रूप में चर्च होता था। यूरोप में ईसाई समाज का मार्गदर्शन बिशपों तथा पादरियों द्वारा किया जाता था। चर्च में प्रत्येक रविवार को लोग पादरियों के धर्मोपदेश सुनने तथा सामूहिक प्रार्थना करने के लिए एकत्रित होते थे। पुरुष पादरी विवाह नहीं कर सकते थे।
स्त्रियों, दास- कृषक और विकलांगों के पादरी बनने पर प्रतिबन्ध था। बिशपों के पास भी लार्ड की तरह बड़ी-बड़ी जागीरें होती थीं और वे शानदार महलों में रहते थे। कृषक अपनी उपज का दसवाँ भाग चर्च को देते थे, जिसे ‘टीथ’ कहते थे। लोग चर्च में प्रार्थना करते समय हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर घुटनों के बल झुकते थे। नाइट भी अपने वरिष्ठ लार्ड के प्रति स्वामि भक्ति की शपथ लेते समय यही तरीका अपनाते थे।
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क्रियाकलाप 4 : तिथियों के साथ दी गई घटनाओं और प्रक्रियाओं को पढ़िए और उनका विवरणात्मक लेखा-जोखा दीजिए।
उत्तर:
1. तिथि 1066-1066 ई. में नारमैंडी के ड्यूक विलियम ने एक सेना लेकर इंग्लिश चैनल को पार किया और इंग्लैण्ड के सैक्सन राजा को पराजित कर दिया। विलियम ने भूमि नपवाई, उसके नक्शे बनवाये तथा उसे अपने साथ आए 180 नारमन अभिजातों में बाँट दिया।
2. 1100 के पश्चात् – धनी व्यापारी चर्च को दान देते थे। 1100 के पश्चात् फ्रांस में कथीड्रल कहलाने वाले चर्चों का निर्माण होने लगा। यद्यपि वे मठों की सम्पत्ति थे, परन्तु लोगों के विभिन्न समूहों ने अपने श्रम, वस्तुओं और धन से कथीड्रलों के निर्माण में सहयोग दिया।
3. 1315-1317 – चौदहवीं शताब्दी में यूरोप को अनेक संकटों का सामना करना पड़ा। 1315 और 1317 के बीच यूरोप में भयंकर अकाल पड़े। इसके बाद 1320 के दशक में अनगिनत पशुओं की मौतें हुईं।
4. 1347-1350 – पश्चिमी यूरोप 1347-1350 के मध्य महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुआ। यूरोप की आबादी का लगभग 20 प्रतिशत भाग मौत के मुँह में चला गया जबकि कुछ स्थानों पर मरने वालों की संख्या वहाँ की जनसंख्या का 40% तक थी।
5. 1338-1461-1338 से 1461 की अवधि में इंग्लैण्ड तथा फ्रांस के बीच युद्ध हुआ जो ‘सौ वर्षीय युद्ध’ कहलाता है।
6. 1381 – मजदूरों की दरें बढ़ने तथा कृषि सम्बन्धी मूल्यों में कमी के कारण अभिजात वर्ग की आमदनी घट गई। इसके परिणामस्वरूप उन्होंने पुराने धन सम्बन्धी अनुबन्धों को तोड़ दिया। इसका कृषकों विशेषकर शिक्षित तथा धनी कृषकों द्वारा हिंसक विरोध किया गया। परिणामस्वरूप 1381 में ब्रिटेन में कृषकों ने विद्रोह कर दिया।
Jharkhand Board Class 11 History तीन वर्ग Text Book Questions and Answers
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
फ्रांस के प्रारम्भिक सामन्ती समाज के दो लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
फ्रांस के प्रारम्भिक सामन्ती समाज के लक्षण-फ्रांस के प्रारम्भिक सामन्ती समाज के दो प्रमुख लक्षण निम्नलिखित थे-
(1) फ्रांस में सामन्तवाद सामन्त और कृषकों के सम्बन्धों पर आधारित था। कृषक अपने खेतों के साथ-साथ लार्ड के खेतों पर कार्य करते थे। कृषक लार्ड को श्रम सेवा देते थे तथा बदले में लार्ड उन्हें सैनिक सुरक्षा प्रदान करते थे। लार्ड के कृषकों पर न्यायिक अधिकार भी थे।
(2) फ्रांस का प्रारंभिक सामन्ती समाज तीन वर्गों में विभाजित था। प्रथम वर्ग पादरी था; द्वितीय वर्ग अभिजात वर्ग था और तृतीय वर्ग कृषक वर्ग था। पादरी वर्ग कैथोलिक चर्च से जुड़ा था। यह राजा पर निर्भर संस्था नहीं थी। अभिजात वर्ग राजा से जुड़ा था तथा धनी और भू-स्वामी था। तीसरा वर्ग किसान भूस्वामी वर्ग के अधीन था तथा इसी दशा दयनीय थी।
प्रश्न 2.
जनसंख्या के स्तर में होने वाले लम्बी अवधि के परिवर्तनों ने किस प्रकार यूरोप की अर्थव्यवस्था और समाज को प्रभावित किया?
उत्तर:
जनसंख्या के स्तर में होने वाले परिवर्तनों का प्रभाव – जनसंख्या के स्तर में होने वाले परिवर्तनों के यूरोप की अर्थव्यवस्था और समाज पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े-
(1) कृषि के विस्तार के परिणामस्वरूप यूरोप में जनसंख्या में भी वृद्धि हुई। यूरोप की जनसंख्या जो 1000 में लगभग 420 लाख थी, वह बढ़कर 1200 में लगभग 620 लाख और 1300 में 730 लाख हो गई। पौष्टिक आहार मिलने के कारण व्यक्ति की जीवन-अवधि लम्बी हो गई। तेरहवीं सदी तक एक औसत यूरोपीय व्यक्ति आठवीं सदी की तुलना में दस वर्ष अधिक जी सकता था। पुरुषों की तुलना में स्त्रियों और बालिकाओं की जीवन-अवधि छोटी होती थी, क्योंकि पुरुष बेहतर भोजन करते थे।
(2) जनसंख्या में वृद्धि होने से नगरों का विकास हुआ, परन्तु 14वीं शताब्दी में इस स्थिति में परिवर्तन आया। पिछले 300 वर्षों की तीव्र ग्रीष्म ऋतु का स्थान तीव्र ठण्डी ग्रीष्म ऋतु ने ले लिया। उत्तरी यूरोप में तेरहवीं सदी के अन्त तक उपज वाले मौसम छोटे हो गए, चरागाहों की कमी हो गई तथा पशुओं की संख्या में कमी आ गई। जनसंख्या वृद्धि इतनी तेजी से हुई कि उपलब्ध संसाधन कम हो गए, जिसके परिणामस्वरूप भीषण अकाल पड़े। 1315 और 1317 के बीच यूरोप में भयंकर अकाल पड़े। 1347 और 1350 के बीच यूरोप में महामारी का प्रकोप हुआ जिससे यूरोप की जनसंख्या का लगभग 20% भाग मौत के मुँह में चला गया। यूरोप की जनसंख्या 1300 में 730 लाख से घटकर 1400 में 450 लाख रह गई।
इस विनाशलीला के अतिरिक्त आर्थिक मन्दी से व्यापक सामाजिक विस्थापन हुआ। जनसंख्या में कमी होने के कारण मजदूरों की संख्या में बहुत कमी आई। कृषि उत्पादों के मूल्यों में भी कमी आई। महामारी के बाद इंग्लैण्ड में मजदूरों विशेषकर कृषि मजदूरों की भारी माँग के कारण मजदूरी की दरों में 250 प्रतिशत तक की वृद्धि हो गई। आमदनी घटने से अभिजात वर्ग ने धन सम्बन्धी अनुबन्धों को तोड़ दिया। इसका कृषकों विशेषकर पढ़े-लिखे और समृद्ध कृषकों द्वारा हिंसक विरोध किया गया।
प्रश्न 3.
नाइट एक अलग वर्ग क्यों बने और उनका पतन कब हुआ?
उत्तर:
नाइट- नौवीं शताब्दी से यूरोप में स्थानीय युद्ध प्रायः होते रहते थे। शौकिया कृषक- सैनिक पर्याप्त नहीं थे। अतः इन युद्धों के लिए कुशल घुड़सवारों की आवश्यकता थी। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए एक नये वर्ग का उदय हुआ, जो ‘नाइट्स’ कहलाते थे। वे लार्ड से इसी प्रकार सम्बद्ध थे, जिस प्रकार लार्ड राजा से सम्बद्ध थे। लार्ड ने नाइट को भूमि का एक भाग दिया, जिसे ‘फीफ’ कहा जाता था और उसकी रक्षा करने का वचन दिया।
फीफ 1000-2000 एकड़ या उसके अधिक में फैली हुई हो सकती थी तथा इसे उत्तराधिकार में प्राप्त किया जा सकता था। फीफ में नाइट और उसके परिवार के लिए एक पन-चक्की, मदिरा संपीडक, घर, चर्च आदि थे। दूसरी ओर नाइट अपने लार्ड को एक निश्चित रकम देता था और युद्ध में उसकी ओर से लड़ने का वचन देता था। नाइट्स अपनी वीरता तथा युद्ध-कौशल के लिए प्रसिद्ध थे। बारहवीं शताब्दी में नाइट वर्ग का पतन हो गया। बारहवीं सदी से गायक फ्रांस के मेनरों में पराक्रमी राजाओं तथा नाइट्स की वीरता की कहानियाँ, गीतों के रूप में सुनाते हुए घूमते रहते थे, जो अंशत: ऐतिहासिक एवं अंशतः काल्पनिक होती थीं। अब नाइट्स साहित्यिक रचनाओं के रूप में ही सीमित रह गए थे।
प्रश्न 4.
मध्यकालीन मठों का क्या कार्य था ?
उत्तर:
मध्यकालीन मठों का कार्य – मध्यकालीन मठों में भिक्षु रहा करते थे। वे प्रार्थना करते, अध्ययन करते तथा कृषि-कार्य भी करते थे। पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग मठ थे। भिक्षु का जीवन पुरुष और स्त्रियाँ दोनों ही अपना सकते थे। ऐसे पुरुषों को ‘मौंक’ तथा स्त्रियों को ‘नन’ कहते थे। भिक्षु एवं भिक्षुणियाँ विवाह नहीं कर सकती थीं। मठों में रहने वाले भिक्षु ईसाई धर्म के ग्रन्थों का अध्ययन करते थे तथा ईसाई धर्म का प्रचार करते थे।
कुछ मठ सैकड़ों लोगों के समुदाय बन गए जिससे स्कूल या कॉलेज और अस्पताल सम्बद्ध थे। इन मठों ने कला के विकास में भी योगदान दिया। आबेस हिल्डेगार्ड एक कुशल संगीतज्ञ था जिसने चर्च की प्रार्थनाओं में सामुदायिक गायन की प्रथा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। चौदहवीं शताब्दी तक आते-आते मठवाद के महत्त्व और उद्देश्य के बारे में कुछ शंकाएँ उत्पन्न हो गईं।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 5.
मध्यकालीन फ्रांस के नगर में एक शिल्पकार के एक दिन के जीवन की कल्पना कीजिए और इसका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन फ्रांस के नगर में एक शिल्पकार के एक दिन के जीवन की कल्पना – मध्यकालीन फ्रांस के नगरों में दुकानदारों, व्यापारियों के साथ-साथ शिल्पकार भी रहते थे। इन शिल्पकारों में लुहार, बढ़ई, मिस्त्री, पत्थर पर डिजाइन बनाने वाले, जुलाहा, अस्त्र-शस्त्र और शराब बनाने वाले शिल्पकार उल्लेखनीय थे। उनकी दिनचर्या काफी व्यस्त रहती थी।
हम पत्थर पर काम करने वाले शिल्पकार के एक दिन के जीवन की कल्पना करते हुए इसका वर्णन करते हैं –
(1) सबसे पहले वह शिल्पकार उस पत्थर को अपने सामने लाता है और उसे उचित ढंग से रखता है।
(2) इसके बाद वह अपने औजारों के बक्से से हथौड़े और छेनी निकालता है। उन्हें काम करने हेतु तैयार करता है। ठीक प्रकार से काम करने योग्य हो जाने पर वह पत्थर पर कार्य हेतु तैयार हो जाता है।
(3) पत्थर पर वह चॉक से डिजायन बनाता है। फिर अपने कार्य में जुट जाता है। वह हथौड़े से छेनी को कभी तेज व कभी धीमी मारता है और पत्थर से कभी बड़ा टुकड़ा और कभी छोटा टुकड़ा निकलता है।
(4) बीच-बीच में म नोरंजन हेतु गाना गुनगुनाता है। वह दोपहर के समय काम बंद कर खाने के लिए चला जाता है और खाना खाने के बाद थोड़ा विश्राम कर पुन: उसी कार्य में जुट जाता है।
(5) शाम तक वह पत्थर के एक छोटे से भाग पर सुन्दर डिजायन का रूप दे देता है।
(6) इस प्रकार वह दिन भर अपने काम को मनोयोग से करता है। वह दिन भर परिश्रम करता रहता है और शाम को काम बंद कर अपने सामान – पत्थर व औजारों को उचित स्थान पर रखकर प्रसन्न मन से घर को चला जाता है। इस प्रकार उसकी दिनचर्या पूर्णतः व्यस्त रहती है।
प्रश्न 6.
फ्रांस के सर्फ और रोम के दास के जीवन की दशा की तुलना कीजिए।
उत्तर:
1. रोम के दास – रोम में बड़ी संख्या में दास रहते थे। दास सबसे निम्न वर्ग में सम्मिलित थे। उन्हें सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे । यद्यपि उच्च वर्ग के लोग दासों के प्रति प्राय: क्रूरतापूर्ण व्यवहार करते थे, परन्तु साधारण लोग उनके साथ सहानुभूतिपूर्ण बर्ताव करते थे। दासों को कठोर परिश्रम करना पड़ता था। समूहों में काम करने वाले दासों को प्रायः पैरों में जंजीर डालकर एक-साथ रखा जाता था। दासों के बच्चे भी दास ही कहलाते थे। रोम में दासों को अधिकतर घरेलू कार्यों में लगाया जाता था। उन्हें दिन भर कठोर परिश्रम करना पड़ता था और उन्हें भरपेट भोजन भी प्राप्त नहीं होता था। उन्हें कारखानों, खेतों, जलपोतों आदि पर कार्य पर लगाया जा सकता था। उन्हें मनोरंजन के लिए हिंसक जंगली जानवरों से भी लड़ाया जाता था। रोम में दासों का क्रय-विक्रय भी किया जाता था।
2. फ्रांस के सर्फ-फ्रांस में सर्फ (कृषि – दास) बहुत बड़ी संख्या में थे। ये निम्न वर्ग के अन्तर्गत सम्मिलित थे। अपने जीवन-निर्वाह के लिए जिन भूखण्डों पर कृषि करते थे, वे लार्ड के स्वामित्व में थे। इसलिए उनकी अधिकतर उपज भी लार्ड को ही मिलती थीं। सर्फ उन भूखण्डों पर भी कृषि करते थे, जो केवल लार्ड के स्वामित्व में थी। इसके लिए उन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती थी। सर्फ लार्ड की आज्ञा के बिना जागीर नहीं छोड़ सकते थे। सर्फ केवल अपने लार्ड की चक्की में ही आटा पीस सकते थे, उनके तन्दूर में ही रोटी सेंक सकते थे तथा उनकी मदिरा सम्पीडक में ही शराब और बीयर तैयार कर सकते थे। लार्ड को कृषि – दासों के विवाह तय करने का भी अधिकार था।
दोनों की जीवन-दशाओं में अन्तर –
(1) फ्रांस में सर्फ लोगों को अधिकतर लार्ड के खेतों पर ही काम करना पड़ता था। उन्हें बेगार भी करनी पड़ती थी। परन्तु उन्हें कारखानों, जलपोतों आदि पर काम नहीं करना पड़ता था और न ही उन्हें हिंसक जानवरों से लड़ाया जाता था। जबकि सर्पों को केवल कृषि, पशुपालन आदि कार्य ही करने पड़ते थे। चौदहवीं शताब्दी तक आते-आते मठवाद के महत्त्व और उद्देश्य के बारे में कुछ शंकाएँ उत्पन्न हो गईं।
(2) रोम में दासों का क्रय-विक्रय किया जाता था, वहाँ फ्रांस में सर्फ (कृषि-दासों) के क्रय-विक्रय करने की कोई व्यवस्था नहीं थी।
(3) कृषि-दास लार्ड के स्वामित्व वाले भूखण्डों पर कृषि करते थे तथा लार्ड की उपज में से कृषिदासों को कुछ हिस्सा मिलता था, परन्तु रोमन साम्राज्य में ऐसी व्यवस्था नहीं थी।
तीन वर्ग JAC Class 11 History Notes
पाठ-सार
1. तीन वर्ग – नौवीं से 16वीं सदी के मध्य पश्चिमी यूरोप में होने वाले सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक परिवर्तनों में तीन सामाजिक श्रेणियों (वर्गों) –
- ईसाई पादरी
- भूमिधारक अभिजात वर्ग और
- कृषक वर्ग- के बीच बदलते सम्बन्ध इतिहास को गढने वाले प्रमुख कारक थे।
2. सामन्तवाद-सामन्तवाद जर्मन शब्द ‘फ्यूड’ से बना है जिसका अर्थ ‘एक भूमि का टुकड़ा’ है और यह एक ऐसे समाज की ओर संकेत करता है जो मध्य फ्रांस और बाद में इंग्लैण्ड तथा दक्षिणी इटली में भी विकसित हुआ। आर्थिक सन्दर्भ में सामन्तवाद कृषि उत्पादन को इंगित करता है जो सामन्त और कृषकों के सम्बन्धों पर आधारित है। सामन्तवाद की उत्पत्ति यूरोप के अनेक भागों में 11वीं सदी के उत्तरार्द्ध में हई।
3. फ्रांस – गॉल रोमन साम्राज्य का एक प्रान्त था। जर्मनी की एक जनजाति फ्रैंक ने गॉल को अपना नाम देकर उसे फ्रांस बना दिया। छठी सदी से यह ईसाई राजाओं द्वारा शासित राज्य था। फ्रांसीसियों के चर्च के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध थे।
4. इंग्लैण्ड – एक संकरे जल मार्ग के पार स्थित इंग्लैण्ड – स्काटलैण्ड द्वीपों को ग्यारहवीं शताब्दी में फ्रांस के एक प्रान्त नारमंडी के राजकुमार द्वारा जीत लिया गया।
5. द्वितीय वर्ग – अभिजात वर्ग-सामाजिक प्रक्रिया में अभिजात वर्ग की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। अभिजात वर्ग राजा के अधीन होते थे जबकि कृषक अभिजात वर्ग (भू-स्वामियों) के अधीन होते थे। इस वर्ग की एक विशेष हैसियत थी। उनका अपनी सम्पदा पर स्थायी तौर पर पूर्ण नियन्त्रण था। वे अपनी सैन्य क्षमता बढ़ा सकते थे । वे अपना स्वयं का न्यायालय लगा सकते थे। वे अपनी भूमि पर बसे सभी लोगों के स्वामी थे। वे विस्तृत क्षेत्रों के स्वामी थे जिसमें उनके घर, उनके निजी खेत जोत व चरागाह और उनके असामी- कृषकों के घर और खेत होते थे। उनका घर ‘मेनर’ कहलाता था।
6. मेनर की जागीर – लार्ड का अपना मेनर – भवन होता था। वह गाँवों पर नियन्त्रण रखता था। किसी छोटे मेनर की जागीर में दर्जन भर और बड़ी जागीर में 50 या 60 परिवार होते थे। प्रतिदिन के उपभोग की प्रत्येक वस्तु जागीर पर मिलती थी। लार्ड की भूमि कृषक जोतते थे। जागीरों में विस्तृत अभयारण्य तथा वन चरागाह होते थे तथा एक दुर्ग होता था।
7. नाइट – नौवीं सदी में यूरोप के स्थानीय युद्धों में कुशल अश्व सेना की आवश्यकता हुई। इससे एक नए वर्ग नाइट्स को बढ़ावा मिला। नाइट्स का लार्ड से उसी प्रकार का सम्बन्ध था जिस प्रकार का लार्ड का राजा से सम्बन्ध था। लार्ड ने नाइट को भूमि का एक भाग (जिसे फीफ कहा गया) दिया और उसकी रक्षा करने का वचन दिया। इस फीफ में नाइट और उसके परिवार के लिए पनचक्की, मदिरा – संपीडक, घर, चर्च आदि होते थे। फीफ की भूमि को कृषक जोतते थे तथा बदले में नाइट अपने लार्ड को एक निश्चित रकम देता था तथा युद्ध में उसकी ओर से लड़ने का वचन देता था।
8. प्रथम वर्ग – पादरी वर्ग-पादरियों ने स्वयं को प्रथम वर्ग में रखा था। कैथोलिक चर्च अपनी भूमियों से कर वसूल कर सकते थे। यूरोप में ईसाई समाज का मार्गदर्शन बिशपों तथा पादरियों द्वारा किया जाता था। धर्म के क्षेत्र में बिशप अभिजात माने जाते थे। बिशपों के पास भी बड़ी-बड़ी जागीरें थीं और वे शानदार महलों में रहते थे।
9. भिक्षु-ये अत्यधिक धार्मिक व्यक्ति होते थे जो मठों में रहते थे। भिक्षु अपना सारा जीवन मठों में रहने और हर समय प्रार्थना करने, अध्ययन और कृषि जैसे शारीरिक श्रम में लगाने का व्रत लेता था। भिक्षु और भिक्षुणियां विवाह नहीं कर सकते थे। मठ छोटे समुदाय से बढ़कर सैकड़ों की संख्या के समुदाय बन गए जिनसे बड़ी इमारतें, भू- जागीरें, स्कूल, कॉलेज और अस्पताल सम्बद्ध थे। इन्होंने कला के विकास में योगदान दिया।
10. चर्च और समाज- चौथी सदी से ही क्रिसमस तथा ईस्टर कैलेंडर की महत्त्वपूर्ण तिथियाँ बन गए थे। 25 दिसम्बर को मनाये जाने वाले ईसा मसीह के जन्मदिन ने एक पुराने पूर्व – रोमन त्यौहार का स्थान ले लिया। तीर्थयात्रा ईसाइयों के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा थी।
11. तीसरा वर्ग – किसान, स्वतंत्र और बंधक – किसान वर्ग तीसरा वर्ग कहलाता था । किसान दो तरह के होते थे –
(1) स्वतन्त्र किसान
(2) सर्फ ( कृषि – दास)।
स्वतन्त्र किसान अपनी भूमि को लार्ड के काश्तकार के रूप में देखते थे। कृषकों के परिवारों को लार्ड की जागीरों पर जाकर काम करने के लिए सप्ताह के तीन या उससे अधिक कुछ दिन निश्चित करने पड़ते थे । कृषि दास अपने गुजारे के लिए जिन भूखण्डों पर कृषि करते थे, वे लार्ड के स्वामित्व में थे। इसलिए उनकी अधिकतर उपज भी लार्ड को हीं मिलती थी। कृषि – दास अपने लार्ड की चक्की में ही आटा पीस सकते थे तथा उनके तंदूर में ही रोटी सेंक सकते थे।
12. इंग्लैण्ड में सामन्तवाद का विकास – इंग्लैण्ड में सामन्तवाद का विकास ग्यारहवीं सदी में हुआ। ग्यारहवीं सदी में नामैंडी के ड्यूक विलियम ने इंग्लैण्ड के सैक्सन राजा को पराजित कर दिया। उसने भूमि को अपने साथ आए 180 नारमन अभिजातों में बाँट दिया। यही लार्ड राजा के प्रमुख काश्तकार बन गए थे।
13. सामाजिक और आर्थिक सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले कारक – लार्ड और सामन्तों के सामाजिक तथा आर्थिक सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले अनेक कारक थे, जिनमें –
- पर्यावरण
- भूमि का उपयोग
- नई कृषि प्रौद्योगिकी आदि उल्लेखनीय थे।
14. चौथा वर्ग – नये नगर और नगरवासी – ग्यारहवीं शताब्दी में कृषि का विस्तार होने के कारण कृषक लोग नगरों में आने लगे। स्वतन्त्र होने की इच्छा रखने वाले अनेक कृषिदास भाग कर नगरों में छिप जाते थे। अपने लार्ड की नजरों से एक वर्ष व एक दिन तक छिपे रहने में सफल रहने वाला कृषि दास एक स्वतन्त्र नागरिक बन जाता था । नगरों में रहने वाले अधिकतर व्यक्ति या तो स्वतन्त्र कृषक या भगोड़े कृषि – दास थे जो अकुशल श्रमिक होते थे। दुकानदार और व्यापारी काफी बड़ी संख्या में थे।
15. श्रेणी ( गिल्ड ) – आर्थिक संस्था का आधार श्रेणी (गिल्ड) था। प्रत्येक शिल्प या उद्योग एक ‘श्रेणी’ के रूप में संगठित था। यह उत्पाद की गुणवत्ता, उसके मूल्य और बिक्री पर नियन्त्रण रखती थी। ‘ श्रेणी सभागार’ प्रत्येक नगर का आवश्यक अंग था।
16. कथीड्रल नगर – बारहवीं सदी से फ्रांस में कथीड्रल कहलाने वाले बड़े चर्चों का निर्माण होने लगा। कथीड्रल का निर्माण करते समय कथीड्रल के आसपास का क्षेत्र और अधिक बस गया और जब उनका निर्माण पूरा हुआ तो वे स्थान तीर्थ-स्थान बन गए। इस प्रकार उनके चारों ओर छोटे नगर विकसित हुए।
17. चौदहवीं सदी का संकट – 14वीं सदी की शुरुआत तक यूरोप का आर्थिक विस्तार धीमा पड़ गया। ऐसा तीन कारकों के वजह से हुआ। ये तीन कारक थे –
- 1315-17 के बीच पड़े भयंकर अकाल
- धातु मुद्रा में कमी आना तथा
- प्लेग।
इससे भारी विनाश हुआ। जनसंख्या बढ़ी तथा आर्थिक मंदी के और जुड़ने से सामाजिक विस्थापन हुआ तथा श्रमिक बल में कमी आ गई।
18. सामाजिक असन्तोष- मजदूरी की दरें बढ़ने तथा कृषि सम्बन्धी मूल्यों की गिरावट ने अभिजात वर्ग की आय को घटा दिया। अतः उन्होंने धन सम्बन्धी अनुबन्धों को तोड़ दिया और पुरानी मजदूरी सेवाओं को फिर से प्रचलित कर दिया । इसके फलस्वरूप अनेक स्थानों पर कृषकों के विद्रोह हुए।
19. राजनीतिक परिवर्तन – पन्द्रहवीं और सोलहवीं सदियों में यूरोपीय शासकों ने अपनी सैनिक एवं वित्तीय शक्ति को बढ़ाया। अनेक सम्राटों ने स्थायी सेनाओं, स्थायी नौकरशाही तथा राष्ट्रीय कर प्रणाली स्थापित करने की प्रक्रिया को शुरू किया। स्पेन और पुर्तगाल ने यूरोप के समुद्र पार विस्तार की योजनाएँ बनाईं।
फ्रांस का प्रारम्भिक इतिहास
तिथि ( ई.) | घटना |
481 | क्लोविस फ्रैंक लोगों का राजा बना। |
486 | क्लोविस और फ्रैंक.ने उत्तरी गॉल का विजय अभियान शुरू किया। |
496 | क्लोविस और फ्रैंक लोग धर्म-परिवर्तन करके ईसाई बने। |
714 | चार्ल्स मारटल राजमहंल का मेयर बना। |
751 | मारटल का पुत्र पेपिन फ्रैंक लोगों के शासक को अपदस्थ करके शासक बना और उसने एक अलग वंश की स्थापना की। उसके विजय-अभियानों ने राज्य का आकार दुगुना कर दिया। पेपिन का स्थान उसके पुत्र शार्लमेन/चार्ल्स महान द्वारा लिया गया। |
768 | पोप लियो III ने शार्लमेन को पवित्र रोमन सम्राट का ताज पहनाया। |
800 | नार्वे से वाइकिंग लोगों के हमले। |
840 | मारटल का पुत्र पेपिन फ्रैंक लोगों के शासक को अपदस्थ करके शासक बना और उसने एक अलग वंश की स्थापना की। उसके विजय-अभियानों ने राज्य का आकार दुगुना कर दिया। पेपिन का स्थान उसके पुत्र शार्लमेन/चार्ल्स महान द्वारा लिया गया। |
ग्यारहवीं से चौदहवीं शताब्दियों में (यूरोप) | |
तिथि (ई.) | घटना |
1066 | नारमन लोगों की एंग्लो-सेक्सन लोगों को हराकर इंग्लैण्ड पर विजय |
1100 के पश्चात् | फ्रांस में कथीड्रल का निर्माण |
1315-1317 | यूरोप में महान अकाल |
1347-1350 | ब्यूबोनिक प्लेग (Black Death) |
1338-1461 | इंग्लैण्ड और फ्रांस के मध्य ‘सौ वर्षीय युद्ध’ |
1381 | कृषकों के विद्रोह। |