JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 स्थानीय शासन 

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 स्थानीय शासन Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 स्थानीय शासन

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. स्थानीय स्वशासन का सम्बन्ध है।
(क) स्थानीय हित से
(ख) राष्ट्रीय हित से
(ग) प्रादेशिक हित से
(घ) अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं से
उत्तर:
(क) स्थानीय हित से

2. जीवन्त और मजबूत स्थानीय शासन सुनिश्चित करता है।
(क) जनता की सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही को
(ख) जनता की निरंकुशता को
(ग) जनता की स्वेच्छाचारिता को
(घ) सामन्तशाही को।
उत्तर:
(क) जनता की सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही को

3. ब्रिटिश काल में भारत में स्थानीय शासन के निर्वाचित निकाय को कहा जाता था।
(क) ग्राम पंचायत
(ख) तालुका पंचायत
(ग) नगर परिषद
(घ) मुकामी बोर्ड
उत्तर:
(घ) मुकामी बोर्ड

4. जब संविधान बना तो स्थानीय शासन का विषय सौंप दिया गया।
(क) संघ की सरकार को
(ख) प्रदेशों की सरकार को
(ग) मुकामी बोर्डों को
(घ) उपर्युक्त में से किसी को नहीं
उत्तर:
(ख) प्रदेशों की सरकार को

5. पंचायती राज व्यवस्था से संबंधित संविधान संशोधन है।
(क) 72वां संविधान संशोधन
(ख) 78वां संविधान संशोधन
(ग) 73वां संविधान संशोधन
(घ) 74वां संविधान संशोधन
उत्तर:
(ग) 73वां संविधान संशोधन

6. अब प्रत्येक पंचायती निकाय का चुनाव किया जाता है।
(क) 3 साल के लिए
(ख) चार साल के लिए
(ग) 6 साल के लिए
(घ) पांच साल के लिए
उत्तर:
(घ) पांच साल के लिए

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7. सभी पंचायती संस्थाओं में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित की गई हैं।
(क) 7 1/2 प्रतिशत
(ख) 50 प्रतिशत
(ग) 20 प्रतिशत
(घ) 33 प्रतिशत
उत्तर:
(घ) 33 प्रतिशत

8. संविधान की 11वीं अनुसूची में दर्ज विषय प्रदान किये गये हैं।
(क) संघ सरकार को
(ख) राज्य सरकारों को
(ग) स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं को
(घ) किसी को नहीं
उत्तर:
(ग) स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं को

9. शहरी स्थानीय निकायों का कुल राजस्व उगाही में योगदान है।
(क) 0.24 प्रतिशत का
(ख) 4 प्रतिशत का
(ग) 24 प्रतिशत का
(घ) 76 प्रतिशत का
उत्तर:
(क) 0.24 प्रतिशत का

10. संविधान का कौनसा संशोधन शहरी स्थानीय शासन से संबंधित है?
(क) 60वाँ
(ख) 62वाँ
(ग) 63वाँ
(घ) 74वाँ
उत्तर:
(घ) 74वाँ

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. गाँव और जिला स्तर के शासन को …………………… कहते हैं।
उत्तर:
स्थानीय शासन

2. स्थानीय शासन का विषय है-आम नागरिक की समस्यायें और उसकी रोजमर्रा की ………………….
उत्तर:
जिंदगी

3. संविधान का ……………… संविधान संशोधन गाँव के स्थानीय शासन से जुड़ा है।
उत्तर:
63वाँ

4. संविधान का 74वाँ संशोधन ………………… स्थानीय शासन से जुड़ा है।
उत्तर:
शहरी

5. सभी पंचायत संस्थाओं में एक-तिहाई सीटें …………………… के लिए आरक्षित हैं।
उत्तर:
महिलाओं।

निम्नलिखित में से सत्य/असत्य कथन छाँटिये

1. सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की लगभग 31 प्रतिशत जनसंख्या शहरी इलाकों में रहती है।
उत्तर:
सत्य

2. अब सभी प्रदेशों में पंचायती राज व्यवस्था का ढाँचा त्रि-स्तरीय है।
उत्तर:
सत्य

3. हर पंचायती निकाय की अवधि 3 साल की होती है।
उत्तर:
असत्य

4. ऐसे 29 विषय जो पहले समवर्ती सूची में थे, अब पहचान कर संविधान की 11वीं अनुसूची में दर्ज कर लिए गए हैं।
उत्तर:
असत्य

5. प्रदेशों की सरकार के लिए हर 5 वर्ष पर एक प्रादेशिक वित्त आयोग बनाना जरूरी है।
उत्तर:
सत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये

1. पंचायत समिति (अ) नगरीय स्थानीय स्वशासन की संस्था
2. नगर निगम (ब) पी.के. थुंगन समिति (1989)
3. सामुदायिक विकास (स) सन् 1993 कार्यक्रम
4. स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा (द) सन् 1952 प्रदान करने की सिफारिश की
5. 73वां और 74वां संविधान संशोधन लागू हुए (य) ग्रामीण स्थानीय स्वशासन की संस्था

उत्तर:

1. पंचायत समिति (य) ग्रामीण स्थानीय स्वशासन की संस्था
2. नगर निगम (अ) नगरीय स्थानीय स्वशासन की संस्था
3. सामुदायिक विकास (द) सन् 1952
4. स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा (ब) पी.के. थुंगन समिति (1989)
5. 73वां और 74वां संविधान संशोधन लागू हुए (स) सन् 1993

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पंचायती राज क्या है?
उत्तर:
पंचायती राज उस व्यवस्था को कहते हैं जिसके अन्तर्गत ग्रामों में रहने वाले लोगों को अपने गांवों का प्रशासन तथा विकास का अधिकार दिया गया है।

प्रश्न 2.
स्थानीय स्वशासन संस्थाओं से क्या आशय है?
उत्तर:
स्थानीय मामलों का प्रबन्ध करने वाली संस्थाओं को स्थानीय स्वशासन संस्थाएँ कहते हैं।

प्रश्न 3.
पंचायती राज के किन्हीं दो उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पंचायती राज के दो प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं।

  1. ग्रामों का विकास करना व उन्हें आत्मनिर्भर बनाना।
  2. ग्रामीणों को उनके अधिकार और कर्तव्य का ज्ञान कराना।

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प्रश्न 4.
पंचायती राज संस्थाओं में स्त्रियों के लिए कितनी सीटें आरक्षित की गई हैं?
उत्तर:
73वें संविधान संशोधन के तहत पंचायती राज संस्थाओं के सभी स्तरों में स्त्रियों के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित की गई हैं।

प्रश्न 5.
ग्राम सभा क्या है?
उत्तर:
ग्राम सभा एक तरह से गांव की संसद है। एक ग्राम पंचायत क्षेत्र के सभी मतदाता ग्राम सभा के सदस्य होते हैं। इसकी एक वर्ष में दो सामान्य बैठकें होना आवश्यक है।

प्रश्न 6.
स्थानीय शासन का विषय क्या है?
उत्तर:
स्थानीय शासन का विषय है। आम नागरिक की समस्यायें और उसकी रोजमर्रा की जिंदगी।

प्रश्न 7.
स्थानीय शासन की मान्यता क्या है?
उत्तर:
स्थानीय शासन की मान्यता है कि स्थानीय ज्ञान और स्थानीय हित लोकतांत्रिक फैसले लेने के लिए तथा कारगर और जन 1 हितकारी प्रशासन के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 8.
संविधान में स्थानीय शासन का विषय किसे सौंपा गया है?
उत्तर:
संविधान में स्थानीय शासन को राज्य सूची में रखा गया है। प्रदेशों को इस बात की छूट है कि वे स्थानीय शासन के बारे में अपनी तरह का कानून बनाएं।

प्रश्न 9.
ग्यारहवीं अनुसूची में दर्ज किन्हीं दो विषयों के नाम लिखिये।
उत्तर:
कृषि, लघु सिंचाई, जल प्रबंधन, जल संचय का विकास।

प्रश्न 10.
73वें संविधान संशोधन द्वारा राज्य सूची के कितने विषय 11वीं अनुसूची में दर्ज कर लिए गये हैं?
उत्तर:
73वें संविधान संशोधन के द्वारा राज्य सूची के 29 विषय संविधान की 11वीं अनुसूची में दर्ज कर लिये गये हैं।

प्रश्न 11.
11वीं अनुसूची के विषयों का स्थानीय शासन को वास्तविक हस्तांतरण किस पर निर्भर है?
उत्तर:
11वीं अनुसूची में दर्ज विषयों का वास्तविक हस्तांतरण प्रदेश के कानून पर निर्भर है। हर प्रदेश यह फैसला करेगा कि इन 29 विषयों में से कितने को स्थानीय निकायों के हवाले करना है।

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प्रश्न 12.
संविधान के 74वें संविधान संशोधन का संबंध किससे है?
उत्तर:
संविधान के 74वें संशोधन का सम्बन्ध शहरी स्थानीय शासन के निकाय अर्थात् नगरपालिका, नगर निगम और नगर परिषदों से है।

प्रश्न 13.
भारत की कितने प्रतिशत जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में रहती है?
उत्तर:
सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की लगभग 31 प्रतिशत जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में रहती है।

प्रश्न 14.
आज ग्रामीण भारत में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं की संख्या क्या है?
उत्तर:
आज ग्रामीण भारत में स्थानीय स्वशासन से संबंधित

  1. जिला पंचायतों की संख्या 500,
  2. मध्यवर्ती अथवा प्रखंड स्तरीय पंचायत की संख्या 6000 तथा
  3. ग्राम पंचायतों की संख्या 2,40,000 है

प्रश्न 15.
वर्तमान में शहरी भारत में कितने नगर निगम, नगरपालिकाएँ और नगर पंचायतें हैं?
उत्तर:
वर्तमान में शहरी भारत में 100 से ज्यादा नगर निगम, 1400 नगरपालिका तथा 2000 नगर पंचायतें विद्यमान हैं।

प्रश्न 16.
पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव कराने की जिम्मेदारी किसकी है?
उत्तर:
राज्य निर्वाचन आयुक्त की।

प्रश्न 17.
जिला परिषद् क्या है?
उत्तर:
जिला परिषद् पंचायती राज की त्रिस्तरीय व्यवस्था का शीर्ष निकाय है।

प्रश्न 18.
नगर निगम के सर्वोच्च अधिकारी को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
नगर निगम के सर्वोच्च अधिकारी को महापौर कहा जाता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान में स्थानीय शासन के मामले को अधिक महत्त्व न मिलने के कारणों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
संविधान में निम्नलिखित कारणों से स्थानीय शासन के मामले को अधिक महत्त्व नहीं मिल सका

  1. देश-विभाजन की खलबली के कारण संविधान निर्माताओं का झुकाव केन्द्र को मजबूत बनाने का रहा। नेहरू स्वयं अति स्थानीयता को राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए खतरा मानते थे।
  2. डॉ. अम्बेडकर का कहना था कि ग्रामीण भारत में जाति-पांति और आपसी फूट का बोलबाला है। ऐसे माहौल में स्थानीय शासन अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पायेगा।

प्रश्न 2.
स्थानीय शासन के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्थानीय शासन का महत्त्व।

  1. स्थानीय शासन लोगों के सबसे नजदीक होता है। इस कारण उनकी समस्याओं का समाधान बहुत तेजी से तथा कम खर्चे में हो जाता है।
  2. जीवन्त और मजबूत स्थानीय शासन सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही को सुनिश्चित करता है।
  3. मजबूत स्थानीय शासन से लोकतांत्रिक प्रक्रिया मजबूत होती है।

प्रश्न 3.
ब्राजील के संविधान का कौनसा प्रावधान स्थानीय शासन की शक्ति को सुरक्षा प्रदान करता है? ब्राजील के संविधान में प्रांत, संघीय जिले तथा नगर परिषदों में हर एक को स्वतंत्र शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। जिस तरह गणराज्य (Republic) राज्यों के काम-काज में हस्तक्षेप नहीं कर सकता, ठीक उसी तरह राज्य भी नगरपालिका-नगरपरिषद के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। अहस्तक्षेप का यह प्रावधान स्थानीय शासन की शक्ति को सुरक्षा प्रदान करता है।

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प्रश्न 4.
73वें संविधान संशोधन की कोई चार विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
73वें संविधान संशोधन की विशेषताएँ-

  • त्रिस्तरीय बनावट: 73वें संशोधन के द्वारा अब प्रदेशों में पंचायती राज व्यवस्था का ढाँचा त्रि-स्तरीय है।
    1. ग्राम पंचायत
    2. मध्यवर्ती या खंड स्तरीय पंचायत और
    3. जिला पंचायत।
  • ग्राम सभा: संविधान संशोधन में अब ग्राम सभा की दो बैठकें अनिवार्य कर दी गई हैं। ग्राम पंचायत का हर मतदाता इसका सदस्य होता है।
  • चुनाव: पंचायती राज संस्थाओं के तीनों स्तर के चुनाव अब सीधे जनता करती है। हर पंचायती निकाय की अवधि 5 साल की होती है।
  • आरक्षण: सभी पंचायत संस्थाओं में एक-तिहाई आरक्षण महिलाओं के लिए दिया गया है। साथ ही अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए भी आरक्षण के प्रावधान किये गये हैं।

प्रश्न 5.
ग्यारहवीं अनुसूची में किस प्रकार के विषय रखे गये हैं? किन्हीं पांच विषयों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
ग्यारहवीं अनुसूची में राज्य सूची के 29 विषय रखे गये हैं। अधिकांश मामलों में इन विषयों का सम्बन्ध स्थानीय स्तर पर होने वाले विकास और कल्याण के कामकाज से है।11वीं अनुसूची के पांच प्रमुख विषय ये हैं।

  1. कृषि
  2. लघु सिंचाई, जल प्रबंधन, जल संचय का विकास
  3. लघु उद्योग, इसमें खाद्य प्रसंस्करण के उद्योग शामिल हैं।
  4. ग्रामीण आवास
  5. ग्रामीण विद्युतीकरण।

प्रश्न 6.
ग्राम पंचायत की क्या भूमिका है?
उत्तर:
ग्राम पंचायत की भूमिका-ग्रामीण जीवन में ग्राम पंचायत एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है जो कि निम्नलिखित है।

  1. ग्राम पंचायत अपने क्षेत्र में जल आपूर्ति, शांति एवं व्यवस्था, स्वच्छता तथा जन-स्वास्थ्य के प्रति उत्तरदायी
  2. ग्राम पंचायत अपने क्षेत्र में स्थानीय सरकार के समस्त कार्य करती है।
  3. यह अपने क्षेत्र में ग्रामीण विकास, ग्रामीण सुधार, सामाजिक न्याय तथा आर्थिक विकास के लिए उत्तरदायी है तथा उसके लिए योजनाएँ बनाती है तथा उन्हें क्रियान्वित करती है।
  4. ग्राम पंचायत समूची पंचायती राज व्यवस्था का आधार है जिसकी सफलता पर ही इसकी सफलता निर्भर करती है।
  5. ग्राम पंचायत ग्रामीणों को प्रशासन का प्रशिक्षण देती है जो कि भारतीय लोकतंत्र की सफलता का आधार है।

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प्रश्न 7.
राज्य चुनाव आयुक्त की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
राज्य चुनाव आयुक्त: 73वें तथा 74वें संविधान संशोधनों ने स्थानीय स्वशासन के लिए एक राज्य चुनाव आयुक्त की स्थापना की है। इस आयुक्त की जिम्मेदारी राज संस्थाओं के चुनाव कराने की होगी। प्रदेश का यह चुनाव आयुक्त एक स्वतंत्र अधिकारी है। इसका संबंध भारत के चुनाव आयोग से नहीं होता।

प्रश्न 8.
राज्य वित्त आयोग की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राज्य वित्त आयोग: 73वें व 74वें संविधान संशोधन में प्रदेशों की सरकार के लिए पांच वर्ष पर एक प्रादेशिक वित्त आयोग बनाना आवश्यक है। यह आयोग एक तरफ प्रदेश और स्थानीय शासन की व्यवस्थाओं के बीच तो दूसरी तरफ शहरी और ग्रामीण स्थानीय शासन की संस्थाओं के बीच राजस्व के बंटवारे का पुनरावलोकन करेगा।

प्रश्न 9.
पंचायती राज व्यवस्था की त्रिस्तरीय बनावट क्या है? था
उत्तर:
त्रिस्तरीय बनावट: भारत में वर्तमान में सभी राज्यों में पंचायती राज व्यवस्था का ढांचा त्रिस्तरीय है।

  1. ग्राम पंचायत: पहले स्तर पर या सबसे नीचे ग्राम पंचायत आती है जिसमें एक या एक से ज्यादा गांव होते
  2. खंड या तालुका पंचायत-मवर्ती स्तर मंडल का है जिसे खंड या तालुका भी कहा जाता है। यह अनेक ग्राम पंचायतों से मिलकर बना होता है।
  3. जिला पंचायत: सबसे ऊपर के पायदान पर जिला पंचायत का स्थान है। इसके दायरे में जिले का सम्पूर्ण ग्रामीण इलाका आता है।

प्रश्न 10.
73वें संविधान संशोधन में चुनाव सम्बन्धी क्या प्रावधान किये गये हैं?
उत्तर:
निर्वाचन सम्बन्धी प्रावधान: 73वें संविधान संशोधन के अनुसार पंचायती राज संस्थाओं के तीनों स्तर के चुनाव सीधे जनता करती है। हर पंचायती निकाय की अवधि पांच साल की होती है। यदि प्रदेश की सरकार पांच साल पूरे होने से पहले पंचायत को भंग करती है तो इसके छ: माह के अन्दर नये चुनाव हो जाने चाहिए।

प्रश्न 11.
73वें तथा 74वें संशोधन के बाद भारत में स्थानीय स्वशासन को किस प्रकार मजबूती मिली है?
उत्तर:
73वें तथा 74वें संशोधन के बाद भारत में स्थानीय स्वशासन को अग्र रूपों में मजबूती मिली है।

  1. स्थानीय निकायों की चुनावों की निश्चितता के बाद से चुनाव के कारण निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है।
  2. इन संशोधनों ने देश भर की पंचायती राज संस्थाओं और नगरपालिका की संस्थाओं की बनावट को एकसा किया है।
  3. अब महिलाओं के आरक्षण के प्रावधान के कारण स्थानीय निकायों में महिलाओं की भारी संख्या में मौजूदगी सुनिश्चित हुई है।
  4. दलित तथा आदिवासियों को आरक्षण मिलने से स्थानीय निकायों की सामाजिक बनावट में भारी बदलाव आए हैं।

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प्रश्न 12.
वर्तमान में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के कारगर ढंग से कार्य नहीं कर पाने के कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के अप्रभावी होने के कारण यद्यपि सैद्धान्तिक रूप अर्थात् 73वें तथा 74वें संविधान संशोधनों के बाद भारत में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं को समर्थ तथा सक्षम बनाने का प्रयास किया गया है, लेकिन व्यवहार में कुछ कारणों ने अभी भी इन्हें दुर्बल बना रखा है और ये संस्थाएँ अपनी भूमिका सार्थक ढंग से नहीं निभा पा रही हैं।

1. स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करने की छूट का न होना:
संविधान के संशोधनों ने 29 विषयों को स्थानीय शासन के हवाले किया है। ये सारे विषय स्थानीय विकास तथा कल्याण की जरूरतों से संबंधित हैं। स्थानीय शासन के कामकाज के पिछले दशकों के अनुभव बताते हैं कि भारत में इसे अपना कामकाज स्वतंत्रतापूर्वक करने की छूट बहुत कम है। अनेक प्रदेशों ने अधिकांश विषय स्थानीय निकायों को नहीं सौंपे हैं। फलतः वे कारगर ढंग से काम नहीं कर पा रहे हैं।

2. धन की कमी:
स्थानीय निकायों के पास धन बहुत कम होता है। वे प्रदेश और केन्द्र की सरकार पर वित्तीय मदद के लिए निर्भर होते हैं। इससे कारगर ढंग से काम कर सकने की उनकी क्षमता का बहुत क्षरण हुआ है।

प्रश्न 13.
1992 के 74वें संविधान संशोधन अधिनियम के मुख्य प्रावधान क्या हैं?
उत्तर:
1992 के 74वें संविधान संशोधन अधिनियम के मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं।

  1. नगरपालिकाओं में समाज के कमजोर वर्गों तथा महिलाओं को आरक्षण के माध्यम से सार्थक प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया है।
  2. विधान की 12वीं अनुसूची नगरीय संस्थाओं को व्यापक शक्तियाँ प्रदान करती है।
  3. नगरीय संस्थाओं के लिए वित्तीय साधन जुटाने के लिए एक वित्तीय आयोग की स्थापना का प्रावधान है।
  4. नगर निगम या नगरपालिकाओं का सामान्य कार्यकाल 5 वर्ष है, लेकिन इससे पूर्व इनके भंग हो जाने की दशा में नयी संस्थाओं के गठन के लिए 6 महीनों के भीतर चुनाव कराना अनिवार्य होगा। चुनावों की जिम्मेदारी राज्य निर्वाचन आयोग को सौंपी गई है।

प्रश्न 14.
नगरीय स्वशासी संस्थाएँ किन-किन समस्याओं से जूझ रही हैं?
उत्तर:
नगरीय स्वशासी संस्थाओं की समस्यायें: नगरीय स्वशासी संस्थाएँ नगर निगम तथा नगरपालिकाएँ। आज निम्नलिखित समस्याओं से जूझ रही हैं।

  1. सरकार का हस्तक्षेप: स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के कामकाज में राज्य सरकार और जिला अधिकारियों का अनावश्यक हस्तक्षेप उनके कार्यों में रुकावट डाल रहा है। यदि एक नगर निगम में उस दल का बहुमत है जो दल राज्य सरकार में विरोधी दल है तो राज्य मंत्रिमंडल उसे ठीक से कार्य नहीं करने देता।
  2. राजनेताओं द्वारा दबाव: नगरीय स्वशासी संस्थाओं पर शहरी राजनेताओं द्वारा तरह-तरह के दबाव डाले जाते हैं।
  3. जनसंख्या वृद्धि: शहरी जनसंख्या में जनसंख्या बेहताशा ढंग से बढ़ी है। जनसंख्या वृद्धि के कारण आवास सुविधाओं का बड़ा अभाव है तथा तेजी से गंदी बस्तियों का विकास हो रहा है। इससे पर्यावरण सम्बन्धी समस्यायें बढ़ी हैं तथा अपराध भी बढ़ रहे हैं।

प्रश्न 15.
स्थानीय शासन के महत्त्व का विवेचन कीजिये।
उत्तर:
स्थानीय शासन का महत्त्व ( उपयोगिता ) स्थानीय शासन आम आदमी के सबसे नजदीक का शासन है। इसका विषय है। आम नागरिक की समस्यायें और उसकी रोजमर्रा की जिंदगी। लोकतंत्र और कारगर तथा जनहितकारी प्रशासन की दृष्टि से यह अत्यन्त उपयोगी है। इसके महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है।

1. स्थानीय लोगों की समस्याओं का समाधान तीव्र गति से तथा कम खर्च में:
चूंकि स्थानीय शासन लोगों के सबसे नजदीक होता है इसलिए उनकी समस्याओं का समाधान बहुत तेजी से तथा कम खर्चे में हो जाता है। उदाहरण के लिए, गीता राठौड़ ने ग्राम पंचायत के सरपंच के रूप में सक्रिय भूमिका निभाते हुए जमनिया तालाब पंचायत में बड़ा बदलाव कर दिखाया। बेंगैसवल गांव की जमीन पर उस गांव का ही हक रहा।

2. सक्रिय भागीदारी तथा उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही: लोकतंत्र की सफलता के लिए सार्थक भागीदारी और जवाबदेही की सुनिश्चितता आवश्यक होती है। जीवन्त और मजबूत स्थानीय शासन सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही को सुनिश्चित करता है। जो काम स्थानीय स्तर पर किये जा सकते हैं वे काम स्थानीय लोगों और इनके प्रतिनिधियों के हाथ में रहने चाहिए। लोकतंत्र के लिए यह जरूरी है। आम जनता प्रादेशिक या केन्द्रीय सरकार से कहीं ज्यादा परिचित स्थानीय शासन से होती है। इस तरह, स्थानीय शासन को मजबूत करना लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत बनाता है।

प्रश्न 16.
संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची में दर्ज कोई 10 विषयों के नाम लिखिये।
उत्तर:
ग्यारहवीं अनुसूची में दर्ज विषय ग्यारहवीं अनसूची में दर्ज प्रमुख विषय निम्नलिखित हैं।

  1. कृषि
  2. लघु सिंचाई, जल प्रबंधन, जल संचय का विकास
  3. लघु उद्योग, इसमें खाद्य प्रसंस्करण के उद्योग शामिल हैं।
  4. ग्रामीण आवास
  5. पेयजल
  6. सड़क, पुलिया
  7. ग्रामीण विद्युतीकरण
  8. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम
  9. शिक्षा इसमें प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की शिक्षा शामिल है।
  10. तकनीकी प्रशिक्षण तथा व्यावसायिक शिक्षा।

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प्रश्न 17.
बोलिविया के स्थानीय स्वशासन पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
बोलिविया में स्थानीय स्वशासन लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण के सफल उदाहरण के रूप में अक्सर लातिनी अमेरिका के देश बोलिविया का नाम लिय जाता है। यथा बोलिविया में स्थानीय स्वशासन का संगठन: सन् 1994 में जनभागीदारी कानून के तहत यहाँ सत्ता का विकेन्द्रीकरण कर स्थानीय स्तर नगरपालिका प्रशासन को सत्ता सौंपी गई है। बोलिविया में 314 नगरपालिकाएँ हैं। नगरपालिकाओं का नेतृत्व जनता द्वारा निर्वाचित महापौर करते हैं। इन्हें Presidente Municipal भी कहा जाता है महापौर के साथ एक नगरपालिका परिषद होती है। स्थानीय स्तर पर देशव्यापी चुनाव हर पांच वर्ष पर होते हैं। बोलिविया स्थानीय स्वशासन की शक्तियाँ।

  1. यहाँ स्थानीय सरकार को स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधा बहाल करने तथा आधारभूत ढांचे के रख-रखाव की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
  2. यहाँ देशव्यापी राजस्व उगाही का 20 प्रतिशत नगरपालिकाओं को प्रति व्यक्ति के हिसाब से दिया जाता है।
  3. नगरपालिका को मोटर वाहन, शहरी संपदा तथा बड़ी कृषि सम्पदा पर कर लगाने का अधिकार है इन नगरपालिकाओं के बजट का अधिकांश हिस्सा वित्तीय हस्तांतरण प्रणाली के जरिये प्राप्त होता है। इस प्रकार बोलिविया में एक ऐसी प्रणाली अपनायी गई है कि इन नगरपालिकाओं को धन स्वतः हस्तांतरित हो जाये।

प्रश्न 18.
स्पष्ट कीजिये कि पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण के प्रावधान के कारण महिलाओं की भारी संख्या में मौजूदगी सुनिश्चित हुई है।
उत्तर:
73वें तथा 74वें संविधान संशोधनों के तहत पंचायतों और नगरपालिकाओं में सभी स्तरों पर महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित किये जाने का प्रावधान किया गया है। सभी राज्यों की सरकारों ने अपने स्थानीय स्वशासन सम्बन्धी कानूनों में इस प्रावधान का पालन किया। महिलाओं के लिए आरक्षण के इस प्रावधान के कारण स्थानीय निकायों में महिलाओं की भारी संख्या में मौजूदगी सुनिश्चित हुई है। यथा

  1. निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों की एक बड़ी संख्या अध्यक्ष और सरपंच जैसे पदों पर आसीन हुई है। आज कम से कम 200 महिलाएँ जिला पंचायतों की अध्यक्ष हैं। 2000 महिलाएँ प्रखंड अथवा तालुका पंचायत की अध्यक्ष हैं और ग्राम पंचायतों में महिला सरपंच की संख्या 80000 से ज्यादा है।
  2. नगर निगमों में 30 महिलाएँ मेयर (महापौर) हैं। नगरपालिकाओं में 500 से ज्यादा महिलाएँ अध्यक्ष पद पर आसीन हैं। लगभग 650 नगर पंचायतों की प्रधानी महिलाओं के हाथ में है। संसाधनों पर अपने नियंत्रण की दावेदारी करके महिलाओं ने ज्यादा शक्ति और आत्मविश्वास अर्जित किया है। साथ ही इससे स्त्रियों में राजनीति के प्रति समझ बढ़ी है। स्थानीय निकायों में महिलाओं की मौजूदगी से चर्चा ज्यादा संवेदनशील हुई है।

प्रश्न 19.
स्पष्ट कीजिये कि स्थानीय शासन की संस्थाओं में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्ग के प्रतिनिधित्व से निकायों की सामाजिक बुनावट में भारी बदलाव आए हैं।
उत्तर:
स्थानीय निकायों की सामाजिक बुनावट में परिवर्तन:
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण को संविधान संशोधन ने अनिवार्य बना दिया था । इसके साथ ही, अधिकांश प्रदेशों ने पिछड़ी जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान बनाया है। भारत की जनसंख्या में 16.2 प्रतिशत अनुसूचित जाति तथा 8.2 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति है। स्थानीय शासन के शहरी तथा ग्रामीण संस्थाओं के निर्वाचित सदस्यों में इन समुदायों के सदस्यों की संख्या लगभग 6.6 लाख है। इससे स्थानीय निकायों की सामाजिक बुनावट में भारी बदलाव आए हैं।

ये निकाय जिस सामाजिक सच्चाई के बीच काम कर रहे हैं, अब उस सच्चाई की नुमाइंदगी इन निकायों के जरिये ज्यादा हो रही है। कभी-कभी इससे तनाव पैदा होता है। लेकिन तनाव और संघर्ष हमेशा बुरे नहीं होते। जब भी लोकतंत्र को ज्यादा सार्थक बनाने और ताकत से वंचित लोगों को ताकत देने की कोशिश होगी तो समाज में संघर्ष और तनाव होना ही है।

प्रश्न 20.
” सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों के आरक्षण ने ग्रामीण स्तर पर नेतृत्व के स्वरूप को परिवर्तन कर दिया है। ” कैसे ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
ग्रामीण स्तर पर आरक्षण ने नेतृत्व के स्वरूप में परिवर्तन ला दिया है। 73वें संविधान संशोधन के अन्तर्गत पंचायती राज संस्थाओं में प्रत्येक स्तर पर आरक्षण न केवल सीटों के लिए किया गया है, बल्कि उनके अध्यक्षों व सरपंचों के पदों पर भी आरक्षण किया गया है तथा इन श्रेणी की स्त्रियों के लिए भी 1/3 सीटों का आरक्षण किया गया है। इस प्रावधान ने ग्राम स्तर के नेतृत्व के स्वरूप में परिवर्तन ला दिया है। यथा।

  1. पहले जहाँ उच्च वर्ग या प्रभुत्व वर्गों के पुरुष सदस्यों का नेतृत्व पर एकाधिकार था, जब दलित और पिछड़े वर्गों के पुरुष तथा स्त्री सदस्य भी इस नेतृत्व में भागीदार बने हैं।
  2. अब दलित तथा पिछड़े वर्गों के पुरुष तथा स्त्री भी इन संस्थाओं में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और गांव के विकास तथा प्रशासन के प्रस्तावों पर समान रूप से विचार-विमर्श में भागीदारी कर रहे हैं।
  3. अब दलित तथा पिछड़े वर्गों के स्त्री-पुरुष प्रतिनिधि भी निर्णय – निर्माण प्रक्रिया में समान रूप से भागीदारी कर रहे हैं। पहले जो तबका सामाजिक रूप से प्रभावशाली होने के कारण गांव पर अपना नियंत्रण रखता था, लेकिन अब दलित आदिवासी तथा अन्य पिछड़े वर्गों के लोगों का नेतृत्व भी उभरा है। इससे ग्रामीण स्तर पर नेतृत्व के स्वरूप में परिवर्तन आया है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्थानीय स्वशासन क्या है? इसके महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्थानीय स्वशासन का अर्थ- स्थानीय मामलों का प्रबन्ध करने वाली संस्थाओं को स्वशासन संस्थाएँ कहते हैं। गाँव और जिला स्तर के शासन को स्थानीय शासन कहते हैं और जब इन संस्थाओं का शासन वहाँ की जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है, तो ऐसे स्थानीय शासन को ही स्थानीय स्वशासन कहा जाता है। स्थानीय स्वशासन का महत्त्व स्थानीय स्वशासन की उपयोगिता या उसके महत्व का विवेचन अग्रलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।

1. स्थानीय आवश्यकताओं का सर्वोत्तम प्रशासन:
स्थानीय शासन आम आदमी के सबसे नजदीक का शासन है। इसका विषय है-आम नागरिक की समस्यायें और उसकी रोजमर्रा की जिन्दगी। इसकी मान्यता है कि स्थानीय ज्ञान और स्थानीय हित लोकतांत्रिक फैसले लेने के अनिवार्य घटक हैं। लोगों की स्थानीय आवश्यकताएँ क्षेत्र और स्थान की भिन्नता के आधार पर भिन्न-भिन्न होती हैं। वे पूरे देश में एकसमान नहीं हो सकतीं। इन आवश्यकताओं और समस्याओं को उस क्षेत्र के निवासी अच्छी तरह जानते हैं। चूंकि जब उस क्षेत्र के निवासियों के निर्वाचित प्रतिनिधि स्थानीय शासन का कार्य संभालेंगे तथा नीतियों का निर्माण करेंगे तो स्वाभाविक रूप से वे उस क्षेत्र की आवश्यकताओं और समस्याओं का अधिक अच्छी तरह से समाधान कर सकेंगे।

2. स्थानीय शासन और जनता के बीच घनिष्ठ सम्पर्क:
स्थानीय स्वशासन में जनता और शासन के मध्य घनिष्ठ सम्पर्क रहता है। आम जनता प्रादेशिक या केन्द्रीय सरकार से कहीं ज्यादा परिचित स्थानीय शासन से होती है। स्थानीय शासन क्या कर रहां है और क्या करने में नाकाम रहा है। आम जनता का इस सवाल से अधिक सरोकार रहता है क्योंकि इस बात का सीधा असर उसकी रोजमर्रा की जिन्दगी पर पड़ता है। स्थानीय स्वशासन में लोगों के निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं, जिन तक वे आसानी से पहुंचकर अपनी समस्याओं और आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दबाव बना सकते हैं। इस प्रकार स्थानीय स्वशासन में जनता और शासन के बीच घनिष्ठ सम्पर्क रहता है।

3. प्रशासन में दक्षता:
स्थानीय स्वशासन प्रशासन में दक्षता लाता है। स्थानीय सरकारें प्रान्तीय और संघीय सरकारों के प्रशासनिक बोझ को कम करती हैं। स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति स्थानीय निकायों द्वारा की जाती है। प्रशासनिक बोझ के कम होने से प्रत्येक स्तर की सरकार की कार्यक्षमता बढ़ जाती है। उदाहरण के रूप में गीता राठौड़ ने ग्राम पंचायत के सरपंच के रूप में सक्रिय भूमिका निभाते हुए जमनिया तलाब पंचायत में बड़ा बदलाव कर दिखाया।

4. कम खर्च:
स्थानीय स्वशासन, प्रदेश की सरकार द्वारा सरकारी कर्मचारियों/अधिकारियों के माध्यम से किये जाने वाले स्थानीय शासन की तुलना में कम खर्चीला होता है। स्थानीय निकायों के सदस्य जनता द्वारा निर्वाचित होते हैं, वे स्थानीय मामलों के प्रबन्ध पर अपना समय और शक्ति या तो ऑनरेरी आधार या छोटे भत्तों पर प्रदान करते हैं। दूसरे, सरकार जो धन व्यय करती है, उस पर कम ध्यान देती है; जबकि स्थानीय निकायों के निर्वाचित सदस्य खर्च किये जाने वाले धन को सावधानी से खर्च करते हैं। अतः निर्वाचित स्थानीय निकायों के द्वारा स्थानीय समस्याओं का समाधान बहुत तेजी से तथा कम खर्चे में हो जाता है।

5. सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही:
लोकतंत्र की सफलता के लिए जनता की सार्थक भागीदारी तथा जवाबदेही पूर्ण प्रशासन की आवश्यकता होती है। जीवन्त और मजबूत स्थानीय स्वशासन सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही को सुनिश्चित करता है। गीता राठौड़ की कहानी प्रतिबद्धता के साथ लोकतंत्र में भागीदारी करने की घटनाओं में से एक है। स्थानीय स्वशासन के स्तर पर आम नागरिक को उसके जीवन से जुड़े मसलों, जरूरतों और उसके विकास के बारे में फैसला लेने की प्रक्रिया में शामिल किया जा सकता है।

6. लोकतंत्र की सफलता में सहायक:
लोकतंत्र केवल वहाँ सफल हो सकता है जहाँ लोगों में स्वतंत्रता की भावना हो। इसके लिए शक्ति के विकेन्द्रीकरण की आवश्यकता होती है, जब तक निर्णय लेने तथा उन्हें लागू करने में विकेन्द्रीकरण नहीं होगा, तब तक लोकतंत्र सफल नहीं हो सकता। इसलिए जो काम स्थानीय स्तर पर किये जा सकते हैं, वे काम स्थानीय लोगों और उनके प्रतिनिधियों के हाथ में रहने चाहिए। लोकतंत्र के लिए यह जरूरी है। आम जनता प्रादेशिक या केन्द्रीय सरकार से कहीं ज्यादा परिचित स्थानीय शासन से होती है। इस तरह स्थानीय शासन को मजबूत करना लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत बनाने के समान है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 स्थानीय शासन

प्रश्न 2.
भारत में स्थानीय शासन के विकास की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
भारत में स्थानीय शासन का विकास: भारत में स्थानीय शासन के विकास का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।
1. प्राचीन काल में स्थानीय शासन:
प्राचीन भारत में गाँवों और शहरों में स्थानीय सरकारें थीं। इतिहासकारों तथा विदेशी यात्रियों ने शहरों में स्थानीय निकायों का उल्लेख किया है। गाँवों में प्राचीन भारत में ‘सभा’ के रूप में स्थानीय निकाय थे । समय बीतने के साथ गांव की इन सभाओं ने ‘पंचायत’ का रूप ले लिया। समय बदलने के साथ- साथ पंचायतों की भूमिका और काम भी बदलते रहे।

2. ब्रिटिश काल में स्थानीय शासन:
भारत में ब्रिटिश काल में ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों के इन स्थानीय निकायों ने अपना महत्व खो दिया। इसलिए आधुनिक काल के स्थानीय निकायों और प्राचीन तथा मध्यकालीन भारत के स्थानीय निकायों के मध्य कोई तारतम्य नहीं है।
जब अंग्रेजों ने भारत में अपना शासन स्थापित किया, उन्होंने भारत में गाँवों और शहरों में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। इसकी अपेक्षा उन्होंने स्थानीय आत्मनिर्भरता तथा स्वायत्तता को खत्म करने का प्रयास किया और उनके ऊपर सरकारी नियंत्रण स्थापित किया।

लार्ड रिपन का शासनकाल आधुनिक भारत के स्थानीय स्वशासन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण चरण है। उसने इन निकायों को बनाने की दिशा में पहलकदमी की। सबसे पहले सन् 1888 में बम्बई में एक म्युनिसिपल कॉरपोरेशन की स्थापना की गई। इसके बाद कलकत्ता और मद्रास में भी इनकी स्थापना हुई। प्रारम्भ में स्थानीय स्वशासन की इन संस्थाओं में सरकारी बहुमत था तथा सरकार का उनके ऊपर पूर्ण नियंत्रण था। उस समय इन्हें मुकामी बोर्ड (Local Board) कहा जाता था।

1909 में रॉयल कमीशन ने स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के विकास और उनकी स्थापना की सिफारिश की। इसने यह भी सिफारिश की कि इन निकायों में निर्वाचित गैर-सरकारी सदस्यों का बहुमत हो तथा इन निकायों को कर लगाने के अधिकार होने चाहिए। गवर्नमेंट आफ इण्डिया एक्ट 1919 के बनने पर अनेक प्रान्तों में ग्राम पंचायत बने। सन् 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एक्ट बनने के बाद भी यह प्रवृत्ति जारी रही।

3. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय नेताओं की मांग:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सरकार से यह मांग की कि सभी स्थानीय बोर्डों को ज्यादा कारगर बनाने के लिए वह जरूरी कदम उठाये। महात्मा गाँधी ने जोर देकर कहा कि आर्थिक और राजनीतिक सत्ता का विकेन्द्रीकरण होना चाहिए। उनका मानना था कि ग्राम पंचायतों को मजबूत बनाना सत्ता के विकेन्द्रीकरण का कारगर साधन है। विकास की हर पहलकदमी में स्थानीय लोगों की भागीदारी होनी चाहिए ताकि यह सफल हो। इस तरह, पंचायत को सहभागी लोकतंत्र को स्थापित करने के साधन के रूप में देखा गया।

4. संविधान में स्थानीय स्वशासन के प्रावधान:
जब स्वतंत्र भारत का संविधान बना तो स्थानीय शासन का विषय प्रदेशों को सौंप दिया गया। संविधान के नीति-निर्देशक सिद्धान्तों में भी इसकी चर्चा है। इसमें कहा गया है कि देश की हर सरकार अपनी नीति में इसे एक निर्देशक तत्व मानकर चले। इससे स्पष्ट होता है कि स्थानीय शासन के मसले को संविधान में यथोचित महत्व नहीं मिला।

5. स्वतंत्र भारत में स्थानीय शासन का विकास: स्वतंत्र भारत में स्थानीय शासन का विकासक्रम इस प्रकार
(i) सामुदायिक विकास कार्यक्रम:
स्थानीय शासन के निकाय बनाने के सम्बन्ध में स्वतंत्रता के बाद 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम बना। इस कार्यक्रम के पीछे सोच यह थी कि स्थानीय विकास की विभिन्न गतिविधियों में जनता की भागीदारी हो।

(ii) स्वतन्त्र भारत में संविधान संशोधन 73 व 74 के पूर्व तक स्थानीय निकायों के गठन की स्थिति:
सामुदायिक विकास कार्यक्रम के तहत ग्रामीण इलाकों के लिए त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की सिफारिश की गई तथा कुछ प्रदेशों गुजरात, महाराष्ट्र ने 1960 में निर्वाचन द्वारा स्थानीय निकायों की प्रणाली अपनायी । लेकिन ये निकाय वित्तीय मदद के लिए प्रदेश तथा केन्द्रीय सरकार पर बहुत ज्यादा निर्भर थे। कई प्रदेशों ने निर्वाचन द्वारा स्थानीय निकाय स्थापित करने की जरूरत भी नहीं समझी। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जहाँ स्थानीय शासन का जिम्मा सरकारी अधिकारी को सौंप दिया गया। कई प्रदेशों में अधिकांश स्थानीय निकायों के चुनाव अप्रत्यक्ष रीति से हुए। अनेक प्रदेशों में स्थानीय निकायों के चुनाव समय-समय पर स्थगित होते रहे।

(iii) थुंगन समिति की सिफारिश (1989):
सन 1989 में पी. के. थुंगन समिति ने स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने की सिफारिश की और कहा कि स्थानीय शासन की संस्थाओं के चुनाव समय-समय पर कराने, उनके समुचित कार्यों की सूची तय करने तथा ऐसी संस्थाओं को धन प्रदान करने के लिए संविधान में संशोधन किया जाये।

(iv) संविधान का 73वां और 74वां संशोधन:
स्थानीय शासन को मजबूत करने तथा पूरे देश में इसके कामकाज तथा बनावट की एकता लाने के उद्देश्य से सन् 1992 में संविधान के 73वें तथा 74वें संशोधन संसद ने पारित किये। संविधान का 73वां संशोधन गांव के स्थानीय शासन से जुड़ा है। इसका सम्बन्ध पंचायती राज व्यवस्था की संस्थाओं से है। संविधान का 74वां संशोधन शहरी स्थानीय शासन ( नगरपालिका) से जुड़ा है। ये दोनों संविधान संशोधन 1993 में लागू हुए। संविधान के 73वें तथा 74वें संशोधन के बाद देश में स्थानीय शासन को मजबूत आधार मिला है।

(v) 73वें और 74वें संशोधनों का क्रियान्वयन:
अब सभी प्रदेशों ने 73वें संशोधन के प्रावधानों को लागू करने के लिए कानून बना दिये हैं। अब सभी प्रदेशों में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के चुनाव प्रति 5 वर्ष के लिए प्रत्यक्ष रूप से किये जाते हैं। सभी प्रदेशों में पंचायती राज व्यवस्था का ढांचा त्रि-स्तरीय है। ग्रामसभा को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है। सभी पंचायती संस्थाओं में महिलाओं, अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों के लिए सीटों पर तथा अध्यक्ष पदों पर आरक्षण दिया गया है।

राज्य सूची के 29 विषयों को 11वीं अनुसूची में दर्ज कर लिया गया है, लेकिन इन सभी विषयों को अभी प्रदेशों ने स्थानीय संस्थाओं को हस्तांतरित नहीं किया है। एक स्वतंत्र राज्य चुनाव आयुक्त की स्थापना की गई है जो इन संस्थाओं के चुनाव करायेगा। इसके साथ ही स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं को राजस्व के बंटवारे की समीक्षा हेतु एक राज्य वित्त आयोग की स्थापना भी की गई है। लेकिन अभी भी स्थानीय निकाय प्रदेश और केन्द्र सरकार की वित्तीय मदद के लिए निर्भर रहते हैं क्योंकि उनके पास आय के साधन कम हैं और खर्च की मदें अधिक हैं।

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प्रश्न 3.
पंचायती राज व्यवस्था के संबंध में संविधान के 73वें संविधान संशोधन की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
73वें संविधान संशोधन की प्रमुख विशेषताएँ: 73वें संविधान संशोधन की प्रमुख विशेषताओं को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।

  • त्रिस्तरीय बनावट; 73वें संविधान संशोधन अधिनियम में कहा गया है कि राज्य सरकार अपने क्षेत्र में पंचायती राज संस्थाएँ निम्न प्रकार से स्थापित करेगी
    1. ग्रामीण क्षेत्र में ग्रामीण स्तर पर एक गांव या एक से अधिक गांवों में एक ग्राम पंचायत।
    2. मध्यवर्ती स्तर पर जिसे खंड या तालुका भी कहा जाता है। एक मंडल पंचायत या तालुका पंचायत या पंचायत समिति।
    3. जिला स्तर पर एक जिला पंचायत (जिला परिषद्)।
  • ग्रामसभा की अनिवार्यता: संविधान के 73वें संशोधन में इस बात का भी प्रावधान है कि ग्राम सभा अनिवार्य रूप से बनायी जानी चाहिए। पंचायती हलके में मतदाता के रूप में दर्ज हर व्यक्ति ग्राम सभा का सदस्य होता है। ग्राम सभा की भूमिका और कार्य का फैसला प्रदेश के कानूनों से होता है।
  • चुनाव: इस संशोधन अधिनियम में निर्वाचन सम्बन्धी प्रमुख बातें इस प्रकार हैं।
    1. पंचायती राज संस्थाओं के तीनों स्तर के सदस्य सीधे जनता द्वारा निर्वाचित होंगे।
    2. हर पंचायती निकाय की अवधि पांच साल की होगी। यदि प्रदेश की सरकार पांच साल पूरे होने से पहले पंचायत को भंग करती है तो इसके छः माह के अन्दर नये चुनाव कराये जायेंगे। इन प्रावधानों से निर्वाचित स्थानीय निकायों के अस्तित्व को सुनिश्चित किया गया है।
  • आरक्षण के प्रावधान: इस संशोधन अधिनियम में किए गए सदस्यों तथा अध्यक्ष पदों के आरक्षण के निम्न प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं।
    1. सभी पंचायती संस्थाओं में एक-तिहाई सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हैं।
    2. तीनों स्तरों पर अनुसूचित जाति और अनुसचित जनजाति के लिए सीटों में आरक्षण की व्यवस्था की गई है। यह व्यवस्था अनुसूचित जाति / जनजाति की जनसंख्या के अनुपात में की गई है।
    3. यदि प्रदेश की सरकार जरूरी समझे, तो वह अन्य पिछड़ा वर्ग को भी सीट में आरक्षण दे सकती है।
    4. तीनों ही स्तर पर अध्यक्ष पद तक आरक्षण दिया गया है।
    5. अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट पर भी महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण की व्यवस्था है।

(5) विषयों का स्थानान्तरण:
ऐसे 29 विषय जो पहले राज्य सूची में थे, अब पहचान कर संविधान की 11वीं अनुसूची में दर्ज कर लिए गए हैं। इन विषयों को पंचायती राज संस्थाओं को हस्तांतरित किया जाना है। इन कार्यों का वास्तविक हस्तान्तरण प्रदेश के कानून पर निर्भर है। हर प्रदेश यह फैसला करेगा कि इन विषयों में से कितने को स्थानीय निकायों के हवाले करना है।

(6) आदिवासी जनसंख्या वाले क्षेत्रों को सम्मिलित नहीं किया गया है- भारत के अनेक प्रदेशों के आदिवासी जनसंख्या वाले क्षेत्रों को 73वें संशोधन के प्रावधानों से दूर रखा गया है। ये क्षेत्र हैं।

  1. नागालैण्ड, मेघालय और मिजोरम के राज्य।
  2. मणिपुर राज्य में ऐसे पर्वतीय क्षेत्र जिनके लिए उस समय लागू किसी विधि के अधीन जिला परिषदें विद्यमान
  3. पश्चिम बंगाल राज्य के दार्जिलिंग जिले के ऐसे पर्वतीय क्षेत्र, जहाँ विधिवत गोरखा पर्वतीय परिषद विद्यमान ये प्रावधान इन क्षेत्रों पर लागू नहीं होते थे। सन् 1996 में अलग से एक अधिनियम बना और पंचायती व्यवस्था के प्रावधानों के दायरे में इन क्षेत्रों को भी शामिल कर लिया गया।

(7) राज्य चुनाव आयुक्त:
इस संशोधन अधिनियम में अब प्रदेशों के लिए एक राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति अनिवार्य कर दी गयी है, जो एक स्वतंत्र अधिकारी होगा। इसकी जिम्मेदारी राज्य में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के चुनाव कराने की होगी।

(8) राज्य वित्त आयोग:
इस संशोधन अधिनियम में अब प्रदेशों की सरकार के लिए हर पांच वर्ष पर एक प्रादेशिक वित्त आयोग बनाना अनिवार्य कर दिया गया है जो मौजूदा स्थानीय शासन की संस्थाओं की आर्थिक स्थिति का जायजा लेगा तथा प्रदेश के राजस्व के बंटवारे का पुनरावलोकन करेगा।

प्रश्न 4.
शहरी स्थानीय स्वशासन से संबंधित संविधान के 74वें संशोधन की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
74वें संविधान संशोधन अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं: संविधान के 74वें संशोधन का सम्बन्ध शहरी स्थानीय शासन के निकाय अर्थात् नगरपालिका से है। शहरी इलाका क्या है? भारत की जनगणना में शहरी इलाके की परिभाषा करते हुए जरूरी माना गया है कि ऐसे इलाके में

(क) कम से कम 5000 जनसंख्या हो,

(ख) इस इलाके के कामकाजी पुरुषों में कम से कम 75 प्रतिशत खेती-बाड़ी के काम से अलग माने जाने वाले पेशे में हों, और

(ग) जनसंख्या का घनत्व कम से कम 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो।
सन 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की 31 प्रतिशत जनसंख्या शहरी इलाके में रहती है। 74वें संविधान संशोधन अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. प्रत्यक्ष चुनाव, आरक्षण, विषयों का हस्तांतरण, प्रादेशिक चुनाव आयुक्त और प्रादेशिक वित्त आयोग के प्रावधान वही हैं, जो 73वें संविधान संशोधन में दिये गये हैं। इन मामलों में यह 73वें संविधान संशोधन का दोहराव मात्र है।
  2. 74वां संविधान संशोधन नगरपालिकाओं पर लागू होता है। ( इसके विस्तृत विवेचन के लिए कृपया पूर्व प्रश्न का उत्तर देखें ।)

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प्रश्न 5.
73वें और 74वें संविधान संशोधन के क्रियान्वयन पर एक लेख लिखिये।
उत्तर:
73वें और 74वें संविधान संशोधन का क्रियान्दयन: वर्तमान में सभी प्रदेशों ने 73वें और 74वें संविधान संशोधनों के प्रावधानों को लागू करने के लिए कानून बना दिये हैं। इन प्रावधानों को अस्तित्व में आए अब 15 वर्ष से ज्यादा हो रहे हैं । इस अवधि ( 1994 – 2010) में अधिकांश प्रदेशों में स्थानीय निकायों के चुनाव कम से कम तीन बार हो चुके हैं। इनके क्रियान्वयन से स्थानीय शासन के क्षेत्र में निम्नलिखित विशेषताएँ उभरकर सामने आई हैं।

1. निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की संख्या में वृद्धि:
73वें व 74वें संविधान संशोधनों के क्रियान्वयन के पश्चात् ग्रामीण भारत में जिला पंचायतों की संख्या लगभग 600, मध्यवर्ती अथवा प्रखंड स्तरीय पंचायत की संख्या 6000 तथा ग्राम पंचायतों की संख्या 2,40,000 है। शहरी भारत में 100 से ज्यादा नगर निगम, 1400 नगरपालिकाएँ तथा 2,000 नगर पंचायतें मौजूद हैं। हर पांच वर्ष पर इन निकायों के लिए 32 लाख सदस्यों का निर्वाचन होता है। इनमें से 13 लाख महिलाएँ हैं। यदि प्रदेशों की विधानसभा तथा संसद को एक साथ रखकर देखें तो भी इनमें निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की संख्या 5000 कम बैठती है। इससे स्पष्ट होता है कि स्थानीय निकायों के निश्चित चुनाव होने के कारण निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है।

2. देश भर की स्थानीय संस्थाओं की बनावट में समानता:
73वें और 74वें संशोधन ने देश भर की पंचायती राज संस्थाओं और नगरपालिका की संस्थाओं की बनावट को एक-सा किया है। इससे शासन में जनता की भागीदारी के लिए मंच और माहौल तैयार होगा।

3. स्थानीय निकायों में महिलाओं की भारी संख्या में मौजूदगी का सुनिश्चित होना:
पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण के प्रावधान के कारण स्थानीय निकायों में महिलाओं की भारी संख्या में मौजूदगी सुनिश्चित हुई है। आरक्षण का प्रावधान अध्यक्ष और सरपंच जैसे पद के लिए भी है। इस कारण निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों की एक बड़ी संख्या अध्यक्ष और सरपंच जैसे पदों पर आसीन हुई है। आज कम से कम 200 महिलाएँ जिला पंचायतों की अध्यक्ष हैं।

2000 महिलाएँ प्रखंड अथवा तालुका पंचायत की अध्यक्ष हैं और ग्राम पंचायतों में महिला सरपंच की संख्या 80 हजार से ज्यादा है। नगर निगमों में 30 महिलाएँ महापौर हैं। नगरपालिकाओं में 500 से ज्यादा महिलाएँ अध्यक्ष पद पर आसीन हैं। लगभग 650 नगर पंचायतों की प्रधानी महिलाओं के हाथ में है। इसके निम्न प्रभाव परिलक्षित हुए

  • संसाधनों पर अपने नियंत्रण की दावेदारी करके महिलाओं में ज्यादा शक्ति और आत्मविश्वास अर्जित किया है।
  • इन संस्थाओं में महिलाओं की मौजूदगी के कारण बहुत सी स्त्रियों की राजनीतिक समझ पैनी हुई है।
  • स्थानीय निकायों के विचार-विमर्श में महिलाओं की मौजूदगी एक नया परिप्रेक्ष्य जोड़ती है और चर्चा ज्यादा संवेदनशील होती है।

4. स्थानीय निकायों की सामाजिक बुनावट में परिवर्तन:
73वें तथा 74वें संविधान संशोधन ने अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण को अनिवार्य बना दिया है। इसके साथ ही अधिकांश प्रदेशों ने पिछड़ी जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान बनाया है। स्थानीय शासन के शहरी और ग्रामीण संस्थाओं के निर्वाचित सदस्यों में इन समुदायों की संख्या लगभग 6.6 लाख है। इससे स्थानीय निकायों की सामाजिक बुनावट में भारी परिवर्तन आए हैं।

ये निकाय जिस सामाजिक सच्चाई के बीच काम कर रहे हैं अब उस सच्चाई की नुमाइंदगी इन निकायों के माध्यम से ज्यादा हो रही है। कभी-कभी इससे पुराने नेतृत्व और नये नेतृत्व के बीच तनाव भी पैदा होता है तथा सत्ता के लिए संघर्ष तेज हो जाता है। जब भी लोकतंत्र को ज्यादा सार्थक बनाने और ताकत से वंचित लोगों को ताकत देने की कोशिश होती है, तब समाज में संघर्ष और तनाव बढ़ता ही है।

5. व्यवहार में विषयों का हस्तांतरण नहीं:
संविधान के संशोधन ने 29 विषयों को स्थानीय शासन के हवाले किया है। ये सारे विषय स्थानीय विकास तथा कल्याण की जरूरतों से संबंधित हैं। लेकिन स्थानीय कामकाज के पिछले दशक के अनुभव से व्यवहार में निम्नलिखित तथ्य उजागर हुए है।

  1. भारत में अभी भी स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं को अपना कामकाज स्वतंत्रतापूर्वक करने की छूट बहुत कम
  2. अनेक प्रदेशों ने अधिकांश विषय स्थानीय निकायों को नहीं सौंपे थे। इस तरह, इतने सारे जन-प्रतिनिधियों को निर्वाचित करने का पूरा का पूरा काम बस प्रतीकात्मक बनकर रह गया है। स्थानीय स्तर की जनता के पास लोक-कल्याण के कार्यक्रमों अथवा संसाधनों के आबंटन के बारे में विकल्प चुनने की ज्यादा शक्ति नहीं होती।

6. वित्तीय निर्भरता:
स्थानीय निकायों के पास अपना कह सकने लायक धन बहुत कम होता है। स्थानीय निकाय प्रदेश और केन्द्र की सरकार पर वित्तीय मदद के लिए निर्भर होते हैं। इससे कारगर ढंग से काम कर सकने की उनकी क्षमता का क्षरण हुआ है; क्योंकि ये निकाय अनुदान देने वाले पर निर्भर होते हैं।

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