Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 5 अधिकार Important Questions and Answers.
JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 5 अधिकार
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. व्यक्ति के उच्चतम विकास हेतु परमावश्यक है।
(अ) अधिकार
(ब) सम्पत्ति
(स) न्याय व्यवस्था
(द) कानून
उत्तर:
(अ) अधिकार
2. राज्य द्वारा मान्य और कानून द्वारा रक्षित अधिकार कहे जाते हैं।
(अ) प्राकृतिक अधिकार
(ब) वैधानिक अधिकार
(स) नैतिक अधिकार
(द) परम्परागत अधिकार
उत्तर:
(ब) वैधानिक अधिकार
3. निर्वाचित होने का अधिकार निम्नांकित में से किस श्रेणी के अन्तर्गत आता है।
(अ) सामाजिक अधिकार
(ब) आर्थिक अधिकार
(स) राजनैतिक अधिकार
(द) धार्मिक अधिकार
उत्तर:
(स) राजनैतिक अधिकार
4. ‘अधिकार वह माँग है जिसे समाज स्वीकार करता है तथा राज्य लागू करता है।” यह कथन किसका है।
(अ) लास्की
(ब) ग्रीन
(स) बोसांके
(द) वाइल्ड
उत्तर:
(स) बोसांके
5. प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा के अन्तर्गत निम्न में से कौनसा अधिकार प्राकृतिक नहीं माना गया है।
(अ) काम का अधिकार
(ब) जीवन का अधिकार
(स) स्वतंत्रता का अधिकार
(द) संपत्ति का अधिकार
उत्तर:
(अ) काम का अधिकार
6. मानव अधिकारों के पीछे मूल मान्यता यह है कि-
(अ) अधिकार प्रकृति प्रदत्त हैं।
(ब) अधिकार ईश्वर प्रदत्त हैं।
(स) अधिकार जन्मजात हैं।
(द) मनुष्य होने के नाते सभी मनुष्य अधिकारों को पाने के अधिकारी हैं।
उत्तर:
(द) मनुष्य होने के नाते सभी मनुष्य अधिकारों को पाने के अधिकारी हैं।
7. आज प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा की जरूरत के प्रति चेतना ने कौनसे अधिकारों की मांग पैदा की है?
(अ) स्वच्छ हवा तथा शुद्ध जल जैसे अधिकारों की मांग
(ब) आजीविका के अधिकार तथा बच्चों के अधिकारों की मांग
(स) स्वतंत्रता व समानता के अधिकारों की मांग
(द) सम्पत्ति व सांस्कृतिक अधिकारों की मांग
उत्तर:
(अ) स्वच्छ हवा तथा शुद्ध जल जैसे अधिकारों की मांग
8. निम्नलिखित में कौनसा अधिकार राजनैतिक अधिकारों की श्रेणी में नहीं आता है?
(अ) वोट देने का अधिकार
(ब) काम पाने का अधिकार
(स) चुनाव लड़ने का अधिकार
(द) राजनैतिक दल बनाने का अधिकार
उत्तर:
(ब) काम पाने का अधिकार
9. निम्नलिखित में कौनसा अधिकार आर्थिक अधिकार है?
(अ) स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायिक जांच का अधिकार
(ब) विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार
(स) असहमति प्रकट करने का अधिकार
(द) बुनियादी जरूरतों की पूर्ति हेतु पर्याप्त मजदूरी का अधिकार
उत्तर:
(द) बुनियादी जरूरतों की पूर्ति हेतु पर्याप्त मजदूरी का अधिकार
10. नागरिकों का सांस्कृतिक अधिकार है।
(अ) काम पाने का अधिकार
(ब) स्वतंत्रता का अधिकार
(स) अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार
(द) चुनाव लड़ने का अधिकार
उत्तर:
(स) अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार
11. निम्न में कौनसा अधिकार हमें सृजनात्मक और मौलिक होने का मौका देता है।
(अ) आजीविका का अधिकार
(ब) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार
(स) समानता का अधिकार
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ब) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
1. अधिकार उन बातों का द्योतक है जिन्हें मैं और अन्य लोग सम्मान और गरिमा का जीवन बसर करने के लिए ……………….. समझते हैं।
उत्तर:
आवश्यक
2. ……………… हमारी बेहतरी के लिए आवश्यक हैं।
उत्तर:
अधिकार
3. विविध समाजों में ज्यों-ज्यों नए खतरे और चुनौतियाँ उभरती आयी हैं, त्यों-त्यों उन ………………… लगातार बढ़ती गई है, जिनका लोगों ने दावा किया है।
उत्तर:
मानवाधिकारों
4. हाल के वर्षों में प्राकृतिक अधिकार शब्द से ज्यादा …………………. शब्द का प्रयोग हो रहा है।
उत्तर:
मानवाधिकार
5. ………………… में उन अधिकारों का उल्लेख रहता है, जो बुनियादी महत्त्व के माने जाते हैं।
उत्तर:
संविधान।
निम्नलिखित में से सत्य/असत्य कथन छाँटिये
1. अधिकार सिर्फ यह ही नहीं बताते कि राज्य को क्या करना है, वे यह भी बताते हैं कि राज्य को क्या कुछ नहीं करना है।
उत्तर:
सत्य
2. हमारे अधिकार यह सुनिश्चित करते हैं कि राज्य की सत्ता वैयक्तिक जीवन और स्वतंत्रता की मर्यादा का उल्लंघन किये बगैर काम करे।
उत्तर:
सत्य
3. धार्मिक अधिकार नागरिकों को कानून के समक्ष बराबरी और राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी का हक देते हैं।
उत्तर:
असत्य
4. लोकतांत्रिक समाज वोट देने तथा प्रतिनिधि चुनने के दायित्वों को पूरा करने के लिए आर्थिक अधिकार मुहैया करा रहे हैं।
उत्तर:
असत्य
5. अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार राजनैतिक अधिकार के अन्तर्गत आता है।
उत्तर:
असत्य
निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये
1. मत देने का अधिकार | (अ) सांस्कृतिक अधिकार |
2. रोजगार पाने का अधिकार | (ब) संयुक्त राष्ट्र संघ |
3. अपनी भाषा और संस्कृति के शिक्षण के लिए | (स) आर्थिक अधिकार संस्थाएँ बनाने का अधिकार |
4. मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा | (द) प्राकृतिक अधिकार |
5. अधिकार ईश्वर प्रदत्त हैं। | (य) राजनैतिक अधिकार |
उत्तर:
1. मत देने का अधिकार | (य) राजनैतिक अधिकार |
2. रोजगार पाने का अधिकार | (स) आर्थिक अधिकार |
3. अपनी भाषा और संस्कृति के शिक्षण के लिए | (अ) सांस्कृतिक अधिकार |
4. मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा | (ब) संयुक्त राष्ट्र संघ |
5. अधिकार ईश्वर प्रदत्त हैं। | (द) प्राकृतिक अधिकार |
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मानव अधिकारों के घोषणा पत्र से क्या आशय है ?
उत्तर:
मानव अधिकारों का संयुक्त राष्ट्र घोषणा-पत्र अधिकारों के उन दावों को मान्यता देने का प्रयास है। विश्व समुदाय गरिमा और आत्मसम्मानपूर्ण जीवन के लिए आवश्यक मानता है।
प्रश्न 2.
अधिकार किस सत्ता को सीमित करते हैं?
उत्तर:
अधिकार राज्य की सत्ता को सीमित करते हैं।
प्रश्न 3.
राजनीतिक अधिकार किन्हें प्राप्त होते हैं?
उत्तर:
राजनीतिक अधिकार नागरिकों को प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 4.
किन्हीं दो राजनीतिक अधिकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
दो प्रमुख राजनीतिक अधिकार हैं।
- मतदान करने एवं उम्मीदवार बनने का अधिकार
- सरकारी पद ग्रहण करने व सरकार की आलोचना का अधिकार।
प्रश्न 5.
मत देने और प्रतिनिधि चुनने का अधिकार किन अधिकारों के अन्तर्गत आता है?
उत्तर:
राजनीतिक अधिकारों के अन्तर्गत।
प्रश्न 6.
एक आर्थिक और एक सामाजिक अधिकार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
काम प्राप्त करने का अधिकार एक आर्थिक अधिकार है जबकि शिक्षा का अधिकार एक सामाजिक अधिकार
प्रश्न 7.
वयस्क मताधिकार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
एक निश्चित उम्र के पश्चात् मत देने के लिए प्रदत्त अधिकार को वयस्क मताधिकार कहा जाता है।
प्रश्न 8.
संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को कब स्वीकार और लागू
उत्तर:
10 दिसम्बर, 1948 को।
प्रश्न 9.
संविधान में कौनसे अधिकारों का उल्लेख रहता है?
उत्तर:
संविधान में बुनियादी महत्व के अधिकारों का उल्लेख रहता है।
प्रश्न 10.
मानवाधिकारों की अवधारणा का प्रयोग किसलिए किया जाता रहा है?
उत्तर:
नस्ल, जाति, धर्म और लिंग पर आधारित असमानताओं को चुनौती देने के लिए।
प्रश्न 11.
भारत में संविधान में वर्णित अधिकारों को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
मूल अधिकार।
प्रश्न 12.
मानव अधिकार का आशय स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
मानव अधिकार वे अधिकार हैं जो लोगों के चहुँमुखी विकास एवं कल्याण के लिए अति आवश्यक होते
प्रश्न 13.
उस सिद्धान्त का नाम लिखिये जो अधिकारों को रीति-रिवाज एवं परम्पराओं की उपज मानता है।
उत्तर:
ऐतिहासिक सिद्धान्त।
प्रश्न 14.
किस सिद्धान्त के अनुसार अधिकार कानून का परिणाम है?
उत्तर:
वैधानिक सिद्धान्त के अनुसार।
प्रश्न 15.
अधिकारों के आदर्शवादी सिद्धान्त की क्या मान्यता है?
उत्तर:
एक आदर्श व्यक्तित्व के विकास हेतु अधिकारों की आवश्यकता है।
प्रश्न 16.
काम के अधिकार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
काम के अधिकार से तात्पर्य है। प्रत्येक व्यक्ति को उचित पारिश्रमिक पर आजीविका के साधन उपलब्ध
प्रश्न 17.
मानवाधिकारों के दावों की सफलता किस कारक पर सर्वाधिक निर्भर करती है?
उत्तर:
मानवाधिकारों के दावों की सफलता सरकारों और कानून के समर्थन पर सर्वाधिक निर्भर करती है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अधिकार क्या हैं?
उत्तर:
अधिकार व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए व्यक्ति द्वारा समाज से किये जाने वाले वे दावे ( माँगें) हैं, जिन्हें समाज सामाजिक हित की दृष्टि से मान्यता प्रदान कर देता है और राज्य उनके संरक्षण की मान्यता दे देता है।
प्रश्न 2.
अधिकार क्यों महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
- अधिकार व्यक्तियों को सम्मान और गरिमापूर्ण जीवन व्यतीत करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
- अधिकार हमारी बेहतरी के लिए आवश्यक हैं क्योंकि ये लोगों की प्रतिभा और दक्षता को विकसित करने में सहयोग देते हैं।
प्रश्न 3.
प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा क्या है?
उत्तर:
प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा के अनुसार व्यक्ति के अधिकार प्रकृति या ईश्वर प्रदत्त हैं। वे व्यक्ति को जन्म से ही प्राप्त हैं। परिणामतः कोई व्यक्ति या शासक उन्हें हमसे छीन नहीं सकता।
प्रश्न 4.
प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्तकारों ने कौनसे अधिकार प्राकृतिक बताए हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य के तीन प्राकृतिक अधिकार थे।
- जीवन का अधिकार,
- स्वतंत्रता का अधिकार
- सम्पत्ति का अधिकार।
प्रश्न 5.
प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त का प्रयोग किस उद्देश्य के लिए किया जाता था?
उत्तर:
प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त का प्रयोग राज्यों या सरकारों के द्वारा स्वेच्छाचारी शक्तियों के प्रयोग का विरोध करने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए किया जाता था।
प्रश्न 6.
मानवाधिकारों की अवधारणा के पीछे मूल मान्यता क्या है?
उत्तर:
मानवाधिकारों की अवधारणा के पीछे मूल मान्यता यह है कि सभी लोग मनुष्य होने मात्र से कुछ चीजों को पाने के अधिकारी हैं। एक मानव के रूप में हर मनुष्य विशिष्ट और समान महत्त्व का है तथा सभी मनुष्य समान हैं, इसलिए सबको स्वतंत्र रहने तथा अपने व्यक्तित्व के विकास हेतु समान अवसर मिलने चाहिए।
प्रश्न 7.
” विविध समाजों में ज्यों-ज्यों नए खतरे और चुनौतियाँ उभरती आई हैं, त्यों-त्यों मानवाधिकारों की सूची लगातार बढ़ती गई है जिनका लोगों ने दावा किया है?” इस कथन को कोई एक उदाहरण देते हुए स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
आज हम प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा की चुनौती का सामना कर रहे हैं, इस चुनौती के प्रति सजगता के चलते हमने जिन नये मानवाधिकारों की मांगें पैदा की हैं, वे हैं – स्वच्छ हवा, शुद्ध जल और टिकाऊ विकास के अधिकारों की मांग। इससे स्पष्ट होता है कि समाज में बढ़ते खतरों के प्रति सजगता ने मानवाधिकारों की सूची में वृद्धि की है।
प्रश्न 8.
मानवाधिकारों का क्या महत्व है?
उत्तर:
मानव अधिकारों के पीछे मूल मान्यता यह है कि सब लोग, मनुष्य होने मात्र से कुछ चीजों को पाने के अधिकारी हैं। संयुक्त राष्ट्र का मानव अधिकारों का सार्वभौम घोषणा-पत्र उन दावों को मानव-अधिकारों के रूप में मान्यता प्रदान करता है, जिन्हें विश्व समुदाय सामूहिक रूप से गरिमा और आत्म- – सम्मानपूर्ण जीवन जीने के लिए आवश्यक मानता है। पूरे विश्व के उत्पीड़ित लोग मानवाधिकारों की अवधारणा का प्रयोग उन कानूनों को चुनौती देने का कार्य कर रहे हैं, जो उन्हें समान अवसरों और अधिकारों से वंचित करते हैं। इस प्रकार मानव अधिकार मनुष्य के अच्छे जीवन जीने के लिए एक गारन्टी प्रदान करते हैं।
प्रश्न 9.
“मेरा अधिकार राजसत्ता को खास तरीके से काम करने के कुछ वैधानिक दायित्व सौंपता है ।” इस कथन को एक उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यदि कोई समाज यह महसूस करता है कि जीने के अधिकार का अर्थ अच्छे स्तर के जीवन का अधिकार है, तो वह राजसत्ता से ऐसी नीतियों के अनुपालन की अपेक्षा करता है कि वह स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छ पर्यावरण और अन्य आवश्यक निर्धारकों का प्रावधान करे। इससे स्पष्ट होता है कि मेरा अधिकार यहाँ राजसत्ता को खास तरीके से काम करने के लिए कुछ वैधानिक दायित्व सौंपता है।
प्रश्न 10.
नागरिकों के प्रमुख राजनैतिक अधिकार कौन-कौनसे हैं ? उल्लेख करो।
उत्तर:
नागरिकों के प्रमुख राजनीतिक अधिकार ये हैं।
- मत देने तथा प्रतिनिधि चुनने का अधिकार,
- चुनाव लड़ने का अधिकार,
- राजनैतिक दल बनाने का अधिकार तथा
- किसी भी राजनैतिक दल का सदस्य बनने का अधिकार।
प्रश्नं 11.
चार ऐसे अधिकारों का उल्लेख कीजिए जो बुनियादी अधिकार के रूप में मान्य हैं।
उत्तर:
- जीवन का अधिकार,
- स्वतंत्रता का अधिकार,
- समान व्यवहार का अधिकार और
- राजनीतिक भागीदारी का अधिकार बुनियादी अधिकारों के रूप में मान्य हैं।
प्रश्न 12.
“अधिकार हमारे सम्मान और गरिमामय जीवन बसर करने के लिए आवश्यक हैं। ” स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
अधिकार उन बातों का द्योतक है जिन्हें लोग सम्मान और गरिमा का जीवन बसर करने के लिए आवश्यक समझते हैं। उदाहरण के लिए, आजीविका का अधिकार सम्मानजनक जीवन जीने के लिए जरूरी है क्योंकि यह व्यक्ति को आर्थिक स्वतंत्रता देता है। इसी प्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार हमें सृजनात्मक और मौलिक होने का मौका देता है। चाहे यह लेखन के क्षेत्र में हो अथवा नृत्य, संगीत या किसी अन्य रचनात्मक क्रियाकलाप में
प्रश्न 13.
स्पष्ट कीजिये कि अधिकार हमारी बेहतरी के लिए आवश्यक हैं?
उत्तर:
अधिकार हमारी बेहतरी के लिए आवश्यक हैं क्योंकि ये लोगों को उनकी दक्षता और प्रतिभा को विकसित करने में सहयोग देते हैं। उदाहरण के लिए, शिक्षा का अधिकार हमारी तर्क शक्ति विकसित करने में मदद करता है, हमें उपयोगी कौशल प्रदान करता है और जीवन में सूझ-बूझ के साथ चयन करने में सक्षम बनाता है। यदि कोई कार्यकलाप हमारे स्वास्थ्य और कल्याण के लिए हानिकारक है तो उसे अधिकार नहीं माना जा सकता। उदाहरण के लिए, नशीली दवाएँ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं तथा धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इसलिए इनके सेवन के अधिकार को मान्य नहीं किया जा सकता। अतः स्पष्ट है कि अधिकार वे दावे ही हो सकते हैं जो हमारी दक्षता और प्रतिभा को विकसित करने में सहयोग देते हैं।
प्रश्न 14.
अधिकारों के प्राकृतिक सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा क्या है?
उत्तर:
अधिकारों का प्राकृतिक सिद्धान्त: प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्तकारों के अनुसार अधिकार प्रकृति या ईश्वर प्रदत्त हैं। हमें ये अधिकार जन्म से प्राप्त हैं। परिणामतः कोई व्यक्ति या शासक उन्हें हमसे छीन नहीं सकता। उन्होंने मनुष्य के तीन प्राकृतिक अधिकार चिन्हित किये थे
- जीवन का अधिकार,
- स्वतंत्रता का अधिकार और
- संपत्ति का अधिकार। हम इन अधिकारों का दावा करें या न करें, व्यक्ति होने के नाते हमें ये प्राप्त हैं।
प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा का प्रयोग राज्यों अथवा सरकारों के द्वारा स्वेच्छाचारी शक्ति के प्रयोग का विरोध करने तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए किया जाता था।
प्रश्न 15.
मानवीय गरिमा के बारे में कांट के विचारों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
मानवीय गरिमा- कांट का कहना है कि अन्य प्राणियों से अलग प्रत्येक मनुष्य की एक गरिमा होती है और मनुष्य होने के नाते उसके साथ इसी के अनुकूल बर्ताव किया जाना चाहिए। कांट के लिए, लोगों के साथ गरिमामय बर्ताव करने का अर्थ था- उनके साथ नैतिकता से पेश आना। यह विचार उन लोगों के लिए संबल था जो लोग सामाजिक ऊँच- नीच के खिलाफ और मानवाधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे थे।
प्रश्न 16.
कांट के मानवीय गरिमा के विचार ने अधिकार की कौनसी अवधारणा प्रस्तुत की?
उत्तर:
कांट के मानवीय गरिमा के विचार ने अधिकार की एक नैतिक अवधारणा प्रस्तुत की। इस अवधारणा में निम्न बातों पर बल दिया गया है।
- हमें दूसरों के साथ वैसा ही बर्ताव करना चाहिए, जैसा हम अपने लिए दूसरों से अपेक्षा करते हैं।
- हमें यह निश्चित करना चाहिए कि हम दूसरों को अपनी स्वार्थसिद्धि का साधन नहीं बनायेंगे।
- हमें लोगों के साथ उस तरह का बर्ताव नहीं करना चाहिए जैसा कि हम निर्जीव वस्तुओं के साथ करते हैं।
- हमें लोगों का सम्मान करना चाहिए क्योंकि वे मनुष्य हैं।
प्रश्न 17.
प्राकृतिक अधिकारों तथा मौलिक अधिकारों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक अधिकारों तथा मौलिक अधिकारों में निम्नलिखित अन्तर पाए जाते हैं।
- मौलिक अधिकारों का वर्णन प्रत्येक देश के संविधान में होता है, लेकिन प्राकृतिक अधिकारों का नहीं।
- मौलिक अधिकार वाद योग्य हैं जबकि प्राकृतिक अधिकार नहीं।
- मौलिक अधिकार राज्य में उपलब्ध होते हैं, लेकिन प्राकृतिक अधिकार प्राकृतिक अवस्था में ही संभव हो सकते हैं।
प्रश्न 18.
विविध समाजों में बढ़ते खतरों और चुनौतियों के कारण मानवाधिकारों के नए दावे किये जा रहे हैं। ये दावे किस बात की अभिव्यक्ति करते हैं?
उत्तर:
विविध समाजों में ज्यों-ज्यों नये खतरे व चुनौतियाँ उभरती हैं, त्यों-त्यों लोगों ने नवीन मानवाधिकारों की मांग की है। उदाहरण के लिए आज प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा की आवश्यकता व उसके प्रति बढ़ती जागरूकता ने स्वच्छ हवा, शुद्ध जल और टिकाऊ विकास जैसे अधिकारों की मांगें पैदा की हैं। ये दावे मानव गरिमा के अतिक्रमण के प्रति नैतिक आक्रोश के भाव को अभिव्यक्त करते हैं और वे समस्त मानव समुदाय हेतु अधिकारों के प्रयोग और विस्तार के लिए एकजुट होने का आह्वान करते हैं।
प्रश्न 19.
क्या कानूनी मान्यता के आधार पर किसी अधिकार का दावा किया जा सकता है?
उत्तर:
मानवाधिकारों की सफलता बहुत कुछ सरकारों और कानून के समर्थन पर निर्भर करती है। इसी कारण अधिकारों की कानूनी मान्यता को इतना महत्त्व दिया गया है। और इस महत्त्व को देखते हुए कुछ विद्वानों ने ‘अधिकार को ऐसे दावों के रूप में परिभाषित किया है, जिन्हें राज्य मान्यता दे। ‘ कानूनी मान्यता से यद्यपि हमारे अधिकारों को समाज में एक दर्जा मिलता है; तथापि कानूनी मान्यता के आधार पर किसी अधिकार का दावा नहीं किया जा सकता ।
प्रश्न 20.
अधिकारों के चार प्रमुख लक्षण लिखिये।
उत्तर:
अधिकारों के चार प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं।
- अधिकार एक विवेकसंगत और न्यायसंगत दावा है अधिकार समाज में कुछ कार्य करने के लिए मनुष्य या मनुष्य समूह द्वारा किया गया वह विवेकसंगत और न्यायसंगत दावा है जिसे समाज द्वारा अधिकार के रूप में मान्य किया जाता है।
- अधिकार केवल समाज में ही संभव है-अधिकार केवल समाज में ही संभव है। समाज से बाहर कोई अधिकार संभव नहीं है।
- अधिकार समाज द्वारा प्रदत्त- मनुष्य का कोई दावा या माँग तभी अधिकार बनता है जब उसे समाज मान्यता प्रदान कर देता है। समाज की स्वीकृति के बिना कोई माँग (दावा) अधिकार का रूप नहीं ले सकती।
- अधिकार में सबका हित निहित है-समाज व्यक्ति के किसी दावे को सामाजिक हित की दृष्टि से ही स्वीकार कर उसे अधिकार का रूप प्रदान करता है। अतः प्रत्येक अधिकार में समाज का हित निहित होता है।
प्रश्न 21.
आधुनिक राज्य अपने नागिरकों को कौन-कौनसे राजनैतिक अधिकार प्रदान करते हैं?
उत्तर:
आधुनिक राज्य अपने नागरिकों को निम्न राजनैतिक अधिकार प्रदान करते हैं।
- मत देने का अधिकार: आधुनिक प्रजातांत्रिक राज्यों में अपने नागिरकों को वयस्क मताधिकार प्रदान किया गया है जिसके माध्यम से वे अपने प्रतिनिधियों का निर्वाचन करते हैं और उन प्रतिनिधियों द्वारा शासन-कार्य किया जाता है।
- निर्वाचित होने का अधिकार: आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य सभी नागरिकों को कुछ निश्चित अर्हताएँ पूरी करने के बाद निर्वाचित होने का अधिकार प्रदान करते हैं। इसी अधिकार के माध्यम से व्यक्ति देश की उन्नति में सक्रिय रूप से भाग ले सकता है।
- सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार: आधुनिक राज्य अपने नागरिकों को योग्यता के आधार पर सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करते हैं।
- राजनैतिक दल बनाने व उसका सदस्य बनने का अधिकार: आधुनिक उदारवादी लोकतांत्रिक राज्य अपने नागिरकों को राजनैतिक दल बनाने या किसी राजनैतिक दल का सदस्य बनने का अधिकार भी प्रदान करते हैं।
प्रश्न 22.
राजनीतिक अधिकारों की दो विशेषताएँ बताइये तथा प्रमुख राजनीतिक अधिकारों का उल्लेख कीजिये हैं।
उत्तर:
राजनीतिक अधिकारों की विशेषताएँ।
- राजनीतिक अधिकार नागरिकों को कानून के समक्ष बराबरी तथा राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी का हक देते
- राजनीतिक अधिकार नागरिक स्वतंत्रताओं से जुड़े होते हैं।
- राजनीतिक अधिकार व नागरिक स्वतंत्रताएँ मिलकर लोकतांत्रिक प्रणाली की नींव का निर्माण करते हैं।
प्रमुख राजनैतिक अधिकार: प्रमुख राजनैतिक अधिकार तथा नागरिक स्वतंत्रताएँ ये हैं-मत देने तथा प्रतिनिधि चुनने का अधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार, राजनीतिक पार्टियाँ बनाने या उनमें शामिल होने का अधिकार । प्रमुख नागरिक स्वतंत्रताएँ हैं। विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार, स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायिक जांच का अधिकार, प्रतिवाद करने तथा असहमति प्रकट करने का अधिकार।
प्रश्न 23.
आर्थिक अधिकार किसे कहते हैं? लोकतांत्रिक देश आर्थिक अधिकारों को किस तरह से मुहैया करा रहे हैं?
उत्तर:
आर्थिक अधिकार: आर्थिक अधिकार वे अधिकार हैं जिनके द्वारा व्यक्ति भोजन, वस्त्र, आवास तथा स्वास्थ्य जैसी अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करते हैं। इन बुनियादी जरूरतों को पूरा किये बिना राजनीतिक अधिकारों का कोई मूल्य नहीं है। करते हैं। लोकतांत्रिक समाज विभिन्न तरीकों से लोगों की इन आवश्यकताओं व अधिकारों को पूरा कर रहे हैं। यथा
- कुछ देशों में नागरिक, खासकर निम्न आय वाले नागरिक, आवास और चिकित्सा जैसी सुविधाएँ राज्य से प्राप्त।
- कुछ अन्य देशों में बेरोजगार व्यक्ति कुछ न्यूनतम भत्ता पाते हैं; ताकि वे अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी कर सकें।
- भारत में सरकार ने अन्य कार्यवाहियों के साथ-साथ ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना की शुरूआत की है।
प्रश्न 24.
अधिकार हमारे ऊपर क्या जिम्मेदारियाँ डालते हैं?
उत्तर:
अधिकार हम सब पर निम्नलिखित जिम्मेदारियाँ डालतें हैं।
- अधिकार हमें बाध्य करते हैं कि हम अपनी निजी जरूरतों और हितों की ही न सोचें, बल्कि कुछ ऐसी चीजों की भी रक्षा करें, जो हम सबके लिए हितकर हैं।
- अधिकार मुझसे यह अपेक्षा करते हैं कि मैं अन्य लोगों के अधिकारों का सम्मान करूँ।
- टकराव की स्थिति में हमें अपने अधिकारों को संतुलित करना होता है।
- नागरिकों को अपने अधिकारों पर लगाए जाने वाले नियंत्रणों के बारे में सतर्क तथा जागरूक रहना चाहिए।
प्रश्न 25.
नागरिक अधिकार तथा राजनीतिक अधिकार में अन्तर बताइये प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिये।
उत्तर:
नागरिक अधिकार: नागरिक अधिकार वे अधिकार हैं जो कि व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता से संबंधित हैं वे व्यक्ति के सामाजिक विकास या समाज से व्यक्ति के सम्बन्धों से भी संबंधित होते हैं। ये मूलभूत तथा आवश्यक अधिकार हैं तथा गैर-लोकतांत्रिक राज्यों में भी ये नागरिकों को प्राप्त होते हैं। नागरिक अधिकारों के उदाहरण हैं। जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, समानता का अधिकार, स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायिक जांच का अधिकार तथा प्रतिवाद करने तथा असहमति व्यक्त करने का अधिकार आदि।
राजनीतिक अधिकार: राजनीतिक अधिकार नागरिकों को कानून के समक्ष बराबरी तथा राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी का हक देते हैं। ये अधिकार सामान्यतः लोकतांत्रिक राज्यों में ही नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं। राजनीतिक अधिकारों के उदाहरण हैं- मत देने का अधिकार, प्रतिनिधि चुनने का अधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार, राजनैतिक दल बनाने का अधिकार आदि।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अधिकार हमारे ऊपर क्या जिम्मेदारियाँ डालते हैं? उदाहरण सहित विवेचन कीजिये।
उत्तर:
अधिकार और जिम्मेदारियाँ
अधिकार न केवल राज्य पर यह जिम्मेदारी डालते हैं कि वह खास तरीके से काम करे, बल्कि हम सब पर भी यह जिम्मेदारी डालते हैं। इनका विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।
1. सबके हित सम्बन्धी चीजों की रक्षा करना:
अधिकार हमें बाध्य करते हैं कि हम अपनी निजी जरूरतों और हितों की ही न सोचें, बल्कि कुछ ऐसी चीजों की भी रक्षा करें, जो हम सबके लिए हितकर हैं। उदाहरण के लिए, ओजोन परत की हिफाजत करना, वायु और जल प्रदूषण कम से कम करना, नए वृक्ष लगाकर और जंगलों की कटाई रोक कर हरियाली बरकरार रखना, पारिस्थितिकीय संतुलन कायम रखना आदि ऐसी चीजें हैं, जो हम सबके लिए अनिवार्य हैं। ये सबके हित की बातें हैं, जिनका पालन हमें अपनी और भावी पीढ़ियों की हिफाजत की दृष्टि से अवश्य करना चाहिए।
2. अन्य लोगों के अधिकारों का सम्मान करना:
अधिकार यह अपेक्षा करते हैं कि मैं अन्य लोगों के अधिकारों का सम्मान करूँ अगर मैं यह कहता हूँ कि मुझे अपने विचारों को अभिव्यक्त करने का अधिकार मिलना ही चाहिए तो मुझे दूसरों को भी यही अधिकार देना होगा। अगर मैं अपनी पसंद के कपड़े पहनने में, संगीत सुनने में दूसरों का हस्तक्षेप नहीं चाहता, तो मुझे भी दूसरों की पसंदगी में दखलंदाजी से बचना होगा। मेरे अधिकार में मेरा यह कर्त्तव्य निहित है कि मैं दूसरों को इसी तरह के अधिकार का उपभोग करने दूँ।
अपने अधिकारों का प्रयोग करने के लिए मैं दूसरों को उनके अधिकारों से वंचित नहीं कर सकता। मैं स्वतंत्र भाषण देने के अधिकार का प्रयोग अपने पड़ोसी की हत्या के लिए भीड़ को उकसाने के लिए नहीं कर सकता। इससे उसके जीवन के अधिकार में बाधा पहुँचेगी और मेरा यह दायित्व है कि मैं अपने अधिकार का प्रयोग अन्य लोगों के अधिकारों का सम्मान करते हुए ही कर सकता हूँ। दूसरे शब्दों में, मेरे अधिकार सबके लिए बराबर और एक ही अधिकार के सिद्धान्त से सीमाबद्ध हैं।
3. टकराव की स्थिति में अपने अधिकारों को संतुलित करना:
मेरे अधिकार में ही मेरा यह दायित्व निहित है कि टकराव की स्थिति में मैं अपने अधिकारों को संतुलित करूँ। उदाहरण के लिए, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मेरा अधिकार मुझे तस्वीर लेने की अनुमति देता है, लेकिन अगर मैं अपने घर में नहाते हुए किसी व्यक्ति की उसकी इजाजत के बिना तस्वीर ले लूँ और उसे इंटरनेट पर डाल दूँ, तो यह उसकी गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन होगा। इसलिए मुझे मेरे अधिकार को उस स्थिति में सीमित कर लेना चाहिए जब वह किसी दूसरे के अधिकार में दखलंदाजी करता हो।
4. अधिकारों पर लगाए जाने वाले नियंत्रणों के प्रति जागरूक रहना:
नागरिकों का यह दायित्व है कि वे अपने अधिकारों पर लगाए जाने वाले नियंत्रणों के प्रति जागरूक रहें। आजकल कई सरकारें राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर लोगों की स्वतंत्रताओं पर प्रतिबंध लगा रही हैं। नागरिकों के अधिकारों और भलाई की रक्षा के लिए जरूरी मान कर राष्ट्रीय सुरक्षा का समर्थन किया जा सकता है। लेकिन किसी बिंदु पर सुरक्षा के लिए आवश्यक मान कर थोपे गए प्रतिबंध अपने आप में लोगों के अधिकारों के लिए खतरा बन जायें तो ? क्या उसे लोगों की चिट्ठियाँ देखने या फोन टेप करने की इजाजत दी जा सकती है? क्या सच कबूल करवाने के लिए उसे यातना का सहारा लेने दिया जाना चाहिए?
ऐसी स्थितियों में यह प्रश्न उठता है कि संबद्ध व्यक्ति समाज के लिए खतरा तो नहीं पैदा कर रहा है? गिरफ्तार लोगों को भी कानूनी सलाह की इजाजत या न्यायालय के सामने अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अवसर मिलना चाहिए। इसलिए लोगों की नागरिक स्वतंत्रता में कटौती करते समय हमें अत्यन्त सावधान होने की आवश्यकता है क्योंकि इनका आसानी से दुरुपयोग किया जा सकता है। सरकारें निरंकुश हो सकती हैं, वे लोगों के कल्याण की जड़ खोद सकती हैं। इसलिए हमें अपने और दूसरों के अधिकारों की रक्षा करने में सतर्क तथा जागरूक रहना चाहिए क्योंकि यह जागरूकता ही लोकतांत्रिक समाज की नींव का निर्माण करती है।
प्रश्न 2.
अधिकार किसे कहते हैं? इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अधिकार का अर्थ तथा परिभाषा: व्यक्ति की उन मांगों को अधिकार कहते हैं जो उसने अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए समाज के समक्ष रखीं और समाज ने उन्हें समाज के हित की दृष्टि से उचित मानते हुए मान्यता दे दी। कुछ विद्वान अधिकारों के लिए सामाजिक मान्यता के साथ-साथ राज्य की मान्यता को भी आवश्यक मानते हैं। क्योंकि अधिकारों की सफलता के लिए राज्य का संरक्षण अर्थात् कानूनी संरक्षण अति आवश्यक है।
इसलिए वे अधिकार को ऐसे दावों के रूप में परिभाषित करते हैं, जिन्हें राज्य ने मान्य किया हो। लेकिन कानूनी मान्यता के आधार पर किसी अधिकार का दावा नहीं किया जा सकता। कभी-कभी राज्य द्वारा असंरक्षित लेकिन समाज द्वारा मान्य मांगें भी अधिकार कहलाती हैं। जैसे काम पाने का अधिकार राज्य ने भले ही स्वीकार न किया हो, परन्तु समाज द्वारा मान्य होने पर वह अधिकार कहलायेगा। है।” अधिकार की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं।
- बोसांके के अनुसार, “एक अधिकार समाज द्वारा मान्यता प्राप्त तथा राज्य द्वारा प्रवर्तित व्यक्ति का एक दावा
- लास्की के अनुसार, ” अधिकार सामाजिक जीवन की वे दशाएँ हैं जिनके बिना कोई व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का सर्वोत्तम विकास नहीं कर सकता।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि अधिकारों का अर्थ उन सुविधाओं, स्वतंत्रताओं तथा अवसरों का होना है जो कि एक व्यक्ति के विकास के लिए आवश्यक हैं तथा जो समाज द्वारा मान्य तथा राज्य द्वारा संरक्षित हैं।
अधिकारों की विशेषताएँ अधिकारों की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई जा सकती हैं।
1. अधिकार एक दावा है:
अधिकार समाज में कुछ कार्य करने के लिए मनुष्य या मनुष्य समूह द्वारा किया गया एक दावा है। यह दावा समाज के प्रति किया जाता है। मनुष्य समाज के समक्ष अपनी आवश्यकताओं तथा आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए अपनी मांगें प्रस्तुत करता है।
2. अधिकार केवल समाज में ही संभव हैं: समाज से बाहर कोई अधिकार संभव नहीं है। अधिकार केवल समाज में ही संभव हैं।
3. अधिकार समाज द्वारा प्रदत्त होते हैं: मनुष्य की कोई मांग या दावा तभी अधिकार बनता है जब उसे समाज मान्यता प्रदान कर देता है। कोई दावा या मांग जो समाज द्वारा स्वीकृत नहीं की जाती है, अधिकार नहीं बन सकती।
4. अधिकार विवेकसंगत और न्यायसंगत दावा है:
व्यक्ति का केवल वही दावा समाज द्वारा अधिकार के रूप में मान्य होता है जो न्यायसंगत तथा विवेकसंगत होता है। यदि समाज इस बात से सहमत हो जाता है कि व्यक्ति द्वारा किया गया दावा व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास तथा समाज के हित के लिए आवश्यक हैं या समाज के लिए हानिकारक नहीं है, तभी समाज उस दावे को अधिकार के रूप में मान्यता प्रदान करता है। कोई भी अन्यायपरक तथा अविवेकीय दावा समाज द्वारा अधिकार के रूप में मान्य नहीं किया जा सकता।
5. अधिकार में सबका हित निहित है:
अधिकार में सबका कल्याण निहित है। समाज किसी दावे को सबके हित की दृष्टि से ही स्वीकार करता है और अधिकार का उपभोग समाज के हित में ही करना होता है। ऐसा कोई भी अधिकार व्यक्ति को प्रदान नहीं किया जा सकता जो कि समाज के लिए हानिकारक हो या लोगों के कल्याण के विरुद्ध हो । एक अधिकार का उपभोग सामाजिक हित पर प्रतिबन्ध लगाकर नहीं किया जा सकता।
6. अधिकार सीमित हैं:
समाज में किसी व्यक्ति को निरपेक्ष अधिकार (Absolute right) नहीं दिया जा सकता। उस पर युक्तियुक्त सीमाएँ समाज के हित में हमेशा लगी होती हैं। किसी व्यक्ति को अधिकारों के दुरुपयोग की अनुमति नहीं दी जा सकती। किसी व्यक्ति को यह अनुमति भी नहीं दी जा सकती कि वह अपने अधिकार का उपभोग करने में दूसरों को हानि पहुँचाये।
7. अधिकार सबको समान रूप से प्रदान किये जाते हैं:
अधिकार सार्वभौमिक हैं तथा वे समाज के सभी लोगों को समानता के आधार पर प्रदान किये जाते हैं। जो स्वतंत्रताएँ एक को प्रदान की जाती हैं, वे ही स्वतंत्रताएँ अन्य लोगों को भी प्रदान की जाती हैं। अधिकारों के प्रदान करने में जाति, रंग, वंश, जन्म तथा लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता।
8. अधिकार विकासशील हैं:
अधिकार हमेशा के लिए समान रूप में नहीं रहते। वे देश, काल और परिस्थिति के अनुसार बदलते रहते हैं। समाज व्यक्ति के दावों को लोगों के विचार, समय और परिस्थितियों की आवश्यकताओं के अनुरूप मान्यता प्रदान करता है। इसलिए अधिकारों की कोई निश्चित और स्थायी सूची नहीं बनाई जा सकती है। विविध समाजों में ज्यों-ज्यों नयी चुनौतियाँ तथा आवश्यकताएँ उभरती हैं, त्यों-त्यों उनका सामना करने के लिए लोगों द्वारा समाज के समक्ष नये दावे प्रस्तुत किये जाते हैं। इस प्रकार अधिकारों की सूची वर्तमान काल में निरन्तर बढ़ती जा रही है।
9. अधिकारों में कर्त्तव्य निहित हैं:
अधिकार और कर्त्तव्य एक सिक्के के दो पहलू हैं। प्रत्येक मेरे अधिकार में मेरा कर्त्तव्य भी निहित है, उसके प्रति अन्य लोगों के कर्त्तव्य तथा राज्य के कर्त्तव्य भी निहित हैं।
10. अधिकार राज्य द्वारा संरक्षित हैं:
एक अधिकार तभी सफल हो सकता है जब राज्य के कानूनों द्वारा उसकी सुरक्षा की जाये। अधिकारों की सफलता में राज्य व उसके कानून के महत्त्व को देखते हुए यह भी कहा जाता है कि एक अधिकार वह दावा है जिसे राज्य संरक्षित करे तथा लागू करे। राज्य ही अधिकारों को मान्यता देता है, परिभाषित करता है, लागू करता है तथा उनकी सुरक्षा करता है। राज्य उन व्यक्तियों को दंडित करता है जो दूसरों के अधिकारों के विरुद्ध कार्य करते हैं। राज्य के बाहर अधिकारों का प्रवर्तन संभव नहीं है। अतः स्पष्ट है कि अधिकार वे सुविधाएँ, स्वतंत्रताएँ और अवसर हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास तथा समाज हित के लिए समाज द्वारा व्यक्ति को प्रदान किये गए हैं तथा वे राज्य द्वारा संरक्षित हैं।
प्रश्न 3.
अधिकार का अर्थ एवं परिभाषा बताते हुए उसके विभिन्न स्वरूपों/प्रकारों की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
अधिकार का अर्थ एवं परिभाषा: अधिकार का अर्थ एवं परिभाषा के लिए पूर्व प्रश्न का उत्तर देखें । अधिकार के विभिन्न स्वरूप ( प्रकार ) अधिकार के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं।
1. राजनैतिक तथा नागरिक अधिकार:
अधिकांशतः लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ राजनैतिक अधिकारों का घोषणा- पत्र बनाने से अपनी शुरुआत करती हैं। राजनैतिक अधिकार नागरिकों को कानून के समक्ष बराबरी तथा राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी का हक देते हैं। इनमें वोट देने और प्रतिनिधि चुनने, चुनाव लड़ने, राजनीतिक पार्टियाँ बनाने या उनमें शामिल होने जैसे अधिकार शामिल हैं। राजनीतिक अधिकार नागरिक स्वतंत्रताओं या नागरिक अधिकारों से जुड़े होते हैं। नागरिक स्वतंत्रता का अर्थ है। स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायिक जाँच का अधिकार, विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार, प्रतिवाद करने तथा असहमति प्रकट करने का अधिकार। इस प्रकार नागरिक स्वतंत्रता और राजनीतिक अधिकार मिलकर किसी सरकार की लोकतांत्रिक प्रणाली की बुनियाद का निर्माण करते हैं।
2. आर्थिक अधिकार:
राजनीतिक भागीदारी का अपना अधिकार पूरी तरह से हम तभी अमल में ला सकते हैं जब भोजन, वस्त्र, आवास, स्वास्थ्य जैसी हमारी बुनियादी जरूरतें पूरी हों। इसीलिये लोकतांत्रिक समाज इन दायित्वों को स्वीकार कर रहे हैं और आर्थिक अधिकार मुहैया कर रहे हैं। कुछ देशों में नागरिक, खासकर निम्न आय वाले नागरिक, आवास और चिकित्सा जैसी सुविधायें राज्य से प्राप्त करते हैं। कुछ अन्य देशों में बेरोजगार व्यक्ति कुछ न्यूनतम भत्ता पाते हैं, ताकि वे अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी कर सकें। भारत में, सरकार ने ग्रामीण और शहरी गरीबों की मदद के लिये अन्य कार्यवाहियों के साथ हाल में ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना की शुरूआत की है।
3. सांस्कृतिक अधिकार:
अधिकाधिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों के साथ नागरिकों के सांस्कृतिक दावों को भी मान्यता दे रही हैं। अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार अपनी भाषा और संस्कृति के शिक्षण के लिये संस्थाएँ बनाने के अधिकार को बेहतर जिन्दगी जीने के लिये आवश्यक माना जा। इस प्रकार लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में अधिकारों की सूची लगातार बढ़ती गई है रहा है।
4. बुनियादी अधिकार:
कुछ मूल अधिकार जैसे- जीने का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, समान व्यवहार का अधिकार और राजनीतिक भागीदारी का अधिकार, ऐसे बुनियादी अधिकार के रूप में मान्य हैं, जिन्हें प्राथमिकता देनी ही है।