JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 4 सामाजिक न्याय

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 4 सामाजिक न्याय Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 4 सामाजिक न्याय

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में कौनसा कथन असत्य है।
(अ) न्याय मिलने में देरी न्याय मिलने के समान होता है।
(ब) भारत में स्त्रियों और पुरुषों को समान कार्य के लिए समान वेतन देने की व्यवस्था की गई है।
(स) प्राचीन भारत समाज में न्याय धर्म के साथ जुड़ा था।
(द) कनफ्यूशियस का तर्क था कि गलत करने वालों को दंडित कर और भले लोगों को पुरस्कृत कर राजा को न्याय कायम रखना चाहिए।
उत्तर:
(अ) न्याय मिलने में देरी न्याय मिलने के समान होता है।

2. न्याय का अर्थ है।
(अ) अपने मित्रों के साथ भलाई करना
(ब) अपने दुश्मनों का नुकसान करना
(स) अपने हितों को साधना
(द) सभी लोगों की भलाई सुनिश्चित करना।
उत्तर:
(द) सभी लोगों की भलाई सुनिश्चित करना।

3. ‘न्याय का सिद्धान्त’ पुस्तक के लेखक हैं।
(अ) डायसी
(ब) आस्टिन
(स) जॉन रॉल्स
(द) प्लेटो।
उत्तर:
(स) जॉन रॉल्स

4. निम्न में से किसमें न्याय का समकक्षों के साथ समान बरताव का सिद्धान्त लागू हुआ है।
(अ) एक स्कूल में पुरुष शिक्षक को महिला शिक्षक से अधिक वेतन मिलता है।
(ब) पत्थर तोड़ने के किसी काम में सभी जातियों के लोगों को समान पारिश्रमिक दिया गया है।
(स) छात्रों को उनकी पुस्तिकाओं की गुणवत्ता के आधार पर अंक दिये गये।
(द) विकलांग लोगों को नौकरियों में प्रवेश के लिए आरक्षण दिया गया।
उत्तर:
(ब) पत्थर तोड़ने के किसी काम में सभी जातियों के लोगों को समान पारिश्रमिक दिया गया है।

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5. विभिन्न राज्य सरकारों ने भूमि सुधार लागू करने जैसे कदम उठाये हैं।
(अ) लोगों के साथ समाज के कानूनों और नीतियों के संदर्भ में समान बरताव करने के लिए।
(ब) जमीन जैसे महत्त्वपूर्ण संसाधन के अधिक न्यायपूर्ण वितरण के लिए।
(स) सबको समान भूमि वितरण के लिए।
(द) बंजर पड़ी भूमि के वितरण के लिए।
उत्तर:
(ब) जमीन जैसे महत्त्वपूर्ण संसाधन के अधिक न्यायपूर्ण वितरण के लिए।

6. न्याय के ‘अज्ञानता के आवरण’ के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है।
(अ) सुकरात
(ब) प्लेटो ने
(स) कांट ने
(द) रॉल्स ने।
उत्तर:
(द) रॉल्स ने।

7. ” न्यायपूर्ण समाज वह है, जिसमें परस्पर सम्मान की बढ़ती हुई भावना और अपमान की घटती हुई भावना मिलकर एक करुणा से भरे समाज का निर्माण करे।” यह कथन है।
(अ) डॉ. भीमराव अंबेडकर का
(स) प्लेटो का
(ब) जे. एस. मिल का
(द) रॉल्स का।
उत्तर:
(अ) डॉ. भीमराव अंबेडकर का

8. न्याय के सम्बन्ध में न्यायोचित वितरण का सिद्धान्त प्रस्तुत किया गया है।
(अ) जे. एस. मिल द्वारा
(ब) बेंथम द्वारा
(स) जॉन रॉल्स द्वारा
(द) प्लेटो द्वारा।
उत्तर:
(स) जॉन रॉल्स द्वारा

9. न्याय पर लिखी गई प्लेटो की पुस्तक का नाम है।
(अ) पॉलिटिक्स
(ब) रिपब्लिक
(स) सामाजिक समझौता
(द) न्याय का सिद्धान्त।
उत्तर:
(ब) रिपब्लिक

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10. सामाजिक न्याय का वर्णन भारतीय संविधान में कहाँ किया गया हैं?
(अ) राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों में
(स) मौलिक अधिकारों में
(ब) प्रस्तावना में
(द) सर्वोच्च न्यायालय में।
उत्तर:
(ब) प्रस्तावना में

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. प्राचीन भारतीय समाज में न्याय …………….. के साथ जुड़ा था।
उत्तर:
धर्म

2. प्लेटो के अनुसार न्याय में हर व्यक्ति को उसका ………………… देना शामिल है।
उत्तर:
वाजिब हिस्सा

3. कांट के अनुसार, अगर सभी व्यक्तियों की गरिमा स्वीकृत है, तो उनमें से हर एक का …………………. यह होगा कि उन्हें अपनी प्रतिभा के विकास और लक्ष्य की पूर्ति के लिए अवसर प्राप्त हो ।
उत्तर:
प्राप्य

4. समाज में न्याय के लिए समान बरताव के सिद्धान्त का …………………. के सिद्धान्त के साथ संतुलन बिठाने की जरूरत है।
उत्तर:
समानुपातिकता

5. जो लोग कुछ महत्त्वपूर्ण संदर्भों में समान नहीं हैं, उनके साथ …………………. से बरताव किया जाये।
उत्तर:
भिन्न ढंग।

निम्नलिखित में से सत्य/ असत्य कथन छाँटिये

1. योग्यता के पुरस्कृत करने को न्याय का प्रमुख सिद्धान्त मानने पर जोर देने का अर्थ यह होगा कि हाशिये पर खड़े तबके कई क्षेत्रों में वंचित रह जायेंगे।
उत्तर:
सत्य

2. सामाजिक न्याय का सरोकार वस्तुओं और सेवाओं के न्यायोचित वितरण से नहीं है।
उत्तर:
असत्य

3. रॉल्स का न्याय सिद्धान्त ‘अज्ञानता के आवरण में सोचना’ है।
उत्तर:
सत्य

4. न्याय के लिए लोगों के रहन-सहन के तौर-तरीकों में पूर्ण समानता और एकरूपता की आवश्यकता है।
उत्तर:
असत्य

5. मुक्त बाजार के सभी समर्थक आज पूर्णतया अप्रतिबंधित बाजार का समर्थन करते हैं।
उत्तर:
असत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये

1. रिपब्लिक (अ) प्राचीन भारतीय समाज
2. न्याय धर्म के साथ जुड़ा था (ब) चीन के दार्शनिक
3. इमैनुएल कांट (स) न्यायोचित वितरण का सिद्धान्त
4. कन्फ्यूशस (द) एक जर्मन दार्शनिक
5. जॉन रॉल्स (य) प्लेटो

उत्तर:

1. रिपब्लिक (य) प्लेटो
2. न्याय धर्म के साथ जुड़ा था (अ) प्राचीन भारतीय समाज
3. इमैनुएल कांट (द) एक जर्मन दार्शनिक
4. कन्फ्यूशस (ब) चीन के दार्शनिक
5. जॉन रॉल्स (स) न्यायोचित वितरण का सिद्धान्त

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सही मिलान करें

(क) प्लेटो (i) भारतीय संविधान के निर्माताओं में महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व
(ख) डॉ. भीमराव अम्बेडकर (ii) द रिपब्लिक का लेखक
(ग) मुक्त बाजार नीति (iii) सुप्रसिद्ध राजनीतिक दार्शनिक
(घ) जॉन रॉल्स (iv) राज्य के हस्तक्षेप की विरोधी

उत्तर:

(क) प्लेटो (ii) द रिपब्लिक का लेखक
(ख) डॉ. भीमराव अम्बेडकर (i) भारतीय संविधान के निर्माताओं में महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व
(ग) मुक्त बाजार नीति (iv) राज्य के हस्तक्षेप की विरोधी
(घ) जॉन रॉल्स (iii) सुप्रसिद्ध राजनीतिक दार्शनिक

प्रश्न 2.
प्लेटो के अनुसार न्याय क्या है?
उत्तर:
प्लेटो के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को उसका प्राप्य मिल जाये, यही न्याय है।

प्रश्न 3.
सुकरात ने न्यायसंगत होना क्यों आवश्यक बताया है?
उत्तर:
सुकरात ने न्यायसंगत होना इसलिए आवश्यक बताया क्योंकि न्याय में सभी की भलाई निहित रहती है।

प्रश्न 4.
सामाजिक न्याय से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सामाजिक न्याय से अभिप्राय है कि वस्तुओं और सेवाओं का न्यायोचित वितरण हो।

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प्रश्न 5.
प्लेटो ने न्याय सम्बन्धी विचार किस पुस्तक में व्यक्त किये हैं?
उत्तर:
‘द रिपब्लिक’ में।

प्रश्न 6.
भारत में संविधान में सामाजिक न्याय का उल्लेख कहाँ किया गया है?
उत्तर:
प्रस्तावना में।

प्रश्न 7.
न्याय की देवी की प्रतिमा में उसकी आँखों पर बँधी पट्टी किस बात का संकेत करती है?
उत्तर:
उसके निष्पक्ष रहने का संकेत करती है।

प्रश्न 8.
सामाजिक न्याय में किस पर बल दिया जाता है?
उत्तर:
अन्याय के उन्मूलन पर।

प्रश्न 9.
अन्यायपूर्ण समाज की कोई एक विशेषता बताइये।
उत्तर:
वह समाज जहाँ वंचितों को अपनी स्थिति सुधारने का कोई मौका न मिले, अन्यायपूर्ण समाज कहलाता है।

प्रश्न 10.
‘अज्ञानता के आवरण’ वाली स्थिति की एक विशेषता लिखिये।
उत्तर:
इसमें लोगों से सामान्य रूप से विवेकशील बने रहने की उम्मीद बँधती है।

प्रश्न 11.
एक न्यायपूर्ण समाज को बढ़ावा देने के लिए सरकार की क्या जिम्मेदारी बन जाती है?
उत्तर:
एक न्यायपूर्ण समाज को बढ़ावा देने के लिए सरकार को न्याय के विभिन्न सिद्धान्तों के बीच सामंजस्य स्थापित करने की जिम्मेदारी बन जाती है।

प्रश्न 12.
न्याय के सम्बन्ध में चीन के दार्शनिक कन्फ्यूशियस का क्या तर्क था?
उत्तर:
कन्फ्यूशियस के अनुसार गलत करने वालों को दण्डित करना और भले लोगों को पुरस्कृत करना ही न्याय

प्रश्न 13.
एक न्यायपूर्ण समाज को बढ़ावा देने के लिए सरकार की क्या जिम्मेदारी बन जाती है?
उत्तर:
एक न्यायपूर्ण समाज को बढ़ावा देने के लिए सरकार को न्याय के विभिन्न सिद्धान्तों में सामंजस्य स्थापित करने की जिम्मेदारी बन जाती है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्लाउकॉन और एडीमंटस के अनुसार अन्यायी लोग न्यायी लोगों से किस प्रकार बेहतर स्थिति में हैं?
उत्तर:
ग्लाउकॉन के अनुसार, अन्यायी लोग अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए कानून तोड़ते-मरोड़ते हैं, कर चुकाने से कतराते हैं, झूठ और धोखाधड़ी का सहारा लेते हैं। इसलिए वे न्याय के रास्ते पर चलने वाले लोगों से ज्यादा सफल होते हैं।

प्रश्न 2.
हर व्यक्ति को उसका प्राप्य कैसे दिया जाये? इस सम्बन्ध में कौन-कौन से सिद्धान्त पेश किये गये
उत्तर:
हर व्यक्ति को उसका प्राप्य कैसे दिया जाये, इस सम्बन्ध में तीन सिद्धान्त पेश किये गये हैं। ये हैं-

  1. समान लोगों के साथ समान बरताव का सिद्धान्त
  2. समानुपातिक न्याय का सिद्धान्त और
  3. विशेष जरूरतों के विशेष ख्याल का सिद्धान्त।

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प्रश्न 3.
यदि समाज में गंभीर सामाजिक या आर्थिक असमानताएँ हैं तो सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए क्या और क्यों जरूरी होगा?
उत्तर:
यदि समाज में गंभीर सामाजिक या आर्थिक असमानताएँ हैं तो यह जरूरी होगा कि समाज के कुछ प्रमुख संसाधनों का पुनर्वितरण हो, जिससे नागरिकों को जीने के लिए समान धरातल मिल सके।

प्रश्न 4.
राज्य को समाज के सबसे वंचित सदस्यों की मदद के तीन तरीके बताइये।
उत्तर:

  1. खुली प्रतियोगिता को बढ़ावा देना तथा समाज के सुविधा प्राप्त सदस्यों को हानि पहुँचाये बिना सुविधाहीनों की मदद करना।
  2. सरकार द्वारा गरीबों को न्यूनतम बुनियादी सुविधाएँ मुहैया कराना।
  3. वंचितों के लिए आरक्षण की नीति लागू करना।

प्रश्न 5.
मुक्त बाजार व्यवस्था के कोई दोष लिखिये।
उत्तर:

  1. मुक्त बाजार व्यवस्था में बुनियादी वस्तुओं और सेवाओं की कीमत गरीब लोगों की पहुँच से प्राय: दूर हो जाती है।
  2. मुक्त बाजार पहले से ही सुविधासम्पन्न लोगों के पक्ष में काम करने का रुझान दिखलाते हैं।

प्रश्न 6.
प्लेटो के अनुसार हमारा दीर्घकालीन हित कानून का पालन करने एवं न्यायी बनने में क्यों है? प्लेटो के अनुसार यदि हर कोई अन्यायी हो जाए, यदि हर आदमी अपने स्वार्थ के लिए कानून के साथ खिलवाड़ करे, तो किसी के लिए भी अन्याय से लाभ पाने की गारंटी नहीं रहेगी, कोई भी सुरक्षित नहीं रहेगा और इससे संभव है कि सबको नुकसान पहुँचे। इसलिए हमारा दीर्घकालीन हित इसी में है कि हम कानून का पालन करें और न्यायी बनें।

प्रश्न 7.
प्लेटो के अनुसार न्याय का गुण क्या है?
उत्तर:
प्लेटो के अनुसार न्याय में सभी लोगों की भलाई निहित रहती है। न्याय में कुछ लोगों के लिए हित और कुछ लोगों के लिए अहित की भावना नहीं होती, बल्कि उसमें सबका हित निहित होता है। इसलिए जो स्थिति या कानून या नियम सबके लिए हितकारी है, वही न्याय है।

प्रश्न 8.
सबका हित कैसे सुनिश्चित किया जाये?
अथवा
सबकी भलाई की सुनिश्चितता के लिए क्या किया जाना आवश्यक है?
उत्तर:
जनता या सबकी भलाई की सुनिश्चितता में हर व्यक्ति को उसका वाजिब हिस्सा देना शामिल है। इस अर्थ में न्याय वह है जिसमें हर व्यक्ति को उसका वाजिब हिस्सा प्राप्त हो।

प्रश्न 9.
हर व्यक्ति का प्राप्य क्या है?
उत्तर:
कांट के अनुसार, हर मनुष्य की गरिमा होती है। अगर सभी व्यक्तियों की गरिमा स्वीकृत है तो उनमें से हर व्यक्ति का प्राप्य यह होगा कि उन्हें अपनी प्रतिभा के विकास और लक्ष्य की पूर्ति के लिए अवसर प्राप्त हों।

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प्रश्न 10.
मुक्त बाजार व्यवस्था के समर्थन में तीन तर्क दीजिये।
उत्तर:

  1. मुक्त बाजार व्यवस्था से योग्यता और प्रतिभा के अनुसार प्रतिफल मिलेगा।
  2. मुक्त बाजार व्यवस्था स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा आदि बुनियादी सेवाओं का सबसे कारगर तरीका है।
  3. मुक्त बाजार उचित और न्यायपूर्ण समाज का आधार होता है क्योंकि उसका सरोकार प्रतिभा और कौशल से होता है।

प्रश्न 11.
न्याय के सम्बन्ध में चीन के दार्शनिक कनफ्यूशियस का क्या तर्क था?
उत्तर:
न्याय के सम्बन्ध में चीन के दार्शनिक कनफ्यूशियस का तर्क था कि गलत करने वालों को दण्डित कर और भले लोगों को पुरस्कृत कर राजा को न्याय कायम करना चाहिए।

प्रश्न 12.
सरकारें न्याय के तीनों सिद्धान्तों के बीच सामञ्जस्य बिठाने में क्या कठिनाई महसूस करती हैं? उत्तर-सरकारें कभी-कभी न्याय के तीनों सिद्धान्तों के बीच सामञ्जस्य बिठाने में निम्न कठिनाई महसूस करती

  1. समकक्षों के बीच समान बरताव के सिद्धान्त पर अमल कभी-कभी योग्यता को उचित प्रतिफल देने के खिलाफ खड़ा हो जाता है।
  2. योग्यता को पुरस्कृत करने को न्याय का प्रमुख सिद्धान्त मानने पर जोर देने का अर्थ यह होगा कि हाशिये पर खड़े तबके कई क्षेत्रों में वंचित रह जायेंगे। ऐसी स्थिति में सरकार की जिम्मेदारी बन जाती है कि वह एक न्यायपरक समाज को बढ़ावा देने के लिए न्याय के विभिन्न सिद्धान्तों के बीच सामञ्जस्य स्थापित करे।

प्रश्न 13.
सामाजिक न्याय को परिभाषित कीजिये।
अथवा
सामाजिक न्याय का अर्थ बताइये।
उत्तर:
सामाजिक न्याय से यह अभिप्राय है कि कानून और नीतियाँ सभी व्यक्तियों पर निष्पक्ष रूप से लागू हों तथा वस्तुओं और सेवाओं का न्यायोचित वितरण भी हो।

प्रश्न 14.
क्या यह न्यायोचित है? हरियाणा की एक पंचायत ने निर्णय दिया कि अलग-अलग जातियों के जिस लड़के और लड़की ने शादी कर ली थी, वे अब गाँव में नहीं रहेंगे।
उत्तर:
नहीं, यह न्यायोचित नहीं है क्योंकि यह निर्णय शादी करने वाले सभी व्यक्तियों पर निष्पक्ष रूप से लागू नहीं किया गया है तथा यह कानून सम्मत नहीं है।

प्रश्न 15.
सामाजिक न्याय के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक न्याय के प्रमुख लक्षण ये हैं।

  1. समान लोगों के प्रति समान बरताव: सामाजिक न्याय का पहला लक्षण यह है कि समकक्षों के साथ समान व्यवहार किया जाये, उनमें वर्ग, जाति, नस्ल या लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाये।
  2. समानुपातिक न्याय: सामाजिक न्याय का दूसरा लक्षण समानुपातिक न्याय का है अर्थात् लोगों को उनके प्रयास के पैमाने पर अर्हता के अनुपात में पुरस्कृत किया जाये।
  3. विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल का सिद्धान्त: सामाजिक न्याय का तीसरा लक्षण लोगों की विशेष जरूरतों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।

प्रश्न 16.
“सामाजिक न्याय का सरोकार वस्तुओं और सेवाओं के न्यायोचित वितरण से भी है।” इस कथन को स्पष्ट करें।
उत्तर:
न्यायपूर्ण वितरण समाज में सामाजिक न्याय पाने के लिए सरकारों को यह सुनिश्चित करना होता है कि कानून और नीतियाँ सभी व्यक्तियों पर निष्पक्ष रूप से लागू हों। लेकिन इतना ही पर्याप्त नहीं है। क्योंकि सामाजिक न्याय का सरोकार वस्तुओं और सेवाओं के न्यायोचित वितरण से भी है; चाहे वह राष्ट्रों के बीच वितरण का मामला हो या किसी समाज के अन्दर विभिन्न समूहों और व्यक्तियों के बीच का।

इसका अभिप्राय यह है कि यदि समाज में गंभीर सामाजिक या आर्थिक विषमताएँ हैं, तो यह जरूरी होगा कि समाज के कुछ प्रमुख संसाधनों का पुनर्वितरण हो, जिससे नागरिकों को जीने के लिए समतल धरातल मिल सके ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपने उद्देश्यों के लिए प्रयास कर सके और स्वयं को अभिव्यक्त कर सके। भारत में विभिन्न राज्य सरकारों ने जमीन जैसे महत्त्वपूर्ण संसाधन के अधिक न्यायपूर्ण वितरण के लिए ही भूमि सुधार लागू करने जैसे कदम उठाये हैं।

प्रश्न 17.
हम किस तरह के समाज को अन्यायपूर्ण कहेंगे?
उत्तर:
हम उस समाज को अन्यायपूर्ण कहेंगे, जहाँ धनी और गरीब के बीच खाई इतनी गहरी हो कि वे बिल्कुल भिन्न-भिन्न दुनिया में रहने वाले लगें और जहाँ अपेक्षाकृत वंचितों को अपनी स्थिति सुधारने का कोई मौका न मिले, चाहे वे कितना ही कठिन श्रम क्यों न करें। दूसरे शब्दों में यदि किसी समाज में बेहिसाब धन-दौलत और इसके स्वामित्व के साथ जुड़ी सत्ता का उपभोग करने वालों तथा बहिष्कृतों और वंचितों के बीच गहरा और स्थायी विभाजन मौजूद हो, तो हम उस समाज को अन्यायपूर्ण समाज कहेंगे।

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प्रश्न 18.
न्यायपूर्ण समाज के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर:
न्यायपूर्ण समाज: न्यायपूर्ण समाज को लोगों के लिए न्यूनतम बुनियादी स्थितियाँ जरूर उपलब्ध करानी चाहिए, ताकि वे स्वस्थ और सुरक्षित जीवन जीने में सक्षम हो सकें; समाज में अपनी प्रतिभा का विकास कर सकें तथा इसके साथ ही समान अवसरों के जरिये अपने चुने हुए लक्ष्य की ओर बढ़ सकें।

प्रश्न 19.
समान लोगों के प्रति समान व्यवहार का क्या अर्थ है?
उत्तर:
समान लोगों के साथ समान व्यवहार का अर्थ है कि मनुष्य होने के नाते सभी व्यक्तियों में कुछ समान चारित्रिक विशेषताएँ होती हैं। इसीलिए वे समान अधिकार और समान व्यवहार के अधिकारी हैं। इसी दृष्टि से आज अधिकांश उदारवादी लोकतंत्रों में जीवन, स्वतंत्रता, संपत्ति के अधिकारों के साथ समाज के अन्य सदस्यों के साथ समान अवसरों के उपभोग करने का सामाजिक अधिकार और मताधिकार जैसे राजनैतिक अधिकार दिये जाते हैं। समान लोगों के प्रति समान व्यवहार के सिद्धान्त के लिए यह भी आवश्यक है कि लोगों के साथ वर्ग, जाति, नस्ल या लिंग के आधार पर भेदभाव न किया जाये। उन्हें उनके काम और कार्यकलापों के आधार पर जाँचा जाना चाहिए, इस आधार पर नहीं कि वे किस समुदाय के सदस्य हैं।

प्रश्न 20.
रॉल्स के न्याय सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
रॉल्स का तर्क है कि निष्पक्ष और न्यायसंगत नियम तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता यही है कि हम स्वयं को ऐसी परिस्थिति में होने की कल्पना करें जहाँ हमें निर्णय लेना है कि समाज को कैसे संगठित किया जाये। जबकि हमें यह ज्ञात नहीं है कि उस समाज में हमारी जगह क्या होगी? अर्थात् हम नहीं जानते कि किस किस्म के परिवार में हम जन्म लेंगे; हम उच्च जाति के परिवार में पैदा होंगे या निम्न जाति में; धनी होंगे या गरीब, सुविधा सम्पन्न होंगे या सुविधाहीन?

अगर हमें यह नहीं मालुम हो कि हम कौन होंगे और भविष्य के समाज में हमारे लिए कौनसे विकल्प खुले होंगे, तब हम भविष्य के उस समाज के नियमों और संगठन के बारे में जिस निर्णय का समर्थन करेंगे, वह तमाम सदस्यों के लिए अच्छा होगा। रॉल्स ने इसे ‘अज्ञानता के आवरण’ में सोचना कहा है। अज्ञानता के आवरण वाली स्थिति में लोगों से सामान्य रूप से विवेकशील मनुष्य बने रहने की उम्मीद बँधती है। विवेकशील मनुष्य न केवल सबसे बुरे संदर्भ के मद्देनजर चीजों को देखेंगे, बल्कि वे यह भी सुनिश्चित करने की कोशिश करेंगे कि उनके द्वारा निर्मित नीतियाँ समग्र समाज के लिए लाभप्रद हों।

प्रश्न 21.
भारत में सामाजिक न्याय की स्थिति क्या है? संक्षेप में स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
भारतीय संविधान में देश के सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय प्रदान करने का लक्ष्य घोषित किया गया है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं।

  1. संविधान के द्वारा सभी नागरिकों को मूल अधिकार प्रदान किये गये हैं अर्थात् मूल अधिकारों के माध्यम से समकक्षों के बीच समान बरताव के सिद्धान्त का पालन किया गया है। इनमें सभी को कानून के समक्ष समता प्रदान की गई है, जाति, धर्म, लिंग, वंश के आधार पर भेदभाव का निषेध किया गया है। छुआछूत को समाप्त किया गया है, भेदभाव पैदा करने वाली उपाधियों का अन्त किया गया। सभी को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की गई है।
  2. भारत में समानुपातिक न्याय के सिद्धान्त को भी समकक्षों के बीच समान व्यवहार के सिद्धान्त के साथ संतुलन बैठाया गया है।
  3. भारत में मूल अधिकारों के अन्तर्गत ही विशेष जरूरतों के लिए विशेष ख्याल का सिद्धान्त भी अपनाया है इस हेतु वंचितों के लिए आरक्षण की नीति लागू की गई है।

प्रश्न 22.
न्याय का क्या अर्थ है? कोई एक परिभाषा दीजिये।
उत्तर:
न्याय का सरोकार समाज में हमारे जीवन और सार्वजनिक जीवन को व्यवस्थित करने के नियमों और तरीकों से होता है, जिनके द्वारा समाज के विभिन्न सदस्यों के बीच सामाजिक लाभ और सामाजिक कर्त्तव्यों का बँटवारा किया जाता है। प्लेटो ने न्याय को परिभाषित करते हुए लिखा है कि, ‘प्रत्येक व्यक्ति को उसका प्राप्य मिल जाय, यही न्याय मनुष्य होने के नाते हर व्यक्ति का प्राप्य यह है कि उन्हें अपनी प्रतिभा के विकास और लक्ष्य की पूर्ति के लिए अवसर प्राप्त हों तथा सभी व्यक्तियों को समुचित और बराबर महत्व दिया जाये।

प्रश्न 23.
समानुपातिक न्याय क्या है? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
समानुपातिक न्याय: समानुपातिक न्याय से यह आशय है कि लोगों को मिलने वाले लाभों को तय करते समय उनके विभिन्न प्रयासों और कौशलों को मान्यता दी जाये अर्थात् लोगों को उनके प्रयास के पैमाने और अर्हता के अनुपात में पुरस्कृत किया जाये। काम के लिए वांछित मेहनत, कौशल, संभावित खतरे आदि कारकों को ध्यान में रखते हुए अलग- अलग काम के लिए अलग-अलग पारिश्रमिक निर्धारण करना ही समानुपातिक न्याय है। लेकिन समाज में न्याय के लिए समान बरताव के सिद्धान्त के साथ ही समानुपातिकता के सिद्धान्त का संतुलन बिठाना आवश्यक है।

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प्रश्न 24.
न्याय के तीन सिद्धान्त कौन-से हैं? प्रत्येक को उदाहरण के साथ समझाइये।
उत्तर:
न्याय के तीन सिद्धान्त हैं।

  1. समकक्षों के बीच समान बरताव
  2. समानुपातिक न्याय और
  3. विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल। यथा

1. समकक्षों के बीच समान बरताव:
न्याय का एक सिद्धान्त है कि समकक्षों के बीच समान व्यवहार किया जाये । मनुष्य होने के नाते सभी व्यक्तियों में कुछ समान चारित्रिक विशेषताएँ होती हैं। इसलिए वे समान अधिकार और बरताव के अधिकारी हैं। इसलिए आज अधिकांश उदारवादी जनतंत्रों में जीवन, स्वतंत्रता, सम्पत्ति तथा मताधिकार जैसे कुछ महत्वपूर्ण अधिकार सभी नागरिकों को समान रूप से प्रदान किये गये हैं। समान अधिकारों के अलावा समकक्षों में समान बरताव के सिद्धान्त के लिए जरूरी है कि लोगों के साथ वर्ग, जाति, नस्ल या लिंग के आधार पर भेद नहीं किया जाये, बल्कि उन्हें उनके काम के आधार पर जाँचा जाये। उदाहरण के लिए यदि स्कूल में पुरुष शिक्षक को महिला शिक्षक से ज्यादा वेतन मिलता है, तो यह समकक्षों के बीच समान बरताव के सिद्धान्त के विपरीत है। अतः अन्यायपूर्ण है।

2. समानुपातिक न्याय:
समानुपातिक न्याय के सिद्धान्त का आशय यह है कि लोगों को मिलने वाले लाभों को तय करते समय उनके विभिन्न प्रयास और कौशलों को मान्यता दी जाये । अर्थात् किसी काम के लिए वांछित मेहनत, कौशल, संभावित खतरे आदि को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग काम के लिए अलग-अलग पारिश्रमिक निर्धारण किया जाये । इस प्रकार समाज में न्याय के लिए समान बरताव के सिद्धान्त का समानुपातिक सिद्धान्त के साथ संतुलन बैठाने की आवश्यकता है।

3. विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल:
न्याय का तीसरा सिद्धान्त यह है कि समाज पारिश्रमिक या कर्त्तव्यों का वितरण करते समय लोगों की विशेष जरूरतों का ख्याल रखे। समकक्षों के साथ समान बरताव के सिद्धान्त में ही यह अन्तर्निहित है कि जो लोग कुछ महत्वपूर्ण संदर्भों में समान नहीं हैं, उनके साथ भिन्न ढंग से बरताव किया जाय । जैसे – वंचित और विकलांग लोग । इसी संदर्भ में भारत में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लोगों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान किया गया है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
न्यूनतम आवश्यक बुनियादी स्थितियाँ क्या हैं? इस लक्ष्य को पाने के तरीकों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
न्यूनतम आवश्यक बुनियादी स्थितियाँ लोगों की जिंदगी के लिए न्यूनतम बुनियादी स्थितियों के सम्बन्ध में सामान्यतः इस बात पर सहमति है कि स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक पोषक तत्त्वों की बुनियादी मात्रा, आवास, शुद्ध पेयजल की आपूर्ति, शिक्षा और न्यूनतम मजदूरी इन बुनियादी स्थितियों की महत्त्वपूर्ण आवश्यकताएँ हैं। लोगों की बुनियादी जरूरतों की पूर्ति लोकतांत्रिक सरकार की जिम्मेदारी समझी जाती है।

न्यूनतम आवश्यक बुनियादी स्थितियों की पूर्ति के तरीके: लोगों की जिंदगी के लिए न्यूनतम बुनियादी जरूरतों की पूर्ति के लिए यह आवश्यक है कि राज्य (सरकार) को समाज के सबसे वंचित सदस्यों की मदद करनी चाहिए, जिससे कि वे अन्य लोगों के साथ एक हद तक समानता का आनंद ले सकें। इस लक्ष्य को पाने के लिए निम्नलिखित दो तरीकों पर बल दिया जाता है; ये हैं।

(अ) मुक्त बाजार के जरिये खुली प्रतियोगिता को बढ़ावा देना तथा समाज के सुविधा प्राप्त सदस्यों को नुकसान पहुँचाये बगैर सुविधाहीनों की मदद करना।
(ब) राज्य के हस्तक्षेप की व्यवस्था। यथा

(अ) मुक्त बाजार की व्यवस्था: मुक्त बाजार व्यवस्था के समर्थकों का मानना है कि

  1. जहाँ तक संभव हो, व्यक्तियों को सम्पत्ति अर्जित करने के लिए तथा मूल्य, मजदूरी और लाभ के मामले में दूसरों के साथ अनुबंध और समझौतों में शामिल होने के लिए स्वतंत्र रहना चाहिए ।
  2. लाभ की अधिकतम मात्रा हासिल करने हेतु दूसरे के साथ प्रतिद्वन्द्विता करने की छूट होनी चाहिए।
  3. मुक्त बाजार के समर्थक बाजारों को राज्य के हस्तक्षेप से मुक्त कर देने के पक्षधर हैं।

मुक्त बाजार व्यवस्था के समर्थन में तर्क: मुक्त बाजार व्यवस्था के समर्थकों का कहना है कि बाजारों को राज्य के हस्तक्षेप से मुक्त कर देने से बाजारी कारोबार का योग कुल मिलाकर समाज में लाभ और कर्तव्यों का न्यायपूर्ण वितरण सुनिश्चित कर देगा। वे इसके पक्ष में निम्न तर्क देते हैं।

  1. मुक्त बाजार व्यवस्था से योग्यता और प्रतिभा से युक्त लोगों को अधिक प्रतिफल मिलेगा जबकि अक्षम लोगों को कम हासिल होगा ।
  2. स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा तथा ऐसी अन्य बुनियादी सेवाओं के विकास के लिए बाजार को अनुमति देना ही लोगों के लिए इन बुनियादी सेवाओं की आपूर्ति का सबसे कारगर तरीका हो सकता है।
  3. मुक्त बाजार उचित और न्यायपूर्ण समाज का आधार होता है क्योंकि यह किसी व्यक्ति की जाति या धर्म की परवाह नहीं करता। वह यह भी नहीं देखता कि आप स्त्री हैं या पुरुष। वह इन सबसे निरपेक्ष रहता है और उसका सरोकार प्रतिभा और कौशल से है। अगर आपके पास योग्यता है तो बाकी सब बातें बेमानी हैं।
  4. मुक्त बाजार व्यवस्था हमें ज्यादा विकल्प प्रदान करता है।
  5. मुक्त बाजार में निजी उद्यम जो सेवाएँ मुहैया कराते हैं, उनकी गुणवत्ता सरकारी संस्थानों द्वारा प्रदत्त सेवाओं से प्राय: बेहतर होती है।

मुक्त बाजार व्यवस्था के विपक्ष में तर्क: मुक्त बाजार व्यवस्था के विपक्ष में निम्नलिखित प्रमुख तर्क दिये जाते हैं।

  1. सभी लोगों के लिए न्यूनतम बुनियादी जीवन: मानक सुनिश्चित करने हेतु राज्य को हस्तक्षेप करना आवश्यक है ताकि वे समान शर्तों पर प्रतिस्पर्द्धा करने में समर्थ हो सकें। वृद्धों और रोगियों की विशेष सहायता मुक्त बाजार व्यवस्था में संभव नहीं हो पाती है, राज्य ही ऐसी सहायता प्रदान कर सकता है।
  2. यद्यपि बाजारी वितरण हमें उपभोक्ता के तौर पर ज्यादा विकल्प देता है, बशर्ते उनकी कीमत चुकाने के लिए हमारे पास साधन हों। लेकिन बुनियादी वस्तुओं और सेवाओं के मामले में अच्छी गुणवत्ता की वस्तुएँ और सेवाएँ लोगों के खरीदने लायक कीमत पर उपलब्ध होना आवश्यक है। लेकिन मुक्त बाजार व्यवस्था में इन सेवाओं की कीमतें गरीब लोगों की पहुँच के बाहर हो जाती हैं।
  3. मुक्त बाजार आमतौर पर पहले से ही सुविधासम्पन्न लोगों के हक में काम करने का रुझान दिखलाते हैं।

(ब) राज्य के हस्तक्षेप की व्यवस्था
कुछ विद्वानों का मत है कि गरीबों को न्यूनतम बुनियादी सुविधाएँ मुहैया कराने की जिम्मेदारी सरकार को लेनी चाहिए अर्थात् पूर्णतया मुक्त बाजार के स्थान पर राज्य को सभी लोगों के लिए न्यूनतम बुनियादी जीवन मानक सुनिश्चित करने हेतु राज्य को हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि वे समान शर्तों पर प्रतिस्पर्द्धा करने में समर्थ हो सकें। यदि हम बुनियादी वस्तुओं व सेवाओं को आम लोगों को मुहैया कराने के लिए निजी एजेन्सियों को देंगे, तो वे लाभ की दृष्टि रखते हुए इन वस्तुओं व सेवाओं को मुहैया करायेंगी। यदि निजी एजेन्सियाँ इसे अपने लिए लाभदायक नहीं पाती हैं तो वे उस खास बाजार में प्रवेश नहीं करेंगी अथवा सस्ती और घटिया सेवाएँ मुहैया करायेंगी।

जबकि बुनियादी वस्तुओं और सेवाओं के मामले में महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अच्छी गुणवत्ता की वस्तुएँ और सेवाएँ लोगों के खरीदने लायक कीमत पर उपलब्ध हों। निजी एजेन्सियाँ ऐसी व्यवस्थाएँ नहीं कर सकतीं, इसलिए सरकार को इस क्षेत्र में हस्तक्षेप कर गरीबों को न्यूनतम बुनियादी व अच्छी गुणवत्ता की वस्तुएँ व सेवाएँ खरीदने लायक कीमत पर उपलब्ध करानी चाहिए। यही कारण है कि सुदूर ग्रामीण इलाकों में बहुत कम निजी विद्यालय खुले हैं और खुले भी हैं तो वे निम्नस्तरीय हैं। स्वास्थ्य सेवा और आवास के मामले में भी यही सच है। इन परिस्थितियों में सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए।

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