Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 7 राष्ट्रवाद Important Questions and Answers.
JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 7 राष्ट्रवाद
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. निम्नलिखित में जो राष्ट्रवाद का अवगुण है, वह है।
(अ) देशभक्ति
(ब) लोगों को स्वतंत्रता की प्रेरणा देना
(स) उग्र-राष्ट्रवाद
(द) राष्ट्रीय एकता
उत्तर:
(स) उग्र-राष्ट्रवाद
2. निम्नलिखित में कौनसा राष्ट्रवाद का गुण
(अ) उग्र-राष्ट्रवादी भावना
(ब) साम्राज्यवाद की प्रेरणा देना
(स) राष्ट्रीय एकता की भावना
(द) पृथकतावादी आंदोलनों को प्रेरित करना
उत्तर:
(स) राष्ट्रीय एकता की भावना
3. निम्नलिखित में आत्म-निर्णय की अवधारणा का गुण है
(अ) लोगों को राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करना
(ब) सीमा विवादों का कारण होना
(स) पृथकतावादी आंदोलनों को प्रेरित करना
(द) शरणार्थी की समस्या का कारण
उत्तर:
(अ) लोगों को राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करना
4. क्यूबेकवासियों द्वारा किस राष्ट्र में पृथकवादी आंदोलन चलाया जा रहा है
(अ) उत्तरी स्पेन में
(ब) कनाडा में
(स) इराक में
(द) श्रीलंका में
उत्तर:
(ब) कनाडा में
5. श्रीलंका में निम्नलिखित में से किस समूह द्वारा पृथकतावादी आंदोलन चलाया जा रहा है-
(अ) कुर्दों द्वारा
(ब) बास्कवासियों द्वारा
(स) क्यूबेकवासियों द्वारा
(द) उक्त सभी
उत्तर:
(द) उक्त सभी
6. निम्नांकित में से राष्ट्रीयता का तत्त्व है
(अ) भौगोलिक एकता
(ब) भाषा, संस्कृति तथा परम्पराएँ
(स) नस्ल अथवा प्रजाति की एकता
(द) तमिलों द्वारा
उत्तर:
(द) तमिलों द्वारा
7. ” राष्ट्रवाद हमारी अंतिम आध्यात्मिक मंजिल नहीं हो सकती। मेरी शरण स्थली तो मानवता है। मैं हीरों की कीमत पर शीशा नहीं खरीदूँगा तथा जब तक मैं जीवित हूँ, देशभक्ति को मानवता पर कदापि विजयी नहीं होने
दूँगा ।” उक्त कथन है
(अ) रवीन्द्रनाथ का
(ब) पण्डित नेहरू का
(स) महात्मा गाँधी का
(द) जे. एस. मिल का
उत्तर:
(अ) रवीन्द्रनाथ का
8. निम्न में से भारत में राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने वाला प्रमुख कारक है-
(अ) विदेशी प्रभुत्व
(ब) पाश्चात्य विचार तथा शिक्षा
(स) सामाजिक एवं धार्मिक सुधार आन्दोलन
(द) उक्त सभी
उत्तर:
(द) उक्त सभी
9. नेशनेलिटी शब्द किस लैटिन भाषी शब्द से उत्पन्न हुआ है?
(अ) नेट्स
(ब) नेलि
(स) नेसट्
(द) नेशन
उत्तर:
(अ) नेट्स
10. राष्ट्र निर्माण के लिए साझे राजनैतिक आदर्श हैं।
(अ) लोकतंत्र
(ब) धर्मनिरपेक्षता
(स) उदारवाद
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
1. 20वीं सदी में नए राष्ट्रों के लोगों ने एक नई राजनीतिक पहचान अर्जित की, जो ……………………. की सदस्यता पर आधारित थी।
उत्तर:
राष्ट्र-राज्य
2. दुनिया में ……………… आज भी एक प्रभावी शक्ति है।
उत्तर:
राष्ट्रवाद
3. भविष्य के बारे में साझा नजरिया, अपना भू क्षेत्र और साझी ऐतिहासिक पहचान तथा स्वतंत्र राजनीतिक अस्तित्व बनाने की सामूहिक चाहत ………………. को बाकी समूहों से अलग करती है।
उत्तर:
राष्ट्र
4. बाकी सामाजिक समूहों से अलग राष्ट्र के लोग …………………….. का अधिकार मांगते हैं।
उत्तर:
आत्मनिर्णय
5. आज दुनिया की सारी राज्य सत्ताएँ इस …………………… में फँसी हैं कि आत्मनिर्णय के आंदोलनों से कैसे निपटा जाये।
उत्तर:
दुविधा।
निम्नलिखित में से सत्य/असत्य कथन छाँटिये
1. भारतीय संविधान में धार्मिक, भाषायी और सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों की संरक्षा के लिए विस्तृत प्रावधान हैं।
उत्तर:
सत्य
2. राष्ट्रों की सीमाओं के पुनर्संयोजन की प्रक्रिया वर्तमान में खत्म हो गई है।
उत्तर:
असत्य
3. राष्ट्रवाद ने जहाँ एक ओर वृहत्तर राष्ट्र-राज्यों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया, वहाँ यह बड़े-बड़े साम्राज्यों के पतन में भी हिस्सेदार रहा है।
उत्तर:
सत्य
4. भारत का औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्र होने का संघर्ष राष्ट्रवादी संघर्ष नहीं था।
उत्तर:
असत्य
5. बहुत सारे राष्ट्रों की पहचान एक खास भौगोलिक क्षेत्र से जुड़ी है।
उत्तर:
सत्य
निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये
1. गणतंत्र दिवस की परेड | (अ) राष्ट्र और कल्पनाओं के सहारे एक सूत्र में बँधा एक काल्पनिक समुदाय |
2. इराक में कुर्दों का आंदोलन, | (ब) जवाहरलाल नेहरू |
3. अपने सदस्यों के सामूहिक विश्वास, आकांक्षाओं | (स) जवाहरलाल नेहरू यहूदियों का दावा काल्पनिक समुदाय और कल्पनाओं के सहारे एक सूत्र में बँधा एक |
4. ‘डिस्कवरी ऑफ इण्डिया’ नामक पुस्तक | (द) भारतीय राष्ट्रवाद का बेजोड़ प्रतीक |
5. उनका मूल गृह-स्थल फिलिस्तीन उनका स्वर्ग है | (य) एक पृथकतावादी आंदोलन. |
उत्तर:
1. गणतंत्र दिवस की परेड | (द) भारतीय राष्ट्रवाद का बेजोड़ प्रतीक |
2. इराक में कुर्दों का आंदोलन, | (य) एक पृथकतावादी आंदोलन. |
3. अपने सदस्यों के सामूहिक विश्वास, आकांक्षाओं | (अ) राष्ट्र और कल्पनाओं के सहारे एक सूत्र में बँधा एक काल्पनिक समुदाय |
4. ‘डिस्कवरी ऑफ इण्डिया’ नामक पुस्तक | (ब) जवाहरलाल नेहरू |
5. उनका मूल गृह-स्थल फिलिस्तीन उनका स्वर्ग है | (स) जवाहरलाल नेहरू यहूदियों का दावा काल्पनिक समुदाय और कल्पनाओं के सहारे एक सूत्र में बँधा एक |
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
दिल्ली में गणतंत्र दिवस की परेड भारतीय राष्ट्रवाद का बेजोड़ प्रतीक क्यों है?
उत्तर:
क्योंकि गणतंत्र दिवस की परेड सत्ता और शक्ति के साथ विविधता की भावना को भी प्रदर्शित करती है।
प्रश्न 2.
राष्ट्रवाद के किन्हीं चार प्रतीकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- राष्ट्रगान
- राष्ट्रीय ध्वज
- राष्ट्रीय नागरिकता
- स्वतन्त्रता दिवस।
प्रश्न 3.
19वीं सदी में यूरोप में राष्ट्रवाद ने कौनसी प्रमुख भूमिका निभायी?
उत्तर:
19वीं सदी में यूरोप में राष्ट्रवाद ने छोटी-छोटी रियासतों के एकीकरण से वृहत्तर राष्ट्र-राज्यों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया।
प्रश्न 4.
20वीं सदी में यूरोप में राष्ट्रवाद की क्या भूमिका रही?
उत्तर:
यूरोप में 20वीं सदी में राष्ट्रवाद आस्ट्रियाई – हंगरियाई, ब्रिटिश, फ्रांसीसी, डच और पुर्तगाली साम्राज्य के पतन का हिस्सेदार रहा।
प्रश्न 5.
20वीं सदी में भारत तथा अन्य पूर्व उपनिवेशों के औपनिवेशिक शासन से मुक्त होने के राष्ट्रवादी संघर्ष किस आकांक्षा से प्रेरित थे?
उत्तर:
ये संघर्ष विदेशी नियंत्रण से स्वतंत्र राष्ट्र-राज्य स्थापित करने की आकांक्षा से प्रेरित थे।
प्रश्न 6.
वर्तमान विश्व के किन्हीं दो पृथकतावादी आंदोलनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
आज विश्व में
- इराक के कुर्दों तथा
- श्रीलंका के तमिलों द्वारा पृथकतावादी आंदोलन चलाए जा रहे हैं।
प्रश्न 7.
राष्ट्र निर्माण के किन्हीं दो तत्त्वों के नाम लिखिये।
उत्तर:
- साझे विश्वास तथा
- साझा इतिहास
प्रश्न 8.
बास्क राष्ट्रवादी आंदोलन के नेता क्या चाहते हैं?
उत्तर:
बास्क राष्ट्रवादी आंदोलन के नेता यह चाहते हैं कि बास्क स्पेन से अलग होकर एक स्वतंत्र देश बन जाये।
प्रश्न 9.
आत्मनिर्णय के अपने दावे में कोई राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से क्या मांग करता है?
उत्तर:
आत्मनिर्णय के अपने दावे में कोई राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से यह मांग करता है कि उसके पृथक् राज्य के दर्जे को मान्यता और स्वीकार्यता दी जाये।
प्रश्न 10.
‘एक संस्कृति और एक राज्य’ की अवधारणा से क्या आशय है?
उत्तर:
एक संस्कृति – एक राज्य’ की अवधारणा से यह आशय है कि अलग-अलग सांस्कृतिक समुदायों को अलग-अलग राज्य मिले।
प्रश्न 11.
‘एक संस्कृति एक राज्य’ की अवधारणा को 19वीं सदी में मान्यता देने के कोई दो परिणाम लिखिये।
उत्तर:
- इससे राज्यों की सीमाओं में बदलाव किये गये।
- इससे सीमाओं के एक ओर से दूसरी ओर बहुत बड़ी जनसंख्या का विस्थापन हुआ।
प्रश्न 12.
राष्ट्रीयता के विकास में बाधक तत्वों में से किन्हीं दो का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
अशिक्षा, साम्प्रदायिकता की भावना।
प्रश्न 13.
ऐसे दो राष्ट्रों के उदाहरण दीजिए जिनमें अपनी कोई सामान्य भाषा नहीं है।
उत्तर:
कनाडा, भारत।
प्रश्न 14.
कनाडा में मुख्यतः कौनसी भाषाएँ बोली जाती हैं?
उत्तर:
अंग्रेजी, फ्रांसीसी।
प्रश्न 15.
विभिन्न राष्ट्र अपनी गृहभूमि को क्या नाम देते हैं?
उत्तर:
मातृभूमि या पितृभूमि या पवित्र भूमि।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रेरित करने वाले दो कारकों का उल्लेख कीजिये । उत्तर-राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रेरित करने वाले दो कारक ये हैंरहे हैं।
1. संयुक्त विश्वास: संयुक्त या साझे विश्वास से ही राष्ट्र का निर्माण होता है तथा इसी के चलते उसका अस्तित्व बना रहता है।
2. इतिहास; राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रेरित करने वाला दूसरा कारक इतिहास है। एक राष्ट्र की स्थायी पहचान का लेखा-जोखा प्रस्तुत करने के लिए ही संयुक्त स्मृतियों, ऐतिहासिक अभिलेखों की रचना द्वारा इतिहास बोध निर्मित किया जाता है।
प्रश्न 2.
वर्तमान विश्व के किन्हीं चार पृथकतावादी आन्दोलनों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
आज विश्व में
- कनाडा के क्यूबेकवासियों
- उत्तरी स्पेन के बास्कवासियों
- इराक के कुर्दों तथा
- श्रीलंका के तमिलों द्वारा पृथकतावादी आन्दोलन चलाये जा रहे हैं।
प्रश्न 3.
राष्ट्र परिवार से किस रूप में भिन्न है?
उत्तर:
परिवार प्रत्यक्ष सम्बन्धों पर आधारित होता है जिसका प्रत्येक सदस्य दूसरे सदस्यों के व्यक्तित्व और चरित्र के बारे में व्यक्तिगत जानकारी रखता है, जबकि राष्ट्र प्रत्यक्ष सम्बन्धों पर आधारित नहीं होता है।
प्रश्न 4.
बास्क राष्ट्रवादी आन्दोलन के नेता अपने स्वतंत्र देश की मांग के समर्थन में क्या तर्क देते हैं?
उत्तर:
बास्क राष्ट्रवादी आन्दोलन के नेता अपने लिए स्वतंत्र देश की माँग के समर्थन में यह तर्क देते हैं कि
- उनकी संस्कृति तथा भाषा स्पेनी संस्कृति और भाषा से भिन्न है।
- बास्क क्षेत्र की पहाड़ी भू-संरचना उसे शेष स्पेन से भौगोलिक तौर पर अलग करती है।
- उनकी विशिष्ट न्यायिक, प्रशासनिक और वित्तीय प्रणालियाँ हैं।
प्रश्न 5.
राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार के अन्तर्गत कोई समूह क्या अधिकार चाहता है?
उत्तर:
राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार के अन्तर्गत कोई समूह शेष सामाजिक समूहों से अलग अपना राष्ट्र तथा अपना शासन अपने आप करने और भविष्य को तय करने का अधिकार चाहता है।
प्रश्न 6.
राज्यों के भीतर अल्पसंख्यक समुदायों की समस्या का समाधान क्या है?
उत्तर:
राज्यों के भीतर अल्पसंख्यक समुदायों की समस्या का समाधान नए राज्यों के गठन में नहीं है, वर्तमान राज्यों को अधिक से अधिक लोकतांत्रिक और समतामूलक बनाने में है।
प्रश्न 7.
राष्ट्र और राष्ट्रीयता के बीच क्या अन्तर है?
उत्तर:
राष्ट्र और राष्ट्रीयता के बीच अन्तर केवल राजनीतिक संगठन और स्वतंत्र राज्य सम्बन्धी है। राष्ट्रीयता में सांस्कृतिक एकता तो होती है लेकिन संगठन तथा स्वतंत्र राज्य नहीं होता है। जब राष्ट्रीयता अपने आपको स्वतंत्र होने की इच्छा रखने वाली राजनीतिक संस्था के रूप में संगठित कर लेती है तो वह राष्ट्र बन जाती है।
प्रश्न 8.
पिछली दो शताब्दियों में राष्ट्रवाद ने इतिहास रचने में क्या योगदान दिया है?
उत्तर:
पिछली दो शताब्दियों में राष्ट्रवाद ने इतिहास रचने में निम्न योगदान दिया है।
- इसने जनता को जोड़ा है तो विभाजित भी किया है।
- इसने अत्याचारी शासन से मुक्ति दिलाने में मदद की है तो इसके साथ यह विरोध, कटुता और युद्धों का कारण भी रहा है।
- राष्ट्रवादी संघर्षों ने राष्ट्रों और साम्राज्यों की सीमाओं के निर्धारण – पुनर्निर्धारण में योगदान किया है। आज दुनिया का एक बड़ा भाग विभिन्न राष्ट्र-राज्यों में बंटा हुआ है।
प्रश्न 9.
राष्ट्रवाद के दो प्रमुख चरणों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
राष्ट्रवाद के दो प्रमुख चरण निम्नलिखित हैं।
- 19वीं सदी यूरोप में राष्ट्रवाद ने छोटी-छोटी रियासतों के एकीकरण से वृहत्तर राष्ट्र राज्यों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। आज के जर्मनी और इटली का गठन इसी का परिणाम है।
- 20वीं सदी में राष्ट्रवाद बड़े-बड़े साम्राज्यों के पतन में भी हिस्सेदार रहा है। यूरोप में 20वीं सदी के आरम्भ में आस्ट्रियाई-हंगेरियाई और रूसी साम्राज्य तथा एशिया और अफ्रीका में ब्रिटिश, फ्रांसीसी और डच साम्राज्य के विघटन के मूल में राष्ट्रवाद ही था।
प्रश्न 10.
अगर हम धर्म के आधार पर अपनी राष्ट्रवादी पहचान स्थापित कर दें तो इसका क्या दुष्परिणाम हो सकता है?
उत्तर:
अगर हम धार्मिक विभिन्नताओं की अवहेलना कर एक समान धर्म के आधार पर अपनी पहचान स्थापित कर दें तो हम बहुत ही वर्चस्ववादी और दमनकारी समाज का निर्माण कर सकते हैं।
प्रश्न 11.
‘एक संस्कृति और एक राज्य की धारणा के विकास का सकारात्मक पहलू क्या था ?
उत्तर:
‘एक संस्कृति और एक राज्य’ की धारणा के विकास का सकारात्मक पहलू यह था कि उन बहुत सारे राष्ट्रवादी समूहों को राजनीतिक मान्यता प्रदान की गई जो स्वयं को एक अलग राष्ट्र के रूप में देखते थे और अपने भविष्य को तय करने तथा अपना शासन स्वयं चलाना चाहते थे।
प्रश्न 12.
19वीं सदी में राष्ट्र निर्माण हेतु ‘एक संस्कृति – एक राज्य’ की मान्यता के क्या दुष्परिणाम हुए?
उत्तर:
19वीं सदी में राष्ट्र निर्माण हेतु ‘एक संस्कृति: एक राज्य’ की मान्यता के परिणामस्वरूप बहुत से छोटे एवं नव स्वतंत्र राज्यों का गठन हुआ। इसके कारण राज्यों की सीमाओं में बदलाव हुए तथा एक ओर से दूसरी ओर बहुत बड़ी जनसंख्या का विस्थापन हुआ। परिणामस्वरूप लाखों लोग अपने घरों से उजड़ गये। बहुत सारे लोग साम्प्रदायिक हिंसा के भी शिकार हुए।
प्रश्न 13.
आज दुनिया की सारी राज्य सत्ताएँ किस दुविधा में फँसी हैं?
उत्तर:
आज दुनिया की सारी राज्य सत्ताएँ अपने भू-क्षेत्रों में राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार की माँग करने वाले अल्पसंख्यक समूहों के आन्दोलनों से निपटने की इस दुविधा में फँसी हैं कि इन आन्दोलनों से कैसे निपटा जाये?
प्रश्न 14.
एक राष्ट्र के भू-क्षेत्र में राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार की माँग करने वाले अल्पसंख्यक समूहों की समस्या का समाधान क्या है?
उत्तर:
एक राष्ट्र के भू-क्षेत्र में राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार की माँग करने वाले अल्पसंख्यक समूहों की समस्या का समाधान नये राज्यों के गठन में नहीं है बल्कि वर्तमान राज्यों को अधिक लोकतांत्रिक और समतामूलक बनाने में है तथा यह सुनिश्चित करने में है कि अलग-अलग संस्कृतियों और नस्लीय पहचानों के लोग देश में अन्य नागरिकों के साथ सह-अस्तित्वपूर्वक रह सकें।
प्रश्न 15.
राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार की अब क्या पुनर्व्याख्या की जाती है?
उत्तर:
राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार की अब यह पुनर्व्याख्या की जाती है कि राज्य के भीतर किसी राष्ट्रीयता के लिए कुछ लोकतांत्रिक अधिकारों को स्वीकृति प्रदान की जाये। प्रत्येक देश अल्पसंख्यकों की माँगों के सम्बन्ध में अत्यन्त उदारता एवं दक्षता का परिचय दे।
प्रश्न 16.
” पिछली दो शताब्दियों के दौरान राष्ट्रवाद एक ऐसे सम्मोहक राजनीतिक सिद्धान्त के रूप में उभरा है जिसने इतिहास रचने में योगदान दिया है।” इस कथन पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
पिछली दो शताब्दियों के दौरान राष्ट्रवाद ने निम्न रूपों में इतिहास रचने में योगदान दिया है
- इसने उत्कट निष्ठाओं के साथ-साथ गहरे विद्वेषों को भी प्रेरित किया है।
- इसने जनता को जोड़ा है तो विभाजित भी किया है।
- इंसने अत्याचारी शासन से मुक्ति दिलाने में मदद की तो इसके साथ यह विरोध, कटुता और युद्धों का कारण भी रहा है।
- साम्राज्यों और राष्ट्रों के ध्वस्त होने का भी यह कारण रहा है।
- आज विश्व का एक बड़ा भाग विभिन्न राष्ट्र – राज्यों में विभाजित है और मौजूदा राष्ट्रों के अन्तर्गत अभी भी अलगाववादी राष्ट्रवादी संघर्ष जारी हैं।
प्रश्न 17.
राज्य व राष्ट्र में तीन अन्तर लिखिये।
उत्तर:
राज्य व राष्ट्र में तीन प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं।
- आवश्यक तत्व सम्बन्धी अन्तर: एक राज्य में आवश्यक रूप से चार तत्वों – जनसंख्या, निश्चित भू-भाग, सरकार और संप्रभुता का होना आवश्यक है, लेकिन एक राष्ट्र में राज्य के ये आवश्यक तत्व लागू नहीं होते हैं। उसमें चार से कम तत्व हो सकते हैं और अधिक तत्व भी हो सकते हैं।
- निश्चित भू-भाग सम्बन्धी अन्तर- प्रत्येक राज्य का एक निश्चित भू-भाग होता है, लेकिन एक राष्ट्र के लिए निश्चित भू-भाग होना आवश्यक नहीं है।
- संप्रभुता सम्बन्धी अन्तर- राज्य के लिए संप्रभुता का होना आवश्यक है, लेकिन राष्ट्र के लिए संप्रभुता की आवश्यकता नहीं होती।
प्रश्न 18.
राष्ट्रवाद की प्रक्रिया के प्रमुख चरणों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
राष्ट्रवाद की प्रक्रिया के प्रमुख चरण-राष्ट्रवाद की प्रक्रिया के प्रमुख चरण निम्नलिखित हैं।
- छोटी-छोटी रियासतों के एकीकरण और सुदृढ़ीकरण से वृहत्तर राज्यों की स्थापना का चरण: 19वीं शताब्दी के यूरोप में राष्ट्रवाद ने छोटी-छोटी रियासतों के एकीकरण से वृहत्तर राष्ट्र-राज्यों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। जर्मनी और इटली का गठन एकीकरण और सुदृढ़ीकरण की इसी प्रक्रिया के तहत हुआ था।
- स्थानीय निष्ठाएँ और बोलियों का राष्ट्रीय निष्ठाओं के रूप में विकास; राज्य की सीमाओं के सृदृढ़ीकरण के साथ-साथ स्थानीय निष्ठाएँ और बोलियाँ भी उत्तरोत्तर राष्ट्रीय निष्ठाओं एवं सर्वमान्य जनभाषाओं के रूप में विकसित हुईं।
- नई राजनीतिक पहचान: नए राष्ट्र के लोगों ने नई राजनीतिक पहचान अर्जित की, जो राष्ट्र-राज्य की सदस्यता पर आधारित थी। पिछली शताब्दी में हमने अपने देश को सुदृढ़ीकरण की ऐसी ही प्रक्रिया से गुजरते देखा है।
- बड़े-बड़े साम्राज्यों के पतन में हिस्सेदार; यूरोप में 20वीं सदी में आस्ट्रियाई – हंगेरियाई, रूसी, ब्रिटिश, फ्रांसीसी, डच और पुर्तगाली साम्राज्य के विघटन के मूल में राष्ट्रवाद ही था।
- सीमाओं के पुनर्निर्धारण की प्रक्रिया: राष्ट्रों की सीमाओं की पुनर्निर्धारण की प्रक्रिया अभी जारी है। 1960 से ही राष्ट्र-राज्य कुछ समूहों या अंचलों द्वारा उठाई गई राष्ट्रवादी मांगों का सामना करते आ रहे हैं। इन मांगों में पृथक् राज्य की मांग भी शामिल है। आज दुनिया के अनेक भागों में ऐसे राष्ट्रवादी संघर्ष जारी हैं।
प्रश्न 19.
राष्ट्र से क्या आशय है?
उत्तर:
राष्ट्र से अभिप्राय-राष्ट्र बहुत हद तक एक काल्पनिक समुदाय होता है, जो अपने सदस्यों के सामूहिक विश्वास, आकांक्षाओं और कल्पनाओं के सहारे एक सूत्र में बंधा होता है। यह कुछ खास मान्यताओं पर आधारित होता है जिन्हें लोग उस समग्र समुदाय के लिए गढ़ते हैं, जिससे वे अपनी पहचान कायम करते हैं।
प्रश्न 20.
राष्ट्रवाद के लिए एक समान भाषा या जातीय परम्परा जैसी सांस्कृतिक पहिचान का आधार लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरा क्यों हो सकता है?
उत्तर:
यद्यपि एक ही भाषा बोलना आपसी संवाद को काफी आसान बना देता है। इसी प्रकार समान धर्म होने पर बहुत सारे विश्वास और सामाजिक रीतिरिवाज साझे हो जाते हैं। लेकिन यह उन मूल्यों के लिए खतरा भी उत्पन्न कर सकता है जिन्हें हम लोकतंत्र में महत्त्वपूर्ण मानते हैं। इसके निम्नलिखित दो कारण हैं
1. विश्व के सभी बड़े धर्म अंदरूनी तौर से विविधता से भरे हुए हैं। एक ही धर्म के अन्दर बने विभिन्न पंथ हैं और धार्मिक ग्रंथों तथा नियमों की उनकी व्याख्याएँ भी काफी अलग-अलग हैं। अगर हम उन पंथिक विभिन्नताओं की अवहेलना कर एक समान धर्म के आधार पर एक पहचान स्थापित कर देंगे तो इससे एक वर्चस्ववादी और दमनकारी समाज का निर्माण होगा जो लोकतंत्र के मूल आदर्शों के विपरीत होगा।
2. विश्व के अधिकतर समाज सांस्कृतिक रूप से विविधता से भरे हैं। एक ही भू-क्षेत्र में विभिन्न धर्म और भाषाओं के लोग साथ-साथ रहते हैं। किसी राज्य की सदस्यता की शर्त के रूप में किसी खास धार्मिक या भाषायी पहचान को आरोपित कर देने से कुछ समूह निश्चित रूप से शामिल होने से रह जायेंगे। इससे इन समूहों की या तो धार्मिक स्वतंत्रता बाधित होगी या राष्ट्रीय भाषा न बोलने वाले समूहों की हानि होगी। दोनों ही स्थितियों में ‘समान बर्ताव और सबके लिए स्वतंत्रता’ के आदर्श में भारी कटौती होगी, जिसे हम लोकतंत्र के लिए अमूल्य मानते हैं।
प्रश्न 21.
राष्ट्रीय आत्म निर्णय के अधिकार से क्या आशय है?
उत्तर:
राष्ट्रीय आत्मनिर्णय: जब कोई सामाजिक समूह शेष सामाजिक समूहों से अलग राष्ट्र चाहता है । वह अपना शासन अपने आप करने और अपने भविष्य को तय करने का अधिकार चाहता है तो उसके इस अधिकार को ही आत्म-निर्णय का अधिकार कहते हैं। इसके दावे में राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से यह मांग करता है कि उसके पृथक् राजनीतिक इकाई या राज्य के दर्जे को मान्यता और स्वीकार्यता दी जाये। प्राय: राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार की मांग उन लोगों की ओर से की जाती है जो एक लम्बे समय से किसी निश्चित भू-भाग पर साथ-साथ रहते आए हों और जिनमें साझी पहचान का बोध हो। कुछ मामलों में आत्म-निर्णय के ऐसे दावे एक स्वतंत्र राज्य बनाने की इच्छा से जुड़े होते हैं। कुछ दावों का सम्बन्ध किसी समूह की संस्कृति की संरक्षा से होता है।
प्रश्न 22.
राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रेरित करने वाले कारकों को संक्षेप में स्पष्ट कीजिये।
अथवा
राष्ट्रवाद के प्रमुख तत्वों को स्पष्ट करो।
उत्तर:
राष्ट्रवाद के प्रमुख तत्व या उसे प्रेरित करने वाले कारक: राष्ट्रवाद के प्रमुख तत्व तथा राष्ट्रवाद को प्रेरित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं।
- साझे विश्वास: राष्ट्र विश्वास के जरिये बनता है। एक राष्ट्र का अस्तित्व तभी कायम रह सकता है जब उसके सदस्यों को यह विश्वास हो कि वे एक-दूसरे के साथ हैं।
- इतिहास: जो लोग अपने को एक राष्ट्र मानते हैं, उनके भीतर अपने बारे में स्थायी पहचान की भावना होती है। वे देश की स्थायी पहचान का खाका प्रस्तुत करने के लिए साझा स्मृतियों, किंवदन्तियों और ऐतिहासिक अभिलेखों के जरिए इतिहास बोध निर्मित करते हैं।
- भू-क्षेत्र: किसी खास भू-क्षेत्र पर लम्बे समय तक साथ-साथ रहना और उससे जुड़ी साझी अतीत की यादें लोगों को एक सामूहिक पहचान का बोध देती हैं। इसलिए जो लोग स्वयं को एक राष्ट्र के रूप में देखते हैं, वे एक गृहभूमि की बात करते हैं। जिसे वे मातृभूमि, पितृभूमि या पवित्र भूमि कहते हैं।
- साझे राजनीतिक आदर्श-राष्ट्र के सदस्यों की इस बारे में एक साझा दृष्टि होती है कि वे किस तरह का राज्य बनाना चाहते हैं। साझे राजनीतिक आदर्श, जैसे लोकतन्त्र, धर्मनिरपेक्षता, उदारवाद आदि राष्ट्र के रूप में उनकी राजनीतिक पहचान को बताते हैं।
- साझी राजनीतिक पहचान: राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रेरित करने वाला एक अन्य कारण ‘साझी राजनीतिक पहचान’ अर्थात् ‘एक मूल्य- समूह के प्रति निष्ठा’ का होना आवश्यक है। इस मूल्य समूह को देश के संविधान में भी दर्ज किया जाता है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
बास्क में राष्ट्रीय आत्म-निर्णय की मांग को स्पष्ट कीजिये। क्या बास्क राष्ट्रवादियों की अलग राष्ट्र की मांग जायज है? आपकी दृष्टि में इसका क्या समाधान हो सकता है?
उत्तर:
बास्क में राष्ट्रीय आत्म-निर्णय की मांग: बास्क स्पेन का एक पहाड़ी और समृद्ध क्षेत्र है। इस क्षेत्र को स्पेनी सरकार ने स्पेन राज्य संघ के अन्तर्गत ‘स्वायत्त’ क्षेत्र का दर्जा दे रखा है, लेकिन बास्क राष्ट्रवादी आन्दोलन के नेतागण इस स्वायत्तता से संतुष्ट नहीं हैं। वे चाहते हैं कि बास्क स्पेन से अलग होकर एक स्वतंत्र देश बन जाए। बास्क राष्ट्रवादियों के तर्क। बास्क राष्ट्रवादी अपनी मांग के समर्थन में निम्न तर्क देते हैं।
- उनकी संस्कृति स्पेनी संस्कृति से बहुत भिन्न है।
- उनकी अपनी भाषा है, जो स्पेनी भाषा से बिल्कुल नहीं मिलती है।
- बास्क क्षेत्र की पहाड़ी भू-संरचना उसे शेष स्पेन से भौगोलिक तौर पर अलग करती है।
- रोमन काल से अब तक बास्क क्षेत्र ने स्पेनी शासकों के समक्ष अपनी स्वायत्तता का कभी समर्पण नहीं किया। उसकी न्यायिक, प्रशासनिक एवं वित्तीय प्रणालियाँ उसकी अपनी विशिष्ट व्यवस्था के जरिए संचालित होती थीं।
आधुनिक बास्क आंदोलन के कारण
- 19वीं सदी के अंत में स्पेनी शासकों ने बास्क क्षेत्र की विशिष्ट राजनीतिक प्रशासनिक व्यवस्था को समाप्त करने की कोशिश की।
- 20वीं सदी में तानाशाह फ्रैंको ने इस स्वायत्तता में और कटौती कर दी। उसके बास्क भाषा को सार्वजनिक स्थानों, यहाँ तक कि घर में भी बोलने पर पाबंदी लगा दी।
- यद्यपि वर्तमान स्पेनी शासन ने इन दमनकारी कदमों को वापस ले लिया है, तथापि बास्क आंदोलनकारियों का स्पेनी शासन के प्रति संदेह और क्षेत्र में बाहरी लोगों के प्रवेश का भय बरकरार है।
समस्या का संभव समाधान: दमन किये जाने या दमन किये जाने के भय के बने रहने के कारण पैदा हुई बास्क राष्ट्रवादियों की अलग राष्ट्र की मांग जायज है। लेकिन यदि स्पेन का शासन बास्क लोगों के अधिकारों और सांस्कृतिक पहचान की कद्र करते हुए उनमें भरोसा पैदा करने में समर्थ हो जाते हैं तो वे बास्क के लोगों की स्पेन के प्रति निष्ठा स्वतः ही प्राप्त कर लेंगे। अंतः निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि बास्क के लोगों की समस्या का समाधान नए राज्य के गठन में नहीं है बल्कि वर्तमान स्पेन राज्य को अधिक लोकतांत्रिक और समतामूलक बनाने में है तथा यह सुनिश्चित करने में है कि अलग-अलग सांस्कृतिक और नस्लीय पहचानों के लोग देश में समान नागरिक और साथियों की तरह सह-अस्तित्वपूर्वक रह सकें।
प्रश्न 2.
राज्य और राष्ट्र में क्या अन्तर है?
उत्तर:
राज्य और राष्ट्र में अन्तर यद्यपि सामान्य बोलचाल में राज्य और राष्ट्र शब्दों को एक-दूसरे के लिए प्रयुक्त किया जाता है तथा दोनों को समानार्थी समझा जाता है। लेकिन दोनों शब्द समानार्थी नहीं हैं, दोनों में स्पष्ट अन्तर है। दोनों के अन्तर को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।
1. राज्य के लिए चार तत्त्वों का होना आवश्यक है:
प्रत्येक राज्य के चार आवश्यक तत्त्व होते हैं। ये हैं- जनसंख्या, निश्चित भू-भाग, सरकार और संप्रभुता। लेकिन राष्ट्र के लिए इन चारों तत्त्वों का होना आवश्यक नहीं है। एक राष्ट्र के 10 तत्त्व हो सकते हैं; दूसरे के केवल चार हो सकते हैं और किसी अन्य के केवल तीन भी हो सकते हैं। राष्ट्र के तत्त्व बदल भी सकते हैं। इस प्रकार राज्य के आवश्यक तत्त्व राष्ट्र के लिये लागू नहीं होते।
2. राज्य के लिए एकता की भावना अनिवार्य नहीं हैं:
एक राज्य के लोग एक निश्चित भू-भाग में निवास करते हैं, उनमें एकता और एकत्व ( oneness) की भावना का होना आवश्यक नहीं है। लेकिन एक राष्ट्र के सदस्यों में एकता की भावना का होना आवश्यक है। यदि किसी समूह के लोग साथ-साथ रहते हैं लेकिन उनमें एकत्व की कोई भावना नहीं है जो अन्य लोगों से उसे अलग करती हो, तो वह समूह राष्ट्र नहीं कहला सकता।
3. राज्य का भू-भाग निश्चित होता है:
प्रत्येक राज्य का एक निश्चित भू-भाग होता है, लेकिन राष्ट्र का निश्चित भू-भाग नहीं होता। एक राष्ट्र में एक या एक से अधिक राज्य हो सकते हैं और एक राज्य में दो या अधिक राष्ट्र हो सकते हैं। यद्यपि वर्तमान में एक राष्ट्र एक राज्य का विचार प्रचलित है और एक राष्ट्र अपने प्रयासों से देर-सवेर स्वतंत्रता प्राप्त कर लेता है।
4. राज्य के पास संप्रभुता होती है: राज्य के लिए संप्रभुता का होना आवश्यक है, लेकिन राष्ट्र के लिए संप्रभुता की आवश्यकता नहीं होती। जब कोई समूह राजनैतिक चेतना प्राप्त कर लेता है और अपनी स्वतंत्रता के लिये प्रयत्न करना प्रारंभ कर देता है, वह समूह स्वयं में एक राष्ट्र की रचना करता है; लेकिन जब तक लोगों को संप्रभुता प्राप्त नहीं होगी, वे राज्य का निर्माण नहीं कर सकते हैं।
5. राष्ट्र अधिक स्थायी है- राष्ट्र राज्य की तुलना में अधिक स्थायी है। जब एक समाज अपनी संप्रभुता को खो देता है, तब राज्य समाप्त हो जाता है, लेकिन उसके सदस्यों की एकता की भावना उसकी राष्ट्र के रूप में पहचान बनाए रखती है। शक्ति के द्वारा पारम्परिक एकता की भावना को समाप्त नहीं किया जा सकता।
6. राष्ट्र की अपेक्षा राज्य भौतिक है- राष्ट्र एक एकता की भावना है लेकिन राज्य वह है जब उसके चारों तत्व एक साथ हों। इनमें भूमि, जनसंख्या और सरकार तीनों तत्व भौतिक हैं।
प्रश्न 3.
राष्ट्रवाद को परिभाषित कीजिये। इसके गुण तथा दोषों की व्याख्या कीजिये।
अथवा
राष्ट्रवाद के पक्ष व विपक्ष में तर्क दीजिये।
उत्तर:
राष्ट्र से आशय: राष्ट्र बहुत हद तक एक ‘काल्पनिक समुदाय’ होता है, जो अपने सदस्यों के सामूहिक विश्वास, आकांक्षाओं और कल्पनाओं के सहारे एक सूत्र में बंधा होता है। यह कुछ खास मान्यताओं पर आधारित होता है जिन्हें लोग समग्र समुदाय के लिए गढ़ते हैं जिससे वे अपनी पहचान कायम रखते हैं।
राष्ट्रवाद का अर्थ: इस प्रकार सामान्य बोलचाल में राष्ट्रवाद का अर्थ है। राष्ट्र प्रेम, राष्ट्रभक्ति, राष्ट्र के लिए बलिदान की भावना, राष्ट्र के प्रति स्वाभिमान की भावना तथा राष्ट्रीय झंडे, राष्ट्रीय प्रतीकों तथा राष्ट्रीय पर्वों, जैसे- स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस आदि के प्रति आदर प्रदर्शित करना है।
राष्ट्रवाद को दो प्रमुख प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है-
- सकारात्मक राष्ट्रवाद: जब लोग अपने राष्ट्र से प्रेम करते हैं तथा इसके विकास तथा बेहतरी के लिए प्रयास करते हैं तो इसे सकारात्मक राष्ट्रवाद कहा जाता है।
- नकारात्मक राष्ट्रवाद: जब हम केवल अपने राष्ट्र से ही प्रेम करते हैं और दूसरे राष्ट्रों से घृणा करते हैं, उनका शोषण करते हुए अपने राष्ट्र का विकास करना चाहते हैं तो उसे नकारात्मक या उग्र राष्ट्रवाद कहते हैं। नकारात्मक राष्ट्रवाद के संघर्ष, युद्ध, लोगों की स्वतंत्रताओं में कटौती आदि बुरे परिणाम होते हैं।
राष्ट्रवाद के गुण
अथवा
राष्ट्रवाद के पक्ष में तर्क
राष्ट्रवाद के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं।
1. राष्ट्रवाद लोगों में विश्वास तथा नया जोश जगाता है: राष्ट्रवाद लोगों में परस्पर विश्वास पैदा करता है। यह राष्ट्र-राज्य की बेहतरी के लिए खड़ा होता है और नागरिकों को अपने राष्ट्र को शक्तिशाली और महान बनाने के लिए उसके प्रति भक्ति रखने तथा सभी प्रकार के त्याग करने की प्रेरणा देता है । वे देशभक्ति, राष्ट्रीय एकता तथा अनुशासन की नवीन भावना में अपने अधिकारों और स्वतंत्रताओं को भी भूल जाते हैं। इटली और जर्मनी के एकीकरण में यही घटित हुआ है।
2. देशभक्ति:
राष्ट्रवाद देश भक्ति के लिए लोगों को प्रेरित करता है और उन्हें अपने समाज, देश तथा राष्ट्र के लिए सभी प्रकार के त्याग करने के लिए तैयार करता है। यह राष्ट्रवाद ही है, जब एक राष्ट्र की टीम दूसरे राष्ट्र से मैच जीतती है तो उससे उन्हें गर्व होता है।
3. यह राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए लोगों को प्रेरित करता है:
राष्ट्रवाद विदेशी प्रभुत्व से लोगों को राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने को प्रेरित करता है। 18वीं सदी में भारत में राष्ट्रीयता की चेतना न होने से वह ब्रिटिश प्रभुत्व के अधीन हो गया। लेकिन भारतीयों में जब राष्ट्रवाद की चेतना का उदय हुआ तथा उसका विस्तार हुआ तो उन्होंने स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय आंदोलन प्रारंभ कर दिया और भारत की स्वतंत्रता तक वह चलता रहा। इसी प्रकार एशिया, अफ्रीका और दक्षिणी अमेरिका के अन्य देशों में भी राष्ट्रवाद ने विदेशी शासन से स्वतंत्रता प्रदान करने में केन्द्रीय भूमिका निबाही
4. यह राष्ट्र के चहुंमुखी विकास हेतु लोगों को कठिन परिश्रम के लिए प्रेरित करता है:
एक समाज जो राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित है लम्बे समय तक अविकसित तथा पिछड़ा हुआ नहीं रह सकता। लोग अपने राष्ट्र के चहुंमुखी विकास पर गौरवान्वित होते हैं और जब वे यह देखते हैं कि उनका राष्ट्र शिक्षा, स्वास्थ्य तथा आर्थिक विकास की दृष्टि से पिछड़ा हुआ है, तो उन्हें ग्लानि होती है। वे विश्व में अपने राष्ट्र को उन्नति के उच्च शिखर पर लाने के लिए कठिन परिश्रम करते हैं।
5. नए राज्यों का उदय:
बड़े राज्यों को दो या अधिक नये राष्ट्रों में विभाजित कर नये राष्ट्र-राज्यों के निर्माण के लिए राष्ट्रवाद उत्तरदायी रहा है। राष्ट्रवाद के कारण नये राज्यों के लोग अपनी नई राजनीतिक पहचान प्राप्त करते हैं। उदाहरण के लिए आस्ट्रियाई हंगेरियाई साम्राज्य को विभाजित कर दो नए राष्ट्र-राज्य आस्ट्रिया और हंगरी का निर्माण राष्ट्रवाद की भावना के तहत ही हुआ।
6. राष्ट्रीय एकता, शक्ति और सुदृढ़ीकरण: राष्ट्रवाद लोगों को अपने छोटे-छोटे मतभेदों तथा विवादों को भूलकर राष्ट्र की एकता के लिए एक हो जाने के लिए प्रेरित करता है। राष्ट्रीय एकता राष्ट्र को शक्तिशाली बनाती है और राष्ट्र सुदृढ़ तथा ताकतवर बनता है। इस प्रकार राष्ट्रवाद लोगों को एकता में बांध देता है और विशेष रूप से संकटकाल में तथा विदेशी आक्रमण के विरुद्ध लोगों को एक चट्टान की तरह एकजुट होकर प्रतिरोध करने को प्रेरित करता है।
7. राजनीतिक स्थायित्व: राष्ट्रवाद राजनैतिक स्थायित्व भी लाता है। राष्ट्रवाद के प्रभाव के अन्तर्गत शक्तिशाली राष्ट्रीय एकता बनी रहती है जो कि सरकार को शक्तिशाली बनाती है। लोग राजनीतिक व्यवस्था को ध्वस्त करने का प्रयास नहीं करते क्योंकि सरकारों को बार-बार अपदस्थ करना तथा शासन व्यवस्था का निरन्तर बदलाव राष्ट्र को बदनाम करेगा।
राष्ट्रवाद के अवगुण
अथवा
राष्ट्रवाद के विपक्ष में तर्क
राष्ट्रवाद के प्रमुख अवगुण निम्नलिखित हैं:
1. राष्ट्रवाद जल्दी ही उग्र राष्ट्रवाद में बदल जाता है:
राष्ट्रवाद दूसरे राष्ट्रों के प्रति गहरे घृणा के भाव को प्रेरित करता है और इस कारण यह जल्दी ही उग्र राष्ट्रवाद में बदल जाता है और लोग अन्य राष्ट्रों व वहाँ के लोगों को अपना दुश्मन मानना शुरू कर देते हैं। वे अपने राष्ट्र को विश्व का सबसे अधिक शक्तिशाली तथा विकसित राष्ट्र बनाने के लिए प्रयास प्रारंभ कर देते हैं। इस प्रकार राष्ट्रों के बीच जल्दी ही एक प्रजाति का भाव उदित हो जाता है जो कि बहुत हानिकारक है क्योंकि प्रत्येक राष्ट्र इसे प्राप्त करने के लिए उचित और अनुचित सभी उपलब्ध साधनों को अपनाने लग जाता है। प्रत्येक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को निरुत्साहित करता है तथा उसे निम्नस्तरीय बताने का प्रयास करता है।
2. राष्ट्रवाद बड़े राष्ट्रों को छोटे राष्ट्रों में तोड़ने के लिए प्रेरित करता है:
राष्ट्रवाद राष्ट्रीय आत्मनिर्णय के विचार के आधार पर कुछ बड़े राज्यों के लोगों को छोटे-छोटे राज्यों में परिवर्तित कराने की मांग उठाने की प्रेरणा देता है। -भाषा- भाषियों तथा भिन्न-भिन्न अधिकतर समाज सांस्कृतिक रूप से विविधता से भरे हैं। प्रत्येक समाज में विभिन्न धर्मों, क्षेत्रीय संस्कृतियों व उप-संस्कृतियों के लोग रहते हैं। वे क्षेत्र जो एक राष्ट्र के अन्तर्गत अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं, उनमें जल्दी ही एक पृथक् राष्ट्र के विकास के भाव विकसित हो जाते हैं और एक पृथक् स्वतंत्र राज्य की स्थापना हेतु आन्दोलन प्रारंभ कर देते हैं। आस्ट्रियाई – हंगेरियाई साम्राज्य इसी आधार पर दो राज्य – राष्ट्रों- आस्ट्रिया और हंगरी में विभाजित हो गया।
3. राष्ट्रीय एकता पर दुष्प्रभाव:
यदि किसी राज्य में जनसंख्या दो या अधिक राष्ट्रों की निवास करती है, उसमें राष्ट्रीय एकता को बनाए रखना तथा सुदृढ़ बनाना बहुत कठिन होता है। लोगों के मध्य राष्ट्रवाद की चेतना उन्हें एक पृथक् राज्य के लिए विभाजित तथा संघर्षरत रखती है। कभी-कभी धर्म या भाषा के छोटे आधारों पर ही वे पृथक् राष्ट्र होने का दावा करते हैं और एक पृथक् राज्य की मांग करते हैं। एक राज्य में दो या अधिक राष्ट्रों के लोगों के बीच एकत्व की भावना नहीं पाई जाती।
4. व्यक्ति के अधिकारों और स्वतंत्रताओं पर प्रतिबंध:
राष्ट्रवाद प्रायः लोगों की स्वतंत्रताओं और उनके अधिकारों को भी प्रतिबंधित कर देता है। प्रजातांत्रिक सरकारों में शासक दल और शासक राष्ट्रवाद की भावनाओं को उभारकर लोगों की स्वतंत्रताओं और अधिकारों में कटौती करने का प्रयास करता है। लोग राष्ट्र के आदर और उसकी महानता के लिए अपनी स्वतंत्रताओं और अधिकारों की परवाह नहीं करते हैं और तानाशाह या महत्त्वाकांक्षी शासक इन भावनाओं का दुरुपयोग करते हैं।
5. राष्ट्रवाद साम्राज्यवाद को बढ़ावा देता है: राष्ट्रवाद जल्दी ही उग्र राष्ट्रवाद में परिवर्तित होकर साम्राज्यवाद को बढ़ावा देता है।
6. राष्ट्रवाद पृथकतावादी आंदोलनों को प्रेरित करता है:
राष्ट्रवाद भारत तथा विश्व के अन्य राष्ट्रों में पृथकतावादी आंदोलनों को भी प्रेरित करता है। आजकल विश्व में राष्ट्रीय आत्मनिर्णय के अधिकार की मांग के तहत कनाडा में क्यूबेकवासियों, स्पेन में बास्कवासियों, तुर्की और इराक में कुर्दों तथा श्रीलंका में तमिलों द्वारा पृथक् राष्ट्र हेतु पृथकतावादी आन्दोलन चला रखा है। वे मुख्य राष्ट्र से पृथक् होकर अपना एक स्वतन्त्र राज्य की स्थापना करना चाहते हैं। ऐसे पृथकतावादी आंदोलन राज्यों को छोटे-छोटे राज्यों में परिवर्तित कर देंगे।
प्रश्न 4.
बहुलवादी समाज़ में राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रवाद की समस्याओं की विवेचना कीजिये तथा उनके समाधान के उपाय बताइये।
उत्तर:
बहुलवाद या बहुलवादी समाज; प्रायः सभी राज्य या समाज इन दिनों बहुलवादी समाज हैं। एक बहुलवादी समाज वह समाज है जिसमें विभिन्न धर्मों, पंथों, भाषा-भाषी, विभिन्न संस्कृतियों या उपसंस्कृतियों, विभिन्न वंशों व जातियों के लोग रहते हों तथा उनकी रीति-रिवाज और परम्पराएँ भी भिन्न-भिन्न हों। यदि किसी राज्य के लोगों की एक जाति है, वे एक ही धर्म का पालन करते हैं; एक भाषा बोलते हैं, उनकी एक ही सांस्कृतिक पहचान है तथा उनकी परम्पराएँ तथा रीतिरिवाज समान हैं, तो वह समाज या राज्य बहुलवादी नहीं है। इस प्रकार बहुलवादी समाज के आधारभूत तत्त्व हैं। जाति, भाषा, धर्म, संस्कृति आदि के आधार पर लोगों में विविधता।
भारतीय समाज एक बहुलवादी समाज है। यहाँ लोग अनेक धर्मों, जैसे हिन्दू, इस्लाम, ईसाई, सिक्ख, जैन, बुद्ध आदि – में विश्वास करते हैं। लोग विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग भाषाएँ बोलते हैं। 21 भाषाएँ यहाँ संवैधानिक मान्यता प्राप्त हैं। यहाँ भिन्न-भिन्न परम्पराएँ तथा रीति-रिवाज हैं तथा लोगों की भिन्न-भिन्न क्षेत्रीय संस्कृतियाँ भी हैं। इसी प्रकार स्विट्जरलैंड एक बहुलवादी समाज है। स्विट्जरलैंड में तीन भाषा-भाषी लोग फ्रेंच, जर्मन तथ इटालियन रहते हैं।
बहुलवादी समाज में राष्ट्रीय एकता तथा राष्ट्रवाद की भावना को बनाए रखने एवं विकसित करने में आने वाली समस्याएँ:
बहुलवादी समाज में राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रवाद की भावना को बनाए रखना तथा उसको सुदृढ़ करते रहना आसान काम नहीं है। बहुलवादी समाज में लोग धर्म, भाषा या क्षेत्र के छोटे-छोटे मुद्दों या मामलों पर विभाजित रहते हैं।
उदाहरण के लिए भारत इसी समस्या के कारण स्वतंत्रता के 63 वर्ष बाद भी एक राष्ट्र-भाषा को नहीं अपना पाया है। अभी भी अंग्रेजी राष्ट्रीय भाषा का महत्त्वपूर्ण स्थान बनाए हुए है क्योंकि यहाँ भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं। यद्यपि देवनागरी लिपि में हिन्दी भाषा को संवैधानिक रूप से सरकारी कामकाज की भाषा स्वीकार किया गया हैं, लेकिन अभी तक इसे कार्यालयी स्थान नहीं मिला है। यहाँ साम्प्रदायिक, जातिगत, क्षेत्रीय आदि विविधताओं के कारण इनके आधारों पर संघर्ष होते रहते हैं, जिससे राष्ट्रीय एकता, सुदृढ़ता बाधित होती है और राष्ट्रवाद की भावना कमजोर होती है।
बहुलवादी समाज में राष्ट्रीय एकता तथा राष्ट्रवाद के सुदृढ़ीकरण के उपाय: एक बहुलवादी समाज में राष्ट्रवाद की भावना तथा राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने के लिए निम्नलिखित उपाय करने आवश्यक हैं।
- बहुलवादी राष्ट्र में राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने के लिए अल्पसंख्यक समूहों और उनके सदस्यों की भाषा, संस्कृति एवं धर्म के लिए संवैधानिक संरक्षा के अधिकार प्रदान किये जाने चाहिए।
- इन समूहों को विधायी संस्थाओं और अन्य राजकीय संस्थाओं में प्रतिनिधित्व का अधिकार दिया जाना चाहिए। इन अधिकारों को इस आधार पर न्यायोचित ठहराया जा सकता है कि ये अधिकार इन समूहों के सदस्यों के लिए कानून द्वारा समान व्यवहार और सुरक्षा के साथ ही समूह की सांस्कृतिक पहचान के लिए भी सुरक्षा का प्रावधान करते हैं।
- इनं समूहों को राष्ट्रीय समुदाय के एक अंग के रूप में भी मान्यता दी जानी चाहिए। इसका अभिप्राय यह है कि राष्ट्रीय पहचान को समावेशी रीति से परिभाषित करना होगा जो राष्ट्र-राज्य के सभी सदस्यों की महत्ता और अद्वितीय योगदान को मान्यता दे सके।
- यदि कुछ अल्पसंख्यकों को सरकारी नौकरियों, प्रतिनिधिपरक निकायों का शैक्षिक सुविधाओं में उचित भाग नहीं मिल पाता है तो उन्हें इन क्षेत्रों में उचित भाग दिलाने हेतु सरकार को कुछ विशिष्ट उपाय, जैसे कुछ विशिष्ट सुविधाएँ प्रदान करना, आरक्षण की नीति लागू करना आदि किये जाने चाहिए। भारत में इसी दृष्टि से अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गों तथा स्त्रियों के लिए आरक्षण के प्रावधान किये गये हैं।
प्रश्न 5.
राष्ट्रवाद पर रवीन्द्रनाथ ठाकुर की समालोचना को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
राष्ट्रवाद पर रवीन्द्रनाथ ठाकुर की समालोचना: रवीन्द्रनाथ ठाकुर भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरोधी थे और भारत की स्वाधीनता के अधिकार का दावा करते थे। वे महसूस करते थे कि उपनिवेशों के ब्रितानी प्रशासन में ‘मानवीय संबंधों की गरिमा बरकरार रखने’ की गुंजाइश नहीं है। यद्यपि ब्रितानी सभ्यता में इस विचार को स्थान दिया गया है और औपनिवेशिक शासन इस विचार का पालन नहीं कर पा रहा है। इससे स्पष्ट होता है कि रवीन्द्रनाथ टैगोर ब्रिटिश दासता से भारत की स्वतंत्रता के प्रमुख सेनानी थे; लेकिन वे संकीर्ण राष्ट्रवाद के विरोधी थे। संकीर्ण राष्ट्रवाद के स्थान पर वे ‘मानवता’ पर बल देते थे। अर्थात् वे मानवतावादी राष्ट्रवादी थे।
वे मानव-मानव में कोई भेद नहीं करते थे। इसलिए स्वतंत्र भारत में प्रत्येक मानव को समान महत्त्व मिलना चाहिए। वे राष्ट्रवाद की क्षेत्रीय संकीर्णता, भाषायी संकीर्णता, धार्मिक संकीर्णता से ऊपर उठकर ‘बहुलवादी समाज और मानवता’ को अपनाने पर बल देते थे। उनकी अंतिम आध्यात्मिक मंजिल राष्ट्रवाद न होकर मानवता थी। उनका कहना था कि ” जब तक मैं जीवित हूँ देशभक्ति को मानवता पर कदापि विजयी नहीं होने दूँगा।” इसका आशय यह है कि राष्ट्रवाद जब तक मानवता को साथ लेकर चलता है, तब तक ही उसका स्वागत करना चाहिए।
यदि राष्ट्रवाद की भावना के तहत मानवता का हनन होता है अर्थात् देशभक्ति की भावना के तहत व्यक्तियों का बलिदान देकर राष्ट्रवाद को बढ़ाया जाता है, तो यह राष्ट्रवाद मानवता विरोधी है। व्यक्ति के अधिकारों, स्वतंत्रताओं को राष्ट्रवाद के लिए बलिदान देने वाले राष्ट्रवाद के वे विरोधी थे। वे देश के स्वाधीनता आन्दोलन में मौजूद संकीर्ण राष्ट्रवाद के कटु आलोचक थे। उन्हें भय था कि तथाकथित भारतीय परम्परा के पक्ष में पश्चिमी सभ्यता को खारिज करने का विचार यहीं तक नहीं रुकेगा।
आगे चलकर यह अपने देश में मौजूद ईसाई, यहूदी, पारसी और इस्लाम समेत तमाम विदेशी प्रभावों के खिलाफ आसानी से आक्रामक भी हो सकता है। उनकी यह आशंका सत्य सिद्ध हुई और इसी के चलते भारत, भारत और पाकिस्तान दो भागों में विभाजित हो गया। अतः स्पष्ट है कि रवीन्द्रनाथ टैगोर बहुलवादी राष्ट्रवाद, मानवता को साथ लेकर चलने वाले राष्ट्रवाद के समर्थक थे, न कि संकीर्ण राष्ट्रवाद के।