JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 समानता

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 समानता Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 समानता

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में से कौनसा समानता के सिद्धान्त का उल्लंघन करता है।
(अ) प्रत्येक वयस्क नागरिक को मत देने का अधिकार है।
(ब) केवल श्वेत लोगों को ही एक डिब्बे में यात्रा करने की अनुमति है।
(स) स्त्रियों को नौकरियों में मातृत्व अवकाश प्रदान किया गया है।
(द) अनुसूचित जाति के लोगों को नौकरियों में आरक्षण दिया गया है।
उत्तर:
(ब) केवल श्वेत लोगों को ही एक डिब्बे में यात्रा करने की अनुमति है।

2. निम्नलिखित में से कौनसा तर्क समानता की सकारात्मक विभेदीकरण, विशेषकर आरक्षण की नीति का समर्थन करता है।
(अ) यह मनमाने तरीके से समाज के अन्य वर्गों को समान व्यवहार के अधिकार से वंचित करती है।
(ब) यह भी एक तरह का भेदभाव है।
(स) यह वंचित समूहों के अवसर की समानता के अधिकार को व्यावहारिक बनाती है।
(द) यह जातिगत पूर्वाग्रहों को और मजबूत कर समाज को विभाजित करती है ।
उत्तर:
(स) यह वंचित समूहों के अवसर की समानता के अधिकार को व्यावहारिक बनाती है।

3. निम्नलिखित में से कौनसी विभेदक बरताव की मांग समानता के सिद्धान्त को यथार्थपरक नहीं बनाती है।
(अ) विकलांगों को सार्वजनिक स्थानों पर विशेष ढलान वाले रास्तों की मांग
(ब) रात में कॉल सेंटर में काम करने वाली महिला को कॉल सेंटर आते-जाते समय विशेष सुरक्षा की मांग
(स) श्वेत लोगों के लिए पृथक् से विश्राम गृह बनाने की मांग
(द) कामकाजी महिलाओं के लिए कार्यस्थल पर बालबाड़ी की मांग
उत्तर:
(स) श्वेत लोगों के लिए पृथक् से विश्राम गृह बनाने की मांग

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4. निम्नलिखित में कौनसा कथन समानता को दर्शाता है।
(अ) वर्तमान में विश्व में लगभग सभी लोकतांत्रिक देशों में ‘सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार ‘ लागू किया जा चुका है।
(ब) दुनिया के 50 सबसे अमीर आदमियों की सामूहिक आमदनी दुनिया के 50 करोड़ सबसे गरीब लोगों की सामूहिक आमदनी के बराबर है।
(स) दुनिया की 40 प्रतिशत गरीब जनसंख्या का दुनिया की कुल आमदनी में हिस्सा केवल 5 प्रतिशत है, जबकि 5 प्रतिशत अमीर लोग दुनिया की 40 प्रतिशत आमदनी पर नियंत्रण करते हैं।
(द) अपने देश में हम आलीशान आवासों के साथ-साथ झोंपड़पट्टियां भी देखते हैं।
उत्तर:
(अ) वर्तमान में विश्व में लगभग सभी लोकतांत्रिक देशों में ‘सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार ‘ लागू किया जा चुका है।

5. निम्नलिखित में किस प्रकार की समानता के अभाव में स्वतंत्रता प्रभावहीन हो जाती है?
(अ) नैतिक समानता
(ब) प्राकृतिक समानता
(स) धार्मिक समानता
(दं) आर्थिक समानता
उत्तर:
(दं) आर्थिक समानता

6. जाति एवं रंगभेद विरोधी आन्दोलन मांग करता है।
(अ) राजनीतिक समानता की
(ब) सामाजिक समानता की
(स) राष्ट्रीय समानता की
(द) धार्मिक समानता की
उत्तर:
(ब) सामाजिक समानता की

7. ” समानता स्वतंत्रता की शत्रु नहीं, उसकी एक आवश्यक शर्त है।” यह कथन है।
(अ) प्लेटो का
(ब) अरस्तू का
(स) आर. एस. टोनी का
(द) लार्ड एक्टन का
उत्तर:
(स) आर. एस. टोनी का

8. “र्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता एक भ्रम है।” यह कथन है।
(अ) प्रो. जोड का
(ब) गांधी का
(स) प्लेटो का
(द) अरस्तू का
उत्तर:
(अ) प्रो. जोड का

9. छुआछूत विरोधी निम्नलिखित में से किस समानता के पक्षधर हैं।
(अ) नैतिक समानता
(ब) सामाजिक समानता
(स) राजनीतिक समानता
(द) आर्थिक समानता
उत्तर:
(ब) सामाजिक समानता

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10. निम्नलिखित में कौनसा कथन ठीक है?
(अ) पूर्ण समानता केवल प्रजातांत्रिक व्यवस्था में ही संभव है।
(ब) पूर्ण समानता केवल तानाशाही शासन में संभव है।
(स) पूर्ण समानता असंभव है।
(द) पूर्ण समानता केवल संसदीय शासन में ही संभव है।
उत्तर:
(स) पूर्ण समानता असंभव है।

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. समानता का दावा है कि सभी ………………. समान महत्त्व और सम्मान पाने योग्य हैं।
उत्तर:
मनुष्य

2. फ्रांसीसी क्रांतिकारियों का नारा था – स्वतंत्रता, ……………….. और भाईचारा।
उत्तर:
समानता

3. लोगों में उनकी विभिन्न क्षमताओं, प्रतिभा और उनके अलग-अलग चयन के कारण …………………. पैदा होती हैं।
उत्तर:
प्राकृतिक

4. समाज में अवसरों की असमानता होने से ………………… असमानताएँ पैदा होती हैं।
उत्तर:
समाजजनित

5. ……………… असमानताएँ विशेषाधिकार जैसी असमानताओं को बढ़ावा देती हैं।
उत्तर:
आर्थिक

निम्नलिखित में से सत्य/ असत्य कथन छाँटिये

1. उदारवाद स्त्री – पुरुष के समान अधिकारों का पक्ष लेने वाला राजनीतिक सिद्धान्त है।
उत्तर:
असत्य

2. नारीवाद के अनुसार स्त्री-पुरुष असमानता ‘पितृसत्ता’ का परिणाम है।
उत्तर:
सत्य

3. उदारवादी मानते हैं कि राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक असमानताएँ एक-दूसरे से अनिवार्यत: जुड़ी होती हैं।
उत्तर:
असत्य

4. मार्क्स का मानना था कि खाईनुमा असमानताओं का बुनियादी कारण महत्त्वपूर्ण आर्थिक संसाधनों का निजी स्वामित्व है।
उत्तर:
सत्य

5. समानता की प्राप्ति के लिए जरूरी है कि सभी निषेध या विशेषाधिकारों का अन्त किया जाये।
उत्तर:
सत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये

1. फ्रांसीसी क्रांति
2. साझी मानवता
3. प्राकृतिक असमानताएँ
4. समाजजनित असमानताएँ
5. नारीवादी
उत्तर:
(अ) सभी मनुष्य समान सम्मान एवं परवाह के हकदार
(ब) अवसरों की असमानता का परिणा
(स) स्त्री-पुरुष के समान अधिकारों के पक्षधर
(द) जन्मजात विशिष्टताओं और योग्यताओं का परिणाम
(य) स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे का नारा

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समानता के कोई दो आयाम लिखो।
उत्तर:

  1. राजनीतिक समानता
  2. सामाजिक समानता।

प्रश्न 2.
समानता का नैतिक आदर्श क्या है?
उत्तर:
समानता का नैतिक आदर्श है कि समान मानवता के कारण सभी मनुष्य समान महत्त्व और सम्मान पाने के योग्य हैं।

प्रश्न 3.
सामाजिक समानता का अर्थ स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
सामाजिक समानता का तात्पर्य है। समाज से विशेषाधिकारों का अन्त होना तथा समाज में सभी व्यक्तियों का व्यक्ति होने के नाते समान महत्व होना।

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प्रश्न 4.
प्राकृतिक समानता से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
प्राकृतिक समानता से आशय है कि प्राकृतिक रूप से सभी मनुष्य बराबर हैं।

प्रश्न 5.
अवसरों की समानता से क्या आशय है?
उत्तर:
प्रत्येक व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए समान अवसरों का मिलना ही अवसरों की समानता

प्रश्न 6.
भारत के प्रमुख समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया ने कौनसी पाँच तरह की असमानताओं का उल्लेख किया?
उत्तर:
समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया ने

  1. स्त्री-पुरुष असमानता,
  2. रंग आधारित असमानता,
  3. जातिगत असमानता,
  4. आर्थिक असमानता तथा
  5. कुछ देशों का अन्य पर औपनिवेशिक शासन की असमानता का उल्लेख किया।

प्रश्न 7.
सामाजिक समानता की स्थापना के लिए नागरिकों का दृष्टिकोण कैसा होना चाहिए?
उत्तर:
सामाजिक समानता की स्थापना हेतु नागरिकों का दृष्टिकोण उदार एवं व्यापक होना चाहिए।

प्रश्न 8.
समाजवादी राज्यों में समानता के किस रूप पर विशेष बल दिया जाता है?
उत्तर:
आर्थिक समानता पर।

प्रश्न 9.
समाज में आर्थिक एवं सामाजिक विषमताएँ बढ़ने पर क्या परिणाम होगा?
उत्तर:
अमीर वर्ग गरीब वर्ग का तथा उच्च वर्ग निम्न वर्ग का शोषण करने लगेगा।

प्रश्न 10.
स्त्री-पुरुष के समान अधिकारों का पक्ष लेने वाला राजनीतिक सिद्धान्त कौनसा है?
उत्तर:
नारीवाद स्त्री-पुरुष के समान अधिकारों का पक्ष लेने वाला राजनीतिक सिद्धान्त है।

प्रश्न 11.
नारीवाद के अनुसार स्त्री-पुरुष असमानता किसका परिणाम है?
उत्तर:
नारीवाद के अनुसार स्त्री पुरुष असमानता पितृसत्ता का परिणाम है।

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प्रश्न 12.
समानता का हमारा आत्मबोध क्या कहता है?
उत्तर:
समानता का हमारा आत्मबोध यह कहता है कि साझी मानवता के कारण सभी मनुष्य बराबर सम्मान के हकदार हैं।

प्रश्न 13.
राज्य के समाज के सबसे वंचित सदस्यों की मदद करने के कोई दो तरीके लिखिये।
उत्तर:

  1. आरक्षण
  2. कम उम्र से ही विशेष सुविधायें प्रदान करना।

प्रश्न 14.
कुछ सामाजिक संस्थाएँ और राजसत्ता लोगों में किस प्रकार की असमानता कायम रखती हैं?
उत्तर:
बहुत सी सामाजिक संस्थाएँ और राजसत्ता लोगों में पद, धन, हैसियत या विशेषाधिकार की असमानता कायम रखती हैं।

प्रश्न 15.
18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में फ्रांसीसी क्रांति में क्रांतिकारियों का क्या नारा था?
उत्तर:
18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुई फ्रांसीसी क्रांति में ‘स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा’ फ्रांसीसी क्रांतिकारियों का नारा था।

प्रश्न 16.
स्पष्ट करें कि स्वतंत्रता तथा समानता परस्पर विरोधी नहीं हैं?
उत्तर:
स्वतंत्रता तथा समानता दोनों का उद्देश्य व्यक्ति के विकास, सुविधाएँ व उसके व्यक्तित्व के विकास से जुड़ा है, इसलिए यह विरोधी नहीं है।

प्रश्न 17.
20वीं सदी में समानता की मांग कहाँ और किसके द्वारा उठायी गयी थी?
उत्तर:
20वीं सदी में समानता की मांग एशिया और अफ्रीका के उपनिवेश विरोधी स्वतंत्रता संघर्षों के दौरान महिलाओं और दलित समूहों द्वारा उठायी गयी थी।

प्रश्न 18.
आज भी विश्व में किस प्रकार की असमानताएँ व्याप्त हैं?
उत्तर:
आज भी विश्व में धन-सम्पदा, अवसर, कार्य-स्थिति और शक्ति की भारी असमानताएँ व्याप्त हैं।

प्रश्न 19.
हम असमानता के किन आधारों को अस्वीकार करते हैं?
उत्तर:
हम असमानता के जन्म सम्बन्धी आधारों; जैसे धर्म, नस्ल, जाति या लिंग आदि, को अस्वीकार करते हैं।

प्रश्न 20.
प्राकृतिक असमानताएँ लोगों में किस कारण पैदा होती हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक असमानताएँ लोगों में उनकी विभिन्न क्षमताओं, प्रतिभा और उनके अलग-अलग चयन के कारण पैदा होती हैं।

प्रश्न 21.
समार्जजनित असमानताएँ किस कारण पैदा होती हैं?
उत्तर:
समाजजनित असमानताएँ समाज में अवसरों की असमानता होने या किसी समूह का दूसरे के द्वारा शोषण किये जाने से पैदा होती हैं।

प्रश्न 22.
असमानता को समाप्त करने के लिए किन्हीं दो सकारात्मक कार्यवाहियों का उल्लेख करें।
उत्तर:
वंचित समुदायों के लिए छात्रवृत्ति और होस्टल जैसी सुविधाओं पर वरीयता के आधार पर खर्च करना तथा नौकरियों व शैक्षिक संस्थाओं में उनके प्रवेश की विशेष व्यवस्था करना।

प्रश्न 23.
सकारात्मक कार्यवाही के रूप में विशेष सहायता को किस प्रकार का उपाय माना गया है? उत्तर- इसे एक निश्चित अवधि तक चलने वाला तदर्थ उपाय माना गया है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समान लोगों के साथ समान व्यवहार का अर्थ बताइये
अथवा
समानता के आदर्श से क्या आशय है?
उत्तर:
समानता के आदर्श का आशय है। साझी मानवता के कारण सभी मनुष्य समान व्यवहार के हकदार हैं; लेकिन इसका अभिप्राय व्यवहार के सभी तरह के अन्तरों का उन्मूलन नहीं है, बल्कि यह है कि हमें जो अवसर प्राप्त होते हैं, वे जन्म या सामाजिक परिस्थितियों से निर्धारित नहीं होने चाहिए।

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प्रश्न 2.
समानता का राजनैतिक आदर्श क्या है?
उत्तर:
एक राजनैतिक आदर्श के रूप में समानता की अवधारणा उन विशिष्टताओं पर बल देती है जिसमें सभी मनुष्य रंग, लिंग, वंश या राष्ट्रीयता के अन्तर के बाद भी साझेदार होते हैं। जैसे’ मानवता के प्रति अपराध’ सभी के लिए समान हैं।

प्रश्न 3.
समानता का नैतिक आदर्श क्या है?
उत्तर:
समानता का नैतिक आदर्श यह है कि हर धर्म ईश्वर की श्रेष्ठतम रचना के रूप में प्रत्येक मनुष्य के समान महत्त्व की घोषणा करता है। समान मानवता के कारण सभी मनुष्य समान महत्त्व और सम्मान पाने के योग्य हैं।

प्रश्न 4.
प्राकृतिक असमानता और सामाजिक असमानता में क्या अन्तर है?
उत्तर:
प्राकृतिक असमानताएँ लोगों की जन्मगत विशिष्टताओं और योग्यताओं का परिणाम मानी जाती हैं, जबकि सामाजिक असमानताएँ वे हैं जिन्हें समाज ने पैदा किया है, जो समाजजनित हैं।

प्रश्न 5.
राजनैतिक समानता से क्या आशय है?
उत्तर:
राजनैतिक समानता से आशय है। समाज के सभी नागरिकों को कुछ मूल अधिकार, जैसे—मतदान का अधिकार, कहीं भी आने-जाने, संगठन बनाने और अभिव्यक्ति तथा धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता आदि प्राप्त हों।

प्रश्न 6.
सामाजिक समानता क्या है?
उत्तर:
सामाजिक समानता: सामाजिक समानता से आशय यह है कि समाज के विभिन्न समूह और समुदायों के लोगों के पास समाज में उपलब्ध साधनों और अवसरों को पाने का बराबर और उचित मौका हो। समाज में सभी सदस्यों के जीवनयापन के लिए अन्य चीज़ों के अतिरिक्त पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा, अच्छी शिक्षा पाने का अवसर, उचित पोषक आहार व न्यूनतम वेतन जैसी कुछ न्यूनतम चीजों की गारण्टी दी गई हो।

प्रश्न 7.
समानता को परिभाषित कीजिये।
उत्तर:
समानता को परिभाषित करना आसान नहीं है। कुछ विचारकों के अनुसार समानता से आशय प्रत्येक व्यक्ति के साथ समान व्यवहार करने से है। लेकिन हर स्थिति में प्रत्येक व्यक्ति के साथ एक समान व्यवहार करना संभव नहीं है। प्रकृति ने भी सभी व्यक्तियों को सभी तरह से एक समान नहीं बनाया है। इस प्रकार समानता का अर्थ है- जन्म, लिंग, रंग, जाति तथा वंश पर आधारित भेदभाव के बिना सभी लोगों के व्यक्तित्व के विकास के लिए समान अवसरों की उपलब्धि।

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प्रश्न 8.
” साझी मानवता के कारण सभी मनुष्य बराबर सम्मान और परवाह के हकदार हैं।” इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
इस कथन का आशय यह है कि समान मानवता के कारण सभी मनुष्य समान महत्त्व और सम्मान पाने के योग्य हैं। लेकिन लोगों से बराबर सम्मान का व्यवहार करने का अर्थ यह आवश्यक नहीं है कि हमेशा एक जैसा व्यवहार किया जाये। कोई भी समाज अपने सभी सदस्यों के साथ सभी स्थितियों में पूर्णतया एक समान बरताव नहीं करता और न ही यह संभव है। समाज के सहज कार्य-व्यापार के लिए कार्य का विभाजन आवश्यक है। अलग-अलग काम, अलग- अलग लोगों को अलग-अलग महत्त्व व लाभ दिलाता है। व्यवहार का यह अन्तर न केवल स्वीकार्य है, बल्कि आवश्यक भी है। समानता के समान व्यवहार में यह बात भी निहित है।

प्रश्न 9.
आर्थिक समानता से क्या आशय है?
उत्तर:
आर्थिक समानता: आर्थिक समानता से आशय है कि समाज के लोगों में धन-दौलत व आय की समानता हो। लेकिन समाज में धन-दौलत या आय की पूरी समानता संभवत: कभी विद्यमान नहीं रही। आज अधिकतर लोकतंत्र लोगों को समान अवसर उपलब्ध कराने का प्रयास करते हैं, ताकि आवश्यक प्रयासों द्वारा कोई भी समाज में अपनी स्थिति को सुधार सके। लेकिन किसी समाज में कुछ खास वर्ग के लोग पीढ़ियों से बेशुमार धन-दौलत तथा इससे हासिल होने वाली सत्ता का उपयोग करते हैं, तो समाज अत्यधिक धनी और अत्यधिक निर्धन दो वर्गों में बंट जायेगा। ऐसी स्थिति में आर्थिक समानता से आशय है समान अवसर उपलब्ध कराने के साथ-साथ आवश्यक संसाधनों पर जनता का नियंत्रण कायम करके या अन्य उपाय करके आर्थिक असमानता की खाइयों को कम करके समान अवसर की उपलब्धता को व्यावहारिक भी बनाना।

प्रश्न 10.
समानता के महत्त्व का संक्षिप्त में वर्णन करो।
उत्तर:
समानता व्यक्ति एवं समाज दोनों के लिए अत्यधिक उपयोगी है। इसके बिना अशान्ति एवं अव्यवस्था की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। समानता के अभाव में स्वतंत्रता भी निरर्थक होती है। उदाहरण के लिए आर्थिक समानता होने पर ही राजनीतिक स्वतन्त्रता का सही अर्थों में उपयोग किया जा सकता है। समानता के बिना कोई भी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर सकता है। समानता का दावा है कि समान मानवता के कारण सभी मनुष्य समान महत्त्व और सम्मान पाने योग्य हैं । समानता की अवधारणा एक राजनीतिक आदर्श के रूप में उन विशिष्टताओं पर जोर देती है जिसमें सभी मनुष्य रंग, लिंग, वंश या राष्ट्रीयता के फर्क के बावजूद साझेदार होते हैं।

प्रश्न 11.
अवसरों की समानता से क्या आशय है? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
अवसरों की समानता: अवसरों की समानता से यह आशय है कि सभी मनुष्य अपनी दक्षता और प्रतिभा को विकसित करने के लिए तथा अपने लक्ष्यों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए समान अधिकार और समान अवसरों के हकदार हैं। इसका आशय यह है कि समाज में लोग अपनी पसंद और प्राथमिकताओं के मामलों में अलग हो सकते हैं, उनकी प्रतिभा और योग्यताओं में भी अन्तर हो सकता है और इस कारण कुछ लोग अपने चुने हुए क्षेत्रों में बाकी लोगों से ज्यादा सफल हो सकते हैं, लेकिन शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षित आवास जैसी बुनियादी चीजों की उपलब्धता में असमानता नहीं होनी चाहिए। इस असमानता के चलते अवसरों की समानता व्यावहारिक नहीं हो सकती।

प्रश्न 12.
समानता को लोकतंत्र की आधारशिला क्यों कहा गया है?
उत्तर:
समानता लोकतंत्र की आधारशिला है क्योंकि लोकतंत्र की स्थापना के लिए राजनीतिक समानता का होना अति आवश्यक है। राजनीतिक समानता के अन्तर्गत समाज के सभी सदस्यों को समान नागरिकता प्रदान करना है। समान नागरिकता अपने साथ कुछ मूल अधिकार, जैसे मतदान का अधिकार, कहीं भी आने-जाने, संगठन बनाने, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता लाती है। ये ऐसे अधिकार हैं, जो नागिरकों को अपना विकास करने और राज्य के कामकाज में हिस्सा लेने में सक्षम बनाने के लिए आवश्यक माने जाते हैं।

अतः स्पष्ट है कि समानता लोकतंत्र की आधारशिला है। दूसरे, समानता के अभाव में स्वतंत्रता का भी कोई मूल्य नहीं। यदि सभी को राजनीतिक स्वतंत्रता मिल जाये, लेकिन आर्थिक दृष्टि से अत्यधिक असमानता के कारण शोषणकारी स्थितियाँ बनी रहें तो राजनीतिक स्वतंत्रता अर्थात् लोकतंत्र निरर्थक हो जायेगा। अतः लोकतंत्र के स्थायित्व के लिए राजनैतिक समानता के साथ-साथ आर्थिक समानता भी आवश्यक है।

प्रश्न 13.
समानता के विभिन्न प्रकार कौन-कौनसे हैं ? स्पष्ट करो।
उत्तर:
विभिन्न विचारकों और विचारधाराओं ने समानता के तीन प्रकारों को रेखांकित किया है। ये निम्न हैं।

  1. राजनीतिक समानता: सभी सदस्यों को समान नागरिकता प्रदान करना, वयस्क मताधिकार, कहीं भी आने-जाने, संगठन बनाने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार नागरिकों को समान रूप से प्राप्त होते हैं। इस प्रकार राजनीतिक समानता न्यायपूर्ण और समतावादी समाज के गठन के लिए एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
  2. सामाजिक समानता: सामाजिक समानता का आशय अवसरों की समानता देने से है। इसका उद्देश्य विभिन्न समूह और समुदाय के लोगों के पास उपलब्ध साधनों और अवसरों को पाने का बराबर और उचित मौका हो।
  3. आर्थिक समानता: आर्थिक समानता से आशय है। समाज के सदस्यों और वर्गों के बीच धन, सम्पत्ति और आय की अत्यधिक भिन्नता न हो।

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प्रश्न 14.
समानता क्या है? समानता का नैतिक और राजनैतिक आदर्श क्या है? समझाइये।
उत्तर:
समानता का अर्थ: समानता से यह आशय हैं कि सभी मनुष्य अपनी दक्षता और प्रतिभा को विकसित करने के लिए तथा अपने लक्ष्यों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए समान अधिकार और अवसरों के हकदार हैं समानता का नैतिक और राजनैतिक आदर्श समानता एक शक्तिशाली नैतिक और राजनैतिक आदर्श के रूप में मानव समाज को प्रेरित और निर्देशित करती रही है। नैतिक आदर्श के रूप में समानता की बात सभी आस्थाओं और धर्मों में समाविष्ट है। हर धर्म ईश्वर की रचना के रूप में प्रत्येक मनुष्य के समान महत्त्व की घोषणा करता है। समानता की अवधारणा एक राजनैतिक आदर्श के रूप में उन विशिष्टताओं पर जोर देती है जिसमें तमाम मनुष्य रंग, लिंग, वंश या राष्ट्रीयता के फर्क के बाद भी साझेदार होते हैं। इस प्रकार नैतिक और राजनैतिक आदर्श के रूप में समानता का दावा है कि समान मानवता के कारण सभी मनुष्य समान महत्त्व और सम्मान पाने योग्य हैं।

प्रश्न 15.
क्या समानता का मतलब व्यक्ति से हर स्थिति में एक समान बरताव करना है?
उत्तर:
समानता का हमारा आत्मबोध कहता है कि साझी मानवता के कारण सभी मनुष्य बराबर सम्मान और समान व्यवहार के हकदार हैं। लेकिन लोगों से समान सम्मान और समान व्यवहार करने का मतलब आवश्यक नहीं कि हमेशा एक जैसा व्यवहार किया जाये। कोई भी समाज अपने सभी सदस्यों के साथ सभी स्थितियों में पूर्णतया एक समान बरताव नहीं करता। समाज के सहज कार्य-व्यापार के लिए कार्य का विभाजन जरूरी है। अलग-अलग काम और अलग-अलग लोगों को महत्त्व और लाभ भी अलग-अलग मिलता है।

कई बार इस व्यवहार में यह अन्तर न केवल स्वीकार्य होता है, बल्कि आवश्यक भी होता है। लेकिन कई बार लोगों से अलग तरह का व्यवहार इसलिए किया जाता है कि उनका जन्म किसी खास धर्म, नस्ल, जाति या लिंग में हुआ है। असमान व्यवहार के ये आधार समानता के सिद्धान्त में अस्वीकृत किये गयेहैं। लेकिन लोगों की आकांक्षाएँ और लक्ष्य अलग-अलग हो सकते हैं और हो सकता है कि सभी को समान सफलता न मिले। समानता के आदर्श से जुड़े होने का यह अर्थ नहीं है कि सभी तरह के अन्तरों का उन्मूलन हो जाए। यहाँ हमारा अभिप्राय केवल इतना है कि हमसे जो व्यवहार किया जाता है और हमें जो भी अवसर प्राप्त होते हैं, वे जन्म या सामाजिक परिस्थितियों से निर्धारित नहीं होने चाहिए।

प्रश्न 16.
विभेदक बरताव द्वारा समानता से क्या आशय है?
उत्तर:
विभेदक बरताव द्वारा समानता:
समानता के सिद्धान्त को यथार्थ में बदलने के लिए औपचारिक समानता या कानून के समक्ष समानता आवश्यक तो है, लेकिन पर्याप्त नहीं। कभी-कभी यह सुनिश्चित करने के लिए कि लोग समान अधिकारों का उपभोग कर सकें, उनसे अलग-अलग बरताव करना आवश्यक होता है। इस उद्देश्य से लोगों के बीच कुछ अन्तरों को ध्यान में रखना होता है । जैसे— विकलांगों की सार्वजनिक स्थानों पर विशेष दलान वाले रास्तों की मांग न्यायोचित होगी, क्योंकि इससे ही उन्हें सार्वजनिक भवनों में प्रवेश करने का समान अवसर मिल सकेगा। ऐसे अलग-अलग बरतावों को समानता को बढ़ावा देने वाले उपायों के रूप में देखा जाना चाहिए। इसी को विभेदक बरताव द्वारा समानता की स्थापना कहते हैं।

प्रश्न 17.
अवसरों की समानता बढ़ाने के लिए ‘सकारात्मक कार्यवाही’ के विचार को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
सकारात्मक कार्यवाही: कुछ देशों ने अवसरों की समानता बढ़ाने के लिए ‘सकारात्मक कार्यवाही’ की नीतियाँ अपनाई हैं। सकारात्मक कार्यवाही इस विचार पर आधारित है कि कानून द्वारा औपचारिक समानता स्थापित कर देना पर्याप्त नहीं है। असमानताओं को मिटाने के लिए जरूरी होगा कि असमानता की गहरी खाइयों को भरने वाले अधिक सकारात्मक कदम उठाए जाएँ। इसीलिए सकारात्मक कार्यवाही की अधिकतर नीतियाँ अतीत की असमानताओं के संचयी दुष्प्रभावों को दुरुस्त करने के लिए बनाई जाती हैं। सकारात्मक कार्यवाही के रूप- सकारात्मक कार्यवाही के कई रूप हो सकते हैं। यथा

  1. इसमें वंचित समुदायों के लिए छात्रवृत्ति और हॉस्टल जैसी सुविधाओं पर वरीयता के आधार पर खर्च करने की नीति हो सकती है।
  2. इसमें नौकरियों और शैक्षिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए विशेष व्यवस्था करने की नीतियाँ हो सकती हैं। सकारात्मक कार्यवाही के रूप में विशेष सहायता को एक निश्चित समय अवधि तक चलने वाला तदर्थ उपाय माना गया है। इसके पीछे मान्यता यह है कि विशेष बरताव इन समुदायों को वर्तमान वंचनाओं से उबरने में सक्षम बनाएगा और फिर ये अन्य समुदायों से समानता के आधार पर प्रतिस्पर्द्धा कर सकेंगे।

प्रश्न 18.
कुछ लोगों का तर्क है कि असमानता प्राकृतिक है। इस सम्बन्ध में आप अपने विचार लिखिये।
उत्तर:
कुछ लोगों का तर्क है कि असमानता प्राकृतिक है। लेकिन मैं इस मत से सहमत नहीं हूँ। असमानता प्राकृतिक और सामाजिक दोनों हैं। प्राकृतिक असमानताएँ लोगों में उनकी विभिन्न क्षमताओं, योग्यताओं, विशिष्टताओं तथा उनके अलग-अलग चयन के कारण पैदा होती हैं। प्राकृतिक असमानताएँ न्यायोचित होती हैं तथा इन्हें बदला नहीं जा सकता। दूसरी तरफ सामाजिक असमानताएँ सामाजिक विशेषाधिकारों, अवसरों की असमानता तथा शोषण के कारण पैदा होती हैं। सामाजिक असमानताएँ समाजजनित होती हैं, ये न्यायोचित नहीं होतीं तथा इन्हें बदला जा सकता है।

प्रश्न 19.
समाज में समानता की स्थापना हेतु सुझाव दीजिये।
उत्तर:
किसी समाज में समानता की स्थापना हेतु निम्न प्रयास किये जाने चाहिए

  1. राजनीतिक समानता की स्थापना: किसी भी लोकतांत्रिक समाज में समानता की स्थापना हेतु सभी व्यक्तियों को समान नागरिकता प्रदान करनी चाहिए। इससे राजनीतिक और कानूनी समानता की स्थापना होगी । राजनीतिक समानता न्यायपूर्ण और समतावादी समाज के गठन के लिए एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
  2. अवसरों की समानता प्रदान करना: समाज में सभी सदस्यों के जीवन-यापन के लिए पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा, अच्छी शिक्षा पाने के अवसर, उचित पोषक आहार व न्यूनतम वेतन जैसी चीजों की गारण्टी होनी चाहिए। राज्य को इस दिशा में विशेष प्रयत्न करना चाहिए कि सभी लोगों को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए अवसरों की समानता हो।
  3. विभेदक बरताव द्वारा समानता: लोग समान अधिकारों का उपभोग कर सकें, इसके लिए विशिष्ट लोगों के लिए विभेदक बरताव की व्यवस्था भी सरकार को करनी चाहिए। जैसे विकलांगों के लिए ढलान वाले रास्तों का होना।
  4. सकारात्मक कार्यवाही या नीतियाँ: अवसरों की समानता को बढ़ाने के लिए सरकार को वंचितों के लिए विशिष्ट नीतियाँ भी बनानी चाहिए। जैसे—भारत में आरक्षण की व्यवस्था की गई है।

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प्रश्न 20.
‘राजनीतिक समानता आर्थिक समानता के बिना अधूरी है।’ स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
राजनीतिक समानता आर्थिक समानता के बिना अधूरी है क्योंकि।

  1. आर्थिक असमानता के कारण समाज धनी और निर्धन वर्गों में बँट जाता है। गरीब वर्ग के पास चुनाव लड़ने के साधनों की कमी होती है। अतः वे अपनी निर्धनता के कारण अपने इस राजनीतिक अधिकार का प्रयोग नहीं कर पाते हैं। फलतः धनी वर्ग ही राजनीतिक सत्ता का उपभोग करता रहता है।
  2. प्राय: यह भी देखने में आया है कि राजनीतिक दलों एवं मीडिया पर भी गरीब वर्ग की अपेक्षा धनी वर्ग का नियंत्रण रहता है। इस प्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भी वे समान उपभोग नहीं कर पाते हैं।

प्रश्न 21.
‘समानता और स्वतंत्रता में क्या सम्बन्ध है?’ स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
समानता और स्वतंत्रता में संबंध – समानता और स्वतंत्रता एक-दूसरे की पूरक हैं। ‘समानता के बिना स्वतन्त्रता अधूरी है।’ अतः दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। यथा

  1. स्वतंत्रता और समानता का विकास साथ- साथ हुआ है।
  2. दोनों का उद्देश्य व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास हेतु उचित वातावरण का निर्माण करना है।
  3. स्वतन्त्रता का उपभोग करने के लिए समानता परमावश्यक है।
  4. समानता और स्वतंत्रता दोनों लोकतंत्र के आधार – स्तंभ हैं।

प्रश्न 22.
उदारवादी समाज में संसाधनों और लाभांशों के वितरण का सबसे कारगर उपाय क्या मानते हैं?
उत्तर:
उदारवादी समाज में संसाधनों और लाभांशों के वितरण का सबसे कारगर तथा उचित तरीका प्रतिद्वन्द्विता के सिद्धान्त को मानते हैं। उनका मानना है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष परिस्थितियों में लोगों के बीच प्रतिस्पर्द्धा ही समाज में लाभांशों के वितरण का सबसे न्यायपूर्ण और कारगर उपाय होती है। जब तक प्रतिस्पर्द्धा स्वतन्त्र और खुली होगी, असमानताओं की खाइयाँ नहीं बनेंगी और लोगों को अपनी प्रतिभा और प्रयासों का लाभ मिलता रहेगा।

प्रश्न 23.
राममनोहर लोहिया की सप्त क्रांतियाँ क्या थीं?
उत्तर:
भारत में प्रमुख समाजवादी चिंतक राममनोहर लोहिया ने पाँच तरह की असमानताओं की पहचान की, जिनके खिलाफ एक साथ लड़ना होगा। ये पाँच असमानताएँ थीं

  1. स्त्री-पुरुष असमानता
  2. चमड़ी के रंग पर आधारित असमानता
  3. जातिगत असमानता
  4. कुछ देशों का अन्य पर औपनिवेशिक शासन
  5. आर्थिक असमानता। लोहिया का कहना था कि इस असमानताओं में से प्रत्येक की अलग-अलग जड़ें हैं और उन सबके खिलाफ अलग-अलग लेकिन एक साथ संघर्ष छेड़ने होंगे। उनके लिए उक्त पाँच असमानताओं के खिलाफ संघर्ष का अर्थ था पाँच क्रांतियाँ। उन्होंने इस सूची में दो और क्रांतियों को शामिल किया
  6. व्यक्तिगत जीवन पर अन्यायपूर्ण अतिक्रमण के खिलाफ नागरिक स्वतंत्रता के लिए क्रांति तथा
  7. अहिंसा के लिए, सत्याग्रह के पक्ष में शस्त्र त्याग के लिए क्रांति । ये ही सप्तक्रांतियां थीं, जो लोहिया के अनुसार समाजवाद का आदर्श हैं।

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प्रश्न 24.
भारत द्वारा अपनाई गयी सकारात्मक विभेदीकरण, विशेषकर आरक्षण की नीति के विरोध में आलोचक क्या तर्क देते हैं?
उत्तर:
आरक्षण की नीति के विरोध में तर्क- आरक्षण की नीति के आलोचक इसके विरोध में समानता के सिद्धान्त का सहारा लेते हुए निम्नलिखित तर्क देते हैं।

  1. वंचितों को उच्च शिक्षा या नौकरियों में आरक्षण या कोटा देने का कोई भी प्रावधान अनुचित है, क्योंकि यह मनमाने तरीके से समाज के अन्य वर्गों को समान व्यवहार के अधिकार से वंचित करता है।
  2. आरक्षण भी एक तरह का भेदभाव है जबकि समानता की माँग है कि सब लोगों से बिल्कुल एक तरह से व्यवहार हो।
  3. जब हम जाति के आधार पर अंतर करते हैं, तब हम जातिगत और नस्लगत पूर्वाग्रहों को और भी मजबूत कर रहे होते हैं।

प्रश्न 25.
नारीवाद क्या है?
उत्तर:
नारीवाद: नारीवाद स्त्री-पुरुष के समान अधिकारों का पक्ष लेने वाला राजनीतिक सिद्धान्त है। वे स्त्री या पुरुष नारीवादी कहलाते हैं, जो मानते हैं कि स्त्री-पुरुष के बीच की अनेक असमानताएँ न तो नैसर्गिक हैं और न ही आवश्यक। नारीवादियों का मानना है कि इन असमानताओं को बदला जा सकता है और स्त्री-पुरुष एक समतापूर्ण जीवन जी सकते हैं।

प्रश्न 26.
‘नारीवादियों के अनुसार स्त्री-पुरुष असमानता का मूल कारण पितृसत्ता है।’ इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पितृसत्ता से आशय एक ऐसी सामाजिक, आर्थिक-सांस्कृतिक व्यवस्था से है, जिसमें पुरुष को स्त्री से अधिक महत्त्व और शक्ति दी जाती है। इसके अनुसार पुरुष और स्त्री प्रकृति से भिन्न हैं और यही भिन्नता समाज में उनकी असमान स्थिति को न्यायोचित ठहराती है। लेकिन नारीवादियों का कहना है कि स्त्री-पुरुष के बीच जैविक विभेद तो प्राकृतिक है, लेकिन लैंगिकता ( स्त्री-पुरुष के बीच सामाजिक भूमिकाओं का विभेद) समाजजनित है।

पितृसत्ता ने श्रम का विभाजन कुछ ऐसा किया है जिसमें स्त्री घरेलू किस्म के कार्यों के लिए जिम्मेदार है तो पुरुष की जिम्मेदारी सार्वजनिक और बाहरी दुनिया के कार्यक्षेत्र से है। नारीवादियों का मत है कि निजी और सार्वजनिक के बीच यह विभेद और सामाजिक लैंगिकता की असमानता के सभी रूपों को दूर किया जा सकता है। स्पष्ट है कि स्त्री-पुरुष असमानता का मूल कारण पितृसत्ता है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समानता क्या है? समानता के आयामों को स्पष्ट कीजिये।
अथवा
समानता का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके प्रकारों की व्याख्या कीजिये।
उत्तर: समानता का अर्थ समानता की अवधारणा में यह निहित है कि सभी मनुष्य अपनी दक्षता और प्रतिभा को विकसित करने के लिए तथा अपने लक्ष्यों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए समान अधिकार और अवसरों के हकदार हैं। समान अवसरों की समानता को व्यावहारिक बनाने के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षित आवास जैसी बुनियादी चीजों की उपलब्धता में अत्यधिक असमानताएँ न हों तथा जन्म, धर्म, नस्ल, जाति एवं लिंग के आधार पर लोगों के साथ कोई भेद-भावपूर्ण व्यवहार नहीं किया जाता हो और न ही अवसरों की उपलब्धता में इनके आधार पर व्यक्तियों के बीच कोई भेदभाव किया जाता हो। समानता के आयाम विभिन्न विचारकों और विचारधाराओं ने समानता के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक तीन आयामों को रेखांकित किया है। यथा

1. राजनीतिक समानता:
लोकतांत्रिक समाजों में सभी सदस्यों को समान नागरिकता प्रदान करना राजनैतिक समानता में शामिल है। समान नागरिकता अपने साथ कुछ मूलभूत अधिकार, जैसे मतदान का अधिकार, कहीं भी आने- जाने, संगठन बनाने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता लाती है। ये ऐसे अधिकार हैं, जो नागरिकों को अपना विकास करने और राज्य के काम-काज में हिस्सा लेने में सक्षम बनाने के लिए आवश्यक माने जाते हैं। अतः ये अधिकार राजनीतिक समानता के अंग हैं। लेकिन ये समान औपचारिक अधिकार हैं, जिन्हें संविधान और कानूनों द्वारा सुनिश्चित किया गया है। राजनीतिक समानता न्यायपूर्ण और समतावादी समाज के गठन के लिए एक महत्त्वपूर्ण घटक है, लेकिन यह अपने आप में पर्याप्त नहीं है क्योंकि सभी नागरिकों को समान अधिकार देने वाले देशों में भी काफी असमानता विद्यमान हैं। ऐसी असमानताएँ प्रायः सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में नागरिकों को उपलब्ध संसाधनों और अवसरों की भिन्नता का परिणाम होती हैं। इसलिए प्राय: समान अवसर के लिए एक समान स्थितियों की माँग उठती है।

2. सामाजिक समानता:
राजनीतिक समानता या समान कानूनी अधिकार देना समानता के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में पहला कदम था। राजनीतिक समानता की जरूरत उन बाधाओं को दूर करने में है जिन्हें दूर किए बिना लोगों का सरकार में अपनी बात रखने और उपलब्ध साधनों तक पहुँचना संभव नहीं होगा। लेकिन समानता के उद्देश्य की दूसरी आवश्यकता यह है कि विभिन्न समूह और समुदायों के लोगों के पास इन साधनों और अवसरों को पाने का बराबर और उचित मौका हो। इसके लिए यह आवश्यक है कि समाज में सभी सदस्यों के जीवनयापन के लिए अन्य चीजों के अतिरिक्त पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा, अच्छी शिक्षा पाने का अवसर, उचित पोषक आहार व न्यूनतम वेतन जैसी कुछ न्यूनतम चीजों की गारण्टी हो। इन सुविधाओं के अभाव में समाज के सभी सदस्यों के लिए समान शर्तों पर प्रतिस्पर्द्धा करना संभव नहीं होगा।

भारत में समान अवसरों के मद्देनजर एक विशेष समस्या कुछ सामाजिक रीति-रिवाजों से सामने आती है। देश के विभिन्न हिस्सों में औरतों को उत्तराधिकार का समान अधिकार नहीं मिलता, उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने से भी हतोत्साहित किया जाता है आदि। ऐसे मामलों में राज्य औरतों को समान कानूनी अधिकार प्रदान करके, शिक्षण या कुछ अन्य देशों में प्रवेश के लिए प्रोत्साहन जैसे उपाय करके अपनी भूमिका निभाता है। लोगों में जागरूकता बढ़ाने और इन अधिकारों का प्रयोग करने वालों को समर्थन देकर भी राज्य अपनी भूमिका निभा सकता है।

3. आर्थिक समानता:
आर्थिक समानता से आशय समाज में धन-दौलत या आय की समानता का होना है। यह सही है कि समाज में धन- – दौलत या आय की पूरी समानता संभवत: कभी विद्यमान नहीं रही। आज अधिकतर लोकतंत्र लोगों को समान अवसर उपलब्ध कराने का प्रयास करते हैं। यह माना जाता है कि समान अवसर कम से कम उन्हें अपनी हालत को सुधारने का मौका देते हैं जिनके पास प्रतिभा और संकल्प है। समान अवसरों के साथ भी असमानता बनी रह सकती है, लेकिन इसमें यह संभावना छुपी रहती है कि आवश्यक प्रयासों द्वारा कोई भी समाज में अपनी स्थिति बेहतर कर सकता है।

लेकिन समाज में अत्यधिक आर्थिक असमानताएँ भी नहीं होनी चाहिए। अगर किसी समाज में लोगों के कुछ खास वर्ग के लोग पीढ़ियों से बेशुमार धन-दौलत और इसके साथ हासिल होने वाली सत्ता का उपभोग करते हैं, तो समाज दो वर्गों – अत्यधिक धनी और विशेषाधिकार सम्पन्न वर्ग और अत्यधिक निर्धन और विशेषाधिकारविहीन वर्ग में बंट जाता है। ये आर्थिक असमानताएँ सामाजिक असमानताओं को बढ़ावा देती हैं। इसलिए ऐसी असमानताओं को दूर करने के लिए सरकार को सकारात्मक कार्यवाही की नीतियाँ बनानी चाहिए ताकि अत्यधिक आर्थिक असमानता को कम किया जा सके और अवसर की समानता को व्यावहारिक बनाया जा सके।

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प्रश्न 2.
समाज में समानता की स्थापना के सम्बन्ध में मार्क्सवादी विचारधारा को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
मार्क्सवाद मार्क्सवाद हमारे समाज की एक प्रमुख राजनीतिक विचारधारा है। मार्क्स 19वीं सदी का एक प्रमुख विचारक था। उसके विचारों को मार्क्सवादी विचारधारा के रूप में जाना जाता है। उसके सामाजिक असमानता व समानता सम्बन्धी प्रमुख विचार निम्नलिखित हैं।

  1. आर्थिक संसाधनों का निजी स्वामित्व आर्थिक असमानता का प्रमुख कारक: समाज में अत्यधिक असमानताओं का मूल कारण महत्त्वपूर्ण आर्थिक संसाधनों, जैसे। जल, जंगल, जमीन या तेल समेत अन्य प्रकार की सम्पत्ति का निजी स्वामित्व है। निजी स्वामित्व मालिकों के वर्ग को सिर्फ अमीर नहीं बनाता, बल्कि उन्हें राजनैतिक शक्ति भी प्रदान करता है। यह शक्ति उन्हें राज्य की नीतियों और कानूनों को प्रभावित करने में सक्षम बनाती हैं और वे लोकतांत्रिक सरकार के लिए खतरा साबित हो सकते हैं।
  2. आर्थिक असमानताएँ सामाजिक असमानताओं का कारक हैं। मार्क्सवादी यह महसूस करते हैं कि आर्थिक असमानताएँ सामाजिक रुतबे या विशेषाधिकार जैसी अन्य तरह की सामाजिक असमानताओं को बढ़ावा देती हैं।
  3. समानता की स्थापना के लिए संसाधनों पर सार्वजनिक स्वामित्व आवश्यक: समाज में असमानता से निबटने के लिए हमें समान अवसर उपलब्ध कराने से आगे जाने और आवश्यक संसाधनों तथा अन्य तरह की सम्पत्ति पर जनता का नियंत्रण कायम करने और सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

प्रश्न 3.
उदारवादी विचारधारा के समानता सम्बन्धी विचारों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
उदारवादी: उदारवादी विचारधारा आधुनिक युग की प्रमुख राजनैतिक विचारधारा है। समाज में समानता की स्थापना के सम्बन्ध में उदारवादी दृष्टिकोण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
1. प्रतिद्वन्द्विता के सिद्धान्त का समर्थन:
उदारवादी विचारक समाज में संसाधनों और लाभांश के वितरण के सर्वाधिक कारगर और उचित तरीके के रूप में प्रतिद्वन्द्विता के सिद्धान्त का समर्थन करते हैं। वे मानते हैं कि स्वतंत्र और निष्पक्ष परिस्थितियों में लोगों के बीच प्रतिस्पर्द्धा ही समाज में लाभांशों के वितरण का सबसे न्यायपूर्ण और कारगर उपाय है। जब तक प्रतिस्पर्द्धा स्वतंत्र और खुली होगी असमानताओं की खाइयाँ नहीं बनेंगी और लोगों को अपनी प्रतिभा और प्रयासों का लाभ मिलता रहेगा।

उनका कहना है कि नौकरियों में नियुक्ति और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए चयन के उपाय के रूप में प्रतिस्पर्द्धा का सिद्धान्त सर्वाधिक न्यायोचित व कारगर है। उदाहरण के लिए, अपने देश में अनेक छात्र व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में नामांकन की आशा करते हैं, जबकि प्रवेश के लिए अत्यधिक कड़ी प्रतिस्पर्द्धा है। समय-समय पर सरकार और अदालतों शैक्षणिक संस्थानों और प्रवेश परीक्षाओं का नियमन करने के लिए हस्तक्षेप किया है, ताकि प्रत्याशी को उचित और समान अवसर मिले, फिर भी कुछ को प्रवेश नहीं मिलता, लेकिन इसे सीमित सीटों के बंटवारे का निष्पक्ष तरीका माना जाता है।

2. राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक असमानताएँ अनिवार्यतः
एक-दूसरे से जुड़ी नहीं होतीं – उदारवादी उक्त तीनों असमानताओं को अनिवार्यतः एक-दूसरे से जुड़ी होने के सिद्धान्त पर सहमत नहीं हैं। इसलिए उनका मानना है कि इनमें से हर क्षेत्र की असमानताओं का निराकरण ठोस तरीके से करना चाहिए। इसलिए लोकतंत्र राजनीतिक समानता प्रदान करने में सहायक हो सकता है। लेकिन सामाजिक तथा आर्थिक असमानताओं के समाधान के लिए विविध सकारात्मक रणनीतियों की खोज करना भी आवश्यक है।

3. असमानता अपने आप में समस्या नहीं:
उदारवादियों के लिए असमानता अपने आप में समस्या नहीं है, बल्कि वे केवल ऐसी अन्यायी और गहरी असमानताओं को ही समस्या मानते हैं, जो लोगों को उनकी वैयक्तिक क्षमताएँ विकसित करने से रोकती हैं।

प्रश्न 4.
नारीवाद से आप क्या समझते हैं? स्त्री-पुरुष असमानता के सम्बन्ध में नारीवाद विचारों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
नारीवाद: नारीवाद स्त्री-पुरुष के समान अधिकारों का पक्ष लेने वाला राजनीतिक सिद्धान्त है। वे स्त्री या पुरुष नारीवादी कहलाते हैं जो मानते हैं कि स्त्री – पुरुष के बीच की अनेक असमानताएँ न तो नैसर्गिक हैं और न ही आवश्यक। नारीवादियों का मानना है कि इन असमानताओं को बदला जा सकता है और स्त्री-पुरुष एक समतापूर्ण जीवन जी सकते हैं। असमानता के सम्बन्ध में प्रमुख नारीवादी विचार स्त्री-पुरुष असमानता व समानता के सम्बन्ध में नारीवादी सिद्धान्त की प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं।

1. स्त्री-पुरुष असमानता पितृसत्ता का परिणाम है:
नारीवाद के अनुसार स्त्री-पुरुष असमानता ‘पितृसत्ता’ का परिणाम है। पितृसत्ता से आशय एक ऐसी सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था से है, जिसमें पुरुष को स्त्री से अधिक महत्त्व और शक्ति दी जाती है। पितृसत्ता के अनुसार पुरुष और स्त्री प्रकृति से भिन्न हैं और यही भिन्नता समाज में उनकी असमान स्थिति को न्यायोचित ठहराती है। नारीवादी पितृसत्ता की इस धारणा से सहमत नहीं हैं।

2. स्त्री-पुरुष के बीच जैविक ( लिंग ) भेद और सामाजिक भूमिका सम्बन्धी भेद में अन्तर है।
नारीवादी विचारक स्त्री-पुरुष के बीच जैविक विभेद और उनके बीच सामाजिक भूमिकाओं के विभेद के बीच अन्तर करने पर बल देते हैं। उनका कहना है कि जैविक विभेद (लिंग-भेद ) प्राकृतिक और जन्मजात होता है जबकि दोनों के बीच सामाजिक भूमिकाओं का भेद समाजजनित है। यह एक जीव विज्ञान का तथ्य है कि केवल औरत ही गर्भ धारण करके बालक को जन्म दे सकती है, लेकिन जीव विज्ञान के तथ्य में यह निहित नहीं है कि जन्म देने के बाद केवल स्त्री ही बालक का लालन-पालन करे। इस प्रकार नारीवादियों ने यह स्पष्ट किया है कि स्त्री-पुरुष के बीच भूमिकाओं सम्बन्धी भेद प्राकृतिक नहीं बल्कि समाजजनित हैं।

3. घरेलू और बाह्य कार्यों के विभाजन की अस्वीकृति:
नारीवादियों का मत है कि पितृसत्ता ने ही ऐसा श्रम विभाजन किया है कि स्त्री निजी और घरेलू किस्म के कार्यों के प्रति जिम्मेदार है और पुरुष बाहरी कार्यों के प्रति । नारीवादी इस विभेद को अस्वीकार करते हुए कहते हैं कि अधिकतर स्त्रियाँ ‘ सार्वजनिक और बाहरी क्षेत्र’ में भी सक्रिय होती हैं । इसीलिए विश्व में स्त्रियाँ घर से बाहर अनेक क्षेत्रों में कार्यरत हैं और घरेलू कामकाज की पूरी जिम्मेदारी केवल स्त्रियों के कंधों पर है। नारीवादी इसे स्त्रियों के कंधों पर दोहरा बोझ बताते हैं। इस दोहरे बोझ के बावजूद स्त्रियों को ‘सार्वजनिक क्षेत्र के निर्णयों में ‘ना’ के बराबर महत्त्व दिया जाता है।

4. सामाजिक भूमिका सम्बन्धी लैंगिक असमानता के सभी रूपों को मिटाया जा सकता है:
नारीवादियों का मानना है कि निजी / सार्वजनिक के बीच यह विभेद और समाज या व्यक्ति द्वारा गढ़ी हुई भूमिका जनित लैंगिक असमानता के सभी रूपों को मिटाया जा सकता है तथा लिंग-सम्बन्धी समानता की स्थापना के लिए असमानता के इन रूपों को मिटाया जा सकता है और मिटाया जाना चाहिए।
कीजिए।

प्रश्न 5.
” आज समाज में हमारे चारों ओर समानता की बजाय असमानता अधिक नजर आती है। ” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाज में व्याप्त असमानता: यद्यपि आज विश्व में समानता व्यापक रूप से स्वीकृत आदर्श है, जिसे अनेक देशों के संविधान और कानूनों में सम्मिलित किया गया है; तथापि विश्व समाज में हमारे चारों ओर समानता की बजाय असमानता अधिक नजर आती है। हम एक ऐसी जटिल दुनिया में रहते हैं जिसमें धन-संपदा, अवसर, कार्य स्थिति और शक्ति की भारी असमानता है। नीचे विश्व और हमारे देश के स्तर पर असमानता दर्शाने वाले कुछ आंकड़े दिये गये हैं-

  1. दुनिया के 50 सबसे अमीर आदमियों की सामूहिक आमदनी दुनिया के 40 करोड़ सबसे गरीब लोगों की सामूहिक आमदनी से अधिक है।
  2. दुनिया की 40 प्रतिशत गरीब जनसंख्या का दुनिया की कुल आमदनी में हिस्सा केवल 5 प्रतिशत है, जबकि 10 प्रतिशत अमीर लोग दुनिया की 54 प्रतिशत आमदनी पर नियंत्रण करते हैं।
  3. पहली दुनिया खासकर उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के अगड़े औद्योगिक देशों में दुनिया की जनसंख्या का 25 प्रतिशत हिस्सा रहता है, लेकिन दुनिया के 86 प्रतिशत उद्योग इन्हीं देशों में हैं और दुनिया की 80 प्रतिशत ऊर्जा इन्हीं देशों में इस्तेमाल की जाती है।
  4. इन अगड़े औद्योगिक देशों (उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के देशों) के निवासी भारत या चीन जैसी विकासशील देशों के निवासी की तुलना में कम से कम तीन गुना अधिक पानी, दस गुना ऊर्जा, तेरह गुना लोहा और इस्पात तथा 14 गुना कागज का उपभोग करता है।
  5. गर्भावस्था से जुड़े कारणों से मरने का खतरा नाइजीरिया के लिए 18 में से 1 मामले में है, जबकि कनाडा के लिए यह खतरा 8700 में से 1 मामले में है।
  6. जमीन से अंदर से निकालने वाले ईंधन (कोयला, पेट्रोलियम और गैस) के जलने से दुनियाभर में जो कार्बन डाइऑक्साइड निकलती है, उसमें से पहली दुनिया के औद्योगिक देशों का हिस्सा दो-तिहाई है। अम्लीय वर्षा के लिए जिम्मेदार सल्फर और नाइट्रोजन ऑक्साइड का भी तीन-चौथाई हिस्सा इन्हीं देशों द्वारा उत्सर्जित होता है। ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले बहुत सारे उद्योगों को विकसित देशों से हटाकर विकासशील देशों में लगाया जा रहा है।
  7. अपने देश में हम आलीशान आवासों के साथ-साथ झोंपड़पट्टियाँ, विश्वस्तरीय सुविधाओं से लैस स्कूल और वातानुकूलित कक्षाओं के साथ-साथ पेयजल और शौचालय की सुविधा से विहीन स्कूल, भोजन की बर्बादी के साथ-साथ भुखमरी देख सकते हैं।

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प्रश्न 6.
प्राकृतिक और सामाजिक असमानताओं से आप क्या समझते हैं? इन दोनों के अन्तर को स्पष्ट कीजिये तथा दोनों के फर्क करने में आने वाली कठिनाइयों को भी स्पष्ट कीजिये।
अथवा
प्राकृतिक और सामाजिक असमानताओं से आप क्या समझते हैं? इन दोनों में अन्तर करना क्यों उपयोगी है तथा क्या इनके बीच के अन्तर को किसी समाज के कानून और नीतियों का निर्धारण करने में मापदण्ड के तौर पर उपयोग किया जा सकता है?
उत्तर:
प्राकृतिक और सामाजिक असमानताएँ राजनीतिक सिद्धान्त में प्राकृतिक असमानताओं और समाजजनित असमानताओं में अन्तर किया जाता है। यथा प्राकृतिक असमानताएँ – प्राकृतिक असमानताएँ वे होती हैं जो लोगों में उनकी विभिन्न क्षमताओं, प्रतिभा और उनके अलग-अलग चयन के कारण पैदा होती हैं। समाजजनित (सामाजिक) असमानताएँ समाजजनित असमानताएँ वे होती हैं, जो समाज में अवसरों की असमानता होने या किसी समूह का दूसरे के द्वारा शोषण किये जाने से पैदा होती हैं। दोनों में प्रमुख अन्तर अग्रलिखित हैं।

  1. प्राकृतिक असमनताएँ लोगों की जन्मजात विशिष्टताओं और योग्यताओं का परिणाम होती हैं, जबकि सामाजिक असमानताओं को समाज ने पैदा किया है।
  2. प्राकृतिक असमानताओं को सामान्यतः बदला नहीं जा सकता जबकि सामाजिक असमानताओं को बदला जा सकता है।

दोनों असमानताओं में अन्तर करने की उपयोगिता प्राकृतिक और समाजमूलक असमानताओं में अन्तर करना इसलिए उपयोगी होता है क्योंकि इससे स्वीकार की जा सकने लायक और अन्यायपूर्ण असमानताओं को अलग-अलग करने में सहायता मिलती है। प्राकृतिक असमानताएँ जहाँ स्वीकार की जा सकने लायक होती हैं, वहीं समाजजनित असमानताएँ अन्यायपूर्ण होती हैं जिन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता। दोनों असमानताओं में अन्तर करने में आने वाली कठिनाइयाँ प्राकृतिक असमानताओं और सामाजिक असमानताओं में अन्तर करने में निम्नलिखित कठिनाइयाँ आती हैं।

1. दोनों में अन्तर हमेशा साफ और अपने आप स्पष्ट नहीं होता:
प्राकृतिक और सामाजिक असमानताओं में फर्क हमेशा साफ और अपने आप स्पष्ट नहीं होता। उदाहरण के लिए जब लोगों के व्यवहार में कुछ असमानताएँ लम्बे काल तक विद्यमान रहती हैं, तो वे हमें मनुष्य की प्राकृतिक विशेषताओं पर आधारित लगने लगती हैं। ऐसा लगने लगता है कि जैसे कि वे जन्मजात हों और आसानी से बदल नहीं सकतीं। जैसे औरतें अनादि काल से ‘अबला’ कही जाती थीं। उन्हें भीरु एवं पुरुषों से कम बुद्धि का माना जाता था, जिन्हें विशेष संरक्षण की जरूरत थी। इसलिए यह मान लिया गया था कि औरतों को समान अधिकार से वंचित करना न्यायसंगत है। आज ऐसे सभी मानकों और मूल्यांकनों पर सवाल उठाये जा रहे हैं तथा इस असमानता को प्राकृतिक असमानता नहीं माना जा सकता। ऐसी ही अन्य अनेक धारणाओं पर अब सवाल उठाये जा रहे हैं।

2. प्राकृतिक मानी गयी कुछ असमानताएँ अब अपरिवर्तनीय नहीं रही हैं:
प्राकृतिक असमानता की एक प्रमुख विशेषता यह है कि ये असमानताएँ अपरिवर्तनीय होती हैं। लेकिन प्राकृतिक मानी गयी कुछ असमानताएँ अब अपरिवर्तनीय नहीं रही हैं। उदाहरण के लिए, चिकित्सा विज्ञान और तकनीकी प्रगति ने विकलांग व्यक्तियों का समाज में प्रभावी ढंग से काम करना संभव बना दिया है। आज कम्प्यूटर नेत्रहीन व्यक्ति की मदद कर सकते हैं, पहियादार कुर्सी और कृत्रिम पाँव शारीरिक अक्षमता के निराकरण में सहायक हो सकते हैं।

कॉस्मेटिक सर्जरी से किसी व्यक्ति की शक्ल- सूरत बदली जा सकती है। आज अगर विकलांग लोगों को उनकी विकलांगता से उबरने के लिए जरूरी मदद और उनके कामों के लिए उचित पारिश्रमिक देने से इस आधार पर इनकार कर दिया जाए कि प्राकृतिक रूप से वे कम सक्षम हैं, तो यह अधिकतर लोगों को अन्यायपूर्ण लगेगा।

इन सब जटिलताओं के कारण प्राकृतिक और सामाजिक असमानताओं के बीच के अन्तर को किसी समाज के कानून और नीतियों का निर्धारण करने में मानदण्ड के रूप में उपयोग करना कठिन होता है। इसी कारण बहुत से सिद्धान्तकार अपने चयन से पैदा हुई असमानता और व्यक्ति के विशेष परिवार या परिस्थितियों में जन्म लेने से पैदा हुई असमानता में फर्क करते हैं तथा वे चाहते हैं कि परिवेश से जन्मी असमानता को न्यूनतम और समाप्त किया जाये।

प्रश्न 7.
हम समानता को किस प्रकार बढ़ावा दे सकते हैं?
अथवा
हम समानता की ओर कैसे बढ़ सकते हैं और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में असमानता को न्यूनतम कैसे कर सकते हैं?
उत्तर:
हम समानता को बढ़ावा कैसे दे सकते हैं?
वर्तमान में इस विचार पर निरन्तर बहस जारी है कि समानता की ओर बढ़ने के लिए कौन-से सिद्धान्त और नीतियाँ आवश्यक हैं? समानता की ओर बढ़ने के लिए प्रमुख कदमों की विवेचना निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत की गई हैकीजिए।

1. औपचारिक समानता की स्थापना:
समानता लाने की दिशा में पहला कदम असमानता और विशेषाधिकार की औपचारिक व्यवस्था को समाप्त करना होगा। विश्व में सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक असमानताओं को कुछ रीति-रिवाजों और कानूनी व्यवस्थाओं से संरक्षित रखा गया है। इनके द्वारा समाज के कुछ हिस्सों को सभी प्रकार के अवसरों और लाभों का आनंद उठाने से रोका जाता था। यथा

  1. बहुत सारे देशों में गरीब लोगों को मताधिकार से वंचित रखा जाता था।
  2. महिलाओं को बहुत सारे व्यवसाय और गतिविधियों में भाग लेने की इजाजत नहीं थी।
  3. भारत में जाति-व्यवस्था निचली जातियों को शारीरिक श्रम के अलावा कुछ भी करने से रोकती थी।
  4. कुछ देशों में केवल कुछ खास परिवारों के लोग ही सर्वोच्च पदों तक पहुँच सकते हैं।

समानता की प्राप्ति के लिए ऐसे सभी निषेधों व विशेषाधिकारों का अन्त किया जाना आवश्यक है। चूँकि ऐसी बहुत सी व्यवस्थाओं को कानून का समर्थन भी प्राप्त है, इसलिए यह आवश्यक है कि सरकार और कानून असमानतामूलक ऐसी व्यवस्थाओं को संरक्षण देना बंद करे। हमारे देश के संविधान में भी यही किया है। संविधान धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव करने का निषेध करता है तथा छुआछूत की प्रथा का भी उन्मूलन करता है। वर्तमान में लगभग सभी लोकतांत्रिक देशों में संविधान तथा सरकारें औपचारिक (कानूनी ) रूप से समानता के सिद्धान्त को स्वीकार कर चुकी हैं और इस सिद्धान्त को जाति, नस्ल, धर्म या लिंग के भेदभाव के बिना सभी नागरिकों को कानून के एक समान बर्ताव के रूप में समाहित किया है।

2. विभेदक बरताव द्वारा समानता:
समानता के सिद्धान्त को यथार्थ में बदलने के लिए औपचारिक समानता अर्थात् कानून के समक्ष समानता का सिद्धान्त पर्याप्त नहीं है। कभी-कभी लोग समान अधिकारों का उपभोग कर सकें, इसके लिए उनसे अलग बरताव करना भी आवश्यक होता है। उदाहरण के लिए, विकलांगों के लिए सार्वजनिक स्थानों पर विशेष ढलान वाले रास्तों का होना, या रात में कॉल सेंटर में काम करने वाली महिला को कॉल सेंटर आते-जाते समय विशेष सुरक्षा की व्यवस्था करना आदि। इससे उनके काम के समान अधिकार की रक्षा हो सकेगी। ऐसे विभेदक बरतावों को समानता की कटौती के रूप में नहीं बल्कि समानता को बढ़ावा देने वाले उपायों के रूप में देखा जाना चाहिए।

3. सकारात्मक कार्यवाही की नीतियाँ:
कुछ देशों ने अवसरों की समानता बढ़ाने के लिए ‘सकारात्मक कार्यवाही’ की नीतियाँ अपनाई हैं। इसी संदर्भ में हमारे देश में आरक्षण की नीति अपनाई गई है। सकारात्मक कार्यवाही इस विचार पर आधारित है कि कानून द्वारा औपचारिक समानता स्थापित कर देना पर्याप्त नहीं है। असमानताओं को मिटाने के लिए असमानता की गहरी खाइयों को भरने वाले अधिक सकारात्मक कदम उठाए जाएँ। इसीलिए सकारात्मक कार्यवाही की अधिकतर नीतियाँ अतीत की असमानताओं को संचयी दुष्प्रभावों को दुरुस्त करने के लिए बनाई जाती हैं।

सकारात्मक कार्यवाही के अनेक रूप हो सकते हैं। इसमें वंचित समुदायों के लिए छात्रवृत्ति और हॉस्टल सुविधाओं पर वरीयता के आधार पर खर्च करने से लेकर नौकरियों और शैक्षिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए विशेष व्यवस्था करने तक की नीतियाँ हो सकती हैं। सकारात्मक कार्यवाही के रूप में विशेष सहायता को एक निश्चित समय अवधि तक चलने वाला तदर्थ उपाय माना गया है। इसके पीछे मान्यता यह है कि विशेष बरताव इन समुदायों को वर्तमान वंचनाओं से उबरने में सक्षम बनायेगा और फिर ये अन्य समुदायों से समानता के आधार पर प्रतिस्पर्द्धा कर सकेंगे। निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि समानता के विषय में सोचते हुए हमें प्रत्येक व्यक्ति को बिल्कुल एक जैसा मानने और प्रत्येक व्यक्ति को मूलतः समान मानने में अन्तर करना चाहिए।

मूलतः समान व्यक्तियों को विशेष स्थितियों में अलग-अलग बरताव की आवश्यकता हो सकती है। लेकिन ऐसे सभी मामलों में सर्वोपरि उद्देश्य समानता को बढ़ावा देना ही होना चाहिए। एक खास स्थिति में विशेष बरताव जरूरी है या नहीं, इसके लिए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एक समूह समान अधिकारों का उसी प्रकार आनंद उठा सके जैसा कि शेष समाज। यह विशेष बरताव वर्चस्व या शोषण की नई संरचनाओं को जन्म न दे अथवा यह समाज में विशेषाधिकार और शक्ति को फिर से स्थापित करने वाला एक प्रभावशाली उपकरण न बने। संक्षेप में, विशेष बरताव का उद्देश्य और औचित्य एक न्यायपरक और समतामूलक समाज को बढ़ावा देने के माध्यम के अतिरिक्त कुछ और नहीं है।

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