JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Vyakaran रस Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10 Hindi Vyakaran रस

प्रश्न 1.
साहित्य में रस से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
दैनिक जीवन में हम रस शब्द का उपयोग अनेक अथों में करते हैं। सर्वप्रथ हम विभिन्न पदार्थो के रस की बात करते हैं। खट्य-माठा, नमकीन अथवा कड़वा रस होता है। जिह्वा के द्वारा हम इस प्रकार के छह रसों का आनंद लेते हैं। दूसरी प्रकार के रस जिनसे हमारा। दैनिक जीवन में परिचय रहता है, वे हैं विभिन्न पदार्थों का सार या निचोड़। किसी पदार्थ का निचोड़, तरलता अथवा पारे गंधक से बनी औषधि आदि को भी रस कह दिया जता है। प्रायः यह भी सुनने को गाने में रस है। इसका अभिप्राय कर्णप्रियता या मधुरता है।

साधु महात्मा एक और रस का वर्णन करते हैं, जिसे ब्रह्मानंद कहा जाता है। पहुँचे हुए योगी ब्रह्म के साथ ऐसा संबंध स्थापित कर लेते हैं कि हर क्षण उन्हें ब्रह्म के निकट होने का आभास होता है और वे उससे आनंदित रहते हैं। यह स्थायी आनंद भी रस माना जाता है। साहित्य में रस, ऐसे आनंद को कहते हैं जो कि पाठक, श्रोता या दर्शक को किसी रचना को गढ़ने, सुनने अथवा मंच पर अभिनीत होते देखकर होता है। जब सहदय (पाठक, श्रोता आदि) को अपने व्यक्तित्व का एहसास पहीं रहता, वह आत्म-विभोर हो उदतार अपे पारेवेश को भूलकर आनद विभीर हो उठता है तो कार्य रस या आजंद ब्रहमानंद के समान हो जाता है । रस का संध यु० के भाव जगत से है।

प्रश्न 2.
रस के अंग अथवा कारण सामग्री का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
आचार्य विश्वनाथ ने अपने ग्रंथ ‘साहित्य दर्पण’ में रस के स्वरूप एवं अवयवों पर प्रकाश डाला है। उनके अनुसार ‘विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों से व्यक्त हुआ स्थायी भाव ही रस का रूप धारण करता है। इस प्रकार रस के चार अंग स्पष्ट हो जाते हैं, जो निम्नलिखित हैं –
(i) स्थायी भाव – मनुष्य के मन में जन्म से ही कुछ भाव रहते हैं, जिनका धीरे-धीरे विकास होता है। वे भा या अधिक मात्रा में स्थायी रूप से रहते हैं। प्रेम, क्रोध, शोक, घृणा, भय, विस्मय, हास्य आदि ऐसे ही स्थायी भाव हैं। ये भाव मन में सुप्तावस्था में रहते हैं और अवसर आने पर जाग जाते हैं। कोई व्यक्ति हर समय क्रोधित दिखाई नहीं पड़ता। जब उसे अपना कोई शत्रु दिखाई दे, अपने को हानि पहुँचाने वाला दिखाई दे तो मन में क्रोध का भाव जागता है। स्थायी भावों को जागृत करने वाली सामग्री को विभाव कहते हैं। स्थायी भाव ही अभिव्यक्त होकर रस में बदलता है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

(ii) विभाव – विभिन्न प्रकार के स्थायी भावों को जगा देने के जो कारण हैं, उन्हें ‘विभाव’ कहते हैं। विभाव शब्द का अर्थ है विशेष रूप से भाव को जगा देने वाला। स्थायी भाव मन में सोए रहते हैं, विभाव उन्हें जागृत या तीव्र करते हैं। विभाव दो होते हैं –
(क) आलंबन विभाव – आलंबन शब्द का अर्थ हैं, सहारा या आधार। जिन पदार्थों का सहारा लेकर स्थायी भाव जागते हैं, उन्हें आलंबन विभाव कहते हैं। उदाहरण के लिए बालकृष्ण को देखकर माता यशोदा के हृदय में वात्सल्य जागता है तो ‘बालकृष्ण’ यहाँ पर आलंबन विभाव है। इनकी संख्या असीम है। माता यशोदा के मन में भाव जागा, वह आश्रय है। बालकृष्ण के लिए जागा, कृष्ण यहाँ पर विषय है।

(ख) उद्दीपन विभाव – उद्दीपन का अर्थ है, उद्दीप्त करना, तेज़ करना। आलंबन विभाव द्वारा जगाए गए भावों को उद्दीप्त करने वाले पदार्थ, चेष्टाएँ अथवा भाव उद्दीपन विभाव कहलाते हैं। उदाहरण के लिए बाल-कृष्ण माता यशोदा के निकट आकर खीझते हुए, तोतली बोली में बड़े भाई की शिकायत करते हैं तो उनकी खीझ और तुतलाहट यहाँ पर माँ के हृदय में और अधिक प्यार का संचार करती है। यह खीझ और तुतलाहट यहाँ पर माँ के वात्सल्य भाव को तीव्र कर रही है। इसलिए इसे उद्दीपन विभाव कहा जा सकता है। जितने प्रकार के आलंबन हैं, उनसे कहीं ज्यादा उद्दीपन विभाव हैं। इसलिए इनकी संख्या भी असीम है। आलंबन की चेष्टाएँ और उसके आसपास का वातावरण भी उद्दीपन में गिना जाता है।

(iii) अनुभाव – अनु का अर्थ है पीछे। अनुभाव का अर्थ हुआ, जो भाव के पश्चात जन्म लेते हैं। जब किसी आश्रय या पात्र में विभावों को देखकर स्थायी भाव जाग उठता है तब वह कुछ चेष्टाएँ करेगा, उन्हीं को अनुभाव कहेंगे। अनुभाव, भावों के जागृत होने का परिचय देते हैं। अनुभाव, भावों के कार्य हैं, ये भावों का अनुभव करवाते हैं। उपर्युक्त उदाहरण को यदि आगे बढ़ाएँ तो कहेंगे कि माता यशोदा, बालकृष्ण की चेष्टाओं को देखकर आनंद विभोर हो उठीं और उन्होंने कृष्ण की बलाएँ लीं, उन्हें चूमा तथा गोद में उठा लिया। यशोदा द्वारा बालकृष्ण को चूमना, गोद में उठाना और बलाएँ लेना इस बात का प्रतीक है कि उसमें प्रेमभाव वात्सल्य जाग गया है। इस प्रकार माता यशोदा की ये चेष्टाएँ अनुभाव कही जाएँगी। आश्रय की चेष्टाओं के अनुभाव तथा विषय की चेष्टाओं को उद्दीपन में गिनते हैं। अनुभाव संख्या में आठ माने गए हैं –
(क) स्तंभ (अंगों की जकड़न) – हर्ष, भय, शोक आदि के कारण अंगों की गति अवरुद्ध हो जाती है।
(ख) स्वेद (पसीना आना) – क्रोध, भय, दुख अथवा श्रम से पसीना आ जाता है।
(ग) रोमांच (रोंगटे खड़े होना) – विस्मय, हर्ष अथवा शीत से रोमांच हो जाता है।
(घ) स्वरभंग (स्वर का गद्गद होना) – यह भय, हर्ष, मद, क्रोध आदि से उत्पन्न होता है।
(ङ) कंप (काँपना) – भय, क्रोध, आनंद आदि से भरकर आश्रय का शरीर काँपने लगता है।
(च) विवर्णता (रंग फीका पड़ना, हवाइयाँ उड़ना) – क्रोध, भय, काम, शीत आदि से यह उत्पन्न होता है।
(छ) अश्रु (आँसू बहाना) – आनंद, शोक, भय आदि में आश्रय आँसू बहाने लगता है।
(ज) मूर्छा प्रलाप (होश खो जाना) – काम, मोह, मद आदि से इसकी उत्पत्ति होती है।

(iv) संचारी भाव – स्थायी भावों के बीच-बीच में प्रकट होने वाले भावों को संचारी या व्यभिचारी भाव कहते हैं। संचारी इन्हें इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये थोड़े समय के लिए जागृत होकर लुप्त हो जाते हैं। यदि माता यशोदा कृष्ण की माखनचोरी से क्रोधित होती हैं, उसे मारने के लिए छड़ी उठाती हैं तो माता यशोदा का यह क्रोध अस्थायी है। बालकृष्ण के प्रति वात्सल्य भाव के कारण ही उन्हें क्रोध आ रहा है। यहाँ पर क्रोध संचारी भाव बनकर आया है। कृष्ण ज्यों ही क्षमा माँग लेगा या दुखी दिखाई पड़ेगा, माँ का वात्सल्य उमड़ आएगा।

क्रोध के रहते हुए भी माँ का कृष्ण के प्रति प्रेम रहता है। इस प्रकार स्थायी भाव को पुष्ट करने के लिए समय-समय पर आश्रय के मन में जो भाव जागते हैं, उन्हें संचारी भाव कहते हैं। संचारी भावों को व्यभिचारी भी कह दिया जाता है क्योंकि ये भाव किसी भी स्थायी भाव के साथ आ सकते हैं। किस स्थायी भाव के साथ कौन-सा संचारी भाव आएगा, यह निश्चित नहीं किया जा सकता। इसलिए संचारी भावों को व्यभिचारी भाव भी कह दिया जाता है। संचारी भावों का उदय केवल स्थायी भावों की पुष्टि के लिए होता है। भावों को अनुभावों द्वारा व्यक्त होना चाहिए। भावों का नाम लेकर उनकी गिनती करवाना काव्य में दोष माना जाता है। संचारी भावों की संख्या 33 मानी जाती है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

प्रश्न 3.
‘रस’ के बारे में बताते हुए इसके भेदों के नाम लिखिए।
उत्तर :
साहित्य या काव्य से प्राप्त आनंद को रस कहा जाता है। विभाव, अनुभाव एवं संचारी भावों के द्वारा रस की निष्पत्ति होती है। निष्पत्ति का अर्थ है अभिव्यक्ति या प्रकट होना। काव्य, आत्मा के ऊपर पड़े आवरणों को हटाकर हमारे गुप्त भावों को जगा देता है, जिससे आनंद प्राप्त होता है। स्थायी भाव अभिव्यक्त होकर ही आनंद देने योग्य बनते हैं। इस प्रकार परिपक्व एवं अभिव्यक्त स्थायी भाव ही रस बनते हैं। रस की संख्या सामान्यता नौ स्वीकार की जाती है। ये शृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, शांत और अद्भुत रस हैं।

कुछ विद्वानों ने वात्सल्य तथा भक्ति को भी रस की कोटि में रखना चाहा है परंतु सामान्यतः इन्हें भावों की कोटि में ही रखा जाता है। इनका स्थायी भाव भी रति ही है। स्थायी भाव एवं संचारी भाव का अंतर स्पष्ट कीजिए। स्थायी भाव, जैसा कि शब्द से ही स्पष्ट है, वे भाव हैं जोकि स्थायी रूप से हृदय में स्थित रहते हैं। एक बार जागृत होने पर ये नष्ट नहीं होते बल्कि अंत तक बने रहते हैं।

संचारी भाव संचरण करते रहते हैं, चलते रहते हैं। ये स्थायी रूप में मन में नहीं रहते बल्कि किसी भी स्थायी भाव के साथ उत्पन्न हो जाते हैं। प्रत्येक रस का स्थायी भाव निश्चित रहता है परंतु संचारी भाव निश्चित रूप से न तो किसी रस से जुड़ते हैं और न ही किसी स्थायी भाव से। एक ही संचारी भाव अनेक स्थायी भावों तथा रसों से जुड़ सकता है। इसीलिए संचारी भाव को व्यभिचारी भाव भी कहा जाता है। इनका उपयोग स्थायी भाव को पुष्ट करने में है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

प्रश्न 4.
स्थायी भाव रसों के अनुसार नौ हैं जबकि संचारी भावों की संख्या 33 है।
उत्तर :
स्थायी भाव, जैसा कि शब्द से ही स्पष्ट है, वे भाव हैं जोकि स्थायी रूप से हृदय में स्थित रहते हैं। एक बार जागृत होने पर ये नष्ट नहीं होते बल्कि अंत तक बने रहते हैं। संचारी भाव संचरण करते रहते हैं, चलते रहते हैं। ये स्थायी रूप में मन में नहीं रहते बल्कि किसी भी स्थायी भाव के साथ उत्पन्न हो जाते हैं।

प्रत्येक रस का स्थायी भाव निश्चित रहता है परंतु संचारी भाव निश्चित रूप से न तो किसी रस से जुड़ते हैं और न ही किसी स्थायी भाव से। एक ही संचारी भाव अनेक स्थायी भावों तथा रसों से जुड़ सकता है। इसीलिए संचारी भाव को व्यभिचारी भाव भी कहा जाता है। इसका उपयोग स्थायी भाव को पुष्ट करने में है।

स्थायी भाव – रस
(क) रति – शृंगार
(ख) हास – हास्य
(ग) शोक – करुण
(घ) क्रोध – रौद्र
(ङ) उत्साह – वीर
(च) भय – भयानक
(छ) जुगुप्सा – वीभत्स
(ज) विस्मय – अद्भुत
(झ) निर्वेद – शांत

कुछ विद्वान प्रभुरति (भक्ति) और वात्सल्य को स्थायी भावों में गिनते हैं और इनसे क्रमशः भक्ति रस और वात्सल्य रस की अभिव्यक्ति स्वीकार करते हैं।

संचारी भाव – निर्वेद, ग्लानि, शंका, असूया, मद, श्रम, आलस्य, दैन्य, चिंता, मोह, स्मृति, धृति, लज्जा, चपलता, हर्ष, आवेग, जड़ता, गर्व, विषाद, औत्सूक्य, नीरसता, अपस्मार, स्वप्न, विबोध, अमर्ष, अवहित्य, उग्रता, मति, व्यधि, उन्माद, त्रास, वितर्क और मरण हैं।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

प्रश्न 5.
रस के भेदों का सोदाहरण परिचय दीजिए।
उत्तर :
1. श्रृंगार रस

विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के संयोग से अभिव्यक्त रति स्थायी भाव शृंगार रस कहलाता है।
रति, प्रेम एक कोमल भाव है। सामाजिक दृष्टि से स्वीकार्य प्रेम ही श्रृंगार का स्थायी भाव बन सकता है। इस रस की रचना में रति का भाव झलकना चाहिए। अश्लील चित्रण इस रस में बाधक ही हैं। ग्राम्य अथवा अशिष्ट व्यवहार का वर्णन श्रृंगार के लिए उपयोगी नहीं। श्रृंगार के दो भेद हैं-संयोग और वियोग शृंगार।

संयोग एवं वियोग शृंगार के उदाहरण निम्नलिखित ढंग से समझे जा सकते हैं –

(क) संयोग श्रृंगार

जब नायक-नायिका एक-दूसरे के निकट होते हैं तब संयोग अवस्था होती है। ऐसे चित्रण में संयोग श्रृंगार रस होता है। संयोग श्रृंगार में नायक-नायिका एक दूसरे की ओर प्रेम से देखते हैं, आपस में बातें करते हैं, साथ-साथ घूमते हैं, तथा वे आपस में प्रेम क्रीड़ा कर सकते हैं।
उदाहरण :

1. “राम को रूप निहारत जानकी, कंकन की नग की परछांही।
यातें सबै सुधि भूलि गई कर टैकि रही पल टारत नाही॥”

(राम के सुंदर रूप पर मुग्ध जानकी लज्जावश सीधे उनकी ओर नहीं देखतीं बल्कि अपने कंगन की परछाईं में राम के सुंदर रूप को देख रही हैं। कंगन जिस बाजू में पहना है उसे बिलकुल भी हिला नहीं रही कि कहीं राम का रूप ओझल न हो जाए। वह निरंतर उस कंगन को देख रही है, जिसमें श्री रामचंद्र जी की परछाईं है।) इस पद्यांश में स्थायी भाव-रति (सीता का राम के प्रति प्रेम)

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 1

उदाहरण 2.

कंकन किंकिन नूपुर धुनि-सुनि।
कहत लखन सन राम हृदय गुनि।
मानहु मदन दुंदुभी दीन्हीं।
मनसा विस्व विजय कह कीन्हीं।
अस कहि फिरि चितये तेहि ओरा।
सीय-मुख ससि भये नयन चकोरा।
भये विलोचन चारु अचंचल।
मनहु सकुचि निमि तजेड दुगंचल।

(श्रीराम अपने हृदय में विचारकर लक्ष्मण से कहते हैं कि कंकण, करधनी और पाजेब के शब्द सुनकर लगता है मानो कामदेव ने विश्व को जीतने का संकल्प कर डंके पर चोट मारी है। ऐसा कहकर राम ने सीता के मुखरूपी चंद्रमा की ओर ऐसे देखा जैसे उनकी आँखें चकोर बन गई हों। सुंदर आँखें स्थिर हो गईं। मानो निमि ने सकुचाकर पलकें छोड़ दी हों।)

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 2

उदाहरण 3.

सुनि सुंदर बैन सुधारस साने सयानी हैं जानकी जानी भली।
तिरछे करि नैन, दे सैन तिन्हैं समुझाई कछू मुसकाइ चली।
तुलसी तेहि ओसर सोहे सबै, अवलोकति लोचन लाहु अली।
अनुराग तड़ाग में मानु उदै विगसी मनो मंजुल कंजकली।

(सीता ने ग्रामवासिनियों के अमृत रस भरे सुंदर वचनों को सुनकर समझ लिया कि वे सब समझदार और चंचल हैं। इसलिए उन्होंने आँखों से कटाक्ष करते हुए संकेत ही में उन्हें समझा दिया और मुसकराकर आगे बढ़ गईं। तुलसीदास कहते हैं कि उस समय मानो उनकी कमल कलियों के समान आँखें प्रेमरूपी तालाब में सूर्य के प्रकाश के कारण खिल गईं।)

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 3

(ख) वियोग श्रृंगार –

उदाहरण 1.

जहाँ नायक-नायिका, एक-दूसरे से अलग, दूर हो जाते हैं। ऐसे चित्रांकन को वियोग श्रृंगार कहते हैं।

निसिदिन बरसत नैन हमारे।
सदा रहत पावस ऋतु हम पै जब तै स्याम सिधारे॥
दृग अंजन लागत नहिं कबहू उर कपोल भये कारे॥

(गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव यह वर्षा ऋतु हमारे लिए घातक बन गई है। हमारी आँखों से निरंतर आँसुओं की वर्षा होती है। हम पर तो सदा ही पावस, बरसात छाई रहती है, जब से कृष्ण गोकुल को छोड़कर गए हैं। हमारी आँखों में काजल नहीं ठहरता है तथा आँसुओं के साथ बहे काजल से हमारे गाल और छाती काली हो गई है।) इस पद्यांश में रस की दृष्टि से विश्लेषण निम्नलिखित प्रकार से हैं –

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 4

वियोग श्रृंगार के तीन भेद हैं –
(क) पूर्वराग – जब नायक अथवा नायिका वास्तविक रूप में एक-दूसरे से मिलने से पूर्व ही चित्र-दर्शन, गुण कथन अथवा सौंदर्य श्रवण आदि से एक-दूसरे को प्यार करने लगें, तब उस समय के विरह को पूर्वराग का विरह कहेंगे।
(ख) मान – नायक अथवा नायिका रूठकर एक-दूसरे से अलग हो जाएँ तथा अपने अहम के कारण नायक ऊपर से रूठने का नाटक करे तो यह ‘मान’ विरह की स्थिति है।
(ग) प्रवास – मिलने के पश्चात नायक अथवा नायिका का विदेश यात्रा के लिए तैयार होना प्रवास की स्थिति है। वियोग श्रृंगार में वियोगी की दस दशाएँ अभिलाषा, चिंता, स्मृति, गुण कथन, उद्वेग, प्रलाप, उन्माद, व्याधि, जड़ता और मरण स्वीकार की जाती हैं।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

उदाहरण 2.
मधुवन तुम कत रहत हरे।
विरह-वियोग स्थान सुंदर के ठाढ़े क्यों न जरे?
(अरे, मधुवन ! तुम हरे-भरे क्यों हो? तुम श्रीकृष्ण के वियोग में खड़े-खड़े जल क्यों नहीं गए।)
स्थायी भाव-रति।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 5

उदाहरण 3.
कहा लडैते दृग करे, पटे लाल बेहाल।
कहुं मुरली, कहुं पीत पट, कहुं मुकुट वनमाल॥
(राधा के वियोग में श्रीकृष्ण की बाँसुरी कहीं, पीले वस्त्र कहीं और मुकुट कहीं पड़ा है। वे स्वयं निश्चेष्ट दिखाई दे रहे हैं।)

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 6

उदाहरण 4.

खड़ी खड़ी अनमनी तोड़ती हुई कुसुम-पंखुड़ियाँ,
किसी ध्यान में पड़ी गवाँ देती घड़ियाँ की घड़ियाँ।
दृग से झरते हुए अश्रु का ज्ञान नहीं होता है,
आया-गया कौन, इसका कुछ ध्यान नहीं होता है।

(देवलोक की अप्सरा उर्वशी पुरुरवा के प्रेम में डूबी अनमनी-सी खड़ी फूलों की पत्तियाँ तोड़ती रहती है, उसी के ध्यान में घंटों व्यतीत कर देती है, आँखों से बहते आँसुओं का उसे पता ही नहीं लगता, उसके पास कौन आया और कौन गया इससे अनजान रहती है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 7

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

2. हास्य रस

किसी व्यक्ति या पदार्थ को साधारण से भिन्न अथवा विकृत आकृति में देखकर, विचित्र-रूप में देखकर, विभिन्न प्रकार की चेष्टाएँ देखकर जब पाठक, श्रोता या दर्शक के मन में हास्य विनोद का भाव जागता है, तो उसे हास या हास्य कहते हैं।

उदाहरण –
एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहाँ अपर है?
उसने कहा अपर कैसा? वह उड़ गया सपर है।
उत्तेजित हो पूछा उसने, उड़ा? अरे वह कैसे?
‘फड़’ से उड़ा दूसरा बोली, उड़ा देखिए ऐसे।

उपर्युक्त पद्यांश में नूरजहाँ और जहाँगीर में वार्तालाप हो रहा है। रस के आधार पर विश्लेषण आगे दिया गया है –

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 8

उदाहरण 2.

बाबू बनने का यार फार्मूला सुनो।
कीजिए इकन्नी खर्च मूंछ की मुँडाई में।
लीजिए सैकेंड हैंड सूट डेढ़ रुपये में,
देसी रिस्ट वाच चार पैसे की कलाई में॥
गूदड़ी बाज़ार का हो बूट भी अधेली वाला,
करो पूरे खर्च आने तीन नेकटाई में।
अठन्नी में हो कोट और चश्मा दुअन्नी में,
‘मुरली’ बनो न बाबू मुद्रिका अढ़ाई में॥

(बाबू बनने के लिए इकन्नी में अपनी मूंछे मुंडवाओ, डेढ़ रुपये में पुराना सूट लो, चार पैसे वाली नकली घड़ी कलाई पर बाँधो, गूदड़ी बाजार से अधेले का पुराना बूट खरीदो, तीन आने में नेकटाई खरीदो, अठन्नी में कोट और दुअन्नी में चश्मा लो। अढ़ाई रुपये खर्च करके बाबू बन जाओ।)

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 9

उदाहरण 3.
चना बनावे घासी राम। जिनकी झोली में दुकान।
चना चुरमुर चुरमुर बोलै। बाबू खाने को मुख खोले।
xxxxxxx
चना खाते सब बंगाली। जिनकी धोती ढीली ढाली।
चना जोर गर्म।
(चौपट राजा की अँधेर नगरी में घासी राम चने वाला अपने समय का वर्णन व्यंग्यात्मक ढंग से करता है।)

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 10

3. करुण रस

किसी प्रिय पात्र के लंबे वियोग की पीड़ा या उसके न रहने पर होने वाले क्लेश को शोक कहते हैं और इसमें करुण रस का परिपाक होता है। करुण रस में शोक स्थायी भाव रहता है, आश्रय शोक संतप्त व्यक्ति होता है, आलंबन विभाव नष्ट प्रिय वस्तु या व्यक्ति रहता है तथा उद्दीपन विभाव से प्रिय का दाह, विलाप, रात्रि, एकांत, श्मशान तथा उस प्रिय की वस्तुएँ आदि रहती हैं। अनुभाव में रोना, पीटना, पछाड़ खाना, आहे भरना आदि आता है। संचारी भावों में विकलता, मोह, ग्लानि, व्याधि, स्मृति, जड़ता आदि प्रयोग होते हैं। करुण में प्रिय के मिलने की आशा नहीं रहती।

उदाहरण 1.

हाय पुत्र हा ! रोहिताश्व ! कहि रोवन लागे,
विविध गुणवान महामर्म वेधी जिय जागे।
हाय ! भयो हो कहा हमें यह जात न जान्यो,
जो पत्नी और पुत्रादिक लौं नाहिं पिछान्यौ॥

रस की दृष्टि से उपर्युक्त पद्य का विश्लेषण आगे दिया गया है –

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 11

संचारी भाव – हरिश्चंद्र की चिंता, जड़ता तथा शंका व्यक्त करना है।

यहाँ पर करुण रस का आश्रय हरिश्चंद्र है क्योंकि उसके मन का करुण भाव, विभावादि से जागृत होकर अनुभावादि से व्यक्त होता हुआ रस में बदल रहा है। करुण रस किसी प्रिय की मृत्यु पर होता है, विरह या विप्रलंभ श्रृंगार केवल बिछुड़ने पर होता है। करुण में प्रिय से मिलने की आशा शेष नहीं रहती, विप्रलंभ या वियोग श्रृंगार में यह आशा बनी रहती है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

उदाहरण 2.
मेरे हृदय के हर्ष हा ! अभिमन्यु अब तू है कहाँ।
दृग खोलकर बेटा तनिक तो देख हम सबको यहाँ।
माना खड़े हैं पास तेरे, तू यहीं पर है पड़ा।
निज गुरुजनों के मान का तो, ध्यान था तुझको बड़ा॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 12

उदाहरण 3.

फिर पीटकर सिर और छाती अश्रु बरसाती हुई।
कुररी सदृश सकरुण गिरा से दैन्य दरसाती हुई।
बहु विधि विलाप-प्रलाप वह करने लगी उस शोक में।
निजप्रिय वियोग समान दुःख होता न कोई लोक में।
स्थायी भाव – शोक।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 13

4. रौद्र रस

किसी शत्रु, विपक्षी, अहितकारी, बुरा चाहने वाले, अथवा उदंड लोगों की चेष्टाओं और कार्यों को देखकर अपने अपमान, अहित, निंदा, अवहेलना अथवा अपकार का जो भाव मन में जागता है, वही पुष्ट होकर रौद्र रस का रूप धारण कर लेता है। पाठक को रौद्र रस का अनभव किसी अन्यायी, अत्याचारी तथा दष्ट व्यक्ति को कहे जाने वाले वचनों अथवा उसके विरुदध की गई चेष्टाओं से होता है।

रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध है। आश्रय क्रोधी व्यक्ति होता है; आलंबन विभाव के रूप में शत्रु, देशद्रोही, कपटी, दुराचारी व्यक्ति होते हैं; उद्दीपन विभाव के रूप में उनके किए गए अपराध, अपशब्द, कुचेष्टाएँ तथा अपकार लिए जाते हैं। अनुभावों में हथियार दिखाना, आँखों का लाल होना, क्रूरता से देखना, गर्जना, ललकारना आदि क्रियाएँ आती हैं। संचारी भावों में मोह, मद, उग्रता, स्मृति, गर्व आदि आते हैं।

रौद्र रस में आश्रय के शरीर में विकार आते हैं; जैसे-आँखों तथा मुँह का लाल होना, क्रोध से काँपना आदि। वीर रस में आश्रय उत्साह से भरकर कार्य करता है। उसमें किसी प्रकार का विकार नहीं आता। उदाहरण 1. ‘माखे लखन कुटिल भई भौहें, रद पट फरकत नयन रिसौहे।’ (क्रुद्ध लक्ष्मण की भौंहों में बल बढ़ गए हैं। उनके ओंठ फड़क रहे हैं, आँखें लाल हो गई हैं।)

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 14

उदाहरण 2.

रे नृप बालक काल बस बोलत तोहि न संभार।
धनही सम तिपुरारि धनु बिदित सकल संसार॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 15

उदाहरण 3.
श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्षोभ से जलने लगे,
सब शील अपना भूलकर कर तल युगल मलने लगे।
संसार देखे अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े,
करते हुए यह घोषणा वे हो गए उठकर खड़े।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 16

5. वीर रस

शत्रु के घमंड को तोड़ने, दीनों की बुरी दशा तथा धर्म की दुर्गति को मिटाने अथवा किसी कठिन कार्य को करने का निश्चय करते हुए जो तीव्र भाव हृदय में पैदा होता है, वह उत्साह है। यह उत्साह ही विभावों द्वारा जागृत, अनुभावों द्वारा व्यक्त तथा संचारियों द्वारा पुष्ट होकर रस बनता है। वीर रस का स्थायी भाव उत्साह है। शत्रु, दीन, याचक अथवा खलनायक आलंबन बनते हैं। सेना, दुश्मन की ललकार, युद्ध के बाजे अथवा वीर गीत उद्दीपन बनते हैं। आँखों में खून उतरना, शस्त्र सँभालना, गर्जन करना, ताल ठोंकना आदि अनुभाव हैं। स्मृति, ईर्ष्या, हर्ष, गर्व तथा रोमांच आदि संचारी भाव हैं।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

वीर रस के भेद –
जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उत्साह दिखाया जाता है। विभिन्न क्षेत्रों के आधार पर वीरों की विभिन्न कोटियाँ हैं। वीर रस की भी उनके अनुसार चार कोटियाँ बन गई हैं – (1) युद्धवीर (2) दानवीर (3) धर्मवीर (4) दयावीर। कुछ विद्वानों ने कर्मवीर नामक एक अन्य श्रेणी का भी उल्लेख किया है।

उदाहरण 1.
सौमित्र के घननाद का रव अल्प भी न सहा गया।
निज शत्रु को देखे बिना उनसे तनिक न रहा गया।
रघुवीर का आदेश ले युद्धार्थ वे सजने लगे।
रणवाद्य भी निघोष करके धूम से बजने लगे।
सानंद लड़ने के लिए तैयार जल्दी हो गए।
उठने लगे उन के हृदय में भाव नए-नए॥

रस की दृष्टि से विश्लेषण निम्नलिखित प्रकार से होगा –

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 17

उदाहरण 2.
उस काल, जिस ओर वह संग्राम करने को गया।
भागते हुए अरि वृंद से मैदान खाली हो गया।
रथ-पथ कहीं भी रुद्ध उसका दृष्टि में आया नहीं।
सन्मुख हुआ जो वीर वह मारा गया तत्क्षण वहीं॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 18

उदाहरण 3.

मुझ कर्ण का कर्तव्य दृढ़ है माँगने आए जिसे,
निज हाथ से झट काट अपना शीश भी देना उसे।
बस क्या हुआ फिर अधिक, घर पर आ गया अतिथि विसे,
हूँ दे रहा, कुंडल तथा तन-प्राण ही अपने इसे।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 19

6. भयानक रस

किसी डरावनी वस्तु या व्यक्ति को देखने से, किसी अपराध का दंड मिलने के भय से मन में जो व्याकुलता उत्पन्न होती है, वही भय है। भय का भाव जब विभावादि द्वारा जागृत होकर, अनुभावों द्वारा व्यक्त होकर तथा संचारियों द्वारा पुष्ट होकर सामने आता है तो वह भयानक रस में बदल जाता है। भयानक रस का स्थायी भाव भय है। इसका आश्रय भयभीत व्यक्ति है। इस रस के आलंबन भयानक दृश्य, भयानक घटनाएँ भयानक जीव, दुर्घटनाएँ अथवा बलवान शत्रु आदि होते हैं। अनुभावों में कंप, स्वेद, रोमांच, स्वरभंग एवं मूर्छा आदि को लिया जा सकता है। संचारी भावों में चिंता, स्मृति, ग्लानि, आवेग, त्रास तथा दैन्य आते हैं।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

उदाहरण 1.

एक ओर अजगरहि लखि एक ओर मृग राय।
विकल बटोही बीच ही पर्यो मूरछा खाय॥

रस की दृष्टि से उपर्युक्त पंक्तियों का विश्लेषण निम्नलिखित ढंग से किया जा सकता है –

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 20

उदाहरण 2

कर्तव्य अपना इस समय होता न मुझको ज्ञात है,
कुरुराज, चिंताग्रस्त मेरा जल रहा सब गात है।
अतएव मुझ को अभय देकर आप रक्षित कीजिए।
या पार्थ-प्रण करने विफल अन्यत्र जाने दीजिए।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

उदाहरण 2.

सिर पर बैठो काग, आंखि दोऊ खात निकारत।
खींचत जीभहिं स्यार, अतिहि आनंद उर धारत॥
गिद्ध जांघ कहँ खोदि खोदि के मांस उचारत।
स्वान आँगुरिन काटि-काटि के खात विदारत॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 21

उदाहरण 3.

कहूँ घूम उठत बरति कतहुं है चिता,
कहूँ होत शोर कहूं अरथी धरी है।
कहूं हाड़ परौ कहूं जरो अध जरो बाँस,
कहूं गीध-भीर मांस नोचत अरी अहै॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 22

8. अद्भुत रस

किसी आश्चर्यजनक, असाधारण अथवा अलौकिक वस्तु को देखकर हृदय में आश्चर्य का भाव घर कर लेता है। ऐसी अवस्था का जब वर्णन किया जाता है तो अद्भुत रस प्रकट होता है। यह रस चमत्कार से पैदा होता है। किसी विलक्षण वस्तु को देखने से जागृत विस्मय का भाव जब अनुभावों से व्यक्त एवं संचारियों से पुष्ट होकर सामने आता है, तो उसे अद्भुत रस कहते हैं।

इस रस का स्थायी भाव विस्मय है, विस्मित व्यक्ति इसका आश्रय है। अद्भुत वस्तु, विचित्र दृश्य, विलक्षण अनुभव अथवा अलौकिक घटना आदि आलंबन बनते हैं। मुँह खुला रह जाना, दाँतों तले अंगुली दबाना, आँखें फाड़कर देखते रह जाना, स्वरभंग, स्वेद एवं स्तंभ आदि अनुभाव होते हैं। वितर्क, हर्ष, आवेग एवं भ्रांति आदि संचारी भाव हैं।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

उदाहरण 1.

अखिल भुवन चर-अचर सब, हरिमुख में लखि मातु।
चकित भई गद्-गद् वचन, विकसत दृग, पुलकातु॥

(प्रसंग उस समय का है जबकि माता यशोदा कृष्ण को मुँह खोलने के लिए कहती हैं। उन्हें संदेह है कि कृष्ण के मुँह में मिट्टी है और वह मिट्टी खा रहा था। कृष्ण ने ज्यों ही मुँह खोला तो माता यशोदा को उसमें सारा ब्रह्मांड दिखाई दिया। माता के आश्चर्य का ठिकाना न रहा।) रस की दृष्टि से उपर्युक्त पद का विश्लेषण निम्नलिखित प्रकार से है –

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 23

इस पद्य में आश्चर्य का भाव पुष्ट होकर अद्भुत रस में बदल गया है।

उदाहरण 2.

लीन्हों उखारि पहार विसाल
चल्यो तेहि काल विलंब न लायौ।
मारुत नंदन मारुत को मन को
खगराज को वेग लजायो॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 24

उदाहरण 3.

गोपों से अपमान जान अपना क्रोधांध होके तभी,
की वर्षा व्रज इंद्र ने सलिल से चाहा, डुबाना सभी।
यों ऐसा गिरिराज आज कर से ऊँचा उठा के अहो।
जाना था किसने कि गोपाशिशु ये रक्षा करेगा कहो।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 25

9. शांत रस

सांसारिक वस्तुओं से विरक्ति, हृदय में तत्व ज्ञान आदि से जो वैराग्य भाव उत्पन्न होता है, उससे चित्त को शांति मिलती है। उस शांति का वर्णन पढ़-सुनकर पाठक के हृदय में ‘शांत रस’ की उद्भावना होती है। शांत रस का स्थायी भाव ‘निर्वेद’ या ‘शम’ है। निर्वेद का अर्थ है-वेदना रहित होना। शम का अर्थ शांत हो जाना है। इस रस का आलंबन प्रिय वस्तु का विनाश, आशा के विरुद्ध वस्तु की प्राप्ति, संसार की नश्वरता, प्रभु चिंतन आदि हैं। यहाँ सत्संग, कथा-श्रवण, तीर्थ-स्नान आदि उद्दीपन होते हैं। अश्रु, रोमांच एवं पुलक आदि अनुभाव बनते हैं तथा धृति, हर्ष, स्मरण और निर्वेद आदि संचारी भाव बनते हैं।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

उदाहरण 1.

तुम तजि और कौन पै जाऊँ
काके द्वार जाय सिर नाऊँ, पर हाथ कहाँ बिकाऊँ॥
ऐसो को दाता है समरथ, जाके दिये अघाऊँ।
अंतकाल तुमरो सुमिरन गति अनत कहूँ नहिं जाऊँ॥

रस की दृष्टि से विश्लेषण निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है –

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 26

उदाहरण 2.
गुरु गोविंद तो एक है, दूजा यह आकार।
आपा मेटि जीवित मरै, तो पावै करतार॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 27

उदाहरण 3.
भारतमाता का मंदिर यह, समता का संवाद यहाँ।
सबका शिव कल्याण यहाँ, पावे सभी प्रसाद यहाँ॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 28

दो नये रस

प्राचीन ग्रंथों में नौ रसों को ही मान्यता दी जाती थी पर हिंदी-साहित्य के भक्तिकाल में भक्ति रस और वात्सल्य रस को इनमें सम्मिलित कर रसों की संख्या ग्यारह तक बढ़ा दी गई थी।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

10. भक्ति रस

ईश्वर के गुणों के प्रति श्रद्धाभाव से भरकर जब कोई भक्त प्रेम में लीन हो जाता है, तो उसे आनंद देने वाले भक्ति रस का अनुभव होता है। भक्ति राग प्रधान है जबकि ज्ञान विराग प्रधान है। शांत रस में वैराग्य भाव रहता है, भक्ति रस में रागात्मक प्रेम, पूर्ण संबंध रहता है। इसलिए – विद्वानों ने शांत रस से पृथक भक्ति रस को माना। भक्ति का स्थायी भाव देवताओं आदि के प्रति रति है। भक्त के हृदय में रस की उत्पत्ति होने योग्य कोमल तन्मयता का भाव रहता है। भक्ति रस में आश्रय भक्त हृदय होता है। आलंबन प्रभु होता है, उद्दीपन प्रभु का गुण, रूप एवं कार्य होते हैं, भक्त की विह्वलता, आसक्ति आदि से उत्पन्न आँसू अनुभाव होते हैं। हर्ष, औत्सुक्य, चपलता, दैन्य तथा स्मरण आदि संचारी भाव होते हैं। तुलसी, सूर, मीरा आदि की रचनाओं में भक्ति रस को देखा जा सकता है।

उदाहरण 1.
माधव अब न द्रवहु केहि लेखे।
प्रनतपाल पन तोर मोर पन, जिअहुँ कमलपद देखे॥
जब लगि मैं न दीन, दयालु तैं, मैं न दास, तें स्वामी।
तब लगि जो दुख सहेउँ कहेउँ नहिं, जद्यपि अंतरजामी।
तू उदार, मैं कृपन, पतित मैं, तैं पुनीत श्रुति गावै।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 29

उदाहरण 2.
अँखड़ियाँ, झाई पड़ी, पंथ निहारि-निहारि।
जीभड़िया छाला पड़ा, राम पुकारि-पुकारि॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 30

उदाहरण 3.
म्हारो परनाम बाँके बिहारी जी।
मोर मुकुट माथाँ तिलक बिराज्याँ, कुँडल, अलकाँ कारी जी,
अधर मधुर घर वंशी बजावाँ, रीझ रिझावाँ ब्रजनारी जी।
या छब देख्याँ मोहयाँ मीराँ मोहण गिरधारी जी॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 31

11. वात्सल्य रस

जब बड़ों के हृदय में बच्चों के प्रति स्नेह भाव, विभावादि से पुष्ट होकर अभिव्यक्त होता है तब वहाँ पर वात्सल्य रस होता है। वात्सल्य रस का स्थायी भाव अपत्य स्नेह अथवा संतान स्नेह है, आलंबन बच्चा होता है। उद्दीपन बच्चों की चेष्टाएँ होती हैं। अनुभाव हँसना, पुलकित होना, चूमना आदि आश्रय की चेष्टाएँ होती हैं। हर्ष, आवेग, मोह, चिंता, विषाद, गर्व, उन्माद आदि संचारी भाव हैं।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

उदाहरण 1.

किलक अरे, मैं नेक निहारूँ,
इन दाँतों पर मोती वारूँ।
पानी भर आया फूलों के मुँह में आज सवेरे,
हाँ गोपा का दूध जमा है, राहुल! मुख में तेरे।
लटपट चरण, चाल अटपट सी मन भाई है मेरे,
तू मेरी अंगुली धर अथवा मैं तेरा कर धारूँ
इन दाँतों पर मोती वारूँ।

(माता यशोधरा अपने नन्हे राहुल के नए निकले दाँतों की शोभा को देखकर आनंदित होकर कहती है, अरे राहुल! एक बार फिर से तू किलकारी मार, मैं तुम्हारे दूधिया दाँत देखना चाहती हूँ। वह कल्पना करती है कि राहुल के दाँत फूलों पर अटकी चमकीली ओस की बूंदें हैं अथवा माँ का दूध ही जमकर राहुल के श्वेत दाँतों में बदल गया है। बालक राहुल ने अभी-अभी डगमगाते कदमों से चलना सीखा है। इसलिए माँ उसकी बाँह पकड़कर उसे चलाना चाहती है।)

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

रस की दृष्टि से व्याख्या –

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 32

उदाहरण 2.

मैया मैं नहिं माखन खायो।
भोर भये गैयन के पाछे मधुबन मोहि पठायो।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 33

उदाहरण 3.
सुभग सेज सोभित कौसिल्या रुचिर राम-सिसु गोद लियो।
बार-बार विधु-वदन विलोकति लोचन चारु चकोर किये।
कबहुँ पौढ़ि पय-पान करावति, कबहुंक राखाति लाइ हिये।
बाल केलि गावति हलरावति, फुलकति प्रेम-पियूष जिये।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 34

रस : एक दृष्टि में

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 35

पाठ्यपुस्तक पर अधारित कबिताओं में वर्णित रसों का विश्लेषण –

शांत रस –

रस की दृष्टि से पद्य की पंक्तियों का विश्लेषण निम्न प्रकार से किया जा सकता है –

1. कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 36

2. माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 37

3. तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला
प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ
आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ
तभी मुख्य गायक को ढाढ़स बँधाता
कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर
कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ
यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है
और यह कि फिर से गाया जा सकता है
गाया जा चुका राग

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 38

4. एक के नहीं,
दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू :
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा :
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म :
फ़सल क्या है ?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण-धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा का थिरकन का!

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 39

वीर रस

रस की दृष्टि से विश्लेषण –

1. लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना॥
का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू॥
बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा॥
बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही॥
सहसबाहु भुज छे दनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 40

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

2. बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी॥
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू॥
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी॥
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।
बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें॥
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा॥
जो बिलोकि अनुचित कहेडँ छमहु महामुनि धीर।
सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 41

3. कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु॥
भानुबंस राके स कलंकू। निपट निरंकु सु अबुधु असंकू ॥
कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं॥
तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा॥
लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा॥
अपने मुह तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी॥
नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू॥
बीरबती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 42

4. कहेउ लखन मुनि सील तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा॥
माता पितहि उरिन भये नीकें। गुररिनु रहा सोचु बड़ जी कें॥
सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढ़ा॥
अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली खोली॥
सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय-हाय सब सभा पुकारा॥
भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र बिचारि बचौं नृपद्रोही॥
मिले न कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े॥
अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 43

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

वात्सल्य रस

रस की दृष्टि से व्याख्या –

1. डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावै, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै॥
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 44

2. तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात….
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लगे पड़े शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल ?
तुम मुझे पाए नहीं पहचान ?
देखते ही रहोगे अनिमेष!
थक गए हो ?
आँख लूँ मैं फेर ?
क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार?

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 45

3. यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क
उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होतीं जबकि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान!

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 46

शंगार टस 

मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोरा सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुती गुहारि जितहिं, उत तैं धार बही।
‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 47

2. हमारै हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी।
यह तौ ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी॥

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 47

3. फटिक सिलानि सौं सुधार्यो सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’
दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद॥

रस की दृष्टि से उपर्युक्त पद्य का विश्लेषण निम्नलिखित प्रकार से है –

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 49

करुण रस 

मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास,
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।

रस की दृष्टि से उपर्युक्त पद्य का विश्लेषण निम्न प्रकार से है –

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस 50

अभ्यास के लिए प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त रसों के नाम बताइए –
(i) ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।
अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
(ii) सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी।
यह तौ ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी॥
(iii) हमारै हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
(iv) मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर ।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर ॥
(v) जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर।
सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर ॥
(vi) आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।
(vii) फटिक सिलानि सौं सुधार्यो सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
(viii) जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
सुनत जोग लागत हे ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी॥
(ix) तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।
(x) धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात ……….
छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात ॥
(xi) भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण-धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का।
(xii) यश है न वैभव, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
(xiii) इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
(xiv) तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान
(xv) कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण
(xvi) वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
(xvii) सुर महिसुर हरिजन अरूरू गाई।
हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।
(xviii) हमारे हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम वचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
(xix) सुनि कटु बचन कुठार सुधारा,
हाय-हाय सब सभा पुकारा।
(xx) तार सप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला
प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ
उत्तर :
(i) वियोग शृंगार रस
(ii) वियोग शृंगार रस
(iii) वियोग शृंगार रस
(iv) भयानक रस
(v) वीर रस
(vi) शृंगार रस
(vii) श्रृंगार रस
(viii) वियोग श्रृंगार रस
(ix) करुण रस
(x) वात्सल्य रस
(xi) शांत रस
(xii) करुण रस
(xiii) करुण रस
(xiv) वात्सल्य रस
(xv) वियोग श्रृंगार रस
(xvi) शांत रस
(xvii) वीर रस
(xviii) भक्ति रस
(xix) भयानक रस
(xx) शांत रस

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त रसों के नाम बताइए –
(i) “डोलि-डोलि कुंडल उठत देई बार-बार,
एरी! वह मुकुट हिये मैं हालि-हालि उठै॥”
(ii) “बारी टारि डारौ कुम्भकर्णहिं बिदारि डारौं,
मारि मेघनादै आजु यौं बल अनन्त हौं।”
(iii) “केशव, कहि न जाइ का कहिये।
देखत तब रचना विचित्र अति समुझि मनहिं मन रहिये॥”
(iv) “हँसि-हँसि भाजे देखि दूलह दिगम्बर को,
पाहुनी जै आवै हिमाचल कै, उछाह में।” “दीठ पर्यो जोतें तोते, नाहिंन टरति छवि,
आँखिन छयो री, छिन-छिन छालि-छालि उठे।”
(vi) सून्य भीति पर चित्र, रंग नहि, तनु बिन लिखा चितेरे।
धोये मिटै न मरै भीति, द:ख : पाइय इहि तन हेरे।।
(vii) मगन भयेई हँसे मगन महेस ठाढ़े,
और हँसे एक हँसि हँसी के उमाह में।
(viii) यज्ञ समाप्त हो चुका, तो भी धधक रही थी ज्वाला
दारुण-दृश्य! रुधिर के छोटे-अस्थि खंड की माला।
(ix) बाजि-बाजि उठत मिठौंहैं सुर बसी भोर,
ठौर-ठौर ढीली गरबीली चालि-चालि उठे।
(x) कहै ‘पद्माकर’ त्रिकूट ही को ढाय डारौं,
डरत करेई जातुधानन को अंत हौं॥
(xi) रविकर नीर बसै अति दारुन मकर रूप तेहि माहीं।
बदन हीन सो ग्रसै चराचर पान करन जे जाहीं॥
(xii) कहै ‘पद्माकर’ सु काहू सौं कहै को कहा,
जोई जहाँ देखै सो हँसेई तहाँ राह में॥
(xiii) वेदों की निर्मम प्रसन्नता पशु की कातर वाणी;
मिलकर वातावरण बना था कोई कुत्सित प्राणी।
(xiv) सीस पर गंगा हँसे भुजनि भुजंग हँसै,
हास ही को दंगा भयौ नंगा के विवाह में।
(xv) कोउ कह सत्य, झूठ कह कोऊ, जुगल प्रबल कोउ माने।
‘तुलसीदास’ परिहरै तीन भ्रम सो आतम पहचान।
(xvi) अच्छहिं निरच्छ कपि ऋच्छहिं उचारौ इनि,
तोत्र तुच्छ तुच्छन को कछुवै न गंत हौं।
(xvii) कहरि-कहरि उठै पीरै पटुका को छोर,
साँवरे की तिरछी चितौनि सालि-सालि उठे।
(xviii) जा दिन मन-पंछी उड़ि-जैहै।
ता दिन तेरे तन तरुवर के सबै पात झरि जैहैं।
(xix) सेवक सेव्य भाव बिनु भव न तरिय उरगारि।
(xx) अनुचर अनाथ से रोते थे। जो थे अधीर सब होते थे।
(xxi) जसोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावै दुलराइ, मल्हावै जोइ सोइ कछु गावै॥
(xxii) अति भीषण हाहाकार हुआ, सूना सब संसार हुआ।
(xxiii) ज्यों-त्यों ‘तुलसी’ कृपालु चरण शरण पावै।
(xxiv) कबहुँ पलक हरि नूदि लेत हैं, कबहुँ उधर फरकावै
(xxv) तू दयालु दीन हौँ तू दानि हौं भिखारी।
उत्तर :
(i) वियोग श्रृंगार रस
(ii) रौद्र रस
(iii) अद्भुत रस
(iv) हास्य रस
(v) वियोग श्रृंगार रस
(vi) अद्भुत रस
(vii) हास्य रस
(viii) वीभत्स रस
(ix) वियोग श्रृंगार रस
(x) रौद्र रस
(xi) अद्भुत रस
(xii) हास्य रस
(xiii) वीभत्स रस
(xiv) हास्य रस
(xv) अद्भुत रस
(xvi) रौद्र रस
(xvii) वियोग श्रृंगार रस
(xviii) शांत रस
(xix) भक्ति रस
(xx) करुण रस
(xxi) वात्सल्य रस
(xxii) करुण रस
(xxiii) भक्ति रस
(xxiv) वात्सल्य रस
(xxv) भक्ति रस

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

पाठ पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर – 

1. निर्देशानुसार उचित विकल्प चुनकर लिखिए –
(क) पंक्ति में प्रयुक्त रस है –
कहत, नटत, रीझत, खिझत,
मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौंन में करत हैं,
नैननु ही सौं बात।
(i) वीर रस
(ii) श्रृंगार रस
(iii) शांत रस
(iv) करुण रस
उत्तर :
(ii) श्रृंगार रस

(ख) पंक्ति में प्रयुक्त रस है –
एक ओर अजगरहि लखि, एक ओर मृगराय। विकल बटोही बीच ही, पर्यो मूरछा खाय।।
(i) भयानक रस
(ii) करुण रस
(iii) हास्य रस
(iv) वात्सल्य रस
उत्तर :
(i) भयानक रस

(ग) पंक्ति में प्रयुक्त रस है –
एक मित्र बोले, “लाला तुम किस चक्की का खाते हो? इतने महँगे राशन में भी, तुम तोंद बढ़ाए जाते हो।”
(i) शृंगार रस
(ii) हास्य रस
(iii) करुण रस
(iv) रौद्र रस
उत्तर :
(ii) हास्य रस

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

(घ) करुण रस का स्थायी भाव क्या है?
(i) भय
(ii) शोक
(iii) क्रोध
(iv) उत्साह
उत्तर :
(ii) शोक

(ङ) पंक्तियों में कौन-सा स्थायी भाव है?
संकटों से वीर घबराते नहीं,
आपदाएँ देख छिप जाते नहीं।
लग गए जिस काम में, पूरा किया
काम करके व्यर्थ पछताते नहीं।
(i) रति
(ii) भय
(iii) क्रोध
(iv) उत्साह
उत्तर :
(iv) उत्साह

(च) पंक्तियों में प्रयुक्त रस है –
एक पल, मेरी प्रिया के दृग-पलक,
थे उठे-ऊपर, सहज नीचे गिरे।
चपलता ने इस विकंपित पुलक से,
दृढ़ किया मानो प्रणय-संबंध था।
(i) हास्य रस
(ii) वीर रस
(iii) शांत रस
(iv) शृंगार रस
उत्तर :
(iv) शृंगार रस

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

(छ) काव्यांश में कौन-सा स्थायी भाव है?
जसोदा हरि पालने झुलावै। हलरावै, दुलरावै, मल्हावै, जोई-सोई कछु गावै।
(i) उत्साह
(ii) क्रोध
(iii) हास
(iv) वात्सल्य
उत्तर :
(iv) वात्सल्य

(ज) काव्यांश में प्रयुक्त रस है –
साक्षी रहे संसार करता हूँ प्रतिज्ञा पार्थ मैं, पूरा करूँगा कार्य सब कथनानुसार यथार्थ मैं। जो एक बालक को कपट से मार हँसते हैं अभी, वे शत्रु सत्वर शोक-सागर-मग्न दीखेंगे सभी।
(i) रौद्र रस
(ii) करुण रस
(iii) शृंगार रस
(iv) वात्सल्य रस
उत्तर :
(i) रौद्र रस

(झ) काव्यांश में प्रयुक्त रस है –
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए,
बाएँ से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया दृष्टि पाने की ओर बढ़ाए।
(i) हास्य रस
(ii) करुण रस
(iii) वीभत्स रस
(iv) रौद्र रस
उत्तर :
(ii) करुण रस

(ञ) काव्यांश में स्थायी भाव है –
मेरे लाल को आउ निंदरिया, काहै न आनि सुवावै।
तू काहै नहिं बेगहिं आवै, तोको कान्ह बुलावै।
(i) विस्मय
(ii) शोक
(iii) रति
(iv) वत्सल
उत्तर :
(iv) वत्सल

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(i) रति’ किस रस का स्थायी भाव है?
(ii) ‘करुण’ रस का स्थायी भाव क्या है?
(iii) ‘हास्य’ रस का एक उदाहरण लिखिए।
(iv) निम्नलिखित पंक्तियों में रस पहचान कर लिखिए:
मैं सत्य कहता हूँ सखे! सुकुमार मत जानो मुझे,
यमराज से भी युद्ध को प्रस्तुत सदा मानो मुझे।
उत्तर :
(i) शृंगार
(ii) शोक
(iii) चना बनावे घासी राम। जिनकी झोली में दुकान।
(iv) वीर रस चना चुरमुर-चुरमुर बोलै। बाबू खाने को मुँह खोले।

2. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) ‘हास्य रस’ का एक उदाहरण लिखिए।
(ख) निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में रस पहचानकर लिखिए
रे नृप बालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।
धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।
(ग) ‘वीर’ रस का स्थायी भाव क्या है?
(घ) ‘रति’ किस रस का स्थायी भाव है?
उत्तर :
(क) चना बनावे घासी राम। जिनकी झोली में दुकान।
चना चुरमुर चुरमुर बोलै। बाबू खाने को मुख खोले।
(ख) रौद्र रस।
(ग) उत्साह।
(घ) श्रृंगार रस।

3. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) ‘करुण रस’ का एक उदाहरण लिखिए।
(ख) निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में निहित रस पहचान कर लिखिए –
तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रताप,
साज मिले पंद्रह मिनट, घंटा भर आलाप।
घंटा भर आलाप, राग में मारा गोता,
धीर-धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता।
(ग) “उत्साह’ किस रस का स्थायी भाव है?
(घ) ‘वात्सल्य’ रस का स्थायी भाव क्या है?
(ङ) ‘शृंगार’ रस के कौन-से दो भेद हैं?
उत्तर :
(क) चना बनावे घासी राम। जिनकी झोली में दुकान।
चना चुरमुर चुरमुर बोलै। बाबू खाने को मुख खोले।
(ख) हास्य रस।
(ग) वीर रस।
(घ) वात्सल्य / वत्सल रस
(ङ) संयोग शृंगार, वियोग शृंगार।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

4. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) स्थायी भाव से आप क्या समझते हैं?
(ख) हास्य रस का एक उदाहरण लिखिए।
(ग) वत्सल रस का स्थायी भाव क्या है?
(घ) निम्नलिखित पंक्तियों में से रस पहचानकर लिखिए –
जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
(ङ) क्रोध किस रस का स्थायी भाव है?
उत्तर :
(क) मन में स्थायी रूप से विद्यमान भावों को स्थायी भाव कहते हैं।
(ख) एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहाँ अपर है?
उसने कहा अपर कैसा? वह उड़ गया सपर है।
उत्तेजित हो पूछा उसने, उड़ा? अरे वह कैसे?
‘फड’ से उडा दसरा बोली, उडा देखिए ऐसे।
(ग) वात्सल्य
(घ) श्रृंगार रस
(ङ) रौद्र रस

5. निम्नलिखित पाँच में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
1. भय की अधिकता में किस रस की निष्पत्ति होती है?
(क) वीर रस
(ख) करुण रस
(ग) भयानक रस
(घ) रौद्र रस
उत्तर :
(घ) रौद्र रस

2. ‘निर्वेद’ किस रस का स्थायी भाव है?
(क) शांत रस
(ख) करुण रस
(ग) हास्य रस
(घ) शृंगार रस
उत्तर :
(क) शांत रस

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

3. “तनकर भाला यूँ बोल उठा
राणा मुझको विश्राम न दें।
मुझको वैरी से हृदय-क्षोभ
तू तनिक मुझे आराम न दे’।
उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में निहित रस है?
(क) वीर रस
(ख) शांत रस
(ग) करुण रस
(घ) रौद्र रस
उत्तर :
(क) वीर रस

4. किस रस को ‘रसराज’ भी कहा जाता है?
(क) शांत रस
(ख) करुण रस
(ग) हास्य रस
(घ) शृंगार रस
उत्तर :
(घ) शृंगार रस

5. ‘वीभत्स रस’ का स्थायी भाव है?
(क) उत्साह
(ख) शोक
(ग) जुगुप्सा
(घ) हास
उत्तर :
(ग) जुगुप्सा

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

6. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं चार के उत्तर लिखिए –

(क) निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों में रस पहचान कर लिखिए –
उस काल मारे क्रोध के, तनु काँपने उनका लगा।
मानो हवा के ज़ोर-से, सोता हुआ सागर जगा।
(ख) ‘वीर रस’ का एक उदाहरण लिखिए।
(ग) ‘शांत रस’ का स्थायी भाव क्या है?
(घ) उद्दीपन से आप क्या समझते हैं?
(ङ) स्थायी भाव से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
(क) वीर रस।
(ख) धरती की लाज रखने को धरती के वीर,
समर विजय हेतु कसर उठाएँ क्यों?
हमें ललकार, दुत्कार, फुफकार कर,
जीवित यहाँ से ये अरि दल जाएँ, जाएँ क्यों?
(ग) निर्वेद/उदासीनता।
(घ) स्थायी भावों को उद्दीप्त कर रस की अवस्था तक ले जाने वाले भाव उद्दीपन कहलाते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-एक पात्रों की चेष्टाओं के रूप में, दूसरे बाह्य वातावरण या प्रकृति रूप में।
(ङ) सहृदय मनुष्य के हृदय में जो भाव स्थायी (स्थिर) रूप से विद्यमान रहते हैं, उन्हें स्थायी भाव कहते हैं। प्रत्येक रस का एक स्थायी भाव होता है।
(ग) निर्वेद/उदासीनता

7. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं चार के उत्तर लिखिए –
(क) निम्नलिखित काव्य पक्तियों में रस पहचान कर लिखिए –
एक ओर अजगरसिंह लखि, एक ओर मश्गराय।
विकल बटोही बीच ही, पर्यो मूर्छा खाय।।
(ख) रौद्र रस का एक उदाहारण लिखिए।
(ग) करुण रस का स्थायी भाव क्या है?
उत्तर :
(क) भयानक रस
(ख) श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे।
सब शोक अपना भूलकर करतल-युगल मलने लगे।
(ग) शोक।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

8. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं चार के उत्तर लिखिए –
(क) निम्नलिखित काव्य पंक्तियों से रस पहचानकर लिखिए –
विरह का जलजात जीवन, वरिह का जलजात
वेदना जन्म वरुणा में मिला आवास
अश्रु चुनता दिवस इसका, अश्रु गिनती रात
(ख) वीभत्स रस का एक उदाहरण लिखिए।
(ग) हास्य रस का स्थायी भाव लिखिए।
उत्तर :
(क) श्रृंगार रस (वियोग)
(ख) सिर पै बैठ्यो काग, आँख दोऊ खात निकारत।
खींचत जीभहिं स्यार, अतिहि आनंद उर धारत।
(ग) हास स्थायी भाव

9. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
(क) ‘वीर रस’ का एक उदाहरण लिखिए।
(ख) घृणा के भाव उत्पन्न करने वाले काव्य में कौन-सा रस होगा?
(ग) ‘शृंगार रस’ के दो भेद कौन-से हैं?
(घ) निम्नलिखित काव्य-पक्तियों में रस पहचानकर रस का नाम लिखिए –
वह लता वहीं की, जहाँ कली
तू खिली, स्नेह से लिी, पली
अंत भी उसी गोद में ष्टारण
ली, मूंदै दृग वर महामरण!
(ङ) उद्दीपन किसे कहते हैं?
उत्तर :
(क) वीर रस का उदाहरण –
वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
हाथ में ध्वज रहे बाल दल सजा रहे,
ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो।
(ख) वीभत्स रस।
(ग) 1. संयोग शृंगार रस,
2. वियोग शृंगार रस
(घ) करुण रस।
(ङ) उद्दीपन – आश्रय के मन में उत्पन्न हुए स्थायी भाव को और तीव्र करने वाले विषय की बाहरी चेष्टाओं और बाहरी वातावरण को उद्दीपन कहते हैं।

10. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
(ख) निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों में रस पहचानकर रस का नाम लिखिए –
“यह मुरझाया हुआ फूल है, इसका हृदय दुखाना मत।
स्वयं बिखरने वाली इसकी, पंखुड़ियाँ बिखराना मत।।”
(घ) भयानक रस का स्थायी भाव क्या है?
उत्तर :
(ख) करुण रस।
(घ) स्थायी भाव-भय।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रस

11. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
(ख) यशोदा हरि पालने झुलावै
हलरावै, दुलरावै, जेहि सेहि कछु गावै।
उपर्युक्त पंक्तियों में किस रस की निज़्पत्ति होती है? रस का नाम लिखिए।
(घ) आलंबन विभाव किसे कहते हैं?
उत्तर :
(ख) वात्सल्य रस।
(घ) आलंबन विभाव – जिन पात्रों या व्यक्तियों के आलंबन अर्थात सहारे से स्थायी भाव उत्पन्न होते हैं, वे आलंबन विभाव कहलाते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

JAC Class 9 Hindi रहीम के दोहे Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) प्रेम का धागा टूटने पर पहले की भाँति क्यों नहीं हो पाता ?
(ख) हमें अपना दुख दूसरों पर क्यों नहीं प्रकट करना चाहिए? अपनी मन की व्यथा दूसरों से कहने पर उनका व्यवहार कैसा हो जाता है ?
(ग) रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को धन्य क्यों कहा है?
(घ) एक को साधने से सब कैसे सध जाता है?
(ङ) जलहीन कमल की रक्षा सूर्य भी क्यों नहीं कर पाता ?
(च) ‘नट’ किस कला में सिद्ध होने के कारण ऊपर चढ़ जाता है ?
(छ) मोती, मानुष, चून’ के संदर्भ में पानी के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) जिस प्रकार टूटे हुए सामान्य धागे को जोड़ने पर उसमें गाँठ पड़ जाती है, उसी प्रकार प्रेम के टूटे हुए धागे को जोड़ने पर वह पहले के समान नहीं रह पाता। उसमें अविश्वास की गाँठ पड़ जाती है।
(ख) हमें अपना दुख दूसरों पर इसलिए प्रकट नहीं करना चाहिए, क्योंकि वे हमारा दुख बाँट नहीं सकते। अपनी व्यथा कहने से वे हमारा मजाक उड़ाने लगते हैं।
(ग) सागर का जल खारा होता है, जिससे किसी की प्यास नहीं बुझती; जबकि पंक जल मीठा होने के कारण लघु जीवों की प्यास बुझाकर उन्हें तृप्त करता है। उसकी इसी उपयोगिता के कारण कवि ने पंक जल को धन्य कहा है।
(घ) एक पर अटूट विश्वास करके उसकी सेवा करने से सब कार्य सफल हो जाते हैं तथा मनुष्य को इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता।
(ङ) कमल जल में ही खिलता है; उसके अभाव में कमल का कोई अस्तित्व नहीं होता। इसलिए जलहीन कमल की रक्षा सूर्य भी नहीं कर सकता।
(च) नट कुंडली विद्या में सिद्ध होने के कारण ऊपर चढ़ जाता है।
(छ) जिस मोती का पानी अर्थात उसकी चमक समाप्त हो जाती है, उसका कोई मूल्य नहीं रह जाता। मनुष्य का पानी उतरने से आशय मनुष्य के मान-सम्मान के समाप्त होने से है। जाता है। चूना पानी के अभाव में घुलता नहीं है और सूखा आटा पानी के बिना पेट भरने के काम नहीं आता।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

प्रश्न 2.
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।
(ख) सुनि अठि हैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।
(ग) रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय।
(घ) दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
(ङ) नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।
(च) जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।
(छ) पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष चून।
उत्तर :
(क) यदि प्रेम संबंधों में एक बार भी टूटन या दरार आ जाती है, तो वे संबंध पुनः पहले की तरह सहज नहीं हो पाते। उनमें कहीं-न-कहीं अविश्वास – रूपी गाँठ पड़ जाती है।
(ख) मानव को अपने जीवन के दुख सबके सामने प्रकट नहीं करने चाहिए, बल्कि उन्हें अपने हृदय में छिपाकर रखने चाहिए। लोग उन्हें जान कर केवल मज़ाक उड़ाते हैं; कोई भी उन दुखों को बाँटता नहीं है।
(ग) अनेक देवी-देवताओं की भक्ति करने के स्थान पर एक ही इष्टदेव के प्रति आस्था रखना अधिक अच्छा होता है। जिस प्रकार जड़ के सींचने से पेड़ से फल की प्राप्ति होती है, उसी प्रकार अपने एक इष्ट के प्रति ध्यान केंद्रित करने से ही फल की प्राप्ति होती है।
(घ) दोहा – छंद आकार में छोटा और स्वरूप में सरल होता है, पर थोड़े से अक्षरों से ही दीर्घ भावों को प्रकट करने की क्षमता रखता है।
(ङ) हिरण संगीत पर मुग्ध होकर अपना जीवन तक त्याग देते हैं। वे भागने की क्षमता रखते हुए भी भागते नहीं और संगीत के पुरस्कार स्वरूप शिकार बन जाते हैं। इसी प्रकार मनुष्य किसी के गुणों पर रीझकर पुरस्कारस्वरूप धन देते हैं।
(च) जहाँ छोटी चीज़ का उपयोग होता है। वहाँ बड़ी वस्तु किसी काम की नहीं होती और जहाँ बड़ी चीज़ प्रयुक्त होती है, वहाँ छोटी वस्तु बेकार है। सुई जो काम करती है, वह काम तलवार नहीं कर सकती और जिस काम के लिए तलवार है, वह काम सूई नहीं कर सकती। हर चीज़ की अपनी ही उपयोगिता है।
(छ) मोती में यदि चमक न रहे तो वह व्यर्थ है; मनुष्य यदि आत्म-सम्मान के भावों से रहित हो जाए तो बेकार है। सूखा आटा जल के बिना किसी का पेट भरने में सहायक नहीं। मोती, मनुष्य और चून के लिए पानी का अपना विशेष महत्त्व है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित भाव को पाठ में किन पंक्तियों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है –
(क) जिस पर विपदा पड़ती है वही इस देश में आता है।
(ख) कोई लाख कोशिश करे पर बिगड़ी बात फिर बन नहीं सकती।
(ग) पानी के बिना सब सूना है अतः पानी अवश्य रखना चाहिए।
उत्तर :
(क) चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध- नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस ॥
(ख) बिगरी बात बन नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय ॥
(ग) रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून ॥

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

प्रश्न 4.
उदाहरण के आधार पर पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए –
उदाहरण: कोय – कोई, जे जो
उत्तर :

  • ज्यों – जैसे
  • नहिं – नहीं
  • धनि – धन्य
  • जिय – जीव
  • होय – होना
  • तरवारि – तलवार
  • मूलहिं – मूल को
  • पिआसो – प्यासा
  • आवे – आना
  • ऊबरै – उबरना
  • बिथा – व्यथा
  • परिजाय – पड़ जाती है
  • कछु – कुछ
  • कोय – कोई
  • आखर – अक्षर
  • थोरे – थोड़े
  • माखन – मक्खन
  • सींचिबो – सींचना
  • पिअत – पीना
  • बिगरी – बिगड़ी
  • सहाय – सहायक
  • बिनु – बिना
  • अठिलैहैं – इठलाना

योग्यता विस्तार –

प्रश्न 1.
‘सुई की जगह तलवार काम नहीं आती’ तथा ‘बिन पानी सब सून’ इन विषयों पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

प्रश्न 2.
‘चित्रकूट’ किस राज्य में स्थित है ? जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
‘चित्रकूट’ उत्तर प्रदेश में स्थित है।

परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
नीति संबंधी अन्य कवियों के दोहे / कविता एकत्र कीजिए और उन दोहों / कविताओं को चार्ट पर लिखकर भित्ति पत्रिका पर लगाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi रहीम के दोहे Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
रहीम की भाषा पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
रहीम ने अपने काव्य में प्रचलित ब्रज और अवधी भाषा का अधिक प्रयोग किया था। वे तुर्की, अरबी और फ़ारसी के परम विद्वान थे। इसलिए उनकी भाषा पर इन भाषाओं का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। इन्होंने दोहे, सवैये, कवित्त और छप्पयों की रचना ब्रजभाषा में की थी। इनके सभी बरवै अवधी भाषा में हैं। इन्होंने खड़ी बोली की कविता भी इन्होंने की थी। ‘मद नाष्टक’ खड़ी बोली में है। कहीं- कहीं इन्होंने एक ही रचना में आठ-आठ भाषाओं का प्रयोग भी किया है। इनकी कविता में माधुर्य और प्रसाद गुण की अधिकता है। इनकी भाषा भावों का अनुसरण करने वाली है, जिसमें सभी गुणों का वहन करने की क्षमता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

प्रश्न 2.
‘गाँठ पड़ना’ से तात्पर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
रहीम के दोहे में ‘ गाँठ पड़ना’ लाक्षणिक प्रयोग है। इसका तात्पर्य है कि जिस प्रकार प्रयत्न करके जोड़ने के बाद भी धागा पहले जैसा एक सार नहीं होता, उसी प्रकार एक बार झगड़ा हो जाने के बाद मन में झगड़े की खटास कभी नहीं मिट पाती; फिर चाहे विवाद को मिटाने का लाख प्रयत्न भी कर लिया जाए। दोनों पक्षों के हृदय में अविश्वास रूपी गाँठ का भाव अवश्य विद्यमान रहता है।

प्रश्न 3.
‘चटकाय’ में निहित प्रतीकात्मकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘चटकाय’ शब्द प्रयोजनमूलक शब्द है, जो किसी विशेष प्रयोजन को प्रकट करता है। यह ‘झटके से तोड़ना और बिना अधिक सोच-समझ कर तोड़ना’ के भाव को प्रकट करता है। जब कोई व्यक्ति बिना किसी कारण के दूसरे व्यक्ति के साथ लड़ता – झगड़ता है और आपसी संबंधों को एकदम से समाप्त कर देता है, तब वह अधिक सोचता – विचारता नहीं है।

प्रश्न 4.
लोग दूसरों के दुखों को क्यों नहीं बाँटना चाहते ?
उत्तर :
इस संसार में सभी व्यक्ति दुखी हैं। सबके पास अपने-अपने दुख हैं। उन्हें अपने दुख ही बहुत बड़े लगते हैं। कोई भी व्यक्ति किसी दुख का मूल कारण नहीं समझना चाहता और न ही उसके दुख को दूर करने की सोचता है। जब तक किसी भी व्यक्ति को दूसरे का सुख-दुख अपना नहीं लगता, तब तक कोई उन्हें बाँटने को तैयार नहीं होता।

प्रश्न 5.
रहीम ने पेड़ के दृष्टांत से क्या स्पष्ट किया है ?
उत्तर :
रहीम ने पेड़ के दृष्टांत से यह स्पष्ट किया है कि जैसे पेड़ की जड़ में पानी डालने से फल-फूल प्राप्त होते हैं; उसी प्रकार किसी एक इष्टदेव के प्रति भक्ति भाव से सेवा करने से भक्त को सब प्रकार के फलों की प्राप्ति हो जाती है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

प्रश्न 6.
कवि ने ‘नाद रीझि तन देत मृग’ के माध्यम से किस काव्य इस रूढ़ि के बारे में बताया है ?
उत्तर :
कवि ने ‘नाद रीझि तन देत मृग’ के माध्यम से साहित्य में प्रचलित काव्य रूढ़ि को प्रकट किया है कि हिरण संगीत की मधुर ध्वनि पर मुग्ध हो जाते हैं और उस समय इतने तल्लीन हो जाते हैं कि शिकारी के सामने होने पर भी भागते नहीं हैं। शिकारी उनकी इस कमज़ोरी को जानते हैं और शिकार करते समय इस विधि को अपनाते हैं। हिरण अपनी इस कमज़ोरी के कारण अपने प्राण खो देते हैं

प्रश्न 7.
कवि दोहे में प्रयुक्त ‘लघु’ शब्द से क्या भाव प्रकट करना चाहता है ?
उत्तर :
‘लघु’ का शाब्दिक अर्थ है – ‘छोटा’। कोई भी व्यक्ति आयु, जाति, पद, शक्ति, साहस, धन, बुद्धि आदि किसी भी प्रकार से दूसरों की तुलना में छोटा हो सकता है। इसके माध्यम से कवि यह प्रकट करना चाहता है कि कभी भी किसी को छोटा मानकर उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। इस संसार में सभी अपना-अपना महत्व रखते हैं और सभी की अपनी-अपनी उपयोगिता है। कई बार ऐसा होता है कि जो काम बड़े-बड़े लोग नहीं कर पाते, उस काम को छोटे समझे जाने वाले लोग सरलता से कर देते हैं।

प्रश्न 8.
‘जलज’ शब्द के माध्यम से कवि मनुष्य को क्या समझाना चाहता है ?
उत्तर :
‘जलज’ शब्द से अभिप्राय है- ‘जल से उत्पन्न होने वाला अर्थात कमल’। कमल का फूल सूर्य की उपस्थिति में जल में उगता है; लेकिन जब तालाब का जल सूख जाता है, उस समय सूर्य की किरणों से कमल को सूखने से कोई नहीं बचा सकता। कवि मनुष्य से कहना चाहता है कि मुसीबत के समय अपनी संपत्ति ही काम आती है, कोई किसी का सहायक नहीं बनता। कवि के अनुसार परिस्थितियों के अनुकूल होने या न होने से अधिक साधन के न होने का अधिक प्रभाव पड़ता है। संचित धन की कमी अनुकूल परिस्थितियों को भी प्रतिकूल बना देती है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

प्रश्न 9.
मोती का मूल्य कब तक होता है और कवि इसके माध्यम से क्या समझाना चाहता है ?
उत्तर :
मोती का मूल्य तब तक होता है, जब तक उस पर चमक होती है। वास्तव में मोती की गुणवत्ता उसके बाहरी भाग पर विद्यमान चमक है। जब चमक समाप्त हो जाती है, तो वह मूल्यहीन हो जाता है। कवि मोती के माध्यम से मनुष्य को यह शिक्षा देना चाहता है कि उसे सदा अपने सम्मान की रक्षा करनी चाहिए। सम्मान के बिना मनुष्य का जीवन महत्वहीन हो जाता है।

प्रश्न 10.
रहीम के दोहों की प्रसिद्धि का क्या कारण है ?
उत्तर :
रहीम के दोहे नीतिगत ज्ञान तथा मानव कल्याण की भावना से ओत-प्रोत होने के कारण अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। रहीम ने अपने दोहों के माध्यम से लोगों की सुप्त चेतना को जगाना चाहा है। उन्होंने लोगों में नई चेतना तथा जागृति लाने का भरसक प्रयास किया है। रहीम के दोहों में निहित संदेश लोगों के मन को झकझोर कर रख देता है।

प्रश्न 11.
रहीम ने मानव को अपना दुख मन में ही छिपाकर रखने के लिए क्यों कहा है ?
उत्तर :
रहीम ने मानव को समझाते हुए कहा है कि मनुष्य को अपने मन की पीड़ा तथा दर्द को सदैव अपने मन में ही छिपाकर रखना चाहिए। उसे यह पीड़ा जग-जाहिर नहीं करनी चाहिए। संसार में लोग एक-दूसरे की पीड़ा देखकर उसकी सहायता करने के स्थान पर उसका मज़ाक ही उड़ाते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

प्रश्न 12.
कवि ने किसी एक देव को इष्टदेव मानने के लिए क्यों कहा है ?
उत्तर :
कवि ने मानव को अनेक देवी-देवताओं की पूजा-आराधना करने की बजाय एक देव की पूजा करने तथा उसे इष्टदेव मानकर सेवा करने की सलाह दी है। ऐसा करने से मानव मन अलग-अलग दिशाओं की ओर नहीं दौड़ता। वह शांत मन होकर एक ईश्वर की पूजा करता है, तो उसके सभी कार्य सफल होते हैं।

प्रश्न 13.
कवि रहीम ने अपने दोहों में सुख-दुख के विषय में क्या कहा है ?
उत्तर :
कवि रहीम ने अपने दोहों में सुख-दुख के विषय में कहा है कि सुख-दुख सभी के जीवन के अंग हैं। ये सभी के जीवन में आते-जाते हैं। समय परिवर्तनशील है। जीवन में अनेक बार ऐसा समय आता है, जब मानव को ऐसे स्थानों पर आना-जाना पड़ता है जो उसके लिए अनुकूल नहीं होते। सुख-दुख समयानुसार व्यक्ति की परिस्थितियों को बदल देते हैं।

प्रश्न 14.
रहीम के अनुसार एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की शरण में कब जाता है ?
उत्तर :
रहीम के अनुसार एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की शरण में अपने कष्टों को दूर करने के लिए जाता है। विपरीत परिस्थितियों में उसे ऐसी वस्तुओं एवं स्थानों को भी अपनाना पड़ता है, जिसके लिए वह स्वयं को अनुकूल नहीं मानता। अतीत में भगवान राम को भी अयोध्या छोड़कर जंगलों के कष्टों एवं दुखों को भोगना पड़ा था।

प्रश्न 15.
रहीम के दोहे गागर में सागर भरने का साहस रखते हैं, कैसे ?
उत्तर :
रहीम एक नीति परख कवि हैं। इनके दोहे सीधे दिल और दिमाग पर प्रहार करते हैं। इनके दोहों में शब्द तो कम होते हैं, किंतु उन शब्दों की चोट और घाव अत्यंत गहरे होते हैं। इनके दोहों में निहित संदेश अत्यंत गंभीर और मानव कल्याण से ओत-प्रोत होते हैं। कवि ने छोटे-छोटे छंदों के माध्यम से मानव-जीवन की गंभीर समस्याओं को उठाने तथा उनके निवारण का तरीका बताया है। उनके दोहे कम शब्दों में भी मनुष्य को ज्ञान का अथाह सागर प्रदान करते हैं। इसलिए रहीम के दोहों को गागर में सागर की उपमा दी गई है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

प्रश्न 16.
कवि ने अपने दोहों के माध्यम से लोगों को सोच-समझकर बोलने के लिए क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि ने अपने दोहों में लोगों को सोच-समझकर बोलने की शिक्षा देते हुए कहा है कि हमें बहुत विचार-विमर्श करने के बाद ही कोई बात मुँह से बाहर निकालनी चाहिए। यदि एक बार मुख से निकली हुई बात से कोई हानि हो जाती है, तो अथाह प्रयास करने पर भी वह बात ठीक नहीं हो पाती। बिना सोचे-समझे कहे गए शब्द ऐसे तीर की भाँति होते हैं, जिन्हें लौटाया नहीं जा सकता। इसलिए हमें सोच-समझकर बोलना चाहिए।

रहीम के दोहे Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन-परिचय – अब्दुर्रहीम खानखाना अर्थात रहीम का जन्म सन् 1556 ई० में लाहौर में हुआ था। बचपन से ही इनका मुगल दरबार से संबंध रहा। इसी कारण रहीम विद्या – व्यसनी हो गए। इन्होंने संस्कृत, अरबी, फ़ारसी आदि भाषाओं में अच्छी योग्यता प्राप्त की थी। युवावस्था में अकबर के दरबार में सेनापति के पद को सुशोभित करते हुए भी रहीम कविता करते थे। रहीम दानी स्वभाव के व्यक्ति थे, अतः याचक को यथेच्छ दान देकर संतुष्ट करना अपना कर्तव्य समझते थे। ये तुलसीदास के परम मित्र थे। जहाँगीर के समय में इनकी दशा बिगड़ गई थी। इनकी संपत्ति को राज्याधिकार में लेकर इन्हें पदच्युत कर दिया गया था। सन् 1626 ई० में इनकी मृत्यु हुई थी।

रचनाएँ – रहीम दोहावली, बरवै, नायिका भेद, श्रृंगार सोरठा, रहीम सतसई, श्रृंगार सतसई, रहीम रत्नावली, भाषिक वर्ण भेद, सदनाष्टक तथा रास पंचाध्यायी इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। इन्हें रहीम ग्रंथावली में संकलित किया गया है।

काव्य की विशेषताएँ – रहीम की कविता का विषय श्रृंगार, नीति और प्रेम है। इनका जीवन – अनुभव बहुत अधिक था। इस कारण इन्होंने जो कुछ लिखा, वह निजी अनुभव के आधार पर लिखा। इसलिए उसमें पाठक को प्रभावित करने की अपूर्व शक्ति है। इन्होंने केवल कल्पना पर उड़ने का प्रयत्न कहीं नहीं किया। जहाँ कहीं कल्पना को स्वीकार किया, वहाँ यथार्थ को भी साथ रखा गया है। इनकी अनेक सूक्तियाँ और नीति-संबंधी दोहे आज भी मानव का पथ-प्रदर्शन करते हैं। आपके कृष्ण-संबंधी दोहे भी सुंदर हैं और रहीम के हृदय की विशालता के परिचायक हैं।

रहीम का अवधी और ब्रजभाषा दोनों पर ही समान अधिकार था। कविता के लिए इन्होंने सामान्य ब्रजभाषा का ही प्रयोग किया। दोहों के अतिरिक्त इन्होंने कवित्त, सवैये और सोरठे भी लिखे हैं। इनकी प्रसिद्धि अपनी दोहावली के आधार पर ही है। इन्होंने अपनी कविता में लोकोक्तियों और लोक – प्रचलित उदाहरणों के आधार पर विषय को सरल तथा सुगम बनाने का यत्न किया है। अपनी भावुकतापूर्ण और अनुभव पर आधारित उक्तियों के कारण हिंदी – साहित्य दोहे में रहीम का विशेष स्थान है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

दोहों का सार :

रहीम के नीति के दोहे अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अनुभव के आधार पर जिन तथ्यों का संग्रह किया है, वे इन दोहों में प्रस्तुत किए गए हैं। उन्होंने मानव जीवन के लिए उपयोगी सभी बातों का बड़ा मार्मिक वर्णन किया है। वे नीति-सिद्ध कवि थे। उनके काव्य में भक्ति, नीति तथा वैराग्य की त्रिवेणी बह रही है। उनके सूक्तिपरक दोहे भी अत्यधिक प्रभावशाली बन गए हैं। रहीम ने अपने दोहों के माध्यम से उन सब बातों की निंदा की है, जो मानव की प्रतिष्ठा में बाधक होती हैं। उनके दोहे अपनी सरलता, मधुरता, उपदेशात्मकता, सहजता एवं कलात्मकता के कारण हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि बन गए हैं।

व्याख्या –

1. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय ॥

शब्दार्थ : चटकाय – झटके से। परि – पड़ना।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने प्रेम-संबंधों को सदा बनाकर रखने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या : कवि रहीम कहते हैं कि हमें प्रेम-रूपी धागे को चटकाकर नहीं तोड़ना चाहिए, क्योंकि टूटे हुए धागे को फिर से जोड़ा नहीं जा सकता। यदि जोड़ते भी हैं, तो उसमें गाँठ पड़ जाती है। इसी प्रकार आपसी प्रेम-संबंध भी यदि टूट जाएँ, तो वे फिर जुड़ नहीं पाते। यदि जुड़ भी जाएँ, तो उनमें पहले जैसी मधुरता नहीं रहती।

2. रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय॥

शब्दार्थ : बिथा – व्यथा, दुख। गोय – छिपाकर। अठि हैं – मज़ाक उड़ाना।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने यह समझाया है कि कभी भी किसी को अपने मन का दुख नहीं बताना चाहिए।

व्याख्या : रहीम कहते हैं कि अपने मन का दुख-दर्द मन में ही छिपाकर रखना चाहिए, क्योंकि सब तुम्हारी बातें सुनकर तुम्हारा मज़ाक ही उड़ाएँगे; कोई तुम्हारा दुख नहीं बाँटेगा। भाव है कि अपने हृदय के भावों को जगजाहिर मत करो। कोई किसी के दुखों को बाँटता नहीं है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

3. एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय ॥

शब्दार्थ : मूलहिं – जड़ को। अघाय – संतुष्ट होना, तृप्त होना।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि किसी एक को अपना इष्टदेव मानने की प्रेरणा देता है।

व्याख्या : कवि कहता है कि किसी एक इष्टदेव की सेवा करने से सभी कार्य सफल हो जाते हैं परंतु कई लोगों की सेवा करने से सबकुछ नष्ट हो जाता है। रहीम कहते हैं कि वृक्ष की जड़ को सींचने से वृक्ष पर खूब फल उगते हैं, जिन्हें खाकर मनुष्य तृप्त हो जाता है। इसी प्रकार से एक इष्ट को साधने से सब कार्य सफल होते हैं।

4. चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध- नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस ॥

शब्दार्थ : अवध – अयोध्या। रमि – रहना, बसना। नरसे – राजा। बिपदा – मुसीबत।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने चित्रकूट की महिमा का वर्णन किया है।

व्याख्या : रहीम कहते हैं कि अयोध्या नरेश श्री रामचंद्र जी चित्रकूट में निवास कर रहे हैं। चित्रकूट ऐसा पवित्र स्थान है कि कष्ट आने पर सभी यहाँ चले आते हैं। जिस पर मुसीबत पड़ती है, वह अपने कष्टों को दूर करने के लिए इस क्षेत्र में चला आता है।

5. दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं ॥

शब्दार्थ : दीरघ – दीर्घ, विशाल, गहरे। अरथ – अर्थ, भाव। आखर अक्षर। थोरे थोड़े, कम। नट – अभिनेता, बाजीगर। कुंडली – साँप के बैठने की गोलाकार मुद्रा।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। कवि ने इस छोटे-से छंद में छिपे अर्थ- गांभीर्य की ओर संकेत किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि दोहे जैसे छोटे-से छंद में अक्षर तो बहुत कम होते हैं, परंतु उसमें अर्थ बहुत अधिक होता है। जैसे बाजीगर कुंडली मारकर और अपने को समेटकर ऊँचे-से-ऊँचे स्थान पर कूदकर चढ़ जाता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

6. धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय ॥

शब्दार्थ : पंक – कीचड़। लघु – छोटे। जिय – जीत। अघाय – तृप्त हो जाना। उदधि – सागर। पिआसो – प्यासा।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे के माध्यम से कवि ने संदेश दिया है कि कई बार छोटे-से भी बड़े-बड़े काम बन जाते हैं, जबकि बड़ों से छोटा काम भी नहीं बनता।

व्याख्या : कवि कहता है कि कीचड़ से भरा वह जल भी प्रशंसा करने योग्य है, जिसे पीकर छोटे-छोटे जीव अपनी प्यास बुझाकर तृप्त हो जाते हैं। इसके विपरीत उस सागर की प्रशंसा कौन करेगा, जिसके पास जाकर भी लोग प्यासे रह जाते हैं; क्योंकि सागर का जल खारा होने के कारण पीने योग्य नहीं होता।

7. नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत ॥

शब्दार्थ : नाद – ध्वनि, संगीत। रीझि – प्रसन्न होकर, मोहित होकर। मृग – हिरन। नर – मनुष्य। हेत – उद्देश्य, कारण।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने किसी के कार्य से प्रसन्न होने पर उसे समुचित पुरस्कार देने का संदेश दिया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि कर्णप्रिय ध्वनि अथवा संगीत सुनकर मृग अपने प्राण तक न्योछावर कर देता है, लोग भी किसी के कार्य से प्रसन्न होकर उसे कुछ न कुछ देते हैं। रहीम उस व्यक्ति को पशु से भी अधिक निम्न श्रेणी का मानते हैं, जो प्रसन्न होने पर भी किसी को कुछ नहीं देता।

8. बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।

शब्दार्थ : बिगरी – बिगड़ी हुई। मथे – मथने से।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने सदा सोच-समझकर बोलने पर बल दिया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि मनुष्य को सोच-विचार कर ही कोई बात मुँह से निकालनी चाहिए। जैसे फटे हुए दूध को मथने से उसमें से मक्खन नहीं निकाला जा सकता, उसी तरह यदि एक बार कही हुई किसी बात से बिगाड़ हो जाता है, तो फिर चाहे कोई लाख प्रयत्न भी करे बिगड़ी हुई बात बन नहीं सकती।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

9. रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि ॥

शब्दार्थ : बड़ेन – बड़े, धनवान तथा प्रतिष्ठित। लघु – छोटे, निर्धन। तरवारि – तलवार।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में रहीम ने यह स्पष्ट किया है कि बड़ी वस्तुओं और बड़े प्राणियों के साथ-साथ छोटी वस्तुओं और छोटे प्राणियों का भी महत्व होता है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि बड़े लोगों का संपर्क पाकर छोटों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए; क्योंकि जहाँ छोटी-सी सुई काम करती है, वहाँ तलवार काम नहीं आ सकती। भाव है कि छोटे-बड़े सभी महत्वपूर्ण हैं और सभी की अपनी-अपनी उपयोगिता है, इसलिए किसी की भी अवहेलना नहीं करनी चाहिए।

10. रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय ॥

शब्दार्थ : बिपति – मुसीबत। जलज – कमल। रवि – सूर्य।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने यह संदेश दिया है कि कठिनाई में सदा अपनी संपत्ति ही काम आती है।

व्याख्या : कवि रहीम कहते हैं कि जैसे पानी के बिना कमल को सूर्य भी नहीं बचा सकता, उसी तरह अपनी संपत्ति के बिना मुसीबत में कोई भी सहायता नहीं करता, विपत्ति के समय व्यक्ति को अपने पास संचित धन ही सहायता देता है। कष्ट के समय कोई किसी की सहायता नहीं करता।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

11. रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून ॥

शब्दार्थ : पानी – (i) स्वाभिमान, इज्ज़त (ii) चमक (iii) जल। ऊबरे – महत्व पाना। मानुष – मनुष्य।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहे के रचयिता रहीम हैं। इसमें उन्होंने पानी के विभिन्न अर्थों के माध्यम से अपने काव्य में चमत्कार उत्पन्न किया है।

व्याख्या : रहीम का कथन है कि मनुष्य को अपने मान-सम्मान का सदैव ध्यान रखना चाहिए। मान-सम्मान के अभाव में मनुष्य उसी प्रकार महत्वहीन हो जाता है, जिस प्रकार चमक रहित मोती तथा बिना जल के आटे का महत्व नहीं होता।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न – दिए गए प्रश्नों के चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखो-
1. संसार के किस प्रदेश में पाताल तोड़ कुएं सबसे अधिक पाए जाते हैं?
(A) गुजरात ( भारत )
(B) क्वींसलैंड (आस्ट्रेलिया)
(C) यूक्रेन (रूस)
(D) ह्वांग – हो मैदान (चीन)।
उत्तर:
(B) क्वीसलैंड (आस्ट्रेलिया)।

2. निम्नलिखित में से कौन-सा कारक भौम जल स्तर को प्रभावित नहीं करता?
(A) वाष्पीकरण
(B) वर्षा
(C) चट्टानों की कठोरता
(D) चट्टानों की पारगम्यता।
उत्तर:
(D) चट्टानों की पारगम्यता।

3. कार्स्ट प्रदेशों में भूमिगत जल का कार्य अधिकतर किस क्रिया द्वारा होता है?
(A) अपरदन
(B) अपवाहन
(C) अपघर्षण
(D) घुलन।
उत्तर:
(D) घुलन।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

4. ओल्ड फेथफुल गाईज़र किस देश में स्थित है?
(A) संयुक्त राज्य अमेरिका
(B) आइसलैंड
(C) न्यूज़ीलैंड
(D) ऑस्ट्रेलिया।
उत्तर:
(A) संयुक्त राज्य अमेरिका।

5. विलयन रंध्र किस प्रकार के धरातल पर बनते हैं ?
(A) कार्स्ट प्रदेश में
(B) नदी घाटी में
(C) महासागरों में
उत्तर:
(A) कार्स्ट प्रदेश में।

6. ‘ग्रेट आर्टेजियन बेसिन’ स्थित है-
(A) संयुक्त राज्य अमेरिका के येलोस्टोम पार्क में
(B) न्यूज़ीलैंड के उत्तरी द्वीप में
(C) ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के मध्य पूर्व भाग में
(D) आइसलैंड में।
उत्तर:
ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के मध्य पूर्व भाग में।

7. ओल्ड फेथफुल गीज़र पाया जाता है-
(A) संयुक्त राज्य अमेरिका के येलोस्टोन पार्क में
(B) न्यूज़ीलैंड के उत्तरी द्वीप में
(C) ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के मध्य पूर्व भाग में
(D) आइसलैंड में।
उत्तर:
(C) ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के मध्य पूर्व भाग में।

8. हिमानी प्रदेशों में शृंग की रचना का मुख्य कारण क्या है?
(A) उत्थान क्रिया
(B) चारों ओर हिमसागर का बनना
(C) अपरदन
(D) अपक्षरण।
उत्तर:
(C) अपरदन।

9. गुम्बद आकार भाग से बहने वाली नदियों द्वारा किस प्रवाह की रचना होती है?
(A) युग्म आकृतिक प्रवाह
(B) समान्तर प्रवाह
(C) जलायित प्रवाह
(D) आरीय प्रवाह
उत्तर:
(D) आरीय प्रवाह।

10. नदी के मुहाने पर बनने वाली संकीर्ण तथा गहरी घाटी को क्या कहते हैं?
(A) डेल्टा
(B) ज्वार नदमुख
(C) मुहाना
(D) घाटी।
उत्तर:
(B) ज्वार नदमुख।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

11. गुफ़ाओं की रचना किस क्रिया द्वारा होती है?
(A) ऑक्सीकरण
(B) कार्बोनेटीकरण
(C) जल योजना
(D) घोलीकरण।
उत्तर:
(B) कार्बोनेटीकरण।

12. नदी के किस भाग में जल प्रपात की रचना होती है?
(A) ऊपरी भाग
(B) मध्य भाग
(C) निचला भाग
(D) मुहाना।
उत्तर:
(A) ऊपरी भाग।

13. स्थैतिक साधनों द्वारा चट्टानों का विघटन तथा अपघटन
(A) अपक्षय
(B) अपरदन
(C) निक्षेपण
(D) परिवहन।
उत्तर:
(A) अपक्षय।

14. कौन-सी अपवाह प्रणाली में महाखड्ड का निर्माण होता है?
(A) द्रुमाकृतिक
(B) पूर्ववर्ती
(C) अरीय
(D) जालीनुमा।
उत्तर:
(C) पूर्ववर्ती।

15. नदी के मध्य मार्ग में इसकी कौन-सी मुख्य विशेषता होती है?
(A) घाटी को गहरा करना
(B) डेल्टा का निर्माण
(C) घाटी को चौड़ा करना
(D) वितरकाओं का निर्माण।
उत्तर:
(C) घाटी को चौड़ा करना

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मुख्य भू-आकृतिक कारक कौन-से हैं?
उत्तर:

  1. नदी
  2. हिमनदी
  3. वायु
  4. सागरीय तरंगें।

प्रश्न 2.
अपक्षय के दो मुख्य प्रकार बताओ।
उत्तर:
भौतिक तथा रासायनिक।

प्रश्न 3.
रासायनिक अपक्षय की मुख्य क्रियाएं बताओ
उत्तर:

  1. ऑक्सीकरण
  2. जल योजन
  3. विलयन
  4. कार्बोनेटीकरण।

प्रश्न 4.
अपरदन चक्र में मुख्य अवस्थाएं कौन-सी हैं?
उत्तर:
युवा, प्रौढ़, वृद्धावस्था।

प्रश्न 5.
भू-आकृतिक कारकों के कार्य के प्रकार बताओ।
उत्तर:

  1. अपरदन
  2. परिवहन
  3. निक्षेपण।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

प्रश्न 6.
मुख अपवाह ढांचों के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. आरीय
  2. द्रुमाकृतिक
  3. समान्तर
  4. जलायित।

प्रश्न 7.
नदी की युवा अवस्था में बनने वाले भू-आकार बताओ।
उत्तर:
गार्ज, केनियन, झरने।

प्रश्न 8.
नदी निक्षेप से बनने वाले भू-आकार बताओ।
उत्तर:
विसर्प, तटबन्ध, बाढ़ का मैदान।

प्रश्न 9.
वायु अपरदन से बनने वाले चार भू-आकार बताओ।
उत्तर:

  1. छत्रक,
  2. यारडांग
  3. ज्यूज़न,
  4. इन्सेलबर्ग।

प्रश्न 10.
हिम नदी अपरदन से बनने वाले भू-आकार बताओ।
उत्तर:
सर्क, श्रृंग, लटकती घाटी, ‘U’ आकार घाटी।

प्रश्न 11.
निम्नीकरण (Degradation) किसे कहते हैं?
उत्तर:
बाह्य कारकों द्वारा धरातल के अपरदन को निम्नीकरण कहते हैं।

प्रश्न 12.
निम्नीकरण में कौन-सी क्रियाएं शामिल हैं?
उत्तर:

  1. अपक्षय
  2. अपरदन
  3. परिवहन।

प्रश्न 13.
अपरदन चक्र की धारणा का सबसे पहले प्रतिपादन किसने किया था?
उत्तर:
विलियम मारिस डेविस ने।

प्रश्न 14.
यदि नदी का वेग दुगुना हो जाए तो उसकी भार वाहन शक्ति कितने गुना बढ़ जाएगी?
उत्तर:
64 गुना।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

प्रश्न 15.
ग्रैंड केनियन कहाँ स्थित हैं?
उत्तर:
संयुक्त राज्य में, कोलोरेडो नदी पर।

प्रश्न 16.
जल प्रपात किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब नदी चट्टानी कगार पर ऊपर से सीधे नीचे गिरती है तो उसे जल प्रपात कहते हैं।

प्रश्न 17.
उत्तरी अमेरिका के एक प्रसिद्ध जल प्रपात का नाम लिखो।
उत्तर:
नियाग्रा जल प्रपात 120 मीटर ऊंचा।

प्रश्न 18.
भारत में दो प्रसिद्ध जल प्रपातों के उदाहरण दो।
उत्तर:

  1. जोग जल प्रपात 260 मीटर ऊंचा।
  2. हुण्ड्र जल प्रपात 97 मीटर ऊँचा।

प्रश्न 19.
चीन का शोक किस नदी को कहते हैं?
उत्तर:
ह्वांग-हो नदी।

प्रश्न 20.
कोई तीन प्रसिद्ध डैल्टाओं के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. नील डैल्टा
  2. गंगा डैल्टा
  3. मिसीसिपी डेल्टा।

प्रश्न 21.
लोएज प्रदेश कहां पाये जाते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी चीन में ।

प्रश्न 22.
भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे बड़े डेल्टा का नाम बताएं
उत्तर:
सुन्दरवन डेल्टा।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

प्रश्न 23.
स्टैलेक्टाइट का निर्माण किस भू-प्राकृतिक कारक द्वारा होता है?
उत्तर:
चूना युक्त जल की गुफा की छत पर लटकी बूंदों के वाष्पीकृत से स्टैलेक्टाइट का निर्माण होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत के पश्चिमी तट पर नर्मदा व ताप्ती नदियां डैल्टे क्यों नहीं बनातीं?
उत्तर:
पश्चिमी तट पर नदियों के निचले भाग में तीव्र ढाल है। नदियां तेज़ गति से समुद्र में गिरती हैं तथा मिट्टी का निक्षेप नहीं होता। इसलिए डैल्टा का निर्माण नहीं होता। पश्चिमी तटीय मैदान की चौड़ाई भी कम है। इसलिए डैल्टा निर्माण के लिए समतल भूमि की कमी है।

प्रश्न 2.
गार्ज तथा प्रपात खड्ड में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
पर्वतीय भागों में गहरे और तंग नदी मार्ग को गार्ज कहते हैं। नदी कठोर चट्टानों के बने अपने किनारों को तोड़-फोड़ नहीं सकती। इसलिए जब पर्वत ऊंचे उठते रहते हैं तो नदी घाटी लगातार गहरी होती रहती है। प्रपाती खड्ड (कैनियन) प्रायः शुष्क प्रदेशों में बनती हैं। इस घाटी में ऋतु प्रहार (weathering) के कारण घाटी का ऊपरी भाग कुछ अधिक चौड़ा हो जाता है। गार्ज में नदी मार्ग के किनारे दीवार की भांति खड़े (Vertical) होते हैं, परन्तु कैनियन की दीवारें पूर्ण रूप से लम्बवत् नहीं होतीं।

प्रश्न 3.
किसी जल प्रपात की रचना कैसे होती है?
उत्तर:
जब अधिक ऊंचाई से जल अधिक वेग से खड़े ढाल पर बहता है तो उसे जल-प्रपात कहते हैं। जब नदी के मार्ग में ऊपरी पर्त कठोर चट्टानों की हो और नीचे की पर्त नर्म चट्टानों की हो, तो नीचे की नर्म चट्टान जल्दी कट जाती है। दोनों परतों में एक अन्तर आ जाता है। कठोर चट्टान आगे बढ़ी रहती है। इस प्रकार इस ढाल पर पानी झरने के रूप में बहता है। भारत में जोग जल प्रपात 260 मीटर ऊंचा है।

प्रश्न 4.
छत्रक शैल किसे कहते हैं? इसके विभिन्न कारक कौन-से हैं?
उत्तर:
मरुस्थलीय भागों में छतरी के आकार की कठोर चट्टानों को छत्रक कहते हैं। कठोर चट्टानों के निचले भागों में चारों तरफ से नीचे का कटाव (under cutting) होता है। एक पतले आधार के ऊपर छतरी के आकार की चट्टानें खड़ी रहती नीचे की चट्टान एक गुफा के समान कट जाती है। जोधपुर के निकट ग्रेनाइट चट्टानें नीचे से कट कर छत्रक बन गई हैं।

प्रश्न 5.
नदी की शक्ति किन कारकों पर निर्भर करती है? उसकी भार वहन की क्षमता को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक कौन-से हैं?
उत्तर:
नदी की अपरदन तथा परिवहन शक्ति दो कारकों पर निर्भर करती है

  1. नदी का वेग
  2. जल की मात्रा।

नदी के वेग तथा अपरदन शक्ति में वर्ग का अनुपात होता है, यदि वेग दुगुना हो जाए तो अपरदन शक्ति चौगुनी होती है तथा परिवहन शक्ति 64 गुना बढ़ जाती है। जल की मात्रा बढ़ जाने से नदी अधिक भार का परिवहन कर सकती है। नदी की परिवहन शक्ति मुख्यतः नदी के ढाल तथा नदी के भार पर निर्भर करती है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

प्रश्न 6.
समुद्र द्वारा किए जाने वाले विभेदी अपरदन से आप क्या समझते हैं? इस क्रिया से किन स्थलाकृतियों का निर्माण होता है?
उत्तर:
समुद्र तट पर स्थित नर्म तथा कठोर चट्टानों की क्षैतिज अथवा लम्ब स्थिति के कारण विभेदी अपरदन होता है। नर्म चट्टानें शीघ्र टूट जाती हैं परन्तु कठोर चट्टानें खड़ी रहती हैं। इस प्रकार नर्म चट्टानों के अपरदन से खाड़ियां बनती हैं। कठोर चट्टानें भृगु के रूप में खड़ी रहती हैं। घुलनशील चट्टानों के घुल जाने से गुफाओं का निर्माण होता है। उन क्षेत्रों में मेहराब तथा प्राकृतिक पुल बनते हैं। कठोर चट्टानें स्टैक के रूप में बची-खुची रहती हैं।

प्रश्न 7.
पुनर्योवन के प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर:
भू-संचरण या जलवायु परिवर्तन के कारण पुरानी नदियां यदि युवा अवस्था में आ जाती हैं तो इसे पुनर्योवन कहते हैं। इस क्रिया के निम्नलिखित प्रभाव होते हैं:

  1. नदी की अपरदन क्षमता बढ़ जाती है।
  2. पुरानी घाटी में एक नई घाटी का निर्माण शुरू हो जाता है।
  3. नदी वेदिकाएं बनती हैं।
  4. गहरे विसर्प बनते हैं ।

प्रश्न 8.
महाद्वीपीय हिमनदी तथा घाटी हिमनदी में अन्तर बताओ।
उत्तर:
महाद्वीपीय हिमनदी या हिम चादरों का विस्तार ध्रुवीय प्रदेशों में अंटार्कटिका तथा ग्रीनलैण्ड में है। ये विशाल क्षेत्रों में फैले हुए हैं। घाटी हिमनदियां हिमालय, आल्पस आदि ऊंचे पर्वतों के हिम क्षेत्रों से जन्म लेती हैं। यह पर्वतीय क्षेत्रों में तथा ढलानों पर अपरदन का कार्य करती हैं। हिम चादरें किसी क्षेत्र को समतल करने का कार्य करती है। परन्तु घाटी हिमनदी कई भू-आकार जैसे यू-घाटी, सर्प आदि की रचना करती है।

प्रश्न 9.
‘V’ आकार घाटी तथा ‘U’ आकार घाटी में अन्तर बताओ।
उत्तर:
नदी के अपरदन से ‘V’ आकार घाटी बनती है, परन्तु हिमनदी के अपरदन से ‘U’ आकार घाटी बनती है। ‘V’ आकार घाटी अधिक गहरी होती है। ‘U’ आकार घाटी की दीवारें लगभग लम्बवत् होती हैं परन्तु ‘V’ आकार घाटी की दीवारें पूर्ण रूप से लम्ब नहीं होतीं । हिमनदी अपनी कोई घाटी नहीं बनाती, अपितु वह नदी घाटी का रूप बदल कर उसे ‘U’ आकार बना देती है।

प्रश्न 10.
हिम तोंदों तथा हिमनदियों में क्या अन्तर है?
उत्तर:
हिम तोंदे हिम चादरों से जन्म लेते हैं। जैसे ग्रीनलैण्ड तथा अण्टार्कटिका में परन्तु हिमनदियां ऊंचे पर्वतों के हिम क्षेत्रों से निकलती हैं जैसे हिमालय तथा आल्पस पर्वत हिम तोंदे समुद्र में तैरते हुए दिखाई देते हैं तथा गर्म प्रदेशों में आकर पिघल जाते हैं। हिमनदियां पर्वतीय ढलानों पर खिसकती हैं तथा मैदानों में आकर पिघलती हैं। हिम तोंदों का 1/10 भाग जल से बाहर दिखाई देता है, परन्तु हिमनदी का सारा भाग धरातल पर दिखाई देता है।

प्रश्न 11.
लटकती घाटी (Hanging Valley) की रचना कैसे होती है?
उत्तर:
हिमनदी की मुख्य घाटी अधिक हिम के कारण अधिक गहरी होती है। पर्वतों की ढलानों से उतरने वाली सहायक हिमनदी की घाटी कम गहरी होती है। जब हिम पिघलती है तो सहायक हिम नदी की घाटी मुख्य घाटी से ऊंची रह जाती है तथा लटकती हुई प्रतीत होती है। इसे लटकती हुई घाटी कहते हैं।

प्रश्न 12.
वायु तथा नदी के कार्य की तुलना करो।
उत्तर:

वायु के कार्य नदी का कार्य
(1) वायु का कार्य मरूस्थल प्रदेशों में महत्त्वपूर्ण होता है। (1) नदी का कार्य आर्द्र प्रदेशों में महत्त्वपूर्ण होता है।
(2) नदी अपने मलबे को दूर-दूर प्रदेशों तक परिवहन करती है। (2) नदी का कार्य अपनी घाटी तक ही सीमित होता है।
(3) वायु का कार्य वायु की गति पर निर्भर करता है। (3) नदी का कार्य क्षेत्र की ढलान पर निर्भर करता है।
(4) वायु का कार्य धीमी गति से होता है तथा वायु भार कम होता है। (4) नदी का कार्य तीव्र गति से होता है तथा नदी भार बहुत अधिक होता है।

प्रश्न 13.
“वायु द्वारा अपरदन की तुलना रेगमार से की जाती है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वायु रेत के बारीक कणों को उड़ा कर दूर-दूर तक ले जाती है। वायु के धूलि कण इस अपरदन के यन्त्र (Tools) हैं। तीव्र गति से वायु रेत के कणों को चट्टानों से टकराती है। ये कण एक रेगमार (Sand paper) की तरह कटाव करते हैं। ये कण चट्टानों को रगड़ कर इस तरह मुलायम कर देते हैं जैसे पालिश किया हो या रेगमार से घिसा हो।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

प्रश्न 14.
ज्यूजन तथा यारडांग में क्या अन्तर है?
उत्तर:

यारडांग ज्यूजन
(1) इसमें कठोर तथा नर्म चट्टानें लम्ब रूप में मिलती हैं। (1) इसमें कठोर तथा नर्म चट्टाने एक-दूसरे के समानान्तर होती हैं।
(2) इसका आकार पसलियों (Ribs) जैसा होता है। (2) इसका आकार एक ढक्कन दवात जैसा होता है।
(3) इसमें लम्बे कटाव मिलते हैं। (3) इसमें गहरे कटाव मिलते हैं।
(4) इसकी ऊंचाई 15 मीटर होती है। (4) इनकी ऊंचाई 10 मीटर होती है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास 1

प्रश्न 15.
लम्बे बालू स्तूप तथा आड़े बालू स्तूप में क्या अन्तर है?
उत्तर:

लम्बे बालू स्तूप आड़े बालू स्तूप
(1) ये रेत की लम्बी दीवारें होती हैं। (1) ये अर्द्ध-चन्द्राकार टीले होते हैं।
(2) ये प्रचलित पवनों की दिशा के समानान्तर बनते हैं। (2) ये प्रचलित पवनों की दिशा के समकोण पर बनते हैं।
(3) ये 100 मीटर तक ऊँचे होते हैं। (3) ये 50 मीटर तक ऊंचे होते हैं।
(4) ये तलवार के आकार जैसे होते हैं तथा इन्हें सीफ़ भी कहा जाता है। (4) ये लहरों के आकार जैसे होते हैं।

प्रश्न 16.
सागरीय लहरों द्वारा अपरदन किन तत्त्वों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
सागरीय लहरों द्वारा अपरदन प्रायः तूफ़ानी लहरों द्वारा 200 मीटर की गहराई तक होता है। यह अपरदन कई तत्त्वों पर निर्भर करता है-

  1. लहरों का अधिक वेग तथा ऊँचाई
  2. चट्टानों की रचना
  3. तट का ढाल
  4. जल की गहराई
  5. छिद्रों तथा दरारों का होना
  6. वायु की गति।

प्रश्न 17.
भृगु (Cliff) की रचना कैसे होती है
उत्तर:
समुद्र तट पर खड़ी ढाल वाली चट्टान को भृगु कहते हैं। लहरों के सीधे अपरदन से चट्टान आधार पर कट जाती है तथा दांत (Notch ) की रचना होती है। यह खोखला स्थान धीरे-धीरे बड़ा हो जाता है। ऊपरी भाग धीरे- धीरे आगे बढ़कर लटकने लगता है। जब ऊपर का भाग टूट कर गिर जाता है, तो नीचे का कठोर भाग एक भृगु का रूप धारण कर लेता है।

प्रश्न 18.
गुम्फित नदी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गुम्फित नदी ( Braided Channels):
नदी द्वारा प्रवाहित नद्य भार का निक्षेपण अगर नदी के मध्य में लम्बी रोधिका या रोध के रूप में हो जाए तो नदी धारा दो शाखाओं में विभाजित हो जाती हैं और यह प्रवाह किनारों पर क्षैतिज अपरदन करता है। नदी घाटी की चौड़ाई बढ़ने पर और जल आयतन कम होने पर, प्रजाहित जलोढ़ अधिक मात्रा में एक क्षैतिज अवरोध के रूप में द्वीप की भान्ति निक्षेपित हो जाते हैं तथा मुख्य जल धारा कई जल धाराओं में बंट जाती है।

गुम्फित नदी प्रारूप के लिए तटों पर अपरदन व निक्षेप आवश्यक है। या जब नदी में जल की मात्रा कम तथा जलोढ़ अधिक हो जाए, तब नदी प्रवाह में ही रेत, मिट्टी, बजरी आदि की लम्बी अवरोधिकाओं का जमाव हो जाता है और नदी प्रवाह कई जल वितरिकाओं में बंट जाता है। जल प्रवाह की ये विरिक्ताएं मिलती हैं और फिर उपधाराओं में बंट जाती हैं। इस प्रकार एक गुम्फित नदी प्रारूप का विकास होता है।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

प्रश्न 19.
गम्भीरभूत विसर्प तथा नदी वेदिकाएं किस प्रकार बनती हैं?
उत्तर:
अधः कर्तित विसर्प या गम्भीरभूत विसर्प (Incised or Entrenched Meanders ):
तीव्र ढालों में तीव्रता से बहती हुई नदियां सामान्यतः नदी तल पर अपरदन करती हैं। तीव्र नदी ढालों में भी पार्श्व/ क्षैतिज अपरदन अधिक नहीं होता लेकिन मंद ढालों पर बहती हुई नदियां अधिक पार्श्व अपरदन करती हैं। क्षैतिज अपरदन अधिक होने के कारण, मंद ढालों पर बहती हुई नदियां वक्री होकर बहती हैं या नदी विसर्प बनाती हैं।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास 2
नदी वेदिकाएं (River Terraces):
नदी वेदिकाएं प्रारम्भिक बाढ़ मैदान या पुरानी नदी घाटियों के चिह्न हैं। ये चट्टानी धरातल या नदियों के तल हैं जो जलोढ़ रहित वा निक्षेपित जलोढ़ वेदिकाओं के रूप में पाए जाते हैं। नदी वेदिकाएं मुख्यतः अपरदित स्थलरूप हैं क्योंकि ये नदी निक्षेपित बाढ़ मैदानों के लम्बवत् अपरदन से निर्मित होते हैं। ये वेदिकाएं संख्या में कई तथा भिन्न ऊंचाई की भी हो सकती हैं जो आरम्भिक नदी जल स्तर को दर्शाते हैं। नदी वेदिकाएं नदी के दोनों तरफ समान ऊंचाई वाली हो सकती हैं और इनके इस स्वरूप को युग्म (Paired ) वेदिकाएं कहते हैं।

प्रश्न 20.
नदी के मार्ग को विभिन्न अवस्थाओं में बांट कर प्रत्येक की विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
नदी मार्ग को उद्गम से लेकर सागर में गिरने तक तीन प्रमुख भागों में बांटा जाता है:
1. तरुणावस्था (Youth ):
इस अवस्था में नदियों की संख्या बहुत कम होती है तथा इनका मूल ढाल पर दुर्बल एकीकरण होता है। ये नदियां उथली V-आकार घाटी बनाती हैं और जिनमें बाढ़ के मैदान लगभग अनुपस्थित या संकरे बाढ़ मैदान मुख्य नदी के साथ-साथ पाए जाते हैं। जल विभाजक अत्यधिक विस्तृत (चौड़े) व समतल होते हैं, जिनमें दलदल व झीलें होती हैं। इन ऊंचे समतल धरातल पर नदी विसर्प विकसित हो जाते हैं। ये विसर्प अंततः ऊंचे धरातलों में गम्भीरभूत हो जाते हैं (अर्थात् विसर्प की तली में निम्न कटाव होता है और ये गहराई में बढ़ते हैं ।) जहां कठोर चट्टानों का अनावरण होता है वहां जलप्रपात व क्षिप्रितकाएं पाई जाती हैं।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास 3

2. प्रौढ़ावस्था (Mature ):
इस अवस्था में नदियों में जल की मात्रा अधिक होती है और सहायक नदियां भी इसमें आकर मिलती हैं। नदी घाटियां V-आकार की होती हैं लेकिन गहरी होती हैं। मुख्य नदी व्यापक विस्तृत होने से विस्तृत बाढ़ के मैदान पाए जाते हैं जिसमें घाटी के भीतर ही नदी विसर्प बनाती हुई प्रवाहित होती है। युवावस्था में निर्मित समतल, विस्तृत व दलदली अन्तर नदी क्षेत्र विलीन हो जाते हैं और नदी विभाजक स्पष्ट होते हैं। जलप्रपात व क्षिपिकाएं लुप्त हो जाती हैं।

3. जीर्णावस्था (Old ):
जीर्णावस्था में छोटी सहायक नदियां कम होती हैं और ढाल मंद होता है। नदियां स्वतन्त्र रूप से विस्तृत बाढ़ के मैदानों में बहती हुई नदी विसर्प, प्राकृतिक तटबन्ध, गोखुर झील आदि बनाती है विभाजक विस्तृत तथा समतल होते हैं जिनमें दलदल, कच्छ व अनूप उपस्थित होते हैं। अधिकतर भूदृश्य समुद्रतल के बराबर या थोड़ा ऊंचा होता है।

प्रश्न 21.
पेडीमेंट तथा पदस्थली की रचना बताओ।
उत्तर:
अपरदनात्मक स्थलरूप पेडीमेंट (Pediment ) और पदस्थली (Pediplain): मरुस्थलों में भूदृश्य का विकास मुख्यतः पेडीमेंट का निर्माण व उसका ही विकसित रूप है। पर्वतों के पाद पर मलबे रहित अथवा मलबे सहित मंद ढाल वाले चट्टानी तल पेडीमेंट कहलाते हैं। पेडीमेंट का निर्माण पर्वतीय अग्रभाग के अपरदन मुख्यतः सरिता के क्षैतिज अपरदन व परत बाढ़- दोनों के संयुक्त अपरदन से होता है। पर्वतों के तीव्र अग्रभाग या किनारों का अपरदन होता है और ये अपरदित भाग धरातल पर गिरते हैं। बाढ़ के कारण व तत्पश्चात् क्लिफ निर्माण से जो कटाव होते हैं उससे पेडीमेंट निर्मित होते हैं।

ये बाढ़ कटाव व क्लिफ निवर्तन करते हैं। यह अपरदन क्रिया पृष्ठक्षरण (backwasting) द्वारा की गई समानान्तर ढाल निवर्तन प्रक्रिया (paralled retreat of slope) कहलाती है। अत: समानान्तर ढाल विवर्तन द्वारा पेडीमेंट पर्वतों के अग्रभाग को अपरदित करते हुए पीछे हटते हैं और धीरे-धीरे पर्वतों का अपरदन होता है तथा इन्सेलबर्ग (Inselberg ) निर्मित होते हैं जो कि पर्वतों के अवशिष्ट रूप,हैं। इस प्रकार मरुस्थलीय प्रदेशों में एक उच्च धरातल आकृति विहीन मैदान में परिवर्तित हो जाता जिसे पेड़ीप्लेन या पदस्थली कहते हैं।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

प्रश्न 22.
प्लाया तथा ब्नजादा की रचना बताओ।
उत्तर:
प्लाया और बजादा (Playa and Bajada):
मरुभूमियों में मैदान (Plains) प्रमुख स्थलरूप हैं। पर्वत व पहाड़ियों से घिरे बेसिनों में अपवाह मुख्यतः बेसिन के मध्य में होता है, तथा बेसिन के किनारों से लगातार तलछट जमाव के कारण बेसिन के मध्य में लगभग समतल मैदान की रचना हो जाती है। पर्याप्त जल उपलब्ध होने पर यह मैदान उथले जल क्षेत्र में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार की उथली जल झीलें ही प्लाया ( Playa) कहलाती हैं। प्लाया में वाष्पीकरण के कारण जल अल्प समय के लिए ही रहता है और अक्सर प्लाया में लवणों के घने निक्षेप पाए जाते हैं।

ऐसे प्लाया मैदान जो लवणों से भरे हों, कल्लर भूमि या क्षारीय क्षेत्र (Alkali flats) कहलाती हैं। अगर प्लाया मरुस्थल बेसिन के समतल मध्य मैदान हैं तो इनके ऊपर के ढाल वाले मैदान (जिनका ढाल 1° से 5° के मध्य है ) और जो गिरिपद पर जमाव से बने हैं, उन्हें बजादा (Bajada) कहते हैं। प्लाया व बजादा मुख्यतः पर्वतों के निवर्तन से बने पेडिमेंट के ही हिस्से हैं, जो बाढ़ अपरदित मलबे से ढके हैं। चूंकि प्लाया व बजादा पर तलछटों के जमाव की मोटी परत नहीं होती और इनके तल अपरदन के फलस्वरूप बनते हैं; इसलिए इन्हें कई बार अपरदनात्मक स्थलरूपों में वर्णित किया जाता है।

प्रश्न 23.
जल चक्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रकृति का जल अपने कई रूपों में बदलते हुए पुन: उसी रूप में लौट आता है। इसे ही जल चक्र की संज्ञा दी जाती है। जैसे पृथ्वी के जलाशयों का जल सूर्य के ताप के कारण जलवाष्प में बदलकर वायुमण्डल में चला जाता है। वायुमण्डल में यह संघनित होकर बर्फ या जल के रूप में पुनः पृथ्वी पर आ जाता है। इस प्रकार जल वायुमण्डल, स्थलमण्डल तथा जलमण्डल पर स्थानान्तरित होता है।

तुलनात्मक प्रश्न (Comparison Type Questions)

प्रश्न 1.
अपरदन तथा अपक्षय में अन्तर स्पष्ट करो
उत्तर:

अपरदन (Erosion) अपक्षय (Weathering)
(1) भू-तल पर खुरचने, काँट-छाँट तथा मलवे को परिवहन करने के कार्य को अपरदन कहते हैं। (1) चट्टानों को अपघटन तथा विघटन के द्वारा अपने मूल स्थान पर तोड़-फोड़ करने की क्रिया को अपक्षय कहते हैं।
(2) अपरदन एक बड़े क्षेत्र में होता है। (2) अपक्षय छोटे क्षेत्रों की क्रिया है।
(3) अपरदन गतिशील कारकों द्वारा जैसे जल, हिमनदी, वायु आदि से होता है। (3) अपक्षय सूर्यतप, पाला तथा रासायनिक क्रियाओं द्वारा होता है।
(4) अपक्षय अपरदन में सहायक होता है। (4) अपक्षय चट्टानों को कमज़ोर करके अपरदन में सहायता करता है ।

JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

प्रश्न 2.
‘V’ आकार घाटी तथा ‘U’ आकार घाटी में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

V आकार घाटी ‘U’ आकार घाटी
(1) नदी अपरदन से ‘V’ आकार घाटी बनती है। (1) हिमनदी के अपरदन से ‘U’ आकार घाटी बनती है।
(2) यह घाटी अधिक गहरी होती है। जब यह ‘T’ आकार में बन जाती है तो इसे कैनियन कहते हैं। (2) यह घाटी अधिक गहरी नहीं होती है। इससे ऊंचाई पर बनी घाटी को लटकती घाटी कहते हैं।
(3) इसके किनारे पूर्ण रूप से लम्ब नहीं होते। (3) इसकी दीवारें पूर्ण रूप से लम्ब होती हैं।
(4) नदी अपने गहरे कटाव से इस घाटी की रचना करती है। (4) हिमनदी की अपनी कोई घाटी नहीं होरी। यह नदी घाटी का रूप बदल कर उसे ‘U’ आकार की घाटी बना देती है।

प्रश्न 3.
निम्नीकरण तथा अधिवृद्धि में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

निम्नीकरण अधिवृद्धि
(1) बाह्य कारकों द्वारा स्थानीय धरातल के अपरदन को निम्नीकरण कहते हैं। (1) धरातल के निचले स्थानों को मलवे के निक्षेप से भरने की क्रिया को अधिवृद्धि कहते हैं।
(2) यह अपरदन का ही दूसरा रूप है। (2) यह निक्षेप का ही दूसरा रूप है।
(3) इससे ऊंचे प्रदेश निचले प्रदेश हो जाते हैं। (3) इससे निचले प्रदेश का तल ऊँचा हो जाता है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
तरंगों (लहरों) द्वारा अपरदन, परिवहन तथा निक्षेप के कार्य का वर्णन करो।
उत्तर:
समुद्री लहरों का कार्य (Work of Sea Waves) दूसरे कार्यकर्त्ताओं के समान लहरें भी अपरदन, परिवहन तथा निक्षेप का कार्य करती हैं।
(क) अपरदन (Erosion ): तट पर तोड़-फोड़ का कार्य प्राय: सर्फ ( Surf) लहरें तथा तूफानी लहरों द्वारा ही होता है। समुद्री लहरों द्वारा अपरदन अधिक-से-अधिक 600 फुट की गहराई तक होता है। यह अपरदन चार प्रकार से होता है:

  1. जल दबाव क्रिया (Water Pressure ): छिद्रों में जल के दबाव से चट्टानें टूटने-बिखरने लगती हैं।
  2. अपघर्षण (Abrasion): बड़े – बड़े पत्थर चट्टानों से टकरा कर उन्हें तोड़ते रहते हैं।
  3. संनिघर्षण (Attrition ): पत्थरों के टुकड़े आपस में टकरा कर टूटते रहते हैं।
  4. घुलन क्रिया (Solution ): समुद्री जल चूना युक्त चट्टानों को घुला कर अपरदन कर देता है।

अपरदन द्वारा बने स्थलाकार:
1. खाड़ियां (Bays ): जब किसी तट पर कोमल तथा कठोर चट्टानें लम्ब रूप में स्थित हों तो कोमल चट्टानें (Soft Rocks) भीतर की ओर अधिक कट जाती हैं। इस प्रकार कोमल चट्टानों में खाड़ियां (Bays) बन जाती हैं तथा कठोर चट्टानें आगे निकल जाती हैं तथा अन्तरीप (Cape ) की रचना करती हैं।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास 4

2. भृगु (Cliff): समुद्र तट पर खड्ढे ढाल वाले पर्वत को भृगु या क्लिफ (Cliff) कहते हैं। लहरों के लगातार सीधे आक्रमण के कारण चट्टानें अपने आधार पर कट जाती हैं तथा दांत (Notch ) की रचना होती है। ऊपर का भाग धीरे-धीरे आगे बढ़कर लटकने लगता है। कुछ समय के पश्चात् यह भाग टूट कर गिर जाता है। इससे तटों पर खड़े किनारों की रचना होती है जिसे भृगु ( Cliff) कहते हैं। भारत के पश्चिमी तट पर भृगुओं के उदाहरण मिलते हैं।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास 5

3. समुद्री गुफाएं (Sea Caves): आधार की कोमल चट्टानों के टूटने या घुल जाने पर तट के समीप खोखले स्थान बन जाते हैं । लहरों द्वारा वायु के बार-बार घुसने व निकलने की क्रिया से ये स्थान चौड़े हो जाते हैं तथा गुफाएं बन जाती हैं। दो पड़ोसी गुफाओं के बीच की दीवार टूट जाने से मेहराब (Arch) बन जाती है जिसे प्राकृतिक पुल भी कहते हैं, जैसे- इंग्लैण्ड में Needle’s Eye।
JAC Class 11 Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास 6

4. वात छिद्र (Blow Holes): वायु के दबाव से कई बार गुफा की छत में छिद्र हो जाते हैं, इनमें से जल फव्वारे के रूप में बाहर निकलता है। इन छिद्रों से पवन सीटी बजाती हुई ऊपर निकलती है और साथ ही पानी फव्वारे के रूप में बाहर निकलता है। इन्हें उगलने वाले छिद्र (Spouting Horns) कहते हैं।

5. सागरीय स्तम्भ (Stack): मेहराब के छत के टूट जाने से कठोर चट्टानों के कुछ अंश स्तम्भ के रूप में खड़े रह जाते हैं जिन्हें स्तम्भ (Stack) कहते हैं। इंग्लैण्ड में St. Kilda के स्तम्भ 627 फुट ऊंचे हैं।

परिवहन का कार्य (Work of Transportation ): समुद्र में खुरचा हुआ पदार्थ लहरों, वायु तथा धाराओं द्वारा परिवहन होता है। लहरों द्वारा सागरीय पदार्थों का परिवहन दो रूपों में होता है:

  1. तट की ओर
  2. सागर की ओर

निक्षेप के कार्य (Work of Deposition): लहरों द्वारा अपरदन से प्राप्त पदार्थ तट के सहारे या तट के दूर जमा होते हैं। लहरों के नीचे के प्रवाह (Undertow) के कारण तट के दूर सागर में निक्षेप होता है। इससे तट का ढाल कम होता है तथा तट का विस्तार आगे बढ़ता रहता है। इस निक्षेप से कई भू-आकार बनते हैं:

1. पुलिन अथवा बीच (Beach ):
सागरीय तट के साथ-साथ मलवा के निक्षेप से बनी तटीय श्रेणियों को पुलिन कहते हैं। तट के निकट ये ऊंचे से प्रदेश क्रीड़ा के उत्तम स्थल बन जाते हैं। समतल तटों पर चौड़े पुलिन मिलते हैं, परन्तु पर्वतीय भागों में पुलिन कम मिलते हैं, जैसे – चिल्ली का तट।

2. रोधिका (Bars):
लहरों द्वारा तट के समानान्तर निक्षेप से ऊंची मुंडेर या श्रेणी बन जाती है। इन्हें तटीय रोध (Offshore Bars) कहते हैं। ये तट से दूर खुले समुद्र में बनती हैं। ये श्रेणियां तट रेखा तथा सागरीय जल के बीच रुकावट का कार्य करती हैं।

3. लैगून झीलें (Lagoons):
यदि रोधिका के दोनों छोर स्थल भाग से जुड़ जाते हैं तो बीच में खारे जल की झील बन जाती है। तट रेखा और मुंडेरों के बीच का जल एक छोटी झील का रूप धारण कर लेता है जिसे लैगून कहते हैं। भारत के पूर्वी तट पर चिल्का (Chilka) तथा पुलीकट (Pulicat) झीलें तथा केरल में वेम्बनाद झील इसी प्रकार बनी हैं।

4. भूजिहवा (Spit ):
भूजिहवा लहरों के निक्षेप से बनी एक रेतीली श्रेणी होती है। यह एक बांध के समान है जिसका एक सिरा तट से जुड़ा होता है तथा दूसरा सिरा खुले सागर में डूबा रहता है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 6 मृदा

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 6 मृदा Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 6 मृदा

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न- दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. भारत में कौन-सी मृदा सबसे विस्तृत उपजाऊ है?
(A) जलोढ़।
(B) काली मृदा
(C) लेटराइट
(D) वन मृदा।
उत्तर:
(A) जलोढ़।

2. किस मृदा को रेगड़ मृदा भी कहते हैं?
(A) नमकीन
(B) काली
(C) शुष्क
(D) लेटराइट।
उत्तर:
(B) काली।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 6 मृदा

3. मृदा की ऊपरी तह के उड़ जाने का मुख्य कारण
(A) पवन अपरदन
(B) अपक्षातान
(C) जल अपरदन
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
(A) पवन अपरदन।

4. कृषिकृत भूमि में जल सिंचित क्षेत्र में लवण का क्या कारण है?
(A) जिप्सम
(B) अति जल सिंचाई
(C) अति पशुचारण
(D) उर्वरक।
उत्तर:
(B) अति जल सिंचाई।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मृदा क्या है?
उत्तर:
मृदा भूतल की ऊपरी सतह का आवरण है। भू-पृष्ठ पर मिलने वाले असंगठित पदार्थों की ऊपरी परत को मृदा कहते हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 6 मृदा

प्रश्न 2.
मृदा निर्माण के प्रमुख उत्तरदायी कारक कौन-से हैं?
उत्तर:

  1. मूल पदार्थ
  2. उच्चावच
  3. जलवायु
  4. प्राकृतिक वनस्पति।

प्रश्न 3.
मृदा परिच्छेदिका के तीन संस्तरों के नामों का उल्लेख करो।
उत्तर:

  1. A-स्तर
  2. B-स्तर
  3. C-स्तर।

प्रश्न 4.
मृदा अवकर्षण क्या होता है?
उत्तर:
मृदा की उर्वरता के ह्रास को मृदा अवकर्षण कहते हैं। इससे मृदा का पोषण स्तर गिर जाता है तथा मृदा की गहराई कम हो जाती है।

प्रश्न 5.
खादर तथा बांगर में क्या अन्तर है?
उत्तर:
पुरातन जलोढ़ के निक्षेप से बने ऊंचे प्रदेश को बांगर कहते हैं। नवीन जलोढ़ के निक्षेप से बने निचले प्रदेश को खादर कहते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न – निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 125 शब्दों तक दीजिए
प्रश्न 1.
काली मृदाएं किसे कहते हैं? इनके निर्माण तथा विशेषताओं का वर्णन कीजिए
उत्तर:
काली मिट्टी (Black Soil)

1. विस्तार ( Extent ):
इस मिट्टी का विस्तार प्रायद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग में लगभग 5 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है। यह गुजरात, महाराष्ट्र के अधिकांश भाग, मध्य प्रदेश, दक्षिणी उड़ीसा, उत्तरी कर्नाटक, दक्षिणी आंध्र प्रदेश में मिलती है। यह मिट्टी नर्मदा, ताप्ती, गोदावरी तथा कृष्णा नदी की घाटियों में पाई जाती है।

2. विशेषताएं (Characteristics):
इस मिट्टी का निर्माण लावा प्रवाह से बनी आग्नेय चट्टानों के टूटने-फूटने से हुआ है। यह अधिकतर दक्कन लावा (Deccan Trap) के क्षेत्र में मिलता है। इसलिए इसे लावा मिट्टी भी कहते हैं। इस मिट्टी का रंग काला होता है इसलिए इसे काली मिट्टी (Black Soil) भी कहते हैं। इसे रेगड़ मिट्टी (Regur Soil) भी कहा जाता है। इस मिट्टी में चूना, लोहा, मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है, परन्तु फॉस्फोरस, पोटाश, नाइट्रोजन तथा जैविक पदार्थों की कमी होती है। इस मिट्टी में नमी धारण करने की शक्ति अधिक है। इसलिए सिंचाई की आवश्यकता कम होती है। इस मिट्टी की तुलना में इसकी ‘शर्नीज़म’ तथा अमेरिका की ‘प्रेयरी’ मिट्टी से की जाती है।

3. फसलों की उपयुक्तता (Suitability to Crops):
यह मिट्टी कपास की कृषि के लिए उपयुक्त है। इसलिए इसे ‘कपास की मिट्टी’ (Cotton Soil) भी कहते हैं। पठारों की उच्च भूमि में कम उपजाऊ होने के कारण यहां ज्वारबाजरा, दालों आदि की कृषि होती है। मैदानी भैग में गेहूं, कपास, तम्बाकू, मूंगफली तथा तिलहन की कृषि की जाती है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 6 मृदा

प्रश्न 2.
मृदा संरक्षण क्या होता है? मृदा संरक्षण के कुछ उपाय सुझाइए
उत्तर:
मृदा संरक्षण यदि मृदा अपरदन और मृदाक्षय मानव द्वारा किया जाता है, तो स्पष्टतः मानवों द्वारा ही इसे रोका भी जा सकता है। मृदा संरक्षण एक विधि है, जिसमें मिट्टी की उर्वरता बनाए रखी जाती है, मिट्टी के अपरदन और क्षय को रोका जाता है और मिट्टी की अपक्षरित दशाओं को सुधारा जाता है। मृदा अपरदन वास्तव में मनुष्यकृत समस्या है।

1. किसी भी तर्कसंगत समाधान में पहला काम ढालों की कृषि योग्य खुली भूमि पर खेती को रोकना है। 15 से 25 प्रतिशत डाल वाली भूमि का उपयोग कृषि के लिए नहीं होना चाहिए। यदि ऐसी भूमि पर खेती करना ज़रूरी हो जाए, तो इस पर सावधानी से सीढ़ीदार खेत बना लेने चाहिएं।

2. भारत के विभिन्न भागों में, अति चराई और झूम कृषि ने भूमि के प्राकृतिक आवरण को दुष्प्रभावित किया है। इसी प्रकार विस्तृत क्षेत्र अपरदन की चपेट में आ गए हैं। ग्रामवासियों को इनके दुष्परिणामों से अवगत करवा कर इन्हें ( अति चराई और झूम कृषि) नियमित और नियन्त्रित करना चाहिए।

3. समोच्च रेखा के अनुसार मेड़बंदी, समोच्च रेखीय सीढ़ीदार खेती बनाना, नियमित वानिकी, नियन्त्रित चराई, वरणात्मक खरपतवार नाशन, आवरण फसलें उगाना, मिश्रित खेती तथा शस्यावर्तन, उपचार के कुछ ऐसे तरीके हैं, जिनका उपयोग मृदा अपरदन को कम करने के लिए प्रायः किया जाता है।

4. अवनालिका अपरदन को रोकने तथा उनके बनने पर नियन्त्रण के प्रयत्न किए जाने चाहिएं। अंगुल्याकार अवनालिकाओं को सीढ़ीदार खेत बनाकर खत्म किया जा सकता है। अवनालिकाओं के शीर्ष की ओर के विकास को नियन्त्रित करने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। इस कार्य को अवनालिकाओं को बन्द करके, सीढ़ीदार खेत बनाकर या आवरण वनस्पति का रोपण करके किया जा सकता है।

5. मरुस्थलीय और अर्द्ध-मरुस्थलीय क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि पर बालू के टीलों के प्रसार को वनों की रक्षक मेखला बनाकर रोकना चाहिए। कृषि के अयोग्य भूमि को चराई के लिए चरागाहों में बदल देना चाहिए। बालू के टीलों को स्थिर करने के उपाय भी अपनाए जाने चाहिएं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 6 मृदा

भारत – स्थिति  JAC Class 11 Geography Notes

→ मिट्टी (Soil): भू-पृष्ठ पर मिलने वाले असंगठित पदार्थों की ऊपरी पर्त को मृदा कहते हैं।

→ मिट्टी के तत्त्व (Constituents of Soil): खनिज, ह्यूमस, जल, वायु तथा बैक्टीरिया ।

→ मिट्टी निर्माण के लिये आवश्यक तत्त्व (Formation of Soil): मूल पदार्थ, धरातल, जलवायु, ऋतु प्रहार।

→ मृदा के संस्तर (Horizons of Soil) अ – संस्तर, ब- संस्तर, स- संस्तर

→ मिट्टी की महत्ता (Importance of Soils ): मिट्टी एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है। मानव तथा आर्थिक क्रियाएं मिट्टी का उपजाऊपन पर निर्भर करती हैं।

→ भारत में मिट्टी के प्रकार (Types of Soils): भारतीय मिट्टी के समूह निम्नलिखित हैं

  • काली मिट्टी
  • लाल मिट्टी
  • लेटराइट मिट्टी
  • जलोढ़ मिट्टी
  • मरुस्थलीय मिट्टी
  • पर्वतीय मिट्टी

→ मृदा अपरदन (Soil erosion ): जल, वायु आदि द्वारा मिट्टी की ऊपरी परत का बहना मृदा अपरदन कहलाता है।

→ मृदा अपरदन के कारण (Causes of Soil Erosion): तीव्र ढलाने, भारी वर्षा, तेज़ हवाएं, चरागाहों का मृदा अत्यधिक प्रयोग, वनों की कटाई आदि।

→ मृदा संरक्षण (Conservation of Soil): मृदा संरक्षण के लिए मृदा का संरक्षण, पुन: नवीकरण तथा उपजाऊपन कायम रखना आवश्यक है। इसके लिए वनारोपण, नियन्त्रित पशु चारण, सीढ़ीनुमा कृषि तथा फ़सलों का हेर-फेर आवश्यक है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. प्राजैक्ट टाइगर का उद्देश्य क्या था?
(A) शेरों का शिकार करना
(B) अवैध शिकार को रोक कर शेरों की सुरक्षा
(C) शेरों को चिड़ियाघरों में रखना
(D) शेरों पर चित्र बनाना।
उत्तर:
(B) अवैध शिकार को रोककर शेरों की सुरक्षा।

2. नन्दा देवी जीव आरक्षण क्षेत्र किस राज्य में है?
(A) बिहार
(B) उत्तराखण्ड
(C) उत्तर प्रदेश
(D) उड़ीसा।
उत्तर:
(B) उत्तराखण्ड।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

3. संदल किस प्रकार के वन की लकड़ी है?
(A) सदाबहार
(B) डैल्टा वन
(C) पतझड़ीय
(D) कंटीले वन।
उत्तर:
(C) पतझड़ीय।

4. IUCN द्वारा कितने जीव आरक्षण स्थल मान्यता प्राप्त है?
(A) 1
(B) 2
(C) 3
(D) 4
उत्तर:
(D) 4

5. वन नीति के अधीन वन क्षेत्र का लक्ष्य कितना था?
(A) 33%
(B) 53%
(C) 44%
(D) 22%.
उत्तर:
(A) 33%.

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
प्राकृतिक वनस्पति क्या है? जलवायु की किन परिस्थितियों में ऊष्ण कटिबन्धीय वन उगते हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक वनस्पति से अभिप्राय उस पौधा समुदाय से है जो लम्बे समय तक बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के उगता है। इसकी विभिन्न प्रजातियां मृदा व जलवायु के अनुसार पनपती हैं। उष्ण कटिबन्धीय वन-ये वन उष्ण एवं आई प्रदेशों में उगते हैं। यहां वार्षिक वर्षा 200 सें० मी० से अधिक तथा औसत वार्षिक तापमान 22°C से अधिक रहता है। इससे कम वर्षा तथा तापमान में उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन मिलते हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 2.
जलवायु की कौन-सी परिस्थितियां सदाबहार वन उगने के लिए अनुकूल हैं?
उत्तर:

  1. वार्षिक वर्षा 200 सें० मी०
  2. औसत वार्षिक तापमान 22°C. ये दशाएं भूमध्य रेखीय जलवायु में मिलती हैं।

प्रश्न 3.
सामाजिक वानिकी से आपका क्या अभिप्रायः है?
उत्तर:
सामाजिक वानिकी का अर्थ है- पर्यावरणीय, सामाजिक व ग्रामीण विकास में मदद करने के उद्देश्य से वनों का प्रबन्ध और सुरक्षा तथा ऊसर भूमि पर वनारोपण। इसका उद्देश्य है ग्रामीण जनसंख्या के लिए ज्लावन छोटी इमारती लकड़ी और छोटे-छोटे वन उत्पादों की पूर्ति करना।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 4.
जीवमण्डल निचय को परिभाषित करें, वन क्षेत्र और वन आवरण में क्या अन्तर है?
उत्तर:
जीवमण्डल निचय आरक्षित क्षेत्र (Bioreserves) विशेष प्रकार के भौमिक और तटीय पारिस्थितिक तन्त्र हैं जिन्हें UNESCO द्वारा मान्यता प्राप्त है। वन क्षेत्र और वन आवरण एक-दूसरे से भिन्न-भिन्न हैं। वन क्षेत्र राजस्व विभाग के अनुसार अधिसूचित क्षेत्र हैं चाहे वहां वृक्ष हो या न हो। वन आवरण वास्तविक रूप से वनों से ढका प्रदेश है। सन् 2001 में भारत में वन आवरण, 20.55% था, परन्तु इनमें 12.6% सघन तथा 7.8% विरल वन थे।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न-निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दोप्रश्न
प्रश्न 1.
वन संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
उत्तर:
जनसंख्या के अत्यधिक दबाव तथा पशुओं की संख्या में अत्यधिक वृद्धि के कारण वन सम्पदा का संरक्षण आवश्यक है। वन संरक्षण कृषि एवं चराई के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता के कारण आवश्यक है। इसके लिए वनवर्द्धन के उत्तम तरीकों को अपनाया जा रहा है। तेज़ी से उगने वाले पौधों की जातियों को लगाया जा रहा है। घास के मैदानों का पुनर्विकास किया जा रहा है। वन क्षेत्रों का विस्तार किया जा रहा है।
वनों का जीवन तथा पर्यावरण के साथ जटिल सम्बन्ध है, वन संरक्षण के लिए कई कदम उठाए गए हैं:

  1. वन नीति-1952 तथा 1988 में वन संरक्षण हेतु वन नीति लागू की गई।
  2. वन संसाधनों का सतत्-पोषणीय विकास किया जाएगा तथा स्थानीय लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति होगी।
  3. देश में 33% वन लगाने के यत्न किए जा रहे हैं।
  4. वनों में जैव विविधता तथा पारिस्थितिक सन्तुलन कायम रखा जाएगा।
  5. मृदा अपरदन तथा बाढ़ पर नियन्त्रण।
  6. सामाजिक वानिकी तथा वनरोपण द्वारा वन आवरण का विस्तार हो रहा है।
  7. वनों की उत्पादकता को बढ़ाया जा रहा है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 2.
वन और वन्य जीव संरक्षण में लोगों की भागीदारी कैसे महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
वन संरक्षण में लोगों की भागीदारी द्वारा सामाजिक वानिकी की विचारधारा का प्रयोग किया जा रहा है। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों की संस्थाएं तथा महिलाएं योगदान दे रही हैं।
1. 1976 के राष्ट्रीय कृषि आयोग ने पहले-पहल ‘सामाजिक वानिकी’ शब्दावली का प्रयोग किया था। इसका अर्थ है-ग्रामीण जनसंख्या के लिए जलावन, छोटी इमारती लकड़ी और छोटे-छोटे वन उत्पादों की आपूर्ति करना।

2. अधिकतर राज्यों में वन विभागों के अन्तर्गत सामाजिक वानिकी के अलग से प्रकोष्ठ बनाए गए हैं।

3. सामाजिक वानिकी के मुख्य रूप से तीन अंग हैं: कृषि वानिकी किसानों को अपनी भूमि पर वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित करना, वन-भूखण्ड (वुडलाट्स) वन विभागों द्वारा लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए सड़कों, के किनारे, नहर के तटों तथा ऐसी अन्य सार्वजनिक भूमि पर वृक्षारोपण, सामुदायिक वन-भूखण्ड लोगों द्वारा स्वयं बराबर की हिस्सेदारी के आधार पर भूमि पर वृक्षारोपण।

4. यह लोगों की आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करने वाले कार्यक्रम के स्थान पर किसानों का धनोपार्जन कार्यक्रम बन गया।

प्राकृतिक वनस्पति JAC Class 11 Geography Notes

→ वन-एक प्राकृतिक साधन (Forests-A Natural Resource): वन एक नदी की भाँति बहुमुखी। संसाधन हैं। किसी देश का आर्थिक विकास वनों के उपयोग पर निर्भर करता है। जलवायु तथा प्राकृतिक वनस्पति-जलवायु तथा प्राकृतिक वनस्पति में घना सम्बन्ध है। विभिन्न प्रकार के वन-सदाबहार, पतझड़ीय, शुष्क; सभी वन तापमान तथा वर्षा पर निर्भर करते हैं।

→ वनों की महत्ता (Importance of Forests):

  • वन हमें भोजन सम्बन्धी वस्तुएं प्रदान करते हैं।
  • इनसे लकड़ी प्राप्त होती है।
  • वन विश्व का 40% ईंधन प्रदान करते हैं। लकड़ी का प्रयोग विभिन्न प्रकार से किया जाता है, जैसे घरों में ईंधन, प्रगलन उद्योगों में तथा रेल इंजनों में।
  • नर्म लकड़ी, लकड़ी की लुग्दी कागज़, रेयॉन उद्योग के लिये कच्चा माल, प्रदान करती है।
  • वन वायु में नमी ग्रहण करके वर्षा लाने में सहायता करते हैं।
  • वन मिट्टी अपरदन तथा बाढ़ को रोकते हैं।
  • ये मरुस्थलों को बढ़ने से रोकते हैं।

→ भारत में वनों के प्रकार (Types of Forests in India): भारत में वर्षा, तापमान तथा ऊंचाई की विभिन्नता होने के कारण विभिन्न प्रकार के वन पाये जाते हैं

  • उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन
  • पतझड़ीय वन
  • शुष्क वन
  • ज्वारीय वन
  • पर्वती वन।

→ वनों का ह्रास (Depletion of Forests): निम्नलिखित कारणों द्वारा उत्तम वनों का विशाल क्षेत्रों पर ह्रास हुआ है

  • विशाल पैमाने पर वन क्षेत्र की कटाई
  • स्थानान्तरी कृषि
  • भारी मृदा अपरदन
  • चरागाहों की अत्यधिक चराई
  • लकड़ी तथा ईंधन के लिये वनों की कटाई
  • भूमि का मानव के लिये प्रयोग।

→ वनों का संरक्षण (Conservation of Forests): देश के वन संसाधनों पर जनसंख्या का भारी दबाव है। बढ़ती। हुई जनसंख्या को कृषि योग्य भूमि की अधिक आवश्यकता है। इसलिए वन संरक्षण उपाय आवश्यक हैं।

→ वृक्षारोपण का विभिन्न क्षेत्रों में विकास हुआ है। घास के मैदानों का विकास किया गया है। रेशम के कीड़े पालने के विकसित तरीकों का प्रयोग किया जा रहा है। तेज़ी से बढ़ने वाले पौधों को लगाया जा रहा है। वनों । के अन्तर्गत क्षेत्रों में वृद्धि की गई है। राष्ट्रीय वन नीति-1988 की राष्ट्रीय वन नीति ने वनों का संरक्षण, पुनः विकास किया है। इसका उद्देश्य वातावरण, का संरक्षण तथा पारिस्थितिक सन्तुलन बनाये रखना है। इसके अन्य उद्देश्य सामाजिक वाणिकी तथा वन उत्पादन में वृद्धि करना है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 जलवायु

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 जलवायु Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 4 जलवायु

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)

दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. शीतकाल में तमिलनाडु के तटीय मैदान में किन पवनों द्वारा वर्षा होती है?
(A) दक्षिण-पश्चिम मानसून
(B) उत्तर-पूर्वी मानसून
(C) शीतोष्ण चक्रवात
(D) स्थानिक पवनों।
उत्तर:
(B) उत्तर-पूर्वी मानसून

2. कितने प्रतिशत भाग में भारत में 75 सें० मी० से कम वार्षिक वर्षा होती है?
(A) आधे
(B) दो-तिहाई
(C) एक-तिहाई
(D) तीन चौथाई।
उत्तर:
(D) तीन चौथाई।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 जलवायु

3. दक्षिणी भारत के सम्बन्ध में कौन-सा कथन सही नहीं?
(A) दैनिक तापान्तर कम है
(B) वार्षिक तापान्तर कम है
(C) वर्ष भर तापमान अधिक है
(D) यहां कठोर जलवायु है।
उत्तर:
(D) यहां कठोर जलवायु है।

4. जब सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा पर लम्ब चमकता है तो क्या होता है?
(A) उत्तर-पश्चिमी भारत में उच्च वायु दाब
(B) उत्तर-पश्चिमी भारत में निम्न वायु दाब
(C) उत्तर-पश्चिमी भाग में तापमान-वायु दाब में
(D) उत्तर-पश्चिमी भाग में लू चलती है।
उत्तर:
(A) उत्तर-पश्चिमी भारत में उच्च वायु दाब।

5. भारत के किस देश-प्रदेश में कोपेन के ‘AS’ वर्ग की जलवायु है?
(A) केरल तथा कर्नाटक
(B) अण्डेमान निकोबार द्वीप
(C) कोरोमण्डल तट
(D) असम-अरुणाचल।
उत्तर:
(C) कोरोमण्डल तट।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारतीय मौसम के रचना तन्त्र को प्रभावित करने वाले तीन महत्त्वपूर्ण कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भारतीय मौसम के रचना तन्त्र को निम्नलिखित तीन कारक प्रभावित करते हैं
1. दाब तथा हवा का धरातलीय वितरण जिसमें मानसून पवनें, कम वायु दाब क्षेत्र तथा उच्च वायु दाब क्षेत्रों की स्थिति महत्त्वपूर्ण कारक हैं।
2. ऊपरी वायु परिसंचरण (Upper air Circulation) में विभिन्न वायु राशियां तथा जेट प्रवाह महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं।
3. विभिन्न वायु विक्षोभ (Atmospheric disturbances) में ऊष्ण कटिबन्धीय तथा पश्चिमी चक्रवात द्वारा वर्षा होना महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालता है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 2.
अन्तर ऊष्ण कटिबन्धीय अभिसरण कटिबन्ध (I.T.C.Z.) क्या है?
उत्तर:
अन्तर ऊष्ण कटिबन्धीय अभिसरण कटिबन्ध (I.T. C. Z. ):
भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब कटिबन्ध है जो धरातल के निकट पाया जाता है। इसकी स्थिति ऊष्ण कटिबन्ध के बीच सूर्य की स्थिति के अनुसार बदलती रहती है। ग्रीष्मकाल में इसकी स्थिति उत्तर की ओर तथा शीतकाल में दक्षिण की ओर सरक जाती है । यह भूमध्य रेखीय निम्न दाब द्रोणी दोनों दिशाओं में हवाओं के प्रवाह को प्रोत्साहित करती है ।

प्रश्न 3.
‘मानसून प्रस्फोट’ किसे कहते हैं? भारत में सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान बताओ।
उत्तर:
भारत के पश्चिमी तट पर अरब सागर की मानसून पवनें दक्षिणी-पश्चिमी दिशा में चलती हैं। यहां ये पवनें जून के प्रथम सप्ताह में अचानक आरम्भ हो जाती हैं। मानसून के इस अकस्मात आरम्भ को ‘मानसून प्रस्फोट’ (Monsoon Burst) कहा जाता है क्योंकि मानसून आरम्भ होने पर बड़े ज़ोर की वर्षा होती है। जैसे किसी ने पानी से भरा गुब्बारा फोड़ दिया हो। भारत में मासिनराम (Mawsynram) में सबसे अधिक वार्षिक वर्षा ( 1080 सें० मी०) होती है। यह स्थान खासी पहाड़ियों में स्थित है।

प्रश्न 4.
जलवायु प्रदेश क्या होता है? कोपेन की पद्धति के प्रमुख आधार कौन से हैं?
उत्तर:
जलवायु प्रदेश – वह प्रदेश जहां वायुमण्डलीय दशाएं तापमान, वर्षा, मेघ, पवनें, वायुदाब आदि सब में लगभग समानता है। कोपेन की जलवायु पद्धति का आकार – कोपेन ने भारत के जलवायु प्रदेशों का वर्गीकरण किया है। इस वर्गीकरण का आधार दो तत्त्वों पर आधारित है। इसमें तापमान तथा वर्षा के औसत मासिक मान का विश्लेषण किया गया है। प्राकृतिक वनस्पति द्वारा किसी स्थान के तापमान और वर्षा के प्रभाव को आंका जाता है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 5.
उत्तर-पश्चिमी भारत में रबी की फसलें बोने वाले किसानों को किस प्रकार के चक्रवातों से वर्षा प्राप्त होती है? वे चक्रवात कहां उत्पन्न होते हैं?
उत्तर:
भारत में उत्तर-पश्चिमी भाग में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शीतकाल में चक्रवातीय वर्षा होती है। ये चक्रवात पश्चिमी एशिया तथा भूमध्यसागर में उत्पन्न होते हैं तथा पश्चिमी जेट प्रवाह के साथ-साथ भारत में पहुंचते हैं। औसतन शीत ऋतु में 4 से 5 चक्रवात दिसम्बर से फरवरी के मध्य इस प्रदेश में वर्षा करते हैं। पर्वतीय भागों में हिमपात होता है। पूर्व की ओर इस वर्षा की मात्रा कम होती है। इन प्रदेशों में वर्षा 5 सेंटीमीटर से 25 सेंटीमीटर तक होती है। ये चक्रवात रबी की फसलों गेहूँ, बाजरा आदि के लिए लाभदायक हैं

(ग) निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions )

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
जलवायु में एक प्रकार का ऐक्य होते हुए भी भारत की जलवायु में क्षेत्रीय विभिन्नताएं पाई जाती हैं। उपयुक्त उदाहरण देते हुए इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत एक विशाल देश है। यहां पर अनेक प्रकार की जलवायु मिलती है। परन्तु मुख्य रूप से भारत मानसून पवनों के प्रभावाधीन है। मानसून पवनों के प्रभाव के कारण देश में जलवायविक एकता पाई जाती है। फिर भी देश के विभिन्न भागों में तापमान, वर्षा आदि जलवायु तत्त्वों में काफ़ी अन्तर पाए जाते हैं। ये प्रादेशिक अन्तर एक प्रकार से मानसूनी जलवायु के उपभेद हैं। आधारभूत रूप से सारे देश में जलवायु की व्यापक एकता पाई जाती है
प्रादेशिक अन्तर मुख्य रूप से तापमान, वायु तथा वर्षा के ढांचे में पाए जाते हैं।

1. राजस्थान के मरुस्थल में, बाड़मेर में ग्रीष्मकाल में 50°C तक तापमान मापे जाते हैं। इसके पर्वतीय प्रदेशों में तापमान 20°C सैंटीग्रेड के निकट रहता है।

2. दिसम्बर मास में द्रास एवं कारगिल में तापमान 40°C तक पहुंच जाता है जबकि तिरुवनन्तपुरम तथा चेन्नई में तापमान + 28°C रहता है ।

3. इसी प्रकार औसत वार्षिक वर्षा में भी प्रादेशिक अन्तर पाए जाते हैं। एक ओर मासिनराम में (1080 सेंटीमीटर) संसार में सबसे अधिक वर्षा होती है तो दूसरी ओर राजस्थान शुष्क रहता है। जैसलमेर में वार्षिक वर्षा शायद ही 12 सें०मी० से अधिक होती है । गारो पहाड़ियों में स्थित तुरा नामक स्थान में एक ही दिन में उतनी वर्षा हो सकती है जितनी जैसलमेर में दस वर्षों में होती है ।

4. कई भागों में मानसून वर्षा जून के पहले सप्ताह में आरम्भ हो जाती है तो कई भागों में जुलाई में वर्षा की प्रतीक्षा हो रही होती है।

5. तटीय भागों में मौसम की विषमता महसूस नहीं होती परन्तु अन्तःस्थ स्थानों में मौसम विषम रहता है। शीतकाल में उत्तर-पश्चिमी भारत में शीत लहर चल रही होती है तो दक्षिणी भारत में काफ़ी ऊंचे तापमान पाए जाते हैं। इस प्रकार विभिन्न प्रदेशों में ऋतु की लहर लोगों की जीवन पद्धति में एक परिवर्तन तथा विभिन्नता उत्पन्न कर देती है। इस प्रकार इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि भारतीय जलवायु में एक व्यापक एकता होते हुए भी प्रादेशिक अन्तर पाए जाते हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 2.
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार भारत में कितने स्पष्ट मौसम पाए जाते हैं ? किसी एक मौसम की दशाओं की सविस्तार व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मानसून व्यवस्था के अनुसार भारत में चार ऋतुएं होती हैं

  1. शीत ऋतु (जनवरी-फरवरी)।
  2. ग्रीष्म ऋतु (मार्च से मध्य जून )।
  3. वर्षा ऋतु (मध्य जून से मध्य सितम्बर)।
  4. लौटती मानसून की ऋतु (मध्य सितम्बर से दिसम्बर)।

1. शीत ऋतु:
कम तापमान, मेघ रहित आकाश, सुहावना मौसम तथा कम आर्द्रता इस ऋतु की विशेषताएं होती हैं। इस ऋतु में सूर्य की स्थिति दक्षिणी गोलार्द्ध में होने के कारण भारत में कम तापमान मिलते हैं। शीत लहर तथा हिमपात के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में औसत तापमान 21°C से कम रहते हैं। रात्रि का तापमान हिमांक से नीचे हो जाता है। दक्षिणी भारत में सागरीय प्रभाव के कारण 21°C से अधिक तापमान पाए जाते हैं।

यहां कोई शीत नहीं होती उत्तर – पश्चिमी भारत में उच्च वायु दाब क्षेत्र बन जाता है। उत्तर-पश्चिमी भारत में भूमध्य सागर से आने वाले चक्रवात हल्की-हल्की वर्षा करते हैं। यह वर्षा रबी की फसल के लिए लाभदायक होती है। मानसून पवनें स्थल से सागर (Land to Sea) की ओर चलने के कारण शुष्क होती हैं। ये लौटती हुई मानसून पवनें खाड़ी बंगाल से नमी ग्रहण करके पूर्वी तट पर वर्षा करती हैं।

2. ग्रीष्म ऋतु:
ग्रीष्म ऋतु में तापमान बढ़ना आरम्भ कर देता है। सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर लम्बवत् पड़ती हैं।
उत्तर:
पश्चिमी भारत में उच्चतम तापमान 42°C से अधिक होते हैं। दिन के समय शुष्क, गर्म लू चलती है। दक्षिणी भारत में औसत तापमान 25°C तक रहता है। तटीय भागों में सागर के समकारी प्रभाव के कारण मौसम सुहावना रहता है। उत्तर – पश्चिमी भारत में निम्न वायुदाब केन्द्र बन जाता है। यह निम्न दाब दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनों को उत्तर की ओर आकर्षित करता है। ग्रीष्म ऋतु प्रायः शुष्क रहती है। उत्तर-पूर्वी भारत में उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के कारण कुछ वर्षा होती है। गर्मी के कारण स्थानीय रूप से धूल भरी आंधियां (Dust Storms) चलती हैं। इनके कारण उत्तर-पश्चिमी भारत में कुछ वर्षा हो जाती है जो गर्मी को कम करती है।

3. वर्षा ऋतु:
दक्षिण-पश्चिम मानसून के आगमन के साथ भारत में वर्षा ऋतु आरम्भ हो जाती है। तटीय क्षेत्रों में जून के प्रथम सप्ताह में मानसून आरम्भ हो जाती है तथा अचानक भारी वर्षा होती है। इसे ‘मानसून प्रस्फोट’ कहा जाता है। मानसून वर्षा के कारण इस ऋतु में तापमान 5° से 8° कम हो जाते हैं। औसत तापमान 25°C से 30°C तक रहते हैं। इस ऋतु में सागर से स्थल की ओर (Sea to Land) दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनें चलती हैं जो भारत की जलवायु में सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। प्रायद्वीप के तिकोने आकार के कारण ये पवनें दो शाखाओं में बंट जाती हैं

  1. अरब सागर की मानसून शाखा।
  2. खाड़ी बंगाल की मानसून शाखा।

मानसून की खाड़ी बंगाल की शाखा अराकान पर्वत से टकरा कर उत्तर – पूर्वी भारत में भारी वर्षा करती है। ये पवनें उत्तरी मैदान में पंजाब तक वर्षा करती हैं। पश्चिम की ओर जाते हुए वर्षा की मात्रा कम होती है। मानसून की अरब सागरीय शाखा पश्चिमी तट, पश्चिमी घाट, मध्य प्रदेश में वर्षा करती है, परन्तु दक्षिणी पठार पश्चिमी घाट की वृष्टि छाया में रहने के कारण शुष्क रहता है।

4. लौटती मानसून की ऋतु:
इस ऋतु में दक्षिण-पश्चिमी मानसून उत्तरी भारत से लौटने लगती है । इस ऋतु में तापमान, वायु दाब तथा अन्य सभी दशाएं शनैः-शनैः बदलने लगती हैं। यह ऋतु वर्षा तथा शीत ऋतु में मध्य संक्रात काल होता है। दिन के समय तापमान कम होने लगता है। औसत तापमान 20°C से कम हो जाता है। पवनों की दिशा तथा गति अनिश्चित होती है। धीरे-धीरे प्रति चक्रवातीय दशाएं उत्पन्न होने लगती हैं। वर्षा कम होती है । पूर्वी तटीय प्रदेश पर कुछ वर्षा चक्रवातों द्वारा होती है।

मानचित्र कार्य (Map Skill)

प्रश्न-भारत के रेखा चित्र पर निम्नलिखित को दर्शाइए।

  1. शीतकालीन वर्षा के क्षेत्र
  2. ग्रीष्म ऋतु में पवनों की दिशा
  3. 50 प्रतिशत से अधिक वर्षा की परिवर्तिता के क्षेत्र
  4. जनवरी माह में 15°C से कम तापमान वाले क्षेत्र
  5. भारत में 100 सें० मी० की सम वर्षा रेखा।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 जलवायु 1

जलवायु JAC Class 11 Geography Notes

→ भारत का जलवायु (Climate of India): भारत में उष्णकटिबन्धीय मानसून प्रकार का जलवायु है। कर्क रेखा भारत को दो समान भागों-उष्ण कटिबन्धीय तथा शीतोष्ण कटिबन्धीय में बांटती है।

→ जलवायु विविधता (Climatic Diversity): अधिक विस्तार के कारण जलवायु में बहुत विविधता है। बाड़मेर। में सबसे अधिक तापमान 50° C जबकि कारगिल (लद्दाख ) में सबसे कम तापमान 45°C होता है। मासिनराम (मेघालय) में सबसे अधिक वर्षा 1080 cm जबकि जैसलमेर (रेगिस्तान) में 15 cm से कम वर्षा होती है। भारत की जलवायु को निर्धारित करने वाले कारक

  • मानसूनी पवनें: भारत में मानसूनी जलवायु है । यह मानसून पवनों द्वारा नियन्त्रित होता है।
  • देश का विस्तार: शीतोष्ण प्रदेश में उत्तरी भाग स्थित है। यहां उष्ण ग्रीष्मकाल तथा ठण्डी शीतकाल ऋतु होती है।
  • हिमालय की स्थिति: हिमालय एक जलवायु विभाजक का कार्य करता है। यह पर्वतीय दीवार सर्दियों में भारत को मध्यवर्ती एशिया की शीत पवनों से बचाती है। हिमालय पर्वत हिन्द महासागर की दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों को रोक कर वर्षा करने में सहायक है।
  • हिन्द महासागर: दक्षिण-पश्चिमी मानसून का उद्गम इस महासागर से होता है। ये पवनें देश के अधिकतर भागों पर वर्षा प्रदान करती हैं।
  • पश्चिमी विक्षोभ: पश्चिमी विक्षोभ (चक्रवात) सर्दियों में भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में वर्षा प्रदान करते हैं।
  • समुद्र से दूरी: तटीय भागों में समकारी (सागरीय) जलवायु है। इन क्षेत्रों में समकारी जलवायु होता है। परन्तु देश के भीतरी भागों में कठोर या महाद्वीपीय जलवायु मिलता है।
  • धरातल: सम्मुख ढलानों पर भारी वर्षा होती है परन्तु विमुख ढलान पर ( दक्कन पठार) कम वर्षा के कारण वृष्टि छाया रहती है।

→ मानसून (Monsoons): ‘मानसून’ शब्द वास्तव में अरबी भाषा के शब्द ‘मौसिम’ से बना है। मानसून शब्द का अर्थ है – मौसम के अनुसार पवनों के ढांचे में परिवर्तन होना। मानसून व्यवस्था के अनुसार मौसमी पवनें चलती हैं जिनकी दिशा मौसम के अनुसार विपरीत हो जाती है। ये पवनें ग्रीष्मकाल के 6 मास समुद्र से स्थल | की ओर तथा शीतकाल के 6 मास स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं।

→ (क) गर्मियों में मानसून: मई तथा जून के महीने के समय ये भारत के उत्तरी मैदानों में बहुत गर्म होती हैं। इसके परिणामस्वरूप उत्तर पश्चिमी भारत में निम्न वायुदाब उत्पन्न होता है। पवनें हिन्द महासागर से भारत के उत्तरी मैदान की ओर चलना आरम्भ कर देती हैं। ये पवनें भारत में दो विभिन्न दिशाओं द्वारा प्रवेश करती हैं

  1. खाड़ी बंगाल की मानसून की शाखा: खाड़ी बंगाल मानसून उत्तर – पूर्वी भारत में भारी वर्षा करती है। ये पवनें हिमालय पर्वत के साथ-साथ पश्चिम की ओर वर्षा करती हैं।
  2. अरब सागर की मानसून शाखा: इन पवनों की एक शाखा पश्चिमी घाट पर भारी वर्षा करती है। दूसरी शाखा मध्यवर्ती भारत में प्रवेश करके वर्षा करती है। तीसरी शाखा राजस्थान में अरावली पर्वत के समानान्तर चलती है तथा अरावली पर्वत इन्हें रोक नहीं पाता इसलिए यहां बहुत कम वर्षा होती है।

(ख) शीतकालीन मानसून पवनें: उत्तर-पूर्व मानसून शीतकाल में स्थल से सागर की ओर चलती है तथा शुष्क होती है परन्तु खाड़ी बंगाल को पार करने के पश्चात् तमिलनाडु तट पर वर्षा करती है।

भारत में वर्षा की विशेषताएं (Characteristics of Rainfall in India):

  • मानसूनी वर्षा: भारत में अधिकतर वर्षा मध्य जून से सितम्बर तक दक्षिण पश्चिमी मानसून पवनों द्वारा होती है। यह वर्षा मौसमी वर्षा है।
  • अनिश्चित वर्षा: गर्मियों में वर्षा अनिश्चित होती है। समय से पहले या बाद में आने वाली मानसून पवनें अकाल तथा बाढ़ का कारण बनती हैं।
  • असमान वितरण: देश में वर्षा का वितरण बहुत असमान है।
  • भारी वर्षा: भारतीय वर्षा बौछारों के रूप में भारी वर्षा करती हैं।
  • उच्चावच से सम्बन्धित वर्षा: पर्वतों के सहारे अधिक वर्षा होती है।
  • वर्षा का निरन्तर न होना: गर्मियों में वर्षा में शुष्क Spells आते हैं।
  • वर्षा की परिवर्तनशीलता: वर्षा की परिवर्तनशीलता लगभग 30% है जिसके कारण अकाल पड़ जाते हैं।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 4 जलवायु

→ भारत में वर्षा का वितरण (Distribution of Rainfall in India)

  1. भारी वर्षा वाले क्षेत्र: ये क्षेत्र 200 सेंटीमीटर से अधिक वार्षिक वर्षा प्राप्त करते हैं। इनमें पश्चिमी तट, पश्चिमी घाट, उप- हिमालय तथा उत्तर-पू -पूर्वी भाग शामिल हैं।
  2. दरमियानी वर्षा वाले क्षेत्र: ये क्षेत्र 100-200 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा प्राप्त करते हैं। इन क्षेत्रों में पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, बिहार, उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग तथा मध्य प्रदेश तथा तमिलनाडु के तटीय मैदान शामिल हैं।
  3. कम वर्षा वाले क्षेत्र: ये क्षेत्र 50-100 सेंटीमीटर तक वर्षा प्राप्त करते हैं। इनमें उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग, हरियाणा, पंजाब, प्रायद्वीपीय पठार तथा पूर्वी राजस्थान शामिल हैं।
  4. अति कम वर्षा वाले क्षेत्र: ये 50 सेंटीमीटर से कम वार्षिक वर्षा प्राप्त करते हैं। इनमें लद्दाख, दक्षिण-पश्चिमी पंजाब, दक्षिणी हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान, कच्छ तथा थार मरुस्थल शामिल हैं।

→ भारत में मौसम (Seasons in India): मानसून पवनों के आगमन तथा पीछे हटने के क्रम से मौसमों में भी एक क्रम पाया जाता है।

→ मौसम (Seasons)
उत्तर-पूर्व मानसून की ऋतुएं

  • शीत ऋतु: दिसम्बर से फरवरी
  • ग्रीष्म ऋतु: मार्च से मई ।

(ख) दक्षिण-पश्चिम मानसून की ऋतुएं

  • वर्षा ऋतु: जून से सितम्बर।
  • लौटती मानसून पवनों की ऋतु: अक्तूबर से नवम्बर।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 3 अपवाह तंत्र

Jharkhand Board JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 3 अपवाह तंत्र Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Geography Solutions Chapter 3 अपवाह तंत्र

बहु-विकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions )

प्रश्न – दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनिए
1. किस नदी को ‘बंगाल का शोक’ कहा जाता था?
(A) गंडक
(B) कोसी
(C) सोन
(D) दामोदर।
उत्तर:
(D) दामोदर।

2. किस नदी का बेसिन भारत में सबसे बड़ा है?
(A) सिन्ध
(B) गंगा
(C) ब्रह्मपुत्र
(D) कृष्णा।
उत्तर:
(B) गंगा।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 3 अपवाह तंत्र

3. कौन-सी नदी पंचनद में सम्मिलित नहीं है?
(A) रावी
(C) चनाब
उत्तर:
(B) सिन्ध |

4. कौन-सी नदी दरार घाटी में बहती है?
(A) सोन
(B) यमुना
(C) नर्मदा
(D) लूनी।
उत्तर:
(C) नर्मदा|

5. अलकनन्दा तथा भागीरथी नदी के संगम को क्या कहते हैं?
(A) विष्णु प्रयाग
(B) कर्णप्रयाग
(C) रुद्र प्रयाग
(D) देव प्रयाग।
उत्तर:

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
नदी द्रोणी और जल संभर में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
नदी द्रोणी (River Basin ): विशाल नदी एक विशिष्ट क्षेत्र से जल बहा कर अपने साथ लाती है तथा सागर में गिरती है। इसमें कई सहायक नदियां भी अपना जल शामिल करती हैं । इस क्षेत्र को नदी द्रोणी कहते हैं ।
जल संभर (Water- Shed): छोटी-छोटी नदियों द्वारा अपवाहित क्षेत्र को जल संभर कहते हैं । इसका आकार एक नदी द्रोणी से छोटा होता है ।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 3 अपवाह तंत्र

प्रश्न 2.
वृक्षाकार और जालीनुमा अपवाह प्रारूप में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
वृक्षाकार अपवाद (Dendritic Pattern): जो अपवाह प्रतिरूप (Drainage pattern) पेड़ की शाखाओं के अनुरूप हो उसे वृक्षाकार प्रतिरूप कहते हैं। उत्तरी मैदान की नदियां वृक्षाकार अपवाह का उदाहरण हैं । यह वृक्ष की आकृति जैसा है।
जालीनुमा अपवाह (Trellis Drainage ): जब मुख्य नदियां एक-दूसरे के समानान्तर बहती हों तथा सहायक नदियां उनसे समकोण पर मिलती हों तो इस प्रतिरूप को जालीनुमा अपवाह प्रतिरूप कहते हैं ।

प्रश्न 3.
अपकेन्द्रीय और अभिकेन्द्रीय अपवाह प्रारूप |
उत्तर:
अपकेन्द्रीय अपवाह (Radial Drainage ): जब नदियां किसी पर्वत से निकल कर सभी दिशाओं में बहती हैं तो इसे अपकेन्द्रीय अपवाद कहते हैं । अमरकंटक पर्वत श्रृंखला से निकलने वाली नदियां इस प्रतिरूप का उदाहरण हैं ।
अभिकेन्द्रीय अपवाह (Centripetal Drainage ): जब सभी दिशाओं से नदियां बहकर किसी झील या गर्त में मिल जाती हैं तो इसे अभिकेन्द्रीय अपवाद कहते हैं जैसे थार मरुस्थल में ।

प्रश्न 4.
डेल्टा तथा ज्वारनदमुख में अन्तर स्पष्ट करो ।
उत्तर:
डेल्टा (Delta): नदियां अपने उद्गम से लेकर अपने साथ तलछट सागर में गिरने से पहले निक्षेप करती हैं। यहां तक त्रिभुजाकार भू-भाग (∆) की रचना होती है जिसे डेल्टा कहते हैं। संसार में सबसे बड़ा डेल्टा गंगा ब्रह्मपुत्र डेल्टा है।
ज्वारनदमुख (Estuary): जब नदियां अपने अन्तिम भाग में तीव्र ढलान के कारण तलछट निक्षेप नहीं करतीं तो वह तलछट सागर में बह जाता है। इस तंग चैनल को ज्वारनदमुख कहते हैं। जैसे नर्मदा नदी डेल्टा की बजाय एक ज्वारनदमुख बनाती है।

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 3 अपवाह तंत्र

प्रश्न 5.
भारत में नदियों को आपस में जोड़ने के सामाजिक आर्थिक लाभ क्या हैं?
उत्तर:
उत्तरी भारत की नदियां प्रायद्वीपीय नदियों से भिन्न हैं। मध्य भारत में सतपुड़ा – विन्ध्याचल श्रेणी तट जलविभाजक का कार्य करती है। उत्तरी भारत की नदियों में जलाधिकय है तथा सारा वर्ष जल प्राप्त होता है । परन्तु प्रायद्वीपीय नदियां मौसमी हैं । उत्तरी भारत की नदियों को प्रायद्वीपीय भारत की नदियों से जोड़ा जा सकता है। इस योजना को गंगा – कावेरी योजना कहते हैं। उत्तरी भारत की अतिरिक्त जल वाली नदियां प्रायद्वीपीय भारत की कम जल वाली नदियों को जल प्रदान कर सकती हैं। इससे जल सिंचाई में विस्तार किया जा सकता है। खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है। देश में सूखे की समस्या समाप्त की जा सकती है। देश में जलविद्युत् उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है परन्तु विभिन्न राज्यों की सीमाओं तथा जल संसाधनों पर उनके अधिकार की समस्याएं हैं।

प्रश्न 6.
प्रायद्वीपीय नदियों के तीन लक्षण बताओ।
उत्तर:

  1. प्रायद्वीपीय नदियां अधिक लम्बी नहीं हैं तथा कम हैं।
  2. ये नदियां मौसमी हैं। केवल वर्षा ऋतु में ही इनसे जल प्राप्त होता है।
  3. प्रायद्वीपीय नदियां जहाजरानी तथा जलसिंचाई के अनुकूल नहीं

JAC Class 11 Geography Solutions Chapter 3 अपवाह तंत्र

प्रश्न 7.
हिमालय के गिरिपद के साथ-साथ हरिद्वार से सिलीगुड़ी तक की यात्रा में आने वाली मुख्य नदियों के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. गंगा
  2. शारदा नदी
  3. गोमती नदी
  4. घाघरा नदी
  5. गंडक नदी
  6. कोसी नदी।

अपवाह तंत्र  JAC Class 11 Geography Notes

→ भारत का जल-प्रवाह (Drainage of India): भारत में कई विशाल नदियां हैं इसलिए इसे ‘नदियों की | धरती’ कहते हैं। भारत के स्थल भाग का 90% जल प्रवाह बंगाल की खाड़ी में गिरता है।

→ जल विभाजक (Water Sheds): विभिन्न जल-प्रवाह तन्त्रों को अलग-अलग करने वाले क्षेत्र को जल विभाजक कहते हैं। भारत में मुख्य तीन जल विभाजक हैं- हिमालय श्रेणी, विंध्याचल, सतपुड़ा तथा पश्चिमी
घाट।

→ भारत का जल प्रवाह तन्त्र (Drainage System of India ): भारतीय नदियों को दो तन्त्रों में बाँटा जा सकता है
(i) हिमालय नदियां
(ii) प्रायद्वीपीय नदियां।

→ हिमालयाई नदियां (The Himalayan Rivers ): हिमालय नदियों में विशाल बेसिन हैं। नदियां गहरे गार्ज | बनाती हैं। ये सदा वाहिनी नदियां हैं क्योंकि ये हिम नदियों से जन्म लेती हैं। इनमें तीन मुख्य नदियां सिन्धु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदियां हैं। कई नदियां पूर्ववर्ती हैं। ये हिमालय पर्वत के उत्थान से पहले बहती थीं।

→ प्रायद्वीपीय नदियां (The Peninsular Rivers ): ये नदियां कम गहरी घाटियों में बहती हैं जो आधार त को पहुंच चुकी हैं। कई नदियां मौसमी हैं जो वर्षा पर निर्भर करती हैं। इन्हें दो भागों में बांटा जा सकता है- I पूर्व में बहने वाली नदियां जो बंगाल की खाड़ी में गिरती (महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी) हैं तथा पश्चिम में बहने वाली नदियां जो अरब सागर में गिरती हैं ( नर्मदा तथा ताप्ती) ।

→ मुख्य नदियां (Major Rivers ): सिन्धु नदी की कुल लम्बाई 2880 किलोमीटर है। इसका उद्गम तिब्बत में (मानसरोवर) होता है तथा यह ट्रांस हिमालयाई नदी है। इसकी पांच सहायक नदियां सतलुज, ब्यास, रावी, जेहलम तथा चिनाब हैं। गंगा भारत की मुख्य नदी है जो गंगोत्री से निकलती है। ब्रह्मपुत्र को तिब्बत में सांपो कहते हैं जो बांग्लादेश से होकर बंगाल की खाड़ी की ओर बहती है। गोदावरी प्रायद्वीपीय भारत की सबसे | लम्बी नदी है। इसे वृद्ध गंगा कहते हैं। महानदी, कृष्णा, कावेरी प्रायद्वीपीय भारत की मुख्य नदियां हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद

JAC Class 9 Hindi रैदास के पद Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) पहले पद में भगवान और भक्त की जिन-जिन चीज़ों से तुलना की गई है, उनका उल्लेख कीजिए।
(ख) पहले पद की प्रत्येक पंक्ति के अंत में तुकांत शब्दों के प्रयोग से नाद-सौंदर्य आ गया है, जैसे – पानी, समानी आदि। इस पद से अन्य तुकांत शब्द छाँटकर लिखिए।
(ग) पहले पद में कुछ शब्द अर्थ की दृष्टि से परस्पर संबद्ध हैं। ऐसे शब्दों को छाँटकर लिखिए। उदाहरण: दीपक → बाती।
(घ) दूसरे पद में कवि ने ‘गरीब निवाजु’ किसे कहा है ? स्पष्ट कीजिए।
(ङ) दूसरे पद की ‘जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
(च) रैदास’ ने अपने स्वामी को किन-किन नामों से पुकारा है ?
(छ) निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए – मोरा, चंद, खाती, जोति, बरै, राती, छत्रु, धेरै, छोति, तुहीं, गुसईआ।
उत्तर :
(क) भगवान की तुलना – चंदन, घने बादल, चंद्रमा, दीपक, मोती, सुहागा, स्वामी।
भक्त की तुलना – पानी, मोर, चकोर, बाती, धागा, सोना, दास।
(ख) तुकांत शब्द – मोरा – चकोरा, बाती – राती, धागा – सुहागा, दासा – रैदासा।
(ग) चंदन → पानी; घनबन → मोरा; चंद → चकोरा; मोती → धागा; सोना → सुहागा ; स्वामी → दास।
(घ) कवि ने ‘गरीब निवाजु’ अपने आराध्य परमात्मा को कहा है, क्योंकि वे सदा गरीबों तथा दीन-दुखियों पर दया करते हैं।
(ङ) इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह स्पष्ट करता है कि जिन लोगों को संसार के लोग अछूत समझते हैं, ऐसे लोगों पर परमात्मा दया करके उनकी सदा सहायता करते हैं। परमात्मा कोई भेदभाव नहीं करते। वे सब पर समान रूप से दया करते हैं।
(च) कवि ने अपने स्वामी को गरीब निवाजु, स्वामी, गोसाई, गोबिंद, हरि कहकर पुकारा है।
(छ) मोरा = मोर। चंद = चंद्रमा, चाँद। बाती = बत्ती। जोति = ज्योत। बर = जले। राती = रात, रात्रि। छत्रु = छत्र। धर = धरना। छोति = छूत। तुहीं = तुम ही, आप ही। गुसईआ = गोसाई, स्वामी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद

प्रश्न 2.
नीचे लिखी पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) जाकी अँग- अँग बास समानी
(ख) जैसे चितवत चंद चकोरा
(ग) जाकी जोति बरै दिन राती
(घ) ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै
(ङ) नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै
उत्तर :
(क) भक्त स्वयं गुणों से रहित है। वह पानी के समान रंग-रहित और गंध-रहित है, लेकिन ईश्वररूपी चंदन का सान्निध्य पाकर वह धन्य हो जाता है। वह गुणों की प्राप्ति कर लेता है। ईश्वरीय भक्ति उसे पापों से मुक्त करके उसके जीवन को सार्थकता प्रदान करती है।
(ख) भक्त तो सदा भवसागर पार करवाने वाले परमात्मा के प्रति स्वयं को अर्पित कर देना चाहता है। वह हर पल उसी के रूप-दर्शन करने की इच्छा करता है। जिस प्रकार चकोर अपने प्रिय चंद्रमा को निहारना चाहता है, उसी प्रकार संत रैदास भी प्रभूरूपी चाँद को एकटक देखना चाहते हैं; वे अपने ध्यान को किसी दूसरी ओर नहीं लगाना चाहते।
(ग) कवि कहता है कि ईश्वर सृष्टि के कण-कण में समाया हुआ है। प्रत्येक प्राणी में उसी की ज्योति जगमगा रही है। उसी के कारण हम जीवित हैं। वही हमारे श्वासों को चला रहा है।
(घ) कवि बताना चाहता है कि जीवों पर जैसी कृपा ईश्वर करता है, वैसी कृपा कोई और नहीं कर सकता। वही दीन-दुखियों का रक्षक है। उसके बिना मानव का सहायक कोई और नहीं है।
(ङ) परमात्मा किसी से नहीं डरता। वह तो नीच कों भी उच्च बना देता है। वह अपने भक्तों पर दया करके उनका उद्धार कर देता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद

प्रश्न 3.
रैदास के इन पदों का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
पहले पद ‘अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी’ में कवि अपने आराध्य को सदा स्मरण करता है, क्योंकि वह स्वयं को उनसे अलग नहीं मानता। उसके अनुसार वह पानी है, तो प्रभु चंदन हैं। इसी प्रकार से वह स्वयं को मोर, चकोर, बाती, धागा, सोना तथा सेवक कहता है और अपने प्रभु को घनश्याम, चाँद, दीपक, मोती, सुहागा और स्वामी मानता है।

दूसरे पद ‘ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै’ में कवि ने अपने आराध्य के दयालु रूप का वर्णन किया है जो ऊँच-नीच, सुवर्ण-अवर्ण, अमीर-गरीब आदि का भेदभाव नहीं जानता। वह किसी भी कुल-गोत्र में उत्पन्न अपने भक्त को सहज भाव से अपनाकर उसे दुनिया में सम्मान दिलाता है तथा उसे सांसारिक बंधनों से मुक्त कर अपने चरणों में स्थान देता है। ईश्वर द्वारा नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना, सैन जैसे निम्न जाति में उत्पन्न भक्तों को समाज में उच्च स्थान दिलाने तथा उनका उद्धार करने के उदाहरण देकर कवि ने अपने इस कथन को सिद्ध किया है।

योग्यता – विस्तार –

प्रश्न 1.
भक्त कवि कबीर, गुरु नानक, नामदेव और मीराबाई की रचनाओं का संकलन कीजिए।

प्रश्न 2.
पाठ में आए दोनों पदों को याद कीजिए और कक्षा में गाकर सुनाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi रैदास के पद समान Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
रैदास की भक्ति की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
रैदास की भक्ति भक्त के मन की पुकार है, जो परमात्मा को रिझाने और पाने के लिए व्याकुल हैं। वे संतों के समान दार्शनिक सिद्धांतों के चक्कर में नहीं पड़े। उन्होंने सीधी-सादी और व्यावहारिक भाषा में अपने भक्त हृदय को प्रकट किया। उनकी भक्ति सच्चे हृदय की आवाज़ को व्यक्त करती है। वे हृदय के सच्चे थे और तर्क-वितर्क से उपलब्ध होने वाले कोरे ज्ञान की अपेक्षा सत्य से पूर्ण अनुभूति में अधिक विश्वास रखते थे। उनका मानना था कि राम का परिचय पाने के बाद ही हम अपने मन की दुविधा को दूर कर सकते हैं।

जिस प्रकार ‘तूंबा’ जल के ऊपर ही रहता है, उसी प्रकार हमें भी संसार में वैसे ही विचरण करना चाहिए। भक्ति दिखावे का नाम नहीं है। जब तक मनुष्य पूर्ण वैराग्य की स्थिति प्राप्त नहीं करता, तब तक भक्ति के नाम पर की जाने वाली सब साधनाएँ केवल भ्रम और आडंबर है जिनसे कोई लाभ नहीं हो सकता। सोने की शुद्धि का परिचय उसे पीटे, काटे, तपाने या सुरक्षित रखने से नहीं होता बल्कि सुहागे के साथ संयोग से होता है। हमारे हृदय में निर्मलता तभी उत्पन्न होती है, जब परमात्मा से हमारी पहचान हो जाती है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद

प्रश्न 2.
रैदास ने जिस ‘राम’ की भक्ति की थी, उसका परिचय दीजिए।
उत्तर :
कबीर के ‘निर्गुण राम’ के समान रैदास का ‘सत्य राम’ भी निर्गुण और निराकार है, जिसे वे ‘माधो’ कहकर पुकारते हैं। यह राम का वह रूप नहीं है, जिन्हें सामान्य लोग जानते हैं। वह सर्वव्यापक और निर्गुण है; वह निराकार है; सब उसमें व्याप्त है और वह सबमें व्याप्त है। राम सदा एक रस है। वह निर्गुण, निराकार, उदय-अस्त से रहित, सर्वत्र व्यापक, निश्चल, अजन्मा, अनंत, अनुपम, निर्भय, अगम, अगोचर, अक्षर, अतर्क, अनादि, अनंत, निर्विकार और अविनाशी है।

उसमें न कर्म है और न अकर्म; न शुभ है और न अशुभ; न शीत है और न अशीत; न योग है और न भोग। वह शिव – अशिव, धर्म-अधर्म, जरा-मरण, दृष्टि- अदृष्टि, गेय – अगेय आदि के बंधन से परे है। वह एक है। वह अद्वितीय है। वह मूर्ति में नहीं है। जो मूर्ति को पूजते हैं, वे कच्ची बुद्धि वाले हैं। राम तो वह है, जिसका न कोई नाम है और न ही स्थान। वह सबमें व्याप्त है; उसे कहीं बाहर ढूँढ़ने की आवश्यकता नहीं होती।

प्रश्न 3.
रैदास ने स्वयं को पानी और प्रभु को चंदन क्यों माना है ?
उत्तर :
रैदास को प्रभु नाम जपने की लगन लगी है। वे स्वयं को पानी और प्रभु को चंदन मानते हैं। पानी का रंग, गंध व कोई स्वाद नहीं होता, परंतु जब पानी प्रभु-रूपी चंदन के साथ मिल जाता है तो उसमें भी रंग और सुगंध आ जाती है। कवि कहता है कि यदि उसमें कोई गुण विद्यमान है, तो ईश्वर की भक्ति के कारण है। ईश्वर ही सभी गुणों को प्रदान कर अपने भक्त को गुणवान बना देता है।

प्रश्न 4.
रैदास ने स्वयं की तुलना मोर से क्यों की है ?
उत्तर :
रैदास ने स्वयं की तुलना मोर से की है। जिस प्रकार बादलों को देखकर मोर अपने हृदय की प्रसन्नता को नाच नाचकर प्रकट करता है, उसी प्रकार भक्त – रूपी कवि भी प्रभु रूपी बादल को अपने मन में अनुभव करता है तथा आत्मविभोर होकर नाच उठता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद

प्रश्न 5.
कवि ने स्वयं को धागा क्यों माना है ?
उत्तर :
ईश्वर का स्वरूप निराकार है। भक्त अपनी भक्ति के द्वारा उस स्वरूप का गुणगान करता है। वह स्वयं को प्रभु का सेवक बताता है। कवि स्वयं को उस धागे के समान मानता है, जो भक्ति के अमूल्य मोतियों को ईश्वर – नाम के रूप में पिरोता है। ईश्वर भक्त को अपने गुणों से प्रभावित करता है। भक्त के लिए वे सारे गुण मोती के समान हैं, जिन्हें वह भक्ति भावना रूपी धागे में पिरोता है। इसलिए रैदास ने स्वयं को धागा बताया है।

प्रश्न 6.
रैदास ने प्रभु को कैसा बताया है ?
उत्तर :
रैदास ने प्रभु को उदार, कृपालु तथा दयालु बताया है। उनके अतिरिक्त गरीबों तथा दीन-दुखियों का स्वामी अथवा रक्षक अन्य कोई नहीं है। वे ही सबके रक्षक और स्वामी हैं।

प्रश्न 7.
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती ॥
उपरोक्त पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
संत रैदास ने दास्य-भाव की भक्ति को प्रकट किया है और माना है कि उनका अस्तित्व परमात्मा के कारण है। परमात्मा ही गुणों का भंडार है और वही अपने भक्तों पर दया करता है। कवि की भाषा सधुक्कड़ी है, जिसमें तद्भव शब्दावली की अधिकता है। स्वरमैत्री ने संगीतात्मकता का गुण प्रदान किया है। अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश और उपमा का सहज, सुंदर और स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। माधुर्य गुण, शांत रस और अभिधा शब्द-शक्ति का सुंदर प्रयोग किया गया है।

प्रश्न 8.
कवि रैदास को किसकी आदत पड़ गई है, जो छोड़ने से भी नहीं छूट रही ?
उत्तर :
कवि रैदास बड़े ही दीन भाव से प्रभु से कहते हैं कि हे ईश्वर मुझे तो ‘राम-नाम’ जपने की रट लग गई है। दिन हो या रात – हर पल हर समय मेरी जिह्वा ‘राम-नाम’ का जप करती रहती है। यह आदत ऐसी पड़ गई है कि अब छूटने से भी नहीं छूट रही।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद

प्रश्न 9.
कवि रैदास ने प्रभु को कैसा माना है ?
उत्तर :
कवि रैदास ने प्रभु को सबका रक्षक माना है। कवि के अनुसार उनके प्रभु दयावान हैं। वे सभी प्राणियों पर अपनी अनुकम्पा बनाए रखते हैं। उनकी दृष्टि में कोई छोटा-बड़ा नहीं है। वे दया के सागर तथा करुणाशील हैं। वे दीन-दुखियों पर दया करने वाले हैं और सभी प्राणियों को एक भाव से देखते हैं।

प्रश्न 10.
कवि ने दूसरे पद में ऊँच-नीच तथा भेदभाव से संबंधित क्या बातें कही हैं ?
उत्तर :
कवि ने दूसरे पद में स्पष्ट किया है कि ईश्वर के समक्ष ऊँच-नीच का कोई भेदभाव नहीं है। वे किसी को छोटा-बड़ा नहीं मानते। वे सभी को एक दृष्टि से देखते हैं। वे किसी भी कुल, गोत्र, जाति आदि में उत्पन्न अपने भक्त को समान रूप से अपना कर तथा उसे समुचित सम्मान देकर उसका उद्धार करते हैं। यही उस परमपिता परमेश्वर की दयालुता है।

प्रश्न 11.
दूसरे पद में कवि ने परमात्मा द्वारा किन लोगों के उद्धार की बात कही है ?
उत्तर :
दूसरे पद में कवि ने परमात्मा द्वारा नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना और सैन जैसे लोगों की भक्ति व आराधना से प्रसन्न होकर उनका उद्धार करने की बात कही है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद

प्रश्न 12.
कवि रैदास के पदों की भाषा-शैली स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि रैदास ने अपने पदों में मुख्य रूप से सरल तथा प्रचलित ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। इनकी भाषा में कहीं-कहीं उर्दू, राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी आदि के शब्दों का प्रयोग भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इनके पदों में स्वरमैत्री तथा संगीतात्मकता का गुण सर्वत्र विद्यमान है। पदों में तत्सम शब्दों के स्थान पर तद्भव शब्दों की अधिकता है। इन्होंने सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग अत्यंत सहज ढंग से किया है।

रैदास के पद Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन-परिचय -रैदास अथवा रविदास निर्गुण काव्यधारा के संत कवियों में प्रमुख माने जाते हैं। आदि ग्रंथ के अनुसार इनका जन्म काशी में हुआ था। इनका समय सन् 1388 ई० से लेकर सन् 1518 ई० तक का माना जाता है। ये कबीर के समकालीन थे। इनके गुरु रामानंद थे। गृहस्थी होते हुए भी इनका जीवन संतों के समान था। इन्होंने अपनी रचनाओं में अपने पूर्ववर्ती और समकालीन संत कवियों नामदेव, कबीर आदि की भी चर्चा की है। इनके ज्ञान से प्रभावित होकर मीराबाई ने इन्हें अपना गुरु स्वीकार किया था। तत्कालीन शासक सिकंदर लोदी ने इन्हें दिल्ली भी आमंत्रित किया था।

रचनाएँ – रैदास द्वारा रचित दो ग्रंथ – ‘ रविदास की बानी’ और ‘रविदास के पद’ हैं। श्री गुरु ग्रंथ साहब में भी इनके कुछ पद संग्रहीत हैं। इनकी समस्त रचनाएँ ‘रैदास की बानी’ के नाम से उपलब्ध हैं।

काव्य की विशेषताएँ – रैदास ने अपनी रचनाओं में निर्गुण निराकार ब्रह्म के प्रति अपनी आस्था व्यक्त की है, किंतु सगुणोपासना से भी इनका कोई विरोध नहीं था। इसलिए इन्होंने अपनी वाणी में निर्गुण-निराकार परमात्मा को स्मरण करने के लिए सगुणोपासना में प्रचलित परमात्मा के माधव, हरि, गोबिंद, राम, केशव आदि शब्दों का निस्संकोच भाव से प्रयोग किया है। इन्होंने एकाग्र मन तथा एकनिष्ठ भाव से प्रभु स्मरण पर बल दिया है।

रैदास जातिगत भेदभाव, तीर्थ, व्रत, आडंबरपूर्ण पूजा आदि में विश्वास नहीं रखते थे। वे सहज, सरल तथा आडंबरहीन प्रभु-भक्ति करते थे। इनकी वाणी में आत्मा-परमात्मा की एकता का भाव व्यक्त हुआ है। वे आत्मा को परमात्मा का अभिन्न अंश मानते थे। इनकी वाणी में प्रमुखता लोक-कल्याण का भाव रहा है।

रैदास ने अपनी रचनाओं में मुख्य रूप से सरल तथा प्रचलित ब्रजभाषा का प्रयोग किया है; इसमें कहीं-कहीं खड़ी बोली, अवधी, राजस्थानी, अरबी-फ़ारसी तथा उर्दू के शब्दों का प्रयोग भी दिखाई दे जाता है। इनके पद ‘खालिक – सिकस्ता मैं तेरा’ में अरबी, फ़ारसी और उर्दू के शब्दों का बहुत प्रयोग हुआ है।

प्रचलित उपमानों तथा नाथों और निरंजनों के सहज, शून्य आदि शब्द भी प्राप्त होते हैं। इन्होंने मुक्तक गेय पदों, दोहा, चौपाई आदि छंदों में अपनी रचनाएँ की हैं। रैदास का काव्य भक्तिभाव से परिपूर्ण है, जिसमें निर्गुण ब्रह्म की आराधना के साथ-साथ गुरु-भक्ति, लोक कल्याण, कर्तव्य पालन, सत्संग, नाम-स्मरण आदि का महत्व प्रतिपादित किया गया है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद

पदों का सार :

पाठ्य-पुस्तक में रैदास द्वारा रचित दो पद संकलित हैं। पहले पद में कवि ने अपने आराध्य की आराधना करते हुए स्पष्ट किया है कि उसे राम-नाम की रट लग गई है, जिसे वह अब छोड़ नहीं सकता। वह अपने प्रभु को चंदन और स्वयं को पानी; उन्हें घनश्याम और स्वयं को मोर; उन्हें चाँद तथा स्वयं को चकोर मानता है। वह अपने प्रभु को दीपक स्वयं को बाती; उन्हें मोती स्वयं को धागा तथा उन्हें स्वामी और स्वयं को उनका दास मानकर उनकी भक्ति करता है।

दूसरे पद में कवि ने प्रभु को सबका रक्षक माना है। कवि के अनुसार दुखियों पर दया करने वाला परमात्मारूपी स्वामी उस जैसे व्यक्ति को भी महान बना देता है। संसार जिसे अछूत मानता है, उसी पर परमात्मा द्रवित होकर कृपा करता है। वह किसी से भी नहीं डरता और नीच को भी ऊँचा बना देता है। कवि कहता है कि उसी परमात्मा की कृपा से नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना, सैन जैसे निम्न जाति में उत्पन्न व्यक्तियों का भी उद्धार हो गया था।

व्याख्या –

1. अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी,
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा ॥
बास – सुगंध। घन बादल। बरै जले। सोनहिं सोने में।

शब्दार्थ : बास – सुगंध। घन – बादल। बंर – जले। सोनहिं – सोने में।

प्रसंग : प्रस्तुत पद रैदास द्वारा रचित है, जोकि हमारी पाठ्यपुस्तक ‘स्पर्श’ (भाग – 1) में संकलित है। इस पद में कवि ने अपने आराध्य के प्रति अपनी अटूट भक्ति का परिचय दिया है।

व्याख्या : रैदास कहते हैं कि हे मेरे प्रभु ! अब मुझे राम नाम जपने की रट लग गई है, जो मुझसे किसी प्रकार से भी नहीं छूट सकती। हे प्रभु! आप चंदन के समान हैं और मैं पानी जैसा हूँ। मैं गंध से रहित पानी की तरह था, जिसमें आपके चंदन रूप की सुगंध घुलकर मेरे अंग-अंग में समा गई है। आप घने बादलों का समूह हैं और मैं मोर हूँ। मैं आपको ऐसे देखता हूँ, जैसे चंद्रमा को चकोर देखता है। आप दीपक हैं और मैं उसमें जलने वाली बत्ती हूँ, जिसकी ज्योत दिन-रात जलती रहती है। आप मोती हैं और मैं मोती को पिरोने वाला धागा हूँ। जैसे सोने को सुहागा शुद्ध कर देता है, वैसे ही आपने मुझे पवित्र कर दिया है। हे प्रभु! आप मेरे स्वामी हैं और मैं आपका दास हूँ। ऐसी ही भक्ति रैदास आपकी करता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद

2. ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।
गरीब निवाजु गुसईआ मेरा माथै छत्रु धरै ॥
जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै।
नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै॥
नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरै।
कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै ॥

शब्दार्थ : लाल – स्वामी। गरीब निवाजु – गरीबों पर कृपा करने वाला। गुसईआ – स्वामी। माथै छत्रु धेरै महान बनाना। जाकी जिसकी। छोति – छुआछूत, अस्पृश्यता। ढरै द्रवित होना, दया करना। नामदेव महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध संत; इन्होंने मराठी और हिंदी दोनों – भाषाओं में रचना की है। तिलोचनु (त्रिलोचन ) – एक प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य, जो ज्ञानदेव और नामदेव के गुरु थे। सधना – एक उच्च कोटि के संत, जो नामदेव के समकालीन माने जाते हैं। सैनु ये भी एक प्रसिद्ध संत हैं, ‘आदि गुरुग्रंथ साहब’ में संग्रहीत पद के आधार पर इन्हें रामानंद का समकालीन माना जाता है। जीउ – इच्छा। सरै – होना।

प्रसंग : प्रस्तुत पद रैदास द्वारा रचित है, जो हमारी पाठ्यपुस्तक ‘स्पर्श’ (भाग – 1) में संकलित है। इस पद में कवि ने स्पष्ट किया है कि परमात्मा के सामने ऊँच-नीच का कोई भेदभाव नहीं है। वह किसी भी कुल, गोत्र, जाति आदि में उत्पन्न अपने भक्त को समान रूप से अपनाकर और उसे समुचित सम्मान देकर उसका उद्धार करता है।

व्याख्या : कवि प्रभु की उदारता, कृपालुता तथा दयालुता का वर्णन करते हुए कहता है कि आपके अतिरिक्त गरीबों तथा दीन-दुखियों का स्वामी अथवा रक्षक अन्य कोई नहीं है। आप गरीबों के रक्षक तथा स्वामी हैं। आपने ही मुझ जैसे व्यक्ति को इतनी महानता प्रदान की है। जिनके स्पर्श को भी दुनिया वाले बुरा मानते हैं, ऐसे लोगों पर भी आप दया करते हैं। कवि कहता है कि मेरा गोबिंद तो नीच को भी उच्च बना देता है; वह किसी से डरता नहीं है। उस परमात्मा ने नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना और सैन जैसे लोगों की भक्ति से प्रसन्न होकर उनका उद्धार कर दिया। रविदास कहते हैं कि ‘हे संतो ! हरि की इच्छा से सभी कार्य संपन्न हो जाते हैं’।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण अशुद्धि शोधन

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Vyakaran अशुद्धि शोधन Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10 Hindi Vyakaran अशुद्धि शोधन

सार्थक एवं पूर्ण विचार व्यक्त करने वाले शब्द समुह को वाक्य कहा जाता है। प्रत्येक भाषा का मुल ढाँचा वाक्यों पर ही आधारित होता है। इसलिए सा यह अनिवार्य है कि वाक्य-रचना में पद-क्रम और अन्वय का विशेष ध्यान रखा जाए। इनके प्रति सावधान न रहने से वाक्य-रचना में कई प्रकार की भूलें हो जाती हैं। वाक्य-रचना के लिए अभ्यास की परम आवश्यकता होती है। नीचे कुछ ऐसे वाक्य दिए जा रहे हैं, जिनमें सामान्य अशुद्धियों

1. संज्ञा संबंधी अशुद्धियाँ।

अशुद्ध – शुद्ध

  1. वह माता-पिता की परिचर्या में लगा हुआ है। – वह माता-पिता की सेवा में लगा हुआ है।
  2. तुम्हारी नारी का क्या नाम है? – तुम्हारी पत्नी का क्या नाम है?
  3. राम ने मोहन की मृत्यु पर खेद प्रकट किया। – राम ने मोहन की मृत्यु पर दुख प्रकट किया।
  4. बढ़ई ने दरवाज़े की रचना की। – बढ़ई ने दरवाज़े का निर्माण किया।
  5. ये विपत्तियाँ टिकाऊ नहीं हैं। – ये विपत्तियाँ स्थायी नहीं हैं।
  6. उसने दोनों हाथों से ठोकर लगाई। – उसने दोनों हाथों से धक्का दिया।
  7. छात्रों ने मुख्यमंत्री को अभिनंदन पत्र प्रदान किया। – छात्रों ने मुख्यमंत्री को अभिनंदन-पत्र भेंट किया।
  8. आप शनिवार के दिन चले जाएँ। – आप शनिवार को चले जाएँ।
  9. सायंकाल के समय पधारने की कृपा करें। – सायंकाल पधारने की कृपा करें।
  10. कृपया पत्र का उत्तर देने की कृपा करें। – पत्र का उत्तर देने की कृपा करें।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण अशुद्धि शोधन

2. परसर्ग संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध – शुद्ध

  1. चाचे न कहा कि वे नहीं जाएँगे। – चाचा ने कहा कि वे नहीं जाएंगे।
  2. वेद ने मुंबई जाना है। – वेद को मुंबई जाना है।
  3. आप भोजन किया? – आपने भोजन किया?
  4. मैं उसे पहचाना नहीं। – मैंने उसे पहचाना नहीं।
  5. उसे गाने का रियाज़ किया। – उसने गाने का रियाज़ किया।
  6. वह खाया और वह चला गया। – उसने खाया और वह चला गया।
  7. उसने नहाया। – वह नहाया।
  8. मुझे भोजन को बुलाया गया है। – मुझे भोजन के लिए बुलाया गया है।
  9. मैं पुस्तक को पढ़ता हूँ। – मैं पुस्तक पढ़ता हूँ।
  10. पूनम यातनाओं को सहती है। – पूनम यातनाएँ सहती है।

3. लिंग संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध – शुद्ध

  1. सारा देश एक साथ मिलकर खड़ी हो गई। – सारा देश एक साथ मिलकर खड़ा हो गया।
  2. उन्होंने मुझे गोवा घुमाई। – उन्होंने मुझे गोवा में घुमाया।
  3. वर्तमान दशा अत्यंत चिंता का विषय समझा जा रहा – वर्तमान दशा अत्यंत चिंता का विषय समझी जा रही है।
  4. मुझे आदेश दी। – मुझे आदेश दिया।
  5. बेटी दूसरे घर का धन होता है। – बेटी दूसरे घर का धन होती है।
  6. उनका उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति रही होगी। – उनका उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति रहा होगा।
  7. लड़के ने पुस्तक पढ़ा। – लड़के ने पुस्तक पढ़ी।
  8. मधुसूदन और मीरा कॉलेज गई। – मधुसूदन और मीरा कॉलेज गए।
  9. घोड़ा, बैल और गाय चर रही हैं। – घोड़ा, बैल और गाय चर रहे हैं।
  10. कितने वीरता से भरे गीत उसने गाए। – कितनी वीरता से भरे गीत उसने गाए।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण अशुद्धि शोधन

4. वचन संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध – शुद्ध

  1. चार हज़ार का टिकट गायब है। – चार हज़ार के टिकट गायब हैं।
  2. माता अपने पुत्र को देखती जा रही थीं। – माताएँ अपने पुत्रों को देखती जा रही थीं।
  3. पाँच पेड़ा खाया – पाँच पेड़े खाए।
  4. मेरा तो प्राण निकल गया। – मेरे तो प्राण निकल गए।
  5. उसे दो रोटी दे दो। – उसे दो रोटियाँ दे दो।
  6. लड़की लोग बैठा था। – लड़कियाँ बैठी थीं।
  7. अपने-अपने घरों से रोटी ले कर आओ। – अपने-अपने घर से रोटी लेकर आओ।
  8. दर्शकों में अनेक श्रेणियों के लोग थे। – दर्शकों में अनेक श्रेणी के लोग थे।
  9. प्रत्येक ने टोपियाँ पहन रखी थीं। – प्रत्येक ने टोपी पहन रखी थी।
  10. घोड़ियें चर रही हैं। – घोड़ियाँ चर रही हैं।

5. सर्वनाम संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध – शुद्ध

  1. प्रशांत ने भारती से कहा, “वह तुरंत आ रहे हैं।” – प्रशांत ने भारती से कहा, “वे तुरंत आ रहे हैं।”
  2. लीजिए इन्होंने एक गिलास दूध डाल दीजिए। – लीजिए इसमें एक गिलास दूध डाल दीजिए।
  3. विभू मेरा पास आया और कहा। – विभू मेरे पास आया और कहा।
  4. उसने महेश को देखा और इसके पास बैठ गई। – उसने महेश को देखा और उसके पास बैठ गई।
  5. बच्चो, यदि हम नहीं पढ़ोगे तो फेल हो जाओगे। – बच्चो, यदि तुम नहीं पढ़ोगे तो फेल हो जाओगे।
  6. आज प्रातः क्या चला गया ? – आज प्रातः कौन चला गया ?
  7. यद्यपि इस लड़के ने बिलकुल परिश्रम नहीं किया था तो भी वह पास हो गया। – यद्यपि इस लड़के ने बिलकुल परिश्रम नहीं किया था तो भी यह पास हो गया।
  8. वह लोग भले थे। – वे लोग भले थे।
  9. हमको क्या ? – हमें क्या ?
  10. तुम तुम्हारे रास्ते चलो। – तुम अपने रास्ते चलो।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण अशुद्धि शोधन

6. विशेषण संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध – शुद्ध

  1. मुझे घोर आग्रह करके बुलाया है। – मुझे विशेष आग्रह करके बुलाया है।
  2. उसने सच गवाही दी। – उसने सच्ची गवाही दी।
  3. तुमने झूठ बात कही। – तुमने झूठी बात कही।
  4. वह आदमी बहुत श्रेष्ठ है। – वह आदमी बहुत अच्छा है।
  5. उसके पास सुंदरी गुड़िया है। – उसके पास सुंदर गुड़िया है।
  6. भारी भरकम भीड़ जमा हो गई। – बड़ी भीड़ जमा हो गई।
  7. कई फैक्टरी के कर्मचारी चले गए। – फैक्टरी के कई कर्मचारी चले गए।
  8. केवल मात्र व्याकरण सीखने से क्या होगा ? – केवल व्याकरण सीखने से क्या होगा ?
  9. सीता सोती नींद से जाग पड़ी। – सीता नींद से जाग पड़ी।
  10. अपनी सकुशलता का पत्र भेजना। – अपनी कुशलता का पत्र भेजना।

7. क्रिया संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध – शुद्ध

  1. उसे हरि का हाथ झटक डाला। – उसने हरि का हाथ झटक दिया।
  2. उसने सब कुछ खा डाला। – उसने सब कुछ खा लिया।
  3. सर्प को देखकर वह घबरा आयी। – सर्प को देखकर वह घबरा गई।
  4. वह चिल्ला उठा। – वह चिल्ला पड़ा।
  5. आज सभी ने यह संकल्प लिया कि …… – आज सभी ने यह संकल्प किया कि …..
  6. वहाँ गहन अंधकार घिरा हुआ था। – वहाँ गहन अंधकार छाया हुआ था।
  7. अपने जूते निकालो। – अपने जूते उतारो।
  8. उसका मूल्य आप नहीं नाप सकते। – उसका मूल्य आप नहीं आँक सकते।
  9. उसको अभिनंदन – पत्र प्रदान किया। – उसको अभिनंदन पत्र भेंट किया।
  10. शादी में वस्तुएँ भेंट की गईं। – शादी में अनेक वस्तुओं का उपहार मिला।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण अशुद्धि शोधन

8. मुहावरे संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध – शुद्ध

  1. युग की माँग का यह बीड़ा कौन चबाता है ? – युग की माँग का यह बीड़ा कौन उठाता है ?
  2. वह श्याम पर बरस गया। – वह श्याम पर बरस पड़ा।
  3. उसकी अक्ल चक्कर खा गई। – उसकी अक्ल चकरा गई।
  4. पाँचवें दिन शत्रु ने हथियार रख दिए। – पाँचवें दिन शत्रु ने हथियार डाल दिए।
  5. उस पर घड़ों पानी गिर गया। – उस पर घड़ों पानी पड़ गया
  6. यह काम चार दो आदमियों का नहीं। – यह काम दो-चार आदमियों का नहीं।
  7. मुझे से पाँच – तीन न करना। – मुझसे तीन – पाँच न करना।
  8. सिपाही को देखते ही चोर सात चार ग्यारह हो गया। – सिपाही को देखते ही चोर नौ दो ग्यारह हो गया।
  9. कैसा मूर्ख नौकर पाले पड़ा है। – कैसा मूर्ख नौकर पल्ले पड़ा है।
  10. इकलौता पुत्र आँख का तारा होता है। – इकलौता पुत्र आँखों का तारा होता है।

9. क्रिया-विशेषण संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध – शुद्ध

  1. केवल इसीलिए वह न पढ़ सका। – इसीलिए वह न पढ़ सका।
  2. वह अत्यंत ही परिश्रमी है। – वह अत्यंत परिश्रमी है।
  3. वह लगभग रोने लगा। – वह रोने लगा।
  4. यहाँ पर कुछ गंदगी है। – यहाँ कुछ गंदगी है।
  5. उसके पास केवल मात्र एक रुपया रह गया। – उसके पास केवल एक रुपया रह गया।
  6. वह कदापि भी झूठ नहीं बोलता। – वह कदापि झूठ नहीं बोलता।
  7. उसके बाद वे वापस लौट आए। – उसके बाद वे लौट आए।
  8. आप लोग परस्पर में समझ लेना। – आप लोग परस्पर समझ लेना।
  9. वह प्रायः कभी-कभी आता है। – वह कभी-कभी आता है।
  10. उसका सिर नीचे था। – उसका सिर नीचा था।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण अशुद्धि शोधन

10. अव्यय संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध – शुद्ध

  1. मैं आया ही था जब कि वे भी आ गए। – मैं आया ही था कि वे भी आ गए।
  2. कदाचित यदि वह आक्रमण कर देता तो……। – कदाचित वह आक्रमण कर देता तो….।
  3. वे संतान को लेकर दु:खी थे। – वे संतान के कारण दुखी थे।
  4. देश व काल का ध्यान रखना आवश्यक है। – देश और काल का ध्यान रखना आवश्यक है।
  5. यदि वह मोटी न होती तब और भी तेज़ दौड़ती। – यदि वह मोटी न होती तो और भी तेज दौड़ती।
  6. वहाँ अपार जनसमूह एकत्रित था। – वहाँ अपार जन-समूह एकत्र था।
  7. प्रायः लोग झूठ तो बोलते हैं। – प्रायः लोग झूठ बोलते हैं।
  8. ज्योंही मैं स्टेशन पहुँचा, गाड़ी रवाना हो गई। – ज्योंही मैं स्टेशन पहुँचा, त्योंही गाड़ी रवाना हो गई।
  9. मैं प्रसन्न हूँ, क्योंकि तुम परिश्रमी हो। – मैं इसलिए प्रसन्न हूँ, क्योंकि तुम परिश्रमी हो।
  10. तुम्हें काम करना हो तो करो या अपने घर जाओ। – तुम्हें काम करना हो तो करो अन्यथा अपने घर जाओ।

11. वाक्यगत सामान्य अशुद्धियाँ।

अशुद्ध – शुद्ध

  1. उसने अनेकों ग्रंथ लिखे। – उसने अनेक ग्रंथ लिखे।
  2. महाभारत, अठारह दिनों तक चलता रहा। – महाभारत अठारह दिन तक चलता रहा।
  3. खरगोश को काटकर गाजर खिलाओ। – खरगोश को गाजर काटकर खिलाओ।
  4. मेरी आयु बीस की है। – मेरी अवस्था बीस वर्ष की है।
  5. हम दोनों के बीच शत्रुता हो गई। – हम दोनों में शत्रुता हो गई।
  6. पाँच हजार का टिकट बिक गया। – पाँच हजार के टिकट बिक गए।
  7. वह अनेक भावों का प्रकट करता है। – वह अनेक भाव प्रकट करता है।
  8. तुम्हारे ऊपर यह अभियोग है। – तुम्हारे पर यह अभियोग है।
  9. गुरुजनों के ऊपर श्रद्धा रखो। – गुरुजनों पर श्रद्धा रखो।
  10. मैंने वहाँ जाकर बड़ी अशुद्धि की। – मैंने वहाँ जाकर बड़ी भूल की।

12. पुनरुक्ति संबंधी अशुद्धियाँ।

अशुद्ध – शुद्ध

  1. मेरे पिता सजन पुरुष हैं। – मेरे पिता सज्जन हैं।
  2. बेफ़िजूल बोल रहे हो। – फ़िजूल बोल रहे हो।
  3. उन लोगों में कछ लोग अत्यंत धर्म-परायण थे। – उनमें कुछ लोग अत्यंत धर्म परायण थे।
  4. वे गुनगुने गर्म पानी से स्नान करते हैं। – वे गुनगुने पानी से स्नान करते हैं।
  5. आपमें कुछ आवश्यक गुणों की आवश्यकता है। – आपमें कुछ गुणों की आवश्यकता है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण अशुद्धि शोधन

13. सामान्य अशुद्धियाँ

अशुद्ध – शुद्ध

  1. लड़के पड़ रहे हैं। – लड़के पढ़ रहे हैं।
  2. मैं माता का दर्शन करने आया हूँ। – मैं माता के दर्शन करने आया हूँ।
  3. अत्यधिक किया कार्य भी थका देता है। – अत्यधिक कार्य भी थका देता है।
  4. उत्तर दिशा जाने पर तुम्हें मेरा मकान मिल जाएगा। – उत्तर दिशा में जाने पर तुम्हें मेरा मकान मिल जाएगा।
  5. आप ग्रह प्रवेश पर निमंत्रित हैं। – आप गृह-प्रवेश पर आमंत्रित हैं।
  6. आपकी पेन बहुत तेज़ दौड़ती है। – आपका पेन तेज़ी से लिखता है।
  7. स्लेट में लिखो। – स्लेट पर लिखो।
  8. तुम्हारी बात समझ नहीं आती। – तुम्हारी बात समझ में नहीं आती।
  9. अच्छे विचारों का ग्रहण करो। – अच्छे विचारों को ग्रहण करो।
  10. सौंदर्य सबको मोह लेती है। – सौंदर्य सबको मोह लेता है।
  11. एडीसन प्रसिद्ध विज्ञानी था। – एडीसन प्रसिद्ध वैज्ञानिक था।
  12. तुम्हारी चातुर्यता हर बार कामयाब न होगी। – तुम्हारा चातुर्य हर बार कामयाब न होगा।

14. व्यंजन की अशुद्धियाँ

अशुद्ध – शुद्ध

  1. सबको समान अंस देना चाहिए। – सबको समान अंश देना चाहिए।
  2. उसका अंत्य निकट था। – उसका अंत निकट था।
  3. कमल जल में उत्पन्न होता है। – कमल जल में खिलता है।
  4. मैं किसी अन्न व्यक्ति से बात नहीं करता। – मैं किसी अन्य व्यक्ति से बात नहीं करंता।
  5. अनु अनु में भगवान विराजमान है। – कण-कण में भगवान विराजमान है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण अशुद्धि शोधन

15. बेमेल अशुद्धियाँ

अशुद्ध – शुद्ध

  1. वह प्रति पग-पग पर ठोकरें खाता है। – वह पग-पग पर ठोकरें खाता है।
  2. मोरनी को खुश करने के लिए नर मोर नाचता है। – मोरनी को खुश करने के लिए मोर नाचता है।
  3. बात तो यह है कि तुम बहुत भोले हो। – बात यह है कि तुम बहुत भोले हो।
  4. प्रति रोज़ दाँत साफ़ करो। – प्रतिदिन दौँ साफ़ करो।
  5. शरीफ पुरुष की सभी इज़्ज़त करते हैं। – शरीफ आदमी की सभी इज़ज़त करते हैं।
  6. बॉल को फर्श पर लुढ़का दो। – गेंद को फर्श पर लुढ़का दो।
  7. मैं दसवीं कक्षा का स्टूडेंट हूँ। – मैं दसर्वीं कक्षा का विद्यार्थी हूँ।
  8. समय को व्यर्थ न करो। – समय को व्यर्थ न गाँवाओ।
  9. मेरा सहेली आया है। – मेरी सहेली आई।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

JAC Class 9 Hindi शक्र तारे के समान Textbook Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
महादेव भाई अपना परिचय किस रूप में देते थे ?
उत्तर :
महादेव भाई स्वयं का परिचय गांधी जी का ‘हम्माल’ अथवा ‘पीर – बावर्ची – भिश्ती – खर’ कहकर देते थे।

प्रश्न 2.
‘यंग इंडिया’ साप्ताहिक में लेखों की कमी क्यों रहने लगी थी ?
उत्तर :
‘यंग इंडिया’ में ‘क्रानिकल’ के हॉर्नीमैन लेख लिखते थे। सरकार ने उन्हें देश निकाला देकर इंग्लैंड भेज दिया था। इसलिए ‘यंग इंडिया’ में लेखों की कमी रहने लगी थी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

प्रश्न 3.
गांधी जी ने ‘यंग इंडिया’ प्रकाशित करने के विषय में क्या निश्चय किया ?
उत्तर :
गांधी जी ने ‘यंग इंडिया’ को सप्ताह में दो बार प्रकाशित करने का निश्चय किया।

प्रश्न 4.
गांधी जी से मिलने से पहले महादेव जी कहाँ नौकरी करते थे ?
उत्तर :
गांधी जी से मिलने से पहले महादेव जी सरकार के अनुवाद – विभाग में नौकरी करते थे।

प्रश्न 5.
महादेव भाई के झोलों में क्या भरा रहता था ?
उत्तर :
महादेव भाई के झोलों में ताज़े-से-ताजे समाचार पत्र, मासिक – पत्र और पुस्तकें भरी रहती थीं।

प्रश्न 6.
महादेव भाई ने गांधी जी की कौन-सी प्रसिद्ध पुस्तक का अनुवाद किया था ?
उत्तर :
महादेव भाई ने गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ का अनुवाद किया था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

प्रश्न 7.
अहमदाबाद से कौन-से दो साप्ताहिक निकलते थे ?
उत्तर :
अहमदाबाद से ‘यंग इंडिया’ और ‘नवजीवन’ नामक दो साप्ताहिक – पत्र प्रकाशित होते थे।

प्रश्न 8.
महादेव भाई दिन में कितनी देर काम करते थे ?
उत्तर :
महादेव भाई काम में रात और दिन के बीच कोई फ़र्क नहीं करते थे। वे निरंतर काम में लगे रहते थे। वे एक घंटे में चार घंटों का काम निपटा देते थे।

प्रश्न 9.
महादेव भाई से गांधी जी की निकटता किस वाक्य से सिद्ध होती है ?
उत्तर
महादेव भाई की मृत्यु के बाद भी जब प्यारेलाल जी से गांधी जी को कुछ कहना होता था तो उनके मुख से अनायास ही ‘महादेव’ निकलता था।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
गांधी जी ने महादेव को अपना वारिस कब कहा था ?
उत्तर :
गांधी जी ने महादेव को अपना वारिस तब कहा था जब वे सन् 1919 में जलियाँवाला बाग के हत्याकांड के दिनों में पंजाब जा रहे थे और उन्हें पलवल स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

प्रश्न 2.
गांधी जी से मिलने आनेवालों के लिए महादेव भाई क्या करते थे ?
उत्तर :
गांधी जी से मिलने आनेवालों की बातों को महादेव भाई सुनकर उनकी बातों की संक्षिप्त टिप्पणियाँ तैयार करके उनको गांधी जी के सम्मुख प्रस्तुत करते थे और आनेवालों के साथ उनकी भेंट भी करवाते थे।

प्रश्न 3.
महादेव जी की साहित्यिक देन क्या है ?
उत्तर :
महादेव भाई की भाषा शिष्ट और संस्कार संपन्न थी। इनकी लेखन शैली मनोहारी थी। इन्होंने गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया था जो प्रत्येक सप्ताह ‘यंग इंडिया’ में प्रकाशित होता रहा था। बाद में पुस्तक के रूप में इसका प्रकाशन हुआ था।

प्रश्न 4.
महादेव भाई की अकाल मृत्यु का कारण क्या था ?
उत्तर :
सन् 1935-36 में गांधी जी सेगाँव की सीमा पर झोंपड़ों में रहने लगे थे। महादेव भाई मगनवाड़ी में ही रहते थे। वहीं से वे वर्धा की असहनीय गरमी में रोज़ ग्यारह मील पैदल चलकर आते-जाते थे। यह कार्यक्रम काफ़ी लंबे समय तक चलता रहा। इसका उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और उनकी अकाल मृत्यु हो गई।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

प्रश्न 5.
महादेव भाई के लिखे नोट के विषय में गांधी जी क्या कहते थे ?
उत्तर :
महात्मा गांधी कहा करते थे कि महादेव के लिखे नोट के साथ थोड़ा मिलान कर लेना चाहिए था क्योंकि महादेव भाई के द्वारा लिखे गए नोट में कभी कॉमा तक की भी गलती नहीं होती थी

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
पंजाब में फ़ौजी शासन ने क्या कहर बरसाया ?
उत्तर :
पंजाब में फ़ौजी शासन ने सन् 1919 ई० में जलियाँवाला बाग में निर्दोष लोगों को घेरकर मार दिया था। पंजाब में अधिकांश नेताओं को गिरफ़्तार करके फ़ौजी कानून के अंतर्गत आजीवन कैद की सजाएँ देकर काला पानी भेज दिया गया था। लाहौर से प्रकाशित होनेवाले राष्ट्रीय अंग्रेजी दैनिक समाचार-पत्र ‘ट्रिब्यून’ के संपादक श्री कालीनाथ राय को दस वर्ष जेल की सज़ा दे दी गई थी।

प्रश्न 2.
महादेव जी के किन गुणों ने उन्हें सबका लाड़ला बना दिया था ?
उत्तर :
महादेव जी सेवा-धर्म का पालन करने में निपुण थे। वे लोगों के द्वारा बताई गई बातें भी संक्षिप्त टिप्पणियाँ तैयार करने और उन्हें गांधी जी के सामने पेश करने, गांधी जी के लेख तैयार करने, उनके यात्रा-वर्णन लिखने, उनकी दैनिक गतिविधियों को देखने तथा सत्यनिष्ठा और विवेकपूर्ण ढंग से विकास करने के कारण सबके लाड़ले बन गए थे।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

प्रश्न 3.
महादेव जी की लिखावट की क्या विशेषताएँ थीं ?
उत्तर :
महादेव जी की लेखन शैली अत्यंत मनोहारी थी। वे अपने लेखन में शिष्ट और संस्कार – संपन्न भाषा का प्रयोग करते थे। गांधी जी से मिलने आनेवाले लोगों की व्यथा-कथा सुनकर स्वयं उनसे हुई बातों की संक्षिप्त तथा सटीक टिप्पणियाँ लिखने में वे अत्यंत निपुण थे। इनके द्वारा लिखी गई तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक तथा अन्य विषयों की टिप्पणियों के आधार पर गांधी जी ‘बांबे क्रॉनिकल’, ‘यंग इंडिया’, ‘नवजीवन’ आदि पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखते थे। गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ का अंग्रेजी अनुवाद इनकी लेखन शैली का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
‘अपना परिचय उनके ‘पीर- बावर्ची भिश्ती खर’ के रूप में देने में वे गौरवान्वित महसूस करते थे।’
उत्तर :
महादेव भाई लोगों को अपना परिचय गांधी जी के उस परिचारक के रूप में देने में गर्व अनुभव करते थे जो उनके सभी प्रकार के कार्य करने में समर्थ है। वे स्वयं को गांधी जी का ऐसा ही सेवक मानते थे क्योंकि वे उनके सभी कार्य करते थे। इसी में उन्हें गर्व अनुभव होता था कि वे गांधी जी के अनुचर हैं।

प्रश्न 2.
इस पेशे में आमतौर पर स्याह को सफ़ेद और सफ़ेद को स्याह करना होता था।
उत्तर :
वकालत का पेशा झूठ बोलने का पेशा माना जाता है क्योंकि इसमें वकील अपने ग्राहक को जिताने के लिए झूठ को सच और सच को झूठ बनाकर प्रस्तुत करते हैं। जो इस कार्य में निपुण होता है वही सफल वकील माना जाता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

प्रश्न 3.
देश और दुनिया को मुग्ध करके शुक्रतारे की तरह ही अचनाक अस्त हो गए।
उत्तर
महादेव भाई शुक्रतारे के समान अपनी आभा से संसार को मोहित करके अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गए थे।

प्रश्न 4.
उन पत्रों को देख-देखकर दिल्ली और शिमला में बैठे वाइसराय लंबी साँस उसाँस लेते रहते थे।
उत्तर :
महादेव भाई द्वारा लिखे गए पत्रों की विषय-वस्तु को पढ़कर दिल्ली और शिमला में बैठे हुए वाइसराय भी परेशान हो उठते थे।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
‘इक’ प्रत्यय लगाकर शब्दों का निर्माण कीजिए –
सप्ताह, अर्थ, साहित्य, धर्म, व्यक्ति, मास, राजनीति, वर्ष।
उत्तर :
साप्ताहिक, आर्थिक, साहित्यिक, धार्मिक, वैयक्तिक, मासिक, राजनैतिक, वार्षिक।

प्रश्न 2.
नीचे दिए गए उपसर्गों का उपयुक्त प्रयोग करते हुए शब्द बनाइए –
अ, नि, अन, नि, दुर, वि, कु, पर, सु, अधि।
उत्तर :

  • आर्य – अनार्य
  • डर – निडर
  • सार्थक – निरर्थक
  • सुलभ – दुर्लभ
  • क्रय – विक्रय
  • उपस्थित – अनुपस्थित
  • नायक – अधिनायक
  • आगत – अनागत
  • आकर्षण – विकर्षण
  • मार्ग – कुमार्ग
  • लोक – परलोक
  • भाग्य – दुर्भाग्य
  • आयात – निर्यात
  • विश्वास – अविश्वास।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

प्रश्न 3.
निम्नलिखित मुहावरों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
आड़े हाथों लेना, अस्त हो जाना, दाँतों तले अंगुली दबाना, मंत्र-मुग्ध करना, लोहे के चने चबाना।
उत्तर :
1. आड़े हाथों लेना – जब जोसफ़ ने बहाना बनाकर विद्यालय जाने से इनकार किया तो मम्मी ने उसे आड़े हाथों लिया और विद्यालय जाने के लिए विवश कर दिया।
2. अस्त हो जाना – आपसी कलह से बड़े-बड़े घरानों की ख्याति अस्त हो जाती है
3. दाँतों तले अंगुली दबाना – ताजमहल का सौंदर्य देखकर बड़े-बड़े कलाकार भी दाँतों तले अँगुली दबा लेते हैं।
4. मंत्र-मुग्ध करना – लोक-नृतकों ने अपने नृत्य से दर्शकों को मंत्र-मुग्ध कर दिया।
5. लोहे के चने चबाना – भारतीय सेना से मुकाबला करना लोहे के चने चबाने के समान है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों के पर्याय लिखिए-
वारिस, जिगरी, कहर, मुकाम, रूबरू, फ़र्क, तालीम, गिरफ़्तार।
उत्तर :

  • वारिस – उत्तराधिकारी
  • जिगरी – दिली
  • कहर – संकट
  • मुकाम – पड़ाव
  • रूबरू – सामने
  • फ़र्क – अंतर
  • तालीम – शिक्षा
  • गिरफ़्तार – बंदी

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

प्रश्न 5.
उदाहरण के अनुसार वाक्य बदलिए –
उदाहरण : गांधी जी ने महादेव भाई को अपना वारिस कहा था।
गांधी जी महादेव भाई को अपना वारिस कहा करते थे।

  1. महादेव भाई अपना परिचय ‘पीर – बावर्ची – भिश्ती – खर’ के रूप में देते थे।
  2. पीड़ितों के दल-के-दल गामदेवी के मणिभवन पर उमड़ते रहते थे।
  3. दोनों साप्ताहिक अहमदाबाद से निकलते थे।
  4. देश-विदेश के समाचार पत्र गांधी जी की गतिविधियों पर टीका-टिप्पणी करते थे।
  5. गांधी जी के पत्र हमेशा महादेव की लिखावट में जाते थे।

उत्तर :

  1. महादेव भाई अपना परिचय ‘पीर – बावर्ची भिश्ती – खर’ के रूप में दिया करते थे।
  2. पीड़ितों के दल – के – दल गामदेवी के मणिभवन पर उमड़ा करते थे।
  3. दोनों साप्ताहिक अहमदाबाद से निकला करते थे।
  4. देश-विदेश के समाचार-पत्र गांधी जी की गतिविधियों पर टीका-टिप्पणी किया करते थे।
  5. गांधी जी के पत्र हमेशा महादेव जी लिखा करते थे।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ को पुस्तकालय से लेकर पढ़िए।
उत्तर :
इन गतिविधियों को विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
जलियाँवाला बाग में कौन-सी घटना हुई थी ? जानकारी एकत्रित कीजिए।
उत्तर :
इन गतिविधियों को विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

प्रश्न 3.
अहमदाबाद में बापू के आश्रम के विषय में चित्रात्मक जानकारी एकत्र कीजिए।
उत्तर :
इन गतिविधियों को विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 4.
सूर्योदय के 2-3 घंटे पहले पूर्व दिशा में या सूर्यास्त के 2-3 घंटे बाद पश्चिम दिशा में एक खूब चमकता हुआ ग्रह दिखाई देता है, वह शुक्र ग्रह है। छोटी दूरबीन से इसकी बदलती हुई कलाएँ देखी जा सकती हैं, जैसे चंद्रमा की कलाएँ।
उत्तर :
इन गतिविधियों को विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 5.
वीराने में जहाँ बत्तियाँ न हों वहाँ अँधेरी रात में जब आकाश में चाँद भी दिखाई न दे रहा हो तब शुक्र ग्रह (जिसे हम शुक्रतारा भी कहते हैं) के प्रकाश से अपने साए को चलते हुए देखा जा सकता है। कभी अवसर मिले तो इसे स्वयं अनुभव करके देखिए।
उत्तर :
इन गतिविधियों को विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
सूर्यमंडल में नौ ग्रह हैं। शुक्र सूर्य से क्रमशः दूरी के अनुसार दूसरा ग्रह है और पृथ्वी तीसरा। चित्र सहित परियोजना पुस्तिका में अन्य ग्रहों के क्रम लिखिए।
प्रश्न 2.
‘स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी जी का योगदान’ विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।

प्रश्न 3.
भारत के मानचित्र पर निम्न स्थानों को दर्शाएँ –
अहमदाबाद, जलियाँवाला बाग (अमृतसर), कालापानी (अंडमान), दिल्ली, शिमला, बिहार, उत्तर प्रदेश।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi शक्र तारे के समान Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘शुक्रतारे के समान’ पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
स्वामी आनंद द्वारा रचित पाठ ‘शुक्रतारे के समान’ में गाँधी जी के निजी सचिव महादेव भाई देसाई के जीवन के कुछ अंशों को प्रस्तुत किया गया है। लेखक के अनुसार महादेव भाई अत्यंत सरल, सज्जन, निष्ठावान, समर्पित एवं निरभिमानी व्यक्ति थे। उन्होंने महात्मा गाँधी की समस्त चिंताओं और उलझनों को अपने सिर पर ले लिया था, इस कारण कोई भी महान व्यक्ति महानतम कार्य तभी कर पाता है जब उसका सहयोगी महादेव भाई जैसा ही हो।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

प्रश्न 2.
महादेव भाई के अध्ययन की क्या विशेषताएँ थीं ?
उत्तर :
महादेव भाई साहित्यिक पुस्तकों की तरह तत्कालीन राजनीतिक गतिविधियों से संबंधित पुस्तकें अधिक पढ़ते थे। इन पुस्तकों से उन्हें भारत से संबंधित देश-विदेश में होनेवाली गतिविधियों की जानकारी मिल जाती थी। उन्हें ताज़े समाचार-पत्र, मासिक और साप्ताहिक – पत्रों को पढ़ने में विशेष रुचि थी। वे सम-सामयिक विषयों से संबंधित पुस्तकें अधिक पढ़ते थे।

प्रश्न 3.
‘यंग इंडिया’ अख़बार कहाँ से निकलता था ? इसका प्रकाशन करनेवालों ने गाँधी जी को संपादक क्यों बनाया ?
उत्तर :
‘यंग इंडिया’ अख़बार बंबई से निकलता था। इसमें लेखक लिखनेवाले हॉर्नीमैन को ब्रिटिश सरकार ने उनके निर्भीक लेखों के कारण देश निकाला दे दिया, जिससे ‘यंग इंडिया’ अख़बार में लेखों की कमी आ गई। ‘यंग इंडिया’ के मालिकों ने गाँधी जी से संपर्क किया और उन्हें अपने अख़बार का संपादक बनने का आग्रह किया। उन दिनों गाँधी जी को भी अपने लेखों के लिए अख़बार की आवश्यकता थी। इसलिए उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

प्रश्न 4.
लेखक साबरमती आश्रम में क्या काम करते थे ?
उत्तर :
लेखक छह महीने के लिए साबरमती आश्रम में रहने के लिए गए। वहाँ उन्होंने शुरू में अख़बारों के ग्राहकों का हिसाब-किताब और साप्ताहिकों को डाक में डलवाने की व्यवस्था देखने का काम किया। कुछ दिनों बाद दोनों साप्ताहिकों के संपादन और छापाखाने की सारी व्यवस्था लेखक पर आ गई। इस प्रकार आश्रम में रहते हुए उन्होंने ‘यंग इंडिया’ और ‘नवजीवन’ समाचार-पत्रों के साप्ताहिक अंकों की व्यवस्था का काम किया।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

प्रश्न 5.
लेखक के अनुसार महादेव भाई का व्यक्तित्व कैसा था ?
उत्तर :
लघु तलनीय प्रश्न त उत्तर महादेव भाई का व्यक्तित्व उनके संपर्क में आनेवाले लोगों पर जादुई प्रभाव डालता था, जिसका प्रभाव कई-कई दिन तक रहता था। वे कभी भी किसी से कड़वी या चुभनेवाली बात नहीं करते थे। उनकी निर्मल प्रतिभा उनके संपर्क में आनेवाले व्यक्ति को चंद्र- शुक्र की प्रभा के साथ दूध से नहला देती थी।

प्रश्न 6.
महादेव भाई से मिलकर कैसा लगता था ?
उत्तर :
महादेव भाई से मिलकर ऐसा लगता था जैसे उनके व्यक्तित्व ने मिलनेवाले को सम्मोहित कर दिया हो। उनका सारा जीवन गाँधी जी के साथ मिलकर एक रूप हो गया था। उनकी संस्कार संपन्न भाषा और मनोहारी रूप सभी को अपनी ओर खींच लेता था। काम-काज में व्यस्त होने पर भी वे प्रतिदिन डायरी लिखा करते थे। उनका यही कार्यशैली मिलनेवाले को सुखद आनंद देती थी।

प्रश्न 7.
महादेव भाई के काम करने की गति कैसी थी ?
उत्तर :
महादेव भाई एक पठनशील नवयुवक थे। उन्हें जब भी अवसर मिलता था वे ‘यंग इंडिया’ तथा ‘नव जीवन’ के लिए लेख लिखते थे। उनकी काम करने की गति बहुत तेज़ थी। वे चार घंटों का काम एक ही घंटे में निपटा देते थे। वे चरखे पर सूत बहुत सुंदर कातते थे। उनके लिए काम के बीच रात – दिन में कोई अंतर नहीं था। किसी को भी उनके खाने-पीने का पता नहीं चलता था कि उन्होंने कब खाया, कब पिया।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

प्रश्न 8.
गाँधी जी महादेव भाई से कितना स्नेह करते थे ?
उत्तर :
गाँधी जी महादेव भाई से अत्यधिक स्नेह करते थे। सन् 1919 ई० में जलियाँवाला बाग हत्याकांड के संदर्भ में जब गाँधी जी को पंजाब जाते हुए पलवल स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया तो उसी समय गाँधी जी ने महादेव भाई के प्रति अपने प्रेम का परिचय देते हुए उन्हें अपना वारिस कह दिया था। सन् 1929 में महादेव भाई ने सारे देश में यात्राएँ की थीं।

शक्र तारे के समान Summary in Hindi

लेखक परिचय :

जीवन-परिचय – स्वामी आनंद का जन्म गुजरात के काठियावाड़ जिले के किमड़ी गाँव में सन् 1887 ई० में हुआ था। इनका बचपन का नाम हिम्मत लाल था। इन्हें दस वर्ष की आयु में कुछ साधु अपने साथ हिमालय की ओर ले गए थे। उन्हीं साधुओं ने इनका नाम स्वामी आनंद रख दिया था। सन् 1907 ई० से स्वामी आनंद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए थे। सन् 1917 ई० में इनका संपर्क गांधी जी से हुआ।

गांधी जी ने इन्हें ‘नवजीवन’ और ‘यंग इंडिया’ की प्रसार व्यवस्था का कार्यभार दिया। इन्होंने कुछ समय तक महाराष्ट्र से ‘तरुण हिंद’ नामक समाचार-पत्र निकाला था। इन्होंने बाल गंगाधर तिलक के ‘केसरी’ समाचार – पत्र में भी काम किया था। गांधी जी के संपर्क में आने के बाद ही इनका संबंध गांधी जी के निजी सहयोगी महादेव भाई और प्यारेलाल से हुआ।

रचनाएँ – स्वामी आनंद ने ‘तरुण हिंद’, ‘नवजीवन’, ‘केसरी’ आदि समाचार-पत्रों में अनेक लेख लिखे थे।

भाषा-शैली – स्वामी आनंद के आलेख ‘शुक्रतारे के समान’ में गांधी जी के निजी सचिव महादेव भाई देसाई के जीवन के विभिन्न पक्षों को यथार्थ रूप में प्रस्तुत किया गया है। लेखक की भाषा अत्यंत सहज एवं व्यावहारिक है। तेजस्वी, मुग्ध, आसेतु, हिमाचल, शिष्ट, संस्कार, संपन्न आदि तत्सम प्रधान शब्दों के साथ-साथ पीर, बावर्ची, भिश्ती, खर, जुल्म, अलावा, स्याह, सफ़ेद, हफ़्ता आदि विदेशी शब्दों का प्रयोग भी मिलता है।

इनकी शैली सहज, प्रभावपूर्ण तथा वर्णनप्रधान है, जैसे- ‘प्रथम श्रेणी की शिष्ट, संस्कार संपन्न भाषा और मनोहारी लेखन – शैली की ईश्वरीय देन महादेव को मिली थी।’ इनके वर्णनों में चित्रात्मकता का गुण भी विद्यमान है, जैसे- ‘बिहार और उत्तर प्रदेश के हज़ारों मील लंबे मैदान गंगा, यमुना और दूसरी नदियों के परम उपकारी, ‘सोने’ की कीमतवाले ‘गाद’ के बने हैं। आप सौ-सौ कोस चल लीजिए रास्ते में सुपारी फोड़ने लायक एक पत्थर भी कहीं मिलेगा नहीं।’ इस प्रकार स्वामी आनंद ने सहज, सरल भाषा एवं रोचक शैली में महादेव भाई के जीवन के कुछ प्रसंग प्रस्तुत किए हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

पाठ का सार :

‘शुक्रतारे के समान’ पाठ के लेखक स्वामी आनंद हैं। इस पाठ में लेखक ने गांधी जी के निजी सचिव महादेव भाई देसाई की सरलता, सज्जनता, निष्ठा, समर्पण, लगन और विनम्रता का सजीव अंकन किया है। लेखक का मानना है कि जिस प्रकार शुक्रतारा अपनी आभा दिखाकर घंटे-दो घंटे में अस्त हो जाता है उसी प्रकार से गांधी जी के सचिव महादेव भाई भी भारत की स्वतंत्रता के उषाकाल में अपनी आभा दिखाकर अचानक ही अस्त हो गए। गांधी जी उन्हें अपने पुत्र से भी अधिक मानते थे।

वे सन् 1917 ई० में गांधी जी के पास आए थे। सन् 1919 ई० में जलियाँवाला बाग हत्याकांड के संदर्भ में जब गांधी जी को पंजाब जाते हुए पलवल स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया तो उसी समय उन्होंने महादेव भाई को अपना वारिस कह दिया था। सन् 1929 ई० में महादेव भाई ने सारे देश में यात्राएँ की थीं। इन्हीं दिनों पंजाब में फ़ौजी शासन के अत्याचारों और नेताओं की गिरफ़्तारी के समाचार आ रहे थे। ‘ट्रिब्यून’ के संपादक कालीनाथ राय को दस साल की जेल की सजा दी गई थी।

महादेव भाई इन दिनों के जुल्मों की टिप्पणियाँ तैयार करके गांधी जी को देते थे तथा गांधी जी उनके आधार पर ‘बांबे क्रॉनिकल’ में लेख लिखकर भेजते थे। जब ‘क्रॉनिकल’ के संपादक हार्नोमैन को देश निकाला देकर इंग्लैंड भेज दिया गया तो शंकर लाल बैंकर, उम्मर सोबानी तथा जमना दास द्वारका दास के अनुरोध पर गांधी जी ‘यंग इंडिया’ के संपादक बन गए और इसमें लिखने लगे। ‘यंग इंडिया’ सप्ताह में दो बार प्रकाशित होने लगा।

बाद में ‘नवजीवन’ और ‘यंग इंडिया’ दोनों अहमदाबाद से प्रकाशित होने लगे थे। लेखक भी साबरमती में रहने लगा और इन दोनों साप्ताहिकों का वितरण, प्रकाशन आदि का कार्य देखने लगा। गांधी जी और महादेव भाई का अधिकांश समय देश भ्रमण में ही व्यतीत होता था। उनके लेख आते रहते थे। महादेव भाई देश-विदेश के प्रमुख समाचारों पर गांधी जी के साथ टीका-टिप्पणी कर लेख भेजते थे।

गांधी जी के पास आने से पहले महादेव भाई सरकार के अनुवाद विभाग में नौकरी करते थे। इन्होंने नरहरि भाई के साथ वकालत पढ़ी थी और अहमदाबाद में वकालत भी प्रारंभ की थी। लुई फिशर और गंथर भी अपनी टिप्पणियों का मिलान महादेव भाई की टिप्पणियों के साथ करने के बाद ही गांधी जी के पास ले जाते थे। महादेव भाई तत्कालीन राजनीति से संबंधित पुस्तकों को भी पढ़ते रहते थे तथा उनमें भारत से संबंधित जानकारियों को सहेज लेते थे तथा जहाँ भी अवसर मिलता ‘यंग इंडिया’ तथा ‘नवजीवन’ के लिए लेख लिखते रहते थे।

उनकी काम करने की गति बहुत तेज थी। वे चार घंटों का काम एक घंटे में निपटा देते थे। वे सूत बहुत सुंदर कातते थे। उनके लिए काम में रात और दिन के बीच कोई अंतर नहीं होता था। उनके खाने-पीने का भी किसी को पता नहीं चलता था कि कब खाया ? महादेव भाई से मिलकर ऐसा लगता था जैसे उनके व्यक्तित्व ने मिलनेवाले को सम्मोहित कर दिया हो। महादेव भाई का समूचा जीवन गांधी जी के साथ मिलकर एकरूप हो गया था।

उन्हें गांधी जी से अलग करने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। कामकाज की व्यस्तताओं में भी वे प्रतिदिन डायरी भी लिखते थे। इनकी लेखन शैली अत्यंत शिष्ट, संस्कार-संपन्न भाषा और मनोहारी थी। इन्होंने गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ का अंग्रेजी में अनुवाद किया था जो ‘यंग इंडिया’ में हर हफ्ते छपता रहा था। अब उसका पुस्तक संस्करण छप चुका है।

सन् 1934-35 ई० में गांधी जी वर्धा के महिला आश्रम में और मगनवाड़ी में रहने के बाद से गाँव की सीमा पर एक पेड़ के नीचे जा बैठे थे। तभी वहाँ एक-दो झोंपड़े बने और फिर धीरे-धीरे मकान भी बन गए थे। तब तक महादेव भाई, दुर्गा बहन और चिन्नारायण मगनवाड़ी में ही रहते थे। वहीं से वे वर्धा की भयंकर गरमी में भी प्रतिदिन ग्यारह मील चलकर सेवाग्राम आते-जाते थे। इसी के प्रतिकूल प्रभाव से उनकी अकाल मृत्यु हो गई। गांधी जी के मन पर उनकी मृत्यु का बहुत प्रभाव पड़ा था तथा वे भर्तृहरि के भजन की एक पंक्ति सदा दोहराते रहते थे कि ‘ए रे जखम जोगे नहि जशे’ अर्थात् यह घाव कभी योग से भरेगा नहीं। कई बार जब उन्हें प्यारेलाल जी को बुलाना होता था तो उनके मुख से ‘महादेव’ ही निकलता था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • आभा-प्रभा – चमक, तेज़।
  • कोई जोड़ न होना – कोई मुकाबला करने वाला न होना।
  • नक्षत्र-मंडल – तारा समूह।
  • कलगी रूप – तेज़ चमकनेवाला तारा।
  • हम्माल – बोझ उठानेवाला, कुली।
  • पीर – महात्मा, सिद्ध।
  • बावर्ची – खाना पकानेवाला, रसोइया।
  • भिश्ती – मशक से पानी ढोनेवाला व्यक्ति।
  • खर – घास, गधा।
  • आसेतुहिमाचल – रामेश्वर से हिमाचल तक विस्तीर्ण सेतुबंध।
  • दुलारे – प्यारे।
  • ब्यौरा – विवरण।
  • कालापानी – आजीवन कैद की सज़ा पाए कैदियों को रखने का स्थान, वर्तमान अंडमान-निकोबार द्वीप समूह।
  • रूबरू – आमने सामने।
  • धुरंधर – प्रवीण, उत्तम गुणों से युक्त।
  • टीका-टिप्पणी – व्याख्या, आलोचना।
  • चौकसाई – चौकस रहना, नज़र रखना।
  • कट्टर – दृढ़, जिसे अपने मत या विश्वास का अधिक आग्रह हो।
  • लाडला – प्यारा, दुलारा।
  • जिगरी दोस्त – गहरे मित्र।
  • पेशा – व्यवसाय।
  • स्याह – काला।
  • सल्तनत राज्य, हुकूमत।
  • व्याख्यान – भाषण, वक्तृता, किसी विषय की व्याख्या या टीका करना।
  • फुलस्केप – कागज़ का एक आकार।
  • चौथाई – चौथा भाग।
  • अग्रगण्य – प्रमुख, सबसे पहले गिना जाने वाला।
  • विवरण – वर्णन, व्याख्या।
  • अद्यतन – अब तक का, वर्तमान से संबंध रखने वाला।
  • गाद – तलहट, गाढ़ी चीज़।
  • सराबोर – तरबतर, डूबा हुआ।
  • अनवरत – लगातार।
  • सानी – बराबरी करनेवाला, उसी मोड़ का दूसरा।
  • अनगिनत – जिसे गिना न जा सके।
  • सिलसिला – क्रम।
  • अनायास – बिना किसी प्रयास के, आसानी से।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

JAC Class 9 Hindi धर्म की आड़ Textbook Questions and Answers

मौखिक –

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक- दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
आज धर्म के नाम पर क्या-क्या हो रहा है ?
उत्तर :
आज धर्म के नाम पर उत्पात हो रहे हैं। धर्म के नाम पर लोग जान लेने और देने के लिए तैयार हो जाते हैं। धर्म के नाम पर ज़िद की जाती है

प्रश्न 2.
धर्म के व्यापार को रोकने के लिए क्या उद्योग होने चाहिए ?
उत्तर :
धर्म के व्यापार को रोकने के लिए साहस और दृढ़ता के साथ उद्योग होने चाहिए। धर्म की उपासना के मार्ग में कोई रुकावट न हो तथा प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार अपने धर्म की आराधना कर सके।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

प्रश्न 3.
लेखक के अनुसार स्वाधीनता आंदोलन का कौन-सा दिन सबसे बुरा था ?
उत्तर :
स्वाधीनता आंदोलन का वह दिन सबसे बुरा था जिस दिन स्वाधीनता के क्षेत्र में खिलाफ़त, मुल्ला, मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान देना आवश्यक समझा गया।

प्रश्न 4.
साधारण-से- साधारण आदमी तक के दिल में क्या बात अच्छी तरह घर कर बैठी है ?
उत्तर :
साधारण-से-साधारण आदमी तक के दिल में यह बात अच्छी तरह घर कर बैठी है कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए प्राण तक दे देना उचित है।

प्रश्न 5.
धर्म के स्पष्ट चिह्न क्या हैं ?
उत्तर :
धर्म के स्पष्ट चिह्न शुद्धाचरण और सदाचार हैं।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
चलते – पुरज़े लोग धर्म के नाम पर क्या करते हैं ?
उत्तर :
कुछ चलते – पुरज़े लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए धर्म के नाम पर आम आदमी को भड़का देते हैं और वह बिना कुछ समझे-बूझे जिधर उन्हें हाँक दिया जाता है उधर ही उत्पात मचाने लगते हैं। वे धर्म-ईमान को जानें या न जानें, धर्म के नाम पर जान देने और जान लेने के लिए तैयार हो जाते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

प्रश्न 2.
चालाक लोग साधारण आदमी की किस अवस्था का लाभ उठाते हैं ?
उत्तर :
चालाक लोग यह जानते हैं कि साधारण-से- साधारण आदमी के दिल में यह बात अच्छी तरह बैठी हुई है कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए अपने प्राण तक दे देना उचित है। वह धर्म के वास्तविक स्वरूप से परिचित नहीं होता और परंपरा को निभाना ही अपना धर्म समझता है। उसकी अवस्था का चालाक लोग नाजायज़ फ़ायदा उठाकर धर्म के नाम पर दंगे करवा देते हैं।

प्रश्न 3.
आनेवाला समय किस प्रकार के धर्म को नहीं टिकने देगा ?
उत्तर
आनेवाला समय आडंबरपूर्ण धर्म को टिकने नहीं देगा। वह पाँच समय नमाज़ पढ़ने, दो-दो घंटे पूजा-पाठ करने के बाद दिन-भर बेईमानी करने और दूसरों को तकलीफ़ पहुँचानेवाले धर्म को टिकने नहीं देगा। नमाज़ और रोज़े, पूजा और गायत्री के नाम पर देश में उत्पात नहीं होने दिए जाएँगे।

प्रश्न 4.
कौन-सा कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाएगा ?
उत्तर :
देश में प्रत्येक व्यक्ति को उसके मन के अनुसार धर्म चुनकर अपनी इच्छा के अनुसार पूजा-पाठ करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। दो भिन्न धर्मों के माननेवालों को एक-दूसरे के धार्मिक अनुष्ठानों में बाधा नहीं डालनी चाहिए। यदि किसी धर्म के माननेवाले किसी दूसरे के धार्मिक मामलों में ज़बरदस्ती टाँग अड़ाते हैं तो उनका इस प्रकार का कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाएगा।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

प्रश्न 5.
पाश्चात्य देशों में धनी और निर्धन लोगों में क्या अंतर है ?
उत्तर :
पाश्चात्य देशों में धनी और निर्धन लोगों में बहुत अंतर है। बड़े-बड़े आलीशान महलों में धनी रहते हैं और निर्धन मामूली-सी झोंपड़ी में जीवन व्यतीत करते हैं। धनी निर्धनों की कमाई से ही दिन-प्रतिदिन और अधिक धनवान होते जाते हैं। वे सदा निर्धनों का शोषण करते रहते हैं।

प्रश्न 6.
कौन-से लोग धार्मिक लोगों से अच्छे हैं ?
उत्तर
वे लोग धार्मिक लोगों से अच्छे हैं, जो नास्तिक हैं तथा दूसरों के सुख-दुख का ध्यान रखते हैं। ऐसे लोग धर्म के नाम पर अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए आम आदमी को उकसाते नहीं हैं। इनका आचरण अच्छा होता है। वे मानवतावादी होते हैं। उनमें पशुत्व नहीं होता है।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (पचास-साठ शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले भीषण व्यापार को कैसे रोका जा सकता है ?
उत्तर :
धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले भीषण व्यापार को रोकने के लिए हमें साहस और दृढ़तापूर्वक प्रयास करने होंगे। इसके लिए धर्म की उपासना के मार्ग में किसी प्रकार की बाधा नहीं होनी चाहिए। जो जैसे चाहे उसी प्रकार से अपने धर्म को अपनाकर पूजा-अर्चना करे। दो भिन्न धर्मों को माननेवाले आपस में द्वेष-भाव न रखें। यदि कोई किसी धर्म के माननेवाले के धार्मिक कार्यों में बाधा डाले तो उसे दंडित किया जाए।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

प्रश्न 2.
‘बुद्धि की मार’ के संबंध में लेखक के क्या विचार हैं ?
उत्तर :
‘बुद्धि की मार’ से लेखक का यह तात्पर्य है कि एक साधारण व्यक्ति को धर्म के तत्वों का वास्तविक ज्ञान नहीं होता है। वह तो अपने धर्म गुरुओं द्वारा बताए हुए नियमों तथा परंपराओं के अनुसार आचरण करता रहता है। कुछ स्वार्थी तथा चालाक धर्मांध लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए ऐसे आम लोगों को दूसरे धर्मवालों के विरुद्ध इस प्रकार भड़का देते हैं कि वे बिना सोचे-समझे धर्म के नाम पर मरने-मारने के लिए तैयार हो जाते हैं। इस प्रकार उनकी बुद्धि पर परदा पड़ जाता है और वे उत्पात मचाना शुरू कर देते हैं। इसी को ‘बुद्धि की मार’ कहा गया है। इस स्थिति में सोचने-समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है।

प्रश्न 3.
लेखक की दृष्टि में धर्म की भावना कैसी होनी चाहिए ?
उत्तर :
लेखक का मानना है कि धर्म की उपासना के मार्ग में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। जिसका मन जिस प्रकार चाहे, उसी प्रकार धर्म की भावना को अपने मन में जगाने के लिए स्वतंत्र हो। धर्म मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच का संबंध हो, आत्मा को शुद्ध करने और ऊँचे उठाने का साधन हो। दो भिन्न धर्मों के माननेवालों के बीच टकराव नहीं होना चाहिए। जो व्यक्ति जैसा धर्म अपनाना चाहे उसे वैसा धर्म अपनाने और मानने की आज़ादी मिलनी चाहिए।

प्रश्न 4.
महात्मा गांधी के धर्म संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
महात्मा गांधी ने धर्म को सर्वत्र मान्यता दी है। वे जीवन का प्रत्येक कार्य धर्म के अनुसार करते थे। धर्म से उनका तात्पर्य आडंबरों से नहीं था। वे धर्म का अर्थ जीवन में ऊँचे तथा उदार भावों को अपनाना मानते थे। वे ऐसी पूजा-पाठ, नमाज़ पढ़ना आदि व्यर्थ मानते थे जिसके बाद मनुष्य दिन-भर बेईमानी करता रहे। वे शुद्ध आचरण तथा सज्जनतापूर्वक जीवन-यापन करने को ही धर्म मानते थे।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

प्रश्न 5.
सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
लेखक का मानना है कि यदि हम समाज को धर्मानुसार चलाना चाहते हैं तो हमें अपने आचरण को सुधारना होगा। यदि हमारा आचरण अच्छा नहीं होगा तो सारा समाज ही भ्रष्ट हो जाएगा। लोग मुँह में राम बगल में छुरी जैसा आचरण करने लगेंगे। सर्वत्र उत्पात होंगे। एक दूसरे का गला काटने को सब तैयार हो जाएँगे। यदि हम अपना आचरण सुधार लेंगे तो हमारी देखा-देखी अन्य लोग भी अपना आचरण सुधार लेंगे। इस प्रकार एक के आचरण के सुधरने से सारा समाज सुधर जाएगा तथा सबका कल्याण होगा।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
उबल पड़ने वाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं समझता-बूझता, और दूसरे लोग उसे जिधर जोत देते हैं, उधर जुत जाता है।
उत्तर :
लेखक का मानना है कि आम आदमी को धर्म के संबंध में कुछ भी पता नहीं होता। उसे कुछ स्वार्थी लोग दूसरे धर्मावलंबियों के विरुद्ध इतना अधिक भड़का देते हैं कि वह उनके प्रति गुस्से से भर उठता है। वह गुस्से में अपने समझने-बूझने की शक्ति खो बैठता है और स्वार्थी लोग उसे जिस ओर हाँक देते हैं वह उधर ही चल पड़ता है।

प्रश्न 2.
यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना, और फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना-भिड़ाना।
उत्तर :
इन पंक्तियों में लेखक उन धर्माचार्यों पर कटाक्ष कर रहा है जो आम आदमी को अपने आडंबरपूर्ण धार्मिक अनुष्ठानों से इतना मोहित कर लेते हैं कि वे उन्हें ही ईश्वर का दूत समझने लगते हैं। वे अपनी सोचने-विचारने की शक्ति खो बैठते हैं। तब ये धर्माचार्य अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए इन आम आदमियों को ईश्वर, धर्म, आत्मा, ईमान आदि का नाम लेकर अन्य धर्मों के माननेवालों के विरुद्ध भड़का कर दंगा-फसाद करा देते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

प्रश्न 3.
अब तो, आपका पूजा-पाठ न देखा जाएगा, आपकी भलमनसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगी।
उत्तर :
लेखक का मानना है कि आनेवाले समय में आडंबरपूर्ण तथा बेईमानी भरे धर्म-ईमान के लिए कोई स्थान नहीं रहेगा। इस युग में कोई किसी के पूजा-पाठ के आधार पर उसे सम्मान नहीं देगा बल्कि यह देखा जाएगा कि उसका आचरण कैसा है ? आपके अच्छे आचरण के आधार पर ही आपकी सज्जनता का मूल्यांकन किया जाएगा

प्रश्न 4.
तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा, दया करके, मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो!
उत्तर :
लेखक बेईमान, धोखेबाज़ धर्माचार्यों तथा धार्मिक लोगों की अपेक्षा उन नास्तिकों को श्रेष्ठ मानता है जो अच्छे आचरणवाले हैं तथा दूसरों सुख-दुख में उनका साथ देते हैं। उन पाखंडियों से तो ईश्वर भी यही कहता है कि आप जैसे पाखंडियों के मानने से मेरा ईश्वरत्व दुनिया में कायम नहीं रह सकता। इसलिए तुम मुझपर दया करो और मानवता को मानो। तुम्हें पशुत्व त्याग कर मानव बनना होगा तभी तुम्हें भी ईश्वर मिल सकेगा।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
उदाहरण के अनुसार शब्दों के विपरीतार्थक लिखिए –
उदाहरण: सुगम – दुर्गम
धर्म, ईमान, साधारण, स्वार्थ, दुरुपयोग, नियंत्रित, स्वाधीनता।
उत्तर :

  • धर्म – अधर्म
  • ईमान – बेईमान
  • साधारण – असाधारण
  • स्वार्थ – निःस्वार्थ
  • दुरुपयोग – सदुपयोग
  • नियंत्रित – अनियंत्रित
  • स्वाधीनता – पराधीनता।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित उपसर्गों का प्रयोग करके दो-दो शब्द बनाइए –
ला, बिला, बे, बद, ना, खुश, हर, गैर।
उत्तर :

  • ला – लाचार, लापता।
  • बिला- बिलावजह, बिलाकसूर।
  • बे – बेईमान, बेरहम।
  • बद – बदनाम, बदनियत।
  • ना – नाचीज़, नापसंद।
  • खुश – खुशबू, खुशहाल।
  • हर – हरतरह, हरसाल।
  • गैर- गैरकानूनी, गैरमुल्क।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

प्रश्न 3.
उदाहरण के अनुसार ‘त्व’ प्रत्यय लगाकर पाँच शब्द बनाइए –
उदाहरण: देव + त्व = देवत्व
उत्तर :

  • लघु + त्व = लघुत्व
  • गुरु + त्व गुरुत्व
  • प्रभु + त्व प्रभुत्व
  • देव + त्व = देवत्व
  • ईश्वर + त्व = ईश्वरत्व।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित उदाहरण को पढ़कर पाठ में आए संयुक्त शब्दों को छाँटकर लिखिए –
उदाहरणः चलते-पुरज़े
उत्तर :

  • समझता – बूझता
  • पढ़े – लिखे
  • इने – गिने
  • मन – माना
  • लड़ाना – भिड़ाना
  • भली – भाँति
  • पूजा – पाठ।

प्रश्न 5.
‘भी’ का प्रयोग करते हुए पाँच वाक्य बनाइए –
उदाहरण : आज मुझे बाज़ार होते हुए अस्पताल भी जाना है।
उत्तर :
(क) सलमा तो वहीदा को भी अपने साथ विद्यालय ले जाएगी।
(ख) रोहित भी सैम्सन के साथ मुंबई जाएगा।
(ग) शांता भी कांता के साथ सुबह नौ बजे की लोकल से अँधेरी जाती है।
(घ) अहमद भी अशोक के साथ ट्यूशन पढ़ने जाता है।
(ङ) हमें भी गांधी जी की तरह सत्यवादी बनना चाहिए।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

योग्यता – विस्तार –

प्रश्न 1.
‘धर्म एकता का माध्यम है’ – इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi धर्म की आड़ Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘धर्म की आड़’ निबंध का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘धर्म की आड़’ निबंध के लेखक गणेश शंकर विद्यार्थी हैं। इस निबंध में लेखक ने उन धर्माचार्यों की पोल खोली है जो धर्म की आड़ लेकर जनता को भड़काते हैं तथा एक-दूसरे धर्मावलंबियों को आपस में लड़वाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। लेखक का मानना है कि एक सामान्य व्यक्ति धर्म के रहस्य को समझ नहीं पाता। इसलिए उसके भोलेपन का लाभ तथाकथित धर्म गुरु उठाते हैं। वे उन्हें गुमराह कर दूसरे धर्मवालों से लड़ाते रहते हैं और अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं। लेखक ऐसे लोगों से बचकर मानव-धर्म को अपनाने पर बल देता है। हम सुख-दुख में एक-दूसरे की सहायता करें। हमारा आचरण शुद्ध हो। हम किसी के धार्मिक अनुष्ठानों में बाधक न बनें। हम सबको अपने-अपने धर्म के अनुसार पूजा-पाठ की स्वतंत्रता हो। यही सच्चा धर्म है।

प्रश्न 2.
हमारे देश और पश्चिमी देशों में आम आदमी की डोर किसके हाथ में है और उसमें क्या अंतर है ?
उत्तर :
सभी जगह आम आदमी की शक्ति का दुरुपयोग किया जाता है। हमारे देश में आम आदमी की डोर धर्म के ठेकेदारों के हाथ में है और पश्चिमी देशों में आम आदमी की डोर धनपतियों के हाथ में है। यहाँ आम आदमी को ईश्वर धर्म-कर्म और आत्मा का डर दिखाकर उसे बुद्धिहीन कर दिया जाता है और वह अपने धर्मगुरु के बताए मार्ग पर चलकर उसकी स्वार्थ सिद्धि के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। पश्चिमी देशों में धनपति धन की शक्ति दिखाकर लोगों को अपने प्रभाव में लेते हैं और अपनी इच्छानुसार उनसे और अधिक धन कमाने के लिए काम करवाते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

प्रश्न 3.
लेखक धार्मिक झगड़ों को समाप्त करने के लिए क्या सुझाव देता है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार धार्मिक झगड़ों को समाप्त करने के लिए हमें साहस और दृढ़ता के साथ स्वार्थी तत्वों को बेनकाब करना होगा। धर्म और उपासना के मार्ग में किसी भी प्रकार की कोई रुकावट नहीं आने देनी चाहिए। धर्म और ईमान, ईश्वर और आत्मा के मध्य संबंध होना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म की पूजा-अर्चना करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए और कोई भी व्यक्ति किसी के धार्मिक कार्यों में अड़चन न डाले।

प्रश्न 4.
देश की स्वाधीनता के लिए किए जा रहे उद्योग में कौन-सा दिन सबसे बुरा था ? क्यों ?
उत्तर :
देश की स्वाधीनता के लिए किए जा रहे उद्योग में सबसे बुरा दिन वह था जिस दिन स्वाधीनता के क्षेत्र में खिलाफ़त, मुल्ला, मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान देना आवश्यक समझा गया। ऐसा करने से मौलाना अब्दुल बारी और शंकराचार्य जैसे लोगों ने देश में धर्म के नाम पर ढोंग, पागलपन और उत्पात आरंभ कर दिए थे और देश को एक अलग ही दिशा दे दी।

प्रश्न 5.
महात्मा गांधी के अनुसार धर्म क्या है ? हमें उनसे क्या सीखना चाहिए ?
उत्तर :
महात्मा गाँधी जीवन में उच्च विचार और उदार गुण को अपनाने को धर्म मानते हैं। इसके लिए मनुष्य को सदाचारी, सत्यवादी, परोपकारी, सज्जन और सहनशील होना चाहिए। अपने आचरण को शुद्ध रखते हुए सबसे मेल-मिलाप बनाए रखें। सदा दूसरों के सुख-दुख में सहयोगी बनें। हमें गाँधी जी के जीवन से यह सीखना चाहिए कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में धर्म के अनुसार आचरण करना है, जिससे हम एक अच्छा समाज बना सकें। इससे समाज में धर्म के नाम पर उत्पात नहीं होंगे तथा सब परस्पर मिल-जुलकर रहेंगे।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

प्रश्न 6.
ला- मज़हब से क्या अभिप्राय है और ईश्वर इन लोगों से अधिक प्यार क्यों करेगा?.
उत्तर :
ला – मज़हब से अभिप्राय यह है कि ‘जिसका कोई धर्म न हो’ अथवा ‘जो किसी भी धर्म को नहीं मानता हो’ ऐसे लोगों को नास्तिक भी कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति किसी भी प्रकार से धार्मिक आडंबरों को नहीं मानते हैं। ईश्वर ऐसे लोगों से अधिक प्यार करेगा जो धर्म के नाम पर दिखावा नहीं करते। जो अच्छे और ऊँचे विचारोंवाले हों। जिनका आचरण शुद्ध हो। जो सुख-दुख में सबका साथ देते हों। इन लोगों की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं होता है।

प्रश्न 7.
‘मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
लेखक इस कथन के माध्यम से यह संदेश देना चाहता है कि हमें मानवता को बढ़ावा देना चाहिए। इसके लिए हमें अपने आचरण में मानवतावादी गुणों का विकास करना चाहिए। पशुओं के समान आचरण नहीं करना चाहिए। यदि हम ऐसा आचरण करने लगेंगे तो समाज में धार्मिक उत्पात बंद हो जाएँ, विश्वबंधुत्व की भावना को बल मिलेगा और पशुता का नाश होगा।

धर्म की आड़ Summary in Hindi

लेखक परिचय :

जीवन-परिचय – गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म मध्यप्रदेश के ग्वालियर नगर में सन् 1891 ई० में हुआ था। इन्होंने एंट्रेंस परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद कानपुर के करेंसी कार्यालय में नौकरी कर ली थी। सन् 1921 ई० में इन्होंने ‘प्रताप’ साप्ताहिक – पत्र निकाला था। इन्होंने आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी को अपना साहित्यिक गुरु मानकर आज़ादी के लिए संघर्ष करने की प्रेरणादायक रचनाओं की रचना की थी। इन्होंने ऐसी कुछ रचनाओं का अनुवाद भी किया था। स्वतंत्रता आंदोलनों में सक्रिय रूप में भाग लेने के कारण इन्हें कई बार जेल यात्राएँ करनी पड़ी थीं। सन् 1931 ई० में कानपुर में हुए सांप्रदायिक दंगों को शांत करवाते हुए इनकी मृत्यु हो गई थी। इनकी मृत्यु पर गांधी जी ने कहा था कि ‘काश ! ऐसी मौत मुझे मिली होती !’

रचनाएँ – गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपनी रचनाओं में ग़रीबों, किसानों, मज़दूरों तथा समाज के अन्य शोषित वर्गों के प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त करते हुए उनकी दयनीय दशा का यथार्थ चित्रण किया है ‘प्रताप’ साप्ताहिक में इनके लेख देश को आजादी दिलाने के लिए युवा वर्ग को प्रेरित करते थे। इनकी रचनाओं में सांप्रदायिक सद्भाव का स्वर मुखरित होता था।

भाषा-शैली – गणेश शंकर विद्यार्थी की भाषा – शैली अत्यंत सरल, सहज, व्यावहारिक तथा प्रभावपूर्ण है। ‘ धर्म की आड़’ लेख में इन्होंने व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग किया है। इनका व्यंग्य अत्यंत तीक्ष्ण तथा मर्मभेदी होता है, जैसे – ‘ इस समय, देश में धर्म की धूम है। उत्पात किए जाते हैं, तो धर्म और ईमान के नाम पर, और ज़िद की जाती है, तो धर्म और ईमान के नाम पर।’

लेखक ने तत्सम प्रधान और लोक प्रचलित उर्दू के शब्दों का भरपूर प्रयोग किया है, जैसे- दुरुपयोग, नेतृत्व, अट्टालिकाएँ, पाश्चात्य, स्वार्थ, शुद्धाचरण, ईश्वरत्व, कायम, दीनदार, मज़हब, बेईमानी, एतराज़, खिलाफ़त, जाहिल, वाजिब। लेखक ने कहीं-कहीं उद्बोधनात्मक शैली का प्रयोग भी किया है, जैसे- ‘सबके कल्याण की दृष्टि से आपको अपने आचरण को सुधारना पड़ेगा और यदि आप अपने आचरण को नहीं सुधारेंगे तो नमाज़ और रोज़े, पूजा और गायत्री आपको देश के अन्य लोगों की आज़ादी को रौंदने और देश-भर में उत्पातों का कीचड़ उछालने के लिए आज़ाद न छोड़ सकेगी।’ इस प्रकार लेखक ने अपने विषय को सहज भाव से व्यक्त करने में सफलता प्राप्त की है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

पाठ का सार :

‘धर्म की आड़’ गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा रचित निबंध है। इस पाठ में लेखक ने धर्म के नाम पर लोगों को आपस में लड़ाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करनेवालों पर कटाक्ष किया है। लेखक का मानना है कि इस समय देश में धर्म की धूम है। धर्म और ईमान के नाम पर उत्पात किए जाते हैं। रमुआ पासी और मियाँ धर्म और ईमान की वास्तविकता चाहे जानें या न जानें पर उनके नाम पर मरने-मारने को तैयार हो जाते हैं।

देश के सभी शहरों की यही दशा है। आम आदमी बिना कुछ समझे-बूझे कुछ स्वार्थी तत्वों के संकेतों पर उत्पात मचाने लग जाता है। इससे उन स्वार्थी लोगों को नेतृत्व मिल जाता है। वे अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेते हैं। आम आदमी धर्म के तत्वों को जानता नहीं है। वह तो यही समझता है कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए अपने प्राण तक दे देना उचित है। इसी का लाभ उठाकर चालाक स्वार्थी लोग उन्हें भड़का देते हैं।

पाश्चात्य देशों में धनी और गरीबों के संघर्ष के कारण साम्यवाद, बोल्शोविज़्म आदि का जन्म हुआ था। हमारे देश में ऐसी स्थिति तो नहीं है परंतु धर्म के नाम पर करोड़ों लोगों की शक्ति का दुरुपयोग हो रहा है और इसका लाभ कुछ स्वार्थी लोग उठा रहे हैं। धर्म और ईमान के नाम पर किए जानेवाले इस भीषण व्यापार को रोकने के लिए जब तक साहस और दृढ़ता के साथ प्रयास नहीं किया जाएगा तब तक भारतवर्ष में ऐसे झगड़े बढ़ते ही रहेंगे।

लेखक का विचार है कि देश में प्रत्येक व्यक्ति अपने धर्म की उपासना अपने ढंग से करने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए। धर्म और ईमान मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच संबंध हो, आत्मा को शुद्ध करने और ऊँचा उठाने का साधन हो। इससे किसी दूसरे व्यक्ति की स्वाधीनता को हानि नहीं पहुँचनी चाहिए। दो भिन्न धर्मों के माननेवालों में टकराव नहीं होना चाहिए। यदि कोई ऐसा कार्य करता है तो उसका यह कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध माना जाए।

लेखक ने स्वाधीनता संग्राम के दिनों में उस दिन को सबसे बुरा दिन माना है जब स्वाधीनता आंदोलन में मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान दिया गया था। इसी के परिणामस्वरूप मौलाना अब्दुल बारी तथा शंकराचार्य जैसे लोगों ने देश में मज़हबी पागलपन, प्रपंच और उत्पात का राज्य स्थापित कर दिया था। महात्मा गांधी ने धर्म को सर्वत्र महत्त्व दिया है। उनके अनुसार धर्म का अर्थ ऊँचे और उदार विचारों से था।

वे आवाज़ देने, शंख बजाने के स्थान पर शुद्धाचरण और सदाचार को धर्म मानते थे। लेखक भी पाँच समय नमाज़ पढ़ने अथवा दो घंटे तक पूजा करने के बाद दिन-भर बेईमानी करने को उचित नहीं मानता। वह आचरण को सुधारने पर बल देता है। ऐसे आडंबरी धार्मिक और दीनदार व्यक्तियों से तो वह उन नास्तिकों को अच्छा और ऊँचा मानता है, जिनका आचरण अच्छा है जो दूसरों के सुख-दुख का ध्यान रखते हैं और धर्म-ईमान के नाम पर उत्पात मचाना ग़लत समझते हैं। ईश्वर भी ऐसे ही नास्तिकों को प्यार करता है जो मानवता को आदर देते हैं तथा पशुता को त्याग देते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • आड़ – ओट।
  • उत्पात – उपद्रव।
  • उबल पड़ना – क्रोधित होना।
  • दोष – बुराई।
  • जोत देना – हाँक देना, चला देना।
  • चलते-पुरजज़े – चालाक।
  • जाहिल – मूर्ख।
  • नेतृत्व – अगुवाई।
  • कायम – स्थिर।
  • सुगम – आसान।
  • वाज़िब – उचित।
  • बेजा – अनुचित।
  • फ़ायदा – लाभ।
  • अट्टालिकाएँ – ऊँचे-ऊँचे मकान।
  • धनाढ्य – धनवान, अमीर।
  • चूसा जाना – शोषण होना।
  • स्वार्थ सिद्धि – अपना स्वार्थ पूरा करना।
  • उद्योग – प्रयास।
  • टाँग-अड़ाना – विघ्न डालना।
  • विरुद्ध – विपरीत।
  • अनियंत्रित – जो नियंत्रण में न हो।
  • धूर्त – चालबाज़।
  • खिलाफ़त – ख़लीफ़ा का पद।
  • मज़हबी – धार्मिक।
  • प्रपंच – ढोंग, छल।
  • एतराज़ – विरोध, आपत्ति।
  • भलमनसाहत – सज्जनता, शराफ़त।
  • कसौटी – परख, जाँच।
  • ला-मज़हब – जिसका कोई धर्म न हो, नास्तिक।
  • उकसाना – भड़काना।